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Update - 17
दलाल का इलाज हों चुका था। डॉक्टर उसके होश में आने का वेट कर रहे थे। होश में आते ही डॉक्टर ने थाने फोन कर बता दिया। दो पुलिस के ठुल्ले आए। जिनमे एक इंस्पेक्टर और एक हवलदार था। उनके छीने पर लगे बिल्ला पर एक का नाम अटपटे और दूसरे का नाम झटपटे लिखा हुआ था। दोनों आए ओर डॉक्टर के केबिन में ऐसे घुस गए जैसे उनका ससुराल हों ओर अपने लुगाई को लेने आए हों। डॉक्टर उनको देखकर…आइए आइए सर अपना तसरीफ कही पर भी टीका लीजिए।
हवलदार झटपटे को डॉक्टर का मजाकिया अंदाज पसंद नही आया, अपना एक फिट का डंडा लहराते हुए बोला…साहब जी लगता हैं इस व्हाइट कोर्ट वाले का किसी ने चालान नहीं काटा आप कहो तो खाता खतौनी निकलकर इसके नाम का एक पर्चा फाड़ दूं।
अटपटे…तू भी न झटपटे! जब देखो झटपट अंदाज में काम करने लग जाएगा। पहले ऊंट को पहाड़ के नीचे आने दे फिर फर्चा काट देना। अभी हम इनकी पहाड़ी के नीचे आए हैं। ऐसा न हों ये हमारा ही पर्चा कांट दे।
Ahhhhh Ahhhhh Ahhhhh तीनों साथ मे हंस दिया। तीनों के हंसने का तरीका बता रहा था। एक दूसरे की टांगे जोरों से खींचा जा रहा हैं। खींचा तानी के बाद अटपटे बोला…डॉक्टर जल्दी से बोल क्यों बुलाया था। बहुत काम हैं आज बीबी ने सोने का नेकलेश मांगा हैं उसका खर्चा पानी भी निकालने जाना हैं।
डॉक्टर…कल आप जैसे दो वर्दी धारी एक विचित्र प्राणी को छोड़ गए थे। उसको होश आ चुका हैं। इसलिए बुलाया था।
झटपटे...आई ला डॉक्टर तुझे सकल वकल याद रहता की नहीं,हम जैसे नहीं हम ही छोड़ गए थे उस कुटे हुए प्राणी को, चल अब हमे भी मिलवा दे, पुछूं तो किस छत्ते में हाथ डाल मधु निकालने गया था।
डॉक्टर के केबिन से निकलकर तीनों एक वार्ड में गए। जहां मरीजों से ज्यादा उनके तीमारदारो का भीड़ लगा हुआ था। इतनी भीड़ देखकर झटपटे बोला…आई ला ये हॉस्पिटल हैं या मछली बाजार। चलो वे सब अपना अपना थोबड़ा और पिछड़ा बाहर लेकर जाओ।
खाकी वर्दी देख ओर बाते सुन "आ गए ठूल्ले ठुल ठुलाते हुई।" बोलते हुए सभी एक एक कर बाहर चले गए। तीनों आगे बढ़े ओर एक बेड के पास जाकर रुक गए। दलाल के दोनों हाथों में बाजू तक प्लास्टर लगा हुआ था। दोनों पैरों में भी जांघों तक प्लास्टर लगा हुआ था। सिर पे पट्टी और गालों पे पट्टियां चिपका हुआ था। मतलब दलाल पूरा सफेद पट्टी से पैक था। दलाल की दशा देखकर दोनों पुलिस वालों की हसीं छूट गया। हंसते हुए झटपटे बोला…आई ला ये तो आठवां अजूबा बन गया। साहेब मैं क्या कहता हूं हमे न वर्ल्ड रिकॉर्ड रखने वालो को बुला कर इसका नाम भी दर्ज करवा देना चाहिए मस्त फुटेला वर्ल्ड रिकॉर्ड बनेगा।
अटपटे दलाल से पूछा…चल वे उजड़ा चमन बिगड़ा बदन अपनी आप बीती सुना किसने तुझे रुई की तरह धुन डाला।
दलाल बोला कुछ नहीं बस दर्द को सहते हुए दांत दिखा दिया। दलाल के सामने के चार दांत भी टूट गए थे। जो दिखने में वाहियात लग रहा था। बिना दांत के मुस्कुराते देख झटपटे बोला…ओय मुस्कुरा रहा हैं या डरा रहा हैं। दांत कहा छोड़ आया जा पहले दांत लेकर आ।
दलाल फिर भी कुछ नहीं बोला बस चुप रहा। तब झटपटे एक फुटिया डंडा दलाल के माथे पर टिकाकर बोला...सुना नहीं साहेब तेरा जन्म कुंडली पूछ रहें हैं। बता दे नहीं तो डंडे से तेरे सिर में एक ओर होल कर दूंगा फिर तू स्वर्ग की यात्रा पर निकल जायेगा।
