Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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वार का नजारा देखने योग्य था। जहां तहां नशे में लोग झूम रहे थे। वार में मौजुद एक एक टेबल पर बैठे लोग दारू का माजा लेने में लगे हुए थे। वहीं कोने के एक टेबल पर अपश्यु की रेकी करने वाला लडका बैठे छोटे छोटे पैग बनाकर दारू का स्वाद ले रहा था। बैठे बैठें लडका बोर हों गया तो गाली देते हुए बोला…bc उस्ताद कहा रह गए कब से वेट कर रहा हूं। लेकिन उस्ताद आ ही नहीं रहे। थोड़ी देर ओर देखता हूं आया तो ठीक नहीं तो वो जाने उनका काम जाने।

एक दो पैग ओर लडके ने गटका ही था कि एक लडका आ'कर बोला…क्या वे अकेले अकेले पिए जा रहा हैं मुझे भुल गया।

लडका उसकी ओर देखकर बोला…अरे उस्ताद आप कब आएं सब कुशल मंगल हैं न!

लडका...मुझसे ही षडपंती कर रहा हैं। चल जल्दी से एक मस्त पटियाला पैग बना ओर सुना मेरे आइटम की क्या खबर हैं।

(यह दोनों को एक एक नाम उपहार स्वरूप दे दिया जाए वैसे तो इनका ज्यादा रोल नहीं हैं लेकिन पाठकों और मेरे सुविधा के लिए इनका नाम करण कर ही देता हूं। जो लडका रेकी कर रहा था उसका नाम विंकट और जो उसका उस्ताद है उसका नाम संकट है। तो पाठकों नामकरन कैसा रहा बताने से चुकिएगा नहीं)

विंकट पैग बनाते हुए बोला…उस्ताद आप अपने आइटम को भुल जाओ ओर कोई दूसरा आइटम ढूंढ लो।

संकट…अब्बे सटिया गया हैं। उसे कैसे भुल सकता हूं बहुत मालदार पार्टी हैं। आइटम हाथ से निकल गया तो माल भी हाथ से निकल जाएगा।

विंकट…उस्ताद आप सपने देखना छोड़ दो आप'के सपने पर डांका पड़ चुका है। आइटम भी आप'के हाथ से गया ओर माल पाने का सपना भी टूट कर बिखर गया।

संकट…अब्बे किया घुमा फिरके बोल रहा हैं सीधे सीधे बोल नही तो ये बोतल देख रहा हैं न, तेरे पीछे डाल दूंगा।

विंकट…नही नहीं उस्ताद बोतल बहुत मोटा हैं मैं झेल नहीं पहुंगा आप को कुछ ओर डालना हों तो वो ढूंढ कर लाओ।

संकट…अच्छा तो बोलेगा नहीं पीछे लेने का पूरा मुड़ बना चुका हैं रूक अभी लाया।

संकट इधर उधर देखने लग गया उसे गेट पर एक गार्ड हाथ में डंडा लिए खड़ा दिखा। इसको देखकर विंकट को उसकी और दिखाते हुए बोला…जल्दी बोल नहीं तो गार्ड के हाथ में जो डंडा हैं वो डाल दूंगा।

विंकट…क्या उस्ताद कभी बोतल तो कभी डंडा डालने के पीछे पड़े हों मैं तो मजाक कर रहा था। आप बैठो और दो चार मोटा पैग ओर गटक लो फ़िर आप'के आइटम की खबर सुनता हूं।

संकट…पैग तो मैं पी ही लूंगा पहले तू खबर सुना मेरी आइटम क्या गुल खिला रहीं हैं।

विंकट…उस्ताद पहले आप दो चार पैग गटक लो क्योंकि खबर सुनने के लिए आप'को नशे में होना बहुत जरुरी है नहीं तो आप बर्दास्त नहीं कर पाओगे।

संकट…जल्दी बोल मेरा दिमाग मत खां नहीं तो बोतल और डंडा तेरे आगे पीछे से डाल दूंगा फिर न हाग पाएगा न हागने के लिए कुछ खां पाएगा।

विंकट…अरे अरे उस्ताद आप भड़क क्यों रहे हों। आप शान्त हो'कर बैठो मैं सुनता हूं।

संकट बैठा गया ओर एक पटियाला पैग बनाकर गटक लिया फिर विंकट शुरु हों गया…उस्ताद आप'का आइटम पिछले दो तीन दिनों से दिन का अधिकतर समय अपश्यु राना के साथ बिताया हैं ओर आज ही आप'के आइटम ने अपश्यु का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया हैं। दोनों आज शॉपिंग पर भी गए थे वहां दोनों ने बहुत मौज मस्ती किया। आप का पत्ता कट हों गया।

संकट के हाथ में जो गिलास था उसे टेबल पर पटकते हुए बोला…मैं इस अपश्यु को छोडूंगा नहीं जब भी मैं कोई माल पटाता हूं डांका डालने पहुंच जाता हैं। लेकिन अब नहीं इसको तो मैं ढंग से सबक सिखाऊंगा।

विंकट…उस्ताद आप क्या करने की सोच रहे हों आप जानते हों न वो राजा जी का भतीजा हैं। कुछ भी यहां वहां किया ओर पकड़े जानें पर लंबे नापे जाओगे।

संकट...मैं उसे जान से नहीं मारूंगा बस कुछ महीनों के लिए उसके हाथ पाओ तोड़कर अस्पताल पहुंचा दूंगा। उसके अस्पताल पहुंचे ही डिम्पल को ले'कर भाग जाऊंगा।

विंकट…अपने अपश्यु को ऐसा वैसा समझ लिया एक नंबर का कमिना हैं ओर आप किसे ले'कर भागने की बात कर रहे हों वो तो आप'को भव ही नहीं देती तो आप'के साथ भागेगी क्यों।

संकट...अपश्यु कमीना है तो मैं भी कोई कम कमीना नहीं हूं। डिम्पल मेरे साथ भागेगी नहीं तो उसे किडनैप करके ले जाऊंगा।

विंकट…ठीक हैं आप'को जो करना हैं करों लेकिन मुझे बीच में मत घसीटना।

संकट…तुझे क्यों न घसीटू तू ही तो मेरा काम करेगा। आज से तू अपश्यु के एक एक पल की खबर देगा वो कब कहां जाता है किस'से मिलता हैं।

विंकट…उस्ताद खबर तो मैं दे दुंगा लेकिन इसके अलावा मैं कुछ ओर नहीं करूंगा।

संकट…तू इतना ही कर दे बाकी का मैं देख लूंगा चल अब बोतल खाली करके चलते हैं।

दोनों पूरा बाटली खाली कर नशे में इधर उधर गिरते पड़ते चले गए। अगले दिन से विंकट अपने काम में लग गया। अपश्यु के पीछे छाए की तरह लग गया। अपश्यु जहां भी अकेले या डिंपल या फिर किसी ओर के साथ जाता विंकट वहां वहां पहुंच जाया करता।

इधर दलाल अपने बेटी की शादी रघु से करवाने के जुगाड में लग गया। इसके लिए सब से पहले उसे अपनी बेटी को अपने पास बुलाना था जो उसके पास नहीं रहता था वो अपनी मां के साथ बैंगलोर में रहती थीं। दलाल रोज अपनें बीवी दामिनी को फोन कर दोनों को आने को कहता लेकिन दामिनी आ ही नहीं रहीं थीं बल्कि उल्टा दलाल को खरी खोटी सुना दिया करती थीं। इसके पीछे कारण ख़ुद दलाल ही था।

दामिनी जब गर्ववती हुईं थी तब दलाल आस लगाए बैठा था बेटा होगा लेकिन हुआ बेटी। इसलिए दलाल हमेशा दामिनी को ताने दिया करता था साथ ही अपनी बेटी सुहासिन के साथ सौतेला व्यवहार करता था। सुहासिनी को वेबजाय मरा पीटा करता था। एक दिन ऐसे ही दलाल वेबजाय ही सुहासिनी को पीट रहा था। तब दामिनी बीच में आ गई उस दिन दलाल ने दामिनी को भी बहुत पीटा था तो दामिनी अपने बेटी को लेकर बैंगलोर अपनें मायके चली गई फ़िर कभी लौट कर नहीं आई।

तब दलाल ने दामिनी को डाइवोस दे'कर दूसरी शादी कर लिया। लेकिन अब दलाल अपनें स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने बेटी को भी अपनाने को तैयार हों गया। जिसे उसने कभी अपनाया नहीं था जबकि दलाल ने दूसरी शादी भी कर लिया था। दलाल की फूटी किस्मत कहो या ऊपर वाले के दंड नियम की सजा कहो, दलाल की दूसरी बीवी कभी मां ही नहीं बन पाई ओर दलाल औलाद के होते हुए भी बेऔलाद रह गया। रावण इसी बात को लेकर कभी कभी दलाल को छेड़ा करता था ओर पूछता था भाभी और तेरी बेटी कैसी हैं दलाल बस हंसकर टाल दिया करता था।


इतना फोन करने के बाद भी जब दामिनी नहीं आई। तो दलाल खुद ही बैंगलोर पहुंच गया। दामिनी बैंगलोर सिटी से कुछ ही दूर पर रह रही थी। दामिनी बैंगलोर का एक जाना माना वकील हैं। दामिनी के घर पहुचकर दलाल दरवाजे की घंटी बजा दिया। कुछ वक्त में एक औरत ने दरवाजा खोल दिया फ़िर दलाल को देखकर बोली…tummmm, यहां पर क्यों आए हों? इतना सुनाने के बाद भी तुम यहां आ गए, निकल जाओ यह से मेरा तुम्हारा रिश्ता बहुत पहले खत्म हों चूका हैं। जिसके दिल में मेरी बेटी के लिए कोई जगह नहीं उसके लिए मेरे जीवन और घर में कोई जगह नहीं!

