Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 57


रात्रि के अंधकार को खुद में समेटे एक बार फ़िर से सूरज उगा नियमों से बंधे महल के सभी सदस्य देर रात तक जागे रहने के बाद भी नियत समय से उठ गए और नित्य कर्म करने लग गए। सुरभि और राजेन्द्र पूर्ववत सभी से पहले तैयार होकर बैठक में पहुंच गए थे।

कुछ औपचारिक चर्चाएं दोनों के बीच चल रहा था। उसी वक्त साजन एक शख्स को साथ लिए आ पुछा, साजन आ पहुंचा ये बड़ी बात नहीं बडी बात ये हैं कि जिस शख्स को साथ में लाया और जिस स्थिति में लेकर आया, बड़ी बात और हास्यास्पद वो ही है।

पहाड़ी वादी की सर्द सुबह, देह में ढेरों गर्म वस्त्र होते हुए भी ठिठुरने पर मजबूर कर दे ऐसे में देह पर वस्त्र के नाम पर मात्र एक तौलिया कमर में लिपटा हुआ। सर्द ठिठुरन से कंपकपाती देह साथ ही टक टक की मधुर ध्वनि तरंगों को छोड़ती दांतों की आवाजे, साथ में लाए शक्श की पहचान बना हुआ हैं।

"राजा जी (ठिठुरन से कांपती हुई शक्श बोला) राजाजी देखिए इस साजन को, इसको कुछ ज्यादा ही चर्बी चढ़ गई हैं। मुझ जैसे सम्मानित शख्स को कपड़े पहने का मौका दिए बीना ही ऐसे उठा लाया जैसे मैं कोई मुजरिम हूं।"

सुरभि…साजन ये कैसा बर्ताव हैं।

साजन…रानी मां मैं आदेश से बंधा हुआ हूं फ़िर भी मेरे इस कृत्य से आपको पीढ़ा पहुचा हों तो मैं क्षमा प्राथी हूं।

"आदेश किसने दिया? (फिर सुरभि की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) सुरभि कोई गर्म कपड़ा लाकर मुनीम जी को दो नहीं तो ठंड से सिकुड़कर इनके प्राण पखेरू उड़ जायेंगे।"

"पापा आदेश मैंने दिया था।"

यह आवाज रघु का था जो अपने धर्मपत्नी की उंगलियों में उंगली फसाए सीढ़ियों से निचे आ रहा था। जब दोनों कमरे से निकले थे लवों पे मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहे थे। लेकिन सीढ़ी तक पहुंचते ही, बैठक में नंग धड़ंग खड़े मुनीम को देखते ही दोनों के चहरे का भाव बदलकर गंभीर हों गया। गंभीर भाव से जो बोलना था रघु ने बोल दिया और कमला उसी भाव में पति की बातों को आगे बढ़ाते हुए बोलीं... साजन जी (साजन जी बोलकर कमला थोड़ा रूकी फ़िर रघु को देखकर मुस्करा दिया और आगे बोलीं) आप नीरा बुद्धु हों। मुनीम जी को नंग धड़ंग ही ले आए। अरे भाई कुछ वस्त्र ओढ़कर लाते। कहीं ठंड से सिकुडकर इनके प्राण पखेरू उड़ गए तो हमारे सवालों का जवाब कौन देगा? चलो जाओ जल्दी से इन पर कोई गर्म वस्त्र डालो।

साजन जी बोलकर कमला जब मुस्कुराई तब रघु चीड़ गया। जब तक कमला बोलती रहीं तब तक कुछ नहीं बोला जैसे ही कमला रुकी तुरंत ही रघु बोला…. कमला तुमसे कहा था न तुम सिर्फ़ मुझे ही साजन जी बोलोगी फिर साजन को साजन जी कोई बोला।

रघु की बाते सुनकर राजेन्द्र को टुस्की देखकर इशारों में बोला "देख रहे हो हमारे बेटे की हरकतें" और राजेन्द्र धीर से जवाब देते हुए बोला... देखना क्या हैं बाप की परछाई है उसी के नक्शे कदम पर चल रहा हैं।

सुरभि ने एक ठुसकी ओर पति को लगा दिया और उधार कमला जवाब देते हुए बोलीं…आप तो मेरे साजन जी हों ही लेकिन उनका नाम ही साजन है तो मैं क्या करूं।

बातों के दौरान दोनों सुरभि और राजेन्द्र के पास पहुंच गए। नित्य कर्म जो महल में सभी सदस्य के लिए रीति बना हुआ था उसे पूर्ण किया फ़िर राजेन्द्र बोला... ऐसी कौन सी बात हों गई जिसके लिए तुमने मुनीम जी को नंग धड़ंग लाने को कहा दिया।

रघु... पापा मैंने नंग धड़ंग लाने को नहीं कहा था। मैं तो बस इतना कहा था कि मुनीम जी जिस हल में हो उसी हाल में सुबह महल में चहिए।

साजन... हां तो मैंने भी कहा कुछ गलत किया। मुझे मुनीम जी इसी हाल में मिला मैं उठा लाया।

सुरभि…तू भी न साजन! चल जा कुछ गर्म कपड़े लाकर इन्हें दे।

"अरे ये सुबह सुबह मुनीम जी को नंगे बदन क्यों लाया गया?"

इन शब्दों को बोलना वाला रावण ही था जो सुकन्या को साथ लिए आ रहा था। बातों के दौरान रावण और सुकन्या नजदीक आ पहुंचे।

"महल के लोग कब से इतने असभ्य हो गए जो एक सम्मानित शख्स को नंगे बदन खड़ा कर रखा हैं।"

इन शब्दों को बोलने वाली पुष्पा ही थी जो अपने रूम से निकलकर बैठक में आ रहीं थीं पीछे पीछे अपश्यु भी आ रहा था। बातों के दौरान पुष्पा और अपश्यु वहा पहुंच गए। पहुंचते ही एक बार फ़िर पुष्पा बोलीं... मैं जान सकती हुं मुनीम जी जैसे सम्मानित शख्स को इस हाल में महल क्यों लाया गया।

सुरभि... यह महल में कोई असभ्य नहीं है। साजन को दिए गए आदेश का नतीजा मुनीम जी का ये हाल हैं।

रघु... और आदेश देने वाला मैं हूं क्योंकि….।

"क्योंकि मुनीम जी आपने कर्तव्य का निर्वहन पूर्ण निष्ठा से नहीं कर रहे हैं। (रघु की बातों को कमला ने पूर्ण किया फिर मुनीम जी की ओर देखकर आगे बोलीं) क्यों मुनीम जी मैं सही कह रहीं हूं न आगर गलत कह रहीं हूं। तो आप मेरी बातों को गलत सिद्ध करके दिखाए।"

कमला के कहने का तात्पर्य सभी समझ गए थे। लेकिन दुविधा अभी भी बना हुआ था और उसका कारण ये है की जब बाकी लोगों को पता नहीं चल पाया की मुनीम जी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं तो फिर कमला और रघु को कैसे पाता चला। उसी वक्त महल का एक नौकर एक कंबल लेकर आया जिसे लेकर मुनिमजी को ओढ़ाते हुए कमला धीर से बोलीं... मुनीम जी अभी तो कंबल ओढ़ा दे रहीं हूं अगर पूछे गए सवालों का सही जवाब नहीं दिया तो इस कंबल के बदले बर्फ की चादर ओढ़ा दूंगी फिर आपका क्या हाल होगा आप खुद समझ सकते है अगर आपको लगता है मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी तो ये सिर्फ़ और सिर्फ आपका भ्रम है क्योंकि मुझे जब गुस्सा आता हैं तब मुझे ही ध्यान नहीं रहता कि मैं क्या कर रहीं हूं इसलिए बेहतर यहीं होगा पूछे गए सवालों का सही सही जवाब दे।

कमला गुप चुप तरीके से एक धमकी देकर अपने जगह चली गई मगर मुनीम पर कमला के धमकी का रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ा न ही चेहरे पर कोई सिकन आया बल्कि उल्टा सावल कर लिया... राजा जी वर्षो से ईमानदारी से किए गए मेरे सेवा का आज मुझे ऐसा उपहार मिलेगा सोचा न था। बीना किसी दोष के मेरे घर से मुझे उठवा लिया जाता हैं सिर्फ इतना ही नहीं कल को आई आप की बहू मुझे बर्फ में दफन करने की धमकी देती हैं। बताइए ऐसा करके आप सभी मेरे साथ सही कर रहें हैं?

बर्फ में दफन करने की बात सुनकर राजेन्द्र, सुरभि पुष्पा अपश्यु सुकन्या रावण एवम महल के जितने भी नौकर वहा मौजूद थे सभी अचंभित हों गए साथ ही सोच में पड गए की धमकी दिया तो दिया कब कौन किया सोच रहा है इस पर ध्यान न देकर कमला देह की समस्त ऊर्जा को अपने कंठ में एकत्रित कर बोलीं... मुनीम जी आप मेरी बोलीं गई बातों को दौहरने में भी ईमानदारी नहीं दर्शा पाए फ़िर मैं कैसे मान लूं आप वर्षों से ईमानदारी से अपना काम कर रहें हैं अरे मैंने आपको बर्फ की चादर ओढाने की बात कहीं थीं न की बर्फ में दफन करने की, आप इतने उम्र दराज और अनुभवी व्यक्ति होते हुऐ भी चादर ओढ़ाना और दफन करने में अंतर समझ नही पाए और एक बात मैं कल की आई हुई क्यों न हों यह परिवार अब मेरा हैं। वर्षो से अर्जित की हुई हमारे वंश वृक्ष की शान और मान को कोई कलंकित करने की सोचेगा तो मैं उस कलंक के टिका को उखाड़ फेंकने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

कमला की बातों ने कुछ परिवार वालों के मन में गर्व उत्पान कर दिया तो वहीं कुछ के मन में भय उत्पन कर दिया और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कान से मुसकुराते हुए बोला…मुनीम जी आपके बातों का खण्डन बहु रानी ने कर दिया इस पर आपके पास कहने के लिए कुछ बचा हैं।

राजेन्द्र के पूछे गए सावल का मुनीम जवाब ही नहीं दे पाया बस अपना सिर झुक लिया यह देखकर रघु बोला...मुनीम जी पापा की बातों का शायद ही आपके पास जवाब हों लेकिन मेरे पूछे गए सावल का जवाब आपके पास हैं। जरा हम सबको बताइए आपको किस काम के लिए रखा गया हैं और कितनी निष्ठा से आप अपना काम कर रहे हैं?

