Thriller पनौती (COMPLETED)

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22 जलाई 2021
डीसीपी की मौजूदगी में पनौती का विस्तृत बयान दर्ज हुआ, जिसके बाद उसे सीजेएम की अदालत में पेश किया गया। जज के पूछने पर उसने सिलसिलेवार सारा घटनाक्रम बयान कर दिया। फिर मौके पर पहुंचे इंस्पेक्टर सतपाल सिंह का बयान हुआ, पुलिस ने बतौर साक्ष्य फोरेंसिक रिपोर्ट और निरंजन राजपूत का डाईंग डिक्लरेशन अदालत में पेश किया।
तमाम बातों को सुनने के बाद अदालत ने राज शर्मा को हिरासत में भेजने की कोई जरूरत ना समझते हुए पुलिस को निर्देश दिया कि अगली पेशी पर वे लोग अपनी फाइनल रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें।
उसके बाद पनौती आजाद था।
तीन बजे के करीब अदालत से फारिग होकर वह सतपाल के साथ बाटा चौक स्थित पेट्रोल पम्प पहुंचा, एडवोकेट ब्रजेश यादव को सतपाल ने पहले ही फोन कर के वहां पहुंचने को कह दिया था।
यादव उन्हें अपना इंतजार करता मिला।
“मुझे क्यों बुलाया? जबकि मैं पहले ही कबूल कर चुका हूं कि कल मैं यहां आया था।”
“हमें यहां की पिछले रोज की सीसीटीवी फुटेज देखनी है, हम चाहते हैं कि हमारे साथ-साथ आप भी उस फुटेज को देखें।”
“फायदा क्या होगा?”
“आप के जरिये हमें किसी ऐसे शख्स का पता लग सकता है जिसका शर्मा फैमली में आना-जाना हो, क्योंकि हम तो सिर्फ उन्हीं लोगों से वाकिफ हैं जिनसे हमारा अब तक आमना-सामना हो चुका है।”
बात यादव की समझ में आ गई।
मैनेजर के कमरे में पहुंचकर तीनों ने एक साथ सीसीटीवी फुटेज देखना शुरू किया। जो कि बहुत ही बोरियत वाला काम साबित हुआ। मगर स्क्रीन से निगाह हटाये बिना तीनों उस काम को बदस्तूर अंजाम देते रहे। एडवोकेट ब्रजेश यादव की कार वहां एक बजे के करीब पहुंची, उसने पेट्रोल भरवाया रसीद हासिल की और वापिस लौट गया, तब तक एक भी जाना-पहचाना शख्स सामने नहीं आया था। संजीव चौहान वहां दो बजे पहुंचता दिखाई दिया। उसने पेट्रोल भरवाया, रसीद हासिल की और चला गया।
उस बात ने पनौती और सतपाल को बुरी तरह चौंका कर रख दिया।
“ये तो कहता था कि पेट्रोल की रसीद नहीं ली थी इसने।”
“भूल गया होगा।” पनौती हंसता हुआ बोला।
“इतना बड़ा भुलक्कड़ तो कोई नहीं होता भाई, जो याद दिलाने पर भी महज कुछ घंटों पहले की बात याद न आ सके। जबकि सालों पुरानी कॉलेज के दिनों की बातें उसे ज्यों की त्यों याद है।”
“इस वक्त उस बात पर बहस करने का क्या फायदा? फुटेज पर ध्यान दो ताकि हम जल्दी से जल्दी यहां से फारिग हो सकें।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया।
फुटेज प्ले होती रही, रात के नौ बज गये, मगर तब तक सिर्फ तीन बजे तक की फुटेज ही वे लोग देख पाये थे।
यादव बैठा-बैठा बोर होने लगा, मगर उससे कुछ कहते नहीं बना, क्योंकि पनौती और सतपाल में किसी ने भी अभी तक उस काम में अरूचि नहीं दिखाई थी।
तभी डॉली का फोन आ गया।
पनौती ने कॉल अटैंड की।
“कहां हो?”
“पास में ही हूं, बोलो।”
“बंगले के बाहर कल वाली जगह पर मुझसे आकर मिलो।”
पनौती उठ खड़ा हुआ। सतपाल को बताकर वह सड़क पर पहुंचा और एक ऑटो में सवार हो गया।
पंद्रह मिनट बाद मीनाक्षी के बंगले से थोड़ा पहले उसने ऑटो रूकवाया और इंतजार करने लगा।
ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा, पांच मिनट बाद ही डॉली वहां पहुंच गयी।
“बैठो।”
पनौती के कहने पर वह ऑटो में सवार हो गई।
“वापिस चलो भाई।” वह ऑटो ड्राइवर से बोला।
“कुछ नया पता लगा?” पनौती ने पूछा।
“लगा तभी तो तुम्हें बुलाया, वरना घर तो मैं अकेले भी जा सकती थी।”क्या जाना?”
“प्रियम और कल्पना के बीच आशनाई चल रही थी।”
“तो वकील साहब ने तुम्हें भी वह कहानी सुना दी?”
“वकील को क्या पड़ी थी जो वह घर की नौकरानी से ऐसे विषय पर बात करता।”
“फिर कैसे जाना?”
“शीतल से, वह कई सालों से बंगले में काम कर रही है, वो तो ये तक कहती है कि एक बार उसने अपनी आंखों से दोनों को बिस्तर पर गलबहियां करते देखा था।”
“हैरानी की बात है कि कोमल को इस बात की खबर नहीं हुई।”
“हो सकता है बीवी के आने के बाद उसने कल्पना से रिश्ता तोड़ लिया हो।”
“हो तो सकता है, ऐसे में अनुराग के कातिल निकल आने की संभावना तो बढ़ सी गई लगती है।”
“वो तुम लोग जानो, लेकिन कम से कम एक ऐसी बात जरूर है जो ये साबित करती है कि कत्ल के वक्त अनुराग पहली मंजिल पर अपने बेडरूम में रहा नहीं हो सकता।”
“क्या?”
“शीतल का कहना है कि गोली चलने से दस मिनट पहले वह कल्पना को कॉफी देने गई थी, उस वक्त वह कमरे में वह अकेली थी। उसे कॉफी देने के बाद शीतल वापिस किचन में लौट गई थी, इसलिए अनुराग अपने कमरे में कब लौटा, लौटा भी था या नहीं, इस बारे में वह नहीं बता पाई। वह कहती है कि जिस वक्त गोली चलने की आवाज गूंजी थी उस वक्त वह सिंक के सामने खड़े होकर बर्तन धो रही थी, आवाज सुनकर वह चौंकी जरूर थी मगर किचन से बाहर निकल कर माजरा जानने की कोशिश नहीं की। मगर बाद में जब प्रियम के कमरे का दरवाजा जोर जोर से पीटा जाने लगा तो वह किचन से बाहर निकली, और ये देखकर हैरान रह गई कि घर के सब लोग छोटे साहब का दरवाजा पीट रहे थे। उसी वक्त अनुराग उसे सीढ़ियां उतरता दिखाई दिया था। इसलिये होने को ये भी हो सकता है कि उस वक्त वह कमरे की बजाये कहीं और से वहां पहुंचा हो।”
“ये तो बड़ी खतरनाक बात बता रही हो तुम।”
“अगर प्रियम और कल्पना का कातिल एक ही है तो समझ लो कि मीनाक्षी और वकील में से कोई भी कातिल नहीं हो सकता, क्योंकि कम से कम प्रियम के कत्ल के वक्त तो वो दोनों हॉल में मौजूद थे।”
“और कुछ?”
“नहीं बस इतना ही, अब तुम मुझे ये बताओ कि कल काम पर आना है मुझे या नहीं?”
“नहीं अब कोई जरूरत नहीं दिखाई देती।”
वापिस पेट्रोल पम्प पर पहुंचकर पनौती ऑटो से उतर गया, जब कि डॉली उसी पर सवार होकर अपने घर की तरफ चल पड़ी।
मैनेजर के कमरे में पहुंचकर पनौती ने सतपाल और यादव को बदस्तूर सीसीटीवी फुटेज देखता पाया। खामोशी के साथ वह खुद भी उसी काम में जुट गया।
वक्त गुजरता गया, फुटेज प्ले होती रही।
फिर छह बजे के करीब एक ऐसी कार वहां पहुंचती दिखाई दी जिसकी ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को देखकर पनौती बुरी तरह चौंका। उसने हाथ बढ़ाकर वहां पड़े की बोर्ड का स्पेस वाला बटन दबा दिया, रिकार्डिंग वहीं रूक गयी।
“क्या हुआ?” सतपाल बोला।
“जरा इस कार से उतरते शख्स को देखो कुछ याद आता है तुम्हें?”
सतपाल ने गौर से देखा तो फौरन पहचान गया, “ये तो निरंजन का ड्राइवर विशम्भर मालूम पड़ता है।”
“मालूम नहीं पड़ता, वही है।”
“तो भी क्या हुआ, उसके यहां से पेट्रोल भरवाने पर कोई मनाही तो नहीं है।”
“वो तो खैर किसी पर भी नहीं है।” कहकर उसने फुटेज दोबारा प्ले कर दी।
गार्ड ने पेट्रोल भरवाया और वहां से चलता बना, पेट्रोल की रसीद हासिल करने की उसने कोई कोशिश नहीं की।आखिरकार सुबह के तीन बजे कहीं जाकर वे लोग पिछले रोज की नौ बजे तक की फुटेज देखने में कामयाब हो पाये, मगर आगे कोई काम की चीज उन्हें दिखाई नहीं दी, लिहाजा वह मशक्कत बेकार साबित हुई थी।
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22 जुलाई 2021
थाने पहुंचकर सतपाल ने सबसे पहला काम ये किया कि बीते रोज की अनुराग शर्मा के मोबाइल लोकेशन की जानकारी हासिल की। पता चला कि ऑफिस से वह साढ़े आठ बजे निकल गया था, मगर कुछ दूर जाने के बाद उसकी लोकेशन गायब हो गई थी, फिर सवा नौ बजे के करीब उसकी लोकेशन बंगले से करीब पांच किलोमीटर दूर दिखाई दी, यह वही वक्त था जब उसने बीवी के एक्सीडेंट की बाबत प्रियम की कॉल अटैंड की थी।
उस बात पर जब गहाराई से विचार किया गया तो ये संभावना दिखाई देने लगी कि ऑफिस से थोड़ी दूर जाकर उसने अपना मोबाइल ऑफ कर दिया था, जिसकी वजह से लोकेशन गायब हो गई। नौ बजे से कुछ पहले वह बाउंड्री वॉल फांदकर अपने बंगले में घुसा और फायर इस्केप की सीढ़ियों के रास्ते छत पर पहुंच गया, जहां अपनी रूटीन के मुताबिक ठीक नौ बजे कल्पना ने कदम रखा तो उसने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसे छत से नीचे फेंकने के बाद वह उसी रास्ते अपनी कार तक पहुंचा, और घर से थोड़ी दूर जाकर मोबाइल ऑन कर दिया। हत्या के बाद डेडबॉडी को छत से नीचे फेंकना इस बात को जाहिर करता था कि वह अपनी बीवी से नफरत करता था, जिसकी वजह कल्पना और प्रियम के बीच चले आ रहे अफेयर के अलावा और कुछ नहीं हो सकता था।
सबसे बड़ी बात ये थी कि घर में वह इकलौता ऐसा शख्स था जिसके पास भाई और बीवी दोनों के कत्ल की पर्याप्त वजह थी। प्रियम की अलमारी में मौजूद पिस्तौल को बदल देने का मौका भी उसे सहज ही हासिल हुआ हो सकता था। अलबत्ता ये बात अभी भी पुलिस की समझ से परे थी कि उसने रिवाल्वर की अदला-बदली को अंजाम देना क्यों जरूरी समझा? क्योंकि एडवांस उसे इस बात की खबर नहीं हो सकती थी कि किसी रोज प्रियम पर गुस्सा होकर कोमल अलमारी से रिवाल्वर निकालकर उसपर तान ही देगी। उस बात का जवाब सिर्फ और सिर्फ अनुराग शर्मा ही दे सकता था।
ग्यारह बजे के करीब अनुराग शर्मा को उसके बाटा चौक स्थित ऑफिस से हिरासत में ले लिया। उसने बहुत हाय तौबा मचाई, बार-बार अपनी बेगुनाही की दुहाई देता रहा मगर पुलिस ने उसकी एक न सुनी।
थाने पहुंचकर उसे हवालात में डाल दिया गया।
पुलिस के पास उसके खिलाफ कोई अकाट्य सबूत भले ही कोई भी नहीं था मगर परिस्थितिजन्य सबूतों की भरमार दिखाई दे रही थी।
साढ़े ग्यारह बजे सतपाल ने इनटेरोगेशन रूम में कदम रखा। अनुराग को उसने कुर्सी पर दोनों हाथों से सिर पकड़कर बैठा पाया।
“गुनाह करने से पहले सोचना चाहिये था” - वह एक कुर्सी घसीट कर उसके सामने बैठता हुआ बोला – “अब पछताने से क्या फायदा?”
