Fantasy रहस्यमयी टापू MAGIC Adventure (Completed)

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मानिक चंद बोला__
वहीं पंक्षी जिसे वो जलपरी कह रहीं थीं कि वो ही सुवर्ण है।।
अच्छा तो ये बात है, उसने इतना झूठ कहा तुमसे, सुवर्ण बोला।।
हां, लेकिन असल बात क्या है? क्या तुम मुझे विस्तार से बता सकते हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से कहा।।
सुवर्ण बोला,सब बताता हूं...सब बताता हूं, पहले इस गुफा से बाहर तो निकलें, फिर सारी बातें इत्मीनान से बताता हूं।।
दोनों निकल कर गुफा से बाहर आएं और एक सुरक्षित जगह खोजकर एक पेड़ के नीचे बैठ गये, वहीं पास में एक झरना भी बह रहा था,तब तक शाम और भी गहरा आई थी, मानिक चंद ने पत्थरों से रगड़ कर आग जलाई और कुछ पौधे की जड़ें उसी आग में भूनी और मिलकर खाई फिर झरने से पानी पीकर दोनों उसी आग के इर्द गिर्द बैठ गए।।
अब, सुवर्ण ने कहानी कहना शुरू किया।।
ये तो तुम्हें पता होगा कि जादूगरनी की दो बेटियां थीं जो कि उसकी नहीं थीं उसके पति के पहली पत्नी से थीं,नीलाम्बरा और नीलकमल,फिर नीलगिरी राज्य का राजकुमार शुद्धोधन यानि के मेरे बड़े भाई आए उस जादूगरनी के बारे में पता लगाने, शुद्धोधन को जादूगरनी की बड़ी बेटी नीलाम्बरा से प्यार हो गया,नीलाम्बरा ने जादूगरनी के सब राज शुद्धोधन को बता दिए,इस बात का जादूगरनी को पता चल गया और उसने एक रात शुद्धोधन की हत्या कर दी,नीलाम्बरा ने ये सब बातें अपनी छोटी बहन नीलकमल को बता दी,नीलाम्बरा, शुद्धोधन की मौत को बर्दाश्त ना कर सकी और एक रात कुएं में कूदकर उसने आत्महत्या कर ली।।
अपने बड़े की मौत की खबर सुनकर शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण (यानि की मैं)वहां जा पहुंचा और फिर से वही प्रेम-कहानी दोहराई गई,नीलम्बरा की छोटी बहन नीलकमल से सुवर्ण को प्रेम हो गया,उस दौरान मैंने भी किसी जादूगर से कुछ जादू सीख डाले लेकिन मुझे पता नहीं था कि वो जादूगर उस जादूगरनी को अच्छी तरह जानता है,वो जादूगरनी और जादूगर आपस में बहुत समय पहले से ही एक-दूसरे से प्रेम करते थे।
और दोनों ने मिलकर ही नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता को मारने की साज़िश रची थी।।
एक रोज उस जादूगरनी ने मुझे (यानि सुवर्ण को) और नीलकमल को साथ साथ झरने के पास बैठा देख लिया और नीलकमल को उसने अपने जादू के जोर पर बदसूरत और बूढ़ा बना दिया तब मैंने भी अपना जादू का जोर आजमाया ये देखकर वो डर गई ,पता नहीं हवा में कहां गायब हो गई, मैंने नीलकमल से कहा कि तुम घबराओ मत मैं तुम्हें ठीक कर लूंगा,अभी तुम उसी घर में जाकर रहो और कोई भी पूछे तो तुम कहना कि तुम ही चित्रलेखा हो और तब से नीलकमल उसी घर में रह रही हैं चित्रलेखा बनकर।।
तभी मानिक चंद बोला, मैं ये कैसे मान लूं कि तुम सच बोल रहे हो।।
सुवर्ण बोला,मैं अभी तुम्हारे सारे संदेह दूर करें देता हूं।।
मैं यूं ही उस जादूगरनी चित्रलेखा को कई दिनों तक ढूंढता रहा,एक दिन वो और उसका प्रेमी शंखनाद समुद्र तट पर बैठे थे, मैंने उन्हें पीछे देखा और जादू के जोर पर चित्रलेखा को जलपरी बना दिया और शंखनाद को पंक्षी, दोनों तब से उसी अवस्था में हैं।।
लेकिन ये बताओ जब तुमने चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी बना दिया तो तुम्हें गुफा ने किसने कैद किया और तुम्हारे कैद होने के विषय में चित्रलेखा मुझे क्यो बताने लगी भला!! वो तो तुम्हारी दुश्मन हैं आखिर वो क्यो चाहेंगी कि तुम गुफा से रिहा हो,मानिक चंद ने सुवर्ण से पूछा।।इसके पीछे भी एक कहानी है,अभी बहुत रात हो गई है, थोड़ा आराम कर लेते हैं फिर सुबह मैं सारी कहानी तुमसे कहूंगा, सुवर्ण बोला।।
लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आएगी,डर लगा रहेगा कि तुम सुवर्ण ही हो क्योंकि यहां आकर जिससे भी मिला उसने एक अलग ही कहानी सुनाई,अब डर लग रहा कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ,मानिक चंद बोला।।
अच्छा तो तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
हां, नहीं है,अपनी जान को लेकर कौन सजग नहीं रहता,क्या भरोसा तुम्हारा,आधी रात गए तुम मुझे सांप-बिच्छू बना दो तो मैं क्या बिगाड़ लूंगा तुम्हारा,तुम ठहरे जादूगर और ये भी तो पक्का पता नहीं है कि तुम ही सुवर्ण हो,मानिक चंद बोला।।
इसका मतलब तुम्हारा सोने का कोई इरादा नहीं है, सुवर्ण बोला।।
ऐसा ही कुछ समझो,मानिक चंद बोला।।
तो सुनो,अब पूरी कहानी ही सुन लो,शायद तुम्हें मुझ पर भरोसा हो जाए।।
जिसने मुझे कैंद़ किया,वो एक तांत्रिक था जिसका नाम अघोरनाथ था,वो बहुत बड़ा अघोरी था, उसने मेरी सुरक्षा के लिए मुझे उस गुफा में क़ैद किया था ताकि मैं सुरक्षित रहूं, सुवर्ण बोला।।
अब ये क्या फिर से एक नई कहानी,आखिर सच क्या है? पूरी बात ठीक से बताओ,मानिक चंद खींजकर बोला।।
सुवर्ण हंसकर बोला___
अच्छा ठीक है तो सुनो पूरी कहानी।।
जितनी पहले सुनाई वो सारी कहानी सच है और जो अब सुनाने जा रहा हूं,वो भी पूरी तरह सच है।।
अच्छा.. अच्छा... ठीक है,अब सुनाओ भी,मानिक चंद बोला।।
हुआ यूं कि ___
बहुत साल पहले की बात है,एक आदमी था जिसका नाम अघोरनाथ था,उसे तांत्रिक बनने की बहुत इच्छा थी, उसके परिवार में उसकी पत्नी और बेटी ही थे,उसकी भीतर तांत्रिक बनने की इतनी तीव्र इच्छा हुई कि उसने अपना घर छोड़कर शवदाहगृह में अपना बसेरा कर लिया।।
वहां उसे और भी कई अघोरियों का साथ मिल गया,वो घंटों जलते हुए शव पर अपनी तंत्र विद्या आजमाता, उसने इस तपस्या में अपने जीवन के ना जाने कितने साल गंवा दिए,इस दौरान वो अपने घर भी नहीं लौटा वहां उसकी पत्नी और बेटी उसकी राह देखते रहे।।
अब बेटी जवान और सयानी हो चुकी थी,इसी दौरान उसे किसी जादूगर ने अपने प्रेम जाल में फंसा लिया,वो लड़की कोई और नहीं चित्रलेखा थीं और वो जादूगर शंखनाद था।।
चित्रलेखा, शंखनाद के प्रेम में वशीभूत होकर,उसकी सारी बातें मानने लगी, धीरे धीरे शंखनाद ने उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया,उसे जादूगरी में परांगत कर दिया लेकिन ये सब चित्रलेखा की मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं था,वो नहीं चाहती थीं कि उसकी बेटी जादूगरनी बनकर, लोगों को नुकसान पहुंचाए।।
एक रोज मां बेटी में बहुत बहस हुई और गुस्से में आकर चित्रलेखा ने अपनी मां की हत्या कर दी,ये बात उसने शंखनाद को बताई और इस बात का पूरा पूरा फायदा शंखनाद ने उठाया, उसने चित्रलेखा को जरिया बनाया अपना मक़सद पूरा करने में, क्योंकि चित्रलेखा को नहीं शंखनाद को नवयुवकों के हृदय से बने तरल पदार्थ पीने की आवश्यकता थी क्योंकि उसे लम्बी उम्र चाहिए थी।।
और इस साज़िश का शिकार पहले नीलाम्बरा और नीलकमल के पिता हुए और बाद में मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन,उसका हृदय निकालकर उसके मृत शरीर को घोड़े पर भेज दिया गया था।।
जब मुझे ये पता चला कि मेरा बड़ा भाई शुद्धोधन नहीं रहा तो मुझे यहां आना पड़ा और इसके बाद की कहानी तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं, सुवर्ण ने कहा।।
ये सब तो मैं समझ गया लेकिन तुमने ये नहीं बताया कि तुम उस गुफा में क़ैद कैसे हुए,मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..भाई सब बताता हूं थोड़ा सब्र रखो, सुवर्ण हंसते हुए बोला।।
 
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भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।।
रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया, वो मुंह के बल आकर जमीन पर फिर से गिर पड़ा, उसके माथे पर बहुत गहरी चोट लग चुकी थीं और बहुत खून बह रहा था, वो पूरी हिम्मत लगाकर खड़ा हुआ तो उस शक्ति ने चाकू से उसके सीने पर वार किया लेकिन उसी समय किसी ने धक्का देकर उसे धकेल दिया जिससे चाकू का वार खाली चला गया।।
उसे धक्का देने वाले व्यक्ति ने उसी समय कुछ मंत्र पढ़ें और वो शक्ति हवा में गायब हो गई।।
उस व्यक्ति ने मानिक चंद को सहारा देकर खड़ा किया और पूछा__
ठीक हो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी।।
मानिक चंद उन्हें हैरानी के साथ देखते हुए बोला__
मैं ठीक हूं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो समय पर आकर आपने मेरी जान बचाई।।
मुझे मालूम था कि शंखनाद ऐसी कोई हरकत जरूर करेगा इसलिए मैं उसे गुफा में क़ैद करके गया था, पता नहीं गुफा से उसे किसने आज़ाद कर दिया,वो व्यक्ति बोला।।
जी, मैंने उसे आजाद किया लेकिन वो तो सुवर्ण था,मानिक चंद फिर हैरान होकर पूछा।।
तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा
A
रहस्यमयी टापू--भाग (८)
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रहस्यमयी टापू--भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।
और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।।
रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा मे


तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा।।
मुझे तो उसने खुद बताया कि वो सुवर्ण है और जो उस घर में रह रही हैं वो नीलकमल हैं,जो समुद्र तट पर जलपरी मिली थी वो चित्रलेखा थीं,जो समुद्र तट में पंक्षी था वो शंखनाद है,मानिक चंद एक सांस में सब कह गया।।
अच्छा तो ये बात है, उसने तुम्हें गुमराह करने की कोशिश की,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन महाशय!! आखिर आप कौन हैं? मेरा तो सर चकरा रहा हैं,हर बार किसी ना किसी के मिलने पर नई कहानी,अब आप भी सच बोल रहे हैं या झूठ, मैं ये कैसे मानूं,मानिक चंद खींज कर बोला।।
मैं अघोरनाथ हूं,उस व्यक्ति ने कहा।।
अच्छा तो आप ही चित्रलेखा के पिता हैं,मानिक चंद बोला।।
हां, मैं ही उसका अभागा बाप हूं जिसकी इतनी क्रूर बेटी हैं, मैं जिंदगी भर लोगों की भलाई करता रहा और मेरी बेटी ने तो इन्सानियत की हद ही पार कर दी, अघोरनाथ बोला।।
अब, मैं कैसे मान लूं कि आप सच बोल रहे हैं,मानिक चंद ने कहा।।
हां,तुम बिल्कुल सही कह रहे हो,ये तिलिस्म से भरा टापू हैं यहां एक बार जो आ गया वो वापस नहीं जा सकता क्योंकि शंखनाद सबके हृदय निकाल कर अपना जीवन बढ़ाने वाला तरल बनाता है और इस काम में उसका पूरा पूरा सहयोग मेरी बेटी चित्रलेखा करती है, अघोरनाथ बोला।।
इसलिए तो मुझे संदेह हो रहा कि आप सच में अघोरनाथ ही हैं,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये लो परिमाण, नीलगिरी राज्य के राजा का पत्र, उन्होंने मुझे अपने छोटे बेटे सुवर्ण की रक्षा के लिए नियुक्त किया है, अघोरनाथ ने पत्र,मानिक चंद के हाथ में सौंपते हुए कहा।।
मानिक चंद ने वो पत्र पढ़ा और बोला___
मानिक चंद बोला, परंतु आप यहां से कहां गए थे,शंखनाद को उस गुफा में कैद़ करके।।

क्रमशः____
 
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भाग (९)..!!

मैं अपने और भी सहयोगियों से इस कार्य के लिए मदद मांगने गया था क्योंकि चित्रलेखा और शंखनाद अब इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि मैं अकेले ही उन दोनों के जादू को नहीं तोड़ सकता, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन अब भी मैं आपके उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं,मानिक चंद बोला।।
लेकिन क्यो? मैं सत्य बोल रहा हूं, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन मैं कैसे मान लूं कि आप एकदम सत्य कह रहे हैं,हो सकता है वो नीलगिरी राज्य के महाराज का पत्र झूठा हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,अब आप ही बताइए तो मैं ऐसा क्या कर सकता हूं,आपके लिए जिससे आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाए, अघोरनाथ ने पूछा।।
अच्छा तो आप समुद्र तट पर चलकर पहले ये निश्चित करें कि वो जलपरी नीलकमल हैं और वो पंक्षी सुवर्ण है,आप उन्हें ये आश्वासन दे कि आप उनके प्राण बचा लेंगे,आप उनकी रक्षा के लिए ही नियुक्त किए गए हैं,मानिक चंद ने अघोरनाथ से कहा।।
हां.. हां..क्यो नही!!भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है,मेरा तो यही कार्य है, असहाय प्राणियों की रक्षा करना, मैं तो हमेशा ऐसे कार्यों के लिए तत्पर रहता हूं, मैंने तंत्र विद्या केवल इन्हीं कार्यो के लिए ही सीखी थी और आपको विश्वास दिलाने के लिए मैं अवश्य ही उन दोनों से मिलने चलूंगा, अघोरनाथ बोले।।
अघोरनाथ और मानिक चंद समुद्र तट की ओर चल पड़े, दोनों भूखे और प्यासे भी हो चले थे,रास्ते में कच्चे नारियल तोड़कर उन्होंने अपनी प्यास बुझाई, फिर समुद्र तट पर कुछ मछलियां पकड़ कर भूनी, उन्हें खाकर मानिक चंद तृप्त हुआ परंतु अघोरनाथ जी ने मछलियों का सेवन नहीं किया उन्होंने कहा कि मैं मांसाहार अभी नहीं कर सकता,हो सकता है मुझे अभी मंत्रों का उच्चारण करना पड़ जाए और ये निषेध हैं और वैसे भी मैं मांसाहार नहीं करता, इसमें मुझे रूचि नहीं है, मैं कुछ जड़ें भूनकर खा लेता हूं और खा पीकर दोनों लोग उसी जगह नीलकमल की प्रतीक्षा करने लगें, जहां मानिक चंद को नीलकमल मिली थीं।।
कुछ समय के पश्चात् नीलकमल समुद्र में तैरती हुई दिखी,मानिक चंद ने उसे आवाज़ लगाई।। नीलकमल पत्थरों पर आकर बैठ गई और मानिक चंद से पूछा।।
मैंने आपकी कितनी प्रतीक्षा की, कहां रह गए थे आप, कुछ पता किया आपने, चित्रलेखा के विषय में,कब तक मुझे इस रूप में सुवर्ण से अलग होकर रहना पड़ेगा, बहुत ही विक्षिप्त अवस्था है मेरी,मेरी अन्त: पीड़ा को समझने का प्रयास करें।।
इसलिए तो मैं इन महाशय को आपसे मिलवाने लाया था,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
कौन हैं ये?ये भी चित्रलेखा की तरह कोई मायावी ना हो, आपने कैसे इन पर विश्वास कर लिया, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
नहीं.. नहीं.. वैसे आपका सोचना एकदम सही है, कोई भी होता तो ऐसी ही प्रतिक्रिया देता लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं कभी भी आपको और सुवर्ण को कोई भी हानि नहीं होने दूंगा,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
आप कह रहे हैं तो मान लेती हूं, वैसे है कौन ये? नीलकमल बोली।।
ये बहुत बड़े तांत्रिक अघोरनाथ जी हैं,साथ में ये चित्रलेखा के बहुत बड़े शत्रु भी है और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि चित्रलेखा के पिता भी है,इनकी ख्याति देखकर नीलगिरी के महाराज जोकि सुवर्ण के पिता हैं, उन्होंने ही इन्हें सुवर्ण के प्राणों की रक्षा हेतु नियुक्त किया है,मानिक चंद बोला।।
परंतु इसका क्या प्रमाण हैं कि ये जो बोल रहे हैं,वो सत्य ही होगा,हो सकता है कि ये कोई तांत्रिक ही ना हो,ये तुम्हें रि‌झाने के लिए कोई मायावी रूप धरकर आए हो, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
तो आपको मेरी बातों पर अब भी संदेह और अगर मैं आपको पुनः आपके वहीं पहले वाले रूप में लाने में सफल हो जाऊं तो क्या तब भी आपको किसी प्रमाण की आवश्यकता होगी, अघोरनाथ बोले।।
जी,अगर आपका प्रयास सफल हो तो मुझे और सुवर्ण को नया जीवन मिल जाएगा,हम आपका यह आभार जीवन भर नहीं भूलेंगे, नीलकमल बोली।।
तो ठीक है, कहां है सुवर्ण? उन्हें भी बुलाए, मैं अभी आप लोगों के पुराने रूप में लाने का प्रयास करता हूं,मेरे कारण आप लोग अपने पुराने रूप में आ गए तो सबसे ज़्यादा प्रसन्नता मुझे ही होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली, मैं अभी सुवर्ण को आवाज लगाती हूं
और नीलकमल ने सुवर्ण को जोर जोर से आवाज़ लगाई__
सुवर्ण.... सुवर्ण... कहां हो? यहां आओ,ये लोग तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे,मेरी बात पर विश्वास रखों,इन महाशय को आपके पिताश्री ने ही आपकी रक्षा हेतु नियुक्त किया है,आप तनिक भी भयभीत ना हो।।
और थोड़ी देर बाद सुवर्ण वहां उड़ते हुए आ पहुंचा__
अघोरनाथ ने एक जगह बैठकर अग्नि जलाई,उस अग्नि के चारों ओर कुछ चिन्ह अंकित किए, तत्पश्चात् अपने नेत्र बंद करके कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया, अपने कमण्डल से जल लेकर अग्नि पर जल का छिड़काव करते, बहुत देर की तपस्या के बाद उन्होंने अब की बार जल का छिड़काव नीलकमल और सुवर्ण पर किया औरसुवर्ण पर किया और देखते ही देखते दोनों अपने पुनः वाले रूप में आ गए।।
नीलकमल अत्यधिक प्रसन्न हुई, उसने अघोरनाथ जी के चरणस्पर्श करते हुए कहा कि___
क्षमा करें!! बाबा,जो मैंने आप पर संदेह किया, बहुत बहुत आभार आपका, आपने हमें नया जीवन दिया है।।
सदा प्रसन्न रहो, पुत्री!! और आभार किस बात का तुम तो मेरी पुत्री समान हो,ये तो मेरा कर्त्तव्य था,ये तो मैंने मानवता वश किया, किसी की सहायता कर सकूं,ये तो मेरे लिए बड़े गौरव की बात होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली और मानिक भाई आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद,आज से आप मेरे बड़े भाई हुए,अगर आप ना होते तो हम दोनों कतई भी अपने पहले वाले रूप नहीं आ पाते,आप ही बाबा को यहां लाए और उन्होंने हमारी सहायता की, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।‌
ऐसा ना कहो, नीलकमल बहन,ये तो मेरा धर्म था,अपनी बहन की सहायता करना तो मेरा कर्तव्य है,मानिक चंद बोला।।
और उस दिन सब बहुत प्रसन्न थे,मानिक चंद की उलझन खत्म हो चुकी थीं, उसे अब अघोरनाथ पर संदेह नहीं रह गया, नीलकमल भी अपने पहले वाले रूप में आ चुकी थीं लेकिन अब यह सबसे बड़ी उलझन थी कि चित्रलेखा और शंखनाद का क्या किया जाए।।
बस,इसी बात को लेकर उन सब में वार्तालाप चल रहा था।।
मैं अभी तक शंखनाद की शक्तियों का पता नहीं लगा पाया हूं कि वो कितना शक्तिशाली हैं, उसके साथ चित्रलेखा भी है, चित्रलेखा को भी कम नहीं समझना चाहिए, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन बाबा कुछ तो ऐसा होगा जो उन दोनों के जादू को तोड़ सकता हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा, भइया,आप चित्रलेखा के घर में रूके, आपको वहां कुछ भी ऐसा आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं हुआ कि ये कैसे हो सकता है, सुवर्ण बोला।।
नहीं, सुवर्ण, ऐसा तो कुछ नहीं लगा,मानिक चंद बोला।।
परन्तु, कुछ ना कुछ तो ऐसा अवश्य होगा जो आपको लगा हो कि यहां नहीं होना चाहिए था,या ऐसी कोई घटना जो कुछ विचित्र प्रतीत हुई हो, नीलकमल बोली।।
नहीं ऐसा तो कुछ,याद नहीं आ रहा लेकिन याद आते ही बताऊंगा, मस्तिष्क पर जोर डालना पड़ेगा,मानिक चंद बोला।।
ऐसा कुछ तो अवश्य ही होना चाहिए, जिससे चित्रलेखा की दुर्बलता का पता चल सकें,ये तो वहीं जाकर ज्ञात हो सकता है, अघोरनाथ जी बोले।।
लेकिन ऐसा साहस कौन कर सकता है भला, क्योंकि अब तक तो मेरी सच्चाई भी चित्रलेखा को शंखनाद ने बता दी होगी और वो अत्यधिक सावधान हो गई होंगी, मानिक चंद बोला।।
हां,ये भी सत्य है, अघोरनाथ बोले।।
अब इसका क्या समाधान निकाला जाए, सुवर्ण बोला।।
 
