Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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रात्रि भोजन का समय हों रहा था दार्जलिंग से कोसो दूर एक घास फूस की बनी झोपड़ी में तीन लोग जिसमे दो महिलाएं और एक जवान लड़का जमीन पर बिछावन बिछाए भोजन कर रहें थे। भोजन करते हुए जवान लड़का बोला…मां हम अपना घर वार अपने लोगों को छोड़कर इतनी दूर इस अंजान जगह पर कब तक रहेगें।

सोमलता...कमलेश तू इतना न समझ तो हैं नहीं जो कुछ भी समझ नहीं पा रहा हैं हम क्यों अपना बसेरा छोड़ इस अंजान जगह सिर छुपाने को मजबूर हुए।

कमलेश…मां मैं सब समझ रहा हु। लेकिन हम कब तक अंजान जगह पर रहेगें और कब तक डर के छाएं में जीते रहेगें हम राजा जी से मिलकर उन्हें बता क्यों नहीं देते।

सोमलता निवाला बनाकर मुंह में ले रही थीं। कमलेश की बातों को सुनकर निवाला वापस थाली में रख दिया फिर बोली…कमलेश तूने सुना था न राजा जी के भाई रावण ने किया कहा था। उसने तेरे बापू को मार दिया मेरा सुहाग उजड़ दिया तेरे सिर से बाप का छाया छिन लिया और धमकी भी दिया अगर हम में से किसी ने राजा जी से मिला या उनको कुछ भी बताया तो वो हम सब को मार देगा। मैं कैसे जीते जी अपने परिवार को उजड़ते हुए देख सकती हूं।

कमलेश…मां मैंने सुना था लेकिन मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं उस कमीने रावण ने बापू को मरा क्यों और हमे राजा जी से मिलने को मना किया फिर गांव छोड़कर दूर जानें को कहा मुझे लगाता हैं आप कुछ जानते हों अगर आप जानती हों तो मुझे बता दो।

सोमलता…बेटा ये एक राज हैं जो तेरे बापू जानते थे ओर अब मैं जानता हूं जो तेरे बापू मरने से कुछ दिन पहले मुझे बताया था। ये राज रावण से जुड़ा हैं इसलिए रावण ने तेरे बापू को मार दिया और हमे धमका कर गांव से भगा दिया।

कमलेश…मां ये राज रावण से जुड़ा हैं तो हमें राजा जी को बता देना चाहिए था न की ऐसे कायरों की तरह मुंह छुपा कर भाग आना चाइए था।

सोमलता…हम भाग कर नहीं आते तो रावण जैसा धूर्त और क्रूर आदमी जिसके अदंर दया का लेस मात्र भी भाव नहीं हैं। मेरे वंश का समूल नाश कर देता ।

कमलेश…मां रावण के जुल्म को हम कब तक सहते रहेंगे, किसी न किसी को उसके खिलाफ आवाज़ तो उठाना ही होगा। आप मुझे वो राज बता दो जिसके कारण पिता जी को मार दिया गया और हमे अपना घर अपना माटी छोड़ने पर मजबुर किया गया।

सोमलता…वो राज मेरे छीने मे दफन हैं और हमेशा हमेशा के लिए दफन रहेगा।

कमलेश…मां जिस राज के कारण मेरे सिर से बाप का छाया उठ गया। उस राज को जानने का हक मुझे हैं।

सोमलता…बेटा जानने का हक तुझे हैं लेकिन वो राज बता कर मैं ओर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए तू जिद्द न कर ओर चुप चाप खाना खा।

कमलेश…मां आप राज बताना नहीं चाहती तो मत बताओ मैं आप'से जिद्द नहीं करूंगा। लेकिन मैं आप'को एक बात साफ़ साफ़ कह देता हूं। जिसके कारण मेरे बाप की मौत हुआ। उस रावण से बाप के मौत का बदला मैं लेकर रहूंगा।

कमलेश की बात सुनकर सोमलता अचंभित हों गईं। सोमलता मुंह में अभी अभी निवाला ढाला था जो उसके गाले में अटक गई जिससे उसे धसका लग गया ओर सोमलता खांसने लग गई। मां को खंसते देखकर कमलेश पानी का गिलास आगे बढाकर सोमलता को दिया फिर जा'कर सोमलता के पीठ को सहलाने लग गया। सोमलाता दो घुट पानी पिया पानी पीने के कुछ देर बाद ही सोमलता की खासी कम हो गया। तब कमलेश बोला…मां आप ठीक हों न।

सोमलता…अभी तो ठीक हू लेकिन लगाता है ज्यादा दिन तक ठीक नही रहूंगी।

कमलेश…मां क्या कह रहीं हों आप भली चांगी तो हों फिर कोई दिक्कत हैं तो कल ही डॉक्टर के पास ले'कर चलता हूं।

सोमलता…डॉक्टर के पास जानें की जरूरत नहीं है बस तू बदला लेने की बात दिमाग से निकल दे फिर मुझे कुछ नहीं होगा।

कमलेश…तो किया मैं वह सब भूल जाऊ जो हमारे साथ हुआ। मां मैं नहीं भूल सकता न ही भुल पाऊंगा। मैं जब तक बदला नहीं ले लेता तब तक मैं चैन से नहीं बैठ पाऊंगा।

सोमलता…कमलेश मैं तुझे भूलने को नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद नहीं भुला सकती हूं। मैं बस इतना कहना चाहती हूं तू जिन लोगों से बदला लेना चाहता हैं वो लोग बहुत ताकतवर हैं तू अकेले उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए तू बदले की भावना को छोड़ दे।

कमलेश…मां आप एक बात भूल रहीं हों हाथी दुनियां के बड़े जीवों में से एक हैं और ताकतवर भी हैं लेकिन चींटी जैसा एक छोटा जीव जब उसके नाक में घुसता हैं तो हाथी से तांडव करवा कर अपनी मौत मरने पर मजबूर कर देता हैं।

सोमलता…बेटा मैं जानता हूं लेकिन तु ये क्यों भुल रहा हैं। चींटी का हाथी से
तांडव करवाने के कारण बहुत से निरीह प्राणी को नुकसान पहुंचता हैं। इसलिए तू रावण जैसे धुर्त व्यक्ति से टकराने का विचार त्याग दे ओर जो हों गया उसे भूल कर बिखरी हुईं हमारी जिन्दगी को संवारने मे लग जा।

कमलेश…मां रावण धुर्त हैं जुल्मी हैं। उसने बहुत से निरीह लोगों पर जुल्म किया हैं। उसके जुल्मों को बहुत सह लिया लेकिन अब नहीं उसके जुल्मों का प्रतिकार होना चाहिए। किसी एक ने विरोध किया तो देखना कड़ी से कड़ी जुड़ता चला जायेगा फिर लोगों का हुजूम उसके विरोध में खड़ा हों जायेंगे।

सोमलता…रावण के जुल्मों का प्रतिकार बहुत से लोग करना चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं जूठा पा रहे हैं क्योंकि रावण के जुल्मों का प्रतिकार करने के लिए उसके जैसा धुर्त होना होगा और उससे एक कदम आगे चलना होगा तभी रावण को मात दिया जा सकता हैं।

कमलेश…मैं रावण जीतना धुर्त नहीं हूं लेकिन मेरा आत्मबल बहुत ज्यादा हैं और आत्मबल से बडे़ से बडे़ बाहुबली को भी मत दिया जा सकता हैं।

सोमलता...तेरा आत्मबल इस वक्त बड़ा हुआ हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन जिस रस्ते पर तू चलना चाहता हैं वह जीत की उम्मीद कम और हार की ज्यादा हैं ओर जब बर बर पराजय का सामना करना पड़ेगा तब आत्मबल ख़ुद वा ख़ुद काम हों जायेगा।

कमलेश…मां मेरा आत्मबल कभी कम नहीं होगा। मैं धीर्ण संकल्प के साथ आगे बढूंगा ओर रावण को मात दे'कर रहूंगा।

सोमलता…तूने बदले की रस्ते पर चलने का फैसला ले लिया तो मैं तुझे नहीं रोकूंगा। तू आगे बढ़ने से पहले मेरे और तेरी गर्ववती बीबी के बारे में सोच लेना क्योंकि तुझे कुछ हों गया तो हम बेसहारा हों जायेंगे।

कमलेश…ठीक हैं मां कुछ भी करने से पहले मैं अच्छे से विचार कर लूंगा।

दोनों मां बेटे के बीच तर्क वितर्क खत्म हुआ फिर सोमलता हाथ धो'कर विस्तार पर जा'कर लेट गई। कमलेश की बीबी झूठे बर्तन उठाकर धोने ले गई। कमलेश भी उसके पीछे पीछे गया और बर्तनों को धोने में मदद करने लग गया । बर्तन धुलने के बाद दोनों पति पत्नी सोने गए लेटकर कामलेश बोला…संध्या रावण से बदला लेने का जो फैसला मैंने लिया हैं। तुम्हें क्या लगता हैं मैने सही फैसला लिया हैं।

संध्या…आप एक बेटे का फर्ज निभा रहे हैं तो आप'का लिया फैसला गलत कैसे हों सकता हैं।

कमलेश…एक बेटे की नजरिए से मेरा लिया फैसला सही हैं। लेकिन एक पति और होने वाले बाप की नजरिए से क्या मैंने सही फैसला लिया हैं?

