Romance राजवंश

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राज ने शंकर के गैरेज के फाटक में प्रवेश किया‒जिसमें एक ओर शैड में शंकर की नौकरानी चूल्हा सुलगाकर रोटियां पका रही थी....दूसरी ओर एक टीन के नीचे बेबी बैठी पढ़ रही थी। राज उस कोठरी की ओर बढ़ा जिसमें उसका बिस्तर लगा था....इसी समय उसे शंकर की आवाज सुनाई दी जो राज को पुकार रहा था। राज बेबी के पास से गुजरकर उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ शंकर को कोठरी में पहुंच गया। शंकर ने मुस्कराकर उसे देखा और बोला, “आज के समाचार पत्र देखे तुमने?”

“नहीं।”

“लो देखो....”

शंकर ने ढेर सारे समाचार-पत्र राज के सामने डाल दिए। राज एक-एक समाचार पत्र देखने लगा‒पहले ही पन्ने पर कई ढंगों में राज की तस्वीर छपी थी....साथ ही कई शीर्षक थे जैसे‒‘विप्लवकारी दिमाग रखने वाला युवक मिस्त्री जिसने विदेशों के बड़े-बड़े इंजीनियरों को दांतों तले उंगली दबाने पर विवश कर दिया।’ ‘एक युवक मैकेनिक जिसने वह पुर्जा बना लिया जिसे देश का कोई इंजीनियर नहीं बना सका। ‘एक युवक इंकलाबी जिसने लाखों की दौलत ठुकराकर पूंजीपतियों की दासता स्वीकार नहीं की।’ शीर्षकों के नीचे पूरी खबरे थीं, राज के इन्टरव्यू थे....कुछ अखबारों ने राज को सिरफिरा कहा था....राज ने समाचार पत्र एक ओर रखकर मुस्कराकर शंकर की ओर देखा और सिगरेट सुलगाने लगा। शंकर ने चुपचाप एक बड़ी-सी गड्डी राज के सामने रखते हुए कहा, “और आखिरी समाचार यह है।”

“नोट‒!” राज चौंककर शंकर को देखने लगा।

“पूरे साठ हजार!” शंकर मुस्कराया।

“साठ हजार!” राज की पुतलियां आश्चर्य से फैल गईं।

“यह न पूछो तो अच्छा है कि ये कहां से आए?” शंकर ने ठण्डी सांस लेकर कहा, “क्योंकि मुझे झूठ बोलना पड़ेगा।”

राज ने ध्यान से शंकर को देखा और उसके कंधे को पकड़कर बोला “इधर देखो दादा! मेरी आंखों में....तुमने अपना फ्लैट पगड़ी लेकर किराये पर दिया था....या उसे बेच दिया?”

“राज....बेटा...” शंकर भारी आवाज में बोला, “देर न करो अब, यह राशि लेकर तुम श्रीधर सिन्हा साहब के पास पहुंच जाओ। हमारे लिए अब वही सबसे बड़ी खुशी का दिन होगा जिस दिन तुम अपनी फैक्टरी का उद्घाटन समारोह मनाओगे....”

और राज आंखें फाड़े हुए शंकर को देखता रह गया।

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‘सुषमा प्रोडक्ट’ का एक बहुत बड़ा-सा बोर्ड फैक्टरी के फाटक पर रंग-बिरंगी रोशनियों में झिलमिला रहा था।

फैक्ट्री के फाटक के सामने एक बहुत बड़े मैदान में छोटा-सा पंडाल बना हुआ था जिसमें कुछ पंक्तियां कुर्सियों की लगी हुई थी जिन पर सुषमा प्रोडक्ट फैक्टरी के उद्घाटन समारोह में चलाए गए चन्द एक विशेष व्यक्ति विराजमान थे। इनमें वे कारीगर भी थे जो राज के साथ शंकर के गैरेज में काम करते थे। सबसे अगली पंक्ति में बीच वाली कुर्सी पर मिस्टर सिन्हा बैठे थे। राज, शंकर और चन्दर के साथ एक ओर खड़ा हुआ बातें कर रहा था। अचानक एक कार फाटक पर आकर रुकी...शंकर ने जल्दी से कहा‒

“वह देखो...ये कौन लोग हैं? बिठाओ जरा इन्हें....”

