Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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रात्रि के अंधकार को खुद में समेटे एक बार फ़िर से सूरज उगा नियमों से बंधे महल के सभी सदस्य देर रात तक जागे रहने के बाद भी नियत समय से उठ गए और नित्य कर्म करने लग गए। सुरभि और राजेन्द्र पूर्ववत सभी से पहले तैयार होकर बैठक में पहुंच गए थे।

कुछ औपचारिक चर्चाएं दोनों के बीच चल रहा था। उसी वक्त साजन एक शख्स को साथ लिए आ पुछा, साजन आ पहुंचा ये बड़ी बात नहीं बडी बात ये हैं कि जिस शख्स को साथ में लाया और जिस स्थिति में लेकर आया, बड़ी बात और हास्यास्पद वो ही है।

पहाड़ी वादी की सर्द सुबह, देह में ढेरों गर्म वस्त्र होते हुए भी ठिठुरने पर मजबूर कर दे ऐसे में देह पर वस्त्र के नाम पर मात्र एक तौलिया कमर में लिपटा हुआ। सर्द ठिठुरन से कंपकपाती देह साथ ही टक टक की मधुर ध्वनि तरंगों को छोड़ती दांतों की आवाजे, साथ में लाए शक्श की पहचान बना हुआ हैं।

"राजा जी (ठिठुरन से कांपती हुई शक्श बोला) राजाजी देखिए इस साजन को, इसको कुछ ज्यादा ही चर्बी चढ़ गई हैं। मुझ जैसे सम्मानित शख्स को कपड़े पहने का मौका दिए बीना ही ऐसे उठा लाया जैसे मैं कोई मुजरिम हूं।"

सुरभि…साजन ये कैसा बर्ताव हैं।

साजन…रानी मां मैं आदेश से बंधा हुआ हूं फ़िर भी मेरे इस कृत्य से आपको पीढ़ा पहुचा हों तो मैं क्षमा प्राथी हूं।

"आदेश किसने दिया? (फिर सुरभि की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) सुरभि कोई गर्म कपड़ा लाकर मुनीम जी को दो नहीं तो ठंड से सिकुड़कर इनके प्राण पखेरू उड़ जायेंगे।"

"पापा आदेश मैंने दिया था।"

यह आवाज रघु का था जो अपने धर्मपत्नी की उंगलियों में उंगली फसाए सीढ़ियों से निचे आ रहा था। जब दोनों कमरे से निकले थे लवों पे मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहे थे। लेकिन सीढ़ी तक पहुंचते ही, बैठक में नंग धड़ंग खड़े मुनीम को देखते ही दोनों के चहरे का भाव बदलकर गंभीर हों गया। गंभीर भाव से जो बोलना था रघु ने बोल दिया और कमला उसी भाव में पति की बातों को आगे बढ़ाते हुए बोलीं... साजन जी (साजन जी बोलकर कमला थोड़ा रूकी फ़िर रघु को देखकर मुस्करा दिया और आगे बोलीं) आप नीरा बुद्धु हों। मुनीम जी को नंग धड़ंग ही ले आए। अरे भाई कुछ वस्त्र ओढ़कर लाते। कहीं ठंड से सिकुडकर इनके प्राण पखेरू उड़ गए तो हमारे सवालों का जवाब कौन देगा? चलो जाओ जल्दी से इन पर कोई गर्म वस्त्र डालो।

साजन जी बोलकर कमला जब मुस्कुराई तब रघु चीड़ गया। जब तक कमला बोलती रहीं तब तक कुछ नहीं बोला जैसे ही कमला रुकी तुरंत ही रघु बोला…. कमला तुमसे कहा था न तुम सिर्फ़ मुझे ही साजन जी बोलोगी फिर साजन को साजन जी कोई बोला।

रघु की बाते सुनकर राजेन्द्र को टुस्की देखकर इशारों में बोला "देख रहे हो हमारे बेटे की हरकतें" और राजेन्द्र धीर से जवाब देते हुए बोला... देखना क्या हैं बाप की परछाई है उसी के नक्शे कदम पर चल रहा हैं।

