Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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mind blowing update.
sankat aur vikat apne saathiyo ke saath badla lene kolkata pahuch gaye aur har samay apsyu par najar rakh raha the . Sagayi me mauka dhund raha tha par mauka nahi mila apasyu ka dhulaai karne ke liye .ravan ki to hawa nikal gayi ye sunke ki rajendra aur mahesh ne police ko bata diya hai sab kuch :D .aur usne apne aadmiyo ko aage kuch na karne ko keh diya .
kalu aur bablu ko pata tha ki waha sagai me itne log hai agar kisiko pata chala to jamke dhulayi hogi.phir bhi kuch jyada hi dimaag laga diye aur pushpa ko chhedh diya aur yahi nahi ruke kamla ko bhi chhedh diya, fir kya tha apasyu ke saath raman aur ashish ne bhi ache se dho dala dono ko .lekin wo sab hote dekh apasyu ke mann me glani ke bhaw aa gaye ,kyunki wo bhi to aaj tak dusro ki beheno sath galat karta a raha hai . aaj usko pata chala ki itne dino se kitna galat kar raha tha wo .weise apasyu jake bablu kalu ko sukriya kehna chahiye kyuki aaj un dono ke kaaran apsyu ka man parivartan hua hai .. 🤣
( :thankyou: Naina jii jo itni achi story padne ke liye suggest kiya)

Bahut bahut shukriya 🙏 Aakesh. Ji

Kalu aur bablu jaise logo ko hi chamn chutiya kaha jata hai ya phir had se hawsi kahna hi theek hoga.

Natija pata tha phir bhi harkate karne se baz na aaye dono adat se jo majbur thi. Dono ki ek glat harkat ne ek bande sahi rah dikha diya.

Mai bhi iss paksh me hoon apashyu ko jakar kalu aur bablu ka pair pakdlena chahiye aur kahna chahiye guru ab tak kaha the.😔

Yaha vo kahawat bilkul fhit baithta hai jo hota hai achhae ke liye hi hota kudh ke liye na sahi dusre ke liye to hota hi hoga.

Naina ji ka kya hi kahna jitni tariff ki jaye kam ho hai.

:sign0188: @Nainaji
 
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Update 30
apsyu bhale hi sudharne ki raah par chal pada hai lekin usne atit mein jo galtiyaan ki thi ya phir jo bhi gunah kiya tha uska khamiyaza ya harjana koun bharega of course apsyu ko hi bharna hoga hoga. ...Ek julmi, atyachari insaan bhale hi achhayi ki raah pe chal pada lekin uska atit kabhi bhi uska picha nahi chhodta...
thik waise hi apsyu chahe lakh achha banne ki koshish kar le par uska atit uska picha nahi chhodne wala.... Chaahe jitna bhi afsos kar le, pachhatav kar le lekin ghum phir ke phir se uske saamne aa hi jayega... jaise udahaaran ke liye..uske anjaane mein hi sankat aur uske saathi usko sabak sikhane ke liye calcutta tak aa pahunche hai.. ye to mutthi bhar dushman hai jo atit mein banaya tha... abhi jaane kitni lambi list hogi dushmano ki jinpe jaane kita julm dhaye honge apsyu ne ...
btw mere kaleje ko to badi thandak milegi jab is apasyu ki aisi ki taisi kar denge sankat aur uske sath aaye baaki ke log milke :D
main to ishi din ka intezar kar rahi thi ki kab is apsyu ki pungi baje.... :roflol: lo ab wo din behad nazdik hai jab iski badi siddat se band bajegi...

kalu aur bablu -- ravan ,dalal aur in dono mein ek similarly kut kut ke bhare hai.... Chaaro ke chaaro kutte ki dum hai.. kuch bhi kar lo par nahi sudharne wale :D for example dalal.. itni buri tarah se public dhulaayi huyi thi uski phir dekho kya wo sudhra, nahi na... :D

sagayi - waise sagayi to Mahi Maurya ji ki ho gayi hai aur story mein raghu aur kamla ki bhi... aane wali jindagi mein khushhaali aaye dil se yahi dua hai..

ab aati hoon my favorite part pe :D
Is se pehle ke surbhi aur sukanya pe hasti raat..

Banke naagin jo dono ko dasti raat.....

Bin surbhi ke sukanya ko koi aas bhi na rahi....

Itne tarse ke pyaas bhi na rahi....

Ladkhadaaye kadam, sukanya surbhi ke paas chali aayi . . ..

Chali aayi, chali aayi....

Surbhi na aayi to ,
sukanya uske paas chali aayi ....

Leke apna bharam

wo uske paas chali aayi.......
:roflol:

Btw let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:
Bahut bahut shukriya 🙏 Naina ji.

Ye apne sahi kaha atit hamesha kale sanye ki tarha piche pada rahta hai. Atit me kiye galti ya jurm kabhi bhi mitaye nehi mitati chahe bhavish me khud ko kitna bhi sudhar lo.

Jo jurm kiya vo jurm hi rahega dekhte hai apashyu ka kiya jurm use sahi raste par chlne deta hai ya phir se apashyu galt rashta akhtiyar kar leta hai.

Aur ek baat ye chand laine jo apne surbhi aur suknya ke bahan wale prem se prerit hokar lakha dhashu tha.:adore:
 
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Update - 31


रात आई और चली गई की तर्ज पर बीती रात घाटी घटना को भुलाकर सभी फिर से नए जोश और जुनून के साथ शादी के जश्न मानने की तैयारी में झूट गए। आज महेंदी का रश्म था। दोनों के हाथों को महेंदी के रंग से रंगा जाना हैं। ताकि महेंदी का रंग दोनों के दांपत्य जीवन को खुशियों से भर दे।

राजेंद्र के पुश्तैनी घर में सभी अपने अपने तैयारी में भगा दौड़ी करने में लगे हुए थें। इन सभी चका चौंध से दूर अपश्यु रूम में अकेला बैठा था। अपश्यु का अपराध बोध उस पर इतना हावी हों चुका था। चाह कर भी अपराध बोध से खुद को मुक्त नहीं करा पा रहा था। सिर्फ अपराध बोध ही नहीं अब तो उसे ये डर भी सता रहा था मां, बडी मां, बहन, भाई, पापा और बड़े पापा का सामना कैसे करे पाएगा। उसके नीच और गिरे हुए कुकर्मों की भनक उन्हें लग गया तो न जानें वो कैसा व्यवहार अपश्यु के साथ करेगें। अपश्यु का मन दो हिस्सों में बाटकर विभिन्न दिशाओं में भटकाकर अलग अलग तर्क दे रहा था। अपश्यु इन्हीं तर्को में उलझकर रह गया।

अपश्यु का एक मन...अरे हो गया गलती अब छोड़ इन बातों को आगे बढ़, दुनियां में बहुत से लोग हैं जो तूझसे भी गिरा हुआ नीच काम करते हैं। वो तो इतना नहीं सोचते। तू क्यों सोच के अथाह सागर में डूब रहा हैं।

दूसरा मन...इससे भी नीच काम ओर क्या हों सकता हैं तूने न जानें कितनो के बहु बेटियो को खिलौना समझकर उनके साथ खेला उनके आबरू को तार तार किया तू दुनिया का सबसे नीच इंसान हैं। तूने दुनिया का सबसे नीच काम किया हैं जारा सोच गहराई से तूने क्या किया हैं।

पहला मन...तूने कोई नीच काम नहीं किया ये तो तेरा स्वभाव हैं। तूने स्वभाव अनुसार ही व्यवहार किया था। इसमें इतना अपराध बोध क्यों करना, तू जैसा हैं बिल्कुल ठीक हैं। तू ऐसे ही रहना। थोड़ा सा भी परिवर्तन खुद में न लाना।

