Thriller बारूद का ढेर(Completed)

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इसका मतलब खबर तुम्हारे घर से ही लीकी हुई थी। यानी मेरा दुश्मन तुम्हारे घर के अन्दर ही है।'
' मेरे घर में ?'
'हां।'

'लेकिन..!'
'छोड़ो...मैं मालूम कर लूंगा।'
'कैसे ?'
'कैसे मालूम की रूगा वह अलग कहानी है। फिलहाल यहां से निकल चलो।'
' मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।' ' और तुम्हारी गाड़ी ?' ' उसे ड्राइवर से मंगवा लूंगी।'
'नहीं पूनम , तुम अपनी गाड़ी से ही वापस लौटोगी।'
'मुझे डर लगेगा।'
'डरने की कोई बात नहीं है। तुम्हारे पीछे मैं रहूंगा।'
'नहीं।'
' बिल्कुल मत घबराओ। मैं तुम्हारे साथ साए की तरह रहूंगा। कोई भी खतरा मुझसे मिले बिना किसी भी कीमत पर तुम तक पहुंच नहीं सकेगा।'
पूनम के चेहरे पर भय के चिन्ह फैल गए।
वह अकेली कार ड्राइव करने से डर रही थी,

लेकिन लाम्बा ने उसे किसी तरह पटा लिया।
नजीततन आगे-आगे उसकी कार और उसके पीछे लाम्बा की कार चल पड़ी।
00
'सुनो कोठारी..! ' कोठारी के नेत्रों में झांकता रंजीत लाम्बा घायल सर्प की भांति फु
कारता हुओ बोला- 'मुझे मारने की दूसरी कोशिश की गई है। दूसरी कोशिश! और इस दूसरी कोशिश में भी मैं बच गया।
_' क्या कह रहे हो तुम ? तुम्हें मारने की फिर से कोशिश की गई ' कोठारी ने आश्चर्य से उसकी
ओर देखते हुए कहा।
'हां।'
'कौन था ?'

'बनो मत कोठारी। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि यह षड़ यंत्र इसी विला के अन्दर से पनपा है। मुझे मारने की साजिश में तुम इसलिए शामिल हो, क्योंकि यहां का पत्ता भी तुम्हारी इजाजत के बिना नहीं हिलता।'
'गलत...एकदम गलत। तुम मुझ पर आरोप लगा रहे हो।
'आरोप गलत नहीं है। मैं साबित कर सकता हूं कि सब -कुछ तुम्हारा किया-धरा है। '
'की रो साबित।'
'जहां मैं अभी थोड़ी देर पहले पहुंचा था , वहां पहुंचने के लिए मुझे यहां से किसी ने फोन पर बताया था। उसका फो न यहां इस विला में तुम्हारे
अलावा एक्टेशन लाइन पर कोई अन्य सुन नहीं सकता और तुमने मेरे पीछे अपने आदमी भेज दिए। '
'झूठ है। सब झूठ है। न मैंने कोई फोन सुना और ना ही मैंने कोई आदमी भेजा।
'फिर सब-कुछ यूं ही हो गया।'
'तु म पागल हो गए हो। जब मुझे तुम्हारे खिलाफ कुछ करना ही नहीं तो फिर यह सब में क्यों करूगा?"
'अगर तुम नहीं , तो फिर कौन है जो मेरे खिलाफ ऐसा कर रहा है ?'

'अगर मुझे उसके बारे में मालूम होता तो मैं बिना देर किए तुम्हें उसका नाम बता देता।'
'जो भी है , अब आर-पार की लडाई होगी। या तो मेरा दुश्मन ही बाकी रहेगा या फिर मैं।
' इस बात को अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल दो कि मैं तुम्हारा दुश्मन हूं या मैं कोई चाल चल रहा हूं। मैं तो तुम्हें देशमुख साहब तक खुद ही लेकर आया हूं ताकि देशमुख साहब की टीम में एक मजबूत आदमी रहे।'
रंजीत लाम्बा को लगा कि कोठारी सच कह रहा था।
वह सोचने लगा , अगर कोठारी सच्चा था तो फिर कौन था जो उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा था।
विचारों में उलझा हुआ वह वापस लौट
आया।
उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था।
उसने व्हि स्की की बोतल निकली और फिर आउट हाउस के उस भाग को बंद करके जिसमें वह रहता था,
पीने बैठ गया।
उसके पैग तब तक बनते रहे जब तक कि बोतल खाली नहीं हो गई।गहरे नसे में उसे पूनम की याद सताने लगी।
उसने तीन बार फोन पर पूनम से संपर्की बनाना चाहा, लेकिन एक बार भी पूनम नहीं मिली। तीनों बार उसके बूढ़े नौकर ने ही फोन रिसीव किया।
अन्त में झुंझलाकर वह बाहर निकला।
कार उसने तूफानी रफ्तार से दौड़ानी आरंभ कर दी।
नशे की अधिकता मैं उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे क्या न करे?
खुली हवा लगने से नशा और बढ़ गया।
पूरे एक घंटे तक वह ड्राइविंग करता रहा।
फिर उसने एक होटल में डिनर लिया। डिनर के दरमियान उसने होटल के मैनेजर को दो-तीन बार बुलवाया । नशे में वह बार-बार वेटर की शिकायत कर रहा था।
मैनेजर समझदार आदमी था।
आए दिन इस तरह के केसिज से निपटाना उसके अभ्यास में आ चुका था। इसलिए उसने लाम्बा
की नशे में डूबी तमाम परेशानियों को भी दूर कर दिया।
घूमता-फिरता लाम्बारात बहुत देर तक आउट हाउस में वापस लौटा।

उसके लड़खड़ाते हुए कदम बता रहे थे कि वह गहरे नशे में आ चुका है।
आउट हाउस की सीढ़ियों पर उसके पांव दो बार फिसले। एक बार तो वह संभल गया, लेकिन दूसरी बार अपना संतुलन कायम न रख सका।
उसे विला के एक नौकर ने उठने में मदद दी तो उस नौकर को लाम्बा ने भद्दी गालियां देकर भगा दिया।
अपने कमरे तक वह उड़ता हुआ-सा पहुंचा और बैड पर ढेर हो गया।
तमाम दरवाजे खुले पड़े थे।
हमेशा सा वधान रहने वाला बेहद खतरनाकी हत्या रा रंजीत लाम्बा उस समय पूरी तरह असुरक्षित अवस्था में बेसुध पड़ा था।
पूरा आउट हाउस खाली था।
थोड़ी देर बाद वहां उसके खर्राटे गूंजने लगे।
रात धीरे-धीरे गहरी होती जा रही थी।
लम्बा दुनिया से बेखबर पड़ा गहरी नीं द सो रहा था। उसे नहीं मालूम था कि कहां क्या हो रहा
था।
अचानक!

टेलीफोन की घंटी बज उठी।
घंटी बजती रही और लाम्बा मुर्दो से होड़ लगाए सोता रहा। अन्त में टेलीफोन उससे हारकर खामोश हो गया!
उसके कान पर जनतका नरेंगी।
थोड़ी देर बाद टेलीफोन की घंटी ने पु न: चीखना आरंभ कर दिया। घंटी बजते-बजते जब थकी गई तो फिर खामोश हो गई।
उसके खामोश होते ही वहां मौत जैसा सन्नाटा छा गया।
तीसरी बार पुन: टेलीफोन ने शोर मचाया और पहले की अपेक्षा इसबार ज्यादा जल्दी खामोश हो गया।

रात का दूसरा प्रहर आरंभ हो चुका था।
रंजीत लाम्बा बेखबर सो रहा था , ऐसे में आउट हाउस में एक स्याहपोश साए ने कदम रखा।
स्याहपोश बिल्ली जैसी चाल के साथ बिना आहट किए आगे बढ़ रहा था। अपने चारों ओर से सावधान था वह। बार-बार उक्की नजर अपने पीछे
और दाएं-बाएं घूमजाती थी।
__आ उट हाउस के सभी दरवाजे जैसे उसके स्वागत में खुले पड़े थे।
___ अन्त में उसने लाम्बा के कमरे में प्रवेश किया।
लाम्बा के कमरे में कदम रखते ही वह अतिरिक्त सावधान हो गया। उसने बहुत धीरे-से अपने लबादे में हाथ डालकर रामपुरी चाकू निकाल लिया।
चाकू पहले से ही खुला हुआ था।
दाहिने हाथ में चाकू संभालकर वह लाम्बा के बैड के निकट जा पहुंचा।
उस समय उसने अपनी सांस भी रोकी हुई थी ताकि किसी प्रकार की आहट न हो। वह झुका। उसने करीब से लाम्बा को देखा। तत्पश्चात् उसका चाकू वाला हाथ ऊपर उठने लगा।
अभी वह रंजीत लाम्बा पर चाकू का प्रहार कर ने ही वाला था कि अचानकी ही लाम्बा की टांग चली। विद्युत गति से टांग स्याहपोश के पेट से टकराई
और वह उछलकर दूर जा गिरा।'
लाम्बा फुर्ती से उठा।
स्याहपोश भी कम फुर्तीला नहीं था। वह चटकने वाले सांप की भांति उछला।
लाम्बा ने बचाव करना चाहा मगर बचते-बचाते भी चाकू उसके कंधे में घाव कर ही
गया।
खून तेजी से बह निकला। पीड़ा के कारण उसके दांत भिंच गए।
उसे पीछे हट जाना पड़ा।
पीछे हटने के बाद उसने स्याहपोश पर नजर डाली। तब पता चुला कि आक्रमणकारी ए की आंख वाला व्यक्ति है।
उसे लगा कि वह इस स्याहपोश को पहले कहीं देख चुका है, लेकिन उस समय उसे याद नहीं
आ रहा था।
उसके पास याद की रने के लिए समय भी नहीं था। उसने फुर्ती से पीठ वाले होलस्टर से रिवाल्वर खींच निकाला।
फायर होने से पूर्व स्याहपोश खिड़की से

बाहर छलांग लगा चुका था।
उसकी फुर्ती देखने योग्य थी।
लाम्बा को उस एक आंख वाले से इस प्रकार की फुर्ती की आशा नहीं थी। वह गोली को छकाता हुआ बाहर निकल गया।
लाम्बात जी से खिडकी की दिशा में लपका।
उस ने खिडकी से बाहर झांकते ही दूसरा फायर किया, मगर स्याहपोश कहीं अधिकी फुर्ती से अंधेरे का लाभ उठाकर बिल्डिंग के बाई ओर को निकल गया।
जब तक बायीं ओर को लाम्बा पलटकर देखता तब तक स्याहपोश गायब हो चुका था ।
लाम्बा ने बाहर को दौड लगाई।
विला के गार्ड फायरों के धमाके सुनकर भागे-भागे उस तरफ को पहुंचे।क्या हुआ ?' लाम्बा को रिवाल्वर लिए घायल अवस्था में देखकर एक गार्ड ने उससे पूछा।
__'कोई उस तरफ गया है, जल्दी देखो। ' लाम्बा ने
पीड़ित स्वर में उसे आदेशित किया।

वह गार्ड गन संभालता हुआ तुरन्त सांकेतिकी दिशा में दौड़ गया।
शेष गार्डों को उसने अलग-अलग स्याहपोश को तलाश में भेज दिया।
इसी बीच!
कोठारी और जोजफ दौड़े-दौड़े उसके पास आपहुंचे। उसे घायल देख कोठारी ने तुरन्त डाक्टर को फोन कर दिया।'
जोजफ उसे सहारा देकर अन्दर ले आया।
चाकू का घाव हालांकि ग हरा नहीं था मगर खू न बहुत तेजी से बह रहा था।
लाम्बा के कपड़े गीले हो गए थे।
शीघ्र ही डाक्टर आ गया।
मरहम-पट्टी के बाद उसे नींद आ गई। डाक्टर ने शायद नींद वाली दवा दे दी थी। वह सो गया। उसके सोने के बाद कोठारी ने आउट हाउस में तीन गाड़ी का विशेष रूप से पहरा लगा। उसे डर था कि कहीं लाम्बा के दुश्मन पुन : उस पर अटैकी न कर दें।
रात सुकून से गुजर गई। दूसरे दिन नाश्ते पर कोठारी उसके पास
आया।
। अब कैसे हो?' उसने लाम्बा से पूछां।
'ठीकी हूं।'
'दर्द...?'
.
.
.
'मा मूली-सा है।'
'कमजोरी ?'
'कमजोरी लग रही है लेकिन कोई खास नहीं। डाक्टर ताकत का इंजेक्श न दे गया है। '
'कौन था ?'
'कौन?'
'वही जिसने तुम्हारे जैसे आदमी को घायल कर दिया। जो अकेला दास पर भारी होता हो, उसे घायल करके निकल जाना बड़ी बात है।'
' वह वक्ती तौर पर ही मेरी पकड़ से बचा हुआ है। जल्दी ही मैं उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'या नी तुम उसे जानते हो?'
'नहीं।'
'तो फिर?'
' उम्मीद है उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'कैसे?'

'वो तब ही बताऊंगा जब उस तक पहुंच जाऊंगा।'
' इसका मतलब है तुम्हें अपने दुश्मन का आइडिया मिल चुका है ? '
' अभी नहीं।'
' फिर ? '
' मैंने उसे कल ही दबोच लिया होता। शराब पीकर नाटकी करते हुए मैंने यह जाहिर कर दिया था कि मैं पूरी तरह असावधान हूं। तब उसने यही समझा कि मैं घोड़े बेचकर सो रहा हू जबकि हकीकतन मैं पूरे होश में था।'
' फिर चोट कैसे खा गए ? '
'वह हरामजादा कुछ ज्यादा ही फुर्तीला साबित हुआ।'
'आई सी।'
'मैंने ऐसा नहीं समझा था उसे। लेकिन कोई बात नहीं...| ' दांत पीसते लाम्बा ने होंठों ही होंठों में गाली देते हुए कहा- एक ही झटके में सारी फुर्ती
खत्म कर दूंगा।'
' उसके बारे में तुम मुझसे छिपा रहे हो लाम्बा ?'
'नहीं...छिपा नहीं रहो। अभी उसके बारे में मैंने खुद भी जानकारी हासिल करनी है। अभी मैं
स्वयं भी अज्ञान के अंधेरे में घिरा हुआ हूं।'

'ठीकी है। मुझसे तुम्हें जो भी मदद चाहिए हो , बता देना।'
'ओ० के०।'
'चलता हूं।
इतना कहकर कोठारी वहां से निकल गया।
00
किसी छापामार कमाण्डो की जैसी तैयारी करने के बाद रंजीत लाम्बा अपनी विशेष कार में बाहर निकला। सामान्य गति से कार ने विला का ड्राइव-वे पार किया और सड़की पर पहुंचने के बाद उसकी रफ्तार में अपेक्षाकृत तेजी आ गई।
सुलगी हुई सिगरेट उसके होंठों के बीच दबी थी। उसके दोनों हाथ सहज ही कार के स्टेयरिंग व्ही ल को दाएं-बाएं घुमा रहे थे।
कार कभी इस सड़की पर तो कभी उस सड़की पर दौड़ती हुई अन्त में एक ढाबे प्रकार के होटल पर जा खड़ी हुई।कार का इंजन बंद हो गया।
अन्दर बैठे-बैठे ही उसने वहां का जायजा
लिया।
काउंटर पर एक मोटा-सा व्यक्ति दरियाई घोड़े की भांति पसरा दिखाई दिया।
मोटा उसकी कार की ओर गौर से देख रहा था। उसे कार वाले ग्राहकी से मोटा माल हाथ आता नजर आ रहा था।
थोड़ी देर बाद लाम्बा ने सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछाल दिया। फिर दरवाजा खोलकर खुद भी कार से बाहर निकल आया।
उसने काली पैंट, काली शर्ट और काला ही ओवरकोट पहना हुआ था जो कि घुटनों से नीचे तक लम्बा था। उसके कॉलर खड़े थे, सिर पर फैल्ट हैट
थी।
 
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रात होते हुए भी उसने फेन्ट म स्टाइल का काला चश्मा लगाया हुआ था। बह अच्छी तरह समझ रहा था कि तहमद वाला उसे गौर से देख रहा है, लेकिन उसने उसकी ओर ध्यान देने की कोई कोशिश नहीं की।
वह लापरवाही वाले अंदाज में चलता हुआ काउंटर की ओर बढ़ने लगा।
'जब बार होता हूं तू ?' काउंटर से टेकी लगाकर सड़की की ओर देखता हुआ वह सहज स्वर में तहमद वाले से बोला।
'हो...होता हूं। ' तहमद वाला गुर्राया।

