Thriller पनौती (COMPLETED)

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बाहर निकल कर टहलता हुआ वह बंगले के पीछे उस हिस्से में पहुंचा जहां प्रियम के कमरे की खिड़की खुलती थी। उसने मोबाइल का टॉर्च जलाकर वहां की कच्ची जमीन का बड़े ही ध्यान से मुआयना करना शुरू किया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि वहां कई सारे फुट प्रिंट्स आपस में गड़मड़ हुए पड़े थे।

वह थोड़ा और आगे बढ़ा, और बगल वाले कमरे की खिड़की के पास पहुंचा, जहां अनुराग के बताये मुताबिक बीती रात उसका साला मौजूद था। वहां भी ढेरों की तादात में फुट प्रिंट दिखाई दिये।

यूं ही आस-पास और ऊपर नीचे की दीवारों को देखता हुआ वह बंगले के आखिरी सिरे तक हो आया मगर कोई काम की जानकारी उसके हाथ नहीं लगी।

वह वापिस ड्राईंग रूम में लौटा। सतपाल को उसने अनुराग से सवाल जवाब करता पाया तो चुपचाप उसके पास पहुंचकर खड़ा हो गया।

कुछ देर और वह सिलसिला चला फिर दोनों बंगले से बाहर निकल कर पुलिस जीप में सवार हो गये।

“अब क्या कहते हो शर्मा साहब?” - सतपाल जीप ड्राइव करता हुआ बोला – “अभी भी तुम्हें इस बात की गुंजायश दिखाई देती है कि यह केस गैरइरादतन हत्या का है?”

“नहीं..”


“और मैं क्या कहता था?”

“....यह कोल्ड ब्लडिड मर्डर है।”

“नहीं ये कहना तो गलत होगा, क्योंकि गुस्से में चलाई गई गोली को तुम कोल्ड ब्लडिड मर्डर नहीं कर सकते।”

“कातिल कोमल शर्मा नहीं है।”

“क्या कहा?” सतपाल ने इतनी जोर से ब्रेक का पैडल दबाया कि पनौती का सिर विंड स्क्रीन से टकराते टकराते बताया।

“लगता है झटका ज्यादा जोर का दे दिया मैंने तुम्हें?”

सतपाल ने जीप साइड में रोकी फिर उसकी तरफ देखता हुआ बोला, “तुम मजाक कर रहे हो?”

“तुम पागल हो गये हो?” - पनौती उसी की टोन में बोला – “जो इतनी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आती कि कोमल ने रिवाल्वर जरूर थाम रखी थी मगर गोली चलाने वाले हाथ किसी और के थे।”

“खामख्वाह जबकि कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और मौजूद नहीं था। और सबसे बड़ी बात ये कि कोमल शर्मा खुद कबूल करती है कि गोली उसी ने चलाई थी, भले ही वो कहती है कि वैसा उससे अनजाने में हो गया था।”

“खामख्वाह कुछ नहीं होता सतपाल साहब, रिवाल्वर से फिंगर प्रिंट ना मिलना ही इस बात को साबित कर देता है कि कत्ल के बाद रिवाल्वर बदल दी गई थी। तुम कहते हो उसने जानबूझ कर अपने फिंगर प्रिंट मिटा दिये थे, पहले मुझे तुम्हारी बात इसलिए कबूल थी क्योंकि तब तक अनुराग शर्मा की बात मैंने नहीं सुनी थी। अब जरा उसके बयान को याद करो, वह कहता है कि गोली चलने से घंटा भर पहले उसका वकील ब्रजेश यादव वहां पहुंचा था और तब से लेकर गोली चलने तक हर वक्त वह उसकी मां के साथ ड्राईंग रूम में मौजूद रहा था। जबकि प्रियम और कोमल कत्ल से महज बीस मिनट पहले अपने बेडरूम में पहुंचे थे। ऐसे में वो ये कैसे उम्मीद कर सकती थी कि कत्ल के बाद बाहर निकल कर कहीं छिप जायेगी और बाकी लोगों के वहां पहुंचने के बाद वापिस लौटेगी।”

“तुम भूल रहे हो कि उस वक्त वह गुस्से में थी, ऐसे में इतनी बारीक बातें सोच पाना आसान नहीं था, ऊपर से कत्ल वह पहले कर चुकी थी, बाद में उसने बचाव के बारे में सोचना शुरू किया, उसी कोशिश में उसने रिवाल्वर से अपने फिंगर प्रिंट मिटा दिये थे।”

“आजकल फॉस्ट फूड का बिजनेस बहुत अच्छा चल रहा है।”

“तो।”

“कहो तो तुम्हारे लिये कोई ठीया देखूं, जहां अपनी पुलिस की नौकरी छोड़कर तुम बिजनेस शुरू कर सको।”

“शर्मा साहब बाज आ जाओ” - सतपाल दांत पीसता हुआ बोला – “वरना किसी दिन मेरे हाथों ही तुम्हारा ऊपर का टिकट कट जायेगा।”

“आपस में लड़ने से पहले कम से कम मेरा तो लिहाज करो” - डॉली झुंझला कर बोली – “या आप दोनों भूल चुके हैं कि वक्त जीप में मैं भी मौजूद हूं।”

“सॉरी लेकिन तुम सुन ही रही हो, ये किस कदर मेरी बेइज्जती करने पर तुला हुआ है, इससे कहो कि ये अपनी इस तरह की हरकतों से बाज आ जाये।”

“राज।”

“कोई राज नहीं, इनसे कहो कि बेइज्जती इतनी ही बुरी लगती है तो बचकाना बातें ना किया करें।”

“शटअप!” - डॉली चीखकर बोली – “भगवान के लिये ये इनडाईरेक्ट मोड में बातें करना बंद करो, नहीं कर सकते तो मैं जाती हूं, मेरे पीठ पीछे जो मन में आये करना।”

“तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है, मैं अब कुछ नहीं बोल रहा।” कहकर सतपाल ने जीप आगे बढ़ा दी।

पांच मिनट तक जीप के भीतर खामोशी छाई रही।

“कम से कम इतना तो पूछ लो सतपाल साहब” - पनौती हंसता हुआ बोला – “मैंने तुम्हें फॉस्ट फूड के बिजनेस की सलाह क्यों दी।”

“तू चुप बैठ मुझे कुछ नहीं पूछना।”

“लो तुम तो औरतों की तरह नखरे झाड़ने लगे।”
 
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बाज आ जा” - सतपाल बोला – “क्यों मेरा भेजा फिराने पर तुला है।”

“जैसे भेजा फिर गया तो तुम मेरा कुछ बिगाड़ ही लोगे।”

“बिल्कुल बिगाड़ लूंगा, ले जाकर हवालात में डाल दूंगा, ऐसा केस बनाऊंगा कि सालों साल जमानत नहीं मिलेगी।”

“फॉस्ट फूड का धंधा कुछ ज्यादा ही जंच गया मालूम पड़ता है, जो अपने हाथों अपनी वर्दी उतारने का इंतजाम करने के बारे में सोचने लगे हो।”

“अरे चुप भी करो यार!” - डॉली कलपती हुई बोली – “वरना मैं चलती जीप से छलांग लगा दूंगी।”

“जबकि तुम बखूबी जानती हो कि आत्महत्या करना पाप है।”

“हां जानती हूं लेकिन मैं ये पाप जरूर करूंगी, तुम दोनों की बकवास झेलने से तो कहीं अच्छा है कि मैं मरकर नर्क झेल लूं।”

“मैं बकवास कर रहा हूं?” पनौती हैरानी से बोला।

“नहीं तुम बकवास कहां कर रहे हो, तुम तो लोरी गाकर सुना रहे हो।”

“अब तुम हद पार कर रही हो।”

“तुम दोनों शांत हो जाओ प्लीज” - सतपाल बोला – “बताओ शर्मा साहब क्या कहना चाहते थे।”

“किस बारे में ‘फास्ट फूड’ के धंधे की बाबत?”

सतपाल का दिल हुआ अपने बाल नोचने शुरू कर दे। मगर तुरंत बाद उसने खुद को शांत कर लिया फिर बोला, “हां उसी बारे में, प्लीज कंटीन्यू करो।”

“मैं ये कह रहा था कि तुम्हें पुलिस की नौकरी छोड़कर फॉस्ट फूड का बिजनेस शुरू कर देना चाहिए।”

“ऐसा क्यों?” सतपाल जबरन अपने लहजे को मीठा रखने की कोशिश करता हुआ बोला।

“इसलिए क्योंकि इतनी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आती कि गोली चलने के फौरन बाद तो दरवाजा खटखटाया जाने लगा था, ऐसे में कोमल शर्मा दरवाजे के रास्ते बाहर निकल कर कहीं छिपने के बारे में कैसे सोच सकती थी, इसके बावजूद अगर वह कमरे से बाहर निकलना चाहती तो पीछे की खिड़की को जरिया बनाती ना कि दरवाजे को। मगर उसने वैसा कोई कदम नहीं उठाया था, इससे जाहिर होता है कि उसका कमरे से भाग निकलने का कोई इरादा नहीं था। ऐसे में रिवाल्वर से वह अपने फिंगर प्रिंट क्यों पोंछती?”

“बहस के लिए अगर तुम्हारी बात मान भी लूं तो सवाल ये है कि प्रियम को गोली किसने मारी और कैसे मारी? उससे भी बड़ा सवाल ये है कि उसे शूट अगर किसी और ने किया था तो कोमल शर्मा दूसरे का गुनाह अपने सिर लेने को क्यों तैयार हो गई?”

“इस सवाल का जवाब मैं तुम्हें कल दूंगा, तब जब कि कोमल शर्मा से मेरी मुलाकात हो चुकी होगी। मगर ये तो तुम अभी से तय समझो कि इरादतन या गैरइरादतन उसने कभी कोई गोली नहीं चलाई थी” - कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “बैलिस्टिक रिपोर्ट क्या कहती है?”

“अभी कुछ नहीं कहती, कल तक रिपोर्ट आने की उम्मीद है।”

“और पोस्टमार्टम रिपोर्ट?”

“वह तो दोपहर में ही आ गई थी, मगर उसमें अलग से कोई खास बात दर्ज नहीं है, डॉक्टर ने मौत का जो वक्त मुकर्रर किया है वह आठ से दस के बीच का है, मगर मौका-ए-वारदात पर मौजूद लोगों की गवाही की वजह से हम यकीनी तौर पर कह सकते हैं कि गोली ठीक नौ बजे चलाई गई थी, सच पूछो तो बैलिस्टिक रिपोर्ट से भी कुछ नया सामने नहीं आने वाला, उससे तो बस इस बात की पुष्टि भर हो जायेगी कि डैड बॉडी से बरामद गोली उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी जो कि हमें घटनास्थल पर पड़ी मिली थी।”

“मैं इस बात से इंकार कहां कर रहा हूं, इंस्पेक्टर साहब! कातिल क्या अक्ल से इतना कोरा रहा होगा जो घटनास्थल पर एक निर्दोष रिवाल्वर रख देगा। जबकि आजकल इतनी सी बात तो हर कोई जानता और समझता है कि लाश से मिली गोली का रिवाल्वर से एक दूसरी गोली चलाकर ये बात निर्विवाद रूप से साबित की जा सकती है कि फलां गोली फलां रिवाल्वर से ही चलाई गई थी।”

“अगर इतना मानते हो तो फिर शक की गुंजायश ही कहां बचती है, रिवाल्वर कोमल ने कत्ल से ऐन पहले अलमारी से निकाली थी, यानि इस बात की संभावना बिल्कुल नहीं है कि उससे पहले किसी ने उसी रिवाल्वर से प्रियम को गोली मारकर उसे वापिस अलमारी में रख दिया हो। आगे ये भी साबित हो चुका है कि आला-ए-कत्ल खुद मकतूल की मिल्कियत था। यानि कत्ल के बाद कम से कम रिवाल्वर के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी। रही बात किसी और का गुनाह अपने सिर लेने की संभावना की, तो उसके चांसेज भी निल दिखाई देते हैं, क्योंकि कत्ल के वक्त कोमल और प्रियम के अलावा कमरे में कोई और नहीं था। इसलिए तुम यकीन जानो, इरादतन या गैर इरादतन गोली कोमल शर्मा ने ही चलाई थी।”

“तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूंगा मैं, बस कोमल शर्मा से मेरी मुलाकात होने तक धैर्य रखो।”

“जैसे वह तुम्हें कोई नई कहानी सुना देगी।”

“सुनायेगी, क्यों नहीं सुनायेगी? तुम्हें भी जरूर सुनाया होता बशर्ते कि तुमने तफशील से उसकी बात सुनी होती ना कि उसके गुनाह कबूल करते ही यूं अपनी पूछताछ पर फुल स्टॉप लगा देते जैसे ज्यादा इंक्वायरी करने पर वह खुद को बेगुनाह बताने लग जाती और एक ओपेन ऐंड शट केस खामख्वाह तुम्हें कसरत करने पर मजबूर कर देता।
 
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20 जुलाई 2021

सुबह दस बजे कोमल शर्मा से मिलने के लिये राज शर्मा जेल पहुंचा। डॉली उसके साथ थी, क्योंकि कोमल को उससे बातचीत के लिये आखिर उसी ने तैयार करना था।

ग्यारह बजे के करीब डॉली उससे मिलने के लिए गई और उल्टे पांव वापिस लौटकर राज को भीतर भेज दिया।

पनौती ने लोहे की जाली के उस पार खड़ी कोमल शर्मा का सरसरी निगाहों से मुआयना किया। उस वक्त वह जींस की काली पैंट और नीले रंग का टॉप पहने थी, जो कि दूर से ही मैले कुचैले दिखाई दे रहे थे। जबकि न्यायिक हिरासत में बंद कैदियों को घर के कपड़े पहनने या घर से हासिल खाना खाने पर कोई पाबंदी नहीं होती है।

वह पच्चीस वर्षीय, खूब गोरी-चिट्टी युवती थी, जो शादीशुदा दिखाई देने की बजाये किसी कॉलेज की स्टूडेंट नजर आ रही थी। चेहरा बुरी तरह पीला पड़ा हुआ था, और आंखें लगातार रोते रहने के कारण सूज गई मालूम पड़ती थीं, वैसा नींद पूरी ना होने के कारण भी रहा हो सकता है। मगर उस घड़ी पनौती को यही लगा कि वह बहुत देर तक रोती रही थी, जो कि स्वाभाविक भी था।

“मुझे पहचाना?”

“हां पहचाना, एक बार पहले भी हम मिल चुके हैं। ऊपर से डॉली अभी-अभी तुम्हारे बारे में बताकर गई है।”

“हमारे पास वक्त कम है और सवाल बहुत ज्यादा हैं, इसलिए मैं सीधा मतलब की बात पर आता हूं।”

जवाब में उसने हौले से गर्दन हिलाकर सहमति जता दी।

“पुलिस को दिये गये अपने बयान में तुमने कहा है कि कत्ल वाली रात तुम्हारे और प्रियम के बीच झगड़ा शुरू हुआ, फिर किसी बात पर उसने तुमपर हाथ उठा दिया, जवाब में गुस्से में आकर तुमने अलमारी खोलकर रिवाल्वर निकाली और उसपर तान दी, तब प्रियम भड़कते हुए कह दिया कि ‘हिम्मत है तो चला गोली’ उसी दौरान अंजाने में तुम्हारे हाथों गोली चल गई। इस कहानी में तुम कोई फेर बदल करना चाहती हो?”

“नहीं क्योंकि सच्चाई यही है, मैंने उसे जानबूझकर नहीं मारा था।”

“बढ़िया अब जरा याद कर के बताओ कि जिस वक्त तुम्हारे हाथों गोली चली थी, उस वक्त तुम कमरे में कहां खड़ी थीं और प्रियम कहां खड़ा था?”

“जब मैं गुस्से में आकर अलमारी का ताला खोलने के लिये पलटी थी, उस वक्त उसका मुंह मेरी तरफ ही था, मगर रिवाल्वर निकालने के बाद जब मैं उसकी तरफ घूमी तो मैंने उसे खिड़की के बाहर देखता पाया।”

“उस वक्त खिड़की पर पर्दे पड़े हुए थे?”

“नहीं, क्योंकि कमरे के ए.सी. में दो दिनों से कूलिंग की प्रॉब्लम आ रही थी, इसलिए मैंने कमरे में घुसते ही पर्दा हटाकर, एक खिड़की के दोनों पल्ले खोल दिये थे। उससे पहले वाली रात को भी हम खिड़की खोलकर ही सोये थे।”

“ए.सी. को ठीक करवाने की कोशिश नहीं की गई?”

“मैंने उसी सुबह अनुराग भाई साहब को बताया था, वह कंपनी वालों को फोन भी कर चुके थे, मगर तब तक कोई ए.सी. ठीक करने नहीं पहुंचा था।”

“रिवाल्वर निकालने के बाद तुम घूमकर प्रियम के सामने, यानि खिड़की और उसके बीच खड़ी हो गई, और हाथ में थमी रिवाल्वर उसपर तान दी?”

“नहीं मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था, मैं तो अलमारी से रिवाल्वर निकालने के बाद उसी से पीठ सटाकर खड़ी हो गई और वहीं खड़े खड़े ही मैंने रिवाल्वर का रूख उसकी तरफ कर दिया था।”

“रिवाल्वर देखकर क्या वह तुम्हारी तरफ घूमा था?”

“नहीं घूमना तो छोड़ो मेरी तरफ देखने की भी कोशिश नहीं की थी उसने, उल्टा ये कहकर मुझे और भड़का दिया कि ‘हिम्मत है तो गोली चलाकर दिखा’ तब मैं अपना आपा खो बैठी, मैंनें पहले से ही उसकी तरफ तने रिवाल्वर को और ज्यादा तान दिया और ट्रीगर पर अपनी उंगली रख दी। मेरा इरादा उसकी जान लेने का नहीं था, मगर....मगर गोली चल गई।” बोलते बोलते उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

“रोओ मत प्लीज! वक्त का ख्याल करो, ये समय बोल्ड बनकर दिखाने का है, फिर मुझे अभी बहुत कुछ पूछना है तुमसे।”

उसने तत्काल अपने आंसू पोंछे।

“गोली चलने के वक्त तुम्हें कोई झटका लगा था, या कुछ ऐसा महसूस हुआ हो जिससे तुम्हें उसी वक्त पता चल गया हो कि तुम्हारे हाथों गोली चल चुकी है?”

“नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ था। मैंने तो बस प्रियम को गोली खाकर कमरे के फर्श पर गिरता देखा था, रिवाल्वर खुद बा खुद मेरे हाथों से निकल गई। मैं दौड़कर उसके करीब पहुंची और उसका नाम पुकारते हुए उसे उठाने की कोशिश करने लगी, तभी मेरी निगाह उसकी छाती से बहते खून पर पड़ी, मेरे होश उड़ गये। तभी बाहर से दरवाजा खटखटाया जाने लगा। मैं बड़ी मुश्किल से हिम्मत बटोर कर दरवाजे तक पहुंची और कुंडी हटाकर दरवाजा खोल दिया।”

“दरवाजे पर उस वक्त कौन-कौन था?”

“मेरी सास थी, कल्पना दीदी का भाई था, वकील ब्रजेश यादव था और थोड़ी देर बाद अनुराग भैया भी कमरे में पहुंच गये थे।”

“फिर क्या हुआ?”

“होना क्या था बेटे की लाश पर निगाह पड़ते ही मुझे गालियां देती मेरी सास मुझपर झपटी और मेरे साथ मार पीट करने लगी। मुझे फर्श पर गिराकर वह मेरी छाती पर कि तुम झूठ बोल रही हो, मगर ऐसा नहीं होता, रिवाल्वर के दस्ते से फिंगर प्रिंट तब तक नहीं मिट सकते जब तक कि तुमने उसे रगड़-रगड़ कर ना मिटाया हो। अब बोलो तुमने किया था ऐसा?”
 
