Thriller पनौती (COMPLETED)

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आपको उस बात की भी खबर है?”

“क्यों नहीं होगी भाई, मैं क्या विदेश में रहता हूं, ऊपर से मेरा ड्राइवर साल भर पहले तक मीनाक्षी का ही ड्राइवर हुआ करता था, उससे क्या कोई बात छिपी रही सकती थी?”

“नाम क्या है उसका?”

“ड्राइवर का?”

“जी हां।”

“विशम्मभर! जिस आदमी ने तुम्हारी गर्दन पर पिस्तौल रखी थी वह विशम्मभर ही था, उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो?”

“कोई खास वजह नहीं है” - पनौती बोला – “मगर ये बात समझ में नहीं आती कि मां के किसी यार ने बेटे का कत्ल क्यों कर दिया?”

“खुन्नस निकालने के लिये, और किस लिये करता?”

“वाकिफ हैं आप ऐसे किसी शख्स से जिसकी मीनाक्षी के साथ पुरानी आशनाई रही हो?”

“पुरानों के बारे में तो मैं नहीं जानता मगर आजकल एक वकील के साथ उसका बहुत गहरा याराना है, अक्सर उसके साथ आती-जाती दिखाई दे जाती है।”

“मान लीजिये ये वैसे किसी शख्स का कारनामा नहीं है, ऐसे में कोई और नाम सूझता है आपको?”

“उसके बड़े भाई से पूछताछ कर के देखो।”

“वह भला छोटे का कत्ल क्यों करेगा?”

“आशिक मिजाज आदमी है, क्या पता छोटे भाई की बीवी पर उसका दिल आ गया हो, टीवी पर कोमल की सूरत देखी थी मैंने, बहुत खूबसूरत दिखाई देती है।”

“अगर छोटे भाई की बीवी की खातिर उसने हत्या को अंजाम दिया था तो उसे जेल क्यों चले जाने दिया?”

“जानबूझकर नहीं जाने दिया होगा, मगर परिस्थितियों पर किसका जोर चलता है, क्या पता उसे लगने लगा हो कि अगर कोमल पर कत्ल का इल्जाम नहीं आयद हुआ तो उसकी खुद की पोल खुल जायेगी। ऐसे में वह खुद को बचाने की कोशिश करता या कोमल को?”

“जाहिर है खुद को ही बचाता, मगर महज इतनी सी बात के लिये उसने अपने छोटे भाई का कत्ल कर दिया हो कि वह उसकी बीवी के साथ रिलेशंस बनाना चाहता है, ये बात कुछ हजम नहीं होती।”

“उसपर निगाह रखकर देखो, अगर वह कोमल को बचाने की कोशिश करता दिखाई दे तो समझ लेना कि प्रियम को उसी ने मारा है, वरना मेरी बात का कोई मतलब नहीं है” –
कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “एक बात और है जो उसके रंगीन मिजाज को जाहिर करती है।”

“क्या?”

“विशम्भर की बीवी उसके घर में नौकरानी का काम करती थी, एक रोज पट्ठे ने एकांत देखकर उसका हाथ थाम लिया और उसे काबू में करने की कोशिश करने लगा, तब वह किसी तरह उसके चंगुल से निकल कर भाग खड़ी हुई थी। बाद में जब विशम्भर के जरिये मुझे उस बात की जानकारी मिली तो मैंने उसे जमकर लताड़ लगाई और साफ कह दिया कि कैसा मर्द है वह जो अपनी जोरू के साथ हुई बद्तमीजी का बदला तक नहीं लिया। मैंने तो उससे ये भी कहा था, कि अगर तुझे डर लगता है तो वह काम मैं किसी और को करने को कह देता हूं। मगर उसने किसी भी हाल में हामी नहीं भरी।”

“भर देता तो आप अनुराग का कत्ल करवा देते?”

“बेशक करवा देता, अपने आदमियों का ख्याल मैं नहीं रखूंगा तो कौन रखेगा। वह मेरे लिये हर वक्त जान देने को तैयार रहते हैं तो क्या मैं उनकी खातिर इतना भी नहीं कर सकता?”

“किसी का कत्ल करवा देना आपको इतनी सी बात लगती है?”

जवाब में निरंजन ने जोर से ठहाका लगाया, फिर बोला, “वक्त आने दे इस बात का जवाब भी तुझे खुद ब खुद ही मिल जायेगा।”

“मैं उस घड़ी का इंतजार करूंगा, बहरहाल ये बताइये कि कत्ल के वक्त आप कहां थे?”

“यहीं अपने बंगले में था।”

“साबित कर सकते हैं?”

“अगर मेरे आदमियों की गवाही पर ऐतबार लाओ तो कर सकता हूं वरना नहीं कर सकता। लेकिन महज इसलिए मैं कातिल नहीं हो जाता कि मेरे पास उस वक्त की कोई यकीन के काबिल एलिबाई नहीं है।”

“ये बात तो सौ फीसदी दुरूस्त है आपकी।”ऊपर से साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि यह इनसाइड जॉब है, इसलिए बाहर वालों के पीछे पड़ने से पुलिस को कुछ हासिल नहीं होने वाला।”

“चलिये ऐसा ही सही।”

“फिर भी अगर तुम्हें तसल्ली ना हो तो संजीव चौहान को चेक करना, उसका मरने वाले से बहुत तगड़ा याराना था। इस तरह की वारदात को दो ही लोग अंजाम देते हैं, दोस्त या दुश्मन, ऊपर से कोमल के साथ उसके गहरे ताल्लुकात बताये जाते हैं।”

“शुक्रिया जनाब, इतनी सी तो बात थी, आप खामख्वाह अपने एक आदमी के घायल होने की वजह बन गये।”

“जो हुआ तुम दोनों के किये हुआ, याद रखना इसका खामियाजा तुम लोगों को भुगतना ही पड़ेगा।”

“आप पुलिस में कंप्लेन करेंगे?”

“मैं अपना हिसाब-किताब खुद चुकता करता हूं छोकरे, इस बार भी ऐसा ही होगा, और जब होगा तो तू मेरे कदमों में पड़ा अपने लिये रहम की भीख मांग रहा होगा।”

“जबकि रिवाल्वर मेरे हाथ में है।”

“बेशक तेरे हाथ में तोप ही क्यों न हो, आने वाले दिनों में सावधान रहना, कुछ पता नहीं चलता मौत किसी दरवाजे से भीतर दाखिल हो जाये।”

“यानि छिपकर वार करेंगे?”

“नहीं, बुजदिलों वाले काम करना मैं पसंद नहीं करता, तूने मेरे घर में घुसकर मुझपर हाथ उठाने की जुर्रत की है, तो मैं तुझे तेरे घर में घुसकर मारूंगा, इंतजार करना अपने जीवन के आखिरी दिन का।”

“पुलिस तो फिर भी यहां आकर रहेगी जनाब, बल्कि इंस्पेक्टर साहब की सूरत में कानून का एक रखवाला पहले से ही यहां मौजूद है।”

“कैसा रखवाला? जिसने अपनी आंखों के सामने इतना बवेला हो जाने दिया, यहां तक की मेरे वाचमैन को भी तुम दोनों ने बुरी तरह पीटा था?”

“आप कौन सा हमें लोरी गाकर सुनाने वाले थे।”

“कम से कम कत्ल तो नहीं कर देता मैं तुम दोनों का।”

“कसर भी क्या रह गई थी, हुक्म तो दे ही चुके थे आप, अगर आपकी नीयत में खोट नहीं था तो पूरी तैयारी के साथ हम दोनों को भीतर लेकर नहीं आये होते।”

“मेरा इरादा तुम दोनों को महज सबक सिखाने का था ना कि अपने ही बंगले में मैं दो लाशें बिछा देता।”

“वही सही मगर जवाब तो आपको देना ही पड़ेगा, पुलिस की कार्रवाई तो झेलनी ही पड़ेगी।”

तभी एसओ वीर सिंह अपने लाव-लश्कर के साथ हॉल में दाखिल हुआ।

निरंजन चौधरी बहुत बड़ा घाघ इंसान निकला, उसने अपने बयान में कहा कि पुलिस को भीतर आया देखकर उसके आदमी डर गये और गलतफहमी का शिकार होकर उनपर पिस्तौल तान बैठे, उसी दौरान उसके आदमी के किसी एक्शन से इंस्पेक्टर को लगा कि वह उसके साथी पर गोली चलाने पर अमादा था, तब इंस्पेक्टर ने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर गोली चला दी। जबकि उसके आदमी का गोली चलाने का कोई इरादा नहीं था, वह उसके हुक्म दिये बिना वैसा कोई कदम उठा ही नहीं सकता था। ना ही वैसा करने की कोई वजह थी।

हैरानी की बात ये थी कि ना तो सतपाल ने उसकी जुबान पकड़ने की कोशिश की ना ही पनौती ने उस बारे में अलग से कुछ कहा।

निरंजन और उसके चमचों को साथ लेकर पुलिस थाने पहुंची। उस बात की खबर तत्काल डीसीपी भड़ाना को की गई। निरंजन राजपूत का नाम सुनकर वह नींद से उठ बैठा और तैयार होकर आधा घंटा के भीतर थाने पहुंच गया।

दोनों पक्षों की बातें ध्यान से सुनने के बाद आखिरकार गोली खाये शख्स को दो पुलिस वालों के साथ नजदीकी अस्पताल भेज दिया गया। जाने से पहले अपने बयान में उसने भी निरंजन के कहे की ही पुष्टि की थी। उसने साफ साफ कहा कि रिवाल्वर का रूख इंस्पेक्टर साहब ने अपने साथी की तरफ होता देखकर ये समझा कि वह उनके साथी पर गोली चलाने जा रहा है, इसी वजह से उन्होंने उसके रिवाल्वर वाले हाथ का निशाना ले कर फायर कर दिया था। जब कि उसने गोली चलाने के बारे में सोचा तक नहीं था, एक पुलिस ऑफिसर की मौजूदगी में वह वैसी हरकत भला कैसे कर सकता था।उसके बाद डीसीपी के आदेश पर सबसे पहले पनौती को वहां से चलता किया गया। फिर एसओ के कमरे में पुलिस अधिकारी निरंजन राजपूत के साथ सिर से सिर जोड़कर मंत्रणा करने लगे।

दस मिनट बाद सतपाल को वहां तलब किया गया।

“बिना कोई फसाद खड़ा किये किसी केस की तहकीकात नहीं कर सकते तुम?” - डीसीपी कुलदीप भड़ाना उसे घूरता हुआ बोला – “फिर तुमने ये कैसे सोच लिया कि प्रियम शर्मा के केस से निरंजन साहब का कोई लेना-देना हो सकता है?”

“सॉरी सर! मैं तो बस कुछ रूटीन पूछताछ के लिये इनके बंगले पर गया था। आप को याद होगा करीब महीना भर पहले इनका प्रियम शर्मा के साथ एक एक्सीडेंट को ले कर झगड़ा हुआ था, तब उसने इनके खिलाफ कंप्लेन लिखवाने की भी कोशिश की थी।”

“और तुमने दो में दो जोड़कर नतीजा छत्तीस निकाल लिया? ये तक नहीं सोचा कि वह मामूली सा झगड़ा था जो उसी रोज खत्म हो गया था। लोग-बाग इतनी छोटी छोटी बातों के लिये अगर किसी का कत्ल करने लग जाते तो देश की आधी आबादी खत्म हो गई होती अब तक।”

“ये कर सकते थे सर” - सतपाल धीरे से बोला – “इन्होंने मेरे सामने ये बात कबूल की थी कि ये प्रियम के कत्ल का इरादा बना चुके थे, मगर आपके दखलअंदाज होने के कारण इन्होंने उसे बख्श दिया था।”

“खत्म करो अब इस बात को” - भड़ाना बोला – “इनके जिस आदमी पर तुमने गोली चलाई थी, उसके खिलाफ मामला दर्ज कर के उसे कोर्ट में पेश करो आगे जो निर्णय लेना होगा, अदालत लेगी।”

“वहां से आठ गैर लायसेंसी रिवाल्वर्स बरामद हुई हैं जनाब, उनका क्या करना है?”

“कुछ नहीं करना, वहां से कोई रिवाल्वर बरामद नहीं हुई है, वहां सिर्फ एक आदमी हथियारबंद था जो कि तुम्हारे हाथों गोली खा गया था, समझे कुछ?”

“जी जनाब” - सतपाल तत्पर स्वर में बोला – “समझ गया, लेकिन आप भूल रहे हैं कि इनके बंगले पर मैं अकेला नहीं था। राज शर्मा भी वहां मेरे साथ पहुंचा था, जिसको खामोश रहने के लिये तैयार कर पाना आसान नहीं होगा।”

“उसकी जिम्मेदारी तुमपर है, मैंने नहीं कहा था कि इन्वेस्टीगेशन के वक्त तुम उसे साथ ले कर घूमो, इसलिए उसे कैसे हैंडल करना है ये तुम जानो, मगर चेतावनी है तुम्हें, इस मामले में अलग से कोई झमेला मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा, समझ गये?”

“जी जनाब।”

“गुड अब तुम जा सकते हो।”

भुनभुनाता हुआ सतपाल एसओ के कमरे से बाहर निकल गया।

निरंजन या उसके किसी आदमी को जेल भेजने की डीसीपी की कोई मर्जी नहीं जान पड़ती थी, ऐसे में गोली खाये शख्स का जुर्म साबित कर पाना आसान नहीं था। पुलिस चाहती तो बड़ी आसानी से निरंजन को लपेटे में ले सकती थी। बंगले में आठ हथियारबंद लोगों की मौजूदगी की सफाई दे पाना उसके लिये आसान नहीं होता।

वहां से निकल कर वह अपने कमरे में जा बैठा और सिगरेट सुलगा कर गहरे गहरे कश लगाने लगा। उसका तन-बदन गुस्से से कांप रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्यों पुलिस अधिकारी आये दिन निरंजन जैसे गुंडे मवालियों का फेवर करते दिखाई दे जाते हैं, क्यों कोई पूरी ईमानदारी से अपनी ड्युटी को अंजाम देने से कतराता है?

यूं ही बैठा वह जाने कितनी देर तक क्या-क्या सोचता रहा, सिगरेट खत्म होने पर उसने दूसरी सुलगा ली मगर विचारों का दायरा था कि खत्म होने की बजाये बढ़ता ही जा रहा था।

तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर बताया कि डीसीपी साहब बुला रहे हैं।

उसने सिगरेट के बचे हुए हिस्से को ऐश-ट्रे में रख दिया और उठकर एक बार फिर एसओ के कमरे की तरफ बढ़ गया।

जाने अब क्या नये सुनने को मिलने वाला था।

मन ही मन आशंकित होता वह वीर सिंह के कमरे में दाखिल हुआ। यह देखकर उसने राहत की सांस ली कि निरंजन राजपूत वहां से जा चुका था।

“बैठो।” इस बार डीसीपी नम्र लहजे में बोला।

सतपाल एक विजिटिंग चेयर पर तनकर बैठ गया।

“मुझे मालूम है तुम्हारी कोई गलती नहीं है” - डीसीपी बोला – “मगर बद्दिमाग लोगों को हैंडल करने के लिये अक्सर उनके सामने सिर झुकाना पड़ता है। इसलिए तुम्हें कोई ऑफेंस फील करने की जरूरत नहीं है, ना ही मेरी फटकार से शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत है। हमारी मजबूरी ये है कि हम उसे गिरफ्तार तो कर सकते हैं, मगर किये रख नहीं सकते। अभी अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी होती तो किसी मंत्री का, किसी बिजनेस मैन का कमिश्नर साहब के पास फोन पहुंच जाता और आखिरकार हमें निरंजन राजपूत को छोड़ना ही पड़ा होता। मगर तब नुकसान ये होता कि केस का रूख बदल जाता, सबसे पहले तुम और तुम्हारा यार हवालात में होते, उसने एक रसूखदार शख्स की उसके बंगले में घुसकर पिटाई की थी, ये बात क्या तुम्हें मामूली लगती है। बड़ी मुश्किल से मैंने निरंजन को समझा बुझाकर तुम्हारी तरफ से माफी मांग कर यहां से वापिस भेजा है वरना वह तो तुम दोनों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पर आमादा था। इसलिए फिलहाल ये सोच कर तसल्ली करो कि आज नहीं तो कल वह किसी बड़े मामले में हमारे हाथ लगकर रहेगा, वो दिन तुम्हारा दिन होगा, तब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा, समझ गये?”

