- 1,170
- 1,352
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सतपाल ने नये सिरे से लाश का मुआयना किया फिर बोला, “कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते कि इसकी हत्या लूटने की खातिर की गई है?”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता, मगर हैरान जरूर हूं कि इसके कत्ल के बाद हत्यारे को इसके आभूषण उतारने की जरूरत क्यों पड़ी?”
“लालच आ गया होगा उसके मन में।”
“फिर तो ये इनसाइड जॉब नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“क्योंकि आखिरकार तो लाश के आभूषण घर वालों को मिल ही जाने थे, ऐसे में लाश नीचे फेंकने से पहले इन चीजों को उतारना क्यों जरूरी था?”
“फिर तो समझ लो कि कातिल वकील है, या फिर वह छोकरा संजीव चौहान, क्योंकि बाहरी लोगों के तौर पर अभी तक उन दोनों के नाम ही हमारे सामने आये हैं।”
“और भुवनेश कातिल क्यों नहीं हो सकता, वह भी तो बाहर का ही आदमी है।”
“इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि बहन के कत्ल की उसके पास कोई वजह नहीं हो सकती, ना ही बहन या जीजा के छोटे भाई की मौत से उसे कोई फाइनेंशियल गेन होना था।”
“और निरंजन राजपूत के बारे में क्या कहते हो?”
“उसके बारे में क्या कहूं, प्रियम शर्मा के साथ तो फिर भी उसकी तकरार हुई थी, इसलिए बहस के लिये हम उसे कातिल मान सकते हैं, मगर कल्पना के साथ उसकी भला क्या दुश्मनी रही हो सकती है?”
“क्या पता वह पूरे परिवार के साथ ही खुंदक खाये बैठा हो? ऐसे में छत पर जो गोली चलाई गई थी उसका एक नया जवाब भी मुमकिन हो सकता है।”
“कैसा जवाब?”
“उसने हमें धमकी दी थी, इसलिए हमें जान से मारने के लिये यहां पहुंच गया या फिर अपने किसी गुर्गे को भेज दिया।”
“जैसे आज के बाद हम शहर से गायब हो जाने वाले थे? दोबारा उसे मौका नहीं मिलने वाला था।”
“ऐसा नहीं था, मगर उसको सामने रखकर सोचें तो हम दोनों को शूट कर देने की वजह सहज ही दिखाई देने लगती है।”
“ठीक है भाई पता करेंगे कि कल्पना के कत्ल के वक्त वह कहां था, हम दोनों पर गोली चलने के वक्त कहां था?” कहकर उसने लाश को दोबारा चादर से ढक दिया और उठ खड़ा हुआ।
“अतर सिंह!” उसने एक एएसआई को आवाज दी।
“जी जनाब।”
“लाश को एंबुलेंस में रखवा दो।”
“अभी लीजिये जनाब।”
“इस वक्त यहां जितने भी लोग मौजूद हैं” - सतपाल वहां खड़ी भीड़ से बोला – “चाहे वह घर के लोग हों या फिर बाहर के, चलकर हॉल में बैठिये, हमारी इंक्वायरी पूरी होने से पहले कोई भी यहां से बाहर नहीं जायेगा।”
“मैं तो अभी अभी यहां पहुंचा हूं।” संजीव चौहान बोला।
“बेशक अभी पहुंचे हैं, लेकिन पूछताछ फिर भी होगी, जाकर हॉल में बैठिये।”
संजीव फिर कुछ नहीं बोला।
सब लोग एक एक कर के वहां से हॉल की तरफ बढ़ गये।
सबसे आखिर में वहां एडवोकेट ब्रजेश यादव रह गया जिसकी वहां से हिलने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती थी।
“आपको अलग से कहना पड़ेगा?” सतपाल उसे घूरता हुआ बोला।
“नहीं, लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।”
“कहिये।”
“मैं चाहता हूं कि आप इस केस में मुझे और मीनाक्षी को एक साथ घसीटने की कोशिश ना करें, इस बारे में कम से कम तब तक अपनी जुबान बंद रखें जब तक कि आपको ये न लगने लगे कि कातिल हम दोनों में से कोई एक है या हम दोनों ही कातिल हैं।”
“जैसे पुलिस आपके कहे को मानने के लिये बाध्य है।”
“नहीं है, इसीलिये रिक्वेस्ट कर रहा हूं।”
“ठीक है, हॉल में पहुंचिये आगे देखते हैं कि उस बारे में आपकी मदद की जा सकती है या नहीं।”
सहमति में सिर हिलाता यादव हॉल की तरफ बढ़ गया।
“अजीब आदमी है” - सतपाल पनौती की तरफ देखता हुआ बोला – “इसका मिजाज मेरी समझ से परे है।”
“जबकि कहना तुम्हें ये चाहिये था कि शातिर आदमी है, इसलिए इसके कातिल निकल आने के चांस सबसे ज्यादा हैं।”तू कहे तो नोट कर लेता हूं, अगली बार बोल दूंगा।”
पनौती हंसा।
“जानता है इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूं।”
“यही कि अभी एक मामला सॉल्व हुआ नहीं कि दूसरा गले पड़ गया।”
“नहीं, मैं सोच रहा हूं कि क्या छत पर गोली चलाने वाला शख्स यहां मौजूद लोगों में से कोई एक हो सकता है?”
