Thriller बारूद का ढेर(Completed)

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इधर!
करवट बदलते लाम्बा को अपनी जान बचानी मुश्किल हो रही थी। वह तेजी से करवट बदलता डूबा सड़क के किनारे की ओट में पहुंच जाना चाहता था। तभी उसके हाथ से खून की एक बोतल निकल गई।
उसने झपटकर- बोतल पर हाथ डालना चाहा लेकिन इसी बीच एक गोली बोतल से टकराई और बोतल छार -छार होकर बिखर गई।
सड़की पर खून ही खून फैल गया।
लाम्बा ने क्रोध में उस दिशा में देखा जिस दिशा से चलने वाली गोली ने खून की बोतल जोड़ी थी। उसे कार की खिड़की से झांकता हुआ जोजफ नजर आया।
अगले ही पल उसके पिस्तौल का ट्रेगर दब गया। जोजफ अगर फुर्ती से हट न गया होता तो पिस्तौल की गोली उसका भेजा बिखरा देती।
लाम्बा उस समय बच निकलने की फिरंकी में
था।
लड़ने के लिए बाद में उसके पासब हुत वक्त था , तब तक वक्त नहीं था जब तक कि वह खून की बोतल डाक्टर को पहुंचा नहीं देता।
उस समय उसके पास वह खून की बोतल अपनी जान से भी ज्यादा कीमत रखती थी।
वह लुटकता हुआ सड़की के किनारे तक पहुंच गया था।
उसने अपनी पिस्तौल सामने की ओर खाली किया। वह तब तक फायरिंग करता रहा जब तक
कि पिस्तौल खाली नहीं हो गया।
पिस्तूल खाली होते ही उसने होल्सतर से रिवा ल्व र निकाल लिया और फिर बोतल संभालते हुए हॉस्पिटल की दिशा में दौड़ लगा दी।
वह सीधा रास्ते न जाकर फुलवारी के बीच कूद गया।
सीधा रास्ता खुली और साफ था।
उसे निशाना बनाया जा सकता था।
फुलवारी से होकर जब वह हॉस्पिटल के कम्पाउंड में दाखिल हुआ तो आते-जाते मरीजों में खलबली मच गई। एक हाथ में छून की बोतल , दूसरे हाथ में रिवाल्वर, बदहवास-सा आदमी।
वह जिस तरफ दौड़ता उस ओर काई-सी फूट जाती।
जैसे ही उसे पूनम को देखने वाला बाकुर मिला , उसे खून की बोतल सौंपकर वह वहां
से तुरन्त भाग निकला , क्योंकि पुलिस सायरन की कर्कश ध्वनि वहां गूंज उठी थी।
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'जानते हैं आप , वो खून की बो तल जो सड़की पर चकनाचूर हुई पड़ी है , किसके लिए. थी? जानते हैं ? ' कोठारी माणिकी देशमुख की ओर देखता हुआ तीखे स्वर में बोला- वो बोतल जो
आपकी गोली का शिकार बनी , आपकि बेटी के लिए लेकर आया था लाम्बा । वह सिर पर कफन बांधकर पूनम को बचाना चाह रहा था और आप...! आप अपनी बेटी की जिन्दगी की रहमें कांटे चुन रहे थे! कांटे! '
माणिकी देशमुख सकते की हालत में खड़ा अपने ले फ्टीनेंट की चुभती हुई बातों को सुन रहा था।
जसब हादुर इंसान ने अपनी जान की बाजी लगा दी पूनम को बचान में। वहमौत के दहाने से गुजरकर भी पूनम की जरूरत का खून डाक्टर को पहुंचाकर यहां से गया है।'
'खून. . .खून दिया जा रहा है उसे ?' देशमुख ने लड़खड़ाते हुए स्वर में पूछा।
__ 'हां...दिया जा रहा है खून मगर एक बोतल खून कम पड़ सकता है। उसबोतल का सूच जिसे आपने गोलियों से उड़ा डाला। '
_ 'खून...खून का बंदोबस्त कर कोठारी। फौरन!
'आदमी भेज दिया है लेकिन उसे आने में वक्त लग सकता है। अगर बोतल आने
में देर हो गई...अगर पूनम को कुछ हो गया तो उसके जिम्मेदार आप होंगे। सिर्फ आप
अपनी ओर तनी कोठारी की उंगली से देशमुख इस तरह घबरों गया जैसे कि उसके सीने की
ओर कोठारी , ने उंगली नहीं रिवा ल्व र तान रखी हो।
'कोठारी...मैंने समझा था कि लम्बा ...।'
___ ' हां....आप तो शुरू से ही उसे दुश्मन मानते चले आ रहे हैं । कैसे-समझा ऊं आपको कि पूनम के साथ जो कुछ भी घटा है वह किसी और की कार्यवाही है। अगर लम्बा ने ऐसा-वैसा कुछ करना होता तो वह पूनम को बचाने की जान तोड़ कोशिश कभी न करता।'
'ठीकी कह रहे हो।'
'यह अब समझ में आया। '
'ओह गॉड! यहमैंने सग कर डाला। '
'अब आपके पास पछताने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।'
'कोटारी -मुझे पर लानत-मलानत तू बाद में भेजता रहना-अभी. सिर्फ इतना मालूम करके आ कि पूनम कैसी है ?'
'वहां किसी को जाने नहीं दिया जा रहा है। चारों तरफ पुलिस ही पुलिस है। अफसोस इसी बात का है कि पुलिस को भी उसी नौजवान यानी लम्बा की तलाश है , ' जो घायल पूनम को लेकर वहां आया
और उसके लिए खून का बंदोबस्त किया। '
'अगर यह काम लम्बा का नहीं है तो फिर किसका है ?'
' इस बात को सिर्फ लम्बा ही जानता है। '
'तो फिर लम्बा की तलाश कर। मैं उससे फौरन मिलना चाहता हूं।'
'आप तो मिलना चाहते हैं लेकिन वह तो आप से मिलना नहीं चाहता होगा।' उसे खत्म करने के लिए आपने कोई कसर तो उठा नहीं रखी न।'
'वह सब गलतफहमी में हुआ ।'
' लेकिन आपकी गलतफहमी से वह तो वाकिफ नहीं।'
कोठार ... कुछ कर-कुछ कर! मुझे इस तरह परेशान मत कर।'
'सब से पहले तो आपको-अपने तमाम ऐसे आदमी हटाने होंगे यहां से , जो हथियार बंद हैं। '
'क्यों?'
'क्योंकि अगर उनमें से एक भी पुलिस के हाथ लग गया तो पुलिस आसानी से उसका मुंह
खुलवा लेगी। वक्ती तौर पर आप हॉस्पिटल के बाहर होने वाली फायरिंग के लिए जिम्मेदार ठहरा दिए जाएंगे। हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ है , मगर आपको आतकवादियों का साथी ठहराकर जेल में पहुंचाया जा सकता है।'
'ठीकी है , तूही कर यह काम। मैं पूनम को देखने जाता हूं।'
'अभी नहीं। अभी मैं चक्कर लगा लूं उसके बाद।'
'जल्दी जा कोठारी..जल्दी! '
कोठरी चला गया।
उसने हॉस्पिटल का पूरा चक्कर लगाया और वहां मौजूद अपने सभी आदमियों को वहां से हटा दिया।
उन्हें आगाह भी कर दिया कि उन्हें पुलिस की रेंज से दूर रहना है।
फिर वह वापस देशमुख के निकट पहुंचा।
'हट गए ?' उसे देखते ही देशमुख ने पूछा।
'हां।'
'अब चलें हम?'
' हां ...चलिए।'
माशिकी देशमुख बौखलाया हुआ-सा कॉरीडोर में बढ़ने लगा।
कोठारी उसके पीछे चल पड़ा।
एमरजेंसी वार्ड के विशेष चैम्बर के बाहर पुलिस ही!
पुलिस थी। उसी चैम्बर में पूनम का इलाज चल रहा
था।
ज्योंही देशमुख ने बताया कि पूनम उसकी बेटी है , पुलिस इंस्पेक्टर ने तुरन्त उसे घेर लिया। सवालों की झड़ी लगा दी।
वह जवाब देता-देता परेशान हो गया।

इसी बीच एक नर्स ने सूचना दी कि खून और चाहिए।
'कोठारी।' देश मुख उत्तेजित स्वर में चिल्लाया-खून कोठारी...खून! '
'मैं अभी बंदोबस्त करता हूं। ' कह ता हुआ कोठारी वंहा से जाने लगा।
तभी!इसी बीच एक नर्स ने सूचना दी कि खून और चाहिए।
'कोठारी।' देश मुख उत्तेजित स्वर में चिल्लाया-खून कोठारी...खून! '
'मैं अभी बंदोबस्त करता हूं। ' कह ता हुआ कोठारी वंहा से जाने लगा।
तभी!
एक कमजोर-सा भिखारी हाथ में खून की बोतल लिए वहां आपहुंचा-'बाबू साहब , यह खून की बोतल मुझे यहां पहुंचाने को दी है। किसी को खून चाहिए क्या ?'
पुलिस इंस्पेक्टर ने फौरन बोतल लेकर नर्स को दे दी और देशमुख को छोड़कर भिखारी को घेर लिया।
'खून की बोतल किसने दी तुम्हें ?' उसने संदिग्ध दृष्टि से भिखारी को घूरते हुए पूछा।
एक नौजवान ने दरोगा जी।'
'कौन था वह ?'
'नहीं मालूम।'
'तुम किसी का भी काम करने को तैयार हो जाते हो ?'
'नहीं साहब...उसने लालच दिया था। '
'कैसा लालच ?'
भिखारी ने अपने लबादे की जेब से सौ-सौ के मुड़े-तुड़े कितने ही नोट इंस्पेक्टर को दिखाए-'ये सब उस नौजवान ने दिए थे। उसने कहा था कि अगर मैने बोतल यहाँ पहुंचा दी तो किसी की जान बच सकती है।।
'वह नौजवान कहां गया ?'
' नहीं मालूम।'
देशमुख को अवसर मिला और व ह पूनम वाले चैम्बर में दाखिल हो गया। पूनम को खून की दूसरी बोतल लगाई जा रही थी।
पुलिस इंस्पेक्टर भिखारी से अन्य किसी प्रकार की जानकारी हासिल नहीं कर सका।
___ भिखारी से उसने नौजवान का हुलिया पूछा गे भिखारी ने बताया कि उसकी एक आंख में मोतिया है और दूसरी से सिर्फ काम चलाऊ वाला हिसाब है। इसलिए वह हुलिया नहीं बता सकता।
पुलिस कुछ न कर सकी।
आखिरकार भिखारी को छोड . देना पड़ा।
थोड़ी देर बाद चिंतित अवस्था में माणिकी देशमुख चैम्बर से बाहर निकला।

'कोठारी ! ' बहु कोठारी की ओर बढ़ता हुआ बोला -खून की चार बोतलें और मंगवा लो।'
'क्यों बॉस ... क्या दूसरी बोतल भी खत्म हो गई?'
'अभी नहीं।'
' फिर'
'सावधानी के लिए। मैं नहीं चाहता कि खून की कमी की वजह से मेरी बेटी को कुछ हो जाए। '
'एक अदमी गया हुआ है। '
' उसे कुछ हो सकता है। कहीं फंस सकता है वह इसीलिए दूसरा आदमी भेज दे। जल्दी कर।'
जो आज्ञा ।'
कोठारी दूसरा आदमी भेजने के लिए वहां से चला गया।
00श्याम दुग्गल बहुत बड़ा नेता था। उसे सुरक्षा के उच्च कोटि के साधन उपलब्ध थे। वह जानता था कि हिट लिस्ट में उसका ना म बहुत ऊपर था इसीलिए वह हमेशा सतर्की रहा करता था। वह जहां भी जाता , ब्लैकी कैट कमाण्डोज उसके साथ होते।

उसने कभी भी कमाण्डोज का घेरा पार करके बाहर निकलने की कोशिश नहीं कि थी। आज उसे एक पब्लिकी मीटिंग में तब किसी ने चौंकाया जबकि वह कमाण्डोज के घेरे में चलता हुआ भाषण के बाद मंच से नीचे आ रहा था।'नेताजी तुम्हें सावधानी बरतनी होगी। इसके बाद कोई भी पब्लिकी मीटिंग अटैण्ड करना हानिकारकी हो सकता है।'
कहने वाला एक युवकी था।
उसके शब्दों को उसने स्पष्ट सुना था।
कमाण्डोज के' अतिरिक्त उसके कुछ आदमी सादा वर्दी में भी आस पास ही रहा करते,थे ताकि कोई असामाजिकी तत्व सहज ही उसके निकट न जा सके।
वैसे ही एक सादा वर्दी वाले को उसने आंखों ही आंखों ' में आदेशित किया।
और अब!
अब वह अपने उसी आदमी की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि वह उससे उस युवकी की बावत जानकारी हासिल कर सके।
__ 'साहब। ' एक कमाण्डो ने आकर आदर सूचकी स्वर में कहा- 'वह आ गया।'
' उसे फौरन हाजिर करो। '

कमाण्डो वापस चला गया।सादा वर्दी वाला उस युवकी को लेकर वहां दाखिल हुआ। युवकी रंजीत लाम्बा के अतिरिक्त कोई न था।
उसे दुग्गल ने तुरन्त पहचान लिया।
__ 'कौन हो तुम ?' उसने शंकित स्वर में लाम्बा से पूछा।
'आपका हितकारी।' लाम्बा ने सहरन स्वर में उत्तर दिया।
'तुम्हें कैसे मालूम कि अगली कोई मीटिंग मेरे लिए हानिकारकी हो सकती है ? '
'जिस स्थिति में आप हैं उस स्थिति वाले व्यक्ति को ऐसे समय में सिर्फ आम खाने से मतलब रखना चाहिए ... पेड़ गिनने से नहीं।'
लाम्बा का जवाब सुनकर श्याम दुग्गल की भक्ति तन गई। उसने गौर से लम्बा को सिर से पांच तक निहारा।
'तुम मेरे हितकारी हो ना?' वह गुर्राया।
' इसीलिए सावधान किया है। '
'सावधान किया है तो जो भी कुछ जानते हो उसके बारे में मुझ सब-कुछ ब ता दो। अगर दो मिनट के अंदर तुम रिकार्ड कि तरह बजना शुरू नहीं हुए