“जी जनाब।”

“गुड।” डीसीपी उठ कर खड़ा हो गया। दोनों उसे बाहर जीप तक छोड़कर वापिस लौटे।

“अब शांत हो जा यार” - वीर सिंह बोला – “हमारे डिपार्टमेंट में ये सब तो रोजमर्रा की बात है, हर किसी के सिर पर उसका बाप बैठा हुआ है, जिसका हुक्म उसने मानना ही पड़ता है।”

“आपकी बात ठीक हो सकती है, मगर ये कैसी नौकरी है जहां कदम कदम पर गुंडे मवालियों का मैला चाटना पड़े, उनकी जी हजूरी करनी पड़े, उनकी मर्जी के मुताबिक केस बनाना और बिगाड़ना पड़े?”

“अब तू ओवर रिएक्ट कर रहा है, जबकि तू अच्छी तरह से जानता है, कि राजपूत के बंगले पर जो कुछ भी घटित हुआ था उसमें से कोई एक बात भी ऐसी नहीं है जिसके दम पर उसे लंबी सजा दिलाई जा सके।”

“आठ हथियारबंद आदमी वहां मौजूद थे, ये क्या आपको मामूली बात लगती है?”

“वह कह देगा कि सब उसके मिलने वाले थे, जो वहां हथियार लेकर पहुंचे हैं इस बात की उसे कोई खबर नहीं थी। उन हालात में उसके आदमी भी उसकी हां में हां मिलाते दिखाई देंगे।”

“कमाल है सर।”

“अब गुस्सा थूक भी दे यार” - वीर सिंह अपनत्व भरे लहजे में बोला – “मुझसे तेरी ऐसी सूरत बर्दाश्त नहीं होती।”

सतपाल की हंसी छूट गयी।

“हां अब ठीक है” - वीर सिंह बोला – “मैं कई दिनों से तुझसे एक बात कहना चाहता था, मगर मौका नहीं मिला, आज कहता हूं सुन।”

“क्या?”

“आजकल तेरे रंग-ढंग, हाव-भाव, किसी बात पर एक्ट करने की स्टाइल सबकुछ राज शर्मा से मिलता जुलता दिखाई देने लगा है मुझे। पहले तो ऐसा हाल नहीं था तेरा, मुझे लगता है उसकी सोहबत में रहकर तू उसके जैसा ही होता जा रहा है।”

“लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है” - सतपाल बोला – “अब आज की ही बात लीजिये, निरंजन के गार्ड को मैंने धुन कर रख दिया, जबकि मेरे पास ऐसा कोई सवाल नहीं था जिसका फौरन जवाब हासिल करना जरूरी हो, बल्कि था ही नहीं कोई सवाल मेरे जहन में।”

“फिर तो मैं यही कहूंगा भाई कि संभाल अपने आप को, तू पुलिस वाला है, जरा सी बात पर वर्दी उतर जाती है।”

“सच पूछिये तो मैं संभलना चाहता ही नहीं हूं, राज से मिलकर ही मैंने जाना कि सही मायने में जिंदगी कैसी होनी चाहिये। उसी ने मेरे भीतर कूट-कूट कर ये विश्वास जगाया कि होनी प्रबल है, उसे कोई नहीं रोक सकता, अगर किस्मत में वर्दी उतरना बदा है तो मैं लाख कोशिश कर लूं नौकरी जा कर रहेगी। किसी गुंडे मवाली की गोली खाकर मरना है तो मैं कितना भी खुद को बचाने की कोशिश क्यों ना करूं जान जाकर रहेगी। अब तो मैं ये तक सोचने लगा हूं कि मैं उसके जैसा क्यों नहीं हूं।”

“पूरा ही रंग चढ़ गया दिखता है भाई।” कहकर वीर सिंह जोर से हंसा।

सतपाल ने उसकी हंसी में पूरा पूरा साथ दिया।
 
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21 जुलाई 2021
सुबह आठ बजे के करीब पनौती डॉली के घर पहुंचा।

दरवाजे पर दस्तक के जवाब में डॉली की मां ने दरवाजा खोला।

“नमस्ते आंटी।” पनौती ने दोनों हाथ जोड़ दिये।


“नमस्ते बेटा” - वह सकपकाती होती हुई बोलीं – “इतनी सुबह-सुबह! सब ठीक तो हो?”

पनौती ने हड़बड़ाकर मोबाइल में टाइम देखा फिर बोला, “सॉरी आंटी, वक्त का ख्याल ही नहीं रहा मुझे, मैं बाद में आ जाऊंगा।”

“कैसी बात करते हो बेटा, आओ भीतर आ जाओ।” कहकर उसने एक तरफ होकर उसे रास्ता दे दिया।

“बैठो” - भीतर पहुंचकर वह सोफे की तरफ इशारा करती हुई बोली – “मैं तुम्हारे लिये चाय ले कर आती हूं।”

“उसकी कोई जरूरत नहीं है आंटी, मैं घर से नाश्ता कर के ही निकला था” - कहकर उसने तनिक हिचकते हुए पूछा “डॉली कहां है?”

“अपने कमरे में है, मेरे ख्याल से तो अभी सोकर भी नहीं उठी है। तुम चाय पीना तब तक मैं उसे जगा दूंगी।”

कहकर वह किचन में जा घुसी और थोड़ी देर बाद चाय की ट्रे हाथ में लिये पनौती के पास पहुंची, ट्रे में मौजूद दो कप उन्होंने सेंटर टेबल पर रख दिया फिर ट्रे उठाती हुई बोली, “मैं डॉली को देकर आती हूं।”

पनौती ने सहमति में सिर हिला दिया।

थोड़ी देर बाद मां बेटी एक साथ सीढ़ियां उतरती दिखाई दीं। डॉली उस वक्त एक ढीली ढाली टी-शर्ट और गुलाबी रंग का प्लाजो पहने थी, बाल उसके बिखरे पडे़ थे और आंखें अभी भी नींद से मुंदी जा रही थीं।

हैरानी की बात ये थी कि जीवन में पहली बार उसे डॉली बेहद प्यारी लगी थी। वह एक टक उसे सीढ़ियां उतरता हुआ देखता रहा।

“गुड मार्निंग राज।”

“गुड मार्निंग।” कहकर वह चाय पीने में व्यस्त हो गया।

“मैं हैरान हूं।” वह उसके सामने बैठती हुई बोली।

“किस बात पर?”

“तुम्हें इतनी सुबह अपने घर में देखकर, कम से कम आने से पहले फोन तो कर दिया होता।”

“तुम चाहती हो कि मैं यहां से बाहर जाकर पहले तुम्हें फोन करूं फिर यहां वापिस लौटूं?”

“कहां की बात कहां ले जाते हो तुम! मेरे कहने का मतलब बस इतना था कि अगर तुमने फोन कर दिया होता तो कम से कम मैं जल्दी उठकर तैयार तो हो गई होती, अभी तो एकदम चुड़ैल दिख रही हूं।”

“इत्मीनान रखो मैं यहां तुम्हारी सूरत देखने के लिये नहीं आया हूं। आया भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आज तुम बाकी दिनों से ज्यादा खूबसूरत और मासूम लग रही हो।”

डॉली ने हकबका कर उसकी तरफ देखा फिर जोर जोर से चीखने लगी, “मम्मी! मम्मी।”

“क्या हुआ?” हड़बड़ाती हुई उसकी मां वहां पहुंच गई।

“ये कहता है कि आज मैं रोज से ज्यादा खूबसूरत और मासूम दिख रही हूं।”

पनौती पर जैसे घड़ों पानी फिर गया। उसने गुस्से से डॉली की तरफ देखा फिर परे देखने लगा।

“शुक्र है” - डॉली की मां उसी की टोन में बोली – “आखिरकार तूने इसके मुंह से तारीफ के दो बोल सुन ही लिये।”

“हां लेकिन मुझे यकीन नहीं आ रहा कि इसने आज मेरी तारीफ की है, इससे कहो कि एक बार फिर से वैसा ही बोल कर दिखाये।”

“क्यों सुबह सुबह बेचारे को परेशान कर रही है, देखती नहीं किस कदर शरम से गड़ा जा रहा है” - वह हंसती हुई बोली – “मैं ऑफिस जा रही हूं तुम दोनों आराम से बातें करो और इसे खाना खाये बिना मत जाने देना।”

“आज तो बिल्कुल नहीं जाने दूंगी मॉम, बाय।”

“बाय बेटा, बाय राज।”

“बाय आंटी।” वह धीरे से बोला।

डॉली की मां घर से बाहर निकल गयी। फॉदर पहले ही काम पर जा चुके थे।

“मैं किसी दिन तुम्हारा गला घोंट दूंगा।” पनौती गुस्से से बोला।उसके लिये तुम्हें मुझको टच करना पड़ेगा राज साहब, अगर तुम तैयार हो तो जो चाहे घोंट दो मैं इंकार नहीं करूंगी।” कहकर वह बड़े ही अर्थपूर्ण भाव से हंसी।

“तुम आजकल बहुत बद्तमीज होती जा रही हो।”

“सब तुम्हारी सोहबत का असर है।

“मैं बद्तमीज हूं?” पनौती तुनक कर बोला।

“मैं जवाब नहीं दूंगी, क्योंकि मुझे लगता है तुम यहां किसी खास वजह से आये हो, मुझसे मिलने के लिये तो इतनी सुबह तुम घर से निकलने से रहे। इसलिए तुम्हें गुस्सा नहीं दिलाऊंगी मैं। अब बोलो क्या बात है?”

राज ने बताया।
 
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सुनकर डॉली ने यूं उसकी तरफ देखा जैसे उसने कोई अनहोनी बात कह दी हो।

“मैं तुमपर कोई दबाव नहीं डाल रहा” - वह जल्दी से बोला – “तुम चाहो तो मना कर सकती हो।”

“मना नहीं करने वाली मैं, मगर ये सोच रही हूं कि घर में क्या बताऊंगी?”

“झूठ बोलने की राय मैं तुम्हें नहीं दूंगा, तुम आंटी को फोन कर के पूछ लो, अगर वह राजी हो जायें तो ठीक वरना कोई बात नहीं।”

“मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लूंगी, तुम बैठो मैं जरा नहा-धोकर तैयार हो जाऊं।”

“नहीं मैं यहां और नहीं रूकूंगा। बाद में मिलते हैं। मम्मी का जवाब अगर इंकार में हो तो मुझे खबर कर देना।”

“अरे थोड़ी देर और रूक जाओगे तो क्या बिगड़ जायेगा?”

“मुझे नहीं रूकना, तुम घर में इस वक्त अकेली हो इसलिए मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लग रहा।”

“जबकि मेरी मां तक को ऐतराज नहीं हुआ, वरना वह तुम्हें यहां बैठी छोड़कर खुद जॉब पर न निकल गई होती।”

“ना सही, मैं चलता हूं।”

डॉली ने उसे रोकने की बहुतेरी कोशिशें की मगर वह नहीं रूका।

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साढ़े नौ बजे के करीब डॉली तैयार होकर घर से बाहर निकली। तैयारी भी कैसी एकदम हैरान कर देने वाली। बालों में कंघी नहीं, चेहरे पर मेकअप नहीं, पैरों में सैंडिल नहीं। इसके विपरीत वह सालों पुरानी सलवार कमीज पहने थी, बालों को कसकर जूड़ा बना लिया था। पैरों में घिसी हुई चप्पल थी और कंधे पर एक ऐसा बैग लटक रहा था जिसकी टूटी हुई एक डोरी को गांठ बांधकर लटकाने के काबिल बनाया गया था। जो बात छिपाये नहीं छिप रही थी वो थी उसकी खूबसूरती, उस मामूली परिधान में भी वह गजब की आकर्षक लग रही थी।

तीन बार ऑटो बदल कर वह मीनाक्षी शर्मा के बंगले पर पहुंची। चौकीदार को उसने बताया कि वह काम की तलाश में थी। उसने फौरन भीतर खबर कर दी।

थोड़ी देर बाद मीनाक्षी का बुलावा आ गया।

चौकीदार ने गेट खोल दिया। सहमी-सहमी सकुचाई सी वह बंगले में दाखिल हुई और आखिरकार मीनाक्षी के हुजूर में पेश हुई।

“नाम क्या है तुम्हारा?”

“जी डॉली, डॉली शर्मा।”

“पहले कहीं काम किया है?”

“जी किया है।”

“कहां?”

जवाब में उसने राज शर्मा के घर का पता बता दिया।

“खाना बना लेती हो?”

“जी बहुत अच्छा बनाती हूं।”

“और झाड़ूं पोंछा?”

“जी कर लूंगी।”

“पगार कितनी मिलती थी पहले?”

“आठ हजार, साथ में खाना भी।”

“यहां दस मिलेगे, ड्युटी आठ से आठ की होगी, कर पाओगी?”

“जी कर लूंगी।”

“पढ़ी लिखी हो?”

“बारहवीं पास हूं।”

“कब से काम करना चाहती हो?”

“अभी से।”

“ठीक है आज का लंच तुम तैयार करो, देखें कैसा बनाती हो।”

“जी बहुत अच्छा।”

“कल्पना।” मीनाक्षी ने जोर से आवाज लगाई।

“जी मम्मी जी।” उसने पहली मंजिल पर खड़े खड़े जवाब दिया।

“यह डॉली है, नैना की जगह इसे रखा है। किचन का काम समझा दो इसे।”

“जी ठीक है।” कहकर वह सीढ़ियां उतर कर डॉली के पास पहुंची, फिर उसे ले कर किचन की तरफ बढ़ गयी।

“अच्छी-भली दिख रही है” -किचन में पहुंचकर कल्पना बोली – “पढ़ी लिखी भी जान पड़ती है, फिर कोई और नौकरी क्यों नहीं पकड़ ली?”
 
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नौकरी कहां मिलती है बीवी जी, बड़े बड़े पढ़े लिखे बेरोजगार घूम रहे हैं, फिर इस काम के अलावा मुझे कुछ आता भी तो नहीं है।”

“कोई बात नहीं अब आ ही गई है तो लग जा काम में, यहां और कोई तकलीफ तुझे नहीं होगी, बस मेरी सास से सावधान रहना, बड़ी गुस्से वाली है, पता नहीं किस बात पर भड़क जाये।”

“जी मैं ध्यान रखूंगी।”

इसके बाद कल्पना उसे किचन का काम समझाने में जुट गई।

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दो बजे के करीब राज शर्मा अशोका इंक्लेव पहुंचा, जहां कोमल के मां बाप रहते थे। वह तीन मंजिला बिल्डिंग थी जिसके दूसरे फ्लोर पर उन लोगों का फ्लैट था।

कॉल बेल के जवाब में जिस अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला, उसकी सूरत कोमल से इतनी मिलती थी कि पनौती को समझते देर नहीं लगी कि वह कोमल की मां थी।

“नमस्ते।” उसने दोनों हाथ जोड़ दिये।

“नमस्ते बेटा, मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।”

“मेरा नाम राज शर्मा है, कोमल के बारे में आपसे कुछ बातचीत करने के लिये आया हूं।”

“तुम जानते हो मेरी बेटी को?”