सुरभि ने एक ठुसकी ओर पति को लगा दिया और उधार कमला जवाब देते हुए बोलीं…आप तो मेरे साजन जी हों ही लेकिन उनका नाम ही साजन है तो मैं क्या करूं।

बातों के दौरान दोनों सुरभि और राजेन्द्र के पास पहुंच गए। नित्य कर्म जो महल में सभी सदस्य के लिए रीति बना हुआ था उसे पूर्ण किया फ़िर राजेन्द्र बोला... ऐसी कौन सी बात हों गई जिसके लिए तुमने मुनीम जी को नंग धड़ंग लाने को कहा दिया।

रघु... पापा मैंने नंग धड़ंग लाने को नहीं कहा था। मैं तो बस इतना कहा था कि मुनीम जी जिस हल में हो उसी हाल में सुबह महल में चहिए।

साजन... हां तो मैंने भी कहा कुछ गलत किया। मुझे मुनीम जी इसी हाल में मिला मैं उठा लाया।

सुरभि…तू भी न साजन! चल जा कुछ गर्म कपड़े लाकर इन्हें दे।

"अरे ये सुबह सुबह मुनीम जी को नंगे बदन क्यों लाया गया?"

इन शब्दों को बोलना वाला रावण ही था जो सुकन्या को साथ लिए आ रहा था। बातों के दौरान रावण और सुकन्या नजदीक आ पहुंचे।

"महल के लोग कब से इतने असभ्य हो गए जो एक सम्मानित शख्स को नंगे बदन खड़ा कर रखा हैं।"

इन शब्दों को बोलने वाली पुष्पा ही थी जो अपने रूम से निकलकर बैठक में आ रहीं थीं पीछे पीछे अपश्यु भी आ रहा था। बातों के दौरान पुष्पा और अपश्यु वहा पहुंच गए। पहुंचते ही एक बार फ़िर पुष्पा बोलीं... मैं जान सकती हुं मुनीम जी जैसे सम्मानित शख्स को इस हाल में महल क्यों लाया गया।

सुरभि... यह महल में कोई असभ्य नहीं है। साजन को दिए गए आदेश का नतीजा मुनीम जी का ये हाल हैं।

रघु... और आदेश देने वाला मैं हूं क्योंकि….।

"क्योंकि मुनीम जी आपने कर्तव्य का निर्वहन पूर्ण निष्ठा से नहीं कर रहे हैं। (रघु की बातों को कमला ने पूर्ण किया फिर मुनीम जी की ओर देखकर आगे बोलीं) क्यों मुनीम जी मैं सही कह रहीं हूं न आगर गलत कह रहीं हूं। तो आप मेरी बातों को गलत सिद्ध करके दिखाए।"

कमला के कहने का तात्पर्य सभी समझ गए थे। लेकिन दुविधा अभी भी बना हुआ था और उसका कारण ये है की जब बाकी लोगों को पता नहीं चल पाया की मुनीम जी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं तो फिर कमला और रघु को कैसे पाता चला। उसी वक्त महल का एक नौकर एक कंबल लेकर आया जिसे लेकर मुनिमजी को ओढ़ाते हुए कमला धीर से बोलीं... मुनीम जी अभी तो कंबल ओढ़ा दे रहीं हूं अगर पूछे गए सवालों का सही जवाब नहीं दिया तो इस कंबल के बदले बर्फ की चादर ओढ़ा दूंगी फिर आपका क्या हाल होगा आप खुद समझ सकते है अगर आपको लगता है मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी तो ये सिर्फ़ और सिर्फ आपका भ्रम है क्योंकि मुझे जब गुस्सा आता हैं तब मुझे ही ध्यान नहीं रहता कि मैं क्या कर रहीं हूं इसलिए बेहतर यहीं होगा पूछे गए सवालों का सही सही जवाब दे।