संध्या…मैं सिर्फ़ खुद के और हमारे आने वाले बच्चे के बारे में सोचूं तो आप'का लिया हुआ फैसला गलत होगा। लेकिन उन लोगों के बारे में सोचूं जो रावण का अत्याचार सह रहे हैं तो आप'का लिया हुआ फैसला सही हैं इसलिए आप अपने फ़ैसले पर अडिग रहे।

कमलेश…सांध्य तुम जो कह रहीं हों वो सही हैं और मां जो कह रहे थे वो भी सही हैं इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा हु मै करू तो क्या करूं।

संध्या…आप इस वक्त असमंजस की स्थिति में हों इसलिए आप इस वक्त कोई निर्णय न लें तो बेहतर ही होगा।

कमलेश…ठीक हैं संध्या मैं इस मुद्दे पर अच्छे से सोच समझकर फैसला लुंगा।

संध्या...हां यहीं सही होगा। अब सो जाइए।

अगले दिन पुष्पा कॉलेज जानें की तैयारी कर निचे आई। नीचे सुरभि और राजेंद्र बठे अखबार में छपे आज के घटनाओं का जायजा ले रहे थे। उनको अखबार पढ़ते देखकर पुष्पा बोली…मां मैं कॉलेज जा रही हूं आप लोग चाहो तो कहीं घूम आओ।

सुरभि…हमे अभी कहीं जाना हैं वह का काम निपटाकर हमे दार्जलिंग वापस जाना हैं।

वापस जानें की बात सुनकर पुष्पा उदास हो गई फ़िर बोली…मां अपने तो कहा था आप दो तीन दिन रुकने वाले हैं फिर अचानक जानें की बात क्यों कर रहें हों। मां बस आज रूक जाओ कल चले जाना।

सुरभि…बेटा तुम्हारे पापा को दार्जलिंग का काम भी देखना होता हैं इसलिए हमे जाना पड़ेगा।

पुष्पा…मां एक दिन रुकने से कोई आफ़त नहीं आ जायेगी फिर भी अगर आप जाना चाहती हों तो जाओ मैं नहीं रोकूंगी।

इतना कहकर पुष्पा पैर फटकते हुए बहार निकाल गई ओर सुरभि आवाज देती रह गई पर पुष्पा रुकी ही नहीं, पुष्पा के जानें के बाद राजेंद्र बोला…हमारे जानें की बात बोलने की क्या जरूरत थीं। खमाखा मेरी लाडली को नाराज कर दिया। सुरभि तुमने अच्छा नहीं किया।

सुरभि…अच्छा मैंने सही नहीं किया तो क्या आप रुक जाते?

राजेंद्र…मेरे लिए मेरी बेटी की खुशी सबसे बड़ी हैं। उसकी खुशी के लिए मुझे एक दिन क्या दस दिन भी रुकना पड़ेगा तो मैं रुकने के लिए तैयार हूं।

सुरभि…तो क्या मुझे मेरी लाडली की खुशी प्यारी नहीं हैं मेरे लिए मेरी बेटी की इच्छाएं सबसे अधिक मायने रखती हैं। मैं तो बस आप'के काम को सोचकर बोल रही थीं।

राजेंद्र…इस बहस को यह विराम देते हैं ओर जल्दी से तैयार हो'कर पुष्पा के कॉलेज चलते हैं नहीं तो मेरी लाडली का आज का दिन खराब हों जाएगा।

दोनों तैयार होकर पुष्पा के कॉलेज को चल दिया। इधर पुष्पा खराब मूढ़ के साथ कॉलेज पहुंच गईं, कही मन नहीं लगा तो क्लास में जा'कर बैठी ही थी। तभी एक लड़का क्लास में आया, पुष्पा को गुमसुम बैठा देखकर बोला…क्या हुआ पुष्पा? गुमशुम क्यों बैठी हैं।

पुष्पा…मुझे कुछ नहीं हुआ मैं ठीक हू। आशीष तुम कैसे हो?

आशीष…मैं बिल्कुल ठीक हूं लेकिन मेरी जानेमन का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा लग रहा हैं। बताओ न बात किया हैं?

पुष्पा…तुम्हारे जानेमन का आज कॉलेज में मन नहीं लग रहा हैं। इसलिए मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

आशीष…ऐसा हैं तो बोलों तुम्हारा मुड़ कैसे सही होगा। तुम्हारा मुड़ सही नहीं हुआ तो मेरा भी आज का दिन खराब हों जाएगा। पुष्पा चलो घूम कर आते हैं।

पुष्पा…मेरा कहीं जानें का मन नहीं हैं। जहां जाना हैं तुम अकेले ही जाओ।

आशीष…इतनी खुबसूरत गर्लफ्रेंड को छोड़कर मैं अकेले क्यों जाऊंगा। बोलों न बात किया हैं जो तुम्हरा मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

पुष्पा…कल मां और पापा आए हैं और आज ही जानें की बात कर रहें हैं इसलिए मेरा मूड खराब हैं।

आशीष बेखयाली में बोला…ओ मेरे होने वाले ससुरा और सासु मां आए हैं। बेखयाली में आशीष क्या सुना और क्या बोला ध्यान नहीं दिया जब ध्यान दिया तो चौंककर बोला…क्या तुम्हारे मम्मी पापा आए हैं तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं आज कॉलेज ही नहीं आता उन्होंने आगर मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो मेरा क्या हाल करेंगे मुझे ही नहीं पता।

पुष्पा…तुम उनके नाम से इतना क्यो डर रहे हों वो कॉलेज थोड़ी न आने वाले इतना डरोगे तो मेरे पापा से मेरा हाथ कैसे मांग पाओगे।

आशीष…कैसे न डरूं तुम्हारे पापा ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो वो कहेंगे मेरी राजकुमारी की ओर देखने की दुस्साहस कैसे किया चल तुझे शूली पर लटका देता हूं। मुझे शूली पर नहीं लटकना, मुझे तुम्हारे साथ शादी करके बची हुई जिंदगी जीना हैं।

पुष्पा…मेरे साथ बाकी की जिन्दगी जीने की इच्छा रखते हों फ़िर भी मेरे बाप से इतना डरते हों। मेरे बाप से इतना डरोगे तो मेरे साथ जिन्दगी जीने का सपना देखना छोड़ दो।

आशीष…ऐसी बाते करके मेरा दिल न दुखाओ मैं तुम्हारे बगैर जीने की सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हारे साथ जीने की सपने को साकार होते हुए देखना चाहता हूं।

पुष्पा…सपना हकीकत तब बनेगा जब तुम पापा से मेरा हाथ मांगोगे वरना तुम्हारा सपना और हमारा प्यार अधूरा रह जाएगा।

आशीष…कोई अधूरा बधुरा नहीं रहेगा। तुम्हारा हाथ मैं क्यों मांगने जाऊंगा तुम्हारा हाथ तो मेरे मां बाप मांगने जायेंगे। अच्छा छोड़ो इन बातों को तुम्हारा मुड़ सही करने के चाकर में मेरा ही सिर भरी हो गया चलो कुछ वक्त बहार टहलकर आते हैं।

