Erotica चुदकड ब्यानजी by स्नेहील

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आगे प्रिया के शब्दों में



मेरे जाते ही सब आ गयी मेरे स्वागत को । हंसी ठिठोली मस्ती मजाक चल रही थी । कुछ कुछ तो गालियो में उलाहने दे रही थी । बोल रही थी बहु और सासु दोनो की खूब पिछवाडो निकल रखियो हैं। गांव में सब गांड का ही शौकीन दिके।मस्ती मजाक में टाइम का पता ही नही चला और शाम होने लगी ।और हल्दी का टाइम आ गया।और मैं जो हल्दी लेके आयी थी घर से उसे लेकर नन्दोईजी को लगाने पहुँची। नन्दोईजी बाजोट पर बैठे थे। केवल एक बॉक्सर में । मैने थाली से आरती ली। फिर हल्दी धीरे धीरे उनकी पीठ पर मलने लगी ।

उनके जिस्म का अहसास होने लगा धीरे धीरे गर्दन पर कंधो पर। इतनी सब औरतो के बीच केवल मैं ही अकेली बाहर मतलब नन्दोईजी के ससुराल से थी। इसलिए मन मे थोड़ा संकोच हो रहा था नन्दोईजी से मस्ती मजाक करने का। फिर पीछे से आवाज आई किसी की की हाथ मे जोर नही हैं क्या। हल्दी तो रगड़ रगड़ कर लगती है । अब मैं रगड़ रगड़ कर हल्दी लगाने लगी। अब मेरे हाथ नन्दोईजी के सीने पे थे और मैं उन्हें हल्दी से रगड़ रही थी। मुझे मस्ती सूझी और मैने नन्दोईजी के निप्पल को पिंच किया ।नन्दोईजी उछले वे हमले के लिए तैयार नही थे। अब मैं उन्हें छेड रही थी कभी निप्पल से तो कभी उनकी कमर में चिकोटी काट कर।मेरे हाथों के अहसास और मेरी हरकतों से नन्दोईजी का हल्का तम्बू बॉक्सर में से झलक रहा था। अब मेरे हाथ उनके पाव से होते हुए उनके जांघो तक पहुच गए। बिल्कुल उनके डंडे के आसपास ही रगड़ाई हो रही थी अब उनके चेहरे का नंबर था । मेने जानभुझकर हल्दी उनके दांतो से रगड़ दी। नन्दोईजी से छेड़खानी में बहुत मजे आ रहे थे।मेरे नन्दोईजी की भुआ बोल रही थी। विराज तू भी लगा दे अपनी सलहज के ज्यादा मस्ती चढ़ रही ह इसके।अब मैं वापस पीछे उनकी पीठ पर अब हल्दी उतारने लगी। और
थोड़ी हल्दी उनके बॉक्सर में पीछे से डाल दी जो काफी अंदर तक गयी।एक औरत बोली थारे नन्दोईजी के डंडा ने भी हल्दी लगा नही तो पूरा शरीर मे एक जगह काली रे जाइ। तभी दूसरी बोली। एके तो घर मे सबने ही कालो कालो ही पसन्द है और सब हंसने लगी।मै अपनी ननद को बोल कर आई थी नन्दोईजी के खुंठे का नाप चोप लेने का। पर हिम्मत नही हो रही थी उनके बॉक्सर में हाथ डालने की। लेकिन फिर भी हिम्मत करके मेरे थोड़ी हल्दी ली औऱ नन्दोईजी के बॉक्सर में हाथ डाल दिया उनका खूंटा हाथ मे आता उससे पहले ही नन्दोईजी के हाथ ने मेरे हाथ को पकड़ लिया फिर भी सारि हल्दी उनके बॉक्सर में ही डाल दी जो पक्का उनके खुंठे पर लगी होगी नन्दोईजी ने मेरा हाथ बाहर निकाला। अब सब नन्दोईजी को उकसाने लगी मेरे भी हल्दी लगाने को और में भी नन्दोईजी की पकड़ में थी पूरी थाली भर के हल्दी जो उनकी तरफ से थी नन्दोईजी के पास पहुँची और उसमें से लेकर नन्दोईजी ने दोनों हाथो से मेरे मुँह पर । फिर हल्दी लेकर मेरे ब्लाउज में हाथ डाल दिया ओरकफी सारि हल्दी ब्रा के अंदर थी अब मैं नन्दोईजी के चुंगल से तो छूट गयी। पर वहा की बाकी औरतो ने घेर लिया