अनुराग ने तमक कर सिर उठाया, फिर गुस्से से बोला, “मैंने कुछ नहीं किया है, तुम लोग लाख कोशिश कर लो, लेकिन मुझे कातिल साबित नहीं कर पाओगे।”
“देखेंगे।” सिगरेट सुलगाने का उपक्रम करता सतपाल लापरवाही से बोला।
“मेरा मोबाइल मेरे हवाले करो।”
“जब तक आपसे पूछताछ मुकम्मल नहीं हो जाती, मोबाइल को तो आप भूल ही जाइए जनाब, बल्कि मैं तो यही कहूंगा कि मोबाइल के बिना रहने की आदत डाल लीजिये क्योंकि आपकी बाकी की उम्र बिना मोबाइल के ही कटने वाली है।”
“डीसीपी से बात कराओ मेरी।”
“करा देंगे, उन्हें आपकी गिरफ्तारी की खबर दी जा चुकी है, बस पहुंचते ही होंगे, तब तक आप बराय मेहरबानी बिना किसी ना-नुकर के मेरे सवालों का जवाब दीजिये, वरना हलक में हाथ डालकर अपने मतलब की जानकारी उगलवाना, पुलिस से बेहतर शायद ही किसी को आता होगा।”
“तुम मुझे टॉर्चर की धमकी दे रहे हो?”
“और क्या लोरी गाकर सुना रहा हूं।”
अनुराग ने एक बार आग्नेय नेत्रों से उसे घूरकर देखा फिर धीरे से बोला, “पूछो क्या जानना चाहते हो?”
“प्रियम का कत्ल क्यों किया आपने?”
“मैंने नहीं किया।”
“बीवी को क्यों मारा?”
“मैंने नहीं मारा।”
“प्रियम की रिवाल्वर बदलने की जरूरत क्यों पड़ी आपको?”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
“अगर आप की नीयत में खोट नहीं था तो कल्पना के कत्ल वाली रात ऑफिस से निकलने के बाद आपने अपना मोबाइल क्यों ऑफ कर लिया था?”
“मैंने जानबूझकर ऑफ नहीं किया था, बल्कि किया ही नहीं था, बेध्यानी में मोबाइल फ्लाईट मोड पर चला गया था। जिसकी खबर बहुत देर से लगी थी मुझे।”
“भाई और बीवी को क्यों मारा आपने?”
“तुम पागल तो नहीं हो गये हो, क्यों एक ही सवाल बार-बार रिपीट कर रहे हो?”
“प्रियम की अलमारी में रखी रिवाल्वर क्यों बदली आपने?” सतपाल ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं।
“और कितनी बार कहना पड़ेगा कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था।”आपको क्योंकर पता था कि झगड़े के दौरान कोमल अलमारी से रिवाल्वर निकाल कर प्रियम पर तान देगी?”
“नहीं पता था, पता हो भी नहीं सकता था, इसलिए यकीन करो मैंने दोनों में से किसी का कत्ल नहीं किया, कोई वजह नहीं थी मेरे पास। मैं अपनी बीवी से मोहब्बत करता था, भाई से भी उतनी ही मोहब्बत थी मुझे।”
“कत्ल से पहले बीवी के तन से जेवर क्यों उतारे आपने?”
“मैंने नहीं उतारा, कोई जरूरत नहीं थी।”
“आपका मतलब है, गला घोंट चुकने के बाद जब आप ने बीवी की लाश को छत से नीचे फेंका था, उस वक्त कल्पना के तन पर जेवर मौजूद थे?”
“मुझे बहलाने की कोशिश मत करो, मुझे नहीं पता कि उसकी हत्या किसने की और क्यों उसके जेवर उतारे?”
तभी किसी ने दरवाजा नॉक किया।
“कमिंग।” सतपाल उच्च स्वर में बोला।
दरवाजे पर राज शर्मा खड़ा था।
“आ जा भाई, दरवाजा बंद कर दे।”
“मैं बाहर वेट कर सकता हूं।”
“कोई जरूरत नहीं आ जा।”
दरवाजे को चौखट के साथ लगाने के बाद पनौती सतपाल से थोड़ी दूरी पर मौजूद एक कुर्सी पर बैठ गया।
“यहां आ जा मेरे पास।”
पनौती उसके करीब खिसक आया।
“ये साहब कहते हैं कि इन्होंने कुछ नहीं किया, और तेरी गांधीगिरी वाली स्टाईल से पूछताछ करने पर तो ये अपनी जुबान खोलते दिखाई नहीं दे रहे।”
“कैसी बात करते हो इंस्पेक्टर साहब! अनुराग जी रसूख वाले आदमी हैं, पढ़े लिखे भी हैं, प्यार से अपनेपन से पूछो, सब बता देंगे।”
“नहीं बताते, जुबान खोलने को राजी नहीं हैं।”
“होता है, कानून का भय अक्सर मुलजिमों की जुबान पर ताला लगा देता है, मगर आखिरकार तो हर किसी को अपनी गलती का एहसास होना ही होता है, होकर रहता है, क्यों अनुराग साहब ठीक कहा न मैंने?”
“बेशक ठीक कहा होगा, मगर मैं कातिल नहीं हूं। तुम दोनों चाहकर भी मुझसे ये नहीं कहलवा पाओगे कि प्रियम और कल्पना का कत्ल मैंने किया है।”
“क्या कह रहे हैं आप, किसने कहा कि आप कातिल हैं?” -पनौती बोला – “उल्टा हम आपको ऐसा खुद्दार इंसान समझते हैं जो अपनी आन-बान और शान के लिये कुछ भी कर सकता है, करना ही चाहिये। सच पूछिये तो आपकी जगह कोई भी होता उसका खून खौलना ही था, बीवी को पराये मर्द की बाहों में देखकर जिसकी मर्दानगी उसने ललकारने न लगे वह भला मर्द कैसा? सच पूछिये तो दोनों थे ही इसी काबिल, आपने जो किया अच्छा किया, बस एक ही गिला है आपसे कि अपने किये को आपने कोमल पर थोपने की कोशिश की, मगर उन हालात में आप और कर भी क्या सकते थे।”

खबरदार जो मेरी बीवी के बारे में एक शब्द भी कहा।”
“कहना तो पड़ेगा जनाब, और ऐसा कहने वाला क्या मैं कोई अकेला शख्स होऊंगा, कल को कोर्ट में चीख-चीख कर क्या सरकारी वकील भी यही नहीं कहेगा कि आपकी बीवी का आपके छोटे भाई के साथ अफेयर था, जिसके चलते आपने दोनों की हत्या कर दी। क्या ये खबर हिन्दोस्तान के हर अखबार और न्यूज चैनल पर प्रसारित नहीं होने लगेगी, या फिर आप रोक लेंगे उन्हें ऐसा करने से। हम तो समझ लीजिये आपको बस उस किरकिरी से बचाना चाहते हैं। क्योंकि एक बार अगर ये बात आम हो गई तो लोग-बाग आपकी बीवी के चरित्र पर छींटे उछालते हुए ये तक कहने से बाज नहीं आयेंगे, कि पति नपुंसक रहा होगा इसीलिये बीवी ने देवर के साथ संबंध बना लिये होंगे।”
“शटअप।” अनुराग इतनी जोर से चिल्लाया कि कमरे में काफी देर तक उसकी दहाड़ सुनाई देती रही।
“बेशक आपको बुरा लग रहा होगा” - पनौती शांत लहजे में बोला – “मगर जब सारी दुनिया यही बात कहने लगेगी तो क्या हाल होगा आपका? क्या घबराकर, बेइज्जती के डर से आप आत्महत्या करने को मजबूर नहीं हो जायेंगे?”
“मैं कहता हूं बंद कर अपनी बकवास।”
“तो आप अपना गुनाह कबूल करते हैं।”
इस बार अनुराग ने जवाब नहीं दिया।
“आराम से सोच लीजिये, अपना नफा-नुकसान विचार कर लीजिये, अलबत्ता इतना यकीन मैं आप को दिला सकता हूं कि अगर आप अपना गुनाह कबूल कर लेते हैं, तो आपके भाई और बीवी के रिश्तों की खबर आम नहीं होने दी जायेगी, भले ही उसके लिये पुलिस को कत्ल की कोई नई वजह ही क्यों न गढ़नी पड़े।”
अनुराग सिर झुकाये बैठा रहा।
“हम जा रहे हैं यहां से, आप जी भरकर विचार कीजिये, एक घंटे बाद वापिस लौटेंगे, तब तक आपके पास वक्त ही वक्त है” - कहकर उसने सतपाल की तरफ देखा – “चलिये इंस्पेक्टर साहब, ये समझदार आदमी हैं, जो भी फैसला लेंगे अपना बुरा-भला विचार कर लेंगे, इसलिए मुझे पूरी पूरी उम्मीद है कि आपको इनके साथ सख्ती करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।”
वहां से निकलकर दोनों सतपाल के कमरे में पहुंचे।
“इस तरह तो जरूर वह अपना गुनाह कबूल कर लेगा।” सतपाल कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
“कर लेगा, धैर्य रखो, नहीं करेगा तो भी तुम्हारा केस हल्का नहीं पड़ेगा, एक बार जब बतौर कातिल वह तुम्हारी निगाहों में चढ़ ही गया है, तो उसके खिलाफ सबूत इकट्ठे करना क्या बड़ी बात है?”
“कोई सबूत छोड़ा तो हो उसने, जिस तरह से दोनों हत्याओं को अंजाम दिया गया है, उसमें किसी सबूत की गुंजायश ही कहां बचती है?”
“तुम उस रिवाल्वर को क्यों भूल जाते हो, प्रियम के कत्ल के बाद जिसे अनुराग ने गायब कर दिया था, या फिर तुम उस ज्वैलरी को क्यों नजरअंदाज कर रहे हो, जो कल्पना के जिस्म से उतार ली गई थी।”
“जैसे दोनों चीजों को उसने अब तक संभाल कर रखा होगा?”
“रिवाल्वर के बारे में तो मैं दावा नहीं कर सकता, मगर ज्वैलरी उसने फेंकी नहीं हो सकती, ऐसा करना होता तो बीवी के तन से उन्हें उतारने की कोशिश ही भला क्यों करता वो?”
“मगर दोनों चीजों को तलाश कहां करें?”
“बंगले में ही कहीं होंगी, तुम्हें वहां की तलाशी लेनी चाहिये।”
“पूरे बंगले की?”
“नहीं सिर्फ उन जगहों की जहां कोई रहता नहीं है, वहां बहुत से कमरे खाली पड़े हैं, छत पर जाते वक्त एक स्टोर रूम भी दिखाई दिया था मुझे, जो दुनिया भर के सामानों से भरा पड़ा था। चाहो तो अनुराग के कमरे की भी तलाशी ले सकते हो, वैसा वहां से कुछ बरामद होने की उम्मीद कम ही है।”
“ठीक है चल देखते हैं, क्या पता कुछ हासिल हो ही जाये।”
“सर्च वारेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी?”
“मीनाक्षी कोई हो हल्ला मचायेगी तो यकीनन पड़ेगी, मगर अनुराग की गिरफ्तारी के बाद शायद ही वह हमारे काम में कोई रोड़ा अटकाने की कोशिश करे।”
“हैरानी है कि बेटे की गिरफ्तारी के बाद भी वह अभी तक थाने नहीं पहुंची।”पहुंच गई” - सतपाल खुले दरवाजे से बाहर देखता हुआ बोला – “फौज लेकर आई है।”
पनौती ने मुड़कर देखा, तो पाया कि मीनाक्षी उधर ही चली आ रही थी। उसके साथ एडवोकेट यादव तो था ही साथ में संजीव चौहान और भुवनेश भी मौजूद थे।
उस घड़ी भी वह यूं सज-धज कर थाने पहुंची थी जैसे किसी शादी के समारोह में शिरकत करने निकली हो।
चारों सतपाल के कमरे में दाखिल हुए।
मीनाक्षी और यादव अगल-बगल दो कुर्सियों पर बैठ गये, जबकि संजीव और भुवनेश उनके पास ही दीवार के साथ लगकर खड़े हो गये क्योंकि वहां कोई और खाली कुर्सी नहीं थी।
“अनुराग को क्यों गिरफ्तार किया है तुमने?” मीनाक्षी बोली।
“वह कातिल है।”
“तुम्हारे कहने भर से वह कातिल हो गया?”
