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Thriller part continued in this update too…कोठारी खुद चलकर रंजीत लाम्बा के पास पहुंचा।
उस समय लाम्बा के एक हाथ में चाकू और दसरे हाथ में सेब था। वह सेब को काटने जा रहा था।
'आओ-आओ कोठारी...आओ। ' उसने मुस्कराते हुए कहा और सेब काटकर उसका एक हिस्सा कोठारी की ओर बढ़ा दिया।
कोठारी ने सेब का टुकड़ा ले लिया लेकिन वह निरन्तर लाम्बा की आंखों में अपलकी झांकता रहा। उसके चेहरे का तनाव और खामोशी उसके गुस्से को बिन कहे जाहिर कर रही थी।
__'क्या हुआ ?' एकाएक ही लाम्बा ने गंभीर होते हुए पूछा। मुस्कान उसके चेहरे से इस तरह से गायब हो गई मानो मुस्कराना उसे आता ही न हो।
प्रत्युत्तर में को ठारी ने सेब का टुकड़ा गुस्से में कमरे के फर्श पर पटकी दिया।
'कोठारी! ' लाम्बा की आँखें क्रोध से जलने लगीं।
'डायन भी सात घर छोड़ दिया करती है! ' कोठारी घायल सर्प की भांति फुफकारा।
लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए। मुट्ठियां कस गई।
तनाव से भर उठा वह। उसकी समझ में आ गया था , कहां बोल रहा था कोठारी।
'अभी तुम्हारी नौकरी महज तीन महीने पुरानी हुई है। अगर देशमुख साहब को पता चला तो खड़े पैर निकाल देंगे।'
'नौकरी लाम्बा के होटों पर विषाक्त मुस्कान फैल गई -नौ कर की परवाह रंजीत लाम्बा ने अपनी जिन्दगी मैं कभी नहीं की। तूं नहीं और सही और नहीं और सही।'
___ 'इसके मुकाबले की नौकरी हासिल नहीं कर सकोगे।'
' इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है। इससे भी अच्छी नौकरी हासिल हो सकती है। '
'जो कुछ तुम कर रहे हो, उस रास्ते पर मौत भी मिल सकती है।'
'मौत के भी दांत खट्टे कर दूंगा।'
'रंजीत लाम्बा जैसे अनगिनत किराए के हत्यारे देशमुख- साहब की सेवा में हमेशा बिछे रहते हैं। देशमुख साहब के सामने तुम्हारी बिसात ही क्या।'
' हर आदमी अपनी मर्जी का मालिकी है। मैं अपने मन की बात करने के लिए आजाद हूं और देशमुख साहब अपनी। '
' यानी । तुम पूनम के लिए देशमुख साहब से टकराने को तयार हो?' कोठारी ने अपनी गंजी खोपड़ी साहब पर हाथ फेरते हुए आश्चर्य से लाम्बा की तरफ देखा।
'जब बात खुल ही गई है तो फिर किसी से टकी राने में कोई फर्की नहीं पड़ने वाला। '
'अभी बात पूरी तरह नहीं खुली है।'
'मतलब?'
कोठारी ने उसकी ओर देखते हुए सिगरेट का पैकेट निकाला , एक सिगरेट सुलगाई , धुवां उगला , फिर, कुछ रुककर बोला- ' मतलब ये कि अभी तुम्हारी आशनाई की कहानी देशमुख साहब तक नहीं पहुंची है।'तो फिर?'
'अ भी रिपोर्ट सिर्फ मेरे पास तक है । अगर देशमुख साहब तक खबर पहुंची होती तो अब तक हंगामा खड़ा हो चुका होता।'
'क्या चाहते हो ?' ' इस खेल को यहीं खत्म कर दो।'
' फिर?'
' मैं बात आगे बढ़ने नहीं दूंगा।'
'मुश्किल है।'
'यानी ?'
'पूनम को मैं तो भुला सकता है लेकिन पूनम मुझे नहीं भूलेगी । मैं उससे मिलना बन्द कर सकता हूं , वहमुझसे मिलना बंद नहीं करेगी।'
'तुम कह रहे हो ना...पूनम नहीं।'
'तो तुम पूनम से जाकर पूछ लो।' 'पूछने की कोई जरूरत नहीं है।'
'फिर?'