“मेरी मंगेतर जानती है, उसका नाम डॉली है, शायद आप कभी उससे मिली हों।”

“कई बार मिल चुकी हूं” - वह बोली – “भीतर आ जाओ।”

कहकर उसने एक तरफ हटकर पनौती को रास्ता दे दिया। भीतर पहुंच कर वह एक कुर्सी पर बैठ गया तो कोमल की मां उसके मना करने के बावजूद चाय बनाने चली गई।

उस दौरान पनौती ने सरसरी निगाह कमरे में डाली। हर तरफ बेतरतीबी का बोल-बाला था। सामान इधर-उधर पड़े हुए थे। सैंटर टेबल पर चाय के पांच जूठे कप रखे थे, और उससे थोड़ी दूरी पर फर्श पर खाने की जूठी थाली रखी थी। बेटी के जेल चले जाने से उनपर क्या बीत रही थी, इसका अंदाजा उस बेतरतीबी से साफ नजर आ रहा था।

थोड़ी देर बाद कोमल की मां चाय बना लाई। एक कप उसने पनौती को थमाया और दूसरा खुद ले कर उसके सामने एक स्टूल पर बैठ गई।

“मैं कल जेल में आपकी बेटी से मिला था” - वह चाय की चुस्की लेता हुआ बोला – “काफी बातचीत भी हुई थी उससे, जिसे सुनकर मुझे लगता है कि प्रियम पर गोली उसने नहीं चलाई थी।”

“तुम्हारी बात कानो में अमृत घोल देने जैसी है बेटा, मगर गलत है क्योंकि कोमल खुद कहती है कि गोली उसके ही हाथों से चली थी, लेकिन साथ में ये भी कहती है कि वैसा अंजाने में हुआ था।”

“बेशक कहती है, मगर हाल ही में कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं जो ये साबित करती हैं, उसे महज वहम हुआ था कि गोली उसके हाथों से चली थी, जबकि चलाई किसी और ने थी।”

“तो भी क्या फायदा होगा, पुलिस तो उसे कातिल माने बैठी है।”

“अब ऐसा नहीं है, केस के इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर से मेरी बात हुई थी, अब वह इस केस की फिर से तफ्तीश कर रहा है, इसलिए यकीन जानिये जल्दी ही आप की बेटी आजाद होगी।”

“काश तुम्हारी बात सच साबित हो जाये बेटा, वरना इसके पापा तो समझो बेटी के गम में बस अपनी जान गवाने ही वाले हैं।”

“दिखाई नहीं दे रहे।”

“थाने गये हैं।”

“देख लीजियेगा, वह इसी गुड न्यूज के साथ वापिस लौटेंगे कि पुलिस अब प्रियम शर्मा के केस को रीइन्वेस्टिगेट कर रही है। बहरहाल मैं यहां आपसे कुछ सवालों के जवाब हासिल करने के लिये आया था, उम्मीद है आपको ऐतराज नहीं होगा।”

“ऐतराज कैसा बेटा, पूछो क्या जानना चाहते हो?”

“कोमल की शादी पिछले साल जनवरी में हुई थी, इस लिहाज से देखा जाये तो अभी दो साल भी नहीं गुजरा है, ऊपर से डॉली के जरिये मुझे मालूम हुआ है कि शादी के बाद कई महीनों तक पढ़ाई के सिलसिले में वह मायके में ही रही थी।”

“दस महीने तक, हालांकि तब हमारे बीच तय यही हुआ था, मार्च में उसकी विदाई कर देंगे, मगर तभी लॉकडाउन जारी हो गया, इसलिए उसकी विदाई की तारीख लगातार आगे बढ़ती गयी। फिर दिसम्बर 2020 में हमने ससुराल वालों ने ज्यादा जोर दिया तो हमने उसे विदा कर दिया। इस तरह देखो तो ससुराल में रहते उसे मुश्किल से सात महीने हुए हैं, बीच में एक बार घर भी आई थी तब पूरा दो महीना यहां रहकर गई थी।”यानि कुल मिलाकर वह छह महीने ससुराल में रही होगी।”

“हां था तो ऐसा ही।”

“जब पिछले फेरे में वह यहां आई थी तो ससुराल को लेकर आपकी उससे ढेरों बातें हुई होंगी, तब क्या आपको ऐसा लगा था कि वह खुश नहीं थी?”

“नहीं उल्टा वह ससुराल के लोगों की तारीफें करती नहीं अघाती थी, बस सास के साथ थोड़ी समस्या बताती थी, मगर वैसा तो हर घर में लगा ही रहता है, अभी कल को मेरे बेटे की शादी होगी तो हमारी बहू को भी कुछ ना कुछ समस्यायें आयेंगी ही, एडजस्ट करने में थोड़ा टाइम तो लगता ही है।”

“ठीक कहती हैं आप, कोई खास बात उसने बताई हो आपको, परिवार के किसी सदस्य के बारे में, या ये बताया हो कि प्रियम का किसी के साथ कोई झगड़ा फसाद चल रहा था।”नहीं ऐसा कुछ तो उसने कभी नहीं बताया था, फिर मोबाइल पर तकरीबन रोज ही मेरी उससे बातें हो जाया करती थीं, कोई खास बात होती तो उसने मुझे जरूर बताया होता।”

“फिर तो अब मुझे इजाजत दीजिये” - पनौती उठकर खड़ा हो गया – “चाय के लिये शुक्रिया और फिर से कहता हूं हिम्मत मत हारिये, जल्दी ही आपकी बेटी आजाद होगी।”

जवाब में उसने अनमने भाव से सहमति में सिर हिला दिया।
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तीन बजे वह सेक्टर इक्कीस के थाने पहुंचा। सतपाल को उसने कमरे में मौजूद पाया।

“आ भाई, मैं तुझे ही याद कर रहा था।”

“कोई खास बात हो गई?”

“बैलिस्टिक रिपोर्ट आ गई है मगर जैसा कि हमे पहले से पता था उसमें कोई नई बात नहीं है। गोली उसी रिवाल्वर से चली थी, जो कि प्रियम के नाम से रजिस्टर्ड है और घटनास्थल से बरामद हो चुकी है।”

“और कुछ?”

“गोली फासले से चलाई गई थी, एक्सपर्ट का दावा है कि मकतूल और रिवाल्वर में कम से कम पांच से छह फीट की दूरी रही होगी। जबकि गोली लगने से पहले जिस जगह पर प्रियम खड़ा था वह खिड़की से नहीं कुछ तो दस सात-आठ फीट दूर तो यकीनन होगी। ऐसे में लगता तो यही है कि गोली कोमल के हाथों ही चली थी, क्योंकि पांच-छह फीट की दूरी पर तो बस वही मौजूद थी कमरे में।”

“उस बात को तो अब तुम भूल ही जाओ सतपाल साहब, रही बात प्रियम के खिड़की से ज्यादा दूर खड़े होने की तो हो सकता है गोली चलाते वक्त कातिल ने अपना हाथ खिड़की के भीतर कर दिया हो, ऐसे में दो तीन फीट की दूरी तो अपने आप ही कवर हो जाती है।”

“कातिल ऐसा क्यों करेगा, जब कि उन हालात में उसके देख लिये जाने का खतरा बढ़ जाना था?”

“उसे अपने निशाने पर यकीन नहीं रहा होगा, फिर कौन देख लेता उसे? कोमल का सारा ध्यान तो उस वक्त पति पर था जिसपर वह रिवाल्वर ताने खड़ी थी। और प्रियम अगर कातिल का चेहरा देख भी लेता तो मर चुकने के बाद वह उसका क्या बिगाड़ लेता?”

“बिगाड़ भले ही न लेता मगर खिड़की से रिवाल्वर वाला हाथ भीतर आता देखकर वह अपने बचाव की कोई कोशिश तो जरूर करता।”

“तुम्हें क्या पता कि उसने ऐसा नहीं किया था, हो सकता है कातिल ने उसके दिल को निशाना बनाने की बजाये एकदम सामने छाती में गोली मारी हो जिससे बचने की कोशिश में जब वह इधर-उधर हुआ तो गोली इत्तेफाकन उसके दिल में जा घुसी।”

“हर बात का जवाब पहले से सोचे बैठा है?” सतपाल हैरानी से बोला।

“नहीं ऐसा नहीं है, फिर मुझे कैसे पता हो सकता था कि पुलिस का एक्सपर्ट फासले से चलाई गई गोली के बारे में क्या दावा करने वाला है जो उसका जवाब मैं पहले से सोच लेता।”

सतपाल से जवाब देते नहीं बना।

“कोमल बेगुनाह है इंस्पेक्टर साहब! इस बात को तुम पत्थर की लकीर समझो।”

“समझ लिया, मगर उसके अलावा कोई कातिल दिखाई भी तो नहीं देता। उसकी बेगुनाही की सूरत में इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं है कि क्योंकर प्रियम की अलमारी में रखी रिवाल्वर हत्यारे के हाथों में पहुंच गयी। पहुंच भी गई तो उसने वहां से रिवाल्वर निकाल कर ही तसल्ली क्यों नहीं कर ली, उसकी जगह वैसी ही कोई और रिवाल्वर वहां रखने की क्या जरूरत थी?”

“तुम्हें क्या पता कि दूसरी रिवाल्वर भी प्रियम के रिवाल्वर जैसी ही थी?”

“वैसे तो बड़ा आलम-फाजिल बना फिरता है और इतनी सी बात तुझे नहीं सूझती कि अलमारी में प्लांट की गई रिवाल्वर प्रियम के रिवाल्वर जैसी नहीं होती तो उसे फौरन उस बात का पता चल जाना था।”

“वजह?”

“मैं समझा नहीं।”

“क्यों उसे पता चल जाता कि अलमारी में मौजूद रिवाल्वर उसकी रिवाल्वर नहीं है?”

“अरे भाई वह क्या अपनी ही चीज को नहीं पहचान पाता, इतना बड़ा आंखों का अंधा तो कोई नहीं होता।”

“देखता तब तो पहचानता, रिवाल्वर कोई ऐसी चीज तो थी नहीं जिसे रोजाना सुबह अलमारी से निकाल कर वह धूप-बत्ती करने लग जाता। फिर इस बात की क्या गारंटी की रिवाल्वर ऐन कत्ल वाले रोज ही नहीं बदली गई होगी?”

सतपाल हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगा।

“और कोई सवाल?” पनौती शान से बोला।“है तो एक सवाल, मेरा दावा है कि उसका जवाब तेरे पास भी नहीं हो सकता, तू चाहे जितना जोर लगा ले मगर इस बात का जवाब नहीं दे सकता कि क्योंकर कातिल ने अलमारी में रखी रिवाल्वर को अपनी रिवाल्वर से बदल दिया था?”

“इसलिए बदल दिया था क्योंकि कत्ल वह प्रियम के रिवाल्वर से करना चाहता था, ताकि बाद में यही लगता कि कोमल ने गुस्से में आकर अलमारी से पति की रिवाल्वर निकालकर उसे शूट कर दिया था। मत भूलो कि अलमारी से निकाली गई रिवाल्वर से कत्ल हुआ मानकर ही तुमने इसे ओपेन ऐंड शट केस समझ लिया था। कत्ल किसी और रिवाल्वर से हुआ होता तो तुमने और कुछ नहीं तो ये पता लगाने की कोशिश जरूर की होती कि वह रिवाल्वर किससे और किसने खरीदी थी। ऐसे में अगर किसी तरह रिवाल्वर बेचने वाला तुम्हारे हत्थे चढ़ जाता तो कातिल खुद बा खुद तुम्हारी गिरफ्त में होता ना कि तुम कोमल को कातिल मानकर केस क्लोज करने पर तुल जाते।”

“तुम्हारी सारी बातें कबूल हैं मुझे, मगर सवाल ये है कि कातिल को इस बात का पता एडवांस में कैसे हो सकता था कि कत्ल वाली रात कोमल और प्रियम के बीच झगड़ा हो कर रहेगा और उस झगड़े में कोमल अलमारी में रखी रिवाल्वर निकाल कर पति पर तान ही देगी? जो वह रिवाल्वर की अदला-बदली वाले काम को अंजाम देना जरूरी समझता।”

“नहीं पता हो सकता, इससे यही साबित होता है कि कातिल किसी वजह से प्रियम की रिवाल्वर से ही उसे शूट करना चाहता था, इसलिए उसने अलमारी में रखी रिवाल्वर को अपनी रिवाल्वर से बदल दिया। कोमल तो इत्तेफाक से बीच में आ गई, और यूं आ गई कि कातिल का काम आसान हो गया। उसने दोनों के बीच हो रहे झगड़े का फायदा उठाया और प्रियम को उस वक्त गोली मार दी जब कोमल उसपर रिवाल्वर ताने खड़ी थी। ऐसे में निरंजन राजपूत की ये बात सही हो सकती है कि यह इनसाइड जॉब है, हत्यारा कहीं बाहर से नहीं आया था।”

“बेशक नहीं आया था, लेकिन सवाल ये है कि कत्ल किया किसने है, उससे भी पहले ये पता लगाना जरूरी है कि कत्ल का मोटिव क्या था, तभी कातिल को कातिल साबित किया जा सकता है।”

“बतौर इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर तुम भी तो कुछ उचर कर दिखाओ, किसी ना किसी पर शक तो जरूर होगा तुम्हें?”

“बहुत ज्यादा शक तो किसी पर नहीं है भाई, लेकिन संजीव चौहान मेरी निगाहों में बार-बार खटक रहा है। उससे हालिया हुई मुलाकात के बाद तो जैसे मेरे भीतर से आवाज आने लगी है कि वह कातिल हो सकता है, क्यों हो सकता है, इस बात का जवाब अभी मुश्किल है।”

“अगर कोमल में उसका इंट्रेस्ट साबित हो जाये तो वजह ढूंढने की जरूरत ही कहां रह जायेगी?”

“वह बात साबित कर पाना भी कौन सा आसान काम है?”

“तुम उसके कॉलेज के जमाने के यार-दोस्तों को पकड़ो, क्या पता उनमें से कोई ये कहने वाला निकल आये कि कोमल से मोहब्बत का दम भरता था। क्योंकि ऐसी बातें अक्सर इंसान किसी ना किसी के साथ शेयर जरूर करता है, भले ही डींगे मारने की खातिर ही करे।”

“अच्छा आइडिया है मैं लगाता हूं किसी को इस काम पर।”

“कल मेरे यहां से जाने के बाद निरंजन राजपूत और उसके गुर्गों का क्या हुआ? जेल पहुंच गये या जमानत करवाने में कामयाब हो गया उनका आका?”

सतपाल जिस सवाल से डर रहा था आखिरकार पनौती ने पूछ ही लिया। उससे जवाब देते नहीं बन पड़ा क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि पूरी बात सुनते ही वह भड़क उठेगा।

“कुछ तो बोलो सतपाल साहब।”

“एक रिक्वेस्ट है तेरे से।”

“क्या?”

“पहली बार कर रहा हूं, इसलिए मेरी बात मानने से इंकार मत करना।”

“ठीक है नहीं करूंगा, बोलो क्या बात है?”

