Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
Update - 5


समय अपने गति से चल रहा था। समय के गति के साथ साथ सभी के जीवन से एक एक कर दिन काम होते जा रहे थे। रावण खुद के रचे साजिश को ओर पुख्ता करने में लगा हुआ था। चाैसर की विसात बिछाए एक एक चाल को सावधानी से चल रहा था। रावण के बिछाए बिसात में पत्नि और बेटा मुख्य पियादा था। अपस्यु को बाप के बनाए रणनीति की जानकारी नहीं था इसलिए बाप जैसा कह रहा था वैसा ही व्यवहार कर रहा था। लेकिन सुकन्या को पति के रणनीति की जानकारी थी। जानकारी होते हुऐ भी भुल कर रहा था। न जाने क्यूं सुकन्या ऐसा कर रही थी न जानें सुकन्या के मन में क्या चल रहा था। रावण को आभास हो रहा था सुकन्या जान बूझ कर कर रही हैं। इसलिए दोनों में मत भेद हों जाया करता था जो कभी कभी झगड़े का रूप भी ले लेता था। कुछ दिन के मन मुटाव के बाद दोनों में सुलह हों जाया करता था। सुलह इस शर्त पर होता की सुकन्या मन मुताबिक सभी से व्यवहार करेंगी। थोडी टाला मटोली के बाद रावण सहमत हों जाया करता।

पिछले कुछ दिनों से राजेंद्र कुछ ज्यादा ही परेशान था। करण सिर्फ राजेंद्र जनता था। सुरभि ने कई बार पुछा पर राजेंद्र टाल दिया करता था। सुरभि भी जानने को ज्यादा जोर नहीं दिया। क्योंकि राजेंद्र सुरभि से छुपना पड़े ऐसा कोई काम नहीं करता था। धीरे धीर राजेंद्र की चिंताए बढ़ने लगा जो सुरभि से छुपा न रहा सका इसलिए सुरभि जानना चाहा तो इस बार भी राजेंद्र ने टाल दिया जिससे सुरभि भी चिंतित रहने लग गया। सुरभि को चिन्तित देख राजेंद्र से रहा न गया। इसलिए पुछ लिया।

राजेंद्र…सुरभि पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूं तुम कुछ परेशान सी रहने लग गई हों। बात क्या हैं? मुझे बता सकती हों।

सुरभि...यही सवाल तो मुझे आप से पुछना था।

राजेंद्र…तुम्हारा मतलब क्या हैं? तुम पुछना क्या चाहती हों?

सुरभि…सीधा सा मतलब हैं आप पिछले कुछ दिनों से अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार कर रहें हों। क्या आप मुझे बता सकते हों ऐसा क्यो?

राजेंद्र…तुम कैसे कह सकती हों मैं अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार कर रहा हूं। तुम्हे कोई भ्रम हुआ होगा।

सुरभि…मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ मैं देख रही हूं आप पिछले कुछ दिनों से चिड़चिड़ा हों गए हों बिना करण गुस्सा कर रहे हों। कोई बात हैं जो अपको अदंर ही अदंर खाए जा रहा हैं जिससे आप के चहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रहा हैं।

राजेंद्र…अब तो ये पक्का हो गया हैं। तुम भ्रम का शिकार हों गई हों। इसलिए मैं तुम्हें चिंतित और चिड़चिड़ा दिखाई दे रहा हूं।

सुरभि...सुनिए जी आप सभी से छुपा सकते हों, पर मुझसे नहीं हमारे शादी को बहुत समय हों गया हैं। इतने सालो में मैं आप'के नस नस से परिचित हों गयी हूं इसलिए आप मुझे सच सच बता दीजिए नहीं तो मैं आप'से रूठ जाऊंगी। आपसे कभी बात नहीं करूंगी।

राजेंद्र…ओ तो तुम मुझसे रूठ जाओगी। लेकिन ऐसा तो कभी हुए ही नहीं मेरी एक मात्र धर्मपत्नी मुझ'से रूठ गई हों।

सुरभी…आप मुझे बरगलाने की कोशिश न करें मैं आप'की बातो में नहीं आने वाली इसलिए जो आप छुपा रहे हों सच सच बता दीजिए।

राजेंद्र…ओ हों देखो तो गुस्से में कैसे गाल गुलाबी हों गया हैं। सुरभि तुम्हारे गुलाबी गालों को देख तुम पर बहुत प्यार आ रहा हैं। चलो न थोडा प्यार करते हैं।

इन दोनों की बातों को कोई सुन रहा था। हुआ ऐसा की रावण रूम से बाहर आया नीचे आने के लिए सीढ़ी तक पंहुचा ही था की सुरभि को राजेंद्र से बात करते हुए देख लिया, पहले तो रावण को लगा दोनों नार्मल बाते कर रहे होंगे लेकिन जब सुरभि बार बार राजेंद्र से जानने पर जोर दे रहीं थीं। और राजेंद्र बात को टालने की कोशिश कर रहा था। ये देख रावण का शक गहरा हों गया। इसलिए रावण जानना चाहा, राजेंद्र इतना टाला मटोली क्यों कर रहा था। इसलिए रावण छुप कर दोनों की बाते सुनने लग गया।

राजेंद्र की बातों को सुन सुरभि मुस्कुरा दिया फ़िर शर्मा कर नजरे झुका लिया, एकाएक ध्यान आया राजेंद्र भटकने, मन बदलने के लिए ऐसा बोल रहा हैं तब सुरभि झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली...आप को मुझ पर, न प्यार आ रहा हैं, न ही आप मुझ'से प्यार करते हों। आप झूठ बोल रहें हों, झूठे प्यार का दिखावा कर रहें हों,आप झूठे हों।

राजेंद्र…ओ हों सुरभि देखो न गुस्से में तुम्हारे गाल गुलाबी से लाल हों गए हैं अब तो मुझे तुम पर ओर ज्यादा प्यार आ रहा हैं। मन कर रहा हैं तुम्हारे लाल लाल गालों को चबा जाऊं।

पति की बाते सुन सुरभि मुस्करा दिया फ़िर मन ही मन बोली…आज इनको हों क्या गया? मुझसे प्यार करते हैं जताते भी हैं लेकिन आज ऐसे खुले में जरूर कुछ बात हैं जो मुझसे छुपाना चाह रह हैं इसलिए खुलेआम प्यार जाता रहें हैं जिससे मैं झांसे में आ जाऊं और जानें की कोशिश न करू। वहा जी आगर ऐसा हैं तो मैं जानकर ही रहूंगी। जानने के लिए मुझे क्या करना हैं? मैं भली भाती जानती हूं।

पति की परेशानी कैसे जानना हैं इस विषय पर सोच सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेर दिया। पत्नी को मुस्कुराते देख राजेंद्र बोला…क्या सोच रहे हों और ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हों?

सुरभि…आप यह पर प्यार करेंगे किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे इसलिए मैं सोच रहीं थी जब आप का इतना मन हों रहा हैं तो क्यों न मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लू। चलो रूम में चलते हैं फिर आपको जितना प्यार करना हैं कर लेना।

राजेंद्र…हां हां क्यों नहीं चलो न देरी किस बात की फिर मन में बोला…अच्छा हुआ सुरभि उस बात को भुल गई नहीं तो आज मुझ'से सच उगलवा ही लेती जिसे मैं छुपाना चाहता हूं।

राजेंद्र सोच रहा था सुरभि जो जानना चाहती थी उस बात को भुल गई लेकिन राजेंद्र यह नहीं जानता की सुरभि उससे बात उगलवाने के लिए ही उसके बात को मान गयी। रावण जो छुप कर दोनों की बाते सुन रहा था वो भी सोचने पर मजबूर हो गया...लगता हैं दादा भाई का किसी ओर महिला के साथ संबंध हैं जिसका पाता भाभी को लग गया होगा। शायद उसी बारे में भाभी पुछना चाहती हों और दादाभाई बचने के लिऐ टाला मटोली कर रहे हों। चलो अच्छा हैं अगर यह बात हैं तो मेरा काम ओर आसान हों जायेगा करने दो इनको जो करना हैं। मैं चलता हूं ।

रावण छुपते हुए निकलकर वापस रूम में चला गया। सुरभि उठकर मस्तानी चाल से चल दिया। राजेंद्र भी पीछे पीछे चल दिया। सीढ़ी से ऊपर जाते वक्त सुरभि कमर को कुछ ज्यादा ही लचका रही थी। चाल देख लग रहा था कोई हिरनी मिलन को आतुर हों, विभिन्न मुद्राओं में चलकर साथी नर को अपनी ओर आकर्षित कर रही हों।

राजेंद्र भी खूद को कब तक रोक कर रखता सुरभि की लचकती कमर और मादक अदा देख मोहित हों गया और चुंबक की तरह खींचा चला गया सुरभि सीढ़ी से ऊपर पहुंचकर पलटा राजेंद्र की ओर देख, उंगली से इशारे कर जल्दी आने को कहा, सुरभि को इशारे करते देख राजेंद्र जल्दी जल्दी सीढ़ी चढ ऊपर पहुंच गया। सुरभि जल्दी जल्दी राजेंद्र को ऊपर आते देख कमर को ओर ज्यादा लचकते हुए चल दिया, कमरे के पास पहुंच कर रूक गई फिर पलट कर सोकी और कामुक नजरों से राजेद्र को देखा। सुरभि के हाव भाव देख राजेंद्र मन ही मन बोला….आज सुरभि को हों क्या गया? मन मोहिनी अदा से मुझे क्यों आकर्षित कर रही है? कामुक नजरों से ऐसे बुला रहीं हैं जैसे हमारा मिलन पहली बार हों रहा हों लेकिन जो भी हों आज सुरभि ने शादी के शुरुवाती दिनों को याद दिला दिया।

सुरभि मंद मंद मुस्कुराते हुए दरवजा खोल अदंर जा'कर खड़ी हो गई। राजेंद्र कमरे में प्रवेश करते ही, सुरभि को देख मंत्र मुग्ध हो गया। कमर को एक तरफ बाहर निकल, ऊपरी शरीर को एक ओर झुका, एक हाथ कमर पर रख दूसरे हाथ से केशो को खोल पीछे से सामने की ओर ला रही थीं। सुरभि को इस मुद्रा में देख राजेंद्र के तन में जल रहा काम अग्नि ओर धधक उठा। राजेंद्र धीरे धीरे सुरभि की ओर कदम बढ़ाता गया। सुरभि उसी मुद्रा में पलटकर राजेंद्र को देखा उसी मुद्रा में पलटने से सुरभि के भौगोलिक आभा ओर ज्यादा निखर आया। जिसे देख राजेंद्र "aahaaaa" की आवाज निकाला फिर बोला… सुरभि लगता हैं आज जान लेने का विचार बना लिया हैं।

सुरभि होटों को दांतो से कटते हुए कामुक आवाज में बोली.... जान कौन किसकी लेगा बाद में जान जाओगे। आगे बढ़ने से पहले दरवजा अच्छे से बंद कर दीजियेगा नहीं तो हमे एक दूसरे की जान लेते किसी ने देख लिया तो जवाब देना मुस्किल हों जायेगा।

राजेंद्र पलटकर दरवजा बंद कर कुंडी लगा दिया फिर आगे बढ़ सुरभि के कमर में हाथ डाल अपनी ओर खींच चिपका लिया फिर सुरभि के गर्दन को झुकाकर एक चुम्बन अंकित कर दिया। जिससे सुरभि का बदन सिहर उठा और मूंह से एक मादक ध्वनि "ऊंऊंऊं अहाहाहा" निकला। आवाज में इतनी मादकता और कामुक भाव था कि राजेंद्र हद से ज्यादा काम विभोर हों सुरभि के गर्दन, कंधे पर चुम्बन पे चुम्बन अंकित किए जा रहा था। हाथ को आगे ले सुरभि के पेट को सहलाते हुए ऊपर की ओर ले जानें लगा। सुरभि एक हाथ राजेंद्र के हाथ पर रख उसके हाथ को आगे बढ़ने से रोक दिया। रुकावट का असर ये हुआ राजेंद्र ओर ज्यादा ललायित हो हाथ को बाधा से मुक्त करने लगा गया। राजेंद्र की सभी कोशिशों को सुरभि ने विफल कर दिया। विफलता से विरक्त हों राजेंद्र बोला…सुरभि मुझे क्यो रोक रहीं हों? तुम्हारे रस से भरी गागर में मुझे डूब जाने दो तुम्हारे जिस्म की जलती अग्नि में,मुझे भस्म हो जानें दो।
मेरे तन में जलती ज्वाला को बुझा लेने दो।

सुरभि समझ गई पति के मुंह से बात उगलवाने का वक्त आ गया l इसलिए सुरभि पलटकर राजेंद्र से चिपक गई फिर गले में बांहों का हर डाल दिया फिर बोली…अगर आप'को तन की ज्वाला बुझानी हैं तो मैं जो पूछू सच सच बता दिजिए फिर जितनी बुझानी हैं बुझा लेना नहीं तो आप'के तन कि अग्नि ऐसे ही जलता हुआ छोड़ दूंगी।

राजेंद्र...ahaaa सुरभि ये बातो का समय नहीं हैं चलो न बिस्तर पर काम युद्ध को शुरू करते हैं।