राज आगे बढ़ा....कार की खिड़कियां खुलीं....और राज के पुराने मित्र अनिल, धर्मचन्द, फकीरचन्द और कुमुद नीचे उतरे। चारों ने तेजी से बढ़कर राज को घेर लिया। अनिल राज से लिपटता हुआ बोला, “बधाई हो राज! तुम्हें देखने को तो आंखें तरस गई थीं....हम तो सपने में भी नहीं सोचते थे कि हमारा मित्र इतना छिपा रुस्तम निकलेगा....बस यही सुना था कि तुम टैक्सी ड्राइवर बन गए हो....आज सारा देश राज के गीत गा रहा है....इससे बड़ी खुशी की बात हमारे लिए क्या हो सकती है।”

“आजकल समाचार-पत्रों में आए दिन धड़ाधड़ तुम्हारे भाषण आ रहे हैं....हमारा तो मन बाग-बाग हो जाता था देख-देखकर” धर्मचन्द ने मुस्कराते हुए कहा।

“हम तो यह सोच रहे थे कि शायद इस समारोह में तुम हमें भी याद करोगे....” कुमुद ने बड़ी आत्मीयता से कहा।

“तुम लोगों को तो मैं जीवन के किसी भाग में भी नहीं भूल सकता।” राज की मुस्कराहट और गहरी हो गई।

“आखिर दोस्त हैं न....” फकीरचन्द मुस्कराकर बोला, “दोस्तों को कैसे भूला जा सकता है।”

“अरे यार! यह खुला पंडाल बनवाया है तुमने?” अनिल बोला, “क्या पीने-पिलाने का प्रबन्ध न होगा इस समारोह में....बिना पिए-पिलाए तो खुशी का कोई समारोह पूर्ण नहीं होता....”

“पीने का प्रबन्ध भी है।” राज की मुस्कराहट और गहरी हो गई। वह चन्दर से बोला, “चन्दर! मेरे बहुत अच्छे समय के साथी हैं ये जिन्होंने मेरे फालतू समय में मुझे कभी बोर नहीं होने दिया। इनकी देखभाल ध्यान से करना....इन्हें ले जाकर कुर्सियों पर बिठाओ....एक-एक ठण्डा गिलास पानी पिलाओ...”

फिर इससे पहले कि उन लोगों में से कोई बोलता....एक मर्सिडीज आकर रुकी। राज शीघ्र मुस्कराता हुआ मर्सिडीज की ओर बढ़ गया। अनिल, धर्मचन्द, फकीरचन्द और कुमुद आश्चर्य से उसे देखते हुए कुर्सियों की ओर बढ़ गए। मर्सिडीज की खिड़की खुली और उसमें से पहले राजा कूदकर उतरा और लपककर राज की गोद में चढ़ता हुआ बोला, “अंकल....अंकल डार्लिंग...”

“मेरा राजा बेटा....” राज ने राजा को प्यार किया।

फिर राज की दृष्टि जय पर पड़ी। जय मुस्कराता हुआ गाड़ी से उतरा था....उसकी आंखों में विजय का भाव झलक रहा था....साथ ही साथ राधा भी उतरी जिसने डबडबाई आंखों से स्नेह भरी मुस्कराहट से राज को देखा। राज मुस्कराया।

“आइए सेठ जयदास और श्रीमती जयदास....मुझे प्रसन्नता है कि इस खुशी के समारोह में सम्मिलित होने की मेरी प्रार्थना को आपने ठुकराया नहीं।”

“यह तुम क्या कह रहे हो राज भैया।” राधा कंपकंपाते हुए स्वर में बोली, “तुम्हारी इस अनुपम सफलता पर हम खुश न होंगे तो और कौन होगा।”

“सच कहती हैं आप...” राज की मुस्कराहट और गहरी हो गई, “आइए! केवल आप ही की प्रतीक्षा थी....शेष सब अतिथि गण आ चुके हैं...समारोह में।”