___ 'नीचे सुर में वरना यहां पुलिस ही पुलिस नजर आने लगेगी और तेरा शराब का दो नम्बर का धंधा एक मिनट में ठप्प हो जाएगा।'
'पुलिस..| ' कथित ज ब बार सहम गया।
'हां...पुलिस।'
'तुम कौन हो ?' उसने संदिग्ध स्वर में पूछा।
'तेरा बाप।'
'ऐ. ..जुबान संभाले के बोल। '
लाम्बा फुर्ती से उछलकर काउंटर के पीछे जा पहुंचा और काउंटर की ओट में पिस्तौल निकालकर उसे ज ब् बार की ओर तान दिया।
'खबरदा र हरामजादे... अगर बकवास करेगा तो भेजा बाहर निकाल दूंगा! ' लाम्बा ने भद्दी-सी गाली दी।
पिस्तौल देखते ही ज ब्बार डर गया।
वह समझ रहा था कि सामने वाला कोरी धमकी नहीं दे रहा , जो कह रहा है उसे कर गुजरने में शायद उसे किसी प्रकार की देर न लगे।
तमाम तरह के मुजरिमों में उसकी आज तक की जिन्दगी गुजरी थी, लेकिन लाम्बा जैसा खतरनाकी आदमी वह पहली बार ही देख रहा था।

' की ... की ... क्या चाहिए ?' उसने कम्पित स्वर में पूछा।
"एक आंख वाला तेरा चेला।'
'एक आंख वाला. ..। ' वह असमंजस में फंसा दिखाई दिया।
' बनने की कोशिश मत कर...। ' लाम्बा ने पुन: खतरनाकी अंदाज में उसे गाली देते हुए कहा-'अगर मुझसे उड़ने की कोशिश की तो इस नन्ही-सी गन की सारी की सारी गोलियां तेरी तोंद में उतार दूंगा।'
जब्बार को अपनी सांस रुकती हुई-सी प्रतीत
हुई।
'दलपत से कोई काम है क्या ?' उसने सहमे हुए स्वर में पूछा।
' दलपत नाम है उस...का ?' लाम्बा ने गाली देते हुए कहा।
'हां।'
'कहा है वह कुत्ता ?' 'वह...। ' ज ब् बार हिचकिचाया।
' बता हरामखोर वरना अभी ट्रेगर दबाकर तेरा तरबूज फाड़ दूंगा! ' लाम्बा ने उसके फुटबाल जैसे आकार में फूले पेट से पिस्तौल की नाल सटाते हुए खतरनाकी स्वर में धमकी दी।
' वह. .वहमिल जाएगा। ' ज ब बार मुश्किल से थूकी गटकता हुआ बोला ।
'मिल जाएगा नहीं...मुझे उसका पता फौरन चाहिए।'
'देखो बाबू बात को समझने की कोशिश कैसे। अभी अगर मैं तुम्हें उसका कोई पता बता दूं
और वह तुम्हें वहां न मिले तो तुम मुझे झूठा ठहराकर मेरी गर्दन पकड़ोगे।'

'अगर तुम मुझे कोई गलत पता बताओगे तो जिन्दा नहीं बचोगे।'
' इसीलिए मुझे पहले उसका पता लगा लेने
दो।'
'कैसे पता लगाएगा?'
'किसी को भेजना पड़ेगा।'
' नहीं चलेगा।'
' तो फिर?'
'तुझे मेरे साथ चलना होगा।'
'लेकिन ढाबा ?'
'ढा बा अपने-आप चलता रहेगा। मैं पिस्तौल जेब में ले जा रहा हूं लेकिन जेब के अंदर से भी यह तेरा काम तमाम करने के लिए चल सकती है। चल उठ! ' लाम्बा हिंसकी स्वर में फुफकारा।
__ ' अरे चा कू ...इधर आके बैठ... मैं बाबू के काम से जा रहा हूं।' ज ब बार ने ढाबे में काम करते एक छोकरे को आवाज देते हुए आदेश दिया।
गल्ले में जो माल था, उसे निकालकर अंटी में खुरसा और कुर्ता उठाकर जल्दी से पहनता हुआ वह तेज कदमों से लाम्बा के साथ चलने का प्रयास करने लगा।लाम्बा उस पर बराबर नजर रखे हुए था।
उसका इरादा साफ था कि ज ब बार द्वारा किसी भी प्रकार का गलत इशारा किया जाए और
अगले ही पल वह ट्रेगर दबा दे।
लेकिन जब बार ने इस प्रकार का कोई इ शारा नहीं किया। चुपचाप लाम्बा की कार के निकट जा खड़ा हुआ।
उसने सवालिया नजर से लाम्बा की ओर देखा।
' आगे बैठ ! ' उसके आशय को समझते हुए लाम्बा ने आगे वाली सीट पर बैठने का आदेश दे
दिया।
वह आगे बाली सीट पर बैठ ... गया।
उसके बराबर में बैठकर लाम्बा ने पुन: कार ड्राइव- करनी आरंभ कर दी।
'किधर...?' सड़की पर सीधे ड्रा इव करते हुए उसने ज ब बार से पूछा।
'अभी सीधे ही चलते रहो बाबू। ' ज ब्बार ने सहमे हुए स्वर में कहा- ' वक्त आने पर मैं बता दूंगा किधर चलना है।'
लाम्बा ने उसे घूरकर देखा , बोला कुछ नहीं।
कार सड़की पर दौड़ती रही।

आगे चलने पर ज ब बार उसे समय - समय पर मार्ग निर्देशन देता रहा।
घनी-सी गंदी बस्ती में पहुंचकर उसने कार रुकना दी।
'यहां रहता है दलपत ?' लाम्बा उसकी ओर देखता हुआ गुर्राया।
'यहां से पता चल जाएगा...मैं पता लगाकर आऊंज ब्बार ने शंकित स्वर में पूछा।
'नहीं। मैं तेरे साथ चलूंगा।'
'चलो।'
'पेशगी वार्निग सुन ले। तेरी तरफ से छो टी-सी भी हरकत हुई तो तुझे बख्शृंगा नहीं। अपनी परवाह नहीं मुझे, लेकिन कुछ भी होने से पहले तुझे उड़ाकर तेरा बैंड जरूर बजा दूंगा। '
धमकी सुनने के बाद जब्बार वहां से चल पड़ा।
लाम्बा उसके साथ हो लिया।
उस घनी बस्ती में जब बार एक चाल प्रकार की जगह पर पहुंचा। चाल के दूसरे मा ले की एक खोली तक पहुंचने में उसे कितने ही परिवारों के बीच से होकर गुजरना पड़ा था।
वहां के अधिकतर रहने वाले अपने-आपमें व्यस्त थे।
कुछेकी नजरें ही जब्बार की ओर उठी थी।
उसके पीछे चलते रंजीत लाम्बा को अधिकतर लोगों ने देखा था ।
खो ली के दरवाजे पर झूलते ताले को देख जब्बार परेशान हो उठा।
' ऐई झगडू. . .! ' उसने बराबर वाली खोली के दरवाजे पर बैठे बूढ़े को पुकारते हुए पूछा- ' दलपत को देखा क्या...?'
'नहीं देखा। ' बूढ़ा बेरुखे स्वर में बोला।
'क्या हुआ ?' लाम्बा ने जब्बार को घूरते हुए पूछा।
'इधर नहीं है।'
'देख जब्बार , मैं तुझे पहले ही वार्निग दे चुका हूं।'
'बाबू तुम्हें दलपत चाहिए ना ?'
'हां।'
'मिल जाएगा...आजाओ।'
लाम्बा उसके पीछे चल पड़ा। वह वापस कार में आ बैठा। उसके संकेत पर लाम्बा ने कार वहां से
आगे बढ़ा दी।
___ 'बाबू...। ' थोड़ी देर की खामोशी के बाद ज ब्बार बोला- आप दलपत को क्यों तलाश कर रहे हैं
'काम है। '
'क्या काम है?'
'तुझे क्या करना है ?' लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए।
'यूं ही जानना चाहता था।'
'उस से मिलवा दे बाद में अपने आपे तुझे सब-कु छ मालूम हो जाएगा।'
_ 'बाबू, वह लड़का बुरा नहीं है। अगर कोई ऊंच-नीच हो गई हो तो मैं उसकी तरफ से माफी मांगता हूं। माफी दे दो उसे, आईदा वह उस गलती को नहीं दोहराएगा।'

'तू चुप कर हरामजादे और तुझसे जो कुछ कहा गया है सिर्फ वही कर!'
लम्बा ने आखें तरेरी।
जब्बार डरकर खामोश हो गया। फिर वहमूकी रहकर सिर्फ उंगली के संकेत मात्र से लाम्बा
को मार्ग बताता रहा।
कार दौड़ती रही।
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जब कार आबादी छोड़कर बाहर के मार्ग से निकली , तब लाम्बा कुछ चौंका। लेकिन जब जब बार ने उससे कार एक कच्चे ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर मुड़ वाई तब उससे चुपरहा नहीं गया।
'क्या वह एक आंख वाला बदमाश इस जंगल में रहता है ?' उसने शंकित स्वर में जब बार से
पूछा।बा बू आप चलते रहें। मैं आपको गलत जगह नहीं ले जा रहा। ' ज ब बार ने भारी स्वर में कहा।
'तू समझता है यह सही जगह है ?' 'जैसी भी जगह है , दलपत जहां पाया जाता है मैं आपको वहीं लिए बल रहा हूं।'
'अगर वह वहां नहीं मिला तो?
'वह उस जगह के अलावा और कहीं नहीं हो सकता।'
'हूं... | ' लम्बी हुंकार भरते हुए लाम्बा ने उसे घूरकर देखा।
फिर कार ऊंचे-नीचे सर्पाकार मार्ग पर धीमी गति से चलती रही।
अन्त में वहमार्ग भी समाप्त हो गया।
कार से निकलकर जब्बार पैदल चलने लगा। आगे घनी झाड़िया थी। कोई रास्ता नहीं था। लाम्बा उसका अनुसरण करता उसके पीछे चलता रहा।
फिर- घने वृक्षों के घेरे में छिपी एक ऐसी जगह आयी जहां कुछ लोग का म कर रहे थे। दो बड़े अलाव जल रहे थे। बड़े-बड़े ड्रम रखे हुए थे।
और कच्ची शराब की दुर्गन्ध से पूरा वातावरण भरा हुआ था।
एक नजर में लाम्बा ने शराब की कच्ची भट्टी को पहचान लिया।
' तो यहां बनाता है तू कच्ची शराब ?' उसने जेब से पिस्तौल निकालते हुए कहा।
'कच्ची शराब को छोड़ो बाबू ... दलपत को देखो।'
'कहां है?'
'यही कहीं होगा ..ऐ छलिया! दलपत कहां है ?' वह एक आदमी को संबोधित करता हुआ ऊंचे स्वर में बोला।
'अभी तो इधर ही थे। ' कथित छलिया बोला।
'ढूंढ के ला उसे। शहर का बाबू आया है। '
'अभी बुलाता हूं।'
इतना कहकर छलिया बड़े पत्थर की ओट में
चला गया।
लाम्बा पूरी तरह सावधान था।
एक आंख वाले दलपत की तलाश में उसकी नजरें चारों ओर घूम रही थीं, लेकिन दलपत कहीं भी नजर नहीं आ रहा था।
जब बार उसकी ओर देखे बिना निरंतर आगे की ओर बढ़ता चला जा रहा था।
लाम्बा की नजरें कभी ज ब बार की ओर घूमती तो कमी दलपत की तलाश में।
तभी!
अचानकी ही बड़े पत्थर की ओट से दलपत हाथ में गन लिए प्रकट हुआ।
'मेरी तलाश में यहां तक आ गए...चलो अच्छा हुआ। तुम्हारी सुपारी ली थी , वह काम अब पूरा हो जाएगा। मैं जिसके नाम की सुपारी लेता हूं उसे मरना तो पड़ता ही है। ' वह अपनी एक आंख से लाम्बा को घूरता हुआ बोला।।
पिस्तौल लाम्बा के हाथ में थी लेकिन हालात बदल चुके थे।
 
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जब्बार ने एकाएक ही दौड़ लगा दी।
इधर वह दौड़ा , उधर दलपत काने की गन के दहाने ने आग उगली।
रंजीत लाम्बा को अपना बचाव करना मुश्किल दिखाई देने लगा। उसने बिना लक्ष्य के फायर झोंकते हुए दायीं ओर को छलांग लगा दी।
दलपत काने की गन से निकलने वाली गोली उसके कान के पास से होकर गई थी।
बाल-बाल बचा था वह।
नीचे गिरते ही वह अंधाधुंध फायर करता लुढ़कता चला गया।
गोलियों की बौछार तीन तरफ से हुई।
उसने लुढ़कना जारी रखा।
अन्तत: वह एक मोटे- ताने वाले पेड़ की ओट में जा पहुंचा।
ओट में पहुंचते ही उसने पूरी पिस्तौल दल पत काने की दिशा में खाली कर दी। पिस्तौल खाली होते ही उसने ओवरकोट की विभिन्न जेबों से दस्ती बम निकालकर फेंकने आरंभ कर दिए।
विध्वंसकी विस्फोर्ट यहां-वहां होने आरंभ हो
गए।
विस्फोट के साथ ही धूल और धुएं का बंवडर ऊपर उठता। तत्पश्चात् धुआं ही धुवां चारों ओर फैल
जाता।

वहां मौजूद व्यक्ति विस्फोटों के उस तां ते में इधर सेर उधर भागने में भी बच न सके। आधे-अधूरे विस्फोटों के लपेटे में आ ही गए।
कुछेकी ने गोलीबारी करनी चाही किन्तु शीघ्र ही उनके कदम उखड़ गए।
लाम्बा फुर्ती से अपना स्थान बदलकर दूसरी दिशा में पहुंचा। इसी बीच उसने अपनी पिस्तौल लोड
करके जेब में पहुंचा दी और फिर ओवरकोट के
अन्दर से एक विशेष गन के तीन पार्ट निकालकर जोड़ डाले।
अब एक खतरनाकी गन उसके हाथ में थी।
वह धूल और धुएं के कणों के बीच इधर-उधर भागते आदमियों को देखते हुआ बड़ा चक्कर लगाकर उसबड़े पत्थर के पीछे जा पहुंचा जिसके पीछे दलपत काने ने शरण प्राप्त की हुई थी।
दलपत काना पत्थर के ऊपर चढ़ने का प्रयत्न कर रहा था।
गन उसके हाथ में थी। पत्थर चिकना था और पिछले भाग से उस पर चढ़ना एक कठिन कार्य था।
बीच में पहुंचकर- दलपत काना फिसलने लगा।
लाम्बा ने गौर से देखा।
एक दस्ती बम निकालकर बीच मैदान की ओर उछाला।

दस्ती बम के विस्फोट के साथ ही बीच में फंसा दलपत काना घबरा गया।
उसी क्ष ण लाम्बा ने गन उसकी दिशा में करके फायर खोल दिए।
तड़तड़ाहट उत्पन्न करती गोलियां पत्थर से चिपके दलपत काने के इर्द-गिर्द टकराती चली गई।
दलपत काने के हाथ-पांव फूल गए।
ग न उसके हाथ से निकल गई और वह पत्थर
फिसलकर निचे आ गिरा। गोलियां उसे लग नहीं रही
थीं लेकिन आसपास टकरा रही थीं।
नीचे गिरकर वह किसी चोट खाए सांप की तरह अपने आपमें सिमटकर गठरी जैसी शक्ल में आ
गय।
हर गोली के टकराने पर उसका जिस्म इस प्रकार झटका खा जाता था जैसे कि घायल सांप को किसी नुकीली वस्तु से कोच दिया गया हो।
लाम्बा ने गोली चलाना बंद करके मैदान की ओर देखा।
मैदान में धुएं और मलबे के गुब्बार उड़ रहे थे। वहां काम करने वाले आदमियों का दूर-दूर तक पता नहीं था।

