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सतपाल उस घड़ी लाश से थोड़ा परे खड़ा सिगरेट फूंक रहा था।
पनौती को देखते ही उसने जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाल कर उसे थमा दिया।
“कुछ पता चला शर्मा साहब?”
“कुछ खास नहीं” - वह अनुराग की बात को याद करता हुआ बोला – “मेरे ख्याल से तुम्हें एक बार टैरिस का मुआयना करना चाहिये।”
“क्यों?”
“क्योंकि अनुराग ने कुछ ऐसी बातें बताई हैं, जिनके मद्देनजर ये सुसाइड का केस भी हो सकता है।”
“जब कि तुम खुद कहते हो कि इसे पहली मंजिल पर स्थित इसके बेडरूम से नीचे फेंका गया था।”
“अब नहीं कहता, क्योंकि अनुराग के तर्क में दम है। अब या तो नीचे फेंके जाने से पहली इसकी हत्या की जा चुकी थी, या फिर इसे पहली मंजिल की बजाये कहीं और से नीचे फेंका गया था। कुल जमा चौदह फीट की ऊंचाई पर इसके बेडरूम की खिड़की बनी दिखाई देती है, ऐसे में किसी ने उसे वहां से महज नीचे फेंक भर दिया होता तो उसके जिन्दा बच जाने की उम्मीद ज्यादा होती। कातिल भला इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा?”
“नहीं लेगा, इसलिए फोरेंसिक डिपार्टमेंट के फारिग होने तक इंतजार करते हैं, क्या पता वैसे ही कुछ सामने आ जाये, जो ये साबित कर दे कि नीचे फेंके जाने से पहले ही उसका कत्ल किया जा चुका था।”
पनौती ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?” सतपाल हड़बड़ाया।
“काम करने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती तुम्हारी।”
“ऐसा नहीं है भाई! चल, चल कर देखते हैं।”
सबसे पहले दोनों कल्पना शर्मा के बेडरूम में पहुंचे। कमरा एकदम सामन्य अवस्था में मिला। वहां का मुआयना कहीं से भी ये जाहिर नहीं कर रहा था, कि हाल ही में वहां कोई फसाद होकर हटा हो।
दोनों ने मिलकर कमरे का कोना खुदरा टटोल डाला, मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ, वहां कुछ भी ऐसा नहीं था जिसके वहां होने की वजह समझ में न आती हो।
कमरे की बड़ी सी खिड़की खास कर के उनकी निगाहों का मरकज बनी, बिना उसे स्पर्श किये पनौती ने दूर से मगर बेहद ध्यान से खिड़की की चौखट का मुआयना किया, दूर से इसलिये क्योंकि पूरे कमरे में अगर कहीं कातिल के फिंगर प्रिंट मिलने की संभावना थी तो वह जगह खिड़की की चौखट ही हो सकती थी।
उसने खिड़की से नीचे झांका, फोरेंसिक टीम पूरी मुस्तैदी से अपना काम करती दिखाई दी। उसने दायें-बायें निगाह दौड़ाई तो पाया कि वहां ऐसी कोई चीज मौजूद नहीं थी जिसके जरिये कत्ल के बाद हत्यारा खिड़की के रास्ते नीचे उतर पाने में कामयाब हो गया हो। अलबत्ता बिल्डिंग के पीछे की बाउंड्री सात-आठ फीट ऊंची थी, ऐसे में अगर हत्यारा बाहर से वहां पहुंचा था तो निश्चय ही बाउंड्री लांघ कर ही आया होगा। आगे वह कल्पना तक कैसे पहुंच पाया ये बात अभी भी पहेली बनी हुई थी।
कत्ल का पूरा पूरा शक मीनाक्षी पर जा रहा था, क्योंकि वह इकलौती इंसान थी जिसे कल्पना की हत्या करने की सहूलियत उपलब्ध थी। पनौती को अपने बेडरूम में बैठाकर बाहर निकलने के बाद उसने कल्पना के बेडरूम में घुसकर उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया हो सकता था। अलबत्ता इतनी ताकत उसके भीतर थी या नहीं ये कह पाना मुहाल था।