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नहीं, ख्याल तक नहीं आया, मैं तो प्रियम को फर्श पर गिरता देखकर ही अपने होश खो बैठी थी, फिर वैसा करने से मुझे भला क्या हासिल होने वाला था। गोली चलाने वाली बात से मुकर तो रही नहीं थी मैं, ना ही मुकर सकती थी, क्योंकि कमरे में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई नहीं था।”

“जिस वक्त गोली चली थी, उस वक्त क्या तुम्हारा ध्यान एक पल के लिये ही सही, खिड़की के बाहर गया था?”

“नहीं, लेकिन प्रियम की निगाह वहीं अटकी हुई थी।”

“कोई वजह सुझा सकती हो, कि क्यों उस घड़ी वह तुम्हारी तरफ देखने की बजाये खिड़की की तरफ देख रहा था?”

“क्या पता, वैसे हो सकता है गुस्से में मुंह फुलाकर वह निगाहें फेर कर खड़ा हो गया हो, और दोबारा मेरी तरफ देखना उसे गवारा न हुआ हो।”

“ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त खिड़की के बाहर कोई खड़ा रहा हो, जिसे पहचानने की कोशिश में वह बाहर देख रहा हो?”

“मुश्किल है, खिड़की खुली हो और कमरे में लाइट जल रही हो, तो खिड़की के बाहर वैसे भी काफी उजाला दिखाई देने लगता है, ऐसे में वहां कोई खड़ा होता तो प्रियम को उसे पहचानने के लिये आंखें थोड़े ही फोड़नी पड़तीं।”

“गोली चलने के बाद जब रिवाल्वर तुम्हारे हाथों से छूट कर नीचे गिर गया, तो क्या बाद में कमरे में पहुंचे किसी शख्स ने उसे उठाकर देखने की कोशिश की थी, या तुम्हें यही महसूस हुआ हो जैसे वहां मौजूद लोगों में से कोई बहुत ध्यान से रिवाल्वर को देख रहा था?”

“मुझे नहीं मालूम, उस वक्त मैं ऐसा कुछ नोट कर पाने की स्थिति में नहीं थी। ऊपर से कमरे में घुसते ही मेरी सास मुझपर चढ़ दौड़ी थी, इसलिए भी मेरा ध्यान दोबारा रिवाल्वर की तरफ नहीं गया था।”

“उस वक्त ना सही मगर गिरफ्तारी से पहली कभी तो तुम्हारा ध्यान उधर गया ही होगा।”

“मेरे ख्याल से पुलिस के आने के बाद गया था, तब तक किसी के पैर की ठोकर खाकर रिवाल्वर थोड़ा बेड की तरफ खिसक गयी थी। वहां पहुंचे पुलिस इंस्पेक्टर को मैंने रिवाल्वर पर रूमाल डालकर उसे उठाते फिर उसकी नाल को सूंघते देखा था, वैसा कर चुकने के बाद मैंने उसे अपने ही किसी आदमी से कहते सुना था कि ‘जले हुए बारूद की तेज गंध आ रही है

’ फिर उसने रिवाल्वर का चेंबर खोलकर चेक किया तो उसमें बस एक ही गोली कम पाई गई थी।”

“क्या ऐसा हो सकता है कि गोली तुम्हारे हाथों ना चली हो, तुम्हारे पति को गोली मारने वाला शख्स कोई और रहा हो?”

“तुम मजाक कर रहे हो, जब कमरे में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई तीसरा था ही नहीं तो उसे गोली कौन चलाता? फिर तुम ये क्यों भूल जाते हो कि गोली उसी रिवाल्वर से चली थी, जो कि मैंने अलमारी से निकालकर प्रियम पर ताना था।”

“छोड़ो उस बात को” - पनौती बोला – “तुम ऐसे किसी शख्स का नाम सुझा सकती हो, जिसकी प्रियम या तुमसे या फिर घर के बाकी लोगों में से किसी के साथ कोई अदावत रही हो? छोटी-मोटी ही सही।”

“उससे क्या होगा?”

“अभी इस सवाल का जवाब जरा मुश्किल है, इसलिए सवाल के बदले सवाल करने की बजाये मेरे प्रश्न का उत्तर दो, था कोई ऐसा शख्स?”
नहीं, किसी के साथ मेरी अदावत का तो सवाल ही नहीं उठता, और प्रियम का भी कम से कम मेरी नॉलेज में कोई दुश्मन नहीं था। शादी के पहले से अगर ऐसा कुछ चला आ रहा हो तो समझ लो मुझे उसकी खबर नहीं है।”

“दोनों भाईयों की आपस में कैसी बनती थी?”

“बहुत अच्छी बनती थी क्यों?”

“और वकील के बारे में क्या कहती हो? सुना है वह घंटों घर में बैठा तुम्हारी सास से बातें करता रहता था।”

“था तो कुछ ऐसा ही।”

“इतनी गहरी क्यों छनती है दोनों में?”

“भीतर की बात है” - कोमल राजदराना अंदाज में बोली – “मैं नहीं समझती कि मुझे उस बारे में तुम्हें कुछ बताना चाहिये।”

“तुम अहमक हो?” - पनौती बोला – “कत्ल के इल्जाम में जेल के भीतर बैठी हुई हो, ऐसे में तुम्हें अपनी फिक्र करनी चाहिये या औरों की? वो भी ऐसे लोगों की जो तुम्हें हर हाल में जेल के भीतर ही देखना चाहते हैं।”

“बेशक मुझे अपनी फिक्र है, मगर तुम्हारे सवाल का जवाब देकर वह फिक्र दूर नहीं होन वाली, फिर किसी को बेवजह नंगा करने का क्या फायदा?”

“मैं वादा करता हूं कि जब तक बहुत जरूरी नहीं होगा, मैं उस बात को जुबान पर नहीं लाऊंगा, कम से कम ऐसे किसी शख्स के सामने तो हरगिज नहीं लाऊंगा, जिसके जरिये बात के फैलने का खतरा हो।”

वह हिचकिचाई।

“वक्त बहुत कम है मैडम, ताउम्र जेल में नहीं रहना चाहतीं, तो साफ-साफ मेरे सवालों का जवाब दो।”

“मेरी सास का” - वह हिचकिचाती हुई बोली – “एडवोकेट ब्रजेश यादव के साथ गहरा चक्कर है।”

पनौती सन्न रह गया।

“मैं तुम्हारी सास की बाबत सवाल कर रहा हूं।”

“मैं भी उसी के बारे में बता रही हूं तुम्हें।”

“कमाल है दो शादीशुदा बेटों की मां कोई जवान युवती तो होगी नहीं, जो पति की मौत के बाद उसने वकील के साथ रिश्ते बना लिये?”

“पहली बात तो ये कि वह प्रियम और अनुराग की सौतेली मां है। उम्र भी उनकी चालीस पर ही होगी, मगर हर वक्त यूं बन-संवर कर रहती हैं कि देखोगे तो तीस-पैंतीस से ज्यादा की नहीं मानोगे। और सबसे अहम बत ये कि मैं तुम्हें कोई सुनी सुनाई बात नहीं बता रही। हाल ही में मैंने अपनी आंखों से दोनों को एक दूसरे की बाहों में देखा था। मीनाक्षी का तो पता नहीं, मगर वकील साहब की निगाह उस वक्त मुझपर जरूर पड़ी थी।”

“कब की बात है ये?” पनौती हैरानी से बोला।

“अभी दस दिन भी मुश्किल से गुजरे होंगे, वह नजारा देखकर मैं अवाक रह गई। तब मैंने उसका जिक्र अपनी जेठानी कल्पना से भी किया था। सुनकर वह जोर जोर से हंसने लगी और बोली तुमने क्या कोई अनोखी बात देख ली है, यह तो ससुर जी के मरने के बाद से ही चला आ रहा है।”

“फिर तो ये बात दोनों बेटों को भी पता रही होगी?”

“कल्पना की मानो तो पता थी, मगर मुझे यकीन नहीं आ रहा था। आखिरकार प्रियम की मौत वाली रात मैंने उससे पूछ ही लिया। वही बात हमारे बीच झगड़े की वजह बनी थी और आखिरकार....काश मैंने वह सवाल नहीं उठाया होता।”

“जो बीत चुका है उसपर अफसोस जताने के लिए ये सही वक्त नहीं है” - पनौती जल्दी से बोला – “तुम्हारे जेठ का कहना है कि तुम एक बार पहले भी प्रियम पर जानलेवा हमला कर चुकी थी। उसने अपनी आंखों से तुम्हें बमय चाकू पति के सीने पर सवार देखा था।”

“बात एकदम सही है मगर वह नजारा देखकर उन्होंने जो अंदाजा लगाया था वह सरासर गलत है। दरअसल हम दोनों में स्कूल के जमाने से ही इस तरह की नोक-झोंक चलती आ रही थी, उस वक्त भी जो कुछ चल रहा था वह महज मजाक के अलावा कुछ नहीं था। भले ही कोई इस बात पर यकीन करे या ना करे।”


इस बार कोमल शर्मा ने मजबूती के साथ हां में गर्दन हिलाई।

“अब हिलो यहां से” - वहां खड़ा सिपाही टाइम देखता हुआ बोला – “वक्त हो गया।”

“अभी जाता हूं भाई बस एक मिनट और दे दो।”

“कोई एक मिनट नहीं मिलने वालो, चलो निकलो यहां से।”

“अपना ध्यान रखना।” पनौती बोला।

“अरे जाओ भी अब।” कहकर सिपाही उसे विंडो से हटाने के लिये आगे बढ़ा, तभी जाने कैसे उसका पैर फिसला और वह मुंह के बल धड़ाम से फर्श पर जा गिरा।

पनौती ने नीचे झुककर उसका हाथ थामा और उठाते हुए बोला, “जोर से तो नहीं लगी?”

“तू दफा हो यहां से।” सिपाही झल्लाया।

अभी वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पाया था कि पनौती ने उसका हाथ छोड़ दिया। वह दोबारा फर्श पर जा गिरा।

राज शर्मा ने इस बार उसे उठाने की कोशिश नहीं की, चुपचाप बाहर की तरफ बढ़ गया।

“कुछ पता चला?” उसे देखते ही डॉली अधीर स्वर में बोली।

“हां चला।”

“कोई उम्मीद!”

“मैं उससे वादा कर के आया हूं कि अगली पेशी पर - जो कि पांच दिनों बाद है - उसे जमानत मिल जायेगी।”

“तुम मजाक कर रहे हो?”

“नहीं, समझ लो तुम्हें गुड न्यूज दे रहा हूं, इसलिए उसकी फिक्र में दुबली होना बंद करो, कुछ नहीं होने वाला उसे, क्योंकि सच्चाई यही है कि गोली उसने नहीं चलाई थी।”

“वो...वो ऐसा कहती है?”

“नहीं, वह तो अभी भी अपने बयान पर ज्यों की त्यों डटी हुई है, मगर अब मैं उसकी बेगुनाही के प्रति आश्वस्त हूं।”

“थैंक्यू राज जी, मन हो रहा है कि यहीं तुम्हारा मुंह चूम लूं।”

“कोशिश भी मत करना वरना थप्पड़ खा जाओगी।”

“यार कुछ तो मर्दों वाले काम कर के दिखाया करो, तुम्हारी जगह कोई और होता तो कहता कि ‘सोच क्या रही हो चूम लो’।”

“अगर यही मर्दानगी है तो समझ लो मैं मर्द हूं ही नहीं, अब चलो यहां से, बहुत से काम निपटाने हैं।”
 
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एक बजे के करीब दोनों सेक्टर इक्कीस के थाने पहुंचे। पनौती ने पहले ही दरयाफ्त कर लिया था कि इंस्पेक्टर सतपाल सिंह उस घड़ी थाने में मौजूद था।

दोनों उसके कमरे में पहुंचे।

“आओ शर्मा साहब” - वह हंसता हुआ बोला – “आखिरकार मिल ही आये कोमल शर्मा से?”
“हां मिल आया।”
“अब क्या कहते हो?”
“वही जो पहले कहता था, कोमल शर्मा बेकसूर है, उसने कुछ नहीं किया है, कोई गोली नहीं चलाई उसने।”
सतपाल अवाक उसे देखता रह गया।
“ऐसे में सवाल ये है इंस्पेक्टर साहब कि क्या तुम अपनी ही इन्वेस्टीगेशन को झूठा साबित करने के लिए उसकी मदद करोगे?”
“बेशक करूंगा भाई, धिक्कार है मेरी जात पर अगर कोई बेगुनाह मेरी वजह से ऐसे जुर्म की सजा काट जाये जो उसने किया ही ना हो। अब बताओ क्यों तुम उसकी बेगुनाही के प्रति इतने आश्वस्त हो? या फिर जेल में मुलाकात के दौरान उसने अपने बयान से परे कोई और कहानी सुना दी तुम्हें?”
“ऐसा नहीं है, वह अपने बयान पर आज भी टिकी हुई है, मगर उससे इतर जिन सवालों के जवाब मैंने हासिल किये वह कहते हैं कि गोली कोमल शर्मा ने नहीं चलाई थी।”
“फिर किसने चलाई थी?”
“ये अभी तफतीश का मुद्दा है, लेकिन इतना अंदाजा जरूर लगा सकता हूं कि असल में कत्ल वाली रात वहां क्या घटित हुआ होगा।”
“वही बताओ।”
“सबसे पहले तो ये जान लो कि मियां बीवी में तकरार शुरू क्योंकर हुई थी। ऐसी क्या बात थी जिसके कारण प्रियम अपनी बीवी पर हाथ उठा बैठा।”
“मैं सुन रहा हूं।”
जवाब में पनौती ने उसे कोमल की सास और एडवोकेट ब्रजेश यादव के संबंधों के बारे में बता दिया।
“कमाल है!” - सतपाल हैरान होता हुआ बोला – “यकीन नहीं आता कि दो जवान और शादीशुदा बेटों की मां - सौतेली ही सही - के ऐसे लक्षण हो सकते हैं।”
“इसमें हैरान होने वाली क्या बात है, जब चौदह-पंद्रह साल का कोई लड़का रेप कर सकता है तो चालीस साल की विधवा औरत का किसी गैर मर्द के साथ रिश्ता क्यों नहीं हो सकता?”
“चालीस की तो खैर वह नहीं होगी, पहली बार जब मैंने उसे देखा तो यही समझा कि वह मकतूल की कोई बहन-वहन थी, जो इत्तेफाक से कत्ल वाली रात वहां मौजूद थी।”
“जबकि कोमल कहती है कि वह चालीस पार कर चुकी है।”
“चलो मान ली मैंने तुम्हारी बात, वैसे भी इन्वेस्टीगेशन के दौरान पता चला था कि वह जरूरत से ज्यादा ही मॉर्डन है, यहां तक कि वेट लिफ्टिंग उसका पसंदीदा शगल है। रेग्युलर जिम जाती है, ऐसे में उसका अपनी वास्तविक उम्र से कम दिखाई देना कोई हैरानी की बात नहीं कही जा सकती।”
“मुझपर एहसान कर के मानने की कोई जरूरत नहीं है।”
“कोई एहसान नहीं जता रहा भाई, मुझे यकीन है कि वह चालीस की ही होगी, मैं जरूर उसकी मॉर्डन ड्रेस और मेकअप की वजह से धोखा खा गया होऊंगा।”
“गुड! तो कत्ल वाले रोज हुआ ये था कि कोमल ने प्रियम से उसकी मां और वकील के बीच के संबंधों का जिक्र छेड़ दिया, जिसे सुनकर वह यूं भड़का कि बीवी को थप्पड़ मार बैठा। तब कोमल को भी गुस्सा आ गया। उसे अलमारी में मौजूद प्रियम की रिवाल्वर की खबर थी। लिहाजा क्रोध में आकर वह अलमारी का ताला खोलने लगी। उसी वक्त प्रियम को खुली खिड़की के बाहर किसी की उपस्थिति का एहसास हुआ, वह आंखें फाड़कर उस शख्स को पहचानने की कोशिश कर ही रहा था, कि तभी अलमारी से रिवाल्वर निकालकर कोमल ने उसपर तान दिया। उस वक्त प्रियम का पूरा ध्यान खिड़की के बाहर था, उसने एक नजर बीवी के हाथों में थमी रिवाल्वर पर डाली, मगर खौफ खाने की बजाये गुस्से में कह बैठा कि हिम्मत है तो वह गोली चलाकर दिखाये। उस बात ने कोमल के क्रोध को और ज्यादा भड़का दिया, आग बबूला होकर उसने रिवाल्वर के घोड़े पर उंगली रखी ही थी कि ठीक उसी वक्त बाहर से किसी ने प्रियम को शूट कर दिया। वह गोली खाकर फर्श पर गिरा तो कोमल ने सहज ही सोच लिया कि गोली उसके हाथों से चली थी, हड़बड़ाहट में रिवाल्वर उसके हाथों से छूटकर नीचे गिर गयी या फिर उसने खुद ही बौखला कर उसे नीचे फेंक दिया और लपककर पति के पास पहुंची जिसने गोली लगते ही दम तोड़ दिया था। तभी बाहर से दरवाजा खटखटाया जाने लगा। वह कहती है कि बेटे की लाश पर निगाह पड़ते ही सास उसे फर्श पर पटकर उसका गला दबाने लगी, जिसे बड़ी मुश्किल से आखिरकार वकील ने ही वैसा करने से रोका था। तब तक कमरे में बहुत से लोग पहुंच चुके थे, उन्हीं में से किसी एक ने, जो कि हत्यारा था, वहां पड़ी रिवाल्वर को आला-ए-कत्ल से बदल दिया। अब बोलो क्या खराबी है इस कहानी में?”