और फिर तो मेरी शामत आ गयी वो पूरी हल्दी की प्लेट मेरे सारे शरीर पर लगने लगी।

उन्होंने मुझे जमीन पर ही फसरा दिया किसी के हाथ चेहरे पर किसी के बलाउज के अंदर तो । दो तीन नीचे थी । साड़ी पेटिकोट के अंदर ही हाथ डालकर कोई मेरी पैंटी उतारने लगी।

और अब तो इतनी हल्दी मेरी रसभरी और गांड की फांखो पे थी। जब हल्दी खत्म हुई तब ही मेरी रगड़ाई खत्म हुई पूरी हल्दी में लथपथ कर दिया मुझे। मेरा बेटा भी मेरी रगड़ाई देखकर रोने लगा। उसे भी चुप कराया। अब तक तो नन्दोईजी बाथरूम में जा चुके थे खुद को साफ करने नहाने।
ऐसी हालत मैं मेरा वापस जाना भी मुश्किल था। सब बोली नहा धोकर चली जाना ।मुझे भी यही सही लगा पर वो तो कुछ और ही सोच रही थी। वो मुझे नन्दोईजी के रूम में ले गयी और बोली ले थारा नन्दोईजी थारे जगह जगह घुसेड़ी हल्दी भी निकाल देइ और बढ़िया सु साफ कर देइ। मैं मना करने लगी ।तभी वो नन्दोईजी के बाथरूम के गेट को बजाने लगी बोली ले विराज थारी सलहज की हल्दी उतार दे।नन्दोईजी ने दरवाजा खोला और मुझे पीछे से ऐसा धक्का दिया कि मैं सीधा बाथरूम में। वो बाहर मेरे बच्चे को बोल रही थी कि बेटा चल तुझे लोलीपोप खिलाते है। अंदर तेरी मम्मी को भी लोलीपॉप खाने दे।
अंदर ननदोई जी चड्डी में पूरे गीले हो रखे थे ।मैं वैसे तो मै शर्मीली स्वभाव की नही हु पर इस समय शर्म से जमीन में गढ़ी जा रही थी। नन्दोईजी पास आये और बोले आओ प्रिया भाभी आपकी हल्दी उतार दु।और मेरी सारी का पल्लू खीचकर मुझे अपने पास बुलाने लगे। नन्दोईजी साड़ी खिंच रहे थे और मैं गोल गोल घूम कर नन्दोईजी के पास चली जा रही थी और फिर उन्होंने पूरी साड़ी उतार कर साइड में फेंक दी और शॉवर चला दिया। मेरा पूरा बदन पानी मे भीग रहा था।गिला होने के कारण बलाउज में ब्रा साफ दिख रही थी। पेटिकोट गांड की दरार में चिपक गया और मोटे मोटे चूतड़ साफ दिखाई दे रहे थे।नन्दोईजी ने मेरे सामने से ही मुझे अपनी

