Thriller पनौती (COMPLETED)

Well-known member
1,170
1,352
143
सतपाल ने नये सिरे से लाश का मुआयना किया फिर बोला, “कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते कि इसकी हत्या लूटने की खातिर की गई है?”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता, मगर हैरान जरूर हूं कि इसके कत्ल के बाद हत्यारे को इसके आभूषण उतारने की जरूरत क्यों पड़ी?”
“लालच आ गया होगा उसके मन में।”
“फिर तो ये इनसाइड जॉब नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“क्योंकि आखिरकार तो लाश के आभूषण घर वालों को मिल ही जाने थे, ऐसे में लाश नीचे फेंकने से पहले इन चीजों को उतारना क्यों जरूरी था?”
“फिर तो समझ लो कि कातिल वकील है, या फिर वह छोकरा संजीव चौहान, क्योंकि बाहरी लोगों के तौर पर अभी तक उन दोनों के नाम ही हमारे सामने आये हैं।”
“और भुवनेश कातिल क्यों नहीं हो सकता, वह भी तो बाहर का ही आदमी है।”
“इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि बहन के कत्ल की उसके पास कोई वजह नहीं हो सकती, ना ही बहन या जीजा के छोटे भाई की मौत से उसे कोई फाइनेंशियल गेन होना था।”
“और निरंजन राजपूत के बारे में क्या कहते हो?”
“उसके बारे में क्या कहूं, प्रियम शर्मा के साथ तो फिर भी उसकी तकरार हुई थी, इसलिए बहस के लिये हम उसे कातिल मान सकते हैं, मगर कल्पना के साथ उसकी भला क्या दुश्मनी रही हो सकती है?”
“क्या पता वह पूरे परिवार के साथ ही खुंदक खाये बैठा हो? ऐसे में छत पर जो गोली चलाई गई थी उसका एक नया जवाब भी मुमकिन हो सकता है।”
“कैसा जवाब?”
“उसने हमें धमकी दी थी, इसलिए हमें जान से मारने के लिये यहां पहुंच गया या फिर अपने किसी गुर्गे को भेज दिया।”
“जैसे आज के बाद हम शहर से गायब हो जाने वाले थे? दोबारा उसे मौका नहीं मिलने वाला था।”
“ऐसा नहीं था, मगर उसको सामने रखकर सोचें तो हम दोनों को शूट कर देने की वजह सहज ही दिखाई देने लगती है।”
“ठीक है भाई पता करेंगे कि कल्पना के कत्ल के वक्त वह कहां था, हम दोनों पर गोली चलने के वक्त कहां था?” कहकर उसने लाश को दोबारा चादर से ढक दिया और उठ खड़ा हुआ।
“अतर सिंह!” उसने एक एएसआई को आवाज दी।
“जी जनाब।”
“लाश को एंबुलेंस में रखवा दो।”
“अभी लीजिये जनाब।”
“इस वक्त यहां जितने भी लोग मौजूद हैं” - सतपाल वहां खड़ी भीड़ से बोला – “चाहे वह घर के लोग हों या फिर बाहर के, चलकर हॉल में बैठिये, हमारी इंक्वायरी पूरी होने से पहले कोई भी यहां से बाहर नहीं जायेगा।”
“मैं तो अभी अभी यहां पहुंचा हूं।” संजीव चौहान बोला।
“बेशक अभी पहुंचे हैं, लेकिन पूछताछ फिर भी होगी, जाकर हॉल में बैठिये।”
संजीव फिर कुछ नहीं बोला।
सब लोग एक एक कर के वहां से हॉल की तरफ बढ़ गये।
सबसे आखिर में वहां एडवोकेट ब्रजेश यादव रह गया जिसकी वहां से हिलने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती थी।
“आपको अलग से कहना पड़ेगा?” सतपाल उसे घूरता हुआ बोला।
“नहीं, लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।”
“कहिये।”
“मैं चाहता हूं कि आप इस केस में मुझे और मीनाक्षी को एक साथ घसीटने की कोशिश ना करें, इस बारे में कम से कम तब तक अपनी जुबान बंद रखें जब तक कि आपको ये न लगने लगे कि कातिल हम दोनों में से कोई एक है या हम दोनों ही कातिल हैं।”
“जैसे पुलिस आपके कहे को मानने के लिये बाध्य है।”
“नहीं है, इसीलिये रिक्वेस्ट कर रहा हूं।”
“ठीक है, हॉल में पहुंचिये आगे देखते हैं कि उस बारे में आपकी मदद की जा सकती है या नहीं।”
सहमति में सिर हिलाता यादव हॉल की तरफ बढ़ गया।
“अजीब आदमी है” - सतपाल पनौती की तरफ देखता हुआ बोला – “इसका मिजाज मेरी समझ से परे है।”
“जबकि कहना तुम्हें ये चाहिये था कि शातिर आदमी है, इसलिए इसके कातिल निकल आने के चांस सबसे ज्यादा हैं।”तू कहे तो नोट कर लेता हूं, अगली बार बोल दूंगा।”
पनौती हंसा।
“जानता है इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूं।”
“यही कि अभी एक मामला सॉल्व हुआ नहीं कि दूसरा गले पड़ गया।”
“नहीं, मैं सोच रहा हूं कि क्या छत पर गोली चलाने वाला शख्स यहां मौजूद लोगों में से कोई एक हो सकता है?”
“तुम इन सभी के हाथों को गन पाउडर के लिये चेक क्यों नहीं करवाते?”
“बहुत वक्तखाऊं काम है भाई, इसके लिये सस्पेक्ट को लैब में ले जाकर उसके हाथों का पैराफिन कास्ट उठाना पड़ता है, फिर कार्बन के कणों के लिए उसकी जांच की जाती है, इसके बाद पता चलता है अमुक शख्स ने हाल ही में गोली चलाई थी या नहीं। कोई एक या दो जना होता तो शायद संभव हो भी जाता। यहां तो कई लोगों जांच करवानी पड़ेगी, उसके बावजूद भी नतीजा हासिल होने की कोई उम्मीद नहीं है। कातिल ने जहां इतनी सावधानी बरती है वहां उसे इस बात की भी जानकारी जरूर होगी कि गोली चलाने के बाद उसके हाथों की जांच उसका पोल खोल कर रख देगी, उस बारे में उसने जरूर कोई ना कोई सावधानी बरती होगी।”
“क्या पता ना बरती हो, क्या पता बेध्यानी में ही उससे कोई भूल हो गई हो, या फिर उसे इस बात की जानकारी ही ना हो कि पैराफिन टेस्ट के जरिये इस बात का पता लगाया जा सकता है कि अमुक शख्स ने हाल-फिलहाल गोली चलाई थी या नहीं चलाई थी।”
“इतने लोगों को एक साथ टेस्ट के लिये तैयार कर पाना क्या तुम्हें मजाक लगता है, ऊपर से इस काम के लिये डीसीपी साहब की परमिशन लेनी होगी, जिनसे इन लोगों की खास पहचान मालूम पड़ती है, अनुराग शर्मा के मुंह से तुम खुद भी सुन ही चुके हो।”
पनौती ने उसे घूर कर देखा।
“इस बार तेरे घूरने का भी कोई असर नहीं होगा भाई, तू कहे तो मैं वीर साहब से बात कर के देखता हूं, मगर जवाब इंकार में ही सुनने को मिलेगा।”
पनौती ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, “सिगरेट देना प्लीज।”
सतपाल ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसके हवाले कर दिया।
उसने दो सिगरेट सुलगाये जिसमें से एक सतपाल को थमाता हुआ बोला, “तुम्हारे साथ रहकर ही मैंने जाना कि एक पुलिस ऑफिसर कदम कदम पर कितना लाचार हो जाता है, प्रोसिजर को फॉलो करने के चक्कर में किस तरह हर वक्त चक्की के दो पाटों के बीच पिसता रहता है, जहां एक तरफ उसके आला अफसर होते हैं तो दूसरी तरफ मुलजिम।”
“वही तो, जबकि आम जनता पुलिस को अक्सर वर्दी वाला गुंडा कहने से भी बाज नहीं आती।”
“आम जनता कैसे आ सकती है सतपाल साहब, जबकि तुम लोगों का सबसे आसान शिकार वही होती है, रिक्शे वाले को पीट दो, ट्रक ड्राइवर को बेवजह घंटों सड़क पर खड़े रखो, झुग्गी में रहते किसी शख्स को दिन में चार बार ऐसे जुर्म के लिये उठाकर डंडा परेड करो जो उसने किया ही ना हो। सच पूछो तो तुम्हारी राहों में अड़चने आम जनता नहीं खड़ी करती, बल्कि रसूख वाले लोग खड़े करते हैं, जैसे कि मीनाक्षी शर्मा, जैसे कि संजीव चौहान, जैसे कि निरंजन राजपूत, तुम लोग चाहकर भी उनसे उस तरह से पेश नहीं आ सकते जैसे कि निचले तबके के लोगों के साथ अक्सर आते दिखाई देते हो।”
“बोल चुका?”
“नहीं अभी बाकी है” - कहकर उसने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा फिर धुंआ उगलता हुआ बोला – “अभी अगर ये घटना किसी मामूली सी कॉलोनी में घटित हुई होती, तो मरने वाली का पूरा परिवार हाथ बांधे तुम्हारे सामने थाने में खड़ा होता, तब तुम्हें पैराफिन टेस्ट की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि जो नतीजा उस टेस्ट के जरिये हासिल होना है वह तुम लात-घूंसों के बल पर बड़ी आसानी से हासिल कर लेते। और बात सिर्फ फौजदारी की ही नहीं है, हर तरफ यही आलम है। ट्रैफिक पुलिस की ही ले लो, एक मर्सिडीज बेशक रेड लाइट जम्प कर के निकल जाये उसे रोकने की उनकी मजाल नहीं हो सकती, मगर किसी छोटी मोटी कार या फिर बाइक के आगे यूं कूद पड़ते हैं कि चालक का जरा सा ध्यान भटक जाये तो वह उसे ठोक ही बैठे। ऐसे में आम जनता क्यों ना सोचने पर मजबूर हो जाये कि कानून सबके लिये बराबर नहीं होता।”


मैं तुम्हारी बातों को काटने की कोशिश नहीं करूंगा, मगर इतना जरूर कहूंगा कि जिस दिन इंस्पेक्टर सतपाल सिंह तुम्हें किसी मजलूम पर जुल्म ढाता दिखाई दे जाये उसी रोज इसे गोली मार देना।”
“शर्म तो आती नहीं है गैरकानूनी सलाह देते हुए, किसी के जुर्म की सजा देने वाला मैं कौन होता हूं, वह काम कानून का है, अलबत्ता ऐसा दिखाई देने पर मैं तुम्हारी वर्दी उतरवाये बिना तो चैन से नहीं बैठने वाला।”
“मुझे मालूम है भाई, चल अब कुछ काम करते हैं।”
दोनों हॉल में पहुंचे।
“इंस्पेक्टर साहब” - मीनाक्षी बोली – “यहां यूं मजमा लगाने का क्या मतलब है?”
“क्यों आप नहीं चाहतीं कि आपकी बहू का हत्यारा पकड़ा जाये, आपके बेटे के कातिल को उसके कुकर्मों की सजा मिले।”
“बेशक चाहती हूं, मगर हत्यारा क्या अभी तक यहां बैठा होगा?”
“तो फिर हमें अपना काम करने दीजिये” -सतपाल उसके सवाल को नजरअंदाज कर के बोला – “हम सामने वाले कमरे में जा रहे हैं सबसे पहले घर के नौकरों को एक-एक कर के वहां भेजिये, उसके बाद बाकी लोगों का बयान होगा।”
कहकर वह जवाब की प्रतीक्षा किये बिना प्रियम के कमरे में जा घुसा और वहां मौजूद इकलौती कुर्सी खींचकर बैठ गया, पनौती ने वैसी कोई कोशिश नहीं की। एक एक कर के चार नौकर वहां आये और चले गये, उनसे कोई काम की बात मालूम नहीं पड़ी क्योंकि हत्या के वक्त उनमें से कोई भी हॉल में नहीं था।
तत्पश्चात डॉली ने भीतर कदम रखा।
“बैठो” - सतपाल बेड की तरफ इशारा कर के बोला।
वह पलंग पर पैर लटका कर बैठ गयी।
“कुछ जान पायीं?”
“खास कुछ नहीं, सिवाय इसके कि भुवनेश की अपनी बहन के साथ कोई अनबन थी।”
“कैसी अनबन?”
“मालूम नहीं, मैने तो बस दोनों के व्यवहार से ऐसा महसूस किया था।”
“कत्ल के वक्त वह कहां था?”
“पहले पता तो चले कि कत्ल हुआ कितने बजे?”
“तुम्हारे मिस्टर राइट का अंदाजा है, कि ठीक नौ बजे कल्पना को छत से नीचे फेंका गया था, समझ लो उससे कुछ मिनट पहले उसका गला घोंटा गया होगा।”
“वह कहां था ये बता पाना मुश्किल है, मगर साढ़े आठ बजे के बाद मैंने उसे कमरे से बाहर निकलते नहीं देखा था। लेकिन मैं हर वक्त हॉल में नहीं थी इसलिए इस बात की गारंटी नहीं कर सकती।”
“और मीनाक्षी के बारे में क्या कहती हो?”
“जो कहना है बाद में कहूंगी, पहले राज मुझे ये बताये कि उसके बेडरूम में क्या कर रहा था?”
“वह मुझे अपना कमरा दिखाने के लिये ले कर गई थी।” पनौती बोला।
“क्यों तुमने क्या कभी किसी विधवा औरत का कमरा नहीं देखा था?”
“अरे चला भी गया तो क्या आफत आ गई?”
“ये मैं बताऊं तुम्हें, या तुम समझते हो कि हॉल में मुंह से मुंह सटाकर तुम उसके साथ जो मीठी मीठी बातें कर रहे थे, उसका मुझे अंदाजा नहीं है।”
“है तो है, तुम्हें जो समझना हो समझो।”
“मैं आंटी को बताऊंगी इस बारे में।”
“खबरदार जो मम्मी से एक लफ्ज भी कहा।”
“कहूंगी क्या कर लोगे?”
“डॉली! डॉली!” - सतपाल उसे टोकता हुआ बोला – “इस बारे में तुम दोनों बाद में लड़ सकते हो, इसलिए मुद्दे पर आओ, वरना किसी को तुमपर शक हो सकता है।”
“मीनाक्षी” - वह मुंह फुलाकर बोली – “नौ बजे के करीब हॉल में दिखाई दी थी मुझे, उसके दिखने के थोड़़ी ही देर बाद ये भागता हुआ सीढियां उतर कर हॉल से बाहर निकल गया था। अगर इसने वहां किसी को पड़ा देख भी लिया था तो यूं गोली की तरह भागने की इसे क्या जरूरत थी, लाश उठकर कहीं भाग जाती? आराम से चलकर नहीं जा सकता था?”
“मुझे लगा था कि वहां तुम पड़ी हुई हो, तभी मैं घबराकर भागा था।”
“सुन लीजिये इंस्पेक्टर साहब, अब ये मेरी मौत की कामना भी करने लगा है। शादी से पहले ही इसे मैं लाश बनी दिखने लगी हूं, बाद में तो जरूर ये अपने हाथों से मेरा गला घोंट देगा।”
“पागलों जैसी बात मत करो, तुम सचमुच यहां की नौकरानी नहीं हो, जिसे नीचे गिरा समझकर मैं धैर्य से काम लेता।”
“ओह तो तुम्हें मेरी परवाह भी है।”
“नहीं बिल्कुल भी नहीं है, मैं तो ये सोचकर डर गया था कि तुम्हें यहां नौकरी पकड़ने के लिये मैंने कहा था, इसलिए तुम्हारी सलामती की जिम्मेदारी मुझपर थी, तभी मैं घबराकर दौड़ पड़ा था।”
“या इसलिये दौड़े थे कि अगर जिंदा बच गई होऊं तो बाकी की कसर तुम अपने हाथों से पूरी कर दो।”
“ऐसा करो” - सतपाल बोला – “तुम दोनों बाहर चले जाओ, जब तुम्हारी बक-बक बंद हो जाये तो वापिस आ जाना।”
“मैं कुछ नहीं बोल रही।”
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“मुझे इससे कोई बात नहीं करनी।” वह खिन्न भाव से बोला।
“गुड! तो अब ये बताओ कि राज के दिखाई देने से कितना पहले तुमने मीनाक्षी को हॉल में देखा था।”
“एक मिनट! बड़ी हद डेढ़ इससे ज्यादा नहीं हो सकता।”
“और कुछ दिखाई दिया तुम्हें?”
“दिन में वकील साहब का एक फेरा लगा था यहां, मगर आधे घंटे में वापिस लौट गये थे।”
“अनुराग कहां था तब?”
“तीन बजे तक यहीं था, उसके बाद ऑफिस के लिये निकल गया था।”
“वकील साहब के अलावा कोई आया गया?”
“नहीं और तो कोई नहीं आया।”
“अनुराग के आने के बाद जब मैं और राज छत पर चले गये थे, तब क्या हमारे पीछे-पीछे मीनाक्षी या अनुराग में से कोई वहां से गायब दिखाई दिया था?”
“अनुराग का पता नहीं मगर मीनाक्षी हर घड़ी वहीं थी, दरअसल उस वक्त मेरा सारा ध्यान लाश की तरफ था, जबकि अनुराग मेरे पीछे कहीं खड़ा था, इसलिए उसपर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।”
“कभी तो नजर पड़ी ही होगी तुम्हारी?”
“हां पड़ी थी मगर तब तक आप लोग वापिस लौट आये थे।”
“वकील साहब यहां कब पहुंचे थे?”
“आप दोनों के जाने के करीब दस-बारह मिनट बाद।”
“और संजीव चौहान?”
“वह भी वकील के पीछे पीछे ही यहां पहुंच गया था।”
“संजीव को तुम पहले से जानती हो?”
“हां।”
पनौती के कान खड़े हो गये।
“कैसे जानती हो?”
“वैसे ही जैसे कि कोमल या प्रियम को जानती हूं, संजीव भी हमारे कॉलेज में ही था।”
“कैसा लड़का है?”
“अच्छा है, कोमल के साथ बहुत अच्छी बनती थी उसकी।”
“दोनों के बीच कोई प्यार मोहब्बत वाला रिश्ता तो नहीं था?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं था, होता तो वह प्रियम से शादी क्यों करती? जबकि संजीव हर हाल में उससे ज्यादा योग्य था?”
“क्या पता उसकी चाहत एकतरफा रही हो।”
“ये हो सकता है, क्योंकि वह अक्सर कोमल के आगे-पीछे मंडराता दिखाई दे जाता था। जैसे कि चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं, या चलो कैंटीन में कुछ खाते हैं चलकर, वगैरह वगैरह बहाने निकाल ही लेता था।”
“कोमल या प्रियम को ऐतराज नहीं होता था?”
 