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भाग (१०)

अघोरनाथ जी बोले___
अभी तो हम सब एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हैं, रात्रि भी गहराने वाली, कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करते हैं, इसके उपरांत विश्राम करके प्रात: सोचेंगे कि क्या करना है।।
तभी,मानिक चंद भी बोला__
आपका कहना उचित है बाबा!! चलिए सर्वप्रथम कोई झरना देखते हैं,इसके उपरांत वहीं अग्नि जलाकर विश्राम करेंगे।।
सब ने एक झरना ढूंढा और वहां अग्नि जलाकर खाने पीने का प्रबन्ध किया,इसके उपरांत सब खा पीकर विश्राम करने लगे।।
आधी रात होने को आई थीं,सब थके हुए थे इसलिए शीघ्र ही गहरी निद्रा में लीन हो गए।।
तीसरा पहर होने को था, तभी अघोरनाथ को किसी की पुकार सुनाई दी, उनकी आंख खुली, कुछ देर तक वो सुनते रहे परंतु कोई भी ध्वनि , कोई भी स्वर सुनाई नहीं दिया,तब उन्होंने सोचा कदाचित् कोई वनीय जीव होगा, अधिकांशतः जानवर रात को रोते हैं, उन्होंने फिर अपने हाथ को सर के नीचे रखा और सो गए, परंतु कुछ समय उपरांत वो स्वर फिर सुनाई दिया।।
अब अघोरनाथ जी को लगा,हो ना हो कोई ना कोई बात जरूर है , सावधान हो जाना चाहिए, ऐसा ना हो कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र हो,उसी समय उन्होंने सब को जगाया और उस स्वर को सुनने के लिए कहा।।
सबने अपना ध्यान लगाकर उस स्वर को सुनने का प्रयास किया, सभी को वो बीभत्स सा स्वर सुनाई दिया,सब बहुत भयभीत भी हो चुके थे।।
अघोरनाथ जी बोले,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते,हो सकता वहां कोई विपत्ति में हो और हमें सहायता के लिए पुकार रहा हो परन्तु ये भी संदेह हो रहा है कि चित्रलेखा और शंखनाद का कोई षणयन्त्र ना हो,ये सब मेरी समझ से परे हैं।।
तभी सुवर्ण बोला__
बाबा!! आप सब यहां ठहरे, पहले मैं जाता हूं,अगर मैं कुछ समय तक ना लौटा तो आप सब भी आ जाना क्योंकि मुझे थोड़ा बहुत तो जादू आता है।।
अघोरनाथ बोले, हां !! यही उचित रहेगा।।
परंतु हम सब भी तुमसे अत्यधिक दूरी पर नहीं रहेंगे,हम भी साथ साथ ही रहेंगे परन्तु कुछ ही दूरी पर।।
सबने कहा, हां यही उचित रहेगा।।
और सब उस अंधेरी रात में उस ध्वनि की दिशा में चल पड़े।।
अत्यधिक निकट जाने पर सुवर्ण सावधान होकर उस स्थान पर पहुंच गया, उसने डरते हुए पूछा__
कौन है?..कौन है?... यहां पर,किसका स्वर हैं जो इतना पीड़ादायक हैं।।
तभी उधर से स्वर आया___
ये बताओ कि तुम कौन हो, मैं सब समझती हूं शंखनाद!! ये पुनः तुम्हारा कोई ना कोई षणयन्त्र है, परन्तु अब मेरे पास कुछ भी नहीं रह गया है,सब तो पहले ही ले जा चुके हो।।
परन्तु मैं शंखनाद नहीं हूं, मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं, कृपया आप चिंतित ना हों, मुझे अपनी समस्या बताएं, संभव हो सका तो मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा, मुझ पर विश्वास रखें, सुवर्ण बोला।।
परन्तु, मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं,हो सकता है तुम कोई मायावी हो,हो सकता है तुम्हें शंखनाद ने भेजा हो,उधर से स्वर आया।।
तब तक अघोरनाथ और सब भी वहां पहुंच चुके थे, तभी अघोरनाथ बोले___
आप चिंतित ना हो, मैं अघोरनाथ हूं,आप अपनी समस्या मुझसे कहें ताकि मैं कोई समाधान कर सकूं।।
परन्तु मैं आप सब पर कैसे विश्वास करूं,उस स्वर ने कहा।।
हमने भी तो आपकी बातों पर विश्वास कर लिया ना, सुवर्ण ने कहा।।
अच्छा तो सुनिए मेरी कहानी___
उस स्वर ने कहना प्रारम्भ किया___
मैं इस वन की देवी हूं,मेरा नाम शाकंभरी है, मेरे पिताश्री इस वन के राजा थे,उनका नाम वेदांत था,वे इस वन की रक्षा किया करते, उनके पास बहुत सी शक्तियां थीं, उन्होंने बचपन से ही अपनी शक्तियां और ज्ञान मुझे देना शुरू कर दिया था।
यौवनकाल तक मुझमें बहुत सी शक्तियां आ गई, मैं इतनी शक्तिशाली थीं कि अपनी शक्तियों से अपने पंख भी प्राप्त कर लिए,जिनकी सहायता से उड़कर मैं किसी की भी सहायता करने वन में कहीं भी शीघ्र पहुंच सकती थीं।।फिर पिताश्री ने घोषणा की कि वो मुझे इस वन की देवी। बनाना चाहते हैं और उन्होंने अपनी सारी शक्तियां मेरे पंखों में दे दीं जिससे मैं और भी शक्तिशाली हो गई,तब पिताश्री ने मुझे इस वन की देवी घोषित कर दिया।।
इस बात की सूचना शंखनाद को हो गई और वो एक लकड़हारे का रूप धर इस वन में रहने लगा और मेरे सारे क्रियाकलापों पर ध्यान देने लगा,उसे पता चल गया कि मेरे पास बहुत ही शक्तिशाली मायावी पंख हैं जिनका उपयोग में किसी भी असहाय की सहायता करने में करतीं हूं।
और इसी बात का उसने लाभ उठाया, उसने मेरे सामने अच्छा बनने का अभिनय किया और अपने मोहपाश में मुझे बांध लिया और मैं उसके प्रेम में पागल होकर अपने पिता के भी विरूद्ध हो गई,एक दिन शंखनाद ने मेरे पिता श्री को असहाय जानकर उनकी हत्या कर दी, उनका मृत शरीर मुझे वन में पड़ा हुआ मिला, तभी एक तोते ने मुझे सारी सच्चाई बताई जो कि मेरे पिताश्री का पालतू था,उस दिन मुझे शंखनाद की सच्चाई का पता लगा।‌
और एक रात मैंने शंखनाद से इस विषय में पूछा,तब उसने रोते हुए अपनी भूलों की क्षमा मांग ली,मेरा हृदय भी पसीज गया और मैंने उसे प्रेम के वशीभूत होकर उसे क्षमा कर दिया।।
परन्तु, मैं उस रात उसका षणयन्त्र समझ ना सकीं, उसने उस रात चित्रलेखा को जादू करने को बुला लिया था,वो यहां आकर वन के जीवों और पेड़ पौधों को हानि पहुंचाने लगी,तब शंखनाद ने कहा__
शाकंभरी!! अपने पंखों का उपयोग करों।
मैंने अपने पंख प्रकट कर उन सब जीवों की रक्षा करने लगी, मैं तो चित्रलेखा का जादू तोड़ने में ध्यानमग्न थी तभी शंखनाद ने अपनी पेड़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मेरे पंख काटकर अपने साथ ले गया,उन पंखों के साथ मेरी सारी शक्तियां भी चली गई और इस वन की सुंदरता भी चली गई,उस रात से मैं आज तक रात को अपने पीड़ा से कराह उठती हूं,रात को रहकर रहकर पीड़ा उठती है, मैं अपनी शक्तियों के बिना असहाय हूं, मुझे मेरे पंख चाहिए।।
मेरा जीवन,मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है,तबसे शंखनाद और चित्रलेखा ने इस वन को नर्क बना दिया है,इस वन की सुंदरता नष्ट हो गई है, मैं इस वन की देवी हूं और मैं किसी की भी सहायता नहीं कर सकती, मुझे ये बात बहुत ही पीड़ा देती है।।
हे,वनदेवी !! कृपया आप इतनी दुखी ना हो,हम सब अवश्य आपकी सहायता करेंगे, परन्तु आपको भी हमारी सहायता करनी होगी की हम किस प्रकार उन दोनों से जीत सकते हैं कुछ तो ऐसा होगा, जो उन्हें भी भयभीत करता होगा, अघोरनाथ जी बोले।।
हां.. हां..क्यो नही, मुझे जो भी जानकारी उन लोगों के विषय में है वो मैं आप लोगों को अवश्य बताऊंगी, शाकंभरी बोली।।
लेकिन आप इतने अंधेरे में क्यो है?इस बड़े से वृक्ष के तने के भीतर क्यो बैठी है, कृपया बाहर आएं,हम सब आपको कोई भी हानि नहीं पहुंचाएंगे, सुवर्ण बोला।।
और इतना सुनकर शाकंभरी वृक्ष के तने से बाहर आई।।
 
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Bhaiyo phone hang ho raha hai mere paas etne paisa nahi hai ke new phone le lun kehte hain dard baatne se kam ho jata hai isliye emotional ho ke likh diya
 
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भाग (११)