राजेंद्र कहकर सुरभि के सुर्ख होटों को चूमना चाहा लेकिन सुरभि होटों पर उंगली रख दूसरे हाथ से धक्का दे राजेंद्र को खुद से दुर कर दिया फ़िर सोकी से बोली…काम युद्ध बाद में पहले वार्ता युद्ध हों जाएं।

राजेंद्र हाथ पकड़ सुरभि को खीच लिया फिर खुद से चिपका कमर को कसकर पकड़ लिया फिर बोला…सुरभि मुझसे मेरे तन की ज्वाला सहन नहीं हों रहा इसलिए पहले जिस्म में जलती अंगार को ठंडा कर लूं फिर जो तुम पूछना चाहो पूछ लेना।

सुरभि…मेरे जिस्म में भी अंगारे दहक रहें हैं। मैं भी मेरे जिस्म में जल रही अंगारों को बुझाना चाहती हूं। इसलिए मैं जो पूछती हूं सच सच बता दो फिर दोनों अपने अपने जिस्म की ज्वाला बुझा लेंगे।

राजेंद्र कई बार प्रयास किया असफलता हाथ लगा। करण सुरभि मन बना चूका था जब तक राजेंद्र सच नहीं बता देता तब तक आगे नहीं बढ़ने देगा। आखिर सुरभि ने इतना प्रपंच सच जानने के लिए ही किया था। इतना ज्यादा रोका टोकी राजेंद्र से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए खीसिया गया फिर बोला...सुरभि तुम अपने पति को रोक रहीं हों। तुम जानती हों मैं अपने मन की इच्छा पूर्ण करने के लिए तुम्हारे साथ जोर जबरदस्ती से जो मुझे करना हैं कर सकता हूं।

राजेंद्र की बाते सुन सुरभि खुद को राजेंद्र से अलग कर थोड़ दूर खड़ी हो गई फिर बोली…आप एक मर्द हो और मर्द अपने मन की करने के लिए किसी भी औरत के साथ जोर जबरदस्ती कर सकता हैं। जो करना हैं आप भी मेरे साथ कर लिजिए लेकिन आप'के ऐसा करने से मेरे मन को कितना ठेस पहुंचेगा अपको जरा सा भी इल्म हैं।

सुरभि के बोलते ही राजेंद्र को ज्ञात हुआ, अभी अभी उसने क्या बोला जिससे सुरभि का मन कितना आहत हुआ। सुरभि के दिल को कितना चोट पहुंचा। राजेंद्र के जिस्म में जो काम ज्वाला धधक रहा था पल भर में सुप्त हों गया और राजेंद्र का मन ग्लानि से भर गया। इसलिए राजेंद्र सुरभि के पास आ सफाई देते हुए बोला…सुरभि मुझे माफ कर दो मैं काम ज्वाला में भिभोर हो खुद पर काबू नहीं रख पाया, जो मेरे मन में आया बोल दिया।

सुरभि की आंखे नम हों गईं थीं। सुरभि जाकर बेड पर बैठ गई फिर नम आंखो से राजेंद्र की ओर देख बोली…इसे पहले भी न जानें कितनी बार आप को तड़पाया था लेकिन आप'ने कभी ऐसा शब्द नहीं कहा, कहते हुए जरा भी नहीं सोचा मैं आप की पत्नी हूं मेरे साथ जोर जबरदस्ती करके खुद को तो शांत कर लेंगे। लेकिन आप के ऐसा करने से मेरे मन को मेरे तन को कितना पीढ़ा पहुंचेगा।

राजेंद्र...सुरभि हां मैं मानता हु इससे पहले भी तुमने मेरे साथ ऐसा अंगिनत बार किया हैं जिससे हम दोनों को अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुआ था लेकिन मैं पिछले कुछ दिनों से परेशान था। आज जब तुमने बार बार मना किया तो मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया और जो मन में आया बोल दिया अब छोड़ो न इन बातों को और मुझे माफ कर दो।

सुरभि…आप के परेशानी का करण जानें के लिए ही तो मैं आप'को बहका रही थीं सोचा था आप को तड़पाऊंगी तो आप तड़प को मिटाने के लिए मुझे परेशानी का करण बता देंगे लेकिन आप ने जो कहा उसे सुनकर आज मैं धन्य हों गई। जिसे जीवन साथी चुना वह अपनें इच्छा को पूर्ण करने के लिए मेरे साथ जोर जबरदस्ती भी कर सकता हैं।

राजेंद्र…kyaaaa तुम उन बातों को जानने के लिए ही सब कर रहीं थीं जो मेरे परेशानी का करण बाना हुआ हैं। सुरभि तुमने सोच भी कैसे लिया मैं तुम्हारे साथ जोर जबरदस्ती करके खुद को शान्त करुं लूंगा। सुरभि मैं हमेशा तुम्हारे मन का किया हैं। जब तुम्हारा मन हुआ तभी मैंने तुम्हारे साथ प्रेम मिलाप किया हैं।

सुरभि…हां मैं जानती हूं अपने हमेशा मेरा मान रखा हैं। मैंने भी आप'को कभी निराश नहीं किया। आप'के इच्छाओं को समझकर प्रेम मिलाप में खुद की इच्छा से आप'का संयोग किया लेकिन आज पूछने पर आप सच बताने को राजी नहीं हुए तो सच जानें के लिए मुझे ये रास्ता अपना पड़ा लेकिन मेरे अपनाए इस रस्ते ने आप'के मन में छुपी भावना से मुझे अवगत करा दिया। जिसके साथ मैं इतने वर्षों से रह रहीं हूं जिसके सभी सुख दुःख का साथी रही हूं। वह आज मेरे साथ जोर जबरदस्ती करके शारीरिक सुख पाना चाहता हैं।

राजेंद्र…सुरभि मैं जानता हूं जोर जबर्दस्ती से सिर्फ शारीरिक सुख पहुंचता हैं और मन मस्तिष्क को पीढ़ा पहुंचता हैं। मैं यह भी समझ गया हूं मेरे कहें दो शब्द जो सुनने में साधारण हैं लेकिन उसी शब्द ने मेरे प्रियतामा जो हमेशा मेरे बिना कहे मेरे इच्छाओं का ध्यान रखती आई हैं। मेरे परिवार को जोड़कर रखने की चेष्टा करती आई हैं उसके मन को बहुत चोट पहुंचा हैं और मुझसे रूठ गया हैं अब तुम ही बताओ तुम्हें मानने के लिए मैं क्या करूं?

सुरभि…मुझे मानने के लिए आप को कुछ करने की जरूरत नहीं हैं। आप वही करिए जिसके लिए आप को भड़काया था। शान्त कर लिजिए अपने तन की ज्वाला मिटा लिजिए आप की पिपासा।

सुरभि के कहते ही राजेंद्र हाथ बढ़ा सुरभि के कमर पर रख दिया फिर धीरे धीरे सहलाते हुए पेट पर लाया फ़िर नाभी के आस पास उंगली को घूमने लग गया जिससे सुरभि के तन में सुरसुरी होने लग गया। सुरभि निचले होंठ को दांतों के नीचे दबा चबाने लग गई और इशारे कर माना करने लग गईं। सुरभि के बदलते भाव और माना करते देख राजेंद्र बोला…मैं अपनी प्यास मिटा लूंगा तो मेरी सुरभि जो मुझसे रूठी हुई हैं मान जायेगी। बोलों सुरभि!

सुरभि हां न कुछ भी नहीं बोला बस राजेंद्र को देखने लग गई। नाभी के आस पास सहलाए जाने से सुरभि का हाव भाव बदलने लग गया। सुरभि के बदलते हाव भाव देख राजेंद्र हाथ को धीरे धीरे ऊपर की ओर सरकाने लग गया। सरकते हाथ का अनुभव कर सुरभि ने आंखे बन्द लिया फिर धीर धीरे मदहोश होने लग गई। सुरभि को मदहोश होता देख राजेंद्र थोड़ ओर नजदीक खिसक गया फ़िर हाथ को सुरभि के उभारों की ओर बढ़ाने लग गया। उभारों की ओर बढ़ते हाथ को महसूस कर सुरभि आंखें खोल दिया फिर राजेंद्र के हाथ को रोक कर बोला… हटो जी आप न बहुत बुरे हों। पत्नी रूठा हैं उसे मानने के जगह, बहका रहें हों।

राजेंद्र…मुझे तो पत्नी को मानने का यहीं एक तरीका आता हैं जो मेरे लिए कारगर सिद्ध होता हैं अब तुम ही बता दो ओर क्या करूं जिससे मेरी बीवी मान जाए।

सुरभि…बीबी को मनाना हैं तो उन बातों को बता दीजिए जिसे जानने के लिए आप की बीबी ने इतना कुछ किया लेकिन फायदा कुछ हुआ नहीं बल्कि बात रूठने मनाने तक पहुंच गया।

राजेंद्र…इसकी क्या गारंटी हैं जानने के बाद मेरी बीवी रूठ कर नहीं रहेगी
मान जाएगी।

सुरभि…रूठ कर रहेगी या मान जाएगी ये जानने के बाद ही फैसला होगा। आप बीबी को मना रहे हों इसलिए आप शर्त रखने के स्थिति में नहीं हों।

राजेंद्र…सुरभि मैं जिन बातों को छुपा रहा था उसके तह तक पहुंचने के बाद तुम्हें बताना चाहता था। लेकिन अब तुम्हें मनाने के लिए तह तक पहुंचने से पहले ही बताना पड़ रहा हैं।

सुरभि…आप जिस बात की तह तक पहुंचना चाहते हों। क्या पता बताने के बाद उस बात की तह तक पहुंचने में मैं आप'की मदद कर सकती हूं।

राजेंद्र…अरे हां मैं तो भूल ही गया था। मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।

सुरभि…ज्यादा बाते बनाने से अच्छा जो पूछा हैं बताना शुरू कीजिए।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
Update - 6

राजेंद्र…सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ था। सभी के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से छुपा नहीं पाया। मेरे परेशानियों में से सबसे बाड़ी परेशानी हमारा बेटा रघु हैं।

सुरभि…रघु ने ऐसा क्या कर दिया जो आप'के परेशानी का करण बाना हुए हैं। मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।

राजेंद्र…सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया। सुरभि रघु की शादी ही मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।

सुरभि…लड़की हम ढूंढ़ तो रहे है फिर रघु की शादी आप'के परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर रघु की शादी हों जायेगा। आप इसके लिए परेशान न हों।

राजेंद्र…मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं। सभी लड़कियां वैसा हैं जैसा हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जिस'के करण हां कहने के बाद न कह देते हैं।

सुरभि…न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।

राजेंद्र…बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात ये हैं बिना लड़के को देखे, बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।

सुरभि…आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।

राजेन्द्र…सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सभी लड़कियों को और उसके घर वालों को रघु की तस्वीर देख कर पसंद आ गया लेकिन अचानक उन्हें क्या हों जाता हैं? वो मना कर देते हैं।

सुरभि…ये आप क्या कह रहे हों? ऐसा कैसे हों सकता है? हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत भी नहीं हैं फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं?

राजेंद्र…यहीं तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी के परिवार वाले पहले हां कहा फिर मना कर दिया।

सुरभि…उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।

राजेंद्र…उन्होंने जो कारण बताकर मना किया, उसे सुनकर मेरा खून खोल उठा तुमने सुना तो तुम्हें भी गुस्सा आ जायेगा।

सुरभि…उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनकर अपको इतना गुस्सा आया।

राजेंद्र…उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत से बुरी आदत है उसका बहुत से लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी का जीवन बर्बाद हों जायेगा।

राजेंद्र की बाते सुन सुरभि गुस्से में आग बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली…उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर लांछन लगा रहें थें। मेरा बेटा सोने जैसा शुद्ध हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं, वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।

जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं उसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं थीं। तेज आवाज को सुन सुकन्या, सुरभि के रूम के पास गईं दरवाज़ा बन्द था और अंदर से हल्की हल्की आवाजे आ रहा था इसलिए दरवाजे से कान लगाए अंदर हों रहीं बातों को सुनने लग गई। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला...इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं अच्छे से जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।

सुरभि…सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं खुद उसे सजा दूंगी।

राजेंद्र…उसे तो मैं ढूंढूंगा ही फिर सजा भी दूंगा। तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।

सुकन्या जो छुपकर बाते सुन रहीं थीं। साजिश की बात सुन सुकन्या के कान खडे हों गए फिर मन में बोली…जेठ जी के बातो से लग रहा हैं जेठ जी को हमारे बनाए साजिश की जानकारी हों गया होगा। ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले पूरी बाते तो सुन लू ।

सुरभि…आप कहना क्या चाहते हों खुल कर बोलो!