Well-known member
1,170
1,352
143
नहीं, क्योंकि कोमल उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझती थी और प्रियम का तो था ही वह लंगोटिया यार।”

“और कोई खास बात जो तुम बताना चाहो।”

“नहीं ऐसा कुछ नहीं है, मुझे कब तक इनकी नौकरी करनी होगी?”

“बस कल भर और कर लो, लेकिन यह पूरी तरह तुम्हारी मर्जी पर मुनहसर है, चाहो तो आज के बाद वापिस मत लौटना।”

“कल तक मैं मैनेज कर लूंगी।”

“अभी आधा घंटा में हम लोग यहां से लौटेंगे, और थोड़ी दूर जाकर तुम्हारा इंतजार कर लेंगे। फिर तुम्हें घर तक छोड़ देंगे, वैसे अपने पेरेंट्स को तुमने क्या बता रखा है?”

“यही कि मैं राज के साथ हूं।”

“हे भगवान” - पनौती हैरानी से बोला – “क्या सोच रहे होंगे वे लोग मेरे बारे में?”

“कुछ नहीं सोच रहे होंगे” - डॉली चिढ़कर बोली – “सारी दुनिया तुम्हारी तरह अठारहवीं शताब्दी में नहीं जीती। फिर और क्या कहती मैं उनसे, क्या उन्हें सच्चाई बता देती, फिर तो जरूर आने देते मुझे।”

पनौती से जवाब देते नहीं बना।

“ठीक है तुम बाहर जाओ और कल्पना के भाई को भीतर भेज दो, अभी तक एक बार भी उससे बातरतीब पूछताछ नहीं हो पाई है।”

स्वीकृति में गर्दन हिलाती वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी।

फौरन बाद भुवनेश कमरे में दाखिल हुआ।

“बैठ जाइए।” सतपाल बोला।

कमरे में मौजूद इकलौती कुर्सी वह खुद कब्जाये बैठा था ऐसे में बेड के सिवाय दूसरी कोई जगह नहीं थी बैठने की। भुवनेश बेड पर बैठ गया।

“हमें आपकी बहन की मौत का अफसोस है।”

“होना ही चाहिये।”

“कोई वजह बयान कर सकते हैं?”

“जी नहीं, मेरी निगाहों में ऐसी कोई बात नहीं थी जो उसके कत्ल की वजह बन जाती।”

“कत्ल नौ बजे किया गया था, आप उस वक्त कहां थे?”

“आप मुझपर शक कर रहे हैं?” वह हैरानी से बोला।

“रूटीन के सवाल हैं जो हम सबसे पूछ रहे हैं, इसलिए कोई खास मतलब निकालने की कोशिश किये बिना जवाब दीजिए।”

“अपने कमरे में था, जो कि इस कमरे के ऐन बगल वाला कमरा है।”

“बहन की मौत की खबर कब लगी आपको?”

“काफी देर बाद, जब एक नौकर ने आकर मुझे बताया कि किसी ने कल्पना को उसके कमरे से नीचे धकेल दिया है।”

“उसके बाद आपने क्या किया?”

“करना क्या था, दौड़ता हुआ बिल्डिंग के पीछे पहुंचा, जहां आपके साथी और मीनाक्षी आंटी के अलावा घर के नौकर चाकर जमा हो चुके थे।”

“कल्पना और उसके पति में कैसी बनती थी?”

“ठीक ठाक, कभी कोई लड़ाई-झगड़े की बात सामने नहीं आई थी।”

“जबकि अनुराग का कहना है कि मां ना बन पाने की वजह से दोनों पति पत्नी में थोड़ी दूरी सी बन गई थी।”

“गलत कहता है वह! जबकि उल्टा कल्पना चाहती थी कि अनुराग दूसरी शादी कर ले, ताकि उसे बाप बनने का गौरव हासिल हो सके।”

“अनुराग तैयार हो गया दूसरी शादी के लिये?”

“शुरू में तो नहीं हुआ था, मगर एक रोज कल्पना ने साफ-साफ उसे कह दिया कि अगर वह उसकी वजह से शादी नहीं करना चाहता तो वह अपनी जान दे देगी ताकि उसके रास्ते की रूकावट दूर हो जाये। वह बात कल्पना ने मेरे सामने उससे इतने संजीदा लहजे में कही थी, कि हम दोनों ही उस बात को हल्के में नहीं ले सके। उसके बाद अनुराग ने उसे आश्वासन दिया था कि वह जल्दी ही दूसरी शादी के लिये लड़की की तलाश करना शुरू कर देगा। मगर अब तो वह बात ही खत्म हो गई। अनुराग दूसरी शादी करे या ना करे अब क्या फर्क पड़ता है।”कहीं ऐसा तो नहीं था कि औलाद का मुंह ना देख पाने के कारण वह खुद दूसरी शादी के लिये लालायित हो उठा हो।”

“मुझे तो नहीं लगता, असल बात तो उसे ही पता होगी, किसी के मन में क्या चल रहा है कोई दूसरा कैसे बता सकता है?”

“इस सवाल के पीछे मेरा मकसद कुछ और था, मैं ये जानना चाहता हूं क्या दूसरी शादी की खातिर अनुराग ने बीवी को रास्ते से हटाया हो सकता है?”

“जबकि मैं अभी अभी आपको बता कर हटा हूं कि कल्पना खुद चाहती थी कि वह फिर से ब्याह रचा ले।”

“भई कई बार औरतें ऐसी बातें जज्बात की रौ में या फिर खुद को कसूरवार मानने के कारण भी कह बैठती हैं, इसका मतलब ये नहीं होता कि वह सचमुच वैसा ही चाहती हैं।”

“कल्पना के साथ ऐसा नहीं था, वह बहुत सोच समझकर जुबान खोलने वालों में से थी, इसलिए उस रोज अनुराग से उसने जो कुछ भी कहा था यूं ही नहीं कह दिया हो सकता।”

“रात के नौ बजे आपकी बहन छत पर क्या कर रही थी?”

“वॉक के लिये गई थी।”

“आपको कैसे पता?”

“वह उसका रोज का काम था, ठीक नौ बजे वह छत पर पहुंच जाती थी और घंटों वहां टहलती रहती थी, अक्सर अनुराग भी उसके साथ होता था।”

“बाहर लॉन में क्यों नहीं?”

“भई घर उनका था, मर्जी उनकी थी, छत पर टहलने में कोई पाबंदी तो थी नहीं, जो वे दोनों ये सोचते कि उन्हें छत की बजाये लॉन में टहलना चाहिये।”

“रात के वक्त लोग-बाग डिनर के बाद ही टहलने निकलते हैं, जबकि मुझे लगता कि वह खाना खाने से पहले ही छत पर पहुंच गई थी, इस बात का कोई जवाब दे सकते हैं।”

“जवाब वही पहले वाला ही है, अनुराग जिस रोज जल्दी घर आ जाता था उस रोज कल्पना डिनर के बाद टहलने जाती थी, मगर जाती ऐन नौ बजे ही थी, ना पहले ना उसके बाद में, शायद ही कभी उस काम में उससे नागा हुआ हो।”

“यानि घर के सभी लोग जानते थे कि रात नौ बजे कल्पना ने छत पर होना था?”

“घर के ही क्यों, बाहर वालों को भी पता था, ऐसे लोगों को जिनका यहां रेग्युलर आना-जाना होता है।”

“जैसे कि, नाम लीजिए ऐसे लोगों का।”

“एक तो वकील साहब ही हैं, दूसरा संजीव चौहान, इसके अलावा कुछ रिश्तेदार वगैरह भी होंगे जिन्हें कल्पना की रूटीन के बारे में पता हो सकता है। जैसे कि मैं।”

“आपके यहां आमद की वजह जान सकता हूं।”

“बहन से मिलने ही आया था, मगर साथ ही कुछ फाईनेंशियल जरूरतें भी थीं जिनको अनुराग के जरिये पूरी करना चाहता था।”

“अनुराग के जरिये या बहन के जरिये अनुराग से?”

“नहीं अनुराग से, कल्पना से बोलता तो वह साफ मना कर देती, उसकी नाक बहुत ऊंची थी, वह हरगिज भी इस बात के लिये राजी नहीं होती कि मैं उसके पति के आगे हाथ फैलाऊं।”पति को बताये बिना भी तो वह आपकी जरूरत पूरी कर सकती थी।”

“नहीं कर सकती थी, क्योंकि मेरी जरूरत बहुत बड़ी थी।”

“कितनी बड़ी?”

“दो करोड़ रूपयों की जरूरत थी मुझे।”

“लिहाजा कोई बड़ा काम करने जा रहे होंगे?”

“हां हिसार में एक फैक्ट्री डाल रहा हूं, उसी सिलसिले में करीब दो करोड़ रूपयों की आवश्यकता थी।”

“यानि लगना उससे कहीं ज्यादा था?”

“जी हां दस करोड़ का खर्चा था जिसमें से आठ मेरे पास थे, दो मैं अनुराग से हासिल होने की उम्मीद कर रहा था, वह मना करता तो फिर लोन लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था मेरे पास।”

“बात हुई थी उस बाबत आपकी अनुराग से?”

“जी हां, वह तैयार भी हो गया था।”

“फैक्ट्री तो आप अभी डालेंगे, उससे पहले भी तो कुछ करते होंगे?”

“बेशक करता हूं, पापा के पास एचएनवी ग्लास की डीलरशिप है, उसी कारोबार में हम भी उनका हाथ बटातें हैं।”

“हम में और कौन शामिल है?”

“मेरा छोटा भाई अखिल।”

“कल या आज दिन में किसी वक्त आपने बंगले से बाहर कदम रखा था?”

“नहीं, बल्कि जिस दिन से मैं यहां पहुंचा हूं, उसी रोज से मैं यहां से बाहर कहीं नहीं गया।”

“ठीक है भुवनेश जी अब आप जा सकते हैं, बाहर पहुंच कर अपने बहनोई को भेज दीजियेगा।”

“ओके।” वह कमरे से बाहर निकल गया।

“क्या कहते हो शर्मा साहब, ये शख्स अपनी बहन का कातिल हो सकता है?”

“तुम क्या कहते हो, क्या अमेरिका चीन के हाथों हारने के बाद जापान को अपने कब्जे में लेकर, इटली से युद्ध करेगा, जिसमें भारत के हाथों उसे करारी हार का सामना करना पड़ेगा?”

“इसका क्या मतलब हुआ?”

“कोई मतलब नहीं हुआ, इसी तरह तुम्हारा सवाल भी फिलहाल बेतुका है।”
सतपाल ने घूरकर उसे देखा।

“जैसे मैं तुम्हारी छोटी-छोटी आंखों से डर ही जाऊंगा।”

सतपाल की हंसी छूट गई।
तभी अनुराग शर्मा कमरे में दाखिल हुआ और सतपाल के इशारे पर बेड पर बैठ गया।
“कुछ बाकी रह गया है पूछने को?”

“जी हां” -सतपाल सख्त लहजे में बोला – “अभी बहुत कुछ बाकी है।”

अनुराग ने लंबी आह भरी फिर बोला, ‘‘पूछो क्या जानना चाहते हो?‘‘

“आपने बताया था कि मकतूला ने आपको धमकी दी थी कि अगर आपने दूसरी शादी नहीं की तो वह अपनी जान दे देगी।”

“ठीक बताया था।”

“मगर ये नहीं बताया कि उस धमकी से डरकर आपने उसकी बात मान भी ली थी।”

“मान कर क्या किया मैंने, दोबारा शादी कर ली?” अनुराग झल्लाकर बोला।

“नहीं मगर आपने ऐसा कहा तो था उससे।”

“और क्या करता, कह देता कि तुझे मरना है तो मर जा मैं दूसरी शादी नहीं करने वाला। फिर दो शादियां करना क्या आपको हंसी मजाक लगता है, या आप ये समझते हैं कि कोई औरत औलाद की चाह में ही सही पति को दूसरी शादी करता देखकर खुश होगी, या खुश रह सकती है?”

सतपाल के मुंह पर ढक्कन लग गया।
“आज आप ऑफिस के लिये घर से कितने बजे निकले थे?” वार्तालाप का सूत्र अपने हाथों में लेता हुआ अब तक खामोश बैठा पनौती अचानक ही बोल पड़ा।

“साढ़े तीन बजे।”

“रास्ते में कहीं रूके थे आप?”

“पेट्रोल भरवाने के लिये रूका था।”

“कहां पर?”

“बाटा चौक से थोड़ा पहले।”

“पेट्रोल पंप का नाम याद है आपको?”

“नहीं, बल्कि आज ही क्या मैंने तो जीवन में कभी किसी पेट्रोल पंप का नाम पढ़ने की कोशिश नहीं की, सच पूछिये तो कभी लिखा हुआ भी नहीं देखा।”

“ये तो याद होगा कि कितना पेट्रोल भरवाया था आपने?”

“सत्तरह लीटर से थोड़ा ज्यादा था।”

“राउंड फीगर में क्यों नहीं?”

“क्योंकि मैंने उससे कहा था कि ऑटो कट लगने तक पेट्रोल डालता रहे, वह कट उतने पर ही लगा था।”

“आपने बिल लिया था?”

“नहीं, अपनी ही गाड़ी में पेट्रोल भरवाने का बिल लेने की मुझे क्या जरूरत थी?”

