Thriller बारूद का ढेर(Completed)

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कोठारी खुद चलकर रंजीत लाम्बा के पास पहुंचा।

उस समय लाम्बा के एक हाथ में चाकू और दसरे हाथ में सेब था। वह सेब को काटने जा रहा था।

'आओ-आओ कोठारी...आओ। ' उसने मुस्कराते हुए कहा और सेब काटकर उसका एक हिस्सा कोठारी की ओर बढ़ा दिया।

कोठारी ने सेब का टुकड़ा ले लिया लेकिन वह निरन्तर लाम्बा की आंखों में अपलकी झांकता रहा। उसके चेहरे का तनाव और खामोशी उसके गुस्से को बिन कहे जाहिर कर रही थी।

__'क्या हुआ ?' एकाएक ही लाम्बा ने गंभीर होते हुए पूछा। मुस्कान उसके चेहरे से इस तरह से गायब हो गई मानो मुस्कराना उसे आता ही न हो।

प्रत्युत्तर में को ठारी ने सेब का टुकड़ा गुस्से में कमरे के फर्श पर पटकी दिया।

'कोठारी! ' लाम्बा की आँखें क्रोध से जलने लगीं।

'डायन भी सात घर छोड़ दिया करती है! ' कोठारी घायल सर्प की भांति फुफकारा।

लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए। मुट्ठियां कस गई।

तनाव से भर उठा वह। उसकी समझ में आ गया था , कहां बोल रहा था कोठारी।

'अभी तुम्हारी नौकरी महज तीन महीने पुरानी हुई है। अगर देशमुख साहब को पता चला तो खड़े पैर निकाल देंगे।'

'नौकरी लाम्बा के होटों पर विषाक्त मुस्कान फैल गई -नौ कर की परवाह रंजीत लाम्बा ने अपनी जिन्दगी मैं कभी नहीं की। तूं नहीं और सही और नहीं और सही।'

___ 'इसके मुकाबले की नौकरी हासिल नहीं कर सकोगे।'

' इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है। इससे भी अच्छी नौकरी हासिल हो सकती है। '


'जो कुछ तुम कर रहे हो, उस रास्ते पर मौत भी मिल सकती है।'

'मौत के भी दांत खट्टे कर दूंगा।'

'रंजीत लाम्बा जैसे अनगिनत किराए के हत्यारे देशमुख- साहब की सेवा में हमेशा बिछे रहते हैं। देशमुख साहब के सामने तुम्हारी बिसात ही क्या।'

' हर आदमी अपनी मर्जी का मालिकी है। मैं अपने मन की बात करने के लिए आजाद हूं और देशमुख साहब अपनी। '

' यानी । तुम पूनम के लिए देशमुख साहब से टकराने को तयार हो?' कोठारी ने अपनी गंजी खोपड़ी साहब पर हाथ फेरते हुए आश्चर्य से लाम्बा की तरफ देखा।

'जब बात खुल ही गई है तो फिर किसी से टकी राने में कोई फर्की नहीं पड़ने वाला। '
'अभी बात पूरी तरह नहीं खुली है।'
'मतलब?'
कोठारी ने उसकी ओर देखते हुए सिगरेट का पैकेट निकाला , एक सिगरेट सुलगाई , धुवां उगला , फिर, कुछ रुककर बोला- ' मतलब ये कि अभी तुम्हारी आशनाई की कहानी देशमुख साहब तक नहीं पहुंची है।'तो फिर?'

'अ भी रिपोर्ट सिर्फ मेरे पास तक है । अगर देशमुख साहब तक खबर पहुंची होती तो अब तक हंगामा खड़ा हो चुका होता।'

'क्या चाहते हो ?' ' इस खेल को यहीं खत्म कर दो।'

' फिर?'

' मैं बात आगे बढ़ने नहीं दूंगा।'

'मुश्किल है।'
'यानी ?'
'पूनम को मैं तो भुला सकता है लेकिन पूनम मुझे नहीं भूलेगी । मैं उससे मिलना बन्द कर सकता हूं , वहमुझसे मिलना बंद नहीं करेगी।'
'तुम कह रहे हो ना...पूनम नहीं।'
'तो तुम पूनम से जाकर पूछ लो।' 'पूछने की कोई जरूरत नहीं है।'
'फिर?'
'तुम्हें उससे मिलना बन्द करना होगा। मैं नहीं चाहता कि किसी तरह की कोई बात उड़ती-उड़ती देशमुख साहब के कानों तक पहुंच जाए और देशमुख साहब तक खबर पहुंचने का मतलब होगा चिंगारी पैट्रोल तक पहुंच गई।'
'कोठारी तुम व्यर्थ ही बन्द-बन्द धमकी देकर मुझे नाहकी डराने की कोशिश कर रहें हो।'
' मैं तुम्हें सच्चाई बता रहा हूं रंजीत लम्बा ।'
'मुझे सच्चाई मालूम है।' ___ 'तो फिर क्यों ऐसा गलत कदम उठाने पर तुले हुए हो जिसका अंत अच्छा न हो। अभी अच्छी-भली नौकरी है। देशमुख साहब की नजरों में तुम्हारी इज्जत है, क्यों उसे मिट्टी में मिला देना चाहते
.
हो?'
' यह दिल का मामला है , तुम नहीं समझोगे।
'दिल के इस मामले को यहीं रोकी दो वरना पछताने के लिए वक्त नहीं रह जाएगा तुम्हारे पास।'
' उसकी फिक्र करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है कोठारी।'
' यानी तुम मानोगे नहीं ?'
'मजबूर हूं।'
'रंजीत.. .यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो।'


'तुम मेरी शिकायत देशमुख साहब से कर सकतें हो।'
'शिकायत अगर की रनी होती तो कब की कर चुका होता। मै शिकायत नहीं करूगा । मेरी आखिरी कोशिश यही रहेगी कि तुममें और देशमुख साहब में खटके नहीं। क्योंकि तुम्हारी कमी होने पर तुम्हारी कमी पूरी करने के लिए मुझे फिर एक लम्बी तलाश करनी पड़ेगी।'

'कुछ नहीं होगा कोठारी...तुम व्यर्थ ही घबरा रहे हो। कुछ नहीं होगा।'
' मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूं। तुम्हारे जैसे दिलफेंकी आशिकी जब तक कुछ
हो नहीं जाता तब तक यही राग अलापते रहते हैं ...कुछ नहीं होगा-कुछ नहीं होगा।'
' निश्चित रहो। सिर्फ इतना बता दो , तुम्हें इस खबर से वाकिफ किसने कराया ?'
_ 'वो मैं नहीं बताऊंगा।'
__ 'प्लीज...मैं सिर्फ जानना चाहता हूं उसके खिलाफ किसी तरह का कदम उठाने का कोई इरादा
नही है मेरा। 'तुम्हारे इरादों , तुम्हारी आदतों और तुम्हारे गुस् से को अच्छी तरह जानता हूं मैं । '
'मुझ पर भरोसा करो।' 'तुममें और बिच्छू में कोई फर्की नहीं। डंकी तो तुमने मारना ही मारना है।'
'नहीं...ऐसा नहीं है, तुम मुझे उसका नाम बता दो।'
'नही बताऊंगा।'
.
.
.
.
'यानी मुझे खुद ही उसकी तलाश करनी पड़ेगी।'
'तुम उसके बारे में सोचोगे भी नहीं।'
'रंजीत लाम्बा के होंठों पर जहर भरी मुस्कान फैल गई।
'रंजीत तुम्हें अपने काम से काम रखना है.. .बस! ' कोठारी उत्तेजित स्वर में बोला।
'हां...मुझे अपने काम से काम रखना है। ' 'नेकीराम का क्या हुआ ?'
' अभी वह सिगापुर से वापस नहीं लौटा है। जैसे ही वह वापस लौटेगा उसका काम हो जाएगा।'इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रहे हो। नेकीराम अपने नाम के अनुरूप नहीं विपरीत है। छोड़ भलाई सब गुण है उसमें। '
'उस की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। उसका नाम खत्म हो जाएगा।'