“तुम इन सभी के हाथों को गन पाउडर के लिये चेक क्यों नहीं करवाते?”
“बहुत वक्तखाऊं काम है भाई, इसके लिये सस्पेक्ट को लैब में ले जाकर उसके हाथों का पैराफिन कास्ट उठाना पड़ता है, फिर कार्बन के कणों के लिए उसकी जांच की जाती है, इसके बाद पता चलता है अमुक शख्स ने हाल ही में गोली चलाई थी या नहीं। कोई एक या दो जना होता तो शायद संभव हो भी जाता। यहां तो कई लोगों जांच करवानी पड़ेगी, उसके बावजूद भी नतीजा हासिल होने की कोई उम्मीद नहीं है। कातिल ने जहां इतनी सावधानी बरती है वहां उसे इस बात की भी जानकारी जरूर होगी कि गोली चलाने के बाद उसके हाथों की जांच उसका पोल खोल कर रख देगी, उस बारे में उसने जरूर कोई ना कोई सावधानी बरती होगी।”
“क्या पता ना बरती हो, क्या पता बेध्यानी में ही उससे कोई भूल हो गई हो, या फिर उसे इस बात की जानकारी ही ना हो कि पैराफिन टेस्ट के जरिये इस बात का पता लगाया जा सकता है कि अमुक शख्स ने हाल-फिलहाल गोली चलाई थी या नहीं चलाई थी।”
“इतने लोगों को एक साथ टेस्ट के लिये तैयार कर पाना क्या तुम्हें मजाक लगता है, ऊपर से इस काम के लिये डीसीपी साहब की परमिशन लेनी होगी, जिनसे इन लोगों की खास पहचान मालूम पड़ती है, अनुराग शर्मा के मुंह से तुम खुद भी सुन ही चुके हो।”
पनौती ने उसे घूर कर देखा।
“इस बार तेरे घूरने का भी कोई असर नहीं होगा भाई, तू कहे तो मैं वीर साहब से बात कर के देखता हूं, मगर जवाब इंकार में ही सुनने को मिलेगा।”
पनौती ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, “सिगरेट देना प्लीज।”
सतपाल ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसके हवाले कर दिया।
उसने दो सिगरेट सुलगाये जिसमें से एक सतपाल को थमाता हुआ बोला, “तुम्हारे साथ रहकर ही मैंने जाना कि एक पुलिस ऑफिसर कदम कदम पर कितना लाचार हो जाता है, प्रोसिजर को फॉलो करने के चक्कर में किस तरह हर वक्त चक्की के दो पाटों के बीच पिसता रहता है, जहां एक तरफ उसके आला अफसर होते हैं तो दूसरी तरफ मुलजिम।”
“वही तो, जबकि आम जनता पुलिस को अक्सर वर्दी वाला गुंडा कहने से भी बाज नहीं आती।”
“आम जनता कैसे आ सकती है सतपाल साहब, जबकि तुम लोगों का सबसे आसान शिकार वही होती है, रिक्शे वाले को पीट दो, ट्रक ड्राइवर को बेवजह घंटों सड़क पर खड़े रखो, झुग्गी में रहते किसी शख्स को दिन में चार बार ऐसे जुर्म के लिये उठाकर डंडा परेड करो जो उसने किया ही ना हो। सच पूछो तो तुम्हारी राहों में अड़चने आम जनता नहीं खड़ी करती, बल्कि रसूख वाले लोग खड़े करते हैं, जैसे कि मीनाक्षी शर्मा, जैसे कि संजीव चौहान, जैसे कि निरंजन राजपूत, तुम लोग चाहकर भी उनसे उस तरह से पेश नहीं आ सकते जैसे कि निचले तबके के लोगों के साथ अक्सर आते दिखाई देते हो।”
“बोल चुका?”
