Romance Shrishti - Ajab Duniya Ki Gazab Reet Re (Complete)

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भाग - 25

पिता के ख्यालों में खोने की बात कहते ही राघव एक बार फ़िर ख्यालों में खो गया। इस बार कुछ ओर ही ख्याल उसके मस्तिस्क में चला रहा था। वो सोच रहा था पापा को सच बताए या नहीं अगर सच नहीं बताना है है तो कुछ ऐसा बताना होगा जिससे पापा को लगे की राघव की परेशानी की यहीं वजह है। सहसा राघव मुस्कुराते हुए बोला... पापा वो दफ्तर से आते वक्त कुछ वक्त के लिए नजदीक के एक पार्क में गया था। वहा देखा एक बच्चे को उसकी मां खुद से खिला रहीं थीं ये देखकर मुझे मां की याद आ गई थी इसलिए थोड़ा परेशान हों गया था फ़िर भोजन के वक्त आप अपने हाथो से खिला रहें थे तो उस वक्त भी मां की याद आ गई कि मां होती तो वो भी मुझे ऐसे ही खिलाते बस इसलिए उठकर आ गया।

तिवारी... अच्छा कोई बात नहीं अब जब भी तेरा मन करें मुझे बता देना मैं तुझे अपने हाथों से खिला दिया करुंगा।

कुछ और इधर उधर की बाते होने लगा। धीरे धीरे बाते राघव की शादी की ओर चल पड़ा शादी की बात आते ही राघव के मन में श्रृष्टि का ख्याल आ गया। सीधा सीधा वो बाप से कह नहीं पा रहा था। इसलिए राघव बोला...पापा मान लिजिए मैं किसी ऐसी लड़की को पसंद करता हूं जो हमारी हैसियत की बराबरी नहीं करता है तो क्या आप...।

"उम्हू तो मामला ये है मेरे बेटे को किसी से प्यार हों गया जो रूतवे में हमसे काम है। है न मैं सही कह रहा हूं न।" राघव की कहने का मतलब समझते हुए तिवारी बोला

राघव... जी पापा

तिवारी... चल अब ये भी बता दे तेरी प्रेम कहानी कहा तक पहुंचा फ़िर मैं बताऊंगा की तेरे सवाल का क्या जवाब हैं।

सूक्ष्म रूप में श्रृष्टि के साक्षत्कार देने आने वाले दिन से लेकर अब तक की पुरी कथन सूना दिया। जिससे सुनकर तिवारी बोला... उम्हू तो तूने अभी अभी जो अपने परेशानी का कारण बताया था कारण वो नही बल्कि श्रृष्टि है जो आज तेरी शादी की झूठी खबर सुनकर परेशान हो गई।

राघव... जी पापा।

तिवारी... तो बेटा ये बताओ प्रपोज खुद से करोगे कि मैं सागुन की थल लेकर उसके घर पहुंच जाऊं।

राघव... क्या पापा आप तो मेरे फेरे पड़वाने के पीछे पड़ गए। थोड़ा रूकिए पहले मुझे बात तो कर लेने दिजिए। आज जो बखेड़ा हुआ है उसके बाद पाता नहीं वो क्या कहेंगी।

तिवारी... क्या कहेंगी ये मैं नहीं जानता मैं बस इतना जानता हूं कि उस जैसी उच्च सोच वाली कोई ओर लड़की शायद ही मुझे मेरी पुत्र बधू के रूप में मिले। इसलिए जल्दी से तुझे जो करना है कर नहीं हुआ तो मुझे बताना मैं उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच जाऊंगा।

राघव... इसका मतलब आपको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि उसकी हैसियत हमारे बराबर नहीं है और हमारे कम्पनी में काम करने वाली एक मुलाजिम हैं।

तिवारी…जब लड़की इतनी होनहार और दूजे ख्यालों वाली है तो उसके सामने हमारी हैसियत मायने ही नहीं रखता। उस जैसी लड़की को मुझे अपनी पुत्र बधू बनाने में भाला क्या दिक्कत आयेगा।

राघव... ठीक है।

इसके बाद तिवारी जी राघव को सोने को कहकर चले गए और राघव आने वाले सुखद भविष्य के सुनहरी सपने बुनते हुए सो गया।

दृश्य में बदलाव

अगले दिन सुबह श्रृष्टि जब दफ्तर आई तब वो बिल्कुल सामान्य थीं। देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि यहीं लड़की कल इतना परेशान थी की किसी से बात नहीं कर रहीं थीं और जब दफ्तर से गई थी तब तो एक अलग ही रूप में थी। मगर आज वो सभी से हस बोल रहीं थीं ठिठौली कर रहीं थीं।

राघव दफ्तर आते ही पहले श्रृष्टि को देखने गया कि वो कैसा हैं। श्रृष्टि को हासता मुस्कुराता देखकर राघव को बहुत ही ज्यादा सकून मिला लेकिन उसका यह सकून ज्यादा देर नहीं टिका क्योंकि श्रृष्टि ने सरसरी निगाह फेरकर ऐसे पलट गई। जैसे राघव श्रृष्टि के लिए अनजान हों।

राघव काफी देर खड़ा रहा इस उम्मीद में कि श्रृष्टि एक बार उसकी ओर देखे मगर श्रृष्टि एक बार जो नज़रे झुकाया तो बस झुका ही रहा। अंतः राघव वापस जाते वक्त बोला... श्रृष्टि कुछ काम की बात करना हैं मेरे साथ आना जरा।

बिना नज़रे उठाए बस इतना बोला "आप चलिए मैं आती हूं" ये सुन और श्रृष्टि का बरताव देखकर राघव कुछ विचलित सा होकर चला गया।

राघव के जाते ही श्रृष्टि कुछ देर बिल्कुल चुप बैठी रहीं फ़िर अपने रुमाल से आंखो को फोंछने लग गई ये देख साक्षी बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि?

श्रृष्टि... साक्षी लगता है आंखों में धूल का कोई कर्ण घुस गया हैं।

साक्षी...अच्छा ला दिखा मैं निकल देती हूं।

श्रृष्टि... मैं निकल लूंगी तू सर से मिलकर आ।

साक्षी... मैं क्यों जाऊं? बुलाकर तुझे गया हैं तो तू ही जा।

श्रृष्टि... मैं जाऊं या तू बात तो उन्हें काम की करनी हैं। हम दोनों प्रोजेक्ट हेड हैं तो काम की बात तुझसे भी किया जा सकता हैं। इसलिए तू होकर आ तब तक मैं कुछ जरुरी काम निपटा लेती हूं।

साक्षी...श्रृष्टि आज तेरा वर्तब मेरे समझ में नहीं आ रहीं हैं। तुझे हुआ किया हैं। पहले तो तू सर के न बुलाने पर कोई न कोई काम का बहाना करके बात करने चली जाती थीं फिर आज क्या हुआ जो बुलाने पर भी नहीं जा रही हैं।