' मेरे विचार में तुम्हें सारा ध्यान उसी की तरफ लगा देना चाहिए। ' कहता हुआ कोठारी वहां से जाने के लिए मुड़ा। कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर उसके कदम रुके। बिना मुड़े ही वह बोला- 'ये तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कीमती राय है। इसे मानना न मानना तुम्हारे अधिकार में है। देशमुख साहब से टकराकर आज तक कोई चैन से जी नहीं सका है।'
लाम्बा कुछ कहता , उसके पहले ही कोठारी वहां से निकल चुका था।
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चौबीस अगस्त को शाम छ: अड़तीस की फ्लाइट से नेकीराम आने वाला था।
एयरपोर्ट पर रंजीत लाम्बा अपनी पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। उसने काला सूट पहन रखा था। सिर पर फैल्ट हैट था, हाथों में काले दस्ताने और
काले ही रंग का ब्रीफकेस।
पिस्तौल उसके बगली होलस्टर में थी और अड़तीस कैलीबर का रिवाल्वर गर्दन के ठीकी पीछे पीठ वाले होलस्टर में। ऊपर से ढीला-ढाला कोट।
छोटे-छोटे गोल काले लेंसों वाला चश्मा लगाए वह कुर्सी पर बैठा सिगरेट के कश लगाता हुआ बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहा था।
एयर फ्रांस की पलाइट के सिंगापुर से आने वाली खबर अभी-अभी एनाउन्स हुई थी।
अब कस्टम से क्लीयर होने के बाद यात्रियों को बाहर निकलना था।
__ लाम्बा की नजरें बारम्बार निकास द्वार की ओर घूमजातीं।'
वह निकास द्वार के अतिरिक्त रिसीव करने
आए लोगों को भी गौर से देख रहा
था। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में उसे वहां कुछ दादे परकार के लोग भी दिखाई देने लने।
जावेद कालू माना हुआ दादा था।
शक्तिशाली जावेद कालू के आसपास उसके तमाम चमचे भी मौजूद थे।
एक चमचा उस के लिए तम्बाकू और चूना घिसकर ले आया।
कालू ने तम्बाकू मुंहमें डाल ली, फिर वह भी निकास द्वार की तरफ देखने लगा।
इसी बीच एक चमचे ने उसके कान में कुछ
कहा।
कालू फुर्ती से उठ कर बाहर की ओर लपका। तीन च मचे जेबों में हाथ डाले तेजी से उसके
पीछे-पीछे बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद लाम्बा अपनी जगह से उठकर ऐसी चेयर पर जा बैठा जो खंभे की ओट में
थी।
निकास द्वार से अब यात्रियों ने निकलना शुरू कर दिया था।
जावेद कालू जितनी तेजी से गया था उतनी ही तेजी से वापस लौटा।
उसके आदमी आसपास फैले हुए थे।
वह पूरी तरह सजग नजर आ रहा था। उसकी नजर निकास द्वार पर स्थिर होकर रह गई थी।
यात्री बाहर आ रहे थे।
अचानक!
इंकलाब! जिन्दाबाद! के नारों से एयरपोर्ट का वह क्षेत्र गूंज उठा।
रिसीव करने आए लोगों में से कुछ लोग किसी नेता का स्वागत कर रहे थे। भीड़
वहां अनायास ही जमा-होती चली गई।
अब निकलने वाले यात्रियों को मुश्किल से ही देखा जा पा रहा था।
जावेद का लू उठ खड़ा हुआ।
उसे अब ठीकी तरह से अपना वांछित व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।
लाम्बा परेशान था।
उसे भी अपना शिकार तलाश करने में मुश्किल पेश आ रही थी।
नेताजी को रिसीव करने आए लोग नारे लगाते हुए आगे बढ़ गए। जगह खाली हुई और नेकीराम सामने आया। नाम के विपरीत नेकीराम तीस के पेटे में पहुंचा आधु-निकता में लिपटा हुआ। नीली शर्ट , बाइट जींस. स्पोर्ट्स शूज और छोटे लैंसिज वाला चश्मा लगाए हुए था।
निकास द्वार पार करके वह ज्योंही लगेज कैरयिर के साथ बाहर आया , जावेद कालू और उसके आदमियों ने तुरन्त उसे घेर लिया।
एक आदमी उसके द्वारा लाए गए लगेज कैरियर को खींचता हुआ ले चला। लाम्बा देख रहा था। कालू को नेकीराम से बात करते हुए।
कालू झुका हुआ उससे कुछ कहता चल रहा था। उसके आदमियों ने दोनों को चारों ओर से कवर कर रखा था।
लाम्बा समझ गया कि नेकीराम ने जावेद कालू की प्रोटेक्श न हासिल कर रखी है।
Thriller part continued in this update too…

Magar mere liye jo baat sab se jayaadaa dhyaan dene yogy aur dilchasp thee who yeh ke kis khubee se Ranjit Lamba aur Kothari ke beech sanvaadaatmak sanvaad huee… jesse ke shatranj kee baajee sajee ho aur do partiyogee apne apne mudde se peeche hatne ko tayar naa hon…

Lekhak ne naa keval action / thriller genre mein apnee visheshagyata dikhayee he balke unhonne yeh bhee dikhaaya hai ke kaise do pratiyogee shabdon ke yuddh ladate hein… :clapclap:
 
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कालू दादा के संरक्षण में वह अपने-आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।
लाम्बा ने सिगरेट सुलगाई , फैल्ट हैट को चेहरे पर खींचा और नेकीराम के पीछे-पीछे एयरपोर्ट से बाहर आ गया।
तीन कारों में नेकीराम वहां से चला।
एक एम्बेस्ड र कार आगे, एक पी छे और बीच में मारुति बन थाऊलैंड।
मारुति में मारुति के ड्राइवर के अतिरिक्त नेकीराम और जावेद कालू। चौथा व्यक्ति उस कार के
अन्दर नहीं था।
कारों का वह छोटा-सा काफिला जब आगे निकल गया , तब लाम्बा ने अपनी कार स्टार्ट की।
उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।
नेकीराम का पीछा करने के साथ-साथ वह यह भी सोचता चल रहा था कि मवालियों की उस भीड़ के रहते नेकीराम की हत्या किस तरह करे।

मवालियों की भीड़ तो थी ही उसके साथ, सबसे बड़ी अड़चन ये थी कि जावेद नेकीराम के साथ उसके साए की तरह चिपका हुआ था।
वह एक ' बड़ा दादा था।
जुर्म की दुनिया में उसकी अब तक की जिन्दगी गुजरी थी। नेकीरामं पर लाम्बा उसकी
जिदगी में घात नहीं लगा सकता था। अगर सात लगाता तो पहले तो उसका सफल होना मुश्किल था , दूसरे अगर वह सफल हो भी जाता तो जावेद अपने प्यादों के साथ उसे शीघ्र ही घेर लेता।
इसीलिए उसने घात लगाने का इरादा फिलहाल मुल्तवी करके सिर्फ पीछा करने का
कार्यक्रमजारी रखा।
वह कभी-भी अपना कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं किया करता था।
उसने विला तक नेकीराम का पीछा किया।
नेकीराम का विला काफी बड़ा और आधुनिकी ढंग से निर्मित था।
विला के सामने से लाम्बा अपनी कार धीमी गाती से ड्राइव करता हुआ निकलता चला गया। थोड़ी दूरी पर पहुंचकर उसने अपनी कार पार्की कर दी।
सिगरेट सुलगाने के पश्चात् वह बाहर निकला।
उसने नाकी पर आगे खिसकी आए चश्मे को एक उंगली से पीछे खिसकाया , फिर सिगरेट का कश लगाता हुआ वह चलहकदमी करता आगे बढ़ गया। उसकी पैनी दृष्टि आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण कर रही थी।
शीघ्र ही उसे निर्माणाधीन बिल्डिंग नजर आ गई।
बिल्डिंग में बांस-बल्लियों का जाल लगा हुआ
था। उसने बिल्डिंग के अन्दर जाकर एक चक्कर लगाया। वहां से नेकीराम के विला की तरफ देखा।
विला थोडा-सा पीछे रह गया था लेकिन फिर भी उसे उसबल्डिंग की।सि चुएशन ठीकी लगी। वह तुरन्त नीचे जाकर कार में रखा गिटार केस उठा लाया।
चौथे माले पर उसने एक जगह अपना ठिकाना बनाया। फिर वह वहीं जम गया।
उसने गिटार केस खोलकर अन्दर से टेलिस्कोपिकी गन के पार्ट निकाले , फिर वह उन पाटर्स को जोड़ने लगा।
उसकी प्रत्येकी कार्यवाही में मजबूरी की झलकी मिलती थी।

गन के पार्ट जोड़कर पूरी गन तैयार करने में केवल दो मिनट का समय लगा। गन नेकीराम के विला की ओर तानते हुए उसने पोजीशन लेकर
अपनी दाहिनी आंख टेलिस्कोप के आई लौ पर जमा दी।
टारगेट क्रॉस पर दृश्य उभरकर निकट आ गया। विला के अन्दर लॉन और पोर्टिको को पार कर स्वीमिंग पूल तक का भाग नजर आने लगा।
पोर्टिको में जावेद कालू के दो आदमी मौजूद थे । रंजीत लाम्बा ने उन्हें गन प्वाइट पर लिया फिर उसने ट्रेगर से उंगली हटा ली। एकबारगी यही लगा , था कि वह जावेद के उन दोनों आदमियों को उड़ा देने वाला है लेकिन फिर उसने टैगोर से उंगली इस कारणवश हटा ली, क्योंकि उसे लक्ष्य तो किसी
और को बनाना था।
शायद वह नेकीराम को लक्ष्य बनाने का अभ्यास कर रहा था।
प्रतीक्षा में वका गुजरने लगा।'
अपने शिकार की प्रतीक्षा में घंटों इंतजार करते रहने की पुरानी आदत थी उसे। उसी आदत के अनुसार वह प्रतीक्षा करने लगा।
गन उसने नीचे झुका ली थी।
वह खंभे के सहारे ओट मैं छिपकर बैठा था ताकि किसी की नजर उस पर न पड़ सके। उसका हर अंदाज पेशेवराना था।
उसकी पैनी नजरें इधर से उधर घूम रही थी।
उसे सिर्फ नेकीराम का इंतजार था।
और ये भी निश्चित था कि इधर उसे नेकीराम नजर आता , उधर उसकी गन उसे निशाने पर लेकर आग उगल देती , लेकिन नेकीराम जैसे अपने विला के किसी कमरे में बंद होकर रह गया ।
थोड़ा वक्त इंतजार में और गुजरा।
त भी !अपनी जगह बै ठा-बैठा लाम्बा अचानकी ही किसी मामूली-सी आहट से चौंकी पड़ा।
उसके कान इधर-उधर की आहट लेने को तत्पर हो गए। उसने पीछे मुड़कर देखा।
कहीं कुछ नहीं था।
अपनी जगह छोड़कर वह पीछे वाले भाग की ओर दबे पांव बढ़ा। उसने आसपास का पूरी क्षेत्र देखा डाला। कोई नजर नहीं आया।
वह यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं वह आहट उसका भ्रम तो नहीं थी।
असमंजस में उलझा हुआ वह वापस अपना जगह पर जा बैठा।

