Thriller पनौती (COMPLETED)

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सतपाल उस घड़ी लाश से थोड़ा परे खड़ा सिगरेट फूंक रहा था।
पनौती को देखते ही उसने जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाल कर उसे थमा दिया।
“कुछ पता चला शर्मा साहब?”

“कुछ खास नहीं” - वह अनुराग की बात को याद करता हुआ बोला – “मेरे ख्याल से तुम्हें एक बार टैरिस का मुआयना करना चाहिये।”

“क्यों?”

“क्योंकि अनुराग ने कुछ ऐसी बातें बताई हैं, जिनके मद्देनजर ये सुसाइड का केस भी हो सकता है।”

“जब कि तुम खुद कहते हो कि इसे पहली मंजिल पर स्थित इसके बेडरूम से नीचे फेंका गया था।”

“अब नहीं कहता, क्योंकि अनुराग के तर्क में दम है। अब या तो नीचे फेंके जाने से पहली इसकी हत्या की जा चुकी थी, या फिर इसे पहली मंजिल की बजाये कहीं और से नीचे फेंका गया था। कुल जमा चौदह फीट की ऊंचाई पर इसके बेडरूम की खिड़की बनी दिखाई देती है, ऐसे में किसी ने उसे वहां से महज नीचे फेंक भर दिया होता तो उसके जिन्दा बच जाने की उम्मीद ज्यादा होती। कातिल भला इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा?”

“नहीं लेगा, इसलिए फोरेंसिक डिपार्टमेंट के फारिग होने तक इंतजार करते हैं, क्या पता वैसे ही कुछ सामने आ जाये, जो ये साबित कर दे कि नीचे फेंके जाने से पहले ही उसका कत्ल किया जा चुका था।”

पनौती ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?” सतपाल हड़बड़ाया।

“काम करने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती तुम्हारी।”

“ऐसा नहीं है भाई! चल, चल कर देखते हैं।”

सबसे पहले दोनों कल्पना शर्मा के बेडरूम में पहुंचे। कमरा एकदम सामन्य अवस्था में मिला। वहां का मुआयना कहीं से भी ये जाहिर नहीं कर रहा था, कि हाल ही में वहां कोई फसाद होकर हटा हो।

दोनों ने मिलकर कमरे का कोना खुदरा टटोल डाला, मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ, वहां कुछ भी ऐसा नहीं था जिसके वहां होने की वजह समझ में न आती हो।

कमरे की बड़ी सी खिड़की खास कर के उनकी निगाहों का मरकज बनी, बिना उसे स्पर्श किये पनौती ने दूर से मगर बेहद ध्यान से खिड़की की चौखट का मुआयना किया, दूर से इसलिये क्योंकि पूरे कमरे में अगर कहीं कातिल के फिंगर प्रिंट मिलने की संभावना थी तो वह जगह खिड़की की चौखट ही हो सकती थी।

उसने खिड़की से नीचे झांका, फोरेंसिक टीम पूरी मुस्तैदी से अपना काम करती दिखाई दी। उसने दायें-बायें निगाह दौड़ाई तो पाया कि वहां ऐसी कोई चीज मौजूद नहीं थी जिसके जरिये कत्ल के बाद हत्यारा खिड़की के रास्ते नीचे उतर पाने में कामयाब हो गया हो। अलबत्ता बिल्डिंग के पीछे की बाउंड्री सात-आठ फीट ऊंची थी, ऐसे में अगर हत्यारा बाहर से वहां पहुंचा था तो निश्चय ही बाउंड्री लांघ कर ही आया होगा। आगे वह कल्पना तक कैसे पहुंच पाया ये बात अभी भी पहेली बनी हुई थी।

कत्ल का पूरा पूरा शक मीनाक्षी पर जा रहा था, क्योंकि वह इकलौती इंसान थी जिसे कल्पना की हत्या करने की सहूलियत उपलब्ध थी। पनौती को अपने बेडरूम में बैठाकर बाहर निकलने के बाद उसने कल्पना के बेडरूम में घुसकर उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया हो सकता था। अलबत्ता इतनी ताकत उसके भीतर थी या नहीं ये कह पाना मुहाल था।

कमरे से निकल कर दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे, कल्पना के बेडरूम के ऐन ऊपर वाले कमरे की हालत भी ज्यों की त्यों थी, उसे देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता था कि वहां कातिल और मकतूला के बीच कोई संघर्ष हुआ हो।आखिरकार दोनों ने बंगले की छत पर कदम रखा। वह एकदम खुली हुई छत थी जिसपर पानी की टंकी के अलावा और कुछ रखा दिखाई नहीं दे रहा था।

टहलते हुए दोनों छत के आखिरी सिरे पर पहुंचे, जहां उन्हें नीचे को जाती लोहे की सीढ़ियां दिखाई दीं जो कि घुमावदार आकार में बनी हुई थीं। उन्हें किसी इमरजेंसी के मद्देनजर वहां लगवाया गया हो सकता था।

छत पर रोशनी का कोई साधन नहीं था, खासतौर पर फायर इस्केप की सीढ़ियों के पास का अंधेरा ज्यादा घना था। हत्यारा उस रास्ते से भी घर में दाखिल हुआ हो सकता था। मोबाइल का टॉर्च जलाकर उसने सीढ़ियों के दहाने और उसके आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई खास बात दिखाई नहीं दी।

दोनों छत के पिछले हिस्से में उस जगह पर पहुंचे जहां नीचे जमीन पर कल्पना की लाश पड़ी हुई थी। वहां एक जगह पर काफी सारा पानी इकट्ठा हुआ पड़ा था, जिसके इर्द गिर्द दूर दूर तक उसके छींटों के निशान बने हुए थे, जो कि अभी तक गीले ही जान पड़ते थे। यूं लगता था जैसे किसी ने पानी में खड़े होकर उछल कूद मचाई हो। ज्यादा ध्यान से देखने पर उन्हें इकट्ठे हुए पानी से थोड़ा अलग पानी से ही बना खूब लंबा धब्बा दिखाई दिया। उस तरफ तीन फीट के करीब उठे मुंडेर की दो ईंटें भी नदारद थीं, जिनका मुआयना ये कहता था कि उन्हें हाल ही में उस जगह से उखाड़ा गया था।

“तो यहां से कूदी थी वह?” सतपाल बोला।

“उसके खुद कूदे होने की उम्मीद तो अब तुम भूल ही जाओ सतपाल साहब, क्योंकि ये सुसाइड का मामला नहीं जान पड़ता। किसी ने सुनियोजित ढंग से मरने वाली को छत पर बुलाया, फिर गला घोंटकर उसकी हत्या करने के बाद लाश को छत से नीचे फेंक दिया।”

“ये बीच में गला घोंटने वाली कहानी कब गढ़ ली तूने?”

