और इस बात का जामिन कौन बनेगा कि कत्ल के वक्त आप वाकई ड्राईंगरूम में बैठे हुए थे” - पनौती उसे घूरता हुआ बोला – “जैसा कि आपने अपने बयान में कहा था।”
“आप मुझपर कत्ल का इल्जाम लगा रहे हैं?”
“फिलहाल नहीं, लेकिन इस बात से आपको कोई तसल्ली नहीं मिलने वाली क्योंकि बतौर मर्डर सस्पेक्ट आप का नाम पुलिस की लिस्ट में सबसे ऊपर है।”
“हद है भाई, जबकि इकलौती मीनाक्षी की गवाही ही ये साबित करने के लिये पर्याप्त है कि कत्ल के वक्त मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा बातें कर रहा था, इसलिए मैं कातिल नहीं हो सकता।”
“जो कि खुद भी संदेह से परे नहीं हैं।”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? तुम एक मां पर इल्जाम लगा रहे हो कि उसने अपने बेटे का कत्ल कर दिया?”
“इल्जाम नहीं जनाब, क्योंकि इल्जाम आप दोनों पर तब लगाया जायेगा जब हम ये बात साबित कर देंगे कि प्रियम की हत्या आप दोनों की मिलीभगत का परिणाम थी।”
यादव ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया, पनौती की बात पर वह कुछ क्षण विचार करता रहा फिर बोला, “चलो मैं तो ठहरा बाहर का आदमी मगर मीनाक्षी के पास उसके कत्ल की क्या वजह थी?”
“वजह साझा थी” - पनौती दृढ़ स्वर में बोला – “जिस वजह से आपने प्रियम का कत्ल किया हो सकता है, ऐन उसी वजह से मीनाक्षी भी कातिल हो सकती है। बल्कि कोई बड़ी बात नहीं है अगर आप दोनों ने मिलकर प्रियम के कत्ल का षड़यंत्र रचा हो। मीनाक्षी देवी के साथ आपका खास किस्म का रिश्ता अब कोई छिपी हुई बात नहीं रह गया है। कोमल तो खामख्वाह गेहूं के साथ घुन की तरह पिस गई। उसकी गलती महज इतनी थी कि उसने आप दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था। ऐसे में उसकी जुबान बंद करने के लिये आप दोनों ने मिलकर उसके कत्ल की योजना तैयार की, क्योंकि सच्चाई यही है कि प्रियम आप लोगों का टारगेट कभी था ही नहीं। मगर इससे पहले कि आप कोमल को अपने रास्ते से हटा पाते उसने प्रियम को आप दोनों के संबंधों के बारे में सबकुछ बता दिया, कत्ल वाली रात दोनों के बीच तकरार का कारण भी वही बात बनी थी। दोनों के बीच का झगड़ा आपने दरवाजे के पास खड़े होकर सुना होगा, बल्कि ये भी हो सकता है कि दोनों इतनी ऊंची आवाज में लड़-झगड़ रहे हों कि उनकी बातें आपको ड्राईंगरूम में बैठे होने पर सुनाई दे गई हों। नतीजा ये हुआ कि आप दोनों के ही होश फना हो गये। आप आनन-फानन में प्रियम के कमरे के पीछे वाली खिड़की के पास पहुंच गये और उन दोनों की बातें सुनने लगें। बेशक तब तक आपका इरादा प्रियम की हत्या करने का नहीं था, मगर उन हालात में आपके सामने कोमल से भी बड़ा खतरा प्रियम का पैदा हो गया, लिहाजा जिस गोली पर आप कोमल का नाम लिख चुके थे उसे आपने प्रियम के दिल में उतार दिया।”
“मिस्टर होश में बात करो” - यादव गुस्से से बोला – “वरना मैं भूल जाऊंगा कि तुम पुलिस ऑफिसर हो।”
“फिर तो भूल ही जाइये जनाब, क्योंकि मैं पुलिसवाला नहीं हूं।”
यादव ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“फिर कौन हो तुम?”
“एक आम आदमी” - पनौती गर्व से बोला – “जो किसी भी हाल में कोमल शर्मा को बलि का बकरा नहीं बनने देगा।”
“बेशक मत बनने देना, मगर दोबारा अगर तुमने मेरे और मीनाक्षी के संबंधों के बारे में कोई उलटा-सीधा इशारा किया तो मानहानि का ऐसा मुकदमा ठोकूंगा कि झेलते नहीं बनेगा।”
“वह मुकदमा करते वक्त एक तलाक की अर्जी भी डाल दीजियेगा वकील साहब, क्योंकि आप दोनों के रिश्तों की पोल तो मैं खोल कर रहूंगा, लेकिन उस स्थिति में जो हो-हल्ला मचेगा उसके बाद मुझे नहीं लगता कि आप की धर्मपत्नी को आप के साथ रिश्ता बनाये रखना मंजूर होगा, साथ ही समाज में जो किरकिरी होगी सो अलग।”
“लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा?” यादव अचानक ही अपना आपा खो बैठा।
“मैं कैसे भी नहीं मानूंगा, चाहें तो कोशिश कर के देख लीजिये।”
“दफा हो जा यहां से” - वह फुंफकारता हुआ बोला – “और इंस्पेक्टर साहब आप भी सुन लीजिये, अगर ये शख्स अभी और इसी वक्त यहां से बाहर नहीं निकला तो समझ लीजिये कि इसके साथ-साथ आपकी भी खैर नहीं है।”
“खुद को काबू में रखना सीखिये वकील साहब” - सतपाल बड़े ही शांत लहजे में बोला – “क्योंकि आपके चिल्लाने से सच्चाई नहीं बदल जायेगी। इस बाबत अगर आपने कोहराम मचाने की कोशिश की तो आप दोनों की करतूत का गवाह कोई विदेश में नहीं रहता, जो उसे आपके सामने हाजिर ना किया जा सके।”
“तो ये जो कुछ बोल रहा है तुम्हारी शह पर बोल रहा है?”
