अम्मी की बात सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने अपना हाथ अम्मी से छुड़ा लिया और बोला-
"हाँ... पता है आप मेरी माँ हो, लेकिन ये बात आपको तब याद नहीं होती जब आप सफदर अंकल से चुदवाने जाती हो, या फिर अब्बू के सामने उनके दोस्तों से चुदवाया करती थी।
अगर मैंने कुछ कर दिया तो आपको हर बात याद आने लगी है."
अम्मी ने अपने आपको मेरी तरफ घुमाने की कोशिश की जिससे कि मैं धक्का लगने से सीधा हो गया और अम्मी मेरी तरफ करवट लेकर अपने हाथ को सिर के नीचे टिकाकर जिससे अम्मी का चेहरा मुझसे ऊंचा हो।
गया। अम्मी बोली- "देखो सन्नी, हम माँ बेटा हैं। मैं मानती हैं कि मैं आज तक अपनी मर्जी से या तुम्हारे अब्बू की खुशी के लिए जो कुछ करती रही हूँ गलत था,
लेकिन अगर तुम ये चाहते हो कि मैं वो सब कुछ तुम्हारे साथ करूं तो बेटा ये नहीं हो सकता। क्योंकी हमारा मुअशरा और मजहब हमें इस चीज की इजाजत नहीं देता...
"अम्मी की बात खतम होते ही मैं उठकर बैठ गया और बोला-
"मैं जानता हूँ कि ये सब गलत है, और अगर किसी को पता चला तो बहुत बुरा होगा और मैं मानता हूँ कि ये बहुत बड़ा गुनाह है। लेकिन जब आप आज तक गैर मर्दो के साथ गुनाह करती आई हो,
तो मुझे भी इस गुनाह का मजा लेना है। और अगर आप ने मना किया तो याद रखना अम्मी कि मैं किसी से कुछ बोलूंगा तो नहीं,
लेकिन हमेशा के लिए आपको और घर को छोड़कर चला जाऊँगा..."
ये धमकी मैंने इसलिए दी थी कि मकान और दुकान वगैरा अब्बू मेरे नाम कर गये थे मरने से पहले ही,
जिसकी वजह से अम्मी मुझे कभी खुद से अलग नहीं कर सकती थीं।मेरी बात सुनकर अम्मी के चेहरा में परेशानी के आसार नजर आने लगे, तो मैंने कहा-
"देखो अम्मी, बात ये है। कि आप क्या करती थीं,
अब भी करती रहो। लेकिन अब अब्बू की जगह आप मुझे अपनी लाइफ में शामिल कर लो,
इसमें हम सबका ही भला है.."
अम्मी कुछ सोच में पड़ गईं और कुछ देर बाद बोलीं-