दोनों बाहर आ'कर गार्डन में बैठे बाते करने लग गए। राजेंद्र और सुरभि दोनों कॉलेज पहुंचे फिर पुष्पा से मिलने के लिए प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चल दिया। दोनों गार्डन से हो'कर जा रहे थें तभी राजेंद्र की नजर गार्डन में बैठी पुष्पा पर पड़ गया। पुष्पा के साथ बैठे लड़के को देखकर राजेंद्र सुरभि को कोहनी मार कर पुष्पा की ओर दिखाया। पुष्पा की हाथ पकड़कर आशीष कुछ कहा रहा था।ये देखकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर राजेंद्र को देखा फ़िर पुष्पा की ओर चल दिया पुष्पा के पास पहुंच कर राजेंद्र कड़क मिजाज में बोला…पुष्पा तुम कॉलेज पढ़ने आते हों या लडको से बतियाने। तुम ऐसा करोगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

पापा को सामने देखकर पुष्पा सकपका गई। क्या बोले समझ नहीं पा रही थीं। बस मूर्ति बाने ऐसे खड़ी हों गई मानो जान ही न हों ओर आशीष की आशिंकी उड़ान छूं हों गया। हाथ पाओ थर थर कांपने लग गया। जैसे अभी अभी भूकंप आया हों ओर जमीन पर मौजुद सभी चीजों को हिलने पर मजबूर कर दिया हो। दोनों का हल देखकर राजेंद्र और सुरभि को हंसी आने लगा लेकिन खुद को रोककर राजेंद्र कड़े तेवर में बोला…ये लड़का तू भाग यह से मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं हैं। मुझे तो मेरी बेटी से शिकवा हैं। जो भी पुछना हैं पुष्पा से पूछूंगा। जो भी कहूंगा पुष्पा को कहूंगा।

पापा ने इतना ही कहा था कि पुष्पा की आंखे डबडबा गई। चहरे से लग रहा था। अब रो दे तब रो दे। पापा से नज़रे मिलाने की हिम्मत पुष्पा नहीं कर पा रही थीं। आशीष एक नज़र पुष्पा की ओर देखा फ़िर पुष्पा का हाथ पकड़ लिया। आशीष की ओर देख पुष्पा इशारे से हाथ छोड़ने को कहा लेकिन आशीष हाथ नहीं छोड़ा बल्कि ओर कस'के पकड़ लिया। हाथ छुड़ाने के लिए पुष्पा कलाई को मरोढने‌ लग गई। दोनों की हरकतों को देखकर राजेंद्र बोला…ये लड़के पुष्पा का हाथ क्यों पकड़ रखा हैं? छोड़ उसका हाथ ,बाप के सामने बेटी का हाथ पकड़ते हुऐ तुझे डर नहीं लग रहा।

राजेंद्र के कहने पर भी आशीष हाथ नहीं छोड़ा बस नजर निचे की ओर रखकर बोला…आप'के सामने पुष्पा का हाथ पकड़ा इससे आप'को बुरा लगा हों, तो मुझे माफ़ कर देना। मैं पुष्पा से बहुत प्यार करता हूं। पुष्पा का हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा जिन्दगी में चाहें कैसा भी मोड़ आए मैं पुष्पा का हाथ ऐसे ही पकड़े रहना चाहता हुं।

आशीष की बाते सुनकर पुष्पा आशीष को एक टक देखने लग गईं । सुरभि और राजेंद्र को आशीष की बाते सून मुस्कुराने का मन किया पर मुस्कुराए नहीं बस आस पास नज़रे घुमा कर देखा फिर राजेंद्र बोला…देखो बहुत से लोग हमारे ओर ही देख रहे हैं इसलिए तुम पुष्पा का हाथ छोड़ो और अपने क्लॉस में जाओ।

आशीष फिर भी पुष्पा का हाथ नहीं छोड़ा न ही पुष्पा को छोड़कर गया ये देख सुरभि बोली…बेटा कम से कम हमारे उम्र का लिहाज करके हमारी बात मान लो।

सुरभि के कहते ही आशीष पुष्पा का हाथ छोड़ दिया ओर पुष्पा को इशारे से साथ चलने को कहकर चल दिया। चुप चाप नज़रे झुकाए पुष्पा भी आशीष के पीछे पीछे चल दिया। दोनो को जाते हुए देखकर राजेंद्र मंद मंद मुस्करा दिया फ़िर राजेंद्र और सुरभि प्रिंसिपल के ऑफिस ओर चल दिया । कुछ वक्त प्रिंसिपल से बात करने के बाद राजेंद्र और सुरभि कॉलेज से चले गए। पुष्पा और आशीष क्लास में पहुंचे ओर अपने अपने सीट पर बैठ गए। पुष्पा के दिमाग में अभी हुई घटनाएं घूम रहा था। तो पुष्पा सोच में ही घूम थी ये देख अशीष बोला...पुष्पा क्या सोच रहीं हों?

पुष्पा…मुझे डर लग रहा हैं। जो नहीं सोचा था आज वो हों गया। अब मैं पापा का सामना कैसे करूंगा पापा ने आज जिस तरीके से मुझसे बात किया ऐसे कभी बात नहीं किया था।

आशीष…जो हुआ अच्छा ही हुआ एक न एक दिन उनको पाता चलना ही था तो आज ही चल गया।

पुष्पा…पाता तो चलना ही था लेकिन ऐसे पाता चलेगी मैंने सोचा नहीं था मैं आज खुद को उनके नजरों में गिरा हुआ महसूस कर रही हूं। पाता नहीं मां और पापा मेरे बारे में क्या सोच रहे होगे।

आशीष…जो सोच रहें हैं वो तो बाद में पाता चल ही जाएगा। इस बरे में अभी सोचकर हम क्यों सर दर्द ले हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। ऐसे ही प्यार करते रहेगें चाहे कुछ भी हों जाए।

आगे इन दोनों में कुछ ओर बाते हो पता उससे पहले ही क्लास में टीचर आ गया इसलिए दोनों बातों को विराम देकर क्लास में ध्यान देने लग गए।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

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रात्रि भोजन का समय हों रहा था दार्जलिंग से कोसो दूर एक घास फूस की बनी झोपड़ी में तीन लोग जिसमे दो महिलाएं और एक जवान लड़का जमीन पर बिछावन बिछाए भोजन कर रहें थे। भोजन करते हुए जवान लड़का बोला…मां हम अपना घर वार अपने लोगों को छोड़कर इतनी दूर इस अंजान जगह पर कब तक रहेगें।

सोमलता...कमलेश तू इतना न समझ तो हैं नहीं जो कुछ भी समझ नहीं पा रहा हैं हम क्यों अपना बसेरा छोड़ इस अंजान जगह सिर छुपाने को मजबूर हुए।

कमलेश…मां मैं सब समझ रहा हु। लेकिन हम कब तक अंजान जगह पर रहेगें और कब तक डर के छाएं में जीते रहेगें हम राजा जी से मिलकर उन्हें बता क्यों नहीं देते।

सोमलता निवाला बनाकर मुंह में ले रही थीं। कमलेश की बातों को सुनकर निवाला वापस थाली में रख दिया फिर बोली…कमलेश तूने सुना था न राजा जी के भाई रावण ने किया कहा था। उसने तेरे बापू को मार दिया मेरा सुहाग उजड़ दिया तेरे सिर से बाप का छाया छिन लिया और धमकी भी दिया अगर हम में से किसी ने राजा जी से मिला या उनको कुछ भी बताया तो वो हम सब को मार देगा। मैं कैसे जीते जी अपने परिवार को उजड़ते हुए देख सकती हूं।

कमलेश…मां मैंने सुना था लेकिन मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं उस कमीने रावण ने बापू को मरा क्यों और हमे राजा जी से मिलने को मना किया फिर गांव छोड़कर दूर जानें को कहा मुझे लगाता हैं आप कुछ जानते हों अगर आप जानती हों तो मुझे बता दो।

सोमलता…बेटा ये एक राज हैं जो तेरे बापू जानते थे ओर अब मैं जानता हूं जो तेरे बापू मरने से कुछ दिन पहले मुझे बताया था। ये राज रावण से जुड़ा हैं इसलिए रावण ने तेरे बापू को मार दिया और हमे धमका कर गांव से भगा दिया।

कमलेश…मां ये राज रावण से जुड़ा हैं तो हमें राजा जी को बता देना चाहिए था न की ऐसे कायरों की तरह मुंह छुपा कर भाग आना चाइए था।