लाम्बा कुछ दस्ती बम और फेंकना चाहता था लेकिन वहां के हालात देख उसने, अपना वह इरादा बदल दिया।
वह दलपत काले की ओर बढ़ा ।
उसने द लपत की पसलियों में बूट की ठोकर
मारी।
वह उछलकर पत्थर से जा टकराया और कराहता हुआपलटा।
रंजीत लाम्बा को देख उसके हाथ-पांव फूल गए। वह जानता था कि लाम्बा उसे बख्शने वाला नहीं
'दलपत काने ! ' लाम्बा हिंसकी स्वर में गुर्राया।
काने ने दोनों हाथ जोड़ दिए।
वक्त बदल चुका था और बदलते वक्त के साथ उसने फुर्ती से अपने-आपको बदल डाला।
'मुझे माफ कर दो। मैं ...मैं माफी चाहता हूं। 'वह गिड़गिड़ा उठा।
'तेरा दिया हुआ जख्म अभी-भी ताजा है काने !' लाम्बा ने दांत पीसते हुए कहा।
' मैं... मैं मजबूर था।'
.
.
.
'मजबूर...।'
'हॉ...मुझ पर दबाव डाला गया था।'
' मेरा खून करने का ?'
' हां।'
' किसने-दबाव डाला था ?'
' उसबात को न पूछे आप- जामे दें।'
लाम्बा ने उसके पेट में गन का बट मारा।
उसके मुख से पीड़ा युक्त कराह निकली और वह आगे को झकी आया। अगले ही क्षण लाम्बा के घुटने के शाक्तिशाली प्रहार ने उसका जबड़ा एक
ओर को लटका दिया।
उसके दो-एक दांत भी टूट गए थे।
हांफते-कांपते उसने ढेर सारा खून थूकी दिया। बहुत बुरी हालत हो रही थी उसकी।
लाम्बा ने गन बेल्ट के हुकी में फंसाकर बाएं हाथ से दलपत काने की गर्दन थामी और एक तेज
झटके के साथ उसे विशाल चट्टानी पत्थर से चिपका दिया।
अगले ही क्षण वह दाहिने हाथ के चार-पांच चूंसे काने के पेट में उतार चुका था।बता हरामजादे! बता! ' लाम्बा फुफकारता हुआ-सा गुर्राया- 'कौन था वह पो मुझे तेरे हाथों खत्म करा देना चाहता था ? कौन था ? बता ?'
उसने ज्यों ही काने के चेहरे की ओर मुक्का ताना , काने मे तुरंत अपने कंपकंपाते हुए दोनों हाथ आगे कर दिए।
वह समर्पण की मुद्रा में था।
लाम्बा ने अपना तना हुआ हाथ रोकी लिया।
'ब ... ब ... बताता हूं...ब ताता हूं। ' दलपत का ना द्रवित स्वर में बोला।
'जल्दी !'
.
.
.
'म ... म...मुझे पीटर ने तुम्हारे नाम की सुपारी दी थी।'

'जार्ज पीटर ने ?' लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए। उसने दांत पीसते हुए पूछा।
'हां।'
__ 'वही जार्ज पीटर न जिसकी अण्डरवर्ल्ड में तूती बोलती है ?'
'हां...वहीं।' 'तूने इतनी हिम्मत की कैसे ?' ' वह कुछ न बोला। 'तू जानता है मैं कौन हूं?
'नहीं।'
'तू सुपारी लेता है ना ?'
'हा।'
' हत्या की सुपारी ?'
' हां।'
'इस सुपारी वाले धंधे में वो कौन है जिसका नाम लिस्ट में टॉप पर आता?' 'रंजीत...।'
'सिर्फ जीत ?'
'रंजित लाम्बा।'

' उससे वाकिफ है ?'
दलपत काने ने इंकार में सिर हिलाया।
' उससे और मुझसे दोनों से नावाकिफ है। बड़ा कच्चा काम करता है तू।'
उसने नजरें झुका लीं।
'जिसके नाम की सुपारी ले , उसका पतालांगना जरूरी होता है। यूं ही सुपारी लेने वाला अक्सर चोट खा जाया करता है। खा जाता है ना?'
वह चौंका।
' जो सुपारी लेने में सबसे आगे है , जिसका नाम तू खुद ले रहा है, तूने उसी की सुपारी ले ली। '
'क्या ?'
'मुझे जानता नहीं और सुपारी ले ली। मैं ही रंजीत लाम्बा है ...रंजीत लाम्बा !'
'नहीं! ' काने के नेत्र विस्मय से फट पड़े।
'तेरे लिए मौत के अलावा कोई दूसरी सजा नहीं। ' लाम्बा ने गन की बैरल उसके सीने पर टिका दी।
वह तुरन्त लाम्बा के कदमों में गिर पड़ा। 'नहीं...। ' उसने गिड़गिड़ाते हुए याचना की
.
.
.
'मुझे माफ कर दो मेरे बाप। मेरी आंखों पर मोटी रकम की पट्टी बांध दी गई थी। उस मोटी रकम की वजह से मेरा दिमाग कुन्द हो गया था। मैं बिना
आगा-पीछा सोचे अपनी मौत को चैलेंज देने निकली पड़ा था। मुझे क्षमा करा दो.. .मुझसे गलती हो गई है।
वह लाम्बा के की दमों में नाकी रगड़ने लगा तो लाम्बा ने गन हटा ली।
'जार्ज पीटर से कहां मिला था तू ?'
'आप चलें मेरे साथ , मैं बताता हूं।'
'चल।'
दलपत काना तुरन्त उठ खड़ा हुआ। उस समय उसे अपके बहते खून की चिन्ता नहीं थी। वह
चुपचाप वहां से लाम्बा को साथ लेकर चल पड़ा।
00
दलपत काना खस्ता हालत होते हुए भी रंजीत लाम्बा को पूरी तरह सहयोग कर रहा था। उसने पहले जार्ज पीटर की तलाश में दो होटल छाने, उसके बाद तीसरी जगह के लिए चल पड़ा।
कार वह स्वयं ही ड्राइव करता था। '
लाम्बा ने महज उसके बराबर मे पिस्तौल निकालकर बैठे रहना होता था।
अभी तक उसने किसी भी प्रकार की गलत हरकत नहीं की थी।
वह तन-मन से लाम्बा की खिदमत में लगा हुआ था।
इसबार खीझकर उसने कार की रफ़्तार बढ़ा
दी थी।
'काने !' सिगरेट सुलगाता लाम्बा फुफकारा - पीटर ...पीटर है। अण्डरवर्ल्ड का पत्ता अगर उसके इशारे के बिना हिलता नहीं तो यह भी सच ही होगा कि उसका कोई एक ठिकाना नहीं। तू बेकार ही झुंझलाकर कार की रफ्तार बढ़ा रहा है।'
'माई-बाप , मैं उसको कहीं से भी खोज निकालूंगा। कही से भी। ' काना क्रोध प्रकट करता हुआ बोला।
'रफ्तार कम कर, नहीं तो गाड़ी ठोंकी देगा कहीं !'
लाम्बा की डांट सुनकर दलपत काने ने तुरन्त ही कारं की रफ्तार घटा दी।
'एक सिगरेट मिलेगी मालिको ?' कुछ देर बाद उसने डरते-डरते पूछा।
'साले मांगते भीख हैं और शौकी नवाबों के। 'बड़बड़ाते हुए लाम्बा ने सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट उसके हवाले कर दी।
'कुछ कहा क्या आपने ?'
कुछ नहीं...सिर्फ इतना कि मैं आपके लिए ही सिगरेट का पैकेट खरीदकर लाया था। मुझे मालूम था कि बन्दापरवर को अभी सिगरेट की तलब लगने वाली है।'
खीसें निपोरते दलपत का ने ने सिगरेट ले ली।
वह चूंकि कार ड्राइव कर रहा था , इसलिए उसकी सिगरेट सुलगाने का काम लाम्बा को ही करना पड़ा।
फिर दलपत काना ड्राइविंग के साथ-साथ सिगरेट के कश भी लगाने लगा।
कार मध्यम गति से सड़की पर दौड़ी चली जा रही थी।
कुछ देर बाद उसने कार मुख्य सड़की से हटकर कोठियों की लाइन के पीछे वाली पतुली-सी गली में मोड़ दी।
गली वीरान थी।
दिन में उसका प्रयोग होता था , रात में यदा-कदा ही कोई उस तरफ से निकलता था।
वही स्थिति उस समय भी थी।
एक अंधेरे भाग में कार रोकने के बाद काना कार से बाहर निकल आया।
कहां ले आया ?' दूसरी ओर वाले दरवाजे से बाहर निकलते लाम्बा ने उससे पूछा।
'पीटर के असली ठिकाने पर मालिको। जब बह किधर भी नहीं मिलता त ब अपने इसी ठिकाने पर मिलता है। ' दलपत काना सामने वाली दिशा में एक को ठीकी ओर उंगली उठाता हुआ बोला- ' वह जो कोठी नजर आ रही है न...बस उसी कोठी में इस वक्त वह होगा।'
'और न हुआ तो?'
' सवा ल ही नहीं उठता। वह शर्तिया वहीं होगा।'

'चल देख चलके।'
'सावधान रहना।'
'क्यों?'
' क्यों कि इधर उसके सुरक्षा गार्ड हमेशा पहरा देते रहते हैं।'
__ ' आई सी।'
'आपको पहले ही सावधान कर दिया है ताकि बाद में आप यह न कहें कि मैंने बताया नहीं। '
'ठीकी है...तू आगे-आगे चल। ' 'आप साथ नहीं चलेंगे माई-बाप ?'
'तू चल ना!' दलपत काना आगे-आगे चलने लगा।
लाम्बा उसके पीछे था।
उसने सिगरेट फेंकी दी थी और अब वह पूरी तरह से सावधान हो गया था। उसे मालूम था , जार्ज पीटर कितना खतरनाकी था।
अण्डरवर्ल्ड का एक अहम मोहरा होता था
वह।
उस तक आम आदमी की पहुंच नहीं थी।
 
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दलपत काना उसे उस कोठी के पिछले भाग तक ले आया। कोठीकी पिछली बाउंड्री वॉल कम ऊंची नहीं थी। उसबाउंड्री बॉल में एक छोटा-सा
दरवाजा था।
उन दोनों ने अच्छी तरह ठोंक-बजाकर देख लिया।
कोठी में कहीं से भी दाखिल होने की कोई जगह नजर नहीं आ रही थी। अलबत्ता दूसरी तरफ से डॉ वरन कुत्तों की खौफनाकी गुर्राहट जरूर सुनाई दे गई थी।
'तू मुझे गलत रास्ते पर ले आया है।' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बोला।
'क्यों? '
' इसलिए कि पहले तो यह ऊंची बाउंड्री वॉल पार नहीं होनी और अगर किसी तरह हम बाउंड्री बाल पार करके उस तरफ पहुंच भी गए तो खतरनाकी कुत्ते हमारी बोटियां नोच ले जाएंगे।'
'हां...कुत्ते तो हैं।' ' इधर से चल।'
'कहां माई-बाप?'
'चल, फिर बता ता हूं।'
दलपत काना उसके साथ वापस कार की
ओर चल पड़ा।
'तुझे सीधे रास्ते यानी मेनगेट से होकर जार्ज के पास जाना होगा।'
वह चौंका।
उसके चेहरे पर हैरत के चिन्ह गहराते चले गए। फटी-फटी आंखों से वह लाम्बा की ओर ताकने लगा।
'हां...मैं ठीकी कह रहा हूं।'
' क्या ठीकी कह रहे हैं आप मालिको? मैं मेनगेट से जाऊंगा तो लफड़ा नहीं हो जाएगा?'
'दलपत!'
'मालिकी?'
'तू सुपारी वाला हत्यारा है न ?
'अब कहां माई-बाप। काहे को बेकार ही शर्मिन्दा कर रहे हैं ?'
' अबे बात को समझ।'
'स मझाओ मालिक।' 'तू हुत्यारा है न ? किराए का हत्यारा ?'
'ठीक...।'

'तुझे मेरी हत्या का काम दिया गया था न ?'
' हां ...दिया गया था।' 'तो फिर तू यहमान ले कि तूने मेरी हत्या कर
दी।।
'माई-बाप..!'
'अब क्या है?'
'सीधे-सीधे समझाएंगे मे जल्दी समझ में आजाएगा और अगर नाकी को घुमाकर पकड़ेंगे, तब हो सकता है नाकी ही पकड़ में न जाए। '
'सब समझ में आजाएगा। देख...जैसा मैं कहता जा रहा हूं तू कुरता जा। '
' को ई गड़बड़ तो नहीं होगी ?' 'हो सकती है।

'फिर तो रहने ही दें।'
' क्यों ?' _ 'क्योंकि अगर किसी तरह की ग़ड़ बड़ हो गई तो पीटर जल्लाद आदमी है , मेरे टुकड़े-टुकड़े करवा डालेगा। अभी आप उसे जानते नहीं है। वो बहुत जालिम है।'
_ 'मैं तेरे टुकड़े यहीं...इसी वक्त कर दूंगा ! ' एकाएक ही रंजीत लाम्बा ने तेवर बदलते हुए कहा।
उसकी आँखें देखकर दलपत काना डर गया
'नंही माई-बाप-नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं करना । आप जो भी कहेंगे, मैं करूंगा।'
' तो फिर सुन..।'
दलपत काना उरसकी , बात सुनने के लिए उसके निकट खिसकी गया।
00
जार्ज पीटर चालीस के पेटे में पहुंचा , गहरे काले रंग का छोटे कद वाला मजबूत आदमी था। जिसकी नाकी चौड़ी , होंठ मोटे और आँखें चमकीली थीं।