"आ हा साक्षी मैंने जो कहा है वो कर न मुझे क्या हुआ क्या नहीं ये जानना जरूरी नहीं हैं।" चिड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... अरे इतनी सी बात के लिए चीड़ क्यों रहीं हैं। अच्छा ठीक है मैं ही चली जाती हूं।

इसके बाद साक्षी चली गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... साक्षी तुम क्यों आईं हों। आने को श्रृष्टि को बोला था।

साक्षी... उसी ने ही भेजा हैं।

"क्या (चौकते हुए राघव आगे बोला) श्रृष्टि आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही हैं समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं।"

साक्षी... लगता है कल की बातों को कुछ ज्यादा ही दिल पे ले लिया हैं आप एक काम करिए अभी थोड़े देर बाद पुरी टीम को लांच पर ले जानें की बात कह दिजिए शायद इस बात से उसमे कुछ बदलाब आ जाए।

राघव... ठीक हैं तुम अभी जाओ।

साक्षी वापस चली गई और राघव ने तूरंत ही किसी को फ़ोन किया फिर काम में लग गया। कुछ वक्त काम करने के बाद वो वहां गया और बोला... आज मैं आप सभी को लांच पे ले जाना चाहता हूं तो आप सभी तैयार रहना।

राघव की इस बात पे श्रृष्टि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया न ख़ुशी जाहिर किया न गम बस सामान्य ही बनी रही और साक्षी बोलीं... अरे वाह सर आज किस ख़ुशी में हम पर ये मेहरबानी किया जा रहा हैं (फ़िर श्रृष्टि की ओर देखकर बोलीं) सर कही आप किसी की नाराजगी दूर करने के लिए सभी को लांच पर तो नही ले जा रहें हों।

"सर जब लांच पर ले ही जा रहे हो तो किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लेकर चलना।"एक सहयोगी बोला


साक्षी... अरे डाॅफर जब सर लेकर जा रहे हैं तो अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर ही जायेगे आखिर उन्हे किसी रूठे हुए को मनाना जो हैं। क्यों सर मैंने सही कहा न?

डाॅफर सुनते ही श्रृष्टि की आंखें फैल गई और चौकने वाले अंदाज में साक्षी को देखने लग गईं। जब उसे अहसास हुआ की डाॅफर उसे नहीं किसी ओर को बोला गया हैं। तो मंद मंद मुस्कान बिखेर कर नज़रे झुका लिया और राघव बोला...रेस्टोरेंट कैसा है ये तो तुम सभी को वहा पहुंचकर पाता चल जायेगा। वैसे मेरा आधा काम हों चुका हैं बाकि का लांच के वक्त हों जायेगा। अच्छा तुम सभी काम करो मैं समय से आ जाऊंगा।

एक गलतफैमी जीवन में कौन कौन सा मोड़ ला सकता हैं। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी अभी राघव एक गलत फैमी के चलते जो समझा और जो कहा वो कितना सिद्ध होगा ये वक्त ही बता सकता हैं। बरहाल श्रृष्टि के मंद मंद मुस्कान को हां समझकर राघव चला गया और साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर श्रृष्टि के कंधे से कंधा टकराते हुए बोलीं…श्रृष्टि अब तो खुश हों जा। यह लांच खास तेरे लिए प्लान किया गया हैं।

श्रृष्टि... मैं भाला क्यों खुश होने लगीं और मेरे ही लिए क्यों स्पेशियली लांच प्लान क्या जानें लगा?

साक्षी... तू जानती सब हैं फ़िर भी अनजान बन रहीं हैं चल कोई बात नहीं थोड़ी ही देर की बात हैं सब जान जायेगी।

श्रृष्टि... मुझे कुछ नहीं जानना और तेरा बाते बनना हों गया हो तो कुछ काम कर ले।

साक्षी... मैं बाते बना रहीं हूं कि सच कह रहीं हूं ये थोड़ी ही देर में पाता चल जायेगा। चल अपना अपना काम करते है आज तो लांच पे मैं छक के खाऊंगी ही ही ही।

अभी इन्हें काम करते हुए कुछ ही वक्त हुआ था कि श्रृष्टि का फ़ोन घनघाना उठा। बात करते हुए श्रृष्टि कुछ विचलित सी हों गईं और परेशानी की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं। फ़ोन कटते ही अपना हैंड बैग उठाया और साक्षी से बोलीं…साक्षी मुझे अभी घर जाना होगा सर को बता देना।

साक्षी... क्या हुआ?

श्रृष्टि... अभी बताने का समय नहीं है बाद में बता दूंगा।

इतना बोलकर श्रृष्टि चली गई। श्रृष्टि के चेहरे पे उकरी चिंता की लकीरें देखकर साक्षी भापने की जतन करने लगी की सहसा क्या हों गया जो श्रृष्टि इतनी जल्दी बाजी में और इतनी चिंतित मुद्रा में घर चली गई।

जारी रहेगा….
 
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भाग - 26

श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चला जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।

दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।

साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।

साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।

"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।

साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। अपितु जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी।

"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला

साक्षी... नहीं सर..।

इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?

साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता दूंगा। अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देता हूं आज का लांच कैंसिल हों गया हैं।

राघव... क्यों, लांच कैंसिल क्यों करना?

साक्षी... अरे सर जिसके लिए लांच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लांच पर जाकर क्या फायदा?

राघव... नहीं साक्षी लांच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा।

साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?

राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना

साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।

राघव…सॉरी साक्षी मैं….।

साक्षी... बस सर मै समझ गया। अब ये लांच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।

राघव…साक्षी समझा कारों।

साक्षी... समझ गई हूं तभी तो बोला रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लांच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं।

इतना बोलकर साक्षी चल दिया। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगा।

राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंचा तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लांच पर जाना चाहते हों?

"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भाला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" एक सहयोगी बोला

एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।

साक्षी के लांच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लांच पर चलने को काहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरा हों रहा था मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।

"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं

"अरे बोल दे शिवम आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लांच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला

शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।

"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं

शिवम... वो आज आपके साथ लांच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…

"फ़िर मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला

साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।

शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।

साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लांच पर जाना हैं।

"अब भला लांच पर कौन जायेगा। लांच तो यहीं करेंगे और लांच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला

शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भार पुर पार्टी दूंगा।

"चल ठीक है तेरी बात मन लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लांच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"

लांच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।

साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।

राघव…हा साक्षी...।

साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।

राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।

साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेता हूं।

दृश्य में बदलाब

श्रृष्टि इस वक्त एक हॉस्पिटल में हैं। जहां उसकी मां बेड पर लेटी हुई है। उनके एक पाव में प्लास्टर चढ़ा हुआ है और श्रृष्टि मां से बोल रहीं हैं।

"जब आप की तबीयत सुबह से खराब लग रही थी तो आपको कॉलेज जानें की जरूरत क्या थीं।"

"श्रृष्टि बेटा मैं एक शिक्षक हूं। शिक्षक होना बहुत ज़िम्मेदारी का काम हैं। चाहें कुछ भी हों जाएं मैं अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख नहीं हों सकता।"