राजेंद्र…पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।

सुरभि…अपने गुप्तचर रख रखे हैं जो एक एक करके गायब हों रहे हैं। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो पड़ी।

राजेंद्र…सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करती हों, राज परिवार से हैं, इतने जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। उनका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सभी न जानें कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे ऑफिस फोन कर कुछ बाते बताया था। बाकी की बाते मिल कर बताने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्तचर की तरह गायब हों गया होगा।

सुकन्या छुप कर सुन रहीं थीं उसे ज्यादा तो नहीं कुछ कुछ बाते सुनाई दे रही थीं। गुप्तचर की बात सुन सुकन्या मन में ही बोली...ओ हों तो जेठ जी ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन उनको गायब कर कौन रहा हैं? मुझे पूरी बाते सुननी चाहिए।

दरवाजे से कुछ आवाज सुनाई दिया इसलिए सुरभि का ध्यान दरवाजे की ओर गईं। तब सुरभि पति के मुंह पर उंगली रख चुप रहने को कहा फिर आ रही आवाज़ को ध्यान से सुनने लग गईं। हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लग गई कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए शक को पुख्ता करने के लिए सुरभि बोली…दरवाजे पर कौन हैं? कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।

अचानक सुरभि की आवाज़ सुन सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लग गई जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा होने लग गया। ज्यादा और स्पष्ट आवाज़ होने से सुरभि का शक यकीन में बदल गया। आवाज देते हुए सुरभि दरवाजे की ओर चल दिया। सुरभि की आवाज़ सुन सुकन्या मन में बोली...कोई छुपकर बाते सुन रहा हैं ये सुरभि को कैसे पाता चल गया। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती। सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। जो भी पूछे मुझे संभाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जायेगा।

सुरभि आ'कर दरवाज़ा खट से खोल दिया। सामने सुकन्या को खड़ी देख सुरभि बोली…छोटी तू कब आई कुछ काम था?

सुकन्या…दीदी मैं तो अभी अभी आप'से मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?

सुरभि…मुझे कैसे पाता चला ये जानकर तू क्या करेंगी ? तू बता मेरे रूम में कभी आती नहीं फिर आज कैसे आ गईं?

सुरभि की बाते सुन सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी क्या ज़बाब दे, सुकन्या को सकपते देख सुरभि मुस्कुराते हुए बोली…आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर, अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे बात करना हैं तो बाद में कर लेना।

फीकी सा मुस्कान लवों पे खिला न चाहते हुए भी सुकन्या चल दिया। जब तक सुकन्या रूम तक न पहुंच गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देख रहीं थी। सुकन्या रूम के पास पहुंचकर सुरभि की ओर देखा फ़िर रूम में घूस गई। सुरभि ने दरवजा बंद किया फिर मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई फ़िर बोली…छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।

राजेंद्र…kyaaaaa सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे रूम के अंदर तो छोड़ो रूम के आस पास भी नहीं आई फिर आज कैसे आ गई।

सुरभि…आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं ये आप भी जानते हो और मैं भी जानती हूं। आप ये बताइए गुप्त चर ने आप'को किया बताया था। थोड़ा धीमे बोलिएगा तीसरा कोई सुन न पाए।

राजेंद्र…उसने बोला महल में से कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।

सुरभि…महल से कोई साजिश कर रहा हैं। आप'ने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।

राजेंद्र…पुछा था! कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं, सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।

सुरभि…अब तो वह लापता हों गया। नाम कैसे पता चलेगा?

राजेंद्र…यहीं तो समझ नहीं आ रहा। महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।

राजेंद्र से महल की बात सुन सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। सोचते हुए हावभाव पाल प्रति पाल बदल रहा था। सुरभि को देख राजेंद्र समझने की कोशिश कर रहा था, सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे पर कर रहीं हैं। जब कुछ समझ न आया तो सुरभि को हिलाते हुए राजेंद्र बोला…सुरभि कहा खोई हुई हों?

सुरभि…आप'के कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हों सकता हैं।

राजेंद्र…मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।

सुरभि…जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई ओर भी होता था।

राजेंद्र…अकेले ही जाता था कभी कभी मुंशी को भी साथ ले जाया करता था। बाद में तुम्हे और रावण को बता दिया करता था।

सुरभि…ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।

राजेंद्र…सुरभि करण है, बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत, जिसका संबंध रघु के शादी से हैं।

सुरभि…वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सभी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?

राजेंद्र…वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति जिसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान होगा और जो प्रत्यक्ष संपत्ति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।

सुरभि...ओ तो ये बात हैं। मुझे लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ, इसका करण कहीं न कहीं गुप्त संपत्ति ही हैं।

राजेंद्र…मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति कहा रखा हैं ये राज मेरे आलावा कोई नहीं जनता, सिर्फ वसीयत के बारे में मैं, हमारा वकील दलाल और अब तुम जान गई हों। हम तीनों के अलावा किसी चौथे को गुप्त संपत्ति की जानकारी नहीं हैं।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
पाठकों से रिक्वेस्ट हैं कहानी रीड कर रहे हों तो मौजूदगी का प्रमाण छोड़ कर जाओ।
 
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
Update - 7

सुरभि…मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहा हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं उसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।

राजेंद्र…सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर सकता क्योंकि वो वसीयत के बारे में कुछ भी नहीं जानता रहीं बात दलाल की वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता आया हैं।

सुरभि…आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों। आंख मूंद कर आप सभी पर जो भरोसा करते हों, इसी आदत के कारण आज हम मुसीबत में फंसे हैं।

राजेंद्र…तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।

सुरभि…भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं, इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं इस वक्त आप सभी को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।

राजेंद्र…अनर्थ तो हों गया हैं फिर भी मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता तुम तो मेरी आदत जानते हों अब तुम ही बताओं मैं किया करूं।

सुरभि…आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं। ये बहुत ही विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं संभले तो बाद में हमे संभालने का मौका नहीं मिलेगा।

राजेंद्र…देर सवेर संभाल तो जाएंगे लेकिन मैं चाहकर भी अपनो पर शक नहीं कर सकता तुम समझ क्यों नहीं रहें हों। तुम कोई ओर रस्ता हों तो बताओं।

सुरभि…आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप'को कितनी बार कहा, ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करो लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। आप'का अंधा विश्वास करना ही आप'के सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।

राजेंद्र...सुरभि कहना आसान हैं लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

सुरभि…मैं कौन सा आप'से कह रहा हूं, जा'कर उनके गिरेबान पकड़ो ओर कहो तुम'ने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया? मैं बस इतना कह रहीं हूं आप उन्हे शक के केंद्र में ले'कर उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करों।

राजेंद्र…ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।

सुरभि…हां मैं खुश हूं ओर कुछ रह गया हों तो बोलों वो भी पूरा कर देती हूं।

राजेंद्र…अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसे शुरू करे।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप कौन से प्यार की खेल, खेलने की बात कर रहें हों। मुझे आप'के साथ कोई प्यार का खेल नहीं खेलना।

राजेंद्र…सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बन मुझे रिझा रही थीं। मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। मुझ पर इतना जुल्म न करों मैं सह नहीं पाऊंगा।

सुरभि उठ गई फिर पल्लू को सही करते हुए दूर हट गईं ओर बोली…आप'को जिस काम के लिए रिझाया था वो हों गया। प्यार का खेल खेलने का ये सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक प्रतिक्षा कर लिजिए।

राजेंद्र उठा फिर सुरभि के पास जानें लग गया सुरभि पति को पास आते देख ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लग गई। सुरभि को पीछे जाते देख राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लग गया राजेंद्र को लंबा डग भरते देख सुरभि मुस्कुराते हुए जल्दी जल्दी पूछे होने लग गई। पीछे होते होते जा'कर दीवाल से टिक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से टिकते देख मुस्कुरा दिया फिर सुरभि के पास जा कमर से पकड़कर खुद से चिपका लिया ओर बोला…सुरभि अब कहा भाग कर जाओगी अब तो तुम्हारा चिर हरण हो'कर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।

सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे, आप'को इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।

राजेंद्र...गजब करती हों तुम्हें क्यों छोडूं मैं नहीं छोड़ने वाला मैंने तो ठान लिया आज तो पत्नी जी को ढेर सारा प्यार करके ही रहूंगा।

राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा दिया सुरभि राजेंद्र के होटों पर ऊंगली रख दिया फिर बोली…हटो जी आप'का ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं आप'का ढेर सारा प्यार।

राजेंद्र…तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो ओर किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। मेरी तो एक ही रानी हैं। जितना प्यार करना चाहूं करने देना होगा। नहीं तो दूसरी रानी ले आऊंगा ही ही ही

सुरभि...लगता हैं आप'का मन मुझ'से भर गया जो आप दूसरी लाने की बात कर रहे हों। जाओ जी मुझे आप'से बात नहीं करना हैं ले आओ दूसरी बीवी।

इतना बोल सुरभि मुंह फूला लिया ओर राजेंद्र का हाथ जो सुरभि के कमर पर कसा हुआ था उससे खुद को छुड़ाने लग गई। तभी कोई "राजा जी, राजा जी"आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया आवाज सुन राजेंद्र सुरभि को खुद से ओर कस के चिपका लिया फिर बोला…कौन हों मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।

शक्श…राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं आप'को उनके साथ कहीं जाना था।

धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी को किस काम के लिए बुलाया था ओर कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ दिया फ़िर बोला…धीरा तुम जाओ ओर मुंशी को जलपान करवाओ मैं अभी आया।

धीरा…जी राजा जी।

इतना कह धीरा चल दिया। राजेंद्र निराश हो कपडे लिया फिर बाथरूम की ओर चल दिया। राजेंद्र को निराश देख सुरभि मुस्कुराते हुए बोली….क्या हुआ आप'ने मुझे छोड़ क्यों दिया। आप'को तो ढेर सारा प्यार करना था। प्यार करिए न देखिए मैं तैयार हूं।

राजेंद्र…जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।

राजेंद्र को ठेंगा दिखा सुरभि रूम से बाहर चल दिया। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों'कर रूम से बहार आ बैठक की ओर चल दिया। जहां मुंशी बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था। राजेंद्र को देख मुंशी खडा हों गया फिर नमस्कार किया। मुंशी को नमस्कार करते देख राजेंद्र मुस्करा दिया फिर बोला…मुंशी तुझे कितनी बार कहा तू मुझे देख नमस्कार न किया कर, सीधे आ'कर गले मिला कर पर तू सुनता ही नहीं तुझे ओर कितनी बार कहना पड़ेगा।

राजेंद्र जा'कर मुंशी के गले मिला फिर अलग होकर मुंशी बोला…राना जी ये तो आप'का बड़प्पन हैं। मैं आप'के ऑफिस का एक छोटा सा नौकर हूं ओर आप मालिक हों। इसलिए आप'का सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।

राजेंद्र…मुंशी तू अपना धर्मग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।

मुंशी…राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।

राजेंद्र…भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।

दोनों हंसते मुस्कुराते घर से चल दिया लेकिन कोई हैं जिसे इनका याराना पसंद नहीं आया और वो हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनकर रूम से बाहर आ गई फिर राजेंद्र और मुंशी के दोस्ताने व्यवहार को देख तिलमिला गई ओर बोली…इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखी हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।

सुकन्या को अकेले में बदबड़ते देख सुरभि बोली…छोटी क्या हों गया, अकेले में क्यों बडबडा रहीं हैं?

सुकन्या…कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।

सुरभि…तो क्या भूत से बाते कर रहीं थीं?

सुकन्या आ'कर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लग गई सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था ओर सभी को सोचने पर मजबूर कर चुकी थीं। इसलिए सुकन्या का आदर्श व्यवहार करना किसी के गले नहीं उतर रहा था। सभी को ताकते देख सुकन्या रतन और धीरा से बोली…क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना अपना काम करों।

सुकन्या कह मुस्कुरा दिया फिर इशारे से ही दोनों को जानें के लिए दुबारा कहा। तब दोनों सिर झटककर चल दिया। दोनों के जाते ही सुरभि बोली…छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलता तू कभी किसी रूप में होती हैं तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आता तेरे मन में किया चल रही हैं।

सुकन्या…दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं ओर गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।

सुरभि...मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहने लगीं तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनें व्यवहार से सभी को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

सुकन्या…दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने, मैं काम ही ऐसा करती हूं।

सुरभि…मैं भला क्यो तने मरने लगीं? तू छोड़ इन बातों को, ये बता तू आज मेरे रूम मे कैसे आ गई? इससे पहले तो कभी नहीं आई।

सुकन्या…अब तक नहीं आई ये मेरी भूल थीं। अब मैं रोज आप'के रूम में आऊंगी ओर आप'से ढेर सारी बातें करूंगी।

सुरभि…तुझे रोका किसने हैं तू कभी भी मेरे रूम में आ सकती हैं जितनी मन करे उतनी बाते कर सकती हैं।

ऐसे ही दोनों बाते करने लग गए। जब दो महिलाएं एक जगह बैठी हों तो उनके बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। दोनों देवरानी जेठानी को बातों में मशगूल देख धीरा बोला…काका आज इस नागिन को हों क्या गया? रानी मां से अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं। अच्छे से बाते कर रहीं हैं।

रतन…धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो जमा किया हुआ सभी ज़हर हम पर ही उगल देगी। उनके ज़हर का काट किसी के पास नहीं हैं। हमारे पास तो बिल्कुल नहीं!