“अभी-अभी, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हत्यारा रिस्क लेने की स्थिति में था, उसे इस बात का अंदेशा बखूबी रहा होगा कि कहीं छत से फेंके जाने के बाद भी कल्पना जिन्दा बच गयी, तो उसका भांडा फूटते देर नहीं लगेगी।”

“भाई कम से कम भी ये छत जमीन से पैंतीस-चालीस फीट ऊंची होगी, ऐसे में मुझे नहीं लगता कि इतनी ऊंचाई से फेंके जाने के बाद उसके जिंदा निकल आने के चांस बन सकते थे।”

“बेशक उसकी मौत हो जाना तय थी, मगर हत्यारे को गारंटी चाहिये थी, जो कि उसको महज नीचे फेंक देने से नहीं होने वाली थी। मान लो कल को किसी भी तरह वह मरने से पहले किसी को हत्यारे का नाम बताने में कामयाब हो जाती तो कातिल उसका क्या बिगाड़ लेता?”

“उसने मरने वाली का गला ही घोंटा था इस बात की क्या गारंटी है?”

“गारंटी है, तुम जरा यहां फैले पानी के बड़े से धब्बे को देखो, साफ जाहिर हो रहा है कि यहां कोई भींगी हुई चीज रखी गई थी। जिसके बारे में मेरा दावा है कि वह कल्पना ही थी। उसके भींगे हुए कपड़े तुम नीचे देख चुके होगे। जिसकी वजह ये थी कि कातिल के साथ संघर्ष करते वक्त वह यहां फैले पानी में पहुंच गयी, उसी कारण यहां पानी के छींटें हर तरफ उड़े दिखाई दे रहे हैं। बाद में हत्यारे ने उसे फर्श पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर उसका गला घोंटने लगा। अपनी जान बचाने की कोशिश में किसी तरह वह थोड़ा ऊपर को खिसक गई, मगर हत्यारा उससे ज्यादा ताकतवर था, उसने कल्पना को तब तक नहीं छोड़ा जब तक कि उसे उसकी मौत का यकीन नहीं आ गया। इसके बाद हत्यारे ने उसकी डैड बॉडी उठाकर नीचे फेंक दी।”

“जब वह पहले ही उसे जान से मार चुका था तो लाश यहीं क्यों नहीं पड़ी रहने दी? उन हालात में तो हो सकता था कि सुबह तक कल्पना की मौत का किसी को पता ही नहीं चलता।”

“इसकी दो कारण रहे हो सकते हैं, नंबर एक वह अपने शिकार की मौत को और भी बढ़िया ढंग से सुनिश्चित करना चाहता था। नंबर दो उसके मन में मकतूला के प्रति नफरत के भाव थे, जिसकी भड़ास उसने लाश को नीचे फेंककर निकाली थी।”

“ऐसे में मीनाक्षी पर शक करना तो बेकार ही होगा।”

“क्यों?”

“क्योंकि उसके पास इतना ज्यादा वक्त नहीं था, कि वह तुझे बेडरूम में बैठाकर छत पर पहुंचती और कल्पना की गला घोंटकर हत्या करने के बाद लाश को नीचे फेंककर वापिस हॉल में लौट जाती, ऊपर से तू खुद कहता है कि उसके कमरे से निकलने के महज एक या डेढ़ मिनट बाद तुझे धम्म वाली आवाज सुनाई दी थी जिसके बाद खिड़की से झांकने पर नीचे पड़ी कल्पना की लाश पर तेरी नजर पड़ी और तू फौरन कमरे से निकल कर नीचे की तरफ भाग खड़ा हुआ।”
 
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वक्त का हवाला देना बेकार होगा, वह हट्टी कट्टी औरत है ऊपर से जरा आज की उसकी पोशाक तो देखो, घुटनों से ऊपर ही खत्म हो जाने वाला जींस पहना हुआ है, जिसमें दौड़ भाग करना कोई मुश्किल काम नहीं था। सारा मामला महज तीन से चार मिनट में निपट गया होगा” - कहता हुआ पनौती एकदम से चुप हो गया, उसे फौरन एहसास हो आया कि वह अपनी ही बात को काट रहा था, कुछ क्षण उस बात पर विचार करने के बाद उसने फिर से बोलना शुरू किया – “अपने कमरे से निकल कर फायर इस्केप की सीढियों के रास्ते दौड़ते हुए यहां पहुंचने में उसे मुश्किल से एक मिनट लगा होगा, आगे दो मिनट के भीतर उसने कल्पना की गला घोंट कर हत्या की और उसकी लाश को छत से नीचे फेंक दिया। एक से डेढ़ मिनट में वह वापिस सीढियों पर जा पहुंची। मगर उसके कपड़े भींगे हुए नहीं थे, होते तो वहां फैली रोशनी में मैंने वह बात जरूर नोट की होती। यानि मीनाक्षी को कम से कम भी छह मिनट का वक्त दरकरार था” - पनौती एक बार फिर उलझ सा गया – “नहीं वह कातिल नहीं हो सकती, क्योंकि उसने अभी तक वही कपड़े पहन रखें हैं जो कि मेरे यहां पहुंचने के वक्त पहने हुए थी। और वह कपड़े गीले नहीं थे।”

“और मैं क्या कह रहा था?”

“बेशक तुम ठीक कह रहे थे” - कहकर वह तनिक हैरान होता हुआ बोला – “कहीं ऐसा तो नहीं है सतपाल साहब कि कत्ल मेरे यहां पहुंचने से पहले ही किया जा चुका हो?”

“क्या बक रहा है?”

“सोचो दिमाग पर जोर डालो, मीनाक्षी ने मुझे ठीक साढ़े आठ बजे यहां बुलाया था। समझ लो उससे थोड़ी देर पहले वह कल्पना की हत्या कर चुकी थी। आगे किसी तरह वह मुझे हत्या के इल्जाम में लपेटना चाहती थी। इसलिए नौ बजे से कुछ मिनट पहले मुझे अपने बेडरूम में ले कर गई और मुझे वहां बैठाने के बाद खुद कमरे से बाहर निकल गयी। अब कल्पना करो कि अपने बेडरूम से निकल कर वह सीधा यहां पहुंची। मुंडेर की तीनों उखड़ी हुई ईंटो को वह पहले ही दीवार से अलग कर चुकी थी, ऐसे में यहां पहुंचकर अगर उसने तीनों ईंटों को एक साथ नीचे फेंक दिया हो तो भी तो मुझे वैसी ही आवाज सुनाई देती जैसी कि मैंने सुनी थी। इस बात की क्या गारंटी है कि वह आवाज लाश के ही नीचे गिरने की थी, ना कि ईंटों के फेंके जाने की?”