इतना कहकर दामिनी ने दरवाजा बंद कर दिया। दलाल दरवाजा पिटता रह गया पर दरवाजा नही खुला। कुछ वक्त ओर दरवाजा पिटता रह "दामिनी दरवाजा खोलो एक बार मेरी बात तो सुन लो जो हो गया उसे भूलकर मुझे माफ़ कर दो" बोल आवाजे देता रहा पर कोई नतीजा हाथ न लगा। थक हार कर दलाल घर से कुछ दूर जा'कर खड़ा हों गया।

दलाल को वह खड़े खड़े दो तीन घंटा बीत गया। जेब में रखा सिगार भी खत्म हो गया था। तो सिगार की तलब बढ़ता गया, क्या करे क्या न करें सोच सोच दिमाग भी काम करना बन्द कर दिया। इसलिए दलाल इधर से उधर चहल कदमी करने लग गया। तभी उसे एक जाना पहचाना चेहरा उसके ओर आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर दलाल के चेहरे पर एक मुस्कान आ गया फिर दलाल चल कर उसके पास पहुंचा ओर बोला…दामिनी मेरी बात तो सुनो जो हुआ उसे भूल जाओ।

दामिनी बिना सुने बिना दलाल को देखे कन्नी काटकर निकल गई। दामिनी के पीछे पीछे "दामिनी सुनो, सुनो तो" करते हुए दलाल भी चल दिया। लेकिन दामिनी बिना कुछ बोले अपने रस्ते चलती रहीं। आते जाते लोग दोनों को देख रहे थे। इतने लोगों द्वारा देखे जाना ओर एक औरत का भाव न देना दलाल के अहम को चोट कर गया। अहम के चोटिल होते ही दलाल बौखला गया। दामिनी का हाथ पकड़ खींचा फिर बोला…तुम खुद को क्या समझती हों मैं तुम्हारा पति हूं। तुम्हारा पति तुम्हें आवाज दे रहा हैं तुम सुनने के बजाय अनसुना करके चली जा रही हों।

दामिनी पलट कर एक झन्नाटेदार थाप्पड दलाल के गाल पर जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था जिसकी छाप दलाल के गालों पर छप गया फिर दामिनी बोली….mr दलाल न तुम मेरे पति हों न ही मैं तुम्हारा बीबी हूं। हमारा रिश्ता वर्षो पहले खत्म हों चुका हैं। इसलिए दुबारा खुद को मेरा पति कहा तो तुम्हारे हलक में हाथ डालकर तुम्हारा जुबान खीच लूंगी।

दलाल…तुम मानो या न मानो आज भी मैं तुम्हारा पति हूं। इसलिए जो हुआ उसे भूल जाओ। मेरी बेटी और तुम्हें लेने आया हूं। तुम दोनों मेरे साथ चलो।

दामिनी…मेरी बदकिस्मती है की तुम मेरे पति बने, तुम किसे अपना बेटी कह रहे हों सुहासिनी सिर्फ और सिर्फ मेरी बेटी हैं उसे तुमने कब अपना बेटी माना था जो अब कह रहे हों। भूल गए उसके पैदा होने पर तुमने मुझे जो मन में आया सुनते रहे। उस विचारी को बाप के होते हुए भी बाप का प्यार दुलार नहीं मिला। जब तुम'ने उसे अपना बेटी माना ही नहीं तो अब क्यों लेने आए हों। एक बात साफ साफ सुन लो, इतने सालो तक मेरी बेटी बिना बाप के रह सकती है तो आगे भी रह लेगी। इसलिए चुप चाप जैसे आए थे वैसे ही लौट जाओ नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

दलाल…सुहासिनी मेरी बेटी है और आगे भी रहेगी तुमने मेरा कहा नहीं माना तो मुझे कानून का सहारा लेना पड़ेगा। कानूनी पचेड़ो में नहीं पड़ना चाहती हों तो चुप चाप सुहासिनी को ले'कर मेरे साथ चलो यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा।

दामिनी…mr दलाल कानून की दो चार किताबें पढ़कर खुद को कानून के बहुत बड़े ज्ञानी समझ रहे हों। लेकिन तुम एक बात भूल रहे हों जितनी कानून की किताबें तुम'ने पढ़ा है उतनी ही कानून की किताबें मैंने भी पढ़ा हैं। इसलिए कानून की धौंस मुझे न दे'कर जहां से आए हों वहां लौट जाओ।


दामिनी की बेबाक बाते सुनकर दलाल सोच में पड़ गया दामिनी नहीं मानी तो उसका बना बनाया खेल बिगड़ जायेगा। उसके रचे साजिश विफल रह जायेगा। इसलिए दलाल ने पैंतरा बदलकर दामिनी को मानने का दूसरा तरीका सोचने लग गया। दामिनी पलट कर जाने लगीं तब दलाल ने दामिनी का हाथ दुबारा पकड़ लिया। हाथ पकड़े जाने से दामिनी ओर ज्यादा तिलमिला गई फ़िर पलट कर दो तीन झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया।

थाप्पड की गूंज आने जाने वालों का ध्यान खीच लिया। वे लोग रुक कर हों रहे तमाशे को देखने लग गए फिर हों रहा मजरा को समझने की कोशिश करने लग गए। थाप्पड मारकर दामिनी गरजते हुए बोली…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, मुझे छूने का हक तुम खो चुके हों दुबारा तुम'ने मुझे छुआ तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

इतने तीखे शब्द सुनकर दलाल ओर ज्यादा खीज गया ओर मन ही मन गुस्सा होने लग गया। लेकिन उसका गुस्सा करना किसी काम का नहीं था। उसे तो अपना बिगड़ा हुआ काम बनाना था। इसलिए आई हुई गुस्से को थूक के साथ निगल गया। दलाल कुछ बोलता तभी तमाशा देख रहे लोगों में से एक पास आया ओर बोला…बहन जी क्या हुआ कुछ परेशानी हैं।

दामिनी…देखिए न भाई साहब ये बांदा पता नहीं कहा से आया हैं। न जान न पहचान कब से परेशान कर रहा हैं और कह रहा हैं ये मेरा पति हैं।

शख्स ने दलाल को एक धक्का दिया फ़िर बोला...क्यो रे देखने मे तो शरीफ और अच्छे घर का लग रहा हैं। लेकिन हरकते छिछोरे जैसा जवानी मे जवान लड़कियों को छेड़ा करता था ओर अब अपने उम्र के औरतों को छेड़ रहा हैं।

कहकर शख्स ने एक झन्नतेदार थाप्पड जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था दलाल वेग सह नहीं पाया और गिर गया। दलाल के गिरते ही आस पास से कुछ और लोग उनके पास आ गए। पूछने पर शख्स ने दामिनी की कही हुई बात बढ़ा चढ़ाकर मिर्ची मसाला लपेटकर बोल दिया। बस शुरू हों गया दलाल धुलाई लीला आठ दस लोग मिलकर दलाल को पटक पटक कर धोने लगे जैसे धोबी कपड़ो को पटक पटक कर धो रहा हों।

दलाल की सिर्फ चीखे ही गूंज रहा था। दलाल की चीखे सुनकर दामिनी का दिल पिघलने लग गया। जैसा भी हों दामिनी का पति था। भले ही दोनों का डाइवोस हों गया था लेकिन जो रिश्ता जुड़ा था वो कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करने से कहा टूट जाता हैं। पति की चीखे सुनकर दामिनी की आंखे छलक आई। दामिनी का मन दो भागों मे बांट गया एक कह रहा था

"दामिनी रोक ले क्यों पिटवा रही हैं जैसा भी हों तेरा पति हैं तूने इसके साथ सात फेरे लिया था कैसे पति को पीटते हुए देख सकती हैं रोक उन लोगों को नहीं तो तेरे पति को जान से मर देंगे।"

दूसरा मन कहा "दामिनी इसने जो तेरे साथ किया उसे कैसे भूल सकती हैं। चल माना तेरे साथ जो किया उसे भूलकर तू रोक लेगी लेकिन इस पापी दुरात्मा ने तेरी बच्ची के साथ जो किया उसे कैसे भूल सकती हैं। बाप के होते हुए भी बाप का प्यार नहीं मिला बिना बाप के जी रही है। क्या इतना कुछ होने के बाद भी तू उसे माफ करना चाहती हैं फिर सुहासिनी की को किया जवाब देगी।"