जय कुछ न बोला। उसके होंठों पर अब भी वही मुस्कराहट थी। उसने सिगार का कोना तोड़कर दांतों में दबा लिया और राधा के साथ धीरे-धीरे राज के पीछे चलने लगा। राज ने उन्हें कुर्सियों पर बिठाया। फिर राज पंडाल से निकला तो उसकी दृष्टि सुषमा पर पड़ी और वह ठिठक गया। सुषमा के माथे पर एक लाल बिन्दिया जगमगा रही थी। उसकी आंखें लाज से झुक गईं। राज मुस्कराकर बोला, “आज तुम सुषमा नहीं....साक्षात एक समारोह हो...प्रसन्नता का उत्तम समारोह....एक उत्सव हो।”

“हटिए! कोई सुन लेगा,” सुषमां घबराहट से लजाते हुए बोली....और इधर-उधर देखने लगी।

“यही लड़की है वह?” राधा ने धीरे से जय की ओर झुककर पूछा।

“हां....सुषमा...”

“बड़ी प्यारी है....गुड़िया सी...राज का चुनाव बहुत प्यारा है।”

थोड़ी देर बाद राज सबके सामने खड़े होकर सब को सम्बोधित करते हुए बोला, “समारोह में उपस्थित देवियो और सज्जनो। अब सारे अतिथि आ चुके हैं सो कार्य वही आरम्भ करने की आज्ञा चाहता हूं....आप सोच रहे होंगे कि इस समारोह में शहर की प्रसिद्ध हस्तियां सम्मिलित नहीं हुईं....कोई मंच क्यों नहीं बनाया गया....कोई माइक का प्रबन्ध नहीं किया गया....इसके लिए मैं निवेदन करूंगा कि दो प्रकार के व्यक्ति ही आदर और सम्मान के योग्य होते हैं....पहले वे जिनका सम्मान उनके हाथों और उजले मन के कारण होता है और दूसरे वे जिनका आदर उनके धन के कारण होता है....यहां दोनों प्रकार की हस्तियां उपस्थित हैं....मंच और माइक इत्यादि वहां आवश्यक होते हैं जहां के समारोह दिखावे और प्रदर्शनी के लिए होते हैं....यह समारोह मेरे और मेरे मित्रों के मन की खुशी को प्रकट करता है....इस प्रसन्नता को प्रकट करने के लिए हमें किसी दिखावे की आवश्यकता नहीं....क्योंकि आवाज चाहे कितनी हल्की ही क्यों न हो वह उन हृदयों तक अवश्य ही पहुंच जाती है जिनमें स्नेह, सत्यता, सौन्दर्य होता है....सहानुभूति और आपस में समझने की बुद्धि होती है....जहां ये गुण नहीं होता वहां लाख ऊंचे स्वर में और मंच लगाकर बोलो....कुछ लाभ नहीं। अब आपसे प्रार्थना है कि फैक्टरी के मुख्य द्वार पर पहुंचकर उद्घाटन की रस्म में सम्मिलित हों।”

थोड़ी देर बाद सारे अतिथि फैक्टरी के फाटक पर थे। फाटक के बिलकुल पास ही राज खड़ा था। राज के पास सुषमा, चन्दर और शंकर भी थे....सब यही सोच रहे थे कि देखें राज किसे फैक्टरी के उद्घाटन का श्रेय देता है। राज ने इधर-उधर देखा और शंकर से बोला, “भैया! कल्लन किधर गया?”

“मैं हां हूं राज भैया!” कल्लन ने आगे बढ़कर कहा।

सब लोग उधर देखने लगे। कल्लन दस-ग्यारह वर्ष का लड़का था जो घर के धुले हुए बिना प्रेस किए कपड़े पहने हुए था....राज ने उसे अपने पास बुलाया और उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कराकर इधर-उधर देखा और फिर बोला, “यह मेरा साथी, शंकर दादा के गैरेज का सवा दो रुपये दिन का सबसे छोटा कारीगर है जिसने अपनी मां की दवा में से बचे हुए चार आने जो इसने बीड़ियों के लिए बचाए थे....इस फैक्टरी की स्थापना के लिए सहायता में दिए थे...वे चार आने इस फैक्टरी के लिए जितने महत्वपूर्ण हैं उतने शायद कहीं से मिले हुए चार लाख रुपये भी न हों....यह फैक्टरी मेरी है किन्तु, इसका असली मालिक कल्लन है....इसलिए कल्लन ही फैक्टरी का उद्घाटन करेगा।”

सबसे पहले जय ने तालियां बजाईं और फिर बड़ी देर तक तालियां गूंजती रहीं....कल्लन ने घबराकर इधर-उधर देखा और कांपते हुए हाथों से फैक्टरी का उद्घाटन किया....फैक्टरी का फाटक खोला गया....उसमें सबसे पहले कल्लन ने प्रवेश किया। फिर राज ने हाथ उठाकर जोर से कहा, “ठहरिए....”