कमरे से निकल कर दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे, कल्पना के बेडरूम के ऐन ऊपर वाले कमरे की हालत भी ज्यों की त्यों थी, उसे देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता था कि वहां कातिल और मकतूला के बीच कोई संघर्ष हुआ हो।आखिरकार दोनों ने बंगले की छत पर कदम रखा। वह एकदम खुली हुई छत थी जिसपर पानी की टंकी के अलावा और कुछ रखा दिखाई नहीं दे रहा था।
टहलते हुए दोनों छत के आखिरी सिरे पर पहुंचे, जहां उन्हें नीचे को जाती लोहे की सीढ़ियां दिखाई दीं जो कि घुमावदार आकार में बनी हुई थीं। उन्हें किसी इमरजेंसी के मद्देनजर वहां लगवाया गया हो सकता था।
छत पर रोशनी का कोई साधन नहीं था, खासतौर पर फायर इस्केप की सीढ़ियों के पास का अंधेरा ज्यादा घना था। हत्यारा उस रास्ते से भी घर में दाखिल हुआ हो सकता था। मोबाइल का टॉर्च जलाकर उसने सीढ़ियों के दहाने और उसके आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई खास बात दिखाई नहीं दी।
दोनों छत के पिछले हिस्से में उस जगह पर पहुंचे जहां नीचे जमीन पर कल्पना की लाश पड़ी हुई थी। वहां एक जगह पर काफी सारा पानी इकट्ठा हुआ पड़ा था, जिसके इर्द गिर्द दूर दूर तक उसके छींटों के निशान बने हुए थे, जो कि अभी तक गीले ही जान पड़ते थे। यूं लगता था जैसे किसी ने पानी में खड़े होकर उछल कूद मचाई हो। ज्यादा ध्यान से देखने पर उन्हें इकट्ठे हुए पानी से थोड़ा अलग पानी से ही बना खूब लंबा धब्बा दिखाई दिया। उस तरफ तीन फीट के करीब उठे मुंडेर की दो ईंटें भी नदारद थीं, जिनका मुआयना ये कहता था कि उन्हें हाल ही में उस जगह से उखाड़ा गया था।
“तो यहां से कूदी थी वह?” सतपाल बोला।
“उसके खुद कूदे होने की उम्मीद तो अब तुम भूल ही जाओ सतपाल साहब, क्योंकि ये सुसाइड का मामला नहीं जान पड़ता। किसी ने सुनियोजित ढंग से मरने वाली को छत पर बुलाया, फिर गला घोंटकर उसकी हत्या करने के बाद लाश को छत से नीचे फेंक दिया।”
“ये बीच में गला घोंटने वाली कहानी कब गढ़ ली तूने?”
“अभी-अभी, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हत्यारा रिस्क लेने की स्थिति में था, उसे इस बात का अंदेशा बखूबी रहा होगा कि कहीं छत से फेंके जाने के बाद भी कल्पना जिन्दा बच गयी, तो उसका भांडा फूटते देर नहीं लगेगी।”
“भाई कम से कम भी ये छत जमीन से पैंतीस-चालीस फीट ऊंची होगी, ऐसे में मुझे नहीं लगता कि इतनी ऊंचाई से फेंके जाने के बाद उसके जिंदा निकल आने के चांस बन सकते थे।”
“बेशक उसकी मौत हो जाना तय थी, मगर हत्यारे को गारंटी चाहिये थी, जो कि उसको महज नीचे फेंक देने से नहीं होने वाली थी। मान लो कल को किसी भी तरह वह मरने से पहले किसी को हत्यारे का नाम बताने में कामयाब हो जाती तो कातिल उसका क्या बिगाड़ लेता?”
“उसने मरने वाली का गला ही घोंटा था इस बात की क्या गारंटी है?”