शाकंभरी पेड़ के मोटे तने से जैसे ही बाहर निकली,इतने घुप्प अंधेरे में जंगल में रोशनी ही रोशनी फैल गई,उस नजारे को देखकर ऐसा लग रहा था कि हजारों-करोड़ो जुगनू जगमगा रहे हो।।
रोशनी को देखकर सबकी आंखें चौंधिया रही थीं, शाकंभरी की रोशनी से सारा जंगल जगमगा रहा था, थोड़ी देर में शाकंभरी ने खुद को एक लबादे से ढक लिया, ताकि उसकी रोशनी छिप जाए,अब केवल उसका चेहरा ही दिख रहा था।।
फिर बोली, मेरे पंख शंखनाद ने चुरा लिए है इसलिए मैं आपकी मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि मेरी सारी शक्तियां उन्हीं पंखों में है और उन पंखों की मदद के बिना मैं उड़ नहीं सकती, किसी का जादू नहीं तोड़ सकती, मैं आपलोगों की सहायता तभी कर पाऊंगी जब मैं उन सब का जादू तोड़ सकूं और इसके लिए मुझे कुछ ऐसी वस्तु चाहिए जिसकी सहायता से मैं उड़ सकूं।।
हां,हमें क्या करना होगा,हम आपकी सहायता के लिए तैयार है,मानिक चंद बोला।।
इसके लिए आप सबको एक कार्य करना होगा यहां से दक्षिण दिशा की ओर मेरा बहुत पुराना मित्र बकबक बौना रहता है उसके पास एक उड़ने वाला घोड़ा है जिस की सहायता से मैं तुम लोगों की मदद कर सकतीं हूं।।
परन्तु बकबक बौने को ढूंढना बहुत ही मुश्किल है, चूंकि वो बहुत ही छोटा है, इसलिए ना जाने कहां बिल बनाकर रह रहा होगा और अपने घोड़े को एक ताबीज में बदल कर हमेशा अपने गले में पहने रहता है, बहुत समय से मैं उससे नहीं मिली,अगर उसे इन सबकी सूचना मिल गई होती तो वो अवश्य ही अभी तक मेरी सहायता के लिए आ पहुंचता।।
परन्तु,हम किस तरह पहचान करेंगे कि वो ही बकबक बौना है,हो सकता है कि वहां और भी बौने रहते हो, सुवर्ण ने शाकंभरी से कहा।।
हां, राजकुमार सुवर्ण आप ठीक कह रहे हैं वो बौनो की ही बस्ती है, वहां बौने ही बौने बड़े बड़े पेड़ों के तनों के अंदर अपनी अपनी बस्तियां बनाकर रहते हैं और जरूरतमंदों की सहायता भी करते हैं, शाकंभरी बोली।।बकबक बौने का भी तो अपना परिवार होगा,जिनके साथ वो रहता होगा,मानिक चंद ने शाकंभरी से पूछा।
हां,था उसका भी एक परिवार था लेकिन अब नहीं रहा,इसके पीछे भी एक लम्बी कहानी है, शाकंभरी ने दुखी होकर कहा।।
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ था, बेचारे बकबक बौने के साथ कि उसे अपना परिवार खोना पड़ा,नीलाम्बरा ने शाकंभरी से पूछा।।
तब शाकंभरी ने बकबक बौने की कहानी सुनानी शुरू की।।
बहुत समय पहले उसी जंगल में बुझक्कड़ बौना अपने परिवार के साथ रहता था,वो उस समय वहां का राजा था, तभी एक दिन कुछ बौने बुझक्कड़ बौने के पास फरियाद लेकर आए कि काले पहाड़ पर सर्पीली रानी रहती है जिसका चेहरा औरत जैसा और शरीर सांप जैसा है, उसने ना जाने कितने सांप पाल रखे थे,जिस भी बौने को वो देख लेती उसे तुरन्त ही अपने पाले हुए सांपों से निगलने के लिए कहती हैं फिर राक्षसी हंसी हंसकर आनन्द उठाती।।
ये सुनकर बुझक्कड़ बौने ने कहा कि तुम लोग काले पहाड़ पर जाना क्यो नही छोड़ देते।।
तब दूसरे बौने बोले,हम सब वहां नहीं जाते लेकिन सर्पीली रानी ने अपने सांपों को हमारे रहने के स्थान पर छोड़ दिया और वो सांप हर दिन किसी ना किसी बौने को निगल जाते हैं,आप जाकर सर्पीली रानी से कहें कि वो अपने सांपों को बुला ले।।
ठीक है, मैं आज ही कुछ लोगों को लेकर सर्पीली रानी के पास जाता ,बुझक्कड़ बौने ने कहा।।
ऐसा कहकर बुझक्कड़ बौना कुछ सैनिक बौने के साथ सर्पीली रानी के पास चल पड़ा।।
सर्पीली रानी के पास पहुंचते ही बुझक्कड़ बौने ने सर्पीली रानी से विनती की ,कि कृपया आप अपने सांपों को बौनों के जंगल से बुला लीजिए,आपके सांपों ने जंगल में तबाही मचा रखी है,हर रोज कई बौनो को निगल जाते हैं।।
लेकिन,सर्पीली रानी ,बुझक्कड़ बौने की बात सुनकर क्रोधित हो उठी और उसने कहा, यहां से चले जाओ नहीं तो मैं भी तुझे निगल जाऊंगी।।
लेकिन बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी की बातों से डरा नहीं और अपने सैनिकों के साथ उस पर हमला कर दिया लेकिन सर्पीली रानी बहुत ताकतवर थी उसने बुझक्कड बौने को अपनी पूंछ से दूर उछाल दिया और बौने सैनिकों को निगल गई, फिर भी बुझक्कड़ बौने ने हार नहीं मानी फिर से तलवार लेकर सर्पीली की ऊपर हमला कर दिया लेकिन इस बार बुझक्कड़ बौना,सर्पीली रानी के वार से बच ना सका और अपनी जान से हाथ गंवा बैठा।।
बकबक बौने को इस बात का पता चला और वो सर्पीली रानी से बदला लेने चल पड़ा और अकेले ही रात के वक्त सर्पीली रानी से भिड़ गया,सर्पीली रानी की आंखों में बहुत सी धूल झोंक कर उसे घायल कर दिया लेकिन इस लड़ाई में बकबक बौने को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी,इसकी वजह से बकबक बौने को अपना बदला अधूरा छोड़ कर ही लौटना पड़ा,उस दिन के बाद सारे बौने छुपकर रहने लगे और बकबक बौना अपनी सेना तैयार करने में जुटा है ताकि वो अपने पिता का बदला ले सकें,उस समय मैंने बकबक बौने से कहा था कि मैं तुम्हारी सहायता करूं लेकिन उसने ये कहकर मना कर दिया कि ये मेरी समस्या है और मैं ही समाधान करूंगा, शाकंभरी बोली।।तब अघोरनाथ बोले,इसका मतलब हमें अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,बकबक बौने को ढूंढकर जल्द ही उड़ने वाले घोड़े को लाना होगा।।
सबने कहा सही बात है और शाकंभरी से विदा मांगकर वो सब दक्षिण दिशा की ओर बकबक करते को ढूंढने चल पड़े।।
दो रात और दो दिन के लम्बे समय के बाद वो सब उस जंगल में पहुंचे जहां बकबक बौना रहता था ।।
 
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भाग (१२)

सभी लोग बकबक बौने को ढ़ूढ़ते हुए बहुत बुरी तरह थक चुके थे, तभी राजकुमार सुवर्ण ने कहा___
चलिए, पहले अच्छी सी जगह ढ़ूढ़ कर थोड़ी देर विश्राम करते हैं, इसके बाद बकबक बौने को ढूंढते हैं, सबने राजकुमार सुवर्ण की बात पर सहमति जताई और एक अच्छी सी झरने वाली जगह खोजकर कुछ खाने पीने का इंतजाम कर खा-पीकर विश्राम करने लगे, थोड़ी देर विश्राम करने के बाद सुवर्ण को महसूस हुआ कि उसके कंधे पर आकर कुछ चुभा हैं,जब तक वो कुछ समझता इसके बाद शरीर के और भी अंगों पर कुछ सुई के सामान आकार वाली चीजें आकर चुभने लगी।।
जैसे ही वो चीजें सुवर्ण को आकर चुभती ,सुवर्ण दर्द से कराह उठता, उसने सबको आवाज देकर जगाया पर ये क्या? वो तो सभी को आकर चुभने लगीं, कोई कुछ समझ ही नहीं पा रहा था।।
तभी अघोरनाथ जी उस दिशा में गए,जिस दिशा से वो सुई के आकार वाली चीजें आ रहीं थीं, उन्होंने देखा कि एक बौना अपने धनुष से एक साथ पांच पांच तीर अधाधुंध छोड़े जा रहा है, अघोरनाथ जी चुपके-चुपके से उस बौने के पीछे गए और अपनी बांहों में उसे दबोच लिया।।
अब वो बौना छूटने के लिए कसमसाने लगा, चीखने लगा कि मुझे छोड़ दो.... मुझे छोड़ दो।।
तभी अघोरनाथ जी बोले__
पहले ये बताओ कि तुम कौन हो और हम सब पर तीर क्यो छोड़ रहे थे?
क्यो बताऊं कि मैं कौन हूं,जाओ नहीं बताता कि मैं कौन हूं,जो करना है कर लो,उस बौने ने कहा।।
तब तक सब उस बौने के पास पहुंच गए, अघोरनाथ जी ने पुनः पूछा कि बताओ तुम कौन हो? लेकिन उस बौने ने मुंह नहीं खोला।।
तब सुवर्ण उस बौने को पेड़ की लताओं के सहारे बांधकर बोला जब तक तुम नहीं बताते कि तुम कौन हो,हम तुम्हें कहीं नहीं जाने देंगे।।
तभी नीलकमल बोली तो अब क्या करें? किस दिशा में जाए? विश्राम भी नहीं हुआ,वन की देवी शाकंभरी ने तो यहीं जगह बताई थी कि बकबक बौना यहीं मिलेगा,हमलोगों ने तो इस जगह के हर कोने में खोज लिया लेकिन बकबक बौना कहीं नहीं मिला।।
उस बौने ने ये सब सुना और बोला तुम लोग शाकंभरी को कैसे जानते हो?
सुवर्ण बोला, तुमसे मतलब!!
हां.. हां.. वो तो मेरी मित्र हैं, बौना बोला।।
मतलब क्या है? तुम्हारा, सुवर्ण ने पूछा।।
मतलब वो मेरी मित्र हैं, मैं उसे जानता हूं, बौने ने कहा।।
कहीं तुम ही तो बकबक बौने नहीं हो, सुवर्ण ने फिर पूछा।।
हां.. मैं ही बकबक बौना हूं,तुमलोग मुझे कैसे जानते हो? उस बौने ने पूछा।।
अरे, तुम ही बकबक हो, तुम्हारे बारे में हमें वनदेवी शाकंभरी ने बताया, अत्यंत दयनीय अवस्था से गुजर रहीं हैं वो, सुवर्ण बोला।।
ऐसा क्या हुआ? कृपया मुझे भी विस्तार से बताएं, उसने मुझसे सहायता क्यो नही मांगी,बकबक बौने ने कहा।।
बहुत ही दुखभरी कथा है बेचारी की, जिससे प्रेम करती थीं, उसने उसके साथ विश्वासघात किया, अपने पिता के भी विरूद्ध हो बैठी,उसके प्रेमी ने उसके पिता की हत्या कर उसके पंख धोखे से चुरा लिए,अब वो बहुत ही असहाय अवस्था में हैं,उसका सारा जादू उसके पंखों में तो था।।उसी ने तो हमें तुम्हारे विषय में बताया कि तुम्हारे पास उड़ने वाला घोड़ा है,जिसकी सहायता से अपने प्रेमी को ढूंढकर अपने पंख वापस लेना चाहती है क्योंकि वो बहुत ही बड़ा जादूगर है और खुद की भलाई के लिए किसी की भी हत्या कर सकता है, उसके साथ अघोरनाथ जी की बेटी चित्रलेखा भी है जो उसकी सहायता करती है, सुवर्ण बोला।।
इतना सबकुछ हो गया और मुझे इस विषय में कुछ पता ही नहीं,बकबक बौने ने कहा।।
हां...वो ये मानिक चंद आए, इन्हें अघोरनाथ जी मिले,तब इन्होंने नीलकमल और मुझे हमारे असली रूप में परिवर्तित किया, सुवर्ण बोला।।
परंतु अब वो उड़ने वाला घोड़ा मेरे पास नहीं है,वो तो मुझसे कहीं खो चुका है,वो किसके पास है और कहां खोया है वो तो सांख्यिकी मां ही बता सकतीं हैं,बकबक बौने ने कहा।।
ये सांख्यिकी मां कौन है? अघोरनाथ जी ने पूछा।।
वो बहुत ही बूढ़ी आदिवासी मां है,जो दूर ऊंचे पहाड़ों पर रहतीं हैं, उन्हें तीनों कालों के विषय में ज्ञान है वो भविष्यवाणी बताती है और खोई चींजों के बारे में भी पता लगा सकती है,मेरे पिता जी अक्सर उनके पास ही सलाह मशविरे के जाते थे, बहुत दिनों से सोच रहा था लेकिन उनके पास जा नहीं पा रहा हूं,सर्पीली रानी के सांप हर जगह मेरी ताक लगाए बैठे रहते हैं,बकबक बौना बोला।।
अगर ऐसी बात है तो हम सब मिलकर उन सांपों से मुकाबला करेंगे और सांख्यिकी मां तक पहुंच जाएंगे, मानिक चंद बोला।।
अगर आप लोग मेरी सहायता कर सकते तो बहुत ही अच्छा होगा, मुझे उस घोड़े का पता चल जाएगा और शाकंभरी भी उस घोड़े की सहायता से अपने पंख वापस ले सकती है,बकबक बौना बोला।।
तो फिर यही सही रहेगा,हम सब मिलकर ही उन सांपों से बकबक को बचाएंगे फिर सांख्यिकी मां के पास जाकर घोड़े के विषय में पूछकर शाकंभरी के पास चलते हैं, अघोरनाथ जी बोले।।
और फिर हम सबने ऊंचे पहाड़ों का रूखकिया, सांख्यिकी मां के पास जाने के लिए,वो रास्ते कहीं कहीं थोड़ा विश्राम करते और फिर गंतव्य की ओर चल देते,इस तरह से करते उनो कई दिन बीत गए।।
बीच बीच में कभी कभी सर्पीली रानी के सांपों ने भी हमला किया लेकिन सुवर्ण ने उन्हें ठिकाने लगा दिया।।
और बहुत दिनों की मेहनत के बाद उन्हें अपना फल आखिर मिल ही गया, पहाड़ों पर ठंड बहुत ज्यादा थीं,शाम होने को थी दूर एक पहाड़ी पर छोटी सी झोपड़ी दिखाई दी,जिस के बाहर एक लाल झंडा लहरा रहा था,बकबक बौना उस झंडे को देखकर बोला देखो वो है सांख्यिकी मां की झोपड़ी।।
थोड़ी देर में सब सांख्यिकी मां की झोपड़ी के बाहर थे,बकबक बौने ने मां को आवाज लगाई__
मां... सांख्यिकी मां.. कहां हो? देखो तुम्हारा बकबक आया है।।
और सब झोपड़ी के भीतर पहुंचे।।
बकबक!! बेटा तू! बहुत दिनों बाद मां को याद किया, सांख्यिकी मां बोली।।
हां! मां, पिता जी अब नहीं रहें, मैं बड़ी मुश्किल से छुपकर रह रहा हूं, सोचा थोड़ी सेना तैयार कर लूं, बौने बड़ी मुश्किल में है,सर्पीली रानी ने सब तहस नहस कर दिया , पिता जी की हत्या भी उसी ने की है,आपके पास सहायता के लिए आया हूं,बकबक बौना ने सांख्यिकी मां से कहा।।हां.. हां बोल बेटा,अपनी समस्या बता, मैं क्या कर सकती हूं तेरे लिए, सांख्यिकी मां बोली।।
मां, मेरी एक मित्र हैं,उसके पिताजी मेरे पिताजी आपस में बहुत अच्छे मित्र थे, लेकिन उसके पिताजी की किसी जादूगर ने हत्या कर उसके शक्तियों वाले पंखों को चुरा लिया है,अब उसकी बहुत ही दयनीय अवस्था है,बकबक बौना बोला।।
हां.. बेटा! बोल आगे बोल, सांख्यिकी मां बोली।।
आपको पता है ना कि मेरे पास एक उड़ने वाला घोड़ा था,जो खुद से छोटा भी हो जाता है,उसे मैं हमेशा गले में पहनता था,वो पता नहीं मुझसे कहां गुम हो गया,अगर वो मिल जाए तो मेरी मित्र शाकंभरी की सहायता हो सकती है वो उस की सहायता से उस जादूगर को ढूंढ़ सकती है,उसके पंख मिलने पर वो हमारी सहायता भी कर सकती है,बकबक बौना बोला।।
अच्छा!तो ये बात है, सांख्यिकी मां बोली।।
 