धीरा…काका सही कह रहे हों, न जानें कब महल में ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ सकें।

दोनों बाते करने मैं इतने मग्न थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब ध्यान गया तो उसे देख दोनों सकपका गए फ़िर डरने भी लगें। रतन किसी तरह डर को काबू किया ओर बोला…छोटी मालकिन आप'को कुछ चाहिए था तो आवाज दे दिया होता। यह आने का कष्ट क्यों किया?

सुकन्या…आवाज़ दिया तो था। धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन सुनाई देता तब न, सुनाई देता भी कैसे, दोनों कामचोर बातों में जो माझे हुए थे। अच्छा ये बताओ तुम दोनों किस नागिन की बात कर रहें थें? कौन ओझा किस नागिन की फन कुचल, ज़हर वाली दांत तोड़ने वाला हैं।

सुकन्या की बाते सुन दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लग गए ओर सोचने लगे अब क्या जवाब दे? एक दूसरे को ताकते देख सुकन्या बोली…तुम दोनों एक दूसरे को तकना छोड़ कुछ बोल क्यों नहीं रहें? मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की ओर देखकर) दीदी ने तुम सभी को सिर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।

रतन समझ गया सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। तो रतन खुद का बचाव करने के लिए एक मन घड़ंत कहानी बना बताने लग गया।

"छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया। हम दोनों उस नागिन की बात कर रहें थे न जाने अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत तोड़ेगा।

रतन कि बात सुन धीरा समझ गया। एक झूठी कहानी बना सुकन्या को सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला...हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात कर रहा था। आप को किया लगा, हम महल की बात कर रहे थे जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं, तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे?

सुकन्या…अच्छा अच्छा ठीक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ, जल्दी से दो गिलास पानी ले'कर आओ काम चोर कहीं के।

सुकन्या कहकर चली गईं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रख धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने लग गए। बे तरतीब चल रही धड़कने कुछ काम हुआ तब रतन बोला...धीरा जल्दी जा नागिन को पानी पिला आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगलने आ जायेगी।

धीरा दो गिलास ले'कर एक प्लेट पर रखा फिर पानी भरते हुए बोला…काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लिया होता। तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।

रतन…बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा ओर पानी पिलाकर आ लगता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।

धीरा जा'कर दोनों को पानी दिया फ़िर किचन मे चला गया ओर अपने काम में लग गया। ऐसे ही दिन बीत गया। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। न जानें दोनों को घर लौटने में ओर कितना देर लगने वाला था। इसलिए बिना वेट किए सुरभि, सुकन्या रघु और अपश्यु खाना खा'कर अपने अपने रूम में चले गए। सुकन्या रूम में आ'कर दो पल स्थिर से नहीं रुक पा रहीं थीं। उसके मन में हल चल मची हुई थी। साथ ही पेट पर वजन भी पड़ रहा था क्योंकि दिन में सुनी सुरभि और राजेंद्र की बाते ओर अभी खाया खाना, दोनों मिलकर बदहजमी का कारण बनता जा रहा था। बदहजमी से छुटकारा पाने का उसे एक ही रस्ता दिखा, दिन में सुनी बाते पति को बता दिया जाएं। लेकिन रावण अभी तक घर नहीं लौटा था इसलिए सुकन्या परेशान हों'कर बोली…जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं। उसी दिन ये लेट आते हैं। ना जानें कब आयेंगे। ये बाते ओर कितनी देर तक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों का बोझ ढोती रहूंगी।

सुकन्या अकेले अकेले बडबडा रही थीं ओर ये सोच टहल रहीं थीं शायद टहलने से बेचैनी थोड़ा कम हों जाएं लेकिन फायदा कुछ हों नहीं रहा था। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौट आए। नौकरों को खाना लगाने को बोल हाथ मुंह धोने रूम में चले गए। रावण को देख सुकन्या एक चैन की स्वास लिया फिर बोली…आप आज इतने लेट क्यों आए? आप से कितनी जरूरी बात करना था ओर आप आज ही लेट आए। जिस दिन आपसे जरूरी बात करना होता हैं आप उसी दिन लेट आते हों। बोलों ऐसा क्यों करते हों?

रावण…अजीव बीबी हो खाना खाया कि नहीं खाया ये पुछने से पहले शिकायत करने लग गईं। तुम अपना दुखड़ा ही सुना दो आज तुम्हारे बातों से ही पेट भरा लुंगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या मुंह बना लिया फ़िर बोली…आप तो ऐसे कह रहें हों जैसे मुझे आप'की भूख की परवा नहीं जाइए पहले खाना खा'कर आइए फिर बात करेगें।

रावण...अरे तुम तो रूठने लग गईं। अच्छा बताओ किया कहना चाहते हों। मैं भुख बर्दास्त कर सकता हूं लेकिन तुम मुझसे रूठ जाओ ये मुझे बर्दास्त नहीं।

इतना कह रावण कान पकड़ लिया। जिससे हुआ ये सुकन्या के चहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए सुकन्या बोली...आप पहले खाना खाकर आइए फिर बात करते हैं।

रावण मुस्कुरा दिया फिर हाथ मुंह धोने बाथरूम चला गया। ईधर राजेंद्र रूम में पहुंचा, सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देख किताब बंद कर साइड में रख दिया फिर बोली....आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं?

राजेन्द्र…कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं?

किताब के बरे मे जानें की ललक देख सुरभि को खुराफात सूजा इसलिए मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली…कामशास्त्र पढ़ रहीं थी। किताब के बरे मे ओर कुछ जानना हैं।

राजेन्द्र…ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा कम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।

सुरभि…अधूरा कम बाद में पूरा कर लेना अभी जा'कर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाला हैं।

राजेन्द्र…लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।

सुरभि…आप'की रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं ओर आप'का तो कोई खोज खबर ही नहीं था।

राजेंद्र…अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।

दोनों एक दुसरे को देख मुस्कुरा दिया फिर राजेन्द्र हाथ मुंह धो'कर कपडे बादल खाना खाने चल दिया। जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते करते भोजन करने लग गए। भोजन करने के बाद एक दूसरे को गुड नाईट बोल अपने अपने कमरे में चले गए। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों गई

सुकन्या…भोजन करने में कितना समय लगा दिया। इतनी देर तक क्या कर रहें थें?

राजेन्द्र…दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात कर रहा था इसलिए खाना खाने में थोड़ा ज्यादा वक्त लग गया। तुम बताओ क्या कहना चाहते हों?

सुकन्या…मुझे लगता हैं सुरभि और जेठ जी को हमारे साजिश के बारे में पता चल गया हैं।

ये सुन रावण के पैरों तले जमीन खिसक गया। उसे अपने बनाए साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लग गया। जिसे छुपाने के लिए न जानें कितने कांड रावण ने किया फिर भी हूआ वोही जिसका उसे डर था लेकिन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझ नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जा'कर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला... हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। तुम्हें कैसे पता चला? ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।

सुकन्या…इतनी सी बात के लिए जेठ जी भला आपको क्यो मरने लगे?

रावण…इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं। तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चला?

सुकन्या…आप'के जानें के बाद मैं कुछ काम से निचे गई जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा। मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लग गई। सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगता हैं कोई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए ओर आगे जो जो सुकन्या छुप कर सूना था एक एक बात बता दिया जिसे सुनकर रावण बोला...ये तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं। मुझे लगता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला नहीं तो मैं आज महल में नहीं जेल में बंद होता या फिर दाद भाई मेरा खून कर देते।

सुकन्या…आप क्या कह रहे हो? जेठ जी आप'का खून क्यों कर देते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सभी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई जेठ जी आप'को जेल भी तो भिजवा सकते हैं।

रावण…सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।

सुकन्या…आप कहना क्या चाहतें हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन मैं इतना तो समझ गई हूं आप'ने मुझ'से बहुत कुछ छुपा रखा हैं। बताइए न आप क्या छुपा रहे हों?

रावण…हां बहुत कुछ हैं जो मैंने तुम्हे नहीं बताया। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ ओर पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं।

सुकन्या…मुझे जहां तक जानकारी हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं। तो फ़िर ओर रह ही क्या गया? जिसे आप पाना चाहते हों।

रावण…सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं जिसे पा लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।

गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुन सुकन्या अचंभित हों गई। एक पल के लिए सुकन्या की आंखें मोटी हों गई। जैसे लालच उस पर हावी हों रहा हों एकाएक सुकन्या सिर को तेज तेज झटका देने लग गई। ये देख रावण बोला...सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।

सुकन्या…कैसे खुद पर नियंत्रण रख पाऊं न जानें आप कैसे खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं।

रावण...खुद पर नियंत्रण रखना होगा नहीं तो हमारे किए कराए पर पानी फिर जायेगा फ़िर गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा। जिसकी जानकारी सिर्फ दादाभाई को हैं। जब तक मैं जानकारी न निकल लेता तब तक खुद पर नियंत्रण रखना होगा।

सुकन्या…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ जेठ जी जानते हैं। तो फिर आप को कैसे पता चला?

रावण…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था। जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। दलाल मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उससे गुप्त सम्पत्ति कहा रखा हैं पूछा तो उसने कहा उसे सिर्फ वसीयत की जानकारी है गुप्त संपत्ति कहा रखा है वो नहीं जनता तब हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जानने के लिए साजिश रचना शुरू कर दिया।

रावण ने आगे कहा…हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी होगा। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेजकर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा दिया करता था। जो नहीं मानते उनको रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं, ऐसी झूठी खबर दिया करता था। ये जानकर लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने से मना कर देते थे।

रावण...मैंने दादाभाई पर भी नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चल जाता, दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गए ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बरे में पाता चल गया फिर मैं उन गुप्तचरों को ढूंढूं ढूंढूं कर सभी को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहा होगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या अचंभित रह गईं उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहीं थीं। सुकन्या को तकते देख रावण बोला…सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।

सुकन्या…जिन्दा हूॅं लेकिन आप'से नाराज़ हूं आप'ने इतना बड़ा राज मुझ'से छुपाया और इतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।

रावण…गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ रहा हैं मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।

सुकन्या…अब मैं आप'के साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी। हमे आगे क्या करना चाहिए? जब साजिश की बात खुल गई हैं। तो देर सवेर जेठ जी साजिश करने वाले को ढूंढ लेंगे। तब हमारा क्या होगा?

रावण…दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें यही रुक जाना पड़ेगा फिर आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।

सुकन्या…ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगा फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा। ऐसा हुआ तो गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा।

रावण…अभी के लिए हमें रुकना ही पड़ेगा नहीं तो हमारा भांडा फुट जायेगा। आगे चल कर मैं कोई न कोई रस्ता ढूंढ लुंगा।

सुकन्या…ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।

दोनों साथ में लेट गए रावण थका हुआ था। इसलिए लेटने के कुछ वक्त बाद नींद की वादी में खो गया लेकिन सुकन्या को नींद नहीं आ रहीं थीं। एक हाथ सिर पे रख सुकन्या मन ही मन बोली...मैंने थोड़ा लालची होने का ढोंग क्या किया अपने मुझे सभी राज बता दिया। मुझे उम्मीद नहीं था आप इतने लालची निकलोगे मुझे तो लगता हैं मैं एक गलत इंसान से शादी कर लिया। पहले जान गया होता तो आप से शादी ही न किया होता। आप इसी लिए मुझे बार बार दिखावे की जिंदगी जीने को कह रहे थें। लेकिन आप नहीं जानते मैं दिखावे की जिंदगी ही जी रहीं हूं। न जानें कब तक ओर मुझे बुरे होने का ढोंग करना पड़ेगा। अब मुझसे ओर नहीं होता हे भगवान कुछ ऐसा कर जिससे मुझे दिखावे की जिंदगी न जीना पड़े।

कुछ वक्त तक ओर खुद के बरे मे सोच सोच कर सुकन्या करवटें बदलती रहीं फिर सो गई। उधर सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लगे हुए थे। दोनों काम कलां में मग्न थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक किसी को नहीं हुआ।

आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही। यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
Update - 8

रात के तीसरे प्रहर में अचानक रावण की नींद टूट गया। बेड के बगल में रखा पानी का जग उठा पीना पिया फिर लेट गया। एक बार नींद टूटने के बाद दुबारा नींद आ नहीं रहा था। तो लेटे लेटे रावण कुछ सोच रहा था। सोचते सोचते अचानक आज सुकन्या से हुई बातों को सोचने लग गया। दादाभाई को आगर सच पाता चल गया तो क्या हों सकता हैं? आगर पाता नहीं चला तो कैसे बचा जाए जिससे दादाभाई को पता न चले? इसी पर विचार करते हुए रावण कभी इस करवट तो कभी उस करवट, करवाटें बदल रहा था। उसका मन विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहा था। उसे आगे किया करना चाहिए। जिससे उसके रचे साजिश का पर्दा फाश होने से बचा रह सके। रावण यह भी सोच रहा था। उससे कहा चूक हों गया। जब उसे कोई रस्ता नज़र नहीं आया तो वकील दलाल को इस विषय में बताना सही समझा। इसी सोचा विचारी में रात्रि के अंतिम पहर तक जागता रहा फ़िर सो गया। सुबह उठ कर बैठें बैठे सुकन्या अंगड़ाई ले रही थीं तभी उसकी नज़र घड़ी पर गईं, समय देखकर सुकन्या अंगड़ाई लेना भूल गई ओर बोली...आज फिर लेट हों गयी न जानें कब जल्दी उठने के नियम में बदलाव होगा। मैं तो तंग आ गईं हूं।