“लोग-बाग रिटर्न फाइल करने के लिये भी बिल ले लेते हैं।”

“मैंने नहीं लिया था।”

“ऑफिस कितने बजे पहुंचे थे आप?”

“चार बजे।”

“आगे का पूरा दिन आपने ऑफिस में ही गुजारा था?”

“हां गुजारा था, पहले भी बता चुका हूं, यकीन नहीं आता तो वहां जाकर दरयाफ्त कर लो।”

“आपकी धर्मपत्नी की मौत की खबर आपको किसने दी थी?”भुवनेश ने, लेकिन तब उसने सिर्फ इतना बताया था कि कल्पना का एक्सीडेंट हो गया है।”

“कितने बजे?”

“सवा नौ के करीब।”

“तब आप ऑफिस में ही थे?”

“नहीं ऑन रोड था, घर लौट रहा था।”

“ऑफिस से सीधा यहां पहुंचे थे?”

“हां।”

“पत्नी के कत्ल की कोई वजह सुझा सकते हैं?”

“नहीं पहले भी कहा था।”

“बेशक कहा होगा, मगर वक्त हासिल होने पर कुछ भूली बिसरी बातें अक्सर याद आ जाती हैं, इसलिए मैंने सोचा क्या पता अब आपका जवाब कुछ और हो?”

“ऐसा नहीं है।”

“ठीक है अनुराग साहब अब आप जा सकते हैं, मीनाक्षी जी को भीतर भेज दीजियेगा।”

उठकर वह भारी कदमों से कमरे से बाहर निकल गया।

“अजीब परिवार है” - सतपाल बोला – “घर में दो लोग जान से जा चुके हैं, मगर किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखाई देती। यूं लगता है जैसे घर के लोगों के मरने जीने से यहां किसी को फर्क ही ना पड़ता हो।”कुछ लोगों की आदत होती है सतपाल साहब, दूसरों के सामने अपना दुःख नहीं प्रकट करते, तुम इस परिवार के कुल जमा दो लोगों को वैसे ही मिजाज का समझ सकते हो।”

मीनाक्षी भीतर पहुंची।

“बैठ जाइये।”

वह बैठ गई।

“अब बताइये कल्पना की हत्या क्यों की गई?”

“मुझे नहीं मालूम, पता होता तो अब तक बता चुकी होती।”

“कोई अंदाजा ही बयान कर दीजिये।”

“वह काम मैं पहले ही कर के दिखा चुकी हूं।”

“आपका इशारा राज की तरफ है?”

“बिल्कुल है, इस शख्स के अलावा उस वक्त यहां कोई नहीं था, जिसपर कल्पना की हत्या का शक किया जा सके।”

“जबकि इसके पास उसके कत्ल की कोई वजह नहीं थी, ये बात आप खुद भी बखूबी जानती हैं।”
“क्या पता रही हो, मुझे पता चला है कि यह खुद भी उसी कॉलेज में पढ़ाई कर चुका है जहां से कल्पना ने बीकॉम किया था।”

सतपाल ने हकबकाकर पनौती की तरफ देखा, जो यूं शांत खड़ा मुस्करा रहा था जैसे वहां होते वार्तालाप से उसका कोई लेना-देना ही ना हो।

“आपको कैसे पता?” सतपाल ने पूछा।

“पता है किसी तरह, सारी जासूसी क्या तुम लोगों को ही आती है?”

“कॉलेज में एक साथ पढ़ाई करने का मतलब ये तो नहीं होता कि आगे चलकर कोई अपने सहपाठी का कत्ल कर दे।”

“चल रहा होगा दोनों के बीच कोई चक्कर! ऐसे में जब कल्पना ने अनुराग से ब्याह रचा लिया तो इससे बर्दाश्त नहीं हुआ, यही वजह थी कि यह मेरे एक बुलावे पर रात के वक्त यहां ना सिर्फ पहुंच गया बल्कि मुझसे इसरार किया कि मैं चलकर इसे अपना बेडरूम दिखाऊं, उस वक्त मैं इसकी मंशा नहीं भांप पाई। सच पूछो तो तब भी नहीं समझ सकी जब मेरे कमरे में पहुंचने के बाद इसने मुझसे कहा कि नीचे से कोई मुझे आवाज लगा रहा है। इसकी बात पर यकीन कर के मैं नीचे आ गई। मगर वहां कोई नहीं था, तब मैंने गेट से बाहर झांककर भी देखा मगर कोई होता तब तो दिखाई देता।”

“ऐसा क्यों किया इसने?”

“जाहिर है छत पर पहुंचकर कल्पना की हत्या करने का वक्त हासिल करने के लिये।”

“इतने कम समय में?”

“ये कर सकता था, छत पर पहुंचने में इसे मिनट भर भी नहीं लगना था, हट्टा-कट्टा है इसलिए वहां पहुंचकर इसने फौरन कल्पना पर काबू पा लिया होगा, लिहाजा तीन से चार मिनट में ये दोबारा मेरे कमरे में पहुंच गया होगा, वहां जाने की भी क्या जरूरत थी इसे, ये तो मुझे बस सीढ़ियों की तरफ दौड़ता दिखाई दिया था।”

“लिहाजा बहू से कोई लगाव नहीं था आपको? होता तो उसके मरने के बाद यूं उसके चरित्र पर कीचड़ न उछाल रही होतीं।”

“उसके चरित्र को दागदार होने से बचाने के लिये क्या करूं, कातिल को छुट्टा घूमने दूं?”

“नहीं ऐसी राय तो मैं आपको नहीं दूंगा, तो आप इसके खिलाफ कंप्लेन लिखवाना चाहती हैं?”

“फिलहाल नहीं, अभी तो मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम मेरी बात को ध्यान में रखते हुए इस केस की तफ्तीश करो, अगर कल्पना के साथ इसका कोई पुराना रिश्ता निकल आता है, तो बेशक मैं इसके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवाऊंगी। मगर एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर इसके साथ अपने दोस्ताना संबंधों के चलते तुमने केस में कोई हेर-फेर करने की कोशिश की तो पछताओगे।”

“आप मुझे धमकी दे रही हैं?”

“इसका फेवर कर के देखना, तुम्हारी सवाल का जवाब खुद ब खुद मिल जायेगा।” कहकर वह उठी और कदमों तले फर्श को रौंदती हुई कमरे से बाहर निकल गयी।

सतपाल ने पनौती की तरफ देखा फिर बोला, “तो यहां पहुंचने की असल वजह मीनाक्षी नहीं थी, बल्कि कल्पना से बेवफाई का बदला लेना था?”तुम्हें उसकी बातों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये, बतौर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर मामले की गहराई से जांच करनी चाहिये, यही तुम्हारा फर्ज है।”

“खामख्वाह! कोई किसी को भी कातिल करार दे दे, मैं उसके पीछे दौड़ लगाता फिरूं?”

“अपराधों की गुत्थी यूं ही सॉल्व होती है इंस्पेक्टर साहब, इसलिए कल सबसे पहले तुम कल्पना की बैक ग्राउंड टटोलने की ही कोशिश करना, सच पूछो तो मीनाक्षी की बातों ने एक नई संभावना को जन्म दे दिया है, जिसे खारिज करना ठीक नहीं होगा।”

“धन्य है भाई तू, तेरे जैसा इंसान मैंने आज तक नहीं देखा।” कहकर उसने बाहर मौजूद किसी पुलिसवाले को फोन कर के कहा कि वह एडवोकेट यादव को भीतर भेज दे।थोड़ी देर बाद ब्रजेश यादव ने कमरे में कदम रखा।

“बैठिये वकील साहब।”
वह बैठ गया।

“आप कैसे पहुंच गये यहां?”

“कत्ल की खबर सुनकर तो नहीं आया था।”

“कोई और वजह ही बयान कर दीजिये।”

“कोई वजह नहीं थी, मैं अक्सर इस तरह के फेरे यहां लगाता रहता हूं, आज भी वैसा ही हुआ था।”

“पहुंचे कितने बजे थे आप?”

“साढ़े नौ के करीब।”

“सीधा बंगले के पीछे चले गये थे?”

“नहीं पहले हॉल में गया था, वहीं एक नौकर ने बताया कि यहां क्या घटित हो गया था, सुनकर मैं एकदम से सन्न रह गया।”

“क्या लगता है आपको, कत्ल की वजह क्या रही हो सकती है?”

“कहना मुश्किल है इंस्पेक्टर साहब, सच पूछिये तो कुछ सूझता ही नहीं है।”

“बतौर वकील इतना तो बता ही सकते हैं कि कल्पना की मौत से सबसे ज्यादा फायदा किसे पहुंचेगा?”

“किसी को नहीं, क्योंकि खास उसके नाम से यहां कुछ नहीं रखा, इसलिए इतना तो यकीन जानिये कि कत्ल दौलत हासिल करने की खातिर नहीं किया गया है।”

“फिर क्यों किया गया?”

“क्या पता? मगर एक दूर की बात दिमाग में आ रही है, आप सुनेंगे तो हंस पड़ेंगे, मगर बात मन में आ ही गई है तो सोच रहा हूं आपको बता ही दूं।”

“बहुत अच्छा करेंगे, बताइये क्या चल रहा है आपके दिमाग में?”

“क्या ऐसा हो सकता है कि कुछ दिनों पहले हुई प्रियम की हत्या कल्पना का ही कारनामा रही हो?”

“होने को कुछ भी हो सकता है मगर सवाल ये है कि अगर देवर की हत्या उसने की थी तो उसका कत्ल क्योंकर हो गया?”

“जवाब इतना मुश्किल तो नहीं है इंस्पेक्टर साहब, जो आप समझ ना सकें?”

सतपाल ने चौंककर उसकी तरफ देखा, “आपका मतलब है” - वह यादव को घूरता हुआ बोला – “कल्पना को मीनाक्षी ने मारा है? बेटे की मौत का बदला लेने के लिये?”

“क्या ऐसा नहीं हो सकता?”

“हो सकता है मगर इस बात पर तब तक यकीन नहीं किया जा सकता जब तक की कोई ऐसी वजह ना सामने आ जाये, जो ये साबित करती हो कि प्रियम शर्मा का कत्ल उसकी भाभी कल्पना ने किया था। आप सुझा सकते हैं कोई वजह?”

“इत्तेफाक से मेरा जवाब हां में है।”

“ये तो बहुत अच्छी खबर है, बताइये क्या वजह रही होगी कल्पना के पास प्रियम की हत्या की?”

“वजह थी बेवफाई।”

“मैं समझा नहीं।”

“देवर भाभी के बीच बहुत पहले से चक्कर चला आ रहा था। मुझे ये भी पता चला है कि जब प्रियम की कोमल के साथ शादी की बात चल रही थी तो उसके और कल्पना के बीच बड़ी तीखी नोंक-झोंक हुई थी। वह बहस बाजी इतनी बढ़ गई कि प्रियम ने कल्पना को थप्पड़ तक मार दिया था।”

“आप का मतलब है” - सतपाल भौंचक्का सा उसकी सूरत देखता हुआ बोला – “कल्पना नहीं चाहती थी कि प्रियम कोमल के साथ शादी करे?”

“वह नहीं चाहती थी कि प्रियम किसी के भी साथ शादी करे, मगर उसकी मुराद पूरी नहीं हुई। ऐसे में जब तक कोमल ने ससुराल में कदम नहीं रखा था तब तक तो सबकुछ ठीक चल रहा था, मगर एक बार जब वह इस घर में आ गई तो प्रियम ने कल्पना के साथ वक्त गुजारना एकदम बंद कर दिया। ऐसे में ईर्ष्या और खुंदक की मारी कल्पना ने अगर प्रियम को गोली मार दी हो तो क्या बड़ी बात है?”कोई बड़ी बात नहीं है, हैरानी है कि ये बात आपने पहले नहीं बतायी।”

“तब तक मैंने केस को इस ऐंगल से देखा ही नहीं था, असल माजरा तो मुझे आज कल्पना की मौत के बाद ही समझ में आया।”

“जिसे मीनाक्षी ने बेटे की मौत का बदला लेने की खातिर मौत के घाट उतार दिया?”

“ऐसा हुआ हो सकता है, वह कहती है कि उसका कत्ल आपके साथी ने किया है, मगर मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि इनके पास कल्पना के कत्ल की कोई वजह दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। अब अगर इनको नजरअंदाज कर के देखें तो घर में उस घड़ी और बचता ही कौन है जिसका कल्पना के कत्ल से कोई लेना देना हो सकता है।”

“क्यों भुवनेश भी तो मौजूद था यहां?”

“बेशक था मगर बहन की हत्या भला वह क्यों करेगा?”

“फिर तो मीनाक्षी ही बचती है, मगर हैरानी की बात ये है कि आप इस वक्त आप उसके खिलाफ बोल रहे हैं, क्यों बोल रहे हैं ये बात मेरी समझ से परे है।”

“इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि मैं गेहूं के साथ घुन की तरह नहीं पिसना चाहता। मैं हरगिज नहीं चाहता कि कल को आप लोग मीनाक्षी के साथ मेरे संबंधों के चलते, कल्पना की हत्या को हम दोनों की मिली भगत मान बैठें।”

“आपकी साफगोई पसंद आई वकील साहब, अब इसी तरह जरा मेरे दूसरे सवालों का भी ईमानदारी भरा जवाब देकर दिखाइये।”

“पूछिये।”

“नौ बजे के करीब आप कहां थे?”

“ऑन रोड था, मगर ये साबित कर सकता हूं कि उस वक्त मैं किसी भी हाल में यहां मौजूद नहीं हो सकता था।”

“कीजिये।”
 
Well-known member
1,170
1,352
143
एक केस के सिलसिले में क्लाईंट से मिलने के लिए साढ़े आठ के करीब मैं बल्लभगढ़ स्थित उसके घर गया था। जहां मैं पूरे चालीस मिनट रूका था, इस बात की गवाही मेरा क्लाईंट ही दे देगा कि नौ बजकर दस मिनट पर मैं अभी बल्लभग़ढ़ में ही था। वहां से यहां पहुंचने में कम से कम भी पंद्रह मिनट तो लग ही जाने थे, पूरी सड़क भी खाली करा दो तो भी आठ से कम हरगिज नहीं लग सकते।”

“खैर आपके सच और झूठ का पता तो आपके मोबाइल नंबर की लोकेशन से भी बखूबी लगाया जा सकता है।”

“नहीं लगाया जा सकता।”

“क्यों?”

“क्योंकि मेरा मोबाइल आठ बजे के करीब बैटरी चार्ज ना होने की वजह से बंद हो गया था, जिसका पता मुझे क्लाईंट के घर पहुंचकर ही लगा, उसी ने मुझे बताया कि आठ बजे से वह मेरा नंबर ट्राई कर रहा था जो कि लगातार स्विच ऑफ जा रहा था।”

“आपने वहीं मोबाइल को चार्ज करने की कोशिश क्यों नहीं की, आखिर आप पूरे चालीस मिनट तक वहां रूके थे, उतनी देर में तो मोबाइल की बैटरी अच्छी खासी चार्ज हो जानी थी?”

“ये सोचकर नहीं किया कि कार में चार्ज कर लूंगा, मगर कार में बैठने के बाद फिर वह बात ध्यान से निकल गयी।”

“मोबाइल दिखा सकते हैं आप।”

“जी बेशक।” कहकर यादव ने जेब से अपना मोबाइल निकाल कर उसे थमा दिया।

सतपाल ने उसके ऑन ऑफ स्विच को पुश किया तो जल्दी ही स्क्रीन पर ‘सैमसंग’ फ्लैश होने लगा, मगर वैसा ज्यादा देर तक बना नहीं रहा, मोबाइल दोबारा ऑफ हो गया।

“क्लाइंट का पता और मोबाइल नंबर लिखकर मुझे अभी मैसेज कीजिये।”

वकील ने कमरे में इधर - उधर देखा तो स्विच बोर्ड से लटकता एक चार्जर दिखाई दे गया। वहां पहुंचकर उसने मोबाइल को चार्जर से कनेक्ट किया फिर मोबाइल ऑन कर के अपने क्लाइंट का नंबर और पता सतपाल को मैसेज कर दिया। जिसे सतपाल ने हाथ के हाथ वीर सिंह को फारवर्ड करते हुए लिखा, ‘सर इमिडियेटली फाईंड आउट, ऐट व्हाट टाइम एडवोकेट ब्रजेश यादव डिड रीच दिस एड्रेस ऐंड व्हैन डिड ही लीव?’