एक बार फिर उसने टेलिस्कोपिकी गन संभाल ली।
धीरे-धीरे वका गुजरने लगा।
विला में हल्की-सी हलचल बढती नजर आयी।
वह सावधानी के साथ गन संभा लकर बैठ
गया। कभी-भी उस हलचल के दरमियान नेकीराम सामने आ सकता था।
लाम्बा पहला अवसर ही चूकना नहीं चाहता
था।
___ जावेद कालू अपने आदमियों के साथ अब स्वीमिंग पूल के निकट पहुंच चुका था। वह अपने आदमियों को कुछ समझा रहा था।
इसी बीच!
नेकीराम दायीं ओर आता दिखाई पड़ा।
उसे देखते ही लाम्बा ने गन संभाल ली। उसकी आंख टेलिस्कोपिकी ग न के लैं स पर जम गई। टारगेट क्रास पर नेकीराम नजर आने लगा।
उसके चलने के साथ-साथ गन की बैरल धीरे-धीरे घूमने लगी।निशाने पर वह स्पष्ट होता जा रहा था।
लाम्बा ने गन का सेफ्टी कै च हटा दिया । दाहिने हाथ की उंगली गन के ट्रेगर पर आ ठहरी।
दिल की धड़कनें बढ़ गई।
घबराहट होना स्वाभाविकी था।
आखिर वह हत्या जैसा जघन्य अपराध करने जार रहा था।
टारगेट क्रॉस पर नेकी राम का सीना आया।
गन के ट्रेगर पर अभी पूरी तरह उंगली कसी भी नही थी कि अचानकी उभरने वाली आहट ने उसे चौंकाया।
दस्ती बम उससे कुछ दूरी पर लुढ़कता आ
गिरा था।
ये उसकी किसमत थी कि वह चला नहीं था। लेकिन उससे निकलने वाला धुआ बता रहा था कि व ह किसी भी क्षण चल जाने वाला है।
___ सैकिण्ड के दसवें हिस्से में फैसला करते हुए उसने बिल्डिंग से बाहर छलांग लगा दी।
बाहर बांस-बल्लियों का जाल लगा था।
वह उस जाल मैं उलझता हुआ नीचे की ओर गिरने लगा।

कानों के पर्दे हिला देने बाला विस्फोट हुआ ।
उसी क्षण निरन्तर नीचे गिरते लाम्बा का हाथ एक बल्ली को पकड़ने में सफल हो गया। लेकिन इतनी देर में एक माले से अधिकी की दूरी वह तय कर चुका था।
___ बल्लियों के सहारे से एक रस्सी झूलती नजर आ गई उसे।
वह रस्सी के सहारे तेजी से नीचे फिसलता चला गया। नीचे पहुंचते ही फायरिंग आरंभ हो गई।

उसकी गन छूट चुकी थी।
उसने फुर्ती से बगली होलस्टर से अपनी पिस्तौल निका लकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
वह बौखला गया था।
उसने फायर करते हुए अपनी कार की ओर भागने की कोशिश आरंभ कर दी।
वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता जा रहा था।
उसे पर गोलियां बरसाने वाले चार व्यक्ति बिल्डिंग से बाहर दौड़ लगाते दिखाई दिए। मुमकिन
था कि वे उसे निशाना बनाकर उसे गोलियों से छलनी कर डालते , लेकिन इसी बीच नेकीराम की विला से जावेद बाहर निकला।
पहले विस्फोट, उसके बाद फायरिंग के धमाकों ने जावेद कालू को बाहर आकर देखने को विवश कर दिया था।
चूंकि फायरिंग हो रही थी इसलिए वह अपने आदमियों के साथ हवाई फायर करता हुआ बाहर निकला।
उसके हवाई फायरों ने रंजीत लाम्बा को बचा लिया। जो लोग लाम्बा को निशाना बनाना चाहते थे। वे बीच में होने वाली फायरिंग से उल्टे कदमों पीछे लौट गए।
लाम्बा को मौका मिला।
वह तुरन्त अपनी कार में बैठकर वहां से निकल भागा।

बांस-बल्लियों के जाल में उलझकर गिरते हुए लाम्बा को कई जगह चोटें आई थी। वहमरहम-पट्टी कराने के बाद वह सीधा कोठारी के पास पहुंचा।
उस समय कोठारी अपने लिए पैग तैयार कर रहा था।
'अरे...तुम! ' वह चौंककर लाम्बा को एग्जामिन करता हुआ बोला -यह...यह क्या हुआ ? '
'यही में तुमसे जानना चाहता हूं? यह क्या हुआ क्यों हुआ? ' लाम्बा अपलकी उसे घूरता हुआ गुर्राया।
'लगता है कहीं मार खा गए हो। तुम्हारे लिए पैग बना ऊ?'
लाम्बा ने एक झटके के साथ उसके सामने रखी बोतल उठा ली! कोठारी को क्रोधि त दृष्टि से घूरत हुए उसने बोतल मुंह से लगा ली।
'रंजीत , पहले पूरी बात तो. बताओ?'
'बात बताऊ?' बोलत मुंह से हटाकर वह चिल्लाया-यह... यह पट् टियां देखो... देखो ये चोटें।
इनको देखकर तुम्हें कुछ नहीं लगता क्या ?'
'जो लग रहा है वह बता चुका हूं।'
'हां...हां मैं मार खोकर आ रहा हूं। गोलियों की मार ! मर ही जाता मैं अगर किस्मत ने साथ ने दिया होता।'
'क्या हुआ?'
उसने बताया।
'ओह गॉड! नेकीराम बच गया।' सुन ने के बाद कोठारी अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फेरता हुआ बड़बड़ाया।
'तुम् हें नेकीराम के बचने का अफसोस है. ..बस ?'
'तुम्हारे बचने की खुशी भी है। ' काठारी पत्थर की मूर्ति की भांति मुस्कराया।तुमने यह भी नहीं पूछा कि ऐन उस वक्त जबकि मैं नेकीराम को निशाना बना रहा था तब मुझ पर दस्ती बम किसने फेंका था , दस्ती बम से बचने के बाद मुझ पर गोलियां किसने बरसाई थीं?'
'किसने यह कोशिश की ?' ' बहुत भोले बन रहे हो।'
'क्या मतलब?'
'मतलब समझाने की अभी-भी जरूरतें है ?'
'ओ... समझा। तो तुम यह समझ रहे हो कि मैंने तुम पर हमला करवाया ?'
तुमने नहीं तो देशमुख मे सही । बात तो एक मन नहीं तो देश ही है।
' नहीं.. .यह गलत है।'
'तुम अपने वायदे से मुकर गए। जो तुमने कहा था , किया नहीं। तुमने कहा था कि तुम मेरी
और पूनम की आशनाई की कहानी माणिकी देशमुख से नहीं कहोगे...कहा था ना ? '
'मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं। मैंने उस बात का जिक्र किसी से नहीं किया।'
'झूठ बोल रहे हो।'
'नहीं ... इसमें लेशमात्र भी झूठ नहीं है। '
'झूठ नहीं है तो फिर मेरी जान का दुश्मन बैठे-बिठाएं कौन बन सकता है ?'
'यह तुमजान , यह कार्यवाही देशमुख साहब की तरफ से इसीलिए की गई नहीं हो सकती , क्योंकि देशमुख साहब के सोने-जागने हकी का हीसाब मुझे ही रखना होता है। जब कभी उन्हें अपने किसी दुश्मन को रास्ते से हटाना होता है तो उसके लिए भी वहमेरे माध्यम से तुम्हें आदेशित करते हैं, जैसे नेकीराम के मामले में भी आदेश उन्होंने किया , मगर माध्यमें मैं था। था ना ?'