“गारंटी है, तुम जरा यहां फैले पानी के बड़े से धब्बे को देखो, साफ जाहिर हो रहा है कि यहां कोई भींगी हुई चीज रखी गई थी। जिसके बारे में मेरा दावा है कि वह कल्पना ही थी। उसके भींगे हुए कपड़े तुम नीचे देख चुके होगे। जिसकी वजह ये थी कि कातिल के साथ संघर्ष करते वक्त वह यहां फैले पानी में पहुंच गयी, उसी कारण यहां पानी के छींटें हर तरफ उड़े दिखाई दे रहे हैं। बाद में हत्यारे ने उसे फर्श पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर उसका गला घोंटने लगा। अपनी जान बचाने की कोशिश में किसी तरह वह थोड़ा ऊपर को खिसक गई, मगर हत्यारा उससे ज्यादा ताकतवर था, उसने कल्पना को तब तक नहीं छोड़ा जब तक कि उसे उसकी मौत का यकीन नहीं आ गया। इसके बाद हत्यारे ने उसकी डैड बॉडी उठाकर नीचे फेंक दी।”
“जब वह पहले ही उसे जान से मार चुका था तो लाश यहीं क्यों नहीं पड़ी रहने दी? उन हालात में तो हो सकता था कि सुबह तक कल्पना की मौत का किसी को पता ही नहीं चलता।”
“इसकी दो कारण रहे हो सकते हैं, नंबर एक वह अपने शिकार की मौत को और भी बढ़िया ढंग से सुनिश्चित करना चाहता था। नंबर दो उसके मन में मकतूला के प्रति नफरत के भाव थे, जिसकी भड़ास उसने लाश को नीचे फेंककर निकाली थी।”
“ऐसे में मीनाक्षी पर शक करना तो बेकार ही होगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसके पास इतना ज्यादा वक्त नहीं था, कि वह तुझे बेडरूम में बैठाकर छत पर पहुंचती और कल्पना की गला घोंटकर हत्या करने के बाद लाश को नीचे फेंककर वापिस हॉल में लौट जाती, ऊपर से तू खुद कहता है कि उसके कमरे से निकलने के महज एक या डेढ़ मिनट बाद तुझे धम्म वाली आवाज सुनाई दी थी जिसके बाद खिड़की से झांकने पर नीचे पड़ी कल्पना की लाश पर तेरी नजर पड़ी और तू फौरन कमरे से निकल कर नीचे की तरफ भाग खड़ा हुआ।”
पनौती को देखते ही उसने जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाल कर उसे थमा दिया।
“कुछ पता चला शर्मा साहब?”
“कुछ खास नहीं” - वह अनुराग की बात को याद करता हुआ बोला – “मेरे ख्याल से तुम्हें एक बार टैरिस का मुआयना करना चाहिये।”
“क्यों?”
“क्योंकि अनुराग ने कुछ ऐसी बातें बताई हैं, जिनके मद्देनजर ये सुसाइड का केस भी हो सकता है।”
“जब कि तुम खुद कहते हो कि इसे पहली मंजिल पर स्थित इसके बेडरूम से नीचे फेंका गया था।”
“अब नहीं कहता, क्योंकि अनुराग के तर्क में दम है। अब या तो नीचे फेंके जाने से पहली इसकी हत्या की जा चुकी थी, या फिर इसे पहली मंजिल की बजाये कहीं और से नीचे फेंका गया था। कुल जमा चौदह फीट की ऊंचाई पर इसके बेडरूम की खिड़की बनी दिखाई देती है, ऐसे में किसी ने उसे वहां से महज नीचे फेंक भर दिया होता तो उसके जिन्दा बच जाने की उम्मीद ज्यादा होती। कातिल भला इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा?”
