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आपको उस बात की भी खबर है?”
“क्यों नहीं होगी भाई, मैं क्या विदेश में रहता हूं, ऊपर से मेरा ड्राइवर साल भर पहले तक मीनाक्षी का ही ड्राइवर हुआ करता था, उससे क्या कोई बात छिपी रही सकती थी?”
“नाम क्या है उसका?”
“ड्राइवर का?”
“जी हां।”
“विशम्मभर! जिस आदमी ने तुम्हारी गर्दन पर पिस्तौल रखी थी वह विशम्मभर ही था, उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो?”
“कोई खास वजह नहीं है” - पनौती बोला – “मगर ये बात समझ में नहीं आती कि मां के किसी यार ने बेटे का कत्ल क्यों कर दिया?”
“खुन्नस निकालने के लिये, और किस लिये करता?”
“वाकिफ हैं आप ऐसे किसी शख्स से जिसकी मीनाक्षी के साथ पुरानी आशनाई रही हो?”
“पुरानों के बारे में तो मैं नहीं जानता मगर आजकल एक वकील के साथ उसका बहुत गहरा याराना है, अक्सर उसके साथ आती-जाती दिखाई दे जाती है।”
“मान लीजिये ये वैसे किसी शख्स का कारनामा नहीं है, ऐसे में कोई और नाम सूझता है आपको?”
“उसके बड़े भाई से पूछताछ कर के देखो।”
“वह भला छोटे का कत्ल क्यों करेगा?”
“आशिक मिजाज आदमी है, क्या पता छोटे भाई की बीवी पर उसका दिल आ गया हो, टीवी पर कोमल की सूरत देखी थी मैंने, बहुत खूबसूरत दिखाई देती है।”
“अगर छोटे भाई की बीवी की खातिर उसने हत्या को अंजाम दिया था तो उसे जेल क्यों चले जाने दिया?”
“जानबूझकर नहीं जाने दिया होगा, मगर परिस्थितियों पर किसका जोर चलता है, क्या पता उसे लगने लगा हो कि अगर कोमल पर कत्ल का इल्जाम नहीं आयद हुआ तो उसकी खुद की पोल खुल जायेगी। ऐसे में वह खुद को बचाने की कोशिश करता या कोमल को?”
“जाहिर है खुद को ही बचाता, मगर महज इतनी सी बात के लिये उसने अपने छोटे भाई का कत्ल कर दिया हो कि वह उसकी बीवी के साथ रिलेशंस बनाना चाहता है, ये बात कुछ हजम नहीं होती।”
“उसपर निगाह रखकर देखो, अगर वह कोमल को बचाने की कोशिश करता दिखाई दे तो समझ लेना कि प्रियम को उसी ने मारा है, वरना मेरी बात का कोई मतलब नहीं है” –
कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “एक बात और है जो उसके रंगीन मिजाज को जाहिर करती है।”
“क्या?”
“विशम्भर की बीवी उसके घर में नौकरानी का काम करती थी, एक रोज पट्ठे ने एकांत देखकर उसका हाथ थाम लिया और उसे काबू में करने की कोशिश करने लगा, तब वह किसी तरह उसके चंगुल से निकल कर भाग खड़ी हुई थी। बाद में जब विशम्भर के जरिये मुझे उस बात की जानकारी मिली तो मैंने उसे जमकर लताड़ लगाई और साफ कह दिया कि कैसा मर्द है वह जो अपनी जोरू के साथ हुई बद्तमीजी का बदला तक नहीं लिया। मैंने तो उससे ये भी कहा था, कि अगर तुझे डर लगता है तो वह काम मैं किसी और को करने को कह देता हूं। मगर उसने किसी भी हाल में हामी नहीं भरी।”
“भर देता तो आप अनुराग का कत्ल करवा देते?”
“बेशक करवा देता, अपने आदमियों का ख्याल मैं नहीं रखूंगा तो कौन रखेगा। वह मेरे लिये हर वक्त जान देने को तैयार रहते हैं तो क्या मैं उनकी खातिर इतना भी नहीं कर सकता?”
“किसी का कत्ल करवा देना आपको इतनी सी बात लगती है?”
जवाब में निरंजन ने जोर से ठहाका लगाया, फिर बोला, “वक्त आने दे इस बात का जवाब भी तुझे खुद ब खुद ही मिल जायेगा।”
“मैं उस घड़ी का इंतजार करूंगा, बहरहाल ये बताइये कि कत्ल के वक्त आप कहां थे?”
“यहीं अपने बंगले में था।”
“साबित कर सकते हैं?”