“ऐसा है तो नहीं मगर आप को लगता है तो यही सही।”
वकील बुरी तरह कसमसाया। वस्तुतः उसे सतपाल से ऐसे किसी जवाब की आशा नहीं थी।
“अब बताइये आपने प्रियम का कत्ल क्यों किया?”
“इसलिए किया क्योंकि मुझे कत्ल करने का दौरा पड़ता है” - वह झल्लाकर बोला – “और कुछ पूछना है तुम्हें?”
“अकेले किया था या उस षड़यंत्र में मीनाक्षी ने आपका साथ दिया था, दिया ही होगा, क्योंकि मकतूल की अलमारी से रिवाल्वर की अदला-बदली के काम को आप खुद अंजाम नहीं दे सकते थे।”
“मुझे इस बारे में अब कोई बात नहीं करनी।”
“आप चाहते हैं कि मैं आपको उठाकर हवालात में डाल दूं?”
“बिना किसी सबूत के तुम्हारी ऐसा करने की मजाल नहीं हो सकती।”
“वकील हैं इसलिए मुझे नहीं लगता कि आपको मेरी मजाल का अंदाजा नहीं होगा, आप चाहते हैं कि मैं आपको अपनी मजाल का जलवा दिखाऊं?”
इस बार यादव से जवाब देते नहीं बन पड़ा।
“फिलहाल मुझे आपकी खामोशी कबूल है वकील साहब, इसलिए हम यहां से जा रहे हैं” - कहता हुआ सतपाल उठ खड़ा हुआ – “वक्त देने का बहुत-बहुत शुक्रिया।”
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐वकील के घर से निकल कर दोनों एक बार फिर से पुलिस जीप में सवार हो गये।
“क्या जरूरत थी?” सतपाल पनौती को घूरता हुआ बोला।
“किसी बात की?”
“उसके सामने ये जताने की कि हमें उसके और मीनाक्षी के संबंधों के बारे में पता था। और जताया क्या था, तूने तो पूरा खाका खींचकर उसमें रंग भर के दिखा दिया उसे।”
“जरूरत थी सतपाल साहब! क्योंकि कत्ल ऐसे माहौल में हुआ है जहां आसानी से कातिल तक नहीं पहुंचा जा सकता, ना ही उसे कातिल साबित करना आसान होगा। उसकी तिलमिलाहट देखी ही थी तुमने, ऐसे में अगर ये कातिल है तो अपने बचाव के लिये कोई ना कोई कदम जरूर उठायेगा, बल्कि सबसे पहले तो यह मीनाक्षी से ही मिलने की कोशिश करेगा।”
“फोन भी तो कर सकता है?”
“उसकी उम्मीद कम है, वकील है ऐसी बातें फोन पर डिस्कस करने के खतरे से बखूबी वाकिफ होगा।”
“चलो मान लिया कि हमारी बातचीत के बाद वह सीधा मीनाक्षी के घर पहुंचेगा, मगर उससे हमारा क्या अला-भला होगा? हम उन दोनों के सिर पर खड़े होकर उनकी बातें तो सुनने में कामयाब नहीं हो जायेंगे?”
“बेशक नहीं होंगे, मगर इस वक्त वह बौखलाया हुआ है, ऐसे में कोई ना कोई गलती जरूर करेगा, जिसका कुछ ना कुछ लाभ तो हमें मिलकर रहेगा, नहीं मिला तो ये सोचकर खुद को तसल्ली दे लेना कि तुक्का तीर न बन सका।”
“यानि हमें यहां रूककर वकील के बाहर निकलने का इंतजार करना चाहिये? ताकि ये मालूम पड़ सके कि वह मीनाक्षी से मिलने जाता है या नहीं?”
“नहीं ऐसा करने की फिलहाल कोई जरूरत दिखाई नहीं देती, इसलिए हम कुछ और करेंगे” - कहकर पनौती ने पूछा – “तुम्हारे पास उस गार्ड का नंबर होगा जो कत्ल वाली रात ड्युटी पर था?”
“हां है, क्यों?”
“उसे फोन कर के पता करो कि इस वक्त वह कहां है?”
सतपाल ने किया। फिर बात हो चुकने के बाद कॉल डिस्कनेक्ट करता हुआ बोला, “बंगले पर ड्युटी दे रहा है।”
“मैंने रात वाले गार्ड के बारे में पता करने को कहा था।”
“मैं भी उसी की बात कर रहा हूं, कहता है आज ही उसकी शिफ्ट चेंज हुई है, इसलिए दिन में उसी की ड्युटी है।”
“ठीक है, अब मकतूल के बंगले पर चलो।”
सतपाल ने तत्काल जीप आगे बढ़ा दी।
जीप अभी वकील के घर वाली गली से बाहर निकली ही थी कि एक स्कोडा गली में दाखिल हुई और सर्र से जीप की बगल से निकल गई।
“मीनाक्षी!” सतपाल बोला।
“कहां?”
