Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 15
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अब तक....

अभी मैं मुस्कुरा ही रहा था कि तभी दरवाज़े के बाहर से शीतल आंटी की आवाज़ आई। वो मुझसे खाने पीने का पूछ रहीं थी तो मैंने उनसे कहा कि मैं आधे घंटे बाद खाऊंगा। ख़ैर उसके बाद मैंने सोचा कि पहले ये देख लूं कि बैग में क्या क्या चीज़ें मेरे लिए रख कर दी गई हैं? ये सोच कर मैंने जेब से चाभी निकाली और बैग पर लगा ताला खोला। बैग के अंदर सच में ऐसे कपड़े थे जो काले रंग के थे और उनमें डिज़ाइन के रूप में लेदर की पट्टियां बनी हुई थीं। एक काला मास्क भी था और काले दस्ताने भी। कपड़ों के नीचे एक मोबाइल था जो कि था तो कीपैड ही लेकिन उसकी स्क्रीन बड़ी थी। बैग के अंदर एक खंज़र भी था जो लेटर के कवर में ही बंद था और उसी के पास एक काले रंग का बॉक्स रखा हुआ था। मैंने उस बॉक्स को निकाल कर उसे खोला तो उसके अंदर मुझे जो चीज़ नज़र आई उसे देख कर मेरी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो ग‌ईं। दरअसल बॉक्स में एक रिवाल्वर था और उसी के साथ उसकी एक मैगज़ीन रखी हुई थी जिसमें गोलियां भरी हुई थीं। ये देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। मैं ये सोच कर थोड़ा कांप सा गया कि ऐसी ख़तरनाक चीज़ भला मेरे लिए किस काम में आ सकती थी? क्या इस लिए कि अगर मेरा राज़ किसी को पता चल जाए तो मैं उसे इसी रिवाल्वर के द्वारा जान से मार सकूं? मैंने कांपते हाथों से उस रिवाल्वर को बॉक्स से निकाला और बड़े गौर से उसे उलटा पलटा कर देखने लगा। रिवाल्वर में क्योंकि गोलियों से भरी मैगज़ीन नहीं लगी हुई थी इस लिए वो मुझे थोड़ा हल्का ही लग रहा था। सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे तो रिवाल्वर चलाना आता ही नहीं है और ना ही मेरा सटीक निशाना लग सकता है। इसका मतलब क्या इसे चलाने की भी मुझे ट्रेनिंग दी जाएगी? मुझे याद आया कि चीफ़ ने मुझसे कहा था कि धीरे धीरे मुझे बाकी चीज़ों की भी ट्रेनिंग दे दी जाएगी इसका मतलब उन चीज़ों में ये चीज़ भी शामिल है।

अब आगे....



अपने घर आए हुए मुझे तीन दिन गुज़र चुके थे। इन तीन दिनों में संस्था से मेरे पास उस मोबाइल पर कोई मैसेज नहीं आया था, जबकि मैं ये उम्मीद कर रहा था कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अब हर रोज़ मैं एजेंट के रूप में किसी न किसी औरत या लड़की को सेक्स की सर्विस देने के लिए भेजा जाऊंगा। जिस दिन ट्रेनिंग के बाद जब मैं घर आया था तो शाम को मेरे माता पिता ने मुझसे मेरे पिकनिक टूर के बारे में पूछा था और मैंने उन्हें यही बताया था कि नए दोस्तों के साथ मेरा पिकनिक टूर बहुत अच्छा गया था। ख़ैर उसके बाद अपने असल दोस्तों के साथ घूमने फिरने में ही मेरे दिन गुज़रे थे। मेरे दोस्तों को भी पता चल चुका था कि मैं अपने कुछ नए दोस्तों के साथ पिकनिक टूर पर गया था और इस बात से मेरे दोस्त मुझसे नाराज भी हुए थे लेकिन मैंने भी आख़िर उन्हें मना ही लिया था।

तीसरे दिन की रात क़रीब दस बजे मेरे उस मोबाइल पर मैसेज टोन बजी थी जो मुझे संस्था की तरफ से मिला था। वो मोबाइल मैं अपने पास ही रखता था लेकिन इस तरह से कि किसी की नज़र में न आए। ख़ैर जब मुझे एहसास हुआ कि मैसेज टोन संस्था वाले मोबाइल पर बजी है तो मेरे जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी हुई। मेरी धड़कनें तेज़ हो ग‌ईं। मैंने खुद के जज़्बातों को काबू करते हुए उस मोबाइल पर आए मैसेज को देखा। मोबाइल में एक जगह का एड्रेस लिखा हुआ था और साथ ही उसमें वक़्त भी लिखा हुआ था। मैसेज पढ़ कर मेरी धड़कनें फिर से तेज़ हो ग‌ईं। ज़हन में ख़याल उभरा कि चल बेटा जिसका इंतज़ार था वो घड़ी अब आ गई है और अब तुझे अपने क्लाइंट को सेक्स की सर्विस दे कर खुश करना है।

मेरे घर में मेरे माता पिता का बनाया हुआ रूल चलता था। रूल के हिसाब से साढ़े दस बजे तक सबका डिनर हो जाता था और ग्यारह से साढ़े ग्यारह बजे तक सब अपने अपने कमरे में जा कर सो चुके होते हैं। मेसेज अनुसार जहां मुझे जाना था वहां पहुंचने का टाइम बारह बजे लिखा हुआ था। एड्रेस जिस जगह का था वहां के बारे में मुझे थोड़ा बहुत पता था इस लिए वहां जाने से पहले मैंने घर में सब को देख कर ये पता लगाया कि इस वक़्त कोई जाग तो नहीं रहा?? जब मैंने सब कुछ ठीक ठाक देखा तो मैंने अपने सूटकेस से वो कपड़े निकाले और उन्हें पहन कर कमरे की खिड़की के रास्ते बाहर निकल गया। इन तीन दिनों में मैं ये अच्छी तरह जांच परख कर चुका था कि खिड़की के रास्ते से मैं कैसे निकल सकता हूं।

मैं क्योंकि पहली बार इस तरह के काम के लिए घर से बाहर निकला था इस लिए मुझे अंदर से घबराहट भी हो रही थी और साथ ही ये डर भी था कि अगर किसी के द्वारा पकड़ा गया तो क्या होगा? ख़ैर यही सब सोचते हुए मैं पैदल ही कुछ दूर आया तो मुझे एक मोड़ पर मुड़ते ही सड़क के किनारे एक मोटर साइकिल खड़ी हुई दिखी। मैं समझ गया कि ये वही मोटर साइकिल है जिसका ज़िक्र मैसेज में था। मैंने क़रीब जा कर देखा तो मोटर साइकिल में चाभी लगी हुई थी। मैंने उसमें बैठ कर उसे स्टार्ट किया और आगे बढ़ चला।

क़रीब पंद्रह मिनट में मैं दिए गए एड्रेस पर पहुंच गया। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मेरे ज़हन में हज़ारो तरह के ख़याल उभर रहे थे। ख़ैर मैं जैसे ही दिए हुए एड्रेस पर पंहुचा तो मैंने अँधेरे में एक जगह मोटर साइकिल को छुपा कर खड़ी कर दिया और फिर उस जगह की तरफ बढ़ चला।

उस जगह को देखते ही मैंने अंदाज़ा लगा लिया कि वो किसी अमीर ब्यक्ति की मिल्कियत है। चारो तरफ सन्नाटा फैला हुआ था। ये ऐसी जगह थी जो शहर से बाहर थी और किसी अमीर आदमी का फार्म हाउस था। फार्म हाउस के चारो तरफ ऊँची बाउंड्री वाल थी। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि यहाँ की देख रेख के लिए यकीनन सिक्योरिटी गार्ड भी होंगे। मैं दबे पाँव गेट की तरफ आया तो देखा गेट के अंदर दो सिक्योरिटी गार्ड थे जो इस वक़्त अस्त ब्यस्त सी हालत में पक्की ज़मीन पर लुढ़के से पड़े थे। ज़ाहिर था उन्हें अपना कोई होश नहीं था। मैंने गर्दन घुमा कर चारो तरफ देखा और फिर लोहे के उस गेट पर चढ़ कर दूसरी तरफ आ गया।

पांच मिनट में ही मैं अंदर बने मकान के मुख्य दरवाज़े के पास खड़ा बेल बजा रहा था। मेरी धड़कनें अभी भी तेज़ चल रहीं थी और मैं ये सोच सोच कर थोड़ा घबरा भी रहा था कि अब इसके आगे सब कुछ कैसे होगा? ख़ैर जल्दी ही दरवाज़ा खुला तो मेरी नज़र नाइटी पहने एक औरत पर पड़ी। उसने मुझे ठीक से उसे देखने का मौका ही नहीं दिया बल्कि उसने मुझे देख कर फ़ौरन ही अंदर आने को कहा तो मैं अंदर दाखिल हो गया। मैं ये उम्मीद कर रहा था कि वो मुझे जब ऐसे कपड़ों में देखेगी तो शायद बुरी तरह चौकेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। ऐसा लगा जैसे उसे सब कुछ पहले से ही पता था।

उसके साथ चुप चाप चलते हुए मैं कुछ ही देर में उसके कमरे में आ गया। जैसा कि मैं बता चुका हूं कि वो अमीर खानदान से थी इस लिए अंदर की हर चीज़ ख़ास ही नज़र आ रही थी। उसका कमरा काफी खूबसूरत था। कमरे में दुधिया प्रकाश फैला हुआ था इस लिए मैंने उस औरत को ग़ौर से देखा। उसको देखने से मैं ये अंदाज़ा नहीं लगा पाया था कि उसकी उम्र क्या रही होगी। दिखने में खूबसूरत थी और उसका जिस्म थोड़ा भरा हुआ था लेकिन उसे मोटी नहीं कहा जा सकता था। क्रीम कलर की नाइटी के अंदर शायद उसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था क्योंकि सीने पर उसकी बड़ी बड़ी चूचियों के निप्पल साफ़ महसूस हो रहे थे।

"आई हैव एन ऑवर डियर।" बेड पर बैठते ही उसने अंग्रेजी में जब ये कहा तो मैंने उसकी तरफ देखा, जबकि उसने आगे कहा____"आफ्टर दैट आई हैव टू गो टू दा एयरपोर्ट। आई वांट यू टू गिव मी सच फन इन दिस वन ऑवर दैट आई कैन बी कम्प्लीटली हैप्पी।"

उसके ऐसा कहने पर मैंने हाँ में सिर हिलाया और फिर अपने कपड़े के अंदर से एक काली पट्टी निकाल कर मैं उसकी तरफ बढ़ा। वो मुझे ही देख रही थी। उसके चेहरे पर डर या घबराहट जैसी कोई बात नहीं थी। ऐसा लगता था जैसे उसने मुझ जैसे इंसान को पहले भी देखा हुआ था।

"मेरी आँखों में ये काली पट्टी बाँधने से पहले।" मैं जैसे ही उसके पास पंहुचा तो उसने मेरी नक़ाब से झांकती आँखों में देखते हुए कहा____"क्या तुम मुझे अपना हथियार दिखा सकते हो? असल में मैं देखना चाहती हूं कि मेरे सेक्स पार्टनर का हथियार किस तरह का है?"

उसकी ये बात सुन कर मैं दुविधा में पड़ गया था। चीफ़ ने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। मुझे दुविधा में पड़ा हुआ देख उसने कहा____"इतना क्या सोच रहे हो अजनबी? मैंने तुम्हारे हथियार को देखने की बात कही है ना कि तुम्हारे चेहरे की। मुझे नहीं लगता कि इसमें तुम्हें कोई समस्या होगी।"

उसकी ये बात सुन कर मैंने सोचा कि बात तो सही ही कह रही है वो। भला हथियार दिखाने में मुझे कैसे कोई समस्या हो सकती है? ये सोच कर मैंने अपनी पोशाक की ज़िप खोल कर अपने लंड को बाहर निकाला। मैं अंदर से थोड़ा घबराया हुआ सा महसूस करने लगा था इस लिए मैंने खुद को सम्हाला। मेरा लंड क्योंकि इस वक़्त शांत था इस लिए उसका आकार वैसा नहीं था जिससे उसकी आँखें फ़ैल जाएं। हालांकि वो इस हालत में भी दूसरे मर्दों के लंड से भारी था। मैंने जैसे ही अपना लंड निकाला तो उसकी नज़र मेरे लंड पर पड़ी। लंड को देखते ही उसके चेहरे पर चमक और होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई।

"वाव! इट्स अमेजिंग डियर।" उसने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ते हुए कहा____"व्हेन इट इज सो बिग इवेन इन काल्म कण्डीशन, सो व्हेन इट विल कम इन इट्स फुल फॉर्म देन इट विल लुक इवेन बिगर।"

कहने के साथ ही वो मेरे लंड को प्यार से सहलाने लगी थी। उसके ऐसा करते ही मेरे जिस्म में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी होने लगी थी। जिसका असर मेरी गोटियों में होने लगा था और उस असर के प्रभाव से मेरा लंड अपना सिर उठाने लगा था। उसके कोमल हाथों के स्पर्श से मुझे बेहद आनंद आने लगा था। कुछ ही देर में मेरा लंड उसके सहलाने से अपने फुल फॉर्म में आ गया जिसे देख कर उस औरत के चेहरे की चमक और भी बढ़ गई और आँखें हैरानी से फ़ैल ग‌ईं।

"माई गॉड।" फिर उसने कहा____"इट्स रियली बिग एण्ड वैरी फैट डियर। आई एम वैरी हैप्पी टू सी दिस। आई वन्ना सक दिस ब्यूटीफुल काक।"
"आहहह।" कहने के साथ ही उसने लपक कर मेरे लैंड को अपने मुँह में भर लिया था जिससे मेरे मुँह से मज़े में डूबी आह निकल गई थी। मैं चाह कर भी उसे रोक नहीं पाया था।

वो औरत अपने एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी थी। उसके इस तरह चूसने से मेरे जिस्म में मज़े की अनगिनत तरंगें मानो तांडव सा करने लगीं थी। मेरा दिल किया कि मैं अपने हाथों से उसके सिर को पकड़ लूं और ज़ोर ज़ोर से उसके मुँह को चोदना शुरू कर दूं लेकिन मेरे ज़हन में तभी माया की कही हुई बातें गूँज उठीं थी और मैंने उसके सिर को पकड़ कर उसके मुँह को चोदने की अपनी ये हसरत मिटा दी।

"आहहहह शशंशशश इट इज वेरी टेस्टी डियर।" उसने मेरे लंड को मुँह से निकाल कर और चटकारा सा लेते हुए कहा____"आई लाइक दिस काक ऑफ योर्स वैरी मच एण्ड नाउ आई वांट यू टू केन्च माई थर्स्ट विद दिस काक ऑफ योर्स। मुझे इस तरह चोदो डियर कि मैं पूरी तरह से मस्त हो जाऊं।"

उस औरत की बात सुन कर मैंने अपने हाथ में ली हुई पट्टी को उसकी आँखों में बाँध दिया। उसके बाद मैं कमरे में नीम अँधेरा करने के लिए स्विच बोर्ड की तरफ बढ़ा। नाईट बल्ब जलने के बाद मैंने तेज़ दूधिया प्रकाश देने वाले बल्ब को बुझा दिया। कमरे की दीवारों पर सफ़ेद रंग का कलर था इस लिए नाईट बल्ब के प्रकाश में भी सब कुछ अच्छे से दिख रहा था।

मैं बेड पर आँखों में पट्टी लगाए बैठी उस औरत की तरफ बढ़ा और बेड पर उसके पास में ही बैठ गया। मैं जानता था कि ये मेरे लिए इम्तिहान जैसा है लेकिन मेरे लिए अच्छी बात ये हुई थी कि शुरुआत उस औरत ने कर दी थी और उसकी आँखों में पट्टी बंधी होने की वजह से मुझे किसी तरह की झिझक नहीं होनी थी।

मैंने अपने दोनों हाथों से उस औरत के चेहरे को पकड़ा और उसके अधखुले होठों को झुक कर अपने मुँह में भर लिया। नक़ाब ऐसा था जिसमें मुँह और नाक वाली जगह पर खुला हुआ था, ताकि सांस लेने में और ऐसे काम करने में कोई समस्या न हो। मैंने जैसे ही उसके होठों को अपने मुँह में भरा तो उस औरत ने भी मेरे सिर को थाम लिया और होठ चूसने में मेरा साथ देने लगी। वो बड़ी गर्मजोशी से कभी मेरे निचले तो कभी मेरे ऊपर वाले होठ को चूसने लगती थी। मेरे जिस्म में मज़े की तरंगें दौड़ने लगीं थी, जिसके असर से मैं भी जोश में उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगता था। अपने एक हाथ को नीचे सरका कर मैंने नाइटी के ऊपर से ही उसकी दाहिनी चूची को पकड़ लिया था। जैसे ही मैंने उसकी एक छाती को पकड़ा तो मुझे महसूस हुआ कि औरत की छाती माया कोमल और तबस्सुम की छातियों से थोड़ा कम कड़क थी।

मैं ज़ोर ज़ोर से उसकी छातियां मसलने लगा था जिससे वो मस्ती में आ ग‌ई थी। मैंने उसे वैसे ही लेटा दिया और उसके ऊपर आ कर उसके होठों को चूमने चूसने लगा। एक हाथ से मैं बारी बारी से उसकी छातियां भी मसलता जा रहा था। सहसा उस औरत ने अपने होठों को मेरे होठों से छुड़ाया और अपनी छातियों की तरफ मेरे चेहरे को ढकेला।

"सक माई टिट्स डियर।" उसने हांफते हुए और सिसकारियां भरते हुए कहा____"ड्रिंक आल दा जूस आफ माई टिट्स। मुँह में भर कर काटो इन्हें।"

मैंने उसके कहने पर फ़ौरन ही उसकी नाइटी की डोरी को खींचा जिससे नाइटी की डोरी खुल गई। मैंने नाइटी के दोनों छोरों को पकड़ कर इधर उधर किया तो उसकी दोनों भारी भरकम छातियां बेपर्दा हो ग‌ईं। गोरी और बड़ी बड़ी छातियों के बीच गुलाबी रंग के निप्पल को देख कर मैं एकदम से मचल उठा और लपक कर उसके एक निप्पल को मुँह में भर लिया।

"आहहह शशंशशसशसशशस सक माई निप्पल्स हार्ड डियर।" उसने मेरे सिर को पकड़ कर ज़ोर से अपनी उस छाती पर दबाया तो मैं ज़ोर ज़ोर से उसके निप्पल को चूसते हुए खींचने लगा। एक हाथ से मैं उसकी दूसरी छाती को बुरी तरह मसल रहा था।

औरत बुरी तरह मचलने लगी थी। शुक्र था कि मैंने नक़ाब पहना हुआ था जिससे मेरे सिर के बाल उसके अंदर ही थे वरना वो मेरे बालों को पकड़ कर इतना ज़ोर से खींचती की मेरी चीखें निकल जाती।

"आह्ह्ह्ह सशशश ऐसे ही डियर।" वो मेरे सिर को पकड़े और सिसियाते हुए बोली____"बाइट माई ब्रेस्ट्स हार्डली। इस वाले को भी चूसो डियर और इसे भी आह्ह्ह यस लाइक दैट...ऐसे ही इसे भी काटो।"

वो औरत फुल मस्ती में आ चुकी थी और बड़बड़ाए जा रही थी। उसके कहे अनुसार मैं उसकी दोनों छातियों को मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर से काटने लगा था जिससे वो और भी मचलती और मेरे सिर को ज़ोर से अपनी छातियों को तरफ भींच लेती। काफी देर तक मैं उसकी दोनों छातियों को ऐसे ही चूसते हुए काटता रहा। इधर मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था। मैंने उसकी छातियों से सिर उठा कर एक बार उसके होठों को चूमा और फिर नीचे आ कर उसके गुदाज़ पेट को चूमने लगा। पेट के बीच उसकी नाभी ऐसी दिख रही थी जैसे कोई गहरा कुआं हो। मैंने उसकी नाभी में अपनी पूरी जीभ घुसा दी जिससे वो मचल उठी।

थोड़ी देर उस औरत की नाभी में जीभ कुरेदने के बाद मैं नीचे की तरफ बढ़ा तो देखा उसने पेंटी नहीं पहन रखी थी। मैं समझ गया कि वो पहले से ही फुल रेडी थी सेक्स के लिए। दूध से गोरे और चिकने बदन को देख कर मैं उसकी मोटी मोटी जाँघों को चूमते हुए जैसे ही टांगों के बीच आया तो उसने ज़ोरदार सिसकी लेते हुए अपनी टांगों को पहले तो सिकोड़ा लेकिन फिर जैसे उसका मन बदल गया तो उसने अपनी टांगों को फैलाने के साथ दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चिकनी चूत की तरफ दबाया तो मैंने उसकी दहकती चूत पर अपने होठ रख दिए।

मेरी नाक में उसके कामरस की खुशबू भरती चली गई थी। उसकी चूत की बड़ी बड़ी फांकों पर पहले मैंने दो तीन बार चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर उसकी दरार पर नीचे से ऊपर की तरफ फेरा तो उसने जल्दी से अपने घुटने मोड़ लिए जिससे मेरा सिर उसकी चूत में फंस सा गया।

"आहहहह शशशसश लिक माय पुसी डियर।" औरत ने ज़ोर की सिसकी लेते हुए मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया_____"अपनी जीभ से मेरी चूत को चोदो। आह्ह्ह हाँ ऐसे ही। शशशशषस आह्ह्ह बड़ा अच्छा लग रहा है डियर। थोड़ा और अंदर तक डालो ना।"

मैं उसके निर्देशानुसार अपनी जीभ से उसकी चूत को चोदने लगा था और वो मेरा सिर थामे ज़ोर ज़ोर से आहें भर रही थी। कमरे में सिर्फ उसी की आवाज़ गूंज रही थी। मैं काफी देर तक उसकी चूत को ऐसे ही जीभ से चोदता रहा। मेरा खुद का बुरा हाल हो गया था। वो औरत अपने दोनों घुटनों के बीच मेरे सिर को बार बार मज़े में डूब कर दबा देती थी। जब उसके बर्दास्त के बाहर हो गया तो उसने मेरे सिर को ज़ोर दे कर ऊपर किया और उठ कर बैठ गई। पहले तो मुझे लगा कि कहीं मुझसे कोई ग़लती तो नहीं हो गई लेकिन जब उसने मुझे धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और झपट कर अंदाज़े से ही मेरे ऊपर आई तो मैंने अंदाज़ा लगाया कि शायद अब वो मुझे भी मज़ा देने वाली है।

उसने हाथों से टटोलते हुए मेरे लंड को पकड़ा और एक झटके से सिर झुका कर मेरे लंड को मुँह में भर लिया। पागलों की तरह वो इतना ज़ोर ज़ोर से मेरे लंड को चूसने लगी थी कि थोड़ी ही देर में मेरा बुरा हाल हो गया। अपने एक हाथ से वो मेरी गोटियों को भी सहलाती जा रही थी।

"योर काक इज वेरी नाइस डियर।" उसने मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल कर कहा____"मन तो करता है कि ऐसे ही इसे चूसती रहूं लेकिन क्या करूं मज़बूरी है, क्योंकि मुझे जल्दी ही एयरपोर्ट के लिए निकलना है। ख़ैर चलो अब जल्दी से अपना ये मूसल लंड मेरी चूत में डाल कर मेरी ऐसी चुदाई करो कि मैं पूरी तरह मस्त हो जाऊं।"

कहने के साथ ही उसने एक बार और मेरे लंड को अपने मुँह में भर कर चूसा और फिर जल्दी से बेड पर अपनी टाँगें फैला कर लेट गई। उसके लेटते ही मैं फ़ौरन उठा और उसकी दोनों टांगों के बीच में आ कर मैंने अपने तमतमाए हुए लंड को उसकी चूत के छेंद पर टिका कर ज़ोर का झटका मारा तो मेरा लंड उसकी चूत को फाड़ता हुआ अंदर तक चला गया।

"ओह्ह्ह्ह माम, आई एम डेड।" वो ज़ोर से चीख पड़ी____"थोड़ा आराम से नहीं डाल सकते थे क्या? तुम्हारे इस मूसल ने मेरी चूत फाड़ दी होगी। ओह! गाड माई पुसी इज बर्निंग लाईक ए फायर एण्ड इट इज हर्टिंग टू। प्लीज़ होल्ड आन फार ए व्हाइल।"

उसकी बात पर मैं कुछ न बोला। असल में मुझे इतना जोश चढ़ा हुआ था कि मैंने बिना कुछ सोचे समझे ज़ोरदार झटका दे कर एक ही बार में अपना लंड उसकी चूत के अंदर तक डाल दिया था। वो तो शुक्र था कि औरत की चूत ज़्यादा तंग नहीं थी वरना वो बेहोश ही हो जाती। मैं कुछ पलों तक रुका रहा और झुक कर उसकी चूचियों को मसलने के साथ साथ उन्हें चूसता भी रहा। जब औरत ने नीचे से अपनी गांड उठाई तो मैं समझ गया कि अब वो धक्कों के लिए तैयार है। मैंने उसकी चूचियों से अपना चेहरा उठाया और उसकी मोटी मोटी जाँघों को पकड़ कर तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए।

मेरे तेज़ धक्कों से औरत की चीखें निकलने लगीं थी। हालांकि उसे दर्द नहीं हो रहा बल्कि वो मज़े में ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी और मुझे और भी ज़ोरो से चोदने को बोलती जा रही थी। मैं पूरी ताकत लगा कर धक्के लगा रहा था। मेरे हर धक्के पर उसकी बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां बुरी तरह उछल रहीं थी। क़रीब पांच मिनट तक मैं बिना रुके धक्के लगाता रहा। वो औरत इतना ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी थी कि उसके चिल्लाने से मुझे लगा कहीं उसकी चीखें घर से बाहर पहुंच कर किसी के कानों में न पड़ जाएं। फिर मुझे एहसास हुआ कि यहाँ फार्म हाउस में भला कौन होगा इस वक़्त उसकी चीखें सुनने वाला? ज़ाहिर है कि उसने इस एकांत जगह को इसी लिए ऐसा मज़ा लेने के लिए चुना था ताकि उसके इस मज़े में किसी तरह का ख़लल न पड़ सके और ना ही किसी को पता चल सके।

मैं ताबड़तोड़ धक्के लगाता जा रहा कि तभी वो औरत और भी बुरी तरह चीखने लगी। इस बार उसके हलक से गुर्राने जैसी आवाज़ें निकलने लगीं थी। मैं समझ गया कि उसका अब काम तमाम होने वाला है इस लिए और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। मेरा अंदाज़ा सही निकला, यानि कुछ ही देर में वो औरत बुरी तरह चीखते हुए झड़ने लगी। उसने मेरी कमर को बुरी तरह अपनी टांगों पर जकड़ लिया था जिससे धक्के लगाने की मेरी रफ़्तार कम पड़ गई। औरत के जिस्म में झटके लग रहे थे और फिर वो एकदम से निढाल सी हो कर शांत हो गई। इधर मैं अभी झड़ा नहीं था इस लिए उसके शांत पड़ते ही मैं फिर से धक्के लगाने ही लगा था कि तभी उसने अपनी टांगों से मेरी कमर को जकड़ कर मुझे रुक जाने का इशारा किया तो मैं रुक गया।

क़रीब दो मिनट बाद उसने मुझे उसकी चूत से लंड निकालने के लिए कहा तो मैंने मन को मार कर अपना लंड निकाल लिया। जैसे ही मैंने लंड निकाला तो वो जल्दी से उठी और मुझे टटोल कर बेड पर गिराया और फिर टटोलते हुए ही मेरे लंड को पकड़ कर उसने जल्दी से उसे अपने मुँह में भर लिया। अपने ही कामरस में नहाए मेरे लंड को वो ऐसे चूसने लगी थी जैसे उसका स्वाद उसे कितना मीठा लग रहा हो।

"कम आन डियर।" मुँह से मेरा लंड निकालने के बाद उसने घोड़ी बन कर मुझसे कहा____"नाउ पुट योर काक इन माई पुसी फ्राम बिहाइंड एण्ड फक मी। यू फक रियली वेल डियर। योर काक इज रियली ऑवसम।"

उसकी बात सुन कर मैं मुस्कुरा उठा और फिर जल्दी से उसके पीछे आ कर मैंने पीछे से उसकी चूत में अपना लंड डाल दिया। लंड जैसे ही उसकी चूत में घुसा तो उसके मुँह से मज़े में डूबी सिसकी निकल गई। इधर मैं उसकी कमर को पकडे तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा था। एक बार फिर से कमरे में उसकी चीखें गूंजने लगीं थी। वो मेरे हर धक्के पर अपनी गांड को पीछे कर देती थी जिससे हम दोनों का ही रिदम मेल खा रहा था। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि जल्दी ही मैं फिर से मज़े में डूब गया। उसकी कमर को पकड़े मैं ताबड़तोड़ धक्के लगा रहा था। सहसा मेरी नज़र उसके भारी लेकिन गोरे गोरे चूतड़ों पर पड़ी तो मैंने ज़ोर से उस पर थप्पड़ मारा जिससे वो औरत उछल गई और साथ ही उसके मुख से कराह निकल गई। वो जितना चिल्ला रही थी उतना ही मुझे जोश चढ़ रहा था और मैं उसी जोश में पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था।

कुछ ही देर में वो औरत बुरी तरह चीखते हुए कहने लगी कि आई एम कमिंग डियर, फ़क मी हार्ड। मेरा खुद का भी काम तमाम होने वाला था इस लिए मैं पूरी स्पीड में धक्के लगा रहा था। पहले वो औरत झड़ी और फिर जब मैं झड़ने वाला हुआ तो उस औरत ने फ़ौरन ही मुझसे कहा कि मैं उसकी चूत में न झड़ूं बल्कि उसके मुँह में झड़ूं ताकि वो मेरा कामरस पी सके।

मैंने जल्दी से लंड निकाला तो वो औरत बेड पर घुटने के बल खड़ी हो गई और अपना मुँह खोल दिया। उसके खुले मुँह को देख कर मैंने फ़ौरन ही उसके मुँह में अपने लंड का टोपा छुआया तो उसने जल्दी से मेरे लंड को पकड़ कर उसे मुँह में भर लिया और फिर दबा दबा के उसे चूसने लगी। मैं इस वक़्त इतने जोश में था कि उसके सिर को पकड़ लिया और फिर उसके मुँह को चोदने लगा। अभी एक मिनट भी न हुआ था कि औरत ने ज़ोर दे कर अपने मुँह से मेरा लंड निकाला और उसे चाटते हुए नीचे मेरी गोटियों पर पहुंच गई। जब उसने मेरी गोटियों को मुँह में भर कर चूसा तो मुझे झटका सा लगा। माया कोमल या तबस्सुम ने मेरे साथ ऐसा नहीं किया था। शायद यही वजह थी कि जब उस औरत ने ऐसा किया तो मुझे झटका लगा था और मुझे आश्चर्य भी हुआ था। ख़ैर जो भी हो पर उसके द्वारा ऐसा करने से मुझे एक अलग ही मज़ा आने लगा था।

कुछ देर मेरी गोटियों को चूसने के बाद उसने फिर से मेरे लंड को मुँह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी। मैं इतने मज़े में था कि जल्दी ही मेरे मुख से असहनीय वाली सिसकियां निकलने लगीं। उस औरत को भी जैसे पता चल गया था इस लिए वो और ज़ोर ज़ोर से मेरे लंड को दबा दबा कर चूसने लगी थी। दो मिनट के अंदर ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म में मज़े का ज्वालामुखी फूट पड़ा हो। मेरा पूरा बदन ऐंठ गया और फिर जैसे ही मेरे लंड से पिचकारी निकल कर उसके मुँह के अंदर गई तो मेरी आह निकल गई। एक के बाद एक झटके लगे मुझे और फिर मैं जैसे बेजान सा हो गया था। उधर उस औरत ने मेरे लंड से पानी का एक एक कटरा निचोड़ लिया था।

"ओह! वण्डरफुल डियर।" कुछ देर बाद उसने कहा____"आई रियली एंज्वॉइड हैविंग सेक्स विद यू। इट्स नेवर बीन एज फन एज टुडे। दि हेयर ऑफ माय ब्वाडी इज स्टिल इमेर्स्ड इन दि फीलिंग ऑफ दिस फन। इफ आई हैड मोर टाइम, आई वुड हैव फन विद यू वन मोर टाइम।"

कुछ देर आराम करने के बाद मैं बेड से उठा और अपने लंड को बेड की चादर में ही साफ़ किया। उसके बाद मैंने उस औरत की आँखों से पट्टी खोल कर उस पट्टी को अपनी पोशाक में डाल लिया। पट्टी हटने के बाद उस औरत ने मेरी तरफ देखा। जब उसकी आँखें अच्छी तरह देखने लायक हुईं तो वो मुस्कुराते हुए नंगी ही बेड से उतर कर मेरे पास आई और मेरे चेहरे को पकड़ कर उसने मेरे होठो को प्यार से चूम लिया। उसने मुझे इसके लिए थैंक्स कहा तो मैंने सिर हिला दिया।

औरत के साथ सेक्स कर के मुझे भी बेहद मज़ा आया था। ख़ैर उसके बाद मैं जैसे वहां पंहुचा था वैसे ही वहां से चला भी आया। जहां पर मुझे मोटर साइकिल खड़ी मिली थी वहीं पर मैंने उसे खड़ी कर दिया और अपने घर की तरफ बढ़ चला। कुछ ही समय में मैं खिड़की के रास्ते अपने कमरे में आ चुका था। कमरे में आ कर मैंने फ़ौरन ही अपने वो कपड़े उतारे क्योंकि उन कपड़ों में मुझे अब घुटन सी होने लगी थी। कपड़े उतारने के बाद मैंने सुकून की सांस ली और फिर बाथरूम में घुस गया। फ्रेश हो कर मैं बाथरूम से निकला और सबसे पहले उन कपड़ों को उसी बैग में रख कर बैग को बेड के अंदर छुपाया और फिर बेड पर आराम से लेट गया।

बेड पर लेटा अभी जो कुछ मैं कर के आया था उसके बारे में सोचने लगा। मैंने महसूस किया कि मुझे इस काम में उस औरत के साथ कोई समस्या नहीं हुई, यानी अब मैं पूरी तरह से एक मुकम्मल मर्द बन चुका था। उस औरत के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे और वो खुश भी थी। इसका मतलब मैं अपने कार्य में पूरी तरह सफल हुआ था। इस सबके बारे में सोच कर एक अलग ही ख़ुशी महसूस कर रहा था मैं। घर में किसी को भी ये पता नहीं चल सका था कि मैं अपने कमरे से कुछ समय के लिए गायब था और उस गायब समय में मैं क्या करने गया था? अपनी इस कामयाबी की ख़ुशी में ही जाने कब मेरी आँख लग गई और मैं नींद की आगोश में चला गया।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 16
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अब तक....