“सिर्फ एक खराबी है, मगर वह झोल इतना बड़ा है कि मैं गारंटी करता हूं तुम्हारे पास उस बात का कोई जवाब नहीं होगा।”
“तुम बोलो तो सही।”घटना स्थल से बरामद रिवाल्वर खुद मकतूल की मिल्कियत थी, ऐसे में कातिल अगर कोई और शख्स था, तो वह उसकी रिवाल्वर हासिल करने में क्यों कर कामयाब हुआ, बल्कि उसके बदले अलमारी के भीतर कोई दूसरी रिवाल्वर रखने में ही क्यों कामयाब हो पाया। और सौ बातों की एक बात ये कि उसे क्या सपना आना था कि मियां बीवी के बीच एक रोज वैसी नौबत आ ही जायेगी, जब बीवी अपने शौहर पर रिवाल्वर तान देगी, जो वह अलमारी में रखी मकतूल की रिवाल्वर को बदलने की कोशिश करता।”
“तुम्हारा सवाल एकदम जायज है, मगर है तो आखिर एक सवाल ही, जिसका कोई ना कोई मुमकिन जवाब मौजूद होगा ही, हमेशा होता है, बस हमें इस सवाल का जवाब ढूढना है और कातिल तुम्हारी मुट्ठी में होगा।”
“कैसे जादू के जोर से?”
“जादू के जोर से कत्ल के केस नहीं सॉल्व हुआ करते इंस्पेक्टर साहब, फिर ये केस उतना पेचीदा भी नहीं दिखाई देता जितना कि तुम साबित करने पर तुले हो। मेरे ख्याल से तो कत्ल का मोटिव पकड़ में आते ही हत्यारा तुम्हारी गिरफ्त में होगा। और उसके लिये तुम्हें कोई सौ-पचास लोगों को चेक नहीं करना है, क्योंकि घटनास्थल पड़ी रिवाल्वर को बदलने का मौका सिर्फ उन्हीं लोगों को हासिल था जो कत्ल के ऐन बाद उस कमरे में दाखिल हुए थे। ऐसे लोगों के नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। नंबर एक कोमल की सास, नंबर दो उसका वकील, नंबर तीन अनुराग, नंबर चार उसका साला और नंबर पांच प्रियम और कोमल का म्यूचल फ्रेंड संजीव, बड़ी हद इस लिस्ट में तुम एक नाम और जोड़ सकते हो।”
“अनुराग शर्मा की बीवी कल्पना का?”
“मैं उसी का नाम लेने जा रहा था। मगर सबसे पहले तुम्हें अनुराग शर्मा और उसकी मां पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि अलमारी में रखी रिवाल्वर को बदलने की सबसे ज्यादा सहूलियत उन दोनों को ही हासिल थी, अलबत्ता रिवाल्वर की अदला-बदली को नजरअंदाज कर के सोचो तो प्राईम सस्पेक्ट संजीव चौहान दिखाई देता है, क्योंकि वह शख्स कमरे में सबसे बाद में पहुंचा था, हो सकता है बंगले के अहाते में दाखिल होकर सीधा उसके पिछले हिस्से में पहुंच गया हो, जहां खुली खिड़की से प्रियम को शूट करने के बाद वह बिल्डिंग का घेरा काट कर मकतूल के कमरे में पहुंचा हो। ऐसे में उसे वहां पहुंचने में कुछ वक्त तो लग ही जाना था। उसके संदर्भ में कोमल ने भी एक ऐसी बात बताई है जो शक से परे नहीं है।”
“क्या?”
पनौती ने बताया।
“कमाल है, ये बातें पुलिस की पूछताछ में वह नहीं बता सकती थी?”
“नहीं बताया तो ना सही, क्या कर सकते हैं, ऊपर से उस वक्त वह बुरी तरह घबराई हुई थी, अपनी निगाहों में तभी वह पति का कत्ल कर के हटी थी, ऐसे में इधर-उधर की बातें दिमाग से निकल जाना क्या बड़ी बात है।”
“तुमने बतौर सस्पेक्ट वकील का नाम नहीं लिया?”
“तीसरे नंबर पर मैं उसी की बात करने वाला था, क्योंकि मकतूल की मां के साथ संबधों की वजह से वह शक से परे नहीं कहा जा सकता।”
“भई ऐसे में उसे मारना होता तो कोमल को मारता, प्रियम को क्यों मारा? उसने तो रंगे हाथों पकड़ नहीं लिया था दोनों को।”
“इस बात का जवाब अभी मुश्किल है, हो सकता है उसने कुछ भी ना किया हो, मगर इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियम शर्मा का कोल्ड ब्लडिड मर्डर किया गया है। कैसे हुआ, किसने किया? ये मैं जानकर रहूंगा, क्योंकि कोमल से मेरा वादा है कि अगली पेशी पर - जो कि पांच दिनों बाद है - उसे हर हाल में जमानत मिल कर रहेगी।”
“बड़ा बोल नहीं बोल आये तुम?”
“नहीं, समझ लो मैंने तुम्हारा लिहाज किया, वरना मैं तो उससे ये कहने वाला था कि अगली पेशी पर वह कोर्ट से बाईज्जत बरी कर दी जायेगी।”
“क्या कहने तुम्हारे।”
“अब बोलो आगे इस केस में पुलिस का रवैया क्या होगा?”
“पुलिस का या मेरा?”
“पुलिस का, क्योंकि तुम अपने डिपार्टमेंट से अलग नहीं हो।”
“मुझे वीर साहब से बात करनी होगी इस बारे में।”
“जिससे चाहे बात करो, मगर जवाब मुझे जल्दी देना।”
“कैसा जवाब?”
“यही कि पुलिस इस केस को री-इन्वेस्टिगेट करने को तैयार है या नहीं?”
“अगर साहब ने मना कर दिया तो?”
“तो फिर मैं डीसीपी साहब के दरबार में हाजिरी लगाऊंगा, उन्होंने भी मेरी नहीं सुनी तो कमिश्नर ऑफिस कोई बहुत दूर नहीं है। वहां से भी निराशा हाथ लगी तो अदालत का दरवाजा खटखटाऊंगा, क्योंकि किसी निर्दोष को कत्ल के इल्जाम में सजा होते मैं नहीं देख सकता। मगर उन हालात में क्या तुम और क्या तुम्हारे साहबान, सब पर इस बात की जवाबदेही होगी कि क्योंकर एक बेकसूर को पुलिस डिपार्टमेंट की लापरवाही की वजह से जेल जाना पड़ा।”
“जैसे तुम्हारे कहने भर से सबको फांसी लग जायेगी?”
“तुमने बाइबल पढ़ा है?”
“नहीं क्यों पूछ रहे हो?”उसमें एक चौपाई है..।”
“बाइबल में” - सतपाल हंसा – “चौपाई?”
“हां तुलसी दास जी ने लिखा है, ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा’ यानि अपने कर्मों का फल तो इंसान तो भुगतना ही पड़ता है सतपाल साहब, फिर चाहे वह कोई आम आदमी हो या चीफ ऑफ हरियाणा पुलिस, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“और इतनी पते की बात तुलसी दास जी ने बाइबल में लिखी है?” सतपाल फिर से हंसा।
“जब तुमने पढ़ा ही नहीं है तो बहस क्यों कर रहे हो?”
“डॉली को घर पहुंचा कर आओ शर्मा साहब” - सतपाल बदले हुए लहजे में बोला – “तब तक मैं वीर साहब से केस डिस्कस कर लेता हूं।”
“ये खुद चली जायेगी” - कहकर उसने डॉली की तरफ देखा – “सुना सतपाल साहब ने क्या कहा?”
“सुना” - वह उठती हुई बोली – “मैं जा रही हूं, इस उम्मीद के साथ कि मेरे पीठ फेरते ही तुम दोनों कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ना नहीं शुरू कर दोगे, बल्कि उस काम पर ध्यान देंगे, जिसको वक्त रहते अंजाम देना जरूरी है।”
“मुझे बिल्ली कहा कोई बात नहीं” - पनौती बोला – “कम से कम सतपाल साहब का लिहाज तो कर लिया होता।”
“शटअप।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई।
“चलो।” सतपाल अपनी कुर्सी से उठता हुआ बोला।
“कहां?”
“वीर साहब के पास और कहां, देखते हैं तुम्हारी दलीलों का उनपर कितना असर होता है।”
“जैसे नहीं होगा तो वह मेरा कुछ बिगाड़ ही लेंगे।”
“शर्मा साहब!” सतपाल ने आंखें तरेरीं।
“चल रहा हूं भाई, यूं बात बात पर मुझे घूरकर मत देखा करो।”
“डर लगता है?”
“हां इस बात का कि कहीं किसी रोज मैं तुम्हारी आंखें ना नोंच लूं।”
तिलमिला कर सतपाल कमरे से बाहर निकल गया।
दोनों आगे पीछे चलते हुए इजाजत लेकर थाने के एसओ वीर सिंह के कमरे में दाखिल हुए।
“मुझे फिर से तुम्हें यहां देखकर बेहद खुशी हो रही है।”
“जबकि मुझे अफसोस हो रहा है।” पनौती सपाट लहजे में बोला।
“किस बात का?” वीर सिंह हड़बड़ा सा गया।
“आपके गैर जिम्मेदाराना रवैये का।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“यह कहता है कि कोमल शर्मा कातिल नहीं है” - जवाब सतपाल ने दिया – “हमारी इन्वेस्टिगेशन पर उंगली उठा रहा है, इसकी मानें तो हमने प्रियम के कत्ल के मामले में घोर लापरवाही ही बरती है।”
“ऐसा सोचने की कोई खास वजह?” वीर सिंह ने पनौती की तरफ देखा।
“सबकुछ खास ही खास है, जरा सी जांच पड़ताल से, बल्कि कोमल के बयान से ही ये साबित हो जाता है कि अपने पति पर गोली उसने नहीं चलाई हो सकती, हैरानी की बात है कि आप लोगों ने उससे बातरतीब पूछताछ करने की भी कोशिश नहीं की।”
“ऐसा तो खैर नहीं था राज साहब, हमारी उससे कोई अदावत तो थी नहीं जो जानबूझकर उसे पति की हत्या के जुर्म में फंसाने की कोशिश करते।”
यानि अदावत होती, तो ऐसी गैरकानूनी हरकत करने से आपको परहेज नहीं होता?”
“कहां की बात कहां ले जाते हो यार! खैर तुम अपनी कहो, क्योंकर तुम्हें वह लड़की बेकसूर दिखाई देती है?”
जवाब में पनौती ने पहले ही सतपाल के साथ डिस्कस हो चुकी तमाम बातें उसके सामने दोहरा दीं। उसने पूरी तवज्जो के साथ उसकी बात सुनी फिर बोला, “अपनी बात को साबित करने का कोई जरिया है तुम्हारे पास?”
“यानि आपका काम भी मैं ही करूं?”
“नहीं हमारा काम हम खुद कर लेंगे, मगर पुलिस इन्वेस्टिगेशन पर सवाल तुम उठा रहे हो मैं नहीं, इसलिए जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा।”
“नहीं दूंगा तो क्या करेंगे, हवालात में डाल देंगे मुझे?”
“तुम सीधे मुंह बात नहीं कर सकते?”
“सीधे मुंह ही कर रहा हूं, क्योंकि टेढ़ा करने की नौबत अभी तक नहीं आई है। अब आप दो टूक मुझे बताइये कि आप प्रियम शर्मा की हत्या के मामले में री-इन्वेस्टीगेशन करने को तैयार हैं या नहीं?”
“यूं धमकी भरी जुबान में पूछोगे तो मेरा जवाब ना में ही होगा।”
“यही उम्मीद थी मुझे आप लोगों से” - पनौती तुनक कर उठ खड़ा हुआ – “कोमल की बेगुनाही मैं साबित कर के रहूंगा, विद ऑर विदाउट हैल्प ऑफ हरियाणा पुलिस, चलता हूं, अपनी कोताही की जवाबदेही के लिये तैयार रहियेगा।”
“बैठ जाओ।”
“क्या फायदा?”
“मैंने कहा बैठ जाओ।” इस बार वीर सिंह कड़े लहजे में बोला।
उसकी बात को पनौती ने कान पर बैठी मक्खी की तरह उड़ाया।
“अरे बैठ जा भाई क्यों मेरा बीपी बढ़ा रहा है।”
“आपको हाई ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम है तो किसी दिमाग के डॉक्टर की शरण में जाइए, मेरे बैठने या ना बैठने से आपकी अलामत दूर नहीं हो जायेगी।”
“बीपी का दिमाग के डॉक्टर से क्या संबंध है?”
“आपके मामले में है, क्योंकि आप का बीपी ऐसी बात सुनकर बढ़ रहा है जो बतौर थाना इंचार्ज आपकी ड्युटी है, इसलिए मुझे लगता है अलामत कहीं और ही है।”
सुनकर गुस्सा होने की बजाये वीर सिंह की हंसी छूट गई।
“कहना मानो यार! बैठ जाओ।”
पनौती वापिस कुर्सी पर बैठ गया।
“गुड” - वीर सिंह बोला – “समझ लो तुम्हारे कहने पर मैं...।”
“मेरे कहने पर नहीं, जो कहना या करना चाहते हैं अपनी जिम्मेदारी समझ कर कीजिये, मेरे पर एहसान करने की कोई जरूरत नहीं है।”
“ठीक है भाई वही सही” - वीर सिंह ने नर्वस भाव से एक बार सतपाल की तरफ देखा फिर बोला – “तुम्हारे तर्कों से कोमल शर्मा बेगुनाह तो साबित नहीं हो जाती, मगर संदेह की गुंजायश बराबर दिखाई देने लगी है। इसलिये पुलिस प्रियम शर्मा के केस को री-इन्वेस्टिगेट करेगी, देखें क्या नतीजा हासिल होता है।”
“बढ़िया” - पनौती संतुष्टि भरे लहजे में बोला – “आपने एकदम दुरूस्त फैसला लिया है। मुझे आप से ऐसी ही उम्मीद थी।”
“समझ लो तुम्हारी उम्मीद पूरी हुई, अब बोलो कोई ठंडा गरम मंगवाऊं तुम्हारे लिये” - कहकर उसने जल्दी से जोड़ा – “हम तीनों के लिये?”
“अपनी तन्ख्वाह से मंगायेंगे?”
“और क्या तुम्हें एक कप चाय के लिये उगाही करने निकल पड़ूंगा?” वह हंसता हुआ बोला।
“फिर तो जरूर मंगवा लीजिये, शुक्रिया।”
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चार बजे के करीब सतपाल और पनौती एक साथ थाने से निकले और पुलिस जीप में सवार हो कर प्रियम शर्मा के लंगोटिया यार, संजीव चौहान के बंगले पर पहुंचे, जो कि मकतूल के बंगले से ऐन पहले बना हुआ था।
वॉचमैन ने पुलिस के वहां पहुंचे होने की खबर भीतर पहुंचाई तो थोड़ी देर बाद कान में इयर फोन ठूंसे संजीव चौहान बंगले के गेट पर पहुंच गया।
कल रात सतपाल से उसका वास्ता पड़ चुका था, इसलिए उसे देखते ही वह पहचान गया, “कहिये इंस्पेक्टर साहब, कैसे आना हुआ?”
“प्रियम शर्मा के कत्ल के संदर्भ में आप से कुछ पूछताछ करनी है।”
“कमाल है” - वह हैरान होता हुआ बोला – “उस केस में अब दरयाफ्त करने को क्या रखा है? जबकि उस बाबत पहले ही आप मेरा बयान ले चुके हैं।”
“आप बहुत ज्यादा व्यस्त हैं इस वक्त?”
“नहीं तो” - वह हड़बड़ाया फिर संभलता हुआ बोला – “आईए भीतर चलकर बात करते हैं।”
तीनों ड्राईंगरूम में पहुंचे जो कि हॉल जैसा खूब बड़ा कमरा था। कमरे की सजावट ऐसी की देखते बनती थी। हॉल के बीच रखा सोफा सेट इम्पोर्टेड जान पड़ता था। फर्श पर मोटा कालीन बिछा हुआ था, जिसमें जूते धंसते से जान पड़ते थे।आप यहां अकेले रहते हैं?” सतपाल एक सोफा चेयर पर बैठता हुआ बोला।
“बस आजकल अकेला हूं” - वह बोला – “वरना मम्मी डैडी और छोटा भाई साथ होते हैं, अभी सब गांव गये हुए हैं।”
“आपके फॉदर क्या करते हैं?”
“इंकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट कमिश्नर हैं।”
“और भाई?”
“बीएससी कर रहा है।”
“आपने बताया था कि मरने वाला आपका लंगोटिया यार था?”
“बेशक था, हम दोनों बचपन से ही एक दूसरे को जानते थे।”
“और कोमल को?”
“उससे भी मैं पहले से ही वाकिफ था, हम तीनों ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी।”
“आजकल आप क्या कर रहे हैं?”
“सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगा हूं।”
“मकतूल के बारे में कुछ बताइए, नेचर कैसा था उसका?”
“बहुत अच्छा खुशमिजाज लड़का था, लेकिन शादी के बाद कुछ उखड़ा-उखड़ा रहने लगा था, पूछने पर कुछ बताता नहीं था, जिससे शुरू शुरू में तो मैंने यही अंदाजा लगाया था कि बीवी के साथ उसकी ठीक ढंग से निभ नहीं रही है, लेकिन बाद में कोमल से टुकड़ों में हुई बातचीत मुझे यकीन आ गया कि वैसा कुछ नहीं था, कम से कम दोनों की मैरिड लाइफ में कोई प्रॉब्लम नहीं थी।”
“और कोमल के बारे में क्या कहते हैं?”
“मिजाज तो उसने भी प्रियम जैसा ही पाया था, हैरानी है कि गुस्से में आकर वह उसपर गोली चला बैठी, आज भी उस बात पर यकीन करने को मन नहीं करता।”
“सुना है मकतूल की शादी के बाद आपका उसके घर आना-जाना बढ़ गया था, आप उसकी गैरमौजूदगी में भी वहां पहुंच जाते थे और कोमल के साथ घंटों वहां वक्त गुजारा करते थे?”
“एकदम ठीक सुना है आपने। लेकिन शादी के बाद आना-जाना बढ़ जाने वाली बात गलत है। मैं उससे पहले भी यूं ही वहां जाया करता था। मेरे बचपन का एक बहुत बड़ा हिस्सा वहां खेलते-कूदते गुजरा है। ऊपर से वह मेरी क्लोज फ्रेंड है, मैं वहां पहुंचकर अगर उससे बातचीत कर भी लेता था तो क्या आफत आ गयी? जब उसके पति या पति के घरवालों को उस बात पर ऐतराज नहीं था तो आपको क्यों परेशानी हो रही है?”मैंने कहा कि मुझे परेशानी है?” सतपाल ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा।
“सवाल तो आपने ऐसे ही पूछा था, जैसे कोमल के साथ मेरी लंबी बातचीत से कानून की कोई धारा भंग हो गई हो। बल्कि साफ जाहिर हो रहा था कि उस बात का आप कोई खास मतलब निकालने की फिराक में लगे हुए थे।”
“आपकी समझदानी में नुक्स है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं।”
“बराबर कर सकते हैं, कुछ और नहीं तो यहां से तशरीफ ले जा सकते हैं।”
“उसके लिए हमें आपकी इजाजत की जरूरत नहीं पड़ेगी, इसलिए मेरे सवालों पर तवज्जो दीजिए ताकि आपका और हमारा दोनों का वक्त जाया होने से बच सके।”
“अरे कोई वजह भी तो हो यूं सवाल जवाब करने का। प्रियम अपनी जान से गया, कातिल को आप लोग पहले ही गिरफ्तार कर के जेल भेज चुके हैं, ऐसे में मुझे परेशान करने क्यों चले आये यहां?”
“प्रियम को रात नौ बजे गोली मारी गई थी” - सतपाल उसकी बात को नजरअंदाज करता हुआ बोला – “इतनी रात गये आप उस बंगले में क्या करने गये थे?”
“पहले भी बताया था, फिर से सुन लीजिये, मैं प्रियम से मिलने गया था।”
“वजह?”
“कुछ नहीं थी, बस यूं ही चला गया था, अक्सर जाता रहता हूं, आपको पता है।”
“कितने बजे पहुंचे थे?”
“वक्त नहीं देखा था मैंने, मगर गोली चलने की आवाज मुझे तब सुनाई दी थी जब मैं वाचमैन से दरवाजा खुलवाकर बंगले के अहाते में दाखिल हो चुका था।”
“लेकिन मकतूल के कमरे में तो आप काफी देर बाद पहुंचे थे?”
“काफी देर का मतलब आपकी निगाहों में कितना होता है मैं नहीं जानता, मगर इतना जरूर याद है कि गोली की आवाज सुनकर मैंने दौड़ नहीं लगा दी थी, क्योंकि मुझे एहसास तक नहीं हुआ था कि वह आवाज गोली चलने की थी। ऊपर से भीतर घुसते ही मुझे सिगरेट की तलब हो आई थी। मैंने ड्राइव-वे पर खड़े होकर एक सिगरेट सुलगाया और उसे खत्म करने के बाद आराम से चलता हुआ भीतर पहुंचा तो घर के लोगों को प्रियम के कमरे में घुसा पाया था। इस लिहाजा से मैं नौ बजकर तीन या चार मिनट पर वहां पहुंच गया था।”
“कमरे में पहुंचकर आपने खिड़की के पास खड़ी कोमल से ये कहा था कि आप उसके बहुत काम आ सकते हैं, बशर्ते कि वह आप का ख्याल रखती। क्या मतलब था आपकी बात का?”
सुनकर संजीव एक पल को एकदम से हड़बड़ा सा गया फिर तुरंत संभलता हुआ बोला, “उससे सुनने में भूल हुई होगी, मैंने ये कहा था कि उसे घबराना नहीं चाहिये, एक दोस्त के तौर पर मैं उसे बचाने की हर मुमकिन कोशिश करूंगा, बस वह अपना ख्याल रखे।”
“ऐसा तो खैर आपने नहीं कहा होगा, क्योंकि सुनने में इतना बड़ा अंतर नहीं आ जाता कि जमीन की बजाये आसमान सुनाई दे जाये, मगर उस बात पर मैं आप से बहस नहीं करूंगा। आप क्या कहना चाहते थे, उसके पीछे आपकी मंशा क्या थी? मुझे इस बात से कोई लेना देना नहीं है। मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि क्या प्रियम के कत्ल के बारे में आपको कुछ ऐसा पता है, जो कोमल को बेगुनाह साबित करता हो या यही साबित हो जाये कि उसने जानबूझ कर अपने पति पर गोली नहीं चलाई थी?”
“नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं जानता, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे यकीन है कि उसने जानबूझकर गोली नहीं चलाई होगी, दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते थे, इसलिए कोमल ने प्रियम का जान बूझकर कत्ल कर दिया हो, इस बात पर कम से कम मैं तो यकीन नहीं कर सकता।”
“कोर्ट में खड़े होकर अपनी बात पर कायम रह पायेंगे आप?”
“बेशक रहूंगा, जो सच है उसे कहीं भी दोहराने से मुझे गुरेज नहीं है।”
“वैरी नोबल ऑफ यू! अब एक पल को मान लीजिये कि कोमल ने गोली चलाई ही नहीं थी, बंगले के पिछले हिस्से में खुलने वाली कमरे की खिड़की के बाहर उस वक्त कोई तीसरा शख्स मौजूद था, जिसने प्रियम को गोली मार दी थी, ऐसे में उसके कत्ल की कोई वजह सुझा सकते हैं आप?”
“इंस्पेक्टर साहब रेत में मछलियां पकड़ने की कोशिश मत कीजिये। या फिर कबूल कीजिये कि प्रियम के केस में आप लोग कोई ऐसी बात जान गये हैं जो किसी तीसरे शख्स के कातिल होने की तरफ इशारा करती है। वरना आपकी बात का कोई मतलब नहीं बनता।”
“समझ लो कबूल कर लिया” - पनौती ने पहली बार अपनी जुबान खोली – “अब बताओ है कोई ऐसा शख्स है तुम्हारी निगाहों में, जिसकी प्रियम से रंजिश रही हो, जो उसका कत्ल कर सकता हो?”
“नहीं मैं ऐसे किसी आदमी का नाम नहीं सुझा सकता, मगर इतना जरूर कहूंगा कि अगर आप को किसी भी वजह से कोमल बेकसूर लगने लगी है तो आप को प्रियम के बड़े भाई अनुराग पर फोकस करना चाहिये।”
“वजह?”
“सिर्फ इतनी है कि वह प्रियम को सख्त नापसंद करता था, उसकी तरक्की से जलता था। क्योंकि मीनाक्षी आंटी अक्सर उसे इस बात के ताने देती रहती हैं कि छोटा भाई दिन भर खटता रहता है और बड़ा भाई उसकी कमाई पर ऐश करता है। और प्रियम ही क्या, खुद मीनाक्षी आंटी भी तो बेटे के कारोबार में पूरा पूरा हाथ बंटाती थीं।”
 