“कल रात जो कुछ भी हुआ उस बारे में मुझसे या किसी और से कोई सवाल मत करना ना ही खुद उसके बारे में जानने की कोशिश करना।”

पनौती ने गहरी निगाहों से उसे देखा फिर उठता हुआ बोला, “ठीक है समझ लो मैं भूल भी गया उस बात को।”

“शुक्रिया।”

पनौती ने अनमने भाव से सिर हिलाया और सतपाल से हाथ मिलाकर कमरे से बाहर निकल गया।

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ठीक साढ़े आठ बजे उसने मीनाक्षी शर्मा के बंगले में कदम रखा।

सोलह श्रृंगारों से सुसज्जित मीनाक्षी उस घड़ी ड्राईंग रूम मे बैठी टीवी देख रही थी। उसने गुलाबी रंग की जींस की शॉर्ट और बिना बाजू वाली टी शर्ट पहन रखी थी जो कि उसके बदन पर खूब फब रहा था। अपने मौजूदा परिधान में उसकी उम्र पहले से कहीं ज्यादा छिप सी गई मालूम पड़ती थी।

“आओ बैठो” - वह खनकते स्वर में बोली – “मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।”

“थैंक्यू मैम” - कहकर पनौती उसके सामने बैठ गया – “देख लीजिये मैं ठीक टाइम पर यहां पहुंच गया। मगर एक बात समझ में नहीं आई।”

“क्या?”

“आपने मुझे ऐन साढ़े आठ बजे यहां आने को क्यों कहा था?”

“इसलिए क्योंकि ऑफिस से घर पहुंचने में मुझे वैसे ही साढ़े सात बज जाते हैं इसीलिये मैंने तुम्हें एक घंटे बाद का वक्त दिया था।”

पनौती के मन को चैन मिल गया।

“कुछ लेना पसंद करोगे?”

“फिलहाल नहीं।

“ओके, तो मैंने तुम्हारे लिये कुछ सोचा है।”

“ये तो बड़ी अच्छी खबर सुनाई आपने।”

“प्रियम की मौत के बाद हमारी कंपनी को एक जिम्मेदार शख्स की जरूरत है, जो कि मेरी निगाहों में तुम हो सकते हो। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तुम्हें कंपनी का मालिक बना दिया जायेगा, मगर तुम्हारा रूतबा उससे कम भी नहीं होगा, उम्मीद है तुम्हें मेरा ऑफर पसंद आया होगा।”

“जी बेशक पसंद आया।”

“और मुझे तुम पसंद आये।”

“शुक्रिया।”

“आगे तुम मेरी पसंद पर खरे उतरे तो समझ लो तुम्हारी लाइफ बन जायेगी। बस जरूरत है मेरे मन मुताबिक काम करने की।”

“मेरी तरफ से कोई कोताही नहीं होगी।”

“फिर तो समझ लो मेरे जैसी किसी रूतबे वाली लेडी के दिल का मालिक बनने की तुम्हारी ख्वाहिश भी जल्दी पूरी हो जायेगी” - कहकर वह तनिक पनौती की तरफ झुकी फिर मद भरे स्वर में बोली – “बनना चाहते हो न?”

“ऑफ कोर्स मैं ये रूतबा हासिल करना चाहता हूं मैडम।”

“गुड।” वह संतुष्टि भरे लहजे में बोली।

“तो मैं काम पर कब से आऊं?”

“जब मैं बुलाऊं, जहां मैं बुलाऊं। बस जरा ये कोमल वाला मामला निपट जाये फिर देखना मैं तुम्हें कहां-कहां के नजारे कराती हूं” - कहकर वह तनिक रूकी फिर उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली – “करना चाहोगे न राज साहब?”

“बिल्कुल करना चाहूंगा, सच पूछिये तो अब इंतजार भी भारी पड़ेगा।”

“बस कुछ दिनों की बात है, मैं लंबे अरसे से तुम जैसे किसी सजीले नौजवान की तलाश में थी, कल यादव के ऑफिस में तुम्हें देखा तो लगा कि मेरी तलाश पूरी हो गई है।”

“ये तो मेरी खुशकिस्मती है मैडम जो आपने मुझे किसी लायक समझा।”

उसकी बात के जवाब में कुछ कहने की बजाये मीनाक्षी ने कार्डलेस फोन उठाकर कर किसी को कॉफी लाने को कह दिया फिर बोली, “प्रियम मेरा बेटा था, मुझे जान से ज्यादा प्यारा था।”

“जी जरूर होगा।”

“किसी के साथ संबंध होने का मतलब ये तो नहीं हो जाता कि मां के दिल से बेटे की मोहब्बत खत्म हो जाये? बेशक वह मेरी सगी औलाद नहीं था, मगर दस साल का था जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी, तब से लेकर बड़ा होने तक मैंने जो उसकी परवरिश की है, उसके बाद क्या मुझे उससे मोहब्बत नहीं होनी चाहिये, या तुम ये समझते हो कि सौतेली मां किसी बच्चे को सगी मां जैसा लाड़-प्यार नहीं दे सकती?”

“नहीं तो खैर मैं नहीं समझता।”

“लेकिन यादव कहता है कि तुम ऐसा ही सोचते हो, तुम्हारा वह पुलिसिया यार भी कुछ ऐसा ही सोचता है। तभी तुम दोनों हाथ-धोकर मेरे और यादव के संबंधों के पीछे पड़े हो।”

“उन्हें गलतफहमी हुई है मैडम, हम भला ऐसा क्यों सोचेंगे?”

“सतपाल के साथ तुम्हारे अच्छे ताल्लुकात दिखाई देते हैं, क्या मैं तुमसे उम्मीद कर सकती हूं कि तुम उसे समझाओगे।”

“किस बारे में?” पनौती ने हैरानी जताई।

“इस बारे में कि वह इन्वेस्टीगेशन के दौरान खामख्वाह मेरे और यादव के संबंधों को कुरेदने की कोशिश ना करे।”

“मैं जरूर समझाऊंगा, आपके लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।”

“समझाना, अगर कामयाब हो गये तो ईनाम मिलेगा, ऐसा ईनाम जिसके बारे में तुमने सोचा भी नहीं होगा।”

“जी तलबगार तो मैं बराबर हूं, इसलिए मैं जी जान से कोशिश करूंगा कि दोबारा वह बात किसी भी तरह ना उठने पाये। सतपाल मेरा दोस्त है वह वही करेगा जो मैं कहूंगा। लेकिन कोमल के मामले में तो जैसे वह निश्चिंत हुआ बैठा है कि कातिल वह नहीं है।”

“क्या फर्क पड़ता है, जेल तो वह पहले ही जा चुकी है, पड़ी रहे कुछ सालों तक वहीं, सच पूछो तो ये काम भी तुमने कर के दिखाना है, उस इंस्पेक्टर को समझाना कि कातिल कोमल के अलावा कोई नहीं हो सकता, बल्कि सच में कोई नहीं हो सकता। इसके लिये अगर वह कोई डिमांड करेगा तो मैं तैयार हूं।”

“आपका मतलब है मुझे अपना ईनाम उसके साथ शेयर करना पडे़गा?” पनौती यूं बोला जैसा रो पड़ेगा।

“इडियट वह खास ईनाम तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है, उसके डिमांड से मेरा मतलब पैसोंसे था।”

पनौती खुश हो गया, “ठीक है मैं बात करूंगा उससे।”जरूर करना खासतौर से मेरे और यादव के संबंधों के बारे में उसे खामोशी अख्तियार करने को राजी करना, कोमल अगर उसे कातिल नहीं भी लगती तो चलेगा, उस बात से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।”

तभी कॉफी की ट्रे हाथ में लिये डॉली वहां पहुंची। उसने एक उड़ती सी निगाह पनौती पर डाली फिर ट्रे को सेंटर टेबल पर रखकर बिना कुछ कहे वापिस लौट गई।

“एक सवाल पूछने की इजाजत चाहता हूं” - पनौती बोला – “अब क्योंकि हम दोनों काफी नजदीक आ चुके हैं, इसलिए उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी।”

“पूछो।”

“आप कोमल को जेल क्यों भिजवाना चाहती हैं?”

“सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे यकीन है कि प्रियम का कत्ल उसी ने किया है, मैं नहीं चाहती कि पुलिस किसी संदेह में पड़कर या फिर रिश्वत खाकर उसके केस को हल्का कर दे। सतपाल से कहना, कोमल के घर वाले जो भी ऑफर करेंगे मैं उसका डबल दूंगी मगर किसी भी हाल में वह लड़की बचनी नहीं चाहिये।”

“मैं जरूर कहूंगा मैडम! यकीन रखिये सबकुछ वैसा ही होगा जैसा कि आप चाहेंगी।”

“कॉफी खत्म करो, फिर चलकर मैं तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं।”

“आपका कमरा?”

“हां मेरा कमरा, जहां हम ज्यादा इत्मीनान से बातें कर पायेंगे।”

“अभी लीजिये मैडम।”

कहकर पनौती ने हड़बड़ी का प्रदर्शन करते हुए यूं अपना कप खाली किया जैसे वह मीनाक्षी के बेडरूम में पहुंचने को बेताब हो रहा हो।

कॉफी खत्म होते ही दोनों उठ खड़े हुए।

मीनाक्षी के पीछे पीछे सीढ़ियां चढ़कर वह पहली मंजिल पर पहुंचा, जहां वह सीढ़ियों के दहाने पर बने कमरे को छोड़कर उससे अगले वाले कमरे में जा घुसी। कमरे कही सज-धज देखकर राज हैरान रह गया। बड़े ही ऐश्वर्यशाली ढंग से सजाये गये उस कमरे के ऐन बीच में एक खूब बड़ा बेड रखा हुआ था। जिसपर चटक लाल रंग का चमकीला बेडशीट बिछाया गया था। छत में फॉल्स सीलिंग बनाई गई थी, जिसमें लगी लाइटें यूं प्रकाश बिखेर रही थीं कि लगता ही नहीं था वह कृतिम था।

“कैसा लगा?”

“कमाल का! मैंने ताजिंदगी इतना खूबसूरत कमरा नहीं देखा।”

मीनाक्षी हंसी, खनकती हुई हंसी, हंसी।

“और” - वह पनौती की आंखों में आंखें डालती हुई बोली – “मैं कैसी लगती हूं तुम्हें?”

“एकदम कमरे की खूबसूरती से मैच करती हुई।”

“मेरे ख्याल से तुम कुछ देर यहां रूकना पसंद करोगे?”

पनौती हड़बड़ा सा गया, मगर मीनाक्षी की बात का जवाब देने की कोई कोशिश उसने नहीं की, उल्टा उसकी तरफ से निगाहें हटाकर कमरे में इधर-उधर देखने लगा।

“यहीं रूकना, मैं अभी आती हूं।” कहकर जवाब की प्रतीक्षा किये बगैर वह कमरे से बाहर निकल गई।

उसके पीठ पीछे पनौती बेड पर बैठ गया, बैठकर उसकी वापसी का इंतजार करने लगा। वह औरत यकीनन किसी तगड़े फिराक में थी, मगर उसकी मंशा अभी तक पनौती के समझ में नहीं आई थी।

दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद एक चमत्कृत कर देने वाला ख्याल उसके जहन दिमाग में आया कि मीनाक्षी उसे अपने लटके-झटके में फंसाकर उसके जरिये सतपाल को अपने हक में करना चाहती थी।

एक बार वह बात जहन में आने की देर थी वह मन ही मन अपनी पीठ ठोंकने से बाज नहीं आया।

अभी वह मीनाक्षी के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक अजीब सी आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा, यूं लगा जैसे किसी भारी चीज को उठाकर जमीन पर फेंक दिया गया हो। वह अंदाजा लगाने कोशिश करने लगा कि वह आवाज कैसी थी और कहां से आई थी? मगर समझ में कुछ नहीं आया। तब अपनी जगह से उठकर उसने कमरे की खिड़की खोलकर बाहर झांका, आगे जो नजारा उसे दिखाई दिया, वह उसके होश उड़ाने के लिये पर्याप्त था।खिड़की के बाहर फैले अंधेरे के बावजूद उसने साफ देखा कि उसके बगल वाले कमरे की खिड़की के एकदम नीचे कोई औरत पड़ी हुई थी। यूं पड़ी थी जैसे पड़े पड़े उसका दम निकल गया हो।

‘एक और कत्ल’ उसके जहन में कौंधा। कमरे से निकल कर वह आंधी तूफान की तरह सीढ़ियों की तरफ भागा मगर वहां पहुंचते ही ठिठक कर खड़ा हो गया। मीनाक्षी सीढ़ियां चढ़ती दिखाई दी।

वह सीढ़ियों पर थी तो बंगले के पीछे जमीन पर पड़ी लाश किसकी थी?

‘डॉली’ उसके दिमाग में कौंधा। वह तेजी से सीढियां उतरने लगा। मीनाक्षी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा मगर उसकी परवाह किये बगैर एक छलांग में चार-पांच सीढ़ियां फांदता वह नीचे पहुंचा और तेज गति से दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।

मिनट भर से भी कम समय में वह बंगले के पीछे पहुंच चुका था।

लाश मुंह के बल जमीन पर पड़ी हुई थी। वह किसी भी ऐंगल से डॉली नहीं लग रही थी मगर पनौती को तब तक चैन नहीं मिला जब तक कि उसने लाश की सूरत नहीं देख ली।

चेहरा उसका जाना-पहचाना नहीं निकला।

तभी उसके पीछे हॉल से बाहर निकली मीनाक्षी भी वहां पहुंच गयी।

“क्या हुआ?” - पूछते वक्त जैसे ही उसकी निगाह लाश पर पड़ी, वह हैरान होती हुई बोली – “कौन है ये?”

“ये तो आप बताइये।”

जवाब में मीनाक्षी लाश के करीब पहुंची, कद-काठ और कपड़ों पर निगाह पड़ते ही वह फौरन उसे पहचान गई।

“हे भगवान!” - उसके मुंह से सिसकारी निकल गई – “ये तो कल्पना है।”

“आपकी बड़ी बहू?”

“वही, क्यों मारा तुमने इसे?”

सुनकर पनौती का चेहरा एकदम से सख्त हो उठा, दिल हुआ उसका टेंटुआ दबा दे।

“मैंने मारा?” प्रत्यक्षतः वह बोला।

“और कौन है यहां?”

“मैं इसका कत्ल भला क्यों करूंगा?”

“होगी कोई वजह, मगर तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी।” कहकर उसने पनौती से सटने की कोशिश की तो उसने इतनी जोर से मीनाक्षी को परे धकेला कि वह गिरती-गिरती बची।तुम्हारी ये मजाल कि तुम मुझे धक्का दो।” वह एकदम से बिफर पड़ी।

“हां मेरी ही मजाल है ये, और कुछ कहना है आपको?”

“हां कहना है” - वह तिक्त लहजे में बोली – “मुझे ये कहना है कि अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ भी हमारे बीच तय हुआ था, उसे अब खत्म समझो और जेल जाने को तैयार हो जाओ।”

“कमाल की औरत हैं आप, बहू की लाश सामने पड़ी है और आपको अभी भी इश्क मुश्क की बातें सूझ रही हैं?”