सब लोग ठिठककर रह गए...राज ने मुस्कराकर कहा‒
“यह था मेरी फैक्टरी के उद्घाटन का समारोह जिसका दृश्य आपने देखा....यह है वह फैक्टरी जिसकी नींव प्यार और स्नेह पर रखी हुई है और उसकी स्थापना में मेरा हाथ बंटाने वाले वे लोग हैं जिन्होंने अपने घरों के गहने और बर्तन बेचकर, अपनी बीवियों के पैसे देकर मुझे इस काम को पूरा करने की शक्ति प्रदान की है। साहस बढ़ाया है....इसकी स्थापना में उन लोगों का कोई भाग नहीं जिन लोगों ने उस समय, जब मैं एक करोड़पति बाप का बेटा था मेरे साथ शराब पी, मौज उड़ाई, मुझे गलत मार्ग दिखाए....इसकी स्थापना में उनका कोई हाथ नहीं जिनकी दृष्टि में दौलत खून के रिश्ते से अधिक महत्वपूर्ण होती है...इसलिए फैक्टरी की जमीन पर केवल वही पैर जाएंगे जो एक निर्धन और गरीब राज के साथी रहे हैं...वे पांव नहीं जाएंगे जिन्होंने राज को गरीब बनाया....और उसके गरीब और निर्धन बन जाने पर उससे आंखें चुरा गए...”

“अरे!” शंकर बड़बड़ाया, “यह क्या बक रहा है तू!”

“मैं वह कह रहा हूं दादा जो कुछ कहने के लिए मैंने इतना समय प्रतीक्षा की....अपनी रात की नींदें और दिन का आराम हराम किया...मर्सिडीज के मालिक से टैक्सी-ड्राइवर बना...मिस्त्री बना, दादा! मैं वह समय कभी नहीं भूल सकता जब अचानक किसी की स्वार्थता ने मुझे निर्धन-मुफलिस बना दिया....और मेरे घनिष्ठ मित्र मुझे इस प्रकार छोड़कर भागे जैसे मैं उन पर बोझ बन जाऊंगा....इसी समय की प्रतीक्षा में मैंने कितनी रातें जाग-जाग कर बिताई हैं....दादा! आज मुझे अवसर मिला है उस इन्तकाम का, उस बदले का....यह आप बरसों मेरी आत्मा को झुलसाती रही है.....मुझे घृणा है ऐसे लोगों से....आज मेरा इन्तकाम पूरा हो चुका है....इन लोगों ने मुझसे एक दुनिया छीन कर यह समझा था कि बस अब मुझे कोई दुनिया नहीं मिलेगी....आज मैंने एक नई दुनिया बना ली है जिसका निर्माता मैं हूं....मैं अपनी दुनिया का मालिक हूं...मैं अपनी दुनिया में इन स्वार्थी पांवों की चांप भी नहीं आने दूंगा।”

कुछ देर बाद सन्नाटा रहा...फिर अनिल, कुमुद, धर्मचन्द, फकीरचन्द बुरे मुंह बनाकर पलटे और बाहर चले गए....किन्तु जय वहीं खड़ा रहा। राधा ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और भर्राई हुई आवाज में बोली....“चलिए....अब कितना अपमान कराएंगे।”

“आभास हुआ आपको....श्रीमती जयदास!” राज कड़वी मुस्कराहट होंठों पर लाता हुआ बोला, “जब आदमी का अपमान होता है तो उसकी आत्मा को कितना दुख होता है....”