सोमलता…हम भाग कर नहीं आते तो रावण जैसा धूर्त और क्रूर आदमी जिसके अदंर दया का लेस मात्र भी भाव नहीं हैं। मेरे वंश का समूल नाश कर देता ।

कमलेश…मां रावण के जुल्म को हम कब तक सहते रहेंगे, किसी न किसी को उसके खिलाफ आवाज़ तो उठाना ही होगा। आप मुझे वो राज बता दो जिसके कारण पिता जी को मार दिया गया और हमे अपना घर अपना माटी छोड़ने पर मजबुर किया गया।

सोमलता…वो राज मेरे छीने मे दफन हैं और हमेशा हमेशा के लिए दफन रहेगा।

कमलेश…मां जिस राज के कारण मेरे सिर से बाप का छाया उठ गया। उस राज को जानने का हक मुझे हैं।

सोमलता…बेटा जानने का हक तुझे हैं लेकिन वो राज बता कर मैं ओर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए तू जिद्द न कर ओर चुप चाप खाना खा।

कमलेश…मां आप राज बताना नहीं चाहती तो मत बताओ मैं आप'से जिद्द नहीं करूंगा। लेकिन मैं आप'को एक बात साफ़ साफ़ कह देता हूं। जिसके कारण मेरे बाप की मौत हुआ। उस रावण से बाप के मौत का बदला मैं लेकर रहूंगा।

कमलेश की बात सुनकर सोमलता अचंभित हों गईं। सोमलता मुंह में अभी अभी निवाला ढाला था जो उसके गाले में अटक गई जिससे उसे धसका लग गया ओर सोमलता खांसने लग गई। मां को खंसते देखकर कमलेश पानी का गिलास आगे बढाकर सोमलता को दिया फिर जा'कर सोमलता के पीठ को सहलाने लग गया। सोमलाता दो घुट पानी पिया पानी पीने के कुछ देर बाद ही सोमलता की खासी कम हो गया। तब कमलेश बोला…मां आप ठीक हों न।

सोमलता…अभी तो ठीक हू लेकिन लगाता है ज्यादा दिन तक ठीक नही रहूंगी।

कमलेश…मां क्या कह रहीं हों आप भली चांगी तो हों फिर कोई दिक्कत हैं तो कल ही डॉक्टर के पास ले'कर चलता हूं।

सोमलता…डॉक्टर के पास जानें की जरूरत नहीं है बस तू बदला लेने की बात दिमाग से निकल दे फिर मुझे कुछ नहीं होगा।

कमलेश…तो किया मैं वह सब भूल जाऊ जो हमारे साथ हुआ। मां मैं नहीं भूल सकता न ही भुल पाऊंगा। मैं जब तक बदला नहीं ले लेता तब तक मैं चैन से नहीं बैठ पाऊंगा।

सोमलता…कमलेश मैं तुझे भूलने को नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद नहीं भुला सकती हूं। मैं बस इतना कहना चाहती हूं तू जिन लोगों से बदला लेना चाहता हैं वो लोग बहुत ताकतवर हैं तू अकेले उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए तू बदले की भावना को छोड़ दे।

कमलेश…मां आप एक बात भूल रहीं हों हाथी दुनियां के बड़े जीवों में से एक हैं और ताकतवर भी हैं लेकिन चींटी जैसा एक छोटा जीव जब उसके नाक में घुसता हैं तो हाथी से तांडव करवा कर अपनी मौत मरने पर मजबूर कर देता हैं।

सोमलता…बेटा मैं जानता हूं लेकिन तु ये क्यों भुल रहा हैं। चींटी का हाथी से
तांडव करवाने के कारण बहुत से निरीह प्राणी को नुकसान पहुंचता हैं। इसलिए तू रावण जैसे धुर्त व्यक्ति से टकराने का विचार त्याग दे ओर जो हों गया उसे भूल कर बिखरी हुईं हमारी जिन्दगी को संवारने मे लग जा।

कमलेश…मां रावण धुर्त हैं जुल्मी हैं। उसने बहुत से निरीह लोगों पर जुल्म किया हैं। उसके जुल्मों को बहुत सह लिया लेकिन अब नहीं उसके जुल्मों का प्रतिकार होना चाहिए। किसी एक ने विरोध किया तो देखना कड़ी से कड़ी जुड़ता चला जायेगा फिर लोगों का हुजूम उसके विरोध में खड़ा हों जायेंगे।

सोमलता…रावण के जुल्मों का प्रतिकार बहुत से लोग करना चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं जूठा पा रहे हैं क्योंकि रावण के जुल्मों का प्रतिकार करने के लिए उसके जैसा धुर्त होना होगा और उससे एक कदम आगे चलना होगा तभी रावण को मात दिया जा सकता हैं।

कमलेश…मैं रावण जीतना धुर्त नहीं हूं लेकिन मेरा आत्मबल बहुत ज्यादा हैं और आत्मबल से बडे़ से बडे़ बाहुबली को भी मत दिया जा सकता हैं।

सोमलता...तेरा आत्मबल इस वक्त बड़ा हुआ हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन जिस रस्ते पर तू चलना चाहता हैं वह जीत की उम्मीद कम और हार की ज्यादा हैं ओर जब बर बर पराजय का सामना करना पड़ेगा तब आत्मबल ख़ुद वा ख़ुद काम हों जायेगा।

कमलेश…मां मेरा आत्मबल कभी कम नहीं होगा। मैं धीर्ण संकल्प के साथ आगे बढूंगा ओर रावण को मात दे'कर रहूंगा।

सोमलता…तूने बदले की रस्ते पर चलने का फैसला ले लिया तो मैं तुझे नहीं रोकूंगा। तू आगे बढ़ने से पहले मेरे और तेरी गर्ववती बीबी के बारे में सोच लेना क्योंकि तुझे कुछ हों गया तो हम बेसहारा हों जायेंगे।

कमलेश…ठीक हैं मां कुछ भी करने से पहले मैं अच्छे से विचार कर लूंगा।

दोनों मां बेटे के बीच तर्क वितर्क खत्म हुआ फिर सोमलता हाथ धो'कर विस्तार पर जा'कर लेट गई। कमलेश की बीबी झूठे बर्तन उठाकर धोने ले गई। कमलेश भी उसके पीछे पीछे गया और बर्तनों को धोने में मदद करने लग गया । बर्तन धुलने के बाद दोनों पति पत्नी सोने गए लेटकर कामलेश बोला…संध्या रावण से बदला लेने का जो फैसला मैंने लिया हैं। तुम्हें क्या लगता हैं मैने सही फैसला लिया हैं।

संध्या…आप एक बेटे का फर्ज निभा रहे हैं तो आप'का लिया फैसला गलत कैसे हों सकता हैं।

कमलेश…एक बेटे की नजरिए से मेरा लिया फैसला सही हैं। लेकिन एक पति और होने वाले बाप की नजरिए से क्या मैंने सही फैसला लिया हैं?

संध्या…मैं सिर्फ़ खुद के और हमारे आने वाले बच्चे के बारे में सोचूं तो आप'का लिया हुआ फैसला गलत होगा। लेकिन उन लोगों के बारे में सोचूं जो रावण का अत्याचार सह रहे हैं तो आप'का लिया हुआ फैसला सही हैं इसलिए आप अपने फ़ैसले पर अडिग रहे।

कमलेश…सांध्य तुम जो कह रहीं हों वो सही हैं और मां जो कह रहे थे वो भी सही हैं इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा हु मै करू तो क्या करूं।

संध्या…आप इस वक्त असमंजस की स्थिति में हों इसलिए आप इस वक्त कोई निर्णय न लें तो बेहतर ही होगा।

कमलेश…ठीक हैं संध्या मैं इस मुद्दे पर अच्छे से सोच समझकर फैसला लुंगा।

संध्या...हां यहीं सही होगा। अब सो जाइए।

अगले दिन पुष्पा कॉलेज जानें की तैयारी कर निचे आई। नीचे सुरभि और राजेंद्र बठे अखबार में छपे आज के घटनाओं का जायजा ले रहे थे। उनको अखबार पढ़ते देखकर पुष्पा बोली…मां मैं कॉलेज जा रही हूं आप लोग चाहो तो कहीं घूम आओ।

सुरभि…हमे अभी कहीं जाना हैं वह का काम निपटाकर हमे दार्जलिंग वापस जाना हैं।

वापस जानें की बात सुनकर पुष्पा उदास हो गई फ़िर बोली…मां अपने तो कहा था आप दो तीन दिन रुकने वाले हैं फिर अचानक जानें की बात क्यों कर रहें हों। मां बस आज रूक जाओ कल चले जाना।

सुरभि…बेटा तुम्हारे पापा को दार्जलिंग का काम भी देखना होता हैं इसलिए हमे जाना पड़ेगा।

पुष्पा…मां एक दिन रुकने से कोई आफ़त नहीं आ जायेगी फिर भी अगर आप जाना चाहती हों तो जाओ मैं नहीं रोकूंगी।

इतना कहकर पुष्पा पैर फटकते हुए बहार निकाल गई ओर सुरभि आवाज देती रह गई पर पुष्पा रुकी ही नहीं, पुष्पा के जानें के बाद राजेंद्र बोला…हमारे जानें की बात बोलने की क्या जरूरत थीं। खमाखा मेरी लाडली को नाराज कर दिया। सुरभि तुमने अच्छा नहीं किया।

सुरभि…अच्छा मैंने सही नहीं किया तो क्या आप रुक जाते?