तो!'
'तो?' एकाएक ही लाम्बा ने तेवर बदलकर
पूछा।
'तो तुमजानते हो क्या हो सकता है। समझदार को समझाने की जरूरत नहीं होती।'
'तुम उसे धमका रहे हो जिसने तुम्हें आने वाले खतरे से आगाह किया है...उसे।'
'हितचिन्तकों के साथ इस-तरह के खेल नजरें बदल कर हमें अक्सर खेलने पड़ते है। राजनीतिकी क्षेत्र इस प्रकार की विचित्रताओं से भरा पड़ा है।'
'ओह...समझा।'
'समझ हो गए लेकिन अब जल्दी से सब-कुछ बता डालो वरना बात बिगड़ते देर नहीं लगेगी।'
'अच्छा !'
' हां।'
' तो फिर मिंस्टर दुग्गल तुम बात को-बिगाड़ ही लो । क्या समझे? '
श्या म दुग्गल ने उसे क्रोधित दृष्टि से घूर कर देखा।
' मैं तुम्हारी इन निगाहों से डरने वाला नहीं।'
'लगता है जिन्दगी से बैर मान लिया है ?'
'जान से मार दोगे न...तो ये भी सही , लेकिन अब मैं तुम्हें कु छ बताऊंगा नहीं।'
'बाद में पछताओगे।'
' आत्मा शेष रह जाएगी और आत्मा के पास इस तरह के फिजूल कामों के लिए वक्त नहीं होता।'
वक्त मेरे पास भी नहीं है। आखिरी बार पूछ रहा हूं बताते हो या नहीं?'
'बे कार ही वक्त बरबाद कर रहे हो।'
'ले जाओ इसे ! ' आंखों से भाले-बी बरसाता हुआ दुग्गल हिंसकी स्वर में गुर्राया।
दो कमाण्डोज और एक सादा वर्दी वाले ने उसे तुरन्त कवर कर लिया।
ए की साथ तीन-तीन गनों की नालें उस की ओर तन गई।
उसने तुरन्त ही समर्पण की मुद्रा में दोनों हाथ ऊपर उठा दिए।
'चलो! उसे गन की बैरल-से टहोका ग या ।
वह सांकेतिकी दिशा में चल पडा।

बाहर आ कर उसे काले शीशों वाली एक बन्द वै न में पहुंचा दिया गया।
तीनों गनर उसके साथ बैठे।
वैन वहां से चल पड़ी। धीरे-धीरे वैन की रफ्तार में वृद्धि होती चली गई।
कुछ देर बाद एक वीरान जगह पर वह रुकी।
एक गनर ने वैन का दरवाजा खोला।
दूसरे ने भद्दी-सी गाली देते हुए लम्बा को ठोकर मारकर बाहर उछाल दिया।
वो तीन थे।
तीनों के पास गने थीं और उनकी नजर में लाम्बा एक मूर्ख नौजवान था। इसलिए वे उसकी तरफ से पूरी तरह असा वधा न थे।

उन्होंने सपने में भी नहीं सोता था कि उन तीन गनों के खिलाफ लम्बा किसी तरह का कदम उठाएगा। उनके हिसाब से तो लाम्बा ने कुत्ते की मौत मरना था।
उन्हें नहीं मालूम था कि वे हत्यारों की दुनिया में जल्लाद कहे जाने वाले खतरनाकी हत्यारे के रूबरू थे।
अगर वे यह जानते कि सामने वाला कोई ल ल्लू नहीं, रंजीत लम्बा नाम का खूखार व्यक्ति है तो शायद वे उसकी तरफ से इतने लापरवाह नहीं हो ते ।
नीचे गिरते ही लाम्बा ने अपनी गर्दन के ठीकी पीछे दोनों हाथ डालकर छोटे आकार का माउजर निकाल लिया।
इसके पहले कि कोई कुछ समझता , माउजर की दहाड़ से वह वीरान क्षेत्र गूंज उठा।
__ गोलियो की बाड़ निकली और उन तीनों को चाट गई।'
- चीते जैसी फुर्ती से उछलकर लम्बा ड्राइवर की तरफ लपका। वह ड्राइवर को भी उड़ा डालना था लेकिन ड्राइवर ने घिघियाते हुए दोनों हाथ उठा दिए।
म... मुझे मत मारो साहब ...मैंने तो हुक्म मानना होता है गाड़ी चलाने का। म...मेरे पास कोई गन भी नहीं है। आप तलाशी ले लो साहब। मैं गरीब आदमी हूं। मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे। ' वह गिड़गिडा ता हुआ बोला।
लाम्बा ने उसे कठोर दृष्टि से निह रा!
वह बुरी तरह घबरा रहा था। '
माउजर उसकी ओर तना था।
ट्रेगर कसने भर को देर थी और ... |
ड्राइवर एकदम से उसके पैरों में गिर पड़ा- ' नहीं-नहीं मालिकी , मुझे मत मारो।'
'उठो !'
वह उठ गया।
' गाड़ी की चाबी कहां है ?'
'गाड़ी में साहब ।'
'ठीकी है , अब उस तरफ दौड़ लगा। ' लाम्बा ने मुख्य सड़की से विपरीत दिशा की ओर सकेत करते हुए कहा।
ड्राइवर ने संदिग्ध दृष्टि से उसकी ओर देखा।
'डर मत...मैं दो मिनट तक गोली नहीं चलाऊंगा। दो मिनट यानी एक सौ बीस सैकिण्ड।'
'स..साहब

'भाग!'
'साहब।'
'भाग! ' चिल्लाते हुए लम्बा ने हवाई फायर किया। फायर के साथ ही वह वहां से पूरी शक्ति लगाकर निकल भा गा। भागते हुए वह बार-बार मुड़कर शंकित दृष्टि सें लाम्बा की ओर देख रहा था।
लम्बा पहले अपना जगह खड़ा रहा। उसके बाद उसने माउजर यथास्थान पहुंचाकर वैन की ड्राइविंग सीट संभाल ली।
 
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दलपत काना जहां छिपा हुआ था, आखिरकार वहां तक जार्ज पीटर की पहुंच हो ही गई। दल पत काना घनी बस्ती में एक खण्डित मकान में अपने-आपको छुपाए हुए था। मकान के
अंदर तब वह सोया पड़ा था। जब दरवाजे पर हल्की-सी दस्तकी हई।
दस्तकी पुन: उभरी तो उसकी आंख खुल गई!
दस्तकी के अंदाजे से वह समझा कि उसके लिए खाना लाने वाला छोकरा आया है।
उसने दरवाजा खोल दिया।

दरवाजा खुलते ही उसे गर्दन से पकड़कर बाहर खींच लिया गया। वह संभलता , उसके पहले ही उसके पेट में ताबड़तोड़ चार-छ: चूंसे उतार दिए गए।
अन्त में घन जैसा भारी ऐसा उसका जबड़ा लटका गया।
वह बरामदे की टूटी दीवार की ईंटें गिराता हुआ दूसरी ओर उलट पड़ा । उलटकर सीधा होने के बाद उसने जब अपने सामने यमदूत से खड़े चार
आदमि यों को देखा , तब भी असलियत को समझ न सका । लेकिन जब उन चारों के पीछे से पीटर का चेहरा निकला तब वह समझ गया, उसकी मौत आपहुंची है।
__'क्यों रे काने , यहां छिपकर तूने यह समझा था कि अब तू मेरे हाथों कभी नहीं पड़ सकेगा.. .है ना ?' पीटर ने विषाक्त मुस्कान के साथ कहा।
'न... न ... नहीं। ' द लपत कांपकर
अपने-आपमें सिमट गया। तब तू लम्बा के साथ
था और तूने यह समझ लिया था कि लाम्बा की छत्रछाया में हमेशा बचा र हेगा है ना?'
उसने बौखलाकर इंकार में गर्दन हिलाई।
'तुझे मौत के रास्ते पर पहुंचना जरूरी था। अब तू मरने के लिए तैयार हो जा ' नहीं।'

'नहीं मत बोल कुत्ते। हां बोल हां , क्योंकि हां बोलने में ही तेरी भलाई है।'
' मुझे माफ कर दो पीटर साहब...माफी।'
पीटर हंसा। 'माफ की र दो साहब...माफ।'
'माफी के लायकी तू रह नहीं गया है काने। याद है मैंने तुझे बोला था कि गुलाम तो मैं तुझे बनाऊंगा लेकिन चिड़ी का , हुक्म का नहीं। याद है ?'
दलपत ने अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी। पीटर ने अपने एक प्यादे को इशारा किया।

प्यादे ने तुरन्त रिवाल्वर दलपत की ओर तान दी।
अपनी ओर तनी रिवाल्वर देख दलपत की सांसें रुकी गई।
वह समझ गया , उसका आखिरी वक्त आपहुंचा है। उसने आँखें बंद कर ली।
तभी !
एक फायर हुआ।
फायर के साथ ही चीख उभरी।
उसने घबराकी र आंख खोलीं, देखा वह प्यादा सामने पड़ा तड़परहा था।
उसके पीछे भय से देखता पीटर अपने बाकी प्यादों के साथ पीछे हटता जा रहा था।
वह समझ गया कि उसके पीछे कोई है।
उसने मुड़कर देखा।
लम्बा था।
रंजीत लाम्बा।
पेशेवर हत्यारा। उसके दो नों हाथों में पिस्तौल थे। पिस्तूल पीटर की ओर तने हुए थे। हालांकि खुद पीटर निहत्था था , लेकिन उसके प्यादे हथियारबंद थे। फिर भी पीटर वहां ठहर पाने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा था।
पीछे हटता हुआ वह एकाएक ही वहां से निकल भागा। दलपत बीच में थी अन्यथा लम्बा का निशाना चूकने वाला नहीं था।
' हट जा काने ! हट जा! ' जब तक लाम्बा चिल्लाया और जब तक दलपत बी च से हटा तब
तक पीटर गायब हो चुका था।
उसका ए की प्यादा निशाने पर था मगर लम्बा ने उस पर अपने पिस्तौल का कार्टेज बेकार बरबाद करना उचित नहीं समझा।
उसी समय एक हैंडग्रेनेड वहां आकर गिरा।
भाग्यवश वह तुरन्त ही नहीं फटा।
'भाग काने ...भाग।' चिल्लाता हुआ लाम्बा उस तरफ ही भागा जिधर से वह आया था। ,
दलपत भागा।
लाम्बा ने गिरी हुई दीवार की ओट में लम्बी छलांग लगाई।
उसके ठीकी पीछे दलपत उड़ा।
उसी समय दिल दहला देने वाला विस्फोट हुआ। ढेर साला मलबा और दुवां किसी बवंडर की तरह हवा में उड़ता चला गया।
बारूद की तीखी गंध वहां फैल गई।
विस्फोट के तुरन्त बाद लाम्बा वहीं से बाहर निकला। दलपत उसके पीछे-पीछे चिपका चला आ रहा था। पिछ ली गली में भीड़ जमा थी।
वहां दलपत के पहचान वाले थे।
दलपत उनके सवालों के जवाब देता लम्बा के साथ चलता रहा।
शीघ्र ही सड़की आ गई।
टैक्सी भी भाग्यवश तुरन्त ही मिल गई।
टैक्सी में बैठने के बाद दलपत बोला-मालिकी ... तुमने मेरी जान बचाकर मुझ पर जो एहसान किया है, उसे मैं अपनी चमड़ी के जूते आपके लिए बनवा कर भी उतार नहीं सकता।'
' फिजूल बकवास मत कर। ' लम्बा दबे हुए स्वर में गुर्राया।
__ 'ये फिजूल बकवास नहीं है। में- तुम्हारी जान लेने की कोशिश कर चुका हूं। अगर कामयाब हो गया होता तो अभी तक तुम मरूर -चुके होते। अपने हत्यारे की जान बचाना बड़े दिल गुर्दे की बात है। हर कोई इस तरह का कदम नहीं उठा सकता।'

'तू पागल हो गया है।'
' मालिकी जो कहेंगे, मानूंगा। लेकिन यह बात समझ में नहीं आई कि ऐन वक्त पर आप कहां से आ गए?'
'तेरी ही तलाश में आया था। एक चेले से पता चला- कि तू यहां छिपकर रह रहा है और फिर अचानकी ही मुझे पीटर अपने चमचों के साथ वहां दिखाई दे गया। उसे देखते ही मैं छिप गया । मेरी तैयारी कम थी। उसके पास आदमी ज्यादा थे। मैं घिरकर फंस सकता था इसीलिए उसे नहीं ललकारा वरना उस हरामजादे को ललकार कर मारता। उसने मेरी प नम को मौत के दर तक पहुंचाया है , मैं उसे छोडूंगा नहीं। किसी भी कीमत पर नहीं।'मालिकी मैं आपके साथ हूं।'
'तेरा साथ जरूरी हो गया था। मैंने कई लड़ाईयां लड़नी है। अकेला मैं अपने-आपको कमजोर समझने लगा था । '
'आपके लिए मेरी जान हाजिर है।'
'जान नहीं चाहिए ...सिर्फ साथ चाहिए।'
'आपका साया बनकर रहूंगा। '
मेरी लड़ाई बहुत लम्बी हे। '
'हो ने दो मालिका

' इस लड़ाई में तुम अपने-आपको बारूद के देर पर बैठा महसूस कर सकते हो।'
'मैंने कहा ना , ये जिन्दगी आपकी दी हुई है। आपके किसी काम आजाए तो अपने आपको खुशकिस्मत समझूगा।'
'ड रेगा तो नहीं?'
' हर्गिज नहीं।'
लम्बा ने घूरकर दलपत को देखा। दलपत ने पहले उरसकी आंखों में देख फिर नजरें झुका लीं।
लाम्बा ने सिगरेट का पैकेट निकालकर उसकी ओर बढ़ाया।