“नहीं अभी बाकी है” - कहकर उसने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा फिर धुंआ उगलता हुआ बोला – “अभी अगर ये घटना किसी मामूली सी कॉलोनी में घटित हुई होती, तो मरने वाली का पूरा परिवार हाथ बांधे तुम्हारे सामने थाने में खड़ा होता, तब तुम्हें पैराफिन टेस्ट की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि जो नतीजा उस टेस्ट के जरिये हासिल होना है वह तुम लात-घूंसों के बल पर बड़ी आसानी से हासिल कर लेते। और बात सिर्फ फौजदारी की ही नहीं है, हर तरफ यही आलम है। ट्रैफिक पुलिस की ही ले लो, एक मर्सिडीज बेशक रेड लाइट जम्प कर के निकल जाये उसे रोकने की उनकी मजाल नहीं हो सकती, मगर किसी छोटी मोटी कार या फिर बाइक के आगे यूं कूद पड़ते हैं कि चालक का जरा सा ध्यान भटक जाये तो वह उसे ठोक ही बैठे। ऐसे में आम जनता क्यों ना सोचने पर मजबूर हो जाये कि कानून सबके लिये बराबर नहीं होता।”
मैं तुम्हारी बातों को काटने की कोशिश नहीं करूंगा, मगर इतना जरूर कहूंगा कि जिस दिन इंस्पेक्टर सतपाल सिंह तुम्हें किसी मजलूम पर जुल्म ढाता दिखाई दे जाये उसी रोज इसे गोली मार देना।”
“शर्म तो आती नहीं है गैरकानूनी सलाह देते हुए, किसी के जुर्म की सजा देने वाला मैं कौन होता हूं, वह काम कानून का है, अलबत्ता ऐसा दिखाई देने पर मैं तुम्हारी वर्दी उतरवाये बिना तो चैन से नहीं बैठने वाला।”
“मुझे मालूम है भाई, चल अब कुछ काम करते हैं।”
दोनों हॉल में पहुंचे।
“इंस्पेक्टर साहब” - मीनाक्षी बोली – “यहां यूं मजमा लगाने का क्या मतलब है?”
“क्यों आप नहीं चाहतीं कि आपकी बहू का हत्यारा पकड़ा जाये, आपके बेटे के कातिल को उसके कुकर्मों की सजा मिले।”
“बेशक चाहती हूं, मगर हत्यारा क्या अभी तक यहां बैठा होगा?”
“तो फिर हमें अपना काम करने दीजिये” -सतपाल उसके सवाल को नजरअंदाज कर के बोला – “हम सामने वाले कमरे में जा रहे हैं सबसे पहले घर के नौकरों को एक-एक कर के वहां भेजिये, उसके बाद बाकी लोगों का बयान होगा।”
कहकर वह जवाब की प्रतीक्षा किये बिना प्रियम के कमरे में जा घुसा और वहां मौजूद इकलौती कुर्सी खींचकर बैठ गया, पनौती ने वैसी कोई कोशिश नहीं की। एक एक कर के चार नौकर वहां आये और चले गये, उनसे कोई काम की बात मालूम नहीं पड़ी क्योंकि हत्या के वक्त उनमें से कोई भी हॉल में नहीं था।
तत्पश्चात डॉली ने भीतर कदम रखा।
“बैठो” - सतपाल बेड की तरफ इशारा कर के बोला।
वह पलंग पर पैर लटका कर बैठ गयी।
“कुछ जान पायीं?”
“खास कुछ नहीं, सिवाय इसके कि भुवनेश की अपनी बहन के साथ कोई अनबन थी।”
“कैसी अनबन?”
“मालूम नहीं, मैने तो बस दोनों के व्यवहार से ऐसा महसूस किया था।”
“कत्ल के वक्त वह कहां था?”
“पहले पता तो चले कि कत्ल हुआ कितने बजे?”
“तुम्हारे मिस्टर राइट का अंदाजा है, कि ठीक नौ बजे कल्पना को छत से नीचे फेंका गया था, समझ लो उससे कुछ मिनट पहले उसका गला घोंटा गया होगा।”
“वह कहां था ये बता पाना मुश्किल है, मगर साढ़े आठ बजे के बाद मैंने उसे कमरे से बाहर निकलते नहीं देखा था। लेकिन मैं हर वक्त हॉल में नहीं थी इसलिए इस बात की गारंटी नहीं कर सकती।”
“और मीनाक्षी के बारे में क्या कहती हो?”
“जो कहना है बाद में कहूंगी, पहले राज मुझे ये बताये कि उसके बेडरूम में क्या कर रहा था?”
“वह मुझे अपना कमरा दिखाने के लिये ले कर गई थी।” पनौती बोला।
“क्यों तुमने क्या कभी किसी विधवा औरत का कमरा नहीं देखा था?”
“अरे चला भी गया तो क्या आफत आ गई?”
“ये मैं बताऊं तुम्हें, या तुम समझते हो कि हॉल में मुंह से मुंह सटाकर तुम उसके साथ जो मीठी मीठी बातें कर रहे थे, उसका मुझे अंदाजा नहीं है।”
“है तो है, तुम्हें जो समझना हो समझो।”
“मैं आंटी को बताऊंगी इस बारे में।”
“खबरदार जो मम्मी से एक लफ्ज भी कहा।”
“कहूंगी क्या कर लोगे?”