“तमीज से बात करो, वरना मैं भूल जाऊंगी कि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्हारे बारे में कितना अच्छा-अच्छा सोच रही थी।”

“मैं तमीज से ही बात कर रहा हूं, और आपको क्या लगता है आप में सोने का वर्क चढ़ा हुआ है? थूकता हूं मैं आप जैसी औरतों की जात पर, डर लगता है इस बात से कि आपको छू भर लेने से कहीं मेरा चरित्र दागदार न हो जाये।”

“कमीने तेरी ये मजाल।”

“हां मेरी ये मजाल! बार-बार मेरी मजाल की दुहाई मत दीजिये, और अपनी गंदी जुबान को काबू में रखिये, गाली देना बुरी बात होती है, आप औरत है इसलिए आपके लिए और भी ज्यादा बुरी बात है।”

“तेरी मां की....! होता कौन है तू मेरी जुबान को काबू में करने वाला?”

“जबकि अभी अभी इतने पते की बात बता कर हटा हूं कि गाली देना बुरी बात होती है, आपकी समझ में नहीं आ रहा?”

“नहीं आ रहा रंडी की औ...।”

पनौती ने इतनी जोर का तमाचा उसके चेहरे पर जड़ा कि वह खड़े-खड़े फिरकनी की तरह घूम गई।

“कहा था गाली मत देना, गाली देना बुरी बात होती है, और कुछ नहीं तो कम से कम अपने औरत होने का तो लिहाज करो।”

“तूने मुझपर हाथ उठाया?”

“उसके लिये माफी चाहता हूं, आप बेशक एक की बजाये दो थप्पड़ जड़ लीजिये मुझे, मैं उफ तक नहीं करूंगा, मगर गाली मत दीजियेगा, रिक्वेस्ट ...।”

उसकी बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी उसपर झपट पड़ी, उसने पनौती के गालों को अपने नाखुनों से नोंच डाला, छाती पर दांत गड़ा दिये, फिर भी तसल्ली नहीं मिली तो उसपर मुक्के बरसाने लगी। पनौती ने वह सब बर्दाश्त किया, करता रहा, आखिरकार वह खुद ही थककर उससे दूर हो गई।

“अब अगर आपकी भड़ास निकल गई हो, तो बहू की लाश पर ध्यान दीजिये, आपको इसकी मौत का अफसोस नहीं भी है तो कम से कम दुनियादारी निभाने की खातिर ही दुखी होकर दिखाइये।”

“मुझे रोना-धोना नहीं आता।” वह बदले हुए स्वर में बोली।

“ना सही, इसके कत्ल के बारे में क्या कहती हैं?”

“अगर तुमने इसे नहीं मारा तो हो सकता है खिड़की से झांकते वक्त बैलेंस बिगड़ने की वजह से नीचे गिर गई हो।”

“जबकि खिड़की कम से कम भी फर्श के लेबल से ढाई फीट ऊंची होगी।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“आपके कमरे की खिडकी इतनी ही ऊंची है, प्रियम के कमरे में भी ऐसा ही देखने को मिला था, इसलिए अंदाजन कहा।”

“या फिर इसलिए कहा क्योंकि तुम्हीं ने इसके कमरे में पहुंचकर इसे नीचे धकेल दिया था, तभी तुम दौड़ते हुए यहां तक पहुंचे थे, वरना जिस बात की खबर घर में किसी को नहीं है, उस बारे में तुम्हें कैसे पता चल गया?”

“मैंने धम्म की तेज आवाज सुनी थी, इसकी बाद आपके कमरे की खिड़की से झांककर देखा तो यहां कोई पड़ा दिखाई दिया, इस कारण मैं नीचे को भागा था, इसका कत्ल अगर मैंने किया होता तो अभी भी आप के कमरे में बैठा आपकी वापसी का इंतजार कर रहा होता।”

“बकवास, ऐसा कहकर तुम खुद को बचा नहीं सकते। कल्पना का कमरा मेरे कमरे से ऐन पहले पड़ता है, जहां पहुंच कर कल्पना को नीचे धकेल देना तुम्हारे लिया बेहद आसान काम था। फिर सौ बातों की एक बात ये कि तुम्हारे अलावा उस वक्त ऊपर और कोई नहीं था।”

“अगर ऐसा है तो फिर ये कारनामा आपका ही क्यों नहीं हो सकता, एक अजनबी को अपने कमरे में बैठाकर आप खुद बाहर क्यों चली गईं?” - पनौती उसके चेहरे पर निगाहें गड़ाता हुआ बोला – “इसलिए गयीं क्यों कि आपको बगल के कमरे में पहुंचकर कल्पना का कत्ल करना था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपके बाहर जाने के मुश्किल से एक या डेढ़ मिनट बाद मैंने इसके नीचे गिरने की आवाज सुनी थी। अगर इसका कत्ल आपने नहीं किया है तो जवाब दीजिये क्योंकर मुझे अपने कमरे में बैठाकर आप बाहर निकल गई थीं?”

“मैं हमारे लिये कुछ लेने गई थी इडियट।”बकवास, आप कुछ लेने नहीं गई थीं, बल्कि अपने बेडरूम में मुझे अकेला छोड़कर आप बगल के कमरे में पहुंची, जहां किसी तरह आपने अपनी बहू को खिड़की से नीचे धकेल दिया, फिर कमरे से निकल कर नीचे पहुंच गयीं। ताकि बाद में ये साबित हो सके कि कत्ल के वक्त आप नीचे हॉल में थीं, इसलिए कातिल आप नहीं हो सकतीं, इसके विपरीत अगर आपने कुछ मंगाना ही था तो किसी नौकर को आवाज लगा सकती थीं, इंटरकॉम पर कह सकती थीं।”

“नहीं कह सकती थी, क्यों कि चीज मैं नीचे लेने गई थी, उसके बारे में किसी नौकर को खबर होने देना अफोर्ड नहीं कर सकती थी।”

“ऐसा है तो बताइये क्या लेने गई थीं आप?” पनौती चैलेंज भरे स्वर में बोला।

जवाब में पल भर को उसका हाथ अपने गरेबान में रेंग गया फिर वहां से कुछ निकालने के बाद उसने अपनी हथेली पनौती के सामने फैला दी, “ये लेने गई थी मैं।”

राज का मन वितृष्णा से भर उठा, मीनाक्षी की हथेली पर उस घड़ी कंडोम का एक पैकेट रखा हुआ था।

उसने हिकारत भरी निगाहों से उसे देखा फिर बोला, “जैसे आप कोई कुंवारी कन्या थी जिसे गर्भ ठहर जाने का खतरा था, जरा उम्र तो देखिये अपनी, चाहकर भी कोई उम्मीद नहीं बंधने वाली।”

“इडियट, कंडोम का इस्तेमाल सिर्फ गर्भ रोकने के लिये ही नहीं किया जाता, और भी बहुतेरे फायदे होते हैं इसके।”

“बेशक होते होंगे, मगर मैं नहीं जानना चाहता। ऐसी कोई चीज अगर घर में कहीं मौजूद थी तो वह आपके बेडरूम में होनी चाहिये थी, नीचे जाकर किसी से मांग तो लिया नहीं होगा आपने, ये कहकर कि मेरे पास खत्म हो गया है, बाद में लाऊंगी तो वापिस कर दूंगी।”

“तुम मेरे साथ यूं पेश नहीं आ सकते।”

“आना भी नहीं चाहता, आप कबूल कीजिये कि कल्पना का कत्ल आपने किया है, बात खत्म हो जायेगी। और कुछ कहना-सुनना बाकी नहीं बचेगा।”

“मैंने नहीं किया” - कहकर वह एकदम से पनौती से लिपट गई – “मेरा यकीन करो मैंने कुछ नहीं किया है।”

पनौती ने बड़ी बेरहमी से उसे खुद से परे धकेल दिया।


मैडम प्लीज! दूर खड़े होकर बात कीजिये।”

“नहीं कर सकती, तुमने जैसे कोई जादू कर दिया है मुझपर। तुमसे इतनी जिल्लत झेलकर भी मेरे मन में तुम्हारे लिये नफरत पैदा नहीं हो रही। सच पूछो तो यादव के ऑफिस में तुमपर निगाह पड़ते ही मैं तुम्हें पाने को तड़प उठी थी। इसी कारण मैंने तुम्हें आज रात घर बुलाया था।”

पनौती ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

“बस एक बार कह दो कि तुम मेरे हो, मैं तुम्हारी खातिर कुछ भी करने को तैयार हूं, चाहो तो मेरा सबकुछ ले लो, मेरी तमाम दौलत अपने नाम करवा लो, लेकिन तुम मेरे बन जाओ, मैं वादा करती हूं कि कभी तुम्हारे किसी और रिलेशन के आड़े नहीं आऊंगी, तुम जिसके साथ मर्जी अपनी जिंदगी गुजारना, बस मुझे भूल मत जाना।”

“भूल तो मैं बेशक आपको नहीं पाऊंगा मैडम, मगर वह हरगिज नहीं हो सकता जो आप चाहती हैं। आगे कुछ कहूंगा तो आपको फिर से अपनी बेइज्जती महसूस होगी, इसलिए आखिरी बार चेतावनी देता हूं कि ये फिल्मी डॉयलाग बंद कीजिए, ये सोचकर कीजिये कि मुझपर इसका कोई असर नहीं होने वाला।”

“क्यों? मैं क्या खूबसूरत नहीं हूं, या किसी जवान लड़की की तरह मर्द को सम्मोहित करने की क्षमता नहीं है मेरे भीतर? क्यों तुम मेरे साथ यूं पेश आकर दिखा रहे हो?”

“बेशक आप खूबसूरत हैं और माशाअल्लाह सम्मोहन की भी कोई कमी नहीं है आपमें, मगर इन सब बातों से परे एक सच्चाई और भी है। वह ये है कि खंडहर की कितनी भी मरम्मत क्यों न कर ली जाये, रंग-रोगन के जरिये उसे चमकाने की कोशिश क्यों न कर ली जाये, रहता तो वह आखिर खंडहर ही है, क्योंकि उसके मूल में छिपी इमारत को सिरे से नहीं बदला जा सकता, ऐसी कोशिश की जायेगी तो खंडहर अपना बचा-खुचा वजूद भी खो बैठेगा।”

जवाब में मीनाक्षी कुछ क्षण तक उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती रही फिर बोली, “कहीं तुम इंपोटेंट तो नहीं हो?”

“आप वह लोमड़ी तो नहीं हैं, जो अंगूर तक पहुंच नहीं बना सकी तो उसे खट्टा बताने लगी?”

सुनकर मीनाक्षी तिलमिला कर रह गई।

“अब अगर आपके जहन पर सवार नामुराद नशा उतर चुका हो, तो दिखावे को ही सही, जरा गमगीन हो कर दिखाइये, मत भूलिये कि सामने आपकी बहू की लाश पड़ी है, भले ही वह आपके सौतेले बेटे की बीवी थी, मगर रिश्ता तो बराबर बनता है।”

हैरानी की बात ये रही कि पनौती के मुंह का आखिरी फिकरा सुनते ही मीनाक्षी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। पता नहीं वह आंसू पनौती के हाथों हुई बेइज्जती के थे या फिर सचमुच उसे अपनी बहू की मौत का अफसोस हो आया था।


हां अब ठीक है, भगवान के लिये पुलिस के आने तक ये सिलसिला चलता रहने दीजियेगा, क्योंकि कत्ल का पहला शक उन्हें आप पर ही होने वाला है। ऐसे में हो सकता है आपके आंसुओं को देखकर ही इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर पिघल जाये और आपके साथ नर्मी से पेश आने लगे।”

इसके बाद पनौती ने सतपाल को फोन कर के संक्षेप में सारी कहानी कह सुनाई और कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद उसके वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा।

☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐आधे घंटे बाद इंस्पेक्टर सतपाल सिंह दल-बल सहित वहां हाजिर हुआ।

तब तक राज शर्मा लाश के पास से हिला तक नहीं था। ये अलग बात थी कि पुलिस के आने तक बंगले में मौजूद तमाम लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे, जिनमें से एक डॉली शर्मा भी थी। उसने राज की तरफ नजर उठा कर देखने या उससे बात करने की कोई कोशिश नहीं की।

अनुराग शर्मा को कल्पना की मौत की सूचना दी जा चुकी थी, मगर पुलिस के आगमन तक वह घर नहीं पहुंच पाया था।
सतपाल लाश के पास पहुंचा।

कुछ देर तक उकड़ू बैठ कर डैड बॉडी का मुआयना करता रहा, वहां रोशनी का प्रत्यक्षतः कोई साधन नहीं था, थोड़ा बहुत जो उजाला वहां दिखाई दे रहा था, वह खिड़कियों से छन कर बाहर पहुंचती ट्युब लाइट की रोशनी का था, जो कि लाश का सूक्ष्म मुआयना करने के लिये नाकाफी जान पड़ता था।

उसने हाथ के इशारे से एक सिपाही को अपने करीब बुलाया।
“मोबाइल का टॉर्च जलाकर रोशनी का रूख इसके ऊपर कर।”

सिपाही ने किया। तब सतपाल ने एक बार फिर ज्यादा गौर से लाश के आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई सूत्र हासिल होता नहीं दिखा। उसने सिर उठाकर ऊपर की तरफ देखा था पहली मंजिल की खिड़की खुली दिखाई दी।

उसने सिपाही से टॉर्च बंद कर लेने को कह दिया।
फिर टहलने वाले अंदाज में चलता हुआ, राज के करीब पहुंचा।

“मैंने मना किया था” - वह धीरे से बोला – “साफ-साफ चेतावनी भी दी थी, मगर तू सुने तब न?”

“उन बातों के लिये ये सही वक्त नहीं है इंस्पेक्टर साहब, फिर किसी को चेतावनी देना एक सहज प्रक्रिया है, जबकि हत्या जैसी वारदात का घटित हो जाना जुदा बात होती है। मुझे अगाह करते वक्त क्या पल भर को भी तुम्हारे जहन में ये ख्याल आया था कि यहां एक और कत्ल हो जाने वाला था।”

सतपाल कुछ क्षणों तक उसे घूरकर देखता रहा, फिर मीनाक्षी शर्मा की तरफ आकर्षित हुआ, “मैडम! चार दिनों के भीतर आपके परिवार में दो कत्ल हो चुके हैं, कुछ कहना चाहती हैं आप इस बारे में?”

“नहीं लेकिन मुझे इस लड़के पर शक है” - उसने पनौती की तरफ उंगली उठा दी – “इसके अलावा कत्ल के वक्त बंगले की पहली मंजिल पर कोई दूसरा जना मौजूद नहीं था।”

“शक की कोई वजह।”

“कत्ल के एकदम बाद ये आंधी तूफान की तरह दौड़ता हुआ बंगले से निकल कर सीधा यहां आ खड़ा हुआ था। साफ जाहिर हो रहा था कि इसे पहले से पता था कि यहां कल्पना की लाश पड़ी हुई है। अब मेरा सवाल ये है कि क्यों पता था? घर के नौकर-चाकर किसी को भी खबर नहीं लगी थी कि कल्पना के साथ क्या गुजरी थी, मगर इस शख्स को पूरी पूरी खबर थी, और वैसा सिर्फ एक ही सूरत में हो सकता है जब कल्पना की हत्या इसने खुद की हो।”

“तर्क कमाल का दे लेती हैं आप।”

“थैंक्यू।”

“आप इसे पहले से जानती हैं?”

“नहीं, तुम्हें खूब पता है कि मैं इसे नहीं जानती।”

“इसके साथ आप लोगों की कोई दुश्मनी है?”

“मेरी नॉलेज में तो नहीं है, लेकिन कल्पना के साथ इसकी कोई ना कोई अदावत जरूर रही होगी, वरना ये उसे उठाकर खिड़की से नीचे न फेंक देता।”मैडम ये कत्ल का मामला है, इसलिए सोच समझ कर जुबान खोलिये। यूं ही आपके कहने भर से किसी को कातिल नहीं मान लिया जायेगा, या तो आप कोई वजह बयान कीजिये या फिर यूं ही किसी पर भी उंगली उठाना बंद कीजिये।”

“तुम तो ऐसा कहोगे ही, आखिरकार यार है ये तुम्हारा।”

“आप ऐसा सोचती हैं तो चलिये यही सही, अब बताइये कत्ल के वक्त आप कहां थी, क्या कर रही थीं?”