"शिक्षक होने के साथ साथ आप एक मां हों और आपके अलावा आपके बेटी का इस दुनिया में कोई नहीं है ये बात क्यों भुल जाती हों।" श्रृष्टि लगभग रोते हुए बोलीं

"अहा श्रृष्टि बेटा रोते नहीं हैं मुझे कुछ हुआ थोड़ी हैं बस पाव थोड़ा सा फैक्चर हुआ है और ये बोतल तो डॉक्टर लोगों ने बस अपना बिल बढ़ने के लिए लगा रखा हैं।"

श्रृष्टि...आपको तो सब सहज लगता हैं। लेकिन मुझ पर क्या बीत रहीं थी मैं ही जानती हूं। जब मेरे पास फ़ोन आया कि आप सीढ़ी से गिर गई हों। तब कितने अनाप शनाप ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहे थे।

"अहा श्रृष्टि ज्यादा अनाप शनाप ख्याल आपने दिमाग में न लाया कर एक तू और एक वो बताने वाला उसने पुरी बात बताया नहीं और तूने पुरी बात सूना नहीं मैं तो बस...।"

"बस आपको चक्कर आ गया था ओर आप गिर गई थी जिसे आपका पैर मुड़ गया था।" मां की बात पूरा करते हुए श्रृष्टि बोलीं

"हां बस इतना ही हुआ देखना शाम तक बिल्कुल ठीक हों जाउंगी।"

श्रृष्टि... कितना ठिक हों जाओगी मैं जानती हूं। जब तक आपका पाव ठीक नहीं हो जाता तब तक आप कॉलेज नहीं जाओगी।

"पर...।"

"पर वर कुछ नहीं जो बोला यहीं आपको करना होगा अब आप आराम कारो मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूं।" मां को लगभग डांटते हुए बोली

इसके बाद श्रृष्टि डॉक्टर के पास पहुंची और मां के सेहत की जानकारी लिया तब डॉक्टर बोला... ज्यादा मेजर प्रॉब्लम नहीं है हल्की सी फैक्चर है। उनके उम्र को देखते हुए हमने ऐतिहातन प्लास्टर चढ़ा दिया है ।

श्रृष्टि... डॉक्टर मां को घर कब ले जा सकता हूं।

डॉक्टर... बस कुछ ही देर ओर रूकना है ड्रिप खत्म होते ही आप उन्हें ले जा सकती हों।

इसके बाद श्रृष्टि मां के पास आकर बैठ गई और उनसे बाते करके समय काटने लग गई। ड्रिप खत्म होने के बाद माताश्री को छुट्टी दे दिया गया।

घर आकर माताश्री को उनके रूम में लिटाकर श्रृष्टि घर के कामों में लग गई ऐसे ही शाम हो गया। श्रृष्टि मां के साथ शाम के चाय का लुप्त ले रहीं थी उसी वक्त द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का आवाहन दिया।

जारी रहेगा...
 
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भाग - 27

द्वार घंटी के आवाहन देने पर श्रृष्टि जाकर द्वार खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोला...साक्षी तुम आओ आओ भीतर आओ।

साक्षी... श्रृष्टि तेरा तो क्या ही कहना। कितना फोन किया एक फोन रिसीव करना जरूरी नहीं समझा तुझे पाता है राघव सर कितना परेशान हों रहें थे।

श्रृष्टि…सर भला क्यों परेशान होने लग गए। ओ समझा आज दफ्तर जाकर लौट आईं इसलिए परेशान हों रहें होंगे। होना भी चहिए उनका आज का काम रूक जो गया। सही कहा न।

श्रृष्टि ने सपाट लहजे में अपनी बाते कह दिया जिसे सुनकर साक्षी सिर्फ मुंह तकती रह गई और श्रृष्टि आगे बढ़ते हुए बोलीं... साक्षी सॉरी हा वो मां हॉस्पिटल में थी और ये सूचना पाते ही मेरा सूज बुझ जवाब दे चुका था इसलिए कुछ बता नहीं पाई।

"क्या (चौकते हुए साक्षी बोली) आंटी हॉस्पिटल में है तो तू इस वक्त घर में क्या कर रहीं हैं?

"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोली

श्रृष्टि... मां साक्षी आई है। चल साक्षी मां से भी मिल ले।

इसके बाद दोनों माताश्री के कमरे में पहुंचे वहां साक्षी ने माताश्री का हाल चाल लिया फ़िर बोलीं... आंटी आपकी बेटी न पूरा का पूरा वावली हैं। आप की सूचना पाकर खुद तो परेशान हुआ ही साथ में ओर लोगों को भी परेशान कर दिया।

"वो तो होगी ही मां से इतना प्यार जो करती हैं।।"

साक्षी... मां से प्यार करती है ये तो अच्छी बात है मगर इसे समझना चहिए कोई है जो इससे बहुत प्यार करता है। इसे परेशान देखकर वो भी परेशान हो जाता हैं।

कोई ओर भी श्रृष्टि को प्यार करता हैं यह सुनते ही माताश्री और श्रृष्टि समझ गई कि किसकी बात कहा जा रहा हैं। माताश्री कुछ बोलती उससे पहले ही श्रृष्टि बोलीं... साक्षी तू मां से बात कर मैं चाय बनाकर लाई।

साक्षी रूकने को कहा पर श्रृष्टि रूका नहीं खैर कुछ देर में श्रृष्टि फ़िर से तीन कॉफ चाय लेकर आई और साक्षी को देते हुए बोलीं... साक्षी तुझे तो कॉफी पीने की आदत है लेकिन हम मां बेटी को चाय पीने की आदत है। इसलिए कॉफी की जगह चाय लेकर आई हूं। तुझे बूरा तो नहीं लगेगा।

साक्षी... क्यों कल भी तो तूने मुझे चाय पिलाया था तब तो तूने मुझसे कुछ नहीं कहा अच्छा आंटी आप ही बताइए कहा लिखा है कॉफी पसंद करने वाला चाय नहीं पी सकता हैं।

"कहीं नहीं लिखा हैं।"

साक्षी... ये बात जरा अपने इस डाॅफर बेटी को समझिए।

डाॅफर सुनते ही माताश्री हंस दिया और श्रृष्टि चिड़ते हुए बोलीं... मां साक्षी मुझे डाॅफर बोल रहीं हैं और आप इसे कुछ कहने के जगह हंस रहीं हों।

इस बार माताश्री और साक्षी दोनों श्रृष्टि की बातों पर हंस दिया फ़िर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा इसमें छिड़ने वाली कोई बात ही नहीं हैं। तूने बाते ही मूर्खो वाली कहीं हैं।

श्रृष्टि... मां...।

श्रृष्टि एक बार फिर से चीड़ गई। माताश्री ने उसे समझा बुझा कर मना लिया बरहाल चाय खत्म होने के बाद साक्षी फ़िर आने को बोलकर विदा लिया। साक्षी को श्रृष्टि बहार तक छोड़ने आई। बहार आकर श्रृष्टि बोलीं... साक्षी सर को बोल देना मैं कुछ दिन छुट्टी पर रहूंगी।