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भाग (१३)

सांख्यिकी मां,आप उस घोड़े का पता लगाएं ताकि मैं शाकंभरी की सहायता कर सकूं,बकबक बौने ने सांख्यिकी मां से कहा।।
चिंता मत करो बकबक अभी तो शाम होने को आई है, थोड़ी देर में अंधेरा भी गहराने लगेगा ,आज रात तुम लोग मेरी झोपड़ी में आराम करो,कल सुबह-सुबह मैं ध्यान लगाऊंगी,तब पता करती हूं कि तुम्हारा उड़ने वाला घोड़ा कहां है, सांख्यिकी मां बोली।।
सब बोले, हां तो ठीक है,सुबह तक हम सब यही विश्राम करते हैं फिर देखेंगे कि क्या करना है।।
सांख्यिकी मां के यहां जो भी रूखा सूखा था,सभी ने खाया और विश्राम करने लगे।।
तभी एकाएक आधी रात को बहुत जोर की आवाज हुई और सभी जाग उठे, राजकुमार सुवर्ण ने झोपड़ी के बाहर आकर देखा___
वहां का नजारा देखकर उसकी आंखें खुली की खुली रह गई,उसने फौरन बकबक बौने को आवाज लगाई,बकबक बौना भी जल्दी से बाहर आया।।
और सब भी जल्दी से भागकर बाहर आए,एकदम घुप्प अंधेरा, पहाड़ी पर ठंडी हवाएं चल रही थीं, चारों ओर पहाड़ियों पर सिर्फ सांप ही सांप दिखाई दे रहे थे और उन सब के पीछे अपने रथ पर सवार सर्पिली रानी थी जो कि बकबक बौने का पीछा करते हुए वहां तक आ पहुंची थीं,उन लोगों के पास मशालें थी,सर्पीली रानी को देखकर सब सन्न रह गए,ये सोचकर कि बिना किसी तैयारी के इन सबका मुकाबला कैसे करेंगे।।
सब कुछ भी सलाह मशविरा कर पाते इससे पहले ही सर्पीली रानी ने हमला कर दिया,इतने शक्तिशाली सांपों के सेना से सबने कभी भी मुकाबला नहीं किया था,सारे सांप उड़ उड़ कर सब पर हमला कर रहे थे,सब अपना बचाव कर रहे थे,सांपों कोई भी मार नहीं पा रहा था।
सब परेशान और लहुलुहान हो चुके थे, तभी सर्पीली रानी ने एलान किया कि तुम सब बकबक बौने को मेरे हवाले कर दो, मैं तुम सब को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाऊंगी,मेरी दुश्मनी तो सिर्फ़ बकबक बौने से हैं।।
तभी बकबक बौना बोला___
सर्पीली रानी तुम्हारी दुश्मनी सिर्फ मुझसे है,तुम इन सब को छोड़ दो,लो मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं।।
और बकबक बौना सर्पीली रानी की ओर बढ़ने लगा, सबने बहुत मना कि बकबक सर्पीली रानी के पास मत जाओ,हम कुछ ना कुछ करते हैं लेकिन बकबक नहीं माना और धीरे-धीरे सर्पीली रानी की ओर बढ़ने लगा।।
फिर से सुवर्ण ने आवाज दी कि___
बकबक मत जाओ, मैं हूं ना!! मैं तुम्हारी मदद करूंगा लेकिन तभी सांख्यिकी मां ने बाहर आकर कहा,उसे जाने दो।‌।
लेकिन क्यो, नीलकमल ने पूछा।।
देखो, पहले तुम सर्पीली रानी के गले की ओर ध्यान दो उसके गले में उड़ने वाले घोड़े का ताबीज हैं,इसका मतलब वो उड़ने वाला घोड़ा सर्पीली रानी को मिल गया था,बकबक ने उसे शायद देख लिया है इसलिए वो उसकी ओर बढ़ रहा है।।सबने ध्यान से देखा,सच में उड़ने वाले घोड़े का ताबीज सर्पीली रानी के गले में था।।
अब सब भी बकबक बौने की मदद करने के लिए उसके पीछे-पीछे चलने लगे, सुवर्ण अपनी तलवार से सांपों के टुकड़े करते हुए आगे आगे बढ़ने लगा,सब बकबक बौने को सर्पीली रानी तक पहुंचने में सहायता करने लगे,और बकबक बौना अपने मकसद में कामयाब हो गया लेकिन सर्पीली रानी बकबक बौने को अपने फांस में ले लिया,बकबक बौना बहुत छुड़ाने की कोशिश की लेकिन छूट नहीं पाया।।
तभी सुवर्ण अपनी तलवार के वार से सर्पीली रानी के गले ताबीज का धांगा तोड़ दिया जिससे ताबीज नीचे गिर गया और सांख्यिकी मां जोर से चिल्लाते हुए कहती हैं कि सुवर्ण ताबीज को उठाओ लेकिन सर्पीली रानी ने अपने मुंह से आग की लपटें निकालना शुरू कर दिया और सुवर्ण पर उन लपटों से वार करने लगी,सुवर्ण झुलस कर जमीन पर गिर पड़ा।।
तभी सांख्यिकी मां अपने बाल खोल कर पहाड़ी पर ध्यान लगाकर बैठ गई और कुछ मंत्रों का जाप करना शुरू कर दिया, धीरे-धीरे सारे सांप पत्थरों में परिवर्तित होने लगे,कुछ देर के बाद सर्पीली रानी के आलावा सभी सांप पत्थरों में बदल गए तब सांख्यिकी मां अपने ध्यान से उठी और कहा कि इन सांपों को उठाकर पटकना शुरू कर दो और इतनी जोर से पटको ताकि ये टूट जाए, तभी इन सब की मृत्यु होगी।
और ये सब सुनकर सर्पीली रानी गुस्से से बौखला गई लेकिन अब अघोरनाथ जी आगे आ गए, उन्होंने अपनी कमर में बंधी पोटली में से कुछ विभूति निकाली और सर्पीली रानी पर झिड़क दी जिससे सर्पीली रानी को दिखना बंद हो गया।
और सुवर्ण ने फुर्ती के साथ उस ताबीज को उठा लिया और अपनी धारदार तलवार से सर्पीली रानी पर बिना रूके वार पर वार किए,सर्पीली रानी अपनी आंखें ही नहीं खोल पा रही थी जिससे उसके मुंह से निकलती आग का लपटों के वार निशाने पर नहीं पड़ रहा था,अब तो वो बुरी तरह बौखला गई।।
तभी सांख्यिकी मां बोली __
सुवर्ण घोड़े से कहो कि बड़े हो जाओ,वो जिसके हाथ में होता है,उसका ही आदेश मानता है और सुवर्ण ने सांख्यिकी मां की बात सुनकर घोड़े से कहा कि बड़े हो जाओ और घोड़ा अपने बड़े रूप में आ गया, सुवर्ण उस पर सवार होकर उड़ने लगा और अपनी धारदार तलवार से उसने सर्पीली रानी की गर्दन पर वार किया जिससे सर्पीली रानी की गर्दन कटकर एक ओर लुढ़क गई।।
और बकबक बौना, सर्पीली रानी के फांस से छूट गया,सर्पीली रानी का धड़ और गर्दन बहुत देर तक तड़पते रहे,उसके बाद शांत हो गए।।
तब सांख्यिकी मां बोली,बकबक लो तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हो गया अब सर्पीली रानी का अंतिम संस्कार करके जल्द ही शाकंभरी की सहायता के लिए निकलो, लेकिन अंतिम संस्कार तो प्रात: ही होगा,आज रात भर और प्रतिक्षा करनी होगी।।
और दूसरे दिन सुबह सर्पीली रानी का अंतिम संस्कार करके सब ने सांख्यिकी मां से जाने के लिए इजाजत मांगी, सांख्यिकी मां ने कहा,जाओ बच्चों अच्छे कार्य करने के लिए सदैव तुम लोगों की जीत हो।।
सब बहुत खुश थे क्योंकि अब उनको उड़ने वाला घोड़ा मिल चुका था,अब वो शाकंभरी की सहायता करके अपना वचन पूरा कर सकते थे।।ऐसे ही चलते चलते उन्होंने पहाड़ों वाला रास्ता पार कर लिया,अब मैदान वाले रास्ते से गुजर रहे थे, तभी उन्हें किसी के कराहने की आवाज़ आई।।
अघोरनाथ जी बोले लगता है कोई कराह रहा है!!
मानिक चंद बोला!! हां, मुझे भी कराहने की आवाज़ आई और एक एक करके सबने कहा कि हमें भी किसी के कराहने की आवाज़ आ रही है।।
और सब उस दिशा में चल पड़े, थोड़ी दूर जाकर देखा कि एक आदमी ज़मीन पर पड़ा दर्द से कराह रहा है।।
मानिक चंद ने कहा कि ऐसा तो नहीं कि ये कोई छलावा हो।।
सुवर्ण बोला, मैं पास जाकर देखता हूं।।
कौन हो भाई तुम, सुवर्ण ने उस व्यक्ति से पूछा।।
मैं बांधवगढ़ का राजा विक्रम सिंह हूं, मेरी बहन को एक राक्षस चुराकर ले गया है उसकी सहायता के लिए मैं यहां तक आया लेकिन उस राक्षस ने मुझे घायल कर दिया,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन वो राक्षस कहां रहता है, सुवर्ण ने पूछा।।
वो राक्षस इसी मैदान के अंत में एक तहखाने में रहता है,क्या तुम मेरी सहायता करोगे मेरी बहन को बचाने के लिए,राजा विक्रम ने सुवर्ण से कहा।।
ठीक है, पहले मैं अपने और साथियों से इस विषय में वार्तालाप कर लूं, सुवर्ण ने कहा।।
 