दलाल मोटी मोटी आंखे बनाकर दोनों पुलिस वालों को देखने लग गया। लेकिन बताया कुछ नहीं एक बार फिर पूछा गया तब दलाल सोच समझकर बोला...सर मैं दार्जलिंग का रहने वाला हूं। पेशे से एक वकील हूं। यहां एक काम से आया था, न जाने किस'ने मुझे मारा मुझे कुछ पता नहीं ओर क्यों मारा ये भी नहीं जानता।
अटपटे…तू उन अनजान लोगों के खिलाफ चार्ज सीट दाखिल करवाना चाहता हैं तो बोल हम पूरी करवाई आगे बढ़ाते हैं।
दलाल…सर मैं भी एक वकील हूं ऐसे केस का क्या हाल होता हैं अच्छे से जानता हूं। इसलिए मुझे कोई चार्जशीट दाखिल नहीं करवाना हैं। आप बस मुझे मेरे घर तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दीजिए।
दलाल के माना करने पर दोनों पोलिस वाले उसके घर का एड्रेस लेकर चले गए। दलाल उसी बेड पर पड़ा रह जाता हैं। तीन चार दिन बाद दलाल को हॉस्पिटल की एंबुलेंस से दार्जलिंग भेज दिया गया था। दलाल का बिगड़ा हाल देखकर उसकी दूसरी बीवी जी भरके शोक विलाप करने लग गई और तरह तरह की गलियां देने लग गई। लेकिन एक शख्स दलाल की अवस्था देखकर मन ही मन खुश हों रहा था ओर बोला…मर जाता तो अच्छा होता एक पापी तो दुनिया से कम हों जाता। इसका तो कुछ इलाज हों चुका हैं। उस रावण का कौन इलाज करेगा। इन दोनों की बुरी गत देखने के लिए ही तो इस दुनियां में अकेले जिए जा रहा हूं। हे ऊपर वाले मेरी विनती कब सुनेगा तूने आज तक मेरी सुना क्यों नहीं मेरा पुरा परिवार छीन गया तब भी तू चुप रहा। मेरे जैसे न जानें कितने लोगों ने अपनो को खोया हैं। तब भी चुप रहा अब तो किसी को भेज जो हमें इन दोनों पापी से मुक्ति दिलवाए।
वहा शख़्स कोई और नहीं दलाल का सबसे चहेता नौकर संभू ही था। संभू का एक हंसता खेलता परिवार हुआ करता था। जो रावण के जुल्मों का शिखर बना, शिकार तो संभू भी बना था लेकीन ऊपर वाले की दया दृष्टि के चलते बच गया। जिंदा बचने के बाद कुछ दिनों तक परिवार जनों के शोक में भूखा प्यासा यह वहां भटकता रहा।
ऐसे ही एक दिन भटकते भटकते रघु से टकरा गया रघु को उसके हाल पर दया आ गया। उसका इलाज करवाया रहने खाने पीने की व्यवस्था करके दिया। लेकिन सम्भू खुश नहीं था उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधक रहा था। धधकती ज्वाला को शांत करने के लिए रावण से बदला लेने का निश्चय कर लिए।
लेकिन अकेले कर नहीं सकता था। इसलिए दूसरे लोगों से मदद लेने की सोचा, जिससे भी बात किया, मना कर दिया और कहा...हम जैसे जी रहे हैं हमें जीने दे हमारे किस्मत में रावण का आत्यचार सहना लिखा हैं। तो सह रहे हैं। तेरे आगे पीछे कोई नहीं हैं लेकिन हमारा भरा पुरा परिवार हैं। हमे कुछ हुआ तो उन्हें कौन देखेगा उनका भरण पोषण कौन करेगा। तू भी बदला लेने की भावना छोड़ कर बाकी बचे जीवन को खुशी खुशी जी।
लेकिन सम्भू पर उनके बातो का कोई असर न हुआ। अपने मकसद को पुरा करने के लिए अकेले डाटा रहा। गुपचुप तरीके से रावण पर नजर रखने लग गया। कई बार हमला करने की कोशिश भी किया लेकिन नाकाम रहा। रावण का पीछा करते करते एक दिन संभू ने जाना दलाल भी रावण के साथ सभी बुरे कामों में भागीदार हैं और सम्भू के परिवार के खात्मे के पीछे दलाल का भी हाथ हैं।
अब सम्भू के रडार में दलाल और रावण दोनों आ गए। दोनों पर एक साथ नजर रखना संभव नहीं था। इसलिए दलाल के घर नौकर बनकर आ गया। पहले तो दलाल ने माना कर दिया तब संभू ने एक पासा और फेक