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लेकिन अनुराग शर्मा तो कहता है कि उनकी कंपनी में तीनों मां बेटे बराबर के पार्टनर थे।”
“बेशक थे, मगर वह कंपनी सिर्फ और सिर्फ प्रियम ने अपने बूते पर बड़ी हद मीनाक्षी आंटी की हैल्प से खड़ी की थी। अनुराग तो पार्टनर इसलिए बन गया क्योंकि कंपनी में इन्वेस्ट की गई दौलत दोनों की साझी दौलत थी। बल्कि उन दोनों से भी पहले उस संपत्ति पर मीनाक्षी आंटी का हक बनता था, जो कि प्रियम के पिता उनके लिये छोड़ गये थे। जिसपर दोनों भाईयों का बराबर का अधिकार माना जा सकता है।”
“ऐसे में तो अनुराग बिजनेस में शायद ही रूचि लेता होगा।”
“पूरा पूरा लेता था, सप्ताह में छह दिन बिना नागा वह ऑफिस में जाकर बैठता था। लेकिन उसके पीछे वजह ये नहीं थी कि वह बिजनेस में छोटे भाई का हाथ बंटाना चाहता था, बल्कि वह कंपनी से होने वाली कमाई पर निगाह रखता था ताकि छोटा भाई उसमें चाहकर भी कोई हेर फेर न कर दे। एक बार तो प्रियम ने साफ-साफ मुझे बताया था कि ‘भैया को ऑफिस में सिवाय बही खाते जांचते रहने के कोई काम नहीं था’ तब उसने ये भी कहा था कि एक रोज वह उनसे दो टूक बात करेगा कि या तो वह ऑफिस आना छोड़ दें या फिर वहां पहुंचकर हिसाब किताब के साथ-साथ बाकी बातों पर भी उतना ही ध्यान दें जितना कि वह खुद देता था।”
“फिर क्या हुआ, क्या उसने बड़े भाई से उस बाबत बात की थी?”
“मुझे नहीं मालूम क्योंकि दोबारा उस सब्जेक्ट पर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई।”
“अनुराग शर्मा के अलावा कोई और जिसपर उसके कत्ल का शक जाता हो, या जिसे उसकी मौत से कोई फायदा पहुंचता हो?”
संजीव हिचकिचाया।
“यानि है कोई नाम आपके जहन में?”
“है तो सही मगर प्रियम के कत्ल से उसे कोई फायदा पहुंचता दिखाई नहीं देता।”
“आप नाम तो लीजिये।”
“एडवोकेट ब्रजेश यादव, फेमिली फ्रेंड है और उनका वकील भी है, मीनाक्षी आंटी की उससे कुछ ज्यादा ही अच्छी बनती है। जब देखो उनके घर में ही पड़ा रहता है।”
“अच्छी बनने से आपका इशारा उस खास तरह के संबंध की तरफ तो नहीं है, जो कि वकील और घर की मालकिन के बीच में सालों से चला आ रहा है?”
“आपको उस बात की खबर है?”
“बिल्कुल है भाई, कत्ल के केस में हर किसी पर फोकस करना पड़ता है, उनकी जन्मकुंडली बांचनी पड़ती है, तब कहीं जाकर कोई केस सॉल्व हो पाता है।”
“मेरा इशारा उसी तरफ था।”
“ऐसे में सवाल ये है कि वकील को प्रियम की हत्या करने की जरूरत क्यों पड़ी? या क्यों पड़ी हो सकती थी?”
“इस बात का जवाब आसान नहीं है, हो सकता है प्रियम को उन दोनों के संबंधों की खबर लग गई हो और उसने यादव से साफ कह दिया हो कि वह उसके घर न आया करे। ऐसे में बेटे को अपनी राह का रोड़ा बनता देखकर उसने रास्ते से हटा दिया तो क्या बड़ी है? होने को ये भी हो सकता है उसकी निगाह प्रियम की दौलत पर भी टिकी रही हो, जिसे मीनाक्षी के जरिये हासिल करने के सपने देख रहा हो।”
“तुम भूल रहे हो कि घर में उसका एक बड़ा भाई भी है” - सतपाल बोला – “उसके रहते उनकी दौलत पर यादव अपना अधिकार कैसे जमा सकता है?”तो फिर समझ लीजिये कि उसकी जान को भी बराबर का खतरा है, छोटे भाई के कत्ल के बाद यादव की राह का इकलौता रोड़ा अनुराग ही तो बचता है। कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर प्रियम की तरह अनुराग को भी अपने रास्ते से हटा चुकने के बाद वह मीनाक्षी आंटी से ब्याह रचा बैठे, जो कि पहले से ही उसके फुल काबू में दिखाई देती हैं।”
वह एक नई संभावना थी, जिसे नकारा नहीं जा सकता था।
“प्रियम की बीवी तो खैर जेल में है, आगे चलकर अगर वह बेगुनाह साबित हो जाती है तो अलग बात है वरना प्रियम की संपत्ति से उसका दावा खुद बा खुद खारिज हो जायेगा, मगर अनुराग की बीवी कल्पना को पति के बिरसे से अलग कैसे कर सकता है वह?”
“वकील है दिमाग लगायेगा तो कुछ ना कुछ सूझ ही जायेगा। अगर उसने सचमुच प्रियम का कत्ल किया है, तो उसी तरह एक तीर से दो निशाने आगे भी लगा सकता है।”
“वकील है इसलिए ये भी तो जानता होगा, कि दो बार एक ही पैटर्न पर हुई हत्या को इत्तेफाक नहीं माना जा सकता।”
“तो फिर कोई दूसरी या तीसरी योजना होगी उसकी दिमाग में, मगर उस बारे में तब तक आप लोग कुछ नहीं कर सकते, जब तक कि निर्विवाद रूप से कोमल की बेगुनाही साबित नहीं हो जाती।”
“वह काम भी तो असल कातिल की गिरफ्तारी के बाद ही होगा भाई” - पनौती बोला – “खुद के बारे में क्या कहते हो?”
“क्या कहना चाहिये मुझे?” संजीव चौंक कर बोला।
“कहीं प्रियम को तुमने ही तो ठिकाने नहीं लगा दिया?”
“किस हासिल की खातिर?”
“कोमल की खातिर।”
“मैं नतमस्तक हूं भाई तुम्हारे आगे” - संजीव बाकायदा सिर नवाकर बोला – “जिसे पाने की खातिर यार का कत्ल किया, उसको जेल भिजवा दिया, कमाल की डिटेक्टिव रीजनिंग है तुम्हारी।”
“बेशक भिजवा दिया मगर साथ में ये भी कहा कि तुम उसके बहुत काम आ सकते थे, बशर्ते कि वह तुम्हारी तरफ ध्यान देती।”
“पहली बात तो ये कि मैंने कोमल से ऐसा कुछ नहीं कहा था, फिर भी बहस के लिये मैं माने लेता हूं कि कहा था, अब आप लोग अब मुझे ये बताइये कि मैं अपने कहे को अमली जामा कैसे पहना सकता हूं। अगर वह कातिल है तो मेरे कहने भर से कोई उसे बेगुनाह तो मान नहीं लेगा, ऐसे में मैं अपने दावे पर खरा उतर कर कैसे दिखा पाऊंगा?”
“बेगुनाह ना सही मगर उसके हक में गवाही देकर, गवाही में उन दोनों के रिश्तों को लैला-मजनू जैसा बताकर इतनी कोशिश तो कर ही सकते हो कि उसे हत्या की बजाये गैरइरातन हत्या का दोषी मान लिया जाये। तुम्हारा काम तो उतने से भी चल सकता है” - कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “वैसे भी जब से हम लोग यहां आये हैं, तुम यही तो करने की कोशिश में लगे हुए हो।”
“तुम चाहते हो कि मैं तुम दोनों को यहां से बाहर जाने के लिये कह दूं?”
“तकलीफ मत करो” - पनौती बोला – “हम लोग वैसे ही यहां से जा रहे हैं।”
वह उठ कर खड़ा हो गया।
“जाते-जाते मेरी एक बात सुनकर जाओ।”
“बोलो।”
“मुझे शादीशुदा लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है, ना तो वह कोई हूर की परी है ना मेरे लिये लड़कियों का कोई तोड़ा है। अभी अपनी गर्ल फ्रेंड्स के नाम गिनाने बैठूं तो गिनते गिनते थक जाओगे, क्या समझे?”
“यही कि आप का चरित्र बेहद गिरा हुआ है।”
संजीव हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगा।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐सायं छह बजे के करीब दोनों सेक्टर 16 पहुंचे। एडवोकेट ब्रजेश यादव का पता एक तीन मंजिला मकान का निकला, जिसके ग्राउंड फ्लोर पर उसने अपना ऑफिस बना रखा था।
चालीस के पेटे में पहुंचता वह लंबे कद का गठे हुए शरीर वाला खूबसूरत युवक था। जो सूरत से ही बेहद तेज-तर्रार जान पड़ता था। माथे पर स्थाई सिलवटें साफ नजर आती थीं जिन्हें देखकर लगता था कि उसकी त्यौरियां हमेशा चढ़ी ही रहती होंगी। आंखें उसकी छोटी छोटी किंतु चमकदार थीं। बाल औसत से तनिक लंबे रखे हुए था और खासा फैशनेबल जान पड़ता था।
सतपाल को वहां आया देखकर उसने अपनी हैरानी छिपाने तक की कोशिश नहीं की।
“क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, सब खैरियत तो है?”
“जी बेशक है, इधर से गुजर रहा था तो सोचा आपसे मिलता चलूं।”
“बहुत अच्छा किया, आइए बैठिये।”
दोनों उसकी कुर्सी के सामने रखी मेज के इस तरफ बैठ गये।
“कुछ पूछना चाहते हैं?”
“जी हां, उम्मीद है आपको ऐतराज नहीं होगा?”
“ऐतराज कैसा जनाब, फिर हमारा और आपका आमना-सामना तो सदियों से चला आ रहा है” - कहकर उसने हंसने की कोशिश की मगर हंस नहीं पाया – “कहिये क्या जानना चाहते हैं?”
“सुना है मकतूल प्रियम शर्मा के साथ आपका रिश्ता महज उसके कारोबार तक सीमित नहीं था, बल्कि उस परिवार में आपका दर्जा फेमिली फ्रेंड का था, जिसे खास मान-आदर हासिल है वहां।”
“ठीक सुना है आपने, दरअसल प्रियम के फॉदर मेरे अजीज मित्र हुआ करते थे, तभी से मेरा उन लोगों के घर में आना-जाना है, अब तो वहां पहुंचकर लगता ही नहीं है कि मैं अपने घर में नहीं बल्कि अपने मरहूम दोस्त के घर में बैठा हूं।”
“इंतकाल कैसे हुआ था उनका?”
“सड़क एक्सीडेंट में मारे गये थे, खुदा की मर्जी देखिये, उस वक्त कार में मीनाक्षी भी उनके साथ सवार थी। उसे खरोंच तक नहीं आई जबकि विवेक का कुछ भी सलामत नहीं बचा।”
“विवेक!”
“प्रियम के पिता, विवेक शर्मा।”
“कब की बात है ये?”
“चार-पांच साल तो हो ही गये होंगे।”
“उनकी तमाम कानूनी दुश्वारियां आप हैंडल करते थे?”
“उनकी भी और उनके बाद उनके बेटों की भी, बल्कि बेटों की ज्यादा क्योंकि विवेक का बिजनेस बहुत छोटा था, बतौर वकील साल में एक बार भी मेरी जरूरत निकल आती थी तो बहुत होता था।”
“क्या करते थे वह?”
“दिल्ली के नेहरू प्लेस में उनकी कंप्यूटर पार्ट्स की दुकान थी।”
“सुना है प्रियम की कंपनी ‘फास्ट ट्रैक सिक्योरिटी’ में दोनों भाई और उनकी मां मीनाक्षी देवी बराबर के पार्टनर थे?”
“ठीक सुना है।”
“ऐसे में मान लीजिये कल को भगवान न करें बड़े भाई के साथ भी कोई हादसा गुजर जाता है तो ऐसे में अनुराग के पार्टनरशिप वाले हिस्से पर किसका हक होगा, मेरा मतलब है पति की मौत के बाद क्या वह हिस्सा उसकी बीवी कल्पना को मिलेगा?”
“नहीं” - यादव बोला – “उन हालात में कंपनी पर कल्पना का कोई दावा नहीं होगा। यही नहीं, प्रियम की मौत के बाद अनुराग को भी छोटे भाई के हिस्से से कोई लाभ नहीं पहुंचने वाला। पता नहीं क्या सोचकर मीनाक्षी ने वह डील तैयार करवाई थी, मगर हकीकत यही है कि प्रियम की मौत की सूरत में उसके हिस्से पर अब पूरा पूरा हक मीनाक्षी का है। ऐसे में कल को अगर अनुराग को कुछ हो जाता है तो समझ लो मीनाक्षी उस कंपनी की सौ फीसदी की मालिक होगी। मगर ऐसा सिर्फ कंपनी के मामले में है, पति की दूसरी प्रापर्टी या बैंक बैलेंस पर कल्पना का पूरा पूरा हक होगा।”
“कमाल की डील है, आपको कुछ अजीब नहीं लगता?”
“लगता है, उस वक्त भी लगा था जब मेरे जरिये पेपर वर्क पूरा कराया गया था। मगर संपत्ती उन लोगों की है, मैं भला कौन होता हूं उसमें मीन मेख निकालने वाला। ऊपर से मुझे लगता है कि मीनाक्षी ने वैसा इसलिए किया था क्योंकि असल में तो सारा पैसा उसी का लग रहा था, जो कि उसके पति के बिरसे की सूरत में उसे हासिल था। बात चाहे जो भी रही हो मगर मीनाक्षी के बाद तो आखिरकार उसकी संपत्ति दोनों बेटों को ही मिलनी थी। इसलिये उस डील को पूरी तरह गलत भी नहीं करार दिया जा सकता।”
“प्रियम के कत्ल के बारे में क्या कहते हैं” - सतपाल उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला – “क्यों किसी ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी?”
“आप मजाक कर रहे हैं?” - यादव बुरी तरह हैरान होता हुआ बोला – “बल्कि मजाक ही कर रहे हैं, क्योंकि आपसे बेहतर इस बात का जवाब भला किसे पता हो सकता है?”
“बीती बातों को भूल जाइये वकील साहब, हाल ही में कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जो हमें ये सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि कहीं कोमल शर्मा बेगुनाह तो नहीं है।”
यादव हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगा।
“फिर उसे जेल क्यों भेजा हुआ है आप लोगों ने?”
“क्योंकि उस वक्त उसकी बेगुनाही की तरफ इशारा करती कोई बात नहीं थी हमारे सामने, ऊपर से वह खुद कहती थी कि गोली उसके हाथों से ही चली थी।”
“और अब क्या हो गया, ऐसा क्या हो गया जो वह आपको बेगुनाह दिखाई देने लगी, फिर ऐसा सोचसोचते समय आप ये क्यों भूल जाते हैं कि उस वक्त कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था, इस बात का मैं जामिन हूं।”
 