'हा।
' तो फिर इस बात को मान लो कि अगर तुम पर हमला देशमुख साहब ने कराया होता तो उसकी खबर कम से कम मुझे जरूर होती।'
' लेकिन इस बात की गारंटी भी तो नहीं है कि तुम सच बोल रहे हो।'
मैं बिल्कुल सच बोल रहा हूं। विश्वास करो मेरा।'
'कैसे ?'
'मैं तुमसे झूठ नहीं बोल रहा हूं... विश्वास करो! ' कोठारी तनिकी उत्तेजित होता हुआ बोला।
लाम्बा ने उसे कठोर दृष्टि से देखा ।
दोनों एकदूसरे के नेत्रों में पूरी कठोरता के साथ अंपलकी घूरते रहे। '
' अगर तुम झूठ नहीं बोल रहे तो मुझे मारने की कोशिश किसने की थी ? ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बड़बड़ाया।'
'तुम नेकीराम के क्षेत्र में थे।'
'तो क्या हुआ ?'
'तो यह हुआ कि हो सकता है नेकीराम ने अपने आसपास जावेद कालू और उसके आदमियों को रखने के अलावा किसी और को भी अपनी विला और आसपास के क्षेत्र की निगरानी का भार सौंपरखा हो और तुम उसे न समझ सके हो।'
रंजीत लावा के चेहरे पर उलझन के चिन्ह उभर आए।
उसे लगा कि कोठारी सही कह रहा है।
ऐसा ह्ये सकता था।
ऐसा इसलिए हो सकता था , क्योंकि जहां पहले से ही कोई शिकार जाल फैलाए बैठा हए हो तो वह शिकारी उस क्षेत्र में होने वाली किसी भी हरकत पर आसानी से नजर रख सकता था और किसी भी तरह का कदम उठा सकता था।
' इसका मतलब यह हुआ कि नेकीराम को पूरी तरह इस बात की जानकारी है कि किसी भी क्षण उसकी हत्या की कोशिश की जा सकती है ?'
'हां।'
'फिर तो हो सकता है कि गलती मुझसे ही हुई हो।'
'लाम्बा !'हूं?'
'देशमुख साह ब ने नेकीराम के बारे में पूछा तो उन्हें क्या जवाब दूं?'
'की ह देना मैं चोट खा गया।'
'देशमुख साहब को असफलता से चिढ़ है। '
'होगी।'
'वो तुम्हें-लाकर पूछताछ कर सकते हैं।'
' मैं जवाब दे लूंगा।'
'जवाब ऐसा देना ताकि साहब असन्तुष्ट न रहें।'
अभी उनकी वार्ता चल ही रही थी कि एक नौजवान ने कमरे में प्रवेश किया। लम्बे-चौड़े उस
शक्तिशाली नौजवान की आँखें नीली थी। मक्कारी उसके चेहरे से झलकी रही थी।
लाम्बा उसे पहचानता था , वह पूनम का बड़ा भाई होता था।
विना यकी देशमुख!
माणिकी देशमुख का बेटा।
' पांच लाख की जरूरत है मिस्टर कोठारी! ' च्यू इंगम चबाता विनायकी देशमुख कोठारी को हिकारत भरी नजरों से देखता हुआ बोला।
'इतना रुपया ?' कोठारी चौंका।
'रुपया तुम्हारे बाप का नहीं मेरे बाप का है और उसे खर्च करने का मुझे पूरा-पूरा हकी है। '
कोठारी का खून जल उठा।
लेकिन अपने पर जब्त करते हुए उसने सेफ खोली। सौ-सौ के नोटों की गड़ियों के बंडल निकाले
और विनायकी देशमुख की ओर बढ़ा दिए।
नोटों के बंडल लेने के बाद विनायकी देशमुख ने कोठारी को घूरते हुए चुटकी बजाई- मिस्टर कोठारी...
आई दा इस बात का ख्याल रहे कि में जो भी डिमाण्ड करू वो फौरन पूरी होनी चाहिए , अगर इफ
और बट के टुकड़े लगाए तो फिर तुम्हें डैड के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। मैं उनसे तुम्हारी शिकायत कर दूंगा।
कोठारी खामोश रहा। विनायकी वंहा से उसे घूरता हुआ च ला गया।
'यहमाणिकी देशमुख का बेटा होता है ना?' रंजीत लाम्बा ने सिगरेट सुलगाते हुए पूछा।
' हां...देशमुख साहब का बेटा है यह। '
'इसके बात करने का अंदाज तो बेहद गलत है।
__ 'दौलतमंद बाप की औलादें अक्सर बिगडा जाया करती हैं।'
' पांच लाख का क्या करेगा?'
__ 'ड्रग एडिक्ट है। इसके दोस्त भी इसी जैसे हैं। उन्हीं के साथ मौज-मस्ती में उड़ा डालेगा। बेहद ख तरनाकी है। नशे में यह अब तक चार खून कर चुका है।'
'चार खून।'
'हां।'
' और पुलिस ?' 'पुलिस को खूनी की तलाश है. . .बस। '
' देशमुख साहब की दौलत काम आती होगी... नहीं?'
दौलत से सब-कुछ खरीदा जा सकता है। बेटे को बचाने की खातिर देशमुख साहब कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ठीकी वैसे ही बेटा भी बाप के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है।'
'जो भी है , इसके तेवर अच्छे नहीं।'
'अपने को क्या करना है , जो है ठीकी है। '
वो अपने बाप के धंधों से वाकिफ है ?'
'पूरी तरह।'
'आई सी।'
'यूं समझो देशमुख साहब का उत्तराधिकारी है। देशमुख साहब के कारोबार को आधे से ज्यादा वह जानता है ओर बाकी जान कारी उसे मुझसे हासिल करने में कोई वक्त लगने वाला नहीं।'
' अगर यह देशमुख साहब की जगह कभी आ गया तो हाहाकार मचा डालेगा।'
' हो सकता है।'
'हो सकता नहीं यकीनन हाहाकार मचा डालेगा। वह शक्लो-सूरत से उत्पाती जीव प्रतीत हो रहा है।'
'तुम उसके बारे में सोचना छोड़कर अपने उस दुश्मन के बारे में पता करने की कोशिश करो जो ऐन वक्त पर चोट कर गया।'सिगरेट फूंकता लाम्बा अपने दुश्मनों के बारे में बारी-बारी से ध्यान करने लगा । कुछ देर तक विचारपूर्ण मुद्रा में रहने के उपरान्त वह वहां से निकलकर आउट हाउस की ओर चला गया।
वह कोठी शहर से बाहर के क्षेत्र में बनी थी।
माणिंकी देशमुख ने उसे अपने किसी विशेष कार्य के लिए। बनवाया रहा होगा, लेकिन उस समय उसका प्रयोग पूनम कर रही थी।
उसने लाम्बा को फोन कर दिया था और लाम्बा ने पंद्रहमिनट में वहां पहुंचने को कहा था। पंद्रहमिनट हो चुके थे, वह अभी तक नहीं पहुंचा था।
पूनम को बेचैनी होने लगी थी।
वह कॉरीडोर में चहलकदमी करने लगी। उसकी नजर बार-बार अपनी रिस्टवॉच पर जा ठहरती।
पुरे तीस मिनट बाद जब रंजीत लाम्बा की कार उसे आती दिखाई पड़ी तब उसे चैन मिला।
वह अन्दर बैडरूम की ओर बढ़ गई।
वहीं से आहटें सुनकर अनुमान लगाने लगी, कार के रुकने की , दरवाजा खुलने की दरवाजा बन्द होने की और आखिर में कॉरीडोर में उभरती जूतों की ठक-ठक।
शीघ्र ही रंजीत लाम्बा उसके सम्मुख था।
उसने रूट ने का अभिनय किया।
लाम्बा ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया।'
'सॉरी पूनम... ट्रैफिकी जाम था , मैं क्या करता। ' उसने पूनम के गालों को चूमते हुए कहा।
मैं कब से इंतजार कर रही हूं।'
' तो क्या हुआ। आ तो गया ना।'
'जानते हो , एक मिनट की भी देर हो जाने पर मेरे दिल में कैसे-कैसे ख्याल आने लगते हैं। '
'कैसे-कैसे ?' लाम्बा ने शरारतन पूछा।
'डरने लगती हूं। सोंचती हूं कहीं तुम्हें कुछ हो तो नहीं गया।'


'एक बात बो! ?' वह पूनम के अधरों पर उंगली फिराता हुआ बोला।
'हां...बोलो।'
'बहुत बेशर्म हूं ' । आसानी से मरूंगा नहीं।
' ऐसी बातें मत करो। ' पूनम ने जल्दी से उसके होंठों पर हथेली रखते हुए कहा।
' फिर क्या करू?'
'प्यार। ' कहते हुए पूनम की पलकें शर्म से झुकती चलीन गई।
उसकी उस अदा पर लाम्बा कुर्बान हो गया। उसकी बांहों का बंधन पूनम के गिर्द कसता चला गया। यहां तक कि उसके मुख से दबी हुई कराह फूट निकली।
'उई मां...!'
उसने पूनम को अपनी बांहों से हटाकर एकदम से गोद में उठा लिया।
'हाय रे! क्या कर रहे हो ?'
'प्यार।'
'शरारत तो कोई तुमसे सीखे। '