“डॉली! डॉली!” - सतपाल उसे टोकता हुआ बोला – “इस बारे में तुम दोनों बाद में लड़ सकते हो, इसलिए मुद्दे पर आओ, वरना किसी को तुमपर शक हो सकता है।”
“मीनाक्षी” - वह मुंह फुलाकर बोली – “नौ बजे के करीब हॉल में दिखाई दी थी मुझे, उसके दिखने के थोड़़ी ही देर बाद ये भागता हुआ सीढियां उतर कर हॉल से बाहर निकल गया था। अगर इसने वहां किसी को पड़ा देख भी लिया था तो यूं गोली की तरह भागने की इसे क्या जरूरत थी, लाश उठकर कहीं भाग जाती? आराम से चलकर नहीं जा सकता था?”
“मुझे लगा था कि वहां तुम पड़ी हुई हो, तभी मैं घबराकर भागा था।”
“सुन लीजिये इंस्पेक्टर साहब, अब ये मेरी मौत की कामना भी करने लगा है। शादी से पहले ही इसे मैं लाश बनी दिखने लगी हूं, बाद में तो जरूर ये अपने हाथों से मेरा गला घोंट देगा।”
“पागलों जैसी बात मत करो, तुम सचमुच यहां की नौकरानी नहीं हो, जिसे नीचे गिरा समझकर मैं धैर्य से काम लेता।”
“ओह तो तुम्हें मेरी परवाह भी है।”
“नहीं बिल्कुल भी नहीं है, मैं तो ये सोचकर डर गया था कि तुम्हें यहां नौकरी पकड़ने के लिये मैंने कहा था, इसलिए तुम्हारी सलामती की जिम्मेदारी मुझपर थी, तभी मैं घबराकर दौड़ पड़ा था।”
“या इसलिये दौड़े थे कि अगर जिंदा बच गई होऊं तो बाकी की कसर तुम अपने हाथों से पूरी कर दो।”
“ऐसा करो” - सतपाल बोला – “तुम दोनों बाहर चले जाओ, जब तुम्हारी बक-बक बंद हो जाये तो वापिस आ जाना।”
“मैं कुछ नहीं बोल रही।”
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“मुझे इससे कोई बात नहीं करनी।” वह खिन्न भाव से बोला।
“गुड! तो अब ये बताओ कि राज के दिखाई देने से कितना पहले तुमने मीनाक्षी को हॉल में देखा था।”
“एक मिनट! बड़ी हद डेढ़ इससे ज्यादा नहीं हो सकता।”
“और कुछ दिखाई दिया तुम्हें?”
“दिन में वकील साहब का एक फेरा लगा था यहां, मगर आधे घंटे में वापिस लौट गये थे।”
“अनुराग कहां था तब?”
“तीन बजे तक यहीं था, उसके बाद ऑफिस के लिये निकल गया था।”
“वकील साहब के अलावा कोई आया गया?”
“नहीं और तो कोई नहीं आया।”
“अनुराग के आने के बाद जब मैं और राज छत पर चले गये थे, तब क्या हमारे पीछे-पीछे मीनाक्षी या अनुराग में से कोई वहां से गायब दिखाई दिया था?”
“अनुराग का पता नहीं मगर मीनाक्षी हर घड़ी वहीं थी, दरअसल उस वक्त मेरा सारा ध्यान लाश की तरफ था, जबकि अनुराग मेरे पीछे कहीं खड़ा था, इसलिए उसपर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।”
“कभी तो नजर पड़ी ही होगी तुम्हारी?”
“हां पड़ी थी मगर तब तक आप लोग वापिस लौट आये थे।”
“वकील साहब यहां कब पहुंचे थे?”
“आप दोनों के जाने के करीब दस-बारह मिनट बाद।”
“और संजीव चौहान?”
“वह भी वकील के पीछे पीछे ही यहां पहुंच गया था।”
“संजीव को तुम पहले से जानती हो?”
“हां।”
पनौती के कान खड़े हो गये।
“कैसे जानती हो?”
“वैसे ही जैसे कि कोमल या प्रियम को जानती हूं, संजीव भी हमारे कॉलेज में ही था।”
“कैसा लड़का है?”
“अच्छा है, कोमल के साथ बहुत अच्छी बनती थी उसकी।”
“दोनों के बीच कोई प्यार मोहब्बत वाला रिश्ता तो नहीं था?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं था, होता तो वह प्रियम से शादी क्यों करती? जबकि संजीव हर हाल में उससे ज्यादा योग्य था?”
“क्या पता उसकी चाहत एकतरफा रही हो।”
“ये हो सकता है, क्योंकि वह अक्सर कोमल के आगे-पीछे मंडराता दिखाई दे जाता था। जैसे कि चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं, या चलो कैंटीन में कुछ खाते हैं चलकर, वगैरह वगैरह बहाने निकाल ही लेता था।”
“कोमल या प्रियम को ऐतराज नहीं होता था?”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता, मगर हैरान जरूर हूं कि इसके कत्ल के बाद हत्यारे को इसके आभूषण उतारने की जरूरत क्यों पड़ी?”