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और इस बात का जामिन कौन बनेगा कि कत्ल के वक्त आप वाकई ड्राईंगरूम में बैठे हुए थे” - पनौती उसे घूरता हुआ बोला – “जैसा कि आपने अपने बयान में कहा था।”
“आप मुझपर कत्ल का इल्जाम लगा रहे हैं?”
“फिलहाल नहीं, लेकिन इस बात से आपको कोई तसल्ली नहीं मिलने वाली क्योंकि बतौर मर्डर सस्पेक्ट आप का नाम पुलिस की लिस्ट में सबसे ऊपर है।”
“हद है भाई, जबकि इकलौती मीनाक्षी की गवाही ही ये साबित करने के लिये पर्याप्त है कि कत्ल के वक्त मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा बातें कर रहा था, इसलिए मैं कातिल नहीं हो सकता।”
“जो कि खुद भी संदेह से परे नहीं हैं।”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? तुम एक मां पर इल्जाम लगा रहे हो कि उसने अपने बेटे का कत्ल कर दिया?”
“इल्जाम नहीं जनाब, क्योंकि इल्जाम आप दोनों पर तब लगाया जायेगा जब हम ये बात साबित कर देंगे कि प्रियम की हत्या आप दोनों की मिलीभगत का परिणाम थी।”
यादव ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया, पनौती की बात पर वह कुछ क्षण विचार करता रहा फिर बोला, “चलो मैं तो ठहरा बाहर का आदमी मगर मीनाक्षी के पास उसके कत्ल की क्या वजह थी?”
“वजह साझा थी” - पनौती दृढ़ स्वर में बोला – “जिस वजह से आपने प्रियम का कत्ल किया हो सकता है, ऐन उसी वजह से मीनाक्षी भी कातिल हो सकती है। बल्कि कोई बड़ी बात नहीं है अगर आप दोनों ने मिलकर प्रियम के कत्ल का षड़यंत्र रचा हो। मीनाक्षी देवी के साथ आपका खास किस्म का रिश्ता अब कोई छिपी हुई बात नहीं रह गया है। कोमल तो खामख्वाह गेहूं के साथ घुन की तरह पिस गई। उसकी गलती महज इतनी थी कि उसने आप दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था। ऐसे में उसकी जुबान बंद करने के लिये आप दोनों ने मिलकर उसके कत्ल की योजना तैयार की, क्योंकि सच्चाई यही है कि प्रियम आप लोगों का टारगेट कभी था ही नहीं। मगर इससे पहले कि आप कोमल को अपने रास्ते से हटा पाते उसने प्रियम को आप दोनों के संबंधों के बारे में सबकुछ बता दिया, कत्ल वाली रात दोनों के बीच तकरार का कारण भी वही बात बनी थी। दोनों के बीच का झगड़ा आपने दरवाजे के पास खड़े होकर सुना होगा, बल्कि ये भी हो सकता है कि दोनों इतनी ऊंची आवाज में लड़-झगड़ रहे हों कि उनकी बातें आपको ड्राईंगरूम में बैठे होने पर सुनाई दे गई हों। नतीजा ये हुआ कि आप दोनों के ही होश फना हो गये। आप आनन-फानन में प्रियम के कमरे के पीछे वाली खिड़की के पास पहुंच गये और उन दोनों की बातें सुनने लगें। बेशक तब तक आपका इरादा प्रियम की हत्या करने का नहीं था, मगर उन हालात में आपके सामने कोमल से भी बड़ा खतरा प्रियम का पैदा हो गया, लिहाजा जिस गोली पर आप कोमल का नाम लिख चुके थे उसे आपने प्रियम के दिल में उतार दिया।”
“मिस्टर होश में बात करो” - यादव गुस्से से बोला – “वरना मैं भूल जाऊंगा कि तुम पुलिस ऑफिसर हो।”
“फिर तो भूल ही जाइये जनाब, क्योंकि मैं पुलिसवाला नहीं हूं।”
यादव ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“फिर कौन हो तुम?”
“एक आम आदमी” - पनौती गर्व से बोला – “जो किसी भी हाल में कोमल शर्मा को बलि का बकरा नहीं बनने देगा।”
“बेशक मत बनने देना, मगर दोबारा अगर तुमने मेरे और मीनाक्षी के संबंधों के बारे में कोई उलटा-सीधा इशारा किया तो मानहानि का ऐसा मुकदमा ठोकूंगा कि झेलते नहीं बनेगा।”
“वह मुकदमा करते वक्त एक तलाक की अर्जी भी डाल दीजियेगा वकील साहब, क्योंकि आप दोनों के रिश्तों की पोल तो मैं खोल कर रहूंगा, लेकिन उस स्थिति में जो हो-हल्ला मचेगा उसके बाद मुझे नहीं लगता कि आप की धर्मपत्नी को आप के साथ रिश्ता बनाये रखना मंजूर होगा, साथ ही समाज में जो किरकिरी होगी सो अलग।”
“लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा?” यादव अचानक ही अपना आपा खो बैठा।
“मैं कैसे भी नहीं मानूंगा, चाहें तो कोशिश कर के देख लीजिये।”
“दफा हो जा यहां से” - वह फुंफकारता हुआ बोला – “और इंस्पेक्टर साहब आप भी सुन लीजिये, अगर ये शख्स अभी और इसी वक्त यहां से बाहर नहीं निकला तो समझ लीजिये कि इसके साथ-साथ आपकी भी खैर नहीं है।”
“खुद को काबू में रखना सीखिये वकील साहब” - सतपाल बड़े ही शांत लहजे में बोला – “क्योंकि आपके चिल्लाने से सच्चाई नहीं बदल जायेगी। इस बाबत अगर आपने कोहराम मचाने की कोशिश की तो आप दोनों की करतूत का गवाह कोई विदेश में नहीं रहता, जो उसे आपके सामने हाजिर ना किया जा सके।”
“तो ये जो कुछ बोल रहा है तुम्हारी शह पर बोल रहा है?”
“ऐसा है तो नहीं मगर आप को लगता है तो यही सही।”
वकील बुरी तरह कसमसाया। वस्तुतः उसे सतपाल से ऐसे किसी जवाब की आशा नहीं थी।
“अब बताइये आपने प्रियम का कत्ल क्यों किया?”
“इसलिए किया क्योंकि मुझे कत्ल करने का दौरा पड़ता है” - वह झल्लाकर बोला – “और कुछ पूछना है तुम्हें?”
“अकेले किया था या उस षड़यंत्र में मीनाक्षी ने आपका साथ दिया था, दिया ही होगा, क्योंकि मकतूल की अलमारी से रिवाल्वर की अदला-बदली के काम को आप खुद अंजाम नहीं दे सकते थे।”
“मुझे इस बारे में अब कोई बात नहीं करनी।”
“आप चाहते हैं कि मैं आपको उठाकर हवालात में डाल दूं?”
“बिना किसी सबूत के तुम्हारी ऐसा करने की मजाल नहीं हो सकती।”
“वकील हैं इसलिए मुझे नहीं लगता कि आपको मेरी मजाल का अंदाजा नहीं होगा, आप चाहते हैं कि मैं आपको अपनी मजाल का जलवा दिखाऊं?”
इस बार यादव से जवाब देते नहीं बन पड़ा।
“फिलहाल मुझे आपकी खामोशी कबूल है वकील साहब, इसलिए हम यहां से जा रहे हैं” - कहता हुआ सतपाल उठ खड़ा हुआ – “वक्त देने का बहुत-बहुत शुक्रिया।”
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐वकील के घर से निकल कर दोनों एक बार फिर से पुलिस जीप में सवार हो गये।
“क्या जरूरत थी?” सतपाल पनौती को घूरता हुआ बोला।
“किसी बात की?”
“उसके सामने ये जताने की कि हमें उसके और मीनाक्षी के संबंधों के बारे में पता था। और जताया क्या था, तूने तो पूरा खाका खींचकर उसमें रंग भर के दिखा दिया उसे।”
“जरूरत थी सतपाल साहब! क्योंकि कत्ल ऐसे माहौल में हुआ है जहां आसानी से कातिल तक नहीं पहुंचा जा सकता, ना ही उसे कातिल साबित करना आसान होगा। उसकी तिलमिलाहट देखी ही थी तुमने, ऐसे में अगर ये कातिल है तो अपने बचाव के लिये कोई ना कोई कदम जरूर उठायेगा, बल्कि सबसे पहले तो यह मीनाक्षी से ही मिलने की कोशिश करेगा।”
“फोन भी तो कर सकता है?”
“उसकी उम्मीद कम है, वकील है ऐसी बातें फोन पर डिस्कस करने के खतरे से बखूबी वाकिफ होगा।”
“चलो मान लिया कि हमारी बातचीत के बाद वह सीधा मीनाक्षी के घर पहुंचेगा, मगर उससे हमारा क्या अला-भला होगा? हम उन दोनों के सिर पर खड़े होकर उनकी बातें तो सुनने में कामयाब नहीं हो जायेंगे?”
“बेशक नहीं होंगे, मगर इस वक्त वह बौखलाया हुआ है, ऐसे में कोई ना कोई गलती जरूर करेगा, जिसका कुछ ना कुछ लाभ तो हमें मिलकर रहेगा, नहीं मिला तो ये सोचकर खुद को तसल्ली दे लेना कि तुक्का तीर न बन सका।”
“यानि हमें यहां रूककर वकील के बाहर निकलने का इंतजार करना चाहिये? ताकि ये मालूम पड़ सके कि वह मीनाक्षी से मिलने जाता है या नहीं?”
“नहीं ऐसा करने की फिलहाल कोई जरूरत दिखाई नहीं देती, इसलिए हम कुछ और करेंगे” - कहकर पनौती ने पूछा – “तुम्हारे पास उस गार्ड का नंबर होगा जो कत्ल वाली रात ड्युटी पर था?”
“हां है, क्यों?”
“उसे फोन कर के पता करो कि इस वक्त वह कहां है?”
सतपाल ने किया। फिर बात हो चुकने के बाद कॉल डिस्कनेक्ट करता हुआ बोला, “बंगले पर ड्युटी दे रहा है।”
“मैंने रात वाले गार्ड के बारे में पता करने को कहा था।”
“मैं भी उसी की बात कर रहा हूं, कहता है आज ही उसकी शिफ्ट चेंज हुई है, इसलिए दिन में उसी की ड्युटी है।”
“ठीक है, अब मकतूल के बंगले पर चलो।”
सतपाल ने तत्काल जीप आगे बढ़ा दी।
जीप अभी वकील के घर वाली गली से बाहर निकली ही थी कि एक स्कोडा गली में दाखिल हुई और सर्र से जीप की बगल से निकल गई।
“मीनाक्षी!” सतपाल बोला।
“कहां?”
“स्कोडा की ड्राइविंग सीट पर, मैंने उसे साफ पहचाना था।”यानि वकील उससे मिलने जाने की बजाये उसे ही यहां बुला बैठा?”
“लगता तो नहीं है, क्योंकि उसका बंगला यहां से कम से कम भी पांच किलोमीटर दूर होगा, इतनी जल्दी वकील की कॉल के जवाब में वह यहां नहीं पहुंच सकती।”
“मिलने तो वकील से ही आई होगी?”
“उम्मीद तो पूरी पूरी है।”
“जीप वापिस मोड़ो।”
“तू तो सच में मेरी नौकरी खाने पर लगा है क्या?”
“ठीक है जीप रोको मैं पैदल चला जाऊंगा।”
“जैसे मैं तुझे जाने दूंगा।” कहकर सतपाल ने जीप को यू टर्न दिया और दोबारा वकील के घर के सामने पहुंच गया। तभी वकील के ऑफिस में घुसती एक औरत पर एक साथ उन दोनों की निगाह पड़ी।
“वकील से ही मिलने आई है” - सतपाल बोला – “यहां जो स्कोडा खड़ी है वह मीनाक्षी शर्मा की ही है।”
“यहीं वेट करो, मैं अभी आया।” कहकर पनौती जीप से उतरा और जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वकील के ऑफिस की तरफ बढ़ गया।
सतपाल के मुंह से आह निकल गयी। उसने जीप को गेट से थोड़ा आगे कर के दीवार के साथ लगाकर खड़ा कर दिया और पनौती के वापिस लौटने का इंतजार करने लगा।
दरवाजे पर दस्तक दिये बिना उसे धकेल कर राज शर्मा वकील के ऑफिस में दाखिल हुआ।
यादव उसे देखकर एकदम से हड़बड़ा सा गया।
“तुम फिर आ गये यहां?” वह अप्रसन्न स्वर में बोला।
“जाहिर है, मगर आप इतने हैरान क्यों हो रहे हैं” - कहकर उसने चौंकने की लाजवाब एक्टिंग की – “अरे ये तो मीनाक्षी मैडम हैं।”
अपना नाम सुनकर मीनाक्षी एकदम से हड़बड़ा सी गई।
“बड़ी तेजी दिखाई वकील साहब आपने, जबकि हमें यहां से निकले मुश्किल से पांच मिनट ही गुजरे होंगे। इतनी जल्दी आपने मैडम को फोन भी कर दिया और ये यहां पहुंच भी गईं?”
“मतलब की बात करो।” यादव गुस्से से बोला।
“मतलब की बात ये है वकील साहब कि पिछले फेरे में मैं आपसे ये पूछना भूल गया था कि गोली चलने के बाद प्रियम के कमरे में पहुंचकर आप वहां पड़ी निर्दोष रिवाल्वर से अपने पास मौजूद प्रियम की रिवाल्वर - जो कि आला-ए-कत्ल थी - को बदलने में कैसे कामयाब हो गये, किसी की नजर क्यों नहीं पड़ी आप पर?”
“होश में आ जा छोकरे, मेरे सब्र का इम्तिहान लेने की कोशिश मत कर।”
“बिल्कुल नहीं करूंगा वकील साहब, क्योंकि मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि ऐसे किसी एग्जाम में आपका फेल हो जाना निश्चित है, अब बरायमेहरबानी मेरे सवाल का जवाब दे कर दिखाइये।”
यादव तिलमिलाकर अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और पनौती की तरफ झपटा, तभी उसके पीछे मौजूद फाइलिंग कैबिनेट के ऊपर रखा बड़ा सा ग्लोब जाने कैसे उसके सिर पर आ गिरा। ग्लोब ज्यादा भारी नहीं था इसलिए यादव को चोट तो नहीं आई मगर जाने क्या सोचकर उसने पनौती की तरफ बढ़ने का विचार जहन से निकाल दिया और पीछे देखे बिना अपनी रिवाल्विंग चेयर पर बैठने का उपक्रम किया, मगर कुर्सी अपनी जगह से थोड़ा पीछे खिसक गयी थी, नतीजा ये हुआ कि धम्म से उसपर बैठने की कोशिश में यादव बुरी तरह फर्श पर गिरा, गिरते वक्त उसकी पीठ कुर्सी के अगले हिस्से से टकराई तो कुर्सी थोड़ी और पीछे खिसक गयी, नतीजा ये हुआ कि यादव का सिर जोर से कुर्सी के पहिये वाले पाये से टकराया। उसके मुंह से चीख निकल गयी।मीनाक्षी ने वह नजारा देखा तो हड़बड़ाकर अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, मगर यादव को किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ी, कुछ क्षण बाद वह अपने सिर का पिछला हिस्सा सहलाता वापिस कुर्सी पर बैठ गया।
“क्या हुआ” - मीनाक्षी बड़े प्यार से बोली – “गिर कैसे गये?”
“पता नहीं क्या हुआ था” - वह भुनभुनाया – “सिर दर्द बन कर रह गया है ये आदमी।”
“आप मुझे कोस रहे हैं” - पनौती हैरानी से बोला – “जबकि मैं आप से इतनी दूर खड़ा हूं कि चाहकर भी आपकी कुर्सी को पीछे नहीं धकेल सकता। फुटबाल तो आप खुद अपनी कोताही के कारण बन गये।”
“शटअप” - वकील जोर से चीखा – “दफा हो जा यहां से।”
“वक्त की तो बेशक मेरे पास कमी है वकील साहब, मगर जब यहां खड़ा ही हूं तो आप मेरे सवाल का जवाब क्यों नहीं दे डालते, उसके बाद मैं एक सेकेंड भी यहां नहीं रूकूंगा।”
“सुनो” - मीनाक्षी ने कुर्सी घुमाकर अपना रूख राज की तरफ कर लिया – “क्या नाम है तुम्हारा?”
पनौती ने एक नजर में उसका नख-शिख मुआयना कर डाला। चालीस की तो वह कहीं से नहीं लगती थी। ऊपर से इस वक्त वह ब्लू कलर की जींस और उससे मैच करता स्लीवलेस टॉप पहने थी, जिसमें उसका भरा-भरा बदन एकदम कसा हुआ सा जान पड़ता था। चेहरा लंबा और नाक एकदम सुंतवा थी, होंठों पर वह चटक लाल लिपस्टिक लगाये हुए थी, आंखे बड़ी-बड़ी और चमकीली थीं, गर्दन लंबी थी जबकि बाल कंधे से बस जरा ही नीचे तक पहुंच रहे थे। उसे देखकर ये कह पाना मुहाल था कि वह दो शादीशुदा बेटों की मां थी।
“जी राज शर्मा।” प्रत्यक्षतः वह बोला।
“तुम आराम से बैठ क्यों नहीं जाते?”
“शुक्रिया।” पनौती उसके ऐन बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।
मीनाक्षी ने गहरी निगाहों से उसका जायजा लिया, कुछ देर तक मन ही मन उसे तौलती रही, फिर बोली, “करते क्या हो तुम?”
“जी आजकल तो बेरोजगार हूं।”
“पहले क्या करते थे?”
“पहले भी बेरोजगार था, लेकिन उससे पहले स्टूडेंट हुआ करता था।”
“शक्लो-सूरत से बहुत काबिल जान पड़ते हो कोई काम-धाम क्यों नहीं करते, बेरोजगारी की जिंदगी भी भला कोई जिंदगी है।”
“क्या करूं मैडम मेरी शक्ल ही बस ऐसी है, सामने वाला अक्सर धोखा खाकर मुझे काबिल समझ लेता है, वरना दिमाग नाम की कोई चीज मेरे भीतर नहीं है, ऐसा मेरी मां कहती है।”
मीनाक्षी ने पल भर को हैरानी से उसकी तरफ देखा फिर बोली, “नौकरी करना चाहते हो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं।”
“शुक्रिया, लेकिन मैं किसी का नौकर नहीं बनना चाहता” - कहते हुए पनौती ने सीधा उसकी आंखों में झांका – “बल्कि मालिक बनना चाहता हूं, किसी आप जैसी खूबसरत, दौलतमंद और रूतबे वाली लेडी का, मगर अफसोस की फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं दिखाई देती।”वैकेंसी का क्या है भई” - बुरा मानने की बजाये मीनाक्षी खिलखिलाती हुई बोली – “अक्सर लोग आते जाते रहते हैं, जिससे वैकेंसी निकल आना कोई बड़ी बात नहीं होती। तुम अप्लीकेशन लगाना चाहते हो, तो कल रात ठीक साढ़े आठ बजे बंगले पर पहुंच जाना।”
“जरूर पहुंचूंगा मैडम” - पनौती खुशी से उछलता हुआ बोला – “आपका बहुत बहुत शुक्रिया! अब बेशक आप वकील साहब के साथ अपनी गुफ्तगूं जारी रख सकती हैं, बंदा चला, कल ठीक साढ़े आठ बजे मैं आपके बंगले पर पहुंच जाऊंगा।”
कहकर वह फौरन वहां से बाहर निकल आया। उसके जीप में सवार होते ही सतपाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
“क्या हासिल हुआ?”
“बहुत कुछ, सबसे अहम बात तो ये है कि मैं मीनाक्षी के मर्दमार चेहरे का नजारा कर आया, जो कि बंगले में मुलाकात हुई होती तो शायद ही हो पाता क्योंकि तब वह इतनी सजी-धजी नहीं दिखाई दे रही होती, कि मैं उसपर लट्टू हो जाता।”
“अरे भाई वकील का तो कुछ लिहाज कर” - सतपाल हंसता हुआ बोला – “क्यों उसके सपनों की रानी को उससे छीनने पर तुला हुआ है?”
“मोहब्बत में कोई लिहाज नहीं चलता सतपाल साहब तुमने महाभारत के जमाने की वह कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘एवरी थिंग इज फेयर इन लव ऐंड वार’ फिर उसने क्या सोल ऑनरशिप का कोई एग्रीमेंट करवा रखा है, जो मीनाक्षी मैडम के दिल में किसी और के बस जाने की मनाही हो।”
सतपाल की फिर से हंसी छूट गई, “भाई वह चालीस साल की है, और कुछ नहीं तो अपनी उम्र का ही लिहाज कर।”