दुसरा मन...तू अपराधी हैं। तुझे अपराध बोध होना ही चाहिए। तूने देखा न कैसे कालू और बबलू के मां बाप नाक रगड़ रगड़ कर माफ़ी मांग रहे थें तू सोच तेरे मां पर किया बीतेगा जब उन्हें पता चलेगा तूने कितना गिरा हुआ हरकत किया था। सोच जब तेरी बहन ये जन पाएगी उसका भाई दूसरे के बहनों के इज्जत को तार तार करने का घिनौना काम किया हैं तब तू किया करेगा , तेरी बडी मां जो तुझे अपने सगे बेटे की तरह प्यार दिया जब उन्हें पाता चलेगा तूने उनके दमन में न जानें कितने दाग लगाया तब तू किया करेगा? सोच जब तेरा दोस्त जैसा भाई जो तेरे एक बार बोलने से तेरा मन चाह काम करता था तेरा किया सभी दोष अपने सिर लेकर डांट सुनता था। उसे पता चलेगा तब किया करेगा। अभी समय हैं जा उन सभी से माफी मांग ले उन्होंने अगर माफ कर दिया तो समझ लेना ऊपर वाले ने भी तुझे माफ कर दिया।

पहला मन…नहीं तू ऐसा बिल्कुल भी मत करना नहीं तो वो माफ करने के जगह तुझे धूतकर देंगे। उनके नज़र में तू एक अच्छा लडका हैं सच बोलते ही तू उनके नजरों में गिर जायेगा। तू दुनिया के नज़र में चाहें जितना भी गिरा हुआ हों उनके नजरों में तू एक अच्छा लडका हैं। इसलिए तेरा चुप रहना ही बेहतर हैं।

दुसरा मन…सोच जारा जब तेरे मां, बाप, बडी मां, बड़े पापा, भाई , बहन दूसरे से जान पाएंगे उनका बेटा भाई कितना गिरा हुआ हैं। तब उन्हें कितना कष्ट पहुंचेगा हों सकता है उन्हें तेरे कारण दूसरे के सामने नाक भी रगड़ना पड़े तब तू किया करेगा उनका अपमान सह पाएगा कल ही कि बात सोच जब उन लड़कों ने तेरे बहन को छेड़ा फिर उनके मां बाप को कितना जलील होना पडा, इतना जलील होते हुए तू अपने मां बाप को देख पाएगा। अगर देख सकता हैं तो ठीक हैं तू चल उस रास्ते पर जिस पर चलने का तेरा दिल चाहें। लेकिन एक बात ध्यान रखना आज मौका मिला हैं सुधार जा नहीं तो हों सकता हैं आगे सुधरने का मौका ही न मिले।

अपश्यु के बांटे हुए दोनों मनो के बिच जंग चल रहा था। तर्क वितर्क का एक लंबा दौर चला फिर अपश्यु का दुसरा मन पहले मन पर हावी हों गया। दूसरे मन की बात मानकर अपश्यु खुद से बोला... मैं सभी को सच बता दुंगा लेकिन आज नहीं आज अगर मैने उन्हे सच बता दिया ददाभाई के शादी के ख़ुशी का रंग जो चढ़ा हुआ है वो फीका पड़ जायेगा मैं शादी के बाद अपना करतूत उन्हे बता दुंगा और उनसे माफ़ी मांग लूंगा। माफ किया तो ठीक नहीं तो कहीं दूर चला जाऊंगा।

अपश्यु खुद में ही विचाराधीन था और उधर अपश्यु को न देख सभी उसे ढूंढ रहे थें। लेकिन उन्हें अपश्यु कहीं मिल ही नहीं रहा था। रघु अपश्यु को ढूंढते हुए सुरभि के पास पहुंचा और बोला...मां अपने अपश्यु को कही देखा हैं न जाने कहा गया कब से ढूंढ रहा हूं।

सुरभि…मैं भी उसे नहीं देखा कुछ जरूरी काम था जो उसे ढूंढ रहा हैं।

रघु…मां जरुरी काम तो कुछ नहीं सभी को देख रहा हूं बस अपश्यु सुबह से अभी तक नहीं दिखा इसलिए पुछ रहा हूं

सुरभि…ठीक है मैं देखती हूं।

सुरभि पूछताछ करते हुए। सुकन्या के पास पहुंचा सुकन्या उस वक्त कुछ महिलाओं के साथ बैठी बातों में मशगूल थीं।

सुरभि...छोटी अपश्यु कहा है उसका कुछ खबर हैं रघु कब से उसे ढूंढ रहा हैं।

सुकन्या... दीदी अपश्यु अपने रूम में हैं न जानें कितना सोता हैं कितनी बार आवाज दिया कोई जवाब नहीं दिया आप जाकर देखो न हों सकता है आप'की बात मान ले।

सुरभि... ठीक हैं मै देखती हूं।

सुरभि सीधा चल दिया अपश्यु के रुम की तरफ रूम पर पहुंचकर देखा दरवाजा बन्द हैं। हल्का सा मुस्कुराकर दरवाज़ा पीटने लग गई। लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला फिर दरवाज़ा दुबारा पीटते हुए बोली…अपश्यु दरवाज़ा खोल, जल्दी खोल बेटा तुझे रघु बुला रहा हैं।

अपश्यु अभी अभी विचारों के जंगल से बाहर निकला था। बडी मां की आवाज़ सुनकर आंखे मलते हुए दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुलते ही सुरभि बोली…ये kuyaaa…।

सुरभि पूरा बोल ही नहीं पाई अपश्यु की लाल आंखे देखकर रूक गई फिर अपश्यु बोला…. हा बडी मां बोलों कुछ काम था।

सुरभि... बेटा माना की देर रात तक जागे हों फिर भी इतने देर तक सोना अच्छा नहीं हैं। घर में शादी हैं आए हुए महमानो का अवभागत करना भी जरुरी हैं।

अपश्यु जग तो बहुत पहले गया था। कल घटी घटना के करण खुद में उलझा हुआ था पर ये बात न बताकर अपश्यु बहाना बना दिया।

अपश्यु... बडी मां देर रात तक जगा था तो आंख ही नहीं खुला अब किया करता।

सुरभि…अब जाओ जल्दी से तैयार होकर नीचे आजा रघु तुझे ढूंढ रहा हैं।

अपश्यु…दादा भाई ढूंढ रहे हैं चलो पहले उनसे ही मिल लेता हूं।

इतना कहकर अपश्यु बाहर को जानें लगा तभी सुरभि रोकते हुए बोली...जा पहले नहा धोकर अच्छा बच्चा बनकर आ भूत लग रहा हैं कहीं किसी मेहमान ने देख लिया तो भूत भूत चिलाते हुए भाग न जाए।

सुरभि की बाते सुनकर अपश्यु मुस्करा दिया। सुरभि अपश्यु के बिखरे बालो पर हाथ फेरकर बाहर चली गई। बड़ी मां के जाते ही अपश्यु बाथरूम में घुस गया। कुछ क्षण में बाथरूम से निकलकर टिप टॉप तैयार होकर नीचे आ गया। पहले रघु से मिला फ़िर इधर उधर के कामों को करने में लग गया।

ऐसे ही पल पल गिनते गिनते शाम हों गया। शाम को मेंहदी रस्म के चलते महिलाओं का तांता लगा गया। एक ओर महिलाएं अपने नाच गाने में लगे रहे। एक ओर मेंहदी रचाने वाले अपने अपने काम में लग गए। कोई रघु के हाथ में मेहंदी लगा रहें थे तो कोई सुकन्या, सुरभि पुष्पा के हाथों में मेंहदी लगाने में लग गए। अपश्यु और रमन दोनों एक साईड में खड़े देख रहे थें। दोनों को देखकर सुरभि बोली…अपश्यु रमन तुम दोनों मेहंदी नहीं लगवा रहें हों। तुम दोनों भी लगवा लो भाई और दोस्त की शादी हैं तुम दोनों को तो खुद से आगे आकर लगवाना चाइए था।

रमन... रानी मां शादी रघु की है हम क्यों मेहंदी लगवाए वैसे भी मेंहदी हम लड़कों के लिए नहीं लड़कियों और औरतों के लिए हैं ।

अपश्यु…. हां बडी मां मुझे नहीं लगवाना मेंहदी, मेंहदी लड़कों के हाथ में नहीं लड़कियों के हाथ में शोभा देती हैं ।