“किन्तु मुझे तनिक भी नहीं पहुंचा....” जय बड़ी ममतामय मुस्कराहट से बोला, “क्योंकि मैं जानता हूं आज तुम उस स्थान पर हो जहां पर खड़े होकर तुम अपने अपमान का बदला लेने का अधिकार रखते हो....मुझे खुशी है कि मेरे भाई में इतना साहस, इतनी शक्ति है कि वह अपने अपमान का बदला ले सकता है....अपनी बेइज्जती को नहीं भूल सकता....क्योंकि उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ही अपनी दुनिया का निर्माण किया है....किन्तु तुम भूल रहे हो कि जब मैंने तुम्हारा अपमान किया था उस समय मेरा दिन था तुम्हें अपमानित करने का इसलिए नहीं कि तुम मेरे छोटे भाई थे बल्कि इसलिए कि जिस दुनिया में उस समय मैं खड़ा था उस दुनिया की मैंने स्थापना की थी...मैंने निर्माण किया था....डैडी की दौलत अवश्य थी किन्तु ऐसे ही जैसे आज तुम्हारे पास अपना कुछ नहीं...सब कुछ इन्हीं सच्चे मित्रों की दौलत है...इस दुनिया का निर्माण तुमने किया है....डैडी की दौलत बेकार पड़ी थी, क्योंकि वह हृदय रोग के रोगी थे....और एक दिन इसी रोग से चल बसे...तुम्हारे भविष्य का उत्तरदायित्व मुझे सौंप गए....तुम यह भी जानते हो कि डैडी की मृत्यु के बाद मैंने दिन को दिन नहीं समझा और रात को रात....तुम्हारी ही तरह मैंने जीतोड़ कर परिश्रम किया....अपनी आधी शिक्षा छोड़ कर कारोबार को संभाला...अपने जीवन को सीमित कर लिया‒केवल तुम्हारे लिए। मैंने जीवन की सारी दिलचस्पियां समाप्त कर दीं....क्योंकि मैं जानता था दौलत उन हाथों में रहती है जो उसे रोकना जानते हैं....मैं भी यदि तुम्हारे ही समान एक धनाढ्य बाप का अय्याश बेटा बनकर शराब, जुआ और सुन्दरी में खो जाता....जीवन की रंगीनियों में स्वयं को व्यस्त कर देता....तो एक दिन मैं स्वयं ही निर्धन न होता बल्कि तुम, राधा, राजा....सब मेरे साथ मुफलिस हो जाते....मैं सब कुछ भूल कर यह याद रखने का प्रयास कर रहा था कि डैडी ने तुम्हारे भविष्य का उत्तरदायित्व मुझ पर डाला है....मैंने कभी तुम्हारा मन नहीं दुखाया...तुम्हारी हर हठ मैंने पूरी की....तुम मेरे असीम, प्यार के कारण अनुचित रंगरेलियों में पड़ गए....शराब, जुआ, बुरी संगति....तुमने क्या नहीं किया? फिर एक दिन जब मुझे यह अनुभव हुआ कि तुम उस स्थान पर पहुंच चुके हो जहां मेरा समझाना तुम्हें विष लगता है और झूठे कपटी मित्रों के परामर्श अमृत.....तुम जिस लड़की से शादी के इच्छुक थे उसे मैं निकट से जानता था और तब मैंने बहुत सोच-समझकर फैसला किया कि यही समय है तुम्हें भास दिलाने का कि जो दौलत तुम पानी के समान बहा रहे हो उसे कमाने में लहू-पसीना एक करना पड़ता है और जब दौलत आदमी के पास होती है तो हजारों दोस्त होते हैं खाने-पीने और ऐश करने वाले....किन्तु सच्चे दोस्त वही है जो मुफलिस को सहारा बनें....असली प्रेमिका वही होती है जिसके प्यार का तौल धन न हो और मैंने क्षण-भर में तुम्हें मुफलिस बना दिया। डैडी की वसीयत वास्तविक नहीं थी...नकली थी। निर्धन होकर तुमने देख ही लिया कि कौन तुम्हारा मित्र सिद्ध हुआ, कौन प्रेमिका। तुम्हारे एक-एक दिन के हालात से मैं परिचित हूं....तुम्हारे कष्ट सुनकर मेरे हृदय में नश्तर से चुभते रहे किन्तु मैं अपनी छाती पर सिल रखे रहा, ताकि डैडी की आत्मा के सम्मुख लज्जित न हो सकूं...और अपने भाई को कुछ बना देख लूं। तुम्हारी भाभी राधा जो तुम्हारे लक्षणों से घृणा प्रकट करती थी। वह तुम्हें राजा के ही समान चाहने लगी। उसने रो रोकर, मेरे पांव पकड़-पकड़ कर कहा कि तुम्हें वापिस बुला लूं....मैंने उसे दुत्कार दिया। तुमने टैक्सी चलाई, मिस्त्री बने....और आज तुम उस स्थान पर हो कि सारा देश राज के नाम पर गौरव करता है...यह सब तुमने किन लोगों से मिल कर पाया? अच्छे मित्रों और अच्छे-परामर्श देने वाले शुभचिन्तकों से क्योंकि इनमें से कोई भी अनिल, फकीरचन्द, धर्मचन्द या कुमुद नहीं है....तुम यह जान चुके हो कि अच्छी संगत आदमी को कहां पहुंचा देती है और बुरी कहां। आज तुम यह सब कुछ प्राप्त कर चुके हो....मैं नकली वसीयतनामा फाड़ चुका हूं....असली वसीयतनामा मेरे पास है जिसके अनुसार तुम आधी सम्पत्ति के अधिकारी हो....मेरा उद्देश्य पूरा हो चुका है मेरे राजा के लिए आधी दौलत ही इतनी है कि वह स्वयं खाएगा और बच्चों के लिए छोड़ जाएगा....इसलिए तुम जब भी चाहो अपनी सम्पत्ति का आधा भाग मुझसे ले सकते हो.....और मेरा आशीर्वाद है कि तुम जीवन-भर फलते-फूलते रहो मेरे लाल...” कहते-कहते जय की आवाज भर्रा गई, “चलो राजा...राजा बेटा चलो।”