मुनीम... मुझे जरूरत मंदो तक उनकी जरूरत का सामान पहुंचने के लिए रखा गया है और मैं अपना काम पूर्ण निष्ठा से कर रहा हूं।

रघु... ओ हों निष्ठा लेकिन जो मैने और कमला ने देखा और सुना उससे हम समझ गए आप निष्ठा से नहीं बल्कि घपला कर रहें हैं।

मुनीम...रघु जी आप मुझपर मिथ्या आरोप लगा रहे है मैंने कोई घपला नहीं किया हैं। मैं मेरे काम के प्रति निष्ठावान हूं और पूर्ण निष्ठा से अपनी जिम्मेदारियों को निभाया हूं।

कमला... मुनीम जी आप की बाते मेरे क्रोध की सीमा को बड़ा रहा हैं। जब मेरी क्रोध की सीमा का उलंघन होता हैं तब मैं अनियंत्रित हो जाती हूं और नियंत्रण पाने के लिए जो तांडव मैं करती हुं उसका साक्षी मेरे माता पिता और मेरा पति है। मैं नहीं चाहती अनियंत्रित क्रोध में किए गए तांडव की साक्षी कोई और बने इसलिए सच्चाई को छुपाए बीना जो सच है बता दीजिए।

क्रोध में अनियंत्रित होने की बात कहते ही रघु के स्मृति पटल पर उस वक्त की छवि उकेर आई जब कमला ने क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए उसके कार का शीशा तोड़ दिया था। बाकियों पर शायद ही इतना असर हुआ हो क्योंकि उन्होंने सिर्फ मुंह जुबानी सुना था देखा नहीं था।

वह दृश्य याद आते ही रघु तुरत कमला को पलट कर देखा तब उसे दिखा कमला की आंखों में लाली उतरना शुरु हो चूका था। यह देखते ही रघु ने कमला का हाथ थाम लिया सिर हिलाकर खुद पर काबू रखने को कह। कहते ही तुरंत कहा क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं फिर भी कमला पति की बात मानकर लंबी गहरी स्वास भरकर और छोड़कर क्रोध पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लग गई और मुनीम जी बोले…आप क्रोध पे नियंत्रण पाने के लिए कितना तांडव करती हैं कितना नहीं, कौन साक्षी है या कौन नहीं मुझे उससे कोई लेना देना नही हैं। लेकिन आप दोनों मुझ पर जो आरोप लगा रहें हैं वो सरासर बेबुनियाद हैं मिथ्या हैं।

खुद को और पति को झूठा कहा जाना कमला सहन नहीं कर पाई जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ गहरी स्वास लेकर क्रोध पर जितना भी नियंत्रण पाई थी। एक पल में अनियंत्रित हों गई और कमला लगभग चीखते हुए बोली…हम दोनों झूठे हैं तो मैं, मेरे पति और हमारे साथ कल रात गए अंगरक्षकों ने एक बुजुर्ग महिला को रास्ते के किनारे फेंकी गई सड़ी हुई सब्जियों को बीनते हुए देखा पूछने पर उनका कहना था महल से भेजी गई जरूरत की समान कभी उन तक पहुंचता है कभी नहीं, क्या वो झूठ था? साजन जी लगता है मुनीम जी बर्फ की चादर ओढ़े बीना मानेंगे नहीं इसलिए आप अभी के अभी बर्फ की व्यवस्था कीजिए मैं खुद इन्हे बर्फ की चादर ओढ़ने में साहयता करूंगी।

कमला के कंठ का स्वर अत्यधिक तीव्र था जिसने लगभग सभी को दहला दिया लेकिन कुछ पल के लिए जैसे ही कमला कल रात देखें हुए दयनीय दृश्य को बोलना शुरू किया सबसे पहले मुनीम जी की नजरे झुक गया और बर्फ की चादर ओढाने की बात सुनकर पहले से ही ठंड से कांप रहा देह में कंपन ओर ज्यादा तीव्र हों गया। ये देखकर वह मौजूद लगभग सभी का पारा चढ़ गया और कमला के कथन को पुख्ता करते हुऐ सजन बोला…रानी मां वह बुजुर्ग महिला अकेले रहती है उनके अलावा उनके परिवार में एक भी सदस्य जीवित नहीं हैं। ऐसे लोगों के पास जरूरत का सामान सबसे पहले और बारम्बार पहुंचना चहिए लेकिन मुनीम जी उनके हिस्से का ख़ुद ही खा गए ( फ़िर मुनीम की ओर इशारा करके आगे बोला) गौर से देखिए मुनीम जी को दूसरों के हिस्से का खा खाकर अपने बदन में चर्बी की परत दर परत चढ़ा लिया है। अब आप खुद ही फैसला कीजिए चर्बी किसे चढ़ा हुआ है।

साजन से बुजुर्ग महिला का विवरण सुनकर सुरभि और राजेन्द्र की पारा ओर चढ़ गया और मुनीम जी कंबल फैंक कर तुंरत दौड़े और राजेन्द्र के पैरों में गिरकर बोला…. राजा जी मुझे माफ़ कर दीजिए मैं अति लालच में अंधा हों गया था और गबन करने का काम कर बैठा।


आगे जारी रहेगा….
Update - 56
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हवाएं कब किस ओर रूख बदलेगा बतला पाना संभव नहीं हैं। मगर राजेन्द्र की महल में बहने वाली हवाओं ने अपना रूख बदल लिया हैं। हालाकि महल में बहनें वाली हवाओं ने अपना रूख रघु की शादी के महज कुछ दिन पीछे ही बदल लिया था। एक फोन कॉल ने सुकन्या को अहसास करा दिया था कि जिन खोखले रिश्तों को वो जाग जाहिर करने के लिऐ बहन जैसी जेठानी के साथ दुर्व्यवहार करती आई हैं। वो रिश्तेदार कभी उसका था ही नहीं जो उसका अपना था सुकन्या उसी के साथ दुर्व्यवहार कर रहीं थीं।

सुकन्या और सुरभि के बीच रिश्ता सुधरा तो रावण के साथ सुकन्या दुर्व्यवहार करने लग गई हालाकि रावण के साथ दुर्व्यवहार जान बूझकर सुकन्या कर रहीं थीं मगर उसका यहीं दुर्व्यवहार करना रावण को बदलाव के रास्ते की ओर लेकर जा रहा था। आज एक रात में कितना कुछ बदल गया रावण बुरे रास्ते को छोडकर नेक रस्ते पर चलने को राजी हों गया वहीं संभू एक बार फिर रघु को मिला मगर एक अनहोनी होते होते टल गया। इस अनहोनी का टलना कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि आगे इससे भी बड़ा अनहोनी बाहें फैलाए प्रतिक्षा कर रहीं हैं। बरहाल जो भी हो हम आगे बढ़ते हैं और लौट चलते हैं रघु और कमला के रात्रि भोज की सफर, कि ओर जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ हैं।

दार्जलिंग की पहाड़ी वादियों में रात्रि के सन्नाटे में रघु कार को सरपट मध्यम रफ़्तार से दौड़ाए जा रहा था। बगल के सीट पर कमला बैठी बैठी कार की खिड़की से सिर बहार निकलकर, शीतल मन्द मन्द चलती पवन के झोंको का आनंद ले रहीं थीं। शीतल पवन कमला के मुखड़े को छूकर गुजरती तब कमला के मुखड़े की आभा ही बदल जाती और शीतल पावन की ठंडक कमला के मुखड़े से होकर जिस्म के कोने कोने तक पहुंच कर शीतला का अनुभव करवा देती। जिसका असर यूं होता कि कमला के जिस्म का रोआ रोआ ठंडक सिहरन से खड़ी हों जाती। जिस्म में ठंड का असर बढ़ते ही कमला मुंडी अन्दर कर लेता कुछ देर रूककर फ़िर से सिर को बहार निकल लेती। बीबी का यूं बरताव करना रघु को मुस्कराने पर मजबूर कर रहा था। रघु का मुस्कान बनावटी नहीं था। अपितु बीबी को खुश देखकर खुले मन से रघु मुस्कुराकर उसकी खुशी में सारिक हों रहा था। कुछ देर तक कमला को उसके मन का करने दिया फिर कमला को रोकते हुए रघु बोला...कमला इन अल्हड़ हवाओं के साथ बहुत मस्ती कर लिया अब अन्दर बैठ जाओ और खिड़की का शीशा चढ़ा दो वरना ज्यादा ठंड लग गईं तो बीमार पड़ जाओगी।

"नहीं (मस्ती भरे भव से मुस्कुराते हुए कमला आगे बोली) बिल्कुल नहीं, इन हवाओं की रवानी, मेरे मन को एक सुहानी अहसास दिला रहीं हैं इसलिए आप मुझे इन अल्हड़ हवाओं के साथ मस्ती करने से न रोकिए।"

"कमला (मंद मंद मुस्कुराते हुए एक नज़र कमला की ओर देखा फ़िर रघु आगे बोला) तुम्हें इन अल्हड़ शरद हवाओं के साथ मस्ती करते हुए देखकर मुझे भी अच्छा लग रहा हैं साथ ही तुम्हारी फिक्र भी हो रहा हैं। तुम अभी इन शरद हवाओ की आदी नहीं हुई हों पहले आदी हो लो फ़िर जितनी चाहें मस्ती कर लेना मैं नहीं रोकूंगा।"

रघु का व्याकुल होना बिल्कुल उचित हैं क्योंकि कमला सर्द पहाड़ी वातावरण में रहने की आदि नहीं हुई थीं। अभी अभी कमला दार्जलिंग की सर्द वादी में आई है और दूसरी बार महल के चार दिवारी से बहार निकली हैं वो भी रात्रि में, रात्रि के वक्त पहाड़ी वादी दिन से ज्यादा सर्द हों जाता हैं। ऐसे में सर्द का गलत प्रभाव पड़ सकता हैं। यूं टोका जाना कमला को शायद अच्छा नहीं लगा इसलिए कमला अनिच्छा से कार की खिड़की बंद करते हुए शिकयत भरे लहजे में बोली...आप न बहुत बुरे हों मुझे घूमने लाना ही था तो दिन में लेकर आते, रात्रि में इस पहाड़ी वादी का मैं क्या लुप्त लूं कुछ दिख तो रहा नहीं सिर्फ काली सिहाई रात्रि और दूर टिमटिमाती रोशनी के अलावा कुछ दिख ही नहीं रहा।

रघु…अभी अभी खुश थी मस्ती कर रहीं थीं। अचानक क्या हों गया जो शिकायत करने लग गईं। कहीं मेरा टोकना तुम्हें बुरा तो नहीं लग गया।

कमला सिर हिलाकर हां बोला तो रघु मुस्कुराते हुए बोला... कमला तुम्हे बुरा लगा है तो मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे बस तुम्हारी फिक्र हैं मैं नहीं चाहता कि तुम बीमार पड़ जाओ और रहीं बात तुम्हारी इच्छा की तो इस इतवार को तो नहीं ला पाऊंगा मगर उसके बाद वाले इतवार को पक्का तुम्हे दिन में घूमने ले आऊंगा तब जितना मन करे पहाड़ी वादी का लुप्त लेना ठीक हैं न!