बेड पर लेटा अभी जो कुछ मैं कर के आया था उसके बारे में सोचने लगा। मैंने महसूस किया कि मुझे इस काम में उस औरत के साथ कोई समस्या नहीं हुई, यानी अब मैं पूरी तरह से एक मुकम्मल मर्द बन चुका था। उस औरत के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे और वो खुश भी थी। इसका मतलब मैं अपने कार्य में पूरी तरह सफल हुआ था। इस सबके बारे में सोच कर एक अलग ही ख़ुशी महसूस कर रहा था मैं। घर में किसी को भी ये पता नहीं चल सका था कि मैं अपने कमरे से कुछ समय के लिए गायब था और उस गायब समय में मैं क्या करने गया था? अपनी इस कामयाबी की ख़ुशी में ही जाने कब मेरी आँख लग गई और मैं नींद की आगोश में चला गया

अब आगे....




शिवकांत वागले ड्यूटी से फ़ारिग हो कर शाम को घर पहुंचा। आज उसके पास ज़्यादा काम नहीं था इस लिए उसने लगभग सारा दिन ही विक्रम सिंह की डायरी को पढ़ा था। उसके ज़हन में कई सारी बातें थी। विक्रम सिंह जिस संस्था से जुड़ा हुआ था उसके नियम कानून बड़े ही अजीब और ख़तरनाक थे। दूसरी बात जिस तरह से वो पहले मिशन पर एजेंट के रूप में सेक्स की सर्विस देने गया था उसमें उसकी राह में कई ऐसे चांस बन सकते थे जिससे लोगों की नज़र में वो आ सकता था और सबसे ख़ास बात ये कि जो कपड़े उसे पहनने के लिए मिले थे उन कपड़ों को पहने हुए किसी औरत के साथ सेक्स करने में कैसे इतना मज़ा मिल सकता था? सेक्स का असली मज़ा तो तभी मिलता है जब दोनों पार्टनर पूरी तरह नंगे हो और एक दूसरे को देख सकते हों।

वागले काफी देर तक इस बारे में सोचता रहा था उसके बाद उसने ये सोच कर इस बात को ज़हन से निकाल दिया था कि मज़ा तो महसूस करने से भी मिलता है, इस लिए संभव है कि उन दोनों ने उस चीज़ को अच्छे से फील कर के उसका आनंद प्राप्त किया हो। वैसे भी सेक्स का जो मुख्य कार्य होता है वो तो उसी तरह हुआ था न जैसे पूरी तरह नंगे होने पर भी होता है।

वागले घर पहुंचा तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला था। वागले को देख कर जहां सावित्री मुस्कुराई थी वहीं वागले उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर के अंदर दाखिल हो गया था। सावित्री को समझते देर नहीं लगी थी कि उसका पति शायद उससे इस लिए नाराज़ है कि उसने पिछली रात उसे गरम हालत में ही छोड़ दिया था जबकि खुद उसने पूरा मज़ा लिया था। सावित्री ने मन ही मन सोच लिया कि अगर आज रात भी उसका पति उससे वही सब करने को कहेगा तो इस बार वो किसी भी काम में संकोच या झिझक नहीं करेगी और ना ही अपने पति से उस बारे में कोई उल्टी सीधी बात करेगी।

मन में फ़ैसला कर के सावित्री कुछ ही देर में कमरे में पहुंच ग‌ई। उसके दोनों बच्चे इस वक़्त घर पर नहीं थे इस लिए उसे फिलहाल किसी बात की फ़िक्र नहीं थी। कमरे में पहुंच कर उसने देखा कि वागले बाथरूम में है। उसने सोचा कि जब तक उसका पति बाथरूम में फ्रेश होता है तब तक वो उसके लिए गरमा गरम चाय बना कर ले आती है। ये सोच कर वो फ़ौरन ही किचेन की तरफ बढ़ गई।

जब वो चाय ले कर दुबारा कमरे में पहुंची तो देखा वागले कुर्ता पजामा पहन चुका था और अब वो कमरे से बाहर ही निकलने वाला था। सावित्री को चाय लिए आया देख उसने एक नज़र उस पर डाली और बिना कुछ कहे उसने ट्रे से चाय का कप उठा लिया।

"क्या नाराज़ हैं मुझसे?" सावित्री ने धीरे से उससे पूछा। वागले ने एक नज़र उसकी तरफ देखा और बेड पर बैठ गया।
"बेशक़ आप मुझसे नाराज़ ही होंगे।" सावित्री ने अपना कप लेने के बाद ट्रे को वहीं एक तरफ रखते हुए कहा____"आख़िर मैंने एक बार फिर से आपका दिल जो दुखा दिया है, लेकिन यकीन मानिए उस वक़्त मुझे वो सब बहुत ही अजीब और गन्दा सा लगा था इस लिए मैंने आपसे वो सब कह दिया था।"

"क्या तुम सफाई दे कर ये साबित करना चाहती हो कि तुमने जो किया वो ठीक था?" वागले ने सपाट लहजे में कहा____"जबकि सच तो ये है कि जब तक तुम्हारे अंदर की गर्मी बाहर नहीं निकल गई तब तक तुम्हें भी उस सब में मज़ा ही आ रहा था और इतना ही नहीं खुद अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी टांगों के बीच दबाए जा रही थी। उस वक़्त तो तुम्हें वो सब ग़लत या गन्दा नहीं लग रहा था और फिर जैसे ही तुम्हारा मतलब पूरा हो गया तो तुम्हें वही सब ग़लत और गन्दा लगने लगा, है ना?"

वागले की इन बातों पर सावित्री कुछ बोल न सकी। बस शर्म से उसकी नज़रें झुकती चली गईं थी। हालांकि वो ये मान चुकी थी कि उसके पति ने जो कुछ कहा था वो सच ही था। ऐसा ही तो हुआ था पिछली रात। उसे अच्छे से याद था कि कैसे वो अपने पति के सिर को दोनों हाथों से थामे अपनी चूत पर दबा रही थी और चाहती थी कि उसका पति उसकी चूत को अपनी जीभ से चाटता ही रहे।

"ख़ैर जाने दो।" वागले ने उसके झुके हुए चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"तुमने भले ही वो सब कर के मेरा दिल दुखाया है लेकिन मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूं। जानती हो क्यों? क्योंकि एक तो मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं दूसरे मैं समझता हूं कि पहली बार में ऐसा करना तुम्हारे लिए आसान नहीं रहा होगा।"

"क्या सच में आप मुझसे नाराज़ नहीं हैं?" वागले की बात सुन कर सावित्री ने झटके से सिर उठा कर उसकी तरफ देखते हुए उससे पूछा था, जिस पर वागले ने कहा____"हां, लेकिन अगर आज रात भी तुमने वैसा किया तो मैं सच में तुमसे नाराज़ हो जाऊंगा और इतना ज़्यादा नाराज़ हो जाऊंगा कि इस बार तुम्हारे लाख माफ़ी मांगने पर भी तुमसे बात नहीं करुंगा।"

"आज मैं आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी।" सावित्री ने हल्के मुस्कुराते हुए कहा____"चाहे मुझे जितना भी गन्दा लगे लेकिन मैं वो सब करुँगी जिससे आपको वैसा ही आनंद मिल सके जैसा आनंद और सुख कल आपने मुझे दिया था।"

"अच्छा ऐसा क्या?" वागले मन ही मन खुश होते हुए बोला____"अगर ये सच है तो चलो इसका सबूत भी दो।"
"सबूत??" सावित्री ने चौंकते हुए उसकी तरफ देखा____"कैसा सबूत?"

"मेरे पास आ कर।" वागले ने कहा____"मेरे होठों को वैसे ही अपने मुँह में भर कर चूसो जैसे कल मैं तुम्हारे होठों को चूस रहा था।"
"हाय राम!" सावित्री एकदम से लजा गई____"ये क्या कह रहे हैं आप? बच्चों के आने का वक़्त हो रहा है। अगर उन्होंने खुले दरवाज़े से मुझे ऐसा करते हुए देख लिया तो मैं कैसे उन्हें अपना मुँह दिखा पाऊंगी?"

"इसका मतलब तो यही हुआ न।" वागले ने नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"कि तुमने अभी भी इस सबके लिए अपने अंदर एक दुविधा सी पाल रखी है? अगर तुम इस सबके लिए पूरी तरह से तैयार होती तो मेरे एक बार के कहने पर झट से वो करने लगती जो मैं कहता।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ने चाय के कप को एक तरफ रखा और वागले की तरफ तेज़ी से बढ़ी। वागले उसी की तरफ देख रहा था। उसे अपनी तरफ आता देख पहले तो उसे समझ न आया लेकिन जल्द ही उसे समझ आ गया। इधर सावित्री वागले के क़रीब पहुंची और उसने झुक कर वागले के चेहरे को अपने हाथों से पकड़ लिया। कुछ पलों तक उसने वागले की आँखों में देखा और फिर आँखें बंद कर के उसने वागले के होठों पर अपने होठ रख दिए। उसका जिस्म अजीब तरह से कांपने लगा था लेकिन वो रुकी नहीं। जैसे वो सच में साबित कर देना चाहती थी कि उसके अंदर अब किसी भी तरह की कोई दुविधा जैसी बात नहीं है। पहले उसने वागले के होठों को दो तीन बार बड़े ही आहिस्ता से चूमा और फिर उसने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उसके जिस्म में एक सनसनी सी फैलने लगी थी जिसके प्रभाव से उसके अंदर एक अजीब सा नशा चढ़ने लगा था। उधर वागले उसकी इस क्रिया से बेहद खुश हो गया था। इधर सावित्री कुछ देर तक उसके होठों को चूमती चूसती रही और फिर उसने उसके होठों को आज़ाद कर दिया।

"अब मिल गया न आपको सबूत?" सावित्री ने आँखें खोल कर उसकी तरफ देखते हुए पूछा था। उसके चेहरे पर शर्म की लाली छा गई थी जिसे देख कर वागले मुस्कुरा उठा था।

"अभी तो ये आधा सबूत दिया है तुमने।" फिर वागले ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा____"इसके आगे का आधा सबूत तुम्हें आज रात में तब देना होगा जब हम प्रेम का कार्यक्रम शुरू करेंगे।"

"ठीक है।" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज मैं भी आपको खुश कर के ही दम लूंगी। वैसे ये बताइए कि अचानक से ये सब करने का विचार कैसे आ गया है आपके मन में?"

"अगर तुम इस बारे में जानना ही चाहती हो।" वागले ने कहा____"तो मैं तुम्हें इसका राज़ भी बता दूंगा लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे वैसे ही खुश रखना होगा जैसे मैंने तुम्हें कल रात खुश किया था।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ख़ामोशी से देखती रह गई थी उसकी तरफ। उसके चेहरे पर अभी भी मुस्कान उभरी हुई थी। ख़ैर उसके बाद सावित्री रात का खाना बनाने के लिए किचेन की तरफ चली गई थी। उसके जाने के बाद वागले ये सोच कर मुस्कुरा उठा था कि आज रात उसकी बीवी सावित्री उसे भी वैसा ही मज़ा देगी जैसा डायरी में विक्रम सिंह को माया, कोमल और तबस्सुम ने दिया था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए वो चाय पीने के बाद कमरे से बाहर निकल गया।

रात में सबके साथ डिनर करने के बाद वागले अपने कमरे में आ गया था। बेड पर लेटा वो सावित्री के आने का इंतज़ार कर रहा था। उधर सावित्री किचेन में जूठे बर्तन धो रही थी। उसके मन में भी ये बातें चल रही थी कि उसने अपने पति से तो कह दिया था कि आज वो उसे खुश करेगी लेकिन अब उसे खुद ही समझ में नहीं आ रहा था कि वो सब कुछ कैसे कर पाएगी? उसने जीवन में ऐसा काम कभी नहीं किया था और ना ही ऐसा करने के बारे में कभी सोचा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके पति को अचानक से इस तरह से सेक्स करने का ख़याल कहां से आ गया था?

सारे कामों से फुर्सत होने के बाद सावित्री कमरे में आई और उसने दरवाज़े को अंदर से कुण्डी लगा कर बंद कर दिया। पलट कर देखा तो अपने पति को बेड पर लेटे हुए अपनी तरफ ही देखता पाया। उसे इस तरह देखता देख उसके मन में ख़याल उभरा कि इन्हें अब तक नींद नहीं आई?

"आप अभी तक जाग रहे हैं?" फिर उसने बेड की तरफ बढ़ते हुए मुस्कुरा कर पूछा____"मुझे तो लगा था आप सो गए होंगे।"
"ऐसे कैसे सो जाता मेरी जान?" सावित्री जैसे ही बेड के क़रीब पहुंची तो वागले ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा____"जिसकी ख़ूबसूरत बीवी अपने पति को खुश करने के लिए आने वाली हो वो कैसे अपनी पलकें बंद कर सकता था भला?"

सावित्री अपने पति के द्वारा खींच लिए जाने पर उसके ऊपर जा लेटी थी जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियां वागले के सीने में धंस गईं थी। वागले को तो मज़ा आ गया था लेकिन सावित्री के मुख से आह निकल गई थी। उसने मुस्कुरा कर वागले की तरफ देखा था, जबकि वागले ने उसके चेहरे को पकड़ कर फ़ौरन ही उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया था।

वागले सावित्री के होठों को ऐसे चूसने लगा था जैसे उसे उसके होठों से शहद और शराब दोनों का ही स्वाद मिल रहा था। इधर सावित्री के जिस्म में उसके इस तरह से अपने होठ चूसने पर एकदम से झुरझुरी होने लगी थी। उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसके जिस्म में अचानक ही एक तरह का नशा चढ़ने लगा था जिसके असर से वो मदहोश होने लगी थी। उधर वागले उसके होठों को मुँह में भरे ही उसे पलटा कर बेड पर लेटाया और उसके ऊपर आ कर एक हाथ से उसकी छाती को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। सावित्री एकदम से मचल उठी।

"आहहह थोड़ी देर रुक जाइए न।" सावित्री ने अपने होठों को उसके होठों से आज़ाद करते हुए कहा____"मुझे कपड़े तो बदल लेने दीजिए। उसके बाद जो मन करे वो कर लीजिएगा।"

"अरे! कपड़े बदलने की क्या ज़रूरत है जानेमन?" वागले ने ब्लाउज के ऊपर से ही सावित्री की छाती के निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोर से खींचते हुए कहा____"कुछ देर में तो वैसे भी तुम पूरी तरह नंगी हो जाओगी।"

"आहहह शश्श्।" सावित्री ने ज़ोर की सिसकी लेते हुए कहा____"थोड़ा आराम से कीजिए न। आप तो ऐसे खींच रहे हैं जैसे वो रबर हों।"
"मेरी मर्ज़ी है मैं जैसे चाहूं खीचूं।" वागले ने कहने के साथ ही एक बार फिर से सावित्री के उस निप्पल को मुँह में भर ज़ोर से खींचा जिससे सावित्री की सिसकी निकल गई, जबकि वागले ने कहा____"मेरा मन करता है कि मैं तुम्हारे जिस्म के हर अंग को खा जाऊं।"

"हे भगवान!" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर क्या हो गया है आपको? इस तरह का प्यार और इस तरह का जोश इसके पहले तो कभी नहीं दिखा था आप में।"
"पहले की बात छोड़ो मेरी जान।" वागले ने कहा____"ये समझो कि इसके पहले मैं इन मामलों में थोड़ा नासमझ और अनाड़ी टाइप का था लेकिन अब इस मामले में एकदम से परफेक्ट बन जाना चाहता हूं। थोड़ी उमर बढ़ गई है तो क्या हुआ, दिल और मन की इच्छाएं तो अभी भी जवान हैं ना?"

इससे पहले कि सावित्री अपने पति की इन बातों का कोई जवाब देती वागले ने फ़ौरन ही उसके होठों को मुँह में भर लिया था। वागले में अचानक से जैसे पागलपन सवार हो गया था। वो जितनी तेज़ी से सावित्री के होठों को चूस रहा था उतनी ही तेज़ी से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलता जा रहा था। कुछ ही देर में सावित्री बिन पानी के मछली की तरह मचलने लगी थी। अपने दोनों हाथों से उसने वागले के सिर को पकड़ लिया था और खुद भी उसके होठों को चूमने चूसने लगी थी। शायद इसी दौरान उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया था कि अब वो भी पीछे नहीं हटेगी।

कुछ देर तक दोनों ही एक दूसरे के होठों का रस पीते रहे उसके बाद दोनों अलग हो गए। दोनों की ही साँसें चढ़ गईं थी और जिस्म में गर्मी भर गई थी। वागले ने फ़ौरन ही सावित्री को नंगा करना शुरू कर दिया। वो एक एक कर के उसके सारे कपड़े उतार रहा था। जल्दी ही सावित्री पूरी तरह नंगी हो गई और जैसे ही उसे अपने नंगेपन का एहसास हुआ तो उसने दोनों हाथों से अपने बदन को छुपाने की नाकाम कोशिश की। इधर वागले उसकी इस क्रिया से मुस्कुराया और खुद भी तेज़ी से अपने कपड़े उतार कर पूरी तरह नंगा हो गया।

लाइट की तेज़ रौशनी में सावित्री का ख़ूबसूरत बदन जैसे एक अलग ही अंदाज़ में चमक रहा था। वागले से रहा न गया तो उसने सावित्री की बड़ी बड़ी छातियों में अपना चेहरा घुसा दिया और दोनों हाथों से उसकी छातियों को पकड़ कर अपने चेहरे पर दबाने लगा। सावित्री के मुख से सिसकारियां फूटने लगीं और उसने वागले के सिर को पकड़ अपनी छातियों पर दबाना शुरू कर दिया। वागले ने बारी बारी से सावित्री की दोनों छातियों को मुँह में भर कर चूसा और फिर नीचे सरकते हुए जल्दी ही वो सावित्री की चिकनी चूत पर आ गया।

एक नज़र गौर से उसने सावित्री की चिकनी चूत को देखा और फिर एक हाथ से उसे सहलाया तो सावित्री का जिस्म मचल उठा और उसने अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश लेकिन वागले जैसे पहले से ही तैयार बैठा था। उसने फ़ौरन ही सावित्री की दोनों टांगों को पकड़ कर फैलाया और झुक कर उसकी चूत में अपना मुँह दे दिया। वागले ने उसकी चूत पर ज़ोर से चुम्बन लिया तो सावित्री बुरी तरह से मचलते हुए अपनी टांगों को सिकोड़ लिया जिससे वागले का सिर उसकी टांगों के बीच फंस गया। उधर वागले उसकी चूत को चूमने के बाद अपनी जीभ से उसे चाटना शुरू कर दिया था। सावित्री का थोड़ी ही देर में बुरा हाल हो गया अपने दोनों हाथों से उसने वागले के सिर को पकड़ा और अपनी चूत पर ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया।

वागले द्वारा चूत चुसाई किए जाने पर सावित्री पूरी तरह मस्ती में आ गई थी। उसकी आहें उसकी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं थी जिसे वो बड़ी मुश्किल से रोकने की कोशिश कर रही थी। अपने होठों को दांतों तले दबा कर और मुट्ठियों को कस कर वो मानो वागले के सिर के बालों को खींच लेना चाहती थी। कुछ ही देर में उसके जिस्म को झटके लगने लगे और वो बुरी तरह आहें भरते हुए झड़ने लगी थी। झड़ते वक़्त उसने वागले के सिर को अपनी टांगों में बुरी तरह दबा लिया था। वागले उसकी चूत से निकले कामरस का एक एक कतरा निगलता चला गया था।

सावित्री को जब झटके लगने बंद हुए तो वो किसी बेजान लाश की तरह शांत पड़ गई थी। कमरे में उसकी उखड़ी हुई साँसें ही गूँज रहीं थी। उधर वागले उसकी चूत से अपना चेहरा हटाने के बाद उसी की तरफ देखता जा रहा था। उसके मुँह पर अभी भी सावित्री का कामरस लगा हुआ था। कुछ सोच कर वो मुस्कुराया और आगे बढ़ कर आँखें बंद किए पड़ी सावित्री के होठों को मुँह में भर लिया। सावित्री के जिस्म में झटका सा लगा लेकिन उसने अपने होठों को उससे छुड़ाने की कोशिश नहीं की।

"मेरे मुँह के आस पास लगे अपनी चूत से निकले इस कामरस को चाटो मेरी जान।" वागले ने उसके होठों को आज़ाद कर के कहा तो सावित्री ने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा। आँखों में अभी भी सुर्खी छाई हुई थी। वागले को कुछ पल देखने के बाद वो हल्के से मुस्कुराई और अपनी जीभ को बाहर निकाल दिया। वागले ये देख कर मुस्कुराया और अपने चेहरे को उसकी जीभ के पास कर दिया। सावित्री ने धीरे धीरे अपनी जीभ से उसके मुँह के आस पास लगे अपने ही कामरस को चाटना शुरू कर दिया। उसके चेहरे पर बड़े अजीब से भाव उभर आए थे लेकिन उसने चाटना बंद नहीं किया।

"कैसा लगा जानेमन?" सावित्री ने जब सारा कामरस चाट लिया तो वागले ने मुस्कुराते हुए पूछा उससे, जिस पर सावित्री ने शर्मा कर अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया और फिर कहा_____"आप बहुत गंदे हैं।"

"अच्छा जी अब मैं गन्दा हो गया?" वागले हल्के से हंसते हुए बोला____"और अभी जब मज़े से अपनी चूत मुझसे चुसवा रही थी तब ये नहीं सोचा कि वो गन्दा हो सकता है?"
"हां तो मैंने ये तो नहीं कहा था कि आप मेरे वहां पर इस तरह से मुँह लगाइए।" सावित्री ने दूसरी तरफ चेहरा किए हुए ही कहा____"आप खुद ही ऐसा कर रहे थे तो मैं क्या करूं?"

"हां मैं अपनी मर्ज़ी से ही वो सब कर रहा था।" वागले ने उसके चेहरे को सीधा कर के उसकी तरफ देखते हुए कहा____"और मेरा मन करता है की एक बार फिर से मैं तुम्हारी चूत का मीठा मीठा रस पीने लगूं।"

"छी।" सावित्री ने बुरा सा मुँह बनाया____"सच में बहुत गंदे हैं आप। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मेरे पतिदेव जो इतने शरीफ़ थे वो इस तरह के गंदे काम करने लगे हैं।"
"यकीन तो करना ही पड़ेगा मेरी जान।" वागले ने सावित्री के सुर्ख होठों पर अपनी ऊँगली फिराते हुए कहा____"क्योंकि अब से तुम्हारा पति ऐसे ही गंदे काम करेगा और तुम्हें खुद भी उसके साथ सारे गंदे काम करने पडेंगे।"

"मैं आपकी तरह गन्दी नहीं हूं।" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"और ना ही मैं आपकी तरह ऐसे गंदे काम करुंगी।"
"सोच लो।" वागले ने उसकी आँखों में देखा____"अगर तुमने इस बार मुझे अधूरा छोड़ कर इस तरह से मेरा दिल दुखाया तो इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"आप तो नाराज़ हो गए लगता है।" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"जबकि मैं तो आपको छेड़ रही थी।"
"छेड़ना ही है।" वागले ने अपने अकड़े हुए लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा____"तो इसे छेड़ो मेरी जान। जो करना है इसके साथ करो, लेकिन कुछ इस तरीके से कि हम दोनों को ही मज़ा आए। चलो अब उठो, मैं अब और बरदास्त नहीं कर सकता।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री को पकड़ कर उठाया। सावित्री का नशा क्योंकि उतर चुका था इस लिए अब उसे इस सब में शर्म आने लगी थी लेकिन वो जानती थी कि अगर उसने आज भी कल की तरह अपने पति को अधूरा छोड़ा तो इस बार उसके लिए सच में अच्छा नहीं होगा। ये सोच कर वो उठ गई और वागले के खड़े हुए लंड की तरफ देखने लगी। चेहरे पर शर्म की लाली लिए वो कुछ पलों तक उसके लंड को देखती रही फिर उसने धीरे से अपना हाथ बढ़ा कर उसके लंड को पकड़ लिया। जैसे ही उसके कोमल हाथों ने लंड को पकड़ा तो वागले के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई।

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अध्याय - 17
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अब तक....

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री को पकड़ कर उठाया। सावित्री का नशा क्योंकि उतर चुका था इस लिए अब उसे इस सब में शर्म आने लगी थी लेकिन वो जानती थी कि अगर उसने आज भी कल की तरह अपने पति को अधूरा छोड़ा तो इस बार उसके लिए सच में अच्छा नहीं होगा। ये सोच कर वो उठ गई और वागले के खड़े हुए लंड की तरफ देखने लगी। चेहरे पर शर्म की लाली लिए वो कुछ पलों तक उसके लंड को देखती रही फिर उसने धीरे से अपना हाथ बढ़ा कर उसके लंड को पकड़ लिया। जैसे ही उसके कोमल हाथों ने लंड को पकड़ा तो वागले के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई।

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अब आगे.....



"तुम्हारे कोमल हाथों की छुअन से ही जब मुझे मज़ा आ गया है।" वागले ने आह भरते हुए धीरे सेकहा____"तो जब तुम इसे अपने मुँह में ले कर चूसोगी तो कितना मज़ा आएगा। अब तो तुम्हें भी यकीन आ ही गया होगा कि इस तरह से चुदाई करने में कितना मज़ा आता है।"

"उफ्फ! कुछ तो शर्म कीजिए।" सावित्री ने वागले की तरफ देख कर बुरा सा मुँह बनाया था____"कितना गन्दा शब्द बोल रहे हैं आप।"
"शर्म करूंगा तो इस तरह से मज़ा कैसे ले पाओगी मेरी जान?" वागले ने एक हाथ से सावित्री की चूची को मसल कर कहा____"मेरी बात मानों तो तुम भी इस मामले में शर्मो हया छोड़ दो और खुल कर इस सबका मज़ा लो। चुदाई के समय खुल कर ऐसे शब्दों को बोलो और खुल कर हर चीज़ का मज़ा लो, फिर देखो कैसे तुम्हें एक अलग ही मज़ा आएगा।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ने कुछ पलों तक उसकी तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए सिर झुका कर उसके अकड़े हुए लंड को देखने लगी। वागले का लंड उसकी मुट्ठी में क़ैद था जिसे वो हल्के हल्के सहला रही थी। उसने महसूस किया कि ऐसा करने से उसके अंदर एक अजीब सी सनसनी होने लगी थी।

"अब सहलाती ही रहोगी या उसे अपने मुँह में भर कर चूसोगी भी?" वागले ने कहा____"अब देर न करो डियर। इस सबके बाद हमें सोना भी है।"
""मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा है।" सावित्री ने नज़र उठा कर उससे कहा____"मन में अजीब अजीब से ख़याल आ रहे हैं।"

"अपने मन के ख़यालों को निकाल कर बाहर फेंक दो यार।" वागले ने झल्लाते हुए कहा____"कितना नाटक करती हो तुम। अभी अगर मैं फिर से तुम्हारी चूत को मुँह में भर कर चूसने लगूं तो तुम्हारे मन में ऐसे कोई ख़याल नहीं आएंगे, बल्कि तब तो तुम्हें ऐसा मज़ा आने लगेगा कि अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर ही दबाती चली जाओगी। हद है यार।"

"मैं कोशिश कर रही हूं ना।" सावित्री ने धीमें स्वर में कहा____"आप नाराज़ क्यों हो रहे हैं?"
"नाराज़ न होऊं तो क्या करूं?" वागले ने इस बार सच में नाराज़ लहजे में कहा____"कल भी मैंने तुम्हें खुश किया था और तुमने मुझे अधूरा छोड़ दिया था और आज भी तुम वही कर रही हो। इसके पहले तो बहुत बड़ी बड़ी बातें और वादे कर रही थी, अब क्या हुआ? देखो अगर तुम्हें यही करना है तो छोड़ दो। तुम्हारे बस का कुछ नहीं है।"

कहने के साथ ही वागले पीछे हट गया जिससे सावित्री के हाथ से उसका लंड छूट गया। उधर उसकी बातों के बाद इस तरह पीछे हटते ही सावित्री बुरी तरह बौखला गई। वो समझ गई कि वागले उसके क्रिया कलापों से अब नाराज़ हो गया है इस लिए उसने फ़ौरन ही उसे मना लेने का सोचा।

"रूक जाइए न।" सावित्री ने मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहा____"मैं सब कुछ करने को तैयार हूं। आप प्लीज नाराज़ मत होइए।"
"ये बातें मैं कई बार तुम्हारे मुँह से सुन चुका हूं।" वागले ने कहा____"तुम सिर्फ कहती हो और जब करने की बारी आती है तो मुकर जाती हो। अब अगर मैं ये कहूं कि ऐसे इंसान को धोखेबाज़ और बेवफ़ा कहते हैं तो क्या कहोगी तुम?"