“आवाज तूने सुनी थी, मैं भला उस बारे में कैसे बता सकता हूं।”

“तो फिर समझ लो की वह आवाज ईंट फेंके जाने की भी हो सकती है, जिसे सुनकर मैंने कमरे की खिड़की से बाहर झांका और नीचे किसी औरत को पड़ा देखकर कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गया कि जो आवाज मैंने सुनी थी वह उस औरत के नीचे गिरने की वजह से पैदा हुई थी।”

“किसी को कत्ल के इल्जाम में फंसा देना क्या हंसी मजाक है, है भी तो ऐसे किसी शख्स को तो हरगिज भी लपेटे में नहीं लिया जा सकता जिसका मरने वाली से दूर दूर का कोई रिश्ता दिखाई नहीं देता हो। फिर इस बात की क्या गारंटी थी कि मीनाक्षी के बुलावे पर तू ठीक साढ़े आठ बजे यहां पहुंच ही जायेगा, जो वह एडवांस में कल्पना का कत्ल कर बैठती।”

“अभी इस सवाल का जवाब मुश्किल है, लेकिन इन्वेस्टीगेशन के दौरान अगर वह औरत कोई ऐसी वजह बताने में कामयाब हो जाये जिसके चलते मैंने कल्पना की जान ली हो सकती है, तो समझ लेना कातिल उसके अलावा कोई नहीं है।”

“मुझे नहीं लगता कि ढूंढे से भी तेरे पास कल्पना के कत्ल की कोई वजह मिल सकती है, जिस औरत का तूने आज तक चेहरा नहीं देखा था उसकी हत्या का मोटिव भला तेरे पास कैसे निकल आयेगा?”

“मुझे लगता है निकलेगा, उसने जरूर कुछ सोच रखा होगा, फिर तुम यादव को क्यों भूल जाते हो, ऐसी कोई ज्ञान की बात उसने मीनाक्षी को सुझाई हो सकती है। ऐसा नहीं होता तो वह यूं मुझे इस झमेले में लपेटने की कोशिश नहीं करती, क्योंकि उसे ना सही मगर यादव को ये बात बखूबी पता होगी कि बिना वजह बताये वह चाहकर भी मुझे कल्पना के कत्ल में नहीं घसीट सकती।”
तो कातिल मीनाक्षी है?”

“हो सकती है, वैसे भी उसे इस तरह से किसी का गला घोंटने का पुराना तजुर्बा है।”

“मैं समझा नहीं।”

“कोमल ने मुझे बताया था कि प्रियम के कत्ल के बाद जब मीनाक्षी कमरे में पहुंची तो गुस्से में उसे फर्श पर गिराकर उसका गला घोंटने की कोशिश करने लगी थी, बड़ी मुश्किल से वकील ब्रजेश यादव ने उसे कोमल के ऊपर से हटाया था।”

“मुझे मालूम है वह किस्सा, मगर तू शायद भूल रहा है कि तभी वह अपने जवान बेटे की लाश देखकर हटी थी, ऐसे में उसे गुस्सा आ गया और वह कोमल पर हमला कर बैठी तो इसका मतलब ये तो नहीं हो जाता कि वह गला घोंटकर किसी की जान लेने में भी सक्षम है।”

“दोनों घटनाओं का पैर्टन एक है इंस्पेक्टर साहब, एक नाकामयाबी भरा और दूसरा पूरी कामयाबी के साथ अंजाम दिया गया।”

“तुम लाख तर्क दे लो मगर मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकता कि कल्पना की कातिल मीनाक्षी है, अगर उसने अपनी बहू का कत्ल करना ही होता तो ऐन उसी वक्त उसने तुम्हें अपने घर नहीं बुलाया होता। क्योंकि तुम्हें कत्ल के इल्जाम में फंसाने वाली बात भी मुझे हजम नहीं हो रही।”

“और इस बात का क्या जवाब है तुम्हारे पास कि वह औरत मुझे अपना बेडरूम दिखाने ले गई?”

“कंडोम के नजारे कराये तो थे उसने तुम्हें” - सतपाल हंसता हुआ बोला – “ऐसे में और क्या मतलब हो सकता है उस बात का?”

“यूं कोई भरे पूरे घर में किसी अजनबी के साथ हमबिस्तर नहीं हो जाता।”

“वह हो सकती थी भाई” - सतपाल हंसता हुआ बोला – “उसने कितनी आशिकाना फितरत पाई है, ये बात क्या तुमसे छिपी हुई है। बल्कि मुझे तो इस बात पर भी शक हो रहा है कि कहीं वह अपने मकसद में कामयाब तो नहीं हो गई थी और अब तुम खुद को पाक-साफ साबित करने की खातिर बार-बार उसके खिलाफ बोले जा रहे हो।”


उसकी बात का जवाब देने की बजाये पनौती ने सेकेंड के दसवें हिस्से में चीते की तरह फुर्ती दिखाते हुए उसपर छलांग लगा दी और उसे लिये-दिये छत के फर्श पर जा गिरा।

‘धांय’ की जोरदार आवाज गूंजी।

गोली उनके ऊपर से निकल गई।

गिरते के साथ ही पनौती उछलकर सतपाल के ऊपर से उठ खड़ा हुआ, अगले ही पल वह आंधी तूफान की तरह फायर इस्केप की सीढ़ियों की तरफ दौड़ा जा रहा था।

वहां पहुंचकर उसने नीचे झांककर देखा मगर सीढ़ियों पर कोई दिखाई नहीं दिया। बावजूद इसके वह तेजी से नीचे उतरता चला गया। मिनट भर से भी कम वक्त में उसके कदम जमीन पर थे। आस-पास कोई नहीं था। दौड़ता हुआ वह बाउंड्री तक पहुंचा, उछलकर उसने बाउंड्री वॉल के ऊपरी हिस्से को थामा और थोड़ी सी मशक्कत के बाद उसके ऊपर चढ़ने में कामयाब हो गया। दीवार पर खड़े होकर उसने पूरी गली में निगाह दौड़ाई मगर वहां कोई नहीं था, उस तरफ की गली एकदम सूनी पड़ी थी।