'तुम्हें उससे मिलना बन्द करना होगा। मैं नहीं चाहता कि किसी तरह की कोई बात उड़ती-उड़ती देशमुख साहब के कानों तक पहुंच जाए और देशमुख साहब तक खबर पहुंचने का मतलब होगा चिंगारी पैट्रोल तक पहुंच गई।'
'कोठारी तुम व्यर्थ ही बन्द-बन्द धमकी देकर मुझे नाहकी डराने की कोशिश कर रहें हो।'
' मैं तुम्हें सच्चाई बता रहा हूं रंजीत लम्बा ।'
'मुझे सच्चाई मालूम है।' ___ 'तो फिर क्यों ऐसा गलत कदम उठाने पर तुले हुए हो जिसका अंत अच्छा न हो। अभी अच्छी-भली नौकरी है। देशमुख साहब की नजरों में तुम्हारी इज्जत है, क्यों उसे मिट्टी में मिला देना चाहते
.
हो?'
' यह दिल का मामला है , तुम नहीं समझोगे।
'दिल के इस मामले को यहीं रोकी दो वरना पछताने के लिए वक्त नहीं रह जाएगा तुम्हारे पास।'
' उसकी फिक्र करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है कोठारी।'
' यानी तुम मानोगे नहीं ?'
'मजबूर हूं।'
'रंजीत.. .यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो।'
'तुम मेरी शिकायत देशमुख साहब से कर सकतें हो।'
'शिकायत अगर की रनी होती तो कब की कर चुका होता। मै शिकायत नहीं करूगा । मेरी आखिरी कोशिश यही रहेगी कि तुममें और देशमुख साहब में खटके नहीं। क्योंकि तुम्हारी कमी होने पर तुम्हारी कमी पूरी करने के लिए मुझे फिर एक लम्बी तलाश करनी पड़ेगी।'
'कुछ नहीं होगा कोठारी...तुम व्यर्थ ही घबरा रहे हो। कुछ नहीं होगा।'
' मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूं। तुम्हारे जैसे दिलफेंकी आशिकी जब तक कुछ
हो नहीं जाता तब तक यही राग अलापते रहते हैं ...कुछ नहीं होगा-कुछ नहीं होगा।'
' निश्चित रहो। सिर्फ इतना बता दो , तुम्हें इस खबर से वाकिफ किसने कराया ?'
_ 'वो मैं नहीं बताऊंगा।'
__ 'प्लीज...मैं सिर्फ जानना चाहता हूं उसके खिलाफ किसी तरह का कदम उठाने का कोई इरादा
नही है मेरा। 'तुम्हारे इरादों , तुम्हारी आदतों और तुम्हारे गुस् से को अच्छी तरह जानता हूं मैं । '
'मुझ पर भरोसा करो।' 'तुममें और बिच्छू में कोई फर्की नहीं। डंकी तो तुमने मारना ही मारना है।'
'नहीं...ऐसा नहीं है, तुम मुझे उसका नाम बता दो।'
'नही बताऊंगा।'
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'यानी मुझे खुद ही उसकी तलाश करनी पड़ेगी।'
'तुम उसके बारे में सोचोगे भी नहीं।'
'रंजीत लाम्बा के होंठों पर जहर भरी मुस्कान फैल गई।
'रंजीत तुम्हें अपने काम से काम रखना है.. .बस! ' कोठारी उत्तेजित स्वर में बोला।
'हां...मुझे अपने काम से काम रखना है। ' 'नेकीराम का क्या हुआ ?'