“मैं इसे ऊपर! कल्पना के ऐन बगल वाले कमरे में बैठा छोड़कर, नीचे हॉल में कुछ सामान लेने गई हुई थी, वापिस लौट ही रही थी कि ये शख्स मुझे तेजी से सीढ़ियां उतरता दिखाई दिया और मेरे देखते ही देखते दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।”
 
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ठीक साढ़े आठ बजे उसने मीनाक्षी शर्मा के बंगले में कदम रखा।

सोलह श्रृंगारों से सुसज्जित मीनाक्षी उस घड़ी ड्राईंग रूम मे बैठी टीवी देख रही थी। उसने गुलाबी रंग की जींस की शॉर्ट और बिना बाजू वाली टी शर्ट पहन रखी थी जो कि उसके बदन पर खूब फब रहा था। अपने मौजूदा परिधान में उसकी उम्र पहले से कहीं ज्यादा छिप सी गई मालूम पड़ती थी।

“आओ बैठो” - वह खनकते स्वर में बोली – “मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।”

“थैंक्यू मैम” - कहकर पनौती उसके सामने बैठ गया – “देख लीजिये मैं ठीक टाइम पर यहां पहुंच गया। मगर एक बात समझ में नहीं आई।”

“क्या?”

“आपने मुझे ऐन साढ़े आठ बजे यहां आने को क्यों कहा था?”

“इसलिए क्योंकि ऑफिस से घर पहुंचने में मुझे वैसे ही साढ़े सात बज जाते हैं इसीलिये मैंने तुम्हें एक घंटे बाद का वक्त दिया था।”

पनौती के मन को चैन मिल गया।

“कुछ लेना पसंद करोगे?”

“फिलहाल नहीं।

“ओके, तो मैंने तुम्हारे लिये कुछ सोचा है।”

“ये तो बड़ी अच्छी खबर सुनाई आपने।”

“प्रियम की मौत के बाद हमारी कंपनी को एक जिम्मेदार शख्स की जरूरत है, जो कि मेरी निगाहों में तुम हो सकते हो। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तुम्हें कंपनी का मालिक बना दिया जायेगा, मगर तुम्हारा रूतबा उससे कम भी नहीं होगा, उम्मीद है तुम्हें मेरा ऑफर पसंद आया होगा।”

“जी बेशक पसंद आया।”

“और मुझे तुम पसंद आये।”

“शुक्रिया।”

“आगे तुम मेरी पसंद पर खरे उतरे तो समझ लो तुम्हारी लाइफ बन जायेगी। बस जरूरत है मेरे मन मुताबिक काम करने की।”

“मेरी तरफ से कोई कोताही नहीं होगी।”

“फिर तो समझ लो मेरे जैसी किसी रूतबे वाली लेडी के दिल का मालिक बनने की तुम्हारी ख्वाहिश भी जल्दी पूरी हो जायेगी” - कहकर वह तनिक पनौती की तरफ झुकी फिर मद भरे स्वर में बोली – “बनना चाहते हो न?”

“ऑफ कोर्स मैं ये रूतबा हासिल करना चाहता हूं मैडम।”

“गुड।” वह संतुष्टि भरे लहजे में बोली।

“तो मैं काम पर कब से आऊं?”

“जब मैं बुलाऊं, जहां मैं बुलाऊं। बस जरा ये कोमल वाला मामला निपट जाये फिर देखना मैं तुम्हें कहां-कहां के नजारे कराती हूं” - कहकर वह तनिक रूकी फिर उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली – “करना चाहोगे न राज साहब?”

“बिल्कुल करना चाहूंगा, सच पूछिये तो अब इंतजार भी भारी पड़ेगा।”

“बस कुछ दिनों की बात है, मैं लंबे अरसे से तुम जैसे किसी सजीले नौजवान की तलाश में थी, कल यादव के ऑफिस में तुम्हें देखा तो लगा कि मेरी तलाश पूरी हो गई है।”

“ये तो मेरी खुशकिस्मती है मैडम जो आपने मुझे किसी लायक समझा।”

उसकी बात के जवाब में कुछ कहने की बजाये मीनाक्षी ने कार्डलेस फोन उठाकर कर किसी को कॉफी लाने को कह दिया फिर बोली, “प्रियम मेरा बेटा था, मुझे जान से ज्यादा प्यारा था।”

“जी जरूर होगा।”

“किसी के साथ संबंध होने का मतलब ये तो नहीं हो जाता कि मां के दिल से बेटे की मोहब्बत खत्म हो जाये? बेशक वह मेरी सगी औलाद नहीं था, मगर दस साल का था जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी, तब से लेकर बड़ा होने तक मैंने जो उसकी परवरिश की है, उसके बाद क्या मुझे उससे मोहब्बत नहीं होनी चाहिये, या तुम ये समझते हो कि सौतेली मां किसी बच्चे को सगी मां जैसा लाड़-प्यार नहीं दे सकती?”

“नहीं तो खैर मैं नहीं समझता।”

“लेकिन यादव कहता है कि तुम ऐसा ही सोचते हो, तुम्हारा वह पुलिसिया यार भी कुछ ऐसा ही सोचता है। तभी तुम दोनों हाथ-धोकर मेरे और यादव के संबंधों के पीछे पड़े हो।”

“उन्हें गलतफहमी हुई है मैडम, हम भला ऐसा क्यों सोचेंगे?”

“सतपाल के साथ तुम्हारे अच्छे ताल्लुकात दिखाई देते हैं, क्या मैं तुमसे उम्मीद कर सकती हूं कि तुम उसे समझाओगे।”

“किस बारे में?” पनौती ने हैरानी जताई।

“इस बारे में कि वह इन्वेस्टीगेशन के दौरान खामख्वाह मेरे और यादव के संबंधों को कुरेदने की कोशिश ना करे।”

“मैं जरूर समझाऊंगा, आपके लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।”

“समझाना, अगर कामयाब हो गये तो ईनाम मिलेगा, ऐसा ईनाम जिसके बारे में तुमने सोचा भी नहीं होगा।”

“जी तलबगार तो मैं बराबर हूं, इसलिए मैं जी जान से कोशिश करूंगा कि दोबारा वह बात किसी भी तरह ना उठने पाये। सतपाल मेरा दोस्त है वह वही करेगा जो मैं कहूंगा। लेकिन कोमल के मामले में तो जैसे वह निश्चिंत हुआ बैठा है कि कातिल वह नहीं है।”

“क्या फर्क पड़ता है, जेल तो वह पहले ही जा चुकी है, पड़ी रहे कुछ सालों तक वहीं, सच पूछो तो ये काम भी तुमने कर के दिखाना है, उस इंस्पेक्टर को समझाना कि कातिल कोमल के अलावा कोई नहीं हो सकता, बल्कि सच में कोई नहीं हो सकता। इसके लिये अगर वह कोई डिमांड करेगा तो मैं तैयार हूं।”

“आपका मतलब है मुझे अपना ईनाम उसके साथ शेयर करना पडे़गा?” पनौती यूं बोला जैसा रो पड़ेगा।

“इडियट वह खास ईनाम तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है, उसके डिमांड से मेरा मतलब पैसोंसे था।”

पनौती खुश हो गया, “ठीक है मैं बात करूंगा उससे।”जरूर करना खासतौर से मेरे और यादव के संबंधों के बारे में उसे खामोशी अख्तियार करने को राजी करना, कोमल अगर उसे कातिल नहीं भी लगती तो चलेगा, उस बात से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।”

तभी कॉफी की ट्रे हाथ में लिये डॉली वहां पहुंची। उसने एक उड़ती सी निगाह पनौती पर डाली फिर ट्रे को सेंटर टेबल पर रखकर बिना कुछ कहे वापिस लौट गई।

“एक सवाल पूछने की इजाजत चाहता हूं” - पनौती बोला – “अब क्योंकि हम दोनों काफी नजदीक आ चुके हैं, इसलिए उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी।”

“पूछो।”

“आप कोमल को जेल क्यों भिजवाना चाहती हैं?”

“सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे यकीन है कि प्रियम का कत्ल उसी ने किया है, मैं नहीं चाहती कि पुलिस किसी संदेह में पड़कर या फिर रिश्वत खाकर उसके केस को हल्का कर दे। सतपाल से कहना, कोमल के घर वाले जो भी ऑफर करेंगे मैं उसका डबल दूंगी मगर किसी भी हाल में वह लड़की बचनी नहीं चाहिये।”

“मैं जरूर कहूंगा मैडम! यकीन रखिये सबकुछ वैसा ही होगा जैसा कि आप चाहेंगी।”

“कॉफी खत्म करो, फिर चलकर मैं तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं।”

“आपका कमरा?”

“हां मेरा कमरा, जहां हम ज्यादा इत्मीनान से बातें कर पायेंगे।”

“अभी लीजिये मैडम।”

कहकर पनौती ने हड़बड़ी का प्रदर्शन करते हुए यूं अपना कप खाली किया जैसे वह मीनाक्षी के बेडरूम में पहुंचने को बेताब हो रहा हो।

कॉफी खत्म होते ही दोनों उठ खड़े हुए।

मीनाक्षी के पीछे पीछे सीढ़ियां चढ़कर वह पहली मंजिल पर पहुंचा, जहां वह सीढ़ियों के दहाने पर बने कमरे को छोड़कर उससे अगले वाले कमरे में जा घुसी। कमरे कही सज-धज देखकर राज हैरान रह गया। बड़े ही ऐश्वर्यशाली ढंग से सजाये गये उस कमरे के ऐन बीच में एक खूब बड़ा बेड रखा हुआ था। जिसपर चटक लाल रंग का चमकीला बेडशीट बिछाया गया था। छत में फॉल्स सीलिंग बनाई गई थी, जिसमें लगी लाइटें यूं प्रकाश बिखेर रही थीं कि लगता ही नहीं था वह कृतिम था।

“कैसा लगा?”

“कमाल का! मैंने ताजिंदगी इतना खूबसूरत कमरा नहीं देखा।”

मीनाक्षी हंसी, खनकती हुई हंसी, हंसी।

“और” - वह पनौती की आंखों में आंखें डालती हुई बोली – “मैं कैसी लगती हूं तुम्हें?”

“एकदम कमरे की खूबसूरती से मैच करती हुई।”

“मेरे ख्याल से तुम कुछ देर यहां रूकना पसंद करोगे?”

पनौती हड़बड़ा सा गया, मगर मीनाक्षी की बात का जवाब देने की कोई कोशिश उसने नहीं की, उल्टा उसकी तरफ से निगाहें हटाकर कमरे में इधर-उधर देखने लगा।

“यहीं रूकना, मैं अभी आती हूं।” कहकर जवाब की प्रतीक्षा किये बगैर वह कमरे से बाहर निकल गई।

उसके पीठ पीछे पनौती बेड पर बैठ गया, बैठकर उसकी वापसी का इंतजार करने लगा। वह औरत यकीनन किसी तगड़े फिराक में थी, मगर उसकी मंशा अभी तक पनौती के समझ में नहीं आई थी।

दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद एक चमत्कृत कर देने वाला ख्याल उसके जहन दिमाग में आया कि मीनाक्षी उसे अपने लटके-झटके में फंसाकर उसके जरिये सतपाल को अपने हक में करना चाहती थी।

एक बार वह बात जहन में आने की देर थी वह मन ही मन अपनी पीठ ठोंकने से बाज नहीं आया।

अभी वह मीनाक्षी के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक अजीब सी आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा, यूं लगा जैसे किसी भारी चीज को उठाकर जमीन पर फेंक दिया गया हो। वह अंदाजा लगाने कोशिश करने लगा कि वह आवाज कैसी थी और कहां से आई थी? मगर समझ में कुछ नहीं आया। तब अपनी जगह से उठकर उसने कमरे की खिड़की खोलकर बाहर झांका, आगे जो नजारा उसे दिखाई दिया, वह उसके होश उड़ाने के लिये पर्याप्त था।खिड़की के बाहर फैले अंधेरे के बावजूद उसने साफ देखा कि उसके बगल वाले कमरे की खिड़की के एकदम नीचे कोई औरत पड़ी हुई थी। यूं पड़ी थी जैसे पड़े पड़े उसका दम निकल गया हो।

‘एक और कत्ल’ उसके जहन में कौंधा। कमरे से निकल कर वह आंधी तूफान की तरह सीढ़ियों की तरफ भागा मगर वहां पहुंचते ही ठिठक कर खड़ा हो गया। मीनाक्षी सीढ़ियां चढ़ती दिखाई दी।

वह सीढ़ियों पर थी तो बंगले के पीछे जमीन पर पड़ी लाश किसकी थी?

‘डॉली’ उसके दिमाग में कौंधा। वह तेजी से सीढियां उतरने लगा। मीनाक्षी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा मगर उसकी परवाह किये बगैर एक छलांग में चार-पांच सीढ़ियां फांदता वह नीचे पहुंचा और तेज गति से दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।

मिनट भर से भी कम समय में वह बंगले के पीछे पहुंच चुका था।

लाश मुंह के बल जमीन पर पड़ी हुई थी। वह किसी भी ऐंगल से डॉली नहीं लग रही थी मगर पनौती को तब तक चैन नहीं मिला जब तक कि उसने लाश की सूरत नहीं देख ली।

चेहरा उसका जाना-पहचाना नहीं निकला।

तभी उसके पीछे हॉल से बाहर निकली मीनाक्षी भी वहां पहुंच गयी।

“क्या हुआ?” - पूछते वक्त जैसे ही उसकी निगाह लाश पर पड़ी, वह हैरान होती हुई बोली – “कौन है ये?”

“ये तो आप बताइये।”

जवाब में मीनाक्षी लाश के करीब पहुंची, कद-काठ और कपड़ों पर निगाह पड़ते ही वह फौरन उसे पहचान गई।

“हे भगवान!” - उसके मुंह से सिसकारी निकल गई – “ये तो कल्पना है।”

“आपकी बड़ी बहू?”

“वही, क्यों मारा तुमने इसे?”

सुनकर पनौती का चेहरा एकदम से सख्त हो उठा, दिल हुआ उसका टेंटुआ दबा दे।

“मैंने मारा?” प्रत्यक्षतः वह बोला।

“और कौन है यहां?”

“मैं इसका कत्ल भला क्यों करूंगा?”

“होगी कोई वजह, मगर तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी।” कहकर उसने पनौती से सटने की कोशिश की तो उसने इतनी जोर से मीनाक्षी को परे धकेला कि वह गिरती-गिरती बची।तुम्हारी ये मजाल कि तुम मुझे धक्का दो।” वह एकदम से बिफर पड़ी।

“हां मेरी ही मजाल है ये, और कुछ कहना है आपको?”

“हां कहना है” - वह तिक्त लहजे में बोली – “मुझे ये कहना है कि अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ भी हमारे बीच तय हुआ था, उसे अब खत्म समझो और जेल जाने को तैयार हो जाओ।”

“कमाल की औरत हैं आप, बहू की लाश सामने पड़ी है और आपको अभी भी इश्क मुश्क की बातें सूझ रही हैं?”