“ऐसे मौके बार-बार नहीं आते, कुंवारी कन्यायें भले ही मिल जायें, मगर मीनाक्षी जैसी धनाढय विधवा कहां से खोज पाऊंगा मैं, तुम देखना उसके पुराने बंगले को तुड़वाकर मैं कैसा आलिशान बंगला बनवाता हूं वहां।”
“क्या कहने तेरे, पहली मुलाकात में ही उसका बंगला तुड़वाने की बात करने लगा, मुझे डर है दूसरी तीसरी मुलाकात में कहीं तू उसी को दुनिया से विदा करने की बात न कहने लगे ताकि उसकी दौलत पर तेरा फुल कब्जा बन सके।”
“बकवास मत करो, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि गैरकानूनी काम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं।”
“अच्छा मेरा कहा बकवास हो गया और जो कुछ तू अभी अभी बक कर हटा है उसे क्या कहते हैं?”
“उसने मुझे कल रात साढे आठ बजे बंगले पर बुलाया है।” पनौती उसकी बात को अनसुना करता हुआ बोला।
“किसलिये?” सतपाल हैरान सा हो उठा।
“यही तो देखना है सतपाल साहब, प्रत्यक्षतः तो वह मुझे खुला ऑफर देती महसूस हुई थी, सुनकर वकील साहब तो कुढ़ कर ही रह गये थे, मगर मीनाक्षी के सामने यूं भीगी बिल्ली बने बैठे थे कि उनसे कुछ कहते नहीं बना।”
“किस बात का ऑफर भई, तुझे अपने दिल में बसा लेने का?”
“है तो कुछ ऐसा ही।”शर्मा साहब बचकर रहना उस औरत से” - सतपाल एकदम से संजीदा होता हुआ बोला – “पता नहीं किस फिराक में है।”
“जैसे मैं कोई मेमना हूं जो उसकी खुराक बन जाऊंगा।”
“तेरी मर्जी भाई” - सतपाल लंबी सांस लेता हुआ बोला – “तू अभी भी चाहता है कि हम उसके बंगले पर चलें?”
“बेशक चाहता हूं।”
दस मिनट की ड्राइविंग के बाद सतपाल ने मीनाक्षी शर्मा के बंगले के सामने जीप रोकी और उतर कर दोनों वॉचमैन के पास पहुंचे।
“नाम क्या बताया था तुमने अपना?” सतपाल ने पूछा।
“जी प्रफुल्ल सिंह।” गार्ड बोला।
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“प्रियम साहब के कत्ल वाली रात ड्युटी पर तुम्हीं थे।” उसका मंतव्य समझ कर पनौती ने सवाल किया।
“जी साहब मैं ही था।”
“फिर तो तुमने गोली चलने की आवाज भी सुनी होगी?”
“जी सुनी थी, बहुत जोर से धांय की आवाज हुई थी, लेकिन तब हमने यही समझा कि किसी गाड़ी का टायर फट गया था। इसलिए हमने बंगले के भीतर जाकर माजरा जानने की कोशिश नहीं की।”
“संजीव चौहान साहब को पहचानते हो?”
“जी पहचानता हूं।”
“गुड! अब जरा याद कर के बताओ कि कत्ल वाली रात जब संजीव साहब यहां पहुंचे थे, तो उनके बंगले में दाखिल हो चुकने के कितनी देर बाद गोली की आवाज तुम्हें सुनाई पड़ी थी?”
“साहब ठीक ठीक तो याद नहीं है, मगर उनके भीतर दाखिल हो चुकने के बाद हम दरवाजे को दोबारा बंद कर के अपने केबिन में पहुंचे, तभी मोबाइल पर एक दोस्त की कॉल आ गई, हम उससे बात कर ही रहे थे जब वह धमाका हमें सुनाई दिया। सुनकर हमने बाद में बात करने को कहकर कॉल काट दिया और केबिन से बाहर निकल कर ये जानने की कोशिश करने लगे कि वह आवाज कैसी थी।”
“जरा अपना मोबाइल दिखाओ।” पनौती बोला।
जवाब में गार्ड ने जेब से मोबाइल निकाल कर उसे थमा दिया। तब पनौती ने उसके मोबाइल की अठारह तारीख की रात पौने नौ बजे के आस-पास की कॉल डिटेल्स देखनी शुरू की।
उस दौरान बस एक ही कॉल अटैंड की गई थी, जो कि आठ पचपन पर आई थी, इस लिहाज से देखा जाता तो संजीव चौहान आठ तिरपन या आठ चौवन पर बंगले के अहाते में पहुंच चुका होगा। आगे सिगरेट खत्म करने में उसे मुश्किल से डेढ़ या दो मिनट लगे होंगे, यानि हर हाल में उसे गोली चलने तक भीतर पहुंच जान चाहिये था मगर पहुंचा वह नौ बजे के बाद था। ये बात उसके बयान से मैच भी करती थी, मगर सवाल ये था कि बंगले के अहाते में दाखिल होने के बाद अगले सात-आठ मिनटों तक वह क्या करता रहा था? सिगरेट पीने में इतना वक्त लगना मुमकिन नहीं जान पड़ता था।
“गोली चलने से पहले या बाद में” - प्रत्यक्षतः वह बोला – “तुम्हें बंगले के आस-पास कोई भटकता दिखाई दिया था, या बाहर कुछ ऐसा घटित हुआ हो जिसकी वजह से तुम्हारा ध्यान कुछ देर के लिये बंगले की तरफ से भटक गया हो, या थोड़ी देर के लिये तुम कहीं धार-वार मारने निकल गये हो?”
“अंधेरा घिरने के बाद की तो हम गारंटी कर सकते हैं साहब, क्योंकि उसके बाद एक पल के लिये भी हमारा ध्यान इधर से नहीं हटा था। ऐसे में कोई दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ होता तो हमारी नजर उसपर जरूर पड़ी होती।”
“संजीव साहब से पहले तुमने आखिरी बार दरवाजा कब खोला था?”
“एक घंटा पहले, तब वकील साहब यहां आये थे।”
“और उससे पहले?”
“अनुराग साहब के लिये जो कि शाम सात बजे के करीब घर लौटे थे।”
“उस रोज प्रियम साहब ऑफिस से कब लौटे थे?”
“नहीं लौटे थे, उनकी तबियत कुछ खराब थी जिसके कारण उस दिन वह ऑफिस गये ही नहीं थे। अनुराग साहब भी दोपहर बाद यहां से निकले थे और आम दिनें की अपेक्षा जल्दी ही वापिस लौट आये थे।”
“कितनी जल्दी?”
“बताया तो था साहब, कत्ल वाले रोज वह शाम सात बजे ही वापिस आ गये थे, जब कि रात नौ या दस बजे से पहले शायद ही कभी बंगले पर वापिस लौटे हों।”
“लौटे ऑफिस से ही थे?”र अपने बाप से पूछ’ इतना बोलकर चली गई थी।”
“उसकी जगह किसी और को नहीं रखा गया यहां?”
“अभी तो नहीं रखा गया, लेकिन मेम साहब तलाश में जरूर लगी हुई हैं, मुझसे भी कह रखा है कि कोई काम मांगने आये तो मैं उसे दरवाजे से ही भगा न दूं।”
“नाम क्या था उसका?”
“नैना।”
“पता ठिकाना मालूम है तुम्हें?”
“पता तो नहीं मालूम साहब, मगर उसका मोबाइल नंबर हमारी डायरी में जरूर होगा।”
“देखकर नंबर बताओ हमें।”
गार्ड फौरन उस काम में लग गया।थोड़ी देर तक वह डायरी के पन्ने पलटता रहा फिर एक नंबर उन्हें नोट करवा दिया।
तत्पश्चात दोनों एक बार फिर से पुलिस जीप में सवार हो गये।
“क्या हासिल हुआ?” सतपाल ने पूछा।
“नैना का नंबर” - कहकर उसने गार्ड से हासिल नंबर पर कॉल लगाई, फिर संपर्क होने पर पूछा – “नैना जी बोल रही हैं?”
“जी हां, आप कौन?”
“प्रियम शर्मा के कत्ल की खबर तो लग ही गई होगी तुम्हें?”
“अरे आप बोल कौन रहे हैं?”
“उसी सिलसिले में पुलिस तुमसे कुछ पूछताछ करना चाहती है।” पनौती उसकी बात को नजरअंदाज कर के बोला।
“मुझसे क्यों? मैंने तो कत्ल से पहले ही वहां से नौकरी छोड़ दी थी।”
“पूछताछ तो फिर भी करनी पड़ेगी मैडम, अब बताओ मुलाकात कैसे होगी तुमसे? हम लोग तुम्हारे घर आयें या तुम खुद थाने आना चाहोगी?”
“घर मत आना साहब जी, वरना मोहल्ले वाले बातें बनायेंगे।”
“घबराओ मत सिर्फ एक आदमी तुम्हारे घर पहुंचेगा, वह भी बिना वर्दी के, या फिर तुम सेक्टर इक्कीस के थाने पहुंचकर इंस्पेक्टर सतपाल सिंह के बारे में पूछना।”
“आप घर पर ही आ जाइये” - वह जल्दी से बोली – “मगर भगवान के लिये वर्दी पहन कर मत आना साहब, वरना मोहल्ले में मेरा जीना हराम हो जायेगा।”
“बेफिक्र रहो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुमसे मिलने पुलिस वहां पहुंची थी। अब अपना पता समझाओ मुझे, इस वक्त मैं प्रियम शर्मा के बंगले पर हूं।”
जवाब में नैना ने उसे पास के ही एक गांव का पता बताते हुए अच्छी तरह से रास्ता समझा दिया।
पनौती ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
“तू अकेला वहां जायेगा?” सतपाल बोला।
“बेशक जाऊंगा, उसका कहना सही है, पुलिस के पहुंचने पर लोग-बाग उसके बारे में बातें बनाना शुरू कर देंगे।”
“जैसे पुलिस के लिये उसकी बात मानना जरूरी है, बातें बनती हो तो बनें, मैं क्या कर सकता हूं।”
राज ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?”
“ऐसी हिम्मत तुम किसी रसूख वाले शख्स के घर पर पहुंच कर क्यों नहीं दिखाते सतपाल साहब, वहां तो यूं तुम्हारी घिग्घी बंध जाती है कि मुझे कहते हुए भी शर्म आती है। बस यस सर, ओके सर, राईट अवे सर! जैसे अल्फाज ही निकल पाते हैं तुम्हारे हलक से, जैसे जुबान की सुई बस वहीं अटक कर रह गई हो।”
सतपाल तिलमिलाकर उठा, मगर पनौती की बात का जवाब देते नहीं बना उससे।
वह आबिद पुर नाम का एक छोटा सा गांव था - बल्कि गांव की बजाये उसे छोटी सी कॉलोनी कहना ज्यादा उचित होगा - जो मीनाक्षी के बंगले से महज दो किलोमीटर दूर था। पनौती गांव के बाहर ही जीप से उतर गया। थोड़ा आगे जाकर उसने जिस पहले शख्स से नैना का पता पूछा उसने बातरतीब उसे एड्रेस समझा दिया।
घर के सामने पहुंचकर पनौती ने खुले दरवाजे पर दस्तक दी तो एक तीस-बत्तीस साल की युवती गोद में बच्चा लिये दरवाजे पर प्रकट हुई।
“नैना।”
“जी मैं ही हूं, भीतर आ जाइये।”
उसने पनौती के आगे एक स्टूल रख दिया, मगर खुद बैठने की कोशिश नहीं की।
“मैंने कई दिन पहले ही वहां से नौकरी छोड़ दी थी साहब।” उसने जैसे सफाई देने की कोशिश की।
“मुझे मालूम है, मैं बस तुमसे कुछ सवाल करना चाहता हूं, इसलिए तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है। बड़ी हद पांच मिनट में मैं यहां से चला जाऊंगा।”
“पूछिये क्या पूछना चाहते हैं?”
“कब से काम कर रही थीं तुम वहां?”
“छह महीने से ऊपर हो गये थे।”
“फिर तो उस घर के लोगों के बारे में काफी कुछ जानती होगी?”
“जी जानती हूं।”सबसे पहले मीनाक्षी मैडम के बारे में ही बताओ, सुनने में आया है कि एडवोकेट ब्रजेश यादव के साथ उनका कोई खास ही रिश्ता था?”
“जी आपने एकदम सही सुना है, दोनों में मियां-बीवी जैसे ताल्लुकात थे।”
“दोनों बेटों को ऐतराज नहीं था उस बात से?”
“मेरे ख्याल से तो उन्हें पता ही नहीं था।”
“और घर की औरतों के बारे में क्या कहती हो? क्या उन्हें उस बात की जानकारी रही हो सकती है?”
“कोमल मैडम तो अभी हाल ही में ब्याह कर लाई गई थीं, इसलिए हो सकता है उन्हें खबर ना हो मगर कल्पना मैडम को सब पता था।”
“उन्होंने क्या अपने शौहर को उस बारे में नहीं बताया होगा?”
“नहीं ही बताया होगा, क्योंकि उस बात को ले कर घर में कभी कहा सुनी होते तो नहीं देखा मैंने।”
“मियां बीवी के बीच बनती कैसी थी?”
“कोमल मैडम और प्रियम साहब के बीच?”
“हां।”
“अच्छी बनती थी, हालांकि उनको बंगले में रहते कोई ज्यादा वक्त तो नहीं गुजरा था, फिर उन दोनों को देखकर यही लगता था कि उनके बीच सबकुछ एकदम नॉर्मल था।”
“और बड़े भाई के बारे में क्या कहती हो? बीवी के साथ उसके कैसे संबंध थे? क्या वो दोनों भी कोमल और प्रियम की तरह आईडियल हस्बैंड वाईफ थे?”
“लड़ाई झगड़ा तो उनके बीच भी कभी होते नहीं देखा मैंने, मगर छोटे साहब और कोमल मैम साहब की तरह प्यार नहीं दिखता था दोनों के बीच।”
“इसकी वजह ये भी तो हो सकती है कि दोनों की शादी हुए कई साल बीत चुके हैं? ऐसे में रिश्तों में शुरू-शुरू की अपेक्षा कुछ ठंडापन तो आ ही जाता है।”
“हां ये वजह भी हो सकती है।”
“अनुराग का स्वभाव कैसा लगता था तुम्हें?”
“अच्छा तो मैं नहीं कह सकती, हर वक्त घर में काम करती औरतों को घूरते से जान पड़ते थे। पता नहीं मेरी आंखों का धोखा था या सच में वैसा ही हुआ था, मगर एक बार मैंने उन्हें कोमल मैम साहब के गले के भीतर झांकते भी देखा था।”
“कहां उनके सामने खड़े होकर?”
“नहीं उस वक्त कोमल मैडम झुककर सैंडिल पहन रही थीं, तभी इत्तेफाक से मेरी निगाह अनुराग साहब पर पड़ गई, वह यूं दीदे फाड़कर उनके गले में झांक रहे थे कि अगर कोमल मैम साहब ने देख लिया होता तो उन्हें माजरा भांपने में एक सेकेंड भी नहीं लगा होता।”
“इसके अलावा कुछ और जो उनके लम्पट स्वभाव को जाहिर करता हो?”
“एक रोज अकेले में मेरा हाथ पकड़ कर उसने जबरन मुझे अपनी बाहों में भर लिया, तब घर में इत्तेफाक से नौकरों के अलावा और कोई नहीं था, उन्होंने कॉफी के बहाने मुझे ऊपर बुलाया और कमरे में दाखिल होते ही वह हरकत कर बैठे, मैंने उन्हें धक्का दे कर जबरन अपना हाथ छुड़ाया और उसी वक्त मैंने वहां से नौकरी छोड़ दी। घर पहुंचकर जब मैंने अपने पति को वह बात बताई तो सुनकर इतने आगबबूला हुए कि उसी वक्त अनुराग को सबक सिखाने की बात करने लगे, मैंने जैसे तैसे उनके गुस्से को शांत किया, वरना दोनों के बीच फौजदारी होकर रहनी थी। जिसमें आखिरकार तो हमारा ही नुकसान होना था।”
“करते क्या हैं तुम्हारे शौहर?”
“ड्राइविंग करते हैं, पहले मीनाक्षी की कार चलाया करते थे, बाद में वहां से नौकरी छोड़कर उन्होंने पास में एक दूसरे बंगले में नौकरी पकड़ ली थी। तब से वहीं काम करते हैं।”
“अनुराग की उस रोज की गंदी हरकत के बारे में तुम्हें कल्पना या मीनाक्षी मैडम को बताना चाहिये था।”
“कोई फायदा नहीं होता, दोनों मुझे ही दोष देने लग जाते।”
“पता तो होगा ही तुम्हें कि प्रियम के कत्ल के इल्जाम में कोमल जेल में है?”
“जी हां टीवी पर न्यूज में देखा था।”
“क्या लगता है वह कातिल हो सकती है?”
“होंगी तभी तो आप लोगों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है, मगर हैरानी जरूर हो रही है मुझे कि उन्होंने ऐसा कांड कर डाला है।”
“संजीव चौहान को जानती हो?”
“हां छोटे साहब के दोस्त हैं।”
“अनुराग का कहना है कि वह अक्सर कोमल से मिलने बंगले पर चला आता था और घंटों उसके साथ बैठा बातें करता रहता था।”
“आते तो वह प्रियम साहब से ही मिलने थे, मगर उनके ना होने पर कोमल मैडम के साथ भी उनकी बातचीत हो जाती थी। क्योंकि तीनों ही एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे।”
“उन दोनों के बीच कभी कुछ अजीब दिखाई दिया तुम्हें?”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं था, दोनों जब भी बात करते थे, ड्राईंग रूम में बैठकर करते थे, संजीव साहब को कोमल मैडम के कमरे में कदम रखते मैंने कभी नहीं देखा।”
“अब जरा सोच विचार कर एक सवाल का जवाब दो।”
“पूछिये।”मान लो प्रियम का कत्ल कोमल ने नहीं किया है, ऐसे में कातिल कौन हो सकता है?”
“ये मैं कैसे बता सकती हूं?”
“कोई अंदाजा ही बयान कर दो, कोई ऐसी बात ही बता दो जो प्रियम के कत्ल की वजह बन सकती हो, भले ही असल में वैसा ना हुआ हो।”
“उनके बंगले के बाद दो बंगला छोड़कर तीसरे बंगले में निरंजन राजपूत नाम का एक आदमी रहता है। मेरे शौहर उसी की गाड़ी चलाते हैं आजकल। बहुत दबदबे वाला है, बहुत ऊंची पहुंच है उसकी। एक बार बंगले के सामने से गुजरते वक्त नशे में उसने गेट के बाहर खड़ी प्रियम साहब की कार को टक्कर मार दी थी। तब दोनों के बीच बहुत बहस हुई, मामला पुलिस तक भी पहुंचा, उसके बाद क्या हुआ ये मैं नहीं जानती। मगर वह बहुत घमंडी इंसान है, साफ-साफ गुंडा मवाली जान पड़ता है। बस एक वही घटना है जिसके बारे में मुझे मालूम है, हालांकि मैं नहीं समझती कि मामूली से झगड़े को लेकर कोई किसी की जान ले सकता है, वह भी झगड़ा खत्म हो चुकने के महीनों बाद।”
“निरंजन राजपूत” - पनौती ने दोहराया – “उसका हुलिया बयान कर सकती हो, मेरा मतलब है वह कैसा दिखता है?”
नैना ने तफसील से यूं उसकी सूरत बयान की कि राज को यकीन आ गया, वह वही शख्स था जिसके साथ पिछले रोज बीच सड़क पर उसकी झड़प हुई थी। ऐसे फसादी आदमी का प्रियम के साथ रंजिश निकल आना कोई आम बात नहीं कही जा सकती थी।
“इसी तरह की और कोई खास बात जो तुम बताना चाहो?”
“नहीं और कुछ मैं नहीं जानती” - नैना बोली – “बस एक रिक्वेस्ट है आपसे, अगर आप निरंजन राजपूत से मिलें तो उसे ये हरगिज भी मत बताइयेगा कि उसके बारे में आपको मैंने बताया है, वरना वह मेरा जीना हराम कर देगा, जान से मार दे तो भी कोई बड़ी बात नहीं होगी। ऊपर से मेरे शौहर को भी वह बात पसंद नहीं आने वाली।”
“इतनी अंधेरगर्दी तो खैर नहीं मची है मैडम, मगर फिर भी मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा नाम किसी भी तरह से सामने नहीं आयेगा।”
“शुक्रिया साहब।” कहकर नैना ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये।
राज शर्मा उठकर वहां से बाहर निकल आया।
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नहीं, ख्याल तक नहीं आया, मैं तो प्रियम को फर्श पर गिरता देखकर ही अपने होश खो बैठी थी, फिर वैसा करने से मुझे भला क्या हासिल होने वाला था। गोली चलाने वाली बात से मुकर तो रही नहीं थी मैं, ना ही मुकर सकती थी, क्योंकि कमरे में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई नहीं था।”