वह वापिस दीवार से नीचे कूद गया।
तब तक सतपाल भी वहां पहुंच चुका था।

“भाग गया?” उसने पूछा।

“नहीं, मुझे लगता है वह सीढ़ियों से ग्राउंड तक पहुंचने की बजाये बंगले के किसी फ्लोर में घुस गया था, उसके इतनी जल्दी निगाहों से ओझल होने की दूसरी कोई वजह नहीं हो सकती।”

“अब बंगले में उसे तलाशना तो बेकार ही होगा।”

“ठीक कहते हो, मुझे अफसोस है कि गोली चलने के फौरन बाद उसे सीढ़ियों से गायब पाकर भी ये ख्याल मेरे मन में क्यों नहीं आया कि वह नीचे उतरने की बजाये दूसरी मंजिल पर जा घुसा था।”
अफसोस करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बार हत्यारा कम से कम एक गलती तो कर ही गया है।”

“क्या?”

जवाब में सतपाल ने उसे एक छोटी सी पर्ची दिखाई।
“ये क्या है?”

“पेट्रोल पंप की पर्ची है, जो जेब से रिवाल्वर निकालते वक्त छत पर गिर गई होगी, हम क्योंकि पहले ही उस जगह को अच्छी तरह देख चुके हैं, इसलिए बेहिचक ये बात कह सकते हैं कि यह पर्ची वहां पहले से नहीं पड़ी हुई थी।”

“ये मैनुअल पर्ची है।”

“तो?”

“तो ये कि उसने पेट्रोल कैश दे कर लिया होगा।”

“अब बच्चे मत पढ़ा यार, साफ-साफ बता कि कहना क्या चाहता है?”
 