सुकन्या…सुनो जी जल्दी उठो कब तक सोते रहोगे।

रावण…कुनमुनाते हुए अरे क्या हुआ सोने दो न बहुत नींद आ रहा हैं।

सुकन्या...रात भार सोते रहें उससे भी जी नहीं भरा जल्दी उठो सुबह हों गई हैं। देर हों गया तो दोपहर तक भूखा रहना पड़ेगा।

रावण उठकर बैठा फिर जम्हाई लेकर बोला...इतनी जल्दी सुबह हों गया अभी तो सोया था।

सुकन्या…नींद में ही भांग पी लिया या रात का नशा अभी तक उतरा नहीं जल्दी उठो हम लेट हों गए हैं।

इतना कह सुकन्या कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई। रावण बैठ बैठें आंखे मलता रहा। सुकन्या के बाथरूम से निकलते ही रावण बाथरूम में फ्रैश होने चला गया। रावण के आते ही दोनों नाश्ता करने चल दिया। रावण जाते समय ऐसे चल रहा था जैसे किसी ने उस पर बहुत बड़ा बोझ रख दिया हों। नींद पूरा न होने का असर रावण के चहरे पर दिख रहा था। रावण डायनिंग टेबल पर ऐसे बैठा था जैसे कोई पुतला हों। ये देख राजेंद्र बोला...रावण ऐसे क्यों बैठा हैं जैसे कोई पुतला बैठा हों। तेरा तबियत तो ठीक हैं।

रावण…दादाभाई तबियत ठीक हैं रात को देर से सोया था तो नींद पूरा नहीं हुआ इसलिए ऐसा लग रहा हैं जैसे शरीर में जान ही नहीं हैं।

सुरभि और राजेंद्र एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिया फिर नाश्ता सर्व होते ही नाश्ता करने लग गए। नाश्ता करते करते एक नज़र अपश्यु को देखा फ़िर राजेंद्र बोला...अपस्यू बेटा इस सत्र में पास हों जाओगे या उसी कॉलेज में ढेरा जमाए बैठे रहना हैं।

अपश्यु का ध्यान नाश्ते पर ही था। इसलिए बड़े पापा की बाते सून हड़बड़ा गया फिर बोला…बड़े पापा पूरी कोशिश कर रहा हूं इस बार पास हों जाऊंगा।

राजेंद्र...कोशिश कहां कर रहें हों कॉलेज के अदंर या बहार। तुम कॉलेज के अदंर तो कदम रखते नहीं, दिन भर आवारा दोस्तों के साथ मटरगास्ती करते फिरते हों, तो पास किया ख़ाक हों पाओगे।

अपश्यु…बड़े पापा मैं रोज कॉलेज जाता हूं। कॉलेज के बाद ही दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।

राजेंद्र…सफेद झूठ तुम घर से कॉलेज के लिए निकलते तो हों लेकिन पहुंच कहीं ओर जाते हों। तुम्हारा कॉलेज घर से इतना दूर भी नहीं हैं जो तुम दिन भर में कॉलेज पहुंच ही नहीं पाते हों।

खुद की हरकतों की पोल खुलने से अपश्यु सिर झुका लिया। ये देख रावण बोला...अपश्यु ये क्या सुन रहा हूं? तुम कॉलेज न जाकर कहीं ओर जाते हों? बोलों कहा जाते हों?

अपश्यु…पापा कॉलेज ही जाता हूं लेकिन कभी कभी बंक करके दोस्तों के साथ घूमने चला जाता हूं।

राजेन्द्र…आगर तुम कभी कभी कॉलेज बंक करते हों तो प्रिंसिपल साहब ऐसा क्यों कह रहें थें तुम बहुत ही कम कॉलेज जाते हों। बोलों क्या उन्होंने झूठ बोला है।

अपश्यु बोला कुछ नहीं सिर्फ सिर झुकाए बैठा रहा ये देख सुकन्या बोली...अपश्यु चुप क्यों हैं कुछ बोल, कॉलेज के बहाने कहा जाता हैं? बेटा पढाई से मुंह मोड़ेगा तो ग्वार बनकर रह जायेगा। माना की पढाई के साथ घूमना फिरना भी जरूरी हैं। उसके लिए कॉलेज बंक क्यों करना? हफ्ते में एक छुट्टी मिलता हैं उस दिन जीतना घूमना हैं घूम लिया कर।

अपश्यु का सिर निचे का नीचे ही रहा एक पल के लिए भी नहीं उठा सिर नीचे किए ही मन ही मन प्रिंसिपल को गाली दिए जा रहा था। अपश्यु का सिर नीचे देख रावण बोला... तुम सिर झुकाए बैठे हों इसका मतलब दादा भाई जो कह रहे हैं सच कह रहें हैं। अपश्यु कान खोल कर सुन लो आज के बाद एक भी दिन कॉलेज बंक किया तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

अपश्यु…जी पापा।

राजेन्द्र...अपश्यु, बेटा हों सकता है तुम्हें हमारी बातों का बुरा लग रहा होगा। हमारी बातों पर गौर करना हम तुम्हारे भाले के लिए कह रहें हैं।

रघु अपश्यु के बगल में ही बैठा था। अपश्यु को सिर झुकाए बैठा देख उसके कंधे पर हाथ रखा फ़िर बोला...छोटे कॉलेज लाईफ को इंजय करना चाहिए लेकिन इतना भी नहीं की फ्यूचर ही खराब हों जाएं अभी तुम मन लगाकर पढ़ाई नहीं करोगे तो आगे चलकर तुम्हें ही दिक्कत होगा।

रघु की बाते सून अपश्यु एक नज़र रघु को देखा फ़िर चुप चाप नाश्ता करने लग गया। सुरभि उठकर अपश्यु के पास गया फिर उसके सिर पर हाथ फेर दिया। अपश्यु नज़र उठा बड़ी मां को देखा फ़िर सिर झुका लिया तब सुरभि एक निवाला बना अपस्यू को खिलाया ओर बोला...आप दोनों भाई भी न खाते वक्त क्या, कोई डांटता हैं? डांटना ही था तो नाश्ते के बाद डांट लेते लेकिन नही नाश्ता करते वक्त ही डटने का मन जो बना लिया था।

रावण... भाभी..!

सुरभि...बहुत डांट लिया आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा चुप चाप नाश्ता करके ऑफिस जाओ ओर अपश्यु, बेटा ऐसा क्यों करता हैं जिससे तुझे बार बार डांट सुनना पड़ता हैं। अब तू बड़ा हों गया हैं ओर कब तक नसमझो जैसा हरकते करता रहेगा। आगे से घर पर शिकायत नहीं आना चाहिए। समझ गया न!

अपश्यु... जी बड़ी मां फ़िर मन में बोला...प्रिंसिपल आज तो तू गया साले पिछली मार भुल गया जो आज फ़िर शिकायत लेकर घर पहुंच गया।

सभी फिर से नाश्ता करने लग गया। नाश्ता करने के बाद राजेंद्र बोला...रघु आज तू मेरे साथ ऑफिस चलेगा कुछ काम हैं।

रघु बिना किसी सवाल ज़बाब के हां बोल दिया फिर रावण बोला...दादाभाई आप रघु को अपने साथ ले जाइए मुझे जानें में थोडा लेट होगा।

राजेंद्र…ठीक हैं।

इतना कह रावण उठ गया फिर रूम को चल दिया। रावण रूम में आकर फिर से लेट गया रावण को लेटा देख सुकन्या बोली...क्या हुआ आज ऑफिस नहीं जाना जो फ़िर से लेट रहें हों।

रावण…थोड़ा सा ओर नींद लेने के बाद ही ऑफिस जाउंगा।

सुकन्या…मैं भी आ रहीं हूं मुझे भी थोडी देर ओर सोना हैं।

रावण...आओ दोनों चिपक कर सो जाएंगे। मस्त नींद आएगा।

सुकन्या...ज्यादा मस्ती चढ़ रहा हैं। चुप चप अकेले सो जाओ मैं चली बहार।

इतना कह सुकन्या रूम से बहार चली गई। राजेंद्र ऑफिस जानें की तैयारी कर लिया सुरभि से ब्रीफकेस लेते हुए बोला…सुरभि मैं एक घंटे में ऑफिस से लौट आऊंगा तुम तैयार रहना हम कलकत्ता चल रहे हैं।

दोनों की एकलौती बेटी पुष्पा कलकत्ता में रहकर पढाई कर रहीं थीं। इसलिए कलकत्ता जानें की बात सुन सुरभि खुश हों गईं ओर बोली...मैं भी सोच रही थी आप से कलकत्ता चलने को कहूं बहुत दिन हों गए पुष्पा से मिले हुए।

राजेंद्र…पुष्पा से भी मिलेंगे लेकिन उसे पहले हम एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में जायेंगे जहां मुझे मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।

बेटी से मिलने की बात सुन सुरभि मुस्कुरा दिया पर कहा कुछ नहीं,फिर राजेंद्र बहार आया रघु को साथ ले ऑफिस को चल दिया। जाते हुए राजेंद्र बोला...रघु बेटा अब से तुम बच्चो को पढ़ना बंद कर ऑफिस का का काम संभालोगे।

रघु…जैसा आप कहो।

राजेंद्र…रघु कोई सवाल नहीं सीधा हां कर दिया।

रघु…इसमें सवाल जवाब कैसा अपने कहा था बच्चों को पढ़ाने के लिए तो मैं बच्चों को पढ़ा रहा था। अब आप ऑफिस जानें को कह रहें हैं। तो कुछ सोच समझकर ही कह रहें होंगे।

राजेंद्र...तुम्हें बच्चों को पढ़ाने इसलिए कहा क्योंकि एक ही सवाल बार बार पूछने पर तुम अपना आपा खो देते थे फिर तुम्हें गुस्सा आने लग जाता था। बच्चो को पढ़ाने से तुम अपने गुस्से पर काबू रखना सीख गए हों ओर एक सवाल का कई तरीके से ज़बाब देना भी सीख गए हों। जो आगे चलकर तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद होने वाला हैं।

ऐसे ही बाते करते हुए दोनों ऑफिस पहुंच गए। राजेंद्र ने रघु के लिए अलग से एक ऑफिस रूम तैयार करवाया था। राजेंद्र रघु को लेकर उस रूम में गए और बोला…रघु इसी रूम में बैठकर तुम काम करोगे। जाओ जाकर बैठो मैं भी तो देखू मेरा बेटा इस कुर्सी पर बैठा कैसा दिखता हैं।

रघु कुर्सी पर बैठने से पहले राजेंद्र का पैर छू आर्शीवाद लिया फिर कुर्सी पर बैठ गया। रघु के कुर्सी पर बैठते ही कुछ लोग हाथों में गुलदस्ता लिए आ पहुंचे। उन्हे देख रघु खड़ा हो गया। आने वालो में एक शख्स बाप के उम्र का था। रघु उनके पास जा पैर छुआ फिर बोला... मुंशी काका आप कैसे हैं।?

मुंशी ठीक हूं बोल साथ लाए गुलदस्ता, बधाई देते हुए रघु को दिया फ़िर बारी बारी से मुंशी के साथ आए लोगों ने बधाई के साथ गुलदस्ता भेट कर, चले गए। मुंशी रुका हुआ था सभी के जाते ही मुंशी बोला…मालिक मैं यह काम करने वाला एक नौकर हूं इसलिए मेरा पैर छुना आप'को शोभा नहीं देता।

रघु…भले ही आप यह काम करते हों पर हों तो मेरे दोस्तों के पिता, दोस्त का बाप भी पिता समान होता है। आज के इस शुभ दिन पर मैं कैसे आप का पैर नहीं छूता।

राजेंद्र…बिलकुल सही कहा रघु। अब बता मेरे यार रघु के इस सवाल का क्या जवाब देगा?

मुंशी…राना जी मेरे पास रघु बेटे के सवाल का कोई जबाब नहीं हैं। रघु बेटे ने मुझे निशब्द कर दिया हैं।

रघु मुस्कुराता हुआ जा'कर कुर्सी पर बैठ गया फिर बोला...काका देखिए तो मैं इस कुर्सी पर बैठा कैसा लग रहा हूं। जांच रहा हूं न!