साक्षी... मैं क्यों बोलूं छुट्टी तुझे चहिए तू खुद ही बोल देना।

श्रृष्टि...क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती हैं।

साक्षी... कर तो बहुत कुछ सकती हूं पर करूंगी नहीं क्योंकि जब तू बिना बताए आ गई तो सर सुनकर बहुत चिंतित हों गए थे। इसलिए नहीं की तू उनके साथ लांच पर नहीं गईं। वो चिंतित इसलिए हुए थे क्योंकि उन्हें तेरी फिक्र हैं। अरे मैं भी कौन सी बाते लेकर बैठ गई अच्छा मैं चलती हूं और तू अपने छुट्टी की अर्जी खुद ही सर को फ़ोन करके लगा देना।

साक्षी चली गई और श्रृष्टि भीतर आ गई। जब वो माताश्री के कमरे में पहुंचा तो देखा माताश्री किसी ख्यालों में गुम है। ये देख श्रृष्टि बोलीं... मां आप किस ख्यालों में खोए हों।

"कुछ नहीं बस ऐसे ही। अच्छा ये बोल रात के खाने में क्या बना रहीं हैं।"

श्रृष्टि... जो आप कहो

रात्रि भोजन में क्या बनाया जाएं। ये सुनिश्चित होते ही श्रृष्टि रसोई में चली गई और रात्रि भोजन की तैयारी करने लग गईं। तभी "श्रृष्टि बेटा तेरा फ़ोन बज रहा है देख ले किसका फ़ोन आया हैं।" माताश्री आवाज देते हुए बोली। तब श्रृष्टि अपना मोबाइल लेने गई तब तक कॉल कट चुका था।

स्क्रीन पर दिख रहे नाम को देख कर फटा फट एक msg टाइप करके भेज दिया और फ़ोन अपने साथ लेकर रसोई में आ गई। रसोई में आने के बाद भी कई बार मोबाइल बजा मगर श्रृष्टि नजरंदाज करके अपना काम करती रहीं।

माताश्री के पांव में फैक्चर की वजह से प्लास्टर चढ़ा हुआ था इसलिए सावधानी बरते हुए श्रृष्टि ने दफ्तर में छुट्टी की अर्जी लगा दिया था। इसका पाता चलते ही माताश्री ने श्रृष्टि को डांटा कि साधारण सी चोट है इसके लिए तुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं हैं। तू दफ्तर जा मैं खुद का ख्याल रख लूंगी। मगर श्रृष्टि माताश्री की एक न सुनी और घर पर ही रहीं।

उधर साक्षी के जरिए राघव को भी खबर मिल चुका था कि किस करण श्रृष्टि चली गई थी जिसे जानकार राघव ने कहीं बार श्रृष्टि को कॉल किया लेकिन एक भी बार श्रृष्टि ने कॉल रिसीव नहीं किया बल्कि जवाब में एक msg भेज देता था।

राघव विचारा प्यार की बुखार से पीड़ित, आशिकी का भूत सिर पर चढ़ाए बस श्रृष्टि की एक शार्ट msg से खुद को संतुष्ट कर लेता था।

एक हफ्ते की छुट्टी के बाद श्रृष्टि दफ्तर पहुंची जहां सभी ने श्रृष्टि का अव भगत ऐसे किया जैसे श्रृष्टि कई महीनों बाद दफ्तर आई हों।

राघव की जानकारी में था कि आज श्रृष्टि दफ्तर आ रहीं हैं तो महाशय आज अपने नियत समय से पहले ही दफ्तर पहुंच गए और जा पहूंच अपनी माशूका के दीदार करने मगर विचारे की फूटी किस्मत श्रृष्टि ने नज़र उठकर भी राघव को नहीं देखा। कुछ वक्त तक वह खड़ा रहा इस आस में की श्रृष्टि कभी तो उसकी और देखेगी लेकिन श्रृष्टि जिऊं की तिऊं बनी रहीं। अंतः जाते वक्त राघव बोला... श्रृष्टि जरा मेरे कमरे में आना कुछ बात करनी हैं और हा तुमसे ही बात करनी हैं किसी ओर से नहीं इसलिए तुम्हे ही आना होगा।

इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि असमंजस की स्थिति में फंस गई कि करे तो करे क्या? आस की निगाह से साक्षी को देखा तो उसने भी कंधा उचाका कर कह दिया। मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती हूं जो करना हैं तुम्हें ही करना हैं।

अब राघव के पास जानें के अलावा श्रृष्टि के पास कोई और चारा ही नहीं बचा इसलिए श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि को आया देखकर राघव के लवों पर मंद मंद मुस्कान तैर गया और आंखों से शुक्रिया अदा करते हुए राघव बोला... श्रृष्टि तुम्हारी मां की खबर जानने के लिए कितना फोन किया मगर तुमने एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। ऐसा क्यों?

श्रृष्टि... सर उस वक्त मैं बिजी रहती थी इसलिए फोन रिसीव नहीं कर पाईं। वैसे भी साक्षी से आप को खबर मिल ही गया होगा कि मां कैसी हैं तो मैं बताऊं या साक्षी बताए बात तो एक ही हैं।

राघव... तुम्हारी मां की खबर मिल ही गया था फ़िर भी मैंने इतना फोन किया कम से कम एक बार कॉल रिसीव कर लेती भला घर पर रहते हुए भी कौन इतना बिजी रहता है जो किसी से बात करने की फुरसत ही नहीं मिल रहा था।

श्रृष्टि... सर दफ्तर के काम के अलावा घर पर भी सैकड़ों काम होते हैं जिसे करना भी ज़रूरी होता हैं। आपकी ज़रूरी बाते हो गया हों तो मैं जाऊं।

राघव... श्रृष्टि मैं देख रहा हूं। कई दिन से तुम मुझे नजरंदाज कर रहें हों। मैं जान सकता हूं मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हों गया है जिसके लिए तुम ऐसा कर रहीं हों।

"सर गुनाह आप से नहीं मूझसे हुआ हैं। मुझे लगता है आपकी ज़रूरी बाते खत्म हों गया होगा इसलिए मैं चलती हूं बहुत काम पड़ा हैं।" सपाट लहजे में श्रृष्टि ने अपनी बाते कह दिया और पलट कर चल दिया।

जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।

जारी रहेगा….
 
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भाग - 28

जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।

दोपहर के भोजन का समय हों चुका था। सभी आपने अपने जगह बैठ रहें थे। आज कुछ अलग ये हुआ कि साक्षी शिवम के बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी और श्रृष्टि कमरे से बहार जा रहीं थीं ये देख साक्षी बोलीं... श्रृष्टि तू बहार कहा जा रहीं है तुझे लांच नहीं करना हैं।

श्रृष्टि... लांच करने ही जा रही हूं वो क्या है कि आज लांच लेकर नहीं आई तो कैंटीन में जा रहीं हूं।

साक्षी... ठीक है फिर जल्दी से लेकर आ।

श्रृष्टि... सोच रहीं थी आज वहीं लांच कर लेती हूं।

इतना बोलकर बिना साक्षी की बात सुने श्रृष्टि चली गई और साक्षी बोलीं...पाता नहीं इसे क्या हों गया?