'सिगरेट ?'
उसने झिझकते हुए उसकी ओर देखा।
'ले-ले-मैं तेरा बाप नहीं जिसके सामने सिगरेट को हाथ लगाते तुझे डर लग रहा है । '
दलपत ने सिगरेट ले ली।
बाद में दोनों के बीच किसी प्रकार की वार्ता नहीं हुई।
एक जगह लाम्बा ने टैक्सी छोड़ दी।
वह बार-बार अपने पीछे मुड़कर देखता ज रहा था। अपनी तरफ से किसी प्रकार की कमी नहीं रखना चाहता था।
वह नहीं चाहता था कि क्रोई किसी तरह छिपकर उसका पीछा कर सके।
उसने संकरी गलियों में दाखिल होना शुरू कर दिया। गलियों के उस जाल में उसका पीछा करना आसान काम नहीं था। गलियों का वह जाल एक स्थान पर तो इस सुन्दर घना हो गया था कि वहां दिन मैं भी हल्का अंधेरा हो रहा था।
वैसी ही पतली गलियों से गुजरकर आखिर में लाम्बा ने जिस दरवाजे पर रुककर दस्तकी दी, वह दरवाजा एक छोटी-सी बंद गली के आखिर में था।

जब लाम्बा ने दूसरी बार दरवाजे पर दस्तकी दी तब दलपत समझा कि वह विशेष प्रकार की दस्तकी थी।
उसके बाद।
दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खोलने वाली चांद-सी खूबसूरत चेहरे वाली लड़की थी। वह इतनी गोरी थी कि छु देने भर से मैली हो सकती थी।
उस ने लाम्बा को देखा। मुस्कराई और फिर उसके स्वागत में दरवाजा छोड़कर पीछे हट गई।
लाम्बा दलंपत सहित अंदर दाखिल हो गया तो उस खूबसूरत ल ड़कि ने तुरन्त दरवाजा बंद कर दिया।
दलपत आश्चर्य से सारी कार्यवाही देख रहा था।
छोटा-सा गलियारा पार करके वे एक कमरे में पहुंचे। कमरे के कोने में एक पलंग पर कोई चादर
ओढे लेटा था।
कमरे के दूसरे दरवाजे के बाहर सीढियां थीं।
सीढ़ियां चड़कर वे ऊपरले हिस्से के बड़े कमरे में पहुंच गए।
'आप यहा रहते हैं ?' दलपत ने लम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
'मेरा कोई परमानेन्ट ठिकाना नहीं। कभी कहीं तो कभी कहीं। इस लिए मेरे अन गि नत ठिकाने हैं। उन्हीं ठिकानों में से एक ठिकाना यह भी है। आराम से बैठो...जय तक मेरा काम हो नहीं जाता तब तक तुम्हें यहीं रहना पड़ेगा। तुम्हारा इंतजाम अभी कराए देता हूं। ' कहुता हुआ लाम्बा कुर्सी पर बैठकर जूते उतारने लगा।
दलपत कमरे में घूम-घूमकर कमरे का मुआयना करने में व्यस्त था।
उसने अपने लिए एक सिंगरेट -सुलगा ली।
इसी बीच।
वह बला की खूबसूरत लड़की हाथ में ट्रे लिए कॉफी के दो कपों सहित दाखिल हुई!
___ 'सि म्मी...यह हमारे दोस्त हैं। इनका खाना भी आज से यहीं बनेगा। ' लम्बा उस लड़की सिम्मी को उसके नाम से संबोधित करता हुआ बोला।
सिम्मी ने दलपत का ने की ओर देखा तो काना गहरी नजरों से उसे देखता हुआ मुस्कुराया।
_ 'जी अच्छा।' सिम्मी को उसका अंदाज अच्छा नहीं लगा था, इसलिए वह एकाएक ही गंभीर होती हुई लम्बा से बोली-'आपका हुक्म सर-आखों पर।'

'मांजी की तबियत अब कैसी है ?'
'पहले से ठीकी है। लेकिन जिस डाक्टर को आपने दिखाया था वह दवा के पैसे क्यों नहीं लेता?'
' वह पैसे नहीं लेगा। ' उसने मेरी उधारी जो चुकानी है।'
'आज मैं बैंकी गई थी।'
'क्यों?'
'पैसों की जरूरत थी।'
'अरी पगली , मुझे नहीं खेल सकती थी।'
'जो बिना बोले इतना कुछ कर देता हो, उससे बोलने की क्या जरूरत।'
'क्यों?'
'क्योंकि दो हजार निकालने के बाद भी अट्ठारह हजार का बड़ा बैलेंस मौजूद है। '
'यह तो बहुत अच्छी बात है। भगवान करे तेरे एकाउंट में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो।'
यह ठीकी नहीं है। इतने सारे पैसों का मैं क्या करूंगी।'
'मांजी का इलाज।'

'लेकिन!'
'फिजूल बकवास नहीं और काम कर जाकर।'
'क्या काम करू?'
' मेरे दोस्त के लिए इसी कमरे में बिस्तरे का इंतजाम कर दे।'
सिम्मी मुड़कर चली गई।
'मालिकी आपका ठिकाना बहुत अच्छा है।' दलपत खींसें निपोरता हुआ बोला।
लाम्बा उसकी ओर मुड़ा नहीं।
उसकी नजर अभी भी सिम्मी पर लगी हुई थी जो सीढ़ियां उतरकर नीचे जा रही थी। जब उसे यह विश्वास हो गया कि वह पूरी तरह नीचे उतर चुकी है,
तब वह चीते की तरह पलटकर दलपत काने पर झपटा और उसकी गर्दन दबोच ली।

'म... म... मालिक...मा... लिक...!' दलपत की आवाज उसके गले में फंसने लगी और
आंखों से डोरे लाल होकर बाहर को आने लगे।
'सांप पूरी दुनिया में टेडी-मे दी चलता है लेकिन जब वह बामी में जाता है तो एकदम सीधा जाता है हरामजादे। सिम्मी सिम्मी एक सीधी-सादी भोली और गरीब लड़की है । उसके सिर से बाप का साया उठ चुका है। उसकी बीमार मां वर्षो से ठीकी नहीं हो रही है। वहमेरे जेर साया यहां रह रही है। मैं...मैं रंजीत लाम्बा उसका गार्जियन होता हं..मैं बास्टर्ड! ' क्रोध में लाम्बा निरन्तर उसकी गर्दन दबाता हुआ गुर्राया।
'म... म...मर जाऊं... गा ...म... माफी।'
उसकी आँखें टांगने लगीं तो लाम्बा ने उसे छोड़ दिया। उसने तुरन्त लाम्बा के पैर पकड़ लिए।
माफ कर दो ... माफ... कर दो मालिक।'
'तेरी गंदी नजरें जब उसके जिस्म से टकरा रही थी तब मेरा खून जल रहा था...।'
लाम्बा उसे भद्दी-सी गाली देता हुआ बोला।
'गलती हो गई। फिर दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।'
'अगर दोबारा गलती हुई तो तेरी बाकी बची आंख भी फोड़ दूंगा साले।'
'कभी नही .. क... कभी नहीं। ' दलपत थर-थर कांप उठा । कुछ देर केमरे में खामोशी छायी रही।
'चल कॉफी खत्म कर ! ' मौन भंग करते हुए लम्बा ने उसे काफी पीने का आदेश दिया।दलपत ने कॉफी उठाकर तीन चूंट में खत्म कर दी। वह इस कदर बौखलाया हुआ था कि उस समय अपनी
जुबान जलने का उसे एहसास भी नहीं हुआ। सिम्मी
को देखकर उसने यही अनुमान लगाया था कि सिम्मी लम्बा की कोई रखैल होगी।
उनके बीच इस तरह का कोई पवित्र रिश्ता होगा , इसबारे में उसने कल्पना भी नहीं की थी।
अभी वह सोच ही रहा था कि सिम्मी फोल्डिग पलंग लेकर वहां आपहुंची।
जैसे ही उसने पलंग एक ओर टिकाया , दलपत ने उसके पैर पकड़ लिए - 'क्षमा कर दो मुझे। मुझ पापी को क्षमा कर दो! '
सिम्मी चकित हो उठी।
उसने लम्बा की ओर सवालिया नजर से देखा

'माफी मांग रहा है अपनी उस गंदी न ज र कि बावत जो इसने तेरे पर डाली। अब यह उस तरह की गलत हरकत सपने में भी नहीं करेगा। '
वह घबरा गई।
बोली कुछ नहीं। जल्दी से वहां से चली गई।
00 ……………………………….
दलपत हॉस्पिटल से बाहर निकला।
उसने इधर-उधर देखा फिर सावधानी के साथ सड़की पर पैदल चलने लगा। अपना पीछा किए जाने का उसे विश्वास तो नहीं हो रहा था। लेकिन संदेह हो गया था कि कोई छिपकर उसकी निगरानी कर रहा है
और निगरानी तब ही शुरू हुई जब वह पूनम के बारे में जानकारी हासिल करके वहां से चला।
फुटपा थ पर चलते-चलते जूतों के फीते बांधने के लिए वह एकाएक ही नीचे झुकी गया। इतने समय में ही उसने सिर्फ हल्की नजर में पीछे
आने वाले आदमी को ताड़ लिया।
उसके झुकते ही वह आदमी एकदम से घूमकर दीवार पर लगे फिल्म के पोस्टर को देखने लगा।
जूते का फीता खोलने के बाद कसकर वह सीधा हुआ और सीधा चल पड़ा। जिधर उसने जाना था वह उधर नहीं जा रहा था।
वह ऐसी कोई हरकत दोबारा नहीं करना चाहता था जिससे पीछा करने वाला साबधान हो जाए।'
कुछ दूर जाकर उसने मुख्य सड़की छोडू दी और वह एक सकरी-सी गली में दाखिल हो गया। वह गली सांप की तरह बल खाती हुई बहुत दूर तक चली गई थी।
गली में सन्नाटा था।
उसे अपने पीछे-पीछे हल्की आहट मिल रही थी। वह अपना पीछा करने वाले की स्थिति का निरंतर अनुमान लगाता जा रहा था।
फिर एक छोटे-से पुल के नीचे के कोने में वहमोड़ काटते ही छिप गया।
छिपने से पहले ही उसने लम्बा छुरा निकाल लिया था। उसकी आंखेंदाएं-बाएं घूम रही थीं और हाथ में छुरा कसे वह उत्तेजित अवस्था में आगे बढ़ती
आहटों की प्रतीक्षा कर रहा था।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वह अपने दिल पर काबू पाने की कोशिश करता मजबूती के साथ अपने स्थान पर जमा रहा।
फिर उस आदमी की छाया उभरी।
वह एकदम सतर्की हो गया।
पीछा करने वाला उसके आगे आया। वह बाज की तरह पीछे से उस पर झपटा और उसने बाएं बाजू का शिकंजा उसकी गर्दन के गिर्द कस दिया।
' किसने लगाया तुझे मेरे पीछे ?' वह छुरे' की नोकी उसकी कमर में चुभाता हुआ गुर्राया।
'प...पीटर बॉस ने। ' वह आदमी कंपित स्वर में बोला।
'किसलिए?'
' पीटर बॉस को लाम्बा का पता मालूम करने का है।'
'ठीकी है। तो तू यहां से जाकर पीटर को बोलेगा...है ना?'
'हां।'
'नहीं बोलेगा।'
'बोलेगा।'
' किया बोलेगा?'
' यही कि लम्बा उधर पूनम के बारे में जानकारी हासिल करने नही आया।'
हां...अब आया लाइन पर और सुन. . .मैं तेरे को पहचानता हूं। अगर तूने कुछ उल्टा -सीधा बका या दोबारा रंजीत लम्बा के बारे में बताया तो लाम्बा की हिटलिस्ट में तेरा नाम सबसे ऊपर लिख दूंगा।'
'न ... न ...नहीं ... मैं कुछ नहीं करूंगा। मुझे छोड़ दो। जाने दो। मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं... गद्दारी नहीं करूंगा। मेरा विश्वास करो।'
'ठीकी है जा। तुझ पर ए तवार करके तुझे छोड रहा हूं। ' कहने के साथ ही दलपत ने उसे छोड़ दिया।
उसने अपनी गर्दन सहलाई और फिर दलपत के सामने हाथ जोड़कर वहां से चला गया।
दलपत ने अंतिम क्षणों में अपना फैसला बदला था अन्यथा तो उसका इरादा उस आदमी को
खत्म कर देने का था।
न जाने क्यों उसे लगा कि वह आदमी विश्वासघात नहीं करेगा।
उसने आगे जाकर चैकी किया। उस आदमी का दूर-दूर तक पता नहीं था।
आसपास सब चैकी करने के बाद वह उस गली में पहुंचा जहां किराए पर हासिल की गई कार में लाम्बा उसका इंतजार कर रहा था।

'क्या रहा ?' कार स्टार्ट करके धीमी रफ्तार से आगे बढ़ाते हुए लम्बा ने उससे पूछा।
'पतूम नाम की लड़की अब खतरे से बाहर है मालिक। ' दलपत ने उसके होंठों में दबी सिगरेट को अपने लाइटर से सुलगाते हुए उत्तर दिया।
'वह हॉस्पिटल में ही है ?'
'हां।' 'तू उसे अपनी आंख से देखकर आया ?'
'हां।'
'वो जिन्दा थी?'
'हां।'
' इसका मतलब मैं भी उसे वहां जाकर देख सकता हूं।'
'नहीं।'
'क्यों?'
' वहां पीटर के आदमी नजर रखे हुए हैं।' ' इसका मतलब तेरा पीछा. . . ?'
.
.
.
'बरोबर।।
मुझे डिटेल में बता काने।'
उसने बताया।
'ओह...इसका मतलब पीटर से ही पहले निपटना पड़ेगा। ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बड़बड़ाया।
'बाप, पीटर तो अण्डरवर्ल्ड का बिगबॉस होता है।'
'जानता हूं।' ' फिर उससे कैसे पंगा लोगे?'
'उसके लिए इंतजाम करना होगा। कहने के साथ ही लम्बा ने कार की रफ्तार बदा दी।कुछ देर बाद कार एक ऐसे क्षेत्र में जाकर रुकी जहां अधिकतर गोदाम थे। अलग-अलग गोदामों में अलग-अलग प्रकार का सामान भरा पड़ा था।'
'मालिक...यहां?' द लपत ने सवालिया नजरं से लाम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
'हां..यहां हमें हमारे काम की चीज मिलेगी।' लाम्बा ने आगे-पीछे देखते हुए कहा। '
'काम की चीज?'
' हां...काम की चीज।'
'वो क्या होती है ?'
'बारूद।'
'बारुद ?'
'बारूद का बड़ा ढेर समझ लो।' ' बारू द का ढेर यहां है तो ?'
'उसे हमने चुराना है।'
'लेकिन आपको कैसे मालूम ?'
'मालूम है। तू बकवासबद कर और गाडी से उतरकर उस गोदाम के चारों तरफ चक्कर लगाकर आ जिस पर देशमुख के नाम! का बोर्ड लगा है।'
'वही न जिसका फाटकी नीले रंग का है मालिकी?'
'हाँ वही। '
दलपत ने पहले एक सिगरेट सुलगाई फिर वह कार से बाहर निकला।
'सुन! '
वह तुरन्त लम्बा के निकट पहुंच गया।
'अन्दर कितने आदमी हैं यह जानने की कोशिश जरूर करना लेकिन सावधानी से। ऐसा न हो कि अन्दर मौजूद किसी आदमी को तुझ पर किसी तरह का शकी हो जाए।'
'बरोबर।'
'अब जा।'
सिगरेट फूंकता दलपत कार आगे बढ़ चला।
00 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गोदाम का चक्कर लगाकर दलपत वापस लौट आया।
'क्या रहा ?' सिगरेट का टुकड़ा अंतिम की
श के बाद कार से बाहर उछालते हुए लम्बा ने उससे पूछा।
'तीन आदमी हैं अन्दर । ' उसने खिड़की पर झुकते हुए धीमे स्वर में कहा।
हथियारबद ?'