“आठ बजे से पहले आप कहां थे?” प्रत्यक्षतः उसने पूछा।

“अपने घर पर ही था।”

“और उससे पहले, मेरा मतलब है दिन में कहीं तो बाहर गये होंगे?”

“बाटा चौक तक गया था।”

“अनुराग से मिलने?”

“नहीं, वहां भी एक क्लाईंट से ही मिलने गया था।”

“उस दौरान क्या किसी पेट्रोल पम्प पर भी फेरा लगा था आपका?”

“हां वहीं चौक से थोड़ा पहले मथुरा रोड पर एक पेट्रोल पंप है जहां से मैंने अपनी कार में पेट्रोल भरवाया था।”

“बिल लिया था आपने?”

“हां लिया था, हमेशा लेता हूं।”

“इस वक्त वह पर्ची होगी आपके पास?”

“बेशक है।” कहकर उसने अपना पर्स निकाला और पर्ची ढूंढने लगा, पर्स में नहीं मिली तो दायें-बायें की दोनों जेबें टटोल डालीं, फिर निराश भाव से बोला, “लगता है कार में रह गई है।”

“कोई बात नहीं, ये बताइये कि पेट्रोल कितने का डलवाया था आपने?”

“हजार रूपये का।”

“पेट्रोल पम्प का नाम मालूम है आपको?”

“जी हां मैं हमेशा वहीं से पेट्रोल भरवाता हूं इसलिए मालूम है।”

“नाम बताइये।”

“नंबरदार फिलिंग स्टेशन के नाम से है।”

जवाब में सतपाल ने अपनी जेब से वह पर्ची निकाली जो कि उसे छत पर पड़ी मिली थी, “जरा देखिये तो कहीं ये आप वाली पर्ची ही तो नहीं है?”

“कैसे हो सकती है” - वह देखे बिना ही बोल पड़ा – “जबकि मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैंने पर्ची कहीं फेंकी नहीं थी, जहां से ये आपके हाथ लग जाती।”

“इसपर पेट्रोल पम्प का वही नाम छपा है जो अभी अभी आप बताकर हटे हैं और बिल की रकम भी एक हजार ही है।”

“जैसे हजार रूपये का पेट्रोल भरवाने वाला मैं कोई अकेला शख्स रहा होऊंगा।”

“आपकी खामख्वाह की हुज्जत मेरी समझ से परे है, इतनी बहस करने की बजाये आप इसे देख क्यों नहीं लेते?”

“इसलिए नहीं देख रहा इंस्पेक्टर साहब, क्योंकि आपकी बातों से मुझे किसी षड्यंत की बू आने लगी है। ये पेपर इतना चिकना है कि मेरे हाथ में लेते ही इसपर मेरे फिंगर प्रिंट बन जायेंगे, मैं नहीं चाहता कि बाद में उसी बात को मेरे खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की जाये।”हमारी आपसे कोई दुश्मनी है?”

“नहीं है, मगर आप लोग मेरे पीछे तो पड़े ही हुये हैं।”

“आपको ऐसा लगता है तो यही सही, जाइये जाकर पर्ची ढूंढ़ कर लाइये।”
यादव उठकर कमरे से बाहर निकल गया।

“कहीं ऐसा न हो सतपाल साहब कि बाद में ये शख्स तुम्हें ढूंढे ना मिले।” वकील के जाते ही पनौती बोल पड़ा।

“वकील है इतना तो जानता ही होगा कि फरार होना अपने आप में जुर्म का इकबाल करने जैसा ही होता है।”

“मैं कुछ और कहना चाहता हूं।”

“क्या?”

“मान लो ये कातिल है, ऐसे में छत पर तुम्हारे ऊपर गोली भी इसी ने चलाई होगी।”

“खास मेरे ऊपर?” उसने फिर से ऐतराज जताया।

“हम दोनों में से किसी के भी ऊपर।”

“अगर कातिल यही है तो बेशक चलाई होगी।”

“ऐसे में पर्ची वाली बात सुनकर क्या उसके कानों में खतरे की घंटी नहीं बजी होगी?”

“बजने दो हमारा क्या नुकसान है?”

“नुकसान तो कुछ नहीं है, मगर मैं सोच रहा था कि अगर गोली उसी ने चलाई है, कल्पना का कत्ल भी उसी ने किया है, तो उसके जिस्म से उतारे गये जेवर और पिस्तौल अभी भी उसके पास हो सकते हैं।”

“जेवर के बारे में तो खैर मैं कुछ नहीं कह सकता, मगर उसकी जेब में कोई पिस्तौल होती तो छिपाये नहीं छिप सकती थी।”

“वह दोनों चीजें उसने अपनी कार में क्यों नहीं रखी हो सकती हैं? जिसे खुद पर शक गहराता देखकर ठिकाने लगाने की पूरी पूरी कोशिश कर सकता है, जिसका मौका तुमने सहज ही उसे उपलब्ध करा दिया है।”

सतपाल सकपकाया, “काम की बात हमेशा घुमा फिराकर क्यों करता है तू?” कहकर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
सतपाल सकपकाया, “काम की बात हमेशा घुमा फिराकर क्यों करता है तू?” कहकर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।

पनौती ने उसके पीछे जाने की कोशिश नहीं की, आराम से खाली हुई कुर्सी पर पसरकर बैठ गया और सतपाल की वापसी का इंतजार करने लगा।

थोड़ी देर बाद वह यादव को साथ लिये कमरे में वापिस लौटा। उसने घूर कर पनौती की तरफ देखा, तो वह बड़े ही कुटिल भाव से मुस्करा उठा।

“कुर्सी खाली करूं?” उसके पूछने का ढंग ही ऐसा था जैसे कुर्सी से उठना न चाहता हो।

“नहीं बैठा रह।” सतपाल बोला।

“तो पर्ची मिल गयी?” पनौती ने पूछा।

“नहीं मिली” - कहकर उसने खा जाने वाली निगाहों से वकील की तरफ देखा – “अब क्या कहते हैं आप?”

“महज इसलिए आप मुझे कातिल करार नहीं दे सकते कि मुझसे एक पर्ची गुम हो गई है।”

“सिर्फ गुम नहीं हुई है वकील साहब, वह हमें इस बिल्डिंग की छत पर पड़ी मिली थी, जहां खड़े होकर आपने हम दोनों पर गोली चलाई थी।”

“यहां कोई गोली भी चली थी?” वह हैरानी से बोला।

“बेशक चली थी, इस तरह अंजान बन कर दिखाने से काम नहीं चलेगा, अब बताइये अगर आप आज की तारीख में बंगले की छत पर नहीं गये थे तो आपका पेट्रोल का बिल वहां कैसे पहुंच गया? जवाब ये सोचकर दीजियेगा कि आप थोड़ी देर पहले खुद ये दावा कर के हटे हैं कि आपने पर्ची कहीं फेंकी नहीं थी।”

“मैं अभी भी वही कह रहा हूं, इसलिए आपके पास मौजूद पर्ची मेरी वाली पर्ची नहीं हो सकती। अच्छा हुआ जो आप के बहकावे में आकर मैंने इसे हैंडल करने की कोशिश नहीं की वरना आपने तो मुझे जेल का रास्ता दिखा ही देना था।”

“वह तो हम अभी भी दिखा सकते हैं, मत भूलिये कि यह कत्ल की वारदात है, मैं जब चाहूं आपको अंदर कर सकता हूं। और कुछ नहीं तो पूछताछ पूरी होने तक तो यकीनन हिरासत में रख सकता हूं।”

“जो कि मेरे साथ ज्यादती होगी।”

“इस वक्त मुझे आपकी बात कबूल है, क्यों कि अभी बाहर मौजूद संजीव चौहान से हमारी बातचीत नहीं हो पाई है, तब तक बाहर जाकर बैठिये और अगले आदेश की प्रतीक्षा कीजिये। अगर गायब हुए तो समझ लीजिये आपकी खैर नहीं है।”

“मैं कहीं नहीं जा रहा, आप बेशक पूरी रात रोके रखिये मुझे।”

“गुड! बाहर पहुंचकर संजीव चौहान को भेज दीजियेगा।”

सहमति में सिर हिलाता यादव कमरे से बाहर निकल गया।

“खामख्वाह दौड़ा दिया मुझे।” सतपाल भुनभुनाया।

“मत दौड़ते, या दौड़ने से पहले इतना सोच लिया होता कि तुम्हारा पाला एक वकील से पड़ा था, जो इतना बड़ा बेवकूफ नहीं हो सकता कि गोली चलाने के बाद पिस्तौल अभी तक अपनी कार में रखे बैठा होगा।”
“तो फिर वैसी संभावना जताई ही क्यों तूने?”
“और क्या करता, जब से यहां पहुंचे हो कुर्सी पर पसरे हुए हो, जबकि खड़े खड़े मेरी टांगे अकड़ गई थीं।”
“जवाब नहीं भाई तेरा।”
“पहले भी कई बार कह चुके हो, अब तो यूं लगता है जैसे ये तुम्हारा तकिया कलाम ही बन गया हो।”
तभी संजीव चौहान ने कमरे में कदम रखा, “बेवजह लोगों को परेशान करना पुलिस की आदत बन गई जान पड़ती है।”
“हां।”
“क्या हां?”
“आदत बन गई है भाई” - सतपाल जिद भरे स्वर में बोला – “छूटती ही नहीं है, अब टिक कर बैठो ताकि इत्मीनान से हम वो काम कर सकें जिसके लिये तुम्हें यहां बुलाया गया है।”
“मैं आप लोगों की कंप्लेन भी कर सकता हूं।”
“जरूर करना, मैं तुमसे शिकायत करने नहीं आऊंगा। मगर इस वक्त वैसा कर पाना मुमकिन नहीं है इसलिये आराम से बैठ जाओ।”
संजीव ने और बहस नहीं की।
“कत्ल की खबर कैसे लगी तुम्हें?”
“नहीं लगी थी, मैं तो बस यूं ही चला आया था।”
“जब कि ना तो तुम्हारा लंगोटिया यार जिंदा है, ना ही गुटरगूं करने के लिये कोमल मौजूद है यहां?”