सभी लांच करने की तैयारी कर ही रहें थे उसी वक्त राघव भी वहा आ गया। श्रृष्टि को न देखकर राघव बोला...श्रृष्टि कहा गई उसे लांच नहीं करना।

"सर श्रृष्टि मैम लांच करने ही गई हैं दरअसल मैम कह रहीं थी कि आज लांच नहीं लाई हैं तो कैंटीन में करने गईं हैं।" एक साथी बोला

"अच्छा" बस इतना ही बोलकर राघव मुस्करा दिया और अपना ठिफान खोलकर लांच करने लग गया। कुछ ही देर में सभी ने लांच समाप्त किया फ़िर अपने अपने काम में लग गए।

ऐसे ही कई दिन बीत गया और इन्हीं दिनों राघव जितनी भी बार वहा आता प्रत्येक बार श्रृष्टि राघव को नजरंदाज कर देती सिर्फ इतना ही नहीं लांच भी प्रत्येक दिन कैंटीन में जाकर ही करती साक्षी या दूसरे सहयोगी अपने में से खाने को कहती तो माना करके कैंटीन चला जाया करतीं थीं।

श्रृष्टि को ऐसा करते देखकर राघव भी लांच करने कैंटीन में चला जाता और श्रृष्टि के टेबल पर जाकर बैठ जाता तब श्रृष्टि उठकर दूसरे टेबल पे बैठ जाती। श्रृष्टि की बेरुखी देखकर राघव बेहद कुंठित हों जाता मगर हार नहीं मन रहा था। प्रत्येक दिन अपना क्रिया कलाप दौहराए जा रहा था।

जो भी श्रृष्टि कर रहीं थी इससे श्रृष्टि भी आहत हों रहीं थी। जब भी राघव आकर चला जाता तब श्रृष्टि की भावभंगिमा बदल जाती जिसे देखकर साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर बोली...श्रृष्टि जब तुझे राघव सर के साथ ऐसा सलूक करके बूरा लगता हैं तो क्यों कर रहीं हैं।

श्रृष्टि... मैं भाला राघव सर के साथ कैसा व्यवहार करने लगा जिससे मुझे बूरा लगेगा।

साक्षी...सब जानकर भी अंजान बनने का स्वांग न कर मैं सब देख रही हूं और समझ भी रहीं हूं जब भी तू सर को नजरंदाज करती है प्रत्येक बार तू उदास हों जाती हैं और तेरी आंखें छलक आती है फिर भी तू ऐसा क्यों कर रही हैं मेरे समझ से परे हैं।

श्रृष्टि... मैं भाला स्वांग क्यों करने लग गई? मैने न कभी स्वांग किया है न ही करती हूं और रहीं बात मेरे आंखें छलकने की तो उस वक्त कोई धूल का कर्ण चला गया होगा।

साक्षी... श्रृष्टि बार बार एक ही किस्सा कैसे दौहराया जा सकता है? तू कह रहीं हैं तो मन लेता हूं। अच्छा सुन इस इतवार को मैं तेरे घर आ रही हूं तू घर पर तो रहेगी न।

श्रृष्टि... तुझे मैंने कभी रोका हैं जब मन करें तब आ जाना।

साक्षी... रोका तो नहीं है पर सुनने में आया है तू आज कल इतवार को भी बहुत बिजी रहने लगीं है बस इसलिए पूछ लिया।

साक्षी ने जो कहा उसे सुनकर श्रृष्टि समझ गई की साक्षी का इशारा किस ओर है इसलिए बिना कुछ कहे अपने काम में लग गई। कुछ देर काम करने के बाद साक्षी जा पहुंची राघव के पास साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कुछ काम बना कुछ पाता चला श्रृष्टि क्यों ऐसा कर रहीं हैं।

साक्षी... सर पाता तो नही चला लेकिन अब पाता चल जायेगा मैं इतवार को उसके घर जा रहीं हूं और कैसे भी करके उससे जानकर ही रहूंगा कि वो आपको नजरंदाज क्यों कर रहीं हैं जबकि ऐसा करके वो दुखी हो जाती हैं।

राघव... तभी तो तुम्हें पाता करने को कहा क्योंकि कई बार मैंने भी गौर किया है। श्रृष्टि मुझे नजरंदाज कर रही हैं या फिर सपाट लहजे में कुछ कह देती हैं उसके अगले ही क्षण उसकी आंखें डबडबा जाती हैं।

साक्षी... बस कुछ दिन और फ़िर सब पाता कर लूंगी।

राघव... चलो ये भी करके देख लेता हूं। अच्छा ये बताओं तुम्हारा और शिवम का कहा तक पहुंचा है विचारे को अभी तक लटका रखा हैं। उसे हा या न में जवाब क्यों नहीं दे देती।

साक्षी... सर शिवम को मैंने परख लिया है वो मेरी माप दंड में बिल्कुल खरा उतरता है। बस आप और श्रृष्टि के बीच जो थोड़ी बहुत दूरी है उसे खत्म कर दूं फिर शिवम जो सुनना चाहता है उसे उसका जवाव दे दूंगा।

राघव... मतलब की तुम विचारे को अभी और तराशने वाली हों।

साक्षी... हां! अभी तरसेगा तभी तो मेरे पीछे खर्चा करेगा ही ही ही।

राघव... तुम भी न चलो जाओ अब कुछ काम भी कर लो अलसी कहीं कि हां हां हां।

इसके बाद साक्षी चली गईं। काम काज में यह दिन बीत गया शाम को श्रृष्टि रात्रि भोजन बना रहीं थी माताश्री भी उसके बगल में थी जो उसकी मदद कर रही थीं।

श्रृष्टि सब्जी चला रहीं थीं मगर उसका ध्यान सब्जी पर नहीं कहीं और थीं। जिसे देखकर माताश्री उसके कंधे पर हाथ रख दिया। स्पर्श का आभास होते ही श्रृष्टि आंखें मिच लिया ये देख माताश्री बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि आंखें क्यों मिच लिया?

श्रृष्टि... मां लगता है सब्जी की मिर्ची वाली भाप आंखो में चला गया है।

"जा आंखें धो ले तब तक सब्जी मैं देख लेती हू।"

श्रृष्टि तूरंत ही सिंक में आंखो को धोने लग गई। बरहाल खाना बन जाने के बाद दोनों मां बेटी साथ में खाना लगाकर खाने लग गई। खाना खाते वक्त भी श्रृष्टि का ध्यान खाने पर नहीं कहीं ओर था ये देखाकर माताश्री मुस्कुराते हुए बोली... श्रृष्टि तेरा ध्यान किधर हैं।

माताश्री की आवाज कानों को छूते ही श्रृष्टि का ध्यान भंग हुआ फिर श्रृष्टि बोलीं... बस मां काम को लेकर कुछ सोच रहीं थीं।

"तू काम की नहीं अपने सर के बारे में सोच रहीं थी। क्यों मैने सही कहा न?"