सुरभि…मेंहदी सिर्फ श्रृंगार के लिए नहीं लगाया जाता हैं। कहा जाता हैं मेंहदी का रंग जीवन में खुशियों का रंग भर देता हैं। इसलिए शादी जैसे मौके पर सभी मेंहदी लगवा सकता हैं। तुम दोनों भी लगवा लो जिससे जल्दी ही तुम्हारे जीवन में भी रंग भरने वाली कोई आ जाए।

इतना कहकर सुरभि हंस देती हैं। पुष्पा आंखे दिखाते हुए बोली...चलो आप दोनों भी मेंहदी लगवा लो नहीं तो सोच लो मेरा कहना न मानने पर आप दोनों का किया होगा।

दोनों मन ही मन बोले इतने लोगों के बीच कान पकड़ने से अच्छा मेंहदी लगवाना लेना ही ठीक रहेगा। इसलिए दोनों चुप चाप मेंहदी लगवाने बैठ गए।

उधर महेश के घर पर भी मेंहदी का रश्म शुरू हों गया। कमला को बीच में बिठाकर चारों और से कुछ महिलाएं घेरे हुए नाच गाना करने में लगी रहीं। मेंहदी रचाने वाली लड़कियां कोई कमला के हाथों और पांव में मेंहदी लगने लग गए। कमला के साथ उसकी दोनों सहेलियां बैठी बातों में मशगूल थीं

चंचल...कमला मेहंदी तो तूने पहले भी कई बार रचाया हैं आज सैयां के नाम की मेहंदी रचते हुए कैसा लग रहा हैं ।

शालू…मन में लड्डू फुट रहा होगा। बता न कमला किसी के नाम की मेहंदी जब हाथ में रचती हैं तब कैसा लगता हैं।

कमला... मैं क्यों बताऊं जब तुम दोनों के हाथ में किसी के नाम की मेहंदी रची जाएगी तब खुद ही जान जाओगे अब तुम दोनों चुप चाप मेहंदी लगवाने दो।

चंचल….मेहंदी कौन सा तेरे मुंह पर लग रही हैं जो तू हमसे बात नहीं कर सकती।

शालू...अरे शालू तू नहीं समझ रहीं हैं हमारी सखी अब हमारी नहीं रहीं सजन की हों चुकी हैं। वो भला हमसे बात क्यों करेंगी।

कमला…तुम दोनों को चुप करना हैं कि नहीं या पीट कर ही मानोगे।

चंचल...कमला तू बहुत याद आयेगी रे शादी के बाद तू हमें भुल तो नहीं जाएगी बोल न।

कमला…नही रे मैं तुम दोनों को कैसे भुल सकती हूं तुम दोनों तो मेरे सबसे प्यारी….।

कमला अधूरा बोलकर रूक गई और आंखो से नीर बहा दिया। आंखे नम शालू और चंचल की भी हों गईं। आखिर इतनों वर्षो का साथ जो छुटने वाला था। दोनों ने बहते आंसू को पोंछकर कमला के आंसू भी पोछ दिया फिर चंचल बोली...तू भूलना भी चाहेगी तो हम तुझे बोलने नहीं देंगे।

शालू...और नहीं तो क्या हम तुझे पल पल याद दिलाते रहेंगे।

इन तीनों की हसी ठिठौली फिर शुरू हों गई । लेकिन मनोरमा बेटी को मेहंदी लगते देखकर खुद को ओर न रोक पाई इसलिए एक कोने में जाकर अंचल में मुंह छुपाए रोने लग गई। महेश के नजरों से मनोरमा खुद को न छुप पाई। मनोरमा को कोने में मुंह छुपाए रोते देखकर महेश पास गया फिर बोला…मनोरमा इस ख़ुशी के मौके पर यूं आंसू बहाकर गम में न बदलो देखो हमारी बेटी कितनी खुश दिख रही हैं।

मनोरमा...कैसे न रोऊं जिन हाथों से लालन पालन कर बेटी को बडा किया एक दिन बाद उसी हाथ से बेटी को विदा करना हैं। ये सोचकर किस मां के आंख न छलके आप ही बताओं।

मनोरमा की बात सुनकर महेश के भी आंखे नम हों गया। दोनों एक दुसरे को समझाने में लग गए। कमला की नज़रे मां बाप को ढूंढ रही थीं। कमला के हाथों और पैरों में मेहंदी रचा जा चुका था। मां को दिखाकर पूछना चाहती थी मेहंदी कैसी रची हैं। ढूंढते हुए उसे मां बाप एक कोने में खड़ा दिखा। कमला उठकर उनके पास गई। फिर बोली...मां देखो तो मेरे हाथ में रची मेहंदी कैसी दिख रही हैं।

मनोरमा एक नज़र कमला के हाथ को देखा फिर कमला से लिपटकर रोने लग गई। कमला भी खुद को ओर न रोक पाई, फुट फुट कर रो दिया। दोनों कुछ क्षण तक रोते रहे फिर महेश के कहने पर दोनों अलग हुए। कमला मां को साथ लेकर गई फिर खुद पसंद करके मां के हाथों में मेहंदी रचवाया।

कुछ देर तक और मेहंदी रचने का काम चलता रहा। महिलाओं का नाच गाना भी संग संग चलता रहा। नाच गा कर जब सभी थक गए तब मेहंदी रस्म को विराम दे दिया गया।


अगले दिन शादी था तो जहा लङकी वाले बारातियों के स्वागत सत्कार की तैयारी में जुट गए वही लडके वाले बारात ले जानें की तैयारी में जुट गए। उधर संकट इस बात से परेशान था। उसे अभी तक मौका नहीं मिला था। दल बल के साथ खड़े होकर इसी पर विचार कर रहा था।

संकट...यार क्या करूं समझ ही नहीं आ रहा। कोई मौका भी नहीं बन रहा अभी अपश्यु का कुछ नहीं किया तो न जानें फ़िर कब मौका मिलेगा।

विंकट...अरे उस्ताद कोई न कोई मौका बन ही जायेगा मुझे लगता है शादी के एक दो दिन बाद ही मौका मिल जायेगा।

"अरे शादी के बाद नहीं हमे आज ही कुछ करना होगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।"

"हा मौका तो अच्छा हैं लेकिन अपश्यु अकेले मिलना भी तो चाहिए ऊपर से ये ठुल्ले मामू लोगों ने अलग ही जमघट लगा रखा हैं।"

"अरे यार बड़े घर की शादी है तो पुलिस तो आयेंगे ही। यार संकट तू कुछ बता हमारा दिमाग तो काम ही नहीं कर रहा हैं।"

संकट सोच की मुद्रा में आ गया। आगे कैसे क्या किया जाए बिना पुलिस के नज़र में आए। संकट सोचने में गुम था तभी विंकट बोला... मेरे दिमाग में एक योजना है कहो तो सुनाऊं।

सभी विंकट का मुंह ताकने लग गए कुछ क्षण तक ताका झाकी करने के बाद संकट बोला…सुनता क्यों नही अब सुनने के लिए भी मूहर्त निकलबाएगा।

विंकट...उस्ताद क्यों न आप बरती बनकर बारात में सामिल हों जाओ फिर रात में सभी शादी में मगन होंगे तब कोई जाकर बहाने से अपश्यु को बुलाकर ले आना फिर किसी सुनसान जगह ले जा'कर अपना अपना भड़ास निकाल लेना।

संकट…हां ये ठीक रहेगा हम सभी बारात में बाराती बनकर चलते हैं। लडकी वालो के वहा पहुचकर कोई सुनसान जगह देखकर अपश्यु को बुलाकर लायेंगे फिर जमकर धोएंगे।

सभी संकट के बात से सहमत हों गए फिर सभी बारात में जानें की तैयारी करने चल दिए। इधर राजेंद्र के पुश्तैनी घर पर भी बरात लेकर जानें की तैयारी शुरू हों गया। सभी मेहमान भी आ चुके थे सहनाई की मधुर धुन बज रहा था। एक कमरे में रघु को तैयार किया जा रहा था। रघु को कुछ क्षण में तैयार कर दिया गया। रघु के ललाट से गाल तक चंदन के छोटे छोटे टिके लगाया गया था। पहनावे में धोती कुर्ता सिर पर सफेद शंकुआकार का टूपूर था (बंगाली समझ का ये एक पारंपरिक लिबाज है जो शादी के वक्त दूल्हे को पहनाया जाता है।)