“नहीं लेगा, इसलिए फोरेंसिक डिपार्टमेंट के फारिग होने तक इंतजार करते हैं, क्या पता वैसे ही कुछ सामने आ जाये, जो ये साबित कर दे कि नीचे फेंके जाने से पहले ही उसका कत्ल किया जा चुका था।”
पनौती ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?” सतपाल हड़बड़ाया।
“काम करने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती तुम्हारी।”
“ऐसा नहीं है भाई! चल, चल कर देखते हैं।”
सबसे पहले दोनों कल्पना शर्मा के बेडरूम में पहुंचे। कमरा एकदम सामन्य अवस्था में मिला। वहां का मुआयना कहीं से भी ये जाहिर नहीं कर रहा था, कि हाल ही में वहां कोई फसाद होकर हटा हो।
दोनों ने मिलकर कमरे का कोना खुदरा टटोल डाला, मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ, वहां कुछ भी ऐसा नहीं था जिसके वहां होने की वजह समझ में न आती हो।
कमरे की बड़ी सी खिड़की खास कर के उनकी निगाहों का मरकज बनी, बिना उसे स्पर्श किये पनौती ने दूर से मगर बेहद ध्यान से खिड़की की चौखट का मुआयना किया, दूर से इसलिये क्योंकि पूरे कमरे में अगर कहीं कातिल के फिंगर प्रिंट मिलने की संभावना थी तो वह जगह खिड़की की चौखट ही हो सकती थी।
उसने खिड़की से नीचे झांका, फोरेंसिक टीम पूरी मुस्तैदी से अपना काम करती दिखाई दी। उसने दायें-बायें निगाह दौड़ाई तो पाया कि वहां ऐसी कोई चीज मौजूद नहीं थी जिसके जरिये कत्ल के बाद हत्यारा खिड़की के रास्ते नीचे उतर पाने में कामयाब हो गया हो। अलबत्ता बिल्डिंग के पीछे की बाउंड्री सात-आठ फीट ऊंची थी, ऐसे में अगर हत्यारा बाहर से वहां पहुंचा था तो निश्चय ही बाउंड्री लांघ कर ही आया होगा। आगे वह कल्पना तक कैसे पहुंच पाया ये बात अभी भी पहेली बनी हुई थी।
कत्ल का पूरा पूरा शक मीनाक्षी पर जा रहा था, क्योंकि वह इकलौती इंसान थी जिसे कल्पना की हत्या करने की सहूलियत उपलब्ध थी। पनौती को अपने बेडरूम में बैठाकर बाहर निकलने के बाद उसने कल्पना के बेडरूम में घुसकर उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया हो सकता था। अलबत्ता इतनी ताकत उसके भीतर थी या नहीं ये कह पाना मुहाल था।
कमरे से निकल कर दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे, कल्पना के बेडरूम के ऐन ऊपर वाले कमरे की हालत भी ज्यों की त्यों थी, उसे देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता था कि वहां कातिल और मकतूला के बीच कोई संघर्ष हुआ हो।आखिरकार दोनों ने बंगले की छत पर कदम रखा। वह एकदम खुली हुई छत थी जिसपर पानी की टंकी के अलावा और कुछ रखा दिखाई नहीं दे रहा था।
टहलते हुए दोनों छत के आखिरी सिरे पर पहुंचे, जहां उन्हें नीचे को जाती लोहे की सीढ़ियां दिखाई दीं जो कि घुमावदार आकार में बनी हुई थीं। उन्हें किसी इमरजेंसी के मद्देनजर वहां लगवाया गया हो सकता था।
छत पर रोशनी का कोई साधन नहीं था, खासतौर पर फायर इस्केप की सीढ़ियों के पास का अंधेरा ज्यादा घना था। हत्यारा उस रास्ते से भी घर में दाखिल हुआ हो सकता था। मोबाइल का टॉर्च जलाकर उसने सीढ़ियों के दहाने और उसके आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई खास बात दिखाई नहीं दी।
दोनों छत के पिछले हिस्से में उस जगह पर पहुंचे जहां नीचे जमीन पर कल्पना की लाश पड़ी हुई थी। वहां एक जगह पर काफी सारा पानी इकट्ठा हुआ पड़ा था, जिसके इर्द गिर्द दूर दूर तक उसके छींटों के निशान बने हुए थे, जो कि अभी तक गीले ही जान पड़ते थे। यूं लगता था जैसे किसी ने पानी में खड़े होकर उछल कूद मचाई हो। ज्यादा ध्यान से देखने पर उन्हें इकट्ठे हुए पानी से थोड़ा अलग पानी से ही बना खूब लंबा धब्बा दिखाई दिया। उस तरफ तीन फीट के करीब उठे मुंडेर की दो ईंटें भी नदारद थीं, जिनका मुआयना ये कहता था कि उन्हें हाल ही में उस जगह से उखाड़ा गया था।
“तो यहां से कूदी थी वह?” सतपाल बोला।
“उसके खुद कूदे होने की उम्मीद तो अब तुम भूल ही जाओ सतपाल साहब, क्योंकि ये सुसाइड का मामला नहीं जान पड़ता। किसी ने सुनियोजित ढंग से मरने वाली को छत पर बुलाया, फिर गला घोंटकर उसकी हत्या करने के बाद लाश को छत से नीचे फेंक दिया।”
“ये बीच में गला घोंटने वाली कहानी कब गढ़ ली तूने?”