"मैं मानती हूं कि मैंने अब तक जो कहा है वो किया नहीं है।" सावित्री खिसक कर उसके पास आते हुए बोली____"लेकिन आप भी तो समझिए कि जिन चीज़ों के बारे में मैंने कभी कल्पना तक न की हो और जिन चीज़ों को मैं बेहद गन्दा समझती हूं वो सब चीज़ें इस तरह अचानक से करना मेरे लिए कितना मुश्किल होगा।"

"तो क्या ये सब चीज़ें मैं सारी ज़िन्दगी करता आया हूं?" वागले ने नाराज़ लहजे में कहा____"मेरे लिए भी तो ये सब पहली बार ही है लेकिन मेरे लिए तो ये सब ज़रा भी मुश्किल नहीं रहा। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ वो सब करके मुझे ख़ुशी ही नहीं देना चाहती।"

"ऐसी बात नहीं है।" सावित्री ने बेबस भाव से कहा____"भला मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे पति मेरे किसी कार्य से खुश न हों? अच्छा अब नाराज़गी छोड़िए और आइए मैं अब ज़रा भी देर नहीं करुँगी वो सब करने में।"

सावित्री की बात सुन कर वागले उसके चेहरे को इस तरह देखने लगा था जैसे परख रहा हो कि वो सच कह रही है या अभी भी वो उसे झूठी तसल्ली दे रही है। वागले को इस तरह अपनी तरफ देखता देख सावित्री थोड़ा और उसकी तरफ खिसकी और फिर सिर झुका कर उसके लंड की तरफ देखा जो अब शांत पड़ गया था। सावित्री ने हाथ आगे बढ़ा कर वागले के लंड को पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। वागले के जिस्म में झुरझुरी होने लगी और कुछ ही देर में उसका लंड अपना अकार बढ़ने लगा।

वागले का लंड जैसे जैसे अपना अकार बढ़ा रहा था वैसे वैसे उस पर सावित्री की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। उसने नज़र उठा कर वागले की तरफ देखा तो उसे मज़े में आँखें बंद किए पाया। सावित्री की नज़र वापस वागले के लंड पर पड़ी। वो गौर से उसे देखने लगी थी। वागले का लंड अब अपने पूरे अकार में आ चुका था जो कि सावित्री की पूरी मुट्ठी में अब फिट बैठ रहा था। सावित्री ने एक बार फिर से वागले की तरफ देखा और जब उसे आँखें बंद किए ही पाया तो वो जल्दी से नीचे झुकी और अपनी आँखें बंद कर के वागले के लंड को मुँह खोल कर अंदर भर लिया।

"आह्ह्ह् शसषशशश्।" सावित्री के मुँह की गर्माहट जैसे ही लंड पर पड़ी तो वागले के मुँह से सिसकी निकल गई। वो समझ गया कि उसकी बीवी ने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया है। उधर सावित्री उसके लंड के टोपे को मुँह में भर कर अपने सिर को धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी थी जिससे उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ वागले के लंड पर घर्षण करने लगे थे। वागले के जिस्म में एकदम से आनंद की लहरें उठने लगीं थी। उसने एक हाथ से सावित्री के सिर को थाम लिया था।

सावित्री कुछ देर तक धीरे धीरे ही वागले के लंड को चूस रही थी किन्तु फिर उसकी रफ़्तार तेज़ होने लगी और साथ ही वो उसके लंड को और भी ज़्यादा अपने मुँह में भरने की कोशिश करने लगी। सावित्री ने शुरू में अपनी आँखों को कस कर बंद किया हुआ था लेकिन अब वो नार्मल दिख रही थी। शायद अब उसने खुद को इसके लिए तैयार कर लिया था या फिर उसे ऐसा करने में गन्दगी महसूस नहीं हो रही थी।

वागले तो मज़े के सातवें आसमान में था। सावित्री अब अपनी आँखें खोल कर उसके लंड को चूस रही थी और नज़र उठा कर वागले को भी देख लेती थी। वो देख रही थी कि कैसे उसका पति उसके ऐसा करने से मज़े में पहुंच चुका है और इतना ही नहीं अब वो अपनी कमर को हल्का हल्का उठा कर अपना लंड और भी ज़्यादा सावित्री के मुख में डालने की कोशिश कर रहा है।

"आह्ह्ह सावित्री मेरी जान।" वागले ने मज़े में आह भरते हुए कहा____"बहुत मज़ा आ रहा है सच में। तुम्हारे मुँह की गर्मी में मेरा लंड पिघलता जा रहा है। मन करता है कि तुम ऐसे ही मेरे लंड को चूसती रहो।"

"आपको तो मज़ा आ रहा है।" सावित्री ने उसके लंड को अपने मुँह से निकाल कर कहा____"लेकिन ऐसा करने से अब मेरा मुँह दुखने लगा है। एक काम कीजिए, आप अच्छे से बेड पर लेट जाइए। मैं भी आपको वैसे ही खुश करती हूं जैसे आपने मुझे किया था।"

"ठीक है।" वागले ने बेड पर लेटते हुए कहा____"तुम मुझे खुश करो और मेरा वादा है कि उसके बाद मैं तुम्हें इतना ज़्यादा खुश करुंगा कि तुम पूरी तरह से तृप्त हो जाओगी।"
"हां वो तो मैं जानती हूं।" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"और अब मैं भी आपको खुश करने की पूरी कोशिश करुंगी।"

वागले बेड पर सीधा लेता हुआ था। दोनों पूरी तरह नंगे थे। लाइट की रौशनी में दोनों के ही बदन चमक रहे थे, ख़ास कर सावित्री का बदन कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था। सावित्री ने वागले की तरफ देखा। वागले उसी को मुस्कुराते हुए देख रहा था। ये देख कर सावित्री थोड़ा शर्मा गई और फिर झुक कर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए। कोमल और रसीले होठों को अपने होठों पर महसूस करते ही वागले को मज़ा आ गया। उसने सावित्री के सिर को थामने के लिए अपना हाथ बढ़ाया ही था कि फिर ये सोच कर वापस खींच लिया कि देखे सावित्री क्या करती है उसे खुश करने के लिए?

सावित्री हल्के हल्के वागले के होठों को चूमते हुए चूसने लगी थी। उसके खुद के जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी जिसके असर से वो मदहोश होने लगी थी। वागले से रहा न गया तो उसने अपने दोनों हाथ उठा कर सावित्री के नंगे लेकिन भारी चूतड़ों को थाम लिया और उन्हें मसलने लगा। सावित्री उसके द्वारा ऐसा करने पर एकदम से मचल उठी थी और होंठ चूसने की रफ़्तार बढ़ गई थी। एक हाथ से वो वागले के सिर को पकड़े थी और दूसरा हाथ नीचे ला कर वो उसके सीने को सहलाने लगी थी।

कुछ देर वागले के होठों को चूसने के बाद सावित्री ने चेहरा उठाया। उसकी साँसें भारी हो गईं थी और उसकी आँखों में एक नशा सा दिखने लगा था। वो नीचे सरकी और वागले के सीने को चूमने लगी। थोड़ी ही देर में वो चूमते हुए पेट और नाभी से होते हुए वागले के लंड की तरफ आ गई। नीचे आ जाने से वागले के हाथों से उसके भारी चूतड़ छूट गए थे। वागले के ज़हन में अचानक से कोई ख़याल उभरा तो उसने सावित्री को उसकी तरफ अपनी टाँगें कर लेने को कहा। सावित्री ने वैसा ही किया। अब सावित्री के जिस्म का निचला हिस्सा वागले की तरफ था। गोरे सफ्फाक़ जिस्म पर कहीं भी दाग नहीं था। वागले ने थोड़ा सा उठ कर दोनों हाथों से उसकी जाँघों को पकड़ा और ज़ोर दे कर सावित्री को अपने ऊपर लेटा लिया। इस पोजीशन में सावित्री का पिछवाड़ा वागले के चेहरे के पास आ गया था और सावित्री के चेहरे के पास वागले का लंड आ गया था।

सावित्री ने अपने इतने क़रीब वागले के लंड को देखा तो उसने फ़ौरन ही उसे पकड़ लिया और उसकी खाल को ऊपर नीचे करते हुए कुछ ही पलों में उसे अपने मुँह में धीरे से डाल लिया। उधर वागले उसकी टांगों को थोड़ा सा फैला कर उसकी चूत और उसके गांड के छेंद को देखने लगा था जो एकदम सफाचट और सुर्ख थी। सावित्री की चूत गीली थी और उसमें से उसका कामरस रिस रहा था। वागले ने सिर को थोड़ा सा उठाया और उसकी चूत पर अपना मुँह लगा दिया। वागले के ऐसा करते ही उसका लंड चूस रही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई और मज़े की तरंग में आ कर वो और ज़ोर से उसके लंड को चूसने लगी।

दोनों मियां बीवी एक दूसरे के गुप्तांगों को चूसने में लग गए थे। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि दोनों ही पागल कुत्तों की तरह एक दूसरे के गुप्तांगों को चाट और चूस रहे थे। सावित्री को देख कर लग ही नहीं रहा था कि ये सब वो पहली बार कर रही थी। शायद अब उसे भी इसमें मज़ा आने लगा था और अब वो पूरी तरह खुल कर इस सब में डूब चुकी थी।

वागले की चूत चुसाई से जल्दी ही सावित्री का बुरा हाल हो गया। अब वो उसका लंड नहीं चूस रही थी बल्कि मज़े में ज़ोर ज़ोर से आहें और सिसकिया भरती जा रही थी। एक हाथ से उसने अभी भी वागले के लंड को मुट्ठी में कसा हुआ था। वागले ने अपनी कमर को नीचे से ऊपर उठाया तो उसका लंड सावित्री के चेहरे से टकराया जिससे सावित्री ने लंड की तरफ देखा और उसे फिर से मुँह में भर लिया।

वागले को जब लगा कि सावित्री की चुसाई से वो कहीं झड़ ही न जाए तो उसने फ़ौरन ही सावित्री को अपने ऊपर से हटाया और उठ कर जल्दी से उसकी टांगों के बीच आ गया। दोनों हाथों से सावित्री की टांगों को फैला कर उसने अपने तमतमाए हुए लंड को सावित्री की चूत में टिकाया और एक ज़ोर का झटका दिया।

"आहहहह शशशश्श धीरे से आहह्ह्ह।" ज़ोर का झटका लगते ही सावित्री की हल्का दर्द में डूबी आह निकल गयी थी।
"ज़्यादा ज़ोर की आवाज़ मत निकालो मेरी जान।" वागले ने लंड को थोड़ा सा बाहर खींच कर फिर से धक्का लगाते हुए कहा____"वरना तुम्हारी ऐसी आवाज़ हमारे बच्चों के कानों में पहुंच जाएगी और फिर उन्हें ये समझने में ज़रा भी देर न लगेगी कि उनके माता पिता बंद कमरे में इस वक़्त क्या कर रहे हैं।"

"आह्ह्ह ठीक है मैं आवाज़ नहीं करुंगी।" सावित्री ने सिसकी लेते हुए कहा____"लेकिन आप रुकिएगा नहीं बल्कि ऐसे कीजिए कि मेरा बुरा हाल हो जाए।"
"वाह! क्या बात है मेरी जान।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या सच में ऐसा ही चाहती हो तुम?"

"आह्हह्ह हाँ मैं ऐसा ही चाहती हूं।" सावित्री ने आह भरते हुए कहा____"आप ज़ोर ज़ोर से कीजिए बस।"
"क्या करूं ज़ोर ज़ोर से?" वागले ने ज़ोर का धक्का देते हुए पूछा।
"वही जो कर रहे हैं।" सावित्री ने एक नज़र वागले के चेहरे की तरफ डाल कर फिर से अपनी आँखें बंद कर ली।

"खुल कर बताओ न मेरी जान।" वागले ने कहा____"तभी तो तुम्हें चुदाई का असली मज़ा आएगा।"
"कैसे बोलूं?" सावित्री ने आँखें खोल कर वागले की तरफ देखा____"खुल कर ऐसे शब्द बोलने में मुझे शर्म आती है।"

"हद है यार।" वागले ने कहा____"अभी भी शर्म कर रही हो तुम। एक बार बोल के तो देखो।"
"आह्ह्ह् शशशश् कैसे बोलूं?" सावित्री ने सिसकी लेते हुए कहा।
"उसका जवाब दो जो मैंने पूछा था।" वागले ने कहा____"बोलो कि मेरी ज़ोर ज़ोर से चुदाई कीजिए।"

"उफ्फ!" सावित्री ने शर्मा कर अपनी गर्दन को दूसरी तरफ फेर लिया, फिर मुस्कुराते हुए कहा____"मेरी ज़ोर ज़ोर से चु...चुदा...मेरी ज़ोर ज़ोर से चुदाई कीजिए। हाए दैया ये क्या बोलवा रहे हैं आप मुझसे?"

"बहुत बढ़िया।" वागले ने ज़ोर का धक्का मारते हुए मुस्कुरा कर कहा____"अब बताओ कि मैं तुम्हारी किस तरह से चुदाई करूं?"
"जैसे कर रहे हैं।" सावित्री ने उसकी तरफ देख कर कहा____"वैसे ही कीजिए।"

"ऐसे नहीं डियर।" वागले ने अपना हाथ बढ़ा कर उसकी एक चूची को पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया जिससे सावित्री की सिसकी निकल गई____"मैं जो भी पूछूं उसका खुल कर और नाम ले कर जवाब दो। चलो अब बताओ कि मैं कैसे तुम्हारी चुदाई करूं?"

"आह्हह्ह शश्श्श्श्।" सावित्री ने आह भरते हुए कहा____"आ...आप अपने लं...लंड से मेरी चुदाई कीजिए।"
"जो हुकुम मेरी जान।" वागले ने फिर से एक ज़ोर का धक्का मारते हुए कहा____"अच्छा ये बताओ कि इस वक़्त मेरा लंड तुम्हारी किस जगह पर घुस कर तुम्हारी चुदाई कर रहा है?"

"आपका लं...लंड" सावित्री ने दूसरी तरफ चेहरा कर के और आँखें बंद कर के कहा____"मेरी चू..चूत में घुस कर मेरी चु...चुदाई कर रहा है। हाय दैया आपने तो मुझे पूरी तरह बेशर्म ही बना दिया।"

"अभी कहां जानेमन?" वागले मुस्कुराया____"तुम तो अभी भी शर्मा रही हो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी आँखों में आँखें डाल कर मेरे हर सवाल का जवाब दो। तब मैं मानूंगा कि तुम अब पूरी तरह खुल चुकी हो।"

"आह्हह्ह शश्श्श्श्।" सावित्री ने वागले की तरफ देखा____"अगर मैं सच में पूरी तरह बेशर्म बन गई तो क्या आपको अच्छा लगेगा?"
"बिल्कुल अच्छा लगेगा मेरी जान।" वागले ने झुक कर उसके होठों को चूम कर कहा____"चुदाई के वक़्त अगर तुम पूरी तरह बेशर्म बन जाओगी तो मुझे यकीनन अच्छा लगेगा, क्योंकि इसी से हम दोनों को इस चुदाई का असली मज़ा मिलेगा।"

"आह्हह्ह अच्छा ऐसा क्या?" सावित्री उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराई तो वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"हां डियर। चलो अब मैं तुम्हारी चुदाई करता हूं और तुम खुल कर मुझसे वो सब कहो जो जो तुम्हारे मन में आए।"

कहने के साथ ही वागले तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा। उसके हर धक्के पर सावित्री की भारी भरकम छातियां उछल जाती थीं जिससे वागले झुक कर कभी उसकी छातियों को मसल देता तो कभी मुँह में भर कर उसके निप्पल को ज़ोर से खींच लेता। सावित्री आनंद में डूबी आहें भर रही थी।

"आह्ह्ह् शश्श्श्श्।" सावित्री अपनी आहों को रोकने का प्रयास करते हुए बोली____"हां ऐसे ही चोदिए मुझे। मेरी चूत को अपने लंड से आह्ह्ह खूब चोदिए। उफ्फ! ऐसा मज़ा आपने पहले क्यों नहीं दिया था मुझे? हाय कितना मज़ा आ रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी और ही दुनियां में पहुंच गई हूं। आह्ह्ह और चोदिए मेरी चूत को। फाड़ दीजिए इस निगोड़ी को।"

सावित्री क्या क्या बोलती जा रही थी इसका उसे खुद ही अंदाज़ा नहीं था शायद। वो तो इस वक़्त मज़े की चरम सीमा पर थी। मज़े में आँखें बंद थी उसकी और वागले के धक्कों पर वो मचलते हुए अपनी गर्दन को इधर उधर कर रही थी। कुछ ही देर में दोनों ही मज़े की चरमसीमा पर पहुंच गए। सावित्री के जिस्म में झटके लगने लगे तो वो बुरी तरह आहें और सिसकियां भरने लगी थी। ये देख कर वागले ने उसके मुँह पर अपनी हथेली रख दी। वो खुद भी चरम पर था। जैसे ही सावित्री के गरमा गरम कामरस से उसका लंड भींगा तो वो खुद को सम्हाल नहीं पाया और वो बुरी तरह झटका खाते हुए झड़ने लगा। सावित्री की चूत वागले के कामरस से लबालब भर गई और फिर दोनों का ही कामरस एक साथ चूत से बाहर छलक पड़ा।

सेक्स और प्यार का तूफ़ान थमा तो कमरे में जैसे शान्ति छा गई थी। वागले सावित्री के ऊपर ही ढेर हो गया था। सावित्री को जैसे होश ही नहीं था। वो बस गहरी गहरी साँसें लेते हुए शक्तिहीन हो कर वागले के नीचे दबी पड़ी थी।


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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 18
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अब तक....

सेक्स और प्यार का तूफ़ान थमा तो कमरे में जैसे शान्ति छा गई थी। वागले सावित्री के ऊपर ही ढेर हो गया था। सावित्री को जैसे होश ही नहीं था। वो बस गहरी गहरी साँसें लेते हुए शक्तिहीन हो कर वागले के नीचे दबी पड़ी थी।

अब आगे....


दूसरे दिन शिवकांत वागले अपने केबिन में बैठा पिछली रात हुई सावित्री के साथ अपनी शानदार चुदाई के बारे में सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था। रात में दोनों मियां बीवी निर्वस्त्र हालत में ही सो गए थे। सुबह सावित्री ने उसे जगाया था। जागने के बाद उसने सावित्री को देखा था और फिर उसके होठों को चूम लिया था जिस पर सावित्री मुस्कुराते हुए बाथरूम में चली गई थी। वागले सोच रहा था कि इसके पहले उसने अपने जीवन का काफ़ी समय ऐसे ही बिना मज़े के गंवा दिया था। अगर उसे पहले से इस सबका इल्म होता तो आज उसे अपने गुज़रे हुए बेकार के समय का अफ़सोस न होता।

एक गहरी सांस ले कर वागले ने एक सिगरेट जलाई और उसके गहरे गहरे कश लेते हुए ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर टेबल पर रखा। उसके मन में अब ये जानने की उत्सुकता थी कि उस संस्था से जुड़ने के बाद विक्रम सिंह के जीवन में आगे और क्या क्या हुआ? उसने डायरी के उस पेज को खोला जहां से उसे अब आगे पढ़ना था। डायरी के उस पेज पर नज़रें जमाए उसने सिगरेट के और दो चार गहरे गहरे कश लिए और फिर सिगरेट को ऐशट्रे में बुझा कर उसने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के किस्से को आगे पढ़ना शुरू किया।

☆☆☆

अगली सुबह मेरी आँख खुली। आज की सुबह मुझे एक अलग ही तरह की महसूस हो रही थी। मैं समझ नहीं पाया कि ये मेरा भ्रम था या पिछले कुछ दिनों से जो कुछ मेरी ज़िन्दगी में हो रहा था ये उसका असर था। ख़ैर मैं फ्रेश हुआ और नास्ते के लिए ब्रेकफास्ट की टेबल पर आ गया। मां पापा अपनी अपनी जगह बैठे हुए थे और शीतल आंटी ब्रेकफास्ट सर्व कर रहीं थी। पापा ने मेरा हाल चाल पूछा तो मैंने उन्हें अपना हाल बेहतर ही बताया। नास्ते के बाद पापा अपने ऑफिस चले गए और मैं मां को बता कर अपने दोस्तों से मिलने चला गया।

मेरे दोस्तों में सबसे घनिष्ट सिर्फ चार ही दोस्त थे। सबके सब मेरी तरह ही संपन्न घरों से थे लेकिन ये हम चारों का ही दुर्भाग्य था कि अब तक के जीवन में हमने कभी किसी लड़की या औरत के साथ सेक्स नहीं किया था। शर्मीला स्वभाव जैसे हम सबका दुश्मन बना हुआ था। ख़ैर मेरे लिए तो अब ये गुज़री हुई बातें ही हो चुकीं थी क्योंकि अब मेरे स्वभाव से शर्मीलापन पूरी तरह गायब हो चूका था। मेरे मन में उस संस्था से जुड़ने के बाद काफी कुछ चल रहा था लेकिन उस संस्था के नियम कानून ऐसे थे कि मैं उसके बारे में किसी को भी बता नहीं सकता था।

यहां पर मैं अपने दोस्तों का शार्ट इंट्रोडक्शन देना चाहूंगा।

(01) रंजन भाठिया
(02) शेखर सैनी
(03) तरुण पटेल
(04) ज़फर अली

ये चारो मेरे बचपन के दोस्त थे। हालांकि हमारी दोस्ती स्कूल के वक़्त शुरू हुई थी लेकिन हम चारो इतने गहरे दोस्त बन गए थे कि लगता था कि कई जन्मों की हमारी दोस्ती है। हम पांचों में से ज़फर मुश्लिम था लेकिन इससे हमारी दोस्ती पर कभी कोई फ़र्क नहीं आया था।

उस दिन मैंने फ़ोन कर के सबको मिलने को बुलाया था। असल में मैं चाहता था कि अब किसी तरह मैं उनको भी किसी लड़की या औरत के साथ सेक्स का मज़ा कराऊं और इसके लिए ज़रूरी था उनकी शर्म और झिझक को दूर करना। हालांकि मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि इसके लिए मैं क्या करूं लेकिन मैंने सोच लिया था कि अपने दोस्तों की निराश पड़ी ज़िन्दगी को रंगीनियों से भर दूंगा।

वो चारो सही टाइम पर हमारे पुराने अड्डे पर आ चुके थे। चारो मुझसे थोड़ा नाराज़ थे कि मैं इतने दिनों तक गायब रहा और अपने साथ उन्हें पिकनिक पर नहीं ले गया। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें उस पिकनिक टूर के बारे में झूठ मूठ बता कर शांत किया था।

"अब तुझे क्या हुआ बे?" मैंने ज़फर को थोड़ा उदास सा देखा तो उससे पूछा____"इस तरह उदास उदास सा क्यों नज़र आ रहा है?"
"इसकी वजह सुनेगा तो तू अपनी हंसी नहीं रोक पाएगा विक्रम।" तरुण ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ऐसी क्या बात है भला?" मैंने कहा____"ज़रा मुझे भी तो बता।"
"अरे! भाई साहब का निकाह तय हो गया है।" तरुण ने कहा____"और पता है किसके साथ? इसके चचा जान की लड़की से।"

"क्या?? नाज़िया से??" मैं चौंक पड़ा था।
"हां भाई।" शेखर ने कहा____"नाज़िया से इसके निकाह की बात तो पहले ही हो गई थी और ज़फर को वो पसंद भी है लेकिन इसकी उदासी की वजह ये है कि अब इसे समझ नहीं आ रहा कि निकाह के बाद ये नाज़िया के साथ सुहागरात कैसे मनाएगा?"

"सुहागरात कैसे मनाएगा?" मैंने ज़फर की तरफ हैरानी से देखा____"क्यों बे तू सुहागरात नहीं मना सकता क्या? तेरा सही सलामत तो है न? अभी कुछ दिन पहले तक तो तेरा सब ठीक ठाक ही था तो अब क्या हुआ?"

"अरे! वो तो अब भी ठीक है विक्रम।" रंजन हंसते हुए बोला____"इसकी असल प्रॉब्लम इसकी शर्म और झिझक करना है भाई। हालांकि ये प्रॉब्लम तो हम सबकी ही है लेकिन अभी हम इस लिए बचे हुए हैं क्योंकि हमारी शादी नहीं हो रही। जबकि इसका तो निकाह ही तय कर दिया है इसके अब्बू ने। ये बेचारा कई दिनों से ऐसे ही परेशान और उदास है।"

मैं ज़फर के बारे में ये सब जान कर हैरान नहीं हुआ था क्योंकि जानता था कि इसके पहले मैं भी उसी की तरह शर्मीले स्वभाव का था। नाज़िया उसके चाचा की लड़की थी और क्योंकि उनके धर्म में ऐसे रिश्तों में निकाह हो जाता है इस लिए उन दोनों के रिश्ते की बात बहुत पहले हो चुकी थी। ये अलग बात है कि अपने शर्मीले स्वभाव के चलते ज़फर ने कभी नाज़िया से उस रिश्ते के हिसाब से बात नहीं की थी। उधर नाज़िया का भी यही हाल था। हम सब उसे जानते थे, क्योंकि हमारा एक दूसरे के घरों में आना जाना लगा रहता था।

"भाई लोग समस्या तो सच में गंभीर है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन अपने दोस्त के लिए इस बारे में कुछ तो करना ही पड़ेगा वरना सुहागरात को इसकी इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी और नाज़िया भाभी इसके पिछवाड़े में लात मार कर इसे कमरे से भगा देंगी।"

मेरी बात सुन कर सबके सब हंसने लगे थे जबकि ज़फर मुझे घूर कर देखने लगा था। उसकी आँखों में नाराज़गी के भाव उभर आए थे।

"तुझे मज़ाक सूझ रहा है साले।" ज़फर ने नाराज़गी से कहा____"और यहाँ मेरी हालत ख़राब हो रखी है। मैं बहुत कोशिश करता हूं कि नाज़िया से खुल कर कुछ गुफ्तगू करूं लेकिन हिम्मत जवाब दे जाती है। जब आज मेरी ये कैफियत है तो उस रात क्या होगा। बस यही सोच सोच कर गांड फटी जा रही है।"

"चिंता मत कर भाई।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर हल्के से दबाते हुए कहा____"मैं तेरी इस प्रॉब्लम को साल्व करने के बारे में ज़रूर कुछ न कुछ करुंगा।"

"बोल तो ऐसे रहा है जैसे मेरी ये प्रॉब्लम चुटकियों में दूर कर देगा।" ज़फर ने आँखें फैला कर कहा____"ये मत भूल कि तू भी हम सबके जैसा ही है।"
"ग़लत कह रहा है तू।" मैंने तपाक से कहा____"पहले ज़रूर मैं तुम सबके जैसा ही था लेकिन अब ऐसा नहीं हूं।"

"क्यों? अब क्या किसी ने मार ली है तेरी?" ज़फर ने मुस्कुरा कर कहा तो बाकी सब हंसने लगे जबकि मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"किसी ने मेरी नहीं बल्कि मैंने किसी की मार ली है। मैं जानता हूं कि तुम लोगों को मेरी बात का यकीन नहीं होगा लेकिन बहुत जल्द तुम लोगों को इसका यकीन भी हो जाएगा। ख़ैर आज शाम हम सब क्लब जाएंगे।"

"ना भाई।" रंजन ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"क्लब जाने का अब मन नहीं करता। साला वहां दूसरे लड़कों को अपनी अपनी माल के साथ मस्ती करते देख कर मूड ख़राब हो जाता है और फिर बेकार में मुट्ठ मार कर अपना अनमोल पानी बहा देना पड़ता है।"

"रंजन सही कह रहा है विक्रम।" शेखर ने कहा____"मुठ मार मार के थक गए हैं हम। साला इतना बड़ा हथियार होते हुए भी ऐसी फीलिंग आती है जैसे हम मर्द नहीं नामर्द हैं। लानत है हम पर और हमारी मर्दानगी पर।"

"लानत खुद पर या खुद की मर्दानगी पर नहीं।" मैंने कहा____"बल्कि अपनी शर्म और झिझक पर भेजो। अब बस ये सोच कर फैसला करो कि बहुत मुट्ठ मार लिए लेकिन अब से मुट्ठ नहीं बल्कि किसी की चूत मारनी है।"

"आज क्या तू भांग का नशा कर के आया है भोसड़ी के?" ज़फर ने मेरे कंधे पर हल्के से मुक्का मारते हुए कहा____"जो ऐसी बड़ी बड़ी फेंके जा रहा है? अबे चूत मारना क्या इतना आसान काम है? अगर इतना ही आसान काम होता तो अब तक हम सब मुट्ठ मार कर अपना पानी न फेंक रहे होते, समझा?"

"अबे कल की बात और थी।" मैंने कहा____"आज वक़्त कुछ और हो गया है। मैं जानता हूं कि तुम लोगों को मेरी बातों पर यकीन नहीं आएगा, इसी लिए कह रहा हूं कि आज शाम हम सब क्लब चलेंगे। वहां पर आज तुम सब मेरा एक नया ही रूप देखोगे।"

"तेरा नया रूप देखने के चक्कर में हम सब कहीं पेले न जाएं।" तरुण ने कहा____"साफ़ साफ़ ये कह दे कि कुछ दिनों से तूने मुट्ठ नहीं मारी है इस लिए वहां का मस्त नज़ारा देख कर तू मुट्ठ मारना चाहता है।"

"ये तूने सही पकड़ा है तरुण।" ज़फर ने हंसते हुए कहा____"असल में ये यही करना चाहता है लेकिन भाई इसके लिए तुझे अपना नया रूप दिखाने की क्या ज़रूरत है? हम सब तो पहले भी ऐसे मुट्ठ मार लेते थे।"

मैं समझ गया था कि उन चारो को इस बारे में मैं कुछ भी नहीं समझा सकता था। इस लिए सबको क्लब में चलने का बोल कर मैं वापस घर आ गया था। संस्था के द्वारा दिया हुआ मोबाइल मेरे पास ही था और मैं अकेले में चेक कर लेता था कि संस्था की तरफ से उसमें कोई मैसेज तो नहीं आया। सारा दिन कमरे में बेड पर लेटे हुए ही गुज़र गया। मां पापा ऑफिस में ही थे। अपने कमरे में लेटा हुआ मैं हर चीज़ के बारे में सोचता रहा था। एक तरफ संस्था के बारे में, दूसरी तरफ ज़फर की प्रॉब्लम के बारे में और तीसरी तरफ इस बारे में कि आज शाम को क्लब में मैं अपने दोस्तों को किस तरह से कुछ अलग करता हुआ दिखाऊंगा

☆☆☆

शाम को मैं अपने चारो दोस्तों के साथ क्लब पहुंचा। पूरे रास्ते वो मेरा मज़ाक उड़ाते हुए आए थे और मैं जानता था कि जब तक मैं उन सबको कुछ कर के दिखा नहीं दूंगा तब तक उनमें से किसी को भी मेरी बातों का यकीन नहीं होगा। हालांकि अंदर से मैं अब भी यही सोच रहा था कि क्लब में पहुंच कर आख़िर मैं ऐसा क्या करुंगा जिसके चलते मैं अपने दोस्तों को चौंका सकूं और उन्हें अपनी बातों का यकीन दिला सकूं?