दूल्हा रघु तैयार था तो कुछ रस्में थी जो निभाया जाना था उसे निभाने के लिए सुरभि सुकन्या रघु के कमरे में गई। रघु को सजा धजा देखकर सुकन्या रघु के पास गई फ़िर उसके कान के पास एक टीका लगा दिया। उसके बाद जो रस्में थी उसे निभाया गया। रश्म पूरा होते ही रघु को बहार लाया गया। कुछ वक्त नाच गाना हुआ। नाच गाना चलाता रहेगा किंतु बरात को समय से दूल्हा का पहुंचना जरुरी था इसलिए बरात प्रस्थान कर दिया गया। सभी बराती रघु के पीछे हों लिए भीड़ में संकट गैंग के साथ सामिल हों गया।

नाचते गाते सभी आ पहुंचे महेश के घर महेश के घर की रौनक ही अलग था। बेहतर तरीके से सजावट किया गया था। तरह तरह की लाइटों से पुरा घर चमक रहा था। गेट पर रघु को रोका गया जहां मनोरमा आकर रघु का टीका कर अन्दर आने की अनुमति दे गई। रघु की कोई साली नहीं था तो कमला की दोनों सहेली ने गेट पर ही साली होने का दायित्व निभाया शालू ने रघु का एक पैर धुलवाया फिर बोली…जीजा जी अब नग दीजिए तब दूसरा पैर धुलेगा।

रमन और अपश्यु, रघु के अगल बगल खड़े थे। अपश्यु शालू और चंचल के साथ तर्क वितर्क में उलझा रहा लेकिन रमन का उससे कोई मतलब नहीं था, सजी साबरी शालू अदभुत सुंदरी लग रही थीं। रमन बस शालू को देखने में खोया रहा। मन ही मन अलग ही सपने बुनता रहा। चंचल ने एक नज़र रमन को देखा फिर शालू के कान में कहा...शालू देख तूझे कैसे देख रहा हैं। लगता है तुझ पर फिदा हों गया।

शालू रमन की ओर देखा फिर नजरे झुका लिया। इनके क्रिया कलाप पर अपश्यु की नज़र पड़ गया। रमन को खोया देखकर रमन को हिलाया फिर बोला... किया देख रहे हों रमन भईया कोई खजाना दिख गया।

अपश्यु के बोलते ही रमन भूतल पर आया, नज़रे चुराने की तर्ज पर इधर उधर देखने लग गया। ये देख अपश्यू शालू और चंचल मुस्कुरा दिए। कुछ क्षण तक दोनों पक्षों में लेन देन को लेकर वाद विवाद चलता रहा। रमन वाद विवाद करने के दौरान बीच बीच में शालू की और देखकर ही बात करता रहा। जब दोनों की नज़रे आपस में टकरा जाती तो तुरत ही नजरे हटाकर इधर उधर देखने लग जाते। दोनों को पहली नज़र के चुंबकीय शक्ति ने आकर्षित कर लिया दोनों एक दूसरे को देख रहे थें लेकिन एक दूसरे से नज़रे बचाकर। बरहाल लेने देन का मशला सुलझा फिर रघु के दूसरे पैर को धुलवाया गया। मुंह मीठा करने के बाद रघु को अन्दर ले जाया गया।

संकट और उसके गैंग ने आते ही अपना काम शुरू कर दिया। उन्हे एक खाली जगह चाहिए था तो उसे ही ढूंढने लग गए। वो भी मिल गया लेकिन खाली जगह महेश के घर से थोड़ा दूर था। वहा तक अपश्यु को लाने के लिए सभी एक योजना बनाकर अन्दर आ गए। मौका मिलते ही किसी बहाने से अपश्यु को बुलाकर बहार ले जाएंगे। लेकिन उन्हें एक डर ये भी लग रहा था महेश के घर में पुलिस की संख्या ज्यादा था कहीं वो पुलिस के नज़र में न आ जाएं।

इधर मंडप में आने के बाद रघु को एक सोफे पर बैठा दिया गया रघु के अगल बगल रमन अपश्यु और पुष्पा बैठ गए। रमन इधर उधर नज़रे घुमा किसी को ढूंढने लगा, अनगिनत चेहरे दिख रहा हैं पर जिस चेहरे की उसे तलाश हैं वो नहीं दिख रहा। यूं इधर उधर रमन का मुंडी हिलाना पुष्पा को दिख गया तो पुष्पा बोली... रमन भईया इधर उधर किया देख रहे हों कुछ चाहिए था।

रमन झेपकर बोला... नही नही कुछ नहीं चाहिए।

अपश्यु…मैं जनता हूं रमन भईया को किया चाहिए बता दूं रमन भईया।

रमन...नहीं अपश्यु! कुछ न बताना, बता दिया तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा...umhuuu किया छुपा रहे हों। जल्दी बताओं।

रघु... हा रमन बता न बात किया बात हैं।

रमन टाला मटोली करने में लगा रहा। इतना पुछने पर भी जब रमन नहीं बताया तो अपश्यु ने रघु के कान में कुछ बोला, सुनकर रघु मुस्कुराया फ़िर बोला...क्या यार इतनी सी बात बोलने में शर्मा रहा हैं रूक अभी मैं किसी को बुलाता हूं।

रघु ने आस पास घूम रहे वेटर में से एक को बुलाया फिर रमन को दिखाते हुए बोला…इसे फ्रेश होने जाना हैं। क्या आप इसको ले'कर जा सकते हों।

रमन…मैंने कब कहा मुझे बाथरूम जाना हैं।

अपश्यु मुंह पर हाथ रखकर हंसते हुए वेटर को जानें को कहा फिर एक बार रघु के कान में कुछ कहा तब रघु बोला... क्यों रे रमन मेरी शादी करवाने आया या अपनी वाली ढूंढने आया बता।

रमन…अपश्यु तूझे माना कर था न फ़िर क्यों बताया।

रमन अपश्यु और रघु हल्की हल्की आवाज में बात कर रहे थें। तो पुष्पा को न कुछ सुनाई दे रहा था न ही कुछ समझ आ रहा था इसलिए पुष्पा बोली...आप तीनों में क्या खिचड़ी पक रहा हैं मुझे बातों नहीं तो सोच लो खिचड़ी खाने लायक नहीं रहेगा।

अपश्यु...पुष्पा मैं बताता हूं फिर अपश्यु ने शालू और रमन के बीच के नैन मटका वाला किस्सा सुना दिया। सुनकर पुष्पा बोली... तो ये बात हैं। वैसे रमन भईया आप'को लड़की पसन्द है तो इस मामले में भाभी ही कुछ मदद कर सकती हैं आप'को उनसे ही मदद मांगना चाहिए।

इसके बाद तो तीनों मिलकर रमन को छेड़ने लग गए। कुछ वक्त तक इनका रमन को छेड़ना चलता रहा। पुरोहित जी आए आते ही मंडप में सभी तैयारी कर लिया फिर उन्होंने रघु को मंडप में आने को कहा। रघु हाथ मुंह धोकर मंडप में बैठ गया। कुछ देर बाद पुरोहित ने कहा कन्या को बुलाया जाए। कुछ क्षण में कमला घूंघट उड़े दुल्हन के लिवास में शालू और चंचल के साथ सीढ़ी से धीरे धीर चलकर आने लगीं। दुल्हन के लिवास में कमला को देखकर कमला के चेहरे को देखने के लिए रघु तरसने लगा बस जतन कर रहा था किसी तरह कमला का चेहरा दिख जाएं पर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं क्योंकि कमला का चेहरा अच्छे से ढका हुआ था। अब तो चेहरे पर लगा पर्दा शूभोदृष्टि की रश्म करते वक्त ही दिखाई देगा।

रमन एक टक शालू को देखने में लगा रहा आस पास किया हों रहा हैं। कौन क्या कह रहा हैं उससे कुछ लेना देना नहीं था। किसी से कुछ वास्ता हैं तो सिर्फ और सिर्फ शालू है। बीच बीच में शालू भी रमन की और देख लिया करती, जैसे ही दोनों की नज़रे आपस में मिल जाता। शालू नज़रे झुकाकर मंद मंद मुस्कुरा देती। रमन और शालू का नैन मटका करना पुष्पा के नज़र में आ गया। तो रमन को कोहनी मरकर धीरे से कान में बोली... भईया क्या कर रहे हों थोड़ा कम देखो नहीं तो लड़की आप'को छिछोरा समझ बैठेगी।