“लालच आ गया होगा उसके मन में।”
“फिर तो ये इनसाइड जॉब नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“क्योंकि आखिरकार तो लाश के आभूषण घर वालों को मिल ही जाने थे, ऐसे में लाश नीचे फेंकने से पहले इन चीजों को उतारना क्यों जरूरी था?”
“फिर तो समझ लो कि कातिल वकील है, या फिर वह छोकरा संजीव चौहान, क्योंकि बाहरी लोगों के तौर पर अभी तक उन दोनों के नाम ही हमारे सामने आये हैं।”
“और भुवनेश कातिल क्यों नहीं हो सकता, वह भी तो बाहर का ही आदमी है।”
“इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि बहन के कत्ल की उसके पास कोई वजह नहीं हो सकती, ना ही बहन या जीजा के छोटे भाई की मौत से उसे कोई फाइनेंशियल गेन होना था।”
“और निरंजन राजपूत के बारे में क्या कहते हो?”
“उसके बारे में क्या कहूं, प्रियम शर्मा के साथ तो फिर भी उसकी तकरार हुई थी, इसलिए बहस के लिये हम उसे कातिल मान सकते हैं, मगर कल्पना के साथ उसकी भला क्या दुश्मनी रही हो सकती है?”
“क्या पता वह पूरे परिवार के साथ ही खुंदक खाये बैठा हो? ऐसे में छत पर जो गोली चलाई गई थी उसका एक नया जवाब भी मुमकिन हो सकता है।”
“कैसा जवाब?”
“उसने हमें धमकी दी थी, इसलिए हमें जान से मारने के लिये यहां पहुंच गया या फिर अपने किसी गुर्गे को भेज दिया।”
“जैसे आज के बाद हम शहर से गायब हो जाने वाले थे? दोबारा उसे मौका नहीं मिलने वाला था।”
“ऐसा नहीं था, मगर उसको सामने रखकर सोचें तो हम दोनों को शूट कर देने की वजह सहज ही दिखाई देने लगती है।”
“ठीक है भाई पता करेंगे कि कल्पना के कत्ल के वक्त वह कहां था, हम दोनों पर गोली चलने के वक्त कहां था?” कहकर उसने लाश को दोबारा चादर से ढक दिया और उठ खड़ा हुआ।
“अतर सिंह!” उसने एक एएसआई को आवाज दी।
“जी जनाब।”
“लाश को एंबुलेंस में रखवा दो।”
“अभी लीजिये जनाब।”
“इस वक्त यहां जितने भी लोग मौजूद हैं” - सतपाल वहां खड़ी भीड़ से बोला – “चाहे वह घर के लोग हों या फिर बाहर के, चलकर हॉल में बैठिये, हमारी इंक्वायरी पूरी होने से पहले कोई भी यहां से बाहर नहीं जायेगा।”
“मैं तो अभी अभी यहां पहुंचा हूं।” संजीव चौहान बोला।
“बेशक अभी पहुंचे हैं, लेकिन पूछताछ फिर भी होगी, जाकर हॉल में बैठिये।”
संजीव फिर कुछ नहीं बोला।
सब लोग एक एक कर के वहां से हॉल की तरफ बढ़ गये।
सबसे आखिर में वहां एडवोकेट ब्रजेश यादव रह गया जिसकी वहां से हिलने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती थी।
“आपको अलग से कहना पड़ेगा?” सतपाल उसे घूरता हुआ बोला।
“नहीं, लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।”
“कहिये।”
“मैं चाहता हूं कि आप इस केस में मुझे और मीनाक्षी को एक साथ घसीटने की कोशिश ना करें, इस बारे में कम से कम तब तक अपनी जुबान बंद रखें जब तक कि आपको ये न लगने लगे कि कातिल हम दोनों में से कोई एक है या हम दोनों ही कातिल हैं।”
“जैसे पुलिस आपके कहे को मानने के लिये बाध्य है।”
“नहीं है, इसीलिये रिक्वेस्ट कर रहा हूं।”
“ठीक है, हॉल में पहुंचिये आगे देखते हैं कि उस बारे में आपकी मदद की जा सकती है या नहीं।”
सहमति में सिर हिलाता यादव हॉल की तरफ बढ़ गया।
“अजीब आदमी है” - सतपाल पनौती की तरफ देखता हुआ बोला – “इसका मिजाज मेरी समझ से परे है।”
“जबकि कहना तुम्हें ये चाहिये था कि शातिर आदमी है, इसलिए इसके कातिल निकल आने के चांस सबसे ज्यादा हैं।”तू कहे तो नोट कर लेता हूं, अगली बार बोल दूंगा।”
पनौती हंसा।
“जानता है इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूं।”
“यही कि अभी एक मामला सॉल्व हुआ नहीं कि दूसरा गले पड़ गया।”
“नहीं, मैं सोच रहा हूं कि क्या छत पर गोली चलाने वाला शख्स यहां मौजूद लोगों में से कोई एक हो सकता है?”