"देख भाई मैं अब भी कहता हूं कि हम में से किसी का भी मुट्ठ मारने का ज़रा सा भी मन नहीं है।" शेखर ने क्लब के पास पहुंचते ही ठिठक कर मुझसे कहा____"और हाँ क्लब के अंदर हीरो बनने की तो कोशिश भी मत करना, क्योंकि तेरे चक्कर में हम सब बेवजह ही पेले जाएंगे।"

"असल में सच बात तो ये है कि हम सबने अपने सामने मर्द बनने की कोशिश तो बहुत की है।" मैंने पलट कर कहा____"लेकिन बाकी लोगों के सामने हमारी फट के हाथ में आ जाती रही है। हम अपने सामने ये ज़रूर सोचते थे कि ऐसा क्यों होता था और अगली बार ऐसा नहीं होगा लेकिन अगली बारी आने पर हम मर्द बन कर लोगों का सामना ही नहीं करते थे। यही वजह है कि हमारे अंदर की मर्दानगी ही ख़त्म हो गई है। ज़रा अपनी अपनी पर्सनालिटी को देखो। हमारी उम्र के लड़कों से कहीं बेहतर हमारी पर्सनालिटी है, इसके बावजूद हम उन लड़कों का भी सामना नहीं कर पाते जो हमसे भी गए गुज़रे हैं। अकेले में खुद पर कोसने से बेहतर है कि हम डंट कर प्रॉब्लम का सामना करें, फिर भले ही उसमें हमारी पेलाई ही क्यों न हो जाए। कम से कम दिल को ये मलाल तो नहीं होगा कि हम बुजदिल और कायर ही बने रहे।"

मेरी लम्बी चौड़ी बातें सुन कर सब के सब खामोश हो गए थे। कदाचित वो अच्छी तरह समझ गए थे कि ये वो बातें थी जो सच थीं। मैं चारो के चेहरों की तरफ ही बारी बारी से देखता जा रहा था।

"जब तक हम कोशिश नहीं करेंगे।" उन्हें खामोश देख मैंने कहा____"तब तक हमारे अंदर का डर जाएगा ही नहीं। सारी ज़िन्दगी इसी डर और इसी शर्मीले स्वभाव को लिए बैठे रहेंगे हम। कल को हमारी शादियां होंगी तो हमारी बीवियां हमारी मर्द बन जाएँगी और हम उनकी बीवियां। क्या यही चाहते हो तुम सब?"

"हर्गिज़ नहीं भाई।" तरुण ने कहा____"उपर वाले ने हमें मर्द बना कर भेजा है तो हम मर्द ही बने रहना चाहते हैं।"
"अगर मर्द ही बने रहना है।" मैंने कहा____"तो चलो अंदर और मर्द बन कर हर तरह की सिचुएशन का डंट कर सामना करो। ये मत सोचो कि पेले जाएंगे, बल्कि ये सोच रखो कि अगर कोई हमें पलेगा तो हम भी पीछे नहीं हटेंगे।"

"चलो ये सब तो ठीक है।" रंजन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन अगर सच में कोई लफड़ा हो गया और उस लफड़े के बारे में हमारे पेरेंट्स को पता चल गया तो क्या होगा? हम कैसे अपने अपने पेरेंट्स का सामना कर सकेंगे? जब उन्हें पता चलेगा कि हम किस तरह के लफड़े में फंस कर झगड़ा किए हैं तो क्या कहेंगे वो?"

"सिम्पल सी बात है भाई कि अगर इस लफड़े की वजह से हमारे पेरेंट्स हम पर गुस्सा करेंगे तो हम सब सह लेंगे।" मैंने कंधे उचका कर कहा____"इतना तो अब हमारे पेरेंट्स भी समझते हैं कि उनके बच्चे बड़े हो गए हैं और इस उम्र में अक्सर ऐसी बातें या ऐसे लफड़े हो जाते हैं। हालांकि मेरा ख़याल तो ये भी है कि वो हमारे द्वारा किए गए लफड़े को जान कर कहीं न कहीं खुश ही होंगे। ऐसा इस लिए क्योंकि वो भी जानते हैं कि उनके बच्चों का स्वभाव अब तक कैसा था। खुद सोचो कि कौन माता पिता ये नहीं चाहते कि उनके बच्चे किसी से कम हों या भीगी बिल्ली बन कर जीवन गुज़ार दें?"

"भाई बातें तो तेरी धाँसू हैं।" शेखर ने कहा____"लेकिन मैं ये सोच कर हैरान हूं कि आज से पहले तेरे मुख से ऐसे प्रवचन क्यों नहीं निकले थे? संभव है कि तेरे इन प्रवचनों से हम पहले ही मर्द बन जाते।"

"क्या तू मेरी टांग खींच रहा है?" मैंने शेखर को घूरते हुए कहा।
"टांग की माँ की चूत।" उसने तपाक से कहा____"सच तो ये है कि तेरी बातों से मेरे अंदर एक गर्मी सी भर गई है और अब मेरा मन कर रहा है कि मैं दो चार लौंडों का पिछवाड़ा मार मार लाल कर दूं।"

"वैसे ये तो तूने सच कहा विक्रम कि हमने कभी भी सिचुएशन का सामना करने की कोशिश नहीं की।" ज़फर ने कहा____"अपने सामने हमने बस डींगें ही मारी हैं और जब सिचुएशन का सामना करने की बारी आती थी तो हमारी गांड फट जाती थी। शर्मीला नेचर ही नहीं बल्कि शायद इस डर की वजह से भी ऐसा हो जाता था कि हमारे पेरेंट्स को अगर हमारे किसी लफड़े के बारे में पता चला तो वो हमारे बारे में क्या सोचेंगे और जाने क्या कहेंगे। हक़ीक़त तो ये हैं कि आज के युग में चाहे लड़का हो या लड़की, चाहे औरत हो या मर्द, हर कोई अपने लिए अपनी मर्ज़ी से जाने क्या क्या करते रहते हैं। बातें चाहे जैसी भी हों, चार दिन के बाद हर कोई उन्हें भुला ही देता है। ख़ैर मैंने तो सोच लिया है विक्रम कि अब चाहे जो हो जाए लेकिन मैं सिचुएशन का सामना करुंगा। अगर किसी लफड़े के बारे में मेरे पेरेंट्स को पता चलता है और वो मुझ पर गुस्सा होते हैं तो हो जाएं। मैं अब किसी भी हाल में अपने इस वाहियात नेचर को बदलना चाहता है।"

ज़फर ने जिस आत्मविश्वास के साथ कहा था उससे मुझे महसूस हो गया था कि इस बार वो पीछे नहीं हटेगा। मैंने बाकियों की तरफ देखा तो उन लोगों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए। मेरे चारो दोस्त अब हर तरह की सिचुएशन का सामना करने के लिए तैयार थे। ये देख कर एक अलग ही एहसास हो रहा था मुझे और अंदर से ख़ुशी भी महसूस हो रही थी। मैंने उन्हें समझाया कि क्लब के अंदर चाहे जैसी भी सिचुएशन आ जाए लेकिन उससे पीछे मत हटना। सब मेरी बात सुन कर एकदम तैयार थे।

क्लब के अंदर आए तो देखा हमेशा की तरह माहौल बना हुआ था और लड़के लड़कियां मस्ती में लगे हुए थे। मेरे लिए तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन कहीं न कहीं मुझे भी ख़याल आ जाता था कि अगर मेरे सभी दोस्त आज फिर पीछे हट गए तो सच में मैं अकेला पेला जाऊंगा। ख़ैर हम सब पहले बार काउंटर पर गए और एक एक बियर का आर्डर दिया। कुछ देर बाद जब बियर का हल्का शुरूर आया तो मैंने दोस्तों को इशारा किया कि चलो अब।

मैं डांस फ्लोर की तरफ बढ़ा तो मेरे पीछे पीछे मेरे दोस्त भी चल पड़े। इस क्लब में ज़्यादातर टीन एजर ही आते थे। जिनके पास अपनी गर्लफ्रेंड होती थीं वो उनके साथ मस्ती करते थे और बाकी जो अकेले होते थे वो फुल मस्ती के लिए क्लब के अन्दरूनी हिस्से में चले जाते थे। उसके लिए अलग से चार्ज लगता था। आज से पहले हम लोगों के ज़हन में भी ये ख़याल आया था कि अंदर जा कर किसी लड़की के साथ फुल मज़ा करें लेकिन ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई थी कभी।

क्लब में ज़्यादातर लड़के लड़कियां हम लोगों को जानते थे और कभी न कभी उन लोगों ने हम पर ताने भी मारे थे जिसकी वजह से लड़कियां हम पर हंसने लगतीं थी। उस वक़्त खून तो खौलता था लेकिन इतने सारे लड़के लड़कियों को देख कर उनसे भिड़ जाने की हिम्मत नहीं कर सके थे। ख़ैर आज बात काफी अलग थी। आज मेरे अंदर डर घबराहट या झिझक जैसी कोई बात नहीं थी। मैं बेधड़क डांस फ्लोर की तरफ बढ़ता चला गया। मैंने पलट कर ये देखने की कोशिश नहीं की थी कि मेरे बाकी दोस्त मेरे पीछे डांस फ्लोर की तरफ आए थे कि नहीं।

"अरे! ये वही है ना?" डांस फ्लोर पर अपने बॉयफ्रेंड से चिपकी लड़की ने मुझे देखने के बाद उससे मुस्कुराते हुए पूछा____"जिसे तुम फट्टू फट्टू कहते थे और ये बेचारा चेहरा लटका कर चला जाता था?"

"हां डार्लिंग ये वही फट्टू है।" लड़के ने मेरी तरफ देखते हुए बड़ी जानदार मुस्कान के साथ कहा____"लेकिन आज काफी दिनों बाद आया है यहां। लगता है इसकी गांड की खुजली कुछ दिनों के लिए ठीक हो गई थी, हाहाहा।"

लड़के ने ये कहा तो लड़की उसके साथ ही खिलखिला कर हंसने लगी, जबकि इधर मेरी झांठें सुलग ग‌ईं। मेरा इरादा उसकी तरफ जाने का था भी नहीं लेकिन जब उन दोनों की बातें मेरे कानों में पड़ीं तो मैं उनकी तरफ ही पलट गया। मैंने पहले तो लड़के को आग उगलती आँखों से देखा और फिर उसकी गर्लफ्रेंड को बड़ी ही अश्लील नज़रों से ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला____"मैं तो यहाँ तेरी इस छमियां की गांड मारने आया हूं बेटा। हालांकि तू जितनी ख़ुशी से इसकी गांड चाटता है उतनी सेक्सी इसकी गांड है नहीं।"

"क्या बोला रे मादरचोद।" लड़के की गांड सुलग गई तो वो मेरी तरफ झपटा। मैं तो जानता ही था कि मेरे द्वारा ऐसा बोलने पर यही होना था इस लिए जैसे ही वो झपटा तो मैंने आव देखा न ताव सीधा घुमा कर एक मुक्का उसकी नाक में रसीद कर दिया। मुक्का लगते ही उसके हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और वो अपनी नाक पकड़ कर वहीं पर दोहरा हो गया। पलक झपकते ही डांस फ्लोर का माहौल जैसे अपनी जगह पर रुक गया, सिर्फ म्यूजिक की आवाज़ ही सुनाई दे रही थी। कुछ देर तक तो किसी को कुछ समझ न आया लेकिन जैसे ही लड़की उसकी हालत देख कर ज़ोर से चिल्लाई तो सब के सब जैसे नींद से जाग ग‌ए।

उस लड़के की नाक टूट गई थी और भल्ल भल्ल कर के खून बह रहा था। मैंने तो ये सोच कर उस पर मुक्का जड़ दिया था कि अगर उसे पहले मौका मिल गया तो संभव है कि मुझे मौका न मिले। इस चक्कर में कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से मार दिया था उसे। अब उसकी हालत देख कर खुद मेरी भी गांड फट पड़ी थी। हालांकि मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और पलट कर पीछे देखा तो बुरी तरह उछल पड़ा। मेरे दोस्तों का कहीं पता ही नहीं था। ये देख कर मेरी और भी गांड फट गई। ज़हन में एक ही बात गूँजी कि लौंड़े लग गए बेटा। साला जिनकी वजह से ऐसा कुछ करने की इतनी बड़ी हिम्मत की थी वही साथ छोड़ गए। मैं समझ गया कि अब गांड तोड़ाई पक्की है इस लिए इससे पहले कि मुसीबत मेरे ऊपर टूट पड़ती मैं फ़ौरन ही पलट कर दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ा।

"रूक जाओ भोसड़ी वालो।" बाहर आते ही मेरी नज़र जब अपने दोस्तों को अपनी अपनी मोटर साइकिल स्टार्ट करते देखा तो मैं चिल्लाया था____"अगर आज यहाँ से कायरों की तरह भागे तो सोच लेना कि मेरा तुम से कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा।"

मेरी आवाज़ सुन कर सब के सब रुक गए और पलट कर मेरी तरफ देखा। सब के चेहरों पर बारह बजे हुए थे। मुझे उन पर ये सोच कर गुस्सा आया कि ये साले कैसे दोस्त थे मेरे? इसके पहले तो कितनी बड़ी बड़ी बातें कर के फैसला लिया था कि अब चाहे जो हो जाए लेकिन वो पीछे नहीं हटेंगे लेकिन अब ये किसी कुत्ते की तरह दुम दबा कर भागे जा रहे थे।

"ये तूने ठीक नहीं किया विक्रम।" तरुण ने मोटर साइकिल पर बैठे हुए ही कहा____"तुझे उस लड़के को मारने की क्या ज़रूरत थी? तुझे अंदाज़ा भी नहीं है कि क्लब के अंदर इस तरह किसी को मार देने से कितनी बड़ी मुसीबत हो जायेगी? अरे! पुलिस केस हो जाएगा भाई। क्या यही दिखाने ले आया था तू हमें?"

"तो क्या तू इतनी सी बात से डर कर भाग रहा है साले?" मैंने गुस्से से कहा____"अरे! पुलिस केस हो भी गया तो क्या हो जाएगा? क्या हम इतने कमज़ोर खानदान से हैं कि पुलिस केस हो जाने से हम पर कोई ऐसी मुसीबत आ जाएगी जिसकी वजह से हमारा सब कुछ बर्बाद हो जाएगा? तू ये क्यों भूल रहा है कि हम भी अमीर खानदान से हैं और हमारे पेरेंट्स की पहुंच भी ऊपर तक है। क्या तुझे लगता है कि इतने से हम पर कोई फ़र्क पड़ जाएगा? मर्द बनना है तो जीवन में बहुत कुछ करना पड़ेगा, समझे?"

मेरी बातें सुन कर सब के सब चुप हो ग‌ए। जबकि मैंने आगे कहा____"डर और घबराहट को अपने अंदर से निकालो भाई लोग और हर तरह की सिचुएशन का सामना करो। इस तरह कायरों की तरह यहाँ से भाग जाने से मर्द नहीं बन जाओगे। जब तक तुम डरोगे तब तक कुछ नहीं कर पाओगे।"

अभी मैं ये सब बोल ही रहा था कि तभी पीछे से कुछ लोगों का शोर सुनाई दिया मुझे। मैंने पलट कर देखा तो क्लब के कुछ आदमी काफी सारे लड़के लड़कियों के साथ अंदर से बाहर आ गए थे। हम पर नज़र पड़ते ही वो सब हमारी तरफ आने लगे। एक पल के लिए मेरे अंदर फिर से घबराहट जन्मी लेकिन मैंने भी सोच लिया कि अब जो होगा देखा जाएगा।

"यही है।" उस लड़की ने ऊंची आवाज़ में मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा____"इसी ने मेरे मोहित को मारा था।"
"क्यों बे?" क्लब के एक हट्टे कट्टे आदमी ने मेरी तरफ बढ़ कर कहा____"क्यों मारा तूने उसे?"

"देखो मिस्टर तमीज़ से बात करो मुझसे।" मैंने पूरा आत्मविश्वास दिखाते हुए कहा_____"तुम्हें शायद पता नहीं है कि मैं किसकी औलाद हूं।"
"मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तू किसकी औलाद है?" उस आदमी ने कहा____"मैं जो पूछ रहा हूं उसका जवाब दे कि तूने इस लड़के को क्यों मारा?"

"तू खुद इस लड़के से पूछ कि मैंने इसे क्यों मारा?" मैंने भी तैश में आ कर उस आदमी से तू तड़ाक में बात करते कहा____"या फिर इस लड़की से पूछ कि मैंने इसके बॉयफ्रेंड को क्यों मारा?"

"साले मुझसे जुबान लड़ाता है?" उस आदमी ने झपट कर मेरा गिरेहबान पकड़ लिया और गुर्राते हुए कहा____"जो पूछा है उसका जवाब दे वरना तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा, आअह्हह्ह्।"

उस आदमी की चीख निकल गई और वो मेरा गिरेहबान छोड़ कर धड़ाम से ज़मीन पर जा गिरा था। वातावरण में एकदम से ख़ामोशी छा गई थी। इधर मैं हैरान कि उस आदमी को अचानक से क्या हुआ? जब मैंने गौर से उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसके दाहिने हाथ की कलाई पर धंसे चाकू पर पड़ी। चाकू उसकी कलाई के आर पार हो गया था और वहां से खून बहने लगा था। ये देख कर मैं तो बुरी तरह घबरा ही गया था लेकिन वहां खड़े लोग भी सन्नाटे में आ गए थे।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 19
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अब तक...

उस आदमी की चीख निकल गई और वो मेरा गिरेहबान छोड़ कर धड़ाम से ज़मीन पर जा गिरा था। वातावरण में एकदम से ख़ामोशी छा गई थी। इधर मैं हैरान कि उस आदमी को अचानक से क्या हुआ? जब मैंने गौर से उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसके दाहिने हाथ की कलाई पर धंसे चाकू पर पड़ी। चाकू उसकी कलाई के आर पार हो गया था और वहां से खून बहने लगा था। ये देख कर मैं तो बुरी तरह घबरा ही गया था लेकिन वहां खड़े लोग भी सन्नाटे में आ गए थे।

अब आगे...



फ़िज़ा में एकदम से मौत जैसा सन्नाटा छा गया था। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से ये क्या हो गया? फिर जैसे लोगों का ज़हन सक्रिय हुआ तो सब इधर उधर देखने लगे। सबकी घूमती हुई निगाहें एक जगह जा कर रुक ग‌ईं। मुख्य सड़क के पास एक कार खड़ी थी और कार के ड्राइविंग डोर के पास शानदार कोट पहने एक आदमी खड़ा था। कार के दूसरी तरफ एक और आदमी था और पीछे वाले दरवाज़े के पास उसी के जैसे वेश भूषा में एक दूसरा आदमी खड़ा था।

उस आदमी पर नज़र पड़ते ही मेरी और मेरे दोस्तों की हवा निकल गई। मैंने और मेरे सभी दोस्तों ने बारी बारी से एक दूसरे की तरफ देखा। चेहरों पर पसीना उभर आया था। कोई नार्मल सिचुएशन होती तो हमारी ऐसी हालत नहीं होती लेकिन ये सिचुएशन नार्मल नहीं थी। हम सब तो ये सोच कर घबराहट से भर गए थे कि क्या होगा उस वक़्त जब उस आदमी को हमारी इस करतूत की असलियत का पता चलेगा? ख़ैर वो आदमी हमारी तरफ बढ़ा तो उसके पीछे वो दोनों आदमी भी चल पड़े। उन दोनों की कमर के पास लटक रहे हॉलेस्टर में मौजूद रिवाल्वर के दस्ते साफ़ दिख रहे थे।

"ये चाकू मैं तेरे मुँह के आर पार भी कर सकता था।" उस आदमी ने पास आ कर उस आदमी से कहा जिसे चाकू लगा था और इस वक़्त वो उठ कर ज़मीन पर ही बैठा दर्द से कराह रहा था____"क्योंकि तेरी गन्दी ज़ुबान ने एक ऐसे लड़के से बत्तमीज़ी से बात की जो मेरे दोस्त का चश्मो चिराग़ है। ख़ैर अब मैं तुझे दिखाता हूं कि तुझे किसी बात से फ़र्क पड़ता है की नहीं।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए सर।" ज़मीन पर बैठे कराह रहे उस आदमी ने लडखडाती आवाज़ में कहा____"मुझे पता ही नहीं था कि ये लड़के आपके पहचान वाले हैं।"

"ये सब मेरे जिगर के टुकड़े हैं।" उस आदमी ने कहा जो वास्तव में कोई और नहीं बल्कि रंजन के पापा थे, बोले____"और तूने सबके सामने इनसे बत्तमीज़ी में बात की है और इतना ही नहीं तूने अपनी मर्दानगी दिखाते हुए मेरे दोस्त के चश्मो चिराग़ का गिरेहबान भी पकड़ा। इसकी सज़ा तो तुझे मिलेगी।"

"न..नहीं नहीं सर।" वो आदमी जो की क्लब का बाउंसर था बुरी तरह गिड़गिड़ाने लगा____"प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए। आइंदा कभी भी ऐसी ग़लती नहीं करुंगा।"

"क्या हो रहा है यहाँ?" तभी पीछे से भीड़ को चीरता हुआ एक और आदमी आया। जैसे ही उसकी नज़र रंजन के पापा पर पड़ी तो वो बुरी तरह चौंक गया। फिर बड़े ही अदब से उनसे बोला_____"अरे! सर आप यहाँ कैसे और ये सब क्या है?"

"तुम्हारे इस कुत्ते ने मेरे बच्चे का गिरेहबान पकड़ा और उसके साथ बत्तमीज़ी से बात की है।" संजय अंकल कहा____"इस लिए अब इसे इसके किए की सज़ा इसे मिलेगी।"
"मैं मानता हूं सर कि इसने बहुत बड़ी ग़लती की है।" उस आदमी ने कहा जो क्लब का मैनेजर था____"लेकिन यकीनन इसे ये पता नहीं था कि इसने जिसके साथ ऐसी बत्तमीज़ी से बात की है वो आपके घर के हैं।"

"बात सिर्फ ये नहीं है कि ये बच्चे हमारे घर के हैं।" संजय अंकल ने कहा____"बात ये भी है कि तुम्हारे इस कुत्ते का लहजा सबके लिए ऐसा ही होगा। ऐसे कुत्ते को क्लब में क्यों रखा हुआ है तुमने जिसे किसी से बात करने का मैनर ही नहीं है?"

क्लब के मैनेजर ने संजय अंकल को बहुत समझाया लेकिन वो न माने। यहाँ तक कि वो बाउंसर भी अपने किये की माफियां मांगता रहा लेकिन संजय अंकल के इशारे पर उनके साथ आए उन दोनों आदमियों ने उस बाउंसर को उठाया और ले जा कर कार की डिग्गी में डाल कर बंद कर दिया।

इधर संजय अंकल उस लड़के के पास गए जिसे मैंने मारा था। वो अभी भी सहमा सा खड़ा हुआ था। उसकी गर्लफ्रेंड भी डरी सहमी उसके पास ही खड़ी थी।

"मेरा नाम संजय भाठिया है।" मोहित की आँखों में झांकते हुए संजय अंकल ने कड़क लहजे में कहा____"जा कर अपने बाप को बता देना कि जिसने तुम्हारा ये हाल किया है वो लड़का मुझसे ताल्लुक रखता है।" कहने के साथ ही अंकल ने उस लड़की की तरफ देखा तो वो डर के मारे और भी सहम गई।

"मैं अच्छी तरह जानता हूं कि यहाँ पर जो कुछ भी हुआ है।" संजय अंकल ने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"उसकी शुरुआत मेरे बच्चे ने नहीं की थी। अपने बच्चों की रग रग से वाक़िफ़ हूं मैं, इस लिए मेरी सलाह है कि इस सबको बुरा ख़्वाब समझ कर ज़हन से निकाल देना। मैं नहीं चाहता कि किसी के घर की इज्ज़त मेरे गुस्से का शिकार हो जाए।"

संजय अंकल की मौजूदगी ने जैसे जादू सा कर दिया था। वहां किसी में भी हिम्मत न हुई थी कि उनसे कुछ बोल सके। ख़ैर उसके बाद अंकल चले गए और हम लोग भी अपनी अपनी मोटर साइकिल स्टार्ट कर के घर चल पड़े। हम सबके ज़हन में एक ही बात चल रही थी कि संजय अंकल ने इस सबके बारे में हम में से किसी से भी कोई सवाल क्यों नहीं किया था? क्या अपने सामने वो हम सबकी क्लास लेने वाले थे? यही सब सोचते हुए हम अंदर ही अंदर घबरा रहे थे।

इस हादसे को गुज़रे हुए दो दिन गुज़र गए थे लेकिन अभी तक संजय अंकल ने हम में से किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं की थी। हम लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है? रंजन से पूछते तो वो यही कहता कि उससे भी उसके पापा ने इस बारे में कुछ नहीं कहा बल्कि उससे उन्होंने जब भी कोई बात की तो उनका लहजा नार्मल ही था। ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही न हो। ख़ैर हमारे लिए तो ये अच्छा ही था।

जब हमें पूरी तरह लगने लगा कि संजय अंकल उस बारे में हमसे कुछ नहीं कहने वाले तो हम भी नार्मल हो गए और पहले की तरह सहज हो कर घूमने फिरने लगे। इस बीच मैं बराबर संस्था के द्वारा दिए गए मोबाइल को चेक करता रहा था लेकिन अभी तक कोई मैसेज नहीं आया था उसमें। किसी औरत के साथ सेक्स किए हुए मुझे काफी दिन हो गए थे इस लिए अब मुझे लगने लगा था कि कितना जल्दी मुझे कोई खूबसूरत लड़की या औरत भोगने को मिल जाए और ऊपर वाले ने जैसे मेरी सुन ली थी। उसी रात संस्था वाले मोबाइल पर मैसेज आया। मैसेज देख कर मैं बड़ा खुश हुआ।

रात में सबके सो जाने के बाद मैं खिड़की के रास्ते चुपके से वही कपड़े पहन कर निकल गया। रास्ते में एक जगह छुपाई गई मोटर साइकिल मिली तो मैं उसमें बैठ कर आगे बढ़ चला। क़रीब पंद्रह मिनट बाद मैं दिए गए एड्रेस पर पहुंच गया।

वो जगह शहर के अंदर ही थी लेकिन मुख्य सड़क से हट कर थी। ज़्यादा अँधेरा नहीं था। मोटर साइकिल की हेडलाइट में दूर मुझे एक ब्लू कलर की कार का पिछला हिस्सा दिख रहा था। मैंने मोटर साइकिल को अँधेरे में ही एक जगह ले जा कर छुपा कर खड़ी कर दिया। आस पास का बारीकी से मुआयना करने के बाद मैं उस तरफ बढ़ चला जिस जगह कार का पिछला हिस्सा दिख रहा था। मेरे अंदर थोड़ी घबराहट तो थी क्योंकि ये काम बहुत ही रिश्की था और मैं अच्छी तरह जानता था कि अगर किसी के द्वारा पकड़ा गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। मेरे ज़हन में ऐसी सिचुएशन के प्रति अब एक ही विचार चलने लगा था कि इस बार चीफ़ से इस बारे में ज़रूर बात करुंगा।

कार के पास पंहुचा तो कोई नज़र न आया मुझे। हर तरफ ख़ामोशी ही कायम थी। मैंने अभी इधर उधर देखना शुरू ही किया था कि एक सुरीली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं आवाज़ दिशा में घूमा तो नीम अँधेरे में मुझे कुछ दूरी पर एक औरत का साया नज़र आया। मैं सावधानी से उसी की तरफ बढ़ चला।

"मेरे पीछे आओ।" मैं उसके पास पंहुचा ही था कि उसने बिना किसी भूमिका के मुझसे कहा और पलट कर एक तरफ बढ़ चली। मैं भी बिना कुछ बोले उसके पीछे पीछे चल पड़ा।

नीम अँधेरे में उस जगह को ठीक से पहचानना मुश्किल था लेकिन इतना ज़रूर समझ आ रहा था कि ये कोई ऐसी जगह है जहां पर लोगों का आना जाना बहुत कम ही होता होगा। ख़ैर उस औरत के पीछे चलते हुए मैं जल्दी ही एक दरवाज़े से अंदर दाखिल हो गया। अंदर दाखिल हुआ तो उस औरत ने मुझे दरवाज़ा अंदर से बंद कर देने को कहा। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उसकी तरफ पलट कर फिर से उसके पीछे चलने लगा। अंदर भी नीम अँधेरा ही था। उस औरत ने अपने मोबाइल की टोर्च जला कर रौशनी की और आगे बढ़ने लगी। जल्द ही मैं एक हॉल में आ गया। मोबाइल की रौशनी जब उस हॉल के आस पास पड़ी तो मुझे कुछ जंग लगी हुई मशीनें नज़र आईं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि ये जगह शायद कोई कारखाना है जो कि काफी समय से बंद पड़ा हुआ है। मशीनों की हालत देख कर तो यही लगता था।

उस औरत ने अपने मोबाइल को एक जगह रख दिया। टोर्च वैसी ही जल रही थी। टोर्च रखने के बाद जब वो एक तरफ बढ़ी तो मेरी नज़र एक बड़े से बैग पर पड़ी। उस औरत ने उस बैग को खोला और उसमें से एक ऐसा कपड़ा निकाला जो की गद्देदार था। मैं समझ गया कि वो सारा इंतजाम कर के आई है। ज़ाहिर है उसे इस जगह के बारे में पहले से पता था और इसी लिए वो अपना इंतजाम खुद ही कर के आई थी।

उस गद्देदार कपड़े को हॉल के बीचो बीच बिछा कर वो मेरी तरफ पलटी और फिर बोली____"माफ़ करना डियर, हमें यहीं पर सब कुछ करना पड़ेगा। उम्मीद है तुम्हें इससे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी और तुम मुझे बेहतर सर्विस दे कर खुश कर दोगे।"