सुहासिनी को जवाब देने की बात मन मे आते ही दामिनी का पिघल रहा हृदय पत्थर बन गया बहते आंसू रुक गया फ़िर चेहरे पर लाली आ गई जिसमे सिर्फ और सिर्फ नफरत भरा हुआ था। नफरत की लालिमा चेहरे पर लिए दामिनी पलट गई फिर अपने रास्ते चली गई। यह दलाल की धुलाई जानदार तरीके से चल रहा था। दलाल की चीखे सिसकियों में बदल गया। सिसकियां भी धीरे धीरे थम गया फिर दलाल अचेत हों गया। शरीर में हिल डोल होना बंद हों गया। अचेत होते ही पीट रहे लोगों में से एक ने कहा…अरे अरे रुक जाओ लगता हैं इसका टिकट कट चुका हैं। मार गया तो वे फाजुल मे हम सब नापे जायेंगे।

"हां यार सही कह रहे हों अरे कोई चेक करो मार वार तो नहीं गया।"

एक ने चेक किया फिर बोला...अरे यार लागता हैं ये गया काम से अब किया करे।

"आफत मोल लेने से अच्छा इसे उठाकर दूर कहीं फेक देते हैं।"

"एक काम करते हैं इसे मुंशी पालटी हॉस्पिटल छोड़ आते हैं। बच गया तो अपने घर चला जायेगा मार गया तो वो लोग इसका क्रियाकर्म फ्री मे कर देंगे।"

इन लोगों ने दलाल के अचेत शरीर को उठाया और ले जा'कर मुंशी पालटी हॉस्पिटल के बाहर छोड़ कर आ गए। लावारिश बॉडी पर नजर पड़ते ही पुलिस को बुलाया गया। दो पोलिस वाले आए फिर अपनी करवाई शुरू कर दिया। एक ने दलाल की जेब की तलाशी लिया लेकिन मिला कुछ नहीं मिलता भी कैसे पिटाई के वक्त किसी ने हाथ की सफाई दिखाते हुए दलाल का पर्स ही मार लिया जिसमें पैसे के साथ साथ ओर भी कुछ डॉक्यूमेंट था। जो सफाई कर्मचारी अपने साथ ले गया। कुछ न मिलने पर तलाशी ले रहा पुलिस झल्ला कर बोला…न जाने कहा कहा से आ जाते हैं। खुद तो मरते ही हैं साथ ही हमारे लिए आफत की पुड़िया छोड़ जाते हैं।

दूसरा पोलिस वाला...अरे बड़बड़ाना छोड़ और इसे हॉस्पिटल पहुंचा नहीं तो मीडिया वाले हमारे पीछे खा पीके नहा धोखे पड़ जायेंगे।

दोनों पुलिस वाले जल्दी से पास में मौजूद मुंशीपालटी हॉस्पिटल मे ले गया फिर एडमिट करवा दिया। डॉक्टरों ने दलाल की गंभीर हालत देखकर ओर पुलिस वालों को साथ में आया देखकर बिना सवाल जवाब के झटपट इलाज शुरू कर दिया।


अगले अपडेट में जानेंगे दलाल का टिकट कन्फर्म हुआ या अभी भी बेटिंग लिस्ट में हैं। तो प्रिय पाठक गणों दलाल की धुलाई लीला कैसा लगा बताना न भूलिएगा। यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।

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वार का नजारा देखने योग्य था। जहां तहां नशे में लोग झूम रहे थे। वार में मौजुद एक एक टेबल पर बैठे लोग दारू का माजा लेने में लगे हुए थे। वहीं कोने के एक टेबल पर अपश्यु की रेकी करने वाला लडका बैठे छोटे छोटे पैग बनाकर दारू का स्वाद ले रहा था। बैठे बैठें लडका बोर हों गया तो गाली देते हुए बोला…bc उस्ताद कहा रह गए कब से वेट कर रहा हूं। लेकिन उस्ताद आ ही नहीं रहे। थोड़ी देर ओर देखता हूं आया तो ठीक नहीं तो वो जाने उनका काम जाने।

एक दो पैग ओर लडके ने गटका ही था कि एक लडका आ'कर बोला…क्या वे अकेले अकेले पिए जा रहा हैं मुझे भुल गया।

लडका उसकी ओर देखकर बोला…अरे उस्ताद आप कब आएं सब कुशल मंगल हैं न!

लडका...मुझसे ही षडपंती कर रहा हैं। चल जल्दी से एक मस्त पटियाला पैग बना ओर सुना मेरे आइटम की क्या खबर हैं।

(यह दोनों को एक एक नाम उपहार स्वरूप दे दिया जाए वैसे तो इनका ज्यादा रोल नहीं हैं लेकिन पाठकों और मेरे सुविधा के लिए इनका नाम करण कर ही देता हूं। जो लडका रेकी कर रहा था उसका नाम विंकट और जो उसका उस्ताद है उसका नाम संकट है। तो पाठकों नामकरन कैसा रहा बताने से चुकिएगा नहीं)

विंकट पैग बनाते हुए बोला…उस्ताद आप अपने आइटम को भुल जाओ ओर कोई दूसरा आइटम ढूंढ लो।

संकट…अब्बे सटिया गया हैं। उसे कैसे भुल सकता हूं बहुत मालदार पार्टी हैं। आइटम हाथ से निकल गया तो माल भी हाथ से निकल जाएगा।

विंकट…उस्ताद आप सपने देखना छोड़ दो आप'के सपने पर डांका पड़ चुका है। आइटम भी आप'के हाथ से गया ओर माल पाने का सपना भी टूट कर बिखर गया।

संकट…अब्बे किया घुमा फिरके बोल रहा हैं सीधे सीधे बोल नही तो ये बोतल देख रहा हैं न, तेरे पीछे डाल दूंगा।

विंकट…नही नहीं उस्ताद बोतल बहुत मोटा हैं मैं झेल नहीं पहुंगा आप को कुछ ओर डालना हों तो वो ढूंढ कर लाओ।

संकट…अच्छा तो बोलेगा नहीं पीछे लेने का पूरा मुड़ बना चुका हैं रूक अभी लाया।

संकट इधर उधर देखने लग गया उसे गेट पर एक गार्ड हाथ में डंडा लिए खड़ा दिखा। इसको देखकर विंकट को उसकी और दिखाते हुए बोला…जल्दी बोल नहीं तो गार्ड के हाथ में जो डंडा हैं वो डाल दूंगा।

विंकट…क्या उस्ताद कभी बोतल तो कभी डंडा डालने के पीछे पड़े हों मैं तो मजाक कर रहा था। आप बैठो और दो चार मोटा पैग ओर गटक लो फ़िर आप'के आइटम की खबर सुनता हूं।

संकट…पैग तो मैं पी ही लूंगा पहले तू खबर सुना मेरी आइटम क्या गुल खिला रहीं हैं।

विंकट…उस्ताद पहले आप दो चार पैग गटक लो क्योंकि खबर सुनने के लिए आप'को नशे में होना बहुत जरुरी है नहीं तो आप बर्दास्त नहीं कर पाओगे।

संकट…जल्दी बोल मेरा दिमाग मत खां नहीं तो बोतल और डंडा तेरे आगे पीछे से डाल दूंगा फिर न हाग पाएगा न हागने के लिए कुछ खां पाएगा।

विंकट…अरे अरे उस्ताद आप भड़क क्यों रहे हों। आप शान्त हो'कर बैठो मैं सुनता हूं।

संकट बैठा गया ओर एक पटियाला पैग बनाकर गटक लिया फिर विंकट शुरु हों गया…उस्ताद आप'का आइटम पिछले दो तीन दिनों से दिन का अधिकतर समय अपश्यु राना के साथ बिताया हैं ओर आज ही आप'के आइटम ने अपश्यु का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया हैं। दोनों आज शॉपिंग पर भी गए थे वहां दोनों ने बहुत मौज मस्ती किया। आप का पत्ता कट हों गया।

संकट के हाथ में जो गिलास था उसे टेबल पर पटकते हुए बोला…मैं इस अपश्यु को छोडूंगा नहीं जब भी मैं कोई माल पटाता हूं डांका डालने पहुंच जाता हैं। लेकिन अब नहीं इसको तो मैं ढंग से सबक सिखाऊंगा।

विंकट…उस्ताद आप क्या करने की सोच रहे हों आप जानते हों न वो राजा जी का भतीजा हैं। कुछ भी यहां वहां किया ओर पकड़े जानें पर लंबे नापे जाओगे।

संकट...मैं उसे जान से नहीं मारूंगा बस कुछ महीनों के लिए उसके हाथ पाओ तोड़कर अस्पताल पहुंचा दूंगा। उसके अस्पताल पहुंचे ही डिम्पल को ले'कर भाग जाऊंगा।

विंकट…अपने अपश्यु को ऐसा वैसा समझ लिया एक नंबर का कमिना हैं ओर आप किसे ले'कर भागने की बात कर रहे हों वो तो आप'को भव ही नहीं देती तो आप'के साथ भागेगी क्यों।

संकट...अपश्यु कमीना है तो मैं भी कोई कम कमीना नहीं हूं। डिम्पल मेरे साथ भागेगी नहीं तो उसे किडनैप करके ले जाऊंगा।

विंकट…ठीक हैं आप'को जो करना हैं करों लेकिन मुझे बीच में मत घसीटना।

संकट…तुझे क्यों न घसीटू तू ही तो मेरा काम करेगा। आज से तू अपश्यु के एक एक पल की खबर देगा वो कब कहां जाता है किस'से मिलता हैं।