कमला गुप चुप तरीके से एक धमकी देकर अपने जगह चली गई मगर मुनीम पर कमला के धमकी का रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ा न ही चेहरे पर कोई सिकन आया बल्कि उल्टा सावल कर लिया... राजा जी वर्षो से ईमानदारी से किए गए मेरे सेवा का आज मुझे ऐसा उपहार मिलेगा सोचा न था। बीना किसी दोष के मेरे घर से मुझे उठवा लिया जाता हैं सिर्फ इतना ही नहीं कल को आई आप की बहू मुझे बर्फ में दफन करने की धमकी देती हैं। बताइए ऐसा करके आप सभी मेरे साथ सही कर रहें हैं?

बर्फ में दफन करने की बात सुनकर राजेन्द्र, सुरभि पुष्पा अपश्यु सुकन्या रावण एवम महल के जितने भी नौकर वहा मौजूद थे सभी अचंभित हों गए साथ ही सोच में पड गए की धमकी दिया तो दिया कब कौन किया सोच रहा है इस पर ध्यान न देकर कमला देह की समस्त ऊर्जा को अपने कंठ में एकत्रित कर बोलीं... मुनीम जी आप मेरी बोलीं गई बातों को दौहरने में भी ईमानदारी नहीं दर्शा पाए फ़िर मैं कैसे मान लूं आप वर्षों से ईमानदारी से अपना काम कर रहें हैं अरे मैंने आपको बर्फ की चादर ओढाने की बात कहीं थीं न की बर्फ में दफन करने की, आप इतने उम्र दराज और अनुभवी व्यक्ति होते हुऐ भी चादर ओढ़ाना और दफन करने में अंतर समझ नही पाए और एक बात मैं कल की आई हुई क्यों न हों यह परिवार अब मेरा हैं। वर्षो से अर्जित की हुई हमारे वंश वृक्ष की शान और मान को कोई कलंकित करने की सोचेगा तो मैं उस कलंक के टिका को उखाड़ फेंकने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

कमला की बातों ने कुछ परिवार वालों के मन में गर्व उत्पान कर दिया तो वहीं कुछ के मन में भय उत्पन कर दिया और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कान से मुसकुराते हुए बोला…मुनीम जी आपके बातों का खण्डन बहु रानी ने कर दिया इस पर आपके पास कहने के लिए कुछ बचा हैं।

राजेन्द्र के पूछे गए सावल का मुनीम जवाब ही नहीं दे पाया बस अपना सिर झुक लिया यह देखकर रघु बोला...मुनीम जी पापा की बातों का शायद ही आपके पास जवाब हों लेकिन मेरे पूछे गए सावल का जवाब आपके पास हैं। जरा हम सबको बताइए आपको किस काम के लिए रखा गया हैं और कितनी निष्ठा से आप अपना काम कर रहे हैं?

मुनीम... मुझे जरूरत मंदो तक उनकी जरूरत का सामान पहुंचने के लिए रखा गया है और मैं अपना काम पूर्ण निष्ठा से कर रहा हूं।

रघु... ओ हों निष्ठा लेकिन जो मैने और कमला ने देखा और सुना उससे हम समझ गए आप निष्ठा से नहीं बल्कि घपला कर रहें हैं।

मुनीम...रघु जी आप मुझपर मिथ्या आरोप लगा रहे है मैंने कोई घपला नहीं किया हैं। मैं मेरे काम के प्रति निष्ठावान हूं और पूर्ण निष्ठा से अपनी जिम्मेदारियों को निभाया हूं।

कमला... मुनीम जी आप की बाते मेरे क्रोध की सीमा को बड़ा रहा हैं। जब मेरी क्रोध की सीमा का उलंघन होता हैं तब मैं अनियंत्रित हो जाती हूं और नियंत्रण पाने के लिए जो तांडव मैं करती हुं उसका साक्षी मेरे माता पिता और मेरा पति है। मैं नहीं चाहती अनियंत्रित क्रोध में किए गए तांडव की साक्षी कोई और बने इसलिए सच्चाई को छुपाए बीना जो सच है बता दीजिए।