“स्कोडा की ड्राइविंग सीट पर, मैंने उसे साफ पहचाना था।”यानि वकील उससे मिलने जाने की बजाये उसे ही यहां बुला बैठा?”
“लगता तो नहीं है, क्योंकि उसका बंगला यहां से कम से कम भी पांच किलोमीटर दूर होगा, इतनी जल्दी वकील की कॉल के जवाब में वह यहां नहीं पहुंच सकती।”
“मिलने तो वकील से ही आई होगी?”
“उम्मीद तो पूरी पूरी है।”
“जीप वापिस मोड़ो।”
“तू तो सच में मेरी नौकरी खाने पर लगा है क्या?”
“ठीक है जीप रोको मैं पैदल चला जाऊंगा।”
“जैसे मैं तुझे जाने दूंगा।” कहकर सतपाल ने जीप को यू टर्न दिया और दोबारा वकील के घर के सामने पहुंच गया। तभी वकील के ऑफिस में घुसती एक औरत पर एक साथ उन दोनों की निगाह पड़ी।
“वकील से ही मिलने आई है” - सतपाल बोला – “यहां जो स्कोडा खड़ी है वह मीनाक्षी शर्मा की ही है।”
“यहीं वेट करो, मैं अभी आया।” कहकर पनौती जीप से उतरा और जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वकील के ऑफिस की तरफ बढ़ गया।
सतपाल के मुंह से आह निकल गयी। उसने जीप को गेट से थोड़ा आगे कर के दीवार के साथ लगाकर खड़ा कर दिया और पनौती के वापिस लौटने का इंतजार करने लगा।
दरवाजे पर दस्तक दिये बिना उसे धकेल कर राज शर्मा वकील के ऑफिस में दाखिल हुआ।
यादव उसे देखकर एकदम से हड़बड़ा सा गया।
“तुम फिर आ गये यहां?” वह अप्रसन्न स्वर में बोला।
“जाहिर है, मगर आप इतने हैरान क्यों हो रहे हैं” - कहकर उसने चौंकने की लाजवाब एक्टिंग की – “अरे ये तो मीनाक्षी मैडम हैं।”
अपना नाम सुनकर मीनाक्षी एकदम से हड़बड़ा सी गई।
“बड़ी तेजी दिखाई वकील साहब आपने, जबकि हमें यहां से निकले मुश्किल से पांच मिनट ही गुजरे होंगे। इतनी जल्दी आपने मैडम को फोन भी कर दिया और ये यहां पहुंच भी गईं?”
“मतलब की बात करो।” यादव गुस्से से बोला।
“मतलब की बात ये है वकील साहब कि पिछले फेरे में मैं आपसे ये पूछना भूल गया था कि गोली चलने के बाद प्रियम के कमरे में पहुंचकर आप वहां पड़ी निर्दोष रिवाल्वर से अपने पास मौजूद प्रियम की रिवाल्वर - जो कि आला-ए-कत्ल थी - को बदलने में कैसे कामयाब हो गये, किसी की नजर क्यों नहीं पड़ी आप पर?”
“होश में आ जा छोकरे, मेरे सब्र का इम्तिहान लेने की कोशिश मत कर।”
“बिल्कुल नहीं करूंगा वकील साहब, क्योंकि मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि ऐसे किसी एग्जाम में आपका फेल हो जाना निश्चित है, अब बरायमेहरबानी मेरे सवाल का जवाब दे कर दिखाइये।”
यादव तिलमिलाकर अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और पनौती की तरफ झपटा, तभी उसके पीछे मौजूद फाइलिंग कैबिनेट के ऊपर रखा बड़ा सा ग्लोब जाने कैसे उसके सिर पर आ गिरा। ग्लोब ज्यादा भारी नहीं था इसलिए यादव को चोट तो नहीं आई मगर जाने क्या सोचकर उसने पनौती की तरफ बढ़ने का विचार जहन से निकाल दिया और पीछे देखे बिना अपनी रिवाल्विंग चेयर पर बैठने का उपक्रम किया, मगर कुर्सी अपनी जगह से थोड़ा पीछे खिसक गयी थी, नतीजा ये हुआ कि धम्म से उसपर बैठने की कोशिश में यादव बुरी तरह फर्श पर गिरा, गिरते वक्त उसकी पीठ कुर्सी के अगले हिस्से से टकराई तो कुर्सी थोड़ी और पीछे खिसक गयी, नतीजा ये हुआ कि यादव का सिर जोर से कुर्सी के पहिये वाले पाये से टकराया। उसके मुंह से चीख निकल गयी।मीनाक्षी ने वह नजारा देखा तो हड़बड़ाकर अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, मगर यादव को किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ी, कुछ क्षण बाद वह अपने सिर का पिछला हिस्सा सहलाता वापिस कुर्सी पर बैठ गया।
“क्या हुआ” - मीनाक्षी बड़े प्यार से बोली – “गिर कैसे गये?”