' हथियार नजर तो नहीं आए मालिकी लेकिन हथियार हो भी सकते हैं।'
' अलग-अलग जगहों पर हैं ?'
'नहीं...एक कोने में ताश खेल रहे हैं। '
' आई सी।'
'आप हुक्म करें तो मैं अंदर चला जाऊं?'
' यही काने।' 'फिर क्या करेंगे ?'
' पीछे से गोदाम की बाउंड्री वाल पार की जा सकती है?'
'हां...।'
तो फिर बैठ।'
दलपत तुरन्त कार का दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गया। लाम्बा ने कार स्टार्ट करके आगे बढा दी। वह चक्कर लगाकर गोदाम के पिछले भाग में जा पहुंचा। उसने दीवार के सहारे से चिपकाकर कार इस तरह खड़ी की ताकि वह आसानी से देखी न जा सके।
कार से उतरकर उसने इधर-उधर देखा।
आसपास सन्नाटा था।
दलपत उसके पीछे-पीछे कार से बाहर आ गया।
काने वह दबे हुए स्वर में बोला।
'मालिकी?'
'वे तीनों आदमी किस साइड में हैं ?'
'उफ तरफ।' दलपत ने सामने वाले भाग के कोने की ओर उंगली उठाते हुए कहा।
'ठीकी है। तू यहीं ठहर।'
'जो हुक्म।'
लाम्बा ने एक बार फिर आसपास की स्थिति देखी। उसके बाद वह कार की छूत पर चढ़ कर सावधानी के साथ बाउंड्री वाल पार करके दूसरी ओर पहुंच गया।
कच्ची जमीन में कुछ दूरी तक ऊंची-ऊंची घास खड़ी थी और उसके बाद गोदाम था।
घास में चलता हुआ वह गोदाम की दीवार तक पहुंचा। फिर उसने अपनी साइड की दीवार के साथ चिपककर आगे बढ़ना शुरू कर दिया। दूसरी
ओर की दीवार की तरफ वह इसलिए झांका भी नहीं, क्योंकि वह जानता था कि उसे तरफ खतरे के
अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।
तीनों आदमियों को उसी दिशा में होना था।
 
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वह , बिना आहट किए साइड वाले छोटे दरवाजे तक पहुंच गया। दरवाजे में एक मध्यम साइज का ताला झूल रहा था।
उसने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और फिर वह एक-एक चाबी बारी-बारी से ताले में घुमाकर चैकी करने लगा।
___ आखिरका र उसे कामयाबी हासिल हो ही गई।
ताला बिना आहट के खुल गया।
उसने ताला खोलने के उपरान्त एक बार फिर आसपास की आहट पर कान लगाए तत्पश्चात्
दरवाजा अंदर को ठेला।
वह दरवाजे को बहुत धीरे-धीरे खोलने का प्रयास कर रहा था कि फिर भी दरवाजा चरमराहट की साथ ही खुल रहा था। आवाज जब बढ़ जाती तब वह दरवाजे को धकेलना बंद करके आसपास की
आहट लेने लगता। चार प्रयासों में उसने दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खोलने के बाद वह भीतर दाखिल हो गया।
गोदाम में एक ओर खाली ड्रमों का ढेर था। एक ओर कार्टून रखे थे और एक ओर कुछ पेटियां।
उसे जिस चीज की तलाश थी वह पेटियों में थी। उसने एक पेटी खोलकर देखी। फिर वह बारी-बारी तीन पेटियां व हां से उठाकर दलपत तक पहुंचा आया । दलपत ने फुर्ती के साथ पेटियां कार में छिपा दी।
लाम्बा ने बाकायदा गोदाम का दरवाजा बंद करके ताला लगाया। तब वह वहां से वापस लौटा।
कार वापस लौट चली।
'क्या है इन पेटियों में मालिकी ?' कुछ दूर निकल जाने के बाद दलपत ने लम्बा से पूछा।
'आर० डी० एक्स ०।'
' आर० डी० एक स ० !' उसकी आंखेंहैरत से फैल गई।
'हां काने... यह बारूद का वह देर है जिससे हम अण्डरवर्ल्ड के खतरनाकी डॉन जार्ज पीटर का सफाया कर सकेंगे।'
वैरी गुड!'
' और सुन...अभी उस गोदाम में आर० डी० एक्स० काफी मात्रा में मौजूद है। मैं चाहता हूं यहां कोई बहुत ही शातिर आदमी नजर रखे। जस ही आर० डी० एक्स गोदाम से कहीं ले जाया जाए, वह उसका पीछा करके हमें उसके बारे में खबर करे।'
हो जाएगा मालिक। मेरे पास दो बहुत ही चालू आदमी हैं इस तरह का काम करने के लिए।'
' हैं न?'
बरोबर हैं।'
'उनसे फोन पर कांटेक्ट कर सकता है तू ?'
'हां।'
'तो उतर..। ' लाम्बा कार में ब्रेकी लगाता हुआ बोला- ' वह रहा टेलीफोन बूथ। जाकर उन्हें
फौरन यहां पहुंचने का आदेश दे डाल।'
दलपत तुरंत कार से बाहर कूदकर टेलीफोन बूथ की ओर बदगाया
00 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
टेलीफोन की घंटी निश्चित समय के अंतराल के बाद निरंतर बज रही थी।'
रात शराब ज्यादा हो गई थी जार्ज पीटर को। उसने अपने साथ सोने वाली लड़कियों को नंगा तो कर दिया था, लेकिन उसे यह होश नहीं रह गया था कि वह सो कब गया।
गहरे नशे की गहरी नींद।
टेलीफोन की घंटी से दोनों लड़कियां जाग गई लेकिन उन दोनों में से किसी की भी हिम्मत रिसीवर उठाने की नहीं हो रही थी।


उनमें पीटर को जगाने का दुस्साहस भी नहीं था। उन दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा , फिर आंखों ही आंखों में इशारा हुआ और वे दोनों आंखेंबंद करके लेट गई।
थोड़ी देर बाद पीटर खुद कुनमुनाकर उठा।
'कौन ?' उसने अनूमने भाव से रिसीवर कान से लगाते हुए पूछा।
'जार्ज पीटर...अपने खुदा बाप को याद कर ले। तेरा आखिरी वक्त आपहुंचा है। ' दूसरी ओर से उभरने वाली आवाज तीर की तरह उसके जहन में उ भ र ने चली गयी। उस आवाज को वह कभी भूल नहीं सकता था। वह रंजीत लम्बा की अवाज थी। मौजूदा वक्त के उसके सबसे बड़े दुश्मन की आवाज।
लम्बा ! ' उसने दांत पीसे।
दूसरी ओर से उसके अंदर दहशत के पांव जमा देने वाला कहकहा बुलन्द हुआ।
' इतनी रात गए ?'
'मौत का कोई वक्त नहीं होता। वह दिन और रात नहीं देखती।
'फिजल बकवास करने के लिए अगर तुमने मेरा नंबर रिंग किया है तो बताओ मैं डिस्कनेक्ट कर दूं?'
' हॉस्पिटल के बाहर वो तेरे ही प्यादे थे ना जिन्होंने मुझ पर गोली चलाई ?'
' हर जगहमेरी ही प्यादे हैं , जानते हो क्यों ?'
'क्यो ?'
क्योंकि चारों तरफ मेरी ही बादशाहत है।'
'आई सी।'
'वक्त के हाथों बचे हो। जल्दी ही मारे जाओगे।।
दूसरी ओर से हंसने की आवाज आई।
'इसे अपनी आखिरी हंसी समझो। इसके बाद...।'
इस के बाद ?'
'हंसने का काम जिन्दा लोग ही किया करते हैं। यू नो मुर्दे हंसते नहीं।'यानी तुझे इस बात की गलतफहमी है कि मुझे तेरे प्यादे खत्म कर डालेंगे?'
'गलतफहमी नहीं...यकीन है मुझे। यकीन! मेरे आदमी जल्दी ही मुझे तुम्हारी लाश गिरा देने की
खबर करेंगे।'
'सुन पीटर...गौर से सुन। तू सुन रहा है न ?'

'हां-हां सुना।'
'पूनम से तेरी कोई दुश्मनी नहीं थी। जो भी दुश्मनी थी मुझसे थी। तू मुझसे बदला ले लेता मुझे कोई फर्की नहीं पड़ता। लेकिन तूने बदला लेने के लिए एक बेकसूर को चुना...एक कमजोर लड़की
को जो कि तेरा बाल भी बांका नहीं कर सकती थी।'
पीटर ने अट्टहास लगाया।
'इसमें हंसने की कौन-सी बात है ?'
'बात बहुत बड़ी है। मेरे आदमियों ने छोकरी को मारा,
उसका दर्द तेरी आवाज में झलकी रहा है। '
'अच्छा !'
'हां ... हां ... झलकी रहा है।' 'तेरी आवाज में दर्द भी नहीं झलकी सकेगा।
'मतलब?'
'उसी मतलब के लिए तुझे इतनी रात में फोन किया था।'
'वक्त बरबाद मत कर। मुझे नींद आ रही है।
' ऐसी नींद सोने जा रहा है तू की फिर पलटकर कभी जागेगा ही नहीं। '
'तो क्या टेलीफोन पर ही गोली चला देगा?'
'गोली चलाने की जरूरत नही पड़ेगी।'
'यानी बातों से ही मेरी जान ले लेगा?'
'यही समझ।'
'पुड़िया तो तू दे सकता है। लेकिन ऐसी पुड़िया देने से कोई फायदा नहीं जिससे बात में वजन ही न रह जाए।'
' पी टर ... मेरे हाथ में एक रिमोट है। '
'रिमोट ?' इ सबार पीटर चौंका।
'हां ..रिमोट। रिमोट का एक बटन ऐसा है जिसको दबाते ही तेर बदन के नन्हें-नन्हें टुकड़े मलबे
के साथ इस तरह बिखर जाएंगे कि तेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा।'
'एक रिमोट से इतना कुछ '
' हां...इतना कुछ।' 'लेकिन...?'
'पी टर...तू बारूद के ढेर पर बैठा है।'
'ब... ब... बारूद का ढेर ?'