क्रोध में अनियंत्रित होने की बात कहते ही रघु के स्मृति पटल पर उस वक्त की छवि उकेर आई जब कमला ने क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए उसके कार का शीशा तोड़ दिया था। बाकियों पर शायद ही इतना असर हुआ हो क्योंकि उन्होंने सिर्फ मुंह जुबानी सुना था देखा नहीं था।

वह दृश्य याद आते ही रघु तुरत कमला को पलट कर देखा तब उसे दिखा कमला की आंखों में लाली उतरना शुरु हो चूका था। यह देखते ही रघु ने कमला का हाथ थाम लिया सिर हिलाकर खुद पर काबू रखने को कह। कहते ही तुरंत कहा क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं फिर भी कमला पति की बात मानकर लंबी गहरी स्वास भरकर और छोड़कर क्रोध पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लग गई और मुनीम जी बोले…आप क्रोध पे नियंत्रण पाने के लिए कितना तांडव करती हैं कितना नहीं, कौन साक्षी है या कौन नहीं मुझे उससे कोई लेना देना नही हैं। लेकिन आप दोनों मुझ पर जो आरोप लगा रहें हैं वो सरासर बेबुनियाद हैं मिथ्या हैं।

खुद को और पति को झूठा कहा जाना कमला सहन नहीं कर पाई जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ गहरी स्वास लेकर क्रोध पर जितना भी नियंत्रण पाई थी। एक पल में अनियंत्रित हों गई और कमला लगभग चीखते हुए बोली…हम दोनों झूठे हैं तो मैं, मेरे पति और हमारे साथ कल रात गए अंगरक्षकों ने एक बुजुर्ग महिला को रास्ते के किनारे फेंकी गई सड़ी हुई सब्जियों को बीनते हुए देखा पूछने पर उनका कहना था महल से भेजी गई जरूरत की समान कभी उन तक पहुंचता है कभी नहीं, क्या वो झूठ था? साजन जी लगता है मुनीम जी बर्फ की चादर ओढ़े बीना मानेंगे नहीं इसलिए आप अभी के अभी बर्फ की व्यवस्था कीजिए मैं खुद इन्हे बर्फ की चादर ओढ़ने में साहयता करूंगी।

कमला के कंठ का स्वर अत्यधिक तीव्र था जिसने लगभग सभी को दहला दिया लेकिन कुछ पल के लिए जैसे ही कमला कल रात देखें हुए दयनीय दृश्य को बोलना शुरू किया सबसे पहले मुनीम जी की नजरे झुक गया और बर्फ की चादर ओढाने की बात सुनकर पहले से ही ठंड से कांप रहा देह में कंपन ओर ज्यादा तीव्र हों गया। ये देखकर वह मौजूद लगभग सभी का पारा चढ़ गया और कमला के कथन को पुख्ता करते हुऐ सजन बोला…रानी मां वह बुजुर्ग महिला अकेले रहती है उनके अलावा उनके परिवार में एक भी सदस्य जीवित नहीं हैं। ऐसे लोगों के पास जरूरत का सामान सबसे पहले और बारम्बार पहुंचना चहिए लेकिन मुनीम जी उनके हिस्से का ख़ुद ही खा गए ( फ़िर मुनीम की ओर इशारा करके आगे बोला) गौर से देखिए मुनीम जी को दूसरों के हिस्से का खा खाकर अपने बदन में चर्बी की परत दर परत चढ़ा लिया है। अब आप खुद ही फैसला कीजिए चर्बी किसे चढ़ा हुआ है।

साजन से बुजुर्ग महिला का विवरण सुनकर सुरभि और राजेन्द्र की पारा ओर चढ़ गया और मुनीम जी कंबल फैंक कर तुंरत दौड़े और राजेन्द्र के पैरों में गिरकर बोला…. राजा जी मुझे माफ़ कर दीजिए मैं अति लालच में अंधा हों गया था और गबन करने का काम कर बैठा।

आगे जारी रहेगा….
 