राजेंद्र…मेरे लिए मेरी बेटी की खुशी सबसे बड़ी हैं। उसकी खुशी के लिए मुझे एक दिन क्या दस दिन भी रुकना पड़ेगा तो मैं रुकने के लिए तैयार हूं।

सुरभि…तो क्या मुझे मेरी लाडली की खुशी प्यारी नहीं हैं मेरे लिए मेरी बेटी की इच्छाएं सबसे अधिक मायने रखती हैं। मैं तो बस आप'के काम को सोचकर बोल रही थीं।

राजेंद्र…इस बहस को यह विराम देते हैं ओर जल्दी से तैयार हो'कर पुष्पा के कॉलेज चलते हैं नहीं तो मेरी लाडली का आज का दिन खराब हों जाएगा।

दोनों तैयार होकर पुष्पा के कॉलेज को चल दिया। इधर पुष्पा खराब मूढ़ के साथ कॉलेज पहुंच गईं, कही मन नहीं लगा तो क्लास में जा'कर बैठी ही थी। तभी एक लड़का क्लास में आया, पुष्पा को गुमसुम बैठा देखकर बोला…क्या हुआ पुष्पा? गुमशुम क्यों बैठी हैं।

पुष्पा…मुझे कुछ नहीं हुआ मैं ठीक हू। आशीष तुम कैसे हो?

आशीष…मैं बिल्कुल ठीक हूं लेकिन मेरी जानेमन का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा लग रहा हैं। बताओ न बात किया हैं?

पुष्पा…तुम्हारे जानेमन का आज कॉलेज में मन नहीं लग रहा हैं। इसलिए मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

आशीष…ऐसा हैं तो बोलों तुम्हारा मुड़ कैसे सही होगा। तुम्हारा मुड़ सही नहीं हुआ तो मेरा भी आज का दिन खराब हों जाएगा। पुष्पा चलो घूम कर आते हैं।

पुष्पा…मेरा कहीं जानें का मन नहीं हैं। जहां जाना हैं तुम अकेले ही जाओ।

आशीष…इतनी खुबसूरत गर्लफ्रेंड को छोड़कर मैं अकेले क्यों जाऊंगा। बोलों न बात किया हैं जो तुम्हरा मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

पुष्पा…कल मां और पापा आए हैं और आज ही जानें की बात कर रहें हैं इसलिए मेरा मूड खराब हैं।

आशीष बेखयाली में बोला…ओ मेरे होने वाले ससुरा और सासु मां आए हैं। बेखयाली में आशीष क्या सुना और क्या बोला ध्यान नहीं दिया जब ध्यान दिया तो चौंककर बोला…क्या तुम्हारे मम्मी पापा आए हैं तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं आज कॉलेज ही नहीं आता उन्होंने आगर मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो मेरा क्या हाल करेंगे मुझे ही नहीं पता।

पुष्पा…तुम उनके नाम से इतना क्यो डर रहे हों वो कॉलेज थोड़ी न आने वाले इतना डरोगे तो मेरे पापा से मेरा हाथ कैसे मांग पाओगे।

आशीष…कैसे न डरूं तुम्हारे पापा ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो वो कहेंगे मेरी राजकुमारी की ओर देखने की दुस्साहस कैसे किया चल तुझे शूली पर लटका देता हूं। मुझे शूली पर नहीं लटकना, मुझे तुम्हारे साथ शादी करके बची हुई जिंदगी जीना हैं।

पुष्पा…मेरे साथ बाकी की जिन्दगी जीने की इच्छा रखते हों फ़िर भी मेरे बाप से इतना डरते हों। मेरे बाप से इतना डरोगे तो मेरे साथ जिन्दगी जीने का सपना देखना छोड़ दो।

आशीष…ऐसी बाते करके मेरा दिल न दुखाओ मैं तुम्हारे बगैर जीने की सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हारे साथ जीने की सपने को साकार होते हुए देखना चाहता हूं।

पुष्पा…सपना हकीकत तब बनेगा जब तुम पापा से मेरा हाथ मांगोगे वरना तुम्हारा सपना और हमारा प्यार अधूरा रह जाएगा।

आशीष…कोई अधूरा बधुरा नहीं रहेगा। तुम्हारा हाथ मैं क्यों मांगने जाऊंगा तुम्हारा हाथ तो मेरे मां बाप मांगने जायेंगे। अच्छा छोड़ो इन बातों को तुम्हारा मुड़ सही करने के चाकर में मेरा ही सिर भरी हो गया चलो कुछ वक्त बहार टहलकर आते हैं।

दोनों बाहर आ'कर गार्डन में बैठे बाते करने लग गए। राजेंद्र और सुरभि दोनों कॉलेज पहुंचे फिर पुष्पा से मिलने के लिए प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चल दिया। दोनों गार्डन से हो'कर जा रहे थें तभी राजेंद्र की नजर गार्डन में बैठी पुष्पा पर पड़ गया। पुष्पा के साथ बैठे लड़के को देखकर राजेंद्र सुरभि को कोहनी मार कर पुष्पा की ओर दिखाया। पुष्पा की हाथ पकड़कर आशीष कुछ कहा रहा था।ये देखकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर राजेंद्र को देखा फ़िर पुष्पा की ओर चल दिया पुष्पा के पास पहुंच कर राजेंद्र कड़क मिजाज में बोला…पुष्पा तुम कॉलेज पढ़ने आते हों या लडको से बतियाने। तुम ऐसा करोगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

पापा को सामने देखकर पुष्पा सकपका गई। क्या बोले समझ नहीं पा रही थीं। बस मूर्ति बाने ऐसे खड़ी हों गई मानो जान ही न हों ओर आशीष की आशिंकी उड़ान छूं हों गया। हाथ पाओ थर थर कांपने लग गया। जैसे अभी अभी भूकंप आया हों ओर जमीन पर मौजुद सभी चीजों को हिलने पर मजबूर कर दिया हो। दोनों का हल देखकर राजेंद्र और सुरभि को हंसी आने लगा लेकिन खुद को रोककर राजेंद्र कड़े तेवर में बोला…ये लड़का तू भाग यह से मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं हैं। मुझे तो मेरी बेटी से शिकवा हैं। जो भी पुछना हैं पुष्पा से पूछूंगा। जो भी कहूंगा पुष्पा को कहूंगा।

पापा ने इतना ही कहा था कि पुष्पा की आंखे डबडबा गई। चहरे से लग रहा था। अब रो दे तब रो दे। पापा से नज़रे मिलाने की हिम्मत पुष्पा नहीं कर पा रही थीं। आशीष एक नज़र पुष्पा की ओर देखा फ़िर पुष्पा का हाथ पकड़ लिया। आशीष की ओर देख पुष्पा इशारे से हाथ छोड़ने को कहा लेकिन आशीष हाथ नहीं छोड़ा बल्कि ओर कस'के पकड़ लिया। हाथ छुड़ाने के लिए पुष्पा कलाई को मरोढने‌ लग गई। दोनों की हरकतों को देखकर राजेंद्र बोला…ये लड़के पुष्पा का हाथ क्यों पकड़ रखा हैं? छोड़ उसका हाथ ,बाप के सामने बेटी का हाथ पकड़ते हुऐ तुझे डर नहीं लग रहा।