रमन झेपकर नज़रे नीचे कर लिया। दुल्हन कमला मण्डप में पहूंच गई कमला के मंडप में बैठते ही शादी की विधि शुरू हों गया। राजेंद्र ये देख खुशी के आंसु बहने लग गया। कितनी कोशिशों के बाद आज उसे ये दिन देखना नसीब हो रहा था। रावण मन ही मन खुद को गाली दिया। इतना यतन करने के बाद भी जो नहीं चाहता था वो आज उसके आंखो के सामने हों रहा था।

खैर कुछ क्षण बाद पूतोहित जी के कहने पर महेश मंडप में पधारे रघु और कमला का गठबन्धन कर कमला का हाथ रघु को सौफकर कन्या दान का रश्म भीगे नैनों से पूर्ण किया। रश्म के दौरान कमला के नैन अविरल बह चली मानो कमला के नैनों ने बहुत समय से बंधकर रखी हुई समुंदर के बांध को हमेशा हमेशा के लिए खोल दिया हों।

कन्या दान के रश्म के बाद उसे बाप का घर छोड़कर एक नए घर में जाकर वहा के रीति रिवाज के अनुसार चलना हैं। जितनी आजादी बाप के घर में मिला करती थीं शायद ससुराल में वो आजादी छीन ली जाए और चार दिवारी में कैद कर लिया जाएं। जिस तरह ससुराल पक्ष चाहेगा वैसे ही कमला को आचरण करना हैं। एक नया रिश्ता निभाना हैं। मां बाप के साथ साथ सास ससुर के मान इज्जत का ख्याल रखना हैं। नए सिरे से सभी के साथ अपनेपन का रिश्ता जोड़ना हैं। एक नवजात शिशु की तरह एक बार फ़िर से जीवन यात्रा शुरू करना हैं। इस यात्रा में उसका साथी मां बाप नहीं बल्कि पति, सास, ससुर उनका परिवार होगा।

इधर कन्या दान का रश्म चल रहा था उधर संकट के भेजे एक आदमी ने आकर अपश्यु से कहा...साहब आप'को कोई बहार बुला रहा हैं।

अपश्यु... कौन है? मैं तो यह के किसी को नहीं जनता।

"साहब वो तो मैं नहीं जनता लेकिन वो कह रहें थें आप उनके घनिष्ट मित्र हैं।"

घनिष्ट मित्र की बात सुनकर अपश्यु उठाकर उसके साथ चल दिया। अपश्यु को लगा शायद दार्जलिंग से उसका कोई दोस्त आया होगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए अभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏
 
I

Ishani

First of all i want to say that romantic or suspense genre is my favorite genre. I never miss any romantic/suspense story even if it is like a short story plot . So after seeing the title of the story i was eager to read this .and to my surprise it was not like a small or short rotted stories, rather it was like a fresh blend of flowers ( I would say red Flowers , pun intended) filled with romantic perfume .

Well the Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan is really worth to read. but only when if u know to handling romantic situation. Else you will fall in the never ending romantic trap pioneered by writer.
Property ke liye bhai, bhai ka dusman ban betha . bhatije ko bhi nahi chhoda. uski life spoile karne tula hai. My favorite scene kamla nd raghu ki love story ab shadi me tabdeel hone wali hai . unka pyar kamyaab hua .
The writer has done commendable job . in building the romance , suspense and maintaining it upto the last drop of the story. I never felt bored for even a second .The narration and the dialogues are perfect fit for the atmosphere of the story. Just minor flaw is A brother became an enemy of his own brother just for the sake of property. I think that's irrelevant to the dark tone of the story. ( May be its my point of view or Did i missed something ??)
anyways, I really love the story very much . ❤
 
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Update - 5


समय अपने गति से चल रहा था। समय के गति के साथ साथ सभी के जीवन से एक एक कर दिन काम होते जा रहे थे। रावण खुद के रचे साजिश को ओर पुख्ता करने में लगा हुआ था। चाैसर की विसात बिछाए एक एक चाल को सावधानी से चल रहा था। रावण के बिछाए बिसात में पत्नि और बेटा मुख्य पियादा था। अपस्यु को बाप के बनाए रणनीति की जानकारी नहीं था इसलिए बाप जैसा कह रहा था वैसा ही व्यवहार कर रहा था। लेकिन सुकन्या को पति के रणनीति की जानकारी थी। जानकारी होते हुऐ भी भुल कर रहा था। न जाने क्यूं सुकन्या ऐसा कर रही थी न जानें सुकन्या के मन में क्या चल रहा था। रावण को आभास हो रहा था सुकन्या जान बूझ कर कर रही हैं। इसलिए दोनों में मत भेद हों जाया करता था जो कभी कभी झगड़े का रूप भी ले लेता था। कुछ दिन के मन मुटाव के बाद दोनों में सुलह हों जाया करता था। सुलह इस शर्त पर होता की सुकन्या मन मुताबिक सभी से व्यवहार करेंगी। थोडी टाला मटोली के बाद रावण सहमत हों जाया करता।

पिछले कुछ दिनों से राजेंद्र कुछ ज्यादा ही परेशान था। करण सिर्फ राजेंद्र जनता था। सुरभि ने कई बार पुछा पर राजेंद्र टाल दिया करता था। सुरभि भी जानने को ज्यादा जोर नहीं दिया। क्योंकि राजेंद्र सुरभि से छुपना पड़े ऐसा कोई काम नहीं करता था। धीरे धीर राजेंद्र की चिंताए बढ़ने लगा जो सुरभि से छुपा न रहा सका इसलिए सुरभि जानना चाहा तो इस बार भी राजेंद्र ने टाल दिया जिससे सुरभि भी चिंतित रहने लग गया। सुरभि को चिन्तित देख राजेंद्र से रहा न गया। इसलिए पुछ लिया।

राजेंद्र…सुरभि पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूं तुम कुछ परेशान सी रहने लग गई हों। बात क्या हैं? मुझे बता सकती हों।

सुरभि...यही सवाल तो मुझे आप से पुछना था।

राजेंद्र…तुम्हारा मतलब क्या हैं? तुम पुछना क्या चाहती हों?

सुरभि…सीधा सा मतलब हैं आप पिछले कुछ दिनों से अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार कर रहें हों। क्या आप मुझे बता सकते हों ऐसा क्यो?

राजेंद्र…तुम कैसे कह सकती हों मैं अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार कर रहा हूं। तुम्हे कोई भ्रम हुआ होगा।

सुरभि…मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ मैं देख रही हूं आप पिछले कुछ दिनों से चिड़चिड़ा हों गए हों बिना करण गुस्सा कर रहे हों। कोई बात हैं जो अपको अदंर ही अदंर खाए जा रहा हैं जिससे आप के चहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रहा हैं।

राजेंद्र…अब तो ये पक्का हो गया हैं। तुम भ्रम का शिकार हों गई हों। इसलिए मैं तुम्हें चिंतित और चिड़चिड़ा दिखाई दे रहा हूं।

सुरभि...सुनिए जी आप सभी से छुपा सकते हों, पर मुझसे नहीं हमारे शादी को बहुत समय हों गया हैं। इतने सालो में मैं आप'के नस नस से परिचित हों गयी हूं इसलिए आप मुझे सच सच बता दीजिए नहीं तो मैं आप'से रूठ जाऊंगी। आपसे कभी बात नहीं करूंगी।

राजेंद्र…ओ तो तुम मुझसे रूठ जाओगी। लेकिन ऐसा तो कभी हुए ही नहीं मेरी एक मात्र धर्मपत्नी मुझ'से रूठ गई हों।

सुरभी…आप मुझे बरगलाने की कोशिश न करें मैं आप'की बातो में नहीं आने वाली इसलिए जो आप छुपा रहे हों सच सच बता दीजिए।