“अगर मेरे आदमियों की गवाही पर ऐतबार लाओ तो कर सकता हूं वरना नहीं कर सकता। लेकिन महज इसलिए मैं कातिल नहीं हो जाता कि मेरे पास उस वक्त की कोई यकीन के काबिल एलिबाई नहीं है।”
“ये बात तो सौ फीसदी दुरूस्त है आपकी।”ऊपर से साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि यह इनसाइड जॉब है, इसलिए बाहर वालों के पीछे पड़ने से पुलिस को कुछ हासिल नहीं होने वाला।”
“चलिये ऐसा ही सही।”
“फिर भी अगर तुम्हें तसल्ली ना हो तो संजीव चौहान को चेक करना, उसका मरने वाले से बहुत तगड़ा याराना था। इस तरह की वारदात को दो ही लोग अंजाम देते हैं, दोस्त या दुश्मन, ऊपर से कोमल के साथ उसके गहरे ताल्लुकात बताये जाते हैं।”
“शुक्रिया जनाब, इतनी सी तो बात थी, आप खामख्वाह अपने एक आदमी के घायल होने की वजह बन गये।”
“जो हुआ तुम दोनों के किये हुआ, याद रखना इसका खामियाजा तुम लोगों को भुगतना ही पड़ेगा।”
“आप पुलिस में कंप्लेन करेंगे?”
“मैं अपना हिसाब-किताब खुद चुकता करता हूं छोकरे, इस बार भी ऐसा ही होगा, और जब होगा तो तू मेरे कदमों में पड़ा अपने लिये रहम की भीख मांग रहा होगा।”
“जबकि रिवाल्वर मेरे हाथ में है।”
“बेशक तेरे हाथ में तोप ही क्यों न हो, आने वाले दिनों में सावधान रहना, कुछ पता नहीं चलता मौत किसी दरवाजे से भीतर दाखिल हो जाये।”
“यानि छिपकर वार करेंगे?”
“नहीं, बुजदिलों वाले काम करना मैं पसंद नहीं करता, तूने मेरे घर में घुसकर मुझपर हाथ उठाने की जुर्रत की है, तो मैं तुझे तेरे घर में घुसकर मारूंगा, इंतजार करना अपने जीवन के आखिरी दिन का।”
“पुलिस तो फिर भी यहां आकर रहेगी जनाब, बल्कि इंस्पेक्टर साहब की सूरत में कानून का एक रखवाला पहले से ही यहां मौजूद है।”
“कैसा रखवाला? जिसने अपनी आंखों के सामने इतना बवेला हो जाने दिया, यहां तक की मेरे वाचमैन को भी तुम दोनों ने बुरी तरह पीटा था?”
“आप कौन सा हमें लोरी गाकर सुनाने वाले थे।”
“कम से कम कत्ल तो नहीं कर देता मैं तुम दोनों का।”
“कसर भी क्या रह गई थी, हुक्म तो दे ही चुके थे आप, अगर आपकी नीयत में खोट नहीं था तो पूरी तैयारी के साथ हम दोनों को भीतर लेकर नहीं आये होते।”
“मेरा इरादा तुम दोनों को महज सबक सिखाने का था ना कि अपने ही बंगले में मैं दो लाशें बिछा देता।”
“वही सही मगर जवाब तो आपको देना ही पड़ेगा, पुलिस की कार्रवाई तो झेलनी ही पड़ेगी।”
तभी एसओ वीर सिंह अपने लाव-लश्कर के साथ हॉल में दाखिल हुआ।
निरंजन चौधरी बहुत बड़ा घाघ इंसान निकला, उसने अपने बयान में कहा कि पुलिस को भीतर आया देखकर उसके आदमी डर गये और गलतफहमी का शिकार होकर उनपर पिस्तौल तान बैठे, उसी दौरान उसके आदमी के किसी एक्शन से इंस्पेक्टर को लगा कि वह उसके साथी पर गोली चलाने पर अमादा था, तब इंस्पेक्टर ने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर गोली चला दी। जबकि उसके आदमी का गोली चलाने का कोई इरादा नहीं था, वह उसके हुक्म दिये बिना वैसा कोई कदम उठा ही नहीं सकता था। ना ही वैसा करने की कोई वजह थी।
हैरानी की बात ये थी कि ना तो सतपाल ने उसकी जुबान पकड़ने की कोशिश की ना ही पनौती ने उस बारे में अलग से कुछ कहा।
निरंजन और उसके चमचों को साथ लेकर पुलिस थाने पहुंची। उस बात की खबर तत्काल डीसीपी भड़ाना को की गई। निरंजन राजपूत का नाम सुनकर वह नींद से उठ बैठा और तैयार होकर आधा घंटा के भीतर थाने पहुंच गया।
दोनों पक्षों की बातें ध्यान से सुनने के बाद आखिरकार गोली खाये शख्स को दो पुलिस वालों के साथ नजदीकी अस्पताल भेज दिया गया। जाने से पहले अपने बयान में उसने भी निरंजन के कहे की ही पुष्टि की थी। उसने साफ साफ कहा कि रिवाल्वर का रूख इंस्पेक्टर साहब ने अपने साथी की तरफ होता देखकर ये समझा कि वह उनके साथी पर गोली चलाने जा रहा है, इसी वजह से उन्होंने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर फायर कर दिया था। जब कि उसने गोली चलाने के बारे में सोचा तक नहीं था, एक पुलिस ऑफिसर की मौजूदगी में वह वैसी हरकत भला कैसे कर सकता था।उसके बाद डीसीपी के आदेश पर सबसे पहले पनौती को वहां से चलता किया गया। फिर एसओ के कमरे में पुलिस अधिकारी निरंजन राजपूत के साथ सिर से सिर जोड़कर मंत्रणा करने लगे।
दस मिनट बाद सतपाल को वहां तलब किया गया।
“बिना कोई फसाद खड़ा किये किसी केस की तहकीकात नहीं कर सकते तुम?” - डीसीपी कुलदीप भड़ाना उसे घूरता हुआ बोला – “फिर तुमने ये कैसे सोच लिया कि प्रियम शर्मा के केस से निरंजन साहब का कोई लेना-देना हो सकता है?”