' अभी वह सिगापुर से वापस नहीं लौटा है। जैसे ही वह वापस लौटेगा उसका काम हो जाएगा।'इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रहे हो। नेकीराम अपने नाम के अनुरूप नहीं विपरीत है। छोड़ भलाई सब गुण है उसमें। '
'उस की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। उसका नाम खत्म हो जाएगा।'
' मेरे विचार में तुम्हें सारा ध्यान उसी की तरफ लगा देना चाहिए। ' कहता हुआ कोठारी वहां से जाने के लिए मुड़ा। कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर उसके कदम रुके। बिना मुड़े ही वह बोला- 'ये तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कीमती राय है। इसे मानना न मानना तुम्हारे अधिकार में है। देशमुख साहब से टकराकर आज तक कोई चैन से जी नहीं सका है।'
लाम्बा कुछ कहता , उसके पहले ही कोठारी वहां से निकल चुका था।
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चौबीस अगस्त को शाम छ: अड़तीस की फ्लाइट से नेकीराम आने वाला था।
एयरपोर्ट पर रंजीत लाम्बा अपनी पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। उसने काला सूट पहन रखा था। सिर पर फैल्ट हैट था, हाथों में काले दस्ताने और
काले ही रंग का ब्रीफकेस।
पिस्तौल उसके बगली होलस्टर में थी और अड़तीस कैलीबर का रिवाल्वर गर्दन के ठीकी पीछे पीठ वाले होलस्टर में। ऊपर से ढीला-ढाला कोट।
छोटे-छोटे गोल काले लेंसों वाला चश्मा लगाए वह कुर्सी पर बैठा सिगरेट के कश लगाता हुआ बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहा था।
एयर फ्रांस की पलाइट के सिंगापुर से आने वाली खबर अभी-अभी एनाउन्स हुई थी।
अब कस्टम से क्लीयर होने के बाद यात्रियों को बाहर निकलना था।
__ लाम्बा की नजरें बारम्बार निकास द्वार की ओर घूमजातीं।'
वह निकास द्वार के अतिरिक्त रिसीव करने
आए लोगों को भी गौर से देख रहा
था। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में उसे वहां कुछ दादे परकार के लोग भी दिखाई देने लने।
जावेद कालू माना हुआ दादा था।
शक्तिशाली जावेद कालू के आसपास उसके तमाम चमचे भी मौजूद थे।
एक चमचा उस के लिए तम्बाकू और चूना घिसकर ले आया।
कालू ने तम्बाकू मुंहमें डाल ली, फिर वह भी निकास द्वार की तरफ देखने लगा।
इसी बीच एक चमचे ने उसके कान में कुछ
कहा।
कालू फुर्ती से उठ कर बाहर की ओर लपका। तीन च मचे जेबों में हाथ डाले तेजी से उसके
पीछे-पीछे बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद लाम्बा अपनी जगह से उठकर ऐसी चेयर पर जा बैठा जो खंभे की ओट में
थी।
निकास द्वार से अब यात्रियों ने निकलना शुरू कर दिया था।
जावेद कालू जितनी तेजी से गया था उतनी ही तेजी से वापस लौटा।
उसके आदमी आसपास फैले हुए थे।
वह पूरी तरह सजग नजर आ रहा था। उसकी नजर निकास द्वार पर स्थिर होकर रह गई थी।
यात्री बाहर आ रहे थे।
अचानक!
इंकलाब! जिन्दाबाद! के नारों से एयरपोर्ट का वह क्षेत्र गूंज उठा।
रिसीव करने आए लोगों में से कुछ लोग किसी नेता का स्वागत कर रहे थे। भीड़
वहां अनायास ही जमा-होती चली गई।
अब निकलने वाले यात्रियों को मुश्किल से ही देखा जा पा रहा था।
जावेद का लू उठ खड़ा हुआ।
उसे अब ठीकी तरह से अपना वांछित व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।
लाम्बा परेशान था।
उसे भी अपना शिकार तलाश करने में मुश्किल पेश आ रही थी।
नेताजी को रिसीव करने आए लोग नारे लगाते हुए आगे बढ़ गए। जगह खाली हुई और नेकीराम सामने आया। नाम के विपरीत नेकीराम तीस के पेटे में पहुंचा आधु-निकता में लिपटा हुआ। नीली शर्ट , बाइट जींस. स्पोर्ट्स शूज और छोटे लैंसिज वाला चश्मा लगाए हुए था।
निकास द्वार पार करके वह ज्योंही लगेज कैरयिर के साथ बाहर आया , जावेद कालू और उसके आदमियों ने तुरन्त उसे घेर लिया।
एक आदमी उसके द्वारा लाए गए लगेज कैरियर को खींचता हुआ ले चला। लाम्बा देख रहा था। कालू को नेकीराम से बात करते हुए।
कालू झुका हुआ उससे कुछ कहता चल रहा था। उसके आदमियों ने दोनों को चारों ओर से कवर कर रखा था।
लाम्बा समझ गया कि नेकीराम ने जावेद कालू की प्रोटेक्श न हासिल कर रखी है।
Magar mere liye jo baat sab se jayaadaa dhyaan dene yogy aur dilchasp thee who yeh ke kis khubee se Ranjit Lamba aur Kothari ke beech sanvaadaatmak sanvaad huee… jesse ke shatranj kee baajee sajee ho aur do partiyogee apne apne mudde se peeche hatne ko tayar naa hon…
Lekhak ne naa keval action / thriller genre mein apnee visheshagyata dikhayee he balke unhonne yeh bhee dikhaaya hai ke kaise do pratiyogee shabdon ke yuddh ladate hein…