“पता नहीं क्या हुआ था” - वह भुनभुनाया – “सिर दर्द बन कर रह गया है ये आदमी।”
“आप मुझे कोस रहे हैं” - पनौती हैरानी से बोला – “जबकि मैं आप से इतनी दूर खड़ा हूं कि चाहकर भी आपकी कुर्सी को पीछे नहीं धकेल सकता। फुटबाल तो आप खुद अपनी कोताही के कारण बन गये।”
“शटअप” - वकील जोर से चीखा – “दफा हो जा यहां से।”
“वक्त की तो बेशक मेरे पास कमी है वकील साहब, मगर जब यहां खड़ा ही हूं तो आप मेरे सवाल का जवाब क्यों नहीं दे डालते, उसके बाद मैं एक सेकेंड भी यहां नहीं रूकूंगा।”
“सुनो” - मीनाक्षी ने कुर्सी घुमाकर अपना रूख राज की तरफ कर लिया – “क्या नाम है तुम्हारा?”
पनौती ने एक नजर में उसका नख-शिख मुआयना कर डाला। चालीस की तो वह कहीं से नहीं लगती थी। ऊपर से इस वक्त वह ब्लू कलर की जींस और उससे मैच करता स्लीवलेस टॉप पहने थी, जिसमें उसका भरा-भरा बदन एकदम कसा हुआ सा जान पड़ता था। चेहरा लंबा और नाक एकदम सुंतवा थी, होंठों पर वह चटक लाल लिपस्टिक लगाये हुए थी, आंखे बड़ी-बड़ी और चमकीली थीं, गर्दन लंबी थी जबकि बाल कंधे से बस जरा ही नीचे तक पहुंच रहे थे। उसे देखकर ये कह पाना मुहाल था कि वह दो शादीशुदा बेटों की मां थी।
“जी राज शर्मा।” प्रत्यक्षतः वह बोला।
“तुम आराम से बैठ क्यों नहीं जाते?”
“शुक्रिया।” पनौती उसके ऐन बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।
मीनाक्षी ने गहरी निगाहों से उसका जायजा लिया, कुछ देर तक मन ही मन उसे तौलती रही, फिर बोली, “करते क्या हो तुम?”
“जी आजकल तो बेरोजगार हूं।”
“पहले क्या करते थे?”
“पहले भी बेरोजगार था, लेकिन उससे पहले स्टूडेंट हुआ करता था।”
“शक्लो-सूरत से बहुत काबिल जान पड़ते हो कोई काम-धाम क्यों नहीं करते, बेरोजगारी की जिंदगी भी भला कोई जिंदगी है।”
“क्या करूं मैडम मेरी शक्ल ही बस ऐसी है, सामने वाला अक्सर धोखा खाकर मुझे काबिल समझ लेता है, वरना दिमाग नाम की कोई चीज मेरे भीतर नहीं है, ऐसा मेरी मां कहती है।”
मीनाक्षी ने पल भर को हैरानी से उसकी तरफ देखा फिर बोली, “नौकरी करना चाहते हो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं।”
“शुक्रिया, लेकिन मैं किसी का नौकर नहीं बनना चाहता” - कहते हुए पनौती ने सीधा उसकी आंखों में झांका – “बल्कि मालिक बनना चाहता हूं, किसी आप जैसी खूबसरत, दौलतमंद और रूतबे वाली लेडी का, मगर अफसोस की फिलहाल कोई वैकेंसी नहीं दिखाई देती।”वैकेंसी का क्या है भई” - बुरा मानने की बजाये मीनाक्षी खिलखिलाती हुई बोली – “अक्सर लोग आते जाते रहते हैं, जिससे वैकेंसी निकल आना कोई बड़ी बात नहीं होती। तुम अप्लीकेशन लगाना चाहते हो, तो कल रात ठीक साढ़े आठ बजे बंगले पर पहुंच जाना।”
“जरूर पहुंचूंगा मैडम” - पनौती खुशी से उछलता हुआ बोला – “आपका बहुत बहुत शुक्रिया! अब बेशक आप वकील साहब के साथ अपनी गुफ्तगूं जारी रख सकती हैं, बंदा चला, कल ठीक साढ़े आठ बजे मैं आपके बंगले पर पहुंच जाऊंगा।”
कहकर वह फौरन वहां से बाहर निकल आया। उसके जीप में सवार होते ही सतपाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
“क्या हासिल हुआ?”
“बहुत कुछ, सबसे अहम बात तो ये है कि मैं मीनाक्षी के मर्दमार चेहरे का नजारा कर आया, जो कि बंगले में मुलाकात हुई होती तो शायद ही हो पाता क्योंकि तब वह इतनी सजी-धजी नहीं दिखाई दे रही होती, कि मैं उसपर लट्टू हो जाता।”
“अरे भाई वकील का तो कुछ लिहाज कर” - सतपाल हंसता हुआ बोला – “क्यों उसके सपनों की रानी को उससे छीनने पर तुला हुआ है?”