“अभी-अभी, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हत्यारा रिस्क लेने की स्थिति में था, उसे इस बात का अंदेशा बखूबी रहा होगा कि कहीं छत से फेंके जाने के बाद भी कल्पना जिन्दा बच गयी, तो उसका भांडा फूटते देर नहीं लगेगी।”
“भाई कम से कम भी ये छत जमीन से पैंतीस-चालीस फीट ऊंची होगी, ऐसे में मुझे नहीं लगता कि इतनी ऊंचाई से फेंके जाने के बाद उसके जिंदा निकल आने के चांस बन सकते थे।”
“बेशक उसकी मौत हो जाना तय थी, मगर हत्यारे को गारंटी चाहिये थी, जो कि उसको महज नीचे फेंक देने से नहीं होने वाली थी। मान लो कल को किसी भी तरह वह मरने से पहले किसी को हत्यारे का नाम बताने में कामयाब हो जाती तो कातिल उसका क्या बिगाड़ लेता?”
“उसने मरने वाली का गला ही घोंटा था इस बात की क्या गारंटी है?”
“गारंटी है, तुम जरा यहां फैले पानी के बड़े से धब्बे को देखो, साफ जाहिर हो रहा है कि यहां कोई भींगी हुई चीज रखी गई थी। जिसके बारे में मेरा दावा है कि वह कल्पना ही थी। उसके भींगे हुए कपड़े तुम नीचे देख चुके होगे। जिसकी वजह ये थी कि कातिल के साथ संघर्ष करते वक्त वह यहां फैले पानी में पहुंच गयी, उसी कारण यहां पानी के छींटें हर तरफ उड़े दिखाई दे रहे हैं। बाद में हत्यारे ने उसे फर्श पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर उसका गला घोंटने लगा। अपनी जान बचाने की कोशिश में किसी तरह वह थोड़ा ऊपर को खिसक गई, मगर हत्यारा उससे ज्यादा ताकतवर था, उसने कल्पना को तब तक नहीं छोड़ा जब तक कि उसे उसकी मौत का यकीन नहीं आ गया। इसके बाद हत्यारे ने उसकी डैड बॉडी उठाकर नीचे फेंक दी।”
“जब वह पहले ही उसे जान से मार चुका था तो लाश यहीं क्यों नहीं पड़ी रहने दी? उन हालात में तो हो सकता था कि सुबह तक कल्पना की मौत का किसी को पता ही नहीं चलता।”
“इसकी दो कारण रहे हो सकते हैं, नंबर एक वह अपने शिकार की मौत को और भी बढ़िया ढंग से सुनिश्चित करना चाहता था। नंबर दो उसके मन में मकतूला के प्रति नफरत के भाव थे, जिसकी भड़ास उसने लाश को नीचे फेंककर निकाली थी।”
“ऐसे में मीनाक्षी पर शक करना तो बेकार ही होगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसके पास इतना ज्यादा वक्त नहीं था, कि वह तुझे बेडरूम में बैठाकर छत पर पहुंचती और कल्पना की गला घोंटकर हत्या करने के बाद लाश को नीचे फेंककर वापिस हॉल में लौट जाती, ऊपर से तू खुद कहता है कि उसके कमरे से निकलने के महज एक या डेढ़ मिनट बाद तुझे धम्म वाली आवाज सुनाई दी थी जिसके बाद खिड़की से झांकने पर नीचे पड़ी कल्पना की लाश पर तेरी नजर पड़ी और तू फौरन कमरे से निकल कर नीचे की तरफ भाग खड़ा हुआ।”