22 जुलाई 2021
थाने पहुंचकर सतपाल ने सबसे पहला काम ये किया कि बीते रोज की अनुराग शर्मा के मोबाइल लोकेशन की जानकारी हासिल की। पता चला कि ऑफिस से वह साढ़े आठ बजे निकल गया था, मगर कुछ दूर जाने के बाद उसकी लोकेशन गायब हो गई थी, फिर सवा नौ बजे के करीब उसकी लोकेशन बंगले से करीब पांच किलोमीटर दूर दिखाई दी, यह वही वक्त था जब उसने बीवी के एक्सीडेंट की बाबत प्रियम की कॉल अटैंड की थी।
उस बात पर जब गहाराई से विचार किया गया तो ये संभावना दिखाई देने लगी कि ऑफिस से थोड़ी दूर जाकर उसने अपना मोबाइल ऑफ कर दिया था, जिसकी वजह से लोकेशन गायब हो गई। नौ बजे से कुछ पहले वह बाउंड्री वॉल फांदकर अपने बंगले में घुसा और फायर इस्केप की सीढ़ियों के रास्ते छत पर पहुंच गया, जहां अपनी रूटीन के मुताबिक ठीक नौ बजे कल्पना ने कदम रखा तो उसने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसे छत से नीचे फेंकने के बाद वह उसी रास्ते अपनी कार तक पहुंचा, और घर से थोड़ी दूर जाकर मोबाइल ऑन कर दिया। हत्या के बाद डेडबॉडी को छत से नीचे फेंकना इस बात को जाहिर करता था कि वह अपनी बीवी से नफरत करता था, जिसकी वजह कल्पना और प्रियम के बीच चले आ रहे अफेयर के अलावा और कुछ नहीं हो सकता था।
सबसे बड़ी बात ये थी कि घर में वह इकलौता ऐसा शख्स था जिसके पास भाई और बीवी दोनों के कत्ल की पर्याप्त वजह थी। प्रियम की अलमारी में मौजूद पिस्तौल को बदल देने का मौका भी उसे सहज ही हासिल हुआ हो सकता था। अलबत्ता ये बात अभी भी पुलिस की समझ से परे थी कि उसने रिवाल्वर की अदला-बदली को अंजाम देना क्यों जरूरी समझा? क्योंकि एडवांस उसे इस बात की खबर नहीं हो सकती थी कि किसी रोज प्रियम पर गुस्सा होकर कोमल अलमारी से रिवाल्वर निकालकर उसपर तान ही देगी। उस बात का जवाब सिर्फ और सिर्फ अनुराग शर्मा ही दे सकता था।
ग्यारह बजे के करीब अनुराग शर्मा को उसके बाटा चौक स्थित ऑफिस से हिरासत में ले लिया। उसने बहुत हाय तौबा मचाई, बार-बार अपनी बेगुनाही की दुहाई देता रहा मगर पुलिस ने उसकी एक न सुनी।
थाने पहुंचकर उसे हवालात में डाल दिया गया।
पुलिस के पास उसके खिलाफ कोई अकाट्य सबूत भले ही कोई भी नहीं था मगर परिस्थितिजन्य सबूतों की भरमार दिखाई दे रही थी।
साढ़े ग्यारह बजे सतपाल ने इनटेरोगेशन रूम में कदम रखा। अनुराग को उसने कुर्सी पर दोनों हाथों से सिर पकड़कर बैठा पाया।
“गुनाह करने से पहले सोचना चाहिये था” - वह एक कुर्सी घसीट कर उसके सामने बैठता हुआ बोला – “अब पछताने से क्या फायदा?”
अनुराग ने तमक कर सिर उठाया, फिर गुस्से से बोला, “मैंने कुछ नहीं किया है, तुम लोग लाख कोशिश कर लो, लेकिन मुझे कातिल साबित नहीं कर पाओगे।”
“देखेंगे।” सिगरेट सुलगाने का उपक्रम करता सतपाल लापरवाही से बोला।
“मेरा मोबाइल मेरे हवाले करो।”
“जब तक आपसे पूछताछ मुकम्मल नहीं हो जाती, मोबाइल को तो आप भूल ही जाइए जनाब, बल्कि मैं तो यही कहूंगा कि मोबाइल के बिना रहने की आदत डाल लीजिये क्योंकि आपकी बाकी की उम्र बिना मोबाइल के ही कटने वाली है।”
“डीसीपी से बात कराओ मेरी।”
“करा देंगे, उन्हें आपकी गिरफ्तारी की खबर दी जा चुकी है, बस पहुंचते ही होंगे, तब तक आप बराय मेहरबानी बिना किसी ना-नुकर के मेरे सवालों का जवाब दीजिये, वरना हलक में हाथ डालकर अपने मतलब की जानकारी उगलवाना, पुलिस से बेहतर शायद ही किसी को आता होगा।”
“तुम मुझे टॉर्चर की धमकी दे रहे हो?”