'हां...बारूद का ढेर। देख...तेरी जुबान भी लड़खड़ाने लगी है।'
_ 'ब... बारूद का ढ़े र किधर है ?'
'तेरी कोठी के अंदर। वहां जहां तू राजा इन्द्र की तरह अप्सराओं की गोद में पड़ा है। अफसोस...अप्सराएं भी गेहूं के साथ पिस जाएंगी।'
'देख मजा की मत कर।'
'मजाक...अच्छा ले , तुझे नमूना दिखाता हूं। अभी मैं एक बटन दबाऊंगा। तेरी कोठी का बा यीं
ओर वाला हिस्सा गतुते के डिबे की तरह उड़ जाएगा।
पीटर सांस रोकर इंतजार करने लगा।
अचानक!
भूकंप जैसी स्थिति में उसका कमरा हिल
उठा।विध्स वंसकी विस्फोट के साथ कोठी का बायीं ओर का हिस्सा मलबा बनकर हवा में उड़ गया।
धमाके की गूंज उसके जहन में उतरती चली गई। पीटर. . .पीटर दूसरी ओर से रिसीवर में लाम्बा
का स्वर उभरा।
'हां...हां... सुन रहा हूं।'
'देखा मेरे रिमोट का कमाल ?'
'देखा। ' उसने हलकी में फंसा थूकी गटका। उसका चेहरा पीला हो गया था।'अब मैं बताऊं तू क्या सोच रहा है?'
वह खामोश रहा।
' तू वहां से भागने की सोच रहा है। तू सोच रहा है , इससे पहले कि मैं फिर से रिमोट का इस्तेमाल करू-उसके पहले ही तू कोठी के बाकी बचे हिस्से को छोड़कर निकल भागे। है न ?'
'ल... लाम्बा ... मिस्टर लम्बा ... म ... मुझे माफ कर दो। माफ कर दो। 'तेरी आवाज बता रही है कि तू डर गया है। मौत के खौफ से हलकान हुआजा रहा है। नहीं?'
'म... मैं अपनी गलती स्वीकार कर रहा हूं। मुझे पूनम पर जुल्म नहीं करना चाहिए था।'
'जुल्म नहीं करना चाहिए था...लेकिन जुल्म तो हो चुका है।'
'तु म जो कहोगे मैं करूंगा।'
__ 'नहीं ..तू नहीं करेगा। अब करने के लिए तेरे हाथ में कुछ रह ही नहीं गया है। '
वह सहम गया।
उसके माथे से पसीना बहकर आखों की तरफ आने लगा।
बाहर लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी। वि स्फोट की वजह से लोग वहां एकत्र होते जा रहे थे।
'पीटर , मैं चाहता था कि मरने से पहले तू आधा मौत की हौलनाकी दहशत से मर जाए और तू आधा मर चुका है।'
' मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं।'
दूसरी ओर से कहकहा बुलन्द हुआ।
'मुझे मत मारो।'
'तेरे जिस्म की बोटियां...। ' हसते हुए विषाक्त स्वर में कहा गया।'
.
.
.
'मत मारो मुझे। ' वह गिड़गिड़ाया।
__ 'छोटे-छोटे तुकडे बारूद के ढेर के साथ यहां-वहां छितराते हुए!'
'नहीं।'
'तुझे पता है...तुझे पता है पीटर तू कैसी दहशतनाकी मौत मरने जा रहा है, कैसी हौलनाकी मौत मरने का रहा है। पता है तुझे! 'एक बार फिर कहकहा उभरा।
'नहीं। ' पीटर पागलों की तरह चिल्लाया।
उसके सब का बांध टूट चुका था।
रिसीवर उसके हाथ से निकल गया। उसके चेहरे पर उतरी मौत की स्याह परछाई साफ नजर आ रही थी।
वह रिसीवर छोड़ने के बाद पूरी शक्ति लगाकर भागा।
बैड पर मौजूद दोनों लडकियां भय भीत अव स्था में उसे देख रही थी।
वह दौडता हुआ बैडरूम के दरवाजे के बाहर निकल ही पाया था कि कयामत आ गई।
कानों के पर्दे फाड़ देने वाला धमाका हुआ।
उस धमाके ने कोठी के बाकी बचे हिस्से को देखते ही देखते मलबे के ढेर में बदल दिया। उस मलबे में अण्डरवर्ल्ड के डॉन जार्ज पीटर के जिस्म के छोटे-छोटे टुकी ड़े इस तरह शामिल हो चुके थे कि उन्हें उस ढेर में तलाश करके निकाला नहीं जा सकता था।
कुछ देर पहले तक जो एक शानदार कोठी हुआ ... र ती थी, वहमलबे का देर बन चुकी थी और मौत का जहरीला धुआं उस मलबे के ढेर पर उड . रहा था।
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पुलिस का कर्कश सायरन उभरते ही लम्बा ने अपनी कार तेजी से मुख्य सड़की से उतारकर एक अंधेरे कोने में घुमाकर इस प्रकार खड़ी कर दी मानो वह वहां देर से पार्की की गई हो।
'नीचे झुकी जा! ' कार का इंजन और सभी लाइटें बंद करता हुआ वह दलपत से बोला।
दलपत फुर्ती से नीचे झुकी गया।
शीघ्र ही पुलिस की कार सायरन का शोर मचाती हुई सड़की से गुजर गई।
अगर लाना एक मिनट के लिए भी देर कर जाता तो मुमकिन था कि उसे पुलिस के सामने जवाबदेह होना पड़ जाता।
और!
उस समय वह पुलिस का सामना करना नहीं चाहता था। पुलिस अगर उस पर शकी करती तो दलपत काने को तो आसानी से पहचान ही लेती, पूछताछ करके वह उसके
बारे में भी जानकारी हासिल कर सकती थी।
उन तमाम मुश्किलों को उसकी कुशाग्र बुद्धि ने सहज ही हल कर दिया।
अब पुलिस का र निकल -जाने के बाद सायरन की आवाज निरंतर दूर होती चली जा रही थी।'
'मालिक ...। ' दलपत दबे हुए स्वर-में बोला- पुलिस निकल गई मालिक।'
'मालूम है। मगर थोड़ा-सा इंतजार करना जरूरी है।'
' किसका इंतजार ?'
'पुलिस की दूसरी गाड़ी तो पीछे नहीं है कहीं।'
' अभी तो नहीं लगती।'
फिर भी ...इंतजार कर लेने में अपना क्या जाता है। '
दलपत खामोश हो गया।
एक मिनट...दो मिनट.. . चार मिनट।
ठीकी चार मिनट के बाद पुलिस की दो कारें उधर से तूफानी रफ्तार से गुजरी।
उसके बाद भी लाम्बा ने एक मिनट तक इंतजार करने के बाद ही अपनी कार उस अंधेरे कोने से बाहर निकाली।
___ सड़की पर आते ही उसने एक्सीलेटर पैडल पर पांव का दबाव बढ़ा दिया।
कार हवा से बातें करने लगी।
वह इतनी तेज रफ्तार से कार ड्राइव कर रहा था कि दलपत की सांस रुकने लगी। कई बार मोड़ कटते हुए उसे लगा कि गाड़ी अब पलटी अ ब और ऐसे समय में उसकी आखें बंद हो गई।
लेकिन !
कुछ नहीं हुआ।
आखिरकार वे सुरक्षित अपने ठिकाने तक पहुंच गए। विशेष प्रकार की दस्तकी देने के उपरान्त भी दरवाजा नहीं खुला।
'लगता है आज दरवाजा नहीं खुलेगा।' दलपत इंतजार करता हुआ बेचैनी भरे स्वर में बोला।
'रात ज्यादा हो गई है। ' पुन: दस्तकी देते लाम्बा ने कहा।
'हां, सो तो है।'
'सो गई होगी।'
'कंही गहरी नींद सो गई हो मालिक। अगर ऐसा हुआ तो हम दोनों घड़ी के पेन डु लम की तरह बाहर ही लटके रह जाएंगे।'
___'मेरे इंतजार में वह गहरी नींद कभी नहीं सोती।'
अभी लाम्बा ने दस्तकी देने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया।
सिम्मी का मुस्कराता हुआ चेहरा प्रकट हुआ। आंखों में नींद भरी हुई थी।
___ 'कबसे इंतजार कर रही हूं। खाना ठंडा हो
गया।।
"हो जाने दे ठंडा। हमें ठंडा खाना ही अच्छा लगता है, वही खा लेंगे। क्यों
काने ?' लाम्बा दलपत को कोहनी मारता हुआ बोला।
_ 'हां.. .हां मालिकी , मैं तो एकदम ठंडा खाना खाता हूं। गर्म खाने से मेरी जुबान जल जाती
है।
उन दोनों की बातें सुन कर सिम्मी जोर से हंसी। वह जानती थी कि लाम्बा उसे ज्यादा तकलीफ नहीं देना चाहता था ।
लेकिन उसने खाना-गर्म की रके ही उन्हें खिलाया। खाना खाकर वे दोनों सो गए।

रात्रि के अंतिम प्रहर में फोन की घंटी ने लाम्बा को उठा दिया।
'कौन ?' रिसीवर कान से लगाता हुआ वह शंकित स्वर में बोला।
'दलपत काने से बात करनी है। '
" वह सो रहा है।'
'खबर बहुत जरूरी है।' " मुझे दे दो ... मैं...!' ' उसे जगा दो...जल्दी!'
' का ने! ' लम्बा ने दलपत को झिंझोड़कर उठाते हुए रिसीवर पकड़ा दिया-'तेरा फोन। '
दलपत ने बौखलाए हुए अंदाज में रिसीवर संभाल लिया। धीरे-धीरे उसकी बौखलाहट खत्म हो गई और वह सहज होकर बात करने में व्यस्त हो गया।
पांच मिनट तक उसकी वार्ता चलती रही।
उसके बाद रिसीवर क्रेडिल पर रखकर वह लम्बा की ओर मुड़ा।
'क्या हुआ? इतनी रात में कैन था ?' लाम्बा ने सिगरेट सुलगाते हुए उससे सवाल किया।
' वही था जिसे गोदाम की निगरानी के लिए लगाया था। ' दलपत मुस्कराकर बोला।
कौन-सा गोदाम ?'
'वाही गोदाम मालिकी जिसमें बारूद का ढेर जमा है।'
अच्छा ...वह..।'
'हां।'
'काने ... वहां की कोई खास खबर है क्या
'हां।'
'जल्दी बता ?'
'विनायकी देशमुख वहां से थोड़ी देर पहले जोजफ और अपने कुछ आदमियों के साथ कुछ सामान लेकर आजाद मैदान गया है। '
'इतनी रात में?'
'हां बाप , इतनी ' रात मे।'
'अभी वह कहां है ?' वहीं...आजाद मैदान में।'
लम्बा ने कुछ सोचा। उसके बाद वह फुर्ती से उठकर तैयार होने लगा।
'क्या करू?' अचम्भित अवस्था में खड़े दलपत ने असमंजस पूर्ण स्वर में-पूछा।
'चल. . .फौरन चल। '
'जो हुक्म मालिक।'
फिर दोनों फुर्ती से तैयार होकर वहां से आजाद मैदान की ओर चल पड़े। सुबह के चार बज-चुके थे। वक्त धीरे-धीरे रात को पीछे छोड़ता जा रहा था।
वे आजाद मैदान के बाहर ही कार से उत्तर
पड़े।'
अंधेरे में एक साया निकलकर तेजी से उनके निकट पहुंचा।
' वह काम करके निकल गया। ' काले साए ने दलपत की ओर देखते हुए कहा।
कौन?'
' विनायकी देशमुख।'
'क्या काम कर गया ?'
'उधरमैदान में अभी ताजा-ताजा मंच बना

'मंच ?'
'हां... वहीं भाषण वाला मंच। कल को इधर कोई प ब्लि की मीटिंग होने जा रही है। विनायकी के आदमियों ने मंच का प्लास्टर हटाकर ईटें हटाई।' अन्दर की मिट्टी खोदकर उसमें बारूद का ढेर लगाकर वापस ईटें लगाकर प्लास्टर कर दिया। सारा काम सफाई से किया गया है। ' ।
'ओह...! ' लाम्बा बी च में दखल देता हुआ बोला- यहां कौन-सा नेता आ रहा है ?'
' श्याम दुग्गल।
' श्याम दुग्गल।'
'हां ।'
'चल काने ... चल। काम हो गया।'
दलपत उसके साथ चल पड़ा । उसके पीछे-पीछे-काला साया चला। वह दलपत से धीमे स्वर में कुछ कहता जा रहा था।
दलपत उसे रोकी रहा था लेकिन वह चिपककर रह गया।
कार के पास पहुंचकर लाम्बा ने सौ-सौ , के मुड़े-तुड़े नोट निकाले और सारे की सारे दलपत को दे दिए।
दलपत ने काले सीए को।तत्पश्चात्!
उनकी कार आजाद मैदा न से वापस लौट
चली।
'बाप... ' क्या हिसाब बना?' दलपत ने लाम्बा की ओर देखते हुए पूछा।
हिसाब एकदम सही है।'
'मतलब?'
'जिसबात के लिए मैंने दुग्गल को सावधान किया था वही बात होने जा रही है। श्याम दुग्गल कल बारूद के ढेर पर खड़ा होकर जब भाषण दे रहा होगा तब एक जोरदार धमाका होगा और उसके जिस्म के टुकड़े भी पीटर की तरहमल बे के ढ़े र में खो जाएंगे।'
'हम दुग्गल को खबर कर सकते हैं। वह बच स की ता है मालिक।'
'नहीं।'
'क्यों?'
' इस लिए कि यह गलती मैं कर चुका हूं और अब इसे दोहराना नहीं चाहता । '
'गलती?'
' हां.. गलती।'
' मैं कुछ समझा नहीं ?'
सम झा कि मुझे यह खबर पहले ही हो गई थी कि नेता श्याम दुग्गल का नाम किसी की हिट लिस्ट में आ चुका है और उस पर कभी-भी अटैकी हो सकता है। मैंने उसे खबर की तो उसने मुझे ही पकड़ा वा कर मेरा ही वारंट काटने के आदेश दे दिए। उसके आदमी मुझे मार ही डालते , वो तो किस्मत , ने मुझे बचा लिया।'
'ऐसा?'
' हां।'
' फिर तो उसे मरने देने का है। कोई खबर करने की जरूरत नहीं। ऐसे शैतान के साथ ऐसा ही होना चाहिए।'
नहीं काने , अगर धमाका उसकी जानकारी के बिना हो गया तो उसे कुछ पता ही नहीं चल सकेगा।'
' हां तो उसे पता दो चलना चाहिए। मरने के पहले व ह जान जाए कि वह बारूद के ऐसे ढेर पर बैठा है जो किसी भी वक्त एक धमाके के साथ, उसकें ची थाडे उड़ा डालेगा।'
'वही तो अहम बात हैं। इस प्लान को किस तरह से अमल में लाया जाए?'
'सोचना पड़ेगा।'
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VDO 90%| 12:30 pm | बारूद का ढेर उसके बाद कार में खामोशी छा गई।
दोनों , अपने-अपने ढंग से उस विषय पर सोचते हुए अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने लगे।
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हॉस्पि ट ल में उस वक्त ठीकी तरह से जाग नहीं हो सकी थी।
सुबह के पांच बजने में थोड़ा वक्त अभी बाकी था। ज्यादातर मरीज सो रहे थे। कुछ अटेंडेंट
जाग गए थे।