“मोहब्बत में कोई लिहाज नहीं चलता सतपाल साहब तुमने महाभारत के जमाने की वह कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘एवरी थिंग इज फेयर इन लव ऐंड वार’ फिर उसने क्या सोल ऑनरशिप का कोई एग्रीमेंट करवा रखा है, जो मीनाक्षी मैडम के दिल में किसी और के बस जाने की मनाही हो।”
सतपाल की फिर से हंसी छूट गई, “भाई वह चालीस साल की है, और कुछ नहीं तो अपनी उम्र का ही लिहाज कर।”
“ऐसे मौके बार-बार नहीं आते, कुंवारी कन्यायें भले ही मिल जायें, मगर मीनाक्षी जैसी धनाढय विधवा कहां से खोज पाऊंगा मैं, तुम देखना उसके पुराने बंगले को तुड़वाकर मैं कैसा आलिशान बंगला बनवाता हूं वहां।”
“क्या कहने तेरे, पहली मुलाकात में ही उसका बंगला तुड़वाने की बात करने लगा, मुझे डर है दूसरी तीसरी मुलाकात में कहीं तू उसी को दुनिया से विदा करने की बात न कहने लगे ताकि उसकी दौलत पर तेरा फुल कब्जा बन सके।”
“बकवास मत करो, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि गैरकानूनी काम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं।”
“अच्छा मेरा कहा बकवास हो गया और जो कुछ तू अभी अभी बक कर हटा है उसे क्या कहते हैं?”
“उसने मुझे कल रात साढे आठ बजे बंगले पर बुलाया है।” पनौती उसकी बात को अनसुना करता हुआ बोला।
“किसलिये?” सतपाल हैरान सा हो उठा।
“यही तो देखना है सतपाल साहब, प्रत्यक्षतः तो वह मुझे खुला ऑफर देती महसूस हुई थी, सुनकर वकील साहब तो कुढ़ कर ही रह गये थे, मगर मीनाक्षी के सामने यूं भीगी बिल्ली बने बैठे थे कि उनसे कुछ कहते नहीं बना।”
“किस बात का ऑफर भई, तुझे अपने दिल में बसा लेने का?”
“है तो कुछ ऐसा ही।”शर्मा साहब बचकर रहना उस औरत से” - सतपाल एकदम से संजीदा होता हुआ बोला – “पता नहीं किस फिराक में है।”
“जैसे मैं कोई मेमना हूं जो उसकी खुराक बन जाऊंगा।”
“तेरी मर्जी भाई” - सतपाल लंबी सांस लेता हुआ बोला – “तू अभी भी चाहता है कि हम उसके बंगले पर चलें?”
“बेशक चाहता हूं।”
दस मिनट की ड्राइविंग के बाद सतपाल ने मीनाक्षी शर्मा के बंगले के सामने जीप रोकी और उतर कर दोनों वॉचमैन के पास पहुंचे।
“नाम क्या बताया था तुमने अपना?” सतपाल ने पूछा।
“जी प्रफुल्ल सिंह।” गार्ड बोला।
सतपाल ने पनौती की तरफ देखा।
“प्रियम साहब के कत्ल वाली रात ड्युटी पर तुम्हीं थे।” उसका मंतव्य समझ कर पनौती ने सवाल किया।
“जी साहब मैं ही था।”
“फिर तो तुमने गोली चलने की आवाज भी सुनी होगी?”
“जी सुनी थी, बहुत जोर से धांय की आवाज हुई थी, लेकिन तब हमने यही समझा कि किसी गाड़ी का टायर फट गया था। इसलिए हमने बंगले के भीतर जाकर माजरा जानने की कोशिश नहीं की।”
“संजीव चौहान साहब को पहचानते हो?”
“जी पहचानता हूं।”
“गुड! अब जरा याद कर के बताओ कि कत्ल वाली रात जब संजीव साहब यहां पहुंचे थे, तो उनके बंगले में दाखिल हो चुकने के कितनी देर बाद गोली की आवाज तुम्हें सुनाई पड़ी थी?”
“साहब ठीक ठीक तो याद नहीं है, मगर उनके भीतर दाखिल हो चुकने के बाद हम दरवाजे को दोबारा बंद कर के अपने केबिन में पहुंचे, तभी मोबाइल पर एक दोस्त की कॉल आ गई, हम उससे बात कर ही रहे थे जब वह धमाका हमें सुनाई दिया। सुनकर हमने बाद में बात करने को कहकर कॉल काट दिया और केबिन से बाहर निकल कर ये जानने की कोशिश करने लगे कि वह आवाज कैसी थी।”
“जरा अपना मोबाइल दिखाओ।” पनौती बोला।
जवाब में गार्ड ने जेब से मोबाइल निकाल कर उसे थमा दिया। तब पनौती ने उसके मोबाइल की अठारह तारीख की रात पौने नौ बजे के आस-पास की कॉल डिटेल्स देखनी शुरू की।
उस दौरान बस एक ही कॉल अटैंड की गई थी, जो कि आठ पचपन पर आई थी, इस लिहाज से देखा जाता तो संजीव चौहान आठ तिरपन या आठ चौवन पर बंगले के अहाते में पहुंच चुका होगा। आगे सिगरेट खत्म करने में उसे मुश्किल से डेढ़ या दो मिनट लगे होंगे, यानि हर हाल में उसे गोली चलने तक भीतर पहुंच जान चाहिये था मगर पहुंचा वह नौ बजे के बाद था। ये बात उसके बयान से मैच भी करती थी, मगर सवाल ये था कि बंगले के अहाते में दाखिल होने के बाद अगले सात-आठ मिनटों तक वह क्या करता रहा था? सिगरेट पीने में इतना वक्त लगना मुमकिन नहीं जान पड़ता था।
“गोली चलने से पहले या बाद में” - प्रत्यक्षतः वह बोला – “तुम्हें बंगले के आस-पास कोई भटकता दिखाई दिया था, या बाहर कुछ ऐसा घटित हुआ हो जिसकी वजह से तुम्हारा ध्यान कुछ देर के लिये बंगले की तरफ से भटक गया हो, या थोड़ी देर के लिये तुम कहीं धार-वार मारने निकल गये हो?”