मैं घरवालों से मिलने आया था, ताकि किसी को ये ना लगे कि प्रियम की मौत के बाद मैंने इनसे रिश्ता ही तोड़ लिया था, या मुझे उसकी मौत का कोई अफसोस ही नहीं था।”
“बहुत अच्छा किया भाई” - पनौती बीच में टपक पड़ा – “सच पूछो तो हमें तुम्हारे जैसे ही किसी शख्स की तलाश थी जिसे इस घर के वाशिंदों की परवाह हो, दो जवान लोगों की मौत का अफसोस हो, अब बताओ कितने बजे पहुंचे थे यहां?”
“घड़ी नहीं देखी थी मगर जिस वक्त मैं मेन गेट से भीतर दाखिल हुआ था उसी वक्त मैंने आप दोनों को हॉल में घुसते देखा था, आगे टाइम का अंदाजा आप लोग खुद लगाइये।”
“कल्पना के साथ तुम्हारी कैसी बनती थी?”
“ठीक ठाक, कभी-कभार हमारी बातचीत भी हो जाया करती थी।”
“लिहाजा मिलनसार नहीं कहा जा सकता उसे?”
“ऐसा नहीं है, स्वभाव तो उसका बहुत ही अच्छा था, हमेशा हंसती हुई ही दिखाई देती थी।”
“तुम्हें प्रियम और उसके बीच के खास संबंधों की खबर तो रही ही होगी?” पनौती ने उसके चेहरे पर निगाहें टिका दीं।
“आपका इशारा कहीं और है, या आपकी बात समझने में मुझसे कोई गलती हो रही है।”
“नहीं तुम एकदम सही समझ रहे हो।”
“ऐसा कुछ नहीं था उन दोनों के बीच, फिर कोमल क्या कम खूबसूरत है, एकदम फिल्मी हीरोइन लगती है, उसे छोड़कर प्रियम भाभी के साथ ताल्लुकात क्यों बना लेता?”
“ताल्लुकात शादी से पहले बने होंगे।”
“ऐसा नहीं था, होता तो मुझे खबर लग कर रहनी थी, क्योंकि प्रियम के हर स्याह सफेद से मैं वाकिफ था। मुझे हैरानी है कि आप लोगों के मन में ऐसा कोई ख्याल आया।”
“अपने आप तो नहीं आया भाई, किसी के सुझाये ही आया। खैर तुम अपनी कहो, तुम भी तो कॉलेज के दिनों में कोमल पर टोटल फिदा थे।”
“इस बात का जवाब मैं पहले भी दे चुका हूं, वह मेरे और प्रियम की म्यूचल फ्रेंड थी, बड़ी हद आप हम दोनों को क्लोज फ्रेंड करार दे सकते हैं, चाहें तो कोमल से इस बारे में दरयाफ्त कर सकते हैं।”
“तुम्हारे ही कॉलेज टाइम के एक सहपाठी का कहना है कि तुम दोनों जरूरत से ज्यादा एक दूसरे के नजदीक थे, बल्कि वह तो ये भी कहता है कि तुम प्रियम से ज्यादा कोमल के साथ दिखाई देते थे, यहां तक कि अक्सर उसे घर छोड़ने भी जाते थे।”
“कमाल करते हैं आप लोग” - वह गहरी सांस लेकर बोला – “साफ-साफ बताइये कि आपके मन में चल क्या रहा है, यूं घुमा फिराकर सवाल कर के तो आप अपना और मेरा वक्त ही जाया करेंगे।”
“ठीक है मैं साफ-साफ ही कहता हूं” - पनौती बोला – “कॉलेज के दिनों में तुम कोमल पर बुरी तरह लट्टू थे, मगर तुम्हारी दाल इसलिए नहीं गल पाई क्योंकि कोमल को प्रियम से मोहब्बत थी। अलबत्ता एकतरफा चाहत की आग में तुम बदस्तूर जलते रहते थे।”
“चलिए बहस के लिये मैं आपकी बात कबूल कर लेता हूं, मगर इसका मतलब ये तो नहीं है कि मैंने प्रियम का कत्ल कर दिया? चलिये कोई बात नहीं कत्ल किया होना भी कबूल कर लेता हूं मैं, बस आप मेरे एक सवाल का जवाब दे दीजिये कि कल्पना की हत्या क्यों की मैंने, उससे तो मुझे कोई मोहब्बत-वोहब्बत भी नहीं थी।”
“प्रियम का कत्ल तुम्हारी जरूरत थी, क्योंकि उसके जरिये तुम कोमल को हासिल करना चाहते थे, जबकि कल्पना का कत्ल तुम्हारी मजबूरी थी।”
“बयान कीजिये।” वह चैलेंज भरे स्वर में बोला।
“प्रियम के कत्ल वाले रोज उसने अपने कमरे की खिड़की से झांककर देखा तो अंधेरे में उसे कोई शख्स प्रियम के कमरे के पीछे, खिड़की के पास खड़ा दिखाई दिया, उस वक्त उसने भले ही तुम्हें नहीं पहचाना मगर बाद में जब तुम भीतर पहुंचे तो कल्पना ने पाया कि वहां तुम इकलौते ऐसे शख्स थे जो ऐन वही कपड़े पहने हुए था, जैसा उसने कमरे के पीछे खड़े शख्स को पहनेदेखा था। मगर उस वक्त उसने ये सोचकर किसी से उस बात का जिक्र नहीं किया, क्योंकि कोमल खुद कबूल कर रही थी कि गोली उसके हाथों से चली थी। लेकिन कत्ल के दो रोज बाद जब उसे पता लगा कि पुलिस कोमल को बेगुनाह मानकर फिर से केस की तहकीकात कर रही थी तो उसका ध्यान एक बार फिर तुम्हारी तरफ चला गया। मगर उस बारे में किसी से कुछ कहने की बजाये उसने पहले तुमसे बात करने की सोची। उस बातचीत में तुमने अपने निर्दोष होने की खूब दुहाई दी होगी मगर कल्पना को आश्वस्त नहीं कर सके। ऐसे में तुम्हारे पास उसके कत्ल के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता था।”
संजीव हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगा।
“कुछ कहना चाहते हो अपनी सफाई में?”
“सफाई में कुछ नहीं कहना चाहता मगर इस बात की तारीफ जरूर करूंगा कि दो में दो जोड़कर नतीजा आपने बखूबी छत्तीस निकाल कर दिखाया है। क्या कहानी गढ़ी है, किसी ने चढ़ावा तो नहीं चढ़ा दिया आप लोगों को?”
“वो क्या होता है?” पनौती ने पूछा।
“इसका इशारा रिश्वत की तरफ है।”
“नहीं भाई, अभी तक तो किसी ने ऐसा कोई हिंट तक नहीं सरकाया, इस मामले में तो एकदम सूखा पड़ा हुआ है।”
“मुझसे तो उम्मीद मत ही रखियेगा।”
“बिल्कुल नहीं रखेंगे, क्योंकि बतौर कातिल किसी को तो जेल की हवा खिलानी ही है, अब केस का रूख जब खुद बा खुद ही तुम्हारी तरफ मुड़ा जा रहा है तो हम तुमसे भला रिश्वत क्यों खाने लगे?”
“कुछ साबित नहीं कर पायेंगे।” वह बड़े ही निडर भाव से बोला।
“कर के दिखायेंगे भाई” - पनौती बोला – “अब तुम ये बताओ कि यहां पहुंचने से पहले तुम कहां थे, मेरा मतलब है कहां से तशरीफ लाये थे यहां?”
“घर से ही आया था।”
“दिन में कहीं गये थे?”
“एक दोस्त से मिलने गया था, सेक्टर सोलह में।”
“कार से गये थे?”
“और क्या इतनी गर्मी में मोटरसाईकिल से जाता?”
“पेट्रोल पम्प पर कितने बजे पहुंचे थे?”
“लिहाजा मेरी फुल जासूसी हो रही है।”
“जवाब दो।”
“पांच बजे।”
“कितने का पेट्रोल भरवाया था?”
“हजार रूपये का।”
“पेट्रोल पम्प का नाम बोलो।”
“जब आप लोगों ने मेरे पीछे आदमी लगा ही रखे हैं तो इस बात का जवाब भी मालूम होगा आपको।”
“सवाल तुमसे किया गया है।”नाम मुझे नहीं मालूम, मगर भरवाया मैंने बाटा चौक के पास वाले पेट्रोल पम्प से था।”
“जब कि वह तुम्हारे घर और सेक्टर सोलह के रूट में नहीं पड़ता।”
“बेशक नहीं पड़ता, मगर बाकी पेट्रोल पम्पों पर इतनी लूट मची हुई है कि मुझे विश्वास के काबिल बस वही जगह लगती है, इसलिए हमेशा वहीं से पेट्रोल डलवाता हूं।”
“रसीद हासिल की थी?”
“नहीं, कोई जरूरत ही नहीं थी।”
“कल्पना के कत्ल के सिलसिले में किसी और का नाम लेना पसंद करोगे?”
“जरूर करूंगा, बल्कि सच पूछिये तो जो भी कहने वाला हूं उसका ख्याल आप लोगों की पूछताछ के बाद ही मन में आया है।”
“हम सुन रहे हैं।”
“आप कहते हैं कि प्रियम का अपनी भाभी कल्पना के साथ अफेयर चल रहा था, ऐसे में ये क्यों नहीं हो सकता कि कातिल अनुराग हो, पहले उसने भाई को उसके किये की सजा दी, फिर बीवी को भी जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया। ऊपर से ऐसा कर के उसे जो फाईनेंशियल गेन हुआ होगा सो अलग।”
“अनुराग इसलिए कातिल नहीं हो सकता क्योंकि प्रियम की हत्या के वक्त वह अपने बेडरूम में मौजूद था, जबकि आज हुए कल्पना के कत्ल के समय वह ऑफिस से बस निकला ही था। इसलिए ये संभव नहीं है कि उसने अपने भाई और बीवी की हत्या कर दी हो।”
“आप भूल गये दिखते हैं कि पहली बार उस बात के गवाह दो ऐसे लोग थे, जिनका उसकी खातिर झूठ बोलना बनता है, जबकि दूसरी बार की बाबत तो मेरी गारंटी है कि आप लोगों ने अभी तक कुछ पता भी नहीं लगाया होगा। कम से कम उसके निर्दोष साबित होने तक तो बाकी लोगों को बख्श दीजिये।”
“समझ लो बख्श दिया, अब तुम जा सकते हो।”
“कहां जा सकता हूं, इस कमरे से बाहर या फिर अपने घर जा सकता हूं?”
पनौती ने सवाल करती निगाहों से सतपाल की तरफ देखा।
“घर जा सकते हो” - वह बोला – “जरूरत पड़ी तो हम खुद वहां हाजिर हो जायेंगे।”
“थैंक्यू।” कहने के पश्चात वह उठकर कमरे से बाहर निकल गया।
“लड़का एक बात बहुत पते की कहकर गया है सतपाल साहब।”
“अनुराग के कातिल होने की?”
“हां, अगर सचमुच कल्पना और प्रियम के बीच अफेयर था तो कातिल अनुराग हो सकता है, वह इकलौता ऐसा शख्स है जिसके पास दोनों के कत्ल की पर्याप्त वजह मौजूद है।”
“प्रियम और कल्पना में से अब कोई भी जिंदा नहीं बचा है, ऐसे में पता कैसे चले कि उन दोनों के बीच सचमुच वैसा कोई रिश्ता था या नहीं। क्योंकि उसके अलावा कोई बात ऐसी नहीं है जो बतौर कातिल अनुराग की तरफ उंगली उठाती हो।”
“उसके बाद भी कहां है, वकील और मीनाक्षी के साथ-साथ खुद उसका भी बयान है कि प्रियम के कत्ल के वक्त वह पहली मंजिल पर अपने बेडरूम में था। ऐसे में वह प्रियम का कातिल कैसे हो सकता है?”
“तुम भूल रहे हो कि उसे कत्ल के बाद पहली मंजिल पर देखा गया था, ऐसे में वह पहले भी कमरे में ही था, या फिर फायर स्केप की सीढ़ियों के रास्ते हॉल से गुजरे बिना प्रियम के कमरे के पीछे पहुंचकर उसका कत्ल कर के वापिस लौट आया था, इस बात की कोई गारंटी कैसे कर सकता है?”

भई बेडरूम में उस घड़ी कल्पना भी तो रही होगी।”
“जिससे अब कोई पूछताछ नहीं की जा सकती।”
“फिर तो समझ लो इस बात का सारा दारोमदार डॉली पर है, अगर वह कोई खास बात मालूम करने में कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना अनुराग को गुनहगार ठहराना आसान नहीं होगा।”
“सच पूछो तो मुझे अभी तक वकील साहब की बातों पर यकीन नहीं आया है, मैं ये सोचकर हैरान हूं कि क्यों वह शख्स अचानक मीनाक्षी के खिलाफ बोलने लगा, क्यों उसने प्रियम और कल्पना के रिश्तों को नया रंग देने की कोशिश की?”
“बताया तो था उसने।”
“कहानी सुनाई थी, मैं सात जन्मों में इस बात पर यकीन नहीं कर सकता कि यादव मीनाक्षी के खिलाफ हो गया है। मुझे तो लगता है उसी ने मीनाक्षी के कहने पर मेरी पड़ताल करवाई थी जिसमें उसे पता लगा कि मैं और कल्पना कभी एक ही कॉलेज में हुआ करते थे, उस बारे में जान लेना क्या कोई मजाक था।”
“जबकि मुझे लगता है वह बात मीनाक्षी ने यूं ही बस तुझे परेशान करने की खातिर कह दी थी। उसने कॉलेज का कोई नाम वाम तो लिया नहीं था हमारे सामने, बल्कि लेती तो तब न जब उसे मालूम होता कि तुमने अपनी पढ़ाई किस कॉलेज से की थी?”
“हो सकता है” - पनौती गंभीर लहजे में बोला – “मगर कहीं ना कहीं ये बात मेरे दिमाग में चुभ रही है कि कल्पना का कत्ल ऐन उसी वक्त क्यों हुआ जब मैं मीनाक्षी के दिये हुए समय पर यहां मौजूद था, उसका मुझे अपने बेडरूम में ले जाना भी खल रहा है। इसलिए कहीं ना कहीं इस बात की संभावना दिखाई दे रही है कि उसने सारी प्लानिंग पहले से कर रखी थी जिसमें बतौर बलि का बकरा मुझे फंसाने की कोशिश की।”
“तू फंस गया?”
“नहीं मगर तुम्हारी जगह कोई दूसरा पुलिसवाला होता तो उसकी बात सुनने के बाद मुझे आजाद तो नहीं छोड़ देता।”
“तू खामख्वाह उस बात को लेकर हलकान हो रहा है।”
“मैं कोई हलकान नहीं हो रहा, बस कहानी की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं, मुसीबत ये है कि जिस तरह से दोनों वाकयात पेश आये हैं, उनमें घरवाले और बाहर वाले दोनों किस्म के लोग सस्पेक्ट दिखाई देने लगे हैं।”
“मगर किसी के भी खिलाफ रत्ती भर भी सबूत हमारे पास नहीं है।”
“ठीक कहते हो, अब चलो, कुछ नहीं रखा यहां।”
दोनों कमरे से बाहर निकल आये।
तभी शुक्ला उनके सामने आ खड़ा हुआ, उसने सतपाल के सामने अपनी हथेली फैला दी, “गोली मिल गई है, तुम चाहो तो रख सकते हो, क्योंकि यह हमारे किसी काम की नहीं है।”
सहमति में सिर हिलाते हुए सतपाल ने वह गोली शुक्ला की हथेली से उठाकर अपनी जेब में रख ली।
“ऊपर जो कुछ भी घटित हुआ था, उस बाबत तुम्हारा अंदाजा ही दुरूस्त जान पड़ता है। अलग से कुछ नहीं है मेरे पास बताने को। लैब में करने लायक भी कोई काम अब दिखाई नहीं देता, इसलिए अलग से कुछ हासिल होने की उम्मीद मत करना।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया।
उसके बाद फोरेंसिक टीम वहां से रवाना हो गई।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
 