“सॉरी सर! मैं तो बस कुछ रूटीन पूछताछ के लिये इनके बंगले पर गया था। आप को याद होगा करीब महीना भर पहले इनका प्रियम शर्मा के साथ एक एक्सीडेंट को ले कर झगड़ा हुआ था, तब उसने इनके खिलाफ कंप्लेन लिखवाने की भी कोशिश की थी।”
“और तुमने दो में दो जोड़कर नतीजा छत्तीस निकाल लिया? ये तक नहीं सोचा कि वह मामूली सा झगड़ा था जो उसी रोज खत्म हो गया था। लोग-बाग इतनी छोटी छोटी बातों के लिये अगर किसी का कत्ल करने लग जाते तो देश की आधी आबादी खत्म हो गई होती अब तक।”
“ये कर सकते थे सर” - सतपाल धीरे से बोला – “इन्होंने मेरे सामने ये बात कबूल की थी कि ये प्रियम के कत्ल का इरादा बना चुके थे, मगर आपके दखलअंदाज होने के कारण इन्होंने उसे बख्श दिया था।”
“खत्म करो अब इस बात को” - भड़ाना बोला – “इनके जिस आदमी पर तुमने गोली चलाई थी, उसके खिलाफ मामला दर्ज कर के उसे कोर्ट में पेश करो आगे जो निर्णय लेना होगा, अदालत लेगी।”
“वहां से आठ गैर लायसेंसी रिवाल्वर्स बरामद हुई हैं जनाब, उनका क्या करना है?”
“कुछ नहीं करना, वहां से कोई रिवाल्वर बरामद नहीं हुई है, वहां सिर्फ एक आदमी हथियारबंद था जो कि तुम्हारे हाथों गोली खा गया था, समझे कुछ?”
“जी जनाब” - सतपाल तत्पर स्वर में बोला – “समझ गया, लेकिन आप भूल रहे हैं कि इनके बंगले पर मैं अकेला नहीं था। राज शर्मा भी वहां मेरे साथ पहुंचा था, जिसको खामोश रहने के लिये तैयार कर पाना आसान नहीं होगा।”
“उसकी जिम्मेदारी तुमपर है, मैंने नहीं कहा था कि इन्वेस्टीगेशन के वक्त तुम उसे साथ ले कर घूमो, इसलिए उसे कैसे हैंडल करना है ये तुम जानो, मगर चेतावनी है तुम्हें, इस मामले में अलग से कोई झमेला मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा, समझ गये?”
“जी जनाब।”
“गुड अब तुम जा सकते हो।”
भुनभुनाता हुआ सतपाल एसओ के कमरे से बाहर निकल गया।
निरंजन या उसके किसी आदमी को जेल भेजने की डीसीपी की कोई मर्जी नहीं जान पड़ती थी, ऐसे में गोली खाये शख्स का जुर्म साबित कर पाना आसान नहीं था। पुलिस चाहती तो बड़ी आसानी से निरंजन को लपेटे में ले सकती थी। बंगले में आठ हथियारबंद लोगों की मौजूदगी की सफाई दे पाना उसके लिये आसान नहीं होता।
वहां से निकल कर वह अपने कमरे में जा बैठा और सिगरेट सुलगा कर गहरे गहरे कश लगाने लगा। उसका तन-बदन गुस्से से कांप रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों पुलिस अधिकारी आये दिन निरंजन जैसे गुंडे मवालियों का फेवर करते दिखाई दे जाते हैं, क्यों कोई पूरी ईमानदारी से अपनी ड्युटी को अंजाम देने से कतराता है?