“नहीं मेरे कहने से नहीं हो गया, मगर आप इत्मीनान रखिये कोर्ट में हम उसे निर्विवाद रूप से कातिल साबित कर के दिखायेंगे।”
“यानि एक बेगुनाह को सजा दिलाने की कसम खा रखी है तुमने, मैं पूछती हूं कोमल से तुम लोगों का ऐसा क्या याराना है जो उसे जेल से बाहर निकालने को मरे जा रहे हो।”
“आप भूल रही हैं कि जिस वक्त कल्पना का कत्ल हुआ, वह जेल में थी, अभी भी है, ऐसे में क्या आपको ये बात बताने की जरूरत है कि चाहकर भी वह कल्पना का कत्ल नहीं कर सकती थी।”
“तो फिर कातिल कोई और होगा, ये भी हो सकता है कि प्रियम के कत्ल का कल्पना के कत्ल से कोई लेना-देना ही ना हो।”
“अब नहीं हो सकता, क्योंकि कत्ल की वजह हम पता लगा चुके हैं, और वजह भी कैसी जिसमें आपके बड़े बेटे के अलावा किसी का इंट्रेस्ट नहीं हो सकता।”
“ऐसी क्या वजह है?”
“आपके छोटे बेटे प्रियम और आपकी बड़ी बहू कल्पना के बीच नाजायेज रिश्ते थे, वही बात कत्ल की वजह बनी थी।”
“जुबान संभाल कर बात करो इंस्पेक्टर साहब” - वहां खड़ा भुवनेश गुस्से से बोला – “अगर मेरी बहन के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश की तो अंजाम बुरा होगा।”
“तुम मुझे धमकी दे रहे हो?”
“बेशक दे रहा हूं, अब अगर एक लफ्ज भी तुमने इस बारे में और निकाला तो मैं भूल जाऊंगा कि तुम पुलिसवाले हो, फिर भले ही बाद में तुम्हारा डिपार्टमेंट मुझे फांसी पर लटका दे, मगर वह नजारा देखने के लिये तुम दुनिया में नहीं बचोगे।”
तिलमिलाता हुआ सतपाल अपनी कुर्सी से उठा और कस का तमाचा भुवनेश के गाल पर खींच दिया, “जुबान पर काबू रखना सीख, भूल गया दिखता है कि कहां खड़ा है।”
“ये थप्पड़ तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा इंस्पेक्टर साहब।”
“जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना मेरा, लेकिन अभी अगर तूने अपनी जुबान से एक लफ्ज और निकाला तो अंदर कर दूंगा, ऐसा केस बनाऊंगा कि ताउम्र जमानत को तरसता फिरेगा।”
“जबकि ये सरासर गैरकानूनी काम होगा” - पनौती बोला – “तुम कानून के रखवाले हो, ऐसी बातें तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देतीं।”
“भाषण मत झाड़” - सतपाल खीजकर बोला – “अभी जो कुछ ये बोलकर हटा है, वह तुझे गैरकानूनी नहीं जान पड़ता?”
“सरासर जान पड़ता है, मगर अभी अभी जो तुम बोलकर हटे हो वह भी गैरकानूनी ही है।”
“हम मुद्दे की बात करें तो कैसा रहे?” यादव बात का रूख दूसरी तरफ मोड़ता हुआ बोला।
“बोलिये क्या कहना चाहते हैं?”
“अनुराग कातिल नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
“बताता हूं पहले आप ये बताइये कि दोनों हत्यायें आपको किसी एक ही शख्स का कारनामा जान पड़ती हैं या फिर आप को ये लगता है कि प्रियम का कत्ल किसी और ने किया था जबकि कल्पना का कातिल कोई और है?”
“कातिल एक ही है, अब आप अपनी बात पूरी कीजिये।”
“जिस वक्त प्रियम के कमरे में गोली चली थी, उस वक्त अनुराग अपने बेडरूम में था, इसलिए ये मुमकिन नहीं है कि प्रियम की हत्या उसने की हो।”
“हमारे पास एक गवाह है, जो ये कहता है कि गोली चलने से थोड़ी देर पहले तक वह अपने कमरे में नहीं था।”
“बकवास।”ये तसदीक शुदा बात है वकील साहब, गोली चलने से ऐन पहले घर की नौकरानी कल्पना को कॉफी देने के लिये उसके कमरे में गई थी, तब कल्पना वहां अकेली थी। अब बोलिये कि उसके पास कत्ल का मौका हासिल नहीं था।”
“नहीं था, अगर उस वक्त वह अपने कमरे में नहीं भी था, तो गोली चलने के महज दो या तीन मिनट बाद वह हमें सीढ़ियों पर दिखाई दे गया था। इतने कम समय में वह कत्ल करने के बाद फायर इस्केप की सीढ़ियों के रास्ते वापिस वहां नहीं पहुंच सकता था, क्योंकि हॉल में घुसते या उधर से बाहर जाते तो हमने उसे देखा ही नहीं था।”
“बिल्कुल पहुंच सकता था, वह कोई किलोमीटर भर का फासला नहीं है जिसे दो से तीन मिनट के भीतर दौड़कर तय ना किया जा सके।”
“आप खुद ट्राई क्यों नहीं कर लेते, प्रियम के कमरे की खिड़की से दौड़ लगाकर दो मिनट में फायर इस्केप के रास्ते, पहली मंजिल की सीढ़ियों के दहाने तक पहुंच कर दिखा दीजिये मैं मान लूंगा कि कातिल अनुराग ही है।”
“मुझे कोई ऐतराज नहीं है” - सतपाल बोला – “वैसे भी आप लोगों के यहां पहुंचने से पहले हम बंगले के लिये बस निकलने ही वाले थे।”
“किस लिये?”
“हमें वहां की तलाशी लेनी है।”
“मैं इसकी कोई जरूरत नहीं समझती।” मीनाक्षी बोली।
“आपके समझने या ना समझने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, आप मना करेंगी तो कोर्ट खुला हुआ है, आखिरकार तो हम लोग सर्च वारेंट हासिल कर ही लेंगे, मगर उन हालात में आप सभी को तब तक यहां रूकना पड़ेगा जब तक कि हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते।”
मीनाक्षी ने यादव की तरफ देखा तो वह हौले से हां में गर्दन हिलाता हुआ बोला, “इंस्पेक्टर साहब ठीक कह रहे हैं, तुम इन्हें बंगले की तलाशी लेने से नहीं रोक सकतीं, अलबत्ता सर्च वारेंट हासिल करने को जरूर कह सकती हो।”
“ठीक है” - आखिरकार वह बोली – “समझ लीजिये मुझे कोई ऐतराज नहीं है, चलिये।”
कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।
“मैं दो मिनट के लिये अनुराग से मिलना चाहता हूं।” भुवनेश जल्दी से बोला।
“दो दरवाजे छोड़कर तीसरे में बैठा हुआ है, जाओ जाकर मिल लो।”
प्रियम तत्काल कमरे से बाहर निकल गया।
“आप लोग बैठिये हम अभी आते हैं।” कहकर सतपाल ने पनौती को इशारा किया तो वह उठ खड़ा हुआ।
कमरे से निकलते ही सतपाल लपककर अपने ऐन बाजू वाले कमरे में जा घुसा।
“क्या हुआ? पनौती भीतर दाखिल होता हुआ बोला।
“अभी समझ जायेगा, दरवाजा बंद कर दे।” कहकर वह वहां रखी एक मेज के पास पहुंचा जिसपर एक रिकार्डिंग डिवाईस रखी हुई थी, कुर्सी पर बैठकर उसने कोई बटन पुश किया फिर उसमें लगा एक वोल्यूम का बटन घुमा दिया।
“पुलिस कहती है कि प्रियम और कल्पना का कत्ल तुमने किया है” - कमरे में भुवनेश की आवाज गूंजी – “मैं तुमसे सच जानना चाहता हूं।”
“तो तुम्हें भी मैं कातिल दिखाई देता हूं?” अनुराग की आवाज सुनाई दी।
“नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता, बस मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।”
“मैंने कोई कत्ल नहीं किया, कत्ल करना वह भी अपने सगे भाई और बीवी का! तुम्हें मजाक लगता है।”
“जबकि तुम्हारे कातिल होने की बाबत ये लोग एकदम निश्चिंत दिखाई देते हैं, जैसे उनके हाथ कोई सबूत लग गया हो, जिससे तुम्हारा जुर्म साबित कर के रहेंगे।”
“और क्या उम्मीद की जा सकती है इनसे, किसी को तो इन्होंने कातिल ठहराना ही है, असली हत्यारे तक नहीं पहुंच सके तो मुझे ही बलि का बकरा बना दिया।”
“हिम्मत मत हारो अनुराग, और किसी पर नहीं तो मुझपर यकीन करो, मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा, भले ही इसके लिये मुझे कुछ भी करना पड़े, क्योंकि कल्पना के कातिल के तौर पर मैं तुम्हारा तसोव्वुर नहीं कर सकता, तुम मेरे भाई की तरह हो, कदम कदम पर तुमने मेरी मदद की है, मेरा साथ दिया है, आज मेरी बारी है, मैं अपना फर्ज निभाकर दिखाऊंगा।”
जवाब में अनुराग की खोखली हंसी गूंजी।
“क्या करोगे, मुझे यहां से जबरन निकाल ले जाओगे?”
“कर तो मैं ये भी सकता हूं, लेकिन तुम्हारी समस्या का ये कोई स्थाई विकल्प नहीं है, पुलिस आखिरकार तो तुम्हें ढूंढ ही लेगी।”
“फिर क्या करोगे?”

करूंगा कुछ, मगर तुम बेफिक्र रहो, ये लोग तुम्हें मुजरिम ठहराने में कामयाब नहीं हो पायेंगे, इतना वादा तो मैं अभी कर के जा रहा हूं तुमसे।”
“ठीक है भाई देखते हैं क्या होता है?”
उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई।
“बड़े दावे के साथ कहकर गया है कि अनुराग को जेल नहीं जाने देगा” - पनौती बोला – “ऐसा क्या करने वाला है वो?”
“पता नहीं, हम भी देखेंगे क्या करता है?”
“एक बात नोट की तुमने?”
“क्या?”
“अनुराग ने उसके सामने भी ये कबूल नहीं किया कि कातिल वही है।”
“जो कि कोई बड़ी बात नहीं है, एक तो वह उसकी बीवी का भाई है, जिसके सामने वह हरगिज भी नहीं कबूल कर सकता कि उसकी बहन का कत्ल उसी ने किया है। दूसरी वजह ये हो सकती है कि उसे शक है कि पुलिस ने उनकी बातों को सुनने का कोई इंतजाम किया हो सकता है। ऐसी बातें तो आजकल टीवी सीरियल्स और फिल्मों में भी आम दिखाई जाने लगी हैं। ऐसे में अपने जुर्म की बाबत जुबान बंद रखना उसकी मजबूरी है।”
“हो सकता है, अब चलो यहां से।”
दोनों वापिस सतपाल के कमरे में पहुंचे। भुवनेश वहां पहले ही पहुंच चुका था।
“अब चलें?” सतपाल बिना किसी को लक्ष्य किये बोला।
“बस एक मिनट और दीजिये” - भुवनेश जल्दी से बोला – “मैं कुछ कहना चाहता हूं, जिसके बाद आपका इनके बंगले की तलाशी लेना जरूरी नहीं रह जायेगा।”
“ऐसा क्या कहोगे तुम?” सतपाल के माथे पर बल पड़ गये।
“कहूंगा नहीं बल्कि करूंगा” - भुवनेश बोला – “इकबाल करूंगा।”
“किस बात का?”
“अपने जुर्म का” - उसने जैसे कोई धमाका सा किया – “मैं कबूल करता हूं कि प्रियम और कल्पना की हत्या मैंने की थी।”
वहां मौजूद हर शख्स, यहां तक कि सतपाल और पनौती भी हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगे, दोनों को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी बड़ी बात कहने वाला था।
“और ये इंकलाबी परिवर्तन तुम्हारे भीतर अनुराग से मिलने के बाद आया?” आखिरकार सतपाल ने कमरे में फैले सन्नाटे को तोड़ा।
“आप जो चाहे समझ सकते हैं मगर मैं नहीं चाहता कि मेरे किये कि सजा कोई और भुगते।”
“वजह क्या थी तुम्हारे पास कत्ल की?”
“वही जिसपर थोड़ी देर पहले मैंने भड़क कर दिखाया था। मुझे शर्म आती है कि वह मेरी बहन थी, छह महीने पहले जब प्रियम के साथ उसके रिश्तों की बात मुझे पता चली तो मैंने उसकी खूब लानत-मलानत की, तब उसने सुधरने का वादा भी किया था मगर बाज नहीं आई, आखिरकार मैंने दोनों को जान से मार देने का फैसला कर लिया।”
“बढ़िया कहानी है” - सतपाल बोला – “अब तुम मुझे ये बताओ कि प्रियम के अलमारी में रखी उसकी पिस्तौल तुमने क्यों बदली थी?”