" इसमें शरारत कहां से आ गई ?'
'जरूरी है मुझे इस तरह गोद में उठाना ?'
'हां... जरूरी है ?'
'किसलिए जरूरी है ?'
' इसलिए कि प्यार करना जरूरी है।' ' बातें खूब बना लेते हो।' ' बातें बनाना तुम्हीं ने सिखाया है। '
'हाँ ... सब-कुछ मैंने ही किया है।'
' वरना मुझे तो कुछ आता ही नहीं था। '
'बिल्कुल नहीं...तुम तो भोले-भाले नन्हे-से बच्चे हो।'
लाम्बा मुस्कराया। ' इस तरह गोद में उठाकर कहां लिए जा रहे
हो ?'
'वंहा ...। ' उसने आंखों ही आंखों से बैड की ओर संकेत किया।
लाज की लालिमा पूनम के चेहरे पर फैल
गई।
बैड पर, लाम्बा ने उसे ऊपर से ही छोड़ दिया।
वह डनलप के ग द्दे पर गिरकर थोड़ा-सा उछली फिर फैल गई। उसके संभलने से पूर्व लाम्बा उस पर गिर चुका था।
पूनम जैसी सैक्सी लड़की का- सामीप्य हासिल होने के। बाद कोई भी जवान आदमी अपनी इच्छाओं पर काबू नहीं पा सकता था।
वही हाल लाम्बा का हुआ।
यूं भी पूनम के पास आते ही उस पर दीवानगी-सी छा जाती थी।
उसके दोनों हाथ फुर्ती से चल रहे थे।
शीघ्र ही वे निर्वसन अवस्था में जब एक-दूसरे की चिकनी बांहों में समाए तो मानो पैट्रोल में चिंगारी डाल दी गई हो।
शोले एकदम ही भड़की उठे।
पूनम उत्तेजकी स्थिति में सत्कार कर उठी। उसके अधर रंजीत लाम्बा के शक्तिशाली जिस्म को यहां-वहां चूमने लगे।लाम्बा ने उसे अपने आलिंगन में भींच लिया।
वह लाम्बा से लता के समान लिपट गई। उन क्षणों में वह लाम्बा से एक पल के लिए भी अलग नहीं होना चाहती थी । धीरे-धीरे उसकी सांसों में तेजी आने लगी।
लाम्दा की कठोरता पूर्ण उत्तेजना को यह स्पष्ट अनुभव कर रही थी।
लाम्बा ने जब उसके अधरों से अधर जोड़े तो बरबस ही वह उसके सिर के बालों में अपने हाथों की कोमल उंगलियां घुमाकर उसके सिर के बालों को सहलाने लगी।
लाम्बा के हाथ अलग हरकत कर रहे थे।
दोनों लगभग एकाकार हो गए थे।
गर्म सांसें घुलने लगीं।
सांसों की रफ्तार में निरन्तर तेजी आती जा रही थी। वह तेजी बढ़ती ही गई। बढ़ती ही गई। यहां तक कि तनाव चरम शिखर पर पहुंचकर टूट गया।
इस बात पूनम के मुख से कामुकी सीत्कार निकलते रहे थे।
लाम्बा का समूचा बोझ उस समय उसके ऊपर था।उसने लाम्बा को बदन तोड़ ढंग से सहयोग किया था। इस समय लाम्बा का चेहरा उसके वक्षों के मध्य छिपा था और वह उसके सिर के बालों को धीरे-धीरे सहला रही थी।'
थोड़ी देर बाद लाम्बा ने करवट बदली।
वह पूनम के ऊपर से हट गया। __पूनम ने तुरन्त करवट बद ली और वह उसके चौड़े सीने पर फैल गई। उसकी आंखों में लाम्बा के लिए प्रशंसा ही प्रशंसा थी।
__ पहले बह प्यार से कितने ही क्षणों तक लाम्बा की आंखों में देखती रही। उसके बाद उसने लाम्बा के होंठों को चूम लिया।

'ऐसे क्या देख रही हो?' लाम्बा ने प्यार भरे अंदाज में पूछा।
'देख रही हूं कितना ढेर सारा प्यार है तुम्हारे पास ?' पूनम उसके सीने पर हाथ फेरती हुई बोली।
'प्यार है ना?'
'हां। '
'इस प्यार को भूल तो नहीं जाओगी?' ' आखिरी सांस तक याद रहेगा। ' भावु की होकर लाम्बा ने उसके अधरों पर चुम्बन अंकी गित कर दिया।
वह उसकी आंखों में देखती हुई-मुस्कराई।
'इस कोठी में क्यों बुलाया ?'
' इसलिए कि वहां का डिस्टर्बेन्स मुझे अच्छा नहीं लगा। यहां सुकून है। किसी तरह की कोई उलझन नहीं...।'
उलझन है। ' एकाएक ही चौंकता हुआ लाम्बा उसे अपने ऊपर से हटाकर उठा और फुर्ती से कपड़े पहनने लगा।
अपने दोनों होलस्टर उसने सबसे पहले अपने कब्जे में किए। उसके बाद शर्ट के बटन लगाता हुआ वह खिड़की के निकट जा पहुंचा।
पूनम घबरा गई।
हालांकि उसने किसी प्रकार की आहट नहीं सुनी थी, लेकिन वह जानती थी कि रंजती लाम्बा में बहुत दूर से खतरे को सूंघ लेने की योग्यता थी।
खतरा निश्चित ही होगा, इसे बात को वह जानती थी।
इसीलिए उसने जल्दी-जल्दी कपड़े पहन
लिए।
लम्बा खिड़की के पर्दे की ओट से बाहर झांकी रहा था।
कोठी के बाहर का दृश्य दिखाई दे रहा था उसे।
वह सावधान मुद्रा में देखता रहा।
आयरन गेट के इस पार फूलों की घनी बेल की ओट में ऐकी व्यक्ति नजर आया उसे। वह छिपकर कोठीकी और देख रहा था।
शायद उसके द्वारा आयरन गेट पार करते हुए कि सी प्रकार की आहट उत्पन्न हुई थी, उसे सुनकर ही लाम्बा को खतरे का आभास मिला था।
फूलों की बेल की ओट में छिपे व्यक्ति ने दाहिना हाथ उठा कर पीछे से किसी को आगे बढ़ने का संकेत किया। ऐसा करते समय उसके हाथ की उंगलियों में फंसा का ला रिवाल्वर दूर से ही नजरे आ गया। इसके अतिरिक्त अपने पीछे वाले को सिग्नल
देते हुए भी वह पीछे नहीं देख रहा था। उसकी नजर सामने की ओर ही लगी थी।
फिर वह अपने पीछे देखे बिना बेल की ओट से निकलकर तेजी से ड्राइव वे पर बढ़ता चला गया।
ड्राइव वे अभी पूरी तरह उसने पार नहीं किया था कि , उसके पीछे खतरनाकी प्रकार की गने संभाले चार आदमी और आते दिखाई दिए।
उन चारों ने सिर से लेकर गर्दन तक इस तरह कपड़े को लपेटा हुआ था कि उनकी सिर्फ आँखें ही चमकती हुई नजर आ रही थी।
वे आतंकवादी प्रतीत हो रहे थे।
जाहिर था उनके इरादे भी अच्छे नहीं थे।खिड़की के पर्दे की ओट से झांकते-रंजीत लाम्बा ने फुर्ती से एक हो लस्टर के अन्दर से रिवाल्वर खींच निकाला।
उसके हाव-भाव देखते ही पूनम समझ गई कि मामला गड़बड़ है।
' क्या हुआ ? कौन है ?' वह दबे हुए स्वर में बोली।
उस समय लाम्बा के पास उसकी ओर ध्यान देने का अवसर नहीं था। वह जानता था कि पांच-पांच हथियारबंद आदमी उसे घेरने आ रहे हैं। अगर वह उनके घेरे में फंस गया तो उनकी शक्तिशाली गनों की मार से बच नहीं सकेगा।'
__ वह दबे पांव फुर्ती के साथ कमरे से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने दूसरे होलस्टर से पिस्तौल निकाल ली।
अब उसके दाहिने हाथ में रिवाल्वर और बाएं हाथ में पिस्तौल थी। दोनों के सेफ्टी कैच हटाकर उसने फायर- करने की पूरी तैयारी कर ली। महज ट्रेगर दबाने भर की देर थी।
कमरे के बाहर छोटा-सा कॉरीडोर था। कॉरीडोर के बराबर में जाली वाली दीवार।
उस दीवार के उस तरफ उसे दो नकाबपोश एकदम सामने की ओर दिखाई दे गए।
उसने तुरन्त जाली में अपनी दोनों गनो को लगाकर ट्रेगर दबा दिए।
पहली गोली आगे वाले नकाबपोश के बाएं कंधे में लगी।
जब तक दूसरा कुछ समझता , तब तक उसका पेट फाड़ती दूसरी गोली उसे अपने वेग के साथ पीछे घसीटती ले गई।
तबाद तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। लाम्बा ने बला की फुर्ती से वह जगह छोड़
दी।
तीन तरफ से जाली वाली एक ईट की दीवार पर बाहर से गोलियां बरसाई जाने लगीं।
लाम्बा पहुंचा दसरी तरफ जहां बाथरूम था। बाथरूम के अन्दर दाखिल होकर वह रोशनदान तक पहुंचने के लिए वाश-बेसिन पर चढ़ गया।
रोशनदान से उसने देखा , एक आदमी उन दो घायलों को मदद करके बाहर लिए जा रहा था , जो उसकी गोलियों के शिकार हुए थे।
शेष दो जाली वाली दीवार की तरफ गोलियां बरसाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
लम्बा ने फुर्ती के साथ दो फायर किए।
एक गोली कारगर साबित हुई और दूसरी बेकार गई। एक आदमी और घायल हो गया।
शेष रहा वह आदमी जो बिना नकाब के था।
बौखलाकर इधर-उधर देखते हुए उसेने अंधाधुंध गोलियों चलाई। उसके बाद अपने घायल साथी को खींचता हुआ वापस लौटने लगा।
लाम्बा उसे निशाना बना लेता लेकिन अचानकी ही वाश - बेसिन उसके पैरों तले से निकल गया और वह नीचे आ गिरा।
दरअसल वाश-बेसिन का सपोर्ट उसके वजन को सहन नहीं कर सका था इस कारण वह अपनी जगह से निकल गया।
जब तक वह संभलकर बाहर निकलता तब तक दुश्मन वहां से भाग चुका थी।