बाहों में जकड़ लिया।मैं कसमसाई बोली नन्दोईजी तीन दिन बाद तो म्हारी ननद संग सुहागरात हैं थांकी और आज थे म्हारे साथ कांई कर रिया हो। हटो मैं ही हटा लेउ हल्दी।। नन्दोईजी बोले तीन दिन बाद है मैच तो ,आज तो नेट प्रैक्टिस करबा दो। फिक्र मत करो जटे भी हल्दी घुसोड़ी होइ थांके निकाल लेउ मैं।और मेरे ब्लॉउज के हुक खोलने लगे और बोले लो देखु कटे कटे लागि ह थांके हल्दी।और एक एक करके सारे हुक खोल दिये और मेरा ब्लॉउज भी उतार दिया । मेरी ब्रा के ऊपर ही हल्दी चिपटी हुई थी । मेरे बोबो की खाई में भी हल्दी भरी हुई पड़ी थी। नन्दोईजी उन्हें हटा रहे थे।और उनके हाथ मेरे बोबो पर लग रहे थे इस अहसास से मेरी रसभरी में चींटे खाने लगे थे।शॉवर लगातार चालू था। अब नन्दोईजी ने बन्द कर कर मुझे मेरे बोबो की साइड से दीवार से सटा दिया ।मेरी ब्रा में बंद मेरे बोबे दीवार से सट गए। और नन्दोईजी पीछे से मेरी ब्रा का हुक खोलने लगे।और एक झटके में मेरी ब्रा खुल गयी। और उन्होंने पीछे से ही उसे खीचकर अलग कर दिया। और मुझे सीधा कर दिया इससे मेरे दोनो नँगे बोबे जो हल्दी में लथपथ थे नन्दोईजी के सामने झूल गए। मुझे हल्की सी शर्म का अहसास हुआ और मेरे दोनो हाथ अनायास ही मेरे दोनो बोबो पर आ गए। नन्दोईजी हाथ हटाते हुए बोले बताओ तो कटे कटे लागी हल्दी नई बताओ तो केन हटाऊँ। अब मेरे दोनो हाथ नीचे और नन्दोईजी के दोनों हाथ मेरे बोबो पर आ गए।नन्दोईजी ने वापस शॉवर न कर दिया । पानी मे भीगते मेरे बोबो को मसल मसल कर वो हल्दी उतारने लगे।
मैं ,"आह नन्दोईजी" "ओह नन्दोईजी" कर रही थी अब उन्होंने मुझे उल्टा किया और पीछे से मुझे जकड़ लिया और मेरे दोनो बोबो को रगड़ने मसलने लगे।हल्दी हटाने का तो बहाना था वो तो बोबो को काफी बुरी तरह से रगड़ मसल रहे थे। आह क्या अहसास था पानी के नीचे होने वाले इस खेल का नन्दोईजी मेरे बोबे मसल रहे थे पीछे से उनका खम्भा मेरी गांड की दरार में घुस रहा था।
मैं तो ओर मचलने लगी।मेरी रसभरी को भी नन्दोईजी के लौड़े की तलब लगने लगी।नन्दोईजी मसल मसल कर बोबो से हल्दी निकाल रहे थे कभी कभी वो निप्पल को भी रगड़ देते , मेरी सिसकारी निकल जाती।अब लगभग लगभग मेरे बोबो से हल्दी हट गयी थी नन्दोईजी ने मुझे सीधा किया और मेरे निप्पल पर होंठ रखते हुए बोले म्हारी माँ बोले हल्दी वालो दूध पिनो चावे। देखलो आज हल्दी को दूध पीबा ने मिल रिये।और नन्दोईजी मेरे निप्पल चूसने लग गए ।पानी मे भीगते हुए बोबो की चुसाई क्या अहसास दे रहा था। नन्दोईजी बदल बदल कर निप्पल चूस रहे थे काट रहे थे ।
आँआह … उम्म्ह… अहह… हाय नंदोईजी… … ओह नन्दोईजी थांकी माँ थाने दूध नई पिलाई कांई जो थे म्हारो पी रिया हो।।ओह नन्दोईजी पूरा बदन में आग लगादि थे तो।और नन्दोईजी मेरे दूध का मजा उठा रहे थे कुछ देर मेरा दूध पीने के बाद नन्दोईजी ने मुझे उल्टा किया। और अपने हाथ मेरे पेटिकोट के नाड़े पर ले आये और हाल तो और भी जगह सु निकालनी ह हल्दी।नाड़ा खुलते ही मैं अपने होने वाले नन्दोईजी के सामने पूरी नँगी हो गयी। मेरी नँगी गांड देखकर नन्दोईजी का खूंटा चड्डी के अंदर ही हुंकार भरने लगा। अब पीछे से नन्दोईजी के हाथ मेरी गांड की फांखो पर चलने लगे। वो हाथो से उन्हें मसलने लगे।आह ऊफ़ नन्दोईजी धीरे।।।दोनो हांथो से मेरी गांड काआटा गूँथा जा रहा था।
मैं पूरी चूदासी हो गयी थी ।अब तो सब कुछ भूल भाल के नन्दोईजी के लौड़े पर झूला झूलने का मन हो रहा था। नन्दोईजी का हाथ मेरी गांड की दरार में जा रहा था और गांड की दरार में फंसी हुई हल्दी को निकाल रहा था। कहाँ कँहा हल्दी डाली थी मेरे। उंगुली से मेरे गांड के छेद को रगड़ते हुए गांड की खाई में से हल्दी निकाली जा रही थी। अब लगभग गांड भी साफ हो चुकी थी। अब उनके हाथ पीछे से ही मेरी रसभरी पर आ गए और उसे सहलाने लगे।आह नन्दोईजी कांई कर रिया हो। नन्दोईजी बोले अटा सु भी निकाल दु थांके हल्दी और दो उँगली से मेरी रसभरी की पंखुड़ियों को रगड़ा और उसमें से लिथड़ी थोड़ी सी हल्दी निकाल कर मुझे दिखाते हुए बोले देखो हाल तो और हल्दी पड़ी है। थाने पूरी साफ सुथरी कर कर भेजू फिक्र मत करो। मै मन मे सोची थे तो मने आज चौदकर भेजता दिको।अब
उन्होंने अपना हाथ मेरी चूत पर लगाया तो मेरा मटर का फ़ूला हुआ मोटा दाना उनके हाथ से टकरा गया।
और उन्होंने उसको हल्के से पकड़ कर हिला दिया।
"हाय्य्य , नन्दोईजी, कांई कर दिया "मैंने जोर की सिसकी भरी।कैसी मीठी सी जलन हो रही थी मुझे..."
नन्दोईजी, मेरी चूत की पंखुड़ियों को बाहर से रगड़ रगड़ कर साफ कर चुके थे। अब मेरी हालत जल बिन मछली(लण्ड बिन रंडी)जैसी हो चुकी थी।मेरी चुत लार टपका कर बता रही थी कि अब उसे क्या चाहिए था। अब नन्दोईजी ने अपनी दो अंगुली मेरी रसभरी में पेल दी।। आह नन्दोईजी ऊफ़।।मन तो कर रहा था कि कह दु की नन्दोईजी आपकी अंगुली नही आपका लण्ड चाहिए।।बीच बीच मे पानी की बूंदे और आग बढा रही थी।पूरी रसभरी