“तमीज से बात करो, वरना मैं भूल जाऊंगी कि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्हारे बारे में कितना अच्छा-अच्छा सोच रही थी।”

“मैं तमीज से ही बात कर रहा हूं, और आपको क्या लगता है आप में सोने का वर्क चढ़ा हुआ है? थूकता हूं मैं आप जैसी औरतों की जात पर, डर लगता है इस बात से कि आपको छू भर लेने से कहीं मेरा चरित्र दागदार न हो जाये।”

“कमीने तेरी ये मजाल।”

“हां मेरी ये मजाल! बार-बार मेरी मजाल की दुहाई मत दीजिये, और अपनी गंदी जुबान को काबू में रखिये, गाली देना बुरी बात होती है, आप औरत है इसलिए आपके लिए और भी ज्यादा बुरी बात है।”

“तेरी मां की....! होता कौन है तू मेरी जुबान को काबू में करने वाला?”

“जबकि अभी अभी इतने पते की बात बता कर हटा हूं कि गाली देना बुरी बात होती है, आपकी समझ में नहीं आ रहा?”

“नहीं आ रहा रंडी की औ...।”

पनौती ने इतनी जोर का तमाचा उसके चेहरे पर जड़ा कि वह खड़े-खड़े फिरकनी की तरह घूम गई।

“कहा था गाली मत देना, गाली देना बुरी बात होती है, और कुछ नहीं तो कम से कम अपने औरत होने का तो लिहाज करो।”

“तूने मुझपर हाथ उठाया?”

“उसके लिये माफी चाहता हूं, आप बेशक एक की बजाये दो थप्पड़ जड़ लीजिये मुझे, मैं उफ तक नहीं करूंगा, मगर गाली मत दीजियेगा, रिक्वेस्ट ...।”

उसकी बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी उसपर झपट पड़ी, उसने पनौती के गालों को अपने नाखुनों से नोंच डाला, छाती पर दांत गड़ा दिये, फिर भी तसल्ली नहीं मिली तो उसपर मुक्के बरसाने लगी। पनौती ने वह सब बर्दाश्त किया, करता रहा, आखिरकार वह खुद ही थककर उससे दूर हो गई।

“अब अगर आपकी भड़ास निकल गई हो, तो बहू की लाश पर ध्यान दीजिये, आपको इसकी मौत का अफसोस नहीं भी है तो कम से कम दुनियादारी निभाने की खातिर ही दुखी होकर दिखाइये।”

“मुझे रोना-धोना नहीं आता।” वह बदले हुए स्वर में बोली।

“ना सही, इसके कत्ल के बारे में क्या कहती हैं?”

“अगर तुमने इसे नहीं मारा तो हो सकता है खिड़की से झांकते वक्त बैलेंस बिगड़ने की वजह से नीचे गिर गई हो।”

“जबकि खिड़की कम से कम भी फर्श के लेबल से ढाई फीट ऊंची होगी।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“आपके कमरे की खिडकी इतनी ही ऊंची है, प्रियम के कमरे में भी ऐसा ही देखने को मिला था, इसलिए अंदाजन कहा।”

“या फिर इसलिए कहा क्योंकि तुम्हीं ने इसके कमरे में पहुंचकर इसे नीचे धकेल दिया था, तभी तुम दौड़ते हुए यहां तक पहुंचे थे, वरना जिस बात की खबर घर में किसी को नहीं है, उस बारे में तुम्हें कैसे पता चल गया?”

“मैंने धम्म की तेज आवाज सुनी थी, इसकी बाद आपके कमरे की खिड़की से झांककर देखा तो यहां कोई पड़ा दिखाई दिया, इस कारण मैं नीचे को भागा था, इसका कत्ल अगर मैंने किया होता तो अभी भी आप के कमरे में बैठा आपकी वापसी का इंतजार कर रहा होता।”

“बकवास, ऐसा कहकर तुम खुद को बचा नहीं सकते। कल्पना का कमरा मेरे कमरे से ऐन पहले पड़ता है, जहां पहुंच कर कल्पना को नीचे धकेल देना तुम्हारे लिया बेहद आसान काम था। फिर सौ बातों की एक बात ये कि तुम्हारे अलावा उस वक्त ऊपर और कोई नहीं था।”

“अगर ऐसा है तो फिर ये कारनामा आपका ही क्यों नहीं हो सकता, एक अजनबी को अपने कमरे में बैठाकर आप खुद बाहर क्यों चली गईं?” - पनौती उसके चेहरे पर निगाहें गड़ाता हुआ बोला – “इसलिए गयीं क्यों कि आपको बगल के कमरे में पहुंचकर कल्पना का कत्ल करना था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपके बाहर जाने के मुश्किल से एक या डेढ़ मिनट बाद मैंने इसके नीचे गिरने की आवाज सुनी थी। अगर इसका कत्ल आपने नहीं किया है तो जवाब दीजिये क्योंकर मुझे अपने कमरे में बैठाकर आप बाहर निकल गई थीं?”

“मैं हमारे लिये कुछ लेने गई थी इडियट।”बकवास, आप कुछ लेने नहीं गई थीं, बल्कि अपने बेडरूम में मुझे अकेला छोड़कर आप बगल के कमरे में पहुंची, जहां किसी तरह आपने अपनी बहू को खिड़की से नीचे धकेल दिया, फिर कमरे से निकल कर नीचे पहुंच गयीं। ताकि बाद में ये साबित हो सके कि कत्ल के वक्त आप नीचे हॉल में थीं, इसलिए कातिल आप नहीं हो सकतीं, इसके विपरीत अगर आपने कुछ मंगाना ही था तो किसी नौकर को आवाज लगा सकती थीं, इंटरकॉम पर कह सकती थीं।”

“नहीं कह सकती थी, क्यों कि चीज मैं नीचे लेने गई थी, उसके बारे में किसी नौकर को खबर होने देना अफोर्ड नहीं कर सकती थी।”

“ऐसा है तो बताइये क्या लेने गई थीं आप?” पनौती चैलेंज भरे स्वर में बोला।

जवाब में पल भर को उसका हाथ अपने गरेबान में रेंग गया फिर वहां से कुछ निकालने के बाद उसने अपनी हथेली पनौती के सामने फैला दी, “ये लेने गई थी मैं।”

राज का मन वितृष्णा से भर उठा, मीनाक्षी की हथेली पर उस घड़ी कंडोम का एक पैकेट रखा हुआ था।

उसने हिकारत भरी निगाहों से उसे देखा फिर बोला, “जैसे आप कोई कुंवारी कन्या थी जिसे गर्भ ठहर जाने का खतरा था, जरा उम्र तो देखिये अपनी, चाहकर भी कोई उम्मीद नहीं बंधने वाली।”

“इडियट, कंडोम का इस्तेमाल सिर्फ गर्भ रोकने के लिये ही नहीं किया जाता, और भी बहुतेरे फायदे होते हैं इसके।”

“बेशक होते होंगे, मगर मैं नहीं जानना चाहता। ऐसी कोई चीज अगर घर में कहीं मौजूद थी तो वह आपके बेडरूम में होनी चाहिये थी, नीचे जाकर किसी से मांग तो लिया नहीं होगा आपने, ये कहकर कि मेरे पास खत्म हो गया है, बाद में लाऊंगी तो वापिस कर दूंगी।”

“तुम मेरे साथ यूं पेश नहीं आ सकते।”

“आना भी नहीं चाहता, आप कबूल कीजिये कि कल्पना का कत्ल आपने किया है, बात खत्म हो जायेगी। और कुछ कहना-सुनना बाकी नहीं बचेगा।”

“मैंने नहीं किया” - कहकर वह एकदम से पनौती से लिपट गई – “मेरा यकीन करो मैंने कुछ नहीं किया है।”

पनौती ने बड़ी बेरहमी से उसे खुद से परे धकेल दिया।


मैडम प्लीज! दूर खड़े होकर बात कीजिये।”

“नहीं कर सकती, तुमने जैसे कोई जादू कर दिया है मुझपर। तुमसे इतनी जिल्लत झेलकर भी मेरे मन में तुम्हारे लिये नफरत पैदा नहीं हो रही। सच पूछो तो यादव के ऑफिस में तुमपर निगाह पड़ते ही मैं तुम्हें पाने को तड़प उठी थी। इसी कारण मैंने तुम्हें आज रात घर बुलाया था।”

पनौती ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

“बस एक बार कह दो कि तुम मेरे हो, मैं तुम्हारी खातिर कुछ भी करने को तैयार हूं, चाहो तो मेरा सबकुछ ले लो, मेरी तमाम दौलत अपने नाम करवा लो, लेकिन तुम मेरे बन जाओ, मैं वादा करती हूं कि कभी तुम्हारे किसी और रिलेशन के आड़े नहीं आऊंगी, तुम जिसके साथ मर्जी अपनी जिंदगी गुजारना, बस मुझे भूल मत जाना।”

“भूल तो मैं बेशक आपको नहीं पाऊंगा मैडम, मगर वह हरगिज नहीं हो सकता जो आप चाहती हैं। आगे कुछ कहूंगा तो आपको फिर से अपनी बेइज्जती महसूस होगी, इसलिए आखिरी बार चेतावनी देता हूं कि ये फिल्मी डॉयलाग बंद कीजिए, ये सोचकर कीजिये कि मुझपर इसका कोई असर नहीं होने वाला।”

“क्यों? मैं क्या खूबसूरत नहीं हूं, या किसी जवान लड़की की तरह मर्द को सम्मोहित करने की क्षमता नहीं है मेरे भीतर? क्यों तुम मेरे साथ यूं पेश आकर दिखा रहे हो?”

“बेशक आप खूबसूरत हैं और माशाअल्लाह सम्मोहन की भी कोई कमी नहीं है आपमें, मगर इन सब बातों से परे एक सच्चाई और भी है। वह ये है कि खंडहर की कितनी भी मरम्मत क्यों न कर ली जाये, रंग-रोगन के जरिये उसे चमकाने की कोशिश क्यों न कर ली जाये, रहता तो वह आखिर खंडहर ही है, क्योंकि उसके मूल में छिपी इमारत को सिरे से नहीं बदला जा सकता, ऐसी कोशिश की जायेगी तो खंडहर अपना बचा-खुचा वजूद भी खो बैठेगा।”

जवाब में मीनाक्षी कुछ क्षण तक उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती रही फिर बोली, “कहीं तुम इंपोटेंट तो नहीं हो?”

“आप वह लोमड़ी तो नहीं हैं, जो अंगूर तक पहुंच नहीं बना सकी तो उसे खट्टा बताने लगी?”

सुनकर मीनाक्षी तिलमिला कर रह गई।

“अब अगर आपके जहन पर सवार नामुराद नशा उतर चुका हो, तो दिखावे को ही सही, जरा गमगीन हो कर दिखाइये, मत भूलिये कि सामने आपकी बहू की लाश पड़ी है, भले ही वह आपके सौतेले बेटे की बीवी थी, मगर रिश्ता तो बराबर बनता है।”

हैरानी की बात ये रही कि पनौती के मुंह का आखिरी फिकरा सुनते ही मीनाक्षी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। पता नहीं वह आंसू पनौती के हाथों हुई बेइज्जती के थे या फिर सचमुच उसे अपनी बहू की मौत का अफसोस हो आया था।


हां अब ठीक है, भगवान के लिये पुलिस के आने तक ये सिलसिला चलता रहने दीजियेगा, क्योंकि कत्ल का पहला शक उन्हें आप पर ही होने वाला है। ऐसे में हो सकता है आपके आंसुओं को देखकर ही इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर पिघल जाये और आपके साथ नर्मी से पेश आने लगे।”

इसके बाद पनौती ने सतपाल को फोन कर के संक्षेप में सारी कहानी कह सुनाई और कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद उसके वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा।

☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐आधे घंटे बाद इंस्पेक्टर सतपाल सिंह दल-बल सहित वहां हाजिर हुआ।

तब तक राज शर्मा लाश के पास से हिला तक नहीं था। ये अलग बात थी कि पुलिस के आने तक बंगले में मौजूद तमाम लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे, जिनमें से एक डॉली शर्मा भी थी। उसने राज की तरफ नजर उठा कर देखने या उससे बात करने की कोई कोशिश नहीं की।

अनुराग शर्मा को कल्पना की मौत की सूचना दी जा चुकी थी, मगर पुलिस के आगमन तक वह घर नहीं पहुंच पाया था।
सतपाल लाश के पास पहुंचा।

कुछ देर तक उकड़ू बैठ कर डैड बॉडी का मुआयना करता रहा, वहां रोशनी का प्रत्यक्षतः कोई साधन नहीं था, थोड़ा बहुत जो उजाला वहां दिखाई दे रहा था, वह खिड़कियों से छन कर बाहर पहुंचती ट्युब लाइट की रोशनी का था, जो कि लाश का सूक्ष्म मुआयना करने के लिये नाकाफी जान पड़ता था।

उसने हाथ के इशारे से एक सिपाही को अपने करीब बुलाया।
“मोबाइल का टॉर्च जलाकर रोशनी का रूख इसके ऊपर कर।”

सिपाही ने किया। तब सतपाल ने एक बार फिर ज्यादा गौर से लाश के आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई सूत्र हासिल होता नहीं दिखा। उसने सिर उठाकर ऊपर की तरफ देखा था पहली मंजिल की खिड़की खुली दिखाई दी।

उसने सिपाही से टॉर्च बंद कर लेने को कह दिया।
फिर टहलने वाले अंदाज में चलता हुआ, राज के करीब पहुंचा।

“मैंने मना किया था” - वह धीरे से बोला – “साफ-साफ चेतावनी भी दी थी, मगर तू सुने तब न?”

“उन बातों के लिये ये सही वक्त नहीं है इंस्पेक्टर साहब, फिर किसी को चेतावनी देना एक सहज प्रक्रिया है, जबकि हत्या जैसी वारदात का घटित हो जाना जुदा बात होती है। मुझे अगाह करते वक्त क्या पल भर को भी तुम्हारे जहन में ये ख्याल आया था कि यहां एक और कत्ल हो जाने वाला था।”

सतपाल कुछ क्षणों तक उसे घूरकर देखता रहा, फिर मीनाक्षी शर्मा की तरफ आकर्षित हुआ, “मैडम! चार दिनों के भीतर आपके परिवार में दो कत्ल हो चुके हैं, कुछ कहना चाहती हैं आप इस बारे में?”

“नहीं लेकिन मुझे इस लड़के पर शक है” - उसने पनौती की तरफ उंगली उठा दी – “इसके अलावा कत्ल के वक्त बंगले की पहली मंजिल पर कोई दूसरा जना मौजूद नहीं था।”

“शक की कोई वजह।”

“कत्ल के एकदम बाद ये आंधी तूफान की तरह दौड़ता हुआ बंगले से निकल कर सीधा यहां आ खड़ा हुआ था। साफ जाहिर हो रहा था कि इसे पहले से पता था कि यहां कल्पना की लाश पड़ी हुई है। अब मेरा सवाल ये है कि क्यों पता था? घर के नौकर-चाकर किसी को भी खबर नहीं लगी थी कि कल्पना के साथ क्या गुजरी थी, मगर इस शख्स को पूरी पूरी खबर थी, और वैसा सिर्फ एक ही सूरत में हो सकता है जब कल्पना की हत्या इसने खुद की हो।”

“तर्क कमाल का दे लेती हैं आप।”

“थैंक्यू।”

“आप इसे पहले से जानती हैं?”

“नहीं, तुम्हें खूब पता है कि मैं इसे नहीं जानती।”

“इसके साथ आप लोगों की कोई दुश्मनी है?”