उस समाय वह अपने हरम में चार निर्वसुन सुन्दरियों के साथ मौज-मस्ती में डूबा हुआ था। कोई सुन्दरी उसके लिए साकी बनी थी तो कोई उसके लिए सूखे मेवे पेश कर रही थी। को ई उसके अंग-प्रत्यग को चूम रही थी तो कोई उसकी बलिष्ठ बांहों में थी।
उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।
नशे में था वह।
विशाल डबल बैड पर वहमौज-मेला लगाए हुए था। तभी अचानक!
हल्की-सी दस्तकी ने उसके खेल में विघ्न डाल दिया। उसके माथे पर बल पदाए।
'जानूं ... जानूं भाग जा। ' एकाएक ही क्रोधमें चिल्ला उठा व्ह-बास्टर्ड अभी आने को था! '
___ 'बॉस , जरूरी काम है।' बाहर से कमजोर-सा स्वर उभरा
'ईडियट , सारे जरूरी काम मैं निपटा चुका हूं फिर... फिर कौन-सा काम रह गया ?'
'बॉ स दलपत आया है।'
'कौन दलपत ?'
'बॉ स ...वही...वही दलपत काना। '
'दलपत काना?'
'हां बॉस।'
'ठीकी है...तू उससे बात कर ले । काम , कर पाया या नहीं?'
'काम पूरा करके लौटा है। ' ।
'यानी रंजीत , लाम्बा ...?' जार्ज पीटर ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
बाहर खडे जानूं ने तुरन्त नजरें झुका लीं। वह बिना कपड़ों-वाले अपने बॉस की तरफ कैसे देखता
भला।
'बता न क्या बोला वह ?'
'बॉस...उसने , रंजीत लाम्बा को खलास कर दिया।'
' विश्यास नहीं होता।'
'विश्वास करना ही होगा, बॉस । आप एक मिनट के लिए बाहरले हॉल तक चलें...आपको विश्वास आजाएगा।'
जार्ज पीटर ने हाथ उठाकर संकेत किया।
तुरन्त चारों सुन्दरियों उसके वस्त्र उठाकर उसकी ओर लपकी चली आई और उन्होंने फुर्ती से उसे कपड़े पहनाकरं तैयार कर दिया।
एक सुन्दरी ने उसके जूतों के तस्मे बांधकर उसे फिट किया तो दूसरी ने उसकी टाई बांध दी।
'चल! ' तैयार होकर वह जा नूं से बोला - ' चलकर देखता हूं कौन-सा जादू दिखा रहा है तू और वह का ना। चल।'
जानूं उसे साथ लेकर कॉरीडोर में बढ़ चला।
सीढ़ियों के निकट से ही गनर मिलने आरंभ हो गए।
पीटर को देख वे अतिरिक्त सावधान मुद्रा में नजर आने लगे। दो गनर सीढ़ियों के ऊपर थे और चार सीढियों से नीचे।
फिर वह बाहरले हॉल में पहुंचा।
हाल में उसे रंजीत लाम्बा की लाश के पास दलपत काना खडा दिखाई दिया।
हॉल में चारों तरफ उसके गनर मौजूद थे।
काने ... ये क्या है ?' उसने वहां पहुंचते ही सवाल किया।
'माई-बाप ... आपके दुश्मन की लाश। ' दलपत काना आदर से झुकता हुआ बोला।
'हूं... I ' पीटर ने हुंकार भरते हुए गौर से लाम्बा की लाश की ओर देखा।
लाम्बा के घुटने पेट की तरफ मुड़े हुए थे।
0
उसका सीना खून से तर था ।बहुत चालाकी था। ' दलपत काना बड़बड़ाया।
'तूने तो बहुत बड़ा तीर मारे लिया काने। '
'आपका हाथ मेरे सिर पर था , इसीलिए इस काम को अंजाम दे सका।'
'नहीं. ..यह तो तूने अकेले ही किया है।'
दलपत काना मुस्करा उठा।
'तू इनाम का हकदार है।'
वह दाएं कान से लेकर बाएं कान तक मुस्कराया।
'तेरा इनाम..। ' कहने के साथ ही पीटर ने फुर्ती से पिस्तौल निकालकर उसकी और तान दी- 'तु
झे देना अब। जरूरी हो गया है।'
वह फायर करता , उस के पहले ही रंजीत लाम्बा ने गजब की तेजी दिखाते हुए फर्श से उठकर अपनी पिस्तौल -उसकी कनपटी से चिपका दी।
'खबरदार जार्ज! अगर तूने ट्रेगर दबाया तो मैं भी ट्रेगर दबा दूंगा। तेरा निशाना तो चूकी सकता है लेकिन मेरा निशाना चूकने वाला नहीं । ' वह फुफकारते हुए स्वर में बोला-'मेरे ट्रेगर दबाते ही तू इस दुनिया से कूच कर जाएगा।'
उस अचानकी होने वाली हरकत से तमाम गनर हतप्रभ रह गए।
जानूं ने रिवाल्वर निकाल लिया।
तमाम गानें रंजीत लाम्बा की ओर तन गई।
' मैं ट्रेगर दबाऊ क्या ?' लाम्बा ने धमकी भरे स्वर में कहा।
'नहीं..! ' पीटर के स्वर में कंपकंपाहट उत्पन्न हो गई।'
तुम्हारे प्यादों ने मुझे अपनी निशाना बना रखा
'ग ने फेंकी दो! ' वह अपनी पिस्तौल फेंकता हुआ बोला।
तमाम बंदूकधारी उस आदेश को सुनकर चौंके और कर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में उसे निहारने लगे।
'मेरा मुंह क्या देख रहे हो गने फेंकी दो। ड्राप दि गन्स इमीडिएटली !'
तुरन्त तमाम प्यादों ने अपने-अपने हथियार फेंकी दिए।
' अपने आदमियों को आदेश दे कि अपने-अपने हाथ उठाकर दीवार की तरफ मुंह कर लें।'
पीटर ने तुरन्त आ देश दिया।
सभी आद मी दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो गए।
'काने! ।
'मालि...?' दलपत काना लाम्बा के समीप झपटता हुआपहुंचा-हुक्म मालिक...हुक्म?'
सामने वाला कमरा देख , अगर उससे बाहर निकलने का रास्ता न हो तो इन भेड़-बकरियों को ले
जाकर उसने ये बंद कर दे ! '
दलपत काना तुरन्त सामने वाले कमरे की ओर दौड़ पड़ा।'
कमरे से निकलने का एकमात्र दरवाजा था। नतीजतन उसने लाम्बा की स्वीकृति लेनी भी जरूरी न समुझी और जार्ज पीटर के आदमियों को हांकता हुआ उस कमरे में ले जाकर बंद कर आया।
'काने !' तू अपनी मौत का इंतजाम कर रहा है बास्टर्ड ! ' पीटर दांत पीसता हुआ गुर्राया।
'नही मार्लिकी ... हुक्म का गुलाम बना हुआ हूं इस टाइम। ' दलपत काना सहमकर बोला।
'गुलाम तो मैं तुझे बाद में बनाऊंगा लेकिन हुक्म का नही।'
' मालिकी ।'
' चिड़ी का गुलाम। '
' जार्ज ! पिस्तौल ताने पीटर के सामने आता रंजीत लाम्बा बोला- 'तुझे अभ-भी उम्मीद है कि तू मेरे हाथों बच जाएगा और बाद में कुछ करने योग्य रह जाएगा?'
पीटर ने उलझनपूर्ण दृष्टि से उसकी ओर
देखा।
' इसकी तलाशी ले काने।'
दलपत काना डरे हुए अंदाज में पीटर की ओर बढ़ा। पीटर के नेत्र अंगारों की तरह दहकी रहे
थे।
'काने ! ' उसने दांत पीसे।
दलपत काना एक कदम पीछे हट गया।
' तलाशी ले ! ' लाम्बा चिल्लाया।
उसने एकदमं से पीटर के चेहरे की तरफ से दृष्टि हटाई और वह पीटर की तलाशी लेने लगा।
जार्ज पीटर उस समय बेबस था।
जिसके नाम का सिक्का अण्डरवर्ल्ड में चलता था , उसकी आ ख में रंजीत लाम्बा नामकी सुपारी वाले हत्यारे ने डंडा कर दिया था।
वह , अपनी ओर त नी उसकी पिस्तौल की वजह से बेबस था वरना अब तक तो द लपत काने जैसे अनगिनत प्यादे लाश के रूप में परिवर्तित हो चुके होते।
तलाशी में कुछ नहीं निकला।
दलपत काना तलाशी लेकर वापस लौट
आया।
पीटर उसे खा जाने वाली निगाहों से घूर रहा
था।
'जार्ज, अब तुम यह बताओगे कि तुमने मेरी हत्या के लिए काने को सुपारी दी थी ?' लाम्बा ने उसकी ओर देखते हुए सवाल किया।
'हां दी थी। ' पीटर गुर्राया।
'जहां तक मेरा अपना ख्याल है, मेरी तुम्हारी पूर्व की कोई वाकफियत नहीं है। या है ?'
नहीं है।'जब हमारी वाकफियत ही नहीं है तो फिर हमारी दुश्मनी भी नहीं होनी चाहिए! राइट ?'
जार्ज पीटर ने धूर्ततापूर्ण दृष्टि से उसे निहारा। वह बोला कुछ नहीं।
'मुंह से फूट वरना गोलियां मार-मारकर तेरी खोपड़ी में इतने छद कर दूंगा कि तू उन्हें गिन नहीं पाएगा।'
रंजीत लाम्बा।' पीए'ने क्रोध में दांत पोसे। वह कसमसाकर रह गया। अगर उस समय उसे बंधकी न बनाया गया होती तो वह लाम्बा को कच्चा चबा जाता।
' दांत पीसने और गुस्सा दिखाने से बात बनने वाली नहीं। बता हमारी कोई जाती दुश्मनी है क्या ?'
'नहीं।पिस्तौल अपनी आंखों के बीच निशाने पर घूमती देख पीटर अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला।
'फिर तूने मेरी सुपारी का बंदब स्त क्यों किया ? क्या लगाया दलपत काने को मेरे पीछे मेरा
काम तमाम करने के लिए? बोल।'
'जरूरी नहीं कि तुम्हारे हर सवाल का जवाब दिया जाए।'
लाम्बा ने ट्रेगर दबाया।
पिस्तौल के दहाने ने आग उगली।
गोली जार्ज पीटेर के कान को हवा दे ती हुई पीछे दीवार में लगे फ्रेम के चीथड़े उड़ाती हुई दीवार से जा टकराई।
जार्ज पीटर सिहर उठा।
मौत का खौफ उसकी आंखों से झांकने
लगा।
'ये गोली निशाने पर भी लग सकती थी। इसके निशाने पर लगने से तुम्हारा काम तमाम भी हो सकता था और तुम्हारी लाश यहां पड़ी अकड़ रही भी हो सकती थी।
 
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लेकिन ऐसा महज इस वजह से नहीं हुआ , कयोंकि मैंने निशाना गलत लिया था। क्योंकि अभी मैं तुम्हें सिर्फ यह समझाना चाह रहा था कि माफिया का सबसे बड़ा डॉन भी अगर गोली के रास्ते में आएगा तो गोली उसे भी उड़ा डा लेगी। गोली पर किसी तरह का कोई फर्की पड़ने वाला नहीं। खोपड़ी किसी की भी हो , गरीब आदमी की या अमीर आदमी- की, उसके
रास्ते में आएगी तो उड़ जाएगी।'
पटिर ने गले में फंसा थू की निगला।
'अब सिर्फ इतना बता दो कि मेरे सवालों का जवा ब देना जरूरी है या नहीं?'
उसने सहमी हुई नजर से लाम्बा की ओर देखा, फिर बोला- ' पूछो।'
'तुझसे मेरी दुश्मनी नहीं फिर तूने काने को मेरे नाम की सुपारी क्यों दी?'
'मुझे किसी ने तुम्हारी हत्या का कान , सौंपों था।'
' किसने-किसने जार्ज?'
वह हिचकिचाया।
'नाम बता, उसका...नाम बता? '
'जोजफ।'
'जोजफ !' लाम्बा के नेत्र आश्चर्य से फैल गए - ' वही जोजफ न जो माणिकी देशमुख के यहां उसकी बेटी के शैडो की हैसियत से काम करता है ? '
'वही।।
'आई सी...तो यह जोजफ का काम था। ' वह बड़बड़ाया।
पीटर खामोश रहा।
'काने !' लाम्बा ने दलपत का ने से संबोधित होते हुए कहा- इसे दूसरे कमरे में बांधकर डाल दे ताकि यह किसी प्रकार का शोर न मचा सके। '
'जो हुक्म मालिक।'
आनन-फानन में दलपत का ने ने आदेश के पालन में कार्यवाही कर डाली।
जार्ज को बांध कर दूसरे कमरे में बूंद करने के बाद वह रंजीत लाम्बा के साथ कोठी से बाहर निकल
आया!
ए की बार फिर उसे कार की ड्राइविंग सीट पर बैठना पड़ा।
सब कुछ प्लान के मुताबिकी हुआ। ' लाम्बा सिगरेट सुलगाता हुआ बोला।
लेकिन माई-बाप मेरी तो मुसीबत है।
' वह किसलिए?'
' इसलिए कि पीटर कभी न कभी तो कमरे के बाहर निकलेगा ही उसके बाहर आते ही मेरे लिए मुसीबत शुरू हो जाएगी।'
'कोई मुसीब त नहीं होगी।'
'क्यों?'
' क्योंकि यह सब तो मेरा किया-धरा है। अगर उसे कोई कार्यवाही करनी होगी तो वहमेरे खिलाफ करेगा।'
' मेरे खिलाफ नहीं करेगा , इस बात की भी तो कोई गारंटी नहीं है।'
'तू मर मत ...अगर तेरे खिलाफ ऐसा-वैसा कुछ हो तो तू मुझे फोन कर सकता है। यह ले मेरा फोन नम्बर। ' लाम्बा ने विजिटिंग कार्ड निकालकर दलपत काने की ओर बढ़ा दिया।
काने ने कार्ड इस तरह संभालकर रख लिया मानो वह उसकी सुरक्षा का गारंटी कार्ड हो।
__ 'किधर चलूं मालिकी ?' कुछ देर बाद मोड़ आने पर उसने पूछा।'
__'तू जहां जाना चाहता हो वहीं चल। मैं तुझे वहां तक तो छोड़ ही सकता हूं।'
'जो आज्ञा साई।'
| पर दलपत कानाकार से उतर गया।
.0
00
__ 'हैलो...कोठारी...! ' दूसरी ओर से कोठारी की आवाज सुनने के पश्चात् रंजीत लाम्बा माउथ पीस में बोला- ' मैं लाम्बा बोल रहा हूं।'
___ 'तुम कहां हो लाम्बा ? देशमुख साहब कबसे तुम्हारी तलाश करवा रहे हैं ?' दूसरी ओर से उभरने वाले कोठारी के उत्तेजित स्वर में शिकायत के स्पष्ट भाव थे।

'कब से?'
' बहुत देर हो गई।' ' और उसब हुत देर में मैं उन्हें नहीं मिला ?'
_' हां...तुम कहीं नहीं मिले। अभी कहां से फोन कर रहे हो?'
' टेलीफोन बूथ से।'
'कौन-से टेलीफोन बूथ से?'
' मेरा पता जानने के लिए बड़े उतावले हो रहे हो कोठारी।'
.
.
___ 'नहीं...मैं पता जानने को उतावला नहीं हो रहा।'
'फिर?'
' मैं चाहता हूं तुम जल्द से जल्द देशमुख साह ब के सामने हाजिर हो जाओ। देशमुख साहब को तुमसे कोई बेहद जरूरी काम कराना है।'
'माणिकी देखमुख के जरूरी काम से मैं वाकिफ हूं।'
'अच्छा !'
'हां कोठारी...मैं सब-कुछ जान चुका हूं। तुम्हारे झूठे स्टेटमेन्ट भी अब मेरे सामने नंगे हो चुके

' मेरे झूठे स्टेटमेन्ट ?'
'हां-हां , अब तुम तक मुझसे जो झूठ कहते आए कि तुम मेरी और पूनम की कहानी की खबर देशमुख को नहीं करोगे।'
'हां...वो खबर तो मैंने अभी-भी छिपाकर रखी है।'
'झूठ बकते हो।'
'नहीं रंजीत... मैं सच कह रहा हूं।'
.
.झूठ है...झूठ! मैं हर रहस्य की तह तक प हुंच चुका हूं।'
'कैसा रहस्य ?'
'मुझ पर हो ने वाले जानलेवा हमलों का रहस्य ।'
'मुझे ... मुझे कुछ नहीं- मालूम। ' __'लेकिन मुझे सब कुछ मालूम है। मैं जा नता हूं, पेशेवर हत्यारे दलपत को मेरे पीछे अण्डरवर्ल्ड के बादशाह जार् ज पीटर ने लगाया और पीटर को मेरी हत्या की सुपारी देने वाला है जोजफ...जोजफ , पूनम'का शैडो !'
'ओह नो...जोजफ ने किया ये सब। मैं उसे कितना समझाया था कि वह देशमुख साहब को कुछ न बता ए। मेरे सामने मुंह बन्द रखने की बात कहकर , इसका मतलब उसने सब - कुछ देशमुख साहब के
सामने उगल दिया है।'
'कोठारी तुम कुछ भी कहो...मैं अब वहां की किसी भी बात पर यकीन करने वाला नहीं।'
__ 'शायद तुम ठीकी कह रहे हो , इसी वजह से जोजफ फिलने ही आद मियों की भीड़ लेकर तुम्हारी तलाश कर रहा था और पूनम की चीख-पुकार भी सुनाई दी थी।'
___ 'पूनम... क्या हुआपूनम को ? कोठारी मुझे बताओ पूनम को क्या हुआ ?' एकाएक ही लाम्बा उत्तेजित स्वर में चिल्लाया।
___ 'मुझे ठीकी तरह नहीं मालूम , मगर ऐसा लगता है कि उसे पीछे बाले दो कमरों में रखा गया है और शायद बाहर निकलने का दरवाजा लॉक्ड है। '
___ 'कोठारी !' लाम्बा दांत पीसता हुआ गुर्राया - मैं पूनम पर होने वाला जुल्म बर्दाश्त नहीं करूंगा।
कह देना अपने आका माणिकी देखमुख से-बारूद से खेलोगे तो जल जाओगे, फिर मैं तो बारूद का वो ढेर हूं जो माणिकी देशमुख को लाखों टुकड़ों में बदल डालने में पूरी तरह सक्षम है। '
रंजीत ... रिलैक्स रंजीत। देखो..सुनो...।'
'न मुझे देखना है , न सुनना है...समझ गए तुम। तुम माणि की देशमुख के लैफ्टीनेंट हो... उसे समझा सको तो समझा देना। मैं सब-कुछ बर्दाश्त कर लूंगा लेकिन पूनम पर किसी भी तरह का जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकूँगा।'
'पूनम को कुछ नहीं होगा रंजीत। तुम मेरे पास आजाओ, मैं सारी-उलझनों का हल निकाल
लूंगा।'
लाम्बा हंसा।
जहरीली हंसी।
बोला-को ठारी मुझे पुड़िया देने की कोशिश म त करो। बहलाया बच्चों को जाता है । जहां मेरे लिए जाल तैया र करके रखा गया है , तुम मुझे वहां पुचकार के बुलाना चाहते ही ताकि मै उस जाल में जाकर फंस जाऊं।'
' नहीं...यह बात नहीं।'
'अब मुझे तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं।' माणिकी देशमुख से कह देना कि बगावत हो चुकी है। उसने जितने वार करने थे वो कर चुका , अब मेरी बारी है।'
'नहीं रंजीत!'
__ ' उसे कहना कि अगर बचा सकता है तो वह अपने-आपको बचा ले। मौत का काला साया उसे कभी-भी अपने शिकंजे में जकड़ सकी ता है।'ऐसा मत कहो रंजीत...मैं...मै देशमुख साहब से तुम्हारी बावत बात करूंगा। मुझे विश्वास है, वो मेरी पेशकश को ठुकराएंगे नहीं।'
'नहीं कोठारी... तीर कमान से निकल चुकी- है। वह वापस तरकश में नहीं लौट सकता।'
'रंजीत , जल दीबाजी में कोई कदम न उठाओ। मैं कह रहा हूं न , मैं सब संभाल लूंगा।'
'मुझे कुछ नहीं संभालना। मुझे तो सब-कुछ बिगाड़ना है। ' इतना कहकर लाम्बा ने रिसीवर हुकी में लटकाया और सावधानी के साथ टेलीफोन बूथ से बाहर आ गया।