“और क्या लोरी गाकर सुना रहा हूं।”
अनुराग ने एक बार आग्नेय नेत्रों से उसे घूरकर देखा फिर धीरे से बोला, “पूछो क्या जानना चाहते हो?”
“प्रियम का कत्ल क्यों किया आपने?”
“मैंने नहीं किया।”
“बीवी को क्यों मारा?”
“मैंने नहीं मारा।”
“प्रियम की रिवाल्वर बदलने की जरूरत क्यों पड़ी आपको?”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
“अगर आप की नीयत में खोट नहीं था तो कल्पना के कत्ल वाली रात ऑफिस से निकलने के बाद आपने अपना मोबाइल क्यों ऑफ कर लिया था?”
“मैंने जानबूझकर ऑफ नहीं किया था, बल्कि किया ही नहीं था, बेध्यानी में मोबाइल फ्लाईट मोड पर चला गया था। जिसकी खबर बहुत देर से लगी थी मुझे।”
“भाई और बीवी को क्यों मारा आपने?”
“तुम पागल तो नहीं हो गये हो, क्यों एक ही सवाल बार-बार रिपीट कर रहे हो?”
“प्रियम की अलमारी में रखी रिवाल्वर क्यों बदली आपने?” सतपाल ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं।
“और कितनी बार कहना पड़ेगा कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था।”आपको क्योंकर पता था कि झगड़े के दौरान कोमल अलमारी से रिवाल्वर निकाल कर प्रियम पर तान देगी?”
“नहीं पता था, पता हो भी नहीं सकता था, इसलिए यकीन करो मैंने दोनों में से किसी का कत्ल नहीं किया, कोई वजह नहीं थी मेरे पास। मैं अपनी बीवी से मोहब्बत करता था, भाई से भी उतनी ही मोहब्बत थी मुझे।”
“कत्ल से पहले बीवी के तन से जेवर क्यों उतारे आपने?”
“मैंने नहीं उतारा, कोई जरूरत नहीं थी।”
“आपका मतलब है, गला घोंट चुकने के बाद जब आप ने बीवी की लाश को छत से नीचे फेंका था, उस वक्त कल्पना के तन पर जेवर मौजूद थे?”
“मुझे बहलाने की कोशिश मत करो, मुझे नहीं पता कि उसकी हत्या किसने की और क्यों उसके जेवर उतारे?”
तभी किसी ने दरवाजा नॉक किया।
“कमिंग।” सतपाल उच्च स्वर में बोला।
दरवाजे पर राज शर्मा खड़ा था।
“आ जा भाई, दरवाजा बंद कर दे।”
“मैं बाहर वेट कर सकता हूं।”
“कोई जरूरत नहीं आ जा।”
दरवाजे को चौखट के साथ लगाने के बाद पनौती सतपाल से थोड़ी दूरी पर मौजूद एक कुर्सी पर बैठ गया।
“यहां आ जा मेरे पास।”
पनौती उसके करीब खिसक आया।
“ये साहब कहते हैं कि इन्होंने कुछ नहीं किया, और तेरी गांधीगिरी वाली स्टाईल से पूछताछ करने पर तो ये अपनी जुबान खोलते दिखाई नहीं दे रहे।”
“कैसी बात करते हो इंस्पेक्टर साहब! अनुराग जी रसूख वाले आदमी हैं, पढ़े लिखे भी हैं, प्यार से अपनेपन से पूछो, सब बता देंगे।”
“नहीं बताते, जुबान खोलने को राजी नहीं हैं।”
“होता है, कानून का भय अक्सर मुलजिमों की जुबान पर ताला लगा देता है, मगर आखिरकार तो हर किसी को अपनी गलती का एहसास होना ही होता है, होकर रहता है, क्यों अनुराग साहब ठीक कहा न मैंने?”