उसने बाहर आकर आयरन गेट तक च क्कर लगाया।
वह पूरी तरह सावधान था।
उस सन्नाटे भरे क्षेत्र में एक रिवाल्वर और एक पिस्तौल के साथ लाम्बा किसी घायल चीते जैसी स्थिति में घूम रहा था
उसके सामने उस समय उसका जो भी दुश्मन आता , उसे वह तुरन्त ही उड़ा डालता। '
लेकिन!
उसका कोई भी दुश्मन वहां रुकने का साहस न संजो सका था।
वे सभी उस क्षेत्र को छोड़ कर गायब हो चुके
थे।
उसने आयरन गेट से बाहर निकलकर भी देखा , दूर-दूर तक कोई नजर नही आया। फिर जैसे ही वह वापस लौटा ...चौंकी पड़ा।
फुर्ती के साथ उसका पिस्तौल वाला हाथ उठा और फिर पूनम को देखकर झुकी गया।
'कौन लोग थे ?' उसकी ओर बढ़ती पूनम ने घबराए हुए स्वर में पूछा।
'जो भी थे , मेरी हत्या के इरादे से यहां आए थे।'
लाम्बा ने कठोर स्वर में कहा।
'कौन लोग हैं जो तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पदाए हे ?'
'जो भी हैं, बहुत ज्यादा देर तक पर्दे के पीछे नहीं रह सकेंगे।'
' अजीब बात है।'
' बात सचमुच अजीब है। ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बोला- ' मैं यहा आ रहा हूं, इस बात की खबर तुम्हारे अलावा और किसे थी ?'
' किसी को भी नहीं।'
किसी को भी नहीं। ' वह चिंतित सर में बड़बड़ाया- ' फिर उन लोगों को खबर कैसे हुई ?'
'मालूम नहीं।'
उसकी आंखों में उलझन के चिन्ह गहरे हो गए।
फिर वह कुछ बोला नहीं बल्कि खामोश होकर गहन विचारों में डूबता चला गया।
' क्या हुआ ?' वापस लौटती पूनम ने उससे पूछा।

' सोच रहा हूं तुमने किसी को कुछ बताया नहीं, फिर मेरी खबर लीकी आउट कैसे हुई ?'
' मैं क्या बता सकती हूं।'
'तुमने कहां से फोन किया था ?'
' अपने कमरे से।'
'कमरे में कोई था क्या ?'
'नहीं तो। मैं अकेली थी।'
'फोन करते वक्त भी अकेली थी , फिर तो कमाल हो गया लेकिन नहीं।'
'नहीं? '
'टेलीफोन की एक्सटेंशन लाइन ? '
'वह तो है।'
'कौन सुन सकता है उस लाइन पर ?'
'कोई भी...।' पूनम उसे आश्चर्यचकित दृष्टि से निहारती हुई बोली।
' इसका मतलब खबर तुम्हारे घर से ही लीकी हुई थी। यानी मेरा दुश्मन तुम्हारे घर के अन्दर ही है।'
' मेरे घर में ?'
'हां।'
Adbhut...vaastav mein avishvasaneey...
Lekhak ne hamen do chhote lekin shaktishaalee romaanchak episod mein ulajhe hue prem drshy se roobaroo karaaya hai... kayaa baat bro... kayaa baat he... dramatic vaataavaran...
sachamuch aisa mahasoos hua ki romaanch nason se ris rahaa he....
Aakhir kon maarnaa chahtaa he... Ranjit ko... Poonam kaa baap... Kothari... yaa koi aur undekhaa dushman...
amazing bro... simply amazing... the whole episode was lit up with suspense... :superr:
 
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इसका मतलब खबर तुम्हारे घर से ही लीकी हुई थी। यानी मेरा दुश्मन तुम्हारे घर के अन्दर ही है।'
' मेरे घर में ?'
'हां।'

'लेकिन..!'
'छोड़ो...मैं मालूम कर लूंगा।'
'कैसे ?'
'कैसे मालूम की रूगा वह अलग कहानी है। फिलहाल यहां से निकल चलो।'
' मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।' ' और तुम्हारी गाड़ी ?' ' उसे ड्राइवर से मंगवा लूंगी।'
'नहीं पूनम , तुम अपनी गाड़ी से ही वापस लौटोगी।'
'मुझे डर लगेगा।'
'डरने की कोई बात नहीं है। तुम्हारे पीछे मैं रहूंगा।'
'नहीं।'
' बिल्कुल मत घबराओ। मैं तुम्हारे साथ साए की तरह रहूंगा। कोई भी खतरा मुझसे मिले बिना किसी भी कीमत पर तुम तक पहुंच नहीं सकेगा।'
पूनम के चेहरे पर भय के चिन्ह फैल गए।
वह अकेली कार ड्राइव करने से डर रही थी,

लेकिन लाम्बा ने उसे किसी तरह पटा लिया।
नजीततन आगे-आगे उसकी कार और उसके पीछे लाम्बा की कार चल पड़ी।
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'सुनो कोठारी..! ' कोठारी के नेत्रों में झांकता रंजीत लाम्बा घायल सर्प की भांति फु
कारता हुओ बोला- 'मुझे मारने की दूसरी कोशिश की गई है। दूसरी कोशिश! और इस दूसरी कोशिश में भी मैं बच गया।
_' क्या कह रहे हो तुम ? तुम्हें मारने की फिर से कोशिश की गई ' कोठारी ने आश्चर्य से उसकी
ओर देखते हुए कहा।
'हां।'
'कौन था ?'

'बनो मत कोठारी। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि यह षड़ यंत्र इसी विला के अन्दर से पनपा है। मुझे मारने की साजिश में तुम इसलिए शामिल हो, क्योंकि यहां का पत्ता भी तुम्हारी इजाजत के बिना नहीं हिलता।'
'गलत...एकदम गलत। तुम मुझ पर आरोप लगा रहे हो।
'आरोप गलत नहीं है। मैं साबित कर सकता हूं कि सब -कुछ तुम्हारा किया-धरा है। '
'की रो साबित।'
'जहां मैं अभी थोड़ी देर पहले पहुंचा था , वहां पहुंचने के लिए मुझे यहां से किसी ने फोन पर बताया था। उसका फो न यहां इस विला में तुम्हारे
अलावा एक्टेशन लाइन पर कोई अन्य सुन नहीं सकता और तुमने मेरे पीछे अपने आदमी भेज दिए। '
'झूठ है। सब झूठ है। न मैंने कोई फोन सुना और ना ही मैंने कोई आदमी भेजा।
'फिर सब-कुछ यूं ही हो गया।'
'तु म पागल हो गए हो। जब मुझे तुम्हारे खिलाफ कुछ करना ही नहीं तो फिर यह सब में क्यों करूगा?"
'अगर तुम नहीं , तो फिर कौन है जो मेरे खिलाफ ऐसा कर रहा है ?'

'अगर मुझे उसके बारे में मालूम होता तो मैं बिना देर किए तुम्हें उसका नाम बता देता।'
'जो भी है , अब आर-पार की लडाई होगी। या तो मेरा दुश्मन ही बाकी रहेगा या फिर मैं।
' इस बात को अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल दो कि मैं तुम्हारा दुश्मन हूं या मैं कोई चाल चल रहा हूं। मैं तो तुम्हें देशमुख साहब तक खुद ही लेकर आया हूं ताकि देशमुख साहब की टीम में एक मजबूत आदमी रहे।'
रंजीत लाम्बा को लगा कि कोठारी सच कह रहा था।
वह सोचने लगा , अगर कोठारी सच्चा था तो फिर कौन था जो उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा था।
विचारों में उलझा हुआ वह वापस लौट
आया।
उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था।
उसने व्हि स्की की बोतल निकली और फिर आउट हाउस के उस भाग को बंद करके जिसमें वह रहता था,
पीने बैठ गया।
उसके पैग तब तक बनते रहे जब तक कि बोतल खाली नहीं हो गई।गहरे नसे में उसे पूनम की याद सताने लगी।
उसने तीन बार फोन पर पूनम से संपर्की बनाना चाहा, लेकिन एक बार भी पूनम नहीं मिली। तीनों बार उसके बूढ़े नौकर ने ही फोन रिसीव किया।
अन्त में झुंझलाकर वह बाहर निकला।
कार उसने तूफानी रफ्तार से दौड़ानी आरंभ कर दी।
नशे की अधिकता मैं उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे क्या न करे?
खुली हवा लगने से नशा और बढ़ गया।
पूरे एक घंटे तक वह ड्राइविंग करता रहा।
फिर उसने एक होटल में डिनर लिया। डिनर के दरमियान उसने होटल के मैनेजर को दो-तीन बार बुलवाया । नशे में वह बार-बार वेटर की शिकायत कर रहा था।
मैनेजर समझदार आदमी था।
आए दिन इस तरह के केसिज से निपटाना उसके अभ्यास में आ चुका था। इसलिए उसने लाम्बा
की नशे में डूबी तमाम परेशानियों को भी दूर कर दिया।
घूमता-फिरता लाम्बारात बहुत देर तक आउट हाउस में वापस लौटा।

उसके लड़खड़ाते हुए कदम बता रहे थे कि वह गहरे नशे में आ चुका है।
आउट हाउस की सीढ़ियों पर उसके पांव दो बार फिसले। एक बार तो वह संभल गया, लेकिन दूसरी बार अपना संतुलन कायम न रख सका।
उसे विला के एक नौकर ने उठने में मदद दी तो उस नौकर को लाम्बा ने भद्दी गालियां देकर भगा दिया।
अपने कमरे तक वह उड़ता हुआ-सा पहुंचा और बैड पर ढेर हो गया।
तमाम दरवाजे खुले पड़े थे।
हमेशा सा वधान रहने वाला बेहद खतरनाकी हत्या रा रंजीत लाम्बा उस समय पूरी तरह असुरक्षित अवस्था में बेसुध पड़ा था।
पूरा आउट हाउस खाली था।
थोड़ी देर बाद वहां उसके खर्राटे गूंजने लगे।
रात धीरे-धीरे गहरी होती जा रही थी।
लम्बा दुनिया से बेखबर पड़ा गहरी नीं द सो रहा था। उसे नहीं मालूम था कि कहां क्या हो रहा
था।
अचानक!