यूं ही बैठा वह जाने कितनी देर तक क्या-क्या सोचता रहा, सिगरेट खत्म होने पर उसने दूसरी सुलगा ली मगर विचारों का दायरा था कि खत्म होने की बजाये बढ़ता ही जा रहा था।
तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर बताया कि डीसीपी साहब बुला रहे हैं।
उसने सिगरेट के बचे हुए हिस्से को ऐश-ट्रे में रख दिया और उठकर एक बार फिर एसओ के कमरे की तरफ बढ़ गया।
जाने अब क्या नये सुनने को मिलने वाला था।
मन ही मन आशंकित होता वह वीर सिंह के कमरे में दाखिल हुआ। यह देखकर उसने राहत की सांस ली कि निरंजन राजपूत वहां से जा चुका था।
“बैठो।” इस बार डीसीपी नम्र लहजे में बोला।
सतपाल एक विजिटिंग चेयर पर तनकर बैठ गया।
“मुझे मालूम है तुम्हारी कोई गलती नहीं है” - डीसीपी बोला – “मगर बद्दिमाग लोगों को हैंडल करने के लिये अक्सर उनके सामने सिर झुकाना पड़ता है। इसलिए तुम्हें कोई ऑफेंस फील करने की जरूरत नहीं है, ना ही मेरी फटकार से शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत है। हमारी मजबूरी ये है कि हम उसे गिरफ्तार तो कर सकते हैं, मगर किये रख नहीं सकते। अभी अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी होती तो किसी मंत्री का, किसी बिजनेस मैन का कमिश्नर साहब के पास फोन पहुंच जाता और आखिरकार हमें निरंजन राजपूत को छोड़ना ही पड़ा होता। मगर तब नुकसान ये होता कि केस का रूख बदल जाता, सबसे पहले तुम और तुम्हारा यार हवालात में होते, उसने एक रसूखदार शख्स की उसके बंगले में घुसकर पिटाई की थी, ये बात क्या तुम्हें मामूली लगती है। बड़ी मुश्किल से मैंने निरंजन को समझा बुझाकर तुम्हारी तरफ से माफी मांग कर यहां से वापिस भेजा है वरना वह तो तुम दोनों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पर आमादा था। इसलिए फिलहाल ये सोच कर तसल्ली करो कि आज नहीं तो कल वह किसी बड़े मामले में हमारे हाथ लगकर रहेगा, वो दिन तुम्हारा दिन होगा, तब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा, समझ गये?”
“जी जनाब।”
“गुड।” डीसीपी उठ कर खड़ा हो गया। दोनों उसे बाहर जीप तक छोड़कर वापिस लौटे।
“अब शांत हो जा यार” - वीर सिंह बोला – “हमारे डिपार्टमेंट में ये सब तो रोजमर्रा की बात है, हर किसी के सिर पर उसका बाप बैठा हुआ है, जिसका हुक्म उसने मानना ही पड़ता है।”
“आपकी बात ठीक हो सकती है, मगर ये कैसी नौकरी है जहां कदम कदम पर गुंडे मवालियों का मैला चाटना पड़े, उनकी जी हजूरी करनी पड़े, उनकी मर्जी के मुताबिक केस बनाना और बिगाड़ना पड़े?”
“अब तू ओवर रिएक्ट कर रहा है, जबकि तू अच्छी तरह से जानता है, कि राजपूत के बंगले पर जो कुछ भी घटित हुआ था उसमें से कोई एक बात भी ऐसी नहीं है जिसके दम पर उसे लंबी सजा दिलाई जा सके।”
“आठ हथियारबंद आदमी वहां मौजूद थे, ये क्या आपको मामूली बात लगती है?”
“वह कह देगा कि सब उसके मिलने वाले थे, जो वहां हथियार लेकर पहुंचे हैं इस बात की उसे कोई खबर नहीं थी। उन हालात में उसके आदमी भी उसकी हां में हां मिलाते दिखाई देंगे।”
“कमाल है सर।”
“अब गुस्सा थूक भी दे यार” - वीर सिंह अपनत्व भरे लहजे में बोला – “मुझसे तेरी ऐसी सूरत बर्दाश्त नहीं होती।”
सतपाल की हंसी छूट गयी।
“हां अब ठीक है” - वीर सिंह बोला – “मैं कई दिनों से तुझसे एक बात कहना चाहता था, मगर मौका नहीं मिला, आज कहता हूं सुन।”
“क्या?”
“आजकल तेरे रंग-ढंग, हाव-भाव, किसी बात पर एक्ट करने की स्टाइल सबकुछ राज शर्मा से मिलता जुलता दिखाई देने लगा है मुझे। पहले तो ऐसा हाल नहीं था तेरा, मुझे लगता है उसकी सोहबत में रहकर तू उसके जैसा ही होता जा रहा है।”
“लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है” - सतपाल बोला – “अब आज की ही बात लीजिये, निरंजन के गार्ड को मैंने धुन कर रख दिया, जबकि मेरे पास ऐसा कोई सवाल नहीं था जिसका फौरन जवाब हासिल करना जरूरी हो, बल्कि था ही नहीं कोई सवाल मेरे जहन में।”
“फिर तो मैं यही कहूंगा भाई कि संभाल अपने आप को, तू पुलिस वाला है, जरा सी बात पर वर्दी उतर जाती है।”
“सच पूछिये तो मैं संभलना चाहता ही नहीं हूं, राज से मिलकर ही मैंने जाना कि सही मायने में जिंदगी कैसी होनी चाहिये। उसी ने मेरे भीतर कूट-कूट कर ये विश्वास जगाया कि होनी प्रबल है, उसे कोई नहीं रोक सकता, अगर किस्मत में वर्दी उतरना बदा है तो मैं लाख कोशिश कर लूं नौकरी जा कर रहेगी। किसी गुंडे मवाली की गोली खाकर मरना है तो मैं कितना भी खुद को बचाने की कोशिश क्यों ना करूं जान जाकर रहेगी। अब तो मैं ये तक सोचने लगा हूं कि मैं उसके जैसा क्यों नहीं हूं।”
“पूरा ही रंग चढ़ गया दिखता है भाई।” कहकर वीर सिंह जोर से हंसा।
सतपाल ने उसकी हंसी में पूरा पूरा साथ दिया।
“क्यों नहीं होगी भाई, मैं क्या विदेश में रहता हूं, ऊपर से मेरा ड्राइवर साल भर पहले तक मीनाक्षी का ही ड्राइवर हुआ करता था, उससे क्या कोई बात छिपी रही सकती थी?”