दलपत वहां का चक्कर लगा आया था ।
उसके हिसाब से पूनम का रास्ता उस समय बिल्कुल साफ था।
जो दो आदमी वहां माणिकी देशमुख ने पहरे पर लगाए हुए थे, वे चादर ओढ़े बेंचों पर पड़े खर्राटे भर रहे थे। उन्होंने निश्चित ही रात में देर तक पहरा दिया था , इसीलिए अब वे आखिर में सोकर अपनी नींद पूरी करने की कोशिश कर रहे थे ।
दूसरे रा उंड में दलपत लाम्बा के साथ-साथ वहां तक पहुंचा।
उसकी नजरें माणिकी देशमुख के उन्हीं दो आदमियों पूर थी जो बेंचों पर पड़े सो रहे थे।
लम्बा-सावधानी के साथ चला हुआपूनम के कमरे में दाखिल हो गया।'
कमरे में पूनम बैड पैर पड़ी थी।
उसका चेहरा एकदम पीला हो रहा था। वर्षों की बीमार लग रही थी वह।
लम्बा उसके करीब बैड के नीचे फर्श पर बैठ
गया।
इस तरह उसका चेहरा पूनम के चेहरे के बेहद करीब
आ गया था।
पूनम! ' उसने धीमे स्वर में पुकारा।
पूनम आँखें बन्द किए पड़ी सोती रही।
वह दो-तीन बार पुकार कर खामोश हो गया। शायद दवाओं का असर था। शायद गहरी नींद थी।
वह बेखबर सोती रही।
फिर लाम्बा ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए उसे पुन : पुकारा।
पूनम ... पूनम...!'
इन बार असर हुआ।
वह कु नमुनाई। उसकी पलकें कांपी। होंठ थरथराए और फिर आंखें आधी खुली गई।'
शायद उसे कुछ धुंधला-धुंधला-सा नजर आ रहा था।
उसने आहत भाव से लम्बा की ओर देखा।
' कैसा लग रहा है अब ?' लम्बा फुसफुसाहट भरे स्वर में बोला।
उसके होंठों पर कमजोर-सी मुस्कान फैल
गई।
घबराना नहीं। सब ठीकी हो जाएगा। ' लाम्बा ने उसका , हाथ अपने हाथ में ले ते हुए कहा ।
बिल्कुन भी नहीं घबरा रही। तुम जिसके साथ हो , उसे घबराने की जरूरत ही क्या' शाबाश।'
'कैसे हो?' कुछ रुककर पूनम ने लाम्बा की आंखों में झांकते हुए भावु की स्वर में पूछा।
'ठीकी हूं। मेरी फिक्र बिल्कुल न करो। जिसने तुम पर अत्याचार किया। ये घातक वोर किए , उसे उसके किए की सजा मिल चुकी है।'क्या हुआ ? '
'उसे उड़ा दिया।'
' मैं जानती थी कि मैं जिन्दा रहूं या न रहूं लेकिन पीटर को सजा जरूर मिलेगी।'
पूनम मुस्कराई।
उसी समय कमरे के दरवाजे पर हल्की दस्तकी हुई। लम्बात रन्त सावधान हो गया।
वह जानता था कि वह दस्तकी उसे सावधान करने के लिए थी। जरूर बाहर जाग हो गई
थी।
'लगता है तुम्हारे बाप के प्यादे जाग गए हैं डार्लिंग... मैं चलता हूं..। ' उसने जल्दी से उठते हुए कहा- 'घबराना नहीं। जल्दी ही तुम्हें आकर ले जाऊंगा।'
'जल्दी आना।'
'बहुंत जल्दी।' इतना कहकर लम्बा खिड़की के रास्ते कमरे से बाहर निकल गया। '
शीघ्र ही वह कॉरीडोर में घूमकर जा पहुंचा।
दलपत चिंतित अवस्था में मोड़ पर खड़ा दूसरी तरफ देख रहा था।
'काने।' लाम्बा ने पीछे से उस की पीठ पर दस्तकी दी।
वह चौंककर पलटा।
'मालिक...मैं तो ड र कई गया था।'
'क्या हुआ ?'
'उन दो प्यादों में से एक प्यार कुनमुनाकी र उठ बैठा था। फिर वहमाचिस की तलाश में आगे निकल गया तो इए मैं ने आपको बाहर आने का सिग्नल दे दिया।'
'अच्छा किया।'
'काम बना बाप ?'
' हां ... अब व ह पहले से ठीकी है।'
'बात हुई ?'
'हां।
'फिर ठीकी है।'
'अब चल यहां से।'
'की हां?'
'दुग्गल के लिए हिसाब बनाने।'
'चलो।'
दोनों-तेज-तेज चलते हुए हॉस्पिटल से बाहर निकी ल गए।
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आजाद मैदान में खूब भीड़ जमा हो चुकी थी। श्याम
दुग्गल का भाषण सुनने उसकी पार्टी के लोग ही नहीं बहुत से दूसरे लोग भी आये थे।
मंच पर कोई छोटा नेता भाषण दे रहा था ?'
एनाउ न्स र बार-बार बीच में श्याम दुग्गल के किसी भी क्षण वहां पहुंचने की संभावना व्यक्त कर
रहा था।
__लेकिन कई बार ऐसा हो जाने के बावजूद अभी तक दुग्गल वहां पहुंचा नहीं था।
DO

रंजीत लम्बा वहा दलपत के साथ मौजूद था।
उसकी निगाहें तलाश में इधर-उधर भटकी रही थीं।
'कोई प्लान बनाया क्या बाप?' उसके साथ-साथ चलते दलपत ने धीमे स्वर में पूछा।
'प्लान कोई नहीं है काने सिर्फ अंदाजे से
चल रहा हूं। अगर तलाश पूरी हो गई तो कुछ न कुछ जरूर कर लूंगा। ' लम्बा ने एक जगह रुककर सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
'कैसी तलाश'
'है तलाश। '
'मेरे बताने योग्य नहीं ?'
'किसी को भी बताने योग्य है। लेकिन पहले मैं तलाश करलूं न।'
दलपत खामोश हो गया।
लम्बा पुन: आगे-आगे चलने लगा। भीड़ में उसकी आँखें किसी को तलाश कर रही थीं। मगर भीड़ बहुत अधिकी होने की वजह से शायद उसे वांछित व्यक्ति मिल नहीं ऐहा था।
वह भीड़ के बीच से निकलकर बाहरले क्षेत्र में आ गया।

mmmmmmmmmmmmmmmmm

पार्किग के करीब से गुजरकर उसने उस लॉबी का भी जायजा लिया। फिर वह
वहां से अलग एक जग ह रुका। उसने सिगरेट के
आखिरी टुकड़े से नई सिगरेट सुला गा ली।
वह लगातार सिगरेट पेट सिगरेट सुलगाए चला जा रहा था।
दो लार्ज पैग उसके पेट में पहले ही पहुंच चुके थे। उस वक्त उसका चेहरा तपा हुआ-सा प्रतीत हो रहा था। परेशानी अलग झलकी रही थी।
इस बीच!
कारों का काफिला और श्याम दुग्गल के जयघोष के साथ ही वहां कोलाहल मच गया।
अफरा-तफरी में कोई इधर दौड़ रहा था कोई उधर। श्याम दुग्गल वहां आ चुका था।
अभी तक कुछ नहीं हो सका था। वह हताश-सा कभी आगे जाता तो कभी
पीछे।
कभी दाएं देखता कभी बाएं।
अचानक!
उसकी नजर दौड़कर एक ओर को जाते जोजफ पर पड़ गई।

जोजफ को देखते ही उसकी आखों में खुशी की चमकी जाग उठी।
वह तुरन्त जोजफ पर नजर जमाकर उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। दलपत उसके साथ साए की तरह लगा हुआ था।
लम्बा ने देखा , जोजफ काले रंग को एक कार के समीप जा रुका । कार के अंदर मौजूद व्यक्ति से उसने कोई बात की।
__ कार में बैठा व्यक्ति उसे किसी प्रकार का निर्देश दे रहा था।
निर्देश प्राप्त करके व ह वापस लौट चला।
लाम्बा ने दलपत को कार की ओर जाने का आदेश दिया।
दल पत लपकता हुआ उस तरफ पहुंचा। उसने दूर से ही कार का चक्कर लगाया और फिर सहज कदमों से वापस लौट आया।
__ 'कौन है कार में ?' उसके लौटते ही लाम्बा ने उससे पूछा।
' विनायकी देशमुख। ' उसने भीड़ की ओर देखते हुए जवाब दिया।