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फर्ज करो ये पर्ची उसने कहीं से राह चलते उठा ली थी, लोग-बाग कई बार ऐसी पर्चिंयां बनवा तो लेते हैं, मगर पेट्रोल पम्प से थोड़ा आगे जाते ही हवा में उछाल देते हैं, ऐसे में वहां की सीसीटीवी फुटेज चेक कर के भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला, ऊपर से इसमें टाइम भी दर्ज नहीं है, यानि पूरे दिन की फुटेज देखनी पड़ेगी।”
“देखेंगे, क्या हर्ज है, तारीख तो आज की ही दर्ज है इसमें।”
“बेशक देखेंगे, मगर हत्यारा अगर कोई ऐसा शख्स है जो बतौर सस्पेक्ट अभी तक तुम्हारे सामने नहीं आया है तो उसे पहचानोगे कैसे?”
“तो क्या करूं भूल जाऊं इस लीड को?”
“सवाल ही नहीं उठता, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि ऐसी कोई फुटेज देखते वक्त इस परिवार के किसी सदस्य को अपने साथ रखना, वह ऐसे लोगों की भी शिनाख्त कर सकता है जिसे तुम नहीं जानते।”
“हे भगवान” - सतपाल के मुंह से आह निकल गई – “इतनी सी बात कहने के लिये इतना बकवास करने की क्या जरूरत थी? साफ-साफ ये बात नहीं कह सकता था?”
“साफ-साफ कहता तो तुम वजह पूछने लग जाते इसलिये इस बार दिमाग से काम लिया और सिलसिलेवार तुम्हें समझाने की कोशिश की कि जो बात मैं आखिर में कहने वाला हूं उसकी जरूरत क्योंकर है। साथ ही तुम्हारी समझ में अब ये बात भी आ गई होगी कि आखिर वाली बात मैंने पहले क्यों नही कह दी।”
“जवाब नहीं तेरा।”
“अगर ये तारीफ है तो थैंक्यू बोल रहा हूं, अब तुम ये बताओ इंस्पेक्टर साहब कि कातिल ने तुम्हें निशाना बनाने की कोशिश क्यों की?”
“जरूर उसकी गोली पर मेरा नाम लिखा होगा, जिससे ये बात फौरन तुझे पता लग गई कि उसका निशाना मैं था ना कि तू।”
“तुम्हारे होने के चांसेज ज्यादा हैं, इसलिए तिलमिलाने की बजाये मेरे सवाल का जवाब दो, और कुछ नहीं तो यही कह दो कि तुम्हें कोई अंदाजा नहीं है।”
“अगर उसका निशाना सचमुच मैं था तो अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है।”
“लगाकर दिखाओ।”
“मेरे ख्याल से वह डरा हुआ है, उसे लगता है कि मैं अगर यूं ही इस केस की इन्वेस्टीगेशन करता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब उसकी गर्दन मेरी मुट्ठी में होगी।”
“जरूर पुलिस डिपार्टमेंट में तुम अकेले आलम-फाजिल ऑफिसर होगे, इसलिये वह समझता होगा कि तुम्हें खत्म कर दिया तो कभी पकड़ा नहीं जायेगा। जब कि उन हालात में उसके पकड़े जाने के चांसेज बढ़ जाने हैं, क्योंकि तुम्हारे डिपार्टमेंट के लोग आपस में भले ही कटखनी बिल्ली वाला रवैया अख्तियार करते हों, मगर किसी पुलिस वाले का कत्ल हो जाने पर वे लोग इसे अपनी आन-बान और शान का सवाल बना लेते हैं। और तुम क्या समझते हो वह इतना बड़ा घोंचू इंसान होगा जो ये नहीं जानता होगा कि इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर रोजाना अपने सीनियर्स को रिपोर्ट करता है कि उसकी जांच कहां तक पहुंची है। और सौ बातों की एक बात ये कि अभी कौन सा तुमने तीर मार लिया है जिससे कातिल को लगने लगता कि तुम बस उस तक पहुंचने ही वाले हो।”
“और क्या वजह हो सकती है?” - सतपाल अनमने भाव से बोला – “तुम्हें सूझता है कुछ?”
“सूझ तो रहा है, बल्कि अभी-अभी सूझा है।”
“क्या?”
“उसका इरादा हममें से किसी की जान लेने का नहीं था।”
“फिर उसने गोली क्यों चलाई? पकड़े जाने का रिस्क क्यों लिया?”
“इसलिए लिया क्योंकि वह हमारे साथ आबरा का डाबरा खेलना चाहता है।”
“मैं समझा नहीं।”
“हमें भटकाने की कोशिश कर रहा है, गलत राह पर लगाकर केस में नया सस्पेक्ट परोसना चाहता है। अब तो मुझे और भी यकीन आ गया कि छत पर मिली पेट्रोल पंप की पर्ची उसकी इसी कोशिश का नतीजा है।”तुम्हारा मतलब है वहां से कुछ हासिल नहीं होगा।”
“होगा, बेशक होगा, देख लेना वहां से तुम्हें कोई बड़ी लीड हासिल होगी, पेट्रोल पम्प की सीसीटीवी फुटेज में कोई ऐसा चेहरा तुम्हें दिखाई देगा जिसपर नजर पड़ते ही तुम केस को सॉल्व हुआ मान लोगे।”
“जबकि वह कातिल नहीं होगा, कोई ऐसा शख्स होगा जिसे कातिल बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल करना चाहता होगा।”
“ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता।”
सतपाल ने घूर कर उसे देखा।
“ताव मत खाओ, मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि कातिल अगर जरूरत से ज्यादा अक्लमंद है तो ये पर्ची जेनुइन भी हो सकती है, खुद कातिल ने ही वहां से पेट्रोल भरवाया हो सकता है।”
“जबकि तुम कहते हो कि पर्ची वह जानबूझकर छत पर फेंककर गया था।”
“उस बात में कोई शक नहीं है।”
“वह खुद को फंसाने की कोशिश क्यों करेगा?”
“ऐन इसी लिए करेगा, ताकि तुम ये मान लो कि अगर वह कातिल होता तो अपने खिलाफ सबूत न प्लांट कर रहा होता, समझे कुछ?”
“नहीं समझा भाई” - सतपाल झल्लाता हुआ दोनों हाथ जोड़कर बोला – “इस बारे में तो अब तू मुझे माफ ही कर दे। क्योंकि चित और पट दोनों एक साथ नहीं हो सकते, आगे इस बारे में हम तब बात करेंगे जब पेट्रोल पम्प से कोई गुड न्यूज हासिल हो जायेगी।”
तभी सतपाल का मोबाइल रिंग होने लगा। कॉल फोरेंसिक टीम के इंचार्ज अनिल शुक्ला की थी।
“हैलो।”
“कहां चले गये भाई?”
“यहीं हूं।”
“हमारा काम खत्म हो गया।”
“अभी पहुंचता हूं।”
दोनों एक बार फिर बंगले के पिछले हिस्से में पड़ी लाश के पास पहुंचे। तब भीड़ में उन्हें दो नये चेहरे दिखाई दिये, जिनमें से एक संजीव चौहान का था, जबकि दूसरा मीनाक्षी शर्मा का जबरदस्त एडमायरर एडवोकेट ब्रजेश यादव था।
दोनों अनिल शुक्ला के पास पहुंचे।
“कुछ पता चला शुक्ला साहब?” उसने पूछा।
“हां चला” - शुक्ला बोला – “हत्या गला घोंट कर की गई है और किसी ऐसी जगह पर की गई है जहां बहुत सारा पानी फैला हुआ था।”
“वो जगह हम देख चुके हैं।” कहकर उसने छत की स्थिति के बारे में उसे बता दिया।
“और कोई खास बात?”
“नहीं” - शुक्ला बोला – “होगी तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आ जायेगी, वैसे उम्मीद ना के बराबर ही है। अब तुम यहां की जिम्मेदारी संभालो, हम लोग जरा छत का मुआयना कर लें।”
“ठीक है, जब आप वहां जा ही रहे हैं तो छत पर पड़ी एक बुलेट की तरफ खास ध्यान दीजियेगा।”
“बुलेट” - वह चौंका – “अभी थोड़ी देर पहले हमने जो गोली चलने की आवाज सुनी थी कहीं उसी की बात तो नहीं कर रहे?”
“एकदम सही पहचाना आपने।”
“क्या माजरा है?”
जवाब में सतपाल ने संक्षेप में सारा किस्सा बयान कर दिया।
फोरेंसिक टीम बंगले के सामने वाले हिस्से की तरफ बढ़ गई।
पनौती और सतपाल लाश के करीब पहुंचे, जो कि अब पहले वाली स्थिति में नहीं थी। उसे पीठ के बल लिटा कर उसपर एक चादर डाल दी गई थी। सतपाल ने चादर हटाकर गौर से लाश को देखना शुरू किया।
देखने के लिये हालांकि अब वहां कुछ भी नहीं बचा था मगर रूटीन के तौर पर सतपाल ने लाश का मुआयना करना शुरू किया। तभी पनौती बुरी तरह से चौंका, चौंककर वह घुटनों के बल लाश के पास बैठ गया और बारी बारी से दोनों हाथों और पैरों का मुआयना के बाद अपनी निगाहें मकतूला के गले पर गड़ा दीं।
उस घड़ी उसके चेहरे पर जो हैरानी के भाव पैदा हुए वह सतपाल से छिपे नहीं रह सके।
“क्या हुआ?” उसने पूछा।मरने वाली के तन पर कोई ज्वैलरी क्यों नहीं है?”
“नहीं होगा उसे शौक ज्वैलरी पहनने का, इसमें हैरान होने वाली क्या बात है, या पहले कभी तुमने बिना ज्वैलरी के कोई औरत नहीं देखी?”
“होश की दवा करो सतपाल साहब, अगर यही हाल रहा तो मेरी सलाह के बिना भी एक रोज तुम फॉस्ट फूड ही बेचने के काबिल रह जाओगे।”
“तू भी अपने होश की दवा कर, मेरे साथ यूं मत पेश आ जैसे मैं कोई बच्चा हूं, जब देखो इज्जत उतारने पर तुला रहता है।”
“क्यों उतरवाते हो, जो मन में आया कह देने की बजाये पहले गंभीरता से उस बात पर विचार क्यों नही करते?”
“अब ऐसा क्या कह दिया मैंने?”
“ज्वैलरी वाली बात को ही ले लो, लाश के कान नाक उंगलियां और पैर देखो, हर जगह ऐसे निशान मौजूद हैं जो ज्वैलरी के अलावा किसी और चीज से बने नहीं हो सकते, ऐसे में तुम्हारा ये कहना कि उसे ज्वैलरी पहनने का शौक नहीं रहा होगा, हास्यपद बात नहीं तो और क्या है। फिर औरत चाहे किसी भी वर्ग की हो अपनी हैसयित के मुताबिक कुछ ना कुछ ज्वैलरी तो पहनती ही है, भले ही वह आर्टिफिशियल ही क्यों ना हो। किसी साप्ताहिक बाजार से ही क्यों न खरीदी गई हो।”
 