“नाम क्या है उसका?”
“ड्राइवर का?”
“जी हां।”
“विशम्मभर! जिस आदमी ने तुम्हारी गर्दन पर पिस्तौल रखी थी वह विशम्मभर ही था, उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो?”
“कोई खास वजह नहीं है” - पनौती बोला – “मगर ये बात समझ में नहीं आती कि मां के किसी यार ने बेटे का कत्ल क्यों कर दिया?”
“खुन्नस निकालने के लिये, और किस लिये करता?”
“वाकिफ हैं आप ऐसे किसी शख्स से जिसकी मीनाक्षी के साथ पुरानी आशनाई रही हो?”
“पुरानों के बारे में तो मैं नहीं जानता मगर आजकल एक वकील के साथ उसका बहुत गहरा याराना है, अक्सर उसके साथ आती-जाती दिखाई दे जाती है।”
“मान लीजिये ये वैसे किसी शख्स का कारनामा नहीं है, ऐसे में कोई और नाम सूझता है आपको?”
“उसके बड़े भाई से पूछताछ कर के देखो।”
“वह भला छोटे का कत्ल क्यों करेगा?”
“आशिक मिजाज आदमी है, क्या पता छोटे भाई की बीवी पर उसका दिल आ गया हो, टीवी पर कोमल की सूरत देखी थी मैंने, बहुत खूबसूरत दिखाई देती है।”
“अगर छोटे भाई की बीवी की खातिर उसने हत्या को अंजाम दिया था तो उसे जेल क्यों चले जाने दिया?”
“जानबूझकर नहीं जाने दिया होगा, मगर परिस्थितियों पर किसका जोर चलता है, क्या पता उसे लगने लगा हो कि अगर कोमल पर कत्ल का इल्जाम नहीं आयद हुआ तो उसकी खुद की पोल खुल जायेगी। ऐसे में वह खुद को बचाने की कोशिश करता या कोमल को?”
“जाहिर है खुद को ही बचाता, मगर महज इतनी सी बात के लिये उसने अपने छोटे भाई का कत्ल कर दिया हो कि वह उसकी बीवी के साथ रिलेशंस बनाना चाहता है, ये बात कुछ हजम नहीं होती।”
“उसपर निगाह रखकर देखो, अगर वह कोमल को बचाने की कोशिश करता दिखाई दे तो समझ लेना कि प्रियम को उसी ने मारा है, वरना मेरी बात का कोई मतलब नहीं है” –
कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “एक बात और है जो उसके रंगीन मिजाज को जाहिर करती है।”
“क्या?”
“विशम्भर की बीवी उसके घर में नौकरानी का काम करती थी, एक रोज पट्ठे ने एकांत देखकर उसका हाथ थाम लिया और उसे काबू में करने की कोशिश करने लगा, तब वह किसी तरह उसके चंगुल से निकल कर भाग खड़ी हुई थी। बाद में जब विशम्भर के जरिये मुझे उस बात की जानकारी मिली तो मैंने उसे जमकर लताड़ लगाई और साफ कह दिया कि कैसा मर्द है वह जो अपनी जोरू के साथ हुई बद्तमीजी का बदला तक नहीं लिया। मैंने तो उससे ये भी कहा था, कि अगर तुझे डर लगता है तो वह काम मैं किसी और को करने को कह देता हूं। मगर उसने किसी भी हाल में हामी नहीं भरी।”
“भर देता तो आप अनुराग का कत्ल करवा देते?”
“बेशक करवा देता, अपने आदमियों का ख्याल मैं नहीं रखूंगा तो कौन रखेगा। वह मेरे लिये हर वक्त जान देने को तैयार रहते हैं तो क्या मैं उनकी खातिर इतना भी नहीं कर सकता?”
“किसी का कत्ल करवा देना आपको इतनी सी बात लगती है?”
जवाब में निरंजन ने जोर से ठहाका लगाया, फिर बोला, “वक्त आने दे इस बात का जवाब भी तुझे खुद ब खुद ही मिल जायेगा।”
“मैं उस घड़ी का इंतजार करूंगा, बहरहाल ये बताइये कि कत्ल के वक्त आप कहां थे?”
“यहीं अपने बंगले में था।”
“साबित कर सकते हैं?”