कमला कुछ भी बोल पाती उससे पहले ही रघु ने कार रोक दिया। कार रोकने का कारण कमला जानना चाहा तो रघु कुछ न बोलकर कमला के साइड रोड पार देखने को कहा।

रघु की कार इस वक्त सब्जी बाजार से होकर गुजर रहा था। रास्ते के किनारे सड़ी हुई सब्जियों का ढेर लगा हुआ था एक बुजुर्ग महिला उन्हीं सड़ी हुई सब्जियों में से बीन बीन कर थोड़ा बहुत खाने लायक सब्जियों को थैली में रख रहीं थीं।

सामने दिख रहा दृश्य जिसे देख निष्ठुर से भी निष्ठुर हृदय वाले इंसान का हृदय एक पल के लिऐ पिघल जायेगा। तो भाला कमला का हृदय कैसे न पिघलता वो तो कोमल हृदय वाली नारी हैं। एक नज़र दयनीय भाव से पति को देखा फ़िर तुरंत कार का दरवाजा खोले बहार निकली और वृद्ध महिला की ओर चल दिया।

दूसरी ओर से रघु भी निकला उसका भी हृदय सामने के दृश्य को देखकर पिघला हुआ था और दयनीय भाव चहरे पर लिऐ कमला के पीछे पीछे चल दिया। कुछ ही कदम की दूरी तय कर दोनों वृद्ध महिला के पास पहुंचे और "बूढ़ी मां बूढ़ी मां" बोलकर कई आवाजे दिया पर शायद वृद्ध महिला का ध्यान अपने काम में होने के कारण सुन नहीं पाई या फ़िर उम्र की पराकष्ठा थीं जिसने कानों के सुनने की क्षमता को कमज़ोर कर दिया। बरहाल जब कोई प्रतिक्रिया वृद्ध महिला की ओर से नहीं मिला तब कमला दो कदम बढ़कर थोड़ा सा झुका और कंधे पर हाथ रखकर कमला बोलीं... बूढ़ी मां इन सड़ी हुई सब्जियों का आप क्या करने वाली हों।

बदन पर किसी का स्पर्श और कानों के पास हुई तेज आवाज़ का कुछ असर हुआ और वृद्ध महिला धीरे धीरे पलट कर देखा मगर बोलीं कुछ नहीं बस हल्का सा मुस्कुरा दिया और रघु वृद्ध महिला की बह थामे उठाते हुए बोला...बूढ़ी मां जहां तक मैं जानता हूं आप जैसे जरूरत मन्दों की जरूरतें पूरी हों पाए इसलिए प्रत्येक माह महल से भरण पोषण की चीज़े भिजवाई जाती हैं फ़िर भी आपको इस उम्र में इतनी रात गए इन सड़ी हुए सब्जियों को बीनना पड़ रहा हैं। ऐसा क्यों? छोड़िए इन्हें।

इधर रघु की कार रूकते ही, साथ आए अंगरक्षकों की गाड़ी जो कुछ पीछे थीं। जल्दी से नज़दीक आए मगर जब तक अंगरक्षक पहुंचे तब तक रघु और कमला कार से निकल कर वृद्ध महिला के पास पहुंच चुके थे। सभी जल्दी से कार को रोककर बहार निकले फ़िर रघु और कमला के नजदीक पहुंच कर खडे हों गए। वृद्ध महिला रघु की बाते सुनकर मुस्कुरा दिया फ़िर उठ खड़ी हुई और कांपती आवाज़ में बोलीं...जिसका कोई नहीं होता अक्सर उसे पुराने समान की तरह कबाड़ में फेक दिया जाता हैं तो भाला मैं कैसे अछूता रह पाता, मेरा भी कोई नहीं हैं एक बेटा और बहु था वो एक हादसे में चल बसी एक हमसफ़र था जिसने जीवन भर साथ चलने का वादा किया था वो भी सफ़र अधूरा छोड़कर चल बसा, जब मेरा ख्याल रखने वाला कोई हैं नहीं तो लोग भी कब तक मेरी मदद करते शायद यहीं करण रहा होगा महल से भेजे जानें वाले मदद कभी मेरे पास पहुंच पाता कभी नहीं!

वृद्ध महिला की दुःख भारी छोटी सी कहानी सुनकर वहां मौजुद सभी की आंखे नम हों गई। आंखो में नमी का आना लाजमी था। पौढ अवस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव हैं जहां देख भाल करने वाला कोई न कोई साथ होना ही चहिए मगर वृद्ध महिला के साथ उसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं था। शायद इसे ही किस्मत का खेल निराला कहा जाता हैं। जब सभी की आंखे नम हों गईं तो भाला रघु की आंखे नम हुए बिना कैसे रह सकता था। उसकी भी आंखे नम हो गया। सिर्फ़ आंखो में नमी ही नहीं बल्कि नमी के साथ साथ चहरे पर क्रोध की लाली भी आ गईं। जिसे काबू कर रघु बोला...बूढ़ी मां ऐसा कैसे हों सकता हैं जबकि मुनीम जी को शक्त निर्देश दिया गया था कि एक भी जरूरत मंद छूट ना पाए सभी तक जरूरत की चीज़े पहुचाई जाए फ़िर भी जरूरत की चीज़े आप तक कभी पहुंचता हैं कभी नही ये माजरा क्या हैं?

"माजरा बिल्कुल आईने की तरह साफ है। अगर मेरे पास प्रत्येक माह जरुरत की चीज़े पहुंचता तो क्या मुझे इन सड़ी हुए सब्जियों में से खाने लायक सब्जियां बीनना पड़ता"

इतना सुनते ही रघु का गुस्सा जो कुछ वक्त के लिऐ कम हुआ था वो स्वतः ही आसमान की बुलंदी पर पहुंच गया और गुस्से में गरजते हुए बोला... मुनीम जी (फ़िर रघु से कुछ ही दूर खडे साजन की और पलट कर आगे बोला) साजन कल सुबह तड़के ही मुनीम जी जिस भी हाल में हों उसी हाल में मुझे महल में चहिए।

अचनक रघु की गुस्से में गर्जना युक्त आवाज में बोलने से सुनसान वादी के साथ साथ वहां खडे सभी दहल उठे फ़िर साजन धीमी आवाज़ में बोला...जैसा आपने कहा बिल्कुल वैसा ही होगा।

कमला जो रघु के पास ही खड़ी थी।रघु के दहाड़ते ही कांप गई और भय का भाव चहरे पर लिऐ रघु का हाथ अपने दोनो हाथों से थाम लिया। किसी का स्पर्श महसूस करते ही रघु तुरंत पलटा, बीबी का डरा हुआ चेहरा देखते ही रघु का गुस्सा एक पल में उड़ान छू हों गया और रघु बजुर्ग महिला की ओर देखकर बोला…बूढ़ी मां अब से आपको कोई भी दिक्कत नहीं होगा। इस बात का मैं विशेष ख्याल रखूंगा अब आप हमारे साथ चलिए आपको आपके घर छोड़कर हम भी घर के लिऐ निकलते हैं।

इतना बोलकर रघु बजुर्ग महिला का हाथ थामे कार की ओर चल दिया। कार के पास पहुंचकर बुजुर्ग महिला थोड़ी आनाकानी करने के बाद कार में बैठ गई फ़िर बुजुर्ग महिला रास्ता बताती गई और रघु उस रस्ते पर कार चलाता गया। करीब करीब दस से पंद्रह मिनट कार चलाने के बाद बुजुर्ग महिला के कहने पर एक टूटी फूटी झोपड़ी के पास रघु ने कार रोका फ़िर भोजन की थैली लेकर बुजुर्ग महिला के साथ झोपड़ी के अंदर चली गईं।

अति निर्धनता की कहानी झोपड़ी खुद में समेटे हुई थी। जिसे देखकर कमला और रघु एक बार फ़िर पिगल गया। भोजन की थैली बुजुर्ग महिला को दिया। कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर बुजुर्ग महिला से विदा लेकर घर की और चल दिया।

बुजुर्ग महिला की दयनीय अवस्था पर संवेदना जताते हुए तरह तरह की चर्चाएं करते हुए महल पहुंच गए। भीतर जानें से पहले एक बार फ़िर से रघु ने साजन को आगाह कर दिया कि सुबह तड़के मुनीम उसे महल में चहिए फिर दोनों अंदर चले गए।

सुरभि प्रतीक्षा करते करते वहीं सो गईं थीं। आहट पाते ही "कौन हैं,कौन हैं।" कहते हुए जग गईं।

"मां मैं और कमला हूं।" जबाव देखकर रघु और कमला सुरभि के पास पहुंच गए फ़िर कमला बोलीं… मम्मी जी आप अभी तक नहीं सोए।

रघु... मां….

"पूछने के लिए सवाल मेरे पास भी बहुत से हैं। (जम्हाई लेते हुए सुरभि आगे बोलीं) रात बहुत हो गई हैं इसलिए अभी जाकर सो जाओ।"

सुरभि ने टोक दिया अब कोई भी सावल पूछना व्यर्थ है। इसलिए दोनों चुप चाप खिसक लिया और सुरभि मंद मंद मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चली गई।

"लौट आएं दोनों" कमरे में प्रवेश करते ही सुरभि को इन शब्दों का सामना करना पड़ा।

सुरभि... हां आ गए। आप सोए नहीं अभी तक।

राजेन्द्र... क्यों बेटे और बहू से सिर्फ तुम्हें स्नेह हैं? अच्छा छोड़ो! एक दूसरे से सवाल जबाव फ़िर कभी कर लेंगे अभी सो लिया जाए। मुझे बहुत नींद आ रहीं हैं।

किसको किससे कितना स्नेह हैं? एक छोटा सा सावल पूछने पर सुरभि एक मीठी वाद विवाद करने का मनसा बना चुकी थीं मगर राजेन्द्र की सो जानें की बात कहते ही वाद विवाद की मनसा छोड़कर खुद भी सोने की तैयारी करने लग गईं।


आगे जारी रहेगा...
Superb updates
 
Will Change With Time
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Update - 58


सुबह सुबह महल में शुरू हुआ न्याय सभा जिसमें मुनीम जी अपराधी, रघु और कमला न्याय मूर्ति बने तरह तरह के हथकंडे अपना कर मुनीम से सच उगलवाने में लगे हुए थे और बाकि बचे लोग सिर्फ दर्शक बने हुए थे। जब कमला ने बर्फ में दफन और चादर ओढाने में फर्क समझकर मुनीम को गलत सिद्ध किया उस वक्त राजेन्द्र और सुरभि तो प्रभावित हुआ ही था। रावण शायद उनसे ज्यादा प्रभावित हुआ लेकिन बाकी सभी की तरह रावण भी ये सोचने पर मजबूर हों गया कि उनके आंखो के सामने कमला ने मुनीम को धमकी कब दे दिया इस बात का जिक्र करते हुऐ धीरे से सुकन्या को बोला…सुकन्या क्या तुमने देखा या सुना था? बहू ने कब मुनीम जी को बर्फ की चादर ओढ़ने की बात कह दिया।