Well-known member
1,170
1,352
143
बंगले से थोड़ा आगे जाते ही सतपाल ने जीप को सड़क के किनारे लगाकर खड़ी कर दी।
“क्या हुआ?” पनौती ने पूछा।
“डॉली को भूल गये?”
“मै सचमुच भूल गया था।”
“फिर तो थैंक्यू बोलो शर्मा साहब, वरना कहीं मैं भी भूल जाता तो तुम्हारे सिर पर एक भी बाल सलामत नहीं बचता।”
“मैं नहीं डरता उससे।”
सतपाल हंसा।
“कहा न मैं नहीं डरता उससे, बल्कि किसी से भी नहीं डरता, जिन्दगी मेरी है जिसे अपने तरीके से जीने को मैं पूरी तरह आजाद हूं।”
“किसी की कद्र करना नहीं सीखा, जबकि तू अच्छी तरह से जानता है कि वह सिर्फ और सिर्फ तेरी खातिर उस घर में नौकरी पकड़ने को राजी हुई है।”
“कोमल की खातिर कहो, इसलिए उस बात को मुझपर एहसान की तरह लादने की कोशिश वह नहीं कर सकती।”
तभी डॉली वहां पहुंच गई।
“किसके एहसान की बात कर रहे हो?” वह जीप की पिछली सीट पर सवार होती हुई बोली।
पनौती ने जवाब नहीं दिया। सतपाल ने फौरन जीप स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दी। रास्ते में वीर सिंह का भेजा मैसेज उसे प्राप्त हुआ जिसमें उसने लिखा था कि ‘वकील की गवाही में कोई खोट नहीं है, अगर उसका क्लाईंट उसकी खातिर झूठ नहीं बोल रहा है तो।’
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
सतपाल ने पहले डॉली को उसके घर के सामने ड्रॉप किया फिर पनौती को उसकी गली के बाहर उतार कर वापिस लौट गया।
पैदल चलता वह अपने घर के सामने पहुंचा तो चौंक सा गया। दरवाजे पर उसे ताला लटकता नहीं दिखाई दिया। यहां तक कि बाहर वाली कुंडी भी दूर से ही खुली दिखाई दे रही थी।
‘क्या मां वापिस आ गई थी?’
राज का मन नहीं माना, उसकी टिकट तो अभी तीन रोज बाद की थी, किसी कारण वश वह निर्धारित दिन से पहले लौट भी आती, तो ये नहीं हो सकता कि घर पहुंचकर भी उसने राज को फोन नहीं किया होता।
दरवाजे के सामने ठिठकने या माजरा भांपने की कोशिश करने की बजाये वह आगे बढ़ता चला गया। कुछ दूर जाकर वापिस लौटा मगर रूकने की कोशिश नहीं की। उसके घर से दो मकान आगे एक फोरच्यूनर खड़ी जिसने खासतौर से उसका ध्यान अपनी ओर खींचा, मकान में रहने वाले मिश्रा जी से वह वाकिफ था, इसलिए जानता था कि आज तक कोई कार चलाकर उनके घर नहीं पहुंचा था।
वह फोरच्यूनर के पास पहुंचा। शीशे से आंख सटाकर भीतर झांकने की कोशिश की, मगर अंधेरे की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया, लेकिन इतनी गारंटी वह फिर भी कर सकता था कि गाड़ी के भीतर कोई बैठा हुआ नहीं था।
उसने अपने मोबाइल में गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन चेक करने वाला एप्प खोलकर उसमें फोरच्यूनर का नंबर ऐंटर कर के सर्च मारा तो जवाब हैरान कर देने वाला निकला।
गाड़ी निरंजन राजपूत के नाम से रजिस्टर्ड थी।
अगर सचमुच इस वक्त वही उसके घर में घुसा बैठा था, तो उसके इरादे नेक नहीं कहे जा सकते थे।
कायदे से उसे फौरन पुलिस को उस बात की सूचना देनी चाहिये थी, और कुछ नहीं तो वह सतपाल को ही फोन कर के वापिस आने को कह सकता था। मगर अफसोस कि उस बात का ख्याल तक नहीं आया उसके जहन में, वह तो यही सोचकर बिदक गया कि उसकी इजाजत के बिना निरंजन राजपूत उसके घर में घुसा बैठा था।बुरी तरह तिलमिलाते हुए दरवाजे को भीतर की तरफ धकेलता हुआ वह घर में दाखिल हुआ। मगर आश्चर्य कि भीतर पहुंचते ही उसके चेहरे से तिलमिलाहट के भाव फौरन गायब हो गये।
दरवाजे के ऐन सामने निरंजन राजपूत अपने दो गुर्गों के साथ कुर्सी पर बैठा दिखाई दिया।
पनौती उसकी तरफ देखकर हौले से मुस्करा दिया। फिर बिना एक शब्द कहे वह किचन में पहुंचा जहां उसने एक ट्रे में चार कांच क गिलास रखे और उन्हें पानी से भरने के बाद वापिस निरंजन के पास पहुंचा।
तीनों ने एक साथ अजीब निगाहों से उसकी तरफ देखा। मगर कोई टीका-टिप्पणी करने की कोशिश नहीं की। तीनों ने पानी का एक-एक गिलास उठा लिया, चौथे गिलास को पनौती खुद एक सांस में खाली कर गया, फिर दूसरे कमरे से एक कुर्सी उठा लाया और निरंजन के सामने बैठता हुआ बोला, “फोन कर लिया होता, यूं तो पता नहीं मैं कितनी रात गये घर लौटता, या लौटता ही नहीं।”
“तू कभी भी लौटता” - निरंजन सख्त लहजे में बोला – “मुझे यहां अपना इंतजार करता ही पाता।”
“जबकि यहां आने की बजाये आपको सीधा पुलिस स्टेशन जाना चाहिये था।” पनौती निर्विकार भाव से बोला।
“पुलिस स्टेशन किसलिये?”
“आप अपना गुनाह कबूल करना चाहते हैं, तो जाना तो आपको पुलिस स्टेशन ही पड़ेगा, मैं भला इसमें क्या कर सकता हूं, जबकि मैं कोई पुलिस वाला भी नहीं हूं।”
“कौन से गुनाह की बात कर रहा है तू?” निरंजन का लहजा पहले से ज्यादा सख्त हो उठा।
“प्रियम और कल्पना के कत्ल की।”
“ये साला तो मरने पे तुला है?” निरंजन का एक चमचा अपने बॉस की तरफ देखता हुआ बोला।
“गाली मत दे भाई” - पनौती बड़े ही प्यार से बोला – “गाली देना बुरी बात होती है।”
“दूंगा तो क्या कर लेगा बहन...।”
अगले ही पल उसके मुंह पर पनौती का इतना करारा घूंसा पड़ा कि वह कुर्सी समेत पीछे उलट गया, उसकी नाक फूट गई, होंठ कट गये। पलक झपकते ही दूसरे चमचे के हाथ में पिस्तौल नजर आने लगी।
“मरना चाहता है?” वह बड़े ही हिंसक स्वर में बोला।
“चाहता तो नहीं हूं” - पनौती का लहजा अभी भी शांत था – “अभी तो मंगनी भी नहीं हुई है, लेकिन तुझे तसल्ली मिलती हो तो चला ले गोली, तू भी क्या याद करेगा, किसी दरियादिल इंसान से पाला पड़ा है।”
तब तक फर्श पर पड़ा चमचा उठ कर खड़ा हो चुका था। वह अपने चेहरे से खून पोंछता हुआ निरंजन की तरफ देखकर बोला, “मुझे इसको ठोंकना है, आप बस हां बोलिये।”
“कमाल है तुम लोगों में क्या सचमुच तहजीब नाम की कोई चीज नहीं है, बाप बैठा है फिर भी पटर-पटर जुबान चलाये जा रहे हो” - कहकर उसने अपनी निगाहें निरंजन के चेहरे पर टिका दीं – “आप बताइये सर! कैसे आना हुआ?”
“आया तो तुझे सबक सिखाने ही था, मगर समझ ले अपना इरादा बदल दिया मैंने, इसलिए बदल दिया क्योंकि मैं बहादुर लोगों की कद्र करता हूं।”
“ये आप मेरी तारीफ कर रहे हैं?”
“हां भाई तेरी ही कर रहा हूं, तेरी जगह कोई और होता तो घर में तीन हथियारबंद लोगों को देखकर उसकी घिग्घी बंध गयी होती। मगर तू नहीं घबराया, तेरी हिम्मत की दाद देता हूं मैं। इसलिए समझ ले मैंने तुझे माफ कर दिया।”
“लेकिन मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकता निरंजन राजपूत” - पनौती का लहजा अचानक ही बदल गया – “कोई दो टके का गुंडा मेरे घर का ताला तोड़कर भीतर आ बैठे, और मेरे ही घर में मुझे हूल देने लगे, ये बात मुझे कबूल नहीं है।”
“लगता है तुझपर गलत तरस खा रहा हूं मैं, जबकि तू इस काबिल है ही नहीं। इसलिए सबक तो तुझे देना ही पड़ेगा।”
“पहले ये तो सोच लो कि यहां से अपने पैरों पर चलकर जाना चाहते हो या एंबुलेंस मंगवाऊं तुम्हारे लिये।”
“जो मर्जी बक ले, मैं बुरा नहीं मानूंगा छोकरे, समझ ले मरने वाले की आखिरी इच्छा समझ कर मैं तुझे बक-बक करने का मौका दे रहा हूं।”
पनौती जोर से हंसा।
“मैंने कोई जोक मारा?”
“उससे कम भी क्या था निरंजन साहब, धमकी देने से पहले इतनी तो अक्ल लड़ा ली होती कि मैं क्यों यूं तुम्हारे सामने बेखौफ बैठा हूं, क्यों कर मुझे तुम्हारे और तुम्हारे दोनों चमचों का जरा भी खौफ नहीं सता रहा।”
“क्यों बैठा है?”
“बाहर निकल कर देखो, दर्जनों की तादात में बाहर खड़ी पुलिस तुम्हारा इंतजार कर रही है, समझ लो आज तुम्हारा खेल खत्म हो गया। मैं तो तुम्हारी फोरच्यूनर का रजिस्ट्रेशन चेक कर के ही जान गया था कि भीतर मेरा आमना-सामना तुमसे होने वाला है।”
निरंजन ने हैरानी से उसकी तरफ देखा, फिर अपने चमचे को हुक्म दिया, “गुड्डू! बाहर जा और देखकर आ कि ये सच बोल रहा है या नहीं?”अगर सचमुच बाहर पुलिस हुई तो?”
“तो क्या तुझे गोली मार देगी, तू कोई ईनामी बदमाश है या बहुत बड़ा डॉन है जिसे वे लोग एनकाउंटर में मार गिराने की कोशिश करेंगे, बड़ी हद वे लोग तुझे गिरफ्तार कर लेंगे, हो जाना गिरफ्तार, बाद में जो होगा मैं भुगत लूंगा, अब जा और जाकर देख की क्या माजरा है?”
“गली के परली तरफ” - पनौती जल्दी से बोला – “एक पेड़ है, उसके नीचे देखना।”
गुड्डू ने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा फिर झिझकता हुआ दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। जबकि पनौती अच्छी तरह से जानता था कि उसके घर के सामने तो क्या आस-पास कहीं कोई पेड़ नहीं था।
गुड्डू दरवाजे से दिखाई देना बंद हो गया तो पनौती ने बैठे ही बैठे एक जोर की लात अभी तक चेहरे से खून पोंछते चमचे के पेट में जमा दी, वह फुटबाल की तरह उछल कर पीछे की दीवार से टकराया। बौखला कर निरंजन ने रिवाल्वर वाला हाथ सीधा करने की कोशिश की तो पनौती ने उसकी कलाई थाम कर पिस्तौल का रूख छत की तरफ कर दिया। तभी गोली चली और सीलिंग से टकराकर कमरे में कहीं जा गिरी। नीचे पड़ा चमचा उछल कर उठा और अपनी पिस्तौल पनौती पर तानता हुआ गुर्राया, “हाथ छोड़ साहब का नहीं तो गोली मार दूंगा।”
“मार दे भाई, पहले भी इजाजत दे चुका हूं, सोच क्या रहा है?”
चमचा हकबकाया, उसने पनौती की पकड़ से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते अपने बॉस की तरफ देखा जो कि रह-रह कर पनौती पर अपना घुटना चलाने की कोशिश कर रहा था मगर उसे चोट पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पा रहा था।
“स्साले फिर कहता हूं छोड़ दे साहब को वरना गोली मार दूंगा मैं।”
“गाली नहीं देते भाई, पहले भी समझाया था।”
चमचा हड़बड़ा सा गया। उस घड़ी उसके चेहरे पर बड़े ही अनिश्चय के भाव उभरे, समझ नहीं पा रहा था कि उसे गोली चलानी चाहिये या नहीं, क्योंकि निरंजन ने अभी तक उसे वैसा करने का हुक्म नहीं दिया था।
उसकी कशमकश का पूरा पूरा फायदा पनौती ने उठाया और उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर इतनी जोर से लात चलाई कि रिवाल्वर उसके हाथों से दूर जा गिरी।
“रिवाल्वर हाथ में हो और दुश्मन सामने खड़ा हो तो बातों में वक्त नहीं जाया करते लल्लूराम, गोली चलाते हैं, क्योंकि जिन्दगी किसी को भी बार-बार मौका नहीं देती। तुझे दिया था मगर अब तू उसे गवां चुका है।”
तभी बाहर गया गुड्डू वापिस लौटा, भीतर का नजारा देखकर उसने पलक झपकते ही अपनी पिस्तौल पनौती पर तान दी। तब तक पहला चमचा भी रिवाल्वर वापिस उठाने में कामयाब हो गया था।
वह स्थिति विकट थी, पनौती एक साथ दोनों पर निगाह नहीं रख सकता था। उसने फौरन निरंजन की बांह उसके पीठ पीछे इतने जोर से उमेठी की वह दर्द से बिलबिला उठा। रिवाल्वर उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर गई।
“गोली चलाओ निकम्मों” - निरंजन दर्द से तड़पता हुआ बोला – “तमाशा क्या देख रहे हो?”
गुड्डू ने हड़बड़ाकर पनौती पर फायर कर दिया। मगर गोली चलने से पूर्व ही राज शर्मा निरंजन को गुड्डू की तरफ धकेल चुका था, गोली चली, धांय की जोरदार आवाज गूंजी मगर चीख पनौती की बजाये निरंजन के मुंह से निकली। गोली उसके कंधे में जा घुसी थी। इससे पहले की वहां कोई और गोली चलती, फर्श पर पड़ी निरंजन की रिवाल्वर उठाकर पनौती ने निःसंकोच दोनों को शूट कर दिया। इसके बाद उसने निरंजन को बालों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसका सिर दीवार पर दे मारा। जोर की आवाज हुई, वह निश्चेष्ट होकर फर्श पर गिर गया।
पनौती दरवाजे तक पहुंचा, एक बार उसने बाहर झांकर तसल्ली की कि गोली की आवाज सुनकर आस-पास के लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल आये थे, इसके बाद वह वापिस निरंजन के पास पहुंचा। उसके कंधे से बहुत तेजी से खून निकल रहा था, ऊपर से सिर अलग फूटा पड़ा था, ऐसे में किसी भी वक्त उसकी चल-चल हो जाना एकदम स्वभाविक बात थी।
पनौती ने मोबाइल निकालकर सतपाल को फोन किया और संक्षेप में सारा किस्सा उसे कह सुनाया।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
 