टेलीफोन की घंटी बज उठी।
घंटी बजती रही और लाम्बा मुर्दो से होड़ लगाए सोता रहा। अन्त में टेलीफोन उससे हारकर खामोश हो गया!
उसके कान पर जनतका नरेंगी।
थोड़ी देर बाद टेलीफोन की घंटी ने पु न: चीखना आरंभ कर दिया। घंटी बजते-बजते जब थकी गई तो फिर खामोश हो गई।
उसके खामोश होते ही वहां मौत जैसा सन्नाटा छा गया।
तीसरी बार पुन: टेलीफोन ने शोर मचाया और पहले की अपेक्षा इसबार ज्यादा जल्दी खामोश हो गया।

रात का दूसरा प्रहर आरंभ हो चुका था।
रंजीत लाम्बा बेखबर सो रहा था , ऐसे में आउट हाउस में एक स्याहपोश साए ने कदम रखा।
स्याहपोश बिल्ली जैसी चाल के साथ बिना आहट किए आगे बढ़ रहा था। अपने चारों ओर से सावधान था वह। बार-बार उक्की नजर अपने पीछे
और दाएं-बाएं घूमजाती थी।
__आ उट हाउस के सभी दरवाजे जैसे उसके स्वागत में खुले पड़े थे।
___ अन्त में उसने लाम्बा के कमरे में प्रवेश किया।
लाम्बा के कमरे में कदम रखते ही वह अतिरिक्त सावधान हो गया। उसने बहुत धीरे-से अपने लबादे में हाथ डालकर रामपुरी चाकू निकाल लिया।
चाकू पहले से ही खुला हुआ था।
दाहिने हाथ में चाकू संभालकर वह लाम्बा के बैड के निकट जा पहुंचा।
उस समय उसने अपनी सांस भी रोकी हुई थी ताकि किसी प्रकार की आहट न हो। वह झुका। उसने करीब से लाम्बा को देखा। तत्पश्चात् उसका चाकू वाला हाथ ऊपर उठने लगा।
अभी वह रंजीत लाम्बा पर चाकू का प्रहार कर ने ही वाला था कि अचानकी ही लाम्बा की टांग चली। विद्युत गति से टांग स्याहपोश के पेट से टकराई
और वह उछलकर दूर जा गिरा।'
लाम्बा फुर्ती से उठा।
स्याहपोश भी कम फुर्तीला नहीं था। वह चटकने वाले सांप की भांति उछला।
लाम्बा ने बचाव करना चाहा मगर बचते-बचाते भी चाकू उसके कंधे में घाव कर ही
गया।
खून तेजी से बह निकला। पीड़ा के कारण उसके दांत भिंच गए।
उसे पीछे हट जाना पड़ा।
पीछे हटने के बाद उसने स्याहपोश पर नजर डाली। तब पता चुला कि आक्रमणकारी ए की आंख वाला व्यक्ति है।
उसे लगा कि वह इस स्याहपोश को पहले कहीं देख चुका है, लेकिन उस समय उसे याद नहीं
आ रहा था।
उसके पास याद की रने के लिए समय भी नहीं था। उसने फुर्ती से पीठ वाले होलस्टर से रिवाल्वर खींच निकाला।
फायर होने से पूर्व स्याहपोश खिड़की से

बाहर छलांग लगा चुका था।
उसकी फुर्ती देखने योग्य थी।
लाम्बा को उस एक आंख वाले से इस प्रकार की फुर्ती की आशा नहीं थी। वह गोली को छकाता हुआ बाहर निकल गया।
लाम्बात जी से खिडकी की दिशा में लपका।
उस ने खिडकी से बाहर झांकते ही दूसरा फायर किया, मगर स्याहपोश कहीं अधिकी फुर्ती से अंधेरे का लाभ उठाकर बिल्डिंग के बाई ओर को निकल गया।
जब तक बायीं ओर को लाम्बा पलटकर देखता तब तक स्याहपोश गायब हो चुका था ।
लाम्बा ने बाहर को दौड लगाई।
विला के गार्ड फायरों के धमाके सुनकर भागे-भागे उस तरफ को पहुंचे।क्या हुआ ?' लाम्बा को रिवाल्वर लिए घायल अवस्था में देखकर एक गार्ड ने उससे पूछा।
__'कोई उस तरफ गया है, जल्दी देखो। ' लाम्बा ने
पीड़ित स्वर में उसे आदेशित किया।

वह गार्ड गन संभालता हुआ तुरन्त सांकेतिकी दिशा में दौड़ गया।
शेष गार्डों को उसने अलग-अलग स्याहपोश को तलाश में भेज दिया।
इसी बीच!
कोठारी और जोजफ दौड़े-दौड़े उसके पास आपहुंचे। उसे घायल देख कोठारी ने तुरन्त डाक्टर को फोन कर दिया।'
जोजफ उसे सहारा देकर अन्दर ले आया।
चाकू का घाव हालांकि ग हरा नहीं था मगर खू न बहुत तेजी से बह रहा था।
लाम्बा के कपड़े गीले हो गए थे।
शीघ्र ही डाक्टर आ गया।
मरहम-पट्टी के बाद उसे नींद आ गई। डाक्टर ने शायद नींद वाली दवा दे दी थी। वह सो गया। उसके सोने के बाद कोठारी ने आउट हाउस में तीन गाड़ी का विशेष रूप से पहरा लगा। उसे डर था कि कहीं लाम्बा के दुश्मन पुन : उस पर अटैकी न कर दें।
रात सुकून से गुजर गई। दूसरे दिन नाश्ते पर कोठारी उसके पास
आया।
। अब कैसे हो?' उसने लाम्बा से पूछां।
'ठीकी हूं।'
'दर्द...?'
.
.
.
'मा मूली-सा है।'
'कमजोरी ?'
'कमजोरी लग रही है लेकिन कोई खास नहीं। डाक्टर ताकत का इंजेक्श न दे गया है। '
'कौन था ?'
'कौन?'
'वही जिसने तुम्हारे जैसे आदमी को घायल कर दिया। जो अकेला दास पर भारी होता हो, उसे घायल करके निकल जाना बड़ी बात है।'
' वह वक्ती तौर पर ही मेरी पकड़ से बचा हुआ है। जल्दी ही मैं उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'या नी तुम उसे जानते हो?'
'नहीं।'
'तो फिर?'
' उम्मीद है उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'कैसे?'

'वो तब ही बताऊंगा जब उस तक पहुंच जाऊंगा।'
' इसका मतलब है तुम्हें अपने दुश्मन का आइडिया मिल चुका है ? '
' अभी नहीं।'
' फिर ? '
' मैंने उसे कल ही दबोच लिया होता। शराब पीकर नाटकी करते हुए मैंने यह जाहिर कर दिया था कि मैं पूरी तरह असावधान हूं। तब उसने यही समझा कि मैं घोड़े बेचकर सो रहा हू जबकि हकीकतन मैं पूरे होश में था।'
' फिर चोट कैसे खा गए ? '
'वह हरामजादा कुछ ज्यादा ही फुर्तीला साबित हुआ।'
'आई सी।'
'मैंने ऐसा नहीं समझा था उसे। लेकिन कोई बात नहीं...| ' दांत पीसते लाम्बा ने होंठों ही होंठों में गाली देते हुए कहा- एक ही झटके में सारी फुर्ती
खत्म कर दूंगा।'
' उसके बारे में तुम मुझसे छिपा रहे हो लाम्बा ?'
'नहीं...छिपा नहीं रहो। अभी उसके बारे में मैंने खुद भी जानकारी हासिल करनी है। अभी मैं
स्वयं भी अज्ञान के अंधेरे में घिरा हुआ हूं।'