विंकट…उस्ताद खबर तो मैं दे दुंगा लेकिन इसके अलावा मैं कुछ ओर नहीं करूंगा।

संकट…तू इतना ही कर दे बाकी का मैं देख लूंगा चल अब बोतल खाली करके चलते हैं।

दोनों पूरा बाटली खाली कर नशे में इधर उधर गिरते पड़ते चले गए। अगले दिन से विंकट अपने काम में लग गया। अपश्यु के पीछे छाए की तरह लग गया। अपश्यु जहां भी अकेले या डिंपल या फिर किसी ओर के साथ जाता विंकट वहां वहां पहुंच जाया करता।

इधर दलाल अपने बेटी की शादी रघु से करवाने के जुगाड में लग गया। इसके लिए सब से पहले उसे अपनी बेटी को अपने पास बुलाना था जो उसके पास नहीं रहता था वो अपनी मां के साथ बैंगलोर में रहती थीं। दलाल रोज अपनें बीवी दामिनी को फोन कर दोनों को आने को कहता लेकिन दामिनी आ ही नहीं रहीं थीं बल्कि उल्टा दलाल को खरी खोटी सुना दिया करती थीं। इसके पीछे कारण ख़ुद दलाल ही था।

दामिनी जब गर्ववती हुईं थी तब दलाल आस लगाए बैठा था बेटा होगा लेकिन हुआ बेटी। इसलिए दलाल हमेशा दामिनी को ताने दिया करता था साथ ही अपनी बेटी सुहासिन के साथ सौतेला व्यवहार करता था। सुहासिनी को वेबजाय मरा पीटा करता था। एक दिन ऐसे ही दलाल वेबजाय ही सुहासिनी को पीट रहा था। तब दामिनी बीच में आ गई उस दिन दलाल ने दामिनी को भी बहुत पीटा था तो दामिनी अपने बेटी को लेकर बैंगलोर अपनें मायके चली गई फ़िर कभी लौट कर नहीं आई।

तब दलाल ने दामिनी को डाइवोस दे'कर दूसरी शादी कर लिया। लेकिन अब दलाल अपनें स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने बेटी को भी अपनाने को तैयार हों गया। जिसे उसने कभी अपनाया नहीं था जबकि दलाल ने दूसरी शादी भी कर लिया था। दलाल की फूटी किस्मत कहो या ऊपर वाले के दंड नियम की सजा कहो, दलाल की दूसरी बीवी कभी मां ही नहीं बन पाई ओर दलाल औलाद के होते हुए भी बेऔलाद रह गया। रावण इसी बात को लेकर कभी कभी दलाल को छेड़ा करता था ओर पूछता था भाभी और तेरी बेटी कैसी हैं दलाल बस हंसकर टाल दिया करता था।


इतना फोन करने के बाद भी जब दामिनी नहीं आई। तो दलाल खुद ही बैंगलोर पहुंच गया। दामिनी बैंगलोर सिटी से कुछ ही दूर पर रह रही थी। दामिनी बैंगलोर का एक जाना माना वकील हैं। दामिनी के घर पहुचकर दलाल दरवाजे की घंटी बजा दिया। कुछ वक्त में एक औरत ने दरवाजा खोल दिया फ़िर दलाल को देखकर बोली…tummmm, यहां पर क्यों आए हों? इतना सुनाने के बाद भी तुम यहां आ गए, निकल जाओ यह से मेरा तुम्हारा रिश्ता बहुत पहले खत्म हों चूका हैं। जिसके दिल में मेरी बेटी के लिए कोई जगह नहीं उसके लिए मेरे जीवन और घर में कोई जगह नहीं!

इतना कहकर दामिनी ने दरवाजा बंद कर दिया। दलाल दरवाजा पिटता रह गया पर दरवाजा नही खुला। कुछ वक्त ओर दरवाजा पिटता रह "दामिनी दरवाजा खोलो एक बार मेरी बात तो सुन लो जो हो गया उसे भूलकर मुझे माफ़ कर दो" बोल आवाजे देता रहा पर कोई नतीजा हाथ न लगा। थक हार कर दलाल घर से कुछ दूर जा'कर खड़ा हों गया।

दलाल को वह खड़े खड़े दो तीन घंटा बीत गया। जेब में रखा सिगार भी खत्म हो गया था। तो सिगार की तलब बढ़ता गया, क्या करे क्या न करें सोच सोच दिमाग भी काम करना बन्द कर दिया। इसलिए दलाल इधर से उधर चहल कदमी करने लग गया। तभी उसे एक जाना पहचाना चेहरा उसके ओर आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर दलाल के चेहरे पर एक मुस्कान आ गया फिर दलाल चल कर उसके पास पहुंचा ओर बोला…दामिनी मेरी बात तो सुनो जो हुआ उसे भूल जाओ।

दामिनी बिना सुने बिना दलाल को देखे कन्नी काटकर निकल गई। दामिनी के पीछे पीछे "दामिनी सुनो, सुनो तो" करते हुए दलाल भी चल दिया। लेकिन दामिनी बिना कुछ बोले अपने रस्ते चलती रहीं। आते जाते लोग दोनों को देख रहे थे। इतने लोगों द्वारा देखे जाना ओर एक औरत का भाव न देना दलाल के अहम को चोट कर गया। अहम के चोटिल होते ही दलाल बौखला गया। दामिनी का हाथ पकड़ खींचा फिर बोला…तुम खुद को क्या समझती हों मैं तुम्हारा पति हूं। तुम्हारा पति तुम्हें आवाज दे रहा हैं तुम सुनने के बजाय अनसुना करके चली जा रही हों।

दामिनी पलट कर एक झन्नाटेदार थाप्पड दलाल के गाल पर जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था जिसकी छाप दलाल के गालों पर छप गया फिर दामिनी बोली….mr दलाल न तुम मेरे पति हों न ही मैं तुम्हारा बीबी हूं। हमारा रिश्ता वर्षो पहले खत्म हों चुका हैं। इसलिए दुबारा खुद को मेरा पति कहा तो तुम्हारे हलक में हाथ डालकर तुम्हारा जुबान खीच लूंगी।

दलाल…तुम मानो या न मानो आज भी मैं तुम्हारा पति हूं। इसलिए जो हुआ उसे भूल जाओ। मेरी बेटी और तुम्हें लेने आया हूं। तुम दोनों मेरे साथ चलो।

दामिनी…मेरी बदकिस्मती है की तुम मेरे पति बने, तुम किसे अपना बेटी कह रहे हों सुहासिनी सिर्फ और सिर्फ मेरी बेटी हैं उसे तुमने कब अपना बेटी माना था जो अब कह रहे हों। भूल गए उसके पैदा होने पर तुमने मुझे जो मन में आया सुनते रहे। उस विचारी को बाप के होते हुए भी बाप का प्यार दुलार नहीं मिला। जब तुम'ने उसे अपना बेटी माना ही नहीं तो अब क्यों लेने आए हों। एक बात साफ साफ सुन लो, इतने सालो तक मेरी बेटी बिना बाप के रह सकती है तो आगे भी रह लेगी। इसलिए चुप चाप जैसे आए थे वैसे ही लौट जाओ नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

दलाल…सुहासिनी मेरी बेटी है और आगे भी रहेगी तुमने मेरा कहा नहीं माना तो मुझे कानून का सहारा लेना पड़ेगा। कानूनी पचेड़ो में नहीं पड़ना चाहती हों तो चुप चाप सुहासिनी को ले'कर मेरे साथ चलो यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा।

दामिनी…mr दलाल कानून की दो चार किताबें पढ़कर खुद को कानून के बहुत बड़े ज्ञानी समझ रहे हों। लेकिन तुम एक बात भूल रहे हों जितनी कानून की किताबें तुम'ने पढ़ा है उतनी ही कानून की किताबें मैंने भी पढ़ा हैं। इसलिए कानून की धौंस मुझे न दे'कर जहां से आए हों वहां लौट जाओ।


दामिनी की बेबाक बाते सुनकर दलाल सोच में पड़ गया दामिनी नहीं मानी तो उसका बना बनाया खेल बिगड़ जायेगा। उसके रचे साजिश विफल रह जायेगा। इसलिए दलाल ने पैंतरा बदलकर दामिनी को मानने का दूसरा तरीका सोचने लग गया। दामिनी पलट कर जाने लगीं तब दलाल ने दामिनी का हाथ दुबारा पकड़ लिया। हाथ पकड़े जाने से दामिनी ओर ज्यादा तिलमिला गई फ़िर पलट कर दो तीन झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया।

थाप्पड की गूंज आने जाने वालों का ध्यान खीच लिया। वे लोग रुक कर हों रहे तमाशे को देखने लग गए फिर हों रहा मजरा को समझने की कोशिश करने लग गए। थाप्पड मारकर दामिनी गरजते हुए बोली…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, मुझे छूने का हक तुम खो चुके हों दुबारा तुम'ने मुझे छुआ तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