राजेंद्र के कहने पर भी आशीष हाथ नहीं छोड़ा बस नजर निचे की ओर रखकर बोला…आप'के सामने पुष्पा का हाथ पकड़ा इससे आप'को बुरा लगा हों, तो मुझे माफ़ कर देना। मैं पुष्पा से बहुत प्यार करता हूं। पुष्पा का हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा जिन्दगी में चाहें कैसा भी मोड़ आए मैं पुष्पा का हाथ ऐसे ही पकड़े रहना चाहता हुं।

आशीष की बाते सुनकर पुष्पा आशीष को एक टक देखने लग गईं । सुरभि और राजेंद्र को आशीष की बाते सून मुस्कुराने का मन किया पर मुस्कुराए नहीं बस आस पास नज़रे घुमा कर देखा फिर राजेंद्र बोला…देखो बहुत से लोग हमारे ओर ही देख रहे हैं इसलिए तुम पुष्पा का हाथ छोड़ो और अपने क्लॉस में जाओ।

आशीष फिर भी पुष्पा का हाथ नहीं छोड़ा न ही पुष्पा को छोड़कर गया ये देख सुरभि बोली…बेटा कम से कम हमारे उम्र का लिहाज करके हमारी बात मान लो।

सुरभि के कहते ही आशीष पुष्पा का हाथ छोड़ दिया ओर पुष्पा को इशारे से साथ चलने को कहकर चल दिया। चुप चाप नज़रे झुकाए पुष्पा भी आशीष के पीछे पीछे चल दिया। दोनो को जाते हुए देखकर राजेंद्र मंद मंद मुस्करा दिया फ़िर राजेंद्र और सुरभि प्रिंसिपल के ऑफिस ओर चल दिया । कुछ वक्त प्रिंसिपल से बात करने के बाद राजेंद्र और सुरभि कॉलेज से चले गए। पुष्पा और आशीष क्लास में पहुंचे ओर अपने अपने सीट पर बैठ गए। पुष्पा के दिमाग में अभी हुई घटनाएं घूम रहा था। तो पुष्पा सोच में ही घूम थी ये देख अशीष बोला...पुष्पा क्या सोच रहीं हों?

पुष्पा…मुझे डर लग रहा हैं। जो नहीं सोचा था आज वो हों गया। अब मैं पापा का सामना कैसे करूंगा पापा ने आज जिस तरीके से मुझसे बात किया ऐसे कभी बात नहीं किया था।

आशीष…जो हुआ अच्छा ही हुआ एक न एक दिन उनको पाता चलना ही था तो आज ही चल गया।

पुष्पा…पाता तो चलना ही था लेकिन ऐसे पाता चलेगी मैंने सोचा नहीं था मैं आज खुद को उनके नजरों में गिरा हुआ महसूस कर रही हूं। पाता नहीं मां और पापा मेरे बारे में क्या सोच रहे होगे।

आशीष…जो सोच रहें हैं वो तो बाद में पाता चल ही जाएगा। इस बरे में अभी सोचकर हम क्यों सर दर्द ले हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। ऐसे ही प्यार करते रहेगें चाहे कुछ भी हों जाए।

आगे इन दोनों में कुछ ओर बाते हो पता उससे पहले ही क्लास में टीचर आ गया इसलिए दोनों बातों को विराम देकर क्लास में ध्यान देने लग गए।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
ye ravan to sach mein ravan nikla..somlata ke pati ko to jaan se maar diya, upar se somlata ke suhag ko chinne ke baad , somlata dhamki bhi di ki agar wo rajendra ke paas kuch bhi batane ko gayi to jaan se maar dega uske puri pariwar ko..
Sach mein ravan ka aatank itna tha ki kamlesh aur somlata gaon chhodke jana para.
Well... ab kamlesh ko jaise bhi karke jaanna hai us raaz ko jo somlata ke sine mein dafan hai... lekin somlata mana kar deti thi bataane se har baar ...
waise kamlesh ne pran le liya hai ki kaise bhi karke by hook or crook ravan se badla leke hi rahega
Wohi dusri taraf college mein gumsum si khoyi huyi thi pushpa.... aur behad udash bhi thi kyunki rajendra aur surbhi ghar wapas jaane wale the....
Ashish bhi ushe samjhane ki koshish ki...
Waise ye baat kisiko bhi pata nahi hoti hai ki jindagi mein kab kounsa twist aa jaaye, kounsa surprise mil jaaye ... waise kayi baar aise twists ya surprises unaccepted hota hai aur shocking bhi :D
Jaise puspa sapne bhi nahi soch hoga ki uske parents yun achanak college aa jayenge.. wo bhi uske aur uski premi ke saamne... :D
Natak hi sahi lekin jis tarah rajendra aisi ki taisi ki un dono...Padhke bada bada maza aaya :D
puspa ki to dar maare band baj gayi. :lol:. ab kaise nazren milayegi apne papa se ...

Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:
 
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Itna shandaar aur motivated rovo diya uske liye bahut bahut shukriya 🙏

Komlesh kitna nukshan ravan ko pahucha pata hai ya phir kitna raj jan pata hai ye aane wale update me pata chlega.

Rajendr dikhba nehi karta to shayad hi jaan pata ki aashish pushpa se kitna pyaar karta hai ya phir aashish pushpa ke liya sahi ladka hai bhi nehi.
 
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Update - 12

राजेंद्र और सुरभि पुष्पा के कॉलेज से चल दिए थे जाते वक्त रास्ते में सुरभि बोली...अपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही गर्म तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र…सुरभि मुझे अपना तेवर गर्म करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परख पाता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि…लड़के को परखना ही था तो आज ही परखना जरूरी था आप बाद में भी परख सकते थें। आज प्यार से बात करके दोनों की राय जान लेते तो अच्छा होता।

राजेंद्र…बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को दिखावा करने का मौका नहीं मिला आज उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने को कहा।

सुरभि…आप क्या कोई अंतरयामी हों? जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिया।

राजेंद्र…इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं था। जो कुछ भी हुआ आंखों के सामने दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि...कितना गौर से देखा ओर क्या देखा? मैं जान सकता हूं।

राजेंद्र...जब हम अचानक दोनों के सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सिर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि…मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…करना क्या हैं? ये पुष्पा ही बता सकती है। पुष्पा जो चाहेगी मैं वहीं करुंगा।

सुरभि...इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…हमारी बेटी ने कोई जूर्म नहीं, प्रेम किया हैं मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोला…कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…जी साहब।

सुरभि…हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं?

राजेंद्र…कॉलेज से कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…अपको क्या लगाता हैं? वो लोग रिश्ते के लिए राजी हो जाएंगे।

राजेंद्र…हमे लड़की पसंद हैं ये सूचना उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना ये तो उनका फैसला होगा।

बातो बातों में कॉलेज आ गया। दोनों उतरकर प्रिंसिपल के ऑफिस कि ओर चल दिया। बाहर खड़ा पिओन दोनों को देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोला…सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

ये सुन प्रिंसिपल बाहर आय। दरवाज़े पर किसी को न देख पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई दिया। प्रिंसिपल जल्दी से दोनों के पास गए फ़िर हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम किया। राजेंद्र और सुरभि भी प्रिंसिपल को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल के साथ चल दिया, अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को बोल दिया ओर अंदर आ गए। प्रिंसिपल सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहा, दोनों के बैठते ही प्रिंसिपल बोला...राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र…हम कुछ जरुरी काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…आप बताइए मेरे बस में हुआ तो मैं बेशक आप'की मदद करूंगा।

राजेंद्र…कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल…ओ तो आप'को कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वो खुद ही आप'को अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर बोला…कमला को बुलाकर लाओ।

पिओन कमला को बुलाकर लाया कमला बाहर से ही पूछा…सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल के कहने पर कमला अंदर आ गई। राजेंद्र और सुरभि को देखकर दोनों को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल से पूछा…सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ जरुरी काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला…कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर ले'कर जाओ।

कमला…सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल…कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर क्लास कर लेना।

कमला…जी सर फिर राजेंद्र से बोला…चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल दिया। कार के पास आ'कर राजेंद्र आगे बैठ गया और सुरभि के साथ कमला पीछे बैठ गई। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला दिया। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती रहीं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ गया। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर ले गया। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजाया। कुछ देर में कमला की मां ने दरवजा खोला ओर कमला को देखकर बोली…कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला…मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र को दिखते हुए बोली….इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