“अगर मेरे आदमियों की गवाही पर ऐतबार लाओ तो कर सकता हूं वरना नहीं कर सकता। लेकिन महज इसलिए मैं कातिल नहीं हो जाता कि मेरे पास उस वक्त की कोई यकीन के काबिल एलिबाई नहीं है।”
“ये बात तो सौ फीसदी दुरूस्त है आपकी।”ऊपर से साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि यह इनसाइड जॉब है, इसलिए बाहर वालों के पीछे पड़ने से पुलिस को कुछ हासिल नहीं होने वाला।”
“चलिये ऐसा ही सही।”
“फिर भी अगर तुम्हें तसल्ली ना हो तो संजीव चौहान को चेक करना, उसका मरने वाले से बहुत तगड़ा याराना था। इस तरह की वारदात को दो ही लोग अंजाम देते हैं, दोस्त या दुश्मन, ऊपर से कोमल के साथ उसके गहरे ताल्लुकात बताये जाते हैं।”
“शुक्रिया जनाब, इतनी सी तो बात थी, आप खामख्वाह अपने एक आदमी के घायल होने की वजह बन गये।”
“जो हुआ तुम दोनों के किये हुआ, याद रखना इसका खामियाजा तुम लोगों को भुगतना ही पड़ेगा।”
“आप पुलिस में कंप्लेन करेंगे?”
“मैं अपना हिसाब-किताब खुद चुकता करता हूं छोकरे, इस बार भी ऐसा ही होगा, और जब होगा तो तू मेरे कदमों में पड़ा अपने लिये रहम की भीख मांग रहा होगा।”
“जबकि रिवाल्वर मेरे हाथ में है।”
“बेशक तेरे हाथ में तोप ही क्यों न हो, आने वाले दिनों में सावधान रहना, कुछ पता नहीं चलता मौत किसी दरवाजे से भीतर दाखिल हो जाये।”
“यानि छिपकर वार करेंगे?”
“नहीं, बुजदिलों वाले काम करना मैं पसंद नहीं करता, तूने मेरे घर में घुसकर मुझपर हाथ उठाने की जुर्रत की है, तो मैं तुझे तेरे घर में घुसकर मारूंगा, इंतजार करना अपने जीवन के आखिरी दिन का।”
“पुलिस तो फिर भी यहां आकर रहेगी जनाब, बल्कि इंस्पेक्टर साहब की सूरत में कानून का एक रखवाला पहले से ही यहां मौजूद है।”
“कैसा रखवाला? जिसने अपनी आंखों के सामने इतना बवेला हो जाने दिया, यहां तक की मेरे वाचमैन को भी तुम दोनों ने बुरी तरह पीटा था?”
“आप कौन सा हमें लोरी गाकर सुनाने वाले थे।”
“कम से कम कत्ल तो नहीं कर देता मैं तुम दोनों का।”
“कसर भी क्या रह गई थी, हुक्म तो दे ही चुके थे आप, अगर आपकी नीयत में खोट नहीं था तो पूरी तैयारी के साथ हम दोनों को भीतर लेकर नहीं आये होते।”
“मेरा इरादा तुम दोनों को महज सबक सिखाने का था ना कि अपने ही बंगले में मैं दो लाशें बिछा देता।”
“वही सही मगर जवाब तो आपको देना ही पड़ेगा, पुलिस की कार्रवाई तो झेलनी ही पड़ेगी।”
तभी एसओ वीर सिंह अपने लाव-लश्कर के साथ हॉल में दाखिल हुआ।
निरंजन चौधरी बहुत बड़ा घाघ इंसान निकला, उसने अपने बयान में कहा कि पुलिस को भीतर आया देखकर उसके आदमी डर गये और गलतफहमी का शिकार होकर उनपर पिस्तौल तान बैठे, उसी दौरान उसके आदमी के किसी एक्शन से इंस्पेक्टर को लगा कि वह उसके साथी पर गोली चलाने पर अमादा था, तब इंस्पेक्टर ने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर गोली चला दी। जबकि उसके आदमी का गोली चलाने का कोई इरादा नहीं था, वह उसके हुक्म दिये बिना वैसा कोई कदम उठा ही नहीं सकता था। ना ही वैसा करने की कोई वजह थी।
हैरानी की बात ये थी कि ना तो सतपाल ने उसकी जुबान पकड़ने की कोशिश की ना ही पनौती ने उस बारे में अलग से कुछ कहा।
निरंजन और उसके चमचों को साथ लेकर पुलिस थाने पहुंची। उस बात की खबर तत्काल डीसीपी भड़ाना को की गई। निरंजन राजपूत का नाम सुनकर वह नींद से उठ बैठा और तैयार होकर आधा घंटा के भीतर थाने पहुंच गया।
दोनों पक्षों की बातें ध्यान से सुनने के बाद आखिरकार गोली खाये शख्स को दो पुलिस वालों के साथ नजदीकी अस्पताल भेज दिया गया। जाने से पहले अपने बयान में उसने भी निरंजन के कहे की ही पुष्टि की थी। उसने साफ साफ कहा कि रिवाल्वर का रूख इंस्पेक्टर साहब ने अपने साथी की तरफ होता देखकर ये समझा कि वह उनके साथी पर गोली चलाने जा रहा है, इसी वजह से उन्होंने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर फायर कर दिया था। जब कि उसने गोली चलाने के बारे में सोचा तक नहीं था, एक पुलिस ऑफिसर की मौजूदगी में वह वैसी हरकत भला कैसे कर सकता था।उसके बाद डीसीपी के आदेश पर सबसे पहले पनौती को वहां से चलता किया गया। फिर एसओ के कमरे में पुलिस अधिकारी निरंजन राजपूत के साथ सिर से सिर जोड़कर मंत्रणा करने लगे।
दस मिनट बाद सतपाल को वहां तलब किया गया।
“बिना कोई फसाद खड़ा किये किसी केस की तहकीकात नहीं कर सकते तुम?” - डीसीपी कुलदीप भड़ाना उसे घूरता हुआ बोला – “फिर तुमने ये कैसे सोच लिया कि प्रियम शर्मा के केस से निरंजन साहब का कोई लेना-देना हो सकता है?”