राजेंद्र…ओ हों देखो तो गुस्से में कैसे गाल गुलाबी हों गया हैं। सुरभि तुम्हारे गुलाबी गालों को देख तुम पर बहुत प्यार आ रहा हैं। चलो न थोडा प्यार करते हैं।

इन दोनों की बातों को कोई सुन रहा था। हुआ ऐसा की रावण रूम से बाहर आया नीचे आने के लिए सीढ़ी तक पंहुचा ही था की सुरभि को राजेंद्र से बात करते हुए देख लिया, पहले तो रावण को लगा दोनों नार्मल बाते कर रहे होंगे लेकिन जब सुरभि बार बार राजेंद्र से जानने पर जोर दे रहीं थीं। और राजेंद्र बात को टालने की कोशिश कर रहा था। ये देख रावण का शक गहरा हों गया। इसलिए रावण जानना चाहा, राजेंद्र इतना टाला मटोली क्यों कर रहा था। इसलिए रावण छुप कर दोनों की बाते सुनने लग गया।

राजेंद्र की बातों को सुन सुरभि मुस्कुरा दिया फ़िर शर्मा कर नजरे झुका लिया, एकाएक ध्यान आया राजेंद्र भटकने, मन बदलने के लिए ऐसा बोल रहा हैं तब सुरभि झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली...आप को मुझ पर, न प्यार आ रहा हैं, न ही आप मुझ'से प्यार करते हों। आप झूठ बोल रहें हों, झूठे प्यार का दिखावा कर रहें हों,आप झूठे हों।

राजेंद्र…ओ हों सुरभि देखो न गुस्से में तुम्हारे गाल गुलाबी से लाल हों गए हैं अब तो मुझे तुम पर ओर ज्यादा प्यार आ रहा हैं। मन कर रहा हैं तुम्हारे लाल लाल गालों को चबा जाऊं।

पति की बाते सुन सुरभि मुस्करा दिया फ़िर मन ही मन बोली…आज इनको हों क्या गया? मुझसे प्यार करते हैं जताते भी हैं लेकिन आज ऐसे खुले में जरूर कुछ बात हैं जो मुझसे छुपाना चाह रह हैं इसलिए खुलेआम प्यार जाता रहें हैं जिससे मैं झांसे में आ जाऊं और जानें की कोशिश न करू। वहा जी आगर ऐसा हैं तो मैं जानकर ही रहूंगी। जानने के लिए मुझे क्या करना हैं? मैं भली भाती जानती हूं।

पति की परेशानी कैसे जानना हैं इस विषय पर सोच सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेर दिया। पत्नी को मुस्कुराते देख राजेंद्र बोला…क्या सोच रहे हों और ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हों?

सुरभि…आप यह पर प्यार करेंगे किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे इसलिए मैं सोच रहीं थी जब आप का इतना मन हों रहा हैं तो क्यों न मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लू। चलो रूम में चलते हैं फिर आपको जितना प्यार करना हैं कर लेना।

राजेंद्र…हां हां क्यों नहीं चलो न देरी किस बात की फिर मन में बोला…अच्छा हुआ सुरभि उस बात को भुल गई नहीं तो आज मुझ'से सच उगलवा ही लेती जिसे मैं छुपाना चाहता हूं।

राजेंद्र सोच रहा था सुरभि जो जानना चाहती थी उस बात को भुल गई लेकिन राजेंद्र यह नहीं जानता की सुरभि उससे बात उगलवाने के लिए ही उसके बात को मान गयी। रावण जो छुप कर दोनों की बाते सुन रहा था वो भी सोचने पर मजबूर हो गया...लगता हैं दादा भाई का किसी ओर महिला के साथ संबंध हैं जिसका पाता भाभी को लग गया होगा। शायद उसी बारे में भाभी पुछना चाहती हों और दादाभाई बचने के लिऐ टाला मटोली कर रहे हों। चलो अच्छा हैं अगर यह बात हैं तो मेरा काम ओर आसान हों जायेगा करने दो इनको जो करना हैं। मैं चलता हूं ।

रावण छुपते हुए निकलकर वापस रूम में चला गया। सुरभि उठकर मस्तानी चाल से चल दिया। राजेंद्र भी पीछे पीछे चल दिया। सीढ़ी से ऊपर जाते वक्त सुरभि कमर को कुछ ज्यादा ही लचका रही थी। चाल देख लग रहा था कोई हिरनी मिलन को आतुर हों, विभिन्न मुद्राओं में चलकर साथी नर को अपनी ओर आकर्षित कर रही हों।

राजेंद्र भी खूद को कब तक रोक कर रखता सुरभि की लचकती कमर और मादक अदा देख मोहित हों गया और चुंबक की तरह खींचा चला गया सुरभि सीढ़ी से ऊपर पहुंचकर पलटा राजेंद्र की ओर देख, उंगली से इशारे कर जल्दी आने को कहा, सुरभि को इशारे करते देख राजेंद्र जल्दी जल्दी सीढ़ी चढ ऊपर पहुंच गया। सुरभि जल्दी जल्दी राजेंद्र को ऊपर आते देख कमर को ओर ज्यादा लचकते हुए चल दिया, कमरे के पास पहुंच कर रूक गई फिर पलट कर सोकी और कामुक नजरों से राजेद्र को देखा। सुरभि के हाव भाव देख राजेंद्र मन ही मन बोला….आज सुरभि को हों क्या गया? मन मोहिनी अदा से मुझे क्यों आकर्षित कर रही है? कामुक नजरों से ऐसे बुला रहीं हैं जैसे हमारा मिलन पहली बार हों रहा हों लेकिन जो भी हों आज सुरभि ने शादी के शुरुवाती दिनों को याद दिला दिया।

सुरभि मंद मंद मुस्कुराते हुए दरवजा खोल अदंर जा'कर खड़ी हो गई। राजेंद्र कमरे में प्रवेश करते ही, सुरभि को देख मंत्र मुग्ध हो गया। कमर को एक तरफ बाहर निकल, ऊपरी शरीर को एक ओर झुका, एक हाथ कमर पर रख दूसरे हाथ से केशो को खोल पीछे से सामने की ओर ला रही थीं। सुरभि को इस मुद्रा में देख राजेंद्र के तन में जल रहा काम अग्नि ओर धधक उठा। राजेंद्र धीरे धीरे सुरभि की ओर कदम बढ़ाता गया। सुरभि उसी मुद्रा में पलटकर राजेंद्र को देखा उसी मुद्रा में पलटने से सुरभि के भौगोलिक आभा ओर ज्यादा निखर आया। जिसे देख राजेंद्र "aahaaaa" की आवाज निकाला फिर बोला… सुरभि लगता हैं आज जान लेने का विचार बना लिया हैं।

सुरभि होटों को दांतो से कटते हुए कामुक आवाज में बोली.... जान कौन किसकी लेगा बाद में जान जाओगे। आगे बढ़ने से पहले दरवजा अच्छे से बंद कर दीजियेगा नहीं तो हमे एक दूसरे की जान लेते किसी ने देख लिया तो जवाब देना मुस्किल हों जायेगा।

राजेंद्र पलटकर दरवजा बंद कर कुंडी लगा दिया फिर आगे बढ़ सुरभि के कमर में हाथ डाल अपनी ओर खींच चिपका लिया फिर सुरभि के गर्दन को झुकाकर एक चुम्बन अंकित कर दिया। जिससे सुरभि का बदन सिहर उठा और मूंह से एक मादक ध्वनि "ऊंऊंऊं अहाहाहा" निकला। आवाज में इतनी मादकता और कामुक भाव था कि राजेंद्र हद से ज्यादा काम विभोर हों सुरभि के गर्दन, कंधे पर चुम्बन पे चुम्बन अंकित किए जा रहा था। हाथ को आगे ले सुरभि के पेट को सहलाते हुए ऊपर की ओर ले जानें लगा। सुरभि एक हाथ राजेंद्र के हाथ पर रख उसके हाथ को आगे बढ़ने से रोक दिया। रुकावट का असर ये हुआ राजेंद्र ओर ज्यादा ललायित हो हाथ को बाधा से मुक्त करने लगा गया। राजेंद्र की सभी कोशिशों को सुरभि ने विफल कर दिया। विफलता से विरक्त हों राजेंद्र बोला…सुरभि मुझे क्यो रोक रहीं हों? तुम्हारे रस से भरी गागर में मुझे डूब जाने दो तुम्हारे जिस्म की जलती अग्नि में,मुझे भस्म हो जानें दो।
मेरे तन में जलती ज्वाला को बुझा लेने दो।