“तुम इन सभी के हाथों को गन पाउडर के लिये चेक क्यों नहीं करवाते?”
“बहुत वक्तखाऊं काम है भाई, इसके लिये सस्पेक्ट को लैब में ले जाकर उसके हाथों का पैराफिन कास्ट उठाना पड़ता है, फिर कार्बन के कणों के लिए उसकी जांच की जाती है, इसके बाद पता चलता है अमुक शख्स ने हाल ही में गोली चलाई थी या नहीं। कोई एक या दो जना होता तो शायद संभव हो भी जाता। यहां तो कई लोगों जांच करवानी पड़ेगी, उसके बावजूद भी नतीजा हासिल होने की कोई उम्मीद नहीं है। कातिल ने जहां इतनी सावधानी बरती है वहां उसे इस बात की भी जानकारी जरूर होगी कि गोली चलाने के बाद उसके हाथों की जांच उसका पोल खोल कर रख देगी, उस बारे में उसने जरूर कोई ना कोई सावधानी बरती होगी।”
“क्या पता ना बरती हो, क्या पता बेध्यानी में ही उससे कोई भूल हो गई हो, या फिर उसे इस बात की जानकारी ही ना हो कि पैराफिन टेस्ट के जरिये इस बात का पता लगाया जा सकता है कि अमुक शख्स ने हाल-फिलहाल गोली चलाई थी या नहीं चलाई थी।”
“इतने लोगों को एक साथ टेस्ट के लिये तैयार कर पाना क्या तुम्हें मजाक लगता है, ऊपर से इस काम के लिये डीसीपी साहब की परमिशन लेनी होगी, जिनसे इन लोगों की खास पहचान मालूम पड़ती है, अनुराग शर्मा के मुंह से तुम खुद भी सुन ही चुके हो।”
पनौती ने उसे घूर कर देखा।
“इस बार तेरे घूरने का भी कोई असर नहीं होगा भाई, तू कहे तो मैं वीर साहब से बात कर के देखता हूं, मगर जवाब इंकार में ही सुनने को मिलेगा।”
पनौती ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, “सिगरेट देना प्लीज।”
सतपाल ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसके हवाले कर दिया।
उसने दो सिगरेट सुलगाये जिसमें से एक सतपाल को थमाता हुआ बोला, “तुम्हारे साथ रहकर ही मैंने जाना कि एक पुलिस ऑफिसर कदम कदम पर कितना लाचार हो जाता है, प्रोसिजर को फॉलो करने के चक्कर में किस तरह हर वक्त चक्की के दो पाटों के बीच पिसता रहता है, जहां एक तरफ उसके आला अफसर होते हैं तो दूसरी तरफ मुलजिम।”
“वही तो, जबकि आम जनता पुलिस को अक्सर वर्दी वाला गुंडा कहने से भी बाज नहीं आती।”
“आम जनता कैसे आ सकती है सतपाल साहब, जबकि तुम लोगों का सबसे आसान शिकार वही होती है, रिक्शे वाले को पीट दो, ट्रक ड्राइवर को बेवजह घंटों सड़क पर खड़े रखो, झुग्गी में रहते किसी शख्स को दिन में चार बार ऐसे जुर्म के लिये उठाकर डंडा परेड करो जो उसने किया ही ना हो। सच पूछो तो तुम्हारी राहों में अड़चने आम जनता नहीं खड़ी करती, बल्कि रसूख वाले लोग खड़े करते हैं, जैसे कि मीनाक्षी शर्मा, जैसे कि संजीव चौहान, जैसे कि निरंजन राजपूत, तुम लोग चाहकर भी उनसे उस तरह से पेश नहीं आ सकते जैसे कि निचले तबके के लोगों के साथ अक्सर आते दिखाई देते हो।”
“बोल चुका?”