मुंशी...आप इस कुर्सी पर जांच रहे हों। आप'को इस कुर्सी पर बैठा देखकर ऐसा लग रहा हैं जैसे राजा राजसिंहासन पर बैठा हों। बस एक रानी की कमी रह गया

रघु पहले तो शर्मा गया फिर मुस्कुराते हुए बोला...मुंशी काका रानी की कमी लग रहा हैं तो आप मेरे लायक कोई लड़की ढूंढ़ लिजिए ओर मेरी रानी बाना दीजिए।

रघु की बाते सुनकर राजेंद्र और मुंशी मुस्करा दिया फिर राजेंद्र बोला...रघु बेटा कुछ दिन और प्रतीक्षा कर लो फिर तुम्हारे लायक लड़की ढूंढ़ कर रानी बना दुंगा।

मुंशी…हां रघु बेटा राना जी बिल्कुल सही कह रहे हैं। इसी काम में आप'के पापा बड़े जोरों सोरों से लगे पड़े हैं।

राजेंद्र…रघु मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ लोगों से मिलवाता हूं।

रघु को ले राजेंद्र ऑफिस में काम करने वाले लोगों से मिलवाने चल दिया। एक एक कर सभी से मिलवाया ओर नाम और पोस्ट के साथ परिचय करवाया। मेल मिलाप कुछ वक्त तक चला फिर राजेंद्र रघु को उसके ऑफिस रूम ले गया ओर बोला...रघु तुम काम करों कहीं भी सहयोग की जरूरत हों तो मुंशी से पुछ लेना।

रघु…जी पापा।

राजेंद्र…रघु मैं तुम्हारे मां के साथ कलकत्ता जा रहा हूं कल तक लौट आऊंगा।

रघु…आप कलकत्ता जा रहे हैं कुछ विशेष काम था।

राजेन्द्र…हां रघु! मुझे एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।

रघु…ठीक हैं पापा आप आते समय पुष्पा को भी साथ ले'कर आना बहुत दिन हों गए उससे मिले हुए।

राजेंद्र…ठीक हैं अब मैं चलता हूं।

राजेंद्र वह से निकल कर मुंशी के पास गया। मुंशी राजेंद्र को आया देख खडा हों गया। जिससे राजेंद्र उसे फिर से डांटा ओर बोला…मुंशी जैसे तू मेरा सहयोग करता आया हैं वैसे ही अब से रघु का सहयोग करना।

मुंशी…वो तो मैं करूंगा ही लेकिन एक बात समाझ नहीं आया अचानक रघु बेटे के हाथ में ऑफिस का कार्यभार सोफ दिया।

राजेंद्र…दुनियां हमारे सोच के अनुरूप नहीं चलता हैं। मैं भी एक शुभ मूहर्त पर रघु बेटे के हाथ में सारा कार्य भार सोफना चाहता था लेकिन कुछ ऐसी बातें पता चला हैं जिसके चलते मुझे यह फैसला अचानक ही लेना पडा।

मुंशी…बात क्या हैं जो अचानक ऐसा करना पडा।

राजेंद्र…अभी बताने का समय नहीं हैं मैं कलकत्ता जा रहा हूं वह से आने के बाद बता दुंगा।

मुंशी…ठीक हैं।

राजेंद्र मुंशी से मिलकर घर को चल दिया। उधर अपश्यू कॉलेज पहुंचा कॉलेज गेट से एंट्री करते ही गेट पर उसके चार लफंगे दोस्त विभान, संजय, मनीष और अनुराग खडे मिल गए। अपश्यु के चारों दोस्त ऊंचे घराने से थे। चारों में से तीन कुछ ज्यादा ही बिगड़े थे। अपश्यु के साथ रहकर ओर ज्यादा बिगड़ गया लेकिन अनुराग जैसा था वैसा ही रहा। कभी कभी अनुराग सभी दोस्तों का बूरा बरताव देख टोक दिया करता था। जिससे चिड़कार अपश्यु अनुराग को पीट देता था पर अनुराग बुरा नहीं मानता था। इसके पीछे कारण क्या हैं ये अनुराग ही जानता था। चारों को एक साथ देख अपश्यु बोल...अरे ओ लफंगों यह खडे खडे किसको तड़ रहे हों।

विभान…ओ हों सरदार आज आप किस खुशी में आ पधारे।

संजय…सरदार आज क्यों आ गए सीधा पेपर के बाद रिजल्ट लेने आ जाते खामाखा पैरो को तकलीफ दे दिया।

अपश्यु…चुप कर एक तो बड़े पापा ने सुबह सुबह बोल बच्चन सुना दिया अब तुम लोग भी शुरू हों गए।

मनीष…..ओ हों तो राजा जी ने डंडा करके सरदार को कॉलेज भेजा। राजाजी ने अच्छा किया नहीं तो बिना सरदार के गैंग दिशा विहीन होकर किसी ओर दिशा में चल देता।

अनुराग...राजा जी ने अच्छा किया मैं तो कहता हूं राजा जी तुझे रोज डांट कर कॉलेज भेजे इसी बहाने तू कुछ पढाई कर लेगा।

अपश्यु…यार अनुराग तू हमेशा मुझे ही क्यों ज्ञान देता रहता हैं। तू अपना ज्ञान आपने पास रख नहीं तो आज तू प्रिंसिपल से पहले पीट जायेगा। चलो रे मेरे साथ थोड़ा प्रिंसिपल से मुक्का लात किया जाएं।

विभान...आब्बे मुक्का लात नहीं मुलाकात कहते हैं। कम से कम शब्द तो सही बोल लिया कर।

अपश्यु…अरे हों साहित्य के पुजारी मैंने शब्द सही बोला हैं मुझे प्रिंसिपल के साथ मुक्का लात ही करना हैं।

संजय...ओ तो आज फिर से प्रिंसिपल महोदय जी की बिना साबुन पानी के धुलाई होने वाला हैं। निरमा डिटर्जेंट पाउडर कपडे धुले ऐसे जैसे दाग कभी था ही नहीं।

विभान…अरे हों विभीध भारती के सीधा प्रसारण कपडे नहीं धोने हैं प्रिंसिपल जी को धोना हैं। आज की धुलाई के बाद उनकी बॉडी में दाग ही दाग होंगे।

अनुराग...क्या यार तू कॉलेज आते ही मार धड़ करने चल पड़ा। ऐसे तू गुरुओं को पिटता रहेगा तो ज्ञान क्या खाक मिलेगा।

मनीष...ओय ज्ञान चंद अपना ज्ञान का पिटारा अपने पास रख हमारे पास पहले से ही इतना ज्ञान हैं हम ओर बोझ नहीं ढो सकते।

अपश्यु…अरे हों कॉमेडी रंग मंच के भूतिया विलन चल रहे हों या तुम सब की बिना साबुन पानी के झाग निकाल दू।

अनुराग...मैं एक बार फिर से तुझे कहूंगा तू ये सही नहीं कर रहा हैं। हमे टीचर को नहीं मरना चाहिए।

मनीष...अनुराग तू न रोका टोकी न करा कर तुझे कितनी बार कहा है। हमे टोका न कर पर तू हैं की सुनता ही नहीं, चल अपश्यु इसे छोड़ हम चलते हैं।

इतना कह तीनों चल दिया। अनुराग पीछे से आवाज़ देता रहा गया पर वहां सुनने वाला कोई नहीं था। इसलिए निराश हो मन ही मन अनुराग बोला...जीतना इन्हें सुधरना चाहता हूं उतना ही ये बिगड़ते जा रहे हैं। पर कोई बात नहीं मैं एक न एक दिन तुम तीनों में से किसी न किसी को सुधारकर रहूंगा। एक सुधरा तो बाकी बचे भी सुधर जाओगे।

अपश्यु दोस्तों के साथ जा रहा था। प्रिंसिपल के ऑफिस तक जाते जाते जितने भी लड़के लड़कियां रास्ते में मिला सभी को परेशान करते हुए जा रहे थे। लड़के और लड़कियां कुछ कह नहीं पाए सिर्फ दांत पीसते रह गए। कुछ वक्त में अपश्यु प्रिंसिपल जी के ऑफिस के सामने पहुंच गया। ऑफिस के बहार खड़ा चपरासी उन्हे अंदर जानें सो रोक दिया। लेकिन अपश्यु चपरासी को धक्का देकर गिरा दिया फिर ऑफिस मे घूस गया। प्रिंसिपल तीनों को बिना पर्मिशन अंदर आया देख चीड़ गया फिर बोला... अपना तासरीफ लेकर आ गए लेकिन तुम्हें पाता नहीं प्रिंसिपल के ऑफिस में आने से पहले अनुमति मांग जाता हैं।

अपश्यु...तासरीफ इसलिए लेकर आया क्योंकि तेरी तासरीफ की हुलिया बिगड़ने वाला हूं ओर रहीं बात अनुमति कि तो मुझे कहीं भी आने जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ता।

प्रिंसिपल…लगाता हैं फिर से राजा जी से तुम्हारी शिकायत करना पड़ेगा।

प्रिंसिपल बस इतना ही बोला था ओर अपश्यु जाकर प्रिंसिपल को एक झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ इतना जोरदार था कि प्रिंसिपल अपनी जगह से हिल गया। एक के बाद एक कई थप्पड़ पड़ा फ़िर अनगिनत लात घुसे मारे गए, कुछ ही वक्त में प्रिंसिपल को मार मार कर हुलिया बिगड़ दिया गया। मन भर कर प्रिंसिपल की कुटाई करने के बाद अपश्यु बोला...अब की तूने बड़े पापा से कुछ कहा तो हम भी रहेगें, यह कॉलेज भी रहेगा लेकिन तू नहीं रहेगा। तू इस दुनियां में रहना चाहता हैं तो मेरी बातों को घोल कर पी जा और अपने खून में मिला ले जिससे तुझे हमेशा हमेशा के लिए मेरी बाते याद रह जाएं।

प्रिंसिपल को चेतावनी देकर अपश्यु और उसके दोस्त दनदनाते हुए ऑफिस से निकल गया। प्रिंसिपल की धुलाई कुछ ज्यादा हों गया था इसलिए खुद को संभालने में प्रिंसिपल को थोड़ा समय लगा। खैर खुद को संभालने के बाद चपरासी को बुला लिया ओर उसका सहारा ले डॉक्टर के पास चला गया।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
नेक्स्ट अपडेट पोस्ट कर दिया हैं। अच्छा लगे तो टिप्पड़ी देना न भूलिएगा।
 
Will Change With Time
Moderator
8,722
16,968
143
Update - 9

अपश्यु प्रिंसिपल की धुनाई कर ऑफिस से निकलकर थोड़ा सा आगे बडा वह अनुराग खड़ा था। अपश्यु को आया देख अनुराग बोला... प्रिंसिपल का काम तमाम करके आ गए अब देखना प्रिंसिपल फिर से तेरे घर शिकायत करेगा फिर से तुझे डांट पड़ेगा। क्यों करता हैं ऐसा छोड़ दे भाई सोच जिस दिन तेरे घर में पाता चलेगा तू क्या क्या करता हैं तब उन पर किया बीतेगा।

अपश्यु…घर पे जब पाता चलेगा तब की तब देखूंगा। अभी तू ओर ज्ञान न दे सुबह से बहुत ज्ञान मिल चुका हैं। अब चल कहीं चलकर बैठते हैं।

अनुराग आगे कुछ नहीं बोला बस अपश्यु के पीछे पीछे चल दिया। सभी जा'कर मेन गेट के सामने खड़े हों गए। एक लड़की फैशनेबल कपड़ो में कॉलेज गेट से एंट्री करती हैं। अपश्यु की नज़र अनजाने में उस पर पड़ गया। लडकी खुबसूरत थी नैन नक्श तीखे थे। साथ ही कपडे भी फैशनेबल पहने हुए थे तो सभी मनचलों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। अपश्यु भी उन्हीं मनचलों में एक था तो अपश्यु लडकी को देख खो सा गया। कुछ वक्त तक मन भरकर देखने के बाद अपश्यु बोला…अरे ये खुबसूरत बला कौन हैं? जिसने अपश्यु के दिल दिमाग में हल चल मचा दिया। जिसकी सुंदरता का मैं दीवाना हों गया।

अनुराग…ये वो बला हैं जिसके करण कईं मजनू बने कइयों के सिर फूटे कइयों के टांग टूटे अब तू बता सिर फुटवाएगा, टांग तुड़वाएगा या मजनूं बनेगा।

अपश्यु…तोड़ने फोड़ने में, मैं माहिर हूं अब सोच रहा हूं मजनूं बनने का मजा लिया जाएं।

विभान…अरे ओ मजनूं तेरे लिए मजनूं गिरी नहीं हैं तू तो दादागिरी कर, मौज मस्ती कर ओर हमे भी करवा।

अपश्यु…आज से दादागिरी बंद मौज मस्ती बंद ओर मजनूं गिरी शुरू, चलो सब मेरे पिछे पिछे आओ, पाता तो करूं ये खुबसूरत बला हैं कौन?