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  1. रहस्यमयी टापू--भाग (१४)..!!

सुवर्ण ने सभी लोगों से सलाह ली और सभी लोंग राजा विक्रम की सहायता करने के लिए तैयार हो गए, सुवर्ण ने विक्रम को उठाकर उसे पानी पिलाया और अघोरनाथ जी ने कुछ जंगली जड़ी बूटियां खोजकर विक्रम के घावों पर लगा दीं, जिससे विक्रम अब पहले से खुद को बेहतर महसूस कर रहा था।।
अब सब निकल पड़े उस मैदान की ओर जहां वो राक्षस तहखाने में रहता था, सभी उस मैदान को पार करते जा रहे थे, चलते चलते रात हो गई ,रास्तें मे एक बहुत बड़ा तालाब मिला,उस तालाब के किनारे एक पीपल का बहुत बड़ा पेड़ था,सबने उसी जगह पर विश्राम करने का इरादा किया और सब पेड़ के नीचे सो गए, तभी अचानक रात को बकबक के ऊपर कुछ लिसलिसा सा गरम गरम सा पदार्थ गिरा,वो चटपटा कर उठ बैठा और उसने ऊपर की ओर देखा तो दो चुड़ैलें, पेड़ से उलटी लटकी हुई थीं और उनके मुंह से लार टपक रही थी, उनके सिर के बाल इतने बड़े थे कि उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था,उन भयानक चुड़ैलों को देखकर बकबक की चीख निकल गई,बकबक की चींख सुनकर सब जाग गए, तभी वो चुड़ैलें हवा में गोल गोल घूमती हुई,धम्म की आवाज के साथ नीचे आकर उन सब के सामने खड़ीं हो गई,सब बुरी तरह डर गए।।
लेकिन तभी उस समय सुवर्ण ने अपना दिमाग चलाया,जो जादू उसे आता था उसका इस्तेमाल किया
उसने दोनों चुड़ैलों को जादुई शक्ति से जमीन पर गिरा दिया और फुर्ती के साथ बारी बारी से मुट्ठी में बालों को भरा और काट दिया, दोनों के बाल कट जाने पर वो खूबसूरत पंखों वाली परियों में परिवर्तित हो गई, दोनों से एक सफेंद रोशनी आ रही थीं जिससे आसपास का वातावरण जगमग हो रहा था।।
सुवर्ण ने उन दोनों से पूछा__
कौन हो तुम दोनों?
उनमें से एक ने जवाब दिया__
हम दोनों बहनें हैं,इसका नाम स्वरांजलि और मेरा नाम गीतांजली हैं,हमारा भी एक खुशहाल परिवार था,हमारे परिवार मे हम दोनों जुड़वां बहने ,एक भाई भी हैं, मां पिताजी नहीं रहें, हमें जादूगर शंखनाद ने अपने जादू से चुड़ैल बना दिया था,उसनें कहा था कि अगर कोई तुम्हारे बाल काट देगा तो तुम दोनों अपने असली रूप में आ जाओगी लेकिन मेरी वजह से इधर कोई भी नहीं आ सकता इसलिए तुम लोग सदा के लिए ही चुड़ैले बनी रहोगी और इतना कहकर वो चला गया।।
और तुम्हारा भाई कहां हैं? अघोरनाथ जी ने पूछा।।
उसे शंखनाद ने एक राक्षस बना दिया हैं, उससे जो वो भी कहता है हमारा भाई वही करता है,उसनें उसे गुलाम बनाकर तहखाने मे रखा है, जब भी वो उसे आदेश देता है तो हमारा भाई सुंदर लडकियों को अगवा कर लेता हैं,उनमें से एक ने उत्तर दिया।।
और उन लडकियों को क्यों अगवा किया जाता हैं, कुछ बता सकती हो,क्योंकि मेरी बहन को उसने अगवा किया हैं,राजा विक्रम बोले।।
हां,यकीन के साथ तो नहीं कह सकती लेकिन वो उन लडकियों को मारकर उनकी त्वचा से एक तरह का पदार्थ बनाता हैं जिसे वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं तभी इतनी उम्र हो जाने के बाद भी वो बूढ़ा दिखाई नहीं देता,गीतांजलि बोली।।
लेकिन हम उस राक्षस का सामना कैसे करेगें, कुछ ना कुछ उपाय तो होगा आपलोगों के पास,सुवर्ण ने पूछा।।
अभी तो रात हैं,सुबह इस समस्या का समाधान करते हैं, सुबह मैं आप लोगों को कुछ चीज दूंगी जिससे हमारा भाई अपने पहले वाले रूप मे वापस आ जाएगा, स्वरांजलि बोली।।
और फिर सब विश्राम करने लगे लेकिन फिर सारी रात अघोरनाथ जी सो नहीं पाए,उन्हें स्वरांजली और गीतांजली पर भरोसा नहीं था,उन्हेँ ये डर था कि ऐसा ना हो रात को फिर दोनों चुड़ैले बनकर सबको हानि पहुचाएं।
और उनकी इस शंका को बकबक भलीभांति समझ गया था,तीसरा पहर लगने को था तभी बकबक अघोरनाथ जी से बोला___
बाबा! अब आप थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लीजिए,मुझे पता है आप रात भर सोए नही है।।
कैसे सो जाऊ?बकबक बेटा!! जब अपनी ही बेटी गलत राह पर चलकर,दूसरों के खून की प्यासी हो जाए तो इस अभागे बाप को नींद कैसे आ सकती हैं, अघोरनाथ जी बकबक से बोले।।
कोई बात नहीं बाबा!!अब शायद यही नियति थी,पहले आप सारी चिंताएं छोड़कर आराम करने की कोशिश कीजिए, फिर सोचते हैं कि क्या करना है, बकबक ने अघोरनाथ जी से कहा।।
और अघोरनाथ जी ने अपनी बांह की तकिया बनाई और सो गए।।
सुबह हो चुकी थी,सूरज की लाली ने आसमान को घेर लिया था,पीपल के पेड़ पर चिड़ियाँ चहचहा रहीं थीं,सबने देखा की तालाब मे बहुत से कमल के फूल खिले हुए हैं, बकबक और नीलकमल छोटे बच्चों की तरह कमल तोड़ने चल पडे़ लेकिन स्वरांजलि मना करते हुए बोली___
ये एक जादुई तालाब हैं और ये सारें कमल भी जादुई हैं, जो भी इन कमल को हाथ लगाता हैं पत्थर का बन जाता हैं,तभी स्वरांजलि ने ताली बजाई और एक हंस वहां प्रकट हुआ___
स्वरांजलि बोली, मुझे एक कमल चाहिए, एक कमल तोड़कर दो ताकि उसे स्पर्श करके हमारा भाई पुन: अपने रूप मे वापस आ सकें।।
और हंस ने अपनी चोंच के द्वारा एक कमल तोड़कर स्वरांजली को दिया और गायब हो गया, स्वरांजलि वो फूल अघोरनाथ जी को देते हुए बोली, आप इन सबमें सबसे बुजुर्ग हैं और मुझे आशा हैं कि आप अपने कर्तव्य का निर्वहन भलीभाँति करेगें,आप हमारे पिता के समान हैं।।
अघोरनाथ जी ने प्यार से स्वरांजलि के सिर पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी, काश मेरी बेटी भी तुम दोनों की तरह अच्छी होतीं।।
तब गीतांजलि ने पूछा, ऐसा क्यों कह रहें हैं आप?
तब नीलकमल ने स्वरांजलि और गीतांजलि को सारी कहानी कह सुनाई।।
स्वरांजलि और गीतांजलि अपने परीलोक वापस चली गई और अब सब अपने गंतव्य की ओर निकल पडे़, शाम होते होते सब उस तहखाने तक पहुंच गए जहाँ वो राक्षस रहता था।।
तब बकबक बोला,पहले मैं जाता हूं और अगर सब ठीक रहा तो मैं चिड़िया की आवाज निकालूँगा तब आप सब अंदर आ जाना।।
सब बकबक की बात पर रजामंद हो गए, बकबक तहखाने के अंदर पहुंचकर दो चार कदम चला,फिर उसनें सोचा अब साथियों को बुला लेना चाहिए और उसनें चिड़िया की आवाज़ निकालनी शुरु कर दी।।
चिड़िया की आवाज़ सुनकर, सबने अंदर जाने का सोचा और सब तहखाने के भीतर घुस पडे़, अंदर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था।।
सब अंदर की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे, आगे बकबक भी उन्हें मिल गया और सब साथ मे चल पडे़,जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे वैसे अंधेरा और भी बढ़ता जा रहा था,तभी उन सब को किसी के लड़की के कराहने की आवाज़ आई,सब उस ओर गए तब बकबक बौने ने सबसे कहा___
ठहरों,मेरे पास एक नागमणी हैं, जो कभी मेरे पिताजी ने मुझे दी थी,उन्होंने कहा था कि जब तुम किसी की सहायता करना चाहोगे तब इसका इस्तेमाल करना और बकबक ने एक छोटी सी पोटली निकाली,उसके धांगों को जैसे ही सरकाया,पोटली खुली उसमें से एक सफेद रोशनी निकलती हुई दिखी,बकबक ने उसे अपनी हथेली पर रखा तो चारों ओर रोशनी ही रोशनी फैल गई, अब अंधेरा नहीं था और सबको साफ साफ दिखाई दे रहा था,वो सब उस कराहने वाली लड़की के पास पहुंचे, देखा तो वो एक सलाखों वाले कमरें मे बंद थीं__
बकबक ने उससे पूछा___
कौन हो तुम?
मैं पुलस्थ राज की रानी सांरन्धा हूं, इस राक्षस ने मुझे कै़द करके रखा हैं और भी लडकियों को कैद़ किया हैं,अभी शायद किसी राजकुमारी को अगवा किया हैं, उसके चीखने की आवाज़ आ रही थी।।
हां...हांं शायद वो मेरी बहन संयोगिता हैं, राजा विक्रम बोले।।
तभी,राजकुमार सुवर्ण ने पूछा, वो राक्षस कहाँ हैं?
वो अभी तहखाने से बाहर गया हैं,रानी सारन्धा बोली।।
तब तो ये बहुत अच्छा मौका है, सारी लड़कियों को छुडा़ने का,मानिक चंद बोला।।
हां,एकदम सही कहा, बकबक भी बोला।।
और सब एक एक करके सारी लड़कियों की सलाखें और बेड़ियां तोड़कर उन्हें बाहर निकालने लगे,तभी विक्रम को अपनी बहन संयोगिता भी मिल गई___
भइया!!आप आ गए, मुझे पता था कि आप जरूर आएंगे, संयोगिता अपने भाई विक्रम के गले लगते हुए बोली।।
सारी लड़कियों को निकालने के बाद सब तहखाने से बाहर आने लगे,सबसे आगे राजा विक्रम और बकबक थे ,बीच मे सारी लडकियाँ और सबसे पीछे राजकुमार सुवर्ण और मानिक थे,जैसे ही सब तहखाने से बाहर निकले,बकबक ने नागमणी पोटली मे रखी और अपनी कमर मे खोंस ली।।
सब थोड़ी दूर चले ही थे कि वहां राक्षस आ पहुंचा, उसने सब पर हमला करना शुरु कर दिया, तभी राजा विक्रम अपनी तलवार लेकर आगे बढ़े लेकिन राक्षस ने उन्हें भी हवा मे उछाल दिया,अब सुवर्ण भी अपनी तलवार लेकर आगे आया लेकिन राक्षस का वार वो भी नहीं सह पाया, तभी बकबक बोला,सुवर्ण उड़ने वाले घोड़े का इस्तेमाल करो,लेकिन जैसे ही सुवर्ण ने वो घोड़े वाला ताबीज हाथों मे लिया,राक्षस ने सुवर्ण पर जोर का वार किया और वो ताबीज सुवर्ण के हाथों से दूर जा गिरा।।
अब बात बेकाबू देखकर अघोरनाथ जी आगे आए,उन्होंने अपनी पोटली मे से जादुई कमल निकाला और कुछ मंत्र पढ़े और हवा में उड़ते हुए, राक्षस के सिर पर वो जादुई कमल गिरा दिया,जिससे वो राक्षस एक मानव में परिवर्तित हो गया।।सभी को ये देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और उस राक्षस से परिवर्तित मानव ने सबसे क्षमा मांगी और बोला__
मै परी देश का राजकुमार सुदर्शनशील हूं,माफ करना, मेरी वजह से आपलोगों को बहुत परेशानी हुई, मैं परीलोक वापस जाना चाहता हूँ,अब लोग मेरी थोड़ी सहायता करें तो आपलोगों की बहुत कृपा होगी।।
बकबक ने कहा, मैं तुम्हें अपने घोड़े पर तुमको छोड़कर आता हूं।।
और बारी बारी से बकबक ने सभी लड़कियों और सुदर्शनशील को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया,रानी सारन्धा बोली लेकिन मैं तो आप लोगों की सहायता के लिए आप लोगों के साथ चलूँगी,आप लोगों ने भी तो मेरी सहायता की हैं,रानी सारन्धा की बात सुनकर राजा विक्रम भी बोले, कृपया आपलोग मेरी बहन संयोगिता को मेरे राज्य छोड़ आए और बकबक ने विक्रम की बात मानकर संयोगिता को उसके राज्य छोड़ दिया और संयोगिता को बकबक छोड़कर वापस आ गया फिर सभी शाकंभरी की सहायता करने निकल पडे़।।