“अंधेरा घिरने के बाद की तो हम गारंटी कर सकते हैं साहब, क्योंकि उसके बाद एक पल के लिये भी हमारा ध्यान इधर से नहीं हटा था। ऐसे में कोई दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ होता तो हमारी नजर उसपर जरूर पड़ी होती।”
“संजीव साहब से पहले तुमने आखिरी बार दरवाजा कब खोला था?”
“एक घंटा पहले, तब वकील साहब यहां आये थे।”
“और उससे पहले?”
“अनुराग साहब के लिये जो कि शाम सात बजे के करीब घर लौटे थे।”
“उस रोज प्रियम साहब ऑफिस से कब लौटे थे?”
“नहीं लौटे थे, उनकी तबियत कुछ खराब थी जिसके कारण उस दिन वह ऑफिस गये ही नहीं थे। अनुराग साहब भी दोपहर बाद यहां से निकले थे और आम दिनें की अपेक्षा जल्दी ही वापिस लौट आये थे।”
“कितनी जल्दी?”
“बताया तो था साहब, कत्ल वाले रोज वह शाम सात बजे ही वापिस आ गये थे, जब कि रात नौ या दस बजे से पहले शायद ही कभी बंगले पर वापिस लौटे हों।”
“लौटे ऑफिस से ही थे?”र अपने बाप से पूछ’ इतना बोलकर चली गई थी।”
“उसकी जगह किसी और को नहीं रखा गया यहां?”
“अभी तो नहीं रखा गया, लेकिन मेम साहब तलाश में जरूर लगी हुई हैं, मुझसे भी कह रखा है कि कोई काम मांगने आये तो मैं उसे दरवाजे से ही भगा न दूं।”
“नाम क्या था उसका?”
“नैना।”
“पता ठिकाना मालूम है तुम्हें?”
“पता तो नहीं मालूम साहब, मगर उसका मोबाइल नंबर हमारी डायरी में जरूर होगा।”
“देखकर नंबर बताओ हमें।”
गार्ड फौरन उस काम में लग गया।थोड़ी देर तक वह डायरी के पन्ने पलटता रहा फिर एक नंबर उन्हें नोट करवा दिया।
तत्पश्चात दोनों एक बार फिर से पुलिस जीप में सवार हो गये।
“क्या हासिल हुआ?” सतपाल ने पूछा।
“नैना का नंबर” - कहकर उसने गार्ड से हासिल नंबर पर कॉल लगाई, फिर संपर्क होने पर पूछा – “नैना जी बोल रही हैं?”
“जी हां, आप कौन?”
“प्रियम शर्मा के कत्ल की खबर तो लग ही गई होगी तुम्हें?”
“अरे आप बोल कौन रहे हैं?”
“उसी सिलसिले में पुलिस तुमसे कुछ पूछताछ करना चाहती है।” पनौती उसकी बात को नजरअंदाज कर के बोला।
“मुझसे क्यों? मैंने तो कत्ल से पहले ही वहां से नौकरी छोड़ दी थी।”
“पूछताछ तो फिर भी करनी पड़ेगी मैडम, अब बताओ मुलाकात कैसे होगी तुमसे? हम लोग तुम्हारे घर आयें या तुम खुद थाने आना चाहोगी?”
“घर मत आना साहब जी, वरना मोहल्ले वाले बातें बनायेंगे।”
“घबराओ मत सिर्फ एक आदमी तुम्हारे घर पहुंचेगा, वह भी बिना वर्दी के, या फिर तुम सेक्टर इक्कीस के थाने पहुंचकर इंस्पेक्टर सतपाल सिंह के बारे में पूछना।”
“आप घर पर ही आ जाइये” - वह जल्दी से बोली – “मगर भगवान के लिये वर्दी पहन कर मत आना साहब, वरना मोहल्ले में मेरा जीना हराम हो जायेगा।”
“बेफिक्र रहो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुमसे मिलने पुलिस वहां पहुंची थी। अब अपना पता समझाओ मुझे, इस वक्त मैं प्रियम शर्मा के बंगले पर हूं।”
जवाब में नैना ने उसे पास के ही एक गांव का पता बताते हुए अच्छी तरह से रास्ता समझा दिया।
पनौती ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
“तू अकेला वहां जायेगा?” सतपाल बोला।
“बेशक जाऊंगा, उसका कहना सही है, पुलिस के पहुंचने पर लोग-बाग उसके बारे में बातें बनाना शुरू कर देंगे।”
“जैसे पुलिस के लिये उसकी बात मानना जरूरी है, बातें बनती हो तो बनें, मैं क्या कर सकता हूं।”
राज ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?”