इतने तीखे शब्द सुनकर दलाल ओर ज्यादा खीज गया ओर मन ही मन गुस्सा होने लग गया। लेकिन उसका गुस्सा करना किसी काम का नहीं था। उसे तो अपना बिगड़ा हुआ काम बनाना था। इसलिए आई हुई गुस्से को थूक के साथ निगल गया। दलाल कुछ बोलता तभी तमाशा देख रहे लोगों में से एक पास आया ओर बोला…बहन जी क्या हुआ कुछ परेशानी हैं।

दामिनी…देखिए न भाई साहब ये बांदा पता नहीं कहा से आया हैं। न जान न पहचान कब से परेशान कर रहा हैं और कह रहा हैं ये मेरा पति हैं।

शख्स ने दलाल को एक धक्का दिया फ़िर बोला...क्यो रे देखने मे तो शरीफ और अच्छे घर का लग रहा हैं। लेकिन हरकते छिछोरे जैसा जवानी मे जवान लड़कियों को छेड़ा करता था ओर अब अपने उम्र के औरतों को छेड़ रहा हैं।

कहकर शख्स ने एक झन्नतेदार थाप्पड जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था दलाल वेग सह नहीं पाया और गिर गया। दलाल के गिरते ही आस पास से कुछ और लोग उनके पास आ गए। पूछने पर शख्स ने दामिनी की कही हुई बात बढ़ा चढ़ाकर मिर्ची मसाला लपेटकर बोल दिया। बस शुरू हों गया दलाल धुलाई लीला आठ दस लोग मिलकर दलाल को पटक पटक कर धोने लगे जैसे धोबी कपड़ो को पटक पटक कर धो रहा हों।

दलाल की सिर्फ चीखे ही गूंज रहा था। दलाल की चीखे सुनकर दामिनी का दिल पिघलने लग गया। जैसा भी हों दामिनी का पति था। भले ही दोनों का डाइवोस हों गया था लेकिन जो रिश्ता जुड़ा था वो कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करने से कहा टूट जाता हैं। पति की चीखे सुनकर दामिनी की आंखे छलक आई। दामिनी का मन दो भागों मे बांट गया एक कह रहा था

"दामिनी रोक ले क्यों पिटवा रही हैं जैसा भी हों तेरा पति हैं तूने इसके साथ सात फेरे लिया था कैसे पति को पीटते हुए देख सकती हैं रोक उन लोगों को नहीं तो तेरे पति को जान से मर देंगे।"

दूसरा मन कहा "दामिनी इसने जो तेरे साथ किया उसे कैसे भूल सकती हैं। चल माना तेरे साथ जो किया उसे भूलकर तू रोक लेगी लेकिन इस पापी दुरात्मा ने तेरी बच्ची के साथ जो किया उसे कैसे भूल सकती हैं। बाप के होते हुए भी बाप का प्यार नहीं मिला बिना बाप के जी रही है। क्या इतना कुछ होने के बाद भी तू उसे माफ करना चाहती हैं फिर सुहासिनी की को किया जवाब देगी।"

सुहासिनी को जवाब देने की बात मन मे आते ही दामिनी का पिघल रहा हृदय पत्थर बन गया बहते आंसू रुक गया फ़िर चेहरे पर लाली आ गई जिसमे सिर्फ और सिर्फ नफरत भरा हुआ था। नफरत की लालिमा चेहरे पर लिए दामिनी पलट गई फिर अपने रास्ते चली गई। यह दलाल की धुलाई जानदार तरीके से चल रहा था। दलाल की चीखे सिसकियों में बदल गया। सिसकियां भी धीरे धीरे थम गया फिर दलाल अचेत हों गया। शरीर में हिल डोल होना बंद हों गया। अचेत होते ही पीट रहे लोगों में से एक ने कहा…अरे अरे रुक जाओ लगता हैं इसका टिकट कट चुका हैं। मार गया तो वे फाजुल मे हम सब नापे जायेंगे।

"हां यार सही कह रहे हों अरे कोई चेक करो मार वार तो नहीं गया।"

एक ने चेक किया फिर बोला...अरे यार लागता हैं ये गया काम से अब किया करे।

"आफत मोल लेने से अच्छा इसे उठाकर दूर कहीं फेक देते हैं।"

"एक काम करते हैं इसे मुंशी पालटी हॉस्पिटल छोड़ आते हैं। बच गया तो अपने घर चला जायेगा मार गया तो वो लोग इसका क्रियाकर्म फ्री मे कर देंगे।"

इन लोगों ने दलाल के अचेत शरीर को उठाया और ले जा'कर मुंशी पालटी हॉस्पिटल के बाहर छोड़ कर आ गए। लावारिश बॉडी पर नजर पड़ते ही पुलिस को बुलाया गया। दो पोलिस वाले आए फिर अपनी करवाई शुरू कर दिया। एक ने दलाल की जेब की तलाशी लिया लेकिन मिला कुछ नहीं मिलता भी कैसे पिटाई के वक्त किसी ने हाथ की सफाई दिखाते हुए दलाल का पर्स ही मार लिया जिसमें पैसे के साथ साथ ओर भी कुछ डॉक्यूमेंट था। जो सफाई कर्मचारी अपने साथ ले गया। कुछ न मिलने पर तलाशी ले रहा पुलिस झल्ला कर बोला…न जाने कहा कहा से आ जाते हैं। खुद तो मरते ही हैं साथ ही हमारे लिए आफत की पुड़िया छोड़ जाते हैं।

दूसरा पोलिस वाला...अरे बड़बड़ाना छोड़ और इसे हॉस्पिटल पहुंचा नहीं तो मीडिया वाले हमारे पीछे खा पीके नहा धोखे पड़ जायेंगे।

दोनों पुलिस वाले जल्दी से पास में मौजूद मुंशीपालटी हॉस्पिटल मे ले गया फिर एडमिट करवा दिया। डॉक्टरों ने दलाल की गंभीर हालत देखकर ओर पुलिस वालों को साथ में आया देखकर बिना सवाल जवाब के झटपट इलाज शुरू कर दिया।


अगले अपडेट में जानेंगे दलाल का टिकट कन्फर्म हुआ या अभी भी बेटिंग लिस्ट में हैं। तो प्रिय पाठक गणों दलाल की धुलाई लीला कैसा लगा बताना न भूलिएगा। यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Dalaal ko zindgi ka sabak mil gaya hoga pitai se ab dekhna hai usko mukti milti hai ya bawaal baki hai
 
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Dalaal ko zindgi ka sabak mil gaya hoga pitai se ab dekhna hai usko mukti milti hai ya bawaal baki hai
Sukriya Hell king ji utsha bardak revo dene ke liye bas aise hi saath bane rahiyega.

Dalaal ko hiyi pitai se kitna svak mila hai ya nehi mila ye kaha nehi ja sakta aur dalaal ka bulaba yaam puri se aata hai ki nehi ye next Update me jan jaoge.
 
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Update - 16


वार का नजारा देखने योग्य था। जहां तहां नशे में लोग झूम रहे थे। वार में मौजुद एक एक टेबल पर बैठे लोग दारू का माजा लेने में लगे हुए थे। वहीं कोने के एक टेबल पर अपश्यु की रेकी करने वाला लडका बैठे छोटे छोटे पैग बनाकर दारू का स्वाद ले रहा था। बैठे बैठें लडका बोर हों गया तो गाली देते हुए बोला…bc उस्ताद कहा रह गए कब से वेट कर रहा हूं। लेकिन उस्ताद आ ही नहीं रहे। थोड़ी देर ओर देखता हूं आया तो ठीक नहीं तो वो जाने उनका काम जाने।

एक दो पैग ओर लडके ने गटका ही था कि एक लडका आ'कर बोला…क्या वे अकेले अकेले पिए जा रहा हैं मुझे भुल गया।

लडका उसकी ओर देखकर बोला…अरे उस्ताद आप कब आएं सब कुशल मंगल हैं न!

लडका...मुझसे ही षडपंती कर रहा हैं। चल जल्दी से एक मस्त पटियाला पैग बना ओर सुना मेरे आइटम की क्या खबर हैं।

(यह दोनों को एक एक नाम उपहार स्वरूप दे दिया जाए वैसे तो इनका ज्यादा रोल नहीं हैं लेकिन पाठकों और मेरे सुविधा के लिए इनका नाम करण कर ही देता हूं। जो लडका रेकी कर रहा था उसका नाम विंकट और जो उसका उस्ताद है उसका नाम संकट है। तो पाठकों नामकरन कैसा रहा बताने से चुकिएगा नहीं)

विंकट पैग बनाते हुए बोला…उस्ताद आप अपने आइटम को भुल जाओ ओर कोई दूसरा आइटम ढूंढ लो।

संकट…अब्बे सटिया गया हैं। उसे कैसे भुल सकता हूं बहुत मालदार पार्टी हैं। आइटम हाथ से निकल गया तो माल भी हाथ से निकल जाएगा।

विंकट…उस्ताद आप सपने देखना छोड़ दो आप'के सपने पर डांका पड़ चुका है। आइटम भी आप'के हाथ से गया ओर माल पाने का सपना भी टूट कर बिखर गया।

संकट…अब्बे किया घुमा फिरके बोल रहा हैं सीधे सीधे बोल नही तो ये बोतल देख रहा हैं न, तेरे पीछे डाल दूंगा।