“जिस वक्त गोली चली थी, उस वक्त क्या तुम्हारा ध्यान एक पल के लिये ही सही, खिड़की के बाहर गया था?”

“नहीं, लेकिन प्रियम की निगाह वहीं अटकी हुई थी।”

“कोई वजह सुझा सकती हो, कि क्यों उस घड़ी वह तुम्हारी तरफ देखने की बजाये खिड़की की तरफ देख रहा था?”

“क्या पता, वैसे हो सकता है गुस्से में मुंह फुलाकर वह निगाहें फेर कर खड़ा हो गया हो, और दोबारा मेरी तरफ देखना उसे गवारा न हुआ हो।”

“ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त खिड़की के बाहर कोई खड़ा रहा हो, जिसे पहचानने की कोशिश में वह बाहर देख रहा हो?”

“मुश्किल है, खिड़की खुली हो और कमरे में लाइट जल रही हो, तो खिड़की के बाहर वैसे भी काफी उजाला दिखाई देने लगता है, ऐसे में वहां कोई खड़ा होता तो प्रियम को उसे पहचानने के लिये आंखें थोड़े ही फोड़नी पड़तीं।”

“गोली चलने के बाद जब रिवाल्वर तुम्हारे हाथों से छूट कर नीचे गिर गया, तो क्या बाद में कमरे में पहुंचे किसी शख्स ने उसे उठाकर देखने की कोशिश की थी, या तुम्हें यही महसूस हुआ हो जैसे वहां मौजूद लोगों में से कोई बहुत ध्यान से रिवाल्वर को देख रहा था?”

“मुझे नहीं मालूम, उस वक्त मैं ऐसा कुछ नोट कर पाने की स्थिति में नहीं थी। ऊपर से कमरे में घुसते ही मेरी सास मुझपर चढ़ दौड़ी थी, इसलिए भी मेरा ध्यान दोबारा रिवाल्वर की तरफ नहीं गया था।”

“उस वक्त ना सही मगर गिरफ्तारी से पहली कभी तो तुम्हारा ध्यान उधर गया ही होगा।”

“मेरे ख्याल से पुलिस के आने के बाद गया था, तब तक किसी के पैर की ठोकर खाकर रिवाल्वर थोड़ा बेड की तरफ खिसक गयी थी। वहां पहुंचे पुलिस इंस्पेक्टर को मैंने रिवाल्वर पर रूमाल डालकर उसे उठाते फिर उसकी नाल को सूंघते देखा था, वैसा कर चुकने के बाद मैंने उसे अपने ही किसी आदमी से कहते सुना था कि ‘जले हुए बारूद की तेज गंध आ रही है

’ फिर उसने रिवाल्वर का चेंबर खोलकर चेक किया तो उसमें बस एक ही गोली कम पाई गई थी।”

“क्या ऐसा हो सकता है कि गोली तुम्हारे हाथों ना चली हो, तुम्हारे पति को गोली मारने वाला शख्स कोई और रहा हो?”

“तुम मजाक कर रहे हो, जब कमरे में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई तीसरा था ही नहीं तो उसे गोली कौन चलाता? फिर तुम ये क्यों भूल जाते हो कि गोली उसी रिवाल्वर से चली थी, जो कि मैंने अलमारी से निकालकर प्रियम पर ताना था।”

“छोड़ो उस बात को” - पनौती बोला – “तुम ऐसे किसी शख्स का नाम सुझा सकती हो, जिसकी प्रियम या तुमसे या फिर घर के बाकी लोगों में से किसी के साथ कोई अदावत रही हो? छोटी-मोटी ही सही।”

“उससे क्या होगा?”

“अभी इस सवाल का जवाब जरा मुश्किल है, इसलिए सवाल के बदले सवाल करने की बजाये मेरे प्रश्न का उत्तर दो, था कोई ऐसा शख्स?”
नहीं, किसी के साथ मेरी अदावत का तो सवाल ही नहीं उठता, और प्रियम का भी कम से कम मेरी नॉलेज में कोई दुश्मन नहीं था। शादी के पहले से अगर ऐसा कुछ चला आ रहा हो तो समझ लो मुझे उसकी खबर नहीं है।”

“दोनों भाईयों की आपस में कैसी बनती थी?”

“बहुत अच्छी बनती थी क्यों?”

“और वकील के बारे में क्या कहती हो? सुना है वह घंटों घर में बैठा तुम्हारी सास से बातें करता रहता था।”

“था तो कुछ ऐसा ही।”

“इतनी गहरी क्यों छनती है दोनों में?”

“भीतर की बात है” - कोमल राजदराना अंदाज में बोली – “मैं नहीं समझती कि मुझे उस बारे में तुम्हें कुछ बताना चाहिये।”

“तुम अहमक हो?” - पनौती बोला – “कत्ल के इल्जाम में जेल के भीतर बैठी हुई हो, ऐसे में तुम्हें अपनी फिक्र करनी चाहिये या औरों की? वो भी ऐसे लोगों की जो तुम्हें हर हाल में जेल के भीतर ही देखना चाहते हैं।”

“बेशक मुझे अपनी फिक्र है, मगर तुम्हारे सवाल का जवाब देकर वह फिक्र दूर नहीं होन वाली, फिर किसी को बेवजह नंगा करने का क्या फायदा?”

“मैं वादा करता हूं कि जब तक बहुत जरूरी नहीं होगा, मैं उस बात को जुबान पर नहीं लाऊंगा, कम से कम ऐसे किसी शख्स के सामने तो हरगिज नहीं लाऊंगा, जिसके जरिये बात के फैलने का खतरा हो।”

वह हिचकिचाई।

“वक्त बहुत कम है मैडम, ताउम्र जेल में नहीं रहना चाहतीं, तो साफ-साफ मेरे सवालों का जवाब दो।”

“मेरी सास का” - वह हिचकिचाती हुई बोली – “एडवोकेट ब्रजेश यादव के साथ गहरा चक्कर है।”

पनौती सन्न रह गया।

“मैं तुम्हारी सास की बाबत सवाल कर रहा हूं।”

“मैं भी उसी के बारे में बता रही हूं तुम्हें।”

“कमाल है दो शादीशुदा बेटों की मां कोई जवान युवती तो होगी नहीं, जो पति की मौत के बाद उसने वकील के साथ रिश्ते बना लिये?”

“पहली बात तो ये कि वह प्रियम और अनुराग की सौतेली मां है। उम्र भी उनकी चालीस पर ही होगी, मगर हर वक्त यूं बन-संवर कर रहती हैं कि देखोगे तो तीस-पैंतीस से ज्यादा की नहीं मानोगे। और सबसे अहम बत ये कि मैं तुम्हें कोई सुनी सुनाई बात नहीं बता रही। हाल ही में मैंने अपनी आंखों से दोनों को एक दूसरे की बाहों में देखा था। मीनाक्षी का तो पता नहीं, मगर वकील साहब की निगाह उस वक्त मुझपर जरूर पड़ी थी।”

“कब की बात है ये?” पनौती हैरानी से बोला।

“अभी दस दिन भी मुश्किल से गुजरे होंगे, वह नजारा देखकर मैं अवाक रह गई। तब मैंने उसका जिक्र अपनी जेठानी कल्पना से भी किया था। सुनकर वह जोर जोर से हंसने लगी और बोली तुमने क्या कोई अनोखी बात देख ली है, यह तो ससुर जी के मरने के बाद से ही चला आ रहा है।”

“फिर तो ये बात दोनों बेटों को भी पता रही होगी?”

“कल्पना की मानो तो पता थी, मगर मुझे यकीन नहीं आ रहा था। आखिरकार प्रियम की मौत वाली रात मैंने उससे पूछ ही लिया। वही बात हमारे बीच झगड़े की वजह बनी थी और आखिरकार....काश मैंने वह सवाल नहीं उठाया होता।”

“जो बीत चुका है उसपर अफसोस जताने के लिए ये सही वक्त नहीं है” - पनौती जल्दी से बोला – “तुम्हारे जेठ का कहना है कि तुम एक बार पहले भी प्रियम पर जानलेवा हमला कर चुकी थी। उसने अपनी आंखों से तुम्हें बमय चाकू पति के सीने पर सवार देखा था।”

“बात एकदम सही है मगर वह नजारा देखकर उन्होंने जो अंदाजा लगाया था वह सरासर गलत है। दरअसल हम दोनों में स्कूल के जमाने से ही इस तरह की नोक-झोंक चलती आ रही थी, उस वक्त भी जो कुछ चल रहा था वह महज मजाक के अलावा कुछ नहीं था। भले ही कोई इस बात पर यकीन करे या ना करे।”
 
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वापिस सतपाल के पास पहुंचकर उसने नैना से हुई बातचीत अक्षरशः उसके सामने दोहरा दी।
“निरंजन राजपूत से मैं वाकिफ हूं” - सुनकर सतपाल बोला – “बड़ा फसादी और पहुंच वाला आदमी है, सीधे मुख्यमंत्री से उसके संबंध बताये जाते हैं। भू-माफिया है, आस-पास की ढेरों कॉलोनियां उसकी बसाई हुई हैं, मगर यूं छिपकर वार करना उसकी फितरत से मैच नहीं करता शर्मा साहब। उसने अगर प्रियम की जान लेनी होती तो अंजाम की परवाह किये बिना खुलेआम उसे गोली मार देता।”

“उसके रसूख का नजारा मैं भी कर चुका हूं इंस्पेक्टर साहब, जब उसने सैकड़ों लोगों के सामने बीच सड़क पर मुझपर रिवाल्वर तान दी थी।”

“वीर साहब ने बताया था मुझे उस बारे में” - सतपाल बोला – “मगर बिगाड़ तो नहीं पाया तेरा कुछ।”

“इसलिए नहीं बिगाड़ पाया क्योंकि भीड़ में खड़े एक बुजुर्गवार को मुझसे हमदर्दी हो आई और वह निरंजन के खिलाफ गवाही देने हमारे साथ थाने पहुंच गये। वह गवाही नहीं होती तो बुरा होता।”

“तुम्हारे लिये?”

“नहीं भाई” - पनौती बोला – “निरंजन के लिये, अगर पुलिस ने उसके दोनों आदमियों को गिरफ्तार न कर लिया होता तो मैं उसका पीछा मरते दम तक नहीं छोड़ता।”

“मरें तेरे दुश्मन।”

“मैं भी वही कह रहा हूं इंस्पेक्टर साहब कि मैं उसके मरने तक उसका पीछा नहीं छोड़ता।”

सतपाल ने एक बार फिर हैरान हो कर दिखाया। क्या आदमी था राज शर्मा उर्फ पनौती! जिसे किसी बात का खौफ नहीं था। मरना जीना वह ऊपर वाले के हाथ में समझता था इसलिए यकीन था कि कोई उसका तब तक बाल बांका नहीं कर सकता था जब तक कि ईश्वर खुद ऐसा ना करना चाहें। सतपाल को रश्क हो उठता था उस शख्स पर ये सोचकर कि वह खुद उसके जैसा क्यों नहीं था।

“निरंजन से मिलने कल चलेंगे शर्मा साहब” - प्रत्यक्षतः वह बोला – “इतनी रात गये हम उसके बंगले पर पहुंचे तो देखते ही वह भड़क जायेगा। सिरफिरा आदमी है भड़क कर क्या करेगा, कहना मुहाल है।”

“तुम डर रहे हो उससे?”

“डर वाली बात नहीं है यार, मगर ऐसे लोग बात बात में कमिश्नर को फोन लगा देते हैं, एमएलए-एमपी से ले कर मंत्री तक को फोन करने से बाज नहीं आते जबकि उससे कहीं कम वक्त में सामने वाले की बात का जवाब बखूबी दिया जा सकता है। ऐसे हालात में जवाबदेही मुश्किल हो जाती है।”

“धिक्कार है तुम्हारा पुलिस वाला होने पर, अच्छा होता अगर ऐसे किसी शख्स की महिमा मंडित करने की बजाये उसे जेल की हवा खिला दी होती तुमने। तब कम से कम गर्व के साथ ये तो कह सकते थे कि तुमने जो किया वह सही था, फलां आदमी उसी अंजाम के काबिल था जहां तुमने उसे पहुंचाया था।”

“जैसे मेरे कहने से फांसी पर चढ़ा दिया जायेगा वह, भई रसूखदार शख्स है, मैं चाहकर भी उसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकता। करने की कोशिश भी करूंगा तो बड़े बड़े लोगों के फोन आने शुरू हो जायेंगे, जिनकी बात मानने से मैं इंकार करूंगा तो वैसे ही फोन एसीपी, डीसीपी से होते हुए कमिश्नर तक पहुंच जायेंगे, नतीजा ये होगा कि उसका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा और मेरा कुछ सलामत नहीं बचेगा।”
तुम चाहते हो कि मैं ‘फास्ट फूड’ वाला आइडिया फिर से तुम्हें दूं।”

“बेशक दे ले भाई, नौकरी जाने से तो कहीं अच्छा है कि मैं तेरी बकवास ही सुन लूं। कम से कम खड़े पैर बेरोजगार तो नहीं होना पड़ेगा।”

“तो तुम मेरे साथ वहां नहीं चल रहे?”

“तू भी नहीं जा रहा, मैं नहीं चाहता कि खामख्वाह तू किसी मुसीबत में पड़े, जिसे हर वक्त न्योता देने की फिराक में लगा रहता है। लोगों को मुसीबत दिखाई देती है तो वह उससे दूर भागने का प्रयास करते हैं, जबकि तू खुद चलकर दूर खड़ी मुसीबत के पास पहुंच जाता है, और आखिरकार कोई ना कोई बवेला खड़ा होकर ही रहता है।”

“मैं तो रूकने से रहा इंस्पेक्टर साहब, क्योंकि भविष्य के अंदेशों के चलते मैं वर्तमान की जिल्लत झेलने को तैयार नहीं हो सकता। अगर मेरा कोई बुरा अंजाम निरंजन राजपूत के हाथों ही होना बदा है तो समझ लो नियति मेरे साथ खेल रही है, मुझे जबरन उसकी तरफ बढ़ने को मजूबर कर रही है। होनी को भला कौन रोक पाया है आज तक?”

“कैसी जिल्लत भाई अभी तो तू उससे मिला भी नहीं है, फिर इस केस से उसका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं जान पड़ता, ऐसे में रात की बजाये अगर सुबह उससे मिल लेगा तो कौन सी आफत आ जायेगी?”
आफत आ सकती है, किसी भी मुलजिम की गिरफ्तारी इन्वेस्टीगेशन की रफ्तार पर निर्भर करती है, तुम जितना स्लो चलोगे, मुलजिम उतना ही तुमसे दूर होता जायेगा। तुम और स्लो एक्ट करोगे मुलजिम और दूर हो जायेगा। फिर एक वक्त वह भी आयेगा जब उसकी परछाई को भी छू पाना तुम्हारे लिये मुश्किल हो जायेगा। पुलिस जिन केसों को अनसुलझी वारदातों की फाइल में दफ्न कर देती है, हकीकत में उसकी वजह महज इतनी होती है कि पुलिस अपराधी से तेज दौड़ने की बजाये उससे स्लो पड़ जाती है लिहाजा फासला निरंतर बढ़ता जाता है।”

“भाषण बंद कर।” सतपाल गुस्से से बोला। फिर झुंझलाहट का प्रदर्शन करते हुए उसने जीप स्टार्ट कर के निरंजन राजपूत के बंगले की तरफ दौड़ा दी।
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रात आठ बजे दोनों निरंजन राजपूत के बंगले पर पहुंचे।

वॉचमैन के केबिन में एक खूब हट्टा-कट्टा पहलवानों जैसे डील-डौल वाला शख्स कुर्सी पर पसरा हुआ था। उसने जीन्स की पैंट और टी-शर्ट पहन रखी थी। ऐसे में वह गार्ड कम और रेसलर ज्यादा लग रहा था।

पुलिस की जीप बंगले के गेट पर रूकती देखकर वह सीधा हुआ मगर केबिन से बाहर निकलने की उसने कोई कोशिश नहीं की।

जीप से उतर कर दोनों उसके पास पहुंचे।

“निरंजन साहब से मिलना है उन्हें खबर करो।”

“साहब बिजी हैं इस वक्त तुम लोगों को रिसीव नहीं कर सकते।”

“तुम खबर तो करो, क्या पता तैयार हो ही जायें।”

“कहा न इस वक्त वह किसी से नहीं मिलने वाले।” केबिन में बैठा शख्स बड़े ही रूखे स्वर में बोला।

“तुम कौन हो?”

“दिखाई नहीं देता, वॉचमैन की केबिन में बैठा हूं।”

“कोई नाम भी तो होगा?”

“पहलवान।”

“लिहाजा निरंजन साहब का गार्ड ये फैसला करेगा कि उन्हें किससे मिलना है और किससे नहीं मिलना है” - पनौती बोला – “लगता है अपने सामने खड़े साहब की वर्दी तुम्हें दिखाई नहीं दे रही?”

“बराबर दिखाई दे रही है, मगर इस वक्त तो खुद कमिश्नर भी आ जायें तो निरंजन साहब उनसे मिलने को तैयार नहीं होंगे, ये तो महज इंस्पेक्टर जान पड़ते हैं। इसलिए वापिस जाओ सुबह आना, दस और ग्यारह के बीच में।”

“यार कम से कम उन्हें फोन कर के पूछ तो लो।” सतपाल बेहद मीठे लहजे में बोला।

“मुझे अपनी नौकरी प्यारी है।”

“चलो मोबाइल नंबर ही दे दो उनका।” पनौती बोला।

“मेरा भेजा मत खाओ, कहा न सुबह आना।”

“सतपाल साहब” - पनौती बोला – “कम से कम इसे एहसास तो कराओ कि ये पुलिस इंक्वायरी है, जहां इसके साहब की मर्जी नहीं चलने वाली। इसकी ढीठता भी नहीं चलने वाली।”
जवाब में पहलवान ने जोर से कहकहा लगाया फिर बोला, “सेक्टर इक्कीस के थाने में ड्युटी है न तुम्हारी इंस्पेक्टर साहब? कुछ दिनों पहले तक सब-इंस्पेक्टर हुआ करते थे, अब अगर हवलदार की वर्दी पहन कर नहीं घूमना चाहते तो ठंडे ठंडे वापिस लौट जाओ यहां से।”

सुनकर सतपाल बुरी तरह तिलमिलाया।

“लो तुम्हें तो इसने म्युनसीपालिटी का कोई जमादार ही समझ लिया सतपाल साहब” - पनौती ने जैसे जलती आग में घी की आहूति दे दी – “अरे कुछ तो जवाब दो इसकी बात का।”

जवाब में पहलवान फिर हंस पड़ा।

“देख भाई” - सतपाल बेहद शांत लहजे में बोला – “वर्दी तो मैं हवलदार की भी पहन लूंगा, मगर जेल की रोटी शायद तुझे पसंद ना आये, एक बार हो कर आया है इसलिए वहां के माहौल से वाकिफ तो होगा ही तू।”

पहलवान सकपकाया फिर बोला, “ऐसे ही अंदर कर दोगे?”