सभी लोग बकबक बौने को ढ़ूढ़ते हुए बहुत बुरी तरह थक चुके थे, तभी राजकुमार सुवर्ण ने कहा___
चलिगया, स्वरांजलि वो फूल अघोरनाथ जी को देते हुए बोली, आप इन सबमें सबसे बुजुर्ग हैं और मुझे आशा हैं कि आप अपने कर्तव्य का निर्वहन भलीभाँति करेगें,आप हमारे पिता के समान हैं।।
अघोरनाथ जी ने प्यार से स्वरांजलि के सिर पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी, काश मेरी बेटी भी तुम दोनों की तरह अच्छी होतीं।।
तब गीतांजलि ने पूछा, ऐसा क्यों कह रहें हैं आप?
तब नीलकमल ने स्वरांजलि और गीतांजलि को सारी कहानी कह सुनाई।।
स्वरांजलि और गीतांजलि अपने परीलोक वापस चली गई और अब सब अपने गंतव्य की ओर निकल पडे़, शाम होते होते सब उस तहखाने तक पहुंच गए जहाँ वो राक्षस रहता था।।
तब बकबक बोला,पहले मैं जाता हूं और अगर सब ठीक रहा तो मैं चिड़िया की आवाज निकालूँगा तब आप सब अंदर आ जाना।।
सब बकबक की बात पर रजामंद हो गए, बकबक तहखाने के अंदर पहुंचकर दो चार कदम चला,फिर उसनें सोचा अब साथियों को बुला लेना चाहिए और उसनें चिड़िया की आवाज़ निकालनी शुरु कर दी।।
चिड़िया की आवाज़ सुनकर, सबने अंदर जाने का सोचा और सब तहखाने के भीतर घुस पडे़, अंदर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था।।
सब अंदर की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे, आगे बकबक भी उन्हें मिल गया और सब साथ मे चल पडे़,जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे वैसे अंधेरा और भी बढ़ता जा रहा था,तभी उन सब को किसी के लड़की के कराहने की आवाज़ आई,सब उस ओर गए तब बकबक बौने ने सबसे कहा___
ठहरों,मेरे पास एक नागमणी हैं, जो कभी मेरे पिताजी ने मुझे दी थी,उन्होंने कहा था कि जब तुम किसी की सहायता करना चाहोगे तब इसका इस्तेमाल करना और बकबक ने एक छोटी सी पोटली निकाली,उसके धांगों को जैसे ही सरकाया,पोटली खुली उसमें से एक सफेद रोशनी निकलती हुई दिखी,बकबक ने उसे अपनी हथेली पर रखा तो चारों ओर रोशनी ही रोशनी फैल गई, अब अंधेरा नहीं था और सबको साफ साफ दिखाई दे रहा था,वो सब उस कराहने वाली लड़की के पास पहुंचे, देखा तो वो एक सलाखों वाले कमरें मे बंद थीं__
बकबक ने उससे पूछा___
कौन हो तुम?
मैं पुलस्थ राज की रानी सांरन्धा हूं, इस राक्षस ने मुझे कै़द करके रखा हैं और भी लडकियों को कैद़ किया हैं,अभी शायद किसी राजकुमारी को अगवा किया हैं, उसके चीखने की आवाज़ आ रही थी।।
हां...हांं शायद वो मेरी बहन संयोगिता हैं, राजा विक्रम बोले।।
तभी,राजकुमार सुवर्ण ने पूछा, वो राक्षस कहाँ हैं?
वो अभी तहखाने से बाहर गया हैं,रानी सारन्धा बोली।।
तब तो ये बहुत अच्छा मौका है, सारी लड़कियों को छुडा़ने का,मानिक चंद बोला।।
हां,एकदम सही कहा, बकबक भी बोला।।
और सब एक एक करके सारी लड़कियों की सलाखें और बेड़ियां तोड़कर उन्हें बाहर निकालने लगे,तभी विक्रम को अपनी बहन संयोगिता भी मिल गई___
भइया!!आप आ गए, मुझे पता था कि आप जरूर आएंगे, संयोगिता अपने भाई विक्रम के गले लगते हुए बोली।।
सारी लड़कियों को निकालने के बाद सब तहखाने से बाहर आने लगे,सबसे आगे राजा विक्रम और बकबक थे ,बीच मे सारी लडकियाँ और सबसे पीछे राजकुमार सुवर्ण और मानिक थे,जैसे ही सब तहखाने से बाहर निकले,बकबक ने नागमणी पोटली मे रखी और अपनी कमर मे खोंस ली।।
सब थोड़ी दूर चले ही थे कि वहां राक्षस आ पहुंचा, उसने सब पर हमला करना शुरु कर दिया, तभी राजा विक्रम अपनी तलवार लेकर आगे बढ़े लेकिन राक्षस ने उन्हें भी हवा मे उछाल दिया,अब सुवर्ण भी अपनी तलवार लेकर आगे आया लेकिन राक्षस का वार वो भी नहीं सह पाया, तभी बकबक बोला,सुवर्ण उड़ने वाले घोड़े का इस्तेमाल करो,लेकिन जैसे ही सुवर्ण ने वो घोड़े वाला ताबीज हाथों मे लिया,राक्षस ने सुवर्ण पर जोर का वार किया और वो ताबीज सुवर्ण के हाथों से दूर जा गिरा।।
अब बात बेकाबू देखकर अघोरनाथ जी आगे आए,उन्होंने अपनी पोटली मे से जादुई कमल निकाला और कुछ मंत्र पढ़े और हवा में उड़ते हुए, राक्षस के सिर पर वो जादुई कमल गिरा दिया,जिससे वो राक्षस एक मानव में परिवर्तित हो गया।।ए, पहले अच्छी सी जगह ढ़ूढ़ कर थोड़ी देर विश्राम करते हैं, इसके बाद बकबक बौने को ढूंढते हैं, सबने राजकुमार सुवर्ण की बात पर सहमति जताई और एक अच्छी सी झरने वाली जगह खोजकर कुछ खाने पीने का इंतजाम कर खा-पीकर विश्राम करने लगे, थोड़ी देर विश्राम करने के बाद सुवर्ण को महसूस हुआ कि उसके कंधे पर आकर कुछ चुभा हैं,जब तक वो कुछ समझता इसके बाद शरीर के और भी अंगों पर कुछ सुई के सामान आकार वाली चीजें आकर चुभने लगी।।
जैसे ही वो चीजें सुवर्ण को आकर चुभती ,सुवर्ण दर्द से कराह उठता, उसने सबको आवाज देकर जगाया पर ये क्या? वो तो सभी को आकर चुभने लगीं, कोई कुछ समझ ही नहीं पा रहा था।।
तभी अघोरनाथ जी उस दिशा में गए,जिस दिशा से वो सुई के आकार वाली चीजें आ रहीं थीं, उन्होंने देखा कि एक बौना अपने धनुष से एक साथ पांच पांच तीर अधाधुंध छोड़े जा रहा है, अघोरनाथ जी चुपके-चुपके से उस बौने के पीछे गए और अपनी बांहों में उसे दबोच लिया।।
अब वो बौना छूटने के लिए कसमसाने लगा, चीखने लगा कि मुझे छोड़ दो.... मुझे छोड़ दो।।
तभी अघोरनाथ जी बोले__
पहले ये बताओ कि तुम कौन हो और हम सब पर तीर क्यो छोड़ रहे थे?
क्यो बताऊं कि मैं कौन हूं,जाओ नहीं बताता कि मैं कौन हूं,जो करना है कर लो,उस बौने ने कहा।।
तब तक सब उस बौने के पास पहुंच गए, अघोरनाथ जी ने पुनः पूछा कि बताओ तुम कौन हो? लेकिन उस बौने ने मुंह नहीं खोला।।
तब सुवर्ण उस बौने को पेड़ की लताओं के सहारे बांधकर बोला जब तक तुम नहीं बताते कि तुम कौन हो,हम तुम्हें कहीं नहीं जाने देंगे।।
तभी नीलकमल बोली तो अब क्या करें? किस दिशा में जाए? विश्राम भी नहीं हुआ,वन की देवी शाकंभरी ने तो यहीं जगह बताई थी कि बकबक बौना यहीं मिलेगा,हमलोगों ने तो इस जगह के हर कोने में खोज लिया लेकिन बकबक बौना कहीं नहीं मिला।।
उस बौने ने ये सब सुना और बोला तुम लोग शाकंभरी को कैसे जानते हो?
सुवर्ण बोला, तुमसे मतलब!!
हां.. हां.. वो तो मेरी मित्र हैं, बौना बोला।।
मतलब क्या है? तुम्हारा, सुवर्ण ने पूछा।।
मतलब वो मेरी मित्र हैं, मैं उसे जानता हूं, बौने ने कहा।।
कहीं तुम ही तो बकबक बौने नहीं हो, सुवर्ण ने फिर पूछा।।
हां.. मैं ही बकबक बौना हूं,तुमलोग मुझे कैसे जानते हो? उस बौने ने पूछा।।
अरे, तुम ही बकबक हो, तुम्हारे बारे में हमें वनदेवी शाकंभरी ने बताया, अत्यंत दयनीय अवस्था से गुजर रहीं हैं वो, सुवर्ण बोला।।
ऐसा क्या हुआ? कृपया मुझे भी विस्तार से बताएं, उसने मुझसे सहायता क्यो नही मांगी,बकबक बौने ने कहा।।
बहुत ही दुखभरी कथा है बेचारी की, जिससे प्रेम करती थीं, उसने उसके साथ विश्वासघात किया, अपने पिता के भी विरूद्ध हो बैठी,उसके प्रेमी ने उसके पिता की हत्या कर उसके पंख धोखे से चुरा लिए,अब वो बहुत ही असहाय अवस्था में हैं,उसका सारा जादू उसके पंखों में तो था।।उसी ने तो हमें तुम्हारे विषय में बताया कि तुम्हारे पास उड़ने वाला घोड़ा है,जिसकी सहायता से अपने प्रेमी को ढूंढकर अपने पंख वापस लेना चाहती है क्योंकि वो बहुत ही बड़ा जादूगर है और खुद की भलाई के लिए किसी की भी हत्या कर सकता है, उसके साथ अघोरनाथ जी की बेटी चित्रलेखा भी है जो उसकी सहायता करती है, सुवर्ण बोला।।
इतना सबकुछ हो गया और मुझे इस विषय में कुछ पता ही नहीं,बकबक बौने ने कहा।।
हां...वो ये मानिक चंद आए, इन्हें अघोरनाथ जी मिले,तब इन्होंने नीलकमल और मुझे हमारे असली रूप में परिवर्तित किया,