उसकी बात सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उसकी तरफ बढ़ा। अपने जूते उतार कर मैं उसके क़रीब ही बैठ गया। मोबाइल की रौशनी में मुझे उस औरत का चेहरा और उसका जिस्म साफ़ दिख रहा था। उसकी उम्र यही कोई पैतीस चालीस के क़रीब रही होगी। गोरा चेहरा और भरे भरे सुर्ख गाल। कुल मिला कर गज़ब की माल लग रही थी। जिस्म भरा भरा तो था लेकिन उसे मोटी नहीं कह सकते थे। वो मुझे ही देख रही थी और मेरी ये सोच कर धड़कनें बढ़ गईं थी कि अब मुझे उसको सेक्स की सर्विस दे कर खुश करना है।

क़रीब एक घंटे से ऊपर का ही समय लग गया था मुझे उस औरत को सर्विस देते हुए। इस एक घंटे में मैंने उस औरत को पूरी तरह मस्त और पस्त कर दिया था। आख़िर में वो अपनी आँखें बंद किए गहरी गहरी साँसें लेती हुई लस्त पस्त पड़ी नज़र आ रही थी। हाल तो मेरा भी बेहाल था क्योंकि मेरे जिस्म पर कपड़े थे जो मुझे इस सबके बाद और भी ज़्यादा गर्मी से चूर किए हुए थे। हालांकि ठण्ड का मौसम था लेकिन इस वक़्त गर्मी चरम पर थी। ख़ैर कुछ देर रेस्ट लेने के बाद मैं उठ कर खड़ा हुआ तो उस औरत ने मुझे थैंक्स कहते हुए कहा कि उसकी उम्मीद से कहीं ज़्यादा मैंने उसे खुश किया है। उसे मेरा मोटा तगड़ा हथियार बेहद पसंद आया था।

मैं जिस तरह आया था उसी तरह वापस घर आ गया था। कमरे में आ कर मैंने सबसे पहले वो कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गया। मोटर साइकिल मैंने उसी जगह पर छोड़ दी थी जहां पर वो मुझे मिली थी। आज उस औरत को भोगने में पहले वाली से भी ज़्यादा मज़ा आया था मुझे।

☆☆☆

एक दो दिन ऐसे ही गुज़र गए। ज़फर अभी भी अपने निक़ाह की बात से परेशान था। मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि उसकी परेशानी ख़त्म करूं लेकिन समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं? एक दिन हम सभी दोस्तों ने फिर से उसी क्लब में जाने का प्रोग्राम बनाया। मोहित नाम के लड़के के साथ जो हादसा हुआ था उससे हम पर किसी भी तरह की कोई बात नहीं आई थी। शायद संजय अंकल का नाम ही काफी था सब कुछ शांत रखने के लिए।

शाम को अपने टाइम पर हम सभी दोस्त क्लब पहुंचे तो वहां मौजूद लोग हमें पलट पलट कर देखने लगे। शायद उस हादसे के बाद हम उन सबकी नज़रों में कुछ ख़ास ही चढ़ गए थे। ख़ैर हम लोग बार काउंटर की तरफ बढ़ ही रहे थे कि तभी हमें वहां का मैनेजर हमारी तरफ ही आता हुआ दिखा। हम पर नज़र पड़ते ही वो तेज़ी से हमारे पास आया और बड़े अदब से हमसे कहने लगा कि हमें जो कुछ भी चाहिए वो हमें फ़ौरन ही दिला देगा।

मैनेजर की बातें सुन कर हम सब अंदर ही अंदर खुश हो गए। उसके बाद हम सब बियर पीने लगे। मैनेजर हमारे पास ही खड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे ये उसकी ड्यूटी थी। मैंने अपने दोस्तों को एक नज़र देखा और फिर मैनेजर को एक तरफ ले जा कर उससे बोला कि क्लब में जो सबसे बढ़िया लड़की हो उससे मज़ा करने के लिए वो ब्यावस्था करे। मैनेजर हल्के से मुस्कुराया और फिर बोला कि हो जाएगा और इतना कह कर वो एक तरफ चला गया।

मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो रहा था कि ये तो कमाल ही हो गया। मतलब जिस चीज़ के लिए मैं सोच सोच कर परेशान हो रहा था वो बड़ी आसानी से होने जा रही थी। मैंने मन ही मन संजय अंकल को शुक्रिया कहा और दोस्तों के पास आ गया। दोस्तों से मैंने कहा कि मैं ज़फर की परेशानी दूर करने के लिए उसे अपने साथ ले जा रहा हूं, इस लिए वो लोग या तो हमारे लौटने का इंतज़ार करें या फिर घर लौट जाएं। मेरी बातें सुन कर सब के सब मुझे घूरने लगे थे। ज़फर खुद भी मुझे ऐसे देखने लगा था जैसे उसे कुछ समझ न आया हो।

मैंने आख़िर बाकियों को समझा बुझा कर घर भेज दिया और ज़फर को सब कुछ समझाने लगा। ज़फर को जब ये पता चला कि मैं उसकी परेशानी दूर करने के लिए उसे कहां और किस लिए ले जाने वाला हूं तो वो बुरी तरह हैरान रह गया।

"अबे तू सोच भी कैसे सकता है कि मुझसे ये हो पाएगा?" ज़फर ने मुझसे घूरते हुए कहा____"अगर ये हमारे लिए इतना ही आसान होता तो क्या अब तक हम सब मुट्ठ मार रहे होते?"

"बकवास मत कर तू और जो कह रहा हूं वो कर, समझा?" मैंने थोड़े शख़्त लहजे में कहा____"साला कहता है कि कैसे हो पाएगा, अबे लौड़ा तो तेरा भी मेरे वाले से कम नहीं है।"

"बात उसकी नहीं है भाई।" ज़फर माथे का पसीना पोंछते हुए बोला____"बल्कि बात है हिम्मत की। तू अच्छी तरह जानता है कि हम लोग इस मामले में कितना शरमाते हैं।"

"शरम वरम को निकाल कर फेंक दे भाई।" मैंने कहा____"अगर नाज़िया भाभी के साथ सुहागरात मनानी है तो अपने अंदर से अपनी ये परेशानी दूर करनी ही होगी वरना सोच लेना कि क्या होगा। मैं अपने तज़ुर्बे की बात बता रहा हूं तुझे कि जब तू एक बार किसी लड़की को तबीयत से पेल लेगा तो तेरे अंदर से सारी शर्म और झिझक निकल जाएगी।"

"भोसड़ी के।" ज़फर ने गाली देते हुए कहा____"तुझे कब इसका तज़ुर्बा हो गया बे?"
"बस हो गया मुझे।" मैंने कहा____"अब ये मत पूंछ कि कब और कैसे हो गया? अगर तुझे मेरी बात का यकीन नहीं होता तो चल मेरे साथ। मैं तेरे सामने उस लड़की को पूरा नंगा करके पेलूंगा और तू खुद अपनी आँखों से देखना कि मेरे अंदर लेश मात्र की भी शर्म और झिझक है कि नहीं।"

ज़फर मेरी बातें सुन कर हैरत से मुझे देखने लगा था। अभी वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी मैनेजर मेरे पास आ गया और उसने मुझसे कहा कि इंतजाम हो गया है। मैनेजर की बात सुन कर मैं उसके साथ चलने को तैयार हो गया। मैं ज़फर का हाथ पकड़ कर खींचते हुए मैनेजर के पीछे चलने लगा था। ज़फर को समझ नहीं आ रहा था कि ये अचानक से क्या होने जा रहा है?

कुछ ही देर में मैनेजर हमें अंदर की तरफ बने एक कमरे के पास पहुंचा दिया और कहा कि कमरे के अंदर लड़की हमारा इंतज़ार कर रही है। मैनेजर की बात सुन कर जहां मैंने ख़ामोशी से सिर हिला दिया वहीं ज़फर आँखें फाड़ कर मेरी तरफ देखने लगा था। शायद अब उसे एहसास हो गया था कि मैं यूं ही नहीं फेंक रहा था।

मैनेजर के जाने के बाद मैंने कमरे के दरवाज़े को अंदर की तरफ धकेला तो वो खुल गया। इधर ज़फर धीमी आवाज़ में मुझसे कहने लगा कि भाई मुझे अंदर मत ले जा क्योंकि उसे इस बारे में सोच कर ही घबराहट होने लगी है। मैं ज़फर की हालत को समझ सकता था इस लिए उसे हौंसला दिया और ज़बरदस्ती उसे कमरे के अंदर खींच कर ले गया। कमरे को अंदर से बंद कर के मैं जैसे ही मुड़ा तो एक शानदार बेड पर बैठी हुई बड़ी ही खूबसूरत लड़की दिखी। हम पर नज़र पड़ते ही वो बड़ी अदा से मुस्कुराई। ज़फर उसे देखते ही बुत सा बन गया था। उसका एक हाथ अभी भी मेरे हाथ में था इस लिए मैं उसके हाथ के द्वारा ही उसके जिस्म में हो रही थरथराहट को महसूस कर रहा था।

"हैल्लो डियर।" मैंने उस लड़की की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो उस लड़की ने मुस्कुराते हुए हेलो कहा। इधर ज़फर मेरे मुँह से ऐसा सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखने लगा था। मैंने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए धीमी आवाज़ में कहा कि मर्द बन भाई और मेरे साथ साथ इस लड़की पर छा जाने को तैयार हो जा।

ज़फर की हालत बड़ी ही दयनीय जैसी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो उस कमरे से भाग खड़ा होता लेकिन मैंने मजबूती से उसका हाथ थाम रखा था। ख़ैर उस लड़की के हैलो कहते ही मैं ज़फर को लिए बेड की तरफ बढ़ा तो ज़फर अपना हाथ मुझसे छुड़ाने के लिए ज़ोर देने लगा। मैंने पलट कर उसकी तरफ गुस्से से देखा और धीमे स्वर में कहा कि साले बाहर तो उस दिन बहुत बड़ी बड़ी बातें कर रहा था तो अब क्या हुआ? मैंने उसे धमकाया कि अगर वो मेरे कहे अनुसार कोई काम नहीं किया तो मैं उसे इस लड़की के सामने बुरी तरह ज़लील करुंगा। ज़फर मेरी बात सुन कर अपना थूक गटक कर रह गया।

"क्या तुम हम दोनों को खुश कर सकती हो डियर?" मैंने पलट कर उस लड़की से पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"बेशक, मैं पूरी कोशिश करुँगी कि आप दोनों को मैं हर तरह से खुश कर दूं।"

"बहुत बढ़िया।" मैंने कहा____"वैसे मैं ये चाहता हूं कि तुम मेरे इस दोस्त को ज़्यादा खुश करने की कोशिश करो लेकिन कुछ इस तरह से कि इसके अंदर का मर्द पूरा का पूरा जाग जाए।"

"जी मैं समझ गई आपकी बात।" लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा_____"आप फिक्र न करें। मैं आपके दोस्त को ऐसे तरीके से ही खुश करुँगी जिससे हमेशा के लिए इनकी मर्दानगी जाग जाए।"

"चलो तो फिर शुरू करो।" मैंने कहा और फिर ज़फर की तरफ देखा तो वो मेरी तरफ देखते हुए बहुत ही धीमे स्वर में बोला____"भोसड़ी के मुझे यहाँ से जाने दे वरना बाहर तेरी गांड तोड़ दूंगा।"

"अगर तूने यहाँ से जाने के बारे में सोचा तो मैं तेरी गांड में इस लड़की के द्वारा डंडा डलवा दूंगा। चल अब नौटंकी मत कर और इस लड़की के साथ शुरू हो जा। वैसे तू घबरा मत, मुझे पूरा यकीन है कि इस कमरे से तू खुशी से नाचते हुए आएगा।"

"तेरे जैसा दोस्त हो तो किसी दुश्मन की ज़रूरत ही नहीं है?" ज़फर ने दाँत पीसते हुए धीमे स्वर में कहा____"साले छोड़ूंगा नहीं तुझे।"
"साला भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा।" मैंने झल्लाते हुए कहा____"देख मुझे गुस्सा मत दिला वरना सच में तेरे लिए अच्छा नहीं होगा। ज़रा सोच भाई कि अगर तू यहाँ से बिना कुछ किए ही चला जाएगा तो ये लड़की क्या सोचेगी तेरे बारे में? क्या तू चाहता है कि ये तुझे सिक्सर किंग समझे?"

मेरी बातें सुन कर ज़फर कुछ न बोल सका। खैर मैंने उसे ज़बरदस्ती बेड पर उस लड़की के बगल से बैठा दिया और खुद कमरे में ही एक तरफ रखे एक सोफे पर बैठ गया। ज़फर का चेहरा पसीने से तरबतर हो चुका था। उसकी धड़कनें बढ़ी हुईं थी। मैं समझ सकता था कि इस वक़्त उसे कैसा लग रहा होगा। आख़िर मैं भी तो उसी हालत से गुज़रा था।

"भोसड़ी के, अब क्या तू यहाँ बैठ कर मेरी इज्ज़त को लुटते हुए देखेगा?" ज़फर फ़ौरन ही बेड से उठ कर मेरे पास आ कर धीरे से बोला था____"या तो मुझे यहाँ से जाने दे या फिर तू यहाँ से चला जा। मैं तेरे सामने वो होते नहीं देख सकूंगा।"

"चल ठीक है मैं चला जाता हूं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन याद रखना कि तुझे ये जंग जीत के आना है बाहर।"
"मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मेरा ही दोस्त मुझे ऐसे हाल में डाल कर मेरी इज्ज़त का जनाज़ा उठने का इंतज़ार करेगा।" ज़फर ने धीमे स्वर में तथा हताश भाव से कहा____"तू दोस्त नहीं है साले बल्कि मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है।"

मैं ज़फर की बातें सुन कर मुस्कुराते हुए सोफे से उठा और कमरे से बाहर चला गया। बाहर आ कर मैंने दरवाज़े को बाहर से ये सोच कर बंद कर दिया कि कहीं ज़फर सच में ही न भाग आए। खैर बार काउंटर के पास आया तो मैनेजर मिल गया मुझे। उसने मुझे देखा तो लपक कर मेरे पास आया और पूछा कि मैं इतना जल्दी बाहर कैसे चला आया तो मैंने उसे बताया कि मेरा दोस्त उस लड़की के साथ है।

बड़ी ही मुश्किल से एक घंटा गुज़रा और मुझे एक तरफ से ज़फर आता हुआ दिखा। उसका चेहरा देख कर ही मैं समझ गया कि उसका काम हो गया है। इसके पहले जहां वो घबराया हुआ था वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला और होठों पर विजयी मुस्कान थी। मेरे पास आते ही वो मेरे गले से लग गया।

"चल बे दूर हट।" मैंने उसकी पीठ पर मुक्का मारते हुए कहा____"मैं तेरे जैसा नहीं हूं।"
"थैंक्स मेरे यार।" ज़फर मुझे छोड़ ही नहीं रहा था____"तेरी वजह से इस वक़्त मैं बहुत ज़्यादा ख़ुशी फील कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है जैसे मैंने कितनी बड़ी फतह हासिल कर ली है।"

"और इसके पहले तू मुझे गालियां दे रहा था?" मैंने उसे खुद से अलग करते हुए कहा तो वो मुस्कुराते हुए बोला____"वो तो मैं तुझे प्यार से गालियां दे रहा था।"
"भोसड़ी के अब तू बाते न बना, समझा?" मैंने उसकी छाती पर हल्के से मुक्का मारा____"कल इसी क्लब में तू हम सबको पार्टी देगा और अगर नहीं दिया तो सोच लेना। हम सब मिल कर तेरी गांड मारेंगे।"

"साले बड़ा कमीना हो गया है तू।" ज़फर मेरे पेट में मुक्का मारा तो मैं एकदम से झुक गया, फिर सीधा हो कर बोला____"तू भी हो जाएगा चिंता मत कर। अब चल चलते हैं यहाँ से या फिर अगर तेरी इच्छा और भी उस लड़की के साथ मज़ा करने की है तो रुक जा यहां।"

"ना भाई।" ज़फर ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज के लिए यही बहुत है।"
"अभी ये बहुत नहीं हुआ है भाई।" मैंने उससे कहा____"अभी तो तुझे और भी करना पड़ेगा। तभी पूरी तरह से तेरे अंदर की शर्म और झिझक जाएगी।"

"तू साले मुझे ये बता कि तूने कब और कहां पर इस सबका तज़ुर्बा किया है?" ज़फर मेरे साथ क्लब से बाहर की तरफ बढ़ते हुए बोला____"अब मुझे यकीन हो चुका है कि तू सही कह रहा था अपने बारे में।"

"कुछ चीज़ें किसी को बताई नहीं जाती भाई।" मैंने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"मैं भी तुझसे ये नहीं पूछूंगा कि तूने उस लड़की के साथ क्या क्या और कैसे कैसे किया या फिर उस लड़की ने तेरे साथ क्या क्या किया? हालांकि तू अगर शौक से बताना चाहे तो बता सकता है लेकिन मैं नहीं बता सकता।"

"चल कोई बात नहीं विक्रम।" ज़फर ने कहा____"मैं तो इसी बात से बेहद खुश हूं कि आज तेरी वजह से मुझे ऐसी ख़ुशी मिली है और बहुत हद तक मेरे अंदर की शर्म और घबराहट में कमी आ गई है।"

ऐसी ही बातें करते हुए हम अपनी अपनी मोटर साइकिल से अपने अपने घर चले आए थे। मैं खुश था कि ज़फर की समस्या अब दूर हो चुकी थी। हालांकि अभी भी उसके लिए ये ज़रूरी था कि वो अलग अलग लड़कियों के साथ दो तीन बार और सेक्स करे ताकि उसके अंदर की झिझक पूरी तरह से ख़त्म हो जाए।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 20
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अब तक.....

ऐसी ही बातें करते हुए हम अपनी अपनी मोटर साइकिल से अपने अपने घर चले आए थे। मैं खुश था कि ज़फर की समस्या अब दूर हो चुकी थी। हालांकि अभी भी उसके लिए ये ज़रूरी था कि वो अलग अलग लड़कियों के साथ दो तीन बार और सेक्स करे ताकि उसके अंदर की झिझक पूरी तरह से ख़त्म हो जाए

अब आगे....



जीवन में बदलाव आ चुका था और उस बदलाव में जो कुछ होता जा रहा था उससे मैं बेहद खुश रहने लगा था। मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से ज़ाहिर हो रही थी जो कि खिला खिला सा रहता था। मेरे मां पापा मुझे खुश देख कर खुद भी खुश थे। मां ने कई बार मुझसे मेरी इस ख़ुशी का कारण पूछा था लेकिन मैं भला उन्हें कैसे बताता कि मेरे चेहरे पर ये जो ख़ुशी उन्हें झलकती हुई दिख रही है वो किस सबब से है? एक दिन तो मां ने मुझसे ये भी कह दिया कि कहीं मुझे कोई ऐसी लड़की तो नहीं मिल गई जिससे मुझे प्यार हो गया है? मां की इस बात से मैं बस इंकार ही करता रहा, लेकिन उन्हें पक्का यकीन सा होने लगा था कि मुझे ये जो ख़ुशी मिली है वो किसी लड़की की वजह से ही मिली है।

दिन ऐसे ही गुज़र रहे थे। मैं ज़फर को और भी कई लड़कियों के साथ मज़ा करने के लिए उसी क्लब में ले गया था जिससे अब उसके अंदर से पूरी तरह शर्म और झिझक चली गई थी। ज़फर के बाद मैंने एक एक कर के अपने सभी दोस्तों की भी ऐसे ही शर्म और झिझक दूर करवाई। कुछ ही हफ्तों में मेरे सभी दोस्तों के चेहरे मेरी ही तरह ख़ुशी से चमकने लगे थे। वो सब इसके लिए मुझे बार बार थैंक्स कहते और ये भी पूछते कि मैंने कब कहां और किस लड़की के साथ सेक्स का तज़ुर्बा किया है लेकिन मैं उनके इस सवाल का जवाब चाह कर भी नहीं दे सकता था। इस बीच एक बार मैं संस्था में भी गया था और वहां पर चीफ़ से भी मिला था। चीफ़ से मैंने अपने मन की बात बताई कि एजेंट के रूप में मैं जिस तरीके से कस्टमर के पास सर्विस देने जाता हूं उससे किसी दिन मैं पकड़ा भी जा सकता हूं और ये भी सच ही है कि उस सूरत में मेरी जान तक का ख़तरा हो सकता है।

चीफ़ ने मुझे समझाते हुए कहा था कि मुझे इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि जब भी मैं एजेंट के रूप में किसी को सर्विस देने जाता हूं तो मैं तब तक संस्था की तरफ से पूरी सुरक्षा में ही रहता हूं जब तक कि मैं सर्विस दे कर वापस अपने घर नहीं पहुंच जाता। कहने का मतलब ये कि संस्था के कई एजेंट्स सीक्रेट रूप से मेरी निगरानी और सुरक्षा में लगे रहते है।

मेरी समस्या का समाधान करने के बाद चीफ़ ने मुझसे कहा कि मुझे बाकी की ट्रेनिंग के लिए संस्था में आना होगा और इस बार की ट्रेनिंग का समय थोड़ा लम्बा होगा। चीफ़ की ये बात सुन कर मैंने कहा कि इतने लम्बे समय के लिए मैं कैसे अपने घर से बाहर रह सकता हूं? मेरी इस समस्या का समाधान करने के लिए चीफ़ ने मुझे तरीका बताया कि मैं अपने पेरेंट्स से ये कहूं कि मुझे बॉडी बनाने के साथ साथ मार्सल आर्ट्स भी सीखना है। इसके लिए अगर मेरे पेरेंट्स ये कहें कि इसकी क्या ज़रूरत है तो मैं उनसे यही बोलूं कि ये सब करने का मुझे शौक़ है और वैसे भी इंसान को इतना तो सक्षम होना ही चाहिए कि वो संकट के समय में अपनी रक्षा खुद कर सके।

चीफ़ की बातें सुनने के बाद मैंने घर आ कर डिनर करते समय अपने मम्मी पापा से इस बारे में बात की तो वो सच में यही कहने लगे कि बेटा बॉडी बनाना तो ठीक है लेकिन जूड़ो कराटे सीखने की क्या ज़रूरत है? जवाब में मैंने उनसे वही सब कहा जो चीफ़ ने मुझसे कहने को कहा था। आख़िर मेरे ज़ोर देने पर पापा मान ही गए लेकिन इस शर्त पर कि इस काम में मैं अपने दोस्तों को भी साथ रखूं। पापा की इस बात ने मेरे लिए समस्या खड़ी कर दी थी क्योंकि मैं अपने दोस्तों को साथ नहीं रख सकता था।

रात में अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ मैं इस बारे में सोचता रहा था। आख़िर में मैंने यही फैसला किया कि दोस्तों को किसी तरह इसके लिए मनाऊंगा। दूसरे दिन मैं दोस्तों से मिला और उनसे इस बारे में बात की तो उनमें से इसके लिए रंजन और शेखर ही तैयार हुए बाकी दो ने कहा कि उन्हें बॉडी शाडी बनाने का कोई शौक़ नहीं है। रंजन और शेखर तैयार थे इस लिए मैं उनके साथ उसी दिन शहर में एक जगह मौजूद जिम सेण्टर में गया और वहां बात की तो वो बोले कि कल से ही आ जाओ।

मैंने शेखर और रंजन के साथ दूसरे दिन से ही जिम जाना शुरू कर दिया। दोनों ने मुझसे कहा कि उन्हें जूड़ो कराटे नहीं सीखना है इस लिए मैं अकेला ही सीखूं। मुझे भला इससे क्या समस्या हो सकती थी? ख़ैर शाम को संस्था वाले मोबाइल पर मैसेज आया। चीफ़ ने बुलाया था मुझे। मैं शाम को आठ बजे उसी जगह पर पहुंच गया। वहां पर पहुंचने के कुछ देर बाद ही एक काला नक़ाबपोश आया और मेरी आँखों में पट्टी बाँध कर मुझे अपने साथ ले गया।

संस्था में चीफ़ के सामने जब मैं पहुंचा तो चीफ़ के पूछने पर मैंने बताया कि मैंने जिम जाना शुरू कर दिया है लेकिन ट्रेनिंग के लिए मैं हर रोज़ दिन में दो घंटे के लिए घर से गायब रह सकता हूं। मेरी बात सुन कर चीफ़ ने कहा दो घंटे काफी हैं मेरी ट्रेनिंग पीरियड के लिए।

संस्था में मेरी ट्रेनिंग का समय दिन के तीन बजे से शुरू होता था। इस लिए मुझे संस्था के ट्रेनिंग सेण्टर पहुंचने के लिए एक ख़ास जगह पर जा कर इंतज़ार करना था। उस जगह पर मुझे लेने के लिए एक गाड़ी आएगी और वो मुझे ट्रेनिंग सेण्टर ले जाएगी। ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद वही गाड़ी मुझे वापस उसी जगह पर ला कर छोड़ देगी।

दूसरे दिन से मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गई। ट्रेनिंग सेण्टर में पहुंच कर जब मेरी आँखों से काली पट्टी हटाई गई तो मैंने देखा कि वहां पर एक छोटा सा मैदान था जिसके ऊपर आसमान नहीं था बल्कि ऊपर फाइबर की लम्बी लम्बी शीटों से उस छोटे से मैदान को कवर किया गया था। चारो तरफ की दीवारें भी कवर की गईं थी। मैं घूम घूम कर उस सबको देख ही रहा था कि तभी वहां पर एक हट्टा कट्टा आदमी आया। उसने मुझे बताया कि वही मुझे मार्सल आर्ट की ट्रेनिंग देगा।

मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गई थी। मैं हर रोज़ उसी तरीके से वहां पहुंचाया जाता और फिर वापस मुझे उसी जगह पर ला कर छोड़ दिया जाता जहां से मुझे ले जाया जाता था। शुरू शुरू के दस पंद्रह दिन तो मेरे बहुत बुरे हाल में गुज़रे थे। मेरे दोस्त मुझसे पूछते कि मैं जूड़ो कराटे सीखने के लिए कहां जाता हूं लेकिन मैंने उन्हें यही बताया कि है एक जगह। घर में मेरे मम्मी पापा भी मुझसे यही सब पूछते तो मैं उन्हें बताता कि सब अच्छे से हो रहा है और मुझे ये सब करने में अच्छा भी लग रहा है।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस एक महीने में मैं एक अलग ही तरह का इंसान नज़र आने लगा था। मेरे जिस्म में गज़ब की कसावट आ गई थी। ट्रेनिंग सेण्टर में मेरे दो घंटे मुझ पर बहुत ही भारी गुज़रते थे लेकिन अब आदत पड़ गई थी। एक महीने बाद जब मैं चीफ़ से मिला तो उन्होंने कहा कि संस्था के हर एजेंट्स को अपनी रक्षा के लिए थोड़ी बहुत ट्रेनिंग दी जाती है। अगर किसी एजेंट को अपने शौक़ के लिए और भी समय तक उसकी ट्रेनिंग लेनी होती है तो उसे दी जाती है वरना इतना काफी होता है। मुझे क्योंकि अब इसमें मज़ा आने लगा था इस लिए मैंने चीफ़ से कहा था कि मुझे आगे भी इसकी ट्रेनिंग लेना है।

दिन ऐसे ही गुज़रते रहे। मुझे एक महीने बाद ही एजेंट के रूप में सर्विस देने के लिए संस्था द्वारा भेजा गया था। एक महीने बाद जब मैं सर्विस देने गया तो मेरा सामना एक औरत और एक लड़की से हुआ। औरत की उम्र चालीस या बयालीस के आस पास थी जबकि उस लड़की की उम्र यही कोई बीस या पच्चीस रही होगी। हालांकि जब मैंने उसके साथ सेक्स शुरू किया था तो मैं समझ गया था कि वो पहले से ही चुदी चुदाई है। ख़ैर उन दोनों को मैंने तबीयत से पेला था। एक महीने का भूखा था इस लिए सारी कसर निकाल दी थी मैंने जिसके चलते उन दोनों का बुरा हाल हो गया था।

एक दिन ज़फर ने बताया कि एक हप्ते बाद उसका निकाह है। मैं उसकी शादी के बारे में भूल ही गया था। ख़ैर एक हप्ते बाद ज़फर का नाज़िया के साथ निकाह हो गया। हम सभी दोस्त और हम सभी के पेरेंट्स ज़फर के निकाह में शामिल थे। ज़फर बड़ा खुश था और हम सब भी। उसके अम्मी अब्बू बहुत ही अच्छे थे। बड़े ही धूम धड़ाके के साथ सारे कार्यक्रम हुए। ज़फर तो ऐसे बिजी हुआ था कि मुश्किल से ही उससे मुलाक़ात होती थी।

हम सभी दोस्तों की ज़िन्दगी में बहार सी आ गई थी। बदले हुए स्वभाव ने बहुत कुछ बदल दिया था। हम सबके घर वालों को भी समझ आ रहा था कि उनके बच्चे पहले से काफी बदल गए हैं। शुरुआत में वो हम सबसे इस बारे में पूछते लेकिन हम लोग यही कहते कि हमेशा एक ही जैसा समय तो नहीं रहता न। हमारे पेरेंट्स इसी बात से खुश थे कि उनके बच्चे आख़िर मेच्योर हो ग‌ए। इधर संस्था के कामों और बीच बीच में ट्रेनिंग पर जाने की वजह से मैं एक तरह से बिजी रहने लगा था जिससे दोस्तों से मेरी मुलाक़ात कम ही हो पाती थी।

एक दिन पापा ने कहा कि अब समय आ गया है कि मुझे भी उनके साथ बिज़नेस में उनका हाथ बटाना चाहिए और उसके लिए ज़रूरी है कि मैं उनके बिज़नेस के बारे में बेहतर तरीके से समझूं। मैं जानता था कि एक दिन मुझे उनके कहे अनुसार उनके काम में हाथ बटाना ही पड़ेगा इस लिए मैं अब हर रोज़ पापा के साथ कंपनी जाने लगा था। कंपनी में जा कर ही पता चला कि माल तो वास्तव में यहाँ पाई जाती हैं। कंपनी में खूबसूरत लड़कियां भी काम करती थी और शुरुआत में उन्हें देख कर मैं बड़ा खुश हो गया था। ख़ैर मैंने मन लगा कर पापा के हर काम को बारीकी से समझने की कोशिश करने लगा। क़रीब एक महीने बाद मैं हर काम को बेहतर तरीके से समझ गया। पापा ने मुझे बताया कि हमारी कंपनी की एक नई ब्रांच खुलने वाली है इस लिए मुझे उस न‌ई ब्रांच में एम डी के रूप में वहीं रह कर कंपनी का काम काज देखना होगा। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने उस ब्रांच के लिए कुछ सीनियर लोगों की टीम बना दी है जो दूसरी ब्रांच पर मेरे अंडर में काम करेंगे।

न‌ई ब्रांच के बारे में सारी बातें जान कर मैं खुश तो हुआ था लेकिन मेरे लिए मुश्किल ये हो गई थी कि अगर मैं वहां जाता हूं तो संस्था का काम कैसे कर पाऊंगा? मैंने इस बारे में चीफ़ से बात करने का सोचा और एक दिन संस्था में गया। मुझे संस्था ज्वाइन किए हुए क़रीब चार महीने होने को थे और अब मुझे वहां ले जाने पर मेरी आँखों पर पट्टी नहीं बाँधी जाती थी इस वजह से मैं जान चुका था कि संस्था का मुख्यालय कहां पर मौजूद है। मैंने चीफ़ से जब इस बारे में बात की तो वो बोले कि मेरे दूसरे शहर जाने पर भी संस्था पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा क्योंकि संस्था का विस्तार सिर्फ एक ही शहर तक नहीं है बल्कि देश के कई शहरों में भी है। चीफ़ के अनुसार मैं दूसरे शहर में रह कर भी अपना काम उसी तरह कर सकूंगा जैसे अभी तक कर रहा था।