सुकन्या... सुना तो नहीं मगर मुझे लगता है जब बहू मुनीम जी को कंबल ओढाने गई थी तब कह दिया होगा।

रावण... कमाल है न दाएं हाथ से काम कर दिया और बाएं हाथ को पता भी नहीं चला। हमारी आंखों के सामने मुनीम को धमकी दे दिया और हमे ही पाता नहीं चला।

सुकन्या…बहू के इस कमाल से आपको ज्यादा प्रभावित नहीं होना चहिए क्योंकि बहूं क्या कर सकती हैं। इसकी परख आप पहली रसोई वाले दिन ही कर लिया था। क्यों मैंने सही कहा न।

सुकन्या के इस सावल का रावण कोई जवाब नहीं दे पाया तब सुकन्या पति का हाथ थामे इशारों में बस इतना ही कहा " उन बातों को जानें दो, आगे क्या होता हैं वो देखो"

न्याय सभा आगे बढ़ा और कमला ने जब वंश वृक्ष के लोगों द्वारा अर्जित किए मान और शान में कलंक लगाने वाले कलंक टीका को उखाड़ फेंकने की बात कहीं और जिस तेवर में कहा उसे सुनकर रावण और अपश्यु का ह्रदय भय से डोल उठा ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि दोनों बाप बेटे अपने परिवार के अर्जित किए हुए मान और शान में लगने वाला सबसे बङा कलंक का टीका था।

जब कमला की आंखों में क्रोध की लाली उतरना शुरू हुआ था। वह दृश्य देखकर दोनों बाप बेटे का रूह भी भय से कांप उठा और रावण मन में बोला...हे प्रभू भाभी कौन सी बला घर ले आई जिस दिन बहू को मेरे घिनौने कुकर्मों का पाता चलेगा तब कौन सा रूप धारण करेंगी।

एक संभावित दृश्य की परिकल्पना करके रावण थार थार कांपने लग गया। जिसका आभास होते ही सुकन्या बोलीं... क्या हुआ आप इतना कांप क्यों रहें हों।

रावण से कोई जवाब न दिया गया। कोई जवाब न पाकर जब सुकन्या पति की और देखा तब उसे पति के चहरे पर सिर्फ और सिर्फ भय दिखा यह देखते ही सुकन्या को अंदाजा हों गया कि उसका पति किस बात से डर रहा हैं। इसलिए पति का हाथ थामे बोलीं... जो कर्म अपने किया उसका फल आज नहीं तो कल मिलना ही हैं फ़िर उसे याद करके डरने से क्या मिलेगा? अपने ह्रदय को मजबूत बनाए रखे और मिलने वाले कर्म फल को सहस्र स्वीकार करें।

कहने को तो सुकन्या ने कह दिया लेकिन उसे भी आभास था कि उसके पति के कुकर्मों का कैसा फल मिल सकता है जिसे स्मरण कर सुकन्या का ह्रदय भी भय से डौल गया लेकिन वह इस भाव को उजागर नहीं कर पाई।

यह रावण के ह्रदय में उपजी भय का संघहरक उसकी पत्नी बनी हुई थी लेकिन अपश्यु के भय को कम करने वाला कोई नहीं था। वो तो भाभी की बाते और लाली उतर रही आंखो को देखकर भय से इतना कांप गया कि उससे खड़ा रहा नहीं जा रहा था फ़िर भी किसी तरह साहस जुटा कर खुद के भय पर थोडा नियन्त्रण पाया फिर ख़ुद से बोला…दादा भाई और भाभी को मिथ्या कहने से भाभी को इतना क्रोध आया। तब क्या होगा? जब उन्हें पाता चलेगा कि इस महल पर लगे कलंक में सबसे बङा कलंक का टीका मैं हूं। शायद भाभी उस पल रणचांडी का रूप धर ले और मेरा शीश धड़ से अलग कर दे।

रणचांडी और खुद का शीश कटा धड़ की परिकल्पना करके अपश्यु का ह्रदय एक बार फिर से दहल उठा सिर्फ ह्रदय ही नहीं उसकी आत्मा भी परिकल्पित भय से दहल उठा। एक मन हुआ वो वहां से चला जाएं लेकिन उसका पैर अपने जगह से हिल ही नहीं रहा था। न जानें किस शक्ति ने उसके कदम को जड़वत कर दिया था जो हिलने ही नहीं दे रहा था शायद उसके भय ने उसके पैर को अपंग कर दिया था। बरहाल करवाई आगे बड़ा और जब मुनीम अपनी गलती स्वीकार करते हुऐ राजेन्द्र के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा तब राजेन्द्र बोला…मुनीम तुमने हमारे भरोसे की दीवार को ढहा दिया हैं पल पल हमे और निरीह लोगों को छला हैं। जिन लोगों के भरण पोषण का जिम्मा तुम्हें सौंपा गया था तुम उनके ही हिस्से का खा खाकर अपनी चर्बी बड़ा रहें थे। मन तो कर रहा है तुम्हारे इन चर्बी युक्त मांस को चील कौए से नौचवा दूं। लेकिन तुम्हें सजा मैं नहीं बल्कि रघु और बहू देंगे। उन्हीं ने तुम्हारे अपराध को उजागर किया है और तुम ही ने मेरी बहू और बेटे को मिथ्या कहा सभी के सामने उनका अपमान किया ( फ़िर बेटे और बहू की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) रघु, बहु तुम दोनों ही निर्धारित करो इसके अपराध की कौन सी उचित सजा दिया जा सकता हैं और जानकारी निकालो इसके इस अपराध में कौन कौन इसका साथी हैं?

"नहीं पापा इस अपराधी को मैं सजा दूंगी जिसे मैं सभ्य प्राणी समझता था उसी के लिए अपने परिवारजन को असभ्य कहा। मेरी भाभी को अपने शब्दों में दूसरे परिवार का कह ही चुका था" अपने बाते कहते हुए पुष्पा आगे बढ़ गई। तब कमला ननद के पास पहुचकर बोलीं... बिल्कुल ननद रानी तुम ही इस अपराधी को सजा दो तुम महारानी हो। सजा देने का हक सिर्फ महारानी को ही हैं और हमे असभ्य कहने की कोई भी मलाल अपने हृदय में न रखना क्योंकि उस वक्त जो भी तुमने कहा, परिस्थिती के अनुकूल ही कहा था। तुम या किसी ओर को कहा पता था कि ये प्राणी सभ्य नही असभ्य है और निरीह लोगों के हिस्से का खुद ही गबन करके खा रहा हैं।

थैंक यूं भाभी कहके पुष्पा कमला से लिपट गई फ़िर अलग होकर सजा देने की करवाही शुरू किया…मुनीम जी आपका साथ किस किस ने दिया उसका नाम बताइए।

मुनीम…मेरे आलावा मेरा दूसरा कोई साथी नहीं हैं।

पुष्पा…ऐसा हों ही नहीं सकता कि इतने दिनों से आप गबन कर रहें हों ओर किसी की नजरों में न आए हों।

मुनीम…आप सभी के नाक के नीचे से मैं माल समेट रहा था आप लोगों को पाता चला वैसे ही किसी और को पाता नहीं चला बड़े होशियारी से मैं काम को अंजाम देता था।

पुष्पा…मुनीम तेरी जुबान कुछ ज्यादा ही चल रहा हैं रूक तू अभी बताती हूं।

इतना बोलकर पुष्पा कुछ कदम पीछे गई। दीवार पे तलवार टांग हुआ था। एक तलवार खींच के निकला और सीधा मुनीम के पास पहुंच कर एक लात मुनीम के छीने में जमा दिया। समस्त ऊर्जा को पैर में एकत्र करके लात मारा गया था जिसका नतीजा ये हुआ कि मुनीम लगभग फुटबॉल की तरह लुढ़काता हुआ कुछ फीट दूर जाकर फैल गया और पुष्पा तुरंत मुनीम के पास पहुंचा फ़िर उसके गर्दन पे तलवार रख कर समस्त ऊर्जा अपने कंठ में समहित कर पूर्ण वेग से बोलीं…मुजरिम हैं तो मुजरिम की तरह बोल न बड़ी होशियारी दिखा रहा था अब दिखा होशियारी और बोल कौन कौन तेरा साथ दे रहा था।

एक ही दिन में महल के सदस्य दो नारी का रौद्र रूप देख रहे थे पहले बहू अब बेटी हालाकि सभी जानते थे पुष्पा नटखट हैं चुलबुली हैं हमेशा हसीं मजाक और मस्ती करती रहतीं हैं। इसी नटखट और चुलबुली स्वभाव के अड़ में एक दहकती अंगार छिपा हुआ हैं। ये कोई नहीं जानता था। जिसका उजागर होते ही लगभग सभी आपस में खुशापुसार करते हुए भिन्न भिन्न तरह की बाते कर रहें थे।

वहीं गर्दन में तलवार की छुवान और पुष्पा का अनदेखा रूप देखकर मुनीम की अस्ति पंजर, रूह सब थार थार कांप उठा पुष्पा के रूप में शाक्षत काल के दर्शन हों गया। भय की ऐसी मार पड़ी कि मुनीम बोलना तो चाहता था लेकिन जुबान साथ नहीं दे रहा था। जब मुनीम नहीं बोला तब पुष्पा एक बार फ़िर शेरनी की तरह दहड़ी…बोला न, मुनीम कुछ तो बोल अभी तक तो तेरी जुबान बहुत चल रहा था। शाक्षत काल के दर्शन होते ही जुबान काम से गया। बोल दे नहीं तो याम के द्वार तक भेजने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

सभी मूकदर्शक बने सिर्फ देख रहें थे। पुष्पा को कुछ भी अनर्थ करने से सभी रोकना चाहते थे। लेकिन पहल करने से डर रहें थे बस एक दूसरे का मुंह थक रहें थे और अपने अपने जोड़ीदार को टुस्की मार मारके आगे बढ़कर रोकने को कह रहें थे। लेकिन कोई कुछ कर ही नहीं रहा था और अपश्यु के आस पास कोई था नहीं तो भला वो किसको टुस्की मारके आगे बढ़ने को कहता इसलिए बस अगल बगल तांक झांक कर रहा था। इधर पुष्पा ने एक बार और दोहराया तब डरे सहमे मुनीम बोला…. महारानी जी मैं सच कहा रहा हूं मेरे साथ कोई ओर नहीं था मैं आपने बच्चों की कसम खाने को भी तैयार हूं।

पुष्पा…चल माना कि तेरा साथ किसी ने नहीं दिया लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता कि तू जिनका माल गवान कर गया उनके मन में तेरे प्रति रोष न पैदा हुआ हों और तेरी शिकायत करने की न सोचा हों।