“बेशक ठीक कहा होगा, मगर मैं कातिल नहीं हूं। तुम दोनों चाहकर भी मुझसे ये नहीं कहलवा पाओगे कि प्रियम और कल्पना का कत्ल मैंने किया है।”
“क्या कह रहे हैं आप, किसने कहा कि आप कातिल हैं?” -पनौती बोला – “उल्टा हम आपको ऐसा खुद्दार इंसान समझते हैं जो अपनी आन-बान और शान के लिये कुछ भी कर सकता है, करना ही चाहिये। सच पूछिये तो आपकी जगह कोई भी होता उसका खून खौलना ही था, बीवी को पराये मर्द की बाहों में देखकर जिसकी मर्दानगी उसने ललकारने न लगे वह भला मर्द कैसा? सच पूछिये तो दोनों थे ही इसी काबिल, आपने जो किया अच्छा किया, बस एक ही गिला है आपसे कि अपने किये को आपने कोमल पर थोपने की कोशिश की, मगर उन हालात में आप और कर भी क्या सकते थे।”
खबरदार जो मेरी बीवी के बारे में एक शब्द भी कहा।”
“कहना तो पड़ेगा जनाब, और ऐसा कहने वाला क्या मैं कोई अकेला शख्स होऊंगा, कल को कोर्ट में चीख-चीख कर क्या सरकारी वकील भी यही नहीं कहेगा कि आपकी बीवी का आपके छोटे भाई के साथ अफेयर था, जिसके चलते आपने दोनों की हत्या कर दी। क्या ये खबर हिन्दोस्तान के हर अखबार और न्यूज चैनल पर प्रसारित नहीं होने लगेगी, या फिर आप रोक लेंगे उन्हें ऐसा करने से। हम तो समझ लीजिये आपको बस उस किरकिरी से बचाना चाहते हैं। क्योंकि एक बार अगर ये बात आम हो गई तो लोग-बाग आपकी बीवी के चरित्र पर छींटे उछालते हुए ये तक कहने से बाज नहीं आयेंगे, कि पति नपुंसक रहा होगा इसीलिये बीवी ने देवर के साथ संबंध बना लिये होंगे।”
“शटअप।” अनुराग इतनी जोर से चिल्लाया कि कमरे में काफी देर तक उसकी दहाड़ सुनाई देती रही।
“बेशक आपको बुरा लग रहा होगा” - पनौती शांत लहजे में बोला – “मगर जब सारी दुनिया यही बात कहने लगेगी तो क्या हाल होगा आपका? क्या घबराकर, बेइज्जती के डर से आप आत्महत्या करने को मजबूर नहीं हो जायेंगे?”
“मैं कहता हूं बंद कर अपनी बकवास।”
“तो आप अपना गुनाह कबूल करते हैं।”
इस बार अनुराग ने जवाब नहीं दिया।
“आराम से सोच लीजिये, अपना नफा-नुकसान विचार कर लीजिये, अलबत्ता इतना यकीन मैं आप को दिला सकता हूं कि अगर आप अपना गुनाह कबूल कर लेते हैं, तो आपके भाई और बीवी के रिश्तों की खबर आम नहीं होने दी जायेगी, भले ही उसके लिये पुलिस को कत्ल की कोई नई वजह ही क्यों न गढ़नी पड़े।”
अनुराग सिर झुकाये बैठा रहा।
“हम जा रहे हैं यहां से, आप जी भरकर विचार कीजिये, एक घंटे बाद वापिस लौटेंगे, तब तक आपके पास वक्त ही वक्त है” - कहकर उसने सतपाल की तरफ देखा – “चलिये इंस्पेक्टर साहब, ये समझदार आदमी हैं, जो भी फैसला लेंगे अपना बुरा-भला विचार कर लेंगे, इसलिए मुझे पूरी पूरी उम्मीद है कि आपको इनके साथ सख्ती करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।”
वहां से निकलकर दोनों सतपाल के कमरे में पहुंचे।
“इस तरह तो जरूर वह अपना गुनाह कबूल कर लेगा।” सतपाल कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
“कर लेगा, धैर्य रखो, नहीं करेगा तो भी तुम्हारा केस हल्का नहीं पड़ेगा, एक बार जब बतौर कातिल वह तुम्हारी निगाहों में चढ़ ही गया है, तो उसके खिलाफ सबूत इकट्ठे करना क्या बड़ी बात है?”