“बेशक कर दूंगा” - कहकर सतपाल ने उसका गिरेबान थाम कर उसे सीधा खड़ा कर दिया – “नंबर बोल अपने बाप का वरना टांगों पर खड़ा रहने के काबिल नहीं छोड़ूंगा।”

पहलवान फिर हंसा। जवाब में सतपाल ने इतनी जोर का घूंसा उसके चेहरे पर जमाया कि वह जमीन पर जा गिरा। मगर गिरते के साथ ही वह उछल कर उठ खड़ा हुआ और सतपाल के साथ-साथ पनौती को धकेलता हुआ केबिन से बाहर निकल आया।

“अब बेशक तुम दोनों आ जाओ” - वह बॉक्सरों जैसा पोज बनाकर खड़ा हो गया, फिर बारी बारी दोनों को देखता हुआ बोला, “मां का दूध पिया है स्सालों तो अब मुझे छूकर दिखाओ।”

“गाली नहीं देते भाई” - पनौती बड़े ही शांत लहजे में बोला – “गाली देना बुरी बात होती है।”

“भाषण मत दे बहन...।”

पनौती के दायें हाथ का घूंसा इतनी तेजी से उसके मुंह से टकराया कि उसकी नाक फूट गई, होंठ कट गये और एक बार फिर वह जमीन पर जा गिरा। मगर इस बार भी फौरन उठ खड़ा हुआ, उठते के साथ ही उसने पनौती के पेट में एक जोर का पंच जड़ना चाहा जिसे पनौती ने पेट तक पहुंचने से पहले ही थामकर उसके पैरों के पीछे अपनी टांग फंसाते हुए हाथ को एकदम से ऊपर उठा दिया, पीछे टांग फंसी होने की वजह से पहलवान खुद को संभाल नहीं सकता और पीठ के बल धड़ाम से जमीन पर जा गिरा। उसके मुंह से जोर की चीख निकली मगर तुरंत बाद वह उठने की कोशिश करने लगा।

पनौती तत्काल उसकी मदद को आगे बढ़ा।उसने पहलवान को बालों से पकड़ कर उठाया और एक जोर का घूंसा उसके पेट में जड़ दिया। पहलवान हलाल होते बकरे की तरह डकारता हुआ पेट पकड़ कर दोहरा हुआ तो पनौती का घुटना उसकी ठुड्डी से टकराया, वह एक बार फिर सीधा हो गया। तभी पनौती ने एक के बाद एक तीन वजनदार घूंसे उसके पेट में जड़ दिये।

पहलवान जमीन पर लोट गया।

पनौती ने झुककर उसका हाथ थामा और उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया, फिर बड़े ही प्यार से बोला, “अब शांत हो जा भाई, कहा था गाली मत देना, मगर तू सुनने को तैयार नहीं था, वरना मेरी तेरे से क्या दुश्मनी।”

“साहब छोड़ेंगे नहीं तुम दोनों को” - पहलवान अपने चेहरे से खून साफ करता हुआ बोला – “इस इंस्पेक्टर की वर्दी तो बस उतरी ही समझो, साथ में तेरी भी।”

“मेरी चिंता मत कर भाई, वैसे भी पूरे कपड़े पहन कर मुझे कोफ्त सी महसूस होती है, अगर इन्हें उतार कर तेरे कलेजे को ठंडक पहुंचती हो तो बोल के देख मैं खुद ही उतारे देता हूं।”

पहलवान इस बार कुछ नहीं बोला।
“अब बराय मेहरबानी अपने साहब का नंबर बोलो, ताकि उन्हें फोन कर के हम मिलने की इजाजत हासिल कर सकें।”

“अब तो तुम दोनों नहीं भी चाहोगे तो साहब से तुम्हारी मुलाकात होकर रहेगी” - वह जैसे धमकाने वाले अंदाज में बोला – “तुम दोनों तो बस गये काम से।”

कहकर उसने मोबाइल पर कोई नंबर डायल किया और जल्दी जल्दी उन दोनों के बारे में बताते हुए ये भी बता दिया कि बिना किसी वजह के दो पुलिस वालों ने उसे जमकर मार लगाई थी।

“अब देखना क्या होता हैं।” कॉल डिस्कनेक्ट कर के वह बोला।

“बेशक देखेंगे भाई।”

दो मिनट बाद जमीन को कदमों तले रौंदता हुआ निरंजन राजपूत अपने दो चमचों के साथ चलता हुआ गेट पर पहुंचा, “क्या बवेला मचा रखा है तुम दोनों ने? जानते नहीं मैं कौन हूं” - कहकर उसने पहलवान की तरफ देखा फि हैरानी से बोला – “तुम दोनों ने इतनी बुरी तरह पीटा है इसे।”

“नहीं बुरी तरह तो नहीं पीटा सर” - पनौती बोला – “मैं तो बस इसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि गाली देना बुरी बात होती है।”

“तुम लोगों ने गाली देने की वजह से इसे मारा है?” वह हैरानी से बोला।

“नहीं उस वजह से तो बस मैंने इसे मारा है, इंस्पेक्टर साहब तो महज इसे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि पुलिस के साथ सहयोग करना हर नागरिक का कर्तव्य होता है।”

तब जाकर निरंजन ने गौर से उसकी सूरत देखी, तत्काल उसके चेहरे पर पहचान के साथ-साथ हैरानी के भाव उभरे, “तू तो... तू तो वही लड़का है जो कल...।”

“याद्दाश्त कमाल की है आपकी, बधाई कबूल कीजिये।”

“तेरी ये मजाल कि तू यहां तक पहुंच गया?”

जवाब में गुस्से से उबलते निरंजन का दायां हाथ पनौती के चेहरे की तरफ बढ़ा, मगर पहुंच नहीं सका, उसने बीच में ही ना सिर्फ उसकी बांह थाम ली बल्कि जबरन नीचे करता हुआ बोला, “लगता है पहलवान की तरह आप में भी तहजीब नाम की कोई चीज नहीं है। जबकि मैंने सोचा था कि कल वाली घटना के बाद आपको अक्ल आ गई होगी।”

“हाथ छोड़ बहन... वरना तू जानता नहीं है कि मैं कौन हूं।”गाली मत दीजिये सर!” - वह पूर्वतः शांत लहजे में बोला – “मैं तो कल ही आपको पहचान गया था फिर भी अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं तो दोहराये देता हूं” - कहकर उसने आगे जोड़ा – “आप का नाम निरंजन राजपूत है और सुना है आप गुंडो की जमात के कोई मुखिया-वखिया भी हैं, लिहाजा मैं एक बड़े गुंडे के तौर पर आपका नाम तसलीम करता हूं। कुछ बाकी रह गया हो तो आप खुद ही बता दीजिये।”

“मैं तुम दोनों की वर्दी उतरवा दूंगा।”

“मैं वर्दी वाला नहीं हूं सर! ये बात आपको बखूबी पता है। रही बात इंस्पेक्टर साहब की तो मैं पहले ही इन्हें फॉस्ट फूड का धंधा शुरू करने की राय दे चुका हूं जिसपर ये साहब बड़ी शिद्दत से विचार कर रहे हैं। ऐसे में इनकी वर्दी उतरवाकर आप उस नेक काम में बहुत बड़ा योगदान देंगे। प्लीज कैरी ऑन।”

इस बार गुस्सा होने की बजाये निरंजन यूं कसमसाया कि हैरानी न होती अगर उनके सामने ही वह अपने बाल नोचने शुरू कर देता।

“रही बात आपकी ऊंची पहुंच की तो वह मैंने थाने में बखूबी देखी थी, एसओ वीर सिंह के कमरे में बैठकर मुफ्त की एक कप चाय पी लेना बेशक बहुत बड़ी बात है। मैंने उस वक्त भी आपकी पहुंच का नजारा किया था, जब आप मामूली मारपीट के केस में अपने दो आदमियों को जेल जाने से बचाने में कामयाब नहीं हो पाये थे, जबकि कोशिश आपने पूरी की थी। सलाम करता हूं आपकी ऐसी पहुंच और ऊंचे रसूख को।”

“क्यों आये हो यहां?” निरंजन राजपूत जैसे खून का घूंट पीता हुआ बोला।

“प्रियम शर्मा से तो आप वाकिफ ही होंगे?”

“नाम से वाकिफ था, सुना है नरसों रात बीवी के हाथों मारा गया था बेचारा।”

“उसके कत्ल के सिलसिले में आपसे कुछ पूछताछ करनी है।”

“तुम कौन होते हो ऐसी किसी इंक्वायरी को अंजाम देने वाले?”

“होता तो बेशक हूं, मगर उस बात पर मैं बहस नहीं करना चाहता, समझ लीजिये इंस्पेक्टर साहब को आपका बयान लेना है, आप चाहेंगे तो मैं यहीं खड़े रहकर इनकी वापसी का इंतजार कर लूंगा।”अरे कोई वजह भी तो हो मेरे से पूछताछ करने की?”

“वजह तो है जनाब, क्योंकि कुछ रोज पहले आप दोनों के बीच एक छोटे से एक्सीडेंट को लेकर बवेला हुआ था, और आपको जानने वालों का कहना है कि आप अपने दुश्मन को यूं आसानी से छोड़ देने वालों में से नहीं हैं।”

“ये बात जिसने भी कही है एकदम सही कही है” - निरंजन आश्चर्य जनक भाव से शांत होता हुआ बोला – “समझ लो इंस्पेक्टर के साथ तुम्हारे भीतर आने पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है, चलो बंगले में चलकर बात करते हैं।”

कहकर वह भीतर दाखिल हो गया।
दोनों ने उसके पीछे-पीछे चल पड़े।

उस वक्त अचानक ही पहलवान के चेहरे पर ऐसी मुस्कान रेंग उठी जिसपर सतपाल की निगाह पड़ जाती तो वह बंगले में हरगिज भी कदम नहीं रखता।

खूब लंबे-चौड़े ड्राइव-वे से गुजर कर तीनों भीतर की इमारत तक पहुंचे। दरवाजा खुला हुआ था। वह हॉल जैसा खूब बड़ा कमरा था जिसमें उस वक्त छह लोग मौजूद थे, सब के सब शक्लो-सूरत और हाव-भाव से साफ-साफ गुंडे मवाली जान पड़ते थे।

उनपर निगाह पड़ते ही सतपाल के मन में जैसे कुछ खटक सा गया। उसका हाथ तेजी से होलस्टर की तरफ बढ़ा मगर तब तक देर हो चुकी थी।

“चुपचाप हाथ ऊपर उठा दो इंस्पेक्टर साहब” - कोई उसकी गर्दन पर पिस्तौल तानता हुआ बोला – “वरना जान से जाओगे।”

वैसा ही हुक्म किसी ने पनौती को भी दिया, सतपाल ने फौरन दोनों हाथ ऊपर उठा दिये लेकिन पनौती ने वैसी कोई कोशिश करना जरूरी नहीं समझा।

“सुना नहीं तुमने।”

“सुन लिया भाई, मगर मुझे क्यों कह रहे हो, ना तो मेरे पास कोई हथियार है ना ही मैं पुलिस वाला हूं। मैं तो बस इंस्पेक्टर साहब के कहने पर इनके साथ यहां तक चला आया था।

“तो भी हाथ ऊपर करो।”

“नहीं कर सकता भाई, बेशक तुम मुझे गोली मार दो।”

रिवाल्वर वाले ने तत्काल निरंजन की तरफ देखा जैसे पूछना चाहता हो की क्या करे।

“मेरी तरफ क्या देखता है” - निरंजन गुस्से से बोला – “नहीं मानता तो चला दे गोली, मगर निशाना किसी ऐसी जगह पर मारना जिससे इसकी फौरन मौत न होने पाये, मैं इस कमीने को तड़पा तड़पा कर मारना चाहता हूं, स्साले ने पिछले चालीस घंटों में मेरी जो किरकिरी की है उतनी तो आज तक किसी की करने की मजाल नहीं हुई” - कहकर वह तनिक रूका फिर बोला – “घुटना फोड़ दे इसका।”

“ठीक है” - कहकर रिवाल्वर वाला शख्स पनौती से बोला – “साहब ने क्या कहा ये तूने सुन ही लिया है, अब हाथ ऊपर करता है या मैं घुटना फोड़ूं तेरा?”

“कैसा निकम्मा आदमी है तू” - पनौती तिरस्कार भरे लहजे में बोला – “तेरा बाप तुझे हुक्म दे चुका है, इसके बावजूद तू मुझे ऑप्शन दे रहा है, तेरे जैसे लोग ही अपने बापों की लुटिया डुबो देते हैं।”

“क्या बकता है?” वह हड़बड़ा कर बोला।

“बताता हूं” कहकर पनौती ने पलक झपकते ही अपनी दोनों टांगों को दायें बायें फैल जाने दिया, रिवाल्वर के लेबल से नीचे पहुंचते ही उसके दोनों हाथ हथियारबंद शख्स की कलाई पर कस गये, इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, पनौती ने उसे जोर की धोबी पछाड़ दी, वह पीठ के बल फर्श पर गिरा और गिरकर उठ नहीं पाया।

पनौती ने उसके हाथों से छिटककर दूर जा गिरी रिवाल्वर पर छलांग लगा दी, उसी वक्त सतपाल को कवर किये खड़े शख्स ने रिवाल्वर का रूख पनौती की तरफ कर के घोड़ा दबाना चाहा, मगर तब तक सतपाल उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर गोली चला चुका था। जो कि उसकी अंगूठे के एकदम पास वाली उंगली को घायल करती सामने की दीवार में जा घुसी। नतीजा ये हुआ कि वह अपना हाथ पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, हाथ में थमी रिवाल्वर छिटक कर दूर जा गिरी।वह नजारा देखते ही वहां बैठे तमाम शख्स उठ खड़े हुए, अगले ही पल छह लोगों की रिवाल्वरें उनकी तरफ तनी हुई थीं। मगर तब तक पनौती छलांग लगाकर निरंजन के सिर पर पहुंच गया, अगले ही पल निरंजन की मुंडी उसके बाहों के घेरे में थी और रिवाल्वर उसकी कनपटी पर।सर प्लीज” - पनौती बोला – “अपने आदमियों से कहिये कि हथियार फेंक दें। क्यों कि मैं इस वक्त बहुत डरा हुआ हूं, डर के मारे कहीं घोड़ा दबा बैठा तो आपकी चल-चल हो जायेगी।”

“तुम बच नहीं सकते।”

“मुझे मालूम है सर! आप से पंगा लेकर बच जाना तो आपका सिर मुंडाकर, मुंह पर कालिख पोत कर, गधे पर बैठा कर पूरे इलाके में घुमाने जैसा होगा। आप ऐसा होने देना भला कैसे अफोर्ड कर सकते हैं? मगर अभी मेरी बात मान जाइये, जिन्दा बचे रहेंगे तो मुझसे बदला लेने का कोई ना कोई मौका हासिल कर ही लेंगे।”

सुनकर निरंजन राजपूत कसमसाया जरूर, मगर वैसा कोई हुक्म देने की उसने कोई कोशिश नहीं की।

“सर प्लीज, कहना मानिये आपके इतने सारे हथियारबंद आदमियों को देखकर मेरी हालत खराब हो रही है, इनसे कहिये कि अपने हथियार फेंक दें।”

“फेंक दो।” वह धीरे से बोला।

तत्काल छहों लोग निहत्थे नजर आने लगे।

“शुक्रिया भाई लोगों अब थोड़ी सी मेहरबानी करो और दूसरी तरफ दिखाई दे रहे दरवाजे के पीछे चले जाओ, जल्दी करो मेरी उंगलियां कांप रही हैं, कहीं मैं निरंजन साहब पर गोली न चला बैठूं, वरना इतनी ऊंची पहुंच वाला आदमी बेमौत मारा जायेगा” - कहकर उसने घायल शख्स की तरफ देखा – “तुम भी भीतर जाओ भाई, हाथ पर कोई रूमाल वगैरह बांध लो ताकी खून बहना बंद हो जाये, और इंस्पेक्टर साहब के निशाने की तारीफ करो वरना गोली तुम्हारे हाथ के आर-पार भी हो सकती थी।”

इस बार किसी की भी हुक्म अदूली की मजाल नहीं हुई।

सब लोग जब पनौती के बताये कमरे में पहुंच गये तो निरंजन को कवर किये हुए वह दरवाजे तक पहुंचा, और बाहर से कुंडी बंद कर दी।

इसके बाद उसने निरंजन को एक सोफे पर धकेल दिया और एक जोर की लात उसके पेट में जमा दी, नतीजा ये हुआ कि निरंजन सोफे के साथ-साथ पीछे को उलट गया। पनौती उसके करीब पहुंचा और पूरी ताकत से एक और लात उसके पेट में दे मारी, निरंजन राजपूत हलाल होते बकरे की तरह डकारा।

“अब बस भी कर” - सतपाल हड़बड़ाकर बोला – “मार खाकर ये कहीं बेहोश हो गया तो इससे पूछताछ कैसे करेंगे हम?”

सतपाल को उसके बेहोश होने की खाक परवाह थी, वह तो ये सोचकर डर रहा था कि कहीं गुस्से में आकर राज शर्मा उसकी जान ही ना ले ले।

प्रत्यक्षतः सतपाल की बातों का उसपर पूरा-पूरा असर दिखाई दिया। उसने निरंजन को पीटना बंद कर दिया और उसे घसीट कर फिर से एक सोफे पर बैठा दिया। फिर उसके सामने बैठता हुआ बोला, “क्या जरूरत थी सर! इतना फसाद करने की, कुछ सवाल ही तो करना चाहते थे इंस्पेक्टर साहब आप से।”

निरंजन ने जवाब नहीं दिया।सतपाल उन दोनों के करीब खिसक आया मगर उसने पनौती की तरह बैठने की कोशिश नहीं की, बल्कि रिवाल्वर हाथ में लिये आस-पास नजर रखने लगा। उसे पूरा-पूरा एहसास था कि इस वक्त दोनों शेर की मांद में बैठे थे, कभी भी किसी भी तरफ से उनपर वार हो सकता था। और कुछ नहीं तो कमरे में बंद निरंजन के आदमी ही किसी को फोन कर के मदद बुला सकते थे। अलबत्ता पनौती बेखबर था, उसे किसी बात की कोई परवाह नहीं थी।

“अब अगर आप की इजाजत हो तो इंस्पेक्टर साहब के हवाले से मैं अपना काम शुरू करूं?”

“तू बचेगा नहीं, किसी हाल में नहीं बचेगा।” निरंजन दांत पीसता हुआ बोला।

“अगर मेरी मौत के प्रति आप इतने ही श्योर हैं तो मरने वाले की आखिरी इच्छा समझ कर ही मेरे सवालों का जवाब दे डालिये सर।”

“पूछ क्या पूछना चाहता है?”

“सबसे पहले तो आप यही कबूल कीजिये कि कुछ दिनों पहले एक छोटे से एक्सीडेंट को ले कर आपकी मकतूल प्रियम शर्मा के साथ तगड़ी झड़प हुई थी।”

“बेशक हुई थी, उसने पुलिस में कंप्लेन भी की थी, मगर क्या बिगाड़ लिया मेरा, पुलिस ने क्या मुझे जेल भेज दिया?”

“बेशक नहीं भेज पाये, आखिर आप रूतबे वाले शख्स हैं, सुना है सरकार के घर में सीधी पहुंच है आपकी?”

“बिल्कुल है” - वह गर्व भरे स्वर में बोला – “अभी पिछले सप्ताह ही मुख्यमंत्री जी ने मुझे डिनर पर बुलाया था।”

“जरूर बुलाया होगा जनाब, मगर हैरानी है कि इतने रसूख वाले शख्स ने प्रियम शर्मा पर छिपकर वार किया।”

“मैंने नहीं किया, करना होता तो दिन दहाड़े उसके घर में घुसकर मारा होता। सच पूछो तो मैंने उसकी जान लेने का फैसला भी कर लिया था, मगर डीसीपी भड़ाना के कहने पर मैंने उसे माफ कर दिया था।”

“चलिये मान लिया कि आपने उसे नहीं मारा, मगर आपके आदमियों में से किसी ने उस कारनामें को अंजाम दिया हो सकता है, भले ही आपने उसे प्रियम के कत्ल का हुक्म न दिया हो।”

“मेरी इजाजत के बिना किसी की मजाल नहीं हो सकती, वैसा करने की, अलबत्ता मैं आज भी अपने आदमियों को हुक्म दे दूं तो शर्मा फेमिली में कोई नामलेवा नहीं बचने वाला।”

“मगर आपने ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया।”

“नहीं दिया, कत्ल की खबर मुझे न्यूज के जरिये लगी थी, मैंने टीवी पर ये भी देखा था कि उसका कत्ल उसी की बीवी ने किया था, ऐसे में मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तुम लोग मेरी रात क्यों खोटी कर रहे हो?”

“इसलिए कर रहे हैं क्यों कि कोमल शर्मा कातिल नहीं है, अब बताइये अगर आपने उसे नहीं मारा तो किसने मारा?”

“मुझे क्या पता?”

“कोई अंदाजा ही लगाकर दिखाइये।”

“रहा होगा उसकी मां का कोई पुराना यार” - निरंजन राजपूत पूरी लापरवाही से बोला – “जवानी गुजर गई मगर लटके-झटके नहीं गये उसके, खुद को आज भी जवान छोकरी समझती है, जाने कहां-कहां मुंह मारती फिरती है।”
 

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