सुरभि समझ गई पति के मुंह से बात उगलवाने का वक्त आ गया l इसलिए सुरभि पलटकर राजेंद्र से चिपक गई फिर गले में बांहों का हर डाल दिया फिर बोली…अगर आप'को तन की ज्वाला बुझानी हैं तो मैं जो पूछू सच सच बता दिजिए फिर जितनी बुझानी हैं बुझा लेना नहीं तो आप'के तन कि अग्नि ऐसे ही जलता हुआ छोड़ दूंगी।

राजेंद्र...ahaaa सुरभि ये बातो का समय नहीं हैं चलो न बिस्तर पर काम युद्ध को शुरू करते हैं।

राजेंद्र कहकर सुरभि के सुर्ख होटों को चूमना चाहा लेकिन सुरभि होटों पर उंगली रख दूसरे हाथ से धक्का दे राजेंद्र को खुद से दुर कर दिया फ़िर सोकी से बोली…काम युद्ध बाद में पहले वार्ता युद्ध हों जाएं।

राजेंद्र हाथ पकड़ सुरभि को खीच लिया फिर खुद से चिपका कमर को कसकर पकड़ लिया फिर बोला…सुरभि मुझसे मेरे तन की ज्वाला सहन नहीं हों रहा इसलिए पहले जिस्म में जलती अंगार को ठंडा कर लूं फिर जो तुम पूछना चाहो पूछ लेना।

सुरभि…मेरे जिस्म में भी अंगारे दहक रहें हैं। मैं भी मेरे जिस्म में जल रही अंगारों को बुझाना चाहती हूं। इसलिए मैं जो पूछती हूं सच सच बता दो फिर दोनों अपने अपने जिस्म की ज्वाला बुझा लेंगे।

राजेंद्र कई बार प्रयास किया असफलता हाथ लगा। करण सुरभि मन बना चूका था जब तक राजेंद्र सच नहीं बता देता तब तक आगे नहीं बढ़ने देगा। आखिर सुरभि ने इतना प्रपंच सच जानने के लिए ही किया था। इतना ज्यादा रोका टोकी राजेंद्र से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए खीसिया गया फिर बोला...सुरभि तुम अपने पति को रोक रहीं हों। तुम जानती हों मैं अपने मन की इच्छा पूर्ण करने के लिए तुम्हारे साथ जोर जबरदस्ती से जो मुझे करना हैं कर सकता हूं।

राजेंद्र की बाते सुन सुरभि खुद को राजेंद्र से अलग कर थोड़ दूर खड़ी हो गई फिर बोली…आप एक मर्द हो और मर्द अपने मन की करने के लिए किसी भी औरत के साथ जोर जबरदस्ती कर सकता हैं। जो करना हैं आप भी मेरे साथ कर लिजिए लेकिन आप'के ऐसा करने से मेरे मन को कितना ठेस पहुंचेगा अपको जरा सा भी इल्म हैं।

सुरभि के बोलते ही राजेंद्र को ज्ञात हुआ, अभी अभी उसने क्या बोला जिससे सुरभि का मन कितना आहत हुआ। सुरभि के दिल को कितना चोट पहुंचा। राजेंद्र के जिस्म में जो काम ज्वाला धधक रहा था पल भर में सुप्त हों गया और राजेंद्र का मन ग्लानि से भर गया। इसलिए राजेंद्र सुरभि के पास आ सफाई देते हुए बोला…सुरभि मुझे माफ कर दो मैं काम ज्वाला में भिभोर हो खुद पर काबू नहीं रख पाया, जो मेरे मन में आया बोल दिया।

सुरभि की आंखे नम हों गईं थीं। सुरभि जाकर बेड पर बैठ गई फिर नम आंखो से राजेंद्र की ओर देख बोली…इसे पहले भी न जानें कितनी बार आप को तड़पाया था लेकिन आप'ने कभी ऐसा शब्द नहीं कहा, कहते हुए जरा भी नहीं सोचा मैं आप की पत्नी हूं मेरे साथ जोर जबरदस्ती करके खुद को तो शांत कर लेंगे। लेकिन आप के ऐसा करने से मेरे मन को मेरे तन को कितना पीढ़ा पहुंचेगा।

राजेंद्र...सुरभि हां मैं मानता हु इससे पहले भी तुमने मेरे साथ ऐसा अंगिनत बार किया हैं जिससे हम दोनों को अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुआ था लेकिन मैं पिछले कुछ दिनों से परेशान था। आज जब तुमने बार बार मना किया तो मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया और जो मन में आया बोल दिया अब छोड़ो न इन बातों को और मुझे माफ कर दो।

सुरभि…आप के परेशानी का करण जानें के लिए ही तो मैं आप'को बहका रही थीं सोचा था आप को तड़पाऊंगी तो आप तड़प को मिटाने के लिए मुझे परेशानी का करण बता देंगे लेकिन आप ने जो कहा उसे सुनकर आज मैं धन्य हों गई। जिसे जीवन साथी चुना वह अपनें इच्छा को पूर्ण करने के लिए मेरे साथ जोर जबरदस्ती भी कर सकता हैं।

राजेंद्र…kyaaaa तुम उन बातों को जानने के लिए ही सब कर रहीं थीं जो मेरे परेशानी का करण बाना हुआ हैं। सुरभि तुमने सोच भी कैसे लिया मैं तुम्हारे साथ जोर जबरदस्ती करके खुद को शान्त करुं लूंगा। सुरभि मैं हमेशा तुम्हारे मन का किया हैं। जब तुम्हारा मन हुआ तभी मैंने तुम्हारे साथ प्रेम मिलाप किया हैं।

सुरभि…हां मैं जानती हूं अपने हमेशा मेरा मान रखा हैं। मैंने भी आप'को कभी निराश नहीं किया। आप'के इच्छाओं को समझकर प्रेम मिलाप में खुद की इच्छा से आप'का संयोग किया लेकिन आज पूछने पर आप सच बताने को राजी नहीं हुए तो सच जानें के लिए मुझे ये रास्ता अपना पड़ा लेकिन मेरे अपनाए इस रस्ते ने आप'के मन में छुपी भावना से मुझे अवगत करा दिया। जिसके साथ मैं इतने वर्षों से रह रहीं हूं जिसके सभी सुख दुःख का साथी रही हूं। वह आज मेरे साथ जोर जबरदस्ती करके शारीरिक सुख पाना चाहता हैं।

राजेंद्र…सुरभि मैं जानता हूं जोर जबर्दस्ती से सिर्फ शारीरिक सुख पहुंचता हैं और मन मस्तिष्क को पीढ़ा पहुंचता हैं। मैं यह भी समझ गया हूं मेरे कहें दो शब्द जो सुनने में साधारण हैं लेकिन उसी शब्द ने मेरे प्रियतामा जो हमेशा मेरे बिना कहे मेरे इच्छाओं का ध्यान रखती आई हैं। मेरे परिवार को जोड़कर रखने की चेष्टा करती आई हैं उसके मन को बहुत चोट पहुंचा हैं और मुझसे रूठ गया हैं अब तुम ही बताओ तुम्हें मानने के लिए मैं क्या करूं?

सुरभि…मुझे मानने के लिए आप को कुछ करने की जरूरत नहीं हैं। आप वही करिए जिसके लिए आप को भड़काया था। शान्त कर लिजिए अपने तन की ज्वाला मिटा लिजिए आप की पिपासा।

सुरभि के कहते ही राजेंद्र हाथ बढ़ा सुरभि के कमर पर रख दिया फिर धीरे धीरे सहलाते हुए पेट पर लाया फ़िर नाभी के आस पास उंगली को घूमने लग गया जिससे सुरभि के तन में सुरसुरी होने लग गया। सुरभि निचले होंठ को दांतों के नीचे दबा चबाने लग गई और इशारे कर माना करने लग गईं। सुरभि के बदलते भाव और माना करते देख राजेंद्र बोला…मैं अपनी प्यास मिटा लूंगा तो मेरी सुरभि जो मुझसे रूठी हुई हैं मान जायेगी। बोलों सुरभि!