“कोई सबूत छोड़ा तो हो उसने, जिस तरह से दोनों हत्याओं को अंजाम दिया गया है, उसमें किसी सबूत की गुंजायश ही कहां बचती है?”
“तुम उस रिवाल्वर को क्यों भूल जाते हो, प्रियम के कत्ल के बाद जिसे अनुराग ने गायब कर दिया था, या फिर तुम उस ज्वैलरी को क्यों नजरअंदाज कर रहे हो, जो कल्पना के जिस्म से उतार ली गई थी।”
“जैसे दोनों चीजों को उसने अब तक संभाल कर रखा होगा?”
“रिवाल्वर के बारे में तो मैं दावा नहीं कर सकता, मगर ज्वैलरी उसने फेंकी नहीं हो सकती, ऐसा करना होता तो बीवी के तन से उन्हें उतारने की कोशिश ही भला क्यों करता वो?”
“मगर दोनों चीजों को तलाश कहां करें?”
“बंगले में ही कहीं होंगी, तुम्हें वहां की तलाशी लेनी चाहिये।”
“पूरे बंगले की?”
“नहीं सिर्फ उन जगहों की जहां कोई रहता नहीं है, वहां बहुत से कमरे खाली पड़े हैं, छत पर जाते वक्त एक स्टोर रूम भी दिखाई दिया था मुझे, जो दुनिया भर के सामानों से भरा पड़ा था। चाहो तो अनुराग के कमरे की भी तलाशी ले सकते हो, वैसा वहां से कुछ बरामद होने की उम्मीद कम ही है।”
“ठीक है चल देखते हैं, क्या पता कुछ हासिल हो ही जाये।”
“सर्च वारेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी?”
“मीनाक्षी कोई हो हल्ला मचायेगी तो यकीनन पड़ेगी, मगर अनुराग की गिरफ्तारी के बाद शायद ही वह हमारे काम में कोई रोड़ा अटकाने की कोशिश करे।”
“हैरानी है कि बेटे की गिरफ्तारी के बाद भी वह अभी तक थाने नहीं पहुंची।”पहुंच गई” - सतपाल खुले दरवाजे से बाहर देखता हुआ बोला – “फौज लेकर आई है।”
पनौती ने मुड़कर देखा, तो पाया कि मीनाक्षी उधर ही चली आ रही थी। उसके साथ एडवोकेट यादव तो था ही साथ में संजीव चौहान और भुवनेश भी मौजूद थे।
उस घड़ी भी वह यूं सज-धज कर थाने पहुंची थी जैसे किसी शादी के समारोह में शिरकत करने निकली हो।
चारों सतपाल के कमरे में दाखिल हुए।
मीनाक्षी और यादव अगल-बगल दो कुर्सियों पर बैठ गये, जबकि संजीव और भुवनेश उनके पास ही दीवार के साथ लगकर खड़े हो गये क्योंकि वहां कोई और खाली कुर्सी नहीं थी।
“अनुराग को क्यों गिरफ्तार किया है तुमने?” मीनाक्षी बोली।
“वह कातिल है।”
“तुम्हारे कहने भर से वह कातिल हो गया?”
“नहीं मेरे कहने से नहीं हो गया, मगर आप इत्मीनान रखिये कोर्ट में हम उसे निर्विवाद रूप से कातिल साबित कर के दिखायेंगे।”
“यानि एक बेगुनाह को सजा दिलाने की कसम खा रखी है तुमने, मैं पूछती हूं कोमल से तुम लोगों का ऐसा क्या याराना है जो उसे जेल से बाहर निकालने को मरे जा रहे हो।”
“आप भूल रही हैं कि जिस वक्त कल्पना का कत्ल हुआ, वह जेल में थी, अभी भी है, ऐसे में क्या आपको ये बात बताने की जरूरत है कि चाहकर भी वह कल्पना का कत्ल नहीं कर सकती थी।”
“तो फिर कातिल कोई और होगा, ये भी हो सकता है कि प्रियम के कत्ल का कल्पना के कत्ल से कोई लेना-देना ही ना हो।”
“अब नहीं हो सकता, क्योंकि कत्ल की वजह हम पता लगा चुके हैं, और वजह भी कैसी जिसमें आपके बड़े बेटे के अलावा किसी का इंट्रेस्ट नहीं हो सकता।”
“ऐसी क्या वजह है?”