सड़की वीरान पड़ी थी।
उसने सिगरेट सुलगा ई , दाएं-बाएं देखा तत्पश्चात् कार का दरवाजा खोलकर अन्दर बैठ
गया।
कार स्टार्ट होकर आगे बढ़ गई।'
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बड़ा-सा हाल था वह।
हॉल के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा झूमर छत
से लटका हुआ था। फर्श पर बिछे मखमली कार पेट पर चलते हुए कोठारी के आधे जूते उस कारपेट में धंसे जा रहे थे।
दाहिनी दीवार पर एक बड़ी-सी सीनरी लगी
थी।
इतनी बड़ी सीनरी कि उसके पीछे समूची दीवार ढकी गई थी।'
उस दीवार के आगे एक वेशकीमती मेज थी जिसकी टाप शीशे की बनी हुई थी। पाए चंदन की काली लकड़ी के थे जिन पर अच्छी-खांसी नक्काशी की गई थी।
टेबल पर लाल रंग का कॉर्डलैस टेलीफोन रखा था । पेपरवेट से दबे हुए कुछ कागज थे, नोटो
की गड्डियां थीं और एक पिस्टल थी जो कि उस कीम ती देबल के ठीकी पीछे रखी रिवाल्विंग चेयर के निकट रखी थी।
रिबाल्विग चेयर पर बैठा व्यक्ति असानी से हाथ बढ़ाकर टेबल पर रखी पिस्तौल को उठा सकता
था।
रिवाल्विंग चेयर पर एक लहीम-शहीम पचपन साला व्यक्ति बैठा था।
उसके लाल चेहरे से उसकी सेहत झलकती दिखाई दे रही थी।
वह था...माणिकी देशमुख।
तेज कदमों से चलता हुआ कोठारी टेबल के इस ओर जा ठहरा।
माणिकी देशमुख ' ने उसकी ओर नजर उठाई।
'रंजीत लाम्बा मिला? 'कोठारी को देखते ही उसने सवाल किया।
' मिला। ' कोटारी ने अपलकी उसकी ओर देखते हुए- पूछा।
___ कहां है वह ?' जैसे उसे करंट लग गया हो, इस- पैकार एक झटकी के साथ उठ खड़ा हुआ वह और उसने फुर्ती के साथ पिस्तौल उठा ली!
उसका चेहरा तमतमा उठा।
'फोन पर अमी-अभी मेरी उससे बात हुई है
' कंहा से किया था उसने फोन ?'
'यह नहीं मालूम बॉ स।'
'मालूम कर कोठारी।' 'मालूम करने की जरूरत नहीं है।'
'क्यों ?' देशमुख के माथे पर बल पड़ गए।
__' इसलिए कि वह की हीं जाने वाला नहीं। मैं उसे कहीं से भी खोज जाऊंगा , लेकिन उसने आप पर जो इल्जाम ल गाया है , मैं उसके बारे में जानना चाहता हूं, क्या वह सही है ?
'कौन-सा इल्जाम ?'
' आपने किसी को रंजीत की हताया के लिए किराए पर हासिल किया था ?'
__ 'अण्डर वर्ल्ड की जानी-मानी हस्ती जार्ज पीटर को।'
'क्यो... वह तो अपना आदमी था फिर आपने ऐसा क्यों किया?'
' मैंने उसके साथ ऐसा क्यों किया , यह तू जानता है। कोठारी। मुझे अफसोस है कि मेरा लैफ्टीनेंट होते हुए भी तूने मुझे उसके बारे में नहीं बताया। यह नहीं बताया कि वहमेरी भोली-भाली बेटी
को बहकाने में कामयाब होता जा रहा है । अरे हरा मखोर!
इस बात की जानकारी होते ही सबसे पहले तूने उसकी लाश गिरा देनी थी। फिर तू मुझे उस गद्दार के बारे में बताता। लेकिन तूने वह काम नहीं किया। तू उसबात को दबाकर रंजीत का सपोर्ट कर रहा था
और दबाव जोजफ पर डाल रहा था कि वह पूनम की बात को आगे न बढ़ाए। क्यों?'
' उसकी एक वजह थी बॉ स। '
'कौन-सी वजह ?'रंजीत आपके काम का आदमी है। बड़े से बड़े काम को अकेले कर गुजरने की योग्यता है उसमें। इस मामले से बात बिगड़ जाती। मैं चाहता था कि पूनम और रंजीत के बीच का रिश्ता भी खत्म हो जाए और रंजीत हमारे साथ काम भी करता रहें, जिसे कि जोजफ ने शायद इस स्वार्थ के परवश आप पर जाहिर कर दिया ताकि रंजीत का पत्ता साफ हो जाए और आप उस पैर मेहरबान होकर उसे रंजीत लाम्बा का स्थान दे दें।'
'ऐसा हो भी सकी ता है कोठारी, तू देखना...तू देखना जोजफ रंजीत का काम तमाम करके उसकी जगह ले लेगा।'
'जोजफ रंजीत लम्बा की जगह कभी नहीं ले सकेगा बॉ स। मैं अपने हर मोहरे का वजन जानता
.
'कोठारी...मैं रंजीत की लाश देखना चाहता हं।।
'मैं चाहता हूं बॉस कि इस मामले में आप ठंड़े दिमा ग से काम लें।'
' कहना क्यो चाहता है तू ?' माणिकी देशमुख के तेवर एकाऐंकी ही बदल गए।
_ 'यह कि पूनम को यहां से हटाकर पूनम की बात को खत्म किया जा सकता है। रंजीत को दोबारा काम की रने के लिए मैं तैयार कर लूंगा।'

'नही चाहिए मुझे वह हरामखोर रंजीत.. .नहीं चाहिए! ' गुस्से से चिल्ला ता हुआ वह चे यर
छोड़ कर उठ खड़ा हुआ।
' उसके खिलाफ जंग का ऐलान भी आपको भारी पड़ सकता है।'
'जोजफ उसे तिनके की तरह उड़ा डालेगा।
_ 'गलतफहमी हैं आपको। जोजफ की स्थिति मैं आपको बता दूं...जोजफ तिनका है , रंजीत तूफान। तूफान के सामने एक तिनके का जो महत्व होता है वही महत्व जोजफ का रंजीत लाम्बा के सामने है। अब तक जोजफ अनजाने में उसके खिलाफ चालें चलता रहा। उसे कुछ मालूम नहीं था। लेकिन अब वहमामले की जड़ में पहुंच चुका है। वह जोजफ , दलपत काना और जार्ज पीटर सबकी कहानी से वाकिफ हो चुका है और उसने यह भी कह दिया है कि...बगावत हो चुकी है। '
बागियों का सिर कुचल ना मैं अच्छी तरह जानता हूं।'
' इसब गावत को दूसरे ढंग से रोका जा सकता है बॉस। अभी भी वक्त हैं।'
'तू मुझे रंजीत के सामने झुकने की राय दे रहा है कोठारी ? तू चाहता है अपने टुकड़ों पर पलने वाले अपने नौकर के सामने मैं गिड़गिड़ा ऊं? नहीं ... कोठारी ... नहीं मैं कट सकता हूं झुकी नहीं सकता।'

' बॉस ... आप समझते क्यों नहीं।'
'क्या मतलब है तेरा ...क्या तू रंजीत लाम्बा के नाम से इतना ज्यादा खौफजदा है कि तू इस जंग मै मेरा साथ देने को तैयार नहीं?'
' इस जंग को मैं रोकना चाहता हूं। आपका नमकख्वार हूं। आपसे अलग होकर कहां जाऊंगा।'
__'तो फिर तैयारी कर। मैं अपनी इज्जत से खिलवाड़ करने वाले शख्स का कटा हुआ सिर अपने कदमों में देखना चाहता हूं। 'देशमुख हिंसकी स्वर में गुर्राया।
'मैं, यह कहना चाहता था...। '
'कुछ नहीं कहना चाहता था तू.. .कुछ नहीं।
अभी कोठारी वापसी के लिए मुड़ा ही था कि दौड़ती हुई पगचापों के साथ नारी चीखें वहां तक सुनाई देने लगी।
विला के किसी दूर वाले हिस्से में वो सब हो रहा था।
माणि की देशमुख के माथे पर बल पड़ गए।
उसने फुर्ती से फोन उठाकर एक बटन पुश किया, फिर माउथपीस में बोला- ' क्या हुआ...क्या बात है?'
 
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पूनम भागने की कोशिश कर रही थी डैड! 'दूसरी ओर से उसके बेटे विनायकी देशमुख का झुल्लाहट भरा स्वर उभरा- ' मैंने पकड़ लिया उसे। '
' कौन-सेर कमरे में हो ?' 'लॉन के सामने वाले कमरे में।'
' मैं आ ' रहा हूं।'
कहने के सा थ ही माणिकी देशमुख ने फोन टेबल पर रखा और तेज कदमों से बाहर की ओर चल
पड़ा। कोठारी उसके पीछे लपका।
आगे-पीछे चलते हुए दोनों उस कमरे में पहुंचे जिसमें पूनम और विनायकी थे। विनायकी ने उसके सिर के बाल मुट्ठी में जकड़ रखे थे और वह दाहिने हाथ से पूनम को बेरहमी से पीट रहा था
पूनम चीख-चिल्लाकर उस का विरोध कर रही थी। छोड़ दे इसे! ' माणिकी देशमुख ने विनायकां
को आदेश दिया।
विना यकी ने आदेश के पालन में पूनम को छोड़ दिया।
पूनम सिसकने लगी।
'क्यों भाग रही थी ?' माणिकी देशमुख ने उसके ठीक सामने पहुंचते हुए पूछा।
वह कुछ न बोली।


जवाब दे ! ' एक जन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा।
उसका चेहरा दूसरी तरफ को उलट गया। गाल पर उंगलियों की छाप उभर आई।
पीडा से तड़प उठी वह।
अधरों के किनारे से रक्त की पतली-सी लकीर बनकर ठोढ़ी की ओर उतरती चली गई। सिसकियों के साथ रोने लगी वह।
माणिकी देशमुख ने हिकारत भरी दृष्टि से उसे
देखा।
'विनायकी !'
'यसुर डैड ? '
' इसे ऊपरले कमरे में बंद कर दे और वहां दो आदमियों का पहरा बिठा दे। '
'यस डैड।'
'ले जा इसे मेरी आंखों के सामने से। मैं इसबगैरत की सूरत भी देखना नहीं चाहता।'
'चल! ' विनायकी देशमुख पूनम को घसीटता हुआ वहां से ले गया।
कुछ पल वहां कर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में खड़े रहने के उपरान्त मणिकी देशमुख वापस उसी हॉल में लौट आया।
कोठारी उसके पीछे-पीछे वहां पहुंचा।
'बेबी पर जुल्म करने से क्या फायदा।' उसने अत्यंत धीमे स्वर में कहा।
'तू क्या समझता है , मैं अपनी इजत यूं ही लुट जाने दूंगा।'
' ले किन अभी तो लाम्बा ने ऐसा-वैसा कुछ किया नहीं।'
'उसके लिए तो मौत की सजा निश्चित है। अब वह ऐसा-वैसा कुछ कर भी नहीं सकेगा।'

बॉ स!'
'तू बातों में वक्त बर्बाद मत कर। मैं जल्द से जल्द उस हरामजादे रंजित लाम्बा का पता मालूम कर लेना चाहता हूं।'
'उसकी पता अब आसानी से मालूम नहीं हो सकेगा।'
' आसानी से नहीं तो मुश्किल से सही। पता मालूम कर।'
'यसब ॉस।'
'जा...दफा हो जा यहां से। मेरे पास रुककर वक्त बर्बाद मत कर।' कहने के साथ ही देशमुख लिकर कैबिनेट की ओर बढ़ गया। उसने अपने लिए पहले आधा गिलास भरा । उसके बाद पूरा गिलास भरकर एक ही सांस में पीता चला गया।
कोठारी समझ गया की अब उसके रोके वह जंग रुकने वाली नहीं।
वह बाहर निकला।
कॉरीडोर में विपरीत दिशा से आते जोजफ से उसका सामना हो गया।
जोजफ उसे देखकर चौंका।
उसने कोठारी से नजरें चुराते हुए निकलने की कोशिश की , परन्तु कोठारी ने उसका मार्ग अवरुद्ध कर दिया।
'जोजेफ...!'
.
.मेरे पास टाइम कम है। मैंने फौरन बॉ स से मिलना है।' इतना कहकर जोजफ रास्ता काटता हुआ
उसके बराबर से निकला चला गया।
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पचास के पेटे में पहुंचा मोटी आकृति वाला भूपत माणिकी देशमुख का बहुत पुराना रसोईया था ।
भूपत को अफीम की आदत थी! रसोई की तमाम खरीददारी के अधिकार उसी के पास थे और वह आए दिन की खरीददारी में से बचत करके अफीम के लिए पैसों का जुगाड़ बिठा लिया करता था। लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह अफीम के चक्कर से निकलकर ड्रग्ज लेने लगा था।
उसी एक डोम पैडलर से वाकफियत हो गई थी।
इस तरह अब उसे अपने नशे के लिए पहले से ज्यादा बड़ी रकम दरकार थी।
नतीजतन रसोई के सामान में उसने बड़े घपले करने शुरू कर दिए थे।
आज वह तमाम झिक झिक करने के बाद भी मैनेजर से अतिरिक्त रकम हासिल न कर सका। झुंझलाई हुई स्थिति में बड़बड़ाता हुआ वह बाहर निकला। स्कूटर रिक्शा के पैसे मिले थे मगर वह पैदेल
ही बाजार की तरफ चल पड़ा।उसने अपने नशे के लिए एक-एक पैसा जो बचाना था।
सामान की खरीददारी में भी वह इत ने पैसे नहीं बचा सका जिससे कि वह डोम पैड लर को भुगतान करके अपने लिए नशे की एक भी पुड़िया खरीद पाता।
डोम पैडलर उसे मिला भी मग र वह सिर्फ उससे दोबारा मिलने की बात ही कर सका। उसे नहीं मालूम शा कि कोई उसके पीछे साए की तरह लगा हुआ है और उसकी एक-एक हरकत नोट कर रहा है। उसकी हर छोटी-बड़ी बात पर ध्यान दे रहा है।
नशा किए उसे लम्बा समय हो गया था और अब वक्त पर डोज न मिल पाने की वजह से उसे अपनी आंखों मे पानी बढ़ता महसूस होने लगा था। टांगों में हल्की-सी कम्फोर्ट और जिस्म में दर्द पैदा होने लगा था।
जो उसका पीछा कर रहा था, उसने तुरन्त ही उस समय जबकि भूपत पैडलर को छोड़कर आगे बड़ा , पाउडर को रोककर संक्षिप्त वार्ता की और दस पुड़ियों का पैकेट खरीदकर जेब में डाल लिया।