लिसलिसी हो चुकी थी। मैं इतनी खेली खायी अब मेरे कंट्रोल से बाहर था ।अब मैंने नन्दोईजी को कहा आह नन्दोईजी अटे तो अंगुली से साफ नई होइ अटे तो और कुछ डालकर साफ करो। नन्दोईजी तो समझ गए में क्या मांग रही थी। नन्दोईजी बोले हाँ बो ही डालकर साफ करणो पड़ी थांके। डाल दो तो नन्दोईजी मत तड़फओ अब। मैं भी तो देखु कितरो लांबो ह म्हारी ननद की किस्मत में। अब मैंने ही ही नन्दोईजी कि चड्डी के ऊपर ही लौड़े के उभार को पकड़ लिया और फिर अपना एक हाथ उनकी चड्डी में डालकर उनके लम्बे मोटे मूसल को पकड़ लिया।हाय क्या लंबा मोटा था पूछो मत। अब मेरी रसभरी से ही अंगुलिया निकल चुकी थी । मैने कहा नन्दोईजी अब मैं भी आपके हथियार को साफ करूँगी मैने थोड़ी सी हल्दी आपकी चड्डी में डाली थी तो गन्दा हो गया होगा। अब मैंने नन्दोईजी की चड्डी पूरी नीचे उतार दी ।हे रामजी इतणा लम्बा मोटा काला भुगंज लौड़ा मेरे सामने लहर गया। मैं देखते ही बोली म्हारी ननद की तो किस्मत ही खुल गयी रोज यो ही लांबो लांबो मोटो मोटो घोटी ।।मैंने उनके मूसल लौड़े को हाथ मे लेते हुए नन्दोईजी से पूछा "क्यो नन्दोईजी असली ही ह नी यो"।। नन्दोईजी बोले यो तो थे भी चेक कर सको।और मेंने उनके मूसल को मुँह लेके चूसा और स्वाद लेते हुए बोला। बिल्कुल असली है।
मैने उनके लौड़े को मुठ्ठी में भर कर पहले आगे-पीछे किया, फिर लिंग के चमड़े को पीछे की तरफ खींच कर सुपारे को खोल दिया।
पहले तो मैंने उसके सुपारे को चूमा फिर जुबान को पूरे सुपारे में फिराया और मुँह में भर कर चूसने लगी।
मेरे होंठ जब नन्दोईजी के सुपारे पे लगे तो नन्दोईजी की आह्ह्ह्ह्ह्ह निकल गयी। जिस से मेरी भी हसी निकल गयी और दुबारा फेर मैं अपने काम पे लग गयी। मैं कभी आन्ड को होंठो से चुस्ती तो कभी सुपारे को हल्का हल्का काटती।
फिर मैं नन्दोईजी के लौड़े को सपड सपड कर चूसने लगी एक हाथ से लौड़े को पकड़ा हुआ था और दूसरा हाथ मेरा अब उनके फुले हुए आण्डों पर आ गया।
फिर उनके लौड़े के सुराख को मैं अपनी जीभ से कुरेदने लगी। मैं चुदाई की लालसा में बिल्कुल बेहया हो गयी थी।ये भी भूल गयी मैं अपने बच्चे के साथ आयी थी। और वो बाहर लॉलीपॉप चूस रहा था और अंदर मैं अपने नन्दोई जी का लॉलीपॉप चूस रही थी।
लंड तो पहले से ही लोहे की राड जेसा था मेरे लण्ड चूसने से नन्दोईजी भी पुरे जोश में आ गए थे।और मेरे मुह को लंड से चोदने लगे,मेरी तो साँस ही रुकने लगी।