“नहीं अभी बाकी है” - कहकर उसने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा फिर धुंआ उगलता हुआ बोला – “अभी अगर ये घटना किसी मामूली सी कॉलोनी में घटित हुई होती, तो मरने वाली का पूरा परिवार हाथ बांधे तुम्हारे सामने थाने में खड़ा होता, तब तुम्हें पैराफिन टेस्ट की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि जो नतीजा उस टेस्ट के जरिये हासिल होना है वह तुम लात-घूंसों के बल पर बड़ी आसानी से हासिल कर लेते। और बात सिर्फ फौजदारी की ही नहीं है, हर तरफ यही आलम है। ट्रैफिक पुलिस की ही ले लो, एक मर्सिडीज बेशक रेड लाइट जम्प कर के निकल जाये उसे रोकने की उनकी मजाल नहीं हो सकती, मगर किसी छोटी मोटी कार या फिर बाइक के आगे यूं कूद पड़ते हैं कि चालक का जरा सा ध्यान भटक जाये तो वह उसे ठोक ही बैठे। ऐसे में आम जनता क्यों ना सोचने पर मजबूर हो जाये कि कानून सबके लिये बराबर नहीं होता।”
मैं तुम्हारी बातों को काटने की कोशिश नहीं करूंगा, मगर इतना जरूर कहूंगा कि जिस दिन इंस्पेक्टर सतपाल सिंह तुम्हें किसी मजलूम पर जुल्म ढाता दिखाई दे जाये उसी रोज इसे गोली मार देना।”
“शर्म तो आती नहीं है गैरकानूनी सलाह देते हुए, किसी के जुर्म की सजा देने वाला मैं कौन होता हूं, वह काम कानून का है, अलबत्ता ऐसा दिखाई देने पर मैं तुम्हारी वर्दी उतरवाये बिना तो चैन से नहीं बैठने वाला।”
“मुझे मालूम है भाई, चल अब कुछ काम करते हैं।”
दोनों हॉल में पहुंचे।
“इंस्पेक्टर साहब” - मीनाक्षी बोली – “यहां यूं मजमा लगाने का क्या मतलब है?”
“क्यों आप नहीं चाहतीं कि आपकी बहू का हत्यारा पकड़ा जाये, आपके बेटे के कातिल को उसके कुकर्मों की सजा मिले।”
“बेशक चाहती हूं, मगर हत्यारा क्या अभी तक यहां बैठा होगा?”
“तो फिर हमें अपना काम करने दीजिये” -सतपाल उसके सवाल को नजरअंदाज कर के बोला – “हम सामने वाले कमरे में जा रहे हैं सबसे पहले घर के नौकरों को एक-एक कर के वहां भेजिये, उसके बाद बाकी लोगों का बयान होगा।”
कहकर वह जवाब की प्रतीक्षा किये बिना प्रियम के कमरे में जा घुसा और वहां मौजूद इकलौती कुर्सी खींचकर बैठ गया, पनौती ने वैसी कोई कोशिश नहीं की। एक एक कर के चार नौकर वहां आये और चले गये, उनसे कोई काम की बात मालूम नहीं पड़ी क्योंकि हत्या के वक्त उनमें से कोई भी हॉल में नहीं था।
तत्पश्चात डॉली ने भीतर कदम रखा।
“बैठो” - सतपाल बेड की तरफ इशारा कर के बोला।
वह पलंग पर पैर लटका कर बैठ गयी।
“कुछ जान पायीं?”
“खास कुछ नहीं, सिवाय इसके कि भुवनेश की अपनी बहन के साथ कोई अनबन थी।”
“कैसी अनबन?”
“मालूम नहीं, मैने तो बस दोनों के व्यवहार से ऐसा महसूस किया था।”
“कत्ल के वक्त वह कहां था?”
“पहले पता तो चले कि कत्ल हुआ कितने बजे?”
“तुम्हारे मिस्टर राइट का अंदाजा है, कि ठीक नौ बजे कल्पना को छत से नीचे फेंका गया था, समझ लो उससे कुछ मिनट पहले उसका गला घोंटा गया होगा।”
“वह कहां था ये बता पाना मुश्किल है, मगर साढ़े आठ बजे के बाद मैंने उसे कमरे से बाहर निकलते नहीं देखा था। लेकिन मैं हर वक्त हॉल में नहीं थी इसलिए इस बात की गारंटी नहीं कर सकती।”
“और मीनाक्षी के बारे में क्या कहती हो?”
“जो कहना है बाद में कहूंगी, पहले राज मुझे ये बताये कि उसके बेडरूम में क्या कर रहा था?”
“वह मुझे अपना कमरा दिखाने के लिये ले कर गई थी।” पनौती बोला।
“क्यों तुमने क्या कभी किसी विधवा औरत का कमरा नहीं देखा था?”
“अरे चला भी गया तो क्या आफत आ गई?”
“ये मैं बताऊं तुम्हें, या तुम समझते हो कि हॉल में मुंह से मुंह सटाकर तुम उसके साथ जो मीठी मीठी बातें कर रहे थे, उसका मुझे अंदाजा नहीं है।”
“है तो है, तुम्हें जो समझना हो समझो।”
“मैं आंटी को बताऊंगी इस बारे में।”
“खबरदार जो मम्मी से एक लफ्ज भी कहा।”
“कहूंगी क्या कर लोगे?”