विंकट…नही नहीं उस्ताद बोतल बहुत मोटा हैं मैं झेल नहीं पहुंगा आप को कुछ ओर डालना हों तो वो ढूंढ कर लाओ।

संकट…अच्छा तो बोलेगा नहीं पीछे लेने का पूरा मुड़ बना चुका हैं रूक अभी लाया।

संकट इधर उधर देखने लग गया उसे गेट पर एक गार्ड हाथ में डंडा लिए खड़ा दिखा। इसको देखकर विंकट को उसकी और दिखाते हुए बोला…जल्दी बोल नहीं तो गार्ड के हाथ में जो डंडा हैं वो डाल दूंगा।

विंकट…क्या उस्ताद कभी बोतल तो कभी डंडा डालने के पीछे पड़े हों मैं तो मजाक कर रहा था। आप बैठो और दो चार मोटा पैग ओर गटक लो फ़िर आप'के आइटम की खबर सुनता हूं।

संकट…पैग तो मैं पी ही लूंगा पहले तू खबर सुना मेरी आइटम क्या गुल खिला रहीं हैं।

विंकट…उस्ताद पहले आप दो चार पैग गटक लो क्योंकि खबर सुनने के लिए आप'को नशे में होना बहुत जरुरी है नहीं तो आप बर्दास्त नहीं कर पाओगे।

संकट…जल्दी बोल मेरा दिमाग मत खां नहीं तो बोतल और डंडा तेरे आगे पीछे से डाल दूंगा फिर न हाग पाएगा न हागने के लिए कुछ खां पाएगा।

विंकट…अरे अरे उस्ताद आप भड़क क्यों रहे हों। आप शान्त हो'कर बैठो मैं सुनता हूं।

संकट बैठा गया ओर एक पटियाला पैग बनाकर गटक लिया फिर विंकट शुरु हों गया…उस्ताद आप'का आइटम पिछले दो तीन दिनों से दिन का अधिकतर समय अपश्यु राना के साथ बिताया हैं ओर आज ही आप'के आइटम ने अपश्यु का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया हैं। दोनों आज शॉपिंग पर भी गए थे वहां दोनों ने बहुत मौज मस्ती किया। आप का पत्ता कट हों गया।

संकट के हाथ में जो गिलास था उसे टेबल पर पटकते हुए बोला…मैं इस अपश्यु को छोडूंगा नहीं जब भी मैं कोई माल पटाता हूं डांका डालने पहुंच जाता हैं। लेकिन अब नहीं इसको तो मैं ढंग से सबक सिखाऊंगा।

विंकट…उस्ताद आप क्या करने की सोच रहे हों आप जानते हों न वो राजा जी का भतीजा हैं। कुछ भी यहां वहां किया ओर पकड़े जानें पर लंबे नापे जाओगे।

संकट...मैं उसे जान से नहीं मारूंगा बस कुछ महीनों के लिए उसके हाथ पाओ तोड़कर अस्पताल पहुंचा दूंगा। उसके अस्पताल पहुंचे ही डिम्पल को ले'कर भाग जाऊंगा।

विंकट…अपने अपश्यु को ऐसा वैसा समझ लिया एक नंबर का कमिना हैं ओर आप किसे ले'कर भागने की बात कर रहे हों वो तो आप'को भव ही नहीं देती तो आप'के साथ भागेगी क्यों।

संकट...अपश्यु कमीना है तो मैं भी कोई कम कमीना नहीं हूं। डिम्पल मेरे साथ भागेगी नहीं तो उसे किडनैप करके ले जाऊंगा।

विंकट…ठीक हैं आप'को जो करना हैं करों लेकिन मुझे बीच में मत घसीटना।

संकट…तुझे क्यों न घसीटू तू ही तो मेरा काम करेगा। आज से तू अपश्यु के एक एक पल की खबर देगा वो कब कहां जाता है किस'से मिलता हैं।

विंकट…उस्ताद खबर तो मैं दे दुंगा लेकिन इसके अलावा मैं कुछ ओर नहीं करूंगा।

संकट…तू इतना ही कर दे बाकी का मैं देख लूंगा चल अब बोतल खाली करके चलते हैं।

दोनों पूरा बाटली खाली कर नशे में इधर उधर गिरते पड़ते चले गए। अगले दिन से विंकट अपने काम में लग गया। अपश्यु के पीछे छाए की तरह लग गया। अपश्यु जहां भी अकेले या डिंपल या फिर किसी ओर के साथ जाता विंकट वहां वहां पहुंच जाया करता।

इधर दलाल अपने बेटी की शादी रघु से करवाने के जुगाड में लग गया। इसके लिए सब से पहले उसे अपनी बेटी को अपने पास बुलाना था जो उसके पास नहीं रहता था वो अपनी मां के साथ बैंगलोर में रहती थीं। दलाल रोज अपनें बीवी दामिनी को फोन कर दोनों को आने को कहता लेकिन दामिनी आ ही नहीं रहीं थीं बल्कि उल्टा दलाल को खरी खोटी सुना दिया करती थीं। इसके पीछे कारण ख़ुद दलाल ही था।

दामिनी जब गर्ववती हुईं थी तब दलाल आस लगाए बैठा था बेटा होगा लेकिन हुआ बेटी। इसलिए दलाल हमेशा दामिनी को ताने दिया करता था साथ ही अपनी बेटी सुहासिन के साथ सौतेला व्यवहार करता था। सुहासिनी को वेबजाय मरा पीटा करता था। एक दिन ऐसे ही दलाल वेबजाय ही सुहासिनी को पीट रहा था। तब दामिनी बीच में आ गई उस दिन दलाल ने दामिनी को भी बहुत पीटा था तो दामिनी अपने बेटी को लेकर बैंगलोर अपनें मायके चली गई फ़िर कभी लौट कर नहीं आई।

तब दलाल ने दामिनी को डाइवोस दे'कर दूसरी शादी कर लिया। लेकिन अब दलाल अपनें स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने बेटी को भी अपनाने को तैयार हों गया। जिसे उसने कभी अपनाया नहीं था जबकि दलाल ने दूसरी शादी भी कर लिया था। दलाल की फूटी किस्मत कहो या ऊपर वाले के दंड नियम की सजा कहो, दलाल की दूसरी बीवी कभी मां ही नहीं बन पाई ओर दलाल औलाद के होते हुए भी बेऔलाद रह गया। रावण इसी बात को लेकर कभी कभी दलाल को छेड़ा करता था ओर पूछता था भाभी और तेरी बेटी कैसी हैं दलाल बस हंसकर टाल दिया करता था।


इतना फोन करने के बाद भी जब दामिनी नहीं आई। तो दलाल खुद ही बैंगलोर पहुंच गया। दामिनी बैंगलोर सिटी से कुछ ही दूर पर रह रही थी। दामिनी बैंगलोर का एक जाना माना वकील हैं। दामिनी के घर पहुचकर दलाल दरवाजे की घंटी बजा दिया। कुछ वक्त में एक औरत ने दरवाजा खोल दिया फ़िर दलाल को देखकर बोली…tummmm, यहां पर क्यों आए हों? इतना सुनाने के बाद भी तुम यहां आ गए, निकल जाओ यह से मेरा तुम्हारा रिश्ता बहुत पहले खत्म हों चूका हैं। जिसके दिल में मेरी बेटी के लिए कोई जगह नहीं उसके लिए मेरे जीवन और घर में कोई जगह नहीं!

इतना कहकर दामिनी ने दरवाजा बंद कर दिया। दलाल दरवाजा पिटता रह गया पर दरवाजा नही खुला। कुछ वक्त ओर दरवाजा पिटता रह "दामिनी दरवाजा खोलो एक बार मेरी बात तो सुन लो जो हो गया उसे भूलकर मुझे माफ़ कर दो" बोल आवाजे देता रहा पर कोई नतीजा हाथ न लगा। थक हार कर दलाल घर से कुछ दूर जा'कर खड़ा हों गया।

दलाल को वह खड़े खड़े दो तीन घंटा बीत गया। जेब में रखा सिगार भी खत्म हो गया था। तो सिगार की तलब बढ़ता गया, क्या करे क्या न करें सोच सोच दिमाग भी काम करना बन्द कर दिया। इसलिए दलाल इधर से उधर चहल कदमी करने लग गया। तभी उसे एक जाना पहचाना चेहरा उसके ओर आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर दलाल के चेहरे पर एक मुस्कान आ गया फिर दलाल चल कर उसके पास पहुंचा ओर बोला…दामिनी मेरी बात तो सुनो जो हुआ उसे भूल जाओ।

दामिनी बिना सुने बिना दलाल को देखे कन्नी काटकर निकल गई। दामिनी के पीछे पीछे "दामिनी सुनो, सुनो तो" करते हुए दलाल भी चल दिया। लेकिन दामिनी बिना कुछ बोले अपने रस्ते चलती रहीं। आते जाते लोग दोनों को देख रहे थे। इतने लोगों द्वारा देखे जाना ओर एक औरत का भाव न देना दलाल के अहम को चोट कर गया। अहम के चोटिल होते ही दलाल बौखला गया। दामिनी का हाथ पकड़ खींचा फिर बोला…तुम खुद को क्या समझती हों मैं तुम्हारा पति हूं। तुम्हारा पति तुम्हें आवाज दे रहा हैं तुम सुनने के बजाय अनसुना करके चली जा रही हों।