भूपत खरीददारी के बाद विला में पहुंचा।
उसका पीछा करने वाला साया छह रह गया।
भूपत ने मुस्किल तमाम रसोई का काम किया। एक औरत उसकी सहायकी के रूप में काम करती थी। वह उसे ही ज्यादातर काम में लगाए रहा।
जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा था, उसकी हालत खराब होती जा रही थी। आंखों से पानी बहता तो वह उसे जल्दी से पोंछ डालता।
इसी बीच कॉफी का ऑर्डर आ गया ।
माणिक-देश मुख के मीटिंग चैम्बर में आठ कॉ फी तुरन्त पहुंचनी थीं।
उसने जल्दी-जल्दी कॉफी बनाकर मीटिंग चै म्बर में पहुंचा दी।
फिर वह लौटा ही था कि एक नौकर ने उसे आकर बताया कि उसके भतीजे का फोन है।
वह चकित हो उठा।
___ भतीजा। ' असमंजस भरे स्वर में बड़बड़ाते उसने अपने-आपसे कहा- 'लेकिन मेरा तो कोई भाई
ही नहीं, फिर भतीजा...?'
.
.
.
असमंजस भरी स्थिति में चलता हुआ वह टेलीफोन तक पहुंचा।
'कौन है ?' कंपकंपाते हाथ से रिसीवर कान से लगाते उसने माउथपीस में बोला।
'आपका भतीजा हूं चचा। ' दूसरी ओर से सामान्य स्वर उभरा।

'कौन-से भतीजे भाई ?'
'वहीं भतीजा...पुड़िया बाला। आपकी जरूरत की पुड़िया , जो आप उस पैडलर से हर रोज लिया करते हैं, इस वक्त मेरे सामने रखी है। '
उसने अपने सूखे हुए होंठों पर जीभ फिराई।
'अगर कोई जरूरी काम न करे रहे हों तो बाहर आकर वह पुड़िया ले जाएं। उसकी आपको कीमत अंदा नहीं करनी पड़ेगी।
'क्यों ?'
'क्योंकि आप चचा हैं और आपके भतीजे के पास आपकी जरूरत का सामान पड़ा सडा रहा
है।'
.
'तुम हो कौन ?' एकाएक की भूपत शंकित सर में बोला।
'बाहर आओगे तो अपने-आप जान जा ओगे कि मैं कौन हूं।'
'नहीं.. .यहीं बताओ?'
' लगता है आपको पुड़िया चाहिए नहीं है।' वह सोच में पड़ा रहा।'
'ठीकी है ... अब मैं उसे फेकूगा तो नहीं लेकिन हां .... किसी दूसरे ज रूरतमंद की तलाश जरूर करूंगा।'
उसके होंठों पर ताला पड़ा रहा। चचा. ..मैं फोन रखने जा रहा हूं। अलविदा।'
सुनो! ' बोलते हुए भूपत ने जोर से थूकी निगली।
'हां चचा।'
'थोड़ी देर रुको.. .मैं...मैं आता हूं।'
'ठीकी है।'
'तुम मिलोगे कहां हैं ?'आप बाहर निकलें तो सही , मैं आपको किसी भी वाजिब जगह पर मिल जाऊंगा !'
' मैं आ रहा लूं।' इतना कहकर भूपत ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया। फिर वह किचन में
पहुंचा। उसने अपनी असिस्टेंट को आवश्यकी निर्देश दिए और फिर वहमक्खन लेने के बहाने से बाहर निकला।
दरबान ने उसे टोका भी तो उस ने मालिकी पर आरोप लगाते हुए कहा- ' क्या करू भैया, छोटी-छोटी चीजें भी मुझे ही लेने जाना होता है। अब मक्खन खत्म हो गया। अभी कोई दूसरी चीज खत्म हो जाएगी और मै तुम्हें फिर से दौड़ता हुआ नजर आने लगूंगा।'
दरबान तम्बाकू घिसता हुआ मुंह फाड़कर हंसा।
वह बाहर आकर इधर-उधर देखने के बाद दायीं ओर को चल पड़ा।
सड़की सूनी पड़ी थी-। दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था।
वह चलता रहा...लता रहा।
अचानका
पीछे से आने वाली एक कार के ब्रेकी ठीकी उसके बराबर में आकर चरमराए।
उसने चौंककर कार की ओर देखा। कार से एक हाथ बाहर निकला और उसने उसे कार के
अन्दर बैठ जाने का संकेत किया।
वह पहले झिझका , फिर उसने कार का दरवाजा खोला और अन्दर बैठ गया।
रंजीत लाम्बा कार की ड्राइविंग सीट पर नजर आया उसे।
वह लाम्बा को पहचानता था। आखिर विला में रहने वाले हर शख्स को नाश्ता , खाना, चाय-कॉफी वही तो बनाकर पेश करता था।
'तु म ! ' उसने चिंतित स्वर में कहा।
'हां चचा...मैं ...। तुम्हारा भतीजा। ' लाम्बा मुस्कराता हुआ बोला।
'लेकिन...।'
.
'स वाल बाद में पहले ये लो। ' उसने दो पुड़ियाँ भूपत की गोद में डाल दी।
पुड़ियाँ देख भूपत की आंखों की चमकी बढ़ गई। उसने कांपते हाथों से दोनों पुड़िया संभाल लीं।
___ ' बाबूजी, आपने मुझे आउट हाउस में ही बुला लिया होता। ' वह कृतिया स्वर में बोला।
___ 'नहीं चचा...अब वहां मेरा जाना नहीं हो सकता।'
'क्यों?'
'सब बताउंगा । पहले आप यह बताएं कि पूनम किस हाल में है ?'
पूनम बिटिया की तो दुर्गत हो गई बाबूजी। '
'क्या हुआपूनम को ?' एकाएक ही लम्बा का स्वर कठोर हो गया। दांत भिंच जाने के कारण उसके जबड़ों के मसल्स उभर आए।
'पूनम बिटिया की पिटाई लगी और उसे अलग कमरे में बंद कर दिया गया है । दो आदमी हमेशा पहरे पर रहते हैं। मैं उसी पहरे के दौरान खाना देने जाता हूं।'
 
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चचा...उसे विला में किस जगह रखा गया है
भूप त ने बताया।
ठीकी हैं चचा...तुम अपनी पुड़ियों की फिक्र मत करना। मैं हर रोज तुम्हारा कोटा तुम तक पहुंचा दिया करूंगा। तुम पूनम तक सिर्फ इतनी खबर
पहुंचा देना कि वह घबराए नहीं। मैं बहुत जल्द उसे मिलूगा ।'
' पहूंचा दूंगा बाबू।'
उसके बाद लाम्बा उसे कार से उतारकर आगे बढ़ गया।

वह पुड़ियाँ जे ब में डाले वापस लौट चला। अब उसे वापस विला में पहुंचने की जल् दी थी। नशे का वक्त गुजर चुका था और वह नशे की सख्त जरूरत महसूस कर रहा था।
विला में दाखिल होते समय उसकी चाल में अतिरिक्त तेजी थी।
'क्यों भूपत... मक्खन नहीं लाए। ' पिछे से उभरने वाले दरबान के तीखे स्वर ने उसके दिल में हलचल मचा दी।
सचमुच मक्खन लेने वह न तो गया था और ना ही लेकर आया था। उस ने तो बहाना बनाया था।
उसकी हालत उस समय उस चोर जैसी थी जिसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो । ' व . ..वो...वो...मक्खन मिला...मिला नहीं। हां...मैं सच कह रहा हूं। ' उसने अपनी
.
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सफाई देने की कोशिश की तो उसकी जुबान-लड़खड़ा गई।
दरबान हंसा।
बोला- ' तो मैंने कब कहा कि तुम झूठ कह रहे हो । नहीं मिला होगा। मगर तुम इस तरह से अचानकी ही बौखला क्यों गए ?'
'न... न... नहीं। नहीं तो।'

'लगता है कुछ परेशान हो। आज अंटा मिला नहीं क्या ?'
'मजाक मत करो यार। ' अपने आपको संयत करते हुए उसने बात बनाई और यहां से चलता हुआपोर्टिको की ओर बढ़ता चला गया।
रंजीत लाम्बा ने देशमुख के रसोइए भूपत को माध्यम बना लिया। इग्ज की उसकी कमी लाम्बा के लिए लाभकारी सिद्ध हुई। ?'
कॉर्डलैस टेलीफोन जिस पर कि पहले से ही लाम्बा ने संपर्की बनाया हुआ था, भूपत खाने के सामान की ट्रा ली में रखकर पहरेदारों की नजरों से बचाकर पूनम के कमरे के अंदर ले गया।
' ले जाओ ये खाना ! नहीं खाना मुझे!' पूनम गला फाड़कर चिल्लाई।
'ऐसा नहीं कहते मालकिन। खाना खा लो। ' भूपत उसके करीब पहुंचकर रहस्यपूर्ण स्वर में बो
ला।'
'नहीं खाऊंगी।'
' खा ओ तो छोटी मालकिन... आज स्पेशल डिश है। 'ट्राली की और देखते हुए वह असमंजस की स्थिति में आ गई भूपत द्वारा किए जाने वाले इशारों को वह पूरी तरह सम झ नहीं पा रही थी।
'खाकर तो देखो मालकिन.. .आपका सारा गुस्सा दूर हो जाएगा । ' भूपत ने डोंगे का ढाक्कन उठाते हुए कहा।
उसने डोंगे में देखा।
डोंगे में खाने की वस्तु के स्थान पर फोन रखा था। छोटा-सा रिसीवरनु मा फोन जिसके लिए क्रेडिल की आवश्यकता नहीं होती।
फोन को देखने के-बाद शह भूपत की ओर देखने लगी।
'मालकिन , मैं पहरेदारों को देखता हूं आप बात कर लें। ' भूपत फुसफुसाहट भरे स्वर में कहता हुआ वहां से दरवाजे की ओर बढ़ गया।
अचम्भित-सी स्थिति में पूनम ने टेलीफोन रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया।
हैल्लो...। ' सस्पेंस में भरी हुई वह अत्यत धीमे स्वर में बोली।
___'पूनम.. . पूनम तुम कैसी हो?' दूसरी ओर से लाम्बा का उत्तेजनापूर्ण स्वर उभरा।
रंजीत...ओह रंजीत...तुम कहां हो ?' उसकी तड़प उसके स्वर से झलकने लंगी।
' मैं जहां भी हूं ठीकी हूं। तुम बताओ?'

'म... मैं कैद में हूं।'
'घबराओ नहीं।'
'मुझे यहां से ले चलो रंजीत। ले चलो।'
' ले चलूंगा। मैं तुम्हें वहां उस कैद मै नहीं रहने दूंगा। यही कहने के लिए तुमसे संपर्की बनाया है। मुझे मालूम हो गया था कि तुम्हें एक कमरे में बंद किया हुआ है। मैं सिर्फ तुम्हारी स्वीकृति चाहता था।'
'मुझे यहां घुट न हो रही है। एक-एक सांस भारी पड़ रही है।'
'तुमने खाना छोड़ रखा है ?'
'कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। तुम्हारी याद करके पड़ी रोती रहती थी।'
'मूर्खता छोड़ो। खाना खाओ। मै कभी भी तुम्हें आजाद कराने को आ सकता हूं। '
'जल्दी आना।'
' बहुत जल्दी।' ' मैं इंतजार करूंगी।'
ओ० के० ! फिर बंद कर रहा हूं।'
' अभी ठहरों।'
'क्यों?'
'एक पप्पी...। ' कहते हुए पूनम ने माउथपीस पर चुम्बन अंकित कर दिया।'
दूसरी ओर से भी चुम्बन की आवाज उभरी। उसके बाद संपर्की कट गया।
पूनम ने फोन पुन: डोंगे सें रखकर ऊपर से उसका ढक्कन बंद कर दिया।
'काका! ' उसने दरवाजे के निकट खड़े भूपत को बुलाया।
'हां मालकिन ?'
'आज मैं पेट भर खाऊंगी। तुम ने बहुत अच्छा खाना बनाया है।'
' आपका नमकी खाया है छोटी मालकिन। आपके लिए तो कुछ न कुछ करना ही था।'
'ठीकी है...तुम इसे ले जाओ। ' उसने डों गे की ओर संकेत किया।
'कोई जल्दी नहीं हैं छोटी मालकिन...आप आराम से खा , लें फिर जैसे इसे लाया हूं वैसे ही वापस भी ले जाऊंगा।'
__'नहीं, अभी ले जाओ। क्योंकि अगर दूसरी तरफ से किसी ने इसका नम्बर डायल कर दिया तो यह फौरन बजने लगेगा और पहरेदारों के कान खड़े हो जाएंगे।'
' हां...यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।'
'जल्दी -ले जाओ।'
'जो आज्ञा छोटी मालकिन। ' कहने के साथ ही भूपत ने डोंगा उठा लिया। वह उसे लेकर इस प्रकार चलने लगा मानो खाने की कोई वस्तु उसमें लिए जा रहा हो। कमरेके दरवाजे के समीप पहुंचकर वह ठिठका। उसके दिल को धड़कनें बढ़ने लगीं
उसने कमरे के बाहर कदम रखा।
खिला दिया जाना ?' एक पहरेदार ने उसे-कठो र स्वर में पूछा।
वह घबरा गया।हाँ ... हाँ... खिला दिया। '
'बङी जल्दी खिला दिया। ' दूसरा पहरेदार बोला।
'नहीं...वो दरअसल छोटी मालकिन ने अभी शुरू किया है। मेरा मतलब...खाना शुरू करने से है वरना वो तो खा ही नहीं रही थी। '
_ 'तो फिर खिला न बैठकर , जा कहा रहा है
'खीर लेने। खीर के डोंगे की जगहमैं दूसरा डोंगा गलती से रख लाया। '
'थोड़ी खीर हमको भी टेस्ट करा ना । '
'हां-हां कराऊंगा।' की हने के साथ भी भूपत ने कदम आगे बढ़ा दिए।
अभी वह दो कदम ही चल पाया था कि डोंगे में रखा फोन बज उठा।
उसके हाथ कप गए।
डों गा , हाथों से छूटते-फूटते बचा।
दिल उसे अपने हलकी में घजूता महसूस हो ने लगा । धड़कनें हथौड़े की तरह ब जने लगीं।
डोंगा पकड़े व ह कंपकंपाती टांगों से तेजी से अग्रसर हुआ।
टेलीफोन था कि बजे चल्जा रहा था।
दोनो गार्ड चौंके।
'ऐई ठहरो! ' एक गार्ड हाथ उठाकर चिल्लाया।
भूपत को लगा जैसे कोई उसकें जिस्म से उसके प्राण खींचकर बाहर निकालने का प्रयत्न कर रहा हो।
वह अपनी जगह इस तरह का ठ होकर रह गया मानो उसका तमाम जिस्म एकाएक जादू के
जोर से पत्थर का बना दिया गया हो।'
उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की
नीचे।
टेलीफोन अभीभी बज रहा था ।
उसकी घंटी की आवाज उसके दिमाग में भयानकी धमाकों की तरह टकरा रही थी।
दोनों गार्ड तेजी से चलते हुए उसके निकट पहुंचे। उन्हें जो शंका थी व ह सच नि कला। टेलीफोन निश्चित रूप से डों गे के अन्दर से बज रहा था।
भूपत की स्थिति रंगे हाथों पकड़े गए चोर जैसी ही थी।
पसीने-पसीने हो रहा था बह और उसके चेहरे पर राख जैसी सफेदी फैल गई थी।
तो खीर लेने जा रहा है ?' एक गार्ड अपनी गन कंधे पर रखता हुआ गुर्राया।
वह इस प्रकार खामोश खड़ा रहा जैसे उसके मुंहमें जुबान ही न हो।
खीर घंटी वाली लगती है। ' दूसरे गार्ड ने फिकरा कसा।
पहले वाले गार्ड में हाथ बढ़ा कर डोंगे का दक्कन हटा दिया। .
डोंगे के अन्दर रखा टेलीफोन साफ नजर आने लगा।
तो यह है वह खीर जिसे तुम गुपचुप-गुपचुप पका रहे थे... क्यों ?'
भूपत को ऐसा लग रहा था कि किसी तरह जमीन फट जाए और वह उसमें समां जाए। उसने बोल ने की कोशिश जरूर की मगर उसके मुंह से बोल न फूट सका।
कमरा बन्द कर और बड़े मालिकी के सामने इसे पेश कर दे वरना कोई बात अगर हो गई तो हम दोनों को सजा मिलेंगी। ' दूसरा गार्ड निर्णायकी स्वर में बोला।
'नहीं-नहीं..। ' भूपत यकायकी ही गिड़गिड़ाने लगा- ' ऐ सा गजब मत करो। मालिकी मुझे नौकरी से निकाल देंगे। मुझ पर दया करो! '
'तेरे पर दया की तो हम नौकरी से हाथ धो बैठेंगे।'
किसी को पता नहीं चलेगा। मुझे जाने दो। ' उसने आगे बढ़ना चाहा किन्तु आगे वाले गार्ड ने उसका कॉलर पीछे से थाम लिया। फिर उसके गिड़गिड़ाने का गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ! वह
उसे माणिकी देशमुख के सामने पेश करके ही माना।