इस बात का मुनीम जवाब नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की मुनीम जवाब नहीं जानता था। जानता था आखिर अपना कृत छुपाने के लिए कुछ तो किया होगा। बस हाथ जोड़ लिया शायद इसलिए कहीं सच बता दिया तो पुष्पा उसके धड़ से सिर को अलग कर उसे मरणोंशैया पे ना लेटा दे। माहौल को सामान्य होता देख कमला बोलीं…ननद रानी जिस तरह अपने मुनीम को मौत का भय दिखाकर सच उगलवाया वैसे ही मुनीम ने भी मौत का भय दिखाकर अपना कृत छुपाया होगा।

पुष्पा…क्यों रे मुनीम भाभी सही कह रहीं हैं। तूने ऐसा ही किया था।

मुनीम सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। तब पुष्पा "तेरी तो" बोला और एक झटके में तलवार को हवा में ले गईं। यह देखकर एक साथ "नहीं, नहीं" की कई सारे चीखें गूंज उठा और दूसरे झटके में तलवार को मुनीम के गर्दन तक ले जाकर रोक दिया फ़िर बोलीं…मौत का भय वो दावा हैं जो सच उगलवा ही देता हैं तुझे क्या लगा तेरा कत्ल करके मैं कानून के पचड़ों में फसूंगी कभी नहीं (इतना बोलकर पुष्पा पलट गईं और तलवार के धार पर हल्के हाथों से उंगली फिरते हुए बोलीं) उफ्फ बहुत तेज धार हैं। मां इतनी धारदर तलवार दीवारों पे टांगने को किसने कहा था।

पुष्पा की इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया और पुष्पा अपने जगह जाकर सजा की करवाही पूरा करते हुए आगे बोलीं….मुनीम जी जितना महल की अपराधी है उतना ही कानून की इसलिए उन्हें कानून को सौंप दिया जाए। कानून उन्हें जो सजा देगी वो तो देगी ही लेकिन उससे पहले महल की ओर से महल की महारानी होने के नाते मैं उन्हें सजा सुनाती हूं कि अब तक गबन करके जितना भी धन अर्जित किया है। सूद समेत इनसे लिया जाए और जिन लोगों से गबन किया गया था उनमें बांट दिया जाएं इस काम का अतिरिक्त भार अपश्यु भईया और साजन को सौंपा जाता हैं और उन्हें चेतावनी दिया जाता है कि उन्होंने मुनीम जी जैसा कुछ किया तो मैं खुद इन दोनों की खाल खीच लूंगी।

बहन की सुनाए फैसला सुनकर अपश्यु खुश हो गया और मन ही मन धन्यवाद देने लगा लेकिन खाल खींचने की बात सुनकर सजन हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गया और उसके बोलने से पहले पुष्पा बोलीं... अरे रूको रे बाबा पहले मैं अपनी बात तो पुरी कर लूं, हां तो सजा सुना चुकी हूं अब बारी आती है उपहार देने की तो जिन्होंने इस अपराध का उजागर किया उन्हें पंद्रह दिन का हनीमून पेकेज दिया जाता है जिसका खर्चा वो खुद उठाएंगे।

कमला... अरे ननद रानी ये कैसा उपहार दे रहीं हों जिसका खर्चा हम खुद ही उठाएंगे।

पुष्पा... ओ कुछ गलत बोल दिया चलो सुधार देती हूं। आप दोनों को एक महीने का हनीमून पेकेज मिलता है जिसमे पंद्रह दिन का खर्चा आप ख़ुद उठाएंगे और पंद्रह दिन का खर्चा मेरे ओर से उपहार (फ़िर सजन की ओर देखकर बोला) आप क्यों घुटनो पर बैठें हों। जब देखो घुटनों पर बैठ जाते हों आपके घुटनों में दर्द नहीं होता।

साजन... होता है महारानी जी बहुत दर्द होता हैं लेकिन आपका अभी अभी जो रूप देखा जिससे हम सभी अनजान थे और आपके खाल खीच लेने की बात से डर गया था इसलिए मजबूरन घुटनों पर बैठना पड़ा।

पुष्पा... हां तो गलती करोगे तो सजा तो मिलेगी ही। चलो अब जाओ इस नामुराद को इसके ठिकाने तक छोड़ आओ और सभा को खत्म करो। सुबह उठते ही सभा में बिठा दिया न पानी पूछा न खाने को दिया घोर अपमान महारानी का घोर अपमान हुआ है। (फ़िर रतन को आवाज देते हुऐ बोलीं) रतन दादू न्याय सभा का समापन हों चूका हैं अब आप भोजन सभा को आरम्भ कीजिए आपकी महारानी भूख से बिलख रहीं हैं।

आदेश मिल चूका था इसलिए आदेश को टालना व्यर्थ था। "चल रे चर्बी युक्त मांस वाला प्राणी तेरी चर्बी उतरने का प्रबन्ध करके आता हूं।" बोलते हुए साजन मुनीम को ले गया और पुष्पा की क्षणिक नटखट अदाओं ने डरे सहमे लगभग सभी के चेहरे पर मुस्कान ला दिया बस रावण और अपश्यु के लवों से मुस्कान गायब था। दोनों बाप बेटे को बस यहीं भय सता रहा था कि उनके कर्मों का उजागर हों गया तब उनका किया हल होगा। खैर उनका जो भी होगा बाद में होगा अभी भूख ने परेशान कर रखा था तो सभी सुबह की नाश्ता करने बैठ गए।

नाश्ता के दौरान भी आपसी चर्चाएं चल रहा था और मुख्य बिंदु कमला और रघु का बीती रात्रि भोज पर बहार जाना ही बना रहा। साथ ही आज सभी ने पुष्पा का छुपा हुआ नया रूप देखा उस पर भी चर्चाएं हों रहीं थीं। चर्चा करते करते पुष्पा बोलीं... मां कल रात्रि भईया ओर भाभी का भोज पर जाना जितना इन दोनों के लिए अच्छा साबित हुआ उतना ही हमारे लिए भी अच्छा हुआ। सोचो जरा कल भईया और भाभी नहीं जाते तब हम जान ही नहीं पाते कि मुनीम जी ईमानदारी का चोला ओढ़े बेईमानी कर रहें थे।

सुरभि... कह तो तू सही रहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि कल इन दोनों को भेजने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। कुछ अनहोनी होने का डर मुझे सता रही थीं फ़िर भी अनिच्छा से दोनों को भेज दिया और देखो प्रभू की इच्छा से कोई अनहोनी तो नहीं हुआ लेकिन मुनीम जी के किए अपराध उजागर हों गया।

रघु... तभी अपने उन चारों को हमारे साथ भेजा था।

सुरभि... हां अच्छा सुन रघु उन बुजुर्ग महिला के बारे में तूने कुछ सोचा है।

रघु... हां सोचा है न उन्हे आश्वासन दे आया हूं उनका ख्याल मैं रखूंगा अभी साजन लौट आएं तो उसके हाथों उनके जरूरत के समान भिजवा दुंगा और उनकी झोपड़ी को रात में जीतना देख पाया उससे लग रहा था खस्ता हाल में है उसकी मरम्मत की भी व्यवस्था कर दुंगा।

कमला... पापा जी मैं क्या सोच रही थी...।

"हां बहू बोलो तुम क्या सोच रहीं थीं" कमला को बीच में रोककर राजेन्द्र बोला

कमला... पापा जी आप मुझे चिड़ा रहें हों।

राजेन्द्र... बिलकुल नहीं आज तुमने और पुष्पा ने जो रणचांडी का रूप दिखाया उसके बाद तो भूले से भी तुम्हें या पुष्पा को चिड़ाने का भूल नहीं कर सकता।

"पापा जी।" इतना बोलकर कमला रूठने का दिखावा करने लग गईं और पुष्पा तो मानों अपनी बढ़ाई सुनकर फूले नहीं समा रहीं थीं। मुंह से बोला कुछ नही लेकिन अभिनय करके जाता दिया कि अब से कोई उसकी बात न टाले वरन सभी एक फिर से अपना रौद्र रूप दिख देगी। अभिनय किया था तो सभी ने उसी तरह अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी उसके बाद सुरभि बोलीं... आप भी न, बहू तुम इनकी बातों को तुल न दिया करो ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। बोलों तुम क्या बोलना चाह रहीं थीं।

राजेन्द्र... हां बहू बोलों तुम क्या कहना चाहती थीं।

कमला... पापा जी उन बूढ़ी मां जैसे ओर भी वायो वृद्ध ऐसे होंगे जिनका कोई नहीं हैं। तो क्यों न हम एक वृद्ध आश्रम बनाए। वृद्ध आश्रम महल के नजदीक बनायेंगे ताकि हम में से कोई समय समय पर जाकर उनकी देख रेख कर सकें।

राजेन्द्र... बिलकुल सही सोचा हैं। पहले महल में होने वाले जलसा से निपट ले फ़िर वृद्ध आश्रम के निर्माण पे ध्यान देंगे।

ऐसे ही चर्चाएं करते हुऐ सभी ने नाश्ता कर लिया फ़िर अपने अपने रूम में चले गए। कुछ देर में साजन लौट आया। उसे जानकारी लिया गया तब साजन बोल…मैंने कोतवाल साहब को महल की और से शक्त चेतावनी दे आया कि मुनीम के साथ कोई रियायत न वर्ती जय और उसके अपराध की उचित सजा दिया जाए साथ ही उसके जितने भी चल अचल संपत्ति है उन सभी की जानकारी और अब तक कितना गबन किया है उसकी जानकारी लेकर महल भेजा जाए।

साजन की इस कदम की लगभग सभी सरहना की उसके बाद दफ्तर के लिए निकलते समय रघु ने साजन को बात दिया उसे क्या क्या करना है फिर दफ्तर चला गया।

साजन बूढ़ी मां के पास ले जाने वाले सभी ज़रूरी सामान एकत्र करने के बाद सुरभि को जाने की बात कहने गया तब कमला बोलीं…मम्मी जी मैं भी साथ जाना चाहती हूं। क्या मैं जाऊ?

सुरभि... ठीक हैं जाओ। साजन….।

"रानी मां समझ गया आप चिंता न करे मेरे होते हुऐ कोई भी मालकिन को छू भी नहीं सकता।" साजन ने सुरभि की बातों को बीच में रोकर बोला

इसके बाद कमला को तैयार होकर आने को कहा कमला के जानें के बाद सुरभि साजन को कुछ बाते हिदायत के साथ कह दिया और कमला खुद तो तैयार होकर आई साथ में पुष्पा को भी लेकर आई फ़िर बूढ़ी मां से मिलने चली गईं।

आगे जारी रहेगा….
 