"मैं आप'के यह मुफ्त में काम करूंगा मेरे आगे पीछे कोई नहीं हैं बस आप रहने और खाने पीने को दे देना।"
मुफ्त में मिल रहा नौकर कौन छोड़ देता, दलाल जैसा लोभी तो कभी नहीं छोड़ सकता था। इसलिए संभू को काम पर रख लिया। सम्भू ने दूसरा चाल चला, दलाल के दिल में जगह बनाना इस काम में सम्भू को बहुत वक्त लगा और आखिर कर दलाल को अपने लपेटे में ले ही लिया। सम्भू के निष्ठा भाव को देखकर दलाल उससे बहुत सी बातें शेयर करने लग गया था।
अपना मकसद वो ऐसा क्यों कर रहा था क्या पाना चाहता हैं। जिसे जानकर सम्भू जान गया जो कुछ भी रावण कर रहा था। दलाल को सब पता होता था, बिना दलाल से सलाह मशविरा के रावण कोई काम नहीं करता था। तब उसे लगा रावण और दलाल एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।
सभी पाप कर्म जो रावण ने किया उसमे दलाल अप्रत्यक्ष रूप से भागीदर था। दलाल के साथ रहकर संभू को लगने लगा दलाल के दिमाग में कोई बहुत बड़ी साजिश चल रहा था जो अब तक किसी को पाता नहीं था इसलिए सम्भू उसके दिमाग में छुपी साजिश को जानने के लिए दलाल के साथ चाटुकारिता करने लग गया। लेकिन दलाल अपने भूत कल की कुछ बाते और भविष्य में क्या करने वाला था। सम्भू को अभी तक नहीं बताया था।
इधर महल में राजेंद्र और सुरभि के न होने से अचानक न जानें सुकन्या को क्या हुआ। सुकन्या का व्यवहार बादल गया। जब मन कर रहा था नौकरों को खरी खोटी सुना दे रहा था। सुकन्या के रडार में सबसे ज्यादा धीरा ही आ रहा था लेकिन धीरा भी एक नंबर का ढीट था उसे सुकन्या की बातों का कोई असर ही नहीं हो रहा था। धीरा सुकन्या को सबक सिखाने के लिए कुछ न कुछ करता रहता था। जिससे कई बार सुकन्या उसे खरी खोटी सुनने के साथ तप्पड़ भी जड़ दिया करता था। लेकिन धीरा ठहरा महा ढीट अपने करस्तानी करने से बाज़ नहीं आ रहा था।
रघु का इन सबसे कुछ लेना देना नहीं था बाप के न होने पर ऑफिस का कार्य भर मुस्तैदी से सम्भाल रहा था। इस काम में मुंशी और ऑफिस में काम करने वाले रघु की हेल्प कर रहें थे। रघु सुबह घर से निकल जाता और देर रात घर आ रहा था इसलिए उसे पाता नहीं होता, घर में हों किया रहा हैं।
काम करते हुऐ रघु कभी कभी बेचैन हों जाता था काम में मन नहीं लगता था रघु समझ नहीं पा रहा था। उसके साथ हों किया रहा था। उसका मन कर रहा था। कमला से ढेर सारी बातें करे उसके आस पास रहे लेकिन चाहकर भी रघु ऐसा नहीं कर पा रहा था। क्योंकि कमला का एग्जाम शुरू हों गया था। इसलिए रघु कमला को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था।
इधर कमला भी बेचैन रहने लगीं थी। सारा काम धाम छोड़ कर गुमसुम बैठी रहती थी। पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रहीं थी। दोनों पहली नजर के आकर्षण की पीढ़ा से पीड़ित जो हों गए थे। बार बार एक दूसरे से मिलने की चाह दोनों के दिल में जग रहा था लेकिन किसी से कुछ कह नहीं पा रहे थे। इसलिए एक दूसरे से दिन में थोड़ा बहुत बातें करके मन को शांत कर ले रहे थें। पर रघु कुछ ज्यादा ही बेचैन रहने लग गया। जिसका असर काम पर भी पड़ने लग गया। रघु के मन में कमला से मिलने की तीव्र इच्छा होने लग गया। एग्जाम खत्म होने से एक दिन पहले ही रघु जरूरी काम बताकर कलकत्ता के लिए चल दिया।
रघु के घर से निकलते ही सुकन्या बोली...रघु आज फ़िर कलकत्ता जा रहा हैं। जेठ जी और सुरभि भी कब से कलकत्ता में हैं। आप'ने पूछा नहीं क्या बात हुआ हैं?