'जवाब सुनकर लाम्बा के होंठो पर विषाक्त मुस्कान फैल गई।
' कोई बात बनी क्या बाप?'
'हां बनी...आजा इधर। ' लम्बात जी से उस दिशा मे बढ़ता हुआ बोला जिधर जोजफ गया था।
दलपत की अभी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह सस्पेंस में फंसा उसके साथ चलता रहा।
जोजफ मंच के दायीं और ऐसी दूरी पर भीड़ में जा बैठा जहां से मंच पर भाषण देने वाले व्यक्ति
को आसानी से देखा जा सकता था।
लाम्बा को यह समझते हुए भी देर नहीं लगी कि जोजफ के आसपास बैठे अधिकतर आदमी माणिकी देशमुख के आदमी हैं।
एक परकार से वहां माणिकी देशमुख का ग्रु प जमा था। उसकी निगाहें विशेष रूप से जोजफ की हरकतों को नोट कर रही थीं। जबकि जोजफ मंच की ओर देखता हुआ कभी अपनी दायीं ओर छाले आदमी से कुछ कहता तो कभी बायीं ओर वाले से।
तभी!
श्या म दुग्गल मंच पर आपहुंचा।
उसकी सुरक्षा का घेरा तब पूरी तरह उसके साथ नहीं था। ब्लैकी कैट कमा ण्डो ज ज्यादातर मंच की सीढियों पर रुके रहे थे। सिर्फ दो कमाण्डो ऊपर पहुंचे थे और मंच के पिछले भाग में खड़े थे।
___ 'काने।' तमाम हालत देखने के बाद लाम्बा धीमे स्वरमें बोला- ' यही सही वक्त है। हमें दुग्गल तक उसकी मौत की खबर पहुंचा देनी चाहिए।'
'लेकिन कैसे मालिकी?' दलपत चिंतित स्वर में बोला।'यह दे ख...मंच के नीचे सीढ़ियों के करी ब जो लम्बा-सा आदमी खड़ा है , वह दुग्गल का सैक्रेटरी है।'
'ठीक।'
'यह लिफाफा ले जाकर उसे देना और की हना कि पार्टी हाईकमान ने फौरन ही दुग्गल तक पहुंचा देने का आदेश दिया है। वैरी इम्पोर्टेन्ट है। ' लम्बा ने लिफाफा जेब से निकालकर उसके हवाले करते हुए कहा।
उसने तुरन्त लिफाफा संभाला और मंच की ओर बढ़ चला।
____ मंच की सीढ़ियों तक पहुंचने में हालांकि उसे कठिनाई हुई थी-लेकिन किसी तरह वह दुग्गल के सैक्रेटरी तक पहुंच ही गया।
' मंत्री जी के लिए बहुत खा स मैसेज है। फौरन उन तक पहुंचा दें। ' लिफाफा सैक्रेटरी को देता हुआ वह इस प्रकार हांफता हुआ बोला मानो बहुत दूर से दौड़ता हुआ आ रहा हो।किसका मैसेज है ?'
'पार्टी हाईकमान का।'
'पार्टी हाईकमान का।'
' हां। प्लीज...शीघ्रता करें, यदि आपने देर की तो हाईकमान को मैं जवाब न दे सकूँगा।'
सैक्रेटरी ने देखा।
लिफाफे पर लाल स्याही से अर्जेट लिया था। नीचे दुग्गल का नाम।
पार्टी हाईकमान के नाम पर सैक्रेटरी घबराया हुआ सीढ़ियां चढ़कर मंच पर जा पहुंचा।
दुग्गल का भाषण आरंभ हो चुका था।
फिर भी सैक्रेटरी ने लिफाफा माइकी के पीछे रखे स्टैंड पर रख दिया। जिस पर दोनों हाथ टिकाए
दुग्गल भाषण दे रहा था।
' सर ... हाईकमान का इम्पोर्टेट मैसेज है।' पीछे हटता हुआ वह धीमे स्वर में बोला।'
दुग्गल ने अपना भाषण जारी रखते हुए धीरे-से लिफाफा उठाकर फाड़ाऔर अन्दर रखी स्लिप निकालकर डेस्की पर रख ली वह जल्दबाजी में कोई काम नहीं कर रहा था।
उसके भाषण का सिलसिला बना हुआ था। वह उस सिलसिले को तोड ना नहीं चाहता था।
स्लिप पर उसकी फिसलती हुई-सी नजर पड़ रही थी। उस पर लिखे शब्दों पर उसकी नजर ठहर नहीं पा रही थी।
फिर उसके भाषण के दौरान तालियों की गूंज उमड़ पड़ी।
उसने जनता के लिए किसी सुखद सूचना का ऐलान किया था।
तालियों के लम्बे सिलसिले के दौरान उसने स्लिप में लिखी इबारत पढ़ी ।
लिखा था।
हरामखोर दुग्गल ,
मैंने तुझे वार्मिग दी थी लेकिन तू न माना।
आखिर अपनी मौत के मुंहमें खुद चलकर आ गया है। खैर.. . मरने से पहले मैं तुझे तो खबर दूंगा ही कि तू जिन लोगों की हिटलिस्ट में था-उन लोगों ने तेरी मौत का ऐसा इंतजाम कर दिया है कि अब तू चाहे तो भी अप ने-आपको किसी तरह बचा नहीं सकेगा। अपने भगवान से अपने गुनाह बख श वा ले। तू इस वक्त बारूद के ऐसे देर पर खड़ा है जो पलकी झपकते तेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े बिखरा देगा। इस मंच के अंदर जिसके ऊपर
तू खड़ा है, बारूद ही बारूद भरी है।
मैं तुझे ये इन्टीमेशन महज इसलिए दे रहा हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तू अपनी मौत से
नावाकिफ रहे। एक धमाका हो और तेरे चीथड़े
उड .जाएं। मैं तेरे चेहरे को मौत की दहशत
जर्द होता देखना चाहता हूं । मरने के लिए
तैयार
हो जा।
स्लिप पढते-पढ़ते दुग्गल के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं। चेहरे पर राख जैसी सफेदी फैल गई।
__ मौत के खौफ ने एकाएक ही उसे पागल जैसा बना दिया।
उसके चेहरे पर बौखलाहट बढ़ती ही जा रही थी। वह एकाएक ही घबराया हुआ -सा मंच के आगे आया-। शायद नीचे कूद ही जाता मगर मंच की ऊंचाई ज्यादा थी और उसकी हिम्मत कम।
वहमंच से न कूद सका।
पब्लिकी में तालियों का सिलसिला खत्म हो चुका था वह अचाम्भित-सी अपने नेता को पागल होते देख रही थी। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
पांच पर मौजूद दोनों कमाण्डोज आगे आ ए । उन्होंने दुग्गल को संभाला।
'बारूद ! बारूद! भागो! भागो!! ' वह चिल्लाता हुआ भागने लगा तो दोनों कमाण्डोज ने
उसे पकड़ लिया।
उन्हें लगने लगा था कि दुग्गल पागल हो चला है। दुग्गल पूरी शक्ति के साथ उनका विरोध करने लगा। ऐसा करते हुए जनता को भी यही मह सूस होने लगा कि उनका नेता पागल हो चला है।
कोलाहल के साथ भागम-भाग। त माम अधिकारी मंच की ओर दौड़ पड़े।
इसी बीच!
कानों के पर्दे फाड़ देने वारना धमाका हुआ और मंच का पेट फाड़कर आग और धुआ एक बवण्डर के रूप में आसमान की तरफ उठता चला गया।पांच पर मौजूद तमाम लोगों के परखच्चे मलबे के साथ उदगय।
हाहाकार मच गया।
मंत्री श्याम दुग्गल की हत्या की खबर जंगल की आ ग की तरह फैलती चली गई।
जनता इधर से उधर भाग रही थी।
विस्फोट बेहद शक्तिशाली था।
उसके लपेटे में आसपास के लोग भी आ गए थे।
प्रशासन ने वहां जो सुरक्षा व्यवस्था बनाई थी , वह टूट कर बिखर गई थी। कुछ नहीं हो पा रहा था।
10 ………………………….
काली कार मैं विनायकी देश मुख अपने दो आदमियों के साथ था।
विस्फोट के फौरन बाद उसने ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने का आदेश दे दिया ।
अभी ड्राइवर ने कार स्टार्ट ही की थी कि कार के पिछले हिस्से के दोनों दरवाजे खुले और दाएं-बाएं से पिछली सीट पर तन्हा बैठे विनायकी देशमुख को की छ करने का अवसर दिए बिना लाम्बा और दलपत ने दबोच लिया।
आगे बैठा ज्या दा पीछे की हरकत से चौंककर पलटा।
'खबरदार ! ' लाम्बा अपनी पिस्तौल विनायकी के माथे से सटाता हुआ फुफकार चुपचाप सीधा होकर बैठ जा वरना विनायकी की बाप को तू जवाब नहीं दे पाएगा।'
दलपत ने अपना रिवाल्वर विनायकी की पसलियों में लगा रखी था।
दोनों के हाव-भाव खतरनाकी थे।
गाड़ी आगे बढाने का हुक्म दे हरामजादे! ' लाम्बा ने विनायकी को टाइट किया।
___ 'गा.. . गाड़ी आगे बढ़ाओ।' विनायकी देशमुख की म्पि त स्वर में बोला।
उसके आदेश का तुरन्त पालन हुआ।
'सुन! गौर से सु न! अगर तेरे प्यादों ने किसी तरह की हरकत की तो एक ही बार ट्रेगर दबाकर तेरा भेजा खोपड़ी से बाहर निकाल दूंगा !'
'न... न ... नहीं। ' वह कांपकर बोला-'कोई हरकत - करना। जो मिस्टर लाम्बा कहें , उसी का पालन करो।'
लैफ्ट मोड़ लो। 'लाम्बा ने ड्राईवर को आदेश दिया।
ड्राइवर ने आदेश का पालन किया।
दूसरा प्यादा भी पत्थर की मूर्ति बना चुपचाप बैठा रहा।
'स्पीड बढ़ाओ।'
कार की स्पीड पद्गाये । वह ह वा से बातें करने लगी। गाड़ी रोको ! ' एक जगह लाम्बा ने गाड़ी रुकवा दी। वह जगह एकदम वीरान थी। लम्बी सड़की दूर तक चली गई थी।
सड़की पर कोई ट्रैफिकी नहीं था।
'तुम दोनों उत्तर जाओ ! लम्बा ने विनायकी के दोनों आदमियों को आदेश देते हुए कहा यहा से तुम्हें पांच किलो मीटर पैदल चलना पड़ेगा और तब जाकर तुम टेलीफोन सुविधा जुटा सकोगे। फिर तुम अपने बाप माणिकी देशमुख को मेरे कारनामे की खबर कर देना।'
दोनों प्यादे तुरन्त ही कार से उतर गए।
'दलपत ने तुरन्त ड्राइवर की जगह संभाल
ली।
'चल काने , जितनी तेज चल सकी ता हो उतनी तेज चल।'
दलपत ने तुरन्त कार को दौड़ाना आरंभ कर दिया।
'मुझे कहां लिए जा रहे हो ?' विनयकी देशमुख ने डरते-डरते पूछा।
'तुझे अगवा किया जा चुका है बास्टर्ड! अब बेवकूफी भरे सवाल मत कर। ' लम्बा पिस्तौल की नाल उस की पसलियों में चु भाता हुआ गुर्राया।
'देखो ... मैं ..!'
'तू कुछ नहीं। तू मेरे बदले के काम में. इ स्ते माल होगा।'
' मेरे डैड तुम्हे छोड़ गे नहीं। अभी तुम्हें उनके गुस्से की वाकफियत नहीं है।'
__ 'अभी तुझे मेरी वाकफियत नहीं है। ' कहता हुआ लम्बा कार ड्राइव करते हुए दलपत से संबोधित हुआ-रफ्ता र न और बढा काने और तेज चल!'
दलपत ने एक्सीलेटर पर पर का दबाव कुछ और बढ़ा दिया।
कार तूफानी रफ्तार से दौड़ने लगी।
'देखो मुझे छोड़ दो , तुम्हें ढेर सारा रुपया दिलवा दूंगा।' विनायकी देशमुख लम्बा को समझाने
की कोशिश करता हुआ बोला।बच्चों जैसी बातें मत कर। कहीं मेरा भेजा घूम गया तो तू वक्त से पहले ही इस फानी दुनिया से कूच
कर जाएगा।'
विलायकी देशमुख परेशान था।
उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह जो भी स्कीम लाम्बा के सामने पेश करता , वही फेल हो जाती। उसकी उलझन निरंतर बढ़त चली जा रही थी।
लम्बा को ए काएक ही उसकी तलाशी लेने का विचार आया तो उसने विना यकी की जेबें टटोलनी शुरू कर दी।
_ 'मेरी तलाशी हो चुकी है। ' उसका आशय समझता हुआ विनायकी बीच में ही बोल उठा।
'हो चुकी है ?'
' हां।'
'कब?'
'मैंने ली थी बाप, जब मैं पीछे वाली सीट पर बैठा था।
यह रिवाल्वर निकली थी इस बिंदु के पास। 'कार ड्राइव करता दलपत बीच में बोल उठा।
' रिवाल्वर अपने पास ही रख । '
अंदर वाली जेब से रिवाल्वर निकालने की कोशिश करते दलगत ने रि वा ल्व र बीच में ही छोड़ दी।
कुछ देर बाद लम्बा ने दलपत को दायीं ओर मुड़ने का आदेश दिया।
दलपत ने तुरंत ही आदेश का पालन किया।
फिर वह लम्बा के निर्देशानुसार कार ड्राइव करता रहा।
अन्त में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग में जाकर कार रुकी।
बिल्डिंग मे निर्माण कार्य बंद था। शायद किसी कारण वश निर्माण कार्य बीच में ही रोकी दिया गया था ।
लम्बा ने विनायकी देशमुख को कार से बाहर निकाल लिया। फिर वह द लपत की ओर अकृष्ट होता हुआ बोला- इस कार को यहां से ले जा और कहीं दूर
छोड देना।'
'जो हुक्म मालिक।' 'आसपास से सावधान रहना।'
'बरोबर।'
'जल्दी जा और जल्दी लौटकर आ। '
दलपत ने कार वहां से आगे बढ़ा दी।
 
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पूनम हॉस्पिटल में नहीं ?' लाम्बा ने आश्चर्य से दलपत की ओर घूरकर देखते हुऐ कहा।
'नहीं बाप उधर चिड़िया का बच्चा भी नहीं है। ' दलपत लापरवाही से सिगरट फूलता हुआ बोला।
'आई सी... | लम्बा-विचारों में डूबता हुआ बड़बड़ाया।
क्या आई सी...मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।'
माणिकी देशमुख का ये कदम सुरक्षात्मकी है , मेरी समझ में आ रहा है।'
'मतलब?'
'मतलब यह कि विनायकी के अपहरण कि खबर के फौरन बाद वह सावधान हो गया और उसने सबसे पहले पूनम को हॉस्पिटल से हटाया। उसे डर था कि कहीं मैं विना यकी के बाद पूनम का भी अपहरण न कर लूं।'
'हां...ये बात तो है।'
'कोई बात नहीं, मजा आ एगा।'
'मजा तो आएगा बाप लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि चार दिन हो गए और अभी तक आपने कुछ किया नहीं। विनायकी को अगवा करके उसे चुपचाप खिलाए-पिलाए चले जा रहे है। '
लम्बा धीरे से हंसा।
'इस हंसी का राज क्या है आखिर ?' तू समझदार है काने ।' नहीं हूं।'
' सयाना है फिर भी समझ नहीं रहा है। अरे...अगवा करने के बाद फौरन पार्टी से बात कुरने से तड़प पैदा नहीं होती।'
'तड़प?'
हां.... तड़प जरूरी है काने। बहुत जरूरी है। मैं ने अब तक माणिकी देशमुख से किसी भी माध्यम से संपर्की नहीं बनाया जबकि देशमुख मुझसे बात करने के लिए परेशान होगा। वह जल्द से जल्द विनायकी की खबर हासिल कर लेना चाहता होगा।
चाहता होगा न?'
'हा।'
' उसने मुझे मार डालने में कोई कसर नहीं उठा रखी , इसलिए कम से कम मैं उसे तड़पाने का हकी तो रखता ही हु ।'
दलपत रहस्यपूर्ण ढग से मुस्कराया।
उसके चेहरे के बदले हुए भावों से स्पष्ट हो रहा था, अब वह लम्बा की बात को भली-भांति समझ रहा था।
चार दिन हो गए देशमुख को तड़पते हुए बाप। अब आप तड़प की खातिर नहीं पूनम भाभी की
खातिर खडूस से बात तो कर ही लें।'
' ऐसा ?'
'हां।'
'तू कहना है तो कर लेता हूं।'
दलपत पुन: मुस्कुराया।
'गाड़ी कहां है?'
'आ गे वाली उसी गली में।'
'ठीकी है। मैं जाता हूं। तू इधर विनयकी का ध्यान रखना। उसके खाने का वक्त हो रहा है। '
'दे दूंगा खाना।'
'होशियार रहना , कहीं वह तेरे को चोट दे
जाए।'
'दलपत नाम हे मेरा बाप। '
'तेरा नाम बब्बर शेर क्यों न हो , उससे कुछ नहीं होता। जेंब चोट होती है तो हो ही जाती है।'
'वो मुझे चोट नहीं दे पाएगा।'
'ओवर कॉन् फी डेंस में ही आदमी चोट खाता है।'
' आप निश्चिन्त रहें। मैं पूरी तरह सविधान रहूंगा।'
'फिर ठीकी है। चलता हूं। ' इतना कहकर लम्बा बिल्डिंग की सिदियों की ओर बढ़ गया! '
नीचे पहुंचते-पहुंचते उस ने अपने लिए सिगरेट सुलगा ली! वह बिल्डिंग के पिछले भाग से
बाहर निकला । रा त के अंधेरे में बिल्डिंग की अधूरी बनी बाउंड्री वॉल पार करना कोई मुश्किल काम नहीं था।
अंधेरे में चल ता हुआ वह उस छोटी गली में पहुंचा जहां उसकी किराए पर हासिल की गई कार खड़ी थी।
गली वीरान पड़ी थी।
उसने कार को गली से बाहर निकाला और फिर कार फर्राटे भरती मुख्य सड़की पर दौड़ने लगी।
शीघ्र ही उसकी कार टेलीफोन बूथ के निकट जा रुकी।
उसने नम्बर डायल किए।
'मुझे माणिकी देशमुख से बात करनी है। ' दूसरी ओर से जैसे ही किसी ने रिसीवर उठाया , वह एक दम से तीखे स्वर में बोला।
'कौन हो तुम?' दूसरी ओर से उभरने वाली कोठारी की आवाज उसने तुरन्त ही पहचान ली।
'वक्त बरदाद मत करो। मेरे पास वक्त बहुत कम है।'
'लाम्बा ?
'शुक्र है...पहचाना तो।' 'मैं कोठारी हूं। मुझे बताओ।'
' मैं ने तुमसे नहीं माणिकी देशमुख से बात करनी है।'
' विनायकी कहां है ?'
'कोठारी! ' एकाएक ही लम्बा के स्वर में चट्टान जैसी सख्ती आ गई।
'ओ० के०। मैं देशमुख साहब को बुलाता हूं ... होल्ड करो।'
उसने कोई जवाब नहीं दिया।
दूसरी ओर लाइन पर खामोशी छा गई।
लम्बा ... लम्बा मेरा बेटा ...मेरा विनायकी कहां है लम्बा ?' एकाएक ही दूसरी ओर से एक हां फता हुआ बौखलाहट भूरा स्वर उभरा ।'
लाम्बा उसे पहचान गया।
वह स्वर माणिकी देशमुख का था। उसके स्वर से बेटे के वियोग की तड़प स्पष्ट झलकी रही थी।
'तेरा बेटा अभी जिन्दा है देशमुख। ' सिगरेट फूंकता लम्बा जहरीले स्वर में गुर्राया।
'मेरा बेटा वापस कर दे वापस कर दे उसे! '
'मुझे मरवाने का तेरा नया प्लान क्या है?'