इतना सुनते ही श्रृष्टि चौक कर माताश्री की और देखा और माताश्री मुस्कुरा दिया। जिसे देखकर श्रृष्टि नज़रे घुमा लिया ओर बोलीं…नहीं तो मां मैं भाला उनके बारे में क्यों सोचने लगीं।

"अच्छा! चल कोई बात नही मैंने शायद गलत ख्याल पल लिया होगा। अच्छा सुन तू अपने सर और खुद के बारे मे जो भी फैंसला लेना सोच समझकर लेना और अभी तक नहीं सोचा हैं तो उस पर गौर से सोचना।"

इतना बोलकर माताश्री मुस्कुरा दिया। श्रृष्टि माताश्री को गौर से देखने लगी और समझने की कोशिश करने लगी कि मां ऐसा कहकर मुस्कुरा क्यों रही है उनके मुस्कुराने के पूछे वजह किया है पर श्रृष्टि कोई वजह तलाश ही नहीं पाई तो खाने में व्यस्त हो गईं।

ऐसे ही दिन बीतता गया और इतवार का दिन भी आ गया। दिन के करीब 12 बजे द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया। श्रृष्टि जाकर दरवाजा खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोलीं... साक्षी आने में कितनी देर कर दी मैं कब से तेरा वेट कर रही थीं।

साक्षी... अच्छा मेरे आने का या फ़िर किसी ओर के आने का बेसबरी से वेट कर रहीं थी।

श्रृष्टि... अरे जब आने वाली तू थी तो किसी और के आने का भला मैं क्यों वेट करने लगीं।

साक्षी... वो क्या है न राघव सर भी तुझसे अकेला मिलना चाहते हैं तो मैंने सोचा शायद तू राघव सर के आने का वेट कर रहीं होगी इसलिए बोला था। अच्छा बता आंटी कहा हैं दिख नहीं रहीं।

"तू बैठ मैं चाय लेकर आती हूं। मां कुछ काम से बजार गई हैं।" इतना बोलकर श्रृष्टि रसोई की और चली गई। दो पल रूककर साक्षी भी रसोई की और चली गई। वह जाकर देखा श्रृष्टि का एक हाथ फ्रीज के डोर पर है और दुसरा हाथ उसके आंखों के पास है ये देखकर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ।

अचानक साक्षी की आवाज सुन कर श्रृष्टि सकपते हुए बोली... वो फ्रिज का डोर खोल रहा था तो शायद कुछ आंखों में चली गईं।

श्रृष्टि की बाते सुनकर साक्षी मुस्कुरा दिया फिर दो कदम आगे बढ़कर श्रृष्टि के कांधे पर हाथ रखकर बोली….फ्रिज का डोर तो बंद है फिर बिना डोर खुले तेरे आंखो में कुछ कैसे जा सकता हैं।

श्रृष्टि का झूठ पकड़ा गया और उसके पास प्रतिउत्तर देने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। इसलिए बिना कुछ बोले फ्रिज से दूध निकलकर चाय चढ़ा दिया। गैस पे चाय धीमी आंच पर पाक रहा था और साक्षी बोलीं... श्रृष्टि कभी कभी हम कितना भी झूठा स्वांग रचा ले लेकिन कभी न कभी हमारा झूठ पकड़ा ही जाता हैं। आज तेरा भी झूठ पकड़ा गया। तू भाले ही राघव सर के प्रति कितना भी बेरूखी दिखा ले मगर भीतर ही भीतर तू भी कूड़ती रहती हैं। खुद को कोसती रहती हैं कि तूने उनके साथ ऐसा क्यों किया। श्रृष्टि मैं सही कह रहीं हूं न।

जारी रहेगा…
 
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भाग - 29

साक्षी ने जो कहा यहीं सच था। श्रृष्टि जब भी राघव को नजरंदाज कर देती या फ़िर कोई कड़वी बातें कह देती थी उसके बाद वो खुद को कोसती रहती थी और आंखों से नीर बहा देती थी। ऐसे करते हुए कई बार पकड़ी भी गई। पकड़े जानें पर अपने सामने मौजूद वस्तु का बहाना बनाकर टल देती थीं।

आज जब साक्षी ने उसकी झूठ को पकड़ लिया और उसके हाल-ए-दिल बयां कर दिया तब श्रृष्टि खुद को रोक नहीं पाई और साक्षी से लिपट कर फाफक पड़ी फ़िर रोते हुए बोलीं...साक्षी तू सही कह रहीं हैं सर के साथ जब भी बूरा बरतब किया। प्रत्येक बार मुझे उनसे ज्यादा तकलीफ हुआ बहुत ज्यादा तकलीफ हुआ फिर भी सहती रहीं।

कुछ देर श्रृष्टि को रोकर जी हल्का करने दिया। जब श्रृष्टि कुछ संभली तब साक्षी बोलीं... ये आशिकी का बुखार भी बड़ा अजीब होता है जब चढ़ती है सहन शक्ति बढ़ जाती हैं। वह राघव सर तेरी बेरूखी सहकर भी हंस रहें थे मुस्कुरा रहे थे और यहां तू उनसे बेरूखी दिखकर कुढ़ती रहती थी। तू जानती हैं। इस मामले में शिवम भी कुछ काम नहीं हैं। विचारे को न जानें कितनी कड़वी बातें सुनाया, कितना डांटा बिना एक लफ्ज़ बोले सब सहता रहा। आखिर सहता नहीं तो क्या करता उस पर भी आशिकी का भूत सवार था और मुझे प्यार जो करता हैं।

कहते है जब कोई आहत हो या चोटिल हों तब ध्यान भटकने के लिए कुछ ऐसी बातें कह दो जिसकी अपेक्षा उसने कभी किया न हों जिससे उसका ध्यान कुछ पल के लिए भटक जाता है। बिल्कुल वैसा ही श्रृष्टि के साथ हुआ। जो अभी तक आहत थी। साक्षी का कथन सुनकर श्रृष्टि अचंभित हों गई और साक्षी से अलग होकर एक टक बिना पलके झपकाए देखने लगी। उसे ऐसा करते देखकर साक्षी बोलीं...क्या हुआ तू मुझे ऐसे क्यों देख रही है? तुझे क्या लगता है प्यार सिर्फ तू और राघव सर ही कर सकते हैं। बाकी कोई नहीं कर सकता हैं।

श्रृष्टि... ऐसा नहीं है प्यार तो सभी कर सकते हैं। प्यार पर किसी का मालिकाना हक थोड़ी न है। मुझे तो बस इसलिए झटका लगा की उसने कभी किसी को आभास ही नहीं होने दिया की उसके मन में ऐसी कोई बात है।

साक्षी... बड़ा छुपा हुआ आशिक है। मुझे भी उसकी आशिकी भा गई। अब मैं भी प्यार की दरिया में इश्क का नव लिए उतर गई रे।

श्रृष्टि... अच्छा तो बता न ये कब और कैसे हुआ?