“आपके छोटे बेटे प्रियम और आपकी बड़ी बहू कल्पना के बीच नाजायेज रिश्ते थे, वही बात कत्ल की वजह बनी थी।”
“जुबान संभाल कर बात करो इंस्पेक्टर साहब” - वहां खड़ा भुवनेश गुस्से से बोला – “अगर मेरी बहन के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश की तो अंजाम बुरा होगा।”
“तुम मुझे धमकी दे रहे हो?”
“बेशक दे रहा हूं, अब अगर एक लफ्ज भी तुमने इस बारे में और निकाला तो मैं भूल जाऊंगा कि तुम पुलिसवाले हो, फिर भले ही बाद में तुम्हारा डिपार्टमेंट मुझे फांसी पर लटका दे, मगर वह नजारा देखने के लिये तुम दुनिया में नहीं बचोगे।”
तिलमिलाता हुआ सतपाल अपनी कुर्सी से उठा और कस का तमाचा भुवनेश के गाल पर खींच दिया, “जुबान पर काबू रखना सीख, भूल गया दिखता है कि कहां खड़ा है।”
“ये थप्पड़ तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा इंस्पेक्टर साहब।”
“जो उखाड़ना हो उखाड़ लेना मेरा, लेकिन अभी अगर तूने अपनी जुबान से एक लफ्ज और निकाला तो अंदर कर दूंगा, ऐसा केस बनाऊंगा कि ताउम्र जमानत को तरसता फिरेगा।”
“जबकि ये सरासर गैरकानूनी काम होगा” - पनौती बोला – “तुम कानून के रखवाले हो, ऐसी बातें तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देतीं।”
“भाषण मत झाड़” - सतपाल खीजकर बोला – “अभी जो कुछ ये बोलकर हटा है, वह तुझे गैरकानूनी नहीं जान पड़ता?”
“सरासर जान पड़ता है, मगर अभी अभी जो तुम बोलकर हटे हो वह भी गैरकानूनी ही है।”
“हम मुद्दे की बात करें तो कैसा रहे?” यादव बात का रूख दूसरी तरफ मोड़ता हुआ बोला।
“बोलिये क्या कहना चाहते हैं?”
“अनुराग कातिल नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
“बताता हूं पहले आप ये बताइये कि दोनों हत्यायें आपको किसी एक ही शख्स का कारनामा जान पड़ती हैं या फिर आप को ये लगता है कि प्रियम का कत्ल किसी और ने किया था जबकि कल्पना का कातिल कोई और है?”
“कातिल एक ही है, अब आप अपनी बात पूरी कीजिये।”
“जिस वक्त प्रियम के कमरे में गोली चली थी, उस वक्त अनुराग अपने बेडरूम में था, इसलिए ये मुमकिन नहीं है कि प्रियम की हत्या उसने की हो।”
“हमारे पास एक गवाह है, जो ये कहता है कि गोली चलने से थोड़ी देर पहले तक वह अपने कमरे में नहीं था।”
“बकवास।”ये तसदीक शुदा बात है वकील साहब, गोली चलने से ऐन पहले घर की नौकरानी कल्पना को कॉफी देने के लिये उसके कमरे में गई थी, तब कल्पना वहां अकेली थी। अब बोलिये कि उसके पास कत्ल का मौका हासिल नहीं था।”
“नहीं था, अगर उस वक्त वह अपने कमरे में नहीं भी था, तो गोली चलने के महज दो या तीन मिनट बाद वह हमें सीढ़ियों पर दिखाई दे गया था। इतने कम समय में वह कत्ल करने के बाद फायर इस्केप की सीढ़ियों के रास्ते वापिस वहां नहीं पहुंच सकता था, क्योंकि हॉल में घुसते या उधर से बाहर जाते तो हमने उसे देखा ही नहीं था।”
“बिल्कुल पहुंच सकता था, वह कोई किलोमीटर भर का फासला नहीं है जिसे दो से तीन मिनट के भीतर दौड़कर तय ना किया जा सके।”
“आप खुद ट्राई क्यों नहीं कर लेते, प्रियम के कमरे की खिड़की से दौड़ लगाकर दो मिनट में फायर इस्केप के रास्ते, पहली मंजिल की सीढ़ियों के दहाने तक पहुंच कर दिखा दीजिये मैं मान लूंगा कि कातिल अनुराग ही है।”
“मुझे कोई ऐतराज नहीं है” - सतपाल बोला – “वैसे भी आप लोगों के यहां पहुंचने से पहले हम बंगले के लिये बस निकलने ही वाले थे।”
“किस लिये?”