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Update - 58


सुबह सुबह महल में शुरू हुआ न्याय सभा जिसमें मुनीम जी अपराधी, रघु और कमला न्याय मूर्ति बने तरह तरह के हथकंडे अपना कर मुनीम से सच उगलवाने में लगे हुए थे और बाकि बचे लोग सिर्फ दर्शक बने हुए थे। जब कमला ने बर्फ में दफन और चादर ओढाने में फर्क समझकर मुनीम को गलत सिद्ध किया उस वक्त राजेन्द्र और सुरभि तो प्रभावित हुआ ही था। रावण शायद उनसे ज्यादा प्रभावित हुआ लेकिन बाकी सभी की तरह रावण भी ये सोचने पर मजबूर हों गया कि उनके आंखो के सामने कमला ने मुनीम को धमकी कब दे दिया इस बात का जिक्र करते हुऐ धीरे से सुकन्या को बोला…सुकन्या क्या तुमने देखा या सुना था? बहु ने कब मुनीम जी को बर्फ की चादर ओढ़ने की बात कह दिया।

सुकन्या... सुना तो नहीं मगर मुझे लगाता है जब बहु मुनीम जी को कंबल ओढाने गई थी तब कह दिया होगा।

रावण... कमाल है न दाएं हाथ से काम कर दिया और बाएं हाथ को पता भी नहीं चला। हमारी आंखों के सामने मुनीम को धमकी दे दिया और हमे ही पाता नहीं चला।

सुकन्या...बहु के इस कमाल से आपको ज्यादा प्रभावित नहीं होना चहिए क्योंकि बहु क्या कर सकती हैं। इसकी परख आप पहली रसोई वाले दिन ही कर लिया था। क्यों मैंने सही कहा न।

सुकन्या के इस सावल का रावण कोई जवाब नहीं दे पाया तब सुकन्या पति का हाथ थामे इशारों में बस इतना ही कहा " उन बातों को जानें दो, आगे क्या होता हैं वो देखो"

न्याय सभा आगे बढ़ा और कमला ने जब वंश वृक्ष के लोगों द्वारा अर्जित किए मान और शान में कलंक लगाने वाले कलंक टीका को उखाड़ फेंकने की बात कहीं और जिस तेवर में कहा उसे सुनकर रावण और अपश्यु का ह्रदय भय से डोल उठा ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि दोनों बाप बेटे अपने परिवार के अर्जित किए हुए मान और शान में लगने वाला सबसे बङा कलंक का टीका था।

जब कमला की आंखों में क्रोध की लाली उतरना शुरू हुआ था। वह दृश्य देखकर दोनों बाप बेटे का रूह भी भय से कांप उठा और रावण मन में बोला...हे प्रभू भाभी कौन सी बला घर ले आई जिस दिन बहु को मेरे घिनौने कुकर्मों का पाता चलेगा तब कौन सा रूप धारण करेंगी।

एक संभावित दृश्य की परिकल्पना करके रावण थार थार कांपने लग गया। जिसका आभास होते ही सुकन्या बोलीं... क्या हुआ आप इतना कांप क्यों रहें हों।

रावण से कोई जवाब न दिया गया। कोई जवाब न पाकर जब सुकन्या पति की और देखा तब उसे पति के चहरे पर सिर्फ और सिर्फ भय दिखा यह देखते ही सुकन्या को अंदाजा हों गया कि उसका पति किस बात से डर रहा हैं। इसलिए पति का हाथ थामे बोलीं... जो कर्म अपने किया उसका फल आज नहीं तो कल मिलना ही हैं फ़िर उसे याद करके डरने से क्या मिलेगा? अपने ह्रदय को मजबूत बनाए रखे और मिलने वाले कर्म फल को सहस्र स्वीकार करें।

कहने को तो सुकन्या ने कह दिया लेकिन उसे भी आभास था कि उसके पति के कुकर्मों का कैसा फल मिल सकता है जिसे स्मरण कर सुकन्या का ह्रदय भी भय से डौल गया लेकिन वह इस भाव को उजागर नहीं कर पाई।

यह रावण के ह्रदय में उपजी भय का संघहरक उसकी पत्नी बनी हुई थी लेकिन अपश्यु के भय को कम करने वाला कोई नहीं था। वो तो भाभी की बाते और लाली उतर रही आंखो को देखकर भय से इतना कांप गया कि उससे खड़ा रहा नहीं जा रहा था फ़िर भी किसी तरह साहस जुटा कर खुद के भय पर थोडा नियन्त्रण पाया फिर ख़ुद से बोला…दादा भाई और भाभी को मिथ्या कहने से भाभी को इतना क्रोध आया। तब क्या होगा? जब उन्हें पाता चलेगा कि इस महल पर लगे कलंक में सबसे बङा कलंक का टीका मैं हूं। शायद भाभी उस पल रणचांडी का रूप धर ले और मेरा शीश धड़ से अलग कर दे।

रणचांडी और खुद का शीश कटा धड़ की परिकल्पना करके अपश्यु का ह्रदय एक बार फिर से दहल उठा सिर्फ ह्रदय ही नहीं उसकी आत्मा भी परिकल्पित भय से दहल उठा। एक मन हुआ वो वहां से चला जाएं लेकिन उसका पैर अपने जगह से हिल ही नहीं रहा था। न जानें किस शक्ति ने उसके कदम को जड़वत कर दिया था जो हिलने ही नहीं दे रहा था शायद उसके भय ने उसके पैर को अपंग कर दिया था। बरहाल करवाई आगे बड़ा और जब मुनीम अपनी गलती स्वीकार करते हुऐ राजेन्द्र के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा तब राजेन्द्र बोला…मुनीम तुमने हमारे भरोसे की दीवार को ढहा दिया हैं पल पल हमे और निरीह लोगों को छला हैं। जिन लोगों के भरण पोषण का जिम्मा तुम्हें सौंपा गया था तुम उनके ही हिस्से का खा खाकर अपनी चर्बी बड़ा रहें थे। मन तो कर रहा है तुम्हारे इन चर्बी युक्त मांस को चील कौए से नौचवा दूं। लेकिन तुम्हें सजा मैं नहीं बल्कि रघु और बहू देंगे। उन्हीं ने तुम्हारे अपराध को उजागर किया है। ( फ़िर बेटे और बहू की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) रघु, बहु तुम दोनों ही निर्धारित करो इसके अपराध की कौन सी उचित सजा दिया जा सकता हैं?

"नहीं पापा इस अपराधी को मैं सजा दूंगी जिसे मैं सभ्य प्राणी समझता था उसी के लिए अपने परिवारजन को असभ्य कहा।" अपने बाते कहते हुए पुष्पा आगे बढ़ गई। तब कमला ननद के पास पहुचकर बोलीं... बिलकुल ननद रानी तुम ही इस अपराधी को सजा दो तुम महारानी हो। सजा देने का हक सिर्फ महारानी को ही हैं और हमे असभ्य कहने की कोई भी मलाल अपने हृदय में न रखना क्योंकि उस वक्त जो भी तुमने कहा, परिस्थिती के अनुकूल ही कहा था। तुम या किसी ओर को कहा पता था कि ये प्राणी सभ्य नही असभ्य है और निरीह लोगों के हिस्से का खुद ही गवान करके खा रहा हैं।

थैंक यूं भाभी कहके पुष्पा कमला से लिपट गई फ़िर अलग होकर सजा देने की करवाही शुरू किया... मुनीम जी जितना महल की अपराधी है उतना ही कानून की इसलिए उन्हें कानून को सौंप दिया जाए। कानून उन्हें जो सजा देगी वो तो देगी ही लेकिन उससे पहले महल की ओर से महल की महारानी होने के नाते मैं उन्हें सजा सुनाती हूं कि अब तक गवान करके जितना भी धन अर्जित किया है। सूद समेत इनसे लिया जाए और जिन लोगों से गवान किया गया था उनमें बांट दिया जाएं इस काम का अतिरिक्त भार अपश्यु भईया और साजन को सौंपा जाता हैं और उन्हें चेतावनी दिया जाता है कि उन्होंने मुनीम जी जैसा कुछ किया तो मैं खुद इन दोनों की खाल खीच लूंगी।

बहन की सुनाए फैसला सुनकर अपश्यु खुश हो गया और मन ही मन धन्यवाद देने लगा लेकिन खाल खींचने की बात सुनकर सजन हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गया और उसके बोलने से पहले पुष्पा बोलीं... अरे रुको रे बाबा पहले मैं अपनी बात तो पुरी कर लूं, हां तो सजा सुना चुकी हूं अब बारी आती है उपहार देने की तो जिन्होंने इस अपराध का उजागर किया उन्हें पंद्रह दिन का हनीमून पेकेज दिया जाता है जिसका खर्चा वो खुद उठाएंगे।

कमला... अरे ननद रानी ये कैसा उपहार दे रहीं हों जिसका खर्चा हम खुद ही उठाएंगे।

पुष्पा... ओ कुछ गलत बोल दिया चलो सुधार देती हुं। आप दोनों को एक महीने का हनीमून पेकेज मिलता है जिसमे पंद्रह दिन का खर्चा आप ख़ुद उठाएंगे और पंद्रह दिन का खर्चा मेरे ओर से उपहार (फ़िर सजन की ओर देखकर बोला) आप क्यों घुटनो पर बैठें हों। जब देखो घुटनों पर बैठ जाते हों आपके घुटनों में दर्द नहीं होता।

साजन... होता है महारानी जी बहुत दर्द होता हैं लेकिन आपके खाल खीच लेने की बात से डर गया था इसलिए मजबूरन घुटनों पर बैठना पड़ा।

पुष्पा... हां तो गलती करोगे तो सजा तो मिलेगी ही। चलो अब जाओ इस नामुराद को इसके ठिकाने तक छोड़ आओ और सभा को खत्म करो। सुबह उठते ही सभा में बिठा दिया न पानी पूछा न खाने को दिया घोर अपमान महारानी का घोर अपमान हुआ है। (फ़िर रतन को आवाज देते हुऐ बोलीं) रतन दादू न्याय सभा का समापन हों चूका हैं अब आप भोजन सभा को आरम्भ कीजिए आपकी महारानी भूख से बिलख रहीं हैं।

आदेश मिल चूका था इसलिए आदेश को टालना व्यर्थ था। "चल रे चर्बी युक्त मांस वाला प्राणी तेरी चर्बी उतरने का प्रबन्ध करके आता हूं।" बोलते हुए साजन मुनीम को ले गया और पुष्पा की क्षणिक नटखट अदाओं ने डरे सहमे दोनों बाप बेटे के चेहरे पर मुस्कान ला दिया फ़िर सभी सुबह की नाश्ता करने बैठ गए।

नाश्ता के दौरान भी आपसी चर्चाएं चल रहा था और मुख्य बिंदु कमला और रघु का बीती रात्रि भोज पर बहार जाना ही बना रहा। चर्चा करते करते पुष्पा बोलीं... मां कल रात्रि भईया ओर भाई का भोज पर जाना जितना इन दोनों के लिए अच्छा साबित हुआ उतना ही हमारे लिए भी अच्छा हुआ। सोचो जरा कल भईया और भाभी नहीं जाते तब हम जान ही नहीं पाते कि मुनीम जी ईमानदारी का चोला ओढ़े बेईमानी कर रहें थे।

सुरभि... कह तो तू सही रहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि कल इन दोनों को भेजने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। कुछ अनहोनी होने का डर मुझे सता रहा था फ़िर भी अनिच्छा से दोनों को भेज और देखो प्रभू की इच्छा से कोई अनहोनी तो नहीं हुआ लेकिन मुनीम जी के किए अपराध उजागर हों गया।