सुरभि हां न कुछ भी नहीं बोला बस राजेंद्र को देखने लग गई। नाभी के आस पास सहलाए जाने से सुरभि का हाव भाव बदलने लग गया। सुरभि के बदलते हाव भाव देख राजेंद्र हाथ को धीरे धीरे ऊपर की ओर सरकाने लग गया। सरकते हाथ का अनुभव कर सुरभि ने आंखे बन्द लिया फिर धीर धीरे मदहोश होने लग गई। सुरभि को मदहोश होता देख राजेंद्र थोड़ ओर नजदीक खिसक गया फ़िर हाथ को सुरभि के उभारों की ओर बढ़ाने लग गया। उभारों की ओर बढ़ते हाथ को महसूस कर सुरभि आंखें खोल दिया फिर राजेंद्र के हाथ को रोक कर बोला… हटो जी आप न बहुत बुरे हों। पत्नी रूठा हैं उसे मानने के जगह, बहका रहें हों।

राजेंद्र…मुझे तो पत्नी को मानने का यहीं एक तरीका आता हैं जो मेरे लिए कारगर सिद्ध होता हैं अब तुम ही बता दो ओर क्या करूं जिससे मेरी बीवी मान जाए।

सुरभि…बीबी को मनाना हैं तो उन बातों को बता दीजिए जिसे जानने के लिए आप की बीबी ने इतना कुछ किया लेकिन फायदा कुछ हुआ नहीं बल्कि बात रूठने मनाने तक पहुंच गया।

राजेंद्र…इसकी क्या गारंटी हैं जानने के बाद मेरी बीवी रूठ कर नहीं रहेगी
मान जाएगी।

सुरभि…रूठ कर रहेगी या मान जाएगी ये जानने के बाद ही फैसला होगा। आप बीबी को मना रहे हों इसलिए आप शर्त रखने के स्थिति में नहीं हों।

राजेंद्र…सुरभि मैं जिन बातों को छुपा रहा था उसके तह तक पहुंचने के बाद तुम्हें बताना चाहता था। लेकिन अब तुम्हें मनाने के लिए तह तक पहुंचने से पहले ही बताना पड़ रहा हैं।

सुरभि…आप जिस बात की तह तक पहुंचना चाहते हों। क्या पता बताने के बाद उस बात की तह तक पहुंचने में मैं आप'की मदद कर सकती हूं।

राजेंद्र…अरे हां मैं तो भूल ही गया था। मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।

सुरभि…ज्यादा बाते बनाने से अच्छा जो पूछा हैं बताना शुरू कीजिए।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏
So ravan lagatar apne plan par kaam kar raha hai but sukanya ka shayad hi apna koi alag plan ho jo wo aise humesha ravan ke plan ke against ja rahi hai ya Phir usse sach mai aise act karna acha nahi lagta ho jaise karne ke liye ravan usey kehta hai ab asli karan kya hai ye to agey hi pata chalega.
Rajendra ko kya ravan ke plan ki bhanak lag gayi jo wo aise pareshan aur chintit reh raha hai ya Phir Koi aur karan hai iske piche
Surbhi ek achi jiwan sathi ki tarah hi apne pati ki pareshani ki wajah janna chahti hai ki akhir kyu rajendar aise behave kar raha jo uski personality nahi hai jiske chalte wo usey apne prem jal mai fasakar sach ugalwana chahti thi jisme rajendar ke muh se wo nikal gaya jo shayad rajendar ke safai dene ke Baad bhi surbhi ko manane ke Baad kahi na kahi surbhi ke Maan mai reh jayega.
Kyunki ko baat anjane mai hi rajendar ke muh se nikal gayi wo bohut hi zyada galat hai jo ki shayad humare aas pass hi bohut si mahila ko sath hota hai ki pati bas apne Maan se hi shararik sambhand banata hai chahe patni ki marzi ho ya na ho jo patni ki marzi ke bina uske sath sambhand bana bhi ek tarah se uske sath rape karne jaisa hi hai chahe wo uska pati hi kyu na ho.
Overall Awesome Update with such a great message.
Keep it up :clapclap:
 
Will Change With Time
Moderator
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143
First of all i want to say that romantic or suspense genre is my favorite genre. I never miss any romantic/suspense story even if it is like a short story plot . So after seeing the title of the story i was eager to read this .and to my surprise it was not like a small or short rotted stories, rather it was like a fresh blend of flowers ( I would say red Flowers , pun intended) filled with romantic perfume .

Well the Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan is really worth to read. but only when if u know to handling romantic situation. Else you will fall in the never ending romantic trap pioneered by writer.
Property ke liye bhai, bhai ka dusman ban betha . bhatije ko bhi nahi chhoda. uski life spoile karne tula hai. My favorite scene kamla nd raghu ki love story ab shadi me tabdeel hone wali hai . unka pyar kamyaab hua .
The writer has done commendable job . in building the romance , suspense and maintaining it upto the last drop of the story. I never felt bored for even a second .The narration and the dialogues are perfect fit for the atmosphere of the story. Just minor flaw is A brother became an enemy of his own brother just for the sake of property. I think that's irrelevant to the dark tone of the story. ( May be its my point of view or Did i missed something ??)
anyways, I really love the story very much . ❤

Bahut bahut shukriya 🙏🙏 ji

Ek layah me ab tak post kiya hua sabhi update ko read karna. Sach me kabbile tariff hai. Vo isliye kyuki ab tak post kiya gaya update ko read karne me lagbhag 5 ghante ka samay chaiye.

Ye jankar bhi acha laga ki aapko read karte waqt boriyat mahsus nehi hua isse badkar mere liye koyi aur gif nehi hai.

Ravan kyu samptti pane ke liye bhai se bair kar raha hai iss raj par se bhi parda uth jayega uske liye aapko jayada wait bhi nehi karna hoga.
 
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So ravan lagatar apne plan par kaam kar raha hai but sukanya ka shayad hi apna koi alag plan ho jo wo aise humesha ravan ke plan ke against ja rahi hai ya Phir usse sach mai aise act karna acha nahi lagta ho jaise karne ke liye ravan usey kehta hai ab asli karan kya hai ye to agey hi pata chalega.
Rajendra ko kya ravan ke plan ki bhanak lag gayi jo wo aise pareshan aur chintit reh raha hai ya Phir Koi aur karan hai iske piche
Surbhi ek achi jiwan sathi ki tarah hi apne pati ki pareshani ki wajah janna chahti hai ki akhir kyu rajendar aise behave kar raha jo uski personality nahi hai jiske chalte wo usey apne prem jal mai fasakar sach ugalwana chahti thi jisme rajendar ke muh se wo nikal gaya jo shayad rajendar ke safai dene ke Baad bhi surbhi ko manane ke Baad kahi na kahi surbhi ke Maan mai reh jayega.
Kyunki ko baat anjane mai hi rajendar ke muh se nikal gayi wo bohut hi zyada galat hai jo ki shayad humare aas pass hi bohut si mahila ko sath hota hai ki pati bas apne Maan se hi shararik sambhand banata hai chahe patni ki marzi ho ya na ho jo patni ki marzi ke bina uske sath sambhand bana bhi ek tarah se uske sath rape karne jaisa hi hai chahe wo uska pati hi kyu na ho.
Overall Awesome Update with such a great message.
Keep it up :clapclap:

Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

Suknya ka aapne palan hai ki nehi ravan ke mansube ki bhanak rajendra ko hua ya nehi hua ye janne ke liye apko kuch update aur read karna hoga.

Baki jisse msg ki apne baat kiya vo ek atal saty hai kuch purush samaj me aise hote hai jise nari ki mano dasha se koyi lena dena nehi hota. Kuch hota hai to vo hai sirf aur sirf khud ki sharirik shantusti iske viprit any kuch bhi nehi.

Aapke tarifo bhare shavdh ke liye bahut bahut shukriya 🙏
 

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