रंजीत लाम्बात माम तैयारियों के साथ अपनी कार ड्राइव करता माणिकी देशमुख की विला की ओर बढ़ता चला जा रख था।
कार की गति सामान्य थी और वह सिगरेट के कश लगाने के साथ व्हि स्की की बोतल से चूंट भी
भरता जा रहा था। कई बार उसने लम्बे-लम्बे चूंट भरे।
हल्का नशा भी हो चला था उसे।
आगे मोड़ आया। मोड़ काटने के बाद सड़की वीरान नजर आने
लगी।
अचानक।
अचानकी ही पीछे से एक कार उसकी कार को ओवरटेकी करती हुई निकली। उसकी खिड़की से एक गन की बैरल झांकी रही थी।
गन के दहाने ने आग उगलनी शुरू कर दी।
दनदना ती हुई गोलियां उसकी कार की वि न्ड स्की री न को छलनी करती चली गई । अगर वह फिरती से झुकी न गया होता तो अभी तक उसकी
लाश कार में पड़ी होती क्योंकि गोलियां उसका भेजा उड़ा देने में किसी भी प्रकार की देरी न करतीं।
उसने नीचे झुकने के साथ ही साथ ब्रेकी भी लगा दिए थे।
उसकी कार ची-चीं की ध्वनि , करती घिसटती चली गई । आक्रमणकारी कार से अभी भी फायरिंग जारी थी, जबकि वह कार आगे बढ़ती ही जा रही
थी।
उसने फुर्ती से कार -हल की , अपनी साइड का दरवाजा खोला और गन सीधी करता हुआ सड़की पर लुढ़की आया।
दूर होती आक्रमणकारी कार को लक्ष्य करके उसने भी गोलियां बरसानी आरंभ कर दी।
स्वचालित गन से गोलियों की बाड़ छूटी और आगे वाली कार के दाहिने पहिए का काम तमाम हो गया।
वह कार बुरी तरह लड़खड़ाई। उलट ही जाती , अगर उसके ड्राइवर ने अपने कुशल संचालन से बचा न लिया होता।
फिर भी संतुलन बिगड़ने से बचाने की कोशिश में का र सड़की के किनारे के खंभे से भिड़ गई।'
लाम्बा निरंतर कार को दिशा में गोलियां बरसाए जा रहा था।
कार के अन्दर से थोड़े से अन्तराल के बाद कई गनों के दहाने झांककर गोलियों का जवाब गोलियों से देने लगे। लाम्बा को अपनी कार की ओट में पोजीशन संभालनी पड़ी।
दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं।
दुश्मन पक्ष फ्रट पर युद्ध करने वाले सैनिकों की भांति नपी-तुली फायरिंग कर रहा था।
लम्बा को लगा कि वह पुलिस के आने पर भाग नहीं सकेगा। इसलिए उस खेल को शीघ्र ही समाप्त कर देने के लिए उसे अगला कदम उठाना पड़ा।
यूं भी उसे देशमुख की बेटी को उसके विल से निकालने की बहुत जल्दी थी।
__ वह कोहनियों के बल रेंगता हुआ कार के दरवाजे के समीप पहुंचा और फिर अंदर से उसने एक बड़ी-सी खतरनाक आकार की गन निकाल ली।
गन को लोड करके वह सड़की पर फैलता हुवा पोजीशन लेने लगा।
सामने से चलने बाली गोलियां उसकी कार की बॉडी से टकरा रही थीं।
उसने कार को लक्ष्य लेकर गन का ट्रेगर खींचा।
यूं लगा जैसे गन से प्रक्षेपास्त्र छूटा हो ।
पलकी झ पकते आग का गोला दुश्मन की कार से टकरा गया
विस्फोट !
विस्फोट हुआ और विस्फोट के साथ ही दुश्मन की कार के परखच्चे उड़ गए। कार आग के शोलों में लिपटी हुई हवा में उछलने के बाद टुकड़ों में विभक्त होती हुई नीचे आ गिरी।
 
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पीटर...मेरे हाथ में एक रिमोट है।

'रिमोट ?' इसबार पीटर चौंका।'

'हां...रिमोट। रिमोट का एक बटन ऐसा है जिसको-दबाते ही तेरे बदन के नन्हे-नन्हे टुकड़े मलबे के साथ इस तरह बिखर जाएंगे कि तेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा।'

'एक रिमोट से इतना कुछ ?'

' हां...इतना कुछ।'

'लेकिन...?'

'पीटर...तू बारूद के देर पर बैठा है।'

'ब...ब...बारूद का देर?'

'हां...बारूद का देर। देख...तेरी जुबान भी लड़खड़ाने लगी है।'

'ब...बारूद की ढेर किधर हे ?'

'तेरी कोठी के अंदर। वहां जहां तू राजा इन्द्र की तरह अप्सराओं की गोद में पड़ा है।

अफसोस.. अप्सराएं भी गेहूं के साथ पिस जाएंगी।'

'देख मजाक मत कर।'

'मजाक...अच्छा ले, तुझे नमूना दिखाता हूं। अभी मैं एक बटन दबाऊंगा। तेरी कोठी का बायीं ओर वाला हिस्सा गत्ते के डिब्बे की तरह उड़ जाएगा।'
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दूध-सी गोरी पूनम लम्बे कद की दिलकश , दि लफरेब , ग्लै मरस और बेहद सैक्सी नवयुवती थी। अट्ठारह साल की उम्र और टूटकर आया यौवन उससे संभाला नहीं जा रहा था।

स्लीव लैसब नियान और टाइट जींस। हाई हील की सैडिलें, खुले बा ल , हल्का मेकअप। टाइट जींस से लम्बी आकर्षकी टांगों का आकार स्पष्ट होता था। नितम्बों का सुडौल आकार दिखाई देता था और स्लीव लैसब नियान से मांसल बांहों की चमकी के अतिरिक्त उन्नत वक्षों का कम्पन। वक्ष काफी उन्नत थे। उन्हें बनियान के अतिरिक्त चोली जैसा कोई- भी बंधन हासिल नहीं था।

हाहाकारी रूप था उसका।

जो देखता था , वही उस चूरा उनमुक्त यौवन का दीवाना-सा हो जाता था।
लेकिन !

रंजीत लम्बा वो शख्स था। जिसे पूनम का हाहाकारी रूप भी पिघला नहीं सका था। फौलादी जिस्म के स्वामी रंजीत की ओर पूनम खुद खिंचकर पहुंची।

मानो कोई जादू था जिसने उसे रंजीत लाम्बा के फ्लैट में उसके बैडरूम तक पहुंचने को विवश कर दिया था।

रंजीत अभी शूज उतारकर उसकी ओर घूमा ही था कि उसने बनियान उतारकर एक ओर को उछाल दी।

कमर से ऊपर वह एकदम नग्न हो गई। उसके -तने हुए उन्नत उरोज स्पष्ट नजर आने लगे।

रंजीत ने देखा।
देखते ही उसे लगा जैसे उसके दिमाग में सैकड़ों आंधियों का शोर जुड़ गया हो। उसकी नजर संगमरमरी जिस्म के सुडौल आकार पर अटककर रह गई।

उन्नत वक्ष। पतली कमर। सपाट पेट और अन्दर को धंसी हुई नाभि।

रंजीत की शिशुओं में रेंगते खून में तूफानी तेजी आ गई। वह भी जवानी के खतरनाकी मोड़ से गुजर रहा था। उससे दूरी असहनीय हो गई।'

एक ही छलांग में वह बैड पर जा गिरा।'

पूनम उसके निचे दबकर रह गई।

बेहद सैक्सी थी वह।

उसने फुर्ती के साथ रंजीत की शर्ट के बटन खोलने का प्रयास किया। वह सिर्फ एक ही बटन खोल सकी। शेष बटन उसने खोलने के स्थान पर एक झटके के साथ तोड़ डाले।

अगले ही पल शर्ट रंजीत लाम्बा के पथरीले जिस्म से अलंग हो चुकी थी। '

प्रतिदिन जिम में चार घंटे की सख्त मेहनत-करने वाले रंजीत लाम्बा का फौलादी सीना और ठोसबों हों की उभरी हुई मसल्स बिकुल ही-मैन जैसी नजर आ रही थीं।

प्रशंसित दृष्टि से उसके मजबूत सीने को निहारती हुई पूनम ने अपना कोमल हाथ उसके कठोर सीने पर फेरा। उसके तन-बदन में आग लग गई। उसने एक झटके के साथ पूनम को अपनी बाहों में भींच लिया।'

कामुकी कराह उसके मुख से निकल गई। लता के समान लिपट गई वह रंजीत से।

रंजीत ने उसके तपते हुए अधरों को चूसना आरंभ कर दिया। उसका एक हाथ पूनम के विभिन्न अंगों से खेलने लगा।
पूनम के मुख से रह-रहकर कामुकी सिसकारियां उमरने लगी।उत्तेजकी स्थिति भड की और पूनम ने रंजीत के जिस्म से शेष वस्त्र भी हटाने आरंभ कर दिए। शीघ्र ही दोनों निर्वसन अवस्था में एक-दूसरे की गर्म चिकनी बांहों के आलिंगन में समा गए।

गर्म सांसें घुलने लगीं।
अधरों से अधर बारम्बार टकराने लगे। सांसों की रफ्तार में तेजी आने लगी। रंजीत की उत्तेजना भड़की।
उसने पूनम के सांचे में ढले जिस्म के अलग-अलग हिस्सों को चूम-चूम डाला उन चुम्बनों ने पूनम को चरम सुख की अनुभूति तक पहुंचा दिया।

आत्मविभोर हो उसने नेत्र बन्द कर लिए।

फिर!
फिर वह बदनतोड़ ढंग से रंजीत को सहयोग करने लगी।

लगभग आधे घंटे के धमाल के उपरान्त दोनों अपनी-अपनी उफनती हुई सांसों को काबू में पाने की कोशिश करने लगे।

रंजीत पूनम के ऊपर ही ढेर-सा हो गया था। \

धीरे-धीरे तनाव में शिथिलता आई और शिथिलता के पश्चात् सम्बन्ध विच्छेद।

रंजीत पूनम के ऊपर से हट गया। पूनम ने अपने शरीर पर चादर खींच ली। वह प्रशंसित दृष्टि से रंजीत को निहार रही
थी।

उस समय उसके लिए रजीत सबसे प्यारा था। उसकी आखों के भावों को देखकर लगता था कि वह रंजीत के लिए कुछ भी कर सकती थी।

अपनी जान भी दे सकती थी।

उसने करवट बदली और करवट बदलकर वह रंजीत के सीने पर आ गई।

'ऐसे क्या देख रही हो?' रंजीत ने मुस्कराते हुए पूछा।

'देख रही हूं कितना प्यार है तुम्हारे अन्दर...। ' वह उसके सिर के बालों में उंगलियां घुमाती हुई बोली- कितने प्यारे हो तुम।'

'तुमसे ज्यादा प्यारा नहीं।'

'डरती हूं।

'किसबात से?'

'प्यार से। कहीं हमारा प्यार टूटकर बिखर न जाए।'

'हमारा प्यार कभी नहीं बिखर सकता। कभी नहीं टूट सकता।'

'पपापा को अगर किसी ने खबर कर दी तो'

' तो मैं उसका शुक्रिया अदा कर दंगा, क्योंकि वहमेरा रास्ता आसान कर देगा। फिर मैं आसानी से जाकर तुम्हारे पप्पा से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा।'
'हाथ मांग लूंगा..! ' पूनम मुंह बनाकर बोली- ' उनके सामने जाने की भी हिम्मत है तुममें ?'

'प्यार करने वाले हिम्मत का खजाना हमेशा अपने पास रखते हैं।'

'तुम भूल रहे हो कि मेरे पप्पा कोई साधारण आदमी नहीं।'

'जानता हूं वह साधारण आदमी नहीं, लेकिन हैं तो मेरे जैसे ही दो हाथ-पांव वाले ?'

'उनमें और तुममें बहुत फर्की है।'

' हां...बहुत फर्की है। वो माणिकी देशमुख कहलाते है और मैं उनका कल आया एफ्लाई रंजीत लाम्बा।'

' बिल्कुल ठीकाअभी तुम्हें नौकरी करते दिन ही कितने हुए हैं। अभी तो तुम्हें किसी तरह से उन्होंने समझा भी नहीं होगा।'

' समझते तो वो मुझे अच्छी तरह हैं।'

' अच्छा! क्या समझते हैं ?'

रंजीत उसकी ओर देखता हुआ रहस्यमय ढंग से मुस्कराया। वह अपनी नियुक्ति के विषय में पूनम को बताना नहीं, चाहता था।वह यह नहीं बताना चाहता, था कि उसे माणिकी देशमुख ने विशेष आग्रह सहित बुलाया था। देखमुख ने उसे अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए एक मोटी रकम के बदले में किराए पर हासिल किया है। वह पूनम को यह भी नहीं बताना चाहता था कि उसका निशाना की तिना सटीकी है। कैसे-कैसे खतरनाकी हथियारों का प्रयोग उसे आता है और किसी को भी बकरी की तरह काट डा ल ना उसके लिए महज एक मजाक जैसा है।

वह यानी रंजीत लाम्बा एक बेहद-बेहद खतरनाकी हत्यारा है। जिसके पास इतनी कलाएं हैं कि वह नंगे हाथों भी सहज ही हत्या जैसा जघन्य अपराध कर सकता है।

वह बताना नहीं चाहता था कि वह उसके बाप माणिकी देशमुख का ऐसा अचूकी प्रक्षेपास्त्र था जो अपने लक्ष्य पर हमेशा पहुंचता था।

'तुमने बताया नहीं ?' पूनम ने उसके होंठों पर चुम्बन अंकित करते हुए पूछा।

' बताऊंगा।' फिलहाल तो मैं कुछ और ही सोच रहा हूं।'

'क्या ?'

नाकी पर उंगली रखकर उसे शांत रहने का संकेत करते हुए रंजीत ने धीरे-से उसे अपने ऊपर से उठाया। पेंट टांगों में फंसाकर बिना आहट किए चढ़ाई और फिर वह दबे पांव कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ गया। जैसे बिल्ली अपने शिकार की ओर बढ़ती है , ठीकी उसी प्रकार वह दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था।
दरवाजे के निकट पहुंचकर उसने बाहर की आहट ली।

पूनम विचित्र दृष्टि से बैड पर बैठी-बैठी उसकी कार्यवाही को देख रही थी।

फिर इससे पहले कि वह एक झटके के साथ दरवाजा खोलता , तेजी से दूर होती पगचापों की आवाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी।

उसने जल्दी से दरवाजा कोला और बाहर निकल गया।

बाहर कदम रखते ही पिट की हल्की ध्वनि के साथ उसे तेजी से कटती हवा का अहसास हुआ और पीछे दीवार का थोड़ा-सा प्लास्टर टूटकर गिर गया।

साइलेंसर युक्त गन की खामोश और खतरनाकी कार्यवाही को समझते ही वह जिस फुर्ती से बाहर निकला था , उससे भी कहीं अधिकी फुर्ती दिखाता हुआ वापस कमरे में लौट गया।

उसके लौटते न लौ टिते दुसरी गोली दरवाजे की प्लाई फाड़कर अंदर धंस गई।

वापसी के साथ ही उसने दरवाजा बन्द करके सिटकनी लगा दी।

दरवाजा बंद करने के फौरन बाद वह छलांग लगाकर अपनी होलस्टर बैल्ट के निकट जा पहुंचा।

अगले ही पल 38 कैलिबर का काला रिवाल्वर उसके हाथ में था।

मौत को बहुत करीब से महसूस किया था

उसने।
-
उसके रौंगटे खड़े हो गए थे। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था !
उस समय उसकी आंखें फुर्ती से दाएं-बाएं घूम रही- थी। कान बा हर की हर एक आहट को सुनने को तत्पर थे।
वक्त धीरे-धीरे गुजरता रहा।

पूनम उसकी हालत देख भयभीत स्थिति में सिकुड़ी- सिमटी बैठी रही। उसका दिल भी जोर-जोर
सें धड़की रहा था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तमाम खतरा उसी कमरे में आकर समा गया था।
'की ... क्या हुआ ?' पूनम ने डरते-डरते पूछा।

'कुछ नहीं।'

'कुछ तो?'