दामिनी पलट कर एक झन्नाटेदार थाप्पड दलाल के गाल पर जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था जिसकी छाप दलाल के गालों पर छप गया फिर दामिनी बोली….mr दलाल न तुम मेरे पति हों न ही मैं तुम्हारा बीबी हूं। हमारा रिश्ता वर्षो पहले खत्म हों चुका हैं। इसलिए दुबारा खुद को मेरा पति कहा तो तुम्हारे हलक में हाथ डालकर तुम्हारा जुबान खीच लूंगी।

दलाल…तुम मानो या न मानो आज भी मैं तुम्हारा पति हूं। इसलिए जो हुआ उसे भूल जाओ। मेरी बेटी और तुम्हें लेने आया हूं। तुम दोनों मेरे साथ चलो।

दामिनी…मेरी बदकिस्मती है की तुम मेरे पति बने, तुम किसे अपना बेटी कह रहे हों सुहासिनी सिर्फ और सिर्फ मेरी बेटी हैं उसे तुमने कब अपना बेटी माना था जो अब कह रहे हों। भूल गए उसके पैदा होने पर तुमने मुझे जो मन में आया सुनते रहे। उस विचारी को बाप के होते हुए भी बाप का प्यार दुलार नहीं मिला। जब तुम'ने उसे अपना बेटी माना ही नहीं तो अब क्यों लेने आए हों। एक बात साफ साफ सुन लो, इतने सालो तक मेरी बेटी बिना बाप के रह सकती है तो आगे भी रह लेगी। इसलिए चुप चाप जैसे आए थे वैसे ही लौट जाओ नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

दलाल…सुहासिनी मेरी बेटी है और आगे भी रहेगी तुमने मेरा कहा नहीं माना तो मुझे कानून का सहारा लेना पड़ेगा। कानूनी पचेड़ो में नहीं पड़ना चाहती हों तो चुप चाप सुहासिनी को ले'कर मेरे साथ चलो यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा।

दामिनी…mr दलाल कानून की दो चार किताबें पढ़कर खुद को कानून के बहुत बड़े ज्ञानी समझ रहे हों। लेकिन तुम एक बात भूल रहे हों जितनी कानून की किताबें तुम'ने पढ़ा है उतनी ही कानून की किताबें मैंने भी पढ़ा हैं। इसलिए कानून की धौंस मुझे न दे'कर जहां से आए हों वहां लौट जाओ।


दामिनी की बेबाक बाते सुनकर दलाल सोच में पड़ गया दामिनी नहीं मानी तो उसका बना बनाया खेल बिगड़ जायेगा। उसके रचे साजिश विफल रह जायेगा। इसलिए दलाल ने पैंतरा बदलकर दामिनी को मानने का दूसरा तरीका सोचने लग गया। दामिनी पलट कर जाने लगीं तब दलाल ने दामिनी का हाथ दुबारा पकड़ लिया। हाथ पकड़े जाने से दामिनी ओर ज्यादा तिलमिला गई फ़िर पलट कर दो तीन झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया।

थाप्पड की गूंज आने जाने वालों का ध्यान खीच लिया। वे लोग रुक कर हों रहे तमाशे को देखने लग गए फिर हों रहा मजरा को समझने की कोशिश करने लग गए। थाप्पड मारकर दामिनी गरजते हुए बोली…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, मुझे छूने का हक तुम खो चुके हों दुबारा तुम'ने मुझे छुआ तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

इतने तीखे शब्द सुनकर दलाल ओर ज्यादा खीज गया ओर मन ही मन गुस्सा होने लग गया। लेकिन उसका गुस्सा करना किसी काम का नहीं था। उसे तो अपना बिगड़ा हुआ काम बनाना था। इसलिए आई हुई गुस्से को थूक के साथ निगल गया। दलाल कुछ बोलता तभी तमाशा देख रहे लोगों में से एक पास आया ओर बोला…बहन जी क्या हुआ कुछ परेशानी हैं।

दामिनी…देखिए न भाई साहब ये बांदा पता नहीं कहा से आया हैं। न जान न पहचान कब से परेशान कर रहा हैं और कह रहा हैं ये मेरा पति हैं।

शख्स ने दलाल को एक धक्का दिया फ़िर बोला...क्यो रे देखने मे तो शरीफ और अच्छे घर का लग रहा हैं। लेकिन हरकते छिछोरे जैसा जवानी मे जवान लड़कियों को छेड़ा करता था ओर अब अपने उम्र के औरतों को छेड़ रहा हैं।

कहकर शख्स ने एक झन्नतेदार थाप्पड जड़ दिया। थाप्पड इतना जोरदार था दलाल वेग सह नहीं पाया और गिर गया। दलाल के गिरते ही आस पास से कुछ और लोग उनके पास आ गए। पूछने पर शख्स ने दामिनी की कही हुई बात बढ़ा चढ़ाकर मिर्ची मसाला लपेटकर बोल दिया। बस शुरू हों गया दलाल धुलाई लीला आठ दस लोग मिलकर दलाल को पटक पटक कर धोने लगे जैसे धोबी कपड़ो को पटक पटक कर धो रहा हों।

दलाल की सिर्फ चीखे ही गूंज रहा था। दलाल की चीखे सुनकर दामिनी का दिल पिघलने लग गया। जैसा भी हों दामिनी का पति था। भले ही दोनों का डाइवोस हों गया था लेकिन जो रिश्ता जुड़ा था वो कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करने से कहा टूट जाता हैं। पति की चीखे सुनकर दामिनी की आंखे छलक आई। दामिनी का मन दो भागों मे बांट गया एक कह रहा था

"दामिनी रोक ले क्यों पिटवा रही हैं जैसा भी हों तेरा पति हैं तूने इसके साथ सात फेरे लिया था कैसे पति को पीटते हुए देख सकती हैं रोक उन लोगों को नहीं तो तेरे पति को जान से मर देंगे।"

दूसरा मन कहा "दामिनी इसने जो तेरे साथ किया उसे कैसे भूल सकती हैं। चल माना तेरे साथ जो किया उसे भूलकर तू रोक लेगी लेकिन इस पापी दुरात्मा ने तेरी बच्ची के साथ जो किया उसे कैसे भूल सकती हैं। बाप के होते हुए भी बाप का प्यार नहीं मिला बिना बाप के जी रही है। क्या इतना कुछ होने के बाद भी तू उसे माफ करना चाहती हैं फिर सुहासिनी की को किया जवाब देगी।"

सुहासिनी को जवाब देने की बात मन मे आते ही दामिनी का पिघल रहा हृदय पत्थर बन गया बहते आंसू रुक गया फ़िर चेहरे पर लाली आ गई जिसमे सिर्फ और सिर्फ नफरत भरा हुआ था। नफरत की लालिमा चेहरे पर लिए दामिनी पलट गई फिर अपने रास्ते चली गई। यह दलाल की धुलाई जानदार तरीके से चल रहा था। दलाल की चीखे सिसकियों में बदल गया। सिसकियां भी धीरे धीरे थम गया फिर दलाल अचेत हों गया। शरीर में हिल डोल होना बंद हों गया। अचेत होते ही पीट रहे लोगों में से एक ने कहा…अरे अरे रुक जाओ लगता हैं इसका टिकट कट चुका हैं। मार गया तो वे फाजुल मे हम सब नापे जायेंगे।

"हां यार सही कह रहे हों अरे कोई चेक करो मार वार तो नहीं गया।"

एक ने चेक किया फिर बोला...अरे यार लागता हैं ये गया काम से अब किया करे।

"आफत मोल लेने से अच्छा इसे उठाकर दूर कहीं फेक देते हैं।"

"एक काम करते हैं इसे मुंशी पालटी हॉस्पिटल छोड़ आते हैं। बच गया तो अपने घर चला जायेगा मार गया तो वो लोग इसका क्रियाकर्म फ्री मे कर देंगे।"

इन लोगों ने दलाल के अचेत शरीर को उठाया और ले जा'कर मुंशी पालटी हॉस्पिटल के बाहर छोड़ कर आ गए। लावारिश बॉडी पर नजर पड़ते ही पुलिस को बुलाया गया। दो पोलिस वाले आए फिर अपनी करवाई शुरू कर दिया। एक ने दलाल की जेब की तलाशी लिया लेकिन मिला कुछ नहीं मिलता भी कैसे पिटाई के वक्त किसी ने हाथ की सफाई दिखाते हुए दलाल का पर्स ही मार लिया जिसमें पैसे के साथ साथ ओर भी कुछ डॉक्यूमेंट था। जो सफाई कर्मचारी अपने साथ ले गया। कुछ न मिलने पर तलाशी ले रहा पुलिस झल्ला कर बोला…न जाने कहा कहा से आ जाते हैं। खुद तो मरते ही हैं साथ ही हमारे लिए आफत की पुड़िया छोड़ जाते हैं।

दूसरा पोलिस वाला...अरे बड़बड़ाना छोड़ और इसे हॉस्पिटल पहुंचा नहीं तो मीडिया वाले हमारे पीछे खा पीके नहा धोखे पड़ जायेंगे।