“केस को उलझाने के लिये, पहले मेरा इरादा उसकी मौत को आत्महत्या साबित करने का था, इसलिए मैंने एक रोज मौका पाकर अलमारी से उसकी पिस्तौल निकालकर वहां दूसरी पिस्तौल रख दी, जो कि हू ब हू उसके पिस्तौल जैसी ही दिखती थी। वैसा करना मुझे इसलिए जरूरी लगा क्योंकि बीच में अगर उसे अपनी रिवाल्वर की गैरमौजूदगी की खबर लग जाती तो वह थाने में उसकी रिपोर्ट दर्ज करवा सकता था, ऐसे में मैं अपना सोचा पूरा नहीं कर पाता। अलबत्ता कत्ल के बाद मेरा इरादा अलमारी से अपनी वाली पिस्तौल गायब कर देने का था। मगर आगे चलकर हालात कुछ यूं बदले कि मुझे आनन-फानन में प्रियम को ठिकाने लगाने का मौका हासिल हो गया। कत्ल वाले रोज मैं अपने कमरे में बैठा हुआ था तभी मुझे प्रियम के जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी। उत्सुकता वश मैं खिड़की के रास्ते बाहर निकला और उसकी खिड़की के पीछे पहुंचकर भीतर का नजारा करने लगा। दोनों में झगड़ा होता देखकर मैंने उसी वक्त प्रियम की हत्या कर देने का फैसला कर लिया, मेरा इरादा हत्या के बाद उसकी पिस्तौल को कमरे में फेंक देने का था, ताकि बाद में कोमल को कातिल समझ लिया जाता।”
“फिर क्या हुआ?”
“मैं अपने कमरे से रिवाल्वर लेकर वहां पहुंचा तो मैंने एक नया नजारा देखा, कोमल के हाथ में पिस्तौल थी जो कि उसने प्रियम पर तान रखी थी, जबकि प्रियम उसे बार-बार गोली चलाने को उकसा रहा था। मौका अच्छा जानकर मैंने खिड़की के भीतर हाथ डाला और गोली चला दी, उस घड़ी कोमल की पीठ मेरी तरफ थी इसलिए वह मुझे नहीं देख पाई।”
“बहुत बढ़िया, फिर क्या हुआ?”
“मैं खिड़की के रास्ते कमरे में पहुंचा और प्रियम के कमरे का दरवाजा खटखटाया जाने की आवाज सुनने के बाद बाहर निकला, कोमल ने दरवाजा खोला तो बेटे की लाश पर निगाह पड़ते ही मीनाक्षी आंटी कोमल पर चढ़ दौड़ीं उसी दौरान मैंने फर्श पर पड़ी रिवाल्वर उठाकर वहां प्रियम वाली रिवाल्वर रख दी।”
“अब वह रिवाल्वर कहां है?”
“कहीं नहीं है, मैंने उसे बंगले के बाहर से गुजरते एक कूड़े के ट्रक में फेंक दिया था।”
“हैरानी है कि इतनी शानदार कहानी तुमने इतनी जल्दी गढ़ ली।”
“ये कहानी नहीं है सच्चाई है, इसलिए आप लोग फौरन अनुराग को रिहा कर दीजिये और मुझे गिरफ्तार कीजिये।”
“इतनी जल्दी क्या है बच्चे,अभी एक और कत्ल की बात पेंडिंग है, जरा उसके बारे में भी बता दो।”
“कल्पना का कत्ल करना आसान काम था, उसकी नौ बजे वाली रूटीन की सबको खबर थी, हत्या वाली रात मैं उससे थोड़ा पहले छत पर पहुंचकर उसकी राह देखने लगा, फिर जैसे ही वह छत पर पहुंची मैं उसपर झपट पड़ा, गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी, मगर मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब मैंने उसकी लाश को उठाकर छत से नीचे फेंक दिया।”
“बीच में एक और काम भी तुमने किया था?”
“हां याद आया, मैंने नीचे फेंकने से पहले उसके तमाम जेवर उतार लिये थे।”
“क्यों?”
“क्योंकि उनकी कीमत बीस लाख से ऊपर थी, मगर अगले रोज मुझे लगने लगा कि बंगले में जेवरों की मौजूदगी मुझे फंसवा सकती है।”
“तब तुमने उसे भी बंगले के बाहर से गुजरते कूड़े के ट्रक में उछाल दिया था, है न?”
“आपको पता है उस बारे में?” भुवनेश हैरान होता हुआ बोला।
“हां भाई पता क्यों नहीं होगा, हम उल्लू के पट्ठे जो हैं।”
“तो आप अनुराग को रिहा कर रहे हैं?”
“अभी नहीं जरा बंगले का फेरा लगा लें, फिर तुम्हारी मुराद पूरी करने की कोशिश करेंगे।”
“जबकि उसकी अब कोई जरूरत नहीं है।”
“इसका फैसला तुम नहीं करोगे मिस्टर कुर्बानी लाल, पुलिस करेगी, अदालत करेगी। अब चलो यहां से।”
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आधे घंटे के भीतर इंस्पेक्टर सतपाल सिंह बमय पुलिस फोर्स मीनाक्षी और बाकी लोगों के साथ उसके बंगले पर पहुंचा।
हॉल में कदम रखते ही सबसे पहले उसकी नजर वहां की नौकरानी शीतल पर पड़ी जो कि हाथ में जूठी थाली लिये खड़ी थी।
“क्या हुआ?” मीनाक्षी ने पूछा।
“पानी बहुत रूक रूक कर आ रहा है, कल भी कम आ रहा था मगर आज तो जैसे बूंद बूंद होकर टपक रहा है।”
“अरे तो मोटर चला दे।”
“चलाई थी, फिर भी नहीं आ रहा।”
“प्लंबर को फोन कर दे, आकर ठीक कर जायेगा।”
सहमति में सिर हिलाती वह सेंटर टेबल पर रखे फोन की तरफ बढ़ गई।
“हम लोग यहीं बैठे हैं इंस्पेक्टर साहब” - मीनाक्षी बोली – “आप लोग अपना काम कीजिये।”
तत्काल सतपाल ने अपने साथ मौजूद सिपाहियों को बंगले की तलाशी लेने का हुक्म देते हुए उन्हें अच्छी तरह से समझा दिया, कि कौन कौन सी जगहों की खाक छाननी है उन्हें।
पुलिस कर्मी फौरन अपने काम में व्यस्त हो गये।
“चल भाई” - सतपाल पनौती से बोला – “हम भी जरा हाथ-पांव हिलाकर अपनी तसल्ली कर लें।”
सहमति में सिर हिलाता पनौती उसके साथ सीढ़ियां चढ़ने लगा।
“नल में पानी नहीं आ रहा।” रास्ते में वह बोला।
“तो तेरे पेट में क्यों दर्द हो रहा है भाई?”
“दर्द नहीं हो रहा मैं तो ये सोच रहा हूं कि पानी आ क्यों नहीं रहा?”
“अरे पाइप लाइन जाम हो गई होगी।”
“यूं एकदम से।”
“कहना क्या चाहता है?”
“यही कि पाइप लाइन अपने आप जाम नहीं हुई हो सकती।”
“अरे कोई जानबूझकर ऐसा क्यों करेगा?”
“बेध्यानी में हो गया, करने वाले की मंशा उसे जाम करने की नहीं थी, मगर आगे जो हुआ उसपर उसका कोई जोर नहीं था।”
“देख भाई मैं पहले से ही पका बैठा हूं इसलिए पहेलियां मत बुझा।”
“कोई पहेली नहीं बुझा रहा, मैं तो ये सोच रहा हूं कि क्या ज्वैलरी के पाइप में घुसने के कारण पाइप से पानी आना रूक सकता है?”
सतपाल भौंचक्का सा उसकी सूरत देखने लगा, फिर झल्लाता हुआ बोला, “तू काम की बात हमेशा घुमा फिराकर क्यों कहता है यार।”
पनौती हंसा।
फिर दोनों तेजी के साथ सीढ़ियां चढ़कर छत पर पहुंचे। सतपाल वहां मौजूद टंकी के ऊपर चढ़ गया और ढक्कन हटाकर भीतर झांकने लगा। टंकी पानी से लबालब भरी हुई थी, भीतर पड़ी रिवाल्वर तो उसे फौरन दिखाई दे गई, साथ ही वहां पड़ा मंगलसूत्र भी उसकी निगाहों से छिपा नहीं रह सका। जिसका पेंडेंट वाला सिरा पानी के निकासी वाले पाइप के मुहाने पर यूं चिपका दिखाई दे रहा था जैसे किसी ने जानबूझकर उसे वहां खड़ा कर दिया हो।
वह नीचे उतर आया।
“तेरा तुक्का तो तीर बन गया भाई, पाइप के छेद पर कोई चीज अटकी हुई है जो कि मुझे मंगलसूत्र जान पड़ता है, साथ ही एक रिवाल्वर भी मौजूद है टंकी के भीतर।”
“वो कोई तुक्का नहीं था” - पनौती ने उसे घूर कर देखा – “मुझे सौ फीसदी यकीन था कि वो चीजें वहीं से बरामद होंगी।”
“चल ऐसा ही सही।”
“अब सवाल ये है कि टंकी को खाली कैसे किया जाये?”
“कोई बड़ा सा डंडा ढूंढ़ना पड़ेगा। उसे भीतर डालकर मैं पाइप का मुहाना फ्री कर दूंगा तो पानी नीचे पहुंचने लगेगा।”
“लगता है दिमाग नाम की चीज तुम्हारे भीतर है ही नहीं।”
“बकवास मत कर।”
“तो और क्या करूं, अब क्या इतनी सी बात तुम्हें समझाता फिरूं कि यूं टंकी खाली होने में घंटों लग जायेंगे। फिर एक अहम सबूत के साथ तुम इतनी लापरवाही के साथ कैसे पेश आ सकते हो, मान लो किसी तरह वह पाइप में जा घुसा तो क्या करोगे, पूरी पाइप लाइन उखड़ाते फिरोगे?”
“कहीं नहीं जाने का, बहुत बड़ा सा मंगलसूत्र दिखाई देता है वह, इसीलिये अभी तक पाइप में नहीं घुसा, छोटा होता तो हमें उसकी खबर तक नहीं लगी होती।”
“तुम टंकी के पानी में उतरकर दोनों चीजें निकाल क्यों नहीं लाते?”यही सवाल मैं तुझसे करता हूं, तू खुद इस काम को क्यों नहीं कर सकता, वैसे भी अंडरवीयर में दौड़ लगाने का तुझे पुराना तजुर्बा है।”
“बकवास मत करो, ये तुम्हारी ड्युटी है इसलिए इस काम को तुम्हीं अंजाम दोगे।”
“मीनाक्षी से बात करनी पड़ेगी।”
“तो करो, रोका किसने है?”
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नीचे पहुंचकर सतपाल ने वो बात मीनाक्षी को बतायी तो वह हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगी। भुवनेश के चेहरे पर जैसे राख सी पुत गई। यूं लगने लगा जैसे अपना झूठ पकड़े जाने के कारण वह खौफजदा हो उठा हो।
“अभी पांच मिनट में प्लम्बर यहां पहुंच जायेगा” - मीनाक्षी बोली – “तब तक इंतजार कीजिये।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया।
प्लंबर पांच की बजाये दस मिनट में वहां पहुंचा। सतपाल ने उसे वस्तुस्थिति समझाई और उसे लेकर छत पर पहुंचा। उसके पीछे पीछे बाकी लोग भी छत पर पहुंच गये। प्लंबर फौरन टंकी पर चढ़ गया फिर भीतर झांककर देखने के बाद बोला, “आप चाहें तो मैं टंकी में घुसकर दोनों चीजें बाहर ला सकता हूं, इस तरह टंकी का पाइप काटने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।”
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“क्या हर्ज है, यूं पानी में पड़े रहने के बाद रिवाल्वर से कोई फिंगरप्रिंट तो बरामद होने से रहा।”
“क्या पता हो जाये, क्या पता उसे हाल ही में, बस थोड़ी देर पहले ही टंकी के पानी में फेंका गया हो?”
“उम्मीद तो नहीं है, मगर उस बाबत तुम प्लंबर से सावधानी बरतने को कह सकते हो।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिलाया फिर प्लंबर से बोला, “लेकर आ भाई, मगर रिवाल्वर को नाल की तरफ से पकड़कर यूं उठाना जिससे उसका कम से कम हिस्सा थामना पड़े।”
सहमति में गर्दन हिलाकर प्लंबर फौरन टंकी के पानी में उतर गया, भीतर पहुंचकर उसने एक डुबकी लगाई, एक हाथ से उसने मंगलसूत्र पकड़ा और दूसरे की दो उंगलियों से रिवाल्वर को नाल की तरफ से उठाकर दोनों हाथ ऊपर कर के टंकी में खड़ा हो गया।
सतपाल ने फौरन रूमाल निकालकर रिवाल्वर को पकड़ा और उसी में लपेट कर अपनी जेब में ठूंस लिया। तब जाकर उसने मंगलसूत्र को हाथ लगाया।
“और कुछ नहीं मिला?”