अब तो दोनों के अंग एक दूसरे से मिलने को तड़फ रहे थे।

नन्दोईजी ने मुझे दीवार पर हाथ रख कर झुका दिया और पीछे से उनका लौड़ा मेरी रसभरी पर सेट किया और एक ही झटके मे मेरी गीली रसभरी चीर कर रख दी...उन्होने अपने लण्ड को अंदर तक घुसा दिया था, मेरी चूत की दीवारें चिरने लगी थीं, मैं कराह रही थी- आ…अहह… ह्म… नन्दोईजी डाल दिया.....

और वो तो और अंदर घुसा कर जोर से झटके देने लग गए।
आउउइइइ.. माँआआ हाय्यय मर गई..हाय रामजी मरी मैं तो...
नन्दोईजी ने फिर पीछे से झटके पे झटके देना शुरू किया. फट फट फ्छ्क फच.. की मधुर आवाज आने लगी.

मेरी तो 'ऊह.. आह्ह्ह्हह..' रुक ही नहीं रही थी. शावर पूरी स्पीड पे पानी फेंक रहा था. ऊपर से शावर का पानी, नीचे चुदाई, जन्नत का मजा आ रहा था हम दोनों को।
म्मम्मम्मीईई.. मर्र गग्गईई… ऊऊईईई.. आह.. धीरे करो नन्दोईजी, थांका साला की अमानत है या मत फाड़ो इने आराम सु कर. लो..
मेरा अंग-अंग मचलने लगा था, वो
हाय… कितना मजा आ रहा था ! उनके धक्के धीरे-धीरे तेज़ होने लगे… आहह…!


अब मैं पूरी तरह से उसके वश में थी। मैं आज जी भर के चुदना चाह रही थी। उसका लण्ड सटासट मेरी चूत में जाने-आने लगा था। उनके लण्ड ने मेरी चूत में आग सी भर दी थी। पूरा बाथरूम मेरी सिसकारी से गूंजने लगा था।
लन्ड काफ़ी मोटा और तगड़ा था जिससे मेरी चूत कसी हुई थी। जैसे ही वो अपना लन्ड बाहर निकालते मेरी चूत के अन्दर का छल्ला बाहर तक खिंच कर आता और लन्ड के साथ अन्दर चला जाता। मै और उत्तेजना में भर गई, और मेरे मुँह से निकल पड़ा,"ओह्ह्ह्…… …हाय्… ……मम्मी …अब…… और वो मेरी चूत में लन्ड तेज रफ़्तार से आगे पीछे करने लगे।
पुरे बाथरूम में फचा फच .... ....फचा फच की आवाज आ रही थी मेरी चुदास इतनी तेज हो गयी थी कि शावर के निचे भी मेरा सारा शरीर तप रहा था, मैने मजे में अपनी दोनों आँखें बन्द कर रखी थी, मेरा शरीर मछली की तरह तड़प रहा था और मुझे कुछ होश नहीं था
मैं तो अपने चुचे, अपने आप ही मसलने लगीं।
होंठों को अपने दातों से दबा दिया था और ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी थीं।
जैसे ही नन्दोईजी का लन्ड मेरी ...चूत में जाता,मैं अपनी गांड पीछे कर लन्ड को और अन्दर तक समा लेती, लन्ड के हर प्रहार का जबाव में अपने चूतड़ पीछे कर के दे रही थी। बाथरूम में मेरे मुँह से उत्तेजना भरी आवाजें गूंज रही थीं," आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ! उईईईईई………उम्म्म्म्म्म्म्……… ।आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्………

ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्…… हाय ! नन्दोई जी ! और कस कर ! हाँ ………और तेज ! जोर जोर से मुझे ! अन्दर तक ! ! बहुत मजा दे रिया हो थे थांकी सलहज ने । और कस कर ! हाँ और तेज ! और तेज ! उईईईईईईइ………आआआअहाआअ………उह्ह्ह्ह्ह्ह्… ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्……………ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्……………हाँ…………" अचानक मेरा पूरा शरीर अकडने लगा और में झड़ गई इतनी जोर से झड़ी की गर्म गर्म रस से मेरी चुत भर गयी।
पर लंड था कि ढीला होने को तैयार नहीं था।अभी भी नन्दोईजी लगातार मुझे तेजी से चोदे जा रहे थे। थोड़ी देर ऐसे ही चोदने के बाद नन्दोईजी ने लंड निकाल कर मेरी गोरी गांड पे पिचकारी छोड़ दी.

कुछ देर हम यु ही एक दूसरे की बाहो मे थे और शावर में खड़े रहे. फिर एक दूसरे का बदन पोंछ कर कमरे में नंगे ही आ गए।

नन्दोई जी ने दूसरे राउंड के लिए मुझे पलंग पर लेटा दिया और वो मेरी टांगों के बीच आ गये और उन्होने अपने हाथों से मेरी रसभरी के कपाट खोल दिये। अन्दर रस भरी चूत की गुफ़ा नजर आई, उन्होने अपना लौड़ा पहले तो हाथ से हिलाया और फिर मेरी रसभरी में घुसाते चले गये । बीच में एक दो बार उन्होने लण्ड बाहर खींचा और फिर पूरा पेन्दे तक उसे फ़िट कर दिया।
मैं दर्द के मारे चीख सी उठी। वो धीरे से मेरे ऊपर लेट गये और मेरे होंठों को उन्होने अपने होंठों से दबा लिया।। उनके हाथ मेरे बोबो को मसलते रहे। मुझे अब होश कहाँ ! और सिसकने लगी।
मेरी चूत उनके लण्ड के साथ-साथ थाप देने लगी, थप थप की आवाज आने लगी, मेरी चूत वापस पिटने लगी। उनकी लण्ड के नीचे गोलियाँ मेरी चूत के नीचे टकरा कर मेरी चूत की और चुदास बढ़ा रही थी।
उनकी कमर मेरी चूत पर जोर जोर से पड़ रही थी। मेरी चूत पिटी जा रही थी। मेरी चूत भी जैसे उनके लण्ड को पूरा खा जाना चाहती हो … मेरा शरीर अकड़ने सा लगा। मेरा तन जैसे सारी नसों को खींचने लगा… और मैं एक दम जोर से झड़ गई।
अब नन्दोई जी ने मेरी दोनों टांगें अपने कंधों पे उठा ली और चूत में लंड डाल के घपाघप ज़ोर ज़ोर से चोदने लगे ।
मेरी आँखें बंद थी और मैं बस अपने होंठ को दाँतो से दबाये 'सी … सी … आई … आई … आहह …नन्दोईजी अहह … ' करते हुए बेड में ऊपर नीचे होते हुए चुदवा रही थी। मेरी चूत मुझे हर झटके के साथ आनन्द से भर रही थी.
आहह … आहह … आ … अह … आ आ … नन्दोई जी आ आ … आई … मेरा होने वाला है, और तेज़ तेज़ … प्लीज नन्दोईजी … और तेज़ चोदो …
और नन्दोईजी चोदते चले गये । और इस बार दोनों साथ झडे। इस बार नन्दोईजी ने अपनी पूरी मलाई मेरी रसभरी मे निकाल दी। अब मेरे वापस जाने का टाइम भी होने लगा था। बाहर आयी तो वहा की सब औरते और मुझे छेड़ने लगी थी। मेरी शर्म के मारे नजरें ऊपर उठ ही नहीं रही थी। मन मै ये सोच भी भी सुकून था की मेरी ननद दिया की किस्मत खुल गयी। लेकिन ज़ब नन्दोईजी अपने बड़े लौड़े से उसकी सील खोलेंगे तब क्या होगा। अभी तो घर जाकर ननद के सामने नन्दोईजी के लौड़े का गुणगान करना है। उसे भी बताना है की सुहागरात को उसकी चूत की चटनी बनना निश्चित है।
 

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