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रात्रि के अंधकार को खुद में समेटे एक बार फ़िर से सूरज उगा नियमों से बंधे महल के सभी सदस्य देर रात तक जागे रहने के बाद भी नियत समय से उठ गए और नित्य कर्म करने लग गए। सुरभि और राजेन्द्र पूर्ववत सभी से पहले तैयार होकर बैठक में पहुंच गए थे।

कुछ औपचारिक चर्चाएं दोनों के बीच चल रहा था। उसी वक्त साजन एक शख्स को साथ लिए आ पुछा, साजन आ पहुंचा ये बड़ी बात नहीं बडी बात ये हैं कि जिस शख्स को साथ में लाया और जिस स्थिति में लेकर आया, बड़ी बात और हास्यास्पद वो ही है।

पहाड़ी वादी की सर्द सुबह, देह में ढेरों गर्म वस्त्र होते हुए भी ठिठुरने पर मजबूर कर दे ऐसे में देह पर वस्त्र के नाम पर मात्र एक तौलिया कमर में लिपटा हुआ। सर्द ठिठुरन से कंपकपाती देह साथ ही टक टक की मधुर ध्वनि तरंगों को छोड़ती दांतों की आवाजे, साथ में लाए शक्श की पहचान बना हुआ हैं।

"राजा जी (ठिठुरन से कांपती हुई शक्श बोला) राजाजी देखिए इस साजन को, इसको कुछ ज्यादा ही चर्बी चढ़ गई हैं। मुझ जैसे सम्मानित शख्स को कपड़े पहने का मौका दिए बीना ही ऐसे उठा लाया जैसे मैं कोई मुजरिम हूं।"

सुरभि…साजन ये कैसा बर्ताव हैं।

साजन…रानी मां मैं आदेश से बंधा हुआ हूं फ़िर भी मेरे इस कृत्य से आपको पीढ़ा पहुचा हों तो मैं क्षमा प्राथी हूं।

"आदेश किसने दिया? (फिर सुरभि की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) सुरभि कोई गर्म कपड़ा लाकर मुनीम जी को दो नहीं तो ठंड से सिकुड़कर इनके प्राण पखेरू उड़ जायेंगे।"

"पापा आदेश मैंने दिया था।"

यह आवाज रघु का था जो अपने धर्मपत्नी की उंगलियों में उंगली फसाए सीढ़ियों से निचे आ रहा था। जब दोनों कमरे से निकले थे लवों पे मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहे थे। लेकिन सीढ़ी तक पहुंचते ही, बैठक में नंग धड़ंग खड़े मुनीम को देखते ही दोनों के चहरे का भाव बदलकर गंभीर हों गया। गंभीर भाव से जो बोलना था रघु ने बोल दिया और कमला उसी भाव में पति की बातों को आगे बढ़ाते हुए बोलीं... साजन जी (साजन जी बोलकर कमला थोड़ा रूकी फ़िर रघु को देखकर मुस्करा दिया और आगे बोलीं) आप नीरा बुद्धु हों। मुनीम जी को नंग धड़ंग ही ले आए। अरे भाई कुछ वस्त्र ओढ़कर लाते। कहीं ठंड से सिकुडकर इनके प्राण पखेरू उड़ गए तो हमारे सवालों का जवाब कौन देगा? चलो जाओ जल्दी से इन पर कोई गर्म वस्त्र डालो।

साजन जी बोलकर कमला जब मुस्कुराई तब रघु चीड़ गया। जब तक कमला बोलती रहीं तब तक कुछ नहीं बोला जैसे ही कमला रुकी तुरंत ही रघु बोला…. कमला तुमसे कहा था न तुम सिर्फ़ मुझे ही साजन जी बोलोगी फिर साजन को साजन जी कोई बोला।

रघु की बाते सुनकर राजेन्द्र को टुस्की देखकर इशारों में बोला "देख रहे हो हमारे बेटे की हरकतें" और राजेन्द्र धीर से जवाब देते हुए बोला... देखना क्या हैं बाप की परछाई है उसी के नक्शे कदम पर चल रहा हैं।