रघु... तभी अपने उन चारों को हमारे साथ भेजा था।

सुरभि... हां अच्छा सुन रघु उन बुजुर्ग महिला के बारे में तूने कुछ सोचा है।

रघु... हां सोचा है न उन्हे आश्वासन दे आया हूं उनका ख्याल मैं रखूंगा अभी साजन लौट आएं तो उसके हाथों उनके जरूरत के समान भिजवा दुंगा और उनकी झोपड़ी भी खस्ता हाल में है उसकी मरम्मत की भी व्यवस्था कर दुंगा।

कमला... पापा जी मैं क्या सोच रही थी...।

"हां बहु बोलो तुम क्या सोच रहीं थीं" कमला को बीच में रोककर राजेन्द्र बोला

कमला... पापा जी आप मुझे चिड़ा रहें हों।

राजेन्द्र... बिलकुल नहीं आज तुमने जो रणचांडी का रूप दिखाया उसके बाद तो भूले से भी तुम्हें चिड़ाने का भूल नहीं कर सकता।

"पापा जी।" इतना बोलकर कमला रूठने का दिखावा करने लग गईं तब सुरभि बोलीं... आप भी न, बहु तुम इनकी बातों को तुल न दिया करो ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। बोलों तुम क्या बोलना चाह रहीं थीं।

राजेन्द्र... हां बहु बोलों तुम क्या कहना चाहती थीं।

कमला... पापा जी उन बूढ़ी मां जैसे ओर भी वायो वृद्ध ऐसे होंगे जिनका कोई नहीं हैं। तो क्यों न हम एक वृद्ध आश्रम बनाए। वृद्ध आश्रम महल के नजदीक बनायेंगे ताकि हम में से कोई समय समय पर जाकर उनकी देख रेख कर सकें।

राजेन्द्र... बिलकुल सही सोचा हैं। पहले महल में होने वाले पार्टी से निपट ले फ़िर वृद्ध आश्रम के निर्माण पे ध्यान देंगे।

ऐसे ही चर्चाएं करते हुऐ सभी ने नाश्ता कर लिया फ़िर अपने अपने रूम में चले गए। कुछ देर में साजन लौट आया। दफ्तर के लिए निकलते समय रघु ने साजन को बात दिया उसे क्या क्या करना है फिर दफ्तर चला गया।

साजन बूढ़ी मां के पास ले जाने वाले सभी ज़रूरी सामान एकत्र करने के बाद सुरभि को जाने की बात कहने गया तब कमला बोलीं…मम्मी जी मैं भी साथ जाना चाहती हुं। क्या मैं जाऊ?

सुरभि... ठीक हैं जाओ। साजन….।

"रानी मां समझ गया आप चिंता न करे मेरे होते हुऐ कोई भी मालकिन को छू भी नहीं सकता।" साजन ने सुरभि की बातों को बीच में रोकर बोला

इसके बाद कमला को तैयार होकर आने को कहा कमला के जानें के बाद सुरभि साजन को कुछ बाते हिदायत के साथ कह दिया और कमला खुद तो तैयार होकर आई साथ में पुष्पा को भी लेकर आई फ़िर बूढ़ी मां से मिलने चला गया।


आगे जारी रहेगा….
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सुबह सुबह न्याय सभा की करवाई के चलते रघु देर से दफ्तर पहुंचा, उसको आए कुछ ही वक्त हुआ था कि एक फ़ोन कॉल से उसे सूचना मिला कि उससे कोई मिलने आया हैं। तुरंत ही उसे ज्ञात हुआ कि कौन उससे मिलने आने वाला हैं। तब रघु ने बीना विलंब के उसे भेजने को कह दिया।

फ़ोन रखते ही किसी ने द्वार पर आकर भीतर आने की प्रमिशन मांगा, आने वाले शख्स की आवाज से रघु जान गया की द्वार पर मुंशी आया हुआ हैं। इसलिए तुरंत ही उन्हें अंदर आने का प्रमीशन दे दिया। अंदर आते ही मुंशी बोला... रघु आज तुम्हें कैसे देर हों गईं।

रघु... काका कल आपकी बहू के साथ रात्रि भ्रमण पे गया था वहीं पाता चला मुनीम जी अपने काम में घपला कर रहे है उसी की सभा के कारण लेट हों गया।

मुंशी...मुनीम जी ऐसा करेंगे कभी सोचा नहीं था। खैर उनके बारे में बाद में बात करेंगे अभी तुम मेरे साथ चलो।

रघु... कहा चलना हैं?

मुंशी... कहा चलना है ये कार में बता दुंगा अभी तुम बस इतना जान लो कुछ अति विशिष्ट क्लाइंट्स के साथ मीटिंग हैं जिनके बारे में कल ही तुम्हें बता देना था लेकिन तुम्हारी जल्दी बाजी के कारण मेरे दिमाग से उतर गया।

"चलो फ़िर" कहते हुए मुंशी के साथ रघु चल दिया जैसे ही द्वार खोलकर बहार निकला सामने से संभू आता हुआ दिख गया। संभू के पास पहुंचकर रघु बोला... संभू माफ करना भाई मैं तुम्हें समय नहीं दे सकता अभी मुझे एक ज़रूरी मीटिंग में जाना होगा।

संभू…ठीक है मैं प्रतीक्षा कर लेता हूं।

रघु... पाता नही मुझे कितना वक्त लग जाए इसलिए तुम अभी जाओ और दुबारा जब आओ मुझे कॉल कर लेना और सुनो रिसेप्शन से मेरा दफ्तर वाला नंबर ले जाना।

इतना कहकर रघु आगे बड़ गया और संभू कुछ पल वही खड़े विचारों में खोया रहा फ़िर लौट गया।

एक अंजान शख्स जो रघु से मिलने दफ़्तर आया जिसे शायद ही कभी मुंशी देखा हों याद करने के लिए मुंशी अपने मस्तिस्क को यातनाएं देने लग गया। कुछ देर मानसिक खीच तन के बाद मुंशी बोला... इस संभू को कहीं तो देखा हैं पर याद नहीं आ रहा खैर छोड़ो ये बताओं संभू तुमसे मिलने क्यों आया था।

रघु…काका ये वही संभू हैं जिसका एक्सिडेंट मेरे कार से हुआ था और बिना पूर्ण स्वस्थ हुए कही भाग गया था। कल रात फ़िर मुलाकात हुआ और इतेफक देखो कल भी लगभग एक्सिडेंट होते होते रहा गया।

मुंशी...kyaaa एक्सिडेंट…

रघु...अरे काका भयभीत होने की जरूरत नहीं है एक्सिडेंट होने वाला था हुआ नहीं ये बात मां के कान तक नहीं पहुंचना चहिए।

मुंशी...चलो ठीक है नहीं पहुंचेगी लेकिन कार ध्यान से चलाया करो।

रघु... ध्यान से कार चला रहा था वो तो आपके बहू को...।

बोलते बोलते रघु चुप हो गया और निगाहे चुराने लग गया। जिसे देखकर मुंशी मुस्कुरा दिया फ़िर बोला... अब तो पक्का रानी मां से कहना पड़ेगा की बहू और रघु को साथ में कहीं न भेजे।

रघु...क्या काका आप भी! मेरी भावनाओं को समझो न।

मुंशी…समझ रहा हूं लेकिन कार चलाते वक्त अपनी भावनाओं पे नियंत्रण रखा करो खासकर की तब जब बहू साथ में हों।

जबाव में रघु बस मुस्कुरा दिया फ़िर कुछ ओर बाते करते हुए दोनो दफ्तर से बहार आ गए और साथ में ही अपने गंतव्य कि ओर चल दिया।

दुसरी ओर कमला और पुष्पा रात्रि में मिले बजुर्ग महिला के घर पहुंच गए। रात्रि में अंधकार होने के कारण शायद ही रघु और कमला अंदाजा लगा पाया हो कि वृद्ध महिला की झोपड़ी किस हाल में थीं लेकिन दिन की उजाले में देखने से अंदाजा हों गया कि झोपड़ी खस्ता हाल में हैं। झोपड़ी की छत कहीं कहीं से गंजा हो चूका हैं। झोपड़ी के चारों ओर से लगे घास की दीवारें भी कहीं कहीं से खराब हों चूका है। झोपड़ी का दाएं तरफ वाला हिस्सा एक और झुक चूका हैं। तेज हवा की एक झोंका से झोपड़ी घिर जायेगा। यह देखकर पुष्पा बोलीं... भाभी हम आलीशान महल में कितने शान से रहते हैं वहीं दुनियां में कितने लोग हैं जिन्हें टूटी फूटी मड़ैया में रहना पड़ता हैं। भाभी क्या हम इन बुजुर्ग महिला को हमारे साथ महल में नहीं रख सकते हैं।

कमला... मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ सकती हूं। कल जब इन्हें देखा था तब मेरे मन में भी यहीं विचार आया था। लेकिन जब थोडा ओर विचार किया तब ध्यान आया कि इन जैसे ओर भी लोग होंगे और हम किन किन को महल में रखेंगे इसलिए तो पापा जी को वृद्ध आश्रम बनाने की बात कहा।

बातों के दौरान दोनों झोपड़ी में प्रवेश कर गए। जहां वृद्ध महिला लेटी हुई थीं। किसी के आने की आहट पाकर वृद्ध महिला उठकर बैठ गई और कमल और पुष्पा बिना किसी शर्म के जाकर वृद्ध महिला के पास बैठ गईं। दोनों को ध्यान से देखने के बाद वृद्ध महिला बोलीं... अरे आज तो मेरी कुटिया में राजकुमारी जी आई है। कैसे हो राजकुमारी पुष्पा जी?