“नहीं, टंकी में अब पानी के अलावा कुछ नहीं है।”
“फिर तो बाकी की ज्वैलरी पाइप में जा घुसी मालूम पड़ती है। लगता है काटे बिना काम नहीं चलेगा।”
प्लंबर बाहर निकला और नीचे पहुंचकर गेटवॉल बंद करने के बाद बोला, “अगर पाइप में कोई चीज गई होगी तो ज्यादातर उम्मीद यही है कि वह इसके एल आकार वाले मोड़ पर अटकी पड़ी होगी, पहले मैं वहीं से काटकर देखता हूं।”
सतपाल ने सहमति में गर्दन हिला दी, फिर हाथ में थमा मंगल सूत्र मीनाक्षी को दिखाता हुआ बोला, “पहचानती हैं आप इसे?”
“हां ये कल्पना का ही है, अभी पिछले साल ही बारह लाख में खरीदा था उसने।”
पाइप को एल वाले मोड़ पर काटने पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
“इसके आखिरी सिरे को देखना पड़ेगा” - प्लंबर बोला – “जो कि ग्राउंड फ्लोर के किचन में है, पाइप क्योंकि आगे एकदम सीधा नीचे गया हुआ है इसलिए बीच में कहीं किसी चीज के अटक जाने की संभावना नहीं है।”
सीढ़ियां उतर कर सब लोग एक बार फिर नीचे पहुंचे।
प्लंबर अपने काम में लग गया। किचन की टूटी को खोलने के बाद उसने दीवार का प्लास्टर उधेड़कर सीपीवीसी पाइप बाहर खींचा और एल आकार वाले एंगल के ऊपर से काट दिया। तत्काल सोने की एक अंगूठी टन्न की आवाज करती सिंक में आकर गिरी, इसके बाद उसने एक तार का ऊपरी सिरा थोड़ा मोड़कर पाइप के भीतर डाला तो उसमें फंसकर एक और अंगूठी बाहर आ गई।
और कुछ फंसा होने की उम्मीद है आप लोगों को?” उसने सतपाल की तरफ देखते हुए सवाल किया।
जवाब में सतपाल ने मीनाक्षी की तरफ देखा तो वह जल्दी से बोल पड़ी, “कानों के टॉप्स और नाक की लौंग हो सकती है, पायल वह कभी कभार ही पहनती थी इसलिए उस बारे में कुछ बता पाना मुश्किल है।”
जवाब में प्लम्बर ने ध्यान से सिंक में देखा तो लौंग वहां पड़ी दिखाई दे गई। इसके बाद उसने तार का ज्यादा भीतर तक डालकर अंदर-बाहर करना शुरू किया तो जल्दी ही हीरे के दो टॉप्स सिंक में आ गिरे।”
“और कुछ?” उसने पूछा।
मीनाक्षी ने इंकार में गर्दन हिला दी।
सब लोग एक बार फिर से हॉल में पहुंच गये।
“अब क्या कहते हो कुर्बानी लाल” - आखिरकार वह भुवनेश से मुखातिब हुआ – “जो चीजें तुम कूड़े के ट्रक में फेंक चुके थे, वह पानी की टंकी में कैसे पहुंच गईं?”
“मैं खुद हैरान हूं” - भुवनेश धीरे से बोला – “या फिर ये रिवाल्वर और ज्वैलरी वह नहीं होगी जिसे मैंने ट्रक में फेंका था।”
“बाज आ जा” - सतपाल बिफर कर बोला – “कबूल कर कि थाने में तूने जो कहानी सुनाई थी वह अनुराग को बचाने के लिए हाथ के हाथ गढ़ी थी।”
“ऐसा नहीं है, फिर मैं क्या आपको इतना बड़ा अहमक दिखाई देता हूं जो किसी को बचाने की खातिर कत्ल के केस में जेल जाने को तैयार हो जाऊंगा?”
सुनकर सतपाल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने इतनी जोर का घूंसा भुवनेश के पेट में चलाया कि उसके मुंह से दिल दहला देने वाली चीख निकल गई।
“पुलिस से झूठ बोलने का अंजाम जानता है?”
“मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा” - वह दर्द से बिलबिलाता हुआ बोला – “प्रियम और कल्पना को मैंने ही मारा था, इसलिए मुझे फौरन गिरफ्तार कर लीजिये।”
सतपाल ने फिर से उसपर वार करना चाहा तो पनौती ने उसे वापिस खींच लिया।
“छोड़ मुझे, ये कमीना पुलिस को उल्लू का पट्ठा समझता है, सोचता हमें खबर नहीं है कि थाने में इसके और अनुराग के बीच क्या बातचीत हुई थी।”
भुवनेश ने हकबका कर उसकी तरफ देखा।
“क्यों उड़ गये होश?” - सतपाल व्यंग सा करता हुआ बोला – “भूल गया, तू अनुराग से वादा कर के निकला था कि चाहे जो हो जाये उसे जेल नहीं जाने देगा। तेरी जानकारी के लिये बता दूं कि उस कमरे में इतना शक्तिशाली माइक्रो फोन लगा हुआ है जो वहां सुई गिरने की आवाज को भी बगल के कमरे में रखी रिकार्डिंग डिवाईस को ट्रांसफर कर सकता है। तुम दोनों के बीच हुई तमाम बातचीत का रिकार्ड है हमारे पास, यही वजह है कि थाने में तेरे गुनाह कबूल कर लेने के बावजूद हमने तुझे हिरासत में लेने की कोई कोशिश नहीं की थी।”
भुवनेश हवा निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया।
“मैं ये हरगिज भी नहीं मान सकता कि कातिल अनुराग है” - वह बदले हुए लहजे में बोला – “आप लोगों ने बेवजह ही उसे गिरफ्तार किया हुआ है। अगर आपने हमारे बीच की बातचीत सुनी थी, तो आपको ये भी पता होगा कि अनुराग ने एक बार भी ये कबूल नहीं किया था कि हत्यारा वही है।”
“कर भी नहीं सकता था, वह ‘दीवारों के भी कान होते हैं’ वाली मसल के कारण खौफजदा था, इसलिए उसने खुद को बेगुनाह बताया था, ना कि इसलिये कि वह है ही बेगुनाह।”
“आप खामख्वाह उसके पीछे पड़े हैं, जबकि दोनों हत्याओं के वक्त यहां मौजूद लोगों में से कई जने घटनास्थल पर मौजूद थे। उनमें से किसी को भी खिड़की के जरिये प्रियम का कत्ल कर देने का मौका हासिल था, कल्पना की रूटीन से भी हर कोई वाकिफ था, ऐसे में कातिल कोई और क्यों नहीं हो सकता?”
“कौन, नाम लो किसी का?”
“ये संजीव चौधरी ही हत्यारा क्यों नहीं हो सकता?”
“तुम पागल हो गये हो” - संजीव तमक कर बोला – “मैं भला उन दोनों को क्यों मारूंगा?”
“रही होगी कोई वजह, उस बारे में पता लगाना पुलिस का काम है ना कि मेरा। फिर तुम्हीं क्यों वकील साहब और मीनाक्षी आंटी भी तो मौजूद थीं, ये दोनों कातिल क्यों नहीं हो सकते?”
मीनाक्षी मैडम और वकील साहब में से कोई हत्यारा इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि दोनों एक दूसरे के गवाह हैं कि प्रियम के कमरे में गोली चलने के वक्त ये दोनों हॉल में मौजूद थे। अनुराग ने भी अपने बयान में यही कहा था। रही बात संजीव चौहान की तो यह हत्यारा इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि प्रियम के कमरे में रखी अलमारी से रिवाल्वर की अदला-बदली कर पाना इसके लिये संभव नहीं था।”
“क्यों संभव नहीं था, जबकि ये तीन सौ पैंसठ दिन इसी घर में मंडराता रहता है, कोमल के साथ भी इसकी खूब निभती थी, ऐसे में किसी रोज कमरा खाली देखकर इसने उस काम को अंजाम क्यों नहीं दिया हो सकता?”
“भुवनेश” - संजीव चेतावनी भरे लहजे में बोला – “बहुत बोल चुके तुम, अब या तो खामोश हो जाओ या फिर मैं ही यहां से चला जाता हूं।” कहकर वह जवाब की प्रतीक्षा किये बिना दरवाजे की तरफ बढ़ा।
“कातिल भागा जा रहा है” - भुवनेश बोला – “और आप खड़े खड़े तमाशा देख रहे हैं।”
“कहीं नहीं जा रहे तुम” - सतपाल सख्त लहजे में बोला – “कोई भी यहां से तब तक नहीं हिलेगा जब तक कि पुलिस उसे ऐसा करने को नहीं कहती।”
“आप भी इसकी बातों में आ गये?” संजीव वापिस घूमता हुआ बोला।
“नहीं लेकिन इसने जब तुमपर शक जता ही दिया है तो हमारी कार्रवाई पूरी होने से पहले तुम यहां से बाहर नहीं जा सकते।”
“जाने दो उसे।” इतनी देर से खामोश खड़ा पनौती अचानक ही दखलअंदाज होता हुआ बोला।
“वजह?”
“ये कातिल नहीं हो सकता।”
सतपाल ने हैरानी से उसकी तरफ देखा, “जानता हूं ये कातिल नहीं हो सकता, क्योंकि कातिल पहले से ही पुलिस की गिरफ्त में है।”
“अनुराग शर्मा कातिल नहीं है।”
वह फिकरा सुनकर सब हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।
“तो फिर कातिल कौन है?” - एडवोकेट यादव पूछे बिना नहीं रह सका – “अब ये मत कह देना कि प्रियम और कल्पना का कत्ल मीनाक्षी ने किया है।”
पनौती जोर से हंसा।
“नहीं कहूंगा वकील साहब, बेफिक्र रहिये, बेशक ये आइडियल मॉम नहीं हैं, बेशक इन्हें अपने बेटे-बहुओं से कोई लगाव नहीं है, मगर सच्चाई यही है कि दोनों में से किसी का भी कत्ल इन्होंने किया नहीं हो सकता।”
“लेकिन कत्ल तो हुआ है, इसलिए कोई कातिल भी होगा, इस तरह अगर आप लोग सबको क्लीन चिट देते जायेंगे, तो आखिर में बचेगा कौन? पुलिस ने केस पर एफआर भी तो लगानी है, या आप प्रियम और कल्पना के कत्ल को पुलिस की कभी ना सुलझ सकने वाली फाईलों में दफ्न करना चाहते हैं।”वकील साहब आप केस के तमाम पहलुओं से करीब करीब वाकिफ हैं, अब जब कि मैं इतने लोगों को क्लीन चिट दे चुका हूं तो क्या अभी भी आपकी समझ में नहीं आता कि बतौर कातिल मैं किसका नाम लेने वाला हूं?”
“नहीं, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि अगर तुम कातिल को पहचान चुके हो तो नाम लो उसका, पर्दादारी क्यों कर रहे हो?”
पनौती फिर हंसा।
“इस्पेक्टर साहब” - वह सतपाल की तरफ मुड़कर बोला – “क्या अभी भी आपको बताना पड़ेगा कि कातिल कौन है? हमारे सामने खड़े लोगों में से बाकी कौन बचता है, जिसे ना सिर्फ कत्ल करने का मौका हासिल था बल्कि वह प्रियम की अलमारी में मौजूद हथियार की हेरा-फेरी भी बड़ी आसानी से कर सकता था।”
“नहीं” - सतपाल दृढ़ स्वर में बोला – “वकील साहब मैं आपको ताजिराते हिंद की दफा 302 के तहत दोहरे कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं।”
हॉल में एकदम से पिन ड्रॉप सन्नाटा फैल गया।
मीनाक्षी हैरानी से अपने खासुलखास की सूरत देखती रह गई। फिर जैसे अचानक ही उसे कुछ याद आया, “ब्रजेश कातिल कैसे हो सकता है, जबकि गोली चलने के वक्त ये हॉल में मेरे साथ बैठा हुआ था?”
“आप चाहती हैं कि आपको भी कत्ल के षड्यंत्र में शामिल समझा जाये?”
उसके मुंह से बोल नहीं फूटा।
“तुम्हें इन लोगों से डरने की कोई जरूरत नहीं है” - वकील कलपता हुआ बोला –“तुम जानती हो कि मैं कातिल नहीं हो सकता, फिर हिचक क्यों रही हो?”