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सतपाल ने नये सिरे से लाश का मुआयना किया फिर बोला, “कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते कि इसकी हत्या लूटने की खातिर की गई है?”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता, मगर हैरान जरूर हूं कि इसके कत्ल के बाद हत्यारे को इसके आभूषण उतारने की जरूरत क्यों पड़ी?”
“लालच आ गया होगा उसके मन में।”
“फिर तो ये इनसाइड जॉब नहीं हो सकती।”
“क्यों?”
“क्योंकि आखिरकार तो लाश के आभूषण घर वालों को मिल ही जाने थे, ऐसे में लाश नीचे फेंकने से पहले इन चीजों को उतारना क्यों जरूरी था?”
“फिर तो समझ लो कि कातिल वकील है, या फिर वह छोकरा संजीव चौहान, क्योंकि बाहरी लोगों के तौर पर अभी तक उन दोनों के नाम ही हमारे सामने आये हैं।”
“और भुवनेश कातिल क्यों नहीं हो सकता, वह भी तो बाहर का ही आदमी है।”
“इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि बहन के कत्ल की उसके पास कोई वजह नहीं हो सकती, ना ही बहन या जीजा के छोटे भाई की मौत से उसे कोई फाइनेंशियल गेन होना था।”
“और निरंजन राजपूत के बारे में क्या कहते हो?”
“उसके बारे में क्या कहूं, प्रियम शर्मा के साथ तो फिर भी उसकी तकरार हुई थी, इसलिए बहस के लिये हम उसे कातिल मान सकते हैं, मगर कल्पना के साथ उसकी भला क्या दुश्मनी रही हो सकती है?”
“क्या पता वह पूरे परिवार के साथ ही खुंदक खाये बैठा हो? ऐसे में छत पर जो गोली चलाई गई थी उसका एक नया जवाब भी मुमकिन हो सकता है।”
“कैसा जवाब?”
“उसने हमें धमकी दी थी, इसलिए हमें जान से मारने के लिये यहां पहुंच गया या फिर अपने किसी गुर्गे को भेज दिया।”
“जैसे आज के बाद हम शहर से गायब हो जाने वाले थे? दोबारा उसे मौका नहीं मिलने वाला था।”
“ऐसा नहीं था, मगर उसको सामने रखकर सोचें तो हम दोनों को शूट कर देने की वजह सहज ही दिखाई देने लगती है।”
“ठीक है भाई पता करेंगे कि कल्पना के कत्ल के वक्त वह कहां था, हम दोनों पर गोली चलने के वक्त कहां था?” कहकर उसने लाश को दोबारा चादर से ढक दिया और उठ खड़ा हुआ।
“अतर सिंह!” उसने एक एएसआई को आवाज दी।
“जी जनाब।”
“लाश को एंबुलेंस में रखवा दो।”
“अभी लीजिये जनाब।”
“इस वक्त यहां जितने भी लोग मौजूद हैं” - सतपाल वहां खड़ी भीड़ से बोला – “चाहे वह घर के लोग हों या फिर बाहर के, चलकर हॉल में बैठिये, हमारी इंक्वायरी पूरी होने से पहले कोई भी यहां से बाहर नहीं जायेगा।”
“मैं तो अभी अभी यहां पहुंचा हूं।” संजीव चौहान बोला।
“बेशक अभी पहुंचे हैं, लेकिन पूछताछ फिर भी होगी, जाकर हॉल में बैठिये।”
संजीव फिर कुछ नहीं बोला।
सब लोग एक एक कर के वहां से हॉल की तरफ बढ़ गये।
सबसे आखिर में वहां एडवोकेट ब्रजेश यादव रह गया जिसकी वहां से हिलने की कोई मंशा नहीं जान पड़ती थी।
“आपको अलग से कहना पड़ेगा?” सतपाल उसे घूरता हुआ बोला।
“नहीं, लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।”
“कहिये।”
“मैं चाहता हूं कि आप इस केस में मुझे और मीनाक्षी को एक साथ घसीटने की कोशिश ना करें, इस बारे में कम से कम तब तक अपनी जुबान बंद रखें जब तक कि आपको ये न लगने लगे कि कातिल हम दोनों में से कोई एक है या हम दोनों ही कातिल हैं।”
“जैसे पुलिस आपके कहे को मानने के लिये बाध्य है।”
“नहीं है, इसीलिये रिक्वेस्ट कर रहा हूं।”
“ठीक है, हॉल में पहुंचिये आगे देखते हैं कि उस बारे में आपकी मदद की जा सकती है या नहीं।”
सहमति में सिर हिलाता यादव हॉल की तरफ बढ़ गया।
“अजीब आदमी है” - सतपाल पनौती की तरफ देखता हुआ बोला – “इसका मिजाज मेरी समझ से परे है।”
“जबकि कहना तुम्हें ये चाहिये था कि शातिर आदमी है, इसलिए इसके कातिल निकल आने के चांस सबसे ज्यादा हैं।”तू कहे तो नोट कर लेता हूं, अगली बार बोल दूंगा।”
पनौती हंसा।
“जानता है इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूं।”
“यही कि अभी एक मामला सॉल्व हुआ नहीं कि दूसरा गले पड़ गया।”
“नहीं, मैं सोच रहा हूं कि क्या छत पर गोली चलाने वाला शख्स यहां मौजूद लोगों में से कोई एक हो सकता है?”
“तुम इन सभी के हाथों को गन पाउडर के लिये चेक क्यों नहीं करवाते?”
“बहुत वक्तखाऊं काम है भाई, इसके लिये सस्पेक्ट को लैब में ले जाकर उसके हाथों का पैराफिन कास्ट उठाना पड़ता है, फिर कार्बन के कणों के लिए उसकी जांच की जाती है, इसके बाद पता चलता है अमुक शख्स ने हाल ही में गोली चलाई थी या नहीं। कोई एक या दो जना होता तो शायद संभव हो भी जाता। यहां तो कई लोगों जांच करवानी पड़ेगी, उसके बावजूद भी नतीजा हासिल होने की कोई उम्मीद नहीं है। कातिल ने जहां इतनी सावधानी बरती है वहां उसे इस बात की भी जानकारी जरूर होगी कि गोली चलाने के बाद उसके हाथों की जांच उसका पोल खोल कर रख देगी, उस बारे में उसने जरूर कोई ना कोई सावधानी बरती होगी।”
“क्या पता ना बरती हो, क्या पता बेध्यानी में ही उससे कोई भूल हो गई हो, या फिर उसे इस बात की जानकारी ही ना हो कि पैराफिन टेस्ट के जरिये इस बात का पता लगाया जा सकता है कि अमुक शख्स ने हाल-फिलहाल गोली चलाई थी या नहीं चलाई थी।”
“इतने लोगों को एक साथ टेस्ट के लिये तैयार कर पाना क्या तुम्हें मजाक लगता है, ऊपर से इस काम के लिये डीसीपी साहब की परमिशन लेनी होगी, जिनसे इन लोगों की खास पहचान मालूम पड़ती है, अनुराग शर्मा के मुंह से तुम खुद भी सुन ही चुके हो।”
पनौती ने उसे घूर कर देखा।
“इस बार तेरे घूरने का भी कोई असर नहीं होगा भाई, तू कहे तो मैं वीर साहब से बात कर के देखता हूं, मगर जवाब इंकार में ही सुनने को मिलेगा।”
पनौती ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, “सिगरेट देना प्लीज।”
सतपाल ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसके हवाले कर दिया।
उसने दो सिगरेट सुलगाये जिसमें से एक सतपाल को थमाता हुआ बोला, “तुम्हारे साथ रहकर ही मैंने जाना कि एक पुलिस ऑफिसर कदम कदम पर कितना लाचार हो जाता है, प्रोसिजर को फॉलो करने के चक्कर में किस तरह हर वक्त चक्की के दो पाटों के बीच पिसता रहता है, जहां एक तरफ उसके आला अफसर होते हैं तो दूसरी तरफ मुलजिम।”
“वही तो, जबकि आम जनता पुलिस को अक्सर वर्दी वाला गुंडा कहने से भी बाज नहीं आती।”
“आम जनता कैसे आ सकती है सतपाल साहब, जबकि तुम लोगों का सबसे आसान शिकार वही होती है, रिक्शे वाले को पीट दो, ट्रक ड्राइवर को बेवजह घंटों सड़क पर खड़े रखो, झुग्गी में रहते किसी शख्स को दिन में चार बार ऐसे जुर्म के लिये उठाकर डंडा परेड करो जो उसने किया ही ना हो। सच पूछो तो तुम्हारी राहों में अड़चने आम जनता नहीं खड़ी करती, बल्कि रसूख वाले लोग खड़े करते हैं, जैसे कि मीनाक्षी शर्मा, जैसे कि संजीव चौहान, जैसे कि निरंजन राजपूत, तुम लोग चाहकर भी उनसे उस तरह से पेश नहीं आ सकते जैसे कि निचले तबके के लोगों के साथ अक्सर आते दिखाई देते हो।”
“बोल चुका?”
“नहीं अभी बाकी है” - कहकर उसने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा फिर धुंआ उगलता हुआ बोला – “अभी अगर ये घटना किसी मामूली सी कॉलोनी में घटित हुई होती, तो मरने वाली का पूरा परिवार हाथ बांधे तुम्हारे सामने थाने में खड़ा होता, तब तुम्हें पैराफिन टेस्ट की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि जो नतीजा उस टेस्ट के जरिये हासिल होना है वह तुम लात-घूंसों के बल पर बड़ी आसानी से हासिल कर लेते। और बात सिर्फ फौजदारी की ही नहीं है, हर तरफ यही आलम है। ट्रैफिक पुलिस की ही ले लो, एक मर्सिडीज बेशक रेड लाइट जम्प कर के निकल जाये उसे रोकने की उनकी मजाल नहीं हो सकती, मगर किसी छोटी मोटी कार या फिर बाइक के आगे यूं कूद पड़ते हैं कि चालक का जरा सा ध्यान भटक जाये तो वह उसे ठोक ही बैठे। ऐसे में आम जनता क्यों ना सोचने पर मजबूर हो जाये कि कानून सबके लिये बराबर नहीं होता।”