राजेंद्र और सुरभि को देखकर मनोरमा दोनों को प्रणाम किया फिर सभी अंदर गए, अंदर आ'कर राजेंद्र और सुरभि बैठ गए ओर कमला किचन में गई पानी ला'कर दोनों को दिया फिर बोली…मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा...ठीक हैं संभाल कर जाना।

सुरभि…बेटी रुको।

सुरभि कमला को ले'कर बाहर गई ओर ड्राइवर को बोली…जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ कर आओ।

कमला…मैं चली जाऊंगी। इनको परेशान होने की जरुरत नहीं हैं।

सुरभि...बेटी चली तो जाओगी लेकिन जाने में आप'को देर हों जायेगी। इसलिए आप उसके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सिर हिलाकर हां बोल कार में बैठ कर कॉलेज को चल दिया। सुरभि अंदर गई फिर बोली...बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि...जी हां।

मनोरमा…आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि…रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा…जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आप'की एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि रोकना चाहा पर मनोरमा नहीं रूकी तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि को किचन में आया देख मनोरमा बोली…आप क्यो आ गई? आप जा'कर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि…जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आप'की क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो चाय जल्दी बन जायेगा।

मनोरमा…जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाया जाता।

सुरभि आगे कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दिया फिर मनोरमा चाय बनाने लग गई। चाय बनते ही तीन काफ में चाय डाला और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लिया, सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लिया फिर दोनों आ'कर चाय और नमकीन रखकर बैठ गए। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को, एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद लिया फ़िर चाय पीते हुए सुरभि बोली….बहन जी आप'के पति कहा हैं।

मनोरमा…जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि…बहनजी हम आप'से कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी कर सकते हों।

मनोरमा...मैं आप'को क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आप'को किस चीज की कमी है जो आप मुझ'से मांग रहीं हों।

सुरभि…हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…आप'के परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझ'से मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में हुआ तो मैं जरूर आप'की मांग पूरा करूंगा। ये तो मेरा सौभाग्य होगा। राज परिवार से मेरे पास कुछ मांगने आया और मैं उनका मांग पूरा कर पाया।

सुरभि…जी हम आप'के सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पूरा कर सकती हो?

मनोरमा चाय पीते पीते रूक गई और अचंभित हो'कर देखने लग गईं मनोरमा को यकीन ही नहीं हों रहा था राज परिवार जिनके सामने वो निम्न है फिर भी कितने विनम्र भाव से उनके बेटी का हाथ मांग रहे हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोला…आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर दीजिएगा।

मनरोमा…नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसका हाथ मांगने कोई न कोई आएगा। हम आप'के राजशाही ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए इसलिए मैं अचंभित हों गया।

राजेंद्र…राजशाही ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे आप'की बेटी पसंद आया इसलिए हम आप'की बेटी का हाथ मांगने आ गए। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उससे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा…आप का कहना सही हैं लेकिन मैं अकेले फैसला नहीं ले सकती मेरा पति होता तो ही कुछ कह पाता।

सुरभि…हम आप'से सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा…मैं कल कमला के पापा को रुकने को कह दूंगी आप कल फिर आ जाना तब बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर दोनों की हा हुआ और आप'को रघु पसंद आया तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा…हां ये ठीक रहेगा। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखता जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहना हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखता हैं।

राजेंद्र…तो ये तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा ले'कर चल दिया। घर आ'कर राजेंद्र ऑफिस में फोन लगा रघु को आज ही कलकत्ता आने को कहा तो रघु आने का कारण जानना चाहा तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना दिया और अभी के अभी चल देने को कहा। रघु फोन रखकर मुंशी के पास गया ओर बोला...काका मैं कलक्तता जा रहा हू कुछ जरुरी काम से पापा बुला रहे हैं।

इतना कह रघु घर पंहुचा फिर तैयार हो'कर नीचे आया। रघु को देख सुकन्या बोली... बेटा अभी तो ऑफिस से आए हों फ़िर कहा चल दिया।

रघु...छोटी मां पापा का फ़ोन आया था। जरूरी काम से कलकत्ता बुला रहे हैं। इसलिए कलकत्ता जा रहा हूं।

सुकन्या...अकेले मत जाना साथ में ड्राइवर को लेकर जाना ओर हां वह पहुंचकर फोन कर देना।

रघु... छोटी मां मैं बच्चा नहीं हूं जो अकेले नहीं जा सकता।

सुकन्या... जितना कहा उतना कर नहीं तो मैं कलक्तता फ़ोन कर कह दूंगी रघु को नहीं भेज रहीं हूं।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अपने जैसा कहा वैसा ही करूंगा अब तो आप खुश हों ना!

सुकन्या... हां खुश हूं ओर सुन ड्राइवर को कहना कार ज्यादा तेज न चलाए आराम आराम से जाना।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अब मैं जाऊ।

इतना कह रघु चल दिया। इधर पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय काट रहीं थी। सुबह की घटना से दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष... पुष्पा चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं

पुष्पा...रहने दो अशीष मैं चली जाऊंगी।

अशीष...ज्यादा बाते न बनाओ चुप चाप कार में बैठो।

पुष्पा के बैठते ही दोनों चल दिया। पुष्पा गुमसुम बैठी थीं ये बात अशीष को खल रहा था तो अशीष बोला...पुष्पा क्या हुआ? आज इतने खामोश क्यों बैठी हों? कॉलेज में भी गुमसुम रही ओर अब भी, सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों रही हों? जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा...तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया सिर्फ बात ही नहीं किया बल्की गुस्सा भी हों गए। अशीष मुझे डर लग रहा हैं घर जानें पर न जानें कितनी बाते सुनना पड़ेगा।

आशीष…उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं। सभी मां बाप अपने बेटी को ले'कर चिंतित रहते हैं। क्योंकि दुनिया में सब से पहले उंगली लडक़ी पर उठाया जाता हैं चाहें गलत कोई भी हों ओर हम'ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा…मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी। लेकिन मेरे मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। हम दोनों के बारे में उन्हें पहले ही बता देना चाहिए था। बता दिया होता तो आज ऐसा न होता। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष...बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ, तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…खुद मेरे मां बाप से बात करने से डरते हों ओर कह रहे हों मैं बात करूंगा।

आशीष…पहले डर लगता था अब नही, सुबह ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। तुम घर जाओ बात ज्यादा बढ़े तो मुझे बता देना मैं मम्मी पापा को कल ही तुम्हारे मां बाप से बात करने भेज दूंगा।

पुष्पा...आशीष फिर भी मुझे डर लग रहा हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…जो भी बात हों मुझे बता देना।

घर से थोड़ी दूर पुष्पा ने कार रुकवा दिया कार रुकते ही पुष्पा उतर गई फिर बोली...अशीष अब तुम जाओ मैं यहां से पैदल घर चली जाऊंगी।

अशीष... ठीक हैं जाओ ओर जो भी बात हो मुझे याद से बता देना।

पुष्पा... ओके बाय कल मिलते है।

अशीष...बाय muhaaa!

पुष्पा धीरे धीर चलते हुए जा रहीं थीं। जैसे जैसे घर नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे पुष्पा बेचैन होती जा रही थीं और मन ही मन दुआं कर रही थीं मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच गई फिर डरते डरते दरवाजे पर टंगी घंटी बजा दिया ओर आंखें बंद कर खड़ी हों गईं। चंपा आ'कर दरवजा खोला फिर बोला…मेम साहब आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंखे खोल दिया और बनावटी मुस्कान लवों पर सजा अंदर आ गई फ़िर बोली…मां पापा कहा हैं।

चंपा…जी वो तो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा…नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा…मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जा'कर रेस्ट करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जा'कर लेट गई। बेड पर करवटे बदल बदल कर, आगे क्या होगा सोच सोचकर घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा कुछ देर में सो गई।

शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोया फिर रूम से बाहर आ बैठक में बैठ गई।

सुरभि...चंपा चाय ले'कर आना।

"अभी लाई" बोल कुछ देर में चंपा चाय ला'कर दोनों को दिया। चाय ले'कर सुरभि बोली...पुष्पा आ गई है।

चंपा…रानी मां पुष्पा मेम साहब आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि... कब की आई हुई है ओर अभी तक खाना नहीं खाई, तुम पहले नहीं बता सकती थी। जाओ कुछ खाने को लाओ मैं जा'कर देखती हू।

राजेंद्र…सुरभि मुझे लग रहा हैं पुष्पा सुबह की बातों से परेशान हों गई होगी जल्दी चलो मुझे डर लग रहा हैं। कहीं कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि...आप'को कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं, मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लग गई और आवाज देने लग गई पर दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली…देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

सुरभि को हटाकर राजेंद्र जोर जोर से दरवजा पीटने लग गया साथ ही आवाजे देने लग गया। शोरशराबे के करण पुष्पा की नींद टूट गया, आंखे मलते हुए पुष्पा उठकर बैठ गई तभी उसे फिर से आवाज सुनाई दिया आवाज सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली…न जानें अब किया होगा हे भगवान बचा लेना मां पापा का सामना कैसे करूंगी? उन्हें क्या जवाब दूंगी?