“इसलिए हिचक रही हूं क्योंकि उस वक्त तुम हॉल में नहीं थे, सिगरेट पीने के लिये बाहर गये हुए थे। अब मेरी समझ में ये भी आ रहा है कि क्यों उस रात पुलिस के आने से पहले तुमने मुझे ये पट्टी पढ़ाई थी कि ‘पुलिस को हम यही कहेंगे कि जिस वक्त गोली चली थी हम दोनों एक साथ हॉल में बैठे हुए थे।’ तब मैंने तुम्हारा कहा इसलिए मान लिया क्योंकि कोमल ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था। मगर अब जबकि ये साबित हो चुका है कि कातिल कोमल नहीं है, तो मैं जुबान बंद रखना जरूरी नहीं समझती।”
“तू पछतायेगी बेवकूफ औरत?” - यादव चिल्लाकर बोला – “अपना किया धरा इतनी आसानी से तू मुझपर नहीं थोप सकती।”
“जब मैंने कुछ किया ही नहीं है तो डर कैसा?”
“तूने एक ऐसी एलिबाई तोड़ी है, जिसकी वजह से हम दोनों ही बेकसूर साबित हो रहे थे, मगर अब ऐसा नहीं है। तूने अपना मुंह फाड़कर बहुत बड़ी गलती की है। उस वक्त अगर मैं हॉल से बाहर था तो तू भी मेरी निगाहों में नहीं थी, मुझे तो उसी वक्त शक हो गया था कि गोली तूने ही चलाई है। उस काम को तूने उस वक्त अंजाम दिया था जब मैं हॉल से बाहर निकलकर लॉन में सिगरेट के सुट्टे लगा रहा था। मगर कोमल के गुनाह कबूल कर लेने के कारण तेरी तरफ से मेरा ध्यान हट गया था। वरना कातिल तेरे अलावा कोई हो ही नहीं सकता।”
“वजह क्या थी दोनों के कत्ल की मेरे पास?”
“वजह थी और उसके बारे में पुलिस को पहले से पता है।”मैं खूब समझती हूं कि तुम्हारा इशारा कहां है, मगर अपने दिमाग पर जोर डालकर सोचो, अगर वैसे किसी कारण से मैंने कत्ल करने का फैसला कर भी लिया था, तो प्रियम क्यों? मैंने सीधा कोमल को ही गोली क्यों नहीं मार दी?”
यादव से जवाब देते नहीं बना।
“अब क्यों बोलती बंद हो गई तुम्हारी?”
“तू पछतायेगी कमीनी औरत, देख लेना मैं तुझे कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ूंगा, पुलिस के कहने भर से मैं फांसी पर नहीं लटका दिया जाऊंगा, मैं इन्हें तेरे बारे में ऐसी ऐसी बातें बताऊंगा जिसे सुनकर इनके छक्के छूट जायेंगे। जिससे ये साबित हो जायेगा कि तूने सिर्फ प्रियम और कल्पना को ही नहीं मारा है बल्कि बहुत पहले अपने पति को भी जहन्नुम का रास्ता दिखा चुकी है।”
मीनाक्षी ने जोर से कहकहा लगाया।
“जो चाहे बताना, मैं तुम्हें कहानियां गढ़ने और सुनाने से नहीं रोक सकती, मगर पुलिस निरी अंधी नहीं है जो तुम्हारे कहे को पत्थर की लकीर मान लेगी। ले जाइये इंस्पेक्टर साहब इस शख्स को यहां से, वरना ये पागल यूं ही वाही तबाही बकता रहेगा।”
सतपाल ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।
फिर एडवोकेट ब्रजेश यादव को साथ लेकर पुलिस पार्टी वहां से विदा हो गई।
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थाने पहुंचकर सतपाल सिंह मुलजिम के साथ हवालात की तरफ बढ़ा ही था कि पनौती ने उसे टोक दिया, “हवालात के दर्शन इन्हें बाद में करा लेना इंस्पेक्टर साहब, पहले अपने कमरे में चलो, कुछ जरूरी बात करनी है।”
सतपाल बस एक क्षण को हिचकिचाया, फिर सहमति में सिर हिलाता यादव को साथ लिये अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।
“अब बोलो क्या कहना चाहते हो?” सतपाल अपनी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
“बताता हूं, लेकिन उससे पहले तुम अनुराग शर्मा को रिहा करो।”
“कर देंगे भाई, जल्दी क्या है?”
“है कोई जल्दी, बात मानों, उसकी फौरन रिहाई का इंतजाम करो और ये सुनिश्चित करो कि बाहर निकलने से पहले वह यहां तुमसे मिलकर जाये।”
“मैं बोलता हूं किसी को।” कहकर उसने इंटरकॉम का रिसीवर उठाया फिर दो अंकों का कोई नंबर पुश करने के बाद बोला, “अनुराग शर्मा को लेकर मेरे कमरे में पहुंचो।”
“अभी आता है वो” - सतपाल रिसीवर रखता हुआ बोला – “उसके खिलाफ अभी तक कोई रिपोर्ट तो दर्ज की नहीं थी हमने, इसलिये रिहा करने के लिये बस उसे यहां से जाने को कह देना ही काफी होगा।”
थोड़ी देर बाद एक सिपाही के साथ चलता, बेहद थका-हारा दिखाई दे रहा अनुराग शर्मा वहां हाजिर हुआ।
सतपाल ने सिपाही को वापिस भेज दिया।
“मुझे अफसोस है कि आपको पुलिस की वजह से परेशानी हुई” - सतपाल बोला – “मगर क्या करें मामला इतना विकट था कि हम आपको कातिल माने बिना नहीं रह सके। अब आप आजाद हैं, जहां जाना चाहें जा सकते हैं। घर जाकर अपने साले को थैंक्यू जरूर बोलियेगा, ऐसा साला ढूढ़े भी नहीं मिलने वाला जो जीजा की खातिर जेल जाने को तैयार हो जाये, थाने में चीख-चीख कर कहना शुरू कर दें कि कत्ल उसके जीजा ने नहीं किया है बल्कि कातिल वह खुद है, वह भी उन हालात में जब आप दोनों के बीच के रिश्ते की डोर को जोड़ने वाली उसकी बहन भी इस दुनिया में नहीं है।”
“भुवनेश ने ऐसा किया?” अनुराग हैरानी से बोला।
“जी हां उसी ने किया। बेशक कोरा झूठ बोला था, मगर खुशी इस बात की है कि उसके झूठ के कारण ही असली कातिल की तरफ हमारा ध्यान जा सका और आखिरकार हम उसे गिरफ्तार करने में कामयाब हो गये।”
“कौन है कातिल?”
“आपके फेमिली फ्रेंड वकील साहब, जो इस वक्त हमारे बीच मौजूद हैं।”
“यादव ने मारा है कल्पना को?” वह हैरानी से बोला, फिर झपटकर दोनों हाथों से यादव का गला पकड़ लिया और जोर से दबाने लगा, यादव के गले से गों-गों की आवाज निकलने लगी, वह जी जान से अनुराग को खुद से अलग करने की कोशिश करने लगा, मगर उसने अपने हाथों की पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी। नजीजा ये हुआ कि वकील को अपना दम घुटता सा महसूस होने लगा। सतपाल हड़बड़ाया सा अपनी जगह से उठा, अनुराग के दोनों हाथों को पकड़कर जबरन यादव के गले से हटाया और उसे पीछे धकेल दिया, जबकि बगल में बैठे पनौती ने यादव को बचाने की कोशिश में उंगली हिलाना भी जरूरी नहीं समझा।
“होश में आइये” - सतपाल चेतावनी भरे लहजे में बोला – “मत भूलिये कि इस वक्त आप थाने में खड़े हैं। घर जाइये और खुदा का शुक्र मनाते हुए जाइये कि वक्त रहते पुलिस को आपकी बेगुनाही पर यकीन आ गया।”
जवाब में अनुराग कुछ देर तक वहीं खड़ा ब्रजेश यादव को घूरता रहा फिर सतपाल को थैंक्यू बोलकर कमरे से बाहर निकल गया।
इंस्पेक्टर साहब” - उसके जाते ही यादव लगभग गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में बोला – “आप को जरूर कोई गलतफहमी हुई है, मैंने किसी का कत्ल नहीं किया।”
“बेफिक्र होकर बैठिये वकील साहब” - सतपाल से पहले पनौती बोल पड़ा – “इंस्पेक्टर साहब को ये बात बखूबी पता है कि आप गुनहगार नहीं हैं।”
वकील हकबका कर उसकी सूरत देखने लगा, उस घड़ी उसका ध्यान सतपाल पर चला जाता तो वह देखता कि पनौती की बात सुनकर उससे कहीं ज्यादा हैरान सतपाल हो रहा था।
“फिर मुझे गिरफ्तार क्यों किया गया?”
“कातिल के इस भ्रम को बनाये रखने के लिये कि पुलिस को उस पर जरा भी शक नहीं है, आप को गिरफ्तार कर के केस को सॉल्व हो गया समझा जा रहा है।”
“अगर ऐसा है तो आप लोग उसे गिरफ्तार क्यों नहीं करते?”
“करेंगे, हम उसके खिलाफ एक खास सबूत हासिल होने की उम्मीद कर रहे हैं, जो उसे गिरफ्तार कर पाने के बाद हासिल कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता, यही वजह है कि उसकी बजाये आपको हिरासत में लिया गया है, और पूरे दावे के साथ लिया गया है ताकि उसे किसी भी प्रकार का कोई खतरा महसूस न होने पाये।”
“कमाल है! अपने दस साल के करियर में पुलिस की ऐसी स्ट्रेटेजी पहली बार देख रहा हूं, जब कातिल का पता होने के बावजूद भी किसी बेगुनाह को ढोल बजाकर गिरफ्तार किया गया हो। बहरहाल खबर तो तुमने ऐसी सुनाई है कि जी करता है उठकर तुम्हें गले से लगा लूं, शुक्रिया भाई, शुक्रिया इंस्पेक्टर साहब।”
“उसकी कोई जरूरत नहीं है” - पनौती बोला – “उल्टा आपको तकलीफ देने के लिये हम आपसे माफी मांगते हैं, थोड़ी देर की मुसीबत आपको और झेलनी पड़ेगी, आपसे इल्तिजा है कि रात नौ दस बजे तक यहां हवालात में रहना कबूल कीजिये, उसके बाद जहां चाहें जा सकते हैं।”
“नौ दस बजे तक का क्या है भाई, तुम कहो तो मैं पूरा हफ्ता यहां रह सकता हूं।”
“उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, दस बजे से कहीं पहले असली कातिल पुलिस की गिरफ्त में होगा।”
“है कौन वो?”
“देखियेगा, मेरा दावा है कि कातिल की सूरत देखकर आप हैरान रह जायेंगे, कितना भी दिमाग पर जोर क्यों न डाल लें उस शख्स का तसोव्वुर कातिल के रूप में नहीं कर पायेंगे, जिसे आज रात पुलिस गिरफ्तार करने वाली है।”
“ऐसे में मीनाक्षी तो कातिल नहीं हो सकती, क्योंकि बतौर कातिल उसपर तो मुझे पहले से ही शक है।”
“नहीं दोनों में से एक भी कत्ल उसने नहीं किया है।”
“ठीक है फिर जो ठीक समझो करो, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।”
पनौती ने सतपाल की तरफ देखा तो उसका मंतव्य समझकर उसने कॉल कर के एक सिपाही को बुलाया और बोला, “साहब को हवालात में बंद कर दो, मगर ध्यान रहे कि ये कोई मुजरिम नहीं हैं, किसी भी किस्म की कोई तकलीफ इन्हें नहीं होनी चाहिये, चाय-पानी, सिगरेट या और भी जो कुछ ये चाहें, उपलब्ध कराना तुम्हारी जिम्मेदारी है, समझ गये?”
“जी जनाब।” सिपाही तत्पर स्वर में बोला।
“जाइये वकील साहब, और शाम होने का इंतजार कीजिये।” सतपाल बोला।
“जी शुक्रिया।” कहकर वह सिपाही के साथ कमरे से बाहर निकल गया।
“तुम तो किसी दिन मुझे पागलखाने का केस बना कर छोड़ोगे शर्मा साहब” - सतपाल बोला – “असल मुलजिम के खिलाफ कोई चाल चल ही रहे थे तो कम से कम मुझे बता तो दिया होता, क्या पता किसी वजह से गुस्सा होकर मैं वकील पर हाथ ही उठा बैठता?”