“मेरी नॉलेज में तो नहीं है, लेकिन कल्पना के साथ इसकी कोई ना कोई अदावत जरूर रही होगी, वरना ये उसे उठाकर खिड़की से नीचे न फेंक देता।”मैडम ये कत्ल का मामला है, इसलिए सोच समझ कर जुबान खोलिये। यूं ही आपके कहने भर से किसी को कातिल नहीं मान लिया जायेगा, या तो आप कोई वजह बयान कीजिये या फिर यूं ही किसी पर भी उंगली उठाना बंद कीजिये।”

“तुम तो ऐसा कहोगे ही, आखिरकार यार है ये तुम्हारा।”

“आप ऐसा सोचती हैं तो चलिये यही सही, अब बताइये कत्ल के वक्त आप कहां थी, क्या कर रही थीं?”

“मैं इसे ऊपर! कल्पना के ऐन बगल वाले कमरे में बैठा छोड़कर, नीचे हॉल में कुछ सामान लेने गई हुई थी, वापिस लौट ही रही थी कि ये शख्स मुझे तेजी से सीढ़ियां उतरता दिखाई दिया और मेरे देखते ही देखते दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।”
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यहां कोई ऐसा शख्स मौजूद है जो आपकी बात की पुष्टि कर सके?”

“नहीं, उस वक्त हॉल में मेरे अलावा और कोई नहीं था। आप इसी से पूछकर देखिये कि मैं इसे सीढ़ियों पर मिली थी या नहीं?”

सतपाल ने पनौती की तरफ देखा तो उसने सिर हिलाकर हामी भर दी, फिर बोला, “मैंने इन्हें सीढ़ियों पर देखा जरूर था, मगर ये गारंटी नहीं कर सकता कि उस वक्त ये कल्पना को खिड़की से नीचे फेंकने के बाद सीढ़ियां उतर रही थीं या फिर सचमुच हॉल से कुछ लेकर ऊपर आ रही थीं।”

“तुम कहां थे कत्ल के वक्त?”

“मैडम के बेडरूम में” - पनौती बोला – “जहां ये मोहतरमा मुझे अपना कमरा दिखाने के लिये ले गई थीं। और मिनट भर बाद मुझे - एक अजनबी को - वहीं बैठा छोड़कर ये कमरे से बाहर निकल गईं। इनके जाने के महज एक या बड़ी हद डेढ़ मिनट बाद मुझे जोर की ‘धम्म’ सुनाई दी, तब मैंने खिड़की के नीचे झांककर देखा तो मुझे यहां कोई पड़ा दिखाई दिया। मुझे नहीं मालूम था कि यहां कौन पड़ा हुआ है, मगर थी कोई औरत ही ये बात मैं ऊपर से नीचे देखते वक्त ही भांप गया था। बहरहाल मैं दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकला और यहां पहुंच गया। दो मिनट बाद मैडम भी मेरे पीछे-पीछे यहां आ खड़ी हुई थीं। इस पूरे घटनाक्रम में कत्ल करने का मौका इन्हें बखूबी हासिल था। अपने बेडरूम से निकल कर नीचे जाने की बजाये ये फौरन कल्पना के कमरे में जा घुसीं, फिर किसी बहाने कल्पना को विंडो तक ले गईं जहां मौका मिलते ही इन्होंने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया।”

“शटअप!” - मीनाक्षी जोर से बोली – “इस तरह तुम अपना गुनाह मेरे सिर नहीं लाद सकते। रही बात मौके की तो वह मुझसे ज्यादा तुम्हें हासिल था। जिसका तुमने पूरा पूरा फायदा उठाया और कल्पना को खिड़की से बाहर धकेल दिया। वैसे भी ऐसा काम कोई मर्द ही कर सकता है, मैं चाहकर भी उसे खिड़की से बाहर नहीं फेंक सकती थी। कल्पना कोई बच्ची तो थी नहीं जिसे गोद में उठाकर मैंने बॉल की तरह खिड़की से बाहर उछाल दिया।”

उसी वक्त अनुराग शर्मा ने वहां कदम रखा।

डैड बॉडी पर निगाह पड़ते ही वह पागलों की तरह चिल्लाता हुआ लाश की तरफ झपटा मगर सतपाल ने उसे बीच में ही थाम लिया।

“छोड़ो मुझे” - वह छटपटाता फिर से चिल्लाया – “कल्पना! कल्पना! क्या हुआ तुम्हें?”

“सर प्लीज धीरज रखिये, जो हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता। मगर कातिल अभी भी आजाद है, इसलिए मेरी बात मानिये, फोरेंसिक टीम के आने तक लाश से दूर रहिये।”

“अरे कम से कम मुझे उसका चेहरा तो देख लेने दो।”

“आपसे देखा नहीं जायेगा, इसलिए शांत होकर खड़े रहिये।”

“ठीक है अब मुझे छोड़ो तो सही।”

“आप वादा करते हैं कि लाश को छूने की कोशिश नहीं करेंगे?”

“करता हूं” - वह सिसकता हुआ बोला – “मगर दूर से तो देख लेने दो, हाथ जोड़ता हूं तुम्हारे, प्लीज मना मत करना।”

“ठीक है जाइये देख लीजिये, मगर छूने की कोशिश मत कीजियेगा।”

स्वीकृति में गर्दन हिलाता अनुराग बीवी की लाश के एकदम करीब जाकर खड़ा हो गया, कुछ ही क्षणों में वह हिचकियां लेता हुआ जोर जोर से रोने लगा। आखिरकार भुवनेश बड़ी मुश्किल से उसे लाश से दूर ले जाने में कामयाब हो पाया।
पंद्रह मिनट बाद फोरेंसिक टीम और एंबुलेंस एक साथ वहां पहुंच गई। उन्होंने अपने काम की शुरूआत घटनास्थल की फोटोग्राफी के साथ शुरू की। इस बात को नोट किया गया कि लाश कहां, किस दिशा में और दीवार से कितनी दूर पड़ी हुई थी, उसके आस-पास क्या था और कितनी दूरी पर था।

यूं ही उनकी कार्रवाई धीरे धीरे आगे बढ़ती रही।

पनौती वहां से थोड़ी दूर खड़े अनुराग के पास पहुंचा।

“मुझे आपकी धर्मपत्नी की मौत का बेहद अफसोस है।”

अनुराग ने हौले से सिर हिला दिया।

“कातिल की बाबत कोई अंदाजा लगा सकते हैं?”

“मुझे नहीं पता कातिल कौन है” - अनुराग दांत पीसता हुआ बोला – “वह कमीना अगर मुझे मिल जाये, तो मैं अपने हाथों से उसे गोली मार दूं।”

“धैर्य रखिये, किसी को सजा देना अदालत का काम होता है। आपकी धर्मपत्नी का हत्यारा भी अपने किये की सजा जरूर भुगतेगा” - कहकर उसने एकदम से पूछ लिया – “आप आ कहां से रहे हैं?”

“मैं समझा नहीं।” अनुराग तनिक हड़बड़ा सा गया।

“जनाब मैं ये पूछ रहा हूं कि यहां पहुंचने से पहले आप कहां थे?”

“अच्छा वो, ऑफिस मे था भाई, लौट रहा था तो रास्ते में भुवनेश की कॉल आ गई, उसने बताया कि कल्पना का एक्सीडेंट हो गया मगर यहां पहुंचकर! हे भगवान! कैसे कोई इतनी निर्दयता से किसी की जान ले सकता है?”

“ऑफिस में कब से मौजूद थे आप?”

“चार बजे से” - वह बोला – “मैं तभी वहां पहुंचा था। मालूम होता मेरे पीछे इतना कुछ हो जायेगा तो हरगिज भी ऑफिस नहीं गया होता। कल्पना कह भी रही थी कि ‘आज ऑफिस मत जाओ मेरा मन घबरा रहा है’, मगर मैंने उसकी बात नहीं मानी।” कहकर वह फफक कर रो पड़ा।

पनौती ने उसके चुप होने का इंतजार किया फिर करीब पांच मिनट बाद बोला, “जरूरत पड़ने पर क्या आप इस बात को साबित कर सकते हैं?”

“किस बात को?”

“यही कि शाम चार बजे से लेकर कत्ल की खबर मिलने तक आप आपने अपने ऑफिस से बाहर कदम नहीं रखा था?”

“जब कि मैं अभी अभी बता कर हटा हूं कि कल्पना के एक्सीडेंट की खबर मुझे ऑफिस से घर लौटते वक्त रास्ते में मिली थी।”

“चलिये यही बता दीजिये कि भुवनेश की कॉल अटैंड करते वक्त आप कहां थे?”

“ऐन कील ठोंक कर तो मैं अपनी लोकेशन नहीं बता सकता, मगर उसके बाद घर तक पहुंचने में मुझे मुश्किल से पंद्रह मिनट लगे थे, इस लिहाज से मैं ऑफिस और घर के बीच में कहीं रहा होऊंगा।”

“ऑफिस से कितने बजे निकले थे आप?”

“साढ़े आठ के करीब।”

“ऐसे में तो आपको नौ बजे तक हर हाल में घर पहुंच जाना चाहिये था। मैं नहीं समझता कि बाटा चौक से यहां तक का रास्ता आधे घंटे से ज्यादा का होगा, बल्कि इतना भी नहीं होगा।”
 
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बेशक नहीं है, मगर सड़क पर ट्रेफिक इतना ज्यादा मिला कि मैं लेट हो गया, रास्ते में एक जगह बड़ा सा ट्रेलर खराब होकर यूं तिरछा खड़ा था कि वहां जाम लग गया था।”

“ऑफिस से साढ़े आठ बजे निकलने वाली बात को साबित कर सकते हैं?”

“वहां का सारा स्टॉफ गवाह है, खासतौर पर सिक्योरिटी गार्ड को तो यकीनन याद होगा कि मैं कितने बजे वहां से निकला था। मगर मुझे ऐसा कुछ साबित करने की जरूरत क्यों पड़ेगी?”

“इसलिए पड़ेगी जनाब क्योंकि पत्नी की हत्या का सबसे पहला शक पति पर ही किया जाता है। अब तो ये बात पुलिस डिपार्टमेंट में रूटीन सी बन गयी है।”

“पड़ी करती रहे भाई, मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि कल्पना की मौत के बाद मैं आजाद रहूं या जेल चला जाऊं, क्या फर्क पड़ता है, मेरे लिये तो दोनों ही बातें एक जैसी हैं। उसके बिना अब जिन्दगी में बचा ही क्या है जिसके लिये मैं आजादी की इच्छा जाहिर करूं।”

“आप भूल रहे हैं कि आपकी पत्नी की मौत कोई दुर्घटना नहीं है, ऐसे में क्या आप नहीं चाहेंगे कि असल कातिल को उसके किये की सख्त से सख्त सजा मिले?”

“बिल्कुल चाहता हूं” - वह आंसू पोंछता हुआ बोला – “क्यों नहीं चाहूंगा।”

“गुड! अब जरा दिमाग पर जोर डालकर अंदाजा लगाने की कोशिश कीजिये कि मैडम की हत्या किसने की होगी?”

“मुझे नहीं मालूम।”

“मैंने महज अंदाजा लगाने को कहा है सर! इस तरह की वारदात घटित होती है, तो किसी ना किसी की तरफ ध्यान तो जाता ही है। आप का भी जा रहा होगा।”

“बिल्कुल जा रहा है, मगर मुझे मालूम है कि आखिरकार तो मेरा अंदाजा गलत ही साबित होना है।”

“चलिये यही सही, ऐसे में उस शख्स का नाम लेने में आपको क्या हर्ज है?”

“हर्ज है, मैं नहीं चाहता कि कल्पना की मौत की वजह से उनके ऊपर कोई उंगली उठे, अगर वह कातिल हैं तो भी नहीं।”

“कमाल है! ऐसा कौन हो सकता है?”

“है कोई, अब जाने दो उस बात को।”

“आप जवाब नहीं देंगे तो बेशक मैं जाने ही दूंगा। मगर उस बारे में खामोशी अख्तियार कर के क्या आप अपनी बीवी के गुनहगार नहीं बन जायेंगे? मर कर भी उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी, आप चाहते हैं कि ऐसा हो? फिर अभी थोड़ी देर पहले आप जो कातिल को अपने हाथों गोली मार देने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं, वह क्या महज नाटक भर था?”

“तुम चाहे जो समझो, मगर उस बारे में मैं कुछ नहीं बता सकता।”

“आपका इशारा अगर मीनाक्षी मैडम की तरफ है” - पनौती उसकी आंखों में आंखें डालकर बोला – “तो आपका जुबान बंद रखना बेकार है, क्योंकि वह पहले से ही शक के घेरे में हैं।”

“कहा न मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता।”

“चलिये ऐसा ही सही, मगर उस एक शख्स के अलावा भी तो कुछ नाम होंगे आपके जहन में, उनकी बाबत बताने में तो आपको तकलीफ नहीं होनी चाहिये।”

“नहीं ऐसा कोई नहीं है।”

“मैरिड लाइफ कैसी चल रही थी आपकी?”

“अच्छी नहीं थी, मगर उसकी वजह हम दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं था। असल बात ये थी कि शादी के चार सालों बाद भी हम औलाद का मुंह नहीं देख पाये हैं, इसी वजह से हम दोनों के बीच कुछ दूरी सी पैदा हो गई थी।”

“कोई मैडिकल प्रॉब्लम थी?”

“हां कल्पना के यूटरस में कोई प्रॉब्लम थी जिसके कारण उसे गर्भ नहीं ठहरता था। काफी इलाज कराने के बाद भी कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आई, तो आखिरकार हमने उसे ईश्वर की मर्जी समझ कर उस बारे में बात तक करना बंद कर दिया।”

“अक्सर ऐसी बातों की वजह से औरतों को ताने सुनने पड़ते हैं, क्या आपके घर में भी मकतूला के साथ वैसा ही रवैया अपनाया जाता था?”

“नहीं ऐसा नहीं था।”

“कातिल के बारे में ना सही, कम से कम कत्ल के बारे में ही कुछ उचर कर दिखाइये, क्यों किसी ने आपकी बीवी को मौत के घाट उतार दिया?”

“ऐसी कोई वजह मुझे नहीं मालूम। मगर उसकी लाश देखकर जो पहला ख्याल मेरे मन में आया, वह ये था कि उसने आत्महत्या कर ली थी।”

“ऐसा क्यों?”वह अक्सर मुझे दूसरी शादी कर लेने को कहती रहती थी, कई बार ये तक कह दिया था कि अगर मैं उसके जीते जी ब्याह नहीं रचाना चाहता, तो किसी रोज वह अपनी जान दे देगी। मगर लाश को गौर से देखने के बाद मुझे अपना ख्याल बदल देना पड़ा।”

“ऐसी क्या खास बात दिखाई दे गई आपको?”

“आत्महत्या के लिये पहली मंजिल से छलांग लगा देना पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। बेशक उसकी मौत हो चुकी है, मगर होने को ये भी हो सकता था कि उसके हाथ-पांव टूट जाते और वह जिंदा बच जाती। इसलिए मुझे लगता है कि उस बारे में तुम लोगों का सोचना ही सही है, बेशक ये कत्ल का मामला है। उसे आत्महत्या करनी होती तो वह टैरिस पर जाकर छलांग लगाती ना कि अपने बेडरूम की खिड़की से, जहां से नीचे गिरने पर उसके बच जाने के चांसेज ज्यादा थे।”

“दम तो है आपकी बात में” - कहकर वह सतपाल की तरफ बढ़ता हुआ बोला – “मैं अभी आया।”

सतपाल उस घड़ी लाश से थोड़ा परे खड़ा सिगरेट फूंक रहा था।
 

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