Well-known member
1,170
1,352
143
दो सिपाहियों के साथ अंधाधुंध जीप ड्राइव करता इंस्पेक्टर सतपाल सतपाल सिंह महज दस मिनट में राज शर्मा के घर पहुंच गया।
दरवाजा खुला देखकर तीनों भीतर दाखिल हो गये।
उस घड़ी पनौती फर्श पर पड़े निरंजन के करीब कुर्सी पर बैठा टीवी देख रहा था। सतपाल के आने से पहले उसने निरंजन पर इतनी दया जरूर दिखाई थी कि उसके में कंधे में बने गोली के घाव पर कसकर कपड़े की पट्टी बांध चुका था, जिससे खून का रिसाव पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया था।
सतपाल ने एक उड़ती निगाह कमरे में दायें-बायें डाली फिर झुककर निरंजन राजपूत का मुआयना करने लगा। पट्टी बंधी होने के कारण वह गोली के घाव का मुआयना तो नहीं कर सका मगर उसकी नब्ज थामकर इतनी तसल्ली जरूर की कि वह अभी जिंदा था। उसकी सांसे व्यवस्थित थीं, धड़कनों की रफ्तार में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं था।
“टीवी बंद कर भाई।” वह झल्लाकर बोला।
पनौती ने टीवी तो बंद नहीं किया मगर उसका वोल्यूम म्यूट जरूर कर दिया।
“क्या हुआ था यहां?”
“बताया तो था।”
“फिर से बता तफसील से बता।”
जवाब में पनौती ने घर पहुंचने से लेकर तब तक का सारा वृतांत बयान कर दिया। सुनकर सतपाल एकदम से गुस्से में आ गया।
“जब तुझे पहले ही पता लग गया था कि भीतर निरंजन राजपूत तेरे इंतजार में बैठा है, तो तूने उसी वक्त पुलिस को या फिर सीधा मुझे ही फोन क्यों नहीं किया, क्या जरूरत थी इतना फसाद करने की?”
“मैंने किया फसाद” - पनौती तुनक कर बोला – “एक दो टके का गुंडा अपने दो चमचों के साथ मेरे घर का ताला तोड़कर भीतर घुसा बैठा था, और तुम कहते हो कि फसाद मैंने किया?”
“मैं फिर पूछता हूं ताला टूटा देखकर घर में कदम ही क्यों रखा तूने? सीधा पुलिस को फोन क्यों नहीं किया?”
“उसका जवाब मैं बाद में दूंगा, पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम्हारे थाना क्षेत्र में क्योंकर एक शख्स की इतनी मजाल हुई कि उसने ना सिर्फ मेरे घर का ताला तोड़ा बल्कि भीतर बैठकर बेखौफ मेरे यहां पहुंचने का इंतजार करता रहा? कैसी व्यवस्था है तुम्हारे थाने की? क्यों इतनी लापरवाही बरतते हो तुम लोग? जो एक आम शहरी अपने घर में भी सुरक्षित नहीं दिखाई देता।”
“तो क्या पुलिस? हर घर के सामने एक पुलिसमैन खड़ा कर दे?”
“उसकी कोई जरूरत ही नहीं पड़ती, अगरचे कि तुम लोग अपनी ड्यटी को ठीक ढंग से अंजाम देते, मैं पूछता हूं क्योंकर निरंजन राजपूत जैसे असमाजिक तत्वों को तुम लोग आजादी की सांस लेने के लिये खुला छोड़ देते हो, ऐसे लोगों को पकड़ कर जेल की हवा क्यों नहीं खिलाते?”
“तुझसे तो बात करना भी बेकार है, जबकि मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि जब तुझे पहले ही शक हो गया था कि ये तेरे घर में घुसा बैठा है, तो तूने अपनी जान का रिस्क क्यों लिया, या तुझे लगता था कि रात के वक्त वह तुझे लोरी गाकर सुलाने के लिये यहां पहुंचा था?”
“मुझे लगा था कि यह प्रियम की मौत के बारे में कुछ बताने के लिये यहां आया था।” पनौती शांत होता हुआ बोला।बकवास मत कर, मैं तुझे अच्छी तरह से समझने लगा हूं, इसलिए जानता हूं कि तू उतना भोला नहीं है जितना हर वक्त खुद को साबित करने की कोशिश करता रहता है।”
“तुम्हारा जो दिल हो समझो, मगर मुझे ये हरगिज भी मंजूर नहीं कि कोई भी ऐरा गैरा मेरी इजाजत के बिना मेरे घर में घुस आये, फिर चाहे वह कोई ऐसा शख्स ही क्यों न हो जो कमिश्नर के साथ नाश्ता करता हो, मुख्यमंत्री के घर में डिनर के लिये इनवाइट किया जाता हो।”
“ऐसा था तो इसे जिन्दा क्यों छोड़ दिया, इसके चमचों के साथ इसे भी ठिकाने क्यों नहीं लगा दिया?”
“क्योंकि किसी को सजा देना कानून का काम होता है ना कि मेरे जैसे किसी सिविलियन का।”
“बाकी दोनों को शूट करते वक्त ये नेक ख्याल क्यों नही आया तेरे जहन में?”
“आया था, लेकिन तब ये दोनों मेरे पर गोली चलाने को अमादा थे, मैं इन्हें नहीं मारता तो खुद मारा जाता, जबकि ऊपर वाले ने मुझे पूरे सौ साल की उम्र बख्शी है, क्या मुंह दिखाता मैं ईश्वर को? फिर हमारा कानून हमें अपनी जान और माल दोनों की हिफाजत करने का पूरा पूरा अधिकार देता है।”
“मैं तुझसे बहस नहीं करना चाहता, मगर इतना तो पक्का है कि यहां पड़ी दोनों लाशें तुझसे कोर्ट का चक्कर लगवाकर रहेंगी।”
“सांच को आंच क्या सतपाल साहब, कानूनन जो भी सही हो करो। तुम्हें मेरा जरा भी लिहाज करने की जरूरत नहीं है। करोगे तो पछताओगे।”
तभी निरंजन ने कुनमुना कर आंखें खोल दीं और कराहता हुआ उठकर बैठ गया।
“कमाल है आप तो जिंदा बच गये।” पनौती बोला।
निरंजन ने घूर कर उसे देखा, फिर धीरे से बोला, “अब तू नहीं बचेगा।”
“पहले अपनी फिक्र करो खलीफा, क्योंकि जेल की काल कोठरी और तुम्हारे बीच बस जरा सा ही फासला बचा रह गया है। इस बार तुम्हारी हिमायत में भले ही पूरा पुलिस डिपार्टमेंट ही क्यों न खड़ा हो जाये, जेल जाने से तुम्हें कोई भी नहीं बचा पायेगा।”
“मुझे जेल भिजवाने की बात तो तू भूल ही जा, अभी निरंजन राजपूत और उसकी सलाहियात से वाकिफ नहीं है तू इसलिए मुझपर वार करने की हिम्मत कर बैठा। वाकिफ होता तो मुझपर हमला करने की बजाये मेरे कदमों में बैठा रहम की भीख मांग रहा होता”
“लिहाजा खुद को खुदा से भी दस हाथ ऊपर की चीज समझते हो?”
“अभी जो मन में आये बक ले, मगर मुझे गिरफ्तार कराने का तेरा ख्वाब अधूरा ही रहेगा। मेरे एक फोन करने की देर है कि खुद इलाके का डीसीपी मुझे सॉरी बोलकर मेरे बंगले तक छोड़कर आयेगा।”
“लिहाजा बजाते खुद तेरी कोई औकात नहीं है, कभी मुख्यमंत्री की धमकी देता है तो कभी कमिश्नर की और इस वक्त तो तेरा स्टेटस इतना गिर गया कि डीसीपी तक पहुंच गया, मुझे तो लगता है कि ये सिलसिला अगर यूं ही चलता रहा तो एक रोज थाने के चपरासी तक जा पहुंचेगा।”तुम खड़े खड़े इसकी बकवास क्या सुन रहे हो इंस्पेक्टर” - वह सतपाल से बोला – “देखते नहीं कि इसने ना सिर्फ मेरे दो आदमियों का कत्ल किया है बल्कि मुझे भी बुरी तरह घायल कर दिया है।”
“अब ये कहानी नहीं चलने वाली निरंजन साहब” - सतपाल गंभीर लहजे में बोला – “आपके खिलाफ सबसे बड़ी बात तो यही है कि आप अपने दो हथियारबंद आदमियों के साथ इसके घर में घुसे बैठे थे, इसलिए अपनी गिरफ्तारी तो तय समझिये” - कहकर सतपाल ने एकदम से गिरगिट की तरह रंग बदला – “किसी तरह आप खुद को बचाने में कामयाब हो भी गये तो ये बात शहर भर में आपकी भारी किरकिरी की वजह बन जायेगी कि एक मामूली से लड़के ने ना सिर्फ आपके दो आदमियों को मार गिराया बल्कि आपको बुरी तरह पीटा भी! अगर आप उस लानत को झेलने के लिये तैयार हैं तो मैं इसके खिलाफ आपकी कंप्लेन लेने को तैयार हूं, मगर इसका तो शायद ही कुछ बिगड़ पाये, आखिरकार तो ये साफ बरी हो जायेगा, क्योंकि इसने जो कुछ भी किया है अपनी जान बचाने की कोशिश में किया है।”
“ठीक है मुझे हॉस्पिटल ले चलो” - वह बदले हुए स्वर में बोला – “मेरी हालत ठीक नहीं है, बाद में देखेंगे कि क्या करना है और क्या नहीं करना है।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया, फिर निरंजन को जीप में बैठा कर वहां से चल पड़ा, पनौती को थाने चलने को कहना उसने जरूरी नहीं समझा। ना ही वहां पड़ी दोनों लाशों के बारे में कोई निर्देश जारी किया। यहां तक कि मामले की खबर अपने उच्चाधिकारियों को देने की भी उसने कोई कोशिश नहीं की।
जीप में सवार होने से पहले उसने एक खास काम ये किया कि अपने मोबाइल में वीडियो रिकार्डिंग ऑन कर के उसे अपनी शर्ट की जेब में यूं रख लिया कि सामने का सारा नजारा रिकार्ड होने लगा।
निरंजन को जीप की पिछली सीट पर बैठाकर वह खुद उसके सामने वाली सीट पर बैठ गया, “किस अस्पताल में जाना चाहेंगे?”
“कहीं भी ले चलो, मगर उससे पहले तुम ये बताओ कि क्या इस मामले को यहीं खत्म कर सकते हो? बदले में जो तुम चाहो मैं करने को तैयार हूं।” कहते हुए उसने अपना सिर जीप की पुश्त से टिकाकर आंखें बंद कर लीं।
“आप राज शर्मा को नहीं जानते, मैंने आपका कोई फेवर किया तो अगले ही रोज बिना वर्दी के दिखाई देने लगूंगा। जबकि अपनी नौकरी मुझे बहुत प्यारी है।”
“तो समझाओ उसे, ये कहकर समझाने की कोशिश करो कि मेरे खिलाफ कंप्लेन लिखवाने की कोशिश करेगा, तो बाद में भले ही कोर्ट से बाइज्जत बरी हो जाये मगर जेल तक तो मैं उसे पहुंचा कर रहूंगा, उसे मेरे रूतबे का एहसास कराओ, उसे बताओ कि निरंजन राजपूत किस शै का नाम है। हो सकता है तुम्हारी बात उसकी समझ में आ जाये।”पहले आप सारा किस्सा बिना कुछ छिपाये हुए बयान कीजिए, फिर देखता हूं कि मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं या नहीं।”
“मुझसे बोला नहीं जा रहा भाई, तुम भूल रहे हो कि मुझे गोली लगी है, मेरी हालत बहुत खराब है।”
“हम अस्पताल ही चल रहे हैं सर, मगर कुछ टाइम तो लगेगा ही, तब तक आप सारी कहानी दोहरा डालिये, वरना एक बार आपके खिलाफ केस बनने के बाद मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।”
बात निरंजन राजपूत की समझ में आ गई, उसने धीरे-धीरे अटक-अटक कर तमाम बातें संक्षेप में दोहरा दीं, अंत में बोला, “मेरा इरादा उसकी जान लेने का नहीं था मगर मेरे आदमियों की वजह से नौबत खून खराबे तक जा पहुंची। इसलिए कोई तिकड़म भिड़ाओ और मामले को रफा-दफा करने का इंतजाम करो।”
“आप भूल रहे हैं कि घर में दो लाशें पड़ी हैं, जिनसे पीछा छुड़ाना आसान नहीं होगा।”
“उनकी जिम्मेदारी मेरे पर है, किसी को उन दोनों की खबर तक नहीं लगेगी, किसी को नहीं मालूम पड़ेगा कि मेरे दो आदमियों की जान जा चुकी है। अब बोलो क्या कहते हो?” कहकर उसने एक बार फिर अपनी आंखें बंद कर लीं।
सतपाल ने मोबाइल जेब से निकालकर रिकार्डिंग बंद कर दी।
“अगर आप वादा करते हैं कि भविष्य में दोबारा उसे चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं करेंगे, अपनी बेइज्जती का बदला लेने पर नहीं उतर आयेंगे, तो मैं आपकी बात पर विचार कर सकता हूं।”
“ऐसा हरगिज नहीं हो सकता इंस्पेक्टर! उसने शेर को ललकारने की जुर्रत की है, मैं उसे यूं ही नहीं छोड़ सकता, अपने किये का खामियाजा तो उसे भुगतना ही पड़ेगा।”
“ठीक है फिर।”
“क्या ठीक है?”
“बताता हूं” - सतपाल के चेहरे पर बड़े ही क्रूर भाव आये – उसने निरंजन के कंधे पर बंधी पट्टी उतारनी शुरू कर दी, जिसके खुलते ही वहां से खून का सोता सा फूट पड़ा।
“ये क्या किया तुमने?”
“अभी पता चल जाता है।”
“तुम तुम मेरी जान लेना चाहते हो?”
“आपकी नियति आपकी जान लेना चाहती है” - कहकर वह जीप ड्राइव कर रहे सिपाही से बोला – “कहीं अंधेरा देखकर साइड में लगा भाई जीप को।”
सिपाही ने तत्काल आदेश का पालन किया।
“तुम दोनों क्या कहते हो?” सतपाल ने अपने साथी पुलिस वालों से पूछा।आदमी तो जनाब ये गोली मार देने के ही काबिल है, क्योंकि अदालत से तो यह साफ-साफ बच निकलेगा। पहले भी कई मामलों में कई बार ऐसे चमत्कार दिखा चुका है। पिछले साल वाले मामले को ही लीजिये, इसके बंगले से पांच तेरह से पंद्रह साल की राह चलते उठाकर लाई गईं लड़कियां बरामद हुई थीं, मगर नतीजा क्या हुआ? इसी के एक गुर्गे ने सारा इल्जाम अपने ऊपर ले लिया और यह साफ बच निकला। तब वीर साहब के साथ इसे गिरफ्तार करने वाली टीम में मैं भी शामिल था, गुस्से में आकर मैंने इसपर हाथ उठा दिया तो इसने साहब के सामने ही मुझे धमकी दी थी कि अपनी जवान होती बेटी पर निगाह रखूं कहीं किसी रोज वह घर से गायब न हो जाये। उस बात से मैं इतना खौफजदा हुआ था कि बेटी को फौरन ननिहाल भेज दिया था, आज भी वह वहीं रहकर पढ़ाई कर रही है।”
“सवाल ये है अनूप सिंह कि क्या ऐसे आदमी को हमें एक बार फिर अदालत तक पहुंचने का मौका देना चाहिये?”
“हुक्म कर के देखिये मैं इस स्साले को अभी गोली मारे देता हूं, बाद में जो होगा भुगत लूंगा मगर और किसी का नाम जुबान पर नहीं आने दूंगा, ये मेरा वादा है आपसे।”
“उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी भाई, गोली खाया आदमी अगर अस्पताल ले जाये जाने के दौरान, खून ज्यादा बहने की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठा तो इसमें हैरानी की क्या बात है?”
“कोई हैरानी की बात नहीं है साहब” - दूसरा सिपाही बोला – “मौका अच्छा है मैं तो कहता हूं निपटा ही डालिये स्साले को।”
अब तक निरंजन की समझ में आ चुका था कि पुलिस का इरादा क्या था। उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, मगर आवाज सिर्फ एक बार ही निकाल सका, अगले ही पल सतपाल की हथेली ढक्कन की तरह उसके मुंह पर चिपक गयी।
खून ज्यादा बह जाने के कारण वह पहले ही कमजोर हो चुका था, जल्दी ही उसकी बची खुची ताकत भी खत्म हो गयी। उसने ऐतराज जताना बंद कर दिया और बेहोश होकर सतपाल की बाहों में झूल गया।
दस मिनट तक लगातार खून बहता रहने के बाद निरंजन राजपूत ने दम तोड़ दिया। तब सतपाल ने उसके कंधे पर दोबारा पट्टी बांध दी।
उसके निर्देश पर सिपाही ने जीप को सबसे नजदीकी नर्सिंग होम के सामने ले जाकर यूं खड़ा किया जैसे एक सेकेंड की देरी से भी घायल की जान जा सकती थी।
इससे पहले की वहां का कोई स्टॉफ मरीज को संभालता, सतपाल ने थोड़ी दूरी पर मौजूद स्ट्रेचर को खींचकर जीप के पास खड़ा कर दिया। आनन-फानन में तीनों ने निरंजन की लाश को स्ट्रेचर पर लिटाया और धकेलते हुए उधर को बढ़े जिधर ‘इमरजेंसी’ का साईन बोर्ड चमक रहा था। तब तक अस्पताल का स्टॉफ भी वहां पहुंच गया।
“इसे गोली लगी है” - सतपाल जोर से बोला – “फौरन किसी डॉक्टर को बुलाओ।”
तब तक डॉक्टर खुद ही वहां पहुंच चुका था। घायल की सूरत पर एक निगाह डालते ही वह समझ गया कि उसके सामने मौजूद शख्स दुनिया से विदा हो चुका था। इसके बावजूद उसने निरंजन की नब्ज चेक की, उसकी धड़कने चेक कीं, आखों को खोलकर देखा फिर अफसोस भरे लहजे में बोला, “ये मर चुका है।”तीनों पुलिसियों ने यूं मुंह बनाकर दिखाया जैसे उनके किसी सगेवाले की मौत हो गयी हो।
“लेकिन गोली तो कंधे में लगी है” - सतपाल बोला – “फिर इतनी जल्दी इसकी जान कैसे चली गई?”
“ब्लीडिंग की वजह से, आप खुद की वर्दी को ही देखिये इसके खून से एकदम रंगी हुई दिखाई दे रही है।”
सुनकर सतपाल ने एक लंबी सांस ली फिर बोला, “जब हम इसे यहां तक ले ही आये हैं तो कम से कम आप इसका मुआयना कर के कोई रिपोर्ट तो बना ही दीजिये।”
डॉक्टर ने सहमति में सिर हिलाया फिर अपने काम में जुट गया।
आधे घंटे बाद पुलिस जीप एक बार फिर से पनौती के घर पहुंची। वह तब भी बदस्तूर टीवी देखने में व्यस्त था।
सतपाल को आया देखकर इस बार उसने कहे बिना ही टीवी को म्यूट कर दिया, “क्या हुआ बच गया?”
“नहीं खून ज्यादा बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी।”
“कमाल है” - पनौती बोला – “इतनी ब्लीडिंग हुई तो नहीं थी, जो वह अपनी जान से हाथ धो बैठता।”
“मौत का कोई भरोसा नहीं होता भाई, जिसकी जब, जहां, जैसे लिखी होती है, आकर रहती है। उसने मरना नहीं होता तो क्यों रात के वक्त एक ऐसे आदमी के घर पहुंच जाता, जिसके भीतर डर नाम की कोई चीज नहीं थी। या फिर क्योंकर तीन पिस्तौलों की मौजूदगी में तू उनपर काबू करने में कामयाब हो पाता?”
पनौती ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिला दिया।
सतपाल ने फोन कर के वारदात की सूचना वीर सिंह को दे दी। फिर उसी के कहने पर फोरेंसिक टीम और एंबुलेंस को फोन कर दिया।
आधे घंटे के भीतर वीर सिंह वहां पहुंच गया।
उसने सरसरी तौर पर कमरे में पड़ी दोनों लाशों का मुआयना किया, फिर सतपाल से वारदात की जानकारी ली, उसके बाद पनौती का विस्तृत बयान लेने के बाद कहीं जाकर उसने डीसीपी भड़ाना को फोन कर के घटना की जानकारी दे दी।
तभी फोरेंसिक टीम के लोग वहां पहुंचकर अपने काम में लग गये। आधे घंटे की जांच पड़ताल के बाद उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला वह पूरी तरह पनौती के बयान से मैच करता था, क्योंकि उसने पूरे घटना क्रम में कोई जोड़ तोड़ करने की कोशिश नहीं की थी। यहां तक कि बाहर के कुंडे और टूटे हुए ताले से भी भीतर मरे पड़े दोनों चमचों के फिंगर प्रिंट बरामद हो गये।
राज शर्मा के हक में सबसे बड़ी बात ये रही कि सतपाल और उसके साथ मौजूद दोनों सिपाहियों ने वीर सिंह को बताया कि अस्पताल ले जाते वक्त निरंजन राजपूत ने ये कबूल किया था कि वह पनौती को सबक सिखाने के लिये अपने दो आदमियों के साथ हथियार बंद होकर उसके घर में जा बैठा था, अपनी बात की पुष्टि के लिये सतपाल ने अपना मोबाइल फोन भी वीर सिंह को थमा दिया जिसमें जीप में उसके और निरंजन के बीच हुआ सारा वार्तालाप रिकार्ड था।
तभी डीसीपी भड़ाना वहां पहुंच गया। तमाम पुलिस वालों ने एक साथ उसे सेल्यूट किया फिर वीर सिंह जल्दी जल्दी उसे बताने लगा कि वहां क्या और कैसे घटित हुआ था।
“किसने किया ये सब?”
जवाब में वीर सिंह ने पनौती की तरफ उंगली उठा दी। उसपर निगाह पड़ते ही भड़ाना के मुंह से एक लंबी आह निकल गई।
“अभी कल की ही बात है, सतपाल को आपकी खातिर निरंजन के एक आदमी पर गोली चलानी पड़ी थी, कहिये कि मैं गलत कह रहा हूं।”
“सरासर गलत कह रहे हैं, सतपाल साहब ने मेरी खातिर उसपर गोली नहीं चलाई थी बल्कि अपनी ड्यूटी निभाते हुए एक आम आदमी की जान बचाई थी, जिसे एक गुंडा गोली मारने पर उतारू था। अगर आपने उसी वक्त निरंजन को गिरफ्तार कर लिया होता तो आज वह जिन्दा होता।”
“ठीक है आपकी जान बचाने की खातिर ही हमारे एक ऑफिसर ने उस काम को अंजाम दिया था, मगर आखिरकार तो आपके लिये ही किया था।”
“नहीं मैं ऐसा नहीं समझता।”
“आप कहीं ये तो नहीं कहना चाहते कि अगर उसने आप पर गोली चला भी दी होती तो आपका कुछ नहीं बिगड़ा होता क्योंकि आपने आबेहयात पी रखा है।”
“नहीं मेरा मतलब ये है कि किस की जान बचाना है और किसे मर जाने देना है, यह सृष्टि के निर्माता के हाथ में है। सतपाल साहब तो बस निमित्त मात्र थे, मेरी मौत उस घड़ी नहीं लिखी थी तो नहीं लिखी थी, चाहे सतपाल साहब वहां होते या नहीं होते, आज भी नहीं लिखी थी, इसीलिये मैं आपके सामने सही सलामत खड़ा हूं।”बहस बहुत करते हैं आप।”
“जिसकी शुरूआत आपने की थी, जब कि आप बखूबी इस बात को समझते हैं कि तीन हथियारबंद लोगों का किसी के घर का ताला तोड़कर भीतर जा बैठना, किसी भी हाल में जायेज नहीं ठहराया जा सकता। वो तो ईश्वर को मेरा मारा जाना कबूल नहीं था वरना बड़े-बड़े लोगों के नाम की धौंस देने वाले निरंजन राजपूत और उसके चमचों ने मुझे मार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।”
“जबकि आपके शरीर पर मुझे एक खरोंच तक नहीं दिखाई दे रही।”
“जो कहना है साफ-साफ कहिये, घुमा फिराकर कही गई बातें बड़ी मुश्किल से ही मेरे पल्ले पड़ती है। अगर आप ये कहते हैं कि मैंने जानबूझकर तीनों को गोली मारी थी तो साबित कर के दिखाइये। मगर सबसे पहले इस बात का जवाब ढूंढ लीजियेगा कि तीनों बमय हथियार मेरे घर में क्या कर रहे थे?”
भड़ाना ने वीर सिंह की तरफ देखा, तो उसने हौले से इंकार में गर्दन हिला दी।
“ठीक है, आप सुबह थाने पहुंचकर अपना बयान दर्ज करवा दीजियेगा, आगे हम देखेंगे कि हमें क्या करना है।”
“जी बेशक पहुंच जाऊंगा।”
इसके बाद वीर सिंह के साथ चलता भड़ाना गली में कुछ आगे निकल आया।
“मुझे इस लड़के के कांफिडेंस पर हैरानी होती है, पिछले केस में भी हुई थी। कैसा आदमी है, किसी से नहीं डरता, ना पुलिस से ना ही निरंजन जैसे गुंडों से। और बहस करना तो जैसे इसकी आदत में शुमार जान पड़ता है।”
“जुबान इसकी बेशक कुछ ज्यादा चलती है सर!” -वीर सिंह बोला – “मगर और कोई खराबी इसके भीतर नहीं है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि पूरे घटनाक्रम के बारे में उसने कुछ छिपाया हो सकता है। फिर फोरेंसिक जांच के नतीजे और निरंजन का डाईंग डिक्लेरेशन भी उसकी बात की पुष्टि करता है। इसके बावजूद अगर आप कहें तो मैं उसे हिरासत में ले सकता हूं, पूछताछ के लिये ही सही, वजह तो बराबर है हमारे पास।”
“अरे नहीं भाई, समझ लो ये अनोखा लड़का मुझे बहुत पसंद है, देखा नहीं था पार्षद वाले केस को इसने कैसे चमत्कृत कर देने वाले ढंग से सुलझा कर दिखाया था, जबकि मुझे हर वक्त यही लग रहा था कि इसके दिमाग में कोई नुक्स आ गया है। फिर निरंजन क्या हमारा सगेवाला था, या कोई ऐसा शख्स था जिसका जिंदा रहना जरूरी था। क्या तुम और क्या मैं कभी ना कभी उसकी मौत की कल्पना तो हमने जरूर की होगी, भले ही उसके रसूख के चलते हम उसे यस सर, ओके सर कहते फिरते थे।”
“बात तो एकदम दुरूस्त है जनाब आपकी।”
“अब मैं चलता हूं, सुबह इसका बयान दर्ज कर के कोर्ट में गवाही करा देना, मेरे ख्याल से तो इसपर शायद ही कोई आंच आये, फिर भी ख्याल रखना, इसके खिलाफ जाती कोई छोटी मोटी बात दिखाई भी दे जाये तो नजरअंदाज कर देना।”
“जी जनाब” - वीर सिंह बोला – “जब आप इसकी इतनी तारीफ कर ही चुके हैं तो मेरे ख्याल से इसके हालिया कारनामें के बारे में भी आप जरूर सुनना चाहेंगे।”
“और क्या कर दिया इसने?”
“प्रियम शर्मा के कत्ल वाले केस में इसने करीब करीब साबित कर दिखाया है कि उसकी कातिल कोमल शर्मा नहीं हो सकती। बल्कि किसी ने सुनियोजित ढंग से उसका कोल्ड ब्लडिड मर्डर किया था।”
“जबकि वह खुद अपना गुनाह कबूल कर चुकी है।”
“बेशक कर चुकी है मगर अब मुझे भी लगता है कि वह किसी बड़ी गलतफहमी का शिकार हुई थी। ऊपर से अनुराग शर्मा की बीवी कल्पना की हत्या भी उसी केस की एक और कड़ी जान पड़ती है।”
“ये तो तुम नई बात बता रहे हो।”
“पहले मैं खुद श्योर हो जाना चाहता था सर।”
“अगर ऐसी कोई बात थी तो सतपाल क्या आंखें बंद कर के बैठ गया था?”ऐसा नहीं था सर, मगर हालात और घटनास्थल का मुआयना उस वक्त यही कहते थे कि गोली कोमल ने ही चलाई थी, ऊपर से वह खुद उस बात को कबूल कर रही थी, ऐसे में शक की कोई गुंजायश ही कहां बचती थी?”
“ठीक है जो ठीक समझो करो, मगर बेगुनाह होने की सूरत में उस लड़की का जेल में रहना गलत है, फौरन उसकी रिहाई का कोई इंतजाम करो।”
“यस सर।”
“और बिना नागा मुझे केस की प्रोग्रेस रिपोर्ट देते रहना।”
“ऐसा ही होगा सर।”
“गुड।” कहकर वह अपनी कार में जा बैठा।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
 