घर आ कर मैं सोच रहा था कि इस संस्था का नेटवर्क तो सच में काफी विशाल है। ख़ैर एक हप्ते बाद मैं मां पापा से विदा ले कर दूसरे शहर में आ गया। दूसरे शहर में मेरे रहने के लिए पापा ने पहले से ही एक शानदार घर की ब्यवस्था कर दी थी। मुझे अपने पेरेंट्स से दूर होने का दुःख तो हुआ था लेकिन इससे मुझे एक चीज़ का ये फायदा हुआ कि दूसरे शहर में रह कर मैं बिना किसी डर के संस्था के काम कर सकता था क्योंकि वहां पर मुझे इस बात का डर नहीं रहेगा कि मैं घर में किसी के द्वारा पकड़ा जाऊंगा।

दूसरे शहर में आ कर कुछ काम तो आसान हो गए थे लेकिन ज़िन्दगी कुछ ज़्यादा ही ब्यस्त हो गई थी और उसकी वजह ये थी कि मुझे कंपनी का काम भी सम्हालना होता था। दिन ऐसे ही गुज़रते रहे। मैं अब अपने हर काम में एक तरह से माहिर हो गया था। कंपनी में मेरा सबसे अच्छा ताल मेल था और लोग मुझे पसंद भी करते थे। मेरी पर्सनालिटी तो पहले भी अच्छी थी किन्तु इस सबकी वजह से और भी आकर्षक हो गई थी जिसकी वजह से लड़कियों का आकर्षण मेरी तरफ बढ़ गया था। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा चाहत मैंने की थी वो मुझे भरपूर मिल रही थी लेकिन गुज़रते वक़्त के साथ जाने क्यों मेरे दिल में ये ख़याल आने लगा कि काश कोई ऐसी लड़की होती जो सिर्फ मेरे लिए ही बनी होती और मैं उसके साथ अपनी ज़िन्दगी के सफ़र को आगे बढ़ाता।

कंपनी में एक से बढ़ कर एक लड़कियां काम करतीं थी लेकिन उनमें से किसी को भी देख कर मेरे दिल में प्यार वाली फीलिंग्स नहीं जगती थी, जबकि वो लड़कियां मेरे क़रीब आने की हर कोशिश करतीं थी। मैंने एक दो को अपनी ज़रूरतों के लिए सेट भी किया हुआ था लेकिन इस सबके बाद भी मुझे एक कमी सी महसूस होती थी। जिस घर में मैं रहता था वहां पर मेरे अलावा एक दो नौकर थे जो घर की साफ़ सफाई और देख रेख करते थे।

दिन बड़ी तेज़ी गुज़र रहे थे। मैंने महसूस किया था कि पहले की अपेक्षा संस्था की तरफ से कुछ ज़्यादा ही मुझे सेक्स की सर्विस देने के लिए भेजा जाने लगा था। ज़ाहिर था कि मेरी डिमांड बढ़ गई थी। इस सर्विस के लिए मुझे मंथली पेमेंट मिलती थी जो गुज़रते वक़्त के साथ बढ़ते हुए एक लाख हो गई थी। संस्था के द्वारा वो एक लाख रूपया हमेशा कैश में ही दिया जाता था।

मैं बीच बीच में अपने पेरेंट्स से मिलने भी जाता रहता था। मेरे पेरेंट्स मेरे काम से बेहद खुश थे। वो अक्सर मुझसे पूछते कि अगर मुझे कोई लड़की पसंद हो तो मैं उन्हें बताऊं ताकि वो मेरी जल्द से जल्द शादी कर सकें लेकिन मैं फिलहाल उन्हें यही जवाब देता कि अभी शादी करने का मूड नहीं है।

चूत मार सर्विस जैसी संस्था में काम करते हुए मुझे एक साल गुज़र गए। इस एक साल में मुझे याद नहीं कि मैंने कितनी औरतों को सेक्स की सर्विस दी थी। कभी कभी तो एक साथ दो औरतों को सेक्स की सर्विस दी थी मैंने। इस एक साल में मैंने यही देखा था कि सबसे ज़्यादा औरतें ही इसकी सर्विस लेती थीं। ऐसा नहीं था कि लड़कियों ने सर्विस नहीं ली थी लेकिन इस एक साल में मैंने गिनती की लड़कियों के साथ ही एजेंट के रूप में सेक्स किया था। मेरी कंपनी की दो लड़कियां स्नेहा और तनु के साथ भी मैंने जाने कितनी ही बार सेक्स किया था। सच तो ये था कि अब मैं इस सबसे ऊब सा गया था। मुझे अब किसी लड़की के प्यार की ज़रूरत थी। मैं चाहता था कि मुझे कोई ऐसी लड़की मिले जिससे मुझे प्यार हो और मैं उसके साथ अपना जीवन बिता सकूं लेकिन अभी तक ऐसी कोई लड़की मिली नहीं थी मुझे।

मेरे दोस्तों से अब कम ही बातें होती थीं। वो सब भी अपने अपने फैमिली बिज़नेस में बिजी हो गए थे। ज़फर को एक बेटी हुई थी जो बिलकुल नाज़िया पर गई थी। बहुत ही क्यूट थी वो, ऐसा लगता था जैसे कोई छोटी सी परी थी।

मेरे पास उस वक़्त में सब कुछ था लेकिन फिर भी एक मोहब्बत की कमी थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरे आस पास इतनी सारी लड़कियां थी लेकिन ऐसा क्यों था कि कोई मेरे दिल में उतर कर मेरे दिल में मोहब्बत पैदा नहीं कर रही थी?

मैं नहीं जानता था कि ऊपर वाला मेरे नसीब में कौन सी इबारत लिखने का सोचे बैठा था। मां पापा की शादी की सालगिरह थी और उन्होंने मुझे बुलाया था। मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने पेरेंट्स के पास पहुंच गया था। दूसरे दिन एक बड़ी सी पार्टी रखी गई थी जिसमें मम्मी पापा के जान पहचान वाले इन्वाइटेड थे। आधी रात तक पार्टी चलती रही। उस पार्टी में मेरे सभी दोस्त और उनके पेरेंट्स भी थे। संजय अंकल मुझे बचपन से ही बहुत मानते थे इस लिए उन्होंने मुझे अपने गले से लगाया था।

पार्टी के बाद जान पहचान वाले तो चले गए थे लेकिन मम्मी पापा के कहने पर मेरे कुछ दोस्तों के पेरेंट्स बंगलो पर ही रुक गए थे। मैंने अपने दोस्तों को भी रुकने को बोला लेकिन वो नहीं रुके। सबका एक ही बहाना था कि भाई अंकल आंटी की सालगिरह पर हम भी आज रात अपनी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मज़ा करेंगे। दोस्तों के जाने के बाद मैं वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ चला था। मेरा कमरा ऊपर वाले फ्लोर पर था जबकि मां पापा का कमरा नीचे ही सीढ़ियों से थोड़ा हट कर था। मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ा ही था कि मेरे कानों में मम्मी पापा के कमरे से आवाज़ सुनाई दी। पहले मुझे लगा कि ये मेरा वहम है क्योंकि पार्टी में हम सबने शराब पी रखी थी तो उसका नशा था। मैं दो तीन सीढियां चढा तो मेरे कानों में फिर से आवाज़ पड़ी। इस बार आवाज़ थोड़ा साफ़ सुनाई दी थी और मैंने ये जान कर अपने कान खड़े कर दिए थे कि मम्मी पापा के कमरे में अंकल लोग क्या कर रहे हैं?

ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मेरे दोस्तों के पेरेंट्स एक साथ मेरे मम्मी पापा के कमरे में इतनी रात को मौजूद थे। इसके पहले वो जब भी मेरे घर आते थे तो वो ड्राइंग रूम में ही बैठते थे। हालांकि आंटी लोग मां के कमरे में गपशप के लिए एक साथ ही उनके कमरे में चली जाती थीं। नशे के शुरूर में मुझे ज़्यादा कुछ समझ भी नहीं आ रहा था लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं आवाज़ें सुन कर ऊपर जाने की बजाय वापस नीचे उतर आया और मम्मी पापा के कमरे की तरफ बढ़ चला।

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अध्याय - 21
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अब तक....

ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मेरे दोस्तों के पेरेंट्स एक साथ मेरे मम्मी पापा के कमरे में इतनी रात को मौजूद थे। इसके पहले वो जब भी मेरे घर आते थे तो वो ड्राइंग रूम में ही बैठते थे। हालांकि आंटी लोग मां के कमरे में गपशप के लिए एक साथ ही उनके कमरे में चली जाती थीं। नशे के शुरूर में मुझे ज़्यादा कुछ समझ भी नहीं आ रहा था लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं आवाज़ें सुन कर ऊपर जाने की बजाय वापस नीचे उतर आया और मम्मी पापा के कमरे की तरफ बढ़ चला।

अब आगे...



कुछ ही पलों में मैं मम्मी पापा के कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच चुका था। मैं शराब के हल्के नशे में ज़रूर था किन्तु होशो हवाश में था। दरवाज़े के पास आ कर मैं अंदर की आवाज़ें सुनने की कोशिश करने लगा। कुछ देर तक अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। ऐसा लग रहा था जैसे अंदर मौजूद हर शख़्स बेजुबान हो गया हो लेकिन अगले ही पल मेरा ये ख़याल ग़लत साबित हो गया। अंदर से पापा की आवाज़ आई। उनके लहजे से ऐसा लगा जैसे वो सभी से कह रहे हों कि इस बारे में कल हम सब ऑफिस में बात करेंगे।

मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसके लिए पापा उन सब को ऑफिस में ही बात करने को कह रहे थे? अभी मैं ये समझने की कोशिश ही कर रहा था कि तभी संजय अंकल की आवाज़ आई।

"तुम बेवजह ही इतना सोच रहे हो यार।" संजय अंकल ने कहा____"क्या तुम्हें अपनी आँखों से नहीं दिख रहा और क्या तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं हो रहा कि हमारे बच्चे अब पहले जैसे नहीं रहे? बल्कि वो सब के सब बदल गए हैं। मैं अच्छी तरह जांच परख कर चुका हूं उन सबकी। मेरे आदमियों ने उन सबके बारे में यही रिपोर्ट दी है कि वो अब पहले की तरह शर्मीले नहीं रहे, बल्कि अब वो हर किसी का बेझिझक हो कर सामना कर सकते हैं।"

"संजय सही कह रहा है अवधेश।" ये शेखर के पापा जीवन अंकल की आवाज़ थी____"और फिर तुम ये क्यों भूल रहे हो कि उनकी मेच्योरिटी का सबूत भी है हमारे पास।"

"मुझे लगता है उन्हें थोड़ा और टाइम देना चाहिए।" मेरी मम्मी की आवाज़____"ये सब इतना आसान नहीं है। कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है।"
"अभी और कितना टाइम दे हम उन्हें?" संजय अंकल ने कहा____"टाइम देते देते तो इतना टाइम निकल गया है तो अभी और कितना टाइम देंगे उन्हें?"

"बस, बहुत हुआ।" पापा की आवाज़____"मैंने कहा न कि इस बारे में कल ऑफिस में बात करेंगे। ये वक़्त इन सब बातों का नहीं है। माधुरी इन लोगों को इनके कमरे दिखा दो।"

पापा की इस बात के बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। मैं भी समझ गया कि अब वो सब कमरे से बाहर निकलने वाले हैं इस लिए मैं दबे पाँव सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और ऊपर अपने कमरे में आ गया।

बेड पर लेटा मैं उन सबकी बातों के बारे में ही सोच रहा था। उनकी बातों से इतना तो मैं जान गया था कि वो सब मेरे और मेरे दोस्तों के बदले हुए स्वभाव के बारे में बात कर रहे थे लेकिन ये नहीं समझ पा रहा था कि हमारे बदले हुए स्वभाव के चलते वो आख़िर करना क्या चाह रहे थे? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसके लिए वो सब पापा से इस बारे में बात करते हुए ज़ोर दे रहे थे? जाने कब तक मैं इसी बारे में सोचता रहा और पता नहीं कब मेरी आँख लग गई।

सुबह मेरी आँख खुली तो मैं सबसे पहले फ्रेश हुआ और फिर नास्ते के लिए बाहर आ गया। बाहर आया तो देखा डाइनिंग टेबल पर मम्मी पापा के साथ मेरे दोस्तों के पेरेंट्स भी बैठे हुए थे। उनमें ज़फर के पेरेंट्स नहीं थे। ख़ैर मैंने सबको नमस्ते किया और संजय अंकल के बुलाने पर मैं उनके बगल वाली कुर्सी पर ही बैठ गया। उनके दूसरे बगल में उनकी वाइफ यानी रंजन की मम्मी बैठी थी। रंजन की मम्मी का नाम रेणुका था।

नास्ते के वक़्त सामान्य बात चीत ही चल रही थी। अंकल लोगों ने मुझसे मेरे काम के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बेहतर बताया। नास्ते के बाद पापा के साथ ही सब लोग चले गए। मुझे दो तीन दिन यहीं रुकना था इस लिए मैं मम्मी से बोल कर बाहर निकल गया।

मेरे ज़हन में कल रात की बातें ही चल रहीं थी और मेरे मन में ये जानने की बेहद उत्सुकता जाग उठी थी कि आख़िर वो सब किस बारे में बातें कर रहे थे? मैं सोचने लगा था कि आख़िर अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए किस तरह से सच का पता लगाया जाए? मेरे ज़हन में ख़याल आया कि क्यों न पापा और अंकल लोगों की जासूसी की जाए।

☆☆☆

"साहब जी घर नहीं जाना क्या आपको?" शिवकांत वागले के कानों में ये आवाज़ पड़ी तो उसका ध्यान विक्रम सिंह की डायरी से टूटा और उसने नज़र उठा कर केबिन के दरवाज़े के पास खड़े श्याम की तरफ देखा।

"हर रोज़ आप समय से घर चले जाते थे।" वागले को अपनी तरफ देखता देख श्याम ने झिझकते हुए कहा____"जबकि आज अभी भी आप यहीं पर है। मैंने सोचा आप किसी ज़रूरी काम में ब्यस्त होंगे इस लिए आपको दखल देखा उचित नहीं समझा था मैंने।"

श्याम की बात सुन कर वागले हल्के से चौंका और उसने अपने बाएं हाथ में बंधी घड़ी पर टाइम देखा तो उसके चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। उसे पहली बार महसूस हुआ कि वो सच में आज अपने समय से ज़्यादा यहाँ पर रुक गया था। ज़ाहिर इसकी वजह विक्रम सिंह की डायरी ही थी। ख़ैर उसने एक गहरी सांस ली और डायरी को बंद कर के उसे ब्रीफ़केस में रखा।

"अच्छा हुआ कि तुमने हमें याद दिला दिया श्याम।" वागले ने एक नज़र सिपाही श्याम की तरफ डालते हुए कहा____"हम सच में एक ज़रूरी काम में ही ब्यस्त थे जिसकी वजह से हमें वक़्त का पता ही नहीं चला। ख़ैर चलो, सुबह मिलते हैं।"

वागले अपना ब्रीफ़केस ले कर कुर्सी से उठा और केबिन से बाहर की तरफ बढ़ चला। श्याम ने उसे सैल्यूट किया जिसका जवाब उसने अपने सिर को हल्का सा ख़म कर के दिया और जेल की लम्बी चौड़ी राहदारी से चलते हुए बाहर निकल गया। मन ही मन वो ये सोचता जा रहा था कि वो वाकई में विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने में इतना खो गया था कि उसे समय का ज़रा भी एहसास नहीं हुआ।

वागले घर पंहुचा तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। अपनी खूबसूरत बीवी को देख कर उसके होठों पर मुस्कान उभर आई थी। सावित्री भी उसे देख कर मुस्कुराई थी। अंदर आने के बाद ड्राइंग रूम में उसे अपने दोनों बच्चे नज़र आए जिन्हें देख कर वो मुस्कुराया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

रात में डिनर करने के बाद वागले अपने बेड पर लेटा हुआ था। उसके ज़हन में बार बार यही सवाल उठ रहे थे कि विक्रम सिंह के पेरेंट्स और उनके दोस्त लोग आख़िर किस बारे में ऐसी बातें कर रहे थे? उन सबके बच्चों का अगर स्वभाव बदल गया था तो इसमें ऐसी कौन सी बात हो गई थी जिसके लिए वो आपस में ऐसी बातें कर रहे थे? वागले को याद आया कि डायरी में विक्रम सिंह के ज़हन में भी यही सवाल उभरे थे और इन सभी सवालों के जवाब तलाशने के लिए उसने अपने पिता की जासूसी करने का सोच लिया था। विक्रम सिंह की तरह अब वागले के मन में भी ये जानने की तीव्र उत्सुकता बढ़ गई थी कि आख़िर विक्रम सिंह के पेरेंट्स और उनके दोस्तों के बीच किस सिलसिले में बातें हुई थी? आख़िर अपने बच्चों के प्रति उन सबके मन में कौन सी बातें थी?

वागले काफी देर तक इन्हीं सब बातों के बारे में सोचता रहा। सावित्री के आने के बाद उसने उन सारी बातों को अपने ज़हन से निकाला और सावित्री को अपनी बाहों में भर कर उसके होठों को चूमने लगा था। जल्द ही दोनों के बीच प्यार का खेल शुरू हो गया। आज सावित्री ने खुल कर वागले का साथ दिया था और उसने वागले को वास्तव में खुश कर दिया था। वागले तो पहले से ही अपनी बीवी का दिवाना था इस लिए उसने उसे खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसके बाद दोनों ही गहरी नींद में सो गए थे।

सुबह वागले अपने समय पर जेल में अपने केबिन में पहुंचा। सारे कामों से फुर्सत होने के बाद उसने विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उस जगह से आगे पढ़ना शुरू किया जहां तक वो पढ़ चुका था।

☆☆☆

मैं अच्छी तरह जानता था कि अपने पिता की जासूसी करना अच्छी बात नहीं थी लेकिन क्योंकि मेरे मन में अब ये जानने की उत्सुकता हद से ज़्यादा बढ़ गई थी कि आख़िर उनके और उनके दोस्तों के बीच किस सिलसिले में बातें हुईं थी और आज वो ऑफिस में क्या बातें करने वाले थे?

मुख्य सड़क पर आ कर आ कर मैंने एक ऑटो वाले को रुकने का इशारा किया। ऑटो जैसे ही रुका तो मैंने उसे अपने पापा की कंपनी का पता बता कर चलने को कहा तो वो फ़ौरन ही चल पड़ा। मेरा दिल ये सोच सोच कर तेज़ी से धड़कने लगा था कि मैं अपने ही पिता की जासूसी करने का काम कर रहा हूं। दुर्भाग्य से अगर मेरे पापा को इसका पता चल जाए तो जाने क्या हो?

क़रीब बीस मिनट बाद मैंने ऑटो वाले से ऑटो रोकने के लिए कहा। ऑटो वाले को मैंने उसका किराया दिया तो वो चला गया। मैंने पापा की कंपनी के पहले ही ऑटो रुकवा दिया था। मैंने आस पास नज़र घुमाई तो बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स ही नज़र आईं, जिनमें न जाने कितने ही प्रकार के ऑफिस खुले हुए थे। दाहिनी तरफ की बिल्डिंग के शीर्ष पर अनुपमा लिखा हुआ था। उसी बिल्डिंग में मेरे पापा का ऑफिस था। मैंने एक गहरी सांस ली और उस बिल्डिंग की तरफ चल पड़ा। एकदम से मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर पापा मुझे वहां पर देखेंगे तो मुझसे क्या कहेंगे? मैंने इस बारे में कुछ देर सोचा और कुछ ही पलों में मैंने बहाना तैयार कर लिया।

ऑफिस में ज़्यादातर लोग मुझे पहचानते थे क्योंकि इसके पहले मैं पापा के साथ आता था और काम के बारे में सारी चीज़ें सीखता था। ख़ैर मैं बिल्डिंग में दाखिल हो गया। मेरा दिल एक बार फिर से तेज़ तेज़ धड़कने लगा था। पापा ने बताया था कि बिल्डिंग के तीन फ्लोर उन्होंने खरीद रखा है जिसमें उनका हर डिपार्टमेंट काम करता है। असल में यहाँ पर उनकी कंपनी का हेड ऑफिस था। यहीं से सारे कारोबारी मामले देखे जाते थे।

लिफ्ट से मैं ऊपर आया और जैसे ही मैं अंदर पहुंचा तो रिसेप्शन पर बैठी एक खूबसूरत लड़की पर मेरी नज़र पड़ी। वो मुझे देखते ही पहले तो चौंकी फिर मुस्कुराई, जवाब में मैं भी हल्के से मुस्कराया। मैं क्योंकि ज़रूरी काम के सिलसिले में यहाँ आया था इस लिए रिसेप्शनिस्ट से हेलो हाय न करते हुए सीधा पापा के ऑफिस की तरफ बढ़ चला।

पापा के ऑफिस में पहुंचा तो देखा ऑफिस बाहर से लॉक था। मुझे ये जान कर हैरानी हुई कि पापा अपने ऑफिस में हैं ही नहीं। मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि अगर वो घर से ऑफिस के लिए निकले थे तो मुझे यहाँ क्यों नहीं मिले? इस एक सवाल के साथ और भी न जाने कितने सवाल मेरे ज़हन में उभरते चले गए थे जिनका जवाब मेरे पास नहीं था। मैंने सोचा कि हो सकता है कि वो अपने किसी दोस्त के ऑफिस में जाने की बात किए हों। रंजन शेखर और तरुण इन तीनों के पेरेंट्स का अपना अलग अलग कारोबार था तो हो सकता है कि वो इनमें से ही किसी के यहाँ गए हों। मुझे अपना ये ख़याल जंचा लेकिन मेरे पास अब पापा तक पहुंचने का न तो कोई जरिया था और ना ही कोई बहाना। मैं निराश हो कर वापस बाहर निकलने का सोचा तो मेरे ज़हन में एक ख़याल आया कि क्या मुझे रिसेप्शनिस्ट से पापा के बारे में पूछना चाहिए? इस ख़याल के जवाब में मुझे खुद से ही जवाब मिल गया कि पापा भला अपने किसी निजी काम के बारे में एक रिसेप्शनिस्ट को क्यों बताएँगे? कहने का मतलब ये कि मैं पूरी तरह निराश हो कर वहां से निकल गया।

मैं निराश हो कर बाहर आ गया था। पापा के यहाँ न मिलने से मेरे मन में और भी ज़्यादा उत्सुकता भर गई थी। अब मैं हर हालत में जानना चाहता था कि आख़िर मामला क्या है? यही सब सोचते हुए मैंने फिर एक ऑटो किया और इस बार अपने दोस्त रंजन के घर की तरफ चल पड़ा। मेरा ख़याल था कि इस बारे में मुझे रंजन और बाकी दोस्तों से भी बात करनी चाहिए थी। आख़िर ये मामला सिर्फ मेरे बारे में ही बस नहीं था बल्कि मेरे साथ साथ मेरे सभी दोस्तों के बारे में भी था। ख़ैर जल्द ही मैं रंजन के घर पहुंच गया।

"क्या हुआ बे, तू किसी बात से परेशान है क्या?" रंजन के कमरे में जब मैं पहुंचा तो उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा था। मैंने उसे अपने मन की सारी बातें बताई तो वो कुछ देर चुप रहा और फिर बोला कि चलो इस बारे में अपने बाकी दोस्तों से भी बात करते हैं। रंजन के साथ मैं कुछ ही समय में अपने बाकी दोस्तों के साथ अपने पुराने अड्डे पर पहुंच गया। मैंने उन सबसे वो सब बताया जो कल रात मेरे पेरेंट्स के कमरे में उन लोगों के पेरेंट्स ने बात चीत की थी।

"तो इसमें इतना ज़्यादा सोचने की क्या बात है भाई?" तरुण ने कहा____"सबके पेरेंट्स अपने बच्चों के बारे में यही चाहते हैं कि उनके बच्चों का भविष्य बेहतरीन हो। हो सकता है कि वो हमारे ब्राइट फ्यूचर के बारे में ही बात करते रहे हों।"

"तरुण सही कह रहा है विक्रम।" शेखर ने कहा____"मुझे भी ऐसा ही लगता है। तू बेकार में ही इतना ज़्यादा सोच रहा है।"
"चल मान लिया कि वो हमारे ब्राइट फ्यूचर के बारे में ही बात कर रहे थे।" मैंने अपने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो इसके लिए उन्हें अपने बीच मिस्ट्री क्रिएट करने की क्या ज़रूरत थी? अगर बात सिर्फ हमारे ब्राइट फ्यूचर की ही होती तो वो इस बारे में हमसे भी तो बातें कर सकते थे। हम सब तो वैसे भी उनके कारोबार में लग ही गए हैं तो अब इसमें और क्या चाहिए उन्हें? तुम लोग मानो या न मानो लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि उनके मन में कुछ तो ऐसा ज़रूर है जिसे फिलहाल हम समझ नहीं पा रहे हैं।"

"पता नहीं तुझे ऐसा क्यों लगता है।" रंजन ने कहा____"जबकि मुझे भी इसमें ऐसा वैसा कुछ भी नहीं लग रहा। अच्छा अब छोड़ इस बात को, क्यों न हम लोग आज उसी क्लब में चलें और वहां पर नए नए माल के साथ मज़ा करें। उस क्लब की लड़कियों ने ही तो हमारी ज़िन्दगी में खुशियों के चिराग जलाए थे तो क्यों न आज फिर वहीं चला जाए। क्या कहते हो तुम लोग?"

"मैं तो चलने को तैयार हूं भाई।" तरुण ने मुस्कुराते हुए कहा____"काफी टाइम हो गया उस क्लब में गए हुए।"
"मैं भी चलूंगा भाई।" शेखर ने कहा____"आज तो मैं दो दो लड़कियों को एक साथ पेलूंगा।"

"अब तू क्यों ख़ामोश हो गया बे?" रंजन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या अभी भी उन्हीं बातों के बारे में सोच रहा है?"
"तुम लोग जाओ।" मैंने कहा____"मुझे कुछ काम है इस लिए मैं तुम लोगों के साथ नहीं जा पाऊंगा।"

मेरे इंकार कर देने पर तीनों मेरी तरफ देखने लगे थे। एक दो बार और उन लोगों ने मुझे चलने पर ज़ोर दिया लेकिन मैंने जाने से साफ़ मना कर दिया। उन तीनों के जाने के बाद मैं भी अपने घर चला गया था। मेरे तीनों दोस्तों को उन बातों में कोई मिस्ट्री नज़र नहीं आई थी लेकिन मेरा मन अब भी यही कह रहा था कि कुछ तो बात ज़रूर है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं किस तरीके से इस बारे में सच का पता लगाऊं?

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अध्याय - 22
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अब तक...

मेरे इंकार कर देने पर तीनों मेरी तरफ देखने लगे थे। एक दो बार और उन लोगों ने मुझे चलने पर ज़ोर दिया लेकिन मैंने जाने से साफ़ मना कर दिया। उन तीनों के जाने के बाद मैं भी अपने घर चला गया था। मेरे तीनों दोस्तों को उन बातों में कोई मिस्ट्री नज़र नहीं आई थी लेकिन मेरा मन अब भी यही कह रहा था कि कुछ तो बात ज़रूर है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं किस तरीके से इस बारे में सच का पता लगाऊं?

अब आगे....