सुरभि ने एक ठुसकी ओर पति को लगा दिया और उधार कमला जवाब देते हुए बोलीं…आप तो मेरे साजन जी हों ही लेकिन उनका नाम ही साजन है तो मैं क्या करूं।

बातों के दौरान दोनों सुरभि और राजेन्द्र के पास पहुंच गए। नित्य कर्म जो महल में सभी सदस्य के लिए रीति बना हुआ था उसे पूर्ण किया फ़िर राजेन्द्र बोला... ऐसी कौन सी बात हों गई जिसके लिए तुमने मुनीम जी को नंग धड़ंग लाने को कहा दिया।

रघु... पापा मैंने नंग धड़ंग लाने को नहीं कहा था। मैं तो बस इतना कहा था कि मुनीम जी जिस हल में हो उसी हाल में सुबह महल में चहिए।

साजन... हां तो मैंने भी कहा कुछ गलत किया। मुझे मुनीम जी इसी हाल में मिला मैं उठा लाया।

सुरभि…तू भी न साजन! चल जा कुछ गर्म कपड़े लाकर इन्हें दे।

"अरे ये सुबह सुबह मुनीम जी को नंगे बदन क्यों लाया गया?"

इन शब्दों को बोलना वाला रावण ही था जो सुकन्या को साथ लिए आ रहा था। बातों के दौरान रावण और सुकन्या नजदीक आ पहुंचे।

"महल के लोग कब से इतने असभ्य हो गए जो एक सम्मानित शख्स को नंगे बदन खड़ा कर रखा हैं।"

इन शब्दों को बोलने वाली पुष्पा ही थी जो अपने रूम से निकलकर बैठक में आ रहीं थीं पीछे पीछे अपश्यु भी आ रहा था। बातों के दौरान पुष्पा और अपश्यु वहा पहुंच गए। पहुंचते ही एक बार फ़िर पुष्पा बोलीं... मैं जान सकती हुं मुनीम जी जैसे सम्मानित शख्स को इस हाल में महल क्यों लाया गया।

सुरभि... यह महल में कोई असभ्य नहीं है। साजन को दिए गए आदेश का नतीजा मुनीम जी का ये हाल हैं।

रघु... और आदेश देने वाला मैं हूं क्योंकि….।

"क्योंकि मुनीम जी आपने कर्तव्य का निर्वहन पूर्ण निष्ठा से नहीं कर रहे हैं। (रघु की बातों को कमला ने पूर्ण किया फिर मुनीम जी की ओर देखकर आगे बोलीं) क्यों मुनीम जी मैं सही कह रहीं हूं न आगर गलत कह रहीं हूं। तो आप मेरी बातों को गलत सिद्ध करके दिखाए।"

कमला के कहने का तात्पर्य सभी समझ गए थे। लेकिन दुविधा अभी भी बना हुआ था और उसका कारण ये है की जब बाकी लोगों को पता नहीं चल पाया की मुनीम जी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं तो फिर कमला और रघु को कैसे पाता चला। उसी वक्त महल का एक नौकर एक कंबल लेकर आया जिसे लेकर मुनिमजी को ओढ़ाते हुए कमला धीर से बोलीं... मुनीम जी अभी तो कंबल ओढ़ा दे रहीं हूं अगर पूछे गए सवालों का सही जवाब नहीं दिया तो इस कंबल के बदले बर्फ की चादर ओढ़ा दूंगी फिर आपका क्या हाल होगा आप खुद समझ सकते है अगर आपको लगता है मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी तो ये सिर्फ़ और सिर्फ आपका भ्रम है क्योंकि मुझे जब गुस्सा आता हैं तब मुझे ही ध्यान नहीं रहता कि मैं क्या कर रहीं हूं इसलिए बेहतर यहीं होगा पूछे गए सवालों का सही सही जवाब दे।