“हमें वहां की तलाशी लेनी है।”
“मैं इसकी कोई जरूरत नहीं समझती।” मीनाक्षी बोली।
“आपके समझने या ना समझने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, आप मना करेंगी तो कोर्ट खुला हुआ है, आखिरकार तो हम लोग सर्च वारेंट हासिल कर ही लेंगे, मगर उन हालात में आप सभी को तब तक यहां रूकना पड़ेगा जब तक कि हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते।”
मीनाक्षी ने यादव की तरफ देखा तो वह हौले से हां में गर्दन हिलाता हुआ बोला, “इंस्पेक्टर साहब ठीक कह रहे हैं, तुम इन्हें बंगले की तलाशी लेने से नहीं रोक सकतीं, अलबत्ता सर्च वारेंट हासिल करने को जरूर कह सकती हो।”
“ठीक है” - आखिरकार वह बोली – “समझ लीजिये मुझे कोई ऐतराज नहीं है, चलिये।”
कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।
“मैं दो मिनट के लिये अनुराग से मिलना चाहता हूं।” भुवनेश जल्दी से बोला।
“दो दरवाजे छोड़कर तीसरे में बैठा हुआ है, जाओ जाकर मिल लो।”
प्रियम तत्काल कमरे से बाहर निकल गया।
“आप लोग बैठिये हम अभी आते हैं।” कहकर सतपाल ने पनौती को इशारा किया तो वह उठ खड़ा हुआ।
कमरे से निकलते ही सतपाल लपककर अपने ऐन बाजू वाले कमरे में जा घुसा।
“क्या हुआ? पनौती भीतर दाखिल होता हुआ बोला।
“अभी समझ जायेगा, दरवाजा बंद कर दे।” कहकर वह वहां रखी एक मेज के पास पहुंचा जिसपर एक रिकार्डिंग डिवाईस रखी हुई थी, कुर्सी पर बैठकर उसने कोई बटन पुश किया फिर उसमें लगा एक वोल्यूम का बटन घुमा दिया।
“पुलिस कहती है कि प्रियम और कल्पना का कत्ल तुमने किया है” - कमरे में भुवनेश की आवाज गूंजी – “मैं तुमसे सच जानना चाहता हूं।”
“तो तुम्हें भी मैं कातिल दिखाई देता हूं?” अनुराग की आवाज सुनाई दी।
“नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता, बस मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।”
“मैंने कोई कत्ल नहीं किया, कत्ल करना वह भी अपने सगे भाई और बीवी का! तुम्हें मजाक लगता है।”
“जबकि तुम्हारे कातिल होने की बाबत ये लोग एकदम निश्चिंत दिखाई देते हैं, जैसे उनके हाथ कोई सबूत लग गया हो, जिससे तुम्हारा जुर्म साबित कर के रहेंगे।”
“और क्या उम्मीद की जा सकती है इनसे, किसी को तो इन्होंने कातिल ठहराना ही है, असली हत्यारे तक नहीं पहुंच सके तो मुझे ही बलि का बकरा बना दिया।”
“हिम्मत मत हारो अनुराग, और किसी पर नहीं तो मुझपर यकीन करो, मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा, भले ही इसके लिये मुझे कुछ भी करना पड़े, क्योंकि कल्पना के कातिल के तौर पर मैं तुम्हारा तसोव्वुर नहीं कर सकता, तुम मेरे भाई की तरह हो, कदम कदम पर तुमने मेरी मदद की है, मेरा साथ दिया है, आज मेरी बारी है, मैं अपना फर्ज निभाकर दिखाऊंगा।”
जवाब में अनुराग की खोखली हंसी गूंजी।
“क्या करोगे, मुझे यहां से जबरन निकाल ले जाओगे?”
“कर तो मैं ये भी सकता हूं, लेकिन तुम्हारी समस्या का ये कोई स्थाई विकल्प नहीं है, पुलिस आखिरकार तो तुम्हें ढूंढ ही लेगी।”
“फिर क्या करोगे?”