साक्षी... कब कैसे ये भी जान लेना पर पहले मुझे चाय पिला और जो मैं जानने आई हूं एक एक वाक्य सच सच बता दिया तब ही मैं अपनी बताऊंगी।

श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगी की साक्षी क्या जानने आई है इसलिए चुप्पी सद लिया और पलट गई। वह चाय उबालकर गिर चुका था तो साफ सफाई करके दुबारा चाय चढ़ा दिया। चाय बनते ही दो काफ में डालकर बहार आ गई और बैठे एक काफ साक्षी को पकड़ दिया फिर दुसरा काफ खुद ले लिया। चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी बोलीं... श्रृष्टि चाय तो तूने बड़ा बेहतरीन बनाया हैं। अब उतनी ही बेहतरीन तरीके से वो बता जो मैं जानना चहती हूं।

श्रृष्टि... बताना ज़रूरी हैं।

साक्षी... हां ज़रूरी है।

कुछ देर की चुप्पी छाया रहा। इतने वक्त में श्रृष्टि के मस्तिस्क में विचार चलता रहा फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं…सर से मेरी बेरूखी की वजह सिर्फ उनकी शादी हैं।

इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे चुराने लग गई और साक्षी बोलीं... झूठ सफेद झूठ क्योंकि राघव सर की शादी की बात झूठी थी। यह बात मैंने ही फैलाया था। ये बात मैं तुझे बता चुका था और क्यों फैलाया था यह भी तुझे बता चुका था फ़िर भी तू उनसे बेरूखी दिखाती रहीं। तो जाहिर सी बात है वजह दूसरी हैं। अब मुझे वहीं दूसरी वजह जानना हैं।

यह सुनकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया और मूल वजह बताने में हिचकिचने लग गई। यह देखकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि राघव सर से मुझे इतना तो पाता चल गया कि तू बीती घटनाओं को बताकर सहानुभूति पाने वालो में से नहीं है यह बात तूने खुद राघव सर को बोला था लेकिन अब मामला सहानुभूति की नहीं बल्कि दो दिलों का हैं जो एक दुसरे से बहुत प्यार करते हैं मगर उसी एक वजह के कारण तू आगे कदम बढ़ाने से डर रहीं हैं।

श्रृष्टि... वो वजह मां है।

"आंटी पर क्यों?" चौकते हुए बोलीं

श्रृष्टि... तू मां सुनके इतना चौकी क्यों?

साक्षी... मैं तो बस ऐसे ही चौक गई थी अब तू ये बता आंटी वजह कैसे हों सकती हैं?

श्रृष्टि... मां नही मां के साथ घटी एक घटना मूल वजह हैं।

साक्षी...यार तूने क्या मुझे पागल समझा है कभी कहती है आंटी ही वजह है कभी कहती है उनके साथ घटी एक घटना वजह हैं। यार जो कहना है ठीक ठीक बता यूं मुझे शब्दों में न उलझा।

श्रृष्टि... बात उस वक्त की है जब मां की शादी नहीं हुई थी और मां एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हुआ करती थी। उस वक्त मां की मुलाकात दक्ष नाम की एक शख्स से हुआ जो कि मेरा बाप हैं। दोनों की मुलाकाते दिन वा दिन बढ़ती गई और मां को उनसे प्यार हों गया। शुरू शुरू में मां उनसे कतराती थीं लेकिन एक दिन पापा ने खुद मां को प्रपोज कर दिया। मां तो पहले से ही उनके प्यार में डूबी हुईं थी इसलिए उन्होंने हां कर दिया।

जब बात शादी की आई तो पापा टाला मटोली करने लग गए। सहसा एक दिन वो खुद से शादी को मन गए। जब यहां बात नाना नानी को बता दिया गया। तो उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वो रूढ़ी वादी सोच के थे और प्रेम विवाह के शक्त खिलाफ थे।

"अजीब ख्यालात के लोग है। जिन्होंने प्रेम का पाठ पढ़ाया उनकी अर्चना करते हैं। वखान सुनाते हैं और खुद भी सुनते है लेकिन जब वही प्रेम उनके बच्चे करते हैं तो उनकी रूढ़ी वादी सोच आड़े आ जाती हैं।" बात काटते हुए साक्षी बीच में बोलीं

श्रृष्टि…इन्हीं लोगों को ही दोहरा चरित्र वाले कहते है। ये दिखावा कुछ ओर करते है और इनके मन मस्तिष्क में कुछ ओर ही चलता रहता हैं। खैर छोड़ इन बातों को तू आगे सुन... बहुत मान मुनावल किया गया। मगर नाना नानी नहीं माने तब पापा के कहने पर दोनों ने भागकर शादी कर लिया। यहीं एक गलती मां से हों गई। खैर शादी को साल भर बीता ही था की मां को पता चलने लग गई कि पापा भी दौहरे चरित्र वाले है वो जैसा दिखते है वैसा नहीं हैं।

पापा एक छोटा मोटा बिजनेस मैन थे और इनकी आकांक्षा बहुत बडी थीं। पापा मां को ताने देते थे कि उन्होंने सिर्फ उसने शादी इसलिए किया ताकी वो नाना नानी से मदद लेकर अपना व्यापार बड़ा सके मगर भागकर शादी करने की वजह से नाना नानी ने मां से सारे संबंध तोड़ लिए और उनकी मनसा धरी की धरी रह गई।

मां ने बहुत कोशिश किया कि उनका वैवाहिक जीवन ठीक चले इसलिए उन्होंने नाना नानी से बात करने की बहुत कोशिश किया मगर उनकी सारी कोशिशे विफल रहीं। इस बीच मैं भी दुनिया में आ चुकी थी पर मेरे आने के बाद भी पापा में कोई बदलाव नहीं आया और जब मैं लगभग तीन या चार साल की थी तब पापा ने मां के सामने डाइवर्स पेपर रख दिया। पेपर देखकर मां बोलीं कि आपके आकांक्षा के आगे मेरा प्यार इतना क्षिण हो गई कि आप मुझे डाइवर्स देने पर आ गए। मेरे बारे में नहीं तो कम से कम हमारी बेटी के बारे में सोच लेते। तब पापा बोले मुझे तुमसे कभी प्यार था ही नहीं मुझे तो बस तुम्हारे बाप की थोड़ी सी दौलत चहिए था जब वो मुझे नहीं मिल रहा तो भाला मैं तुम्हें क्यों झेलूं वैसे भी मैंने मेरा इंतजाम कर लिया हैं तुम्हें डाइवर्स देकर उससे शादी करके उसके बाप की अपार संपत्ति का मालिक बनकर मौज करुंगा।