“सॉरी सर! मैं तो बस कुछ रूटीन पूछताछ के लिये इनके बंगले पर गया था। आप को याद होगा करीब महीना भर पहले इनका प्रियम शर्मा के साथ एक एक्सीडेंट को ले कर झगड़ा हुआ था, तब उसने इनके खिलाफ कंप्लेन लिखवाने की भी कोशिश की थी।”
“और तुमने दो में दो जोड़कर नतीजा छत्तीस निकाल लिया? ये तक नहीं सोचा कि वह मामूली सा झगड़ा था जो उसी रोज खत्म हो गया था। लोग-बाग इतनी छोटी छोटी बातों के लिये अगर किसी का कत्ल करने लग जाते तो देश की आधी आबादी खत्म हो गई होती अब तक।”
“ये कर सकते थे सर” - सतपाल धीरे से बोला – “इन्होंने मेरे सामने ये बात कबूल की थी कि ये प्रियम के कत्ल का इरादा बना चुके थे, मगर आपके दखलअंदाज होने के कारण इन्होंने उसे बख्श दिया था।”
“खत्म करो अब इस बात को” - भड़ाना बोला – “इनके जिस आदमी पर तुमने गोली चलाई थी, उसके खिलाफ मामला दर्ज कर के उसे कोर्ट में पेश करो आगे जो निर्णय लेना होगा, अदालत लेगी।”
“वहां से आठ गैर लायसेंसी रिवाल्वर्स बरामद हुई हैं जनाब, उनका क्या करना है?”
“कुछ नहीं करना, वहां से कोई रिवाल्वर बरामद नहीं हुई है, वहां सिर्फ एक आदमी हथियारबंद था जो कि तुम्हारे हाथों गोली खा गया था, समझे कुछ?”
“जी जनाब” - सतपाल तत्पर स्वर में बोला – “समझ गया, लेकिन आप भूल रहे हैं कि इनके बंगले पर मैं अकेला नहीं था। राज शर्मा भी वहां मेरे साथ पहुंचा था, जिसको खामोश रहने के लिये तैयार कर पाना आसान नहीं होगा।”
“उसकी जिम्मेदारी तुमपर है, मैंने नहीं कहा था कि इन्वेस्टीगेशन के वक्त तुम उसे साथ ले कर घूमो, इसलिए उसे कैसे हैंडल करना है ये तुम जानो, मगर चेतावनी है तुम्हें, इस मामले में अलग से कोई झमेला मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा, समझ गये?”
“जी जनाब।”
“गुड अब तुम जा सकते हो।”
भुनभुनाता हुआ सतपाल एसओ के कमरे से बाहर निकल गया।
निरंजन या उसके किसी आदमी को जेल भेजने की डीसीपी की कोई मर्जी नहीं जान पड़ती थी, ऐसे में गोली खाये शख्स का जुर्म साबित कर पाना आसान नहीं था। पुलिस चाहती तो बड़ी आसानी से निरंजन को लपेटे में ले सकती थी। बंगले में आठ हथियारबंद लोगों की मौजूदगी की सफाई दे पाना उसके लिये आसान नहीं होता।
वहां से निकल कर वह अपने कमरे में जा बैठा और सिगरेट सुलगा कर गहरे गहरे कश लगाने लगा। उसका तन-बदन गुस्से से कांप रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों पुलिस अधिकारी आये दिन निरंजन जैसे गुंडे मवालियों का फेवर करते दिखाई दे जाते हैं, क्यों कोई पूरी ईमानदारी से अपनी ड्युटी को अंजाम देने से कतराता है?