पुष्पा... बूढ़ी मां मैं ठीक हूं। आप मुझे पहचानती हों।

बूढ़ी मां...महल के एक एक सदस्य को पहचानता हूं। बस नई आई बहुरानी को नहीं देखा था उनसे कल रात मिल लिया सुना था नई बहुरानी बहुत सुंदर हैं कल रात ठीक से देख नहीं पाई थी आज दिन में देखकर जान गईं कि लोगों ने जैसा कहा था बहुरानी उनकी कहीं बातों से ज्यादा सूरत से जितनी सुंदर हैं उतना ही हृदय से सुंदर हैं। वरना लोग तो….।

"बूढ़ी मां लोग क्या करते हैं उसे जानने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं मै तो वहीं करूंगी जो मेरे मन को अच्छा लगेगा।" वृद्ध महिला की बातों को बीच में कटकर कमला बोलीं।

बूढ़ी मां... मैं भी कितनी भोली हूं घर आए अतिथि को पानी भी नहीं पुछा।

इतना बोलकर बूढ़ी मां उठने लगीं। वृद्ध शरीर में इतनी जल्दी कहा हरकत होता हैं। इसलिए उन्हें भी थोडा वक्त लगा तब पुष्पा उन्हें रोकते हुए बोलीं... बूढ़ी मां आप बैठिए बस इतना बता दीजिए पानी किसमे रखा है में लेकर आती हूं।

बूढ़ी मां ने एक और इशारा करके बता दिया वहा पानी हैं और दुसरी ओर दिखाकर बोलीं वहा गिलास रखा हैं। पुष्पा खुद से पानी लेकर आई फ़िर एक गिलास कमला को दिया एक बूढ़ी मां को एक खुद लिया और बूढ़ी मां के पास बैठकर पानी पीने लग गईं। बूढ़ी मां एक घुट पानी पीने के बाद बोलीं...रानी मां ने आपने बच्चो को बिल्कुल अपने जैसा ही बनाया हैं। वो भी किसी से भेद भाव नहीं करती हैं इसीलिए तो यह के निवासियों ने उन्हें रानी मां की उपाधि दिया है और बहू भी बिल्कुल अपने जैसा ढूंढकर लाई हैं वरना महलों में रहने वाली एक गरीब की झोपड़ी में एक बार भूले से आ भी गई तो दुबारा कहा वापस नहीं आती हैं।

बूढ़ी मां की बातों का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुराकर टल दिया फ़िर उन्हें लेकर बहार आई ओर जमीन पे एक बिछावन बिछाकर बैठ गईं। यहां देखकर साजन के साथ आय दूसरे लोग पहले तो भौचकी रह गए फ़िर मुस्कुराकर अपने काम में लग गए। कुछ लोग झोपडी की पुनः निर्माण में लग गए। जिन्हें कमला ने अपनी और से निर्देश दे दिया कि झोपडी बिल्कुल सही से और जितनी जल्दी बनाया जा सकता हैं बना दिया जाएं।

आदेश मिलते ही निर्माण करने वाले अपने काम में लग गए और बूढ़ी महिला बस हाथ जोड़े धन्यवाद करने लग गई। लगभग दोपहर के बाद तक का समय बूढ़ी मां के पास रहने के बाद पुष्पा और कमला ने फ़िर आने की बात कहकर काम कर रहें लोगों के अलावा देख भाल के लिए दो ओर लोगों को छोड़कर साजन को साथ लिए वापस चल दिया।

शहर की भीड़ भाड़ से निकलकर सुनसान रास्ते पर कुछ ही दूर चले थे कि एक कार पूर्ण रफ्तार में होवर टेक करते हुए निकल गया। ड्राइवर खिसिया कर गली देने ही वाला था कि उसे ध्यान आया उसके साथ कौन कौन है। तब किसी तरह जीभाह पर नियन्त्रण पाया और अपना ध्यान कार चलाने में लगा दिया।

वह से कुछ दूरी तय करके पहाड़ी रास्ते के घुमावदार मोड़ पे जैसे ही पूछा एक शख्स बीच रास्ते पर गिरा हुआ दिखा। कर रोककर ड्राइवर के साथ साथ पुष्पा और कमला निकलकर तुरंत उस शख्स के पास पूछा तब देखा वहा शख्स अचेत अवस्था में पड़ा हुआ हैं कई जगा चोट आया हैं। सिर और नाक मुंह से खून बह रहा हैं यह देखकर ड्राइवर बोला…मालकिन लगता है हमे ओवर टेक करके निकलने वाले कार से इसका एक्सीडेट हुआ है।

पुष्पा...बातों में वक्त बर्बाद न करके इन्हें जल्दी से हॉस्पिटल लेकर चलो।

कमला... अरे ये तो संभू है कल रात एक्सिडेंट होते होते बचा और आज एक्सिडेंट हों गया।

कल रात एक्सिडेंट की बात सुनकर पुष्पा चौक गई और कमला को सवालिया निगाहों से देखा लेकिन कमला अभी ननद के किसी भी सवाल का जवाब देने की मुड़ में नहीं थी उसे बस संभू की चिन्ता हो रही थीं जो इस वक्त अचेत पड़ा हुआ था।

साजन भी उनके पीछे पीछे आ रहा था। इनके कार को रुकता देखकर साजन भी जल्दी से वहा पहुंचा और सांभू को देखकर कमला की कही बात उसने भी दोहरा दिया और कमला ने उसे टोककर सहायता करने को कहा यथा शीघ्र संभू को दूसरे कार में डाल गया फ़िर साजन बोला... मालकिन आप दोनो महल लौट जाइए मैं संभू को हॉस्पिटल में लेकर जाता हूं।

पुष्पा और कमला ने साजन की बात नहीं माना और उसके साथ ही हॉस्पिटल को चल दिया। बरहाल कुछ देर में हॉस्पिटल पहुंच गए। मरीज की गंभीर हालत और कारण जानकर डॉक्टर बोला... देखिए ये एक दुर्घटना का मामला है जब तक पुलिस नहीं आ जाता तब तक मैं हाथ नहीं लगाऊंगा।

पुष्पा...डॉक्टर साहब आप इनका इलाज शुरू करें पुलिस से हम निपट लेंगे।

कमला…डॉक्टर साहब देर करना उचित नहीं होगा मरीज की हालत गंभीर है आप इलाज शुरू करें बाकि की करवाई होती रहेंगी।

डॉक्टर...देखिए जब तक पोलिस नहीं आ जाता तब तक मैं कुछ नहीं कर सकता।

पुष्पा और कमला बार बार डॉक्टर को मरीज की गंभीरता बता रहे थे और डॉक्टर पुलिस बुलाने पर अड़ा हुआ था। बल्कि नर्स ने पुलिस को कॉल भी कर दिया था और जब तक पोलिस नहीं आ जाता तब तक डॉक्टर मरीज को हाथ लगाने को राजी नहीं हों रहा था। तब साजन तैस में आकर बोला...मरीज यह भांभीर अवस्था में है ओर तूझे पुलिस केस की पड़ी है जानता भी है साथ में खड़ी ये दोनों एक राजा जी की बेटी है और दूसरी उनकी बहू हैं। अब सोच राजा जी को पता चला तूने इनकी बात नही मानी तो तेरा क्या होगा।

साजन की कहीं बातों से डॉक्टर भयभीत हों गया और माफी मांगते हुए तुरंत ही संभू को ओटी में ले गया। कुछ ही देर में पुलिस भी आ गया। पुष्पा और कमला से कोई भी सावल जवाब करता उससे पहले ही साजन ने दोनों का परिचय दे दिया और यह भी बता दिया कि एक्सीडेंट उनके कार से नहीं हुआ बल्कि किसी ओर कार से हुआ हैं और इन्होंने बस इशानियत का दायित्व निभाया हैं। अपनी ओर से तारीफ स्वरूप कुछ शब्द बोलकर पुलिस अपनी करवाई में लग गए।

लगभग दो घंटे के बाद डॉक्टर ओटी से निकला और सभी डॉक्टर के पास पहुचकर संभू का हाल पूछा तब डॉक्टर बोला... मरीज का हाल बहुत गंभीर हैं। कई हड्डियां टूट गई है सिर में बहुत गंभीर चोट आया हैं इसलिए मैं अभी कुछ नही कहा सकता बस दुआ कर सकते हैं कि उसे कुछ न हों।

कमला... तो यह क्या कर रहा हैं जा जाकर दुआ कर अगर मरीज को कुछ हुआ तो तेरी खैर नहीं हम तुझसे कह रहे थे मरीज का हाल गंभीर है लेकिन तू बस अपनी बात पर अड़ा हुआ था।

पुष्पा... अगर उस मरीज को कुछ भी हुआ तो तू फ़िर कभी किसी मरीज का इलाज नहीं कर पाएगा अब जा यह से नहीं तो कुछ ही देर में तू भी उसी मरीज के पास लेटा हुआ होगा।

मामला गरमाता देखकर डॉक्टर वहा से खिसक लिया लेकिन जाते जाते उसे एक बार फिर सुनने को मिला "अब बहार तभी आना जब कोई अच्छी खबर हो वरना अंदर ही रहना।" यह बात कमला ने बोला था।

पुलिस... मैडम उस पर भड़कने से क्या होगा वो अपना काम कर तो रहा हैं।

पुष्पा... इंस्पेक्टर साहब उसने मरीज की इलाज में ख़ुद से देर किया हम उसे बार बार कह रहे थे कि मरीज का हाल गंभीर है लेकिन वो एक ही बात पे अड़ा हुआ था पुलिस जब तक नहीं आएगा तब तक हाथ नही लगाएगा। अगर आप ने उसकी पैरवी की तो आप के लिए अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा का गर्म मिजाज देखकर पुलिस वाला भी चुप हो गया। कमला और पुष्पा भिन्नया सा वहीं बैठ गईं। कुछ देर में पुलिस वाला साजन को किनारे ले जाकर बोला…यार राजा जी की बेटी और बहू बहुत नाराज हों गई है तू एक काम कर इन्हें महल वापस भेज दे।

साजन... अरे इंस्पेक्टर साहब मेरी कहा मानेंगे आप खुद ही कह दो।

इंस्पेक्टर... अरे समझ न भाई।

खैर कुछ देर में साजन दोनों के पास पहुंचा लेकिन हिम्मत जुटा कर कह नहीं पा रहा था तब बार बार पुलिस वाला इशारे से कहने को बोल रहा था। बरहाल कुछ देर की खामोशी के बाद साजन बोला... मालकिन आप दोनों को आए बहुत देर हो चूका हैं अब ओर देर नहीं करना चाहिए आप दोनों महल वापस जाओ। मैं यह हूं जब तक डॉक्टर अच्छी सूचना नहीं दे देता तब तक न मैं यहां से हिलूंगा न ही इंस्पेक्टर बाबू यह से हिलेंगे।

खुद की न जाने की बाते सुनाकर इंस्पेक्टर मन ही मन साजन को गली देने लगा। दोनों (कमला और पुष्पा) का मन वापस जानें को नहीं हों रहा था लेकिन साजन की कहीं बात भी सच था। दोनों को महल से निकले हुए बहुत वक्त हों चुका था। इसलिए अनिच्छा से दोनों महल वापस जानें को राजी हो गए। जाते जाते पुष्पा बोलीं... साजन देखना हमारे जाते ही इंस्पेक्टर बाबू भी न चला जाए अगर ऐसा करते हैं तो मुझे बताना फ़िर इनके साथ किया होगा ये भी नहीं जान पाएंगे।

इतना कहकर पुष्पा और कमला चले गए और इंस्पेक्टर बाबू खीसिया कर बोला…मुझे यह फसकर तूने अच्छा नहीं किया।

साजन... अरे बाबा मैं तुम्हें रोक थोड़ी न रखा हैं जाओ जहां जाना हैं लेकिन छोटी मालकिन जैसा कह गई है मैं भी नहीं जानता तुम्हारे साथ क्या होगा। तुम भी नहीं जानना चाहते तो चुप चाप यह बैठ जाओ।


आगे जारी रहेगा….
 

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