“मैं उसके लिये एकदम तैयार था, तुम्हें चाहकर भी वैसा नहीं करने दिया होता। फिर मत भूलो कि सबकुछ जितनी तेजी से घटित हुआ था उसमें तुम्हें कुछ बता या समझा पाना संभव नहीं था।”
“ठीक है भाई मैंने मान ली तुम्हारी बात, अब बताओ कातिल कौन है, और उसके खिलाफ कौन सा सबूत हासिल करने की बात कर रहे थे।”
पनौती ने बताया।
“तेरा दिमाग खराब हो गया लगता है” - सतपाल एकदम से भड़क उठा – “जब कि तुझे अच्छी तरह से पता है कि वह कातिल नहीं हो सकता।”
“अपनी बात पर मेरा सौ फीसदी का दावा है सतपाल साहब, अब तुम अपनी पुलिसिया एक्सपर्टनेस दिखाओ, और उस शख्स को शाम से पहले तलाश करो जिसने कातिल को वह रिवाल्वर बेची थी जो अभी एक घंटा पहले पानी की टंकी से बरामद की है तुमने।”
“ऐसे किसी शख्स को ढूढ़ना तुझे मजाक लगता है?”
“लगता तो है।”ठीक है फिर तू ही बता शुरूआत कहां से करें?”
“बल्लभगढ़ चलो, आगे की आगे देखेंगे, मगर सबसे पहले तुम अपनी वर्दी उतारकर आम कपड़े पहन लो और किसी टैक्सी का इंतजाम करो, मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी खोजबीन के दौरान कोई बतौर पुलिसवाला तुम्हारी शिनाख्त कर सके।”
“टैक्सी की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी, थाने में एक स्विफ्ट खड़ी है उसी को ले चलता हूं।”
“ये तो और भी अच्छी बात है।”
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बीस मिनट बाद बिना वर्दी के स्विफ्ट में सवार होकर पनौती के साथ वह बल्लभगढ़ पहुंचा, तब तक शाम के साढ़े छह बज चुके थे। वहां काफी छानबीन के बाद उन्हें मिस्टर एक्स के एक लंगोटिया यार का पता चला। उसका नाम मुकेश दिक्षित था, उसके बारे में जानकारी हासिल करने पर पता चला कि उस वक्त वह जिम गया हुआ था।
जिम का पता हासिल कर के दोनों वहां पहुंचे, भीतर पहुंचकर पनौती ने ट्रेनर से उसके बारे में पूछा तो उसने ट्रेड मील पर खड़े एक खूब मोटे युवक की तरफ उंगली उठा दी। पनौती उसके करीब पहुंचा, फिर मिस्टर एक्स के नाम का हवाला देकर उसे जिम से बाहर निकाल लाया।
मगर कार की तरफ बढ़ने की बजाये वह उसे साथ लेकर सड़क पर आगे बढ़ने लगा।
“है कहां वो?” मुकेश ने पूछा।
“यहीं कहीं होगा।” पनौती चौकन्नी निगाहों से इधर-उधर देखता हुआ बोला।
दोनों धीरे-धीरे सड़क पर आगे बढ़ते रहे। कुछ दूर जाने के बाद पनौती को अपनी बायीं तरफ एक खूब बड़ा खाली प्लॉट दिखाई दिया जहां उस घड़ी कोई नहीं था। कार में बैठा सतपाल स्लो स्पीड से उनके पीछे बढ़ रहा था, पनौती ने एक निगाह उधर डाली फिर हौले से गर्दन हिला दी।
फिर मुकेश की तरफ देखता हुआ बोला, “यहीं ठहरो।”
इससे पहले कि वह उसके ठहरने का मतलब समझ पाता, सतपाल ने स्विफ्ट को उनके एकदम बराबर में लाकर खड़ा कर दिया। किसी का ध्यान उनकी तरफ नहीं था, पलक झपकते ही पनौती ने कार का पिछला दरवाजा खोलकर मुकेश को जबरन भीतर धकेल दिया। वह हड़बड़ाया, चिल्लाया, मगर तभी पनौती ने सतपाल की सर्विस रिवाल्वर उसके माथे से सटा दी।
“आवाज न निकले।” वह खूंखार लहजे में बोला और कार के भीतर घुसकर दरवाजा बंद कर लिया।
सतपाल ने कार सरपट दौड़ा दी, सामने मथुरा रोड दिखाई दे रहा था, जहां पहुंचते ही सतपाल ने कार को फरीदाबाद की बजाये पलवल की तरफ मोड़ दिया।
मुकेश दीक्षित ने एक बार फिर चीखने की कोशिश की।
“मरना चाहता है?” पनौती रिवाल्वर से उसके माथे को ठोकता हुआ बोला।
“कौन हो तुम लोग?”
“दोस्त कहना तो गलत होगा भाई, मगर इतना यकीन जरूर दिला सकते हैं कि अगर तुमने हमारे सवालों का ठीक ठीक जवाब दे दिया तो जिन्दा बच जाओगे, वरना हाईवे पर आये दिन एक्सीडेंट होते ही रहते हैं, एक और सही।”
“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़़ा है?” वह मिमियाया।
“कुछ नहीं बिगाड़ा, मगर क्या करें गेहूं के साथ घुन को पिसना ही पड़ता है, यही दस्तूर है संसार का” - फिर अचानक ही पनौती का लहजा बदल गया – “देखना ये है कि तू पिसना चाहता है या गेहूं से अलग होकर अपनी जिंदगी बचाना चाहता है।”
“मैं जिन्दा रहना चाहता हूं, मगर तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही।”
“अभी आ जायेगी” - पनौती बोला - ‘.......’ का लंगोटिया यार है तू, इसलिए उसका स्याह सफेद सब मालूम होगा तुझे।”
“जानना क्या चाहते हो?”
“हाल ही में उसने किसी से, या किसी के जरिये एक रिवाल्वर खरीदी थी, हम बस ये जानना चाहते हैं कि वह रिवाल्वर उसे किसने बेची थी?”
“बेचने वाले के बारे में मुझे कोई खबर नहीं है, लेकिन एक डेढ़ महीना पहले उसने मुझसे पूछा था कि ‘क्या मैं किसी ऐसे शख्स को जानता हूं, जो किसी रिवाल्वर की फोटो देखकर वैसी ही दूसरी रिवाल्वर तैयार कर सके, या मनचाही रिवाल्वर उपलब्ध करवा सके’ मुझे ऐसे किसी शख्स के बारे में तो नहीं पता था, मगर मैंने उसे एक ऐसे लड़के से मिलवा दिया, जो दो साल पहले असलहा रखने के जुर्म में जेल होकर आया था, बाद में उसके जरिये वह अपने मकसद में कामयाब हुआ या नहीं ये मैं नहीं जानता।”
“नाम ले दूसरे शख्स का?”
“मनोज नाम है, मगर ज्यादातर लोग उसे मुन्ना के नाम से जानते हैं।”

कहां मिलेगा?”
“मैं नहीं जानता, रहता तो वह बल्लभगढ़ में ही एक किराये के कमरे में है, मगर रात गहराने से पहले शायद ही कभी अपने कमरे में कदम रखता हो।”
“उसके मोबाइल पर फोन कर के बोल कि एक पार्टी है, जो मुंहमांगी कीमत देने को तैयार है।”
“मेरे पास उसका नंबर नहीं है।”
“फिर तो बहुत मुश्किल हो गई भाई तेरे लिये, क्योंकि उससे मिले बिना तो हम तुझे आजाद करने से रहे।”
“उसके कमरे पर चलकर देख लो” - रो देने वाले अंदाज में बोला – “क्या पता इत्तेफाक से आज जल्दी लौट आया हो।”
“ठीक है रास्ता बता।”
“पहले बल्लभगढ़ तो चलो, तुम लोग तो एकदम उल्टा दौड़े जा रहे हो।”
सारा वार्तालाप सुन रहे सतपाल ने थोड़ा आगे जाकर कार को यू-टर्न दिया और वापिस बल्लभगढ़ की तरफ ड्राइव करने लगा।
दस मिनट बाद कार मुन्ना के कमरे वाली गली में पहुंची, मुकेश ने दूर से उन्हें बता दिया कि मुन्ना का कमरा कौन से मकान में किस फ्लोर पर था।
“तुम इसके साथ यहीं रूको” - सतपाल पनौती से बोला – “मैं कमरे का एक फेरा लगाकर आता हूं, देखें वह भीतर है या नहीं?”
पनौती ने सहमति में सिर हिला दिया।
सतपाल कार से उतरकर बिल्डिंग में दाखिल हो गया। मुकेश के बताये अनुसार मुन्ना पहली मंजिल पर सीढ़ियों के एकदम सामने वाले कमरे में रहता था।
सतपाल ने वहां बड़ा सा ताला झूलता पाया।
वह वापिस कार में आकर बैठ गया, “कमरे को ताला लगा हुआ है।”
“क्या हैरानी की बात है, जब कि ये पहले ही अंदेशा जता चुका है कि रात गहराने से पहले शायद ही कभी वह अपने कमरे में पहुंचता हो।”
“अब क्या करें?”
“इंतजार करना होगा” - पनौती बोला – “मगर तब तक हम इसे यूं ही अपने साथ कार में बैठाये नहीं रख सकते।”
सतपाल ने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया फिर किसी को फोन करके कहा, “मैं तुम्हें अपनी लोकेशन शेयर कर रहा हूं, पंद्रह मिनट के भीतर दो लोगों के साथ यहां पहुंचना है, सीरियस मैटर है कोताही नहीं होनी चाहिये।” कहकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
उसके बाद उसने व्हाट्सअप के जरिये अपनी लोकेशन शेयर कर दी।
“तुम लोग मुझे छोड़ क्यों नहीं देते” - मुकेश दीक्षित सहमे स्वर में बोला – “मुन्ना का पता तो मैंने बता ही दिया है।”
“नहीं छोड़ सकते” - जवाब पनौती ने दिया – “और तू क्या अकेला हमारे चंगुल में फंसा हुआ है, तुझसे पहले एक वकील को भी उठा चुके हैं हम लोग, इसलिए शांत होकर बैठ, क्योंकि किसी के साथ सख्ती से पेश आना मुझे बुरा लगता है, मगर आगे बैठे मेरे साथी को ऐन उसी बात में बहुत मजा आता है, तू चाहता है कि पिछली सीट पर आकर वह तुझे संभालने की कोशिश करे?”
“नहीं, मगर इतना जरूर कहना चाहता हूं कि अगर तुम लोग ये सोचकर मुझे आजाद नहीं कर रहे कि तुम्हारे चंगुल से निकलते ही मैं मुन्ना को सावधान कर दूंगा तो गलत सोच रहे हो, मैं उसे ये बात बताना भला कैसे अफोर्ड कर सकता हूं कि उसके बारे में तुम लोगों को मैंने बताया था।”
“बहस करने का कोई फायदा नहीं है भाई, इसलिए चैन से बैठ, खामोश होकर बैठ।”
मुकेश से आगे कुछ कहते नहीं बना।
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ठीक पंद्रह मिनट बाद एक पुलिस जीप उनकी कार के पास आकर रूकी। गाड़ी से उतर कर एक एएसआई और दो सिपाही कार की तरफ बढ़े, मुकेश की निगाहें जैसे ही उन लोगों पर पड़ी उसकी आंखें चमक उठीं।
एएसआई स्विफ्ट की ड्राइविंग विंडो के करीब पहुंचा। उससे बात करने के लिये सतपाल ने जैसे ही विंडो का शीशा नीचे खिसकाया मुकेश जल्दी से बोल पड़ा, “साहब बचाओ मुझे, इन दोनों ने मेरा अपहरण कर रखा है।”
“कमाल है इतनी दीदा दिलेरी, वह भी दिन दहाड़े?” एएसआई बोला।
“वही तो, आप फौरन इन दोनों को गिरफ्तार कर लीजिये।”
“अभी करता हूं भाई”- कहकर उसने सतपाल की तरफ देखा – “हुक्म दीजिये जनाब।”
सुनकर मुकेश जैसे आसमान से गिरा।
“इसे थाने ले जाओ” - सतपाल बोला – “याद रखना इसपर कोई केस नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि हमारे वापिस लौटने तक यह किसी से भी संपर्क न कर सके, तब तक इसका मोबाइल अपने पास रखना।”
“ऐसा ही होगा जनाब” - कहकर उसने पिछला दरवाजा खोला फिर बोला – “बाहर आ जा भाई।”
“बेफिक्र होकर जाओ” - सतपाल बोला – “मुन्ना के मिलते ही तुम्हें छोड़ दिया जायेगा। मगर जाने से पहले इतना बताकर जाओ कि वह दिखता कैसा है?”
मुकेश ने उससे बेहतर काम कर के दिखाया, अपने मोबाइल में एक ग्रुप फोटो खोलकर उसके सामने कर दिया, फिर सतपाल के कहने पर फोटो उसे व्हाट्सअप पर भेज दिया।
पुलिस पार्टी मुकेश दीक्षित को लेकर वहां से चलती बनी।
आगे का काम बहुत बोरियत भरा था, जिसे दोनों ने कार में बैठकर पूरी खामोशी के साथ अंजाम देना शुरू किया।
अगला एक घंटा एक साल के बराबर गुजरा मगर कोई बिल्डिंग में जाता दिखाई नहीं दिया। वक्त बेहद धीमी रफ्तार से गुजरता रहा। दोनों की निगाहें बिल्डिंग के इंट्रेंस पर टिकी रहीं।
“क्यों न हम उसके आजू बाजू के कमरों में रहने वालों से उसका मोबाइल नंबर हासिल करने की कोशिश करें?” सतपाल बोला।
“क्या फायदा होगा, ऐसा कोई शख्स तुम्हारे पीठ फेरते ही उसे सावधान नहीं कर देगा, इस बात की क्या गारंटी है?”
