सोनाली- लो भैया अभी नहीं आएंगे.. तुमको भूख लगी है ना.. लो दूध पी लो..
उसने अपनी चूचियों को उसके मुँह के पास कर दिया।
सूर्या- उसको पता चल गया तो?
सोनाली- जो होगा देखा जाएगा।
तो सूर्या ने भी उसके मम्मों को पकड़ लिया और दबाने लगा, तब तक सोनाली ने उसकी पैन्ट को खोल दिया, उसका लहराता हुआ लंड बाहर आ गया, उसका लंड भी कम नहीं था, मेरे बराबर ही था.. या छोटा भी होगा तो बहुत कम ही छोटा होगा।
सोनाली उसको बड़े प्यार से सहला रही थी और सूर्या उसके मम्मों को नोंच रहा था।
तभी सूर्या ने उसकी चूचियों को मुँह में ले लिया। मेरी दया से चूचियों इतनी बड़ी हो गई थीं कि उसके मुँह में तो जा ही नहीं पा रही थीं..
तभी..
सोनाली- मैं इसको मुँह में ले लूँ?
सूर्या- ले लो.. लेकिन मैं चूचियों को अभी नहीं छोड़ने वाला हूँ.. बहुत दिनों से इसको पाना चाह रहा हूँ।
सोनाली- बहुत दिनों से.. मतलब.. कब से?
आज सुबह से जब से आधी चूची को खुला देखा है.. तब से मैं इसको पाने के लिए मचल रहा हूँ।
सोनाली- और मैं तुमको पाने के सपने पिछले 3 साल से देख रही हूँ।
सूर्या- सच.. तो सूर्या- पिछली बार जब तुमको सुशान्त के साथ स्टेशन पर देखा था.. तब से ही मैं इनके साथ खेलना चाहता था और बताया क्यों नहीं?
सोनाली- मैंने बहुत कोशिश की लेकिन तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया और अभी भी ज़बरदस्ती नहीं करती तो क्या तुम मानते?
सूर्या- सुशान्त मुझे भाई बोलता है ना.. उसे पता चलेगा तो बुरा सोचेगा.. ये सोच कर मैं चुप था.. लेकिन अब मैं तुमसे दूर नहीं रहने वाला हूँ..
सोनाली- अब तो लंड मुझे चूसने के लिए दे दो.. तीन साल से तड़फ रही हूँ.. इसकी याद करके..
सूर्या- लो.. मैं भी तो देखूँ.. तुम्हारी चूत कैसी है!
वे दोनों 69 की अवस्था में आ गए, सोनाली लंड को बहुत अच्छे से चूस रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे खा जाएगी।
उधर सूर्या भी चूत को आसानी से नहीं छोड़ रहा था.. साला पूरा जीभ अन्दर डाल रहा था.. दोनों सिसकारियाँ ले रहे थे।
मैंने सोचा रंग में भंग डालने का यही सही टाइम है।
मैं सामने से घूम कर अन्दर आ गया.. अभी भी वो दोनों अपने चूसने के काम में लगे हुए थे।
मैं- हे.. ये क्या कर रहे हो तुम दोनों?
मुझे देखते ही दोनों अलग हुए और सोनाली भाग कर अपने कमरे में चली गई और सूर्या अपने लंड को छिपाते हुए खड़ा हो गया।
उसने अपनी चूचियों को उसके मुँह के पास कर दिया।
सूर्या- उसको पता चल गया तो?
सोनाली- जो होगा देखा जाएगा।
तो सूर्या ने भी उसके मम्मों को पकड़ लिया और दबाने लगा, तब तक सोनाली ने उसकी पैन्ट को खोल दिया, उसका लहराता हुआ लंड बाहर आ गया, उसका लंड भी कम नहीं था, मेरे बराबर ही था.. या छोटा भी होगा तो बहुत कम ही छोटा होगा।
सोनाली उसको बड़े प्यार से सहला रही थी और सूर्या उसके मम्मों को नोंच रहा था।
तभी सूर्या ने उसकी चूचियों को मुँह में ले लिया। मेरी दया से चूचियों इतनी बड़ी हो गई थीं कि उसके मुँह में तो जा ही नहीं पा रही थीं..
तभी..
सोनाली- मैं इसको मुँह में ले लूँ?
सूर्या- ले लो.. लेकिन मैं चूचियों को अभी नहीं छोड़ने वाला हूँ.. बहुत दिनों से इसको पाना चाह रहा हूँ।
सोनाली- बहुत दिनों से.. मतलब.. कब से?
आज सुबह से जब से आधी चूची को खुला देखा है.. तब से मैं इसको पाने के लिए मचल रहा हूँ।
सोनाली- और मैं तुमको पाने के सपने पिछले 3 साल से देख रही हूँ।
सूर्या- सच.. तो सूर्या- पिछली बार जब तुमको सुशान्त के साथ स्टेशन पर देखा था.. तब से ही मैं इनके साथ खेलना चाहता था और बताया क्यों नहीं?
सोनाली- मैंने बहुत कोशिश की लेकिन तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया और अभी भी ज़बरदस्ती नहीं करती तो क्या तुम मानते?
सूर्या- सुशान्त मुझे भाई बोलता है ना.. उसे पता चलेगा तो बुरा सोचेगा.. ये सोच कर मैं चुप था.. लेकिन अब मैं तुमसे दूर नहीं रहने वाला हूँ..
सोनाली- अब तो लंड मुझे चूसने के लिए दे दो.. तीन साल से तड़फ रही हूँ.. इसकी याद करके..
सूर्या- लो.. मैं भी तो देखूँ.. तुम्हारी चूत कैसी है!
वे दोनों 69 की अवस्था में आ गए, सोनाली लंड को बहुत अच्छे से चूस रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे खा जाएगी।
उधर सूर्या भी चूत को आसानी से नहीं छोड़ रहा था.. साला पूरा जीभ अन्दर डाल रहा था.. दोनों सिसकारियाँ ले रहे थे।
मैंने सोचा रंग में भंग डालने का यही सही टाइम है।
मैं सामने से घूम कर अन्दर आ गया.. अभी भी वो दोनों अपने चूसने के काम में लगे हुए थे।
मैं- हे.. ये क्या कर रहे हो तुम दोनों?
मुझे देखते ही दोनों अलग हुए और सोनाली भाग कर अपने कमरे में चली गई और सूर्या अपने लंड को छिपाते हुए खड़ा हो गया।