कमला गुप चुप तरीके से एक धमकी देकर अपने जगह चली गई मगर मुनीम पर कमला के धमकी का रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ा न ही चेहरे पर कोई सिकन आया बल्कि उल्टा सावल कर लिया... राजा जी वर्षो से ईमानदारी से किए गए मेरे सेवा का आज मुझे ऐसा उपहार मिलेगा सोचा न था। बीना किसी दोष के मेरे घर से मुझे उठवा लिया जाता हैं सिर्फ इतना ही नहीं कल को आई आप की बहू मुझे बर्फ में दफन करने की धमकी देती हैं। बताइए ऐसा करके आप सभी मेरे साथ सही कर रहें हैं?

बर्फ में दफन करने की बात सुनकर राजेन्द्र, सुरभि पुष्पा अपश्यु सुकन्या रावण एवम महल के जितने भी नौकर वहा मौजूद थे सभी अचंभित हों गए साथ ही सोच में पड गए की धमकी दिया तो दिया कब कौन किया सोच रहा है इस पर ध्यान न देकर कमला देह की समस्त ऊर्जा को अपने कंठ में एकत्रित कर बोलीं... मुनीम जी आप मेरी बोलीं गई बातों को दौहरने में भी ईमानदारी नहीं दर्शा पाए फ़िर मैं कैसे मान लूं आप वर्षों से ईमानदारी से अपना काम कर रहें हैं अरे मैंने आपको बर्फ की चादर ओढाने की बात कहीं थीं न की बर्फ में दफन करने की, आप इतने उम्र दराज और अनुभवी व्यक्ति होते हुऐ भी चादर ओढ़ाना और दफन करने में अंतर समझ नही पाए और एक बात मैं कल की आई हुई क्यों न हों यह परिवार अब मेरा हैं। वर्षो से अर्जित की हुई हमारे वंश वृक्ष की शान और मान को कोई कलंकित करने की सोचेगा तो मैं उस कलंक के टिका को उखाड़ फेंकने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

कमला की बातों ने कुछ परिवार वालों के मन में गर्व उत्पान कर दिया तो वहीं कुछ के मन में भय उत्पन कर दिया और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कान से मुसकुराते हुए बोला…मुनीम जी आपके बातों का खण्डन बहु रानी ने कर दिया इस पर आपके पास कहने के लिए कुछ बचा हैं।

राजेन्द्र के पूछे गए सावल का मुनीम जवाब ही नहीं दे पाया बस अपना सिर झुक लिया यह देखकर रघु बोला...मुनीम जी पापा की बातों का शायद ही आपके पास जवाब हों लेकिन मेरे पूछे गए सावल का जवाब आपके पास हैं। जरा हम सबको बताइए आपको किस काम के लिए रखा गया हैं और कितनी निष्ठा से आप अपना काम कर रहे हैं?

मुनीम... मुझे जरूरत मंदो तक उनकी जरूरत का सामान पहुंचने के लिए रखा गया है और मैं अपना काम पूर्ण निष्ठा से कर रहा हूं।

रघु... ओ हों निष्ठा लेकिन जो मैने और कमला ने देखा और सुना उससे हम समझ गए आप निष्ठा से नहीं बल्कि घपला कर रहें हैं।

मुनीम...रघु जी आप मुझपर मिथ्या आरोप लगा रहे है मैंने कोई घपला नहीं किया हैं। मैं मेरे काम के प्रति निष्ठावान हूं और पूर्ण निष्ठा से अपनी जिम्मेदारियों को निभाया हूं।

कमला... मुनीम जी आप की बाते मेरे क्रोध की सीमा को बड़ा रहा हैं। जब मेरी क्रोध की सीमा का उलंघन होता हैं तब मैं अनियंत्रित हो जाती हूं और नियंत्रण पाने के लिए जो तांडव मैं करती हुं उसका साक्षी मेरे माता पिता और मेरा पति है। मैं नहीं चाहती अनियंत्रित क्रोध में किए गए तांडव की साक्षी कोई और बने इसलिए सच्चाई को छुपाए बीना जो सच है बता दीजिए।