“बात तो तेरी ठीक है भाई, मगर उस जैसे लोगों का क्या भरोसा, पता नहीं आज की डेट में वापिस लौटेगा भी या नहीं?”
“जरूर लौटेगा।”
“ना लौटा तो?”
“तो फिर हम वही करेंगे जो तुम अभी अभी कहकर हटे हो, मगर रात बारह बजे तक तो हम उसका इंतजार यकीनन करेंगे।”
कार में एक बार फिर से खामोशी छा गई।
उस वक्त नौ बजने को थे जब नशे में लड़खड़ाता एक चौबीस-पच्चीस साल का लड़का बिल्डिंग में दाखिल होता दिखाई दिया।
तस्वीर की मौजूदगी के बावजूद दोनों कील ठोककर ये नहीं कह पाये कि सामने दिखाई देता शख्स मुन्ना ही था। मगर उसके बिल्डिंग में दाखिल होते ही दोनों कार से निकल कर उसके पीछे हो लिये।
पहली मंजिल पर पहुंचकर ज्योंही उसने सीढ़ियों के सामने वाले कमरे का ताल खोलना शुरू किया, दोनों की आंखें चमक उठीं।
दरवाजा खोलकर मुन्ना कमरे में दाखिल हुआ और पलट कर दरवाजा बंद करने लगा, तभी दोनों उसे भीतर धकेलते हुए कमरे में दाखिल हो गये।
“कौन हो तुम लोग?” वह नशे में थरथराती आवाज में बोला।
“दुश्मन” - पनौती बोला – “इसलिए रहम की उम्मीद बिल्कुल मत करना।”
“क्या चाहते हो?”
“तुम्हारे लिये एक सवाल है हमारे पास, ईमानदारी से जवाब दोगे तो बच जाओगे, वरना कल का सबेरा देखना नसीब नहीं होगा।”
कहकर पनौती ने सतपाल की सर्विस रिवाल्वर उसके माथे से सटा दी। तब जाकर पहली बार मुन्ना के चेहरे पर भय के भाव उजागर हुए, “क्या जानना चाहते हो।”
“.......को जानता है?”
“नहीं मैंने ये नाम कभी नहीं सुना।”ठीक है मैं तुझे एक तस्वीर दिखाता हूं, शक्ल तो याद होगी ही तुझे।”
“हो सकती है।”
पनौती ने सतपाल की तरफ देखा, तो उसने फौरन अपने मोबाइल में एक तस्वीर ओपेन कर के मुन्ना के सामने कर दी।
“पहचानता है इसे?”
“हां” - उसने मुंडी हिलाई – “इसने अपना नाम प्रियम शर्मा बताया था।”
“वही सही, जब तस्वीर को पहचान गया है तो तुझे ये भी याद आ गया होगा कि कुछ दिनों पहले तूने इस शख्स को एक रिवाल्वर बेची थी।”
“मैंने नहीं बेची थी, मैंने क्या असलहा बनाने की फैक्ट्री लगा रखी है।”
“झूठ बोलने का अंजाम जानता है?”
“जानता हूं।”
“फिर भी झूठ बोल रहा है?”
“नहीं मैं झूठ नहीं बोल रहा, वह एक रिवाल्वर की फिराक में मेरे पास आया जरूर था, मगर उसकी जरूरत एक खास किस्म की रिवाल्वर की थी, जो मेरे पास नहीं थी, वैसे भी आजकल मैंने धंधे से किनारा कर लिया है।”
“चल मान ली तेरी बात, तूने उसे रिवाल्वर नहीं बेची थी, मगर उसे कोई ऐसा नाम तो बराबर सुझाया होगा, जहां से उसका मतलब हल हो सकता था?”
“हां, मैंने उसे करीम भाई के बारे में बताया था और उसके कहने पर उन्हें फोन भी कर दिया था।”
“तेरा मतलब है रिवाल्वर उसे करीम भाई से हासिल हुई थी?”
“मुझे नहीं मालूम, वैसे करीम भाई तो बस कमीशन एजेंट है, अगर उसकी जरूरत करीम भाई ने पूरी की भी होगी तो माल कहीं और से ही हासिल किया होगा।”
“करीम भाई का पता बोल।”
मुन्ना खामोश हो गया।
“तुझे लगता है कि तू जुबान बंद रख सकता है?”
“नहीं मुझे लगता है कि मैं जोर-जोर से चिल्ला सकता हूं।” कहकर उसने चिल्लाने के लिये मुंह खोला ही था कि पनौती ने एक हाथ से उसकी गर्दन थामते हुए दूसरे हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल उसके मुंह में घुसेड़ दी।
“चिल्ला” - वह कहर भरे लहजे में बोला – “कोशिश कर के ही देख, मैं इस रिवाल्वर की तमाम गोलियां तेरे हलक में उतार दूंगा।”
मुन्ना के गले से गों गों की आवाज निकलने लगी।
“करीम भाई को बचाना चाहता है तो उसका बस एक ही रास्ता है, खुद अपनी जान दे दे” - पनौती बोला – “तू चाहता है कि मैं गोली चलाऊं?”
मुन्ना ने तत्काल दायें बायें मुंडी हिलाना शुरू कर दिया।
“कुछ कहना चाहता है?”
जवाब में वह बड़ी मुश्किल से मुंडी को हां के अंदाज में ऊपर से नीचे करने में कामयाब हो पाया।
पनौती ने रिवाल्वर की नाल वापिस खींच ली। वह जोर जोर से खांसने लगा। उसकी आंखों से आंसू निकल आये।
“अब बता, करीम भाई कहां मिलेगा?”
“घर पर ही होंगे।”
“पता बोल।”
“नहीं जानता।”
सतपाल ने एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया।
“झूठ मत बोल।”
“मैं सच में नहीं जानता, लेकिन उनका घर मेरा देखा हुआ है।”
“अकेले रहता है वह?”
“हां।”ठीक है ले कर चल।”
बाहर आकर तीनों स्विफ्ट में सवार हो गये।
करीम भाई का पता एक दो मंजिला मकान का निकला जो कि बल्लभगढ़ से फरीदाबाद बाई पास वाली सड़क पर जाते वक्त सड़क के किनारे बनी छोटी-छोटी दुकानों के बीच बना हुआ था।
“यहां रहता है वह?”
“हां।”
“तुम इसपर निगाह रखो” - पनौती बोला – “मैं होकर आता हूं।”
“तू रहने दे भाई” - सतपाल जल्दी से बोला – “मैं जाता हूं।”
“बहस मत करो।”
कहकर वह कार से बाहर निकला और आगे बढ़कर मकान के दरवाजे पर दस्तक दे दी।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला, खुले दरवाजे पर जो शख्स प्रकट हुआ वह बामुश्किल तीस साल का रहा होगा। जबकि पनौती उसके नाम की वजह से उसका तसोव्वुर उम्रदराज शख्स के रूप में करने लगा था।
“करीम भाई?” उसने पूछा।
“मैं ही हूं, कहिये?”
“भीतर चलिये कुछ बात करनी है।”
“पहले पता तो चले कि किस बारे में बात करनी है?”
“मुझे मुन्ना ने आपके पास भेजा है।”
“उससे कहो कि मुझे फोन करे, अब जाओ यहां से।”
“यूं तो मैं नहीं जाऊंगा जनाब।”
“फिर कैसे जायेगा?” - करीम भाई गुस्से से बोला – “अर्थी उठाने का इंतजाम करूं?”
“अपना?”
“नहीं तेरा।”
“घर आये मेहमान से कोई यूं पेश आता है?”
“पचर-पचर मत कर दफा हो यहां से और मुन्ना को कहना कि आगे से किसी को भेजने से पहले मुझे एडवांस में फोन किया करे।”
“अरे जनाब, जब मैं आ ही गया हूं तो।”
“कोई तो नहीं, भाग जा यहां से।”
“नहीं भागूंगा।”
“स्साले मरना चाहता है करीम भाई के हाथों।”
“गाली मत दीजिये जनाब, गाली देना बुरी बात होती है।”
“स्साले क्या खाली...।”
आगे के शब्द करीम भाई के मुंह में ही रह गये।
पनौती ने उसके पेट में एक तगड़ा घूंसा जड़ दिया, वह जोर से चिल्लाया और अनजाने में ही दो कदम भीतर पहुंच गया। इससे पहले कि वह संभलकर उस पर वार करता पनौती ने उसे बालों से पकड़कर फर्श पर गिरा दिया फिर दो तीन लातें उसकी पसलियों में जमा दी।
वह हलाल होते बकरे की तरह डकारा। पनौती वापिस मुड़ा और कमरे के इकलौते दरवाजे को भीतर से बंद कर दिया।
ठीक तभी करीम भाई ने फर्श से उठकर पीछे से उसपर छलांग लगा दी। पनौती की गर्दन में उसने अपने बाहों का फंदा डालकर भींचना शुरू कर दिया। उस कोशिश में वह लगभग उसकी पीठ पर टंग सा गया।
पनौती उसे लिये दिये 360 डिग्री के ऐंगल में घूम गया और इतनी तेजी से अपनी पीठ को दीवार पर मारा कि उसके ऊपर लदे करीम भाई के मुंह से एक बार फिर चीख निकल गई। गर्दन पर कसा बाहों का फंदा खुद बा खुद ढीला पड़ गया। पनौती ने उसे एक जोर का झटका दिया तो रही सही पकड़ भी छूट गई और फर्श पर यूं जा गिरा जैसे खड़े खड़े एकदम से नीचे बैठ गया हो।
पनौती उसकी तरफ घूमा, करीम भाई को गरेबां से पकड़ कर उठाया और दोबारा फर्श पर पटक दिया। इसके बाद एक और लात उसकी पसलियों में जड़ने के बाद कमरे में मौजूद एक लकड़ी की कुर्सी को खींचकर उसके पास बैठ गया।
“असलहा चाहिये न तुझे?” करीम भाई रो देने वाले अंदाज में बोला।
“नहीं।”
“नहीं” - वह हैरानी से बोला – “फिर किसलिये भेजा है मुन्ना ने तुझे?”
“पहले ही पूछ लेते खलीफा तो नौबत यहां तक न पहुंची होती।”अब पूछता हूं मेरे बाप, बता क्या चाहता है?”
“गाली मत दो, पहले भी कहा था गाली देना बुरी बात होती है।”
“अब मैंने कौन सी गाली दे दी तुझे?”
“मुझे नहीं अपनी मां को दी है, मुझे बाप का संबोधन दे कर।”
“ठीक है भाई” - वह बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठता हुआ बोला – “गलती हो गई, बता क्या चाहता है?”
“कुछ दिनों पहले तुमने प्रियम शर्मा नाम वाले किसी शख्स को एक रिवाल्वर बेची थी, याद आया?”
करीम भाई ने जवाब नहीं दिया।
“मार खाना तुम्हारी आदत मालूम पड़ती है।”
“मैं अपने कस्टमर के बारे में तुझे कुछ नहीं बता सकता।”
“मगर जान देना तुम्हारी आदत में शुमार नहीं हो सकता” - करीम भाई की बात को नजरअंदाज करते हुए उसने कमर में खुंसी सतपाल की रिवाल्वर निकाल कर उसके माथे से सटा दी – “वरना इंकार करने को जिन्दा नहीं बचे होते।”
रिवाल्वर ने करीम भाई को पहले से ज्यादा डरा कर रख दिया। पल भर को उसका शरीर जोर से कांपा फिर शांत हो गया।
“मैं सिर्फ दस तक गिनती गिनूंगा, बहुत दिन हो गये स्कूल छोड़े अब तो पता नहीं ठीक से आती भी है या नहीं, मगर दस बोलना मुझे आता है, इधर मेरी गिनती पूरी हुई उधर तू जान से गया” - कहकर उसने गिनना शुरू किया - एक, दो, सात, नौ...।”
“मुझे सब याद है भाई” - करीम भाई जल्दी से बोला – “अल्ला के वास्ते रिवाल्वर को दूर कर, बता क्या जानना चाहता है उस बारे में?”
“सौदा कितने में हुआ था?”
“एक लाख में, दूसरी रिवाल्वर मैं पचास में ही दिलवा देता, मगर उसे एक खास किस्म की रिवाल्वर चाहिये थी, इसलिये पैसे ज्यादा लगे थे।”
 

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