राज और उसके सब साथी सन्नाटे में खड़े थे। अचानक शंकर ने बढ़कर कहा, “ठहरिए जय बाबू! बहुत हो चुका....अब मैं आपकी कसम नहीं रख सकता।” फिर वह राज से बोला, “इतनी ठोकरें खाने के बाद भी तुझे बुद्धि नहीं आई लड़के, तू एक देवता का अपमान कर रहा है...जानता है वह साठ हजार रुपया किसने दिया था जिससे यह फैक्टरी बन सकी....वह जय बाबू देकर गए थे....मुझसे कसम लेकर कि रहस्य तुझ पर नहीं खोलूं किन्तु मैं एक देवता का अपमान होते नहीं देख सकता....यदि तूने जय बाबू के पांव पकड़ कर अभी क्षमा न मांगी तो मैं जीवन-भर तेरा मुंह नहीं देखूंगा।”

राज भौंचक्का-सा रह गया। सुषमा ने उसका कंधा हिलाया और धीरे से बोली।
“सुन रहे हैं आप....मैंने आपसे कहा था कि जिस दिन आदमी आदमी से निराश हो जाएगा वह दिन दुनिया का अन्तिम दिन होगा अब भी आप सोच रहे हैं। आगे बढ़िए....मान दीजिए इस देवता को और खुशी के इस समारोह की शोभा बढ़ा लीजिए।”

राज ने झट आगे बढ़कर जय के पैर पकड़ लिए। जय ने उसे उठाकर सीने से लगा लिया और हड़बड़ाई आंखों से बोला, “मेरे बेटे....मेरे लाल।”

“मुझे क्षमा कर दो भैया....मुझे क्षमा कर दो....” राज जय के गले लगकर बच्चों के समान बिलख-बिलखकर रोने लगा।
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Hello Everyone :hi: ,
We are Happy to present to you The Exclusive story contest of Lustyweb "The Exclusive Story Contest" (ESC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne ESC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat aka discussion thread toh pehle se he Hindi section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 2000 words and maximum 8000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Lustyweb dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki ESC Ki stories ko pure Lustyweb k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.


Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Lustyweb k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.


Entry thread aaj yaani 5th February ko open hogaya hai matlab aap aaj se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 25 February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.


Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Lweb Staff.
 

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