रावण...कुछ तो बात हैं नहीं तो दादा भाई इतने दिन तक कभी कलकत्ता नहीं रुके न जानें क्या बात हों गया।
सुकन्या…मेरी तो चलो सुरभि से बनती नहीं आप तो कम से कम पूछ सकते हों। पर अपने एक बार भी नहीं पूछा कैसे भाई हों।
रावण…सुकन्या तुम्हें कब से उनकी फिक्र होने लग गई।
सुकन्या मन ही मन में... फिक्र तो मुझे उनकी हमेशा रहती हैं। आप नहीं जानते दीदी के साथ बुरा सलूक कर मुझे कितनी तकलीफ होता हैं। न चाहते हुए भी मुझे दीदी के साथ बुरा सलूक करना पड़ता है। कहीं न कहीं इसकी वजह आप के साथ कोई ओर भी हैं जिसके कहने पर मुझे ऐसा करना पड़ रहा है।
रावण...क्या सोच रहीं हों?
सुकन्या...कुछ नहीं आप ऑफिस जाकर एक बार उनसे बात कर लेना।
रावण...बीबी ने कहा तो करना ही पड़ेगा। मैं ऑफ़िस जा रहा हूं देर हों रहा हैं।
इतना कह रावण ऑफिस जाने के लिए निकल गया। अपश्यु जब से डिंपल से मिला था तब से एक भी दिन कॉलेज जाना बंद नहीं किया था। डिंपल के साथ आंख मिचौली जो चल रहा था। दोनों लव बर्ड कही भी चोंच लडाने लग जाते थे। अपश्यू एग्जाम में बैठ तो रहा था। लेकिन पास होगा कि नहीं यह तो विधाता ही जानते थे। क्योंकि पढ़ाई तो वो करता नहीं था।
जब तक कॉलेज में रहता डिंपल के आगे पीछे घूमता रहता था। कॉलेज के बाद देर रात तक अपने डाक बंगले में बिताया करता था। कभी कभी आस पास के गांव में जा'कर लोगों को परेशान कर लिया करता था। बेवजह उनपर अत्याचार कर रहा था। जबरदस्ती उनके बहु बेटियो को उठवाकर ले जाता उनके आबरू के साथ खेलता फिर मन भर जानें पर अपने मुस्तांडो के हवाले कर देता था फिर देर रात अकेले घर को निकल जाता था। विंकट जो नज़र रख रहा था एक निपुण जासूस की तरह अपश्यु के एक एक गति विधि पर नजर बनाया हुआ था। अपश्यु के कारनामे देखकर विंकट भी सोचने लगा...कोई इतना कमिना कैसे हों सकता हैं। जो जबरदस्ती दूसरे की बहू बेटियो को उठाकर ले जाता, खुद भी नोचता और अपने साथियों से भी नूचबाता हैं।
ऐसे ही एक दिन डिंपल के बुलाने पर अपश्यु डिंपल से मिलने गया। दोनों एक पार्क में बैठें बाते कर रहें थें। बाते करते हुए डिंपल बोली...अपश्यु तुम मुझ'से सच में प्यार करते हों या सिर्फ टाईम पास करने के लिए मुझे gf बनाया।
अपश्यु...ये सवाल तो मैं भी तुम'से पुछ सकता हूं।
डिंपल नाखरे करते हुए बोली...मैंने पहले पूछा बताओ न तुम सच में मुझ'से प्यार करते हों कि नहीं!
अपश्यु...तुम नखरे बहुत करती हों पर तुम्हारा ये नखरा करना मुझे अच्छा लगता हैं। रहीं बात प्यार करने की तो तुम ही वो पहली लड़की हों जिसे देखकर मेरे दिल में एक अलग ही फीलिंग आया था। मैं समझ नहीं पा रहा हू ये प्यार वाली फीलिंग हैं या कुछ ओर, मुझे लगाता हैं शायद मैं तुम'से प्यार करने लगा हूं।
डिंपल मन में...अनुराग के कहने पर मैंने झूठा प्यार का खेल शुरू किया था पर अब मेरा भी फीलिंग तुम्हारे साथ रह रह कर बदलने लगा हैं। क्या करूं अपश्यु को सच सच बता दूं या नहीं…!