“डॉली! डॉली!” - सतपाल उसे टोकता हुआ बोला – “इस बारे में तुम दोनों बाद में लड़ सकते हो, इसलिए मुद्दे पर आओ, वरना किसी को तुमपर शक हो सकता है।”
“मीनाक्षी” - वह मुंह फुलाकर बोली – “नौ बजे के करीब हॉल में दिखाई दी थी मुझे, उसके दिखने के थोड़़ी ही देर बाद ये भागता हुआ सीढियां उतर कर हॉल से बाहर निकल गया था। अगर इसने वहां किसी को पड़ा देख भी लिया था तो यूं गोली की तरह भागने की इसे क्या जरूरत थी, लाश उठकर कहीं भाग जाती? आराम से चलकर नहीं जा सकता था?”
“मुझे लगा था कि वहां तुम पड़ी हुई हो, तभी मैं घबराकर भागा था।”
“सुन लीजिये इंस्पेक्टर साहब, अब ये मेरी मौत की कामना भी करने लगा है। शादी से पहले ही इसे मैं लाश बनी दिखने लगी हूं, बाद में तो जरूर ये अपने हाथों से मेरा गला घोंट देगा।”
“पागलों जैसी बात मत करो, तुम सचमुच यहां की नौकरानी नहीं हो, जिसे नीचे गिरा समझकर मैं धैर्य से काम लेता।”
“ओह तो तुम्हें मेरी परवाह भी है।”
“नहीं बिल्कुल भी नहीं है, मैं तो ये सोचकर डर गया था कि तुम्हें यहां नौकरी पकड़ने के लिये मैंने कहा था, इसलिए तुम्हारी सलामती की जिम्मेदारी मुझपर थी, तभी मैं घबराकर दौड़ पड़ा था।”
“या इसलिये दौड़े थे कि अगर जिंदा बच गई होऊं तो बाकी की कसर तुम अपने हाथों से पूरी कर दो।”
“ऐसा करो” - सतपाल बोला – “तुम दोनों बाहर चले जाओ, जब तुम्हारी बक-बक बंद हो जाये तो वापिस आ जाना।”
“मैं कुछ नहीं बोल रही।”
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“मुझे इससे कोई बात नहीं करनी।” वह खिन्न भाव से बोला।
“गुड! तो अब ये बताओ कि राज के दिखाई देने से कितना पहले तुमने मीनाक्षी को हॉल में देखा था।”
“एक मिनट! बड़ी हद डेढ़ इससे ज्यादा नहीं हो सकता।”
“और कुछ दिखाई दिया तुम्हें?”
“दिन में वकील साहब का एक फेरा लगा था यहां, मगर आधे घंटे में वापिस लौट गये थे।”
“अनुराग कहां था तब?”
“तीन बजे तक यहीं था, उसके बाद ऑफिस के लिये निकल गया था।”
“वकील साहब के अलावा कोई आया गया?”
“नहीं और तो कोई नहीं आया।”
“अनुराग के आने के बाद जब मैं और राज छत पर चले गये थे, तब क्या हमारे पीछे-पीछे मीनाक्षी या अनुराग में से कोई वहां से गायब दिखाई दिया था?”
“अनुराग का पता नहीं मगर मीनाक्षी हर घड़ी वहीं थी, दरअसल उस वक्त मेरा सारा ध्यान लाश की तरफ था, जबकि अनुराग मेरे पीछे कहीं खड़ा था, इसलिए उसपर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।”
“कभी तो नजर पड़ी ही होगी तुम्हारी?”
“हां पड़ी थी मगर तब तक आप लोग वापिस लौट आये थे।”
“वकील साहब यहां कब पहुंचे थे?”
“आप दोनों के जाने के करीब दस-बारह मिनट बाद।”
“और संजीव चौहान?”
“वह भी वकील के पीछे पीछे ही यहां पहुंच गया था।”
“संजीव को तुम पहले से जानती हो?”
“हां।”
पनौती के कान खड़े हो गये।
“कैसे जानती हो?”
“वैसे ही जैसे कि कोमल या प्रियम को जानती हूं, संजीव भी हमारे कॉलेज में ही था।”
“कैसा लड़का है?”
“अच्छा है, कोमल के साथ बहुत अच्छी बनती थी उसकी।”
“दोनों के बीच कोई प्यार मोहब्बत वाला रिश्ता तो नहीं था?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं था, होता तो वह प्रियम से शादी क्यों करती? जबकि संजीव हर हाल में उससे ज्यादा योग्य था?”
“क्या पता उसकी चाहत एकतरफा रही हो।”
“ये हो सकता है, क्योंकि वह अक्सर कोमल के आगे-पीछे मंडराता दिखाई दे जाता था। जैसे कि चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं, या चलो कैंटीन में कुछ खाते हैं चलकर, वगैरह वगैरह बहाने निकाल ही लेता था।”
“कोमल या प्रियम को ऐतराज नहीं होता था?”