मां मनाने की बहुत जतन किया बहुत दुहाई दिया पर पापा नहीं माने अंतः मां ने डाइवर्स पेपर पे हस्ताक्षर कर दिया और निकल आए उस वक्त मां का मन किया की आत्महत्या कर ले लेकिन मेरी सुरत देखकर वो ये भी नहीं कर पाए आखिर करते भी तो कैसे मां इतनी निष्ठुर थोड़ी न थी जो मुझे इस दुनिया में अकेले छोड़कर चली जाती।

बाद में मां नाना नानी के पास भी गए पर उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि उनके लिए मां मर चुकी है। नाना नानी कि बात न मानकर मां ने जो गलती किया उसकी सजा मां को मिल रहीं थीं और मां के भाग जानें की वजह से समाज में जो उनकी किरकिरी हुआ था उसके लिए मां से कोई वास्ता नहीं रखना चाहते थे इसलिए उन्होंने मां को उनके हाल पर छोड़ दिया।

तब मां वो शहर छोड़कर यहां आ गई और यहां एक कॉलेज में जॉब करना शुरू किया फिर मुझे पल पोसकर इस काबिल बनाया की मैं खुद के दाम पर दुनिया के कंधे से कंधा मिलाकर चल पाऊं। अब तू ही बता न, मां ने कौन सी गलती किया जो उन्हे ऐसी सजा मिली सिर्फ इतना ही न की वो एक दोहरे चरित्र वाले इंसान से प्यार किया। हां मानता हूं मां को भाग कर शादी नहीं करना चाइए था जो उनकी सबसे बडी गलती थी।

मुझे सिर्फ इस बात का डर है कि सर भी दोहरे चरित्र के न हों और मुझे भी ऐसा कोई कदम उठाना पड़े जो मां ने उठाया था। इसलिए मैं खुद को बहुत रोकना चाहा मगर उनके भाव भंगिमा देखकर न जाने कैसे वो मेरे दिल में जगह बना लिया मैं समझ ही नहीं पाई और जब तूने शादी की झूठी खबर दिया तब मैं बहुत आहत हुई थीं और मां के समझने पर मैं खुद को सामान्य कर लिया फिर खुद को आगे बढ़ने से रोकने के लिए सर के साथ बेरूखी वाला सलूक करने लग गया। उससे सर जितने आहत होते थे उससे कहीं ज्यादा मैं आहत होती थी।

जारी रहेगा...
 
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भाग - 30

श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।

श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पाता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।

साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भाला वो अकेले कैसे दोषी हुआ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पाता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?

श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बना होगा जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के माना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गया और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं।

साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।

श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।

साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।

श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पड़ी करे ये मुझे गवारा नहीं इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।

इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।

श्रृष्टि... नहीं जानता क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।

साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी।

श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।

"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगा।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं

श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।

साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ सोच रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।

श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगा अच्छा तू बैठ मैं दो काफ चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगा।

साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।

बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं। थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।

साक्षी...मेरी प्रेम कहानी तेरी तरह टिपिकल नहीं है बिल्कुल सिंपल सा हैं। जैसा की तू जानती है शिवम और मैं बहुत समय से तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में काम कर रहें हैं। जब से मैं और शिवम एक साथ एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने लगें तभी से शिवम मुझे पसंद करने लगा लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग़ में कोई ओर ही फितूर चला रहा था। अब तू उस फितूर के बारे में पूछने न लग जाना ठीक हैं। (श्रृष्टि हां में मुंडी हिला दिया तब साक्षी आगे बताना शुरू किया) जैसे जैसे वक्त बीतता गया वो मेरे प्यार में गिरता गया। मैं जो करने को कहता चाहे सही हो या गलत खुद भी करता और दूसरे सहयोगी को भी वैसा करने को मनवा लेता था।

कारण वो सभी जानते थे मगर शिवम में इतनी हिम्मत नहीं हुआ कि वो मुझे प्रपोज कर पाए कहीं न कहीं उसके मन में डर था कहीं मैं बूरा मान गई ओर राघव सर से कहके उसे नौकरी से निकलवा दिया तो वो मूझसे दूर चला जायेगा। बाकी सहयोगी के बार बार कहने पर उसमे थोड़ा थोड़ा हिम्मत आने लगा और मेरे एक हफ्ते की छुट्टी के बाद वापस लौटते ही उसमे बहुत बदलाब आ चुका था। वो मूझसे कुछ कहना चहता था लेकिन झिकक के कारण कहा नहीं पाता था।

जब सर ने हम सभी को लांच पर ले जानें की बात कहा तब शिवम मौका ताड़ने की सोचा और लांच पर ही कोई मौका देखकर मूझसे बात करने का प्लान बना लिया। आंटी की वजह से तू चली आई और तेरे आ जानें के कारण राघव सर लांच पे नहीं जाना चाहते थे।

"क्या सिर्फ मेरे कारण सर लांच पर नहीं जाना चाहते थे।"चौकते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... हां क्योंकि लांच पर जानें का प्लान सिर्फ तेरे कारण बनाया गया था ताकि सर तुझसे बात कर पाए और लांच पर जानें का प्लान मैंने ही बनाने को कहा था क्योंकि तू सर के साथ अकेले कहीं जानें को राज़ी नहीं हों रहीं थीं।

श्रृष्टि…मतलब तू सब जानती थीं ओर मैं सोचती थी तू मेरी हरकते देखकर तुक्का भिड़ती थी जो सही बैठता था।

साक्षी...चल हट पगली मैं सब जान बूझकर कहती थीं। मुझे उस दिन पाता चला जब मैं छुट्टी के बाद इस्तीफा देने वापस आईं थीं। तू तो मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने की बात कहकर चली आई पर बाद में सर ने मुझे बता दिया की उनके मन में तेरे लिए क्या है। पाता है सर कितना हक से कह रहे थे "श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।"

"श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्करा दिया फ़िर बोला... मैं कितना उनकी हूं ये तो बाद में पाता चलेगा अब तू अपनी सूना।

साक्षी... राघव सर ने मुझे सभी को लांच पे ले जानें को कहा पर मेरा मन जानें को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने भी माना कर दिया। मेरे न जानें की बात जब उन लोगों को कहा तो तब शिवम ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दिया। मुझे पहले से अंदाजा था कि वो कुछ कहना चाहत है। जब जाना तो मैंने उससे कुछ वक्त मांगा और उसने दे भी दिया। इस बीच मैंने उसकी कुंडली खंगाला और उसके साथ छुट्टी वाले दिन कुछ वक्त बिताने लगा तब मुझे पाता चला शिवम नेचर का बहुत अच्छा है। मगर अब तेरे बाप और नाना नानी के दोहरे चरित्र शख्सियत की बात जानकर लग रहा हैं शिवम के साथ ओर वक्त बिताना पडेगा। तभी पाता चलेगा कही शिवम ने भी दोहरे चरित्र शख्सियत का मखौटा तो नहीं ओढ़ रखा हैं साथ ही ये भी पाता करना है उसके परिवार वाले कैसे हैं।

जारी रहेगा...
 

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