Fantasy रहस्यमयी टापू MAZIC Adventure (Completed)
Thread starterHero tera Start dateNov 28, 2021
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ashish_1982_in
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Dec 7, 2021
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Hero tera said:
Bhaiyo phone hang ho raha hai mere paas etne paisa nahi hai ke new phone le lun kehte hain dard baatne se kam ho jata hai isliye emotional ho ke likh diya
OK brother
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Hero tera
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Dec 8, 2021
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#42
भाग (१२)

सभी लोग बकबक बौने को ढ़ूढ़ते हुए बहुत बुरी तरह थक चुके थे, तभी राजकुमार सुवर्ण ने कहा___
चलिए, पहले अच्छी सी जगह ढ़ूढ़ कर थोड़ी देर विश्राम करते हैं, इसके बाद बकबक बौने को ढूंढते हैं, सबने राजकुमार सुवर्ण की बात पर सहमति जताई और एक अच्छी सी झरने वाली जगह खोजकर कुछ खाने पीने का इंतजाम कर खा-पीकर विश्राम करने लगे, थोड़ी देर विश्राम करने के बाद सुवर्ण को महसूस हुआ कि उसके कंधे पर आकर कुछ चुभा हैं,जब तक वो कुछ समझता इसके बाद शरीर के और भी अंगों पर कुछ सुई के सामान आकार वाली चीजें आकर चुभने लगी।।
जैसे ही वो चीजें सुवर्ण को आकर चुभती ,सुवर्ण दर्द से कराह उठता, उसने सबको आवाज देकर जगाया पर ये क्या? वो तो सभी को आकर चुभने लगीं, कोई कुछ समझ ही नहीं पा रहा था।।
तभी अघोरनाथ जी उस दिशा में गए,जिस दिशा से वो सुई के आकार वाली चीजें आ रहीं थीं, उन्होंने देखा कि एक बौना अपने धनुष से एक साथ पांच पांच तीर अधाधुंध छोड़े जा रहा है, अघोरनाथ जी चुपके-चुपके से उस बौने के पीछे गए और अपनी बांहों में उसे दबोच लिया।।
अब वो बौना छूटने के लिए कसमसाने लगा, चीखने लगा कि मुझे छोड़ दो.... मुझे छोड़ दो।।
तभी अघोरनाथ जी बोले__
पहले ये बताओ कि तुम कौन हो और हम सब पर तीर क्यो छोड़ रहे थे?
क्यो बताऊं कि मैं कौन हूं,जाओ नहीं बताता कि मैं कौन हूं,जो करना है कर लो,उस बौने ने कहा।।
तब तक सब उस बौने के पास पहुंच गए, अघोरनाथ जी ने पुनः पूछा कि बताओ तुम कौन हो? लेकिन उस बौने ने मुंह नहीं खोला।।
तब सुवर्ण उस बौने को पेड़ की लताओं के सहारे बांधकर बोला जब तक तुम नहीं बताते कि तुम कौन हो,हम तुम्हें कहीं नहीं जाने देंगे।।
तभी नीलकमल बोली तो अब क्या करें? किस दिशा में जाए? विश्राम भी नहीं हुआ,वन की देवी शाकंभरी ने तो यहीं जगह बताई थी कि बकबक बौना यहीं मिलेगा,हमलोगों ने तो इस जगह के हर कोने में खोज लिया लेकिन बकबक बौना कहीं नहीं मिला।।
उस बौने ने ये सब सुना और बोला तुम लोग शाकंभरी को कैसे जानते हो?
सुवर्ण बोला, तुमसे मतलब!!
हां.. हां.. वो तो मेरी मित्र हैं, बौना बोला।।
मतलब क्या है? तुम्हारा, सुवर्ण ने पूछा।।
मतलब वो मेरी मित्र हैं, मैं उसे जानता हूं, बौने ने कहा।।
कहीं तुम ही तो बकबक बौने नहीं हो, सुवर्ण ने फिर पूछा।।
हां.. मैं ही बकबक बौना हूं,तुमलोग मुझे कैसे जानते हो? उस बौने ने पूछा।।
अरे, तुम ही बकबक हो, तुम्हारे बारे में हमें वनदेवी शाकंभरी ने बताया, अत्यंत दयनीय अवस्था से गुजर रहीं हैं वो, सुवर्ण बोला।।
ऐसा क्या हुआ? कृपया मुझे भी विस्तार से बताएं, उसने मुझसे सहायता क्यो नही मांगी,बकबक बौने ने कहा।।
बहुत ही दुखभरी कथा है बेचारी की, जिससे प्रेम करती थीं, उसने उसके साथ विश्वासघात किया, अपने पिता के भी विरूद्ध हो बैठी,उसके प्रेमी ने उसके पिता की हत्या कर उसके पंख धोखे से चुरा लिए,अब वो बहुत ही असहाय अवस्था में हैं,उसका सारा जादू उसके पंखों में तो था।।उसी ने तो हमें तुम्हारे विषय में बताया कि तुम्हारे पास उड़ने वाला घोड़ा है,जिसकी सहायता से अपने प्रेमी को ढूंढकर अपने पंख वापस लेना चाहती है क्योंकि वो बहुत ही बड़ा जादूगर है और खुद की भलाई के लिए किसी की भी हत्या कर सकता है, उसके साथ अघोरनाथ जी की बेटी चित्रलेखा भी है जो उसकी सहायता करती है, सुवर्ण बोला।।
इतना सबकुछ हो गया और मुझे इस विषय में कुछ पता ही नहीं,बकबक बौने ने कहा।।
हां...वो ये मानिक चंद आए, इन्हें अघोरनाथ जी मिले,तब इन्होंने नीलकमल और मुझे हमारे असली रूप में परिवर्तित किया, सुवर्ण बोला।।
परंतु अब वो उड़ने वाला घोड़ा मेरे पास नहीं है,वो तो मुझसे कहीं खो चुका है,वो किसके पास है और कहां खोया है वो तो सांख्यिकी मां ही बता सकतीं हैं,बकबक बौने ने कहा।।
ये सांख्यिकी मां कौन है? अघोरनाथ जी ने पूछा।।
  1. वो बहुत ही बूढ़ी आदिवासी मां है,जो दूर ऊंचे पहाड़ों पर रहतीं हैं, उन्हें तीनों कालों के विषय में ज्ञान है वो भविष्यवा[ICODE][ICODE][ICODE][ICODE][ICODE][/ICODE][/ICODE][/ICODE][/ICODE][/ICODE]णी बताती है और खोई चींजों के बारे में भी पता लगा सकती है,मेरे पिता जी अक्सर उनके पास ही सलाह मशविरे के जाते थे, बहुत दिनों से सोच रहा था लेकिन उनके पास जा नहीं पा रहा हूं,सर्पीली रानी के सांप हर जगह मेरी
Sorry doston es update me bahot galtiyan huyi hain
 

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