यूं ही बैठा वह जाने कितनी देर तक क्या-क्या सोचता रहा, सिगरेट खत्म होने पर उसने दूसरी सुलगा ली मगर विचारों का दायरा था कि खत्म होने की बजाये बढ़ता ही जा रहा था।
तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर बताया कि डीसीपी साहब बुला रहे हैं।
उसने सिगरेट के बचे हुए हिस्से को ऐश-ट्रे में रख दिया और उठकर एक बार फिर एसओ के कमरे की तरफ बढ़ गया।
जाने अब क्या नये सुनने को मिलने वाला था।
मन ही मन आशंकित होता वह वीर सिंह के कमरे में दाखिल हुआ। यह देखकर उसने राहत की सांस ली कि निरंजन राजपूत वहां से जा चुका था।
“बैठो।” इस बार डीसीपी नम्र लहजे में बोला।
सतपाल एक विजिटिंग चेयर पर तनकर बैठ गया।
“मुझे मालूम है तुम्हारी कोई गलती नहीं है” - डीसीपी बोला – “मगर बद्दिमाग लोगों को हैंडल करने के लिये अक्सर उनके सामने सिर झुकाना पड़ता है। इसलिए तुम्हें कोई ऑफेंस फील करने की जरूरत नहीं है, ना ही मेरी फटकार से शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत है। हमारी मजबूरी ये है कि हम उसे गिरफ्तार तो कर सकते हैं, मगर किये रख नहीं सकते। अभी अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी होती तो किसी मंत्री का, किसी बिजनेस मैन का कमिश्नर साहब के पास फोन पहुंच जाता और आखिरकार हमें निरंजन राजपूत को छोड़ना ही पड़ा होता। मगर तब नुकसान ये होता कि केस का रूख बदल जाता, सबसे पहले तुम और तुम्हारा यार हवालात में होते, उसने एक रसूखदार शख्स की उसके बंगले में घुसकर पिटाई की थी, ये बात क्या तुम्हें मामूली लगती है। बड़ी मुश्किल से मैंने निरंजन को समझा बुझाकर तुम्हारी तरफ से माफी मांग कर यहां से वापिस भेजा है वरना वह तो तुम दोनों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पर आमादा था। इसलिए फिलहाल ये सोच कर तसल्ली करो कि आज नहीं तो कल वह किसी बड़े मामले में हमारे हाथ लगकर रहेगा, वो दिन तुम्हारा दिन होगा, तब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा, समझ गये?”
“जी जनाब।”
“गुड।” डीसीपी उठ कर खड़ा हो गया। दोनों उसे बाहर जीप तक छोड़कर वापिस लौटे।
“अब शांत हो जा यार” - वीर सिंह बोला – “हमारे डिपार्टमेंट में ये सब तो रोजमर्रा की बात है, हर किसी के सिर पर उसका बाप बैठा हुआ है, जिसका हुक्म उसने मानना ही पड़ता है।”
“आपकी बात ठीक हो सकती है, मगर ये कैसी नौकरी है जहां कदम कदम पर गुंडे मवालियों का मैला चाटना पड़े, उनकी जी हजूरी करनी पड़े, उनकी मर्जी के मुताबिक केस बनाना और बिगाड़ना पड़े?”
“अब तू ओवर रिएक्ट कर रहा है, जबकि तू अच्छी तरह से जानता है, कि राजपूत के बंगले पर जो कुछ भी घटित हुआ था उसमें से कोई एक बात भी ऐसी नहीं है जिसके दम पर उसे लंबी सजा दिलाई जा सके।”
“आठ हथियारबंद आदमी वहां मौजूद थे, ये क्या आपको मामूली बात लगती है?”
“वह कह देगा कि सब उसके मिलने वाले थे, जो वहां हथियार लेकर पहुंचे हैं इस बात की उसे कोई खबर नहीं थी। उन हालात में उसके आदमी भी उसकी हां में हां मिलाते दिखाई देंगे।”
“कमाल है सर।”
“अब गुस्सा थूक भी दे यार” - वीर सिंह अपनत्व भरे लहजे में बोला – “मुझसे तेरी ऐसी सूरत बर्दाश्त नहीं होती।”
सतपाल की हंसी छूट गयी।
“हां अब ठीक है” - वीर सिंह बोला – “मैं कई दिनों से तुझसे एक बात कहना चाहता था, मगर मौका नहीं मिला, आज कहता हूं सुन।”
“क्या?”
“आजकल तेरे रंग-ढंग, हाव-भाव, किसी बात पर एक्ट करने की स्टाइल सबकुछ राज शर्मा से मिलता जुलता दिखाई देने लगा है मुझे। पहले तो ऐसा हाल नहीं था तेरा, मुझे लगता है उसकी सोहबत में रहकर तू उसके जैसा ही होता जा रहा है।”
“लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है” - सतपाल बोला – “अब आज की ही बात लीजिये, निरंजन के गार्ड को मैंने धुन कर रख दिया, जबकि मेरे पास ऐसा कोई सवाल नहीं था जिसका फौरन जवाब हासिल करना जरूरी हो, बल्कि था ही नहीं कोई सवाल मेरे जहन में।”
“फिर तो मैं यही कहूंगा भाई कि संभाल अपने आप को, तू पुलिस वाला है, जरा सी बात पर वर्दी उतर जाती है।”
“सच पूछिये तो मैं संभलना चाहता ही नहीं हूं, राज से मिलकर ही मैंने जाना कि सही मायने में जिंदगी कैसी होनी चाहिये। उसी ने मेरे भीतर कूट-कूट कर ये विश्वास जगाया कि होनी प्रबल है, उसे कोई नहीं रोक सकता, अगर किस्मत में वर्दी उतरना बदा है तो मैं लाख कोशिश कर लूं नौकरी जा कर रहेगी। किसी गुंडे मवाली की गोली खाकर मरना है तो मैं कितना भी खुद को बचाने की कोशिश क्यों ना करूं जान जाकर रहेगी। अब तो मैं ये तक सोचने लगा हूं कि मैं उसके जैसा क्यों नहीं हूं।”
“पूरा ही रंग चढ़ गया दिखता है भाई।” कहकर वीर सिंह जोर से हंसा।
सतपाल ने उसकी हंसी में पूरा पूरा साथ दिया।