Well-known member
1,170
1,352
143
22 जलाई 2021
डीसीपी की मौजूदगी में पनौती का विस्तृत बयान दर्ज हुआ, जिसके बाद उसे सीजेएम की अदालत में पेश किया गया। जज के पूछने पर उसने सिलसिलेवार सारा घटनाक्रम बयान कर दिया। फिर मौके पर पहुंचे इंस्पेक्टर सतपाल सिंह का बयान हुआ, पुलिस ने बतौर साक्ष्य फोरेंसिक रिपोर्ट और निरंजन राजपूत का डाईंग डिक्लरेशन अदालत में पेश किया।
तमाम बातों को सुनने के बाद अदालत ने राज शर्मा को हिरासत में भेजने की कोई जरूरत ना समझते हुए पुलिस को निर्देश दिया कि अगली पेशी पर वे लोग अपनी फाइनल रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें।
उसके बाद पनौती आजाद था।
तीन बजे के करीब अदालत से फारिग होकर वह सतपाल के साथ बाटा चौक स्थित पेट्रोल पम्प पहुंचा, एडवोकेट ब्रजेश यादव को सतपाल ने पहले ही फोन कर के वहां पहुंचने को कह दिया था।
यादव उन्हें अपना इंतजार करता मिला।
“मुझे क्यों बुलाया? जबकि मैं पहले ही कबूल कर चुका हूं कि कल मैं यहां आया था।”
“हमें यहां की पिछले रोज की सीसीटीवी फुटेज देखनी है, हम चाहते हैं कि हमारे साथ-साथ आप भी उस फुटेज को देखें।”
“फायदा क्या होगा?”
“आप के जरिये हमें किसी ऐसे शख्स का पता लग सकता है जिसका शर्मा फैमली में आना-जाना हो, क्योंकि हम तो सिर्फ उन्हीं लोगों से वाकिफ हैं जिनसे हमारा अब तक आमना-सामना हो चुका है।”
बात यादव की समझ में आ गई।
मैनेजर के कमरे में पहुंचकर तीनों ने एक साथ सीसीटीवी फुटेज देखना शुरू किया। जो कि बहुत ही बोरियत वाला काम साबित हुआ। मगर स्क्रीन से निगाह हटाये बिना तीनों उस काम को बदस्तूर अंजाम देते रहे। एडवोकेट ब्रजेश यादव की कार वहां एक बजे के करीब पहुंची, उसने पेट्रोल भरवाया रसीद हासिल की और वापिस लौट गया, तब तक एक भी जाना-पहचाना शख्स सामने नहीं आया था। संजीव चौहान वहां दो बजे पहुंचता दिखाई दिया। उसने पेट्रोल भरवाया, रसीद हासिल की और चला गया।
उस बात ने पनौती और सतपाल को बुरी तरह चौंका कर रख दिया।
“ये तो कहता था कि पेट्रोल की रसीद नहीं ली थी इसने।”
“भूल गया होगा।” पनौती हंसता हुआ बोला।
“इतना बड़ा भुलक्कड़ तो कोई नहीं होता भाई, जो याद दिलाने पर भी महज कुछ घंटों पहले की बात याद न आ सके। जबकि सालों पुरानी कॉलेज के दिनों की बातें उसे ज्यों की त्यों याद है।”
“इस वक्त उस बात पर बहस करने का क्या फायदा? फुटेज पर ध्यान दो ताकि हम जल्दी से जल्दी यहां से फारिग हो सकें।”
सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया।
फुटेज प्ले होती रही, रात के नौ बज गये, मगर तब तक सिर्फ तीन बजे तक की फुटेज ही वे लोग देख पाये थे।
यादव बैठा-बैठा बोर होने लगा, मगर उससे कुछ कहते नहीं बना, क्योंकि पनौती और सतपाल में किसी ने भी अभी तक उस काम में अरूचि नहीं दिखाई थी।
तभी डॉली का फोन आ गया।
पनौती ने कॉल अटैंड की।
“कहां हो?”
“पास में ही हूं, बोलो।”
“बंगले के बाहर कल वाली जगह पर मुझसे आकर मिलो।”
पनौती उठ खड़ा हुआ। सतपाल को बताकर वह सड़क पर पहुंचा और एक ऑटो में सवार हो गया।
पंद्रह मिनट बाद मीनाक्षी के बंगले से थोड़ा पहले उसने ऑटो रूकवाया और इंतजार करने लगा।
ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा, पांच मिनट बाद ही डॉली वहां पहुंच गयी।
“बैठो।”
पनौती के कहने पर वह ऑटो में सवार हो गई।
“वापिस चलो भाई।” वह ऑटो ड्राइवर से बोला।
“कुछ नया पता लगा?” पनौती ने पूछा।
“लगा तभी तो तुम्हें बुलाया, वरना घर तो मैं अकेले भी जा सकती थी।”क्या जाना?”
“प्रियम और कल्पना के बीच आशनाई चल रही थी।”
“तो वकील साहब ने तुम्हें भी वह कहानी सुना दी?”
“वकील को क्या पड़ी थी जो वह घर की नौकरानी से ऐसे विषय पर बात करता।”
“फिर कैसे जाना?”
“शीतल से, वह कई सालों से बंगले में काम कर रही है, वो तो ये तक कहती है कि एक बार उसने अपनी आंखों से दोनों को बिस्तर पर गलबहियां करते देखा था।”
“हैरानी की बात है कि कोमल को इस बात की खबर नहीं हुई।”
“हो सकता है बीवी के आने के बाद उसने कल्पना से रिश्ता तोड़ लिया हो।”
“हो तो सकता है, ऐसे में अनुराग के कातिल निकल आने की संभावना तो बढ़ सी गई लगती है।”
“वो तुम लोग जानो, लेकिन कम से कम एक ऐसी बात जरूर है जो ये साबित करती है कि कत्ल के वक्त अनुराग पहली मंजिल पर अपने बेडरूम में रहा नहीं हो सकता।”
“क्या?”
“शीतल का कहना है कि गोली चलने से दस मिनट पहले वह कल्पना को कॉफी देने गई थी, उस वक्त वह कमरे में वह अकेली थी। उसे कॉफी देने के बाद शीतल वापिस किचन में लौट गई थी, इसलिए अनुराग अपने कमरे में कब लौटा, लौटा भी था या नहीं, इस बारे में वह नहीं बता पाई। वह कहती है कि जिस वक्त गोली चलने की आवाज गूंजी थी उस वक्त वह सिंक के सामने खड़े होकर बर्तन धो रही थी, आवाज सुनकर वह चौंकी जरूर थी मगर किचन से बाहर निकल कर माजरा जानने की कोशिश नहीं की। मगर बाद में जब प्रियम के कमरे का दरवाजा जोर जोर से पीटा जाने लगा तो वह किचन से बाहर निकली, और ये देखकर हैरान रह गई कि घर के सब लोग छोटे साहब का दरवाजा पीट रहे थे। उसी वक्त अनुराग उसे सीढ़ियां उतरता दिखाई दिया था। इसलिये होने को ये भी हो सकता है कि उस वक्त वह कमरे की बजाये कहीं और से वहां पहुंचा हो।”
“ये तो बड़ी खतरनाक बात बता रही हो तुम।”
“अगर प्रियम और कल्पना का कातिल एक ही है तो समझ लो कि मीनाक्षी और वकील में से कोई भी कातिल नहीं हो सकता, क्योंकि कम से कम प्रियम के कत्ल के वक्त तो वो दोनों हॉल में मौजूद थे।”
“और कुछ?”
“नहीं बस इतना ही, अब तुम मुझे ये बताओ कि कल काम पर आना है मुझे या नहीं?”
“नहीं अब कोई जरूरत नहीं दिखाई देती।”
वापिस पेट्रोल पम्प पर पहुंचकर पनौती ऑटो से उतर गया, जब कि डॉली उसी पर सवार होकर अपने घर की तरफ चल पड़ी।
मैनेजर के कमरे में पहुंचकर पनौती ने सतपाल और यादव को बदस्तूर सीसीटीवी फुटेज देखता पाया। खामोशी के साथ वह खुद भी उसी काम में जुट गया।
वक्त गुजरता गया, फुटेज प्ले होती रही।
फिर छह बजे के करीब एक ऐसी कार वहां पहुंचती दिखाई दी जिसकी ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को देखकर पनौती बुरी तरह चौंका। उसने हाथ बढ़ाकर वहां पड़े की बोर्ड का स्पेस वाला बटन दबा दिया, रिकार्डिंग वहीं रूक गयी।
“क्या हुआ?” सतपाल बोला।
“जरा इस कार से उतरते शख्स को देखो कुछ याद आता है तुम्हें?”
सतपाल ने गौर से देखा तो फौरन पहचान गया, “ये तो निरंजन का ड्राइवर विशम्भर मालूम पड़ता है।”
“मालूम नहीं पड़ता, वही है।”
“तो भी क्या हुआ, उसके यहां से पेट्रोल भरवाने पर कोई मनाही तो नहीं है।”
“वो तो खैर किसी पर भी नहीं है।” कहकर उसने फुटेज दोबारा प्ले कर दी।
गार्ड ने पेट्रोल भरवाया और वहां से चलता बना, पेट्रोल की रसीद हासिल करने की उसने कोई कोशिश नहीं की।आखिरकार सुबह के तीन बजे कहीं जाकर वे लोग पिछले रोज की नौ बजे तक की फुटेज देखने में कामयाब हो पाये, मगर आगे कोई काम की चीज उन्हें दिखाई नहीं दी, लिहाजा वह मशक्कत बेकार साबित हुई थी।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
 

Top