'अभी तुम खामोश रहो।'

'लेकिन...!'

'फार गॉड सेकी .च.. प्लीज ... शटअप। '

पूनम ने अपने होंठ भींच लिए। खामोशें हो गई वह।

बाहर ही आहट लेता रंजीत लाम्बा सिटकनी हटाकर विद्युत गति से बाहर निकल गया।
पूनम हाथ उठाकर उसे रोकती ही रह गई।उसे बहुत ज्यादा घबराहट हो रही थी। एक-एक पल उसे एक-एक साल जैसा प्रतीत हो रहा था।
कुछ देर बाद निराशा से भरा रंजीत वापस लौटा।

क्या हुआ? कौन था वह ?' उसे देखते ही पूनम ने आतुर स्वर में उससे पूछा।

'जो भी था , था बेहद चालक। उसने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि उसे पकड़ने की कोशिश शुरू हो चुकी है। इसीलिए वह वक्त से पहले ही सावधान होकर दरवाजे से हट गया।'

दरवाजे के बाहर वह कर क्या रहा था ?'

' उसने हमें एक साथ देख लिया है।

' अब क्या करेगा वह ?'

'क्या मालूम... क्या करेगा।'

'मैं यहां से जाऊं ?' पूनम डरकर बोली।

'अभी नहीं। मुझे जरा सोच लेने दो।'

'कहीं उसने जाकर पप्पा को -बोल दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगी।'

' इस कंपाउण्ड में बाहर का आदमी तो आने से रहा।' पूनम की बात पर ध्यान न देते हुए वह बड़बड़ाया- ' और बाहर का आदमी अगर होगा भी तो देशमुख साहब का ही दुश्मन होगा। लेकिन देशमुख साहब के दुश्मन को आउट हाउस के इस हिस्से में क्क्त बरबाद करने की क्यो जरूरत थी ?'

'तुम कहना क्या चाहते हो?'

'यही कि जरूर वह अन्दर का ही आदमी था , मगर उसने गोली क्यों चलाई ?'

'गोली ?' पूनम ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

'हां ..गो ली चली थी। साइलेंसर वाली गन से।'

'ओह गॉड!'

'मतलब साफ है। अगर वह देशमुख साहब का दुश्मन होता तो खुल्लम-खुल्ला आया रहा होता। उसे साइलेंसर का प्रयोग करने की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन अन्दर का आदमी जो मित्रघात लगाए हो गा उसे साइलेंसर की जरूरत थी। वह जानता था कि मैं किस तरह का आदमी हूं और मुझसे कैसे बचा जा सकता है। इसीलिए उसने बड़ी फुर्ती से अपने डिफेंस के लिए ऑफेंस का तरीका अपनाया।'

'मगर अन्दर का आदमी कौन हो सकता है

'कोई पहरेदार ?'

'गार्ड कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।'

'चालाकी गार्ड ऐसा कर सकता है।'

'किसलिए?'

'तुम्हें ब्लैकमेल करने के लिए । ' 'मुझे ?'

'हां... तुम्हें।'

' लेकिन मुझे ब्लैकमेल करके उसे क्या हासिल हो- सकता है भला?'

'तुम्हारे पास तो बहुत बड़ी दौलत है। तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो जिसके पास दौलत का शुमार नहीं है। तुम दौलत का कोई भी हिस्सा ब्लैकमेलर पर लुटा सकती हो। उसके अलावा तुम हुस्न की दौलत से भी मालामाल हो। ब्लैकमेलर तुमसे इस दौलत की डिमाण्ड भी कर सकता है।'

'उसकी मौत आई होगी तो वह ऐसा जरूर करेगा। ' पूनम का चेहरा क्रोध में तमतमा उठा।

'सो तो है...आखिर देशमुख साहब की बेटी हो।'

'अब मैं जा रही हूं।' 'लेकिन मेरा क्या होगा ?'

'कुछ नहीं होगा सब ठीकी हो जाएगा।'

'फिर कब मिलोगी?'

' पहले छानबीन करलूं उसके बाद बताऊंगी।' इतना कहकर पूनम ने उठकर कपड़े पहने। ड्रेसिंग टेबल के सम्मुख पहुंचकर बा ल संवारे और फिर वहां से चली गई।

रंजीत लाम्बा ने अपने लिए एक सिगरेट सुलगा ली।

वह उस काण्ड की वजह से चिंतित हो उठा था।

उसे मालूम था कि माणिकी देशमुख की बेटी से आशनाई करना नंगी, तलवार पर चलने के बराबर है। लेकिन वह दिलो के हाथों मजबुर था।माणिकी देखमुख का लैफ्टी नेंट था कोठारी।

गंजी खलवाट खोपड़ी वाले कोठारी की आँखें छोटी , नाकी फैली हुई ओर जबड़ा भारी था। चालीस के पेटे में पहुंच चुके कोठारी को देखमुख की प्रत्येकी परेशानी का हल ढूंढना होता था।

देशमुख को कब कहां जाना है, क्या करना है, क्या नहीं करना है, हर बात की जिम्मेदारी कोठारी की ही थी।

देखमुख से मिलने वाले अस्सी प्रतिशत कोठारी के माध्यम से ही देशमुख से मिल पाते थे।

उस समय कोठारी के केबिन में उसके सामने कोयले जैसा काला जोजफ बैठा था। जो जफ माणिकी देशमुख की बेटी ' पूनम देशमुख का शैडो था।

पूनम की सुरक्षा का भार माणिकी देशमुख ने उसकी चुस्ती , फुर्ती , शक्ति और निशाना देखकर ही उसे सौंपा था।
काले चेहरे के बीच चमकती उसकी सफेद आंखें बेहद खतरनाकी नजर आती थीं।

उसके सामने बैठा कोठा री बेचैनी से सिगरेट फूंकी रहा था । वह बार-बार जोजफ की ओर
आवेश्वास ' भरी दृष्टि से देखता और फिर अपना बाया हाथ अपनी गंजी खोपड़ी पर फेरने लगता।

जोजफ अपलकी उसकी ओर देख रहा था।
उसने काली जर्किन और काली ही पेंट पहनी हुई थी। जर्किन- चेन आधी बंद थी। बायीं बांह उसे जिस ढंग से थोड़ा उठाकर रख्नी पड़ी थी उससे रिवाल् वर का आभास स्पष्ट हो रहा था। उससे वाकफियत रखने वाला कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि उसके बगली होलस्टर में छोटे आकार की कोई गन है।मैन क्या सोचता... अपुन झूठ नहीं बोलता , एकदम सच है...सच है! क्या ! 'जोजफ कोठारी की ओर अपनी खतरनाकी आँखें से घूरता हुआ बोला।

कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।
उसने घूरकर जोजफ की और देखा! कम्प्यूटर जैसा उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।

'क्या सोचता मैन क्या ?'

उसने सिगरेट का धुवां जोजफ के चेहरे की तरफ फूंका , फिर ठहरे हुए स्वर में बोला- ' तुमने बराबर देखा था ना ?'

'बरोबर! बरोबर देखा मैन! '
'वह लाम्बा ही था ? रंजीत लाम्बा ?'

डेफनेटली ... रंजीत लाम्बा ! मिस्सी के साथ आउट हाउस में रंजीत लाम्बा ही था।'

'लेकिन मुझे नहीं लगता कि लाम्बा इस तरह का दुस्साहस करेगा।'

'अपुन उसके ऊपर फायर किया मैन। गोलियों के निशानने उधर होयेगा जरू र । जाकर चैकी कर लेना।'
कोठारी को लगा , वह सच कह रहा था।

'तुमने...तुमने रंजीत लाम्बा पर फायर किया ? ' उसने - हैरत से जोजफ की ओर देखा।

' हां ...एक नेई तीन-चार फायर किया। क्या!'

'तीन-चार फायर।'

'यस।'

' लेकिन मुझे तो एक की भी आवाज सुनाई नहीं पड़ी।'

'फायर का आवाज जोजफ चाहेंगा जभी सुनाई देने का , क्या! जोजफ नेई चाहेंगा तो नेई सुनाई पड़ेगा।'

क्यों ?' कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।

जोजफ ने जर्किन के अन्दर हाथ डालकर बगली होलस्टर से रिवाल्वर और साइलेंसर दोनों निकालकर कोठारी के सामने टेबल पर रख दिए।

'तो क्या रंजीत लाम्बा की कहानी खत्म हो गई ?' रिवाल्वर और साइलेंसर की ओर हैरत से देखते हुए उसने पूछा।

'नेई मैन ... नेई।'

' लेकिन तुम्हीं तो कह रहे थे कि तुमने उसके ऊपर तीन-चार फायर किए ?

__'अपुन वो फायर उसको निशाना बनाने के वास्ते कम-और सैल्फ डिफेंस में जास्ती किया। क्या!

'सेल्फ डिफेंस ?'

'बरोबर।'

'मैं समझा नहीं?'

'मैन... रंजीत लाम्बा को तुमजानता के नेई, वो जितना जमीन के ऊपर है उतनरइच जमीन के अन्दर भी है।'

'तो?'

'अपुन का जासूसी वो समझ गया।' 'कैसे ?'

__'वो कितना डेंजर आदमी होता मैन , क्या तुम नेई जानता? वो उड़ती चिड़िया के पर गिनने को सकता। अपुन भी समझ गया कि वो समझ गया है और दरवाजे की - तरफ बढ़ रहा है। वो दरवाजे के की-होल के सामने से हट को दरवाजे की तरफ बढेला था।'

' फिर?'

'अपुन को इम्मीडिएटली भागना पड़ा और सैल्फ डिफेंस के लिए अटैकी , बिकॉज मैन अटैकी इज द बेस्ट पॉलिसी ऑफ डिफेंस। अपुन फायर किया और भाग निकला।'

' उसने फायर नहीं किया ?'

'वो नंगा होएला था , फायर कौन-सा गन से करता ?'

' उसने तुम्हें रोका भी नहीं ? '

' नेई। वो अपुन को रोकने की पोजीशन में नेई था। उसने गोलियों से बचने का था।'

'तुम्हारे पीछे बाद में तो आ सकता था ?'

'मैन अपुन अंधेरे-अंधेरे में भागेला था। क्या! इस वास्ते वो अपुन कू देख नेई पाया होएंगा। अगर उसने देखा होता तो अभी तक अपुन का गर्दन उसके हाथों में होता।'

'हूं। 'कोठारी ने विचारपूर्ण हुंकार भरी।

' मैन...खबर देशमुख साहब तक फौरन पहुंचा देने का है, क्या।'

'चोजफ !'

'यस मैन ?' जोजफ ने सशंकी द्रस्ती से उसकी ओर देखा।

'देशमुख साहब तक इस खबर को सोच-समझकर ही पहुंचाया जाएगा।

'कायका वास्ते ?'

'खबर खतरनाकी है , इस वास्ते। '

'खबर खतरनाकी है इस वास्सेइच इस खबर को गोली की तरह देशमुख साहब तक पहुंचना चाहिए।'

'नहीं जोजफ. ..हालात को देखना और समझना पड़ेगा।'

'मैन इसमें देखने और समझने का क्या है ?'

__ ' है.. .बहुत कुछ है। तुम माणिकी देशमुख को अभी जानते नहीं हो। तुम पूनम देशमुख के शैडो हो, सिर्फ उसे ही जान सकते हो, उसके बाप को नहीं!'

'खबर देशमुख साहब तक पहुंचना जरूरी

'क्यों जरूरी है?'

' इस वास्ते जरूरी है, क्योंकि कल को कोई बात हुई और देशमुख साहब ने अपुन से मिस्सी बेबी के बारे में सवाल किया तो अपुन-अ पुन का ड्यूटी का बारे में क्या बोलेंगा ?'

'तुम्हें कुछ भी बोलने की जरूरत नही आएगी। तुम्हारा जवाब मैं दे लूंगा। '

'नेई मैन ... तुमेरे जवाब देने से अपुन का बात बनने का नेई। '

'मतलब?'

'अबी अगर देशमुख साहब को खबर मिलेंगा तो अपुन सस्पैक्ट बन जाएंगा।'

_ ' नहीं बने जाओगे। तुमे खामोश रहो। मैं वक्त और हालात को देखकर इस खबर को देशमुख साहब तक पहुंचा दूगा।'

'वक्त और हालात ?'

'हा।'

' अपुन का माइंड काम नेई करेला है।'
'तुम्हें समझने की जरूरत नहीं है।'

जोजफ खामोश होकर कोठारी का मुंह ताकने लगा। उसके चेहरे से स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि उसे कोठारी का निर्णय किसी भी तरह पसन्द नहीं आ रहा था।

_ 'फिर अपुन का वास्ते क्या काम करने का होता मैन ?' उसने , दबे हुए स्वर में पूछा।

___ 'कुछ नहीं, सिर्फ अपना काम करते रहो और मुझे रिपोर्ट देते रहो ।'

'बात समझ में नहीं आयी।'

' मैं कह चुका हूं, तुम्हें कुछ समझने की जरूरत नहीं है । ' गंजे कोठारी ने आँखें तरेरते हुए उत्तेजित स्वर में कहा।जोजफ की आंखों के भाव एकाएक ही बदल गए, लेकिन अगले ही पल उसने अपने ऊपर काबू कर लिया। वह कोठारी की ताकत से वाकिफ था। जनिता था कि माणिकी देशमुख का लैपटीनेंट कहलाने वाला वह गंजा लाखों लोगों में से चुनकर निकाला गया है। बड़े-बड़े दादे उसे झुककर सलाम करते हैं।

वह पहले कोठारी की आंखों में अपलकी झांकता रहा, उसके बाद धीरे-धीरे उसकी पलकें झुकती चली गई।

वह कम खतरनाकी नहीं था मगर कोठारी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
उसने किसी सैनिकी की तरह ऐढ़ी के बल अपने-आपको विपरीत दिशा में घुमाया और फिर वह केबिन से बाहर निकलता चला गया।

कोठारी विचारपूर्ण मुद्रा में कुर्सी में फंसा बैठा रहा।

उसने सिगरेट के आखिरी टुकड़े से नई सिगरेट सुलगाने के बाद उस टुकड़े को ऐश-ट्रे में बुझा दिया। वह जोजफ द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से बहुत ज्यादा फिक्रमंद था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरह उस रिपोर्ट को आगे बढ़ाए।

उसे मालूम था कि उस रिपोर्ट के आगे बढ़ते ही यानी देशमुख तक पहुंचते ही भूचाल आजाना था।

वह सिगरेट के कश पे कश लगता हुआ विचारों में उलझकर रह गया।
Baarood ka dher…

Kahaanee ka title apne andar aik chetaavanee liye hue he… aur pehle hee bhaag se lekhak ne kayaa khoob rang jamayaa he… Barood se bharpoor… yeh update khatam hote hote kayee dvaar khol gayaa… kayee naye prashan saamne le aayaa… saath saath naram garam jazbaat ka tadkaa…

Aik thriller prefix story kee yahee sab se bade visheshata hotee he ke who pehle bhaag se hee phatakon ko apne aap se bandh letee he… phir bhale hee paathak apnaa raastaa badalnaa bhee chahen to nahee badal sakte…

Apne kalam ka rang khoob jamaya he lekhak sahib ne… mein utsahik to hun hee aage padhne ke liye magar saath mein yeh bhee kahun gaa ke… kahaanee bohat khuub… lekhnee bohat achchhi… kalam ka ho jor aur jayaadaa… khuub chale… khuub likhe… :wave3:
 

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