दोपहर हो गई थी।
मैं अपने घर में ही अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ था। मैं अब भी यही सोच रहा था कि पापा अगर अपने ऑफिस में नहीं थे तो आख़िर वो कहां गए होंगे? मेरे मन में ये विचार भी आया था कि मैं उनके दोस्तों के ऑफिसों में जा कर एक बार चेक करूं लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि मुझे इस तरह चेक नहीं करना चाहिए क्योंकि संभव है कि पता चल जाने पर इससे पापा या तो मुझसे नाराज़ हो जाएं या फिर बात बिगड़ जाए। ये सोच कर मैंने फ़ैसला किया कि अगले दिन सुबह पापा के ऑफिस जाने के बाद मैं भी उनके पीछे जाऊंगा। मैं किसी साए की तरह उनका पीछा करुंगा और इस बात का ख़ास ध्यान रखूंगा कि उन्हें मेरे द्वारा अपना पीछा किए जाने की ज़रा भी भनक न लग सके।

दोपहर को सविता आंटी ने मुझे लंच करने के लिए कहा तो मैंने लंच किया और फिर बेड पर आ कर सो गया। शाम को मैं उठा तो फ्रेश हो कर घूमने निकल गया। मम्मी पापा के आने तक मैं बाहर ही अपना टाइम पास करता रहा। रात में मैंने मम्मी पापा के साथ ही डिनर किया और फिर अपने कमरे में जा कर सो गया। मुझे बड़ी शिद्दत से सुबह होने का इंतज़ार था। इस बीच मैं संस्था द्वारा दिए गए मोबाइल को भी चेक कर लेता था। शुक्र था कि उसमें कोई मैसेज नहीं आया था। असल में मेरा भी किसी को सेक्स की सर्विस देने जाने का मन नहीं था।

अगली सुबह मैं जल्दी उठ कर फ्रेश हुआ और नास्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर आ गया। नास्ते के दौरान मम्मी पापा से सामान्य बात चीत ही हुई। नास्ते के बाद पापा अपने कमरे में अपना ब्रीफ़केस लेने चले गए। इधर मैं भी अपने कमरे में अपनी मोटर साइकिल की चाभी लेने चला गया। पापा कमरे से निकल कर बाहर चले गए। उनके निकलते ही मैं भी कमरे से निकल कर बाहर आया तो मम्मी ने मुझसे पूछा कि इतनी सुबह मैं कहा जा रहा हूं तो मैंने उन्हें बताया कि दोस्तों से मिलने जा रहा हूं। मेरा जवाब सुन कर मम्मी ने बस मुस्कुरा कर हाँ में सिर हिला दिया।

घर से बाहर आ कर मैंने मोटर साइकिल निकाली और उसमें बैठ कर फ़ौरन ही उड़न छू हो गया। मैं नहीं चाहता था कि पापा की कार मेरी आँखों से ओझल हो जाए इस लिए मैं तेज़ी से उनके पीछे मोटर साइकिल को दौड़ा दिया था। मैंने देखा पापा की कार कुछ वाहनों के आगे जा रही थी। मैं भी उनसे सामान्य दूरी बना कर उनके पीछे पीछे चलने लगा। मेरा दिल ये सोच कर तेज़ी से धड़क रहा था कि अगर पापा को मेरे द्वारा अपना पीछा किए जाने की भनक लग गई तो यकीनन गड़बड़ हो सकती थी।

क़रीब दस मिनट बाद मैंने देखा कि पापा की कार शहर से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ मुड़ गई है। मेरे मन में सवाल उभरा कि वो शहर से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ क्यों जा रहे थे? अगर वो घर से ऑफिस के लिए ही निकले थे तो ये ऑफिस की तरफ जाने वाला रास्ता नहीं था।

शहर से बाहर की तरफ जाने वाला रास्ता ऐसा था जिसमें ज़्यादा वाहन नहीं चलते थे। ऐसे में अगर मैं पापा का पीछा करता तो वो कार के बैक या साइड मिरर से देख सकते थे कि कोई मोटर साइकिल वाला उनके पीछे आ रहा है। वो मोटर साइकिल को पहचान जाते और फिर उन्हें ये समझने में ज़रा भी देरी नहीं होती कि मैं उनके पीछे आ रहा हूं। हालांकि ये मेरा अपना ख़याल था क्योंकि मैं इस वक़्त एक चोर जैसी हैसियत रखता था। जबकि मेरे जैसी मोटर साइकिल तो कई सारी थीं शहर में तो इस हिसाब से ये ज़रूरी नहीं कि उनके पीछे आने वाला उनका अपना ही बेटा हो सकता है। बात तर्क संगत तो थी लेकिन मैंने सोचा कि पापा के मन में इस तरह का शक ही क्यों डालना। ये सोच कर मैंने उनसे काफी ज़्यादा फासला बना लिया और उनका पीछा करना जारी रखा।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पापा शहर से बाहर आख़िर जा कहां रहे हैं? तभी एकदम से मेरे ज़हन में बिजली सी कौंधी। शहर से जाने वाला ये वही रास्ता था जिस रास्ते से मैं चूत मार सर्विस जैसी संस्था में जाता था, या ये कहें कि जहां मैं पिछले एक साल से गुप्त नौकरी कर रहा था। नौकरी भी ऐसी जो औरतों और मर्दों को सेक्स की सर्विस प्रोवाइड करती है। साला ऐसी सर्विस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। ख़ैर इस ख़याल के साथ ही मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा था। मेरे मन में ढेर सारे सवाल उभरने लगे थे।

पापा की कार एक मोड़ पर मुड़ गई। मेरे और उनके बीच काफी लम्बा फासला था। मुझे उस मोड़ तक पहुंचने में क़रीब दस सेकंड का टाइम लगा। रास्ते के दोनों तरफ दो चार छोटे छोटे टीलेनुमा पहाड़ थे जिनके बीच से रास्ता बना हुआ था। पापा की कार क्योंकि मोड़ पर मुड़ चुकी थी इस लिए वो उन छोटे छोटे टीलेनुमा पहाड़ की वजह से मुझे दिखाई देना बंद हो गए थे। इधर दस सेकंड बाद जैसे ही मैं उस मोड़ पर मुड़ा तो एकदम से एक बड़ा सा पत्थर लुढ़कता हुआ मेरे मोटर साइकिल के सामने आ गया। मैं चाह कर भी कुछ न कर सका और मोटर साइकिल उस पत्थर से टकरा गई जिससे मैं उस मोटर साइकिल से उछल कर सड़क पर जा गिरा। आँखों के सामने एकदम से अँधेरा छाने लगा और कुछ ही पलों में मैं अपने होश खोता चला गया।

मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको हॉस्पिटल में पाया। खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पड़े देख मैं एकदम से हड़बड़ा गया था। मुझे समझ में न आया कि मैं हॉस्पिटल में कैसे पहुंच गया था? मैंने पिछला सब कुछ याद करने की कोशिश की तो मुझे वो सब याद आता चला गया जो जो मेरे साथ हुआ था। यानि मेरी याददास्त सही सलामत थी। मैंने खुद को देखा तो पता चला मेरे जिस्म पर कई जगह पट्टियां लगी हुईं थी और सिर में भी।

मुझे अच्छी तरह याद था कि मेरा उस मोड़ पर एक्सीडेंट हुआ था और उसी के चलते मैं बेहोश हो गया था लेकिन अब मेरे ज़हन में कई सारे सवाल थे कि उसके बाद मैं यहाँ कैसे पहुंचा या फिर कौन ले कर आया था मुझे? एक चीज़ जो मुझे सबसे ज़्यादा खटक रही थी वो चीज़ थी पत्थर। मैं जैसे ही उस मोड़ पर मुड़ा था तो वो पत्थर लुढ़कता हुआ मेरी मोटर साइकिल के सामने आ गया था। कल्पना से परे जब कोई चीज़ किसी के साथ होती है तो उसके साथ मेरे जैसा ही हाल होता है। मैं सोचने पर मजबूर हो गया था कि वो पत्थर उस वक़्त ऐसे ही नहीं मेरे सामने आ गया था बल्कि उसे मेरे सामने जान बूझ कर किसी के द्वारा लाया गया था। अब सवाल ये है कि ऐसा किसने किया होगा? क्या खुद मेरे पापा ने किया होगा, लेकिन वो ऐसा क्यों करेंगे? भला कोई भी पिता अपने बेटे को मौत के मुँह में धकेल देने वाला काम क्यों करेगा? ज़ाहिर है ये किसी ऐसे ब्यक्ति का काम है जो नहीं चाहता था कि मैं उस रास्ते पर आगे जाऊं लेकिन सवाल तो अब भी वही है कि आख़िर क्यों?

सोचते सोचते मेरा सिर दुखने लगा तो मैं आँखें बंद कर के गहरी गहरी साँसें लेने लगा। तभी दरवाज़ा खुला और डॉक्टर के लिबास में एक आदमी अंदर आया। मुझे होश में आया देख वो मेरे क़रीब आया और फिर मुझे देख कर मुस्कराया।

"तो होश आ गया आपको?" उस डॉक्टर ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"बहुत अच्छा, ख़ैर अब कैसा महसूस कर रहे हैं आप?"
"मैं यहाँ कैसे पहुंचा डॉक्टर?" मैंने खुद को शांत रखते हुए पूछा था।

"दो दिन पहले एक आदमी आपको यहाँ ले कर आया था।" डॉक्टर ने सामान्य लहजे से कहा____"उसने बताया कि आप शहर के बाहर जाने वाले रास्ते पर एक जगह बेहोशी की हालत में पड़े हुए थे। उस आदमी ने एक अच्छे इंसान का परिचय देते हुए आपको यहाँ तक पहुंचाया। उसके बाद आपके पॉकेट से हमें आपकी आइडेंटिटी मिली जिसके द्वारा हमने पहले पुलिस को इन्फॉर्म किया और पुलिस ने आपकी आइडेंटिटी के माध्यम से आपके घर वालों को।"

डॉक्टर की लम्बी चौड़ी बातें सुन कर मैं सोचने लगा कि मुझे बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल पहुंचाने वाला वो आदमी कौन रहा होगा?

"क्या मैं उस आदमी से मिल सकता हूं डॉक्टर?" मैंने डॉक्टर की तरफ देखते हुए कहा____"जिसने मुझे उस हालत में यहाँ पहुंचाया था?"
"जी बिलकुल मिल सकते हैं।" डॉक्टर ने मेरी उम्मीद के विपरीत कहा____"वो आदमी एक बार आपको देखने ज़रूर आता है यहां। अभी भी वो बाहर आपके पेरेंट्स के पास बैठा हुआ है। एक मिनट मैं आपके पेरेंट्स को बता देता हूं कि आपको होश आ गया है।"

कह कर डॉक्टर कमरे से चला गया। थोड़ी देर बाद कमरे में डॉक्टर के साथ साथ मेरे पेरेंट्स मेरे पास आए। उनके पीछे एक आदमी भी था जो कि मेरे लिए निहायत ही अजनबी था। मम्मी पापा ने जैसे ही मुझे देखा तो वो भाग कर मेरे पास आए। मम्मी ने तो एकदम से झुक कर मुझे खुद से छुपका ही लिया था। उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। पापा की भी आँखें नम थीं।

"ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि तुझे होश आ गया मेरे बेटे।" मम्मी ने मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"तेरे एक्सीडेंट का सुन कर तो हम दोनों की जान ही निकल गई थी। अगर तुझे कुछ हो जाता तो हम कैसे तेरे बिना जी पाते?"

"कैसे हो दोस्त?" पापा के पीछे खड़े एक आदमी ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा____"अब बेहतर लग रहा है न?"
"क्या आप ही मुझे यहाँ ले कर आए थे?" मैंने उस आदमी से पूछा तो पापा ने कहा____"हां बेटे, इन्होंने ही तुम्हें हॉस्पिटल पहुंचाया था। इन्होंने मुझे बताया कि ये उस रास्ते से गुज़र रहे थे तो रास्ते में तुम इन्हें सड़क पर बेहोश पड़े हुए नज़र आए थे। लेकिन बेटे तुम वहां पर कैसे थे? मेरा मतलब है कि तुम उस रास्ते पर किस लिए गए थे?"

पापा के इस सवाल का जवाब भला मैं उन्हें कैसे दे सकता था इस लिए बहाना बनाते हुए कहा___"मैं तो बस लॉन्ग ड्राइव पर निकला था पापा। सोचा था किसी ऐसी जगह पर जाऊंगा जहां पर शान्ति और सुकून हो। मुझे क्या पता था कि वहां पर ये सब हो जाएगा।"

"चलो कोई बात नहीं बेटे।" पापा ने कहा____"मैं बस यही कहूंगा कि कहीं भी जाओ लेकिन थोड़ा सम्हल कर और देख कर मोटर साइकिल चलाया करो। तुम हमारी इकलौती औलाद हो बेटा, अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो हम कहीं के न रहते।"

"माफ़ कर दीजिए पापा।" मैंने खेद भरे भाव से कहा____"आईन्दा ध्यान रखूंगा।" कहने के साथ ही मैंने उस आदमी की तरफ देखा और कहा____"आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी जान बचाई।"

"मैंने तो बस इंसानियत का एक मामूली सा फ़र्ज़ निभाया है दोस्त।" उस आदमी ने कहा____"मुझे यकीन है कि अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो तुम भी यही करते।"

"आपने मुझे दोस्त कहा?" मैं अंदर से ये सोच कर थोड़ा सोच में पड़ गया था कि उसने दूसरी बार मुझे दोस्त कहा था इस लिए अब मैं जानना चाहता था कि मुझसे उम्र में बड़ा होने के बावजूद वो मुझे दोस्त क्यों कह रहा था?

"हम दोनों मिले इस लिए कोई न कोई रिश्ता तो बन ही गया न।" उस आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने हमारे बीच के रिश्ते को दोस्ती का नाम देना ज़्यादा बेहतर समझा। क्योंकि ये रिश्ता बहुत ख़ास होता है।"

"आपका नाम क्या है?" मैं अभी भी अंदर ही अंदर जाने क्या सोचे जा रहा था।
"सन्दीप।" उसने सादगी से कहा___"सन्दीप गुप्ता।"

सन्दीप गुप्ता जाने क्यों मुझे कोई ख़ास ब्यक्ति लग रहा था लेकिन इस बारे में फिलहाल भला मैं क्या कर सकता था? ख़ैर संदीप ने मुझे अपना कार्ड दिया और फिर चला गया। उसके बाद मेरे पेरेंट्स मुझे भी हॉस्पिटल से घर ले आए। मेरे जिस्म में तो ज़्यादा गहरी चोट नहीं लगी थी लेकिन सिर पर गहरी चोट लगी थी। मुझे बाद में पता चला कि मेरे सिर में डॉक्टर को टाँके लगाने पड़े थे।

पापा ने दूसरे शहर वाली ब्रांच में फ़ोन कर के वहां के मैनेजर को सब समझा दिया था इस लिए अब मुझे वहां जाने की ज़रूरत नहीं थी। मम्मी पापा ने कहा कि जब तक मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता तब तक मैं घर से बाहर कहीं नहीं जाऊंगा। मैं क्योंकि अपनी हालत को बखूबी समझता था इस लिए मैंने भी मम्मी पापा की बात को मान लेना ही बेहतर समझा। मेरे सभी दोस्त हर रोज़ मुझे देखने आते थे और कुछ देर मेरे पास रुकते और चले जाते। बस इसी तरह दिन गुज़र रहे थे।

मैं धीरे धीरे बेहतर होता जा रहा था किन्तु मेरे ज़हन में कई सारी बातें और कई सारे सवाल थे जिनका जवाब मुझे हर हालत में चाहिए था। मम्मी पापा के ऑफिस जाने के बाद बंगले के अंदर सविता आंटी और बाहर एक दो नौकर थे जो बंगले की देख रेख और लॉन में लगे हर तरह के पेड़ पौधों की देख रेख करते थे।

जहां एक तरफ मैं अभी भी ये सोच रहा था कि पापा उस दिन शहर से बाहर वाले उस तरफ के रास्ते पर क्यों जा रहे जिस तरफ संस्था का मुख्यालय था तो वहीं मैं इस बात से भी परेशान था कि संस्था वाला मोबाइल उस घटना के बाद से ही गायब था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मोबाइल अगर मुझसे कहीं पर गिरा था तो आख़िर कहां? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो किसी के हाथ लग गया हो? हालांकि वो मोबाइल ऐसा था कि उसमें से कोई किसी को कॉल नहीं कर सकता था और ना ही उसमें किसी की कॉल आ सकती थी। सबसे अच्छी बात ये भी थी कि उसमें जब भी संस्था के द्वारा मैसेज आता था तो वो मैसेज मेरे पढ़ लेने के बाद अपने आप ही डिलीट हो जाता था। मैंने कई बार उस डिलीट हो गए मैसेज को खोजने की कोशिश की थी लेकिन नाकमयाब ही रहा था। ख़ैर यहाँ सवाल ये था कि वो मोबाइल आख़िर गया तो गया कहां? अचानक ही मेरे ज़हन में संदीप गुप्ता का चेहरा उभर आया।

सन्दीप गुप्ता ही वो शख़्स था जो बेहोशी की हालत में मुझे उस जगह से हॉस्पिटल ले कर आया था। मतलब साफ़ था कि वो मोबाइल उसी के हाथ लगा होगा, लेकिन सवाल ये है कि उसने मुझसे उस मोबाइल का ज़िक्र क्यों नहीं किया? ये ऐसी बात थी कि उस मोबाइल के बारे में मैं किसी को बता भी नहीं सकता था। मेरे पास बस एक ही चारा था कि मैं संदीप से संपर्क स्थापित कर के उससे उस मोबाइल के बारे में पूछूं। संदीप उस दिन मुझे अपना कार्ड दे कर गया था जो कि अभी भी मेरे पास ही था। मैंने फैसला किया कि मुझे उस मोबाइल के बारे में जानने के लिए संदीप से बात करनी ही होगी। मुझे ये भी डर था कि कहीं संस्था के द्वारा उस मोबाइल पर कोई मैसेज न भेजा गया हो। उस सूरत में मेरे लिए बड़ी गंभीर समस्या हो सकती थी।

बहुत सोच विचार कर के मैंने सविता आंटी को आवाज़ लगा कर उन्हें अपने कमरे में बुलाया। असल में मेरे पास खुद का कोई मोबाइल नहीं था। अभी तक हर काम लैंड लाइन फ़ोन से ही चलता आया था। इस लिए जब सविता आंटी आईं तो मैंने उनसे कहा कि वो ड्राइंग रूम से लैंड लाइन फ़ोन को उठा कर मेरे पास ले आएं। मेरे कहने पर उन्होंने ऐसा ही किया।

साविता आंटी के जाने के बाद मैंने संदीप के दिए हुए कार्ड से उसका नंबर डायल किया। रिसीवर मैंने कान से लगा लिया था और मुझे दूसरी तरफ रिंग जाती हुई साफ़ सुनाई दे रही थी। कुछ ही रिंग के बाद कॉल रिसीव किया गया।

"हैलो।" उधर से संदीप की जानी पहचानी आवाज़ मेरे कान में गूँजी।
"हैलो संदीप जी।" मैंने खुद को संयत करते हुए कहा____"मैं विक्रम बोल रहा हूं। वही विक्रम जिसे कुछ दिन पहले आप बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल ले कर गए थे।"

"ओह! हॉ।" उधर से मधुर स्वर उभरा____"मैं पहचान गया हूं। कैसे हो दोस्त?"
"मैं ठीक हूं।" उसके दोस्त कहने पर पता नहीं क्यों मुझे थोड़ा अजीब सा लगा था, किन्तु फिर मैंने कहा____"असल में मुझे आपसे कुछ पूछना था। अगर आपके पास समय हो तो क्या मैं...?"

"बिल्कुल दोस्त।" उसने मेरी बात पूरी होने से पहले ही कहा____"अपने दोस्त से बात करने का मेरे पास वक़्त ही वक़्त है। तुम बेझिझक हो कर पूछो, क्या पूछना चाहते हो मुझसे? हालांकि मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है लेकिन फिर भी पूछो।"

"वो असल में।" मैं ये सोच कर मन ही मन चौंक उठा था कि उसे इस बात का अंदाज़ा है कि मैं उससे क्या पूछना चाहता हूं। मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या सच में वो मोबाइल के बारे में ही अंदाज़ा लगाया होगा? ख़ैर मैंने आगे कहा____"उस दिन के हादसे में मेरा एक मोबाइल गुम हो गया है। अब क्योंकि मैं तो बेहोश ही था इस लिए मुझे भला ये कैसे पता हो सकता है कि वो मोबाइल कहां गया होगा लेकिन मुझे बेहोशी की हालत में आप ही हॉस्पिटल ले कर गए थे तो मैं ये सोच रहा हूं कि हो सकता है कि वो मोबाइल आपको ही मिला हो।"

"सही कहा दोस्त।" संदीप की आवाज़ मेरे कान में गूँजी____"उस जगह पर मुझे एक मोबाइल भी मिला था लेकिन उस वक़्त हालात ऐसे थे कि मुझे उसे वापस करने का ख़याल ही नहीं आया था। मैंने सोचा जब तुम ठीक हो जाओगे तो तुम्हें वापस कर दूंगा।"

"तो उस दिन जब आप हॉस्पिटल आए थे तो आपने मुझे वो मोबाइल दिया क्यों नहीं था?" मैंने शशंक भाव से पूछा था।
"माफ़ करना दोस्त।" उधर से संदीप ने खेद भरे भाव से कहा____"मैं किसी काम में उलझा था और तुम्हारा मोबाइल मेरे घर पर रखा हुआ था। उस दिन मैं बाहर ही था इस लिए वहीं से तुमसे मिलने हॉस्पिटल चला आया था। उसके बाद फिर से काम में उलझ गया। दुबारा तुमसे मुलाक़ात करने का समय ही नहीं मिला। अभी भी मैं शहर से बाहर हूं लेकिन फ़िक्र मत करो दोस्त, मैं एक दो दिन में वापस आ कर तुम्हारा मोबाइल तुम्हें वापस कर दूंगा।"

"ठीक है।" मैं अब इसके सिवा भला क्या कहता____"मैं इंतज़ार करुंगा आपका।"

सन्दीप से बात करने के बाद मुझे इस बात से तो थोड़ा राहत मिली थी कि चलो मोबाइल सुरक्षित है और संदीप के पास है लेकिन मैं अब इस बात से थोड़ा चिंता में भी पड़ गया था कि अगर उस मोबाइल में संस्था के द्वारा कोई मैसेज भेजा गया होगा तो क्या संदीप ने उसे पढ़ा होगा? क्या उस मोबाइल के द्वारा वो मेरे बारे में ये जान गया होगा कि मैं किस तरह का काम करता हूं? ये सवाल ऐसे थे जो प्रतिपल मेरे दिलो दिमाग़ में हलचल पैदा किए जा रहे थे और मैं अंदर ही अंदर बेचैनी सी महसूस करता जा रहा था। मेरे ज़हन में संस्था के नियम कानून गूंजने लगे थे और साथ ही वो कसम भी कि मैं ऐसे हर उस इंसान को ख़त्म कर दूंगा जो मेरा राज़ जान जाएगा।

अचनाक से ही मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी ज़िन्दगी में चारो तरफ से एक ऐसा मायाजाल छाने लगा था जिसकी वजह से मैं बेबस और लाचार सा बनता जा रहा था। पता नहीं क्यों किसी अनहोनी की आशंका मेरे ज़हन में प्रतिपल घर करती जा रही थी। एक अंजाना सा भय मेरे रोम रोम को कँपकँपाने लगा था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 23
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अब तक...

अचनाक से ही मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी ज़िन्दगी में चारो तरफ से एक ऐसा मायाजाल छाने लगा था जिसकी वजह से मैं बेबस और लाचार सा बनता जा रहा था। पता नहीं क्यों किसी अनहोनी की आशंका मेरे ज़हन में प्रतिपल घर करती जा रही थी। एक अंजाना सा भय मेरे रोम रोम को कँपकँपाने लगा था।

अब आगे....



बड़ी मुश्किल से मेरे दो दिन गुज़रे थे। इन दो दिनों में मेरे ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभरे थे जिनकी वजह से मेरे मन की हालत बड़ी अजीब सी हो गई थी। ख़ैर संदीप अपने वादे के अनुसार दो दिन बाद मेरे घर आया। जिस वक़्त वो आया था उस वक़्त दिन के दो बज रहे थे। सविता आंटी ने मुझे बताया था कि संदीप नाम का कोई ब्यक्ति मुझसे मिलने आया है। मैंने आंटी से कहा कि वो संदीप को मेरे कमरे में ही भेज दें।

संदीप मेरे कमरे में आया तो सबसे पहले उसने मेरा हाल चाल पूछा और फिर अपना हाल चाल भी बताया। उसके बाद उसने मुझे वो मोबाइल दिया और फिर ये कह कर चला गया कि उसे किसी ज़रूरी काम के सिलसिले में जल्दी ही निकलना है। मेरे पास भी उसे रोकने का कोई बहाना नहीं था इस लिए मैंने उसे जाने दिया।

संदीप के जाने के बाद मैंने मोबाइल की तरफ देखा। मोबाइल सही सलामत था और चालू हालत में था। वो मोबाइल ऐसा था कि उसमें सामान्य मोबाइल की तरह कोई भी फंक्शन नहीं था। उसमें सिर्फ मैसेजेस आते थे। शुरू शुरू में मैं उसकी ये ख़ासियत देख कर बड़ा हैरान हुआ था। मोबाइल में जब भी संस्था द्वारा कोई मैसेज आता था तो वो मेरे पढ़ लेने के बाद अपने आप ही डिलीट हो जाता था जो कि मेरे लिए बड़ी हैरत की बात होती थी। ख़ैर मैं ये सोच रहा था कि संदीप ने अगर उस मोबाइल को चेक किया होगा तो ज़ाहिर है कि वो भी मोबाइल की ख़ासियत देख कर हैरत में पड़ गया रहा होगा। दूसरी बात जो सबसे ज़्यादा परेशानी वाली थी वो ये थी कि अगर इतने दिनों के बीच उस मोबाइल में संस्था द्वारा कोई मैसेज आया होगा तो संदीप ने ज़रूर पढ़ लिया होगा। हालांकि सिर्फ मैसेज पढ़ लेने भर से वो ये नहीं जान सकता था कि मैं किस तरह का काम करता हूं लेकिन मैसेज में किसी जगह का पता और समय देख कर वो सोच में ज़रूर पड़ गया रहा होगा। मैंने पहले तो सोचा था कि संदीप से इस बारे में पूछूंगा लेकिन फिर मैंने ये सोच कर अपना इरादा बदल दिया था कि अगर ऐसी वैसी कोई बात होगी तो संदीप खुद ही मुझसे इस बारे में बात करेगा। कमरे में जब वो मेरे पास बैठा था तब उसने इस बारे में कोई बात नहीं की थी। इसके दो ही मतलब हो सकते थे कि या तो मोबाइल में संस्था द्वारा कोई मैसेज आया ही नहीं होगा या फिर संदीप को मोबाइल चेक करने का समय ही न मिला होगा। ये भी हो सकता था कि उसने किसी दूसरे का मोबाइल चेक करना ग़लत बात समझता रहा हो।

संस्था की तरफ से मिला मोबाइल तो मिल गया था मुझे लेकिन मैं ये सोच रहा था कि मेरे साथ इतना कुछ हो गया था मगर संस्था की तरफ से किसी ने भी मेरा हाल चाल जानने की कोशिश नहीं की थी। सवाल था कि क्या मेरी इस हालत में संस्था का अपना कोई कर्त्तव्य नहीं बनता था? ये माना कि संस्था के हर एजेंट एक दूसरे के लिए अजनबी होते हैं लेकिन संस्था का चीफ़ यानी ट्रिपल एक्स के लिए तो मैं अजनबी नहीं था? कम से कम उन्हें तो किसी माध्यम से मेरा हाल चाल पूछना चाहिए था। हालांकि मेरे मन में ये भी ख़याल उभरते थे कि संभव है कि ट्रिपल एक्स को मेरी हालत के बारे में सब कुछ पता हो। उनके अनुसार संस्था के हर एजेंट्स पर उनकी नज़र रहती है।

कुछ दिन और इसी तरह गुज़र गए। मेरी हालत अब पहले से काफी बेहतर थी। जिस्म पर तो मामूली खरोचें ही आईं थी लेकिन सिर की चोट गहरी थी। सिर में टाँके लगे थे जो कि अब पहले से थोड़ा रिकवर हो गए थे। मैं अपने से अपना हर काम कर लेता था। मम्मी पापा तो अभी भी मुझे आराम करने के लिए ही कह रहे थे लेकिन मुझसे अब और ज़्यादा बेड पर लेटा नहीं जा रहा था। मेरा ज़हन ऐसे ऐसे सवालों से घिरा हुआ था कि मैं आराम नहीं कर सकता था। अपने अंदर की बेचैनी को मैं हर कीमत पर दूर करना चाहता था। मेरे ज़हन में अब भी वही सब बातें थी कि आख़िर मेरे पेरेंट्स और उनके दोस्तों के बीच किस तरह की बातें हुई थीं? बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो मैं ये सोच कर खुद को तसल्ली दे लेता कि हो सकता है कि मैं इस बारे में बेवजह ही इतना सोच रहा हूं लेकिन उस एक्सीडेंट ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था। मुझे अच्छी तरह इस बात का एहसास था कि वो एक्सीडेंट स्वाभाविक नहीं था बल्कि किसी के द्वारा उस एक्सीडेंट को अंजाम दिया गया था। उस एक्सीडेंट को करवाने का बस यही मकसद था कि मैं उस रास्ते पर आगे न जाऊं। यानि कोई ये नहीं चाहता था कि मैं अपने पापा के पीछे उस रास्ते पर जाऊं।

मेरे मन में बार बार ये सवाल उभर रहे थे कि आख़िर ऐसा कोई क्यों चाहता था? दूसरी बात, पापा उसी रास्ते में आगे की तरफ जा रहे थे जिस रास्ते पर चूत मार सर्विस का मुख्यालय था। ना चाहते हुए भी मेरे मन में ये सवाल उभर पड़ते थे कि क्या पापा चूत मार सर्विस जैसी संस्था के मुख्यालय जा रहे थे? क्या उनका सम्बन्ध उस संस्था से हो सकता है? दिल तो एक पर्सेंट भी नहीं मान रहा था लेकिन दिमाग़ बार बार इन सवालों को ले कर खड़ा हो जाता था। एक बार फिर से मेरे सामने ये समस्या खड़ी हो गई थी कि मैं इस बारे में किस तरह पता करूं? अपने दोस्तों से मुझे किसी भी तरह की मदद की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने तो पहले ही इस बारे में मुझे कह दिया था कि मैं बेवजह ही इस बारे में ऐसा सोच रहा हूं। कहने का मतलब ये कि इस सम्बन्ध में सारी बातों का पता मुझे खुद ही लगाना था।

मैं अपने कमरे में बेड पर पड़ा इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी अचानक से मेरे ज़हन में एक विचार बिजली की तरह कौंधा। दिलो दिमाग़ में रोमांच की लहर दौड़ती चली गई। मैंने कुछ देर सोचा और फिर फ़ैसला कर लिया। मन ही मन सोचा कि हो सकता है कि कोई ख़ास बात पता चल जाए।

जैसा कि मैंने पहले ही बता दिया था कि बंगलो में घर की देख रेख के लिए तीन नौकर थे और खाना बनाने से ले कर कपड़े वगैरह धोने का काम सविता आंटी करतीं थी। एक तरह से ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मम्मी पापा के न रहने पर बंगलो की मालकिन वही होती थीं। उनका हर हुकुम मानना उन तीनों नौकरों के लिए अनिवार्य था। सविता आंटी काफी सालों से हमारे परिवार का सदस्य बन कर रह रहीं थी। उनके सामने ही मेरा जन्म हुआ था और अब मैं जवान भी हो चुका था। सविता आंटी के परिवार में उनकी एक बेटी थी जिसकी कुछ साल पहले मेरे पेरेंट्स ने ही धूम धाम से शादी कर दी थी। उनका पति बहुत पहले एक गंभीर बिमारी के चलते ईश्वर को प्यारा हो गया था। वो मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करतीं थी और मैं खुद भी उन्हें वैसा ही सम्मान देता था जैसे अपनी मां को देता था।

साविता आंटी बंगलो में ही रहतीं थी जबकि बाकी नौकरों के लिए अलग से सर्वेंट क्वार्टर बना हुआ था। सविता आंटी का कमरा ग्राउंड फ्लोर में ही बाईं तरफ एक कोने में था जबकि मम्मी पापा का कमरा दाईं तरफ था। दिन के सारे काम करने के बाद सविता आंटी बंगलो का मुख्य द्वार अंदर से बंद कर के अपने कमरे में आराम करने चली जाती थीं। दो से पांच बजे तक वो अपने कमरे में आराम करतीं थी उसके बाद वो फिर से अपने किसी न किसी काम में लग जाती थीं।

मैंने दीवार पर टंगी घड़ी पर टाईम देखा। तीन बजने वाले थे। यानि मेरे पास अपने काम के लिए सवा दो घंटे का वक़्त था जो कि काफी से भी ज़्यादा था। मैं आहिस्ता से बेड से उठा और चल कर दरवाज़े के क़रीब आया। दरवाज़ा खोल कर मैं बाएं तरफ गैलरी में मुड़ा। कुछ ही देर में मैं सीढ़ियों के पास आ गया। सीढ़ियों के पास रुक कर मैंने नीचे ग्राउंड फ्लोर की तरफ देखा और अपने कान भी खड़े कर दिए। बंगलो में मुकम्मल ख़ामोशी कायम थी। ज़ाहिर था कि सविता आंटी अपने कमरे में सोई हुईं थी। मैं आगे बढ़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। सीढ़ियों पर कालीन बिछा हुआ था इस लिए कोई आवाज़ नहीं हो रही थी।

ग्राउंड फ्लोर पर आ कर मैंने एक बार बाईं तरफ एक कोने में मौजूद सविता आंटी के कमरे की तरफ देखा। दरवाज़ा बंद था। मैं जानता था कि वो हमेशा अंदर से कुण्डी लगा कर ही बेड पर सोती थीं। कुछ पलों तक उनके कमरे की तरफ देखते रहने के बाद मैं पलटा और दाईं तरफ मम्मी पापा के कमरे की तरफ बढ़ चला। फर्श पर मैं इस तरह आहिस्ता से चल रहा था कि ज़रा सी भी आवाज़ न हो। कुछ ही देर में मैं मम्मी पापा के कमरे के पास पहुंच गया। हमेशा की तरह मम्मी पापा का कमरा उनके न रहने पर बाहर से सिर्फ कुण्डी लगा कर बंद था। मैंने हाथ बढ़ा कर आहिस्ता से कुण्डी को सरकाया और दरवाज़े को बहुत ही हल्के से अंदर की तरफ ढकेला। दरवाज़ा बेआवाज़ खुलता चला गया।

कमरे में दाखिल हो कर मैंने दरवाज़े को वापस बंद कर दिया। अपने ही बंगलो में और अपने ही मम्मी पापा के कमरे में इस तरह दाखिल होने से उस वक़्त मेरा दिल बड़े ज़ोरों से धड़कने लगा था। माथे पर पसीना उभर आया था और साँसें तेज़ हो गईं थी। मेरा मकसद था मम्मी पापा के कमरे की तलाशी लेना। मैं नहीं जानता था कि उनके कमरे में मैं किस चीज़ की तलाश करने आया था लेकिन इतना ज़रूर समझ रहा था कि कुछ तो ऐसा ज़रूर मिले जिससे मेरे ज़हन में उभरे सवालों का जवाब मिल जाए। ख़ैर मैं तलाशी अभियान में जुट गया। तलाशी के वक़्त मैं इतनी सावधानी ज़रूर बरत रहा था कि उठाने के बाद हर चीज़ को यथा स्थान पर पहले की तरह ही रख रहा था।

एक घंटे तक मैं मम्मी पापा के कमरे में तलाशी अभियान चलाए रहा लेकिन मुझे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे मेरे ज़हन को सुकून मिल जाए। बुरी तरह निराश और हताश हो चुका था मैं। बार बार मन में यही ख़याल उभरने लगे थे कि शायद मैं सच में बेवजह ही इस बारे में इतना कुछ सोच बैठा था।

मैं निराश और हताश हो चुका था। एक घंटे की मेहनत से मैं बुरी तरह थक गया था और इसी वजह से मैं बेड पर बैठ गया था। कुछ देर मैं बेड पर ऐसे ही परेशान सा बैठा रहा था कि तभी मेरी नज़र फर्श पर बिछे ईरानी कालीन पर पड़ी। वो कालीन उतने में ही बिछा हुआ था जितने में बेड था। यानि बेड के सभी पाए उस कालीन पर ही रखे थे, बाकी कमरे में कालीन नहीं था। हालांकि ये कोई विशेष बात नहीं थी लेकिन मेरे लिए विशेष बात ये नज़र आई थी कि उस कालीन के एक तरफ का सिरा फर्श से थोड़ा सा ही उठा हुआ था, जबकि कालीन के बाकी तीनो सिरे फर्श पर बराबर तरीके से सटे हुए थे। मैं सोचने लगा कि ऐसा क्यों होगा कि कालीन के बाकी तीनो सिरे तो फर्श से चिपके हुए हैं लेकिन उसका एक सिरा फर्श से थोड़ा सा उठा हुआ है? ऐसा तो तभी हो सकता है जब उस एक सिरे को रोज़ाना पकड़ कर उठाया जाता हो।

मन में इस बात के चलते उत्सुकता सी जाग उठी थी इस लिए मैं बेड से उठा और बेड के क़रीब उकडू बैठ कर उठे हुए कालीन के उस एक मात्रा सिरे को पकड़ कर उठाया तो मेरी आँखें चौड़ी हो ग‌ईं। मनो मस्तिष्क में बड़ी तेज़ी से ख़याल उभरा कि अच्छा तो ये बात है। अभी मैं उस कालीन के सिरे को पकड़े ये सोच ही रहा था कि तभी मैं डोर बेल की आवाज़ सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। ज़हन में सवाल उभरा कि इस वक़्त कौन आया होगा? क्या मम्मी पापा आए होंगे? मैंने फ़ौरन ही कालीन को छोड़ा और तेज़ी से कमरे के बाहर आ कर दरवाज़े को बाहर से उसी तरह कुण्डी लगा कर बंद किया जैसे वो पहले बंद था। उसके बाद ये सोच कर तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया था कि कहीं सविता आंटी डोर बेल की आवाज़ सुन कर अपने कमरे से बाहर ही न आ जाएं। अगर उन्होंने मुझे मम्मी पापा के कमरे से निकलते हुए या इस वक़्त ग्राउंड फ्लोर पर देख लिया तो उनके मन में कई तरह के सवाल उभर आएंगे। मैं तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर अपने कमरे में आ गया था।

☆☆☆

मैं अपने कमरे में दाखिल ही हुआ था कि अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल आया और मैं फ़ौरन ही पलट कर दरवाज़े के बाहर आ कर सीढ़ियों की तरफ लपका। असल में मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा था कि उस वक़्त जबकि बंगलो में मेरे और सविता आंटी के अलावा कोई नहीं था तो किसने डोर बेल बजाई होगी? मेरे दोस्त लोग मुझसे मिलने सुबह बारह बजे ही आए थे, इस लिए अब उनके आने उम्मीद नहीं थी। मम्मी पापा से मिलने वाले जानते थे कि उस वक़्त वो अपने ऑफिस में होते थे। तो सवाल था कि कौन आया होगा?