दोनों पुलिस वाले जल्दी से पास में मौजूद मुंशीपालटी हॉस्पिटल मे ले गया फिर एडमिट करवा दिया। डॉक्टरों ने दलाल की गंभीर हालत देखकर ओर पुलिस वालों को साथ में आया देखकर बिना सवाल जवाब के झटपट इलाज शुरू कर दिया।


अगले अपडेट में जानेंगे दलाल का टिकट कन्फर्म हुआ या अभी भी बेटिंग लिस्ट में हैं। तो प्रिय पाठक गणों दलाल की धुलाई लीला कैसा लगा बताना न भूलिएगा। यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।

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do twists aaye hai is update mein..

ek taraf jaha sankat ab apsyu ki jindagi mein sankat laane ki taiyari kar raha hai, kyunki uski nazar mein ab apsyu dimpal ko chin liya hai usse.... isliye ab apsyu ko jam ke pitayi karne ki planning bana liya hai...
waise vikat ne bahot mirch masala lagake wo khabar sunayi thi sankat ko :D

wohi dusri taraf dalal ka dalalgiri nikal diya public ne milkar....
dalal ne kabhi socha bhi na hoga ki uska ye haal bhi ho sakta hai ...lekin waqt waqt baat hai, bura waqt kab aa jaaye kisko kya pata....
Mahaz is wajah se ki bete ke jagah beti huyi, usne itna atyaachaar kiya dameeni pe aur jis kadar neglect kiya khud ki sagi beti ko .... divorce tak de diya...
aur ab jab apna swarth saamne aaya to kaise girgit ki tarah rang badalne laga...
aise insaan ke sath to yahi hona tha...

Waise kehte hai jo hota hai achhe ke liye hi hota hai....
Agar aaj damini kamjor par jaati, agar ek maa ke saamne ek biwi haar jaati to bahot bada anarth ho jata....
sirf na kewal damini ki life mein balki raghu aur uski family ki jindagi mein bhi....

Well sabhi pehlu mein sabhi arthpoorn baaton, kirdaaro bich huye vaartalaap ko aur gatividhiyo ko ek sathik gati ke sath samete huye hai update ke jariye writer sahab ne shabdon mein khoob roopantaran kiya hai. .

Bahot dilchasp update sath hi kuch arthpoorn aur manmahok kirdaaro ki bhumika bhi...

Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:
 
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Update -2


किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को कीचन में आने की क्या जरूरत थीं हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं कीचन में क्यों नहीं आ सकती यहां घर और कीचन मेरा हैं। मै कहीं भी आ जा सकती हूं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां न बोले फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला...रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लग गईं। सुरभि की तारीफ करते सुन सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सका किया जब सहन सीमा टूट गया तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली...क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि…छोटी एक बुजुर्ग से बात करने का ये कैसा तरीका हैं। दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तिलमिला उठा और बोला…दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं, नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुन सुरभि को गुस्सा आ गया सुरभि गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकता। ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे के पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुन वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल पाया, मन की बात मन में दावा लिया। सुरभि भी अछूता न रहा सुकन्या की बातो से उसे भी गुस्सा आ गया लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चह रहीं थी इसलिए चुप रह गईं पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई। नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़ सुकन्या पैर पटकते हुए कीचन से बहार को चल दिया। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का खड़े खड़े गाल सहला रहा था। सुरभि पास गई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली…धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला…रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने आप'का अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि...अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी ला'कर सुरभि को बैठा दिया फिर बोला…रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जा'कर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना भेज दिया जायेगा।

सुरभि…मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला…छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा...नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग गए। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंच, सुकन्या मुंह फुलाए रूम में रखा सोफे पर बैठी थीं, पास जा'कर सुरभि बोली…छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता क्या हैं?

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत हुआ फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकता।

सुकन्या…मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि...छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं, देवरानी बहन समान होता हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ जाकर अपना काम करों।

सुरभि से ओर सहन नहीं हुआ। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई। अंचल से आंखों को पूछते हुए सुरभि चली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होता। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं हैं। कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं? जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहीं फिर बेड पर लेट गई। सुरभि सिसक सिसक कर रोते हुऐ रूम में पहुंचा फिर बेड पर लेट गई। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला ने देख लिया था। जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गईं। सुरभि को रोता हुए देख पास जा बैठ गई फ़िर बोली…रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुन उठकर बैठ गईं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…दाई मां आप कब आएं?

दाई मां...रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां…बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकल लेते हैं।

सुरभि…दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकाल लेती हैं।

दाई मां...रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि...ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगे जाएगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगाते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लग गई। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और ख़ुद भी खा लिया। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगें। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरत रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि रोकते हुए औरत बोली...नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला…मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा...अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला…कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा...ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा…मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा...सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश…ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं कर। काम पड़े तो और ला देता हूं।

मनोरमा…आप तो चुप ही करों।

कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली...तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा...कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला…रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश…क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…ही ही ही मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Ye sukanya ke dil mai lagta hai kuch zyada hi zaher hai surbhi ke prati jo isey itna kuch suna rahi hai
Ek surbhi hai jisko raaj paat jaise sukh suvidhaye nahi chahiye aur ek sukanya hai jo aaj bhi wahi sab kuch chahti hai
Ghar ke naukaro ke prati surbhi humesha se hi achi rahi hai aise mai un hi naukaro ke samne koi unki rani Maa ki burai karey to unhe gussa ana bhi jayaz hai
Ye kamla to bohut hi gussel swabahv ki lag rahi hai aur sath hi apne Baap ko ladli bhi dekhte hai agey in sab ka kya role hai kahani mai
Overall Awesome Update
 
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do twists aaye hai is update mein..

ek taraf jaha sankat ab apsyu ki jindagi mein sankat laane ki taiyari kar raha hai, kyunki uski nazar mein ab apsyu dimpal ko chin liya hai usse.... isliye ab apsyu ko jam ke pitayi karne ki planning bana liya hai...
waise vikat ne bahot mirch masala lagake wo khabar sunayi thi sankat ko :D

wohi dusri taraf dalal ka dalalgiri nikal diya public ne milkar....
dalal ne kabhi socha bhi na hoga ki uska ye haal bhi ho sakta hai ...lekin waqt waqt baat hai, bura waqt kab aa jaaye kisko kya pata....
Mahaz is wajah se ki bete ke jagah beti huyi, usne itna atyaachaar kiya dameeni pe aur jis kadar neglect kiya khud ki sagi beti ko .... divorce tak de diya...
aur ab jab apna swarth saamne aaya to kaise girgit ki tarah rang badalne laga...
aise insaan ke sath to yahi hona tha...

Waise kehte hai jo hota hai achhe ke liye hi hota hai....
Agar aaj damini kamjor par jaati, agar ek maa ke saamne ek biwi haar jaati to bahot bada anarth ho jata....
sirf na kewal damini ki life mein balki raghu aur uski family ki jindagi mein bhi....

Well sabhi pehlu mein sabhi arthpoorn baaton, kirdaaro bich huye vaartalaap ko aur gatividhiyo ko ek sathik gati ke sath samete huye hai update ke jariye writer sahab ne shabdon mein khoob roopantaran kiya hai. .

Bahot dilchasp update sath hi kuch arthpoorn aur manmahok kirdaaro ki bhumika bhi...

Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:

Itna shandaar aur motivated revo diya iske liye bahut bahut shukriya 🙏

Vinkat ka mirchi masala usi ke liye afhat lane walaa tha vo to acha hua samay rahte mirchi powder sankaat par udel diya varna kuch bhi ho sakta tha.

Dalaal jiase log hi to samajh ko kalankit karne me lage huye hai aise log bhul jate hai vo jiske jariye duniya me aaya vo bhi ek ladki hai. Vo asahny pida na saha hota to shyad dalal jaise log duniya me aaya hi na hota.

Damini ka liya ek fhaisla manjar ko badl dena ka madda rakhta tha. Damini paar mamta havi hokar ek galt fhaisla lene se rook diya. Vaise dimini ke liye fhaisle me kahi na kahi dalal ka hi hath hai. Aor dalaal ke banaye plan fail hone ke piche bhi usi ka hi haath.
 
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Ye sukanya ke dil mai lagta hai kuch zyada hi zaher hai surbhi ke prati jo isey itna kuch suna rahi hai
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Ghar ke naukaro ke prati surbhi humesha se hi achi rahi hai aise mai un hi naukaro ke samne koi unki rani Maa ki burai karey to unhe gussa ana bhi jayaz hai
Ye kamla to bohut hi gussel swabahv ki lag rahi hai aur sath hi apne Baap ko ladli bhi dekhte hai agey in sab ka kya role hai kahani mai
Overall Awesome Update

Bahut bahut shukriya Badshah Khan ji bas aise hi saath dete rahna.

Suknya ka vyvhar jaisa prtyaksh dikh raha hai kya pata suknya vaisa ho hi naa. Suknya ke bare me aur jankari aapko aage ke update me mil jayega.

Ha kamla hai bahut gussel aur in sabhi kaa rol aage ki kahani me baada dilchp hai.
 

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