लडकी अपने धुन में चलते हुए चली गई। अपश्यु दोस्तों को साथ लिए लडकी को ढूंढने चल पड़ा। लडकी कौन से क्लास में गया? ये अपश्यु नहीं देख पाया। इसलिए अपश्यु एक एक क्लॉस रूम में जा'कर लड़की को ढूंढने लग गया। लेकिन लड़की उसे कहीं पर नहीं मिला। थक हर कर अपश्यु अपने क्लास में गया, दरवाजे से एंट्री करते ही अपश्यु रूक गया, सामने वह लडकी खड़ी थीं। अपश्यु लडकी को देखकर दरवाजे से टेक लगकर खड़ा हों गया ओर लडक़ी को मोहित हो'कर देखने लग गया। अपश्यु के दोस्त बातों में मग्न हो'कर एक के पीछे एक चलते हुए आ रहे थे। उनका ध्यान अपश्यु पर न होने के कारण एक के बाद एक अपश्यु से टकरा गए। अपश्यु पर इस टकराव का कोई असर नहीं पड़ा, जैसे का तैसे खड़ा रहा। अचानक सामने आईं बाधा से टकराकर अनुराग बोला…अरे ये दरवाजे पर खंबा किसने गाड़ दिया। उसको पकड़ो ओर खंबा उखड़वाकर कही ओर गड़वाओ।

विभान…अरे ये खंबा नहीं मजनूं खड़ा हैं ओर लैला को देखने में खोया हुआ हैं। सामने से मजनूं को हाटा इसके कारण हमारा सिर फूटते फूटते बचा हैं।

संजय आगे गया फिर अपश्यु के सामने खड़ा हों गया अपश्यु को सामने का नज़ारा दिखना बंद हों गया जिससे अपश्यु का ध्यान भंग हों गया। संजय को सामने खड़ा देख अपश्यु बोला…क्यों तड़ का पेड़ बने खड़ा हैं? हट न सामने से, तुझे दिख नहीं रहा मजनूं लैला से नैन मटका कर रहा हैं।

संजय…अरे ओ दो टाके के मजनूं तेरा दाल नहीं गलने वाला उसके पीछे पहले से ही, कई मजनूं बने फिर रहे हैं।

अपश्यु...कैसे दोस्त हों मैं घर बसाना चाहता हूं तुम उजड़ने कि बात कर रहें हों। साले देख लेना दाल भी गालेगा ओर उससे चोंच भी लडाऊंगा तुम सभी देखते रह जाओगे।

विभान…तू कह घर बसाने वाला, एक बार गुल्ली डंडा खेल लिए, फिर इसे भी ओर लड़कियों की तरह छोड़ देगा।

अपश्यु…नहीं यार ये दिल में बस गया हैं। अब तो इसके साथ घर ही बसाना है। घर बसाने के बाद तो गुल्ली डंडा खेलना ही हैं।

अनुराग…देख लेंगे तू कौन सा घर बसता हैं अब चल बैठा जाए खड़े खड़े मेरा टांग दुख रहा हैं।

सारे दोस्त एक के पिछे एक आगे बढ़ गए। लडक़ी भी बैठने के लिए सीट के पास जा'कर खड़ी हों गई। तब तक अपश्यु लडक़ी के पास पहुंच गया। अपश्यु लडक़ी से कन्नी काट निकल रहा था कि उसका पैर अड़ गया जिससे अपश्यु खुद को संभाल नहीं पाया ओर लडक़ी पर गिर गया। अपश्यु को लडकी पर गिरता देख क्लास में मौजूद सभी लडके लडकियां खिलखिला कर हंस पड़े, जैसे अपश्यु का खिल्ली उड़ा रहे हों।

अपश्यु गिरे हुए ही सभी को एक नाराज़ देख बस अपश्यु का देखना ही काफ़ी था पल भर में ही क्लास में सन्नाटा पसर गया। लडकी ने अपश्यु को गुस्से में देख ओर परे धकेल दिया फिर उठकर खड़ी हों गई। अपश्यु लडकी की ओर देखते हुए खड़ा हुआ। जैसे ही अपश्यु खड़ा हुआ पूरा क्लास chatakkk chatakkk की आवाज़ से गूंज उठा ये देख पुरा क्लॉस अचंभित हों गया ओर लङकी के हिम्मत को दाद देने लग गए क्योंकि कॉलेज में किसी में इतना हिम्मत नहीं था कि अपश्यु पर हाथ उठा सके सभी जानते थे अपश्यु कितना कमीना हैं। थप्पड पड़ते ही अपश्यु भी चौक गया उसे यकीन नहीं हों रहा था किसी लङकी ने भरे क्लास में उसे थप्पड मरा। इसलिए लङकी को घूरकर देखने लग गया। अपश्यु का घूरना लङकी से बर्दास्त नहीं हुआ। लडकी खिसिया गई ओर chatakkk chatakkk दो थप्पड ओर जड़ दिया फिर बोली...अरे ओ रतौंधी के मरीज दिन में भी दिखना बंद हों गया। जो मुझ पर आ'कर गिरा। तुम जैसे लड़कों को मैं अच्छे से जानती हूं खुबसूरत लडकी देखते ही लार टपकाते हुए आ जाते हों। मजनूं कहीं के।

लडकी की बाते सून अपश्यु गाल को सहलाते हुए मुस्कुरा दिया। लडकी पहले से ही गुस्से में थी अपश्यु को मुस्कुराते देख गुस्सा ओर बढ़ गया। लडकी कुछ कर पाती उससे पहले ही अपश्यु के दोस्त अपश्यु को पकड़कर पिछे ले गया फिर विभान बोला...अरे ओ मजनूं होश में आ पूरे क्लॉस के सामने नाक कटवा दिया, जा जा'कर बता दे तू कौन हैं?

अपश्यु…कितने कोमल कोमल हाथ हैं कितना मीठा बोलती हैं। मैं तो गया कम से कोई मुझे डॉक्टर के पास ले चलो ओर प्रेम रोग का इलाज करवाओ।

मनीष…लगाता हैं थप्पड़ों ने तेरे दिमाग के तार हिला दिया, तू बावला हों गया हैं। वो लडकी कोई मीठा बिठा नहीं बोलती तीखी मिर्ची खाकर तीखा तीखा बोलती हैं। उसके हाथ कोमल हैं तो हार्ड किसे कहेगा देख अपने गालों को पांचों उंगलियां छप गया हैं।

अपश्यु…सालो तुम सब ने एक बात गौर नहीं किया आज तक किसी ने भरे क्लॉस में मुझ पर हाथ नहीं उठाया इस लड़की में कुछ तो बात हैं ये लडक़ी मेरे टक्कर की हैं अब ये तुम सब की भाभी बनेगी।

अनुराग…जब तूने तय कर लिया तुझे आगे भी इस लङकी से पीटना हैं तो बोलना पड़ेगा भाभी। हम कर भी क्या सकते हैं

अपश्यु बैठें बैठे लड़की को ताड़ रहा था। सामने बैठा लडके का सिर बीच में आ रहा था। लडके सिर को दाएं बाएं कर रहा था इससे अपश्यु परेशान हों लडके को धक्का दे नीच गिरा दिया। लड़का उठकर चुप चाप दूसरे सीट पर जा बैठ गया।

लडक़ी थाप्पड़ मरने के बाद सीट पर बैठ गई ओर बार बार अपस्यू को पलट पलट कर देख रहीं थीं। अपश्यु भी लड़की को देख रहा था तो लड़की ने आंख मार दिया फिर बगल मे बैठी लड़की जो उसकी सहेली हैं। उससे बोली...सुगंधा देख कैसे घूर रहा हैं मन कर रहा हैं जाकर एक किस कर दूं।

सुगंधा...वो तो घुरेगा ही तुझ पर फिदा जो हों गया। जा कर ले किस, तू तो हैं ही बेशर्म, कहीं भी शुरु हों जाती हैं। डिंपल तू जानती नहीं किसे थप्पड़ मारा हैं?

डिंपल…कौन हैं ? बहुत बड़ा तोप हैं जो मैं उसे थप्पड़ नहीं मार सकती। मैं तो किसी को भी थप्पड मार दू ओर जिसे मन करे उसे किस भी कर दू।

सुगंधा…हमारे कॉलेज के कमीनों का सरदार महाकमीना अपश्यु हैं। उससे कॉलेज के स्टूडेंट के साथ साथ टीचर और प्रिंसिपल बहुत डरते हैं ओर तूने उसके ही गाल लाल कर दिया जिसने भी उस पर हाथ उठाया वो सही सलामत घर नहीं पहुंचा। अब तेरा क्या होगा?

डिंपल…मुझे कुछ भी नहीं होगा देखा न तूने कैसे देख रहा था जैसे पहली बार लडकी देख रहा हों। ये महाकमिना हैं तो मैं भी महाकमिनी हूं।

सुगंधा…वो तो तू हैं ही लेकिन देर सवेर ये महाकमिना इस महाकमिनी से आपमान का बदला लेकर रहेगा। तब किया करेगी?

डिंपल…करना कुछ नहीं हैं ये तो मुझ पर लट्टू हों ही गया अब सोच रहीं हूं मैं भी डोरे डाल देती हूं फिर मजनूं बना आगे पीछा गुमाती रहूंगी।

सुगंधा...तेरा दिमाग तो ठीक हैं पहले से ही इतने सारे मजनूं पाल रखी हैं अब एक ओर कहा जाकर रुकेगी।

डिंपल…सारे मजनूं को रिटायरमेंट देकर अपश्यु पर टिक जाती हूं ओर परमानेंट मजनूंं बना लेती हूं।

सुगंधा...हां हां बना ले ओर मजे कर तुझे तो बस मौज मस्ती करने से मतलब हैं।

डिंपल…यार इस अपश्यु नाम के मजनूं को आज पहली बार देख रहीं हूं न्यू एडमिशन हैं।

सुगंधा...कोई न्यू एडमिशन नहीं हैं ये तो पुरानी दाल हैं जो आज ही कॉलेज आय हैं। कॉलेज आते ही तूने उसके गाल सेंक दिया।

दोनों बात करते करते चुप हों गए क्योंकि क्लॉस में टीचर आ गया था। टीचर क्लॉस का एटेंडेंस लेने लग गया जब अपश्यु का नाम आया ओर कोई ज़बाब नहीं मिला तो टीचर बोला...आज भी नहीं आया लगाता हैं फिर से प्रिंसिपल से शिकायत करना पड़ेगा।

टीचर कि बात सुन अपश्यु का दोस्त विभान बोला...सर अपश्यु आज कॉलेज आया हैं। फ़िर अपश्यु से बोला अरे लङकी ताड़ना छोड़ ओर मुंह खोल नहीं तो फ़िर से शिकायत कर देगा

अपश्यु…पार्जेंट सर।

टीचर…ओ तो आप आ गए आज क्यों आए हों सीधा रिजल्ट लेने आ जाते।

अपश्यु...सर अब से रोज कॉलेज आऊंगा एक भी दिन बंक नहीं करूंगा।

टीचर…कुछ फायदा नहीं होने वाला अगले हफ्ते से एग्जाम शुरू होने वाला हैं। पढ़ाई तो कुछ किया नहीं तो लिखोगे क्या? जब लिखोगे कुछ नहीं तो नंबर न मिलकर बड़ा बड़ा अंडा मिलेगा। उन अंडो का आमलेट बनाकर खा लेना।

टीचर कि बात सुन क्लॉस में मौजूद सभी लडके और लड़किया ठाहाके मारने लग गए। उन सभी को डांटते हुए टीचर बोला….मैंने कोई जॉक नहीं सुनाया जो सब ठाहाके मार रहें हों। पढ़ने पर ध्यान दो नहीं तो अपश्यू की तरह आधार में लटक जाओगे।

टीचर कि बाते सुन अपश्यु मन ही मन बोला...ये तो सरासर बेइज्जती हैं तुझे तो बाद में देखूंगा एक ही दिन में सभी को धो दिया तो पढ़ाने के लिए कोई नहीं बचेगा।

टीचर पढ़ना शुरू कर दिया ऐसे ही रेसेस टाईम तक पढ़ाई चलता रहा। फिर रेसेस होने पर सब कैंटीन में चले गए अपश्यु भी दोस्तों के साथ कैंटीन में जा'कर बैठ गया और चाय कॉफी पीने लग गए तभी डिंपल और सुगंधा कैंटीन में आई। डिंपल अपश्यु के पास गया फिर बोला...सॉरी मैंने अपको पूरे क्लॉस के सामने थाप्पड मारा

अपश्यु एक खाली कुर्सी कि ओर इशारा किया डिंपल उस पर बैठ गईं फिर अपश्यु बोला…अपके लिए इतना बेइज्जती तो सह ही सकता हूं।

डिंपल खिला सा मुस्कान बिखेर दिया जिसे देख अपश्यु भी मुस्कुरा दिया फिर डिम्पल बोला...क्या हम दोस्त बन सकते हैं।

अपश्यु…आप'से दोस्ती नहीं करना है आप'को गर्लफ्रेंड बनना चाहता हू। गर्लफ्रेंड बननी हैं, तो बोलो।

डिंपल मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोली...ये तो सीधा सीधा ऑफर दे रहा हैं मैं तो ख़ुद ही इसे बॉयफ्रेंड बाना चाहती हूं चलो अच्छी बात हैं बकरा खुद हलाल होना चाहता हैं तो मैं किया कर सकती हूं लेकिन अभी हां कहूंगी तो कहीं ये मुझे गलत न समझ बैठें।

डिंपल…हम आज ही मिले हैं ओर आज ही गर्लफ्रेंड बनने का ऑफर दे रहे हों, ऑफर तो अच्छा हैं लेकिन मुझे सोचने के लिए कुछ टाइम चाहिए।

अपश्यु…दिया टाइम लेकिन ज्यादा नहीं तीन दिन इतना काफी हैं सोचने के लिए।

डिंपल…हां इतना काफी हैं।

बातों बातों में रेसेस टाईम खत्म हों गया फिर सभी अपने अपने क्लॉस में चले गए। अपश्यु क्लास में आया ओर दोस्तों को छोड़ डिम्पल के साथ बैठ गया फिर बीच बीच में बात करते हुए क्लास अटेंड करने लग गए।