मैं सीढ़ियों के पास आ कर ऐसी जगह पर छुप कर खड़ा हो गया था जहां से मैं ग्राउंड फ्लोर के उस हिस्से की तरफ आसानी से देख सकता था जहां पर बाहर से आने वाला मुझे दिख जाता। हालांकि अगर कोई मुख्य द्वार पर ही रुक जाता तो फिर मैं उसके बारे में नहीं जान सकता था क्योंकि उस सूरत में वो मुझे ऊपर से दिखता ही नहीं।

मैंने देखा कि जब डोर बेल तीसरी बार बजी तो सविता आंटी अपने कमरे से निकल कर मुख्य द्वार की तरफ जा रहीं थी। मैं दुवा कर रहा था कि बाहर जो भी था वो अंदर आए ताकि मैं देख सकूं कि वो कौन है। थोड़ी ही देर में सविता आंटी अंदर की तरफ आईं और उस वक़्त मैं खुश हो गया जब उनके पीछे एक आदमी को आते देखा। ज़ाहिर था मेरी दुवा कुबूल हो गई थी। सविता आंटी के साथ आने वाले का चेहरा ठीक से दिख नहीं रहा था क्योंकि ऊपर से मुझे उसके सिर का ऊपरी भाग ही दिख रहा था।

"दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों लगा दिया था तुमने?" आगंतुक ने धीमी आवाज़ में कहा किन्तु उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ चुकी थी और मैं उसकी आवाज़ सुन कर मन ही मन ये जान कर चौंक पड़ा था कि आगंतुक कोई और नहीं बल्कि रंजन के पापा संजय अंकल थे। मेरे मन में उस वक़्त उन्हें अपने घर में देख कर ढ़ेरों सवाल उभर आए थे।

"आपको पहले बता देना था कि आप इतनी देरी से आएंगे।" सविता आंटी ने पलट कर उनके जैसे ही धीमी आवाज़ में कहा____"मैं तो आपके आने का इंतज़ार ही कर रही थी लेकिन जब आप अपने दिए टाईम पर नहीं आए तो मेरी आँख लग गई।"

"मैं एक ज़रूरी काम में उलझ गया था।" संजय अंकल ने कहा____"इसी वजह से देर हो गई। ख़ैर ये बताओ कि वो कहां है और अब कैसी तबियत है उसकी?"
"वो अपने कमरे में है।" सविता आंटी ने कहा____"और तबियत अब पहले से काफी बेहतर है उसकी। वैसे, आज दो बजे एक आदमी उससे मिलने आया था।"

"हां पता है मुझे।" संजय अंकल ने कहा____"क्या तुमने उस आदमी के साथ विक्रम की बातें सुनी?"
"क्या मुझे सुननी चाहिए थी?" सविता आंटी ने मानो सोचने वाले भाव से पूछा था।

"नहीं ज़रूरत नहीं थी।" संजय अंकल ने कहने के साथ ही एक सिगरेट जलाई और फिर कहा____"और कोई विशेष बात?"
"फिलहाल तो कुछ नहीं है।" सविता आंटी ने कहा____"लेकिन उसका चेहरा देखने से यही लगता है कि वो अभी भी किसी बात से परेशान है या किसी बात की उलझन में है।"

"बेवकूफ है वो।" संजय अंकल ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा____"आम खाने की जगह पेड़ गिनने की सनक सवार हो गई है उसे।"
"कहीं इस सनक का कारण वही तो नहीं?" सविता आंटी ने शंकित भाव से कहा____"मुझे कुछ कुछ आभास हो रहा है। मेरा मतलब है कि जिस दिन भाई साहब की शादी की सालगिरह थी उसी रात से उसके चेहरे के भाव कुछ बदले बदले से लगे थे।"

"उसने उस रात हमारी वो बातें सुन ली थीं जो हम उसके पेरेंट्स के कमरे में आपस में कर रहे थे।" संजय अंकल ने कहा____"हालाँकि हमारी बातें ऐसी थीं ही नहीं कि कोई उन बातों का दूसरा ही मतलब निकाल ले। ख़ैर छोड़ो इस बात को, मैं ये कहने आया था कि उसकी गतिविधियों पर नज़र बनाए रखना। वो अब पहले से बेहतर है इस लिए मुमकिन है कि वो फिर से अपने मन में उठे सवालों के जवाब तलाशने निकले। तुम्हारा काम यही है कि अगर वो ऐसा करता है तो तुम हमें फ़ौरन ही इस बारे में सूचित करो।"

"वो तो मैं करुँगी ही।" सविता आंटी ने कहा____"लेकिन मैंने आपसे जिस चीज़ की ख़्वाहिश वाली बात कही थी वो अभी तक आपने पूरी नहीं की। भाई साहब से एक बार कहा था लेकिन उन्होंने बुरी तरह डांट दिया था मुझे।"

"चिंता मत करो।" संजय अंकल ने सविता आंटी के चेहरे को हल्के से सहलाया और फिर हल्की मुस्कान के साथ कहा____"इस बार तुम्हारी ख़्वाहिश हर कीमत पर पूरी होगी। बस कुछ समय और इंतज़ार कर लो।"

"उफ्फ! ये इंतज़ार किसी दिन मेरी जान ही न ले ले।" सविता आंटी ने बड़े अजीब अंदाज़ में कहा____"काश मेरे दिल में ऐसी ख़्वाहिश ही न जन्म लेती।"
"धैर्य रखो सविता।" संजय अंकल ने कहा_____"इस बार तुम्हारी ख़्वाहिश ज़रूर पूरी होगी। अच्छा अब चलता हूं मैं।"

संजय अंकल पलट कर वापस बाहर की तरफ चल पड़े तो सविता आंटी भी उनके पीछे पीछे उन्हें बाहर तक छोड़ने चली गईं थी। इधर मैं उन दोनों की बातें सुन कर मानो पत्थर की मूर्ती में बदल गया था। मेरा ज़हन मानों अंतरिक्ष में परवाज़ कर रहा था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैं गहरी सांस लेते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या चक्कर था? संजय अंकल का तो मैं सोच भी सकता था लेकिन सविता आंटी को इतना रहस्यमय देख कर उस दिन मैं बुरी तरह हैरत में पड़ गया था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
1,621
5,929
143
अध्याय - 24
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अब तक...

संजय अंकल पलट कर वापस बाहर की तरफ चल पड़े तो सविता आंटी भी उनके पीछे पीछे उन्हें बाहर तक छोड़ने चली गईं थी। इधर मैं उन दोनों की बातें सुन कर मानो पत्थर की मूर्ती में बदल गया था। मेरा ज़हन मानों अंतरिक्ष में परवाज़ कर रहा था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैं गहरी सांस लेते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या चक्कर था? संजय अंकल का तो मैं सोच भी सकता था लेकिन सविता आंटी को इतना रहस्यमय देख कर उस दिन मैं बुरी तरह हैरत में पड़ गया था।

अब आगे....



"ट्रिन्निंग...ट्रिन्निंग।" टेबल पर रखे लैंड लाइन फ़ोन की घंटी एकदम से घनघना उठी तो जेलर शिवकांत वागले का ध्यान टूटा। वो विक्रम सिंह की डायरी में खोया हुआ था। फ़ोन के बजने से उसके चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे, किन्तु फिर उसने गहरी सांस लेते हुए फ़ोन का रिसीवर उठा कर कान से लगाया।

"जेलर शिवकांत वागले स्पीकिंग।" फिर उसने अपनी आवाज़ को प्रभावशाली बनाते हुए माउथ पीेस पर कहा।

उधर से जाने ऐसा क्या कहा गया कि वागले के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे। कुछ देर उधर की बातें सुनने के बाद उसने कहा____"इस बारे में भला मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं इंस्पेक्टर घोरपड़े? मेरे पास उससे सम्बंधित ऐसी कोई जानकारी नहीं है जिससे उस तक पहुंचने में तुम्हें मदद मिल सके।"

वागले के ऐसा कहने पर फिर से कुछ कहा गया जिस पर वागले ने कहा_____"यकीनन इंस्पेक्टर, ये बेहद सोचने वाली बात है और चौकाने वाली भी लेकिन जो भी है उसके बारे में पता करना तुम्हारा ही काम है। मेरे पास अगर उससे सम्बंधित कोई भी जानकारी होती तो तुमसे साझा करने में मुझे ख़ुशी ही होती।"

कुछ देर और उधर से कुछ कहा गया, उसके बाद वागले ने ठीक है कह कर रिसीवर रख दिया। रिसीवर रखने के बाद वागले गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था। अभी उसने जिस इंस्पेक्टर से बात की थी उसका नाम वसंत घोरपड़े था जोकि धारावी के एक इलाके का थानेदार था। वागले ये जान कर चौंका था कि घोरपड़े ने उससे किसी आदमी के मर्डर का ज़िक्र किया था और उस मर्डर में प्राप्त फिंगर प्रिंट्स विक्रम सिंह के फिंगर प्रिंट्स से मैच करते मिले थे। इंस्पेक्टर घोरपड़े को पता चला था कि विक्रम सिंह नाम का शख़्स बीस साल की सज़ा काट कर जिस जेल से रिहा हुआ था उस जेल का जेलर शिवकांत वागले है। उसने यही सोच कर वागले को फ़ोन किया था कि शायद वागले उसे विक्रम सिंह के सम्बन्ध में कोई ऐसी जानकारी बता सके जिससे वो विक्रम सिंह तक आसानी से पहुंच सके।

शिवकांत वागले इस वक़्त यही सोच रहा था कि बीस साल की सज़ा काटने के बाद विक्रम सिंह ने आख़िर किसी आदमी का मर्डर क्यों किया होगा? क्या इतने सालों बाद भी उसके अंदर कोई बदले की आग अपना डेरा जमाए बैठी हुई थी? उसने अपनी ज़िन्दगी के बीस साल उसकी जेल में बिताए थे। उस पर अपने ही माता पिता की हत्या का संगीन आरोप लगा था। वागले ने सोचा कि बीस साल का वक़्त थोड़ा नहीं होता, इतने सालों में इंसान की सोच बहुत हद तक बदल जाती है और वो जीवन को एक अलग ही नज़रिए से देखने लगता है लेकिन इस मामले में विक्रम सिंह का नज़रिया शायद सबसे जुदा था।

वागले ने इंस्पेक्टर घोरपड़े को ये नहीं बताया था कि जिस विक्रम सिंह के बारे में उसने उससे जानकारी पाने की उम्मीद में फ़ोन किया था उस शख़्स से सम्बंधित एक डायरी उसके पास है। वागले समझ नहीं पा रहा था कि उसने विक्रम सिंह की डायरी का जिंक्र उस इंस्पेक्टर से क्यों नहीं किया था? संभव है कि इस डायरी की मदद से ही उसे विक्रम सिंह तक पहुंचने में कोई मदद मिल जाती।

लंच का टाइम हो चुका था इस लिए वागले ने विक्रम सिंह की डायरी को बंद कर के उसे ब्रीफ़केस में रखा और श्याम के हाथों लाया हुआ अपने घर का खाना खाने लगा। लंच करते समय भी उसका ज़हन विक्रम सिंह के बारे में ही उलझा हुआ था। रह रह कर उसके ज़हन में यही सवाल उभर रहे थे कि उसकी जेल से रिहा होने के बाद विक्रम सिंह ने क्या सच में किसी का मर्डर किया होगा? इंस्पेक्टर घोरपड़े भला उसके बारे में झूठ क्यों बोलेगा? मतलब साफ़ है कि इंस्पेक्शन के अनुसार विक्रम सिंह ने किसी का मर्डर किया है लेकिन सवाल है कि क्यों? आख़िर बीस सालों तक वो अपने अंदर कौन सी आग को दबाए बैठा हुआ था? क्या इस सबका सम्बन्ध उसी चूत मार सर्विस जैसी संस्था से होगा जिसका वो कभी एजेंट था?

लंच करने के बाद भी वागले इसी सबके बारे में सोचता रहा था। उसके बाद उसने पूरी जेल का एक चक्कर लगाया और फिर वापस केबिन में आ कर विक्रम सिंह की डायरी खोल कर बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर अजीब से भाव गर्दिश कर रहे थे। उसने फ़ौरन ही डायरी के उस पेज़ को खोला जहां से उसे आगे पढ़ना था।

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सारा दिन मैं अपने कमरे में पड़ा संजय अंकल और सविता आंटी के बारे में सोचता रहा था। मैं समझ चुका था कि जो भी चक्कर था वो मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा बड़ा था। सबसे ज़्यादा हैरानी तो मुझे सविता आंटी के बारे में जान कर हो रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि जिस औरत को मैं एक मामूली सी समझता रहा हूं वो संजय अंकल जैसे ब्यक्ति के साथ किसी रहस्यमय चक्कर में फंसी हुई हो सकती है। अब तो मेरे लिए इन सारे चक्करों का पता लगाना निहायत ही ज़रूरी हो गया था। सविता आंटी की बातों से मैं ये भी जान गया था कि वो संजय अंकल के कहने पर या शायद उनके इशारे पर मुझ पर या ये कहें कि मेरी गतिविधियों पर नज़र रखती रहीं थी। इस बात से मैं ये भी सोचने पर मजबूर हो गया था कि अगर सविता आंटी सच में मेरी गतिविधियों पर नज़र रखती रहीं थी तो क्या वो ये भी जान गईं होंगी कि मैं किसी चूत मार सर्विस जैसी संस्था से जुड़ा हुआ हूं? अगर ऐसा था तो फिर मेरे लिए ये बड़ी ही गंभीर समस्या वाली बात थी। मुझे हर हाल में हर चीज़ का पता लगाना था, लेकिन कैसे ये मुझे समझ नहीं आ रहा था।

मेरी नज़र में कुछ बातें क्लियर हो चुकीं थी। जैसे कोई अज्ञात ब्यक्ति ये नहीं चाहता था कि मैं अपने पापा का पीछा करूं। इससे ये भी साबित होता था कि पापा भी किसी गहरे चक्कर में थे जोकि रहस्यमयी हो सकता था। दूसरे संजय अंकल सविता आंटी के द्वारा अगर मुझ पर नज़र रखवा रहे थे तो वो दोनों भी किसी चक्कर में थे और उनके रहते मैं उनके किसी चक्कर का पता नहीं लगा सकता था। मतलब साफ़ था कि मुझे उनके चक्कर का पता इस तरीके से लगाना चाहिए था जो उनकी नज़र में न आए और ये यहाँ रहते हुए नहीं हो सकता था।

मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या ये थी कि अभी मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ था और मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरे पेरेंट्स मुझे इस हालत में दूसरे शहर वापस नहीं जाने देंगे। ये सोच कर मैंने फिलहाल यही सोचा कि मैं यहीं रह कर सच का पता लगाता हूं।

दूसरे दिन मैं उस वक़्त अपने कमरे से निकला जब दोपहर के दो बजे थे। मैं जानता था कि दो बजे तक सविता आंटी सारे काम से फ़ारिग हो कर अपने कमरे में आराम करने चली जाती थीं। दो से पांच बजे तक वो अपने कमरे में ही रहती थीं। यानि यही वो टाइम हो सकता था जब मैं अपनी तरफ से कोई काम कर सकता था। मेरे ज़हन में मम्मी पापा के कमरे का वो दृश्य अभी भी था जब मैं उनके बेड के नीचे बिछे कालीन को उठा कर उसके नीचे देखने वाला था। जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उस कालीन के नीचे कुछ ऐसा था जो अपनी आस्तीन में किसी बड़े रहस्य को छुपाए बैठा था।

कुछ देर और गुज़र जाने के बाद मैं अपने कमरे से निकल कर सीढ़ियों के रास्ते नीचे आया। नीचे मुकम्मल तौर पर ख़ामोशी विद्यमान थी। मैं बड़ी ही सावधानी से चलते हुए मम्मी पापा के कमरे में दाखिल हुआ। कमरे में आ कर मैंने दरवाज़े को अंदर से बंद किया और फिर बेड के क़रीब बढ़ा। कमरे का दृश्य वैसा ही था जैसा कल था। बेड सलीके से बिछा हुआ था और बाकी मौजूद सामान भी अपनी जगह पर तरीके से रखा हुआ था। मैंने गौर से उस कालीन को देखा जिसके ऊपर बेड के पाए रखे हुए थे। जिस जगह से कालीन का एक सिरा हल्का उठा हुआ था उसे पकड़ कर मैंने उठाया तो उसके नीचे का फर्श मुझे कुछ ऐसा नज़र आया जो बाकी जगह से काफी अलग था। एक बड़े से चौकोर में फर्श पर एक दरार सी बनी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे फर्श का वो चौकोर हिस्सा किसी ढक्कन जैसा हो। मैंने हाथ बढ़ा कर उन चौकोर दरारों को छुआ। कालीन के नीचे वो दरार अंदर तक बनी हुई थी। यानी बेड के नीचे से कालीन को अगर हटा दिया जाता तो वो जगह साफ़ दिखने लगती। कालीन के ऊपर बेड के पाए रखे होने की वजह से कालीन को हटाया नहीं जा सकता था।

मैंने खड़े हो कर बेड को उस जगह से बड़ी सावधानी से हटाया। मेरे पेरेंट्स का कमरा इतना बड़ा तो था ही कि किंग साइज बेड को हटा कर एक तरफ कर देने के बाद भी काफी जगह बच जाती। हालांकि बेड को हटाना इतना भी आसान नहीं था। ख़ैर बेड को हटा कर मैंने उस कालीन को भी पकड़ कर फर्श से हटाया। कालीन के हट जाने से अब फर्श का वो हिस्सा साफ़ चमकने लगा था जिसमें एक बड़ा सा चौकोर निशान सा बना हुआ था। उस चौकोर निशान को देख कर मुझे पूरी तरह यकीन हो गया था कि कमरे के उस हिस्से पर कुछ तो बात ज़रूर है। मैं बड़े ध्यान से फर्श के उस हिस्से को कुछ देर तक देखता रहा। मुझे ये समझते देर न लगी कि वो हिस्सा मामूली नहीं हो सकता था। यानी उस हिस्से को हाथ से नहीं हटाया जा सकता था। यकीनन कोई ऐसा जुगाड़ था जिसके द्वारा फर्श के उस चौकोर हिस्से को हटाया जाता था।

मैं नज़र घुमा कर कमरे में चारो तरफ ध्यान से देखने लगा। मेरी नज़रें उस ख़ास चीज़ को खोज रहीं थी जिसका सम्बन्ध फर्श के उस ख़ास हिस्से से था। कमरे में यूं तो काफी चीज़ें रखी हुईं थी लेकिन वो सब मामूली यूज़ वाली थी जबकि मुझे ख़ास चीज़ की तलाश थी। बाएं तरफ रखी आलमारी के बगल से दीवार से जुड़ी हुई बुक शेल्फ थी जिसमें कई सारी मोटी मोटी किताबें रखी हुईं थी। मैं उस बुक शेल्फ की तरफ बढ़ा। ये वैसी ही किताबें थी जैसे या तो किसी वकील के यहाँ हो सकतीं थी या फिर किसी बुक संग्रहालय में। ख़ैर मैं उस बुक शेल्फ के पास पहुंचा। उस बुक शेल्फ में कई सारे पार्ट्स थे। मैंने बड़े गौर से उन किताबों को देखना शुरू किया। सारी किताबें बड़े ही तरीके से रखी हुईं थी। मैं अभी उन्हें देख ही रहा था कि मेरी नज़र चार किताबों पर ठहर गई।

मेरे लिए ये थोड़ा अजीब बात थी कि अगल बगल वाली किताबों के बीच रखी वो चार किताबें अपने अगल बगल वाली किताबों से थोड़ा सा ही सही लेकिन फांसला बना के क्यों रखी हुईं थी? गौर से देखने पर ऐसा लगता था जैसे वो चारो आपस में जुड़ी हुई हों। मैंने उत्सुकतावश हाथ बढ़ा कर उन्हें छुआ और उनमें से एक को निकालने की कोशिश की ही थी कि उस एक के साथ बाकी तीनों भी अपनी जगह से मेरी तरफ को झुकीं और जैसे ही वो चारो एक साथ झुकीं तो मैं अजीब सी आवाज़ को सुन कर उछल पड़ा। आवाज़ मेरे पीछे से आई थी। मैंने फ़ौरन ही गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो बुरी तरह चौंक गया। फर्श का वो चौकोर हिस्सा अपनी जगह से गायब हो चुका था और अब उस जगह पर गढ्ढा दिख रहा था।

मैं बुक शेल्फ में रखी उन किताबों को छोड़ कर जल्दी ही उस गड्ढे के पास आया। चकित आँखों से मैं कमरे में बने उस चौकोर गड्ढे को देखे जा रहा था। मैं ये जान कर हैरान था कि मेरा शक एकदम सही था। यानी बेड के नीचे सच में कुछ ख़ास था। उस गड्ढे में नीचे की तरफ जाने के लिए बनी सीढियां साफ़ नज़र आ रहीं थी। आज से पहले मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे उस घर में ऐसी कोई गुप्त चीज़ भी हो सकती थी। मेरे मन में अब ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी कि उस गड्ढे के नीचे क्या होगा? आख़िर मेरे पेरेंट्स ने अपने कमरे के नीचे किस तरह की दुनियां बना रखी है?

मैं धड़कते हुए दिल के साथ गड्ढे में दिख रही सीढ़ियों पर उतरने लगा। नीचे अँधेरा दिखा तो मैं वापस आया और कमरे में कोई टार्च खोजने लगा। जल्दी ही मुझे एक तरफ रखी टार्च मिल गई। टार्च ले कर मैं फिर से उस गड्ढे की तरफ बढ़ा और सीढ़ियों से होते हुए नीचे उतरने लगा। मैंने टार्च जला ली थी जिससे अब मुझे नीछे उतरने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी। मेरे दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ बज रहीं थी जिनकी धमक मुझे मेरी कनपटियों पर पड़ती साफ़ महसूस हो रही थी। कुछ देर बाद मैं सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे आ गया। टार्च की रौशनी में मैंने देखा कि नीचे जिस फर्श पर मैं खड़ा था वो काफी साफ़ सुथरा था और चमक रहा था। मैंने टार्च की रोशनी में इधर उधर देखा तो मुझे एक तरफ दिवार में बिजली का स्विच नज़र आया। मैंने फ़ौरन ही एक बटन पर ऊँगली रखी तो पलक झपकते ही नीचे का पूरा हिस्सा तेज़ प्रकाश से भर गया। तेज़ रौशनी के होते ही मैंने चारो तरफ देखा।

वो एक कमरा था जो मेरे पेरेंट्स के कमरे से थोड़ा ही छोटा था। उस कमरे को देख कर ऐसा लगता ही नहीं था कि मैं किसी तहख़ाने जैसी जगह पर खड़ा था। पूरा कमरा क़रीने से सजा हुआ था। एक कोने में शानदार बेड रखा हुआ था। दो तरफ की दीवार से जुडी कई सारी आलमारियां थीं। एक तरफ दो कंप्यूटर रखे हुए थे जो उस वक़्त बंद थे। कंप्यूटर के ऊपर यानी दीवार पर कुछ ऐसे इलेक्ट्रिक इंस्ट्रूमेंट्स दीवार पर चिपके हुए थे जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था। उन इंस्ट्रूमेंट्स में लाल पीली और हरी बत्तियां जल रहीं थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो किस चीज़ के इंस्ट्रूमेंट्स थे? मैं उस कमरे में मौजूद हर चीज़ को बड़े ही गौर से देखता जा रहा था और साथ ही ये भी सोचता जा रहा था कि आख़िर ये सब क्या है? क्या ये सब मेरे पापा का था? सवाल बचकाना ज़रूर था लेकिन मैं उस वक़्त ऐसी हालत में था कि उस सबको मैं अपने पापा से जोड़ने में समर्थ नहीं था या ये नहीं सोच सकता था कि वो सब मेरे पापा से सम्बंधित हो सकता है।

मैं हर चीज़ को देखते देखते सीढ़ियों की तरफ पलटा ही था कि सीढ़ियों के नीचे वाली दिवार पर एक और चौकोर निशान को देख कर चौंक गया। उस चौकोर निशान में बस फ़र्क यही था कि वो दीवार पर बना हुआ था जबकि पहले वाला मेरे पेरेंट्स के कमरे के फर्श पर बना हुआ था। मतलब साफ़ था कि उस जगह पर भी कोई ख़ुफ़िया रास्ता था जहां पर कुछ न कुछ ऐसा हो सकता था जो मेरी कल्पनाओं से परे था। मेरी उत्सुकता एक बार फिर से ये जानने के लिए बढ़ गई थी कि अब उस हिस्से में आख़िर क्या होगा? मैं एक बार फिर से ऐसी ख़ास चीज़ की तलाश करने लगा जिसका सम्बन्ध उस चौकोर वाले निशान से हो सकता था। यानि कोई ऐसी चीज़ जिसके द्वारा उस चौकोर हिस्से पर या तो कोई गड्ढा नज़र आ जाता या फिर कोई दरवाज़ा दिख जाता।

मैंने कमरे में रखी हर चीज़ को बड़ी बारीकी से देखा। कुछ चीज़ों पर मुझे शक हुआ और मैंने उन चीज़ों को घुमा फिरा कर भी देखा मगर सीढ़ियों के नीचे दीवार पर दिख रहे उस चौकोर हिस्से पर कोई फ़र्क न हुआ। अपनी तरफ से मैंने हर प्रयास किया लेकिन सफल न हुआ। मैं समझ गया था कि यहाँ का हर सिस्टम मेरी सोच से परे है। ख़ैर थक हार कर मैं वापस सीढ़ियों के रास्ते ऊपर कमरे में आ गया। बुक शेल्फ पर रखी उन चारो किताबों को सीधा किया तो फर्श पर दिख रहा वो गड्ढा भर गया। अब उस जगह पर फिर से पहले जैसा फर्श दिखने लगा था। मैंने कालीन को पहले जैसे ही उस चकोर निशान पर रखा और फिर बेड को भी। इस सारे काम में मैं पसीना पसीना हो गया था।

अपने कमरे में आ कर मैं गहरी सोच में डूब गया था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे अभी कुछ देर पहले मैंने जो कुछ भी देखा था वो सब कोई ऐसा ख़्वाब था जिसका हक़ीक़त की दुनियां से कोई वास्ता नहीं था।

मेरे ज़हन में ऐसे ऐसे ख़याल उभर रहे थे जिनको मेरा अपना ही मन मानने को तैयार नहीं था किन्तु इतना कुछ देख लेने के बाद मैं हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकता था। मुझे अब पूरी तरह यकीन हो गया था कि मेरे पापा कोई मामूली इंसान नहीं हैं बल्कि उनका किरदार बड़ा ही रहस्यमय है।

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