'कोई नहीं कोई भी नहीं।'
कोई तो जरूर होगा , क्योंकि तू दो फ न वाला सांप है। खतरनाकी भी और मक्कार भी।'
'मेरा विश्वास कर , अब मैं तेरे खिलाफ नहीं। मुझे तो पछतावा हो रहा है तुझ पर गोली चलाने
का ।'
भेड़िया भेड़ की खाल ओढ़ ले तो भेड़ थौड़े ही बन जाता है , वह रहता तो भेड़िया ही है। 'नहीं...मैं तुझ पर कभी किसी तरह का बार नहीं करूंगा।'
'पूनम कहां है ?'
दूसरी ओर खमोशी छागाई।' ' तूने जवाब नहीं दिया ?'
'पूनम जहां भी है, सकुशल है। दूसरी ओर से माणिकी देशमुख का अपेक्षाकृत कठोर स्वर उभरा।'
'मैं उससे बात करना चाहता हूं।'
' अगर मैं इंकार करू तो?'
'तो बहुत कुछ गलत हो सकत है।'
'जैसे?'
'विनायकी के जिस्म से थोड़ा-सा खून निकल सकी ता है । उसके जिस्म का कोई हिस्सा
काटकर अलग किया जा सकता है।'
'नही! ' देशमुख का तड़प भरा स्वर उभरा। 'तो , फिर मैं पूनम से बात करना चाहता हूं।
'उसे जगाना पड़ेगा। वह बड़ी मुश्किल से सो सकी है। दोबारा जागी तो न मालूम फिर कैसे संभल ।'
'क्या' उसकी तबियत ज्यादा खराब है ? '
' बाकी ठीकी है। लेकिन एक घाव गहरा है। वह तकलीफ देने लगता है।'
'हूं... I ' हुंका र भरता लाम्बा सोच में डूब
गया।
___ 'जगा दूं?' कुछ देर बाद माणिकी देशमुख का स्वर उभरा।
'नहीं।
' मेरी बेटा ?'
'तेरा बेटा तुझे मिल सकता है।'
' तेरी जो भी मांग हो , जितनी बड़ी रकम तुझे चाहिए-तू मुझसे मांग सकता है। '
'रकम । ' लम्बा जोर से हंसा।
'हां...कोई भोई रकम।'
'रकम मुझे नहीं चाहिए।'
' फिर ?'
'पूनम चाहिए। पूनम मुझे दे-दे। विनायकी मुझसे वापस ले ले।'
'यह...यह कैसे हो सकता है। '
'जैसे भी हो । यही एक शर्त है।'
'कोई भी रकम मांग ले!' ___ 'कोई रकम नहीं चाहिए। सिर्फ पूनम चाहिए। जवाब फौरन दे देशमुख...मैं बार- बार फोन करके वक्त बरबाद नहीं करना चाहता।'
'एक मौका दे। मैं फैसला करने के लिए थोड़ा-सा!' वक्त चाहता हूं।'
'ठीकी है , फैसला कर ले मगर जल्दी।'
'हां।'
'लम्बा ने रिसीवर हुकी में लटकाया और फिर वह टेलीफोन बूथ से बाहर निकल गया।'रास्ते भर लम्बा सावधानी के साथ कार ड्राइव करता हुआ आया था। उसने बैकी व्यू मिरर से बहुत कम नजर हटाई थी। ' वह... नहीं चाहता था कि को ई उसका पीछा करता उसके उस ठिकाने तक पहुंच जाए जहां उसने अपनी पकड़ छिपा रखी है।
वह विनायकी को ट्रम्प कार्ड की तरह प्रयोग करना चाहता था।
रास्ते मे उसे कहीं भी पीछा किए जाने का शकी भी नहीं हुआ।
उसने अपने ठिकाने के निकट वाली अंधेरी गली में अंत में अपनी गाड़ी मोड़कर पार्की कर दी। कार के शीशे चढाकर उसे लौकी करने के बाद वह जयोंही गली के बाहरले हिस्से की तरफ मुड़ा , उसे लगा कि उस तरफ कोई था। '
वह चौंका।'
लेकिन शीघ्र ही उसने , अपने-आपको सहज कर लिया।
वह इस प्रकार गली से बाहर निकला जैसे काई बात हुई ही न हो।
बाहर आने पर वहां के सन्नाटे को देख उसे संदेह हुआ। कहीं वह व्यर्थ ही तो नहीं चौंका था।
कहीं कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

उसने गर्दन झटकी और कदम आगे बढ़ा
दिए।
निकट ही वही निर्माणाधीन बिल्डिंग थी जिसमें उस पहुंचना था। उस्ने दूर से बिल्डिंग की ओर
देखा।
बिल्डिंग में जनहीन सन्नाटा व्याप्त था।
उसे लगा , उसका शकी निराधार था।
उसने बिल्डिंग के पिछले भाग से बाउंड्री बॉल पर की। फिर पलट कर बाहर देखा ।
कहीं कुछ नहीं था।
अस्रास्रुत होते हुए उसने बिल्डिंग में दा खिल होते हुए सीढ़ियां तय करनी शुरू कर दी। सीढ़ियां पार करके वह दूसरे माले पर पहुंचा।
दूसरे माले के पिछले भाग में उसने विनायकी देशमुख को बंद कर रखा था। उस हिसाब से दलपत काने को वहीं कहीं आसपास ही होना था।
'काने !' उसने धीमे स्वर में पुकारा ।

प्रत्युत्तर में खामोशी छायी रही।
उसने एक बार फिर अरावाज दी।
पुन: खामोशी।
वह पहले चौंका , किन्तु जिस कमरे में वह विनायकी देशमुख को कैद करके गया था , उसके दरवाजे बंद देख उसकी घबराहट खत्म हो गई।
सम झ गया कि दलपत जरूरत की कोई चीज लेने आसपास ही गया होगा।
उसने वह कोना देखा ही खाना रखा गया था।
खाना अपनी जगह नहीं था।
इसका मतलब उसके आदेशानुसार दलपत ने विनायकी को खाना दे दिया था।
वह विनायकी को देखने उसके कमरे की ओर चल पड़ा।
कमरे के दरवाजे का कुंडा लगा हुआ था।
उसने कुंडा खींचकर दरवाजा खोला।
अंदर अंधेरा जरूर था । लेकिन अंदेराइतना क्या नहीं था कि वह फश पर पड़े दलपत और विनायकी में फर्की न कर सके।
कमरा छोटा था।

और!
कमरे के फर्श पर दलपत औंधा पड़ा था।
उसकी पीठ में कितनी ही गोलियों ठुकी मलूम हो रही थीं। वह खून में फैला पड़ा था। कमरे में उसके अतिरिक्त और कोई नहीं था।
'काने लाम्बात जी से उसके निकट पहुंचा। उसका निरीक्षण करता हुआ वह बोला- ' विनायकी कहां गया और यह तुझे...? '
जवाब उसे स्वयं ही मिल गया।
दलपत मर चुका था।
एक पल के लिए उसने सोचा।
फिर वह फुर्ती के साथ उठकर बाहर निकला। कॉरडो र में आते ही अंधेरे में एक शोला चमका।
फायर की आवाज हुई।
उसके साथ ही उसे लगा कि उसके पेट में आग का गोला उतरता चला गया हो।
उसने नमकी के मोड़ पर एक काले साए को देख लिया था।
वह फर्ती से नीचे गिरा।'
उसका एक हाथ पेट के घाव पर जा पहुंचा।
गर्म चिपचिण तरल उसे अपने उस हाथ के माध्यम से बहता स्पष्ट अनुभव हो रहा था।
उसने दूसरे हाथ से माउजर निकाला और फिर फायरों के धमाके से समूची बिल्डिंग थर्स उठी।
काला साया उछलकर पीछे जा गिरा।
निश्चित रूप ऐ उसे गोली लग गई थी
लाम्बा को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके पेट में आग ही आग भर दी गई हो।
दांत भींचे हुए वहमाउजर साम ने की ओर ताने आगे कीकीओर बढ़ चला।
बहता हुआ खून उसकी जांघों तक क्त पहुंचा
था।
वह पीड़ा के चूंट पीता आगे बढ़ता रहा।
सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उसे मुख्य द्वार की ओर हलचल सुनाई दे गई।
उस ने जेब से ग्रेनेड निकाला। खून में स ने हाथ से उसने ग्रेनेड पकड़ा कर उसकी पिन दांतों से खींची और फिर ग्रेनेड फुर्ती से नीचे उछाल दिया। ,
भयंकर विस्फोट हुआ।
विस्फोट के साथ ही मलबा और दुवां उछला। बारूद की तीखी गंध फैलती चली गई।'
 
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वह वि स्फोट के बाद बेखौफ सीढ़ियां उतरता चला गया।
उसे अपने पेट में उतर जाने वाली गोली से पैदा होने वाले खतरे का एहसास हो गया थी।
जब वह बाहर आया तो खून से लथपथ था।
उसे अपने दिमाग में आधियां-सी चलती महसूस हो रही थीं। आंखों के आगे रह-रहकर अंधेरे
की काली पर्ते भी गिरने लगी थीं।
बिल्डिंग के बोहर आते ही उसने दो आदमियों को वहां से भागते देखा।
उसका माउजर घूमा।
पहला आदमी निशाने पर आते ही उसने ट्रेगर दबा दिया।
गोली उसका भेजा उड़ाती हुई निकल गई। बह अचानकी कटी पतंग की तरह हवा में तैर गया।
पलकी झपकते मा उजर के एक के पीछे एक छूटे कई बुलेट तेजी से दूसरे आदमी की पीठ से ध सते चले गए। दौड़ते-दौड़ते उसने झटका खाया
और फिर वहीं ढ़े र होता चला गया
वह समझ चुका था कि वंहा फैले आदसी विनायकी देशमुख के कारण ही थे।
जो भी हुआ था , विनायकी के लिए ही हुआ था।.
क्योकि वही गायब था।
दलपत उसकी जगह लाश के रूप में पड़ा था।
दिमागी घोड़े दौड़ा ता लाम्बा बाहर भोगा
बाहर खड़ी कार को उसने चैकी किया ।
कार खाली थी।
शायद वहां मौजूद आदमी उसी कार में आए थे। वह फुर्ती से कार मैं बैठ गया। चाबी मौजूद थी। उसने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। कुछ दूर तक कार अंधेरे में चली।
रात के अंधेरे में नहीं, उस की आंखों के आगे आजाने वाले अंधेरे में।
खून लगातार बहता जा रहा था।
उसकी आंखों का अंधेरा जब छंटा तब कार सड़की कि नारे की रेलिंग-तोड़ती हुई आगे बढ़ी थी।
उड़ाने फुर्ती से कार को मोड़कर बीच सड़की पर पहुंचाया।
कार तेज रफ्तार से दौड़ने लगी।
वह जल्दी से जल्दी माणिकी देशमुख की कोठी पर पहुंचा जान चाहता था।
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माणिकी देशमुख की कोठी का फाटकी कार की तूफानी टक्कर से टूटकर खुल गया।
लम्बा उसे ड्राइव करता कोठी के ड्राइव-वे पर 'बढ़ाता चला गया।
चारों तरफ से सर् च लाइटों का प्रकाश फैलकर कोठी के सामने वाले भाग में फैल गया। आगे बढ़ती लाम्बा की कार पर गोलियां बरसाई जाने लगीं।
पोर्टिको के करीब पूर हुंचते-पहुंचते कार रुकी गई।
गोलियां कार पर इस तरह बरस रही थीं जैसे मुस लाध र वर्षा की बौछारें।
लाम्बा कार के अन्दर स्टेयरिंग के नीचे घुस
गया।
अचानक!
अचानकी ही गोलियों की बौछारें एक झट के के साथ बन्द हो गई।
_' नहीं! नहीं! मत मारो उसे! ' पूनम का चीत्कार उभरा।
दौड़ती हुई पगचा ला म्बा ने कार की तरफ बढ़ती सुनीं।
पूनम की आवाज वह किसी भी स्थिति में पहचान सकता था। हालांकि उसकी आंखों के आगे बार-बार अंधेरा छा र हा था। फिर भी उसे पूनम कोई उपस्थिति का आभास हो रहा था।

कार का दरवाजा खुला।
'रंजीत...रंजीत पूनम की व्याकुल कर देने वाली पुकार।
लम्बा ने अपना कांपता हुआ हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
उसने लाम्बा के खून सने हाथ को सहारा दिया।'
वह घिसटकर कर से बाहर निकला।
'सब...सब ठीकी हो जाएगा रंजीत। मेरे रहते तुम्हें कुछ नहीं होगा।'
'जो होना था...हो चुका ... पूनम ... हो ...
चुका।'
'नहीं।'
'अब तो विदाई का...आह...वक्त आ.. आपहुंचा है।'
माणिकी देशमुख अपने प्यादों समेत वहां मौजूद था।
विनायकी भी वहीं था।
'पूनम को हटा ले विनायक। ' माणिकी ने अपने बेटे को आदेश दिया।

'नहीं! मुझे रंजीत से कोई अलग नहीं कर सकता।' पूनम बिफर कर चिल्लाई।
विनायकी ने बलपूर्वकी उसे लाम्बा से अलग कर दिया।
लम्बा ने देखा।
वह चारों तरफ से घिरा हुआ था।
तभी माणिकी देशमुख ने जोजफ को इशारा किया।
जोजफ ने रिवाल्वर लाम्बा की ओर तानकर दो फायर किए।
लाम्बा की चीखें वहां गूंज कर लुप्त हो गई।
पूनम ने उस दृश्य को देखा। पागल-सी हो उठी वह।
उसकी फटी-फटी आँखें कभी खून में डूबे लम्बा को देखतीं तो कभी अपने वहशी बाप को।
उसका बायां हाथ वि ना यकी की गिरफ्त में था। दायां खाली था।
एक झटके के साथ उसने विनायकी के होलस्टर से रिवाल्वर खींच निकाला।
जब तुकी विनायकी उसे काबूर में करता तब
तक वह अपनी कनपटी से रिवाल्वर सटाकर ट्रेगर दबा चुकी थी।
' पूनम !' माणिकी देशमुख कातर भाव से आर्तनाद करता पूनम की ओर लपका ।
उसी क्षण लम्बा ने करवट बदली।
उसके माउजर ने जोजफ को निशाने पर लेकर गोलियां उगलनी शुरू कर दी।

__ चारों तरफ से लम्बा पर गोलियां बरसाई जा रही थीं। लेकिन वह गोलियों के झटके सहन करता तब तक माउजर चलाता रहा जब तक कि जोजफ पछाड़ खाकर गिर न गया।
उसके बाद उनकी गर्दन एक ओर ढुलक गई।

समाप्त
Story complete doston saath Bane Rahne ke liye dhanyawad
 

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