घर पर सुरभि तैयार होकर बहार आई सुरभि को सजा धजा देख सुकन्या बोली... कहीं जा रहे हों।

सुरभि... हां छोटी कलकत्ता जा रही हूं तू घर का ध्यान रखना।

सुकन्या... ठीक हैं! आते वक्त पुष्पा को लेकर आना। उससे मिले हुए बहुत दिन हों गया।

सुरभि हां बोला फिर दूसरी बाते करने लग गए। राजेंद्र घर आया फिर दोनों सभी को बोल कलकत्ता के लिए चल दिया। रस्ता लंबा था तो दोनों पति पत्नि बातों में मग्न हों टाइम काट रहे थें। बातों बातों में राजेंद्र बोला...सुरभि आज रघु को ऑफिस का सारा कार्य भर सोफ दिया हैं।

सुरभि…रघु को एक न एक दिन सब जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेना ही था अपने सही किया लेकिन एक शुभ मूहर्त पर करते तो अच्छा होता।

राजेन्द्र...अभी सिर्फ कार्य भर सोफ़ा हैं उसके नाम नहीं किया हैं। रघु के शादी के बाद एक शुभ मूहर्त देखकर बहू और रघु के नाम सब कुछ कर दुंगा।

सुरभि…पता नहीं कब बहु के शुभ कदम हमारे घर पड़ेगी। कब मुझे बहु को गृह प्रवेश करवाने का मौका मिलेगा।

राजेन्द्र...वो शुभ घडी भी आयेगा। मैंने फैसला किए हैं अब जो भी लङकी देखने जाऊंगा उसके बारे में किसी को नहीं बताऊंगा।

सुरभि…ये आपने सही सोचा।

दोनों ऐसे ही बाते करते हुए सफर के मंजिल तक पहुंचने की प्रतिक्षा करने लग गए। उधर कलकत्ता में कमला घर पर मां बाप के साथ नाश्ता कर रही थीं। नाश्ता करने के बाद कमला बोली...पापा आज आप और मां टाइम से कॉलेज आ जाना नहीं आए तो फिर सोच लेना।

महेश…ऐसा कभी हुए हैं हमारी लाडली ने किसी प्रतियोगिता मे भाग लिया हों ओर हम उसे प्रोत्शाहीत करने न पहुंचे हों।

मनोरमा…हम जरूर आयेंगे लेकिन तु ने हमे बताया नहीं तू भाग किस प्रतियोगिता में ले रहीं हैं। इस बार भी हर बार की तरह चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया हैं क्या?

कमला…हां मां इस बार भी चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया ओर एक अच्छा सा चित्र बनाया हैं।

महेश…तो फिर हमे भी दिखा दो, हम भी तो देखे हमारी चित्रकार बेटी ने कौन सा चित्र बनाया हैं?

कमला…वो तो आप को वार्षिक उत्सव में आने के बाद ही देखने को मिलेगा अब मैं चलती हूं आप समय से आ जाना।

कमला रूम में गई एक फोल्ड किया हुए पेपर बंडल उठाकर नीचे आई। नीचे उसकी सहेली चंचल और शालु बैठी हुई थीं। उनको देखकर कमला बोली...तम दोनों कब आए?

शालु...हम अभी अभी आए हैं जल्दी चल हमे देर हों रहीं हैं।

मनोरमा…अरे रूको चाय बन गई हैं। तुम दोनों चाय तो पीती जाओ।

चंचल…आंटी हम चाय बाद में पी लेंगे हमे देर हों जायेगी।

इतना कह तीनों चल दिया जाते हुए तीनों एक दूसरे से मजाक कर रहे थे। मजाक मजाक में चंचल बोली...कमला अगले हफ्ते से पेपर हैं फिर कॉलेज खत्म हों जायेगी। उसके बाद का कुछ सोचा हैं क्या करेंगी?

शालु…मुझे पाता हैं कमला किया करेंगी। कॉलेज खत्म होने के बाद कमला शादी करेंगी और पति के साथ दिन रात मेहनत करके ढेरों बच्चे पैदा करेंगी।

ये कहकर शालू दौड़ पड़ी कमला भी उसके पीछे पीछे उसे मरने दौड़ पड़ी कुछ दूर दौड़ने के बाद शालू को कमला पकड़ लिया ओर दे तीन धाप पीठ पर जमा दिया फिर बोली...शालु बेशर्म कहीं कि कुछ भी बोलती हैं थोड़ा तो शर्म किया कर।

शालु…मैं बेशर्म कैसे हुआ शादी के बाद पति के साथ मेहनत करके ही तो बच्चे पैदा होगा तुझे कोई और तरीका पता हों तो बता।

कमला…बच्चे पैदा करने की तुझे बड़ी जल्दी पड़ी हैं तो तू ही शादी कर ले मुझे अभी शादी नहीं करनी हैं न ही बच्चे पैदा करने हैं।

तब तक चंचल भी उनके पास पहुंच गई कमला की बाते सुन चंचल बोली...अभी तो न न कर रहीं हैं जब कोई हैंडसम लड़का शादी की प्रस्ताव ले'कर आएगा तब तेरे मुंह से न नहीं निकलेगा।

कमला…जब ऐसा होगा तब की तब देखेंगे अभी अपना मुंह बंद कर ओर चुप चाप कॉलेज चल।

शालु…ओ हो अभी से शादी के लड्डू फूट रहे हैं लगता हैं अंकल आंटी को बताना पड़ेगा आप'की बेटी से जवानी का बोझ ओर नहीं ढोया जा रहा हैं। जल्दी से इसके हाथ पीले कर दो।

शालु कहकर भाग गई ओर कमला पीछे पीछे भागते हुए बोली...रूक शालू की बच्ची तुझे अभी बताती हूं? किसे उसकी जवानी बोझ लग रहीं हैं।

ऐसे ही तीनों चुहल करते हुए कॉलेज पहुंच गए कॉलेज को बहुत अच्छे से सजाया गया था। कॉलेज के मैदान में टेंट लगाया गया था। जहां एक मंच बना हुआ था। मंच के सामने पहली कतार में विशिष्ट अतिथिओ के बैठने के लिए जगह बनाया गया था ओर पीछे की कतार में स्टूडेंट और उनके पेरेंट्स के बैठने के लिए कुर्सीयां लगाई गई थीं। टेंट के एक ओर एक गैलरी बना हुआ था। कमला उस गैलरी में चली गई वह जाकर कमला एक टीचर से मिली टीचर कमला को लेकर बहार की तरफ आई ओर एक रूम में लेकर गई कुछ वक्त बाद कमला हाथ में एक स्टेंड ओर एक चकोर गत्ते का बोर्ड जो कवर से ढका हुआ था, ले'कर टीचर के साथ बहार आई फिर गैलरी में जा'कर स्टेंड को खड़ा किया। गत्ते के बोर्ड को स्टेंड पर रख दिया फिर पास में ही खड़ी हों गई। दूसरे स्टुडेंट आते गए अपने साथ लाए स्टेंड को खड़ा कर उस पर गत्ते का बोर्ड रखकर पास में खड़े हों गए। कुछ वक्त सारे बोर्डो पर से कवर हटा दिया गया कवर हटते ही पूरा गैलरी आर्ट गैलेरी में परिवर्तित हों गया जहां विभिन्न पाकर की चित्रों का मेला लगा हुआ था फिर निरीक्षण करने वाले कुछ लोग आए जिनके हाथ में पेन और नोट बुक था। स्टैंड के पास गए ओर चित्र की बारीकी से परीक्षण किया फिर बगल में खड़े स्टुडेंट से कुछ सवाल पूछा फिर नोट बुक में कुछ नोट किया ओर अगले वाले के पास चले गए। कुछ ही वक्त में सभी चित्रों का परीक्षण करने के बाद सभी चले गए।

कुछ समय बाद स्टुडेंट के पेरेंट्स आने लग गए ओर आर्ट गैलरी में जा'कर आर्ट गैलरी में लगे चित्र का लुप्त लेने लगे उन्हीं में कमला के मां बाप भी थे जो एक एक करके सभी चित्रों को देख रहे थें ओर चित्र बनाने वाले स्टूडेंट को प्रोत्शाहित कर रहे थें। एक एक कर चित्र देखते हुए कमला के पास पहुंचे कमला के बनाए चित्र को देखकर मनोरमा कमला को गले से लगा लिया ओर बोली…कमला तूने तो बहुत अच्छा चित्र बनाया हैं तेरे चित्र ने मेरे अंदर के ममता को छलका दिया हैं।

कहने के साथ ही मनोरमा की आंखे छलक आई। जब दोनों अलग हुए मां के आंखों में आंसू देख, दुपट्टे के पल्लू से आंसू पोछा फिर कमला बोली...मां आप रो क्यों रहीं हों? मैंने कुछ गलत बना दिया जिसे आप'का दिल दुखा हों अगर ऐसा हैं तो मुझे माफ कर देना।

मनोरमा कमला की बात सुन मंद मंद मुस्कुरा दिया ओर फिर से कमला को गले से लगा लिया ओर बोली...कमला तूने कुछ भी गलत नहीं बनाया हैं तूने तो मां की ममता, वात्सल्य और स्नेह को इतनी सुंदरता से वर्णित किया हैं कि जिस मां के मन में अपर ममता, वात्सल्य और स्नेह होगी इस चित्र को देखने के बाद प्रत्येक मां रो देगी। मैं भी एक मां हूं तो मैं ख़ुद को रोने से कैसे रोक पाती।

कमला खुश होते हुए बोली…सच मां! आप'को मेरी बनाई चित्र इतनी पसंद आई।

मनोरमा…हां मेरी लाडली

कमला…मां आप'को खुशी मिली इससे बढ़कर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं मेरा इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फल मिल चुका हैं अब मुझे कुछ नहीं चाहिएं।

महेश…तुम्हें पुरुस्कार नहीं चाहिएं जिसके लिए तूमने इतनी मेहनत किया।

कमला…आप लोगों की खुशी से बढ़कर मेरे लिए ओर किया पुरुस्कार हों सकता हैं मुझे मेरी पुरुस्कार मिल चूका है अब मुझे ये दिखवे का पुरस्कार नहीं चाहिएं।

महेश….ठीक हैं जैसा तुम कहो हम टेंट में बैठने जा रहे हैं तुम चल रहीं हों।

कमला…नहीं पापा अभी मुख्य अथिति आने वाले हैं उनके देखने के बाद ही मैं आ पाऊंगी।

कमला के मां बाप खुशी खुशी चले गए। इसके बाद ओर भी बहुत लोग आए। कमला के चित्र को देखने वाले अधिकतर महिलाएं जो चित्र के आशय को समझ पाए उनकी आंखे छलक आई। कुछ वक्त बाद मंच से मुख्य अतिथि के पधारने की घोषणा हुआ फिर एक एक कर कई गाडियां कॉलेज प्रांगण में आ'कर रुके, बहुत से जानें माने लोग गाडियों से उतरे उनमें राजेंद्र और सुरभि भी थे फिर सभी एक के बाद एक टेंट के अंदर जा'कर अपनें अपने निर्धारित जगह पर बैठ गए। कुछ वक्त बैठने के बाद सभी एक एक करके उठे ओर आर्ट गैलरी की ओर चल दिया। उनके साथ कॉलेज के प्रिंसिपल और कुछ टीचर हो लिए जो उन्हें एक एक चित्र के पास जा'कर चित्र दिखाए ओर उनके बारे में बताते गए। ऐसे ही चित्र देखते देखते राजेंद्र और सुरभि कमला के बनाए चित्र के पास पहुंचे, तो सुरभि की नजर सब से पहले कमला पर पड़ी। कमला को देख सुरभि मन ही मन बोली...कितनी खुबसूरत लङकी हैं अगर ये लडक़ी मेरे घर में बहु बनकर आ गई तो मेरे घर को स्वर्ग बना देगी।

कमला को देख सुरभि मन ही मन कमला को बहु बनाने की सोच रही थीं ओर कमला की धडकने बढ़ी हुई थीं। राजेंद्र भी कमला को देख मन ही मन बोला...अरे ये लडक़ी तो मेरे देखे सभी लड़कियों से खुबसूरत हैं इसके घर वाले राजी हों गए तो मुझे रघु के लिए ओर लडक़ी देखना नहीं पड़ेगा।

कमला से नज़र हटा तब दोनों ने कमला के बनाएं चित्र को देखा। चित्र देख सुरभि कभी कमला को देख रहीं थी तो कभी चित्र को देख रही थीं। राजेंद्र भी कभी कमला को देख रहा था तो कभी चित्र को देख रहा था। चित्र को देखते देखते सुरभि की आंखे छलक आयी। कमला भी इन दोनों को देख मंद मंद मुस्करा दिया। सुरभि चित्र को बहुत गौर से देखा। जीतना गौर से चित्र को देखती उतना ही सुरभि की आंखों से आंसू छलक आ रहीं थीं।

कमला के चित्र में ऐसा क्या हैं? जो एक मां के आंखो को छलकने पर मजबूर कर दिया जानेंगे अगले अपडेट में यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी रिडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
 

Top