करूंगा कुछ, मगर तुम बेफिक्र रहो, ये लोग तुम्हें मुजरिम ठहराने में कामयाब नहीं हो पायेंगे, इतना वादा तो मैं अभी कर के जा रहा हूं तुमसे।”
“ठीक है भाई देखते हैं क्या होता है?”
उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई।
“बड़े दावे के साथ कहकर गया है कि अनुराग को जेल नहीं जाने देगा” - पनौती बोला – “ऐसा क्या करने वाला है वो?”
“पता नहीं, हम भी देखेंगे क्या करता है?”
“एक बात नोट की तुमने?”
“क्या?”
“अनुराग ने उसके सामने भी ये कबूल नहीं किया कि कातिल वही है।”
“जो कि कोई बड़ी बात नहीं है, एक तो वह उसकी बीवी का भाई है, जिसके सामने वह हरगिज भी नहीं कबूल कर सकता कि उसकी बहन का कत्ल उसी ने किया है। दूसरी वजह ये हो सकती है कि उसे शक है कि पुलिस ने उनकी बातों को सुनने का कोई इंतजाम किया हो सकता है। ऐसी बातें तो आजकल टीवी सीरियल्स और फिल्मों में भी आम दिखाई जाने लगी हैं। ऐसे में अपने जुर्म की बाबत जुबान बंद रखना उसकी मजबूरी है।”
“हो सकता है, अब चलो यहां से।”
दोनों वापिस सतपाल के कमरे में पहुंचे। भुवनेश वहां पहले ही पहुंच चुका था।
“अब चलें?” सतपाल बिना किसी को लक्ष्य किये बोला।
“बस एक मिनट और दीजिये” - भुवनेश जल्दी से बोला – “मैं कुछ कहना चाहता हूं, जिसके बाद आपका इनके बंगले की तलाशी लेना जरूरी नहीं रह जायेगा।”
“ऐसा क्या कहोगे तुम?” सतपाल के माथे पर बल पड़ गये।
“कहूंगा नहीं बल्कि करूंगा” - भुवनेश बोला – “इकबाल करूंगा।”
“किस बात का?”
“अपने जुर्म का” - उसने जैसे कोई धमाका सा किया – “मैं कबूल करता हूं कि प्रियम और कल्पना की हत्या मैंने की थी।”
वहां मौजूद हर शख्स, यहां तक कि सतपाल और पनौती भी हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगे, दोनों को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी बड़ी बात कहने वाला था।
“और ये इंकलाबी परिवर्तन तुम्हारे भीतर अनुराग से मिलने के बाद आया?” आखिरकार सतपाल ने कमरे में फैले सन्नाटे को तोड़ा।
“आप जो चाहे समझ सकते हैं मगर मैं नहीं चाहता कि मेरे किये कि सजा कोई और भुगते।”
“वजह क्या थी तुम्हारे पास कत्ल की?”
“वही जिसपर थोड़ी देर पहले मैंने भड़क कर दिखाया था। मुझे शर्म आती है कि वह मेरी बहन थी, छह महीने पहले जब प्रियम के साथ उसके रिश्तों की बात मुझे पता चली तो मैंने उसकी खूब लानत-मलानत की, तब उसने सुधरने का वादा भी किया था मगर बाज नहीं आई, आखिरकार मैंने दोनों को जान से मार देने का फैसला कर लिया।”
“बढ़िया कहानी है” - सतपाल बोला – “अब तुम मुझे ये बताओ कि प्रियम के अलमारी में रखी उसकी पिस्तौल तुमने क्यों बदली थी?”