'ठीकी है। मुझसे तुम्हें जो भी मदद चाहिए हो , बता देना।'
'ओ० के०।'
'चलता हूं।
इतना कहकर कोठारी वहां से निकल गया।
00
किसी छापामार कमाण्डो की जैसी तैयारी करने के बाद रंजीत लाम्बा अपनी विशेष कार में बाहर निकला। सामान्य गति से कार ने विला का ड्राइव-वे पार किया और सड़की पर पहुंचने के बाद उसकी रफ्तार में अपेक्षाकृत तेजी आ गई।
सुलगी हुई सिगरेट उसके होंठों के बीच दबी थी। उसके दोनों हाथ सहज ही कार के स्टेयरिंग व्ही ल को दाएं-बाएं घुमा रहे थे।
कार कभी इस सड़की पर तो कभी उस सड़की पर दौड़ती हुई अन्त में एक ढाबे प्रकार के होटल पर जा खड़ी हुई।कार का इंजन बंद हो गया।
अन्दर बैठे-बैठे ही उसने वहां का जायजा
लिया।
काउंटर पर एक मोटा-सा व्यक्ति दरियाई घोड़े की भांति पसरा दिखाई दिया।
मोटा उसकी कार की ओर गौर से देख रहा था। उसे कार वाले ग्राहकी से मोटा माल हाथ आता नजर आ रहा था।
थोड़ी देर बाद लाम्बा ने सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछाल दिया। फिर दरवाजा खोलकर खुद भी कार से बाहर निकल आया।
उसने काली पैंट, काली शर्ट और काला ही ओवरकोट पहना हुआ था जो कि घुटनों से नीचे तक लम्बा था। उसके कॉलर खड़े थे, सिर पर फैल्ट हैट
थी।
Yeh 4th update hai jisakee main sameeksha kar raha hoon!!!
Kahaanee kee ghatanaen aik bahaav kee tarah se bah rahee hain... action packed ghatanaen...
Lekhak itanee kalaatmak samajh ke saath jatil vivaran bata raha hai ki yeh sab vaastavik lagata hai... jaise ke yeh ek screen par ho raha hai... jaise koee film chal rahee hoi aankhon ke saamne...
Is baar Ranjit ka kaatil aanshik roop se saphal raha...
Choohe aur billee ka khel shuroo ho chuka he aur kaun hoga vijeta... ye to samay hee bataega...
Aashcharyajanak kahaanee... uttam...
 
Well-known member
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Yeh 4th update hai jisakee main sameeksha kar raha hoon!!!
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Is baar Ranjit ka kaatil aanshik roop se saphal raha...
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Aashcharyajanak kahaanee... uttam...
Kya mast review dete ho achcha lagta hai thanks for compliment friends
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Amazing story bhai. While reading it felt like I was reading some great thriller novel. Readers who read thriller stories on adult forums are rarely found and if there is no sex in the thriller story, then the limit is reached. Well, you are writing very well, Narration is really awesome. :clapclap:
Keep on like this. :thumbup:
 
Eaten Alive
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First of :congrats: for new story...

waise abhi 2 update read karne ke baad mul kahani kya hai iska todha bahot andaaja to hai . lekin in update mein jo bhi activities huyi hai isse to saaf jahir hai ranjit lamba nilam ke pyar ke chakkar mein der saber hi sahi par punam ke pita manik deshmukh se takrane wala hai...
Usko deshmukh ka khas aadmi kothari ne samjhane ki koshish bhi ki... ke jis raah pe wo chal raha hai waha sirf maut hai.... Lekin ranjit ke sar pe jaise punam ka bhoot sawar hai.... aur kuch zyada hi over confidence mein bhi hai ki ushe kuch nahi ho sakta... Kul milake wo punam ko nahi chhodne wala....
...... waise punam aur ranjit lamba ke bich pyar kam jismani rista zyada hai... Maybe ranjit punam ko apne pyar ke jaal mein fansa ki dusri wajah punam ki jaydaad aur bepanah daulat bhi ho sakti hai...
.... waise jojefar ne us raat ranjit pe goli chalake khud ke liye hi musibat khadi kar li ...wo to sukar hai ki ranjit ke baar baar puchne par bhi jojefar ka naam nahi liya kothari ne...

Khair to ranjit nekiram ko upar pahunche ka bandobast kar raha hai lekin nekiram koi rah chalta insaan to hai nahi ki aise hi ushe thikana laga de... upar se uske protection mein jawed jaise naami gunda bhi the...

kayi kirdaar hai kahani mein.... I think kahani characters pe adhaarit hai...I mean to say ye wo hero heroine wali masala story line na hai...ye story line classic thriller hai..
Revenge aur suspense kadiya bhi add hogi maybe....

Well let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :clapping: :clapping:
 
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Update 3

ranjit jo ki pehle punam ke saamne , phir kothari ke saamne jo dinge haak raha tha .. wo sabhi baatein read karte hi samajh gayi thi ki ye ranjit bhaukne wala kutta hai na ki kaatne wala...
Insaan ko overconfidence kabhi nahi hona chahiye .... ye aksar insaan ko musibat mein daal deta hai.... yaha tak ki jaan bhi jaa sakti hai...
Well ranjit gaya to tha nekiraam ka kaam tamaam karne Lekin ulta uski khudki jaan jaate jaate bacha... thodi bhi deri hoti to uska the end ho jana tha...
Btw ye ranjit to kothari pe hi shaq kar raha hai ki Usi ne ye hamla karwaya hai... Kothari ne saari baate clear kar di...
Udhar deshmukh ke us shahar ke bahar ghar pe bhi phir se hamla hua... waise ye ranjit aur punam jab bhi hawas mitne jaate hai tab hi uspar hamla hota hai :roflol:

kul milake teen baar hamla ho chuka hai.... Gaur karne par pata chale ki ho na ho koyi uska picha kar raha hai har waqt, uspe nazar rakh raha hai har pal...
Aur ye tab se hua hai jab se punam ke jojefar ko pata chala ki ranjit punam ek duje se hawas se bhara pyar karta hai ..
to kya in hamlo ke piche jojefar hai,
duji baat kahi nekiraam ke gunde to nahi....
ya phir ye bhi ho sakta hai ki teesra hamla punam ke liye ho ....
bahot saari gutthiya hai... aur raaz gehrata jaa raha hai...

let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :clapping: :clapping:
 
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Update 4

to ye baat sahi hai hai... Ranjit ka har waqt picha kiya jaa raha hai... har dum uspe nigraani ki jaa rahi hai...
taaki mauka milte ranjit pe hamla karke ushe maut ke ghaat utar sake...
Uspe phir hamla hua... Par dekha jaaye to is baar mauka ranjitne khud diya kaatil ko taaki wo kaatil pakda jaaye.. lekin dinge maarne wala ranjit aur uski futi kismat, wo ek aankh wala hamlawar waha se bhag nikla asani se...
Lekin tha koun wo aur koun kar raha ye sab... kiska haath hai in hamlo ke piche aur kya wajah ho sakti hai jiske chalte ranjit ko jaan se maarne ki koshish kiye jaa raha hai koi ...
kothari pe to shaq hai... maybe saamne se achha banne ka natak kar raha ho...

Jojefar pe bhi shak hai.... lekin wo ek mulajim hai, bina deshmukh ko bataye ye kadam nahi uthane wala...

Waise deshmukh nahi ho sakta in hamlo ke piche.. kyun ki usko maarna tha kab ka maar diya hota...
Nekiraam aur uske gunde bhi ho sakte hai..

1) Ya phir koi aisa jiske sath galat kiya ho ranjit ne flashback mein ab wo badla lene ke liye utaru hai ... Usi ne nekiraam ko bhi informed kiya ho ki uspe hamla hone wala hai...
Par jo bhi hai in hamlo ke piche wo deshmukh ke behad karibi hai..
2) Shayad mamla punam se pyar karne ki wajah se bhi juda ho... shayad koi parde ke piche hai jo katayi nahi chaahta ki punam aur ranjit ke bich koi sambandh bane...

Thrill suspense aur action ka mila jila update tha...
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills.... :clapping: :clapping:
 
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waise abhi 2 update read karne ke baad mul kahani kya hai iska todha bahot andaaja to hai . lekin in update mein jo bhi activities huyi hai isse to saaf jahir hai ranjit lamba nilam ke pyar ke chakkar mein der saber hi sahi par punam ke pita manik deshmukh se takrane wala hai...
Usko deshmukh ka khas aadmi kothari ne samjhane ki koshish bhi ki... ke jis raah pe wo chal raha hai waha sirf maut hai.... Lekin ranjit ke sar pe jaise punam ka bhoot sawar hai.... aur kuch zyada hi over confidence mein bhi hai ki ushe kuch nahi ho sakta... Kul milake wo punam ko nahi chhodne wala....
...... waise punam aur ranjit lamba ke bich pyar kam jismani rista zyada hai... Maybe ranjit punam ko apne pyar ke jaal mein fansa ki dusri wajah punam ki jaydaad aur bepanah daulat bhi ho sakti hai...
.... waise jojefar ne us raat ranjit pe goli chalake khud ke liye hi musibat khadi kar li ...wo to sukar hai ki ranjit ke baar baar puchne par bhi jojefar ka naam nahi liya kothari ne...

Khair to ranjit nekiram ko upar pahunche ka bandobast kar raha hai lekin nekiram koi rah chalta insaan to hai nahi ki aise hi ushe thikana laga de... upar se uske protection mein jawed jaise naami gunda bhi the...

kayi kirdaar hai kahani mein.... I think kahani characters pe adhaarit hai...I mean to say ye wo hero heroine wali masala story line na hai...ye story line classic thriller hai..
Revenge aur suspense kadiya bhi add hogi maybe....

Well let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :clapping: :clapping:
Thanks for compliment friends and thankyou
 
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Amazing story bhai. While reading it felt like I was reading some great thriller novel. Readers who read thriller stories on adult forums are rarely found and if there is no sex in the thriller story, then the limit is reached. Well, you are writing very well, Narration is really awesome. :clapclap:
Keep on like this. :thumbup:
Thanks for compliment bhai
 

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