“ऐसी हिम्मत तुम किसी रसूख वाले शख्स के घर पर पहुंच कर क्यों नहीं दिखाते सतपाल साहब, वहां तो यूं तुम्हारी घिग्घी बंध जाती है कि मुझे कहते हुए भी शर्म आती है। बस यस सर, ओके सर, राईट अवे सर! जैसे अल्फाज ही निकल पाते हैं तुम्हारे हलक से, जैसे जुबान की सुई बस वहीं अटक कर रह गई हो।”
सतपाल तिलमिलाकर उठा, मगर पनौती की बात का जवाब देते नहीं बना उससे।
वह आबिद पुर नाम का एक छोटा सा गांव था - बल्कि गांव की बजाये उसे छोटी सी कॉलोनी कहना ज्यादा उचित होगा - जो मीनाक्षी के बंगले से महज दो किलोमीटर दूर था। पनौती गांव के बाहर ही जीप से उतर गया। थोड़ा आगे जाकर उसने जिस पहले शख्स से नैना का पता पूछा उसने बातरतीब उसे एड्रेस समझा दिया।
घर के सामने पहुंचकर पनौती ने खुले दरवाजे पर दस्तक दी तो एक तीस-बत्तीस साल की युवती गोद में बच्चा लिये दरवाजे पर प्रकट हुई।
“नैना।”
“जी मैं ही हूं, भीतर आ जाइये।”
उसने पनौती के आगे एक स्टूल रख दिया, मगर खुद बैठने की कोशिश नहीं की।
“मैंने कई दिन पहले ही वहां से नौकरी छोड़ दी थी साहब।” उसने जैसे सफाई देने की कोशिश की।
“मुझे मालूम है, मैं बस तुमसे कुछ सवाल करना चाहता हूं, इसलिए तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है। बड़ी हद पांच मिनट में मैं यहां से चला जाऊंगा।”
“पूछिये क्या पूछना चाहते हैं?”
“कब से काम कर रही थीं तुम वहां?”
“छह महीने से ऊपर हो गये थे।”
“फिर तो उस घर के लोगों के बारे में काफी कुछ जानती होगी?”
“जी जानती हूं।”सबसे पहले मीनाक्षी मैडम के बारे में ही बताओ, सुनने में आया है कि एडवोकेट ब्रजेश यादव के साथ उनका कोई खास ही रिश्ता था?”
“जी आपने एकदम सही सुना है, दोनों में मियां-बीवी जैसे ताल्लुकात थे।”
“दोनों बेटों को ऐतराज नहीं था उस बात से?”
“मेरे ख्याल से तो उन्हें पता ही नहीं था।”
“और घर की औरतों के बारे में क्या कहती हो? क्या उन्हें उस बात की जानकारी रही हो सकती है?”
“कोमल मैडम तो अभी हाल ही में ब्याह कर लाई गई थीं, इसलिए हो सकता है उन्हें खबर ना हो मगर कल्पना मैडम को सब पता था।”
“उन्होंने क्या अपने शौहर को उस बारे में नहीं बताया होगा?”
“नहीं ही बताया होगा, क्योंकि उस बात को ले कर घर में कभी कहा सुनी होते तो नहीं देखा मैंने।”
“मियां बीवी के बीच बनती कैसी थी?”
“कोमल मैडम और प्रियम साहब के बीच?”
“हां।”
“अच्छी बनती थी, हालांकि उनको बंगले में रहते कोई ज्यादा वक्त तो नहीं गुजरा था, फिर उन दोनों को देखकर यही लगता था कि उनके बीच सबकुछ एकदम नॉर्मल था।”
“और बड़े भाई के बारे में क्या कहती हो? बीवी के साथ उसके कैसे संबंध थे? क्या वो दोनों भी कोमल और प्रियम की तरह आईडियल हस्बैंड वाईफ थे?”
“लड़ाई झगड़ा तो उनके बीच भी कभी होते नहीं देखा मैंने, मगर छोटे साहब और कोमल मैम साहब की तरह प्यार नहीं दिखता था दोनों के बीच।”
“इसकी वजह ये भी तो हो सकती है कि दोनों की शादी हुए कई साल बीत चुके हैं? ऐसे में रिश्तों में शुरू-शुरू की अपेक्षा कुछ ठंडापन तो आ ही जाता है।”
“हां ये वजह भी हो सकती है।”
“अनुराग का स्वभाव कैसा लगता था तुम्हें?”
“अच्छा तो मैं नहीं कह सकती, हर वक्त घर में काम करती औरतों को घूरते से जान पड़ते थे। पता नहीं मेरी आंखों का धोखा था या सच में वैसा ही हुआ था, मगर एक बार मैंने उन्हें कोमल मैम साहब के गले के भीतर झांकते भी देखा था।”
“कहां उनके सामने खड़े होकर?”
“नहीं उस वक्त कोमल मैडम झुककर सैंडिल पहन रही थीं, तभी इत्तेफाक से मेरी निगाह अनुराग साहब पर पड़ गई, वह यूं दीदे फाड़कर उनके गले में झांक रहे थे कि अगर कोमल मैम साहब ने देख लिया होता तो उन्हें माजरा भांपने में एक सेकेंड भी नहीं लगा होता।”
“इसके अलावा कुछ और जो उनके लम्पट स्वभाव को जाहिर करता हो?”