क्रोध में अनियंत्रित होने की बात कहते ही रघु के स्मृति पटल पर उस वक्त की छवि उकेर आई जब कमला ने क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए उसके कार का शीशा तोड़ दिया था। बाकियों पर शायद ही इतना असर हुआ हो क्योंकि उन्होंने सिर्फ मुंह जुबानी सुना था देखा नहीं था।

वह दृश्य याद आते ही रघु तुरत कमला को पलट कर देखा तब उसे दिखा कमला की आंखों में लाली उतरना शुरु हो चूका था। यह देखते ही रघु ने कमला का हाथ थाम लिया सिर हिलाकर खुद पर काबू रखने को कह। कहते ही तुरंत कहा क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं फिर भी कमला पति की बात मानकर लंबी गहरी स्वास भरकर और छोड़कर क्रोध पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लग गई और मुनीम जी बोले…आप क्रोध पे नियंत्रण पाने के लिए कितना तांडव करती हैं कितना नहीं, कौन साक्षी है या कौन नहीं मुझे उससे कोई लेना देना नही हैं। लेकिन आप दोनों मुझ पर जो आरोप लगा रहें हैं वो सरासर बेबुनियाद हैं मिथ्या हैं।

खुद को और पति को झूठा कहा जाना कमला सहन नहीं कर पाई जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ गहरी स्वास लेकर क्रोध पर जितना भी नियंत्रण पाई थी। एक पल में अनियंत्रित हों गई और कमला लगभग चीखते हुए बोली…हम दोनों झूठे हैं तो मैं, मेरे पति और हमारे साथ कल रात गए अंगरक्षकों ने एक बुजुर्ग महिला को रास्ते के किनारे फेंकी गई सड़ी हुई सब्जियों को बीनते हुए देखा पूछने पर उनका कहना था महल से भेजी गई जरूरत की समान कभी उन तक पहुंचता है कभी नहीं, क्या वो झूठ था? साजन जी लगता है मुनीम जी बर्फ की चादर ओढ़े बीना मानेंगे नहीं इसलिए आप अभी के अभी बर्फ की व्यवस्था कीजिए मैं खुद इन्हे बर्फ की चादर ओढ़ने में साहयता करूंगी।

कमला के कंठ का स्वर अत्यधिक तीव्र था जिसने लगभग सभी को दहला दिया लेकिन कुछ पल के लिए जैसे ही कमला कल रात देखें हुए दयनीय दृश्य को बोलना शुरू किया सबसे पहले मुनीम जी की नजरे झुक गया और बर्फ की चादर ओढाने की बात सुनकर पहले से ही ठंड से कांप रहा देह में कंपन ओर ज्यादा तीव्र हों गया। ये देखकर वह मौजूद लगभग सभी का पारा चढ़ गया और कमला के कथन को पुख्ता करते हुऐ सजन बोला…रानी मां वह बुजुर्ग महिला अकेले रहती है उनके अलावा उनके परिवार में एक भी सदस्य जीवित नहीं हैं। ऐसे लोगों के पास जरूरत का सामान सबसे पहले और बारम्बार पहुंचना चहिए लेकिन मुनीम जी उनके हिस्से का ख़ुद ही खा गए ( फ़िर मुनीम की ओर इशारा करके आगे बोला) गौर से देखिए मुनीम जी को दूसरों के हिस्से का खा खाकर अपने बदन में चर्बी की परत दर परत चढ़ा लिया है। अब आप खुद ही फैसला कीजिए चर्बी किसे चढ़ा हुआ है।

साजन से बुजुर्ग महिला का विवरण सुनकर सुरभि और राजेन्द्र की पारा ओर चढ़ गया और मुनीम जी कंबल फैंक कर तुंरत दौड़े और राजेन्द्र के पैरों में गिरकर बोला…. राजा जी मुझे माफ़ कर दीजिए मैं अति लालच में अंधा हों गया था और गबन करने का काम कर बैठा।


आगे जारी रहेगा….
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