“केस को उलझाने के लिये, पहले मेरा इरादा उसकी मौत को आत्महत्या साबित करने का था, इसलिए मैंने एक रोज मौका पाकर अलमारी से उसकी पिस्तौल निकालकर वहां दूसरी पिस्तौल रख दी, जो कि हू ब हू उसके पिस्तौल जैसी ही दिखती थी। वैसा करना मुझे इसलिए जरूरी लगा क्योंकि बीच में अगर उसे अपनी रिवाल्वर की गैरमौजूदगी की खबर लग जाती तो वह थाने में उसकी रिपोर्ट दर्ज करवा सकता था, ऐसे में मैं अपना सोचा पूरा नहीं कर पाता। अलबत्ता कत्ल के बाद मेरा इरादा अलमारी से अपनी वाली पिस्तौल गायब कर देने का था। मगर आगे चलकर हालात कुछ यूं बदले कि मुझे आनन-फानन में प्रियम को ठिकाने लगाने का मौका हासिल हो गया। कत्ल वाले रोज मैं अपने कमरे में बैठा हुआ था तभी मुझे प्रियम के जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी। उत्सुकता वश मैं खिड़की के रास्ते बाहर निकला और उसकी खिड़की के पीछे पहुंचकर भीतर का नजारा करने लगा। दोनों में झगड़ा होता देखकर मैंने उसी वक्त प्रियम की हत्या कर देने का फैसला कर लिया, मेरा इरादा हत्या के बाद उसकी पिस्तौल को कमरे में फेंक देने का था, ताकि बाद में कोमल को कातिल समझ लिया जाता।”
“फिर क्या हुआ?”
“मैं अपने कमरे से रिवाल्वर लेकर वहां पहुंचा तो मैंने एक नया नजारा देखा, कोमल के हाथ में पिस्तौल थी जो कि उसने प्रियम पर तान रखी थी, जबकि प्रियम उसे बार-बार गोली चलाने को उकसा रहा था। मौका अच्छा जानकर मैंने खिड़की के भीतर हाथ डाला और गोली चला दी, उस घड़ी कोमल की पीठ मेरी तरफ थी इसलिए वह मुझे नहीं देख पाई।”
“बहुत बढ़िया, फिर क्या हुआ?”
“मैं खिड़की के रास्ते कमरे में पहुंचा और प्रियम के कमरे का दरवाजा खटखटाया जाने की आवाज सुनने के बाद बाहर निकला, कोमल ने दरवाजा खोला तो बेटे की लाश पर निगाह पड़ते ही मीनाक्षी आंटी कोमल पर चढ़ दौड़ीं उसी दौरान मैंने फर्श पर पड़ी रिवाल्वर उठाकर वहां प्रियम वाली रिवाल्वर रख दी।”
“अब वह रिवाल्वर कहां है?”
“कहीं नहीं है, मैंने उसे बंगले के बाहर से गुजरते एक कूड़े के ट्रक में फेंक दिया था।”
“हैरानी है कि इतनी शानदार कहानी तुमने इतनी जल्दी गढ़ ली।”
“ये कहानी नहीं है सच्चाई है, इसलिए आप लोग फौरन अनुराग को रिहा कर दीजिये और मुझे गिरफ्तार कीजिये।”
“इतनी जल्दी क्या है बच्चे,अभी एक और कत्ल की बात पेंडिंग है, जरा उसके बारे में भी बता दो।”
“कल्पना का कत्ल करना आसान काम था, उसकी नौ बजे वाली रूटीन की सबको खबर थी, हत्या वाली रात मैं उससे थोड़ा पहले छत पर पहुंचकर उसकी राह देखने लगा, फिर जैसे ही वह छत पर पहुंची मैं उसपर झपट पड़ा, गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी, मगर मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब मैंने उसकी लाश को उठाकर छत से नीचे फेंक दिया।”
“बीच में एक और काम भी तुमने किया था?”
“हां याद आया, मैंने नीचे फेंकने से पहले उसके तमाम जेवर उतार लिये थे।”
“क्यों?”
“क्योंकि उनकी कीमत बीस लाख से ऊपर थी, मगर अगले रोज मुझे लगने लगा कि बंगले में जेवरों की मौजूदगी मुझे फंसवा सकती है।”
“तब तुमने उसे भी बंगले के बाहर से गुजरते कूड़े के ट्रक में उछाल दिया था, है न?”
“आपको पता है उस बारे में?” भुवनेश हैरान होता हुआ बोला।
“हां भाई पता क्यों नहीं होगा, हम उल्लू के पट्ठे जो हैं।”
“तो आप अनुराग को रिहा कर रहे हैं?”
“अभी नहीं जरा बंगले का फेरा लगा लें, फिर तुम्हारी मुराद पूरी करने की कोशिश करेंगे।”
“जबकि उसकी अब कोई जरूरत नहीं है।”
“इसका फैसला तुम नहीं करोगे मिस्टर कुर्बानी लाल, पुलिस करेगी, अदालत करेगी। अब चलो यहां से।”
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