सुरभि रोते हुए बोली…कितनी देर ओर दरवाजा पीटेंगे दरवाजा तोड़ दीजिए न!

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली...मां रो क्यों रहीं हैं? पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं?

इतना बोल पुष्पा जा'कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आ'कर पुष्पा को गाले से लगकर बोली…तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

पुष्पा को घुमा फिराकर देखा फिर मूंह के पास नाक ले जा'कर सूंघा ओर सुरभि बोली…तूने कुछ पिया बिया तो नहीं न, देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा…न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं आप ये क्यों पुछ रहें हों?

राजेंद्र पुष्पा को ले जा'कर बेड पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गया। साथ के साथ सुरभि भी जा'कर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ गई फ़िर पुष्पा के सिर पर हाथ फिराने लग गई ओर राजेंद्र बोला…भूल कर भी ऐसा वैसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा, तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में न जानें मैने और तुम्हारे मां ने किया से किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल रो रो कर कैसा बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। सुरभि के बहते अंशु को पोछकर पुष्पा बोली….मां पापा मुझे माफ कर देना अपने मुझे यह पढ़ने के लिए भेजा ओर मैं यह पढ़ने के साथ साथ कुछ ओर कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया ओर बोली…तुम दोनों के बीच ये सब कब से चल रहा हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि की आंखो में देखकर समझने की कोशिश करने लग गई, सुरभि डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं। फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लग गई। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और बताने से डर भी रहीं थीं। ये देख राजेंद्र बोला...बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुम'से नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बोली बस चुप चाप बैठे बैठे हाथ की उंगलियों को मढोरने लग गईं। ये देखकर राजेंद्र मुस्कुरा दिया फ़िर बोला…पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुम'से लड़के का आता पता ले'कर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हारे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती हों तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

"मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं। शादी करूंगी तो आशीष से, नहीं तो किसी से नहीं!" बोलने को तो बोल दिया। जब ख्याल आया क्या बोला दिया तो शर्मा कर हाथो से चेहरा छुपा लिया। बेटी को शर्माते देख राजेंद्र और सुरभि मुस्कुरा दिया फिर राजेंद्र बोला...Oooo Hooo इतना प्यार, तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पापा की बाते सून पुष्पा इतना शर्मा गई कि उठकर जानें लगीं तब सुरभि हाथ पकड़ लिया तो पुष्पा शर्मा कर मां से लिपट गई फिर सुरभि बोली...अब शर्माने से कोई फायदा नहीं, हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखा फ़िर नज़रे झुका कर बोली…मां आप दोनों मुझ'से नाराज़ तो नहीं हों। आप सच कह रहे हों मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…हां! तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो बता दिया अब ये भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहा हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उसके घर वाले क्या करते हैं?

पुष्पा…आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल चल रहा हैं। हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। उसके घर में मां बाप एक बहन बडा भाई और भाभी हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा संभालते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। तैयारी भी पूरा हो चुका हैं दो महीने बाद पेपर हैं।

राजेंद्र…आशीष ips ऑफिसर बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। ये तो अच्छी बात हैं। तुम आशीष को फोन कर बता दो हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष मां बाप को साथ लेकर कल शाम को हमारे घर आ जाए।

पुष्पा…ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर कमरे में रखे टेलीफोन से फोन लगा दिया फ़ोन उठते ही पुष्पा बोली...आशीष मां पापा मुझ'से नाराज नहीं हैं।

अशीष...Oooo thank god मेरा तो सोच सोच कर भूख ही मर गया था।

पुष्पा...भूखा ही रहना कल शाम के खाने पर तुम्हें और मम्मी पापा को बुलाया हैं।

अशीष...Oooo nooo एक बार फिर से तुम्हारे हाथ का जला हुआ खाना ही ही ही..।

पुष्पा…क्या बोला मैं जला हुआ खाना बनाती हूं। आओ इस बार पक्का तुम्हें जला हुआ खाना दूंगी।

अशीष...आरे नाराज़ क्यों होती हों जानेमान मैं तो मजाक कर रहा था।

पुष्पा...मैं भी मजाक कर रही थीं मैं रखती हूं कल टाइम से आ जाना।

दोनों एक दूसरे को बाय बोल कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया फिर पुष्पा नीचे आ'कर मां बाप के साथ चाय नाश्ता किया फ़िर बातों में लग गई।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों गया। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित हो रहे थें। घर के बहार एक कार आ'कर रुका, सुरभि और राजेंद्र राजेंद्र तुरंत उठे ओर बहार को चल दिया। मां बाप को देख रघु दोनों के पैर छुआ फ़िर हल चाल पूछा ओर साथ में अन्दर को चल दिया। अंदर आ'कर पुष्पा को न देखकर बोला…मां पुष्पा कहा हैं?

सुरभि... पुष्पा अभी अभी रुम में गई हैं….।

इतना सुन रघु उठा ओर बहन के रुम की ओर भाग गया। रघु भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा दिया। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देख चीख पड़ी फ़िर बोली…भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु…मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु…सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…मुझे कोई याद नहीं करते, याद करते होते तो मुझ'से मिलने आ जाते आप भी नहीं करते न ही अपने इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु…किसने कहा मैं तूझ'से प्यार नहीं करता। तुझ'से प्यार नहीं करता तो आते ही तुझ'से मिलने क्यों आता।

पुष्पा…अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझ'से बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धो'कर आओ फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जा'कर हाथ मुंह धोकर आया फिर सभी के साथ बैठ गया और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर दिया। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा दिया फिर रूठकर बैठ गई बहन को रूठा देख रघु तरह तरह के लालच देकर माना लिया। ऐसे ही दोनों भाई बहन में रूठने मनाने का दौर चलता रहा ओर मां बाप दोनों भाई बहन के प्यार भरी नोक झोंक देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। बहन से कुछ वक्त तक बात करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछा…पापा इतना क्या जरूर काम था जो अपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि…ऑफिस जाना शूरू किए जुम्मा जुम्मा दो दिन नहीं हुआ और काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनकर सभी हंस दिए फिर राजेंद्र बोला…जरूरी काम हैं इसलिए बुलाया, कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोले…कह जाना हैं।

सुरभि…कल तक वेट करों फिर जान जाओगे।

पुष्पा...मां आप मेरी अच्छी मां हों न, बोलों हों न!

सुरभि...तू कितना भी मस्का लगा ले मैं नहीं बताने वाली।

पुष्पा...आप'से पुछ कौन रहा हैं? Papaaa...।

राजेंद्र... न न महारानी जी मैं भी नहीं बताने वाल।

पुष्पा... भईया सभी रास्ते बंद हों गए अब क्या करूं।

रघु...रात भार की बात हैं। किसी तरह रात कांट लेते हैं सुबह पाता चल जायेगा।

पुष्पा...हां सही कह रहो हों इसके आलावा कोई ओर रस्ता नहीं हैं।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, यहां तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

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चाय बनते ही तीन काफ में चाय डाला और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लिया, सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लिया फिर दोनों आ'कर चाय और नमकीन रखकर बैठ गए
Wel abhi to bas chai ke sath namkin aa rahi hai bas... :Drishta tay hone ke baad mithayi bhi baategi.. Matlab mithayi degi khane ko :D
 

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