अपश्यु...क्या सोचने लग गई।
डिंपल...कुछ नहीं! चलो घर चले बहुत देर हों गया।
अपश्यु...ठीक हैं चलो।
दोनों पार्क से चल दिया पर डिंपल मन ही मन सोच रहीं थीं क्या करें क्या न करें जब कोई फैसला नहीं कर पाया तो खुद से ही बोली... अपश्यु इतना बूरा लड़का है जानते हुए भी मेरा फीलिंग उसे लेकर क्यों बदलने लगा। क्या करूं किससे बात kaarunnn? सुगंधा के पास जाती हूं। नहीं नहीं सुगंधा से बात किया तो वो मेरा मजाक उड़ाएगा फिर किस'से बात karunnn हां अनुराग से बात करता हूं। क्या पाता अनुराग ही कुछ बता पाए?
इधर विंकट अपने पास जुटाए खबर संकट को देने के लिए उससे मिलने गया। संकट उसे नहीं मिला तो वेट करने लग गया। संकट के आते ही थोड़े बहुत इधर उधर की बाते किया फिर मुद्दे पर आया…उस्ताद मेरी बात मानो तो आप अपश्यु से जितना हों सके दूर रहो।
संकट...ये अकाल के भिकारी क्या बोल रहा हैं? सोच समझ कर बोल नहीं तो अभी के अभी….!
विंकट…बस बस आगे बोलने की जरूरत नहीं हैं। मैं जानता हूं आप क्या बोलने वाले हों आप'को मेरे पिछाड़ी से इतनी नफरत क्यों हैं?
संकट...तू बात ही जलाने वाला करता हैं इसलिए घूम फिर कर मेरी सुई तेरी पिछाड़ी पर अटक जाता हैं। अब तू मुद्दे की बात बता नहीं तो आज तेरे पिछाड़ी की खैर नहीं।
विंकट...उस्ताद मुद्दे की बात ये हैं अपश्यु को हम जितना कमिना समझ रहें थें। अपश्यु उससे भी बड़ा कमिना हैं। साला दूसरे की बहू बेटी को जबरदस्ती उठा कर ले जाता हैं और उनका चिर हरण करता हैं। आस पास के गांव वालो पर बहुत अत्याचार करता हैं। लेकिन एक अच्छी खबर ये हैं अपश्यु का यहां से कुछ दूरी पर वीराने में एक डाक बंगला हैं। वह पर ही सभी घिनौना काम करता हैं फिर देर रात वह से अकेले घर जाता है। आप अपने काम को उसी वक्त ही अंजाम दे सकते हों।
संकट...ये तो अच्छी बात हैं ये बाता अपश्यु डाक बंगले कब कब जाता हैं और कितने देर तक रहता हैं।
विंकट...जाता तो रोज ही हैं लेकिन कुछ वक्त के लिए, जिस दिन आस पास के गांव से किसी की बहू बेटी को उठता हैं उस दिन रात को बहुत देर तक रुकता हैं।
संकट...दिल खुश कर दिया बहुत अच्छा काम किया इसके ईनाम में मैं तेरी पिछाड़ी से अपनी नज़र हटाता हूं।
विंकट…शुक्रगुजार हूं आप'का जो अपने ये इनायत मुझ पर किया। उस्ताद आप'को एक सलाह देता हूं आप अकेले इस काम को अंजाम न दे।
संकट…मेरे माथे पर तुझे कहीं पर चूतिया लिखा हुआ दिख रहा हैं। तूने कैसे सोच लिए मैं उस कमिने से अकेले भिड़ने जाऊंगा। मैंने कुछ लोगों से बात कर लिया हैं। अब तू बस नजर रख जिस दिन अपश्यु आस पास के गांव से किसी को उठाया मुझे बता देना। मैं उसका काम तमाम कर दूंगा।
कुछ और यहां वहां की बाते कर विंकट चल दिया। संकट भी कहीं ओर जाने के लिए निकल गया। शाम को रावण दलाल के घर पहुंचा, दलाल को प्लास्टर में लिपटा हुआ देखकर चौक गया।
दोनों के बीच होने वाली बाते अगले अपडेट में जानेंगे। आज की अपडेट का फुल स्टॉप यह लगाता हूं। यह तक साथ बने रहकर अपना प्यार बरसाने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।