“एक रोज अकेले में मेरा हाथ पकड़ कर उसने जबरन मुझे अपनी बाहों में भर लिया, तब घर में इत्तेफाक से नौकरों के अलावा और कोई नहीं था, उन्होंने कॉफी के बहाने मुझे ऊपर बुलाया और कमरे में दाखिल होते ही वह हरकत कर बैठे, मैंने उन्हें धक्का दे कर जबरन अपना हाथ छुड़ाया और उसी वक्त मैंने वहां से नौकरी छोड़ दी। घर पहुंचकर जब मैंने अपने पति को वह बात बताई तो सुनकर इतने आगबबूला हुए कि उसी वक्त अनुराग को सबक सिखाने की बात करने लगे, मैंने जैसे तैसे उनके गुस्से को शांत किया, वरना दोनों के बीच फौजदारी होकर रहनी थी। जिसमें आखिरकार तो हमारा ही नुकसान होना था।”
“करते क्या हैं तुम्हारे शौहर?”
“ड्राइविंग करते हैं, पहले मीनाक्षी की कार चलाया करते थे, बाद में वहां से नौकरी छोड़कर उन्होंने पास में एक दूसरे बंगले में नौकरी पकड़ ली थी। तब से वहीं काम करते हैं।”
“अनुराग की उस रोज की गंदी हरकत के बारे में तुम्हें कल्पना या मीनाक्षी मैडम को बताना चाहिये था।”
“कोई फायदा नहीं होता, दोनों मुझे ही दोष देने लग जाते।”
“पता तो होगा ही तुम्हें कि प्रियम के कत्ल के इल्जाम में कोमल जेल में है?”
“जी हां टीवी पर न्यूज में देखा था।”
“क्या लगता है वह कातिल हो सकती है?”
“होंगी तभी तो आप लोगों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है, मगर हैरानी जरूर हो रही है मुझे कि उन्होंने ऐसा कांड कर डाला है।”
“संजीव चौहान को जानती हो?”
“हां छोटे साहब के दोस्त हैं।”
“अनुराग का कहना है कि वह अक्सर कोमल से मिलने बंगले पर चला आता था और घंटों उसके साथ बैठा बातें करता रहता था।”
“आते तो वह प्रियम साहब से ही मिलने थे, मगर उनके ना होने पर कोमल मैडम के साथ भी उनकी बातचीत हो जाती थी। क्योंकि तीनों ही एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे।”
“उन दोनों के बीच कभी कुछ अजीब दिखाई दिया तुम्हें?”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं था, दोनों जब भी बात करते थे, ड्राईंग रूम में बैठकर करते थे, संजीव साहब को कोमल मैडम के कमरे में कदम रखते मैंने कभी नहीं देखा।”
“अब जरा सोच विचार कर एक सवाल का जवाब दो।”
“पूछिये।”मान लो प्रियम का कत्ल कोमल ने नहीं किया है, ऐसे में कातिल कौन हो सकता है?”
“ये मैं कैसे बता सकती हूं?”
“कोई अंदाजा ही बयान कर दो, कोई ऐसी बात ही बता दो जो प्रियम के कत्ल की वजह बन सकती हो, भले ही असल में वैसा ना हुआ हो।”
“उनके बंगले के बाद दो बंगला छोड़कर तीसरे बंगले में निरंजन राजपूत नाम का एक आदमी रहता है। मेरे शौहर उसी की गाड़ी चलाते हैं आजकल। बहुत दबदबे वाला है, बहुत ऊंची पहुंच है उसकी। एक बार बंगले के सामने से गुजरते वक्त नशे में उसने गेट के बाहर खड़ी प्रियम साहब की कार को टक्कर मार दी थी। तब दोनों के बीच बहुत बहस हुई, मामला पुलिस तक भी पहुंचा, उसके बाद क्या हुआ ये मैं नहीं जानती। मगर वह बहुत घमंडी इंसान है, साफ-साफ गुंडा मवाली जान पड़ता है। बस एक वही घटना है जिसके बारे में मुझे मालूम है, हालांकि मैं नहीं समझती कि मामूली से झगड़े को लेकर कोई किसी की जान ले सकता है, वह भी झगड़ा खत्म हो चुकने के महीनों बाद।”
“निरंजन राजपूत” - पनौती ने दोहराया – “उसका हुलिया बयान कर सकती हो, मेरा मतलब है वह कैसा दिखता है?”
नैना ने तफसील से यूं उसकी सूरत बयान की कि राज को यकीन आ गया, वह वही शख्स था जिसके साथ पिछले रोज बीच सड़क पर उसकी झड़प हुई थी। ऐसे फसादी आदमी का प्रियम के साथ रंजिश निकल आना कोई आम बात नहीं कही जा सकती थी।
“इसी तरह की और कोई खास बात जो तुम बताना चाहो?”
“नहीं और कुछ मैं नहीं जानती” - नैना बोली – “बस एक रिक्वेस्ट है आपसे, अगर आप निरंजन राजपूत से मिलें तो उसे ये हरगिज भी मत बताइयेगा कि उसके बारे में आपको मैंने बताया है, वरना वह मेरा जीना हराम कर देगा, जान से मार दे तो भी कोई बड़ी बात नहीं होगी। ऊपर से मेरे शौहर को भी वह बात पसंद नहीं आने वाली।”
“इतनी अंधेरगर्दी तो खैर नहीं मची है मैडम, मगर फिर भी मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा नाम किसी भी तरह से सामने नहीं आयेगा।”
“शुक्रिया साहब।” कहकर नैना ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये।
राज शर्मा उठकर वहां से बाहर निकल आया।
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