मैं तुम्हारी बातों को काटने की कोशिश नहीं करूंगा, मगर इतना जरूर कहूंगा कि जिस दिन इंस्पेक्टर सतपाल सिंह तुम्हें किसी मजलूम पर जुल्म ढाता दिखाई दे जाये उसी रोज इसे गोली मार देना।”
“शर्म तो आती नहीं है गैरकानूनी सलाह देते हुए, किसी के जुर्म की सजा देने वाला मैं कौन होता हूं, वह काम कानून का है, अलबत्ता ऐसा दिखाई देने पर मैं तुम्हारी वर्दी उतरवाये बिना तो चैन से नहीं बैठने वाला।”
“मुझे मालूम है भाई, चल अब कुछ काम करते हैं।”
दोनों हॉल में पहुंचे।
“इंस्पेक्टर साहब” - मीनाक्षी बोली – “यहां यूं मजमा लगाने का क्या मतलब है?”
“क्यों आप नहीं चाहतीं कि आपकी बहू का हत्यारा पकड़ा जाये, आपके बेटे के कातिल को उसके कुकर्मों की सजा मिले।”
“बेशक चाहती हूं, मगर हत्यारा क्या अभी तक यहां बैठा होगा?”
“तो फिर हमें अपना काम करने दीजिये” -सतपाल उसके सवाल को नजरअंदाज कर के बोला – “हम सामने वाले कमरे में जा रहे हैं सबसे पहले घर के नौकरों को एक-एक कर के वहां भेजिये, उसके बाद बाकी लोगों का बयान होगा।”
कहकर वह जवाब की प्रतीक्षा किये बिना प्रियम के कमरे में जा घुसा और वहां मौजूद इकलौती कुर्सी खींचकर बैठ गया, पनौती ने वैसी कोई कोशिश नहीं की। एक एक कर के चार नौकर वहां आये और चले गये, उनसे कोई काम की बात मालूम नहीं पड़ी क्योंकि हत्या के वक्त उनमें से कोई भी हॉल में नहीं था।
तत्पश्चात डॉली ने भीतर कदम रखा।
“बैठो” - सतपाल बेड की तरफ इशारा कर के बोला।
वह पलंग पर पैर लटका कर बैठ गयी।
“कुछ जान पायीं?”
“खास कुछ नहीं, सिवाय इसके कि भुवनेश की अपनी बहन के साथ कोई अनबन थी।”
“कैसी अनबन?”
“मालूम नहीं, मैने तो बस दोनों के व्यवहार से ऐसा महसूस किया था।”
“कत्ल के वक्त वह कहां था?”
“पहले पता तो चले कि कत्ल हुआ कितने बजे?”
“तुम्हारे मिस्टर राइट का अंदाजा है, कि ठीक नौ बजे कल्पना को छत से नीचे फेंका गया था, समझ लो उससे कुछ मिनट पहले उसका गला घोंटा गया होगा।”
“वह कहां था ये बता पाना मुश्किल है, मगर साढ़े आठ बजे के बाद मैंने उसे कमरे से बाहर निकलते नहीं देखा था। लेकिन मैं हर वक्त हॉल में नहीं थी इसलिए इस बात की गारंटी नहीं कर सकती।”
“और मीनाक्षी के बारे में क्या कहती हो?”
“जो कहना है बाद में कहूंगी, पहले राज मुझे ये बताये कि उसके बेडरूम में क्या कर रहा था?”
“वह मुझे अपना कमरा दिखाने के लिये ले कर गई थी।” पनौती बोला।
“क्यों तुमने क्या कभी किसी विधवा औरत का कमरा नहीं देखा था?”
“अरे चला भी गया तो क्या आफत आ गई?”
“ये मैं बताऊं तुम्हें, या तुम समझते हो कि हॉल में मुंह से मुंह सटाकर तुम उसके साथ जो मीठी मीठी बातें कर रहे थे, उसका मुझे अंदाजा नहीं है।”
“है तो है, तुम्हें जो समझना हो समझो।”
“मैं आंटी को बताऊंगी इस बारे में।”
“खबरदार जो मम्मी से एक लफ्ज भी कहा।”
“कहूंगी क्या कर लोगे?”
“डॉली! डॉली!” - सतपाल उसे टोकता हुआ बोला – “इस बारे में तुम दोनों बाद में लड़ सकते हो, इसलिए मुद्दे पर आओ, वरना किसी को तुमपर शक हो सकता है।”
“मीनाक्षी” - वह मुंह फुलाकर बोली – “नौ बजे के करीब हॉल में दिखाई दी थी मुझे, उसके दिखने के थोड़़ी ही देर बाद ये भागता हुआ सीढियां उतर कर हॉल से बाहर निकल गया था। अगर इसने वहां किसी को पड़ा देख भी लिया था तो यूं गोली की तरह भागने की इसे क्या जरूरत थी, लाश उठकर कहीं भाग जाती? आराम से चलकर नहीं जा सकता था?”
“मुझे लगा था कि वहां तुम पड़ी हुई हो, तभी मैं घबराकर भागा था।”
“सुन लीजिये इंस्पेक्टर साहब, अब ये मेरी मौत की कामना भी करने लगा है। शादी से पहले ही इसे मैं लाश बनी दिखने लगी हूं, बाद में तो जरूर ये अपने हाथों से मेरा गला घोंट देगा।”
“पागलों जैसी बात मत करो, तुम सचमुच यहां की नौकरानी नहीं हो, जिसे नीचे गिरा समझकर मैं धैर्य से काम लेता।”
“ओह तो तुम्हें मेरी परवाह भी है।”
“नहीं बिल्कुल भी नहीं है, मैं तो ये सोचकर डर गया था कि तुम्हें यहां नौकरी पकड़ने के लिये मैंने कहा था, इसलिए तुम्हारी सलामती की जिम्मेदारी मुझपर थी, तभी मैं घबराकर दौड़ पड़ा था।”
“या इसलिये दौड़े थे कि अगर जिंदा बच गई होऊं तो बाकी की कसर तुम अपने हाथों से पूरी कर दो।”
“ऐसा करो” - सतपाल बोला – “तुम दोनों बाहर चले जाओ, जब तुम्हारी बक-बक बंद हो जाये तो वापिस आ जाना।”
“मैं कुछ नहीं बोल रही।”
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“मुझे इससे कोई बात नहीं करनी।” वह खिन्न भाव से बोला।
“गुड! तो अब ये बताओ कि राज के दिखाई देने से कितना पहले तुमने मीनाक्षी को हॉल में देखा था।”
“एक मिनट! बड़ी हद डेढ़ इससे ज्यादा नहीं हो सकता।”
“और कुछ दिखाई दिया तुम्हें?”
“दिन में वकील साहब का एक फेरा लगा था यहां, मगर आधे घंटे में वापिस लौट गये थे।”
“अनुराग कहां था तब?”
“तीन बजे तक यहीं था, उसके बाद ऑफिस के लिये निकल गया था।”
“वकील साहब के अलावा कोई आया गया?”
“नहीं और तो कोई नहीं आया।”
“अनुराग के आने के बाद जब मैं और राज छत पर चले गये थे, तब क्या हमारे पीछे-पीछे मीनाक्षी या अनुराग में से कोई वहां से गायब दिखाई दिया था?”
“अनुराग का पता नहीं मगर मीनाक्षी हर घड़ी वहीं थी, दरअसल उस वक्त मेरा सारा ध्यान लाश की तरफ था, जबकि अनुराग मेरे पीछे कहीं खड़ा था, इसलिए उसपर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।”
“कभी तो नजर पड़ी ही होगी तुम्हारी?”
“हां पड़ी थी मगर तब तक आप लोग वापिस लौट आये थे।”
“वकील साहब यहां कब पहुंचे थे?”
“आप दोनों के जाने के करीब दस-बारह मिनट बाद।”
“और संजीव चौहान?”
“वह भी वकील के पीछे पीछे ही यहां पहुंच गया था।”
“संजीव को तुम पहले से जानती हो?”
“हां।”
पनौती के कान खड़े हो गये।
“कैसे जानती हो?”
“वैसे ही जैसे कि कोमल या प्रियम को जानती हूं, संजीव भी हमारे कॉलेज में ही था।”
“कैसा लड़का है?”
“अच्छा है, कोमल के साथ बहुत अच्छी बनती थी उसकी।”
“दोनों के बीच कोई प्यार मोहब्बत वाला रिश्ता तो नहीं था?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं था, होता तो वह प्रियम से शादी क्यों करती? जबकि संजीव हर हाल में उससे ज्यादा योग्य था?”
“क्या पता उसकी चाहत एकतरफा रही हो।”
“ये हो सकता है, क्योंकि वह अक्सर कोमल के आगे-पीछे मंडराता दिखाई दे जाता था। जैसे कि चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं, या चलो कैंटीन में कुछ खाते हैं चलकर, वगैरह वगैरह बहाने निकाल ही लेता था।”
“कोमल या प्रियम को ऐतराज नहीं होता था?”
 

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