Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 28
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अब तक...

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि फ़िज़ा में किसी वाहन के आने की आवाज़ सुन कर मैं चौंक गया। पलट कर पीछे देखा तो लोहे वाले गेट के बाहर सड़क पर एक कार रुकी हुई नज़र आई मुझे। मैं समझ गया कि वो मेरे पेरेंट्स हैं। मैं फ़ौरन ही अपनी जगह पर उकडू बैठ गया जिससे कि उस तरफ से मैं उन्हें दिखाई न दे सकूं। इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें बड़ी तेज़ी से चल रहीं थी। मेरे ज़हन में तरह तरह की आशंकाएं उभरती जा रहीं थी। अंदर जो भी बातें हुई थी उन्हें सुनने के बाद मैं समझ गया था कि वो लोग मेरे पेरेंट्स के आने का इंतज़ार कर रहे थे। मैं भी जानना चाहता था कि इस परिस्थिति में मेरे पापा उनसे क्या बातें करते हैं और मेरे बारे में क्या फैसला सुनाते हैं?

अब आगे....



जेलर शिवकांत वागले ने एक झटके से विक्रम सिंह की डायरी को बंद किया और गहरी गहरी साँसें लेने लगा। उसके ज़हन में डायरी के अंदर लिखी हुई बातें बड़ी तेज़ी गूंजने लगीं थी। विक्रम सिंह की तरह वो भी संजय भाटिया और उसके दोस्तों की बातें पढ़ कर आश्चर्यचकित था। अभी तक के किस्से को पढ़ कर वो इसी नतीजे पर पंहुचा था कि शायद विक्रम सिंह के पिता और उनके दोस्त या तो खुद चूत मार सर्विस जैसी संस्था के सदस्य थे या फिर उनका अपना कोई ऐसा काला कारनामा था जिसके बारे में विक्रम सिंह को पता चला होगा जिसके चलते विक्रम सिंह ने उनकी हत्या कर दी होगी। डायरी में उसे जो असलियत नज़र आई थी उसने उसे ज़बरदस्त झटका दिया था। वो सोच भी नहीं सकता था कि विक्रम सिंह और उसके दोस्तों की मम्मियां अपने अपने बेटों के बारे में ऐसी हसरत पाले हो सकती थीं।

काफी देर तक वागले का ज़हन इन्हीं सब बातों के चलते चकरघिन्नी बना रहा। फिर उसने गहरी सांस ले कर पहले टेबल में एक तरफ रखे पानी के गिलास को उठा कर पानी पिया और फिर एक सिगरेट जला कर उसके गहरे गहरे कश लेने लगा। दिमाग़ अभी भी उन्हीं सब बातों पर उलझा हुआ था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियां में ऐसे भी लोग हो सकते हैं जिनके ज़हन में ऐसे ख़याल हो सकते हैं। वागले के मन में सवाल उभरा कि क्या ये वास्तव में सच हो सकता है या फिर विक्रम सिंह ने बिना सिर पैर की बकवास लिख दिया था? वागले के मन में उठे इस सवाल पर उसने खुद ही विचार किया कि भला विक्रम सिंह ऐसी बकवास अपनी डायरी में क्यों लिखेगा? इससे भला उसे क्या मिल जाएगा? ज़ाहिर है उसने जो कुछ लिखा है वो एक कड़वा सच ही हो सकता है।

अपने मन को इन सारी बातों से दूर करने के लिए वागले कुर्सी से उठा और केबिन से बाहर चला गया। जेल में चक्कर लगाते हुए वो हर किसी से थोड़ी बहुत बातें करता जा रहा था लेकिन इसके बावजूद वो अपने मन से विक्रम सिंह की डायरी में लिखी हुई बातों को निकालने में कामयाब न हुआ। डायरी में लिखी बातें कोई मामूली बातें नहीं थी जो इतनी आसानी से उसके ज़हन से मिट जातीं।

वागले का ज़हन उन बातों के चलते न जाने कैसी कैसी बातें भी सोचने लगा था जिसका नतीजा ये निकला कि उसके ज़हन में अचानक से एक ऐसी बात आ गई जिसने उसके दिलो दिमाग़ को ज़बरदस्त झटका दिया। वागले के ज़हन में अचानक से ये ख़याल आ गया कि क्या उसकी खुद की बीवी भी ऐसी वाहियात हसरत अपने दिल में रख सकती है? माना कि वो उसे कई सालों से जानता है लेकिन औरत वो बला है जिसका भेद खुद उसे बनाने वाला भी नहीं जान पाया तो भला वो कौन से खेत की मूली था।

वागले की नज़र में उसकी बीवी यानि सावित्री एक ऐसी औरत थी जिसने एक अच्छी पत्नी होने के साथ साथ एक अच्छी माँ होने का भी फ़र्ज़ निभाया था। जहां तक उसके सेक्सुअल रिलेशन का सवाल है तो उसमें भी उसने कभी ये नहीं जताया था कि वो वागले से संतुष्ट नहीं है। कहने का मतलब ये कि एक भारतीय नारी जिस तरह की होती है वो बिलकुल वैसी ही थी। छोटी छोटी बातों पर कभी न कभी मन मुटाव हो जाता था लेकिन ऐसा तो दुनिया में हर किसी के घर में होता है। वागले का ज़हन बड़ी गहराई से सावित्री के बारे में चिंतन मनन कर रहा था। विक्रम सिंह की डायरी ने न चाहते हुए भी उसके मन में अपनी ही बीवी के प्रति शक पैदा कर दिया था। उसका दिल तो इस बात को नहीं मान रहा था लेकिन दिमाग़ तरह तरह के तर्क देते हुए उसके मन में सावित्री के बारे में शक के बीज बोने पर मानो आमादा था। वागले बुरी तरह उलझ गया और जब उससे बरदास्त न हुआ तो उसने भन्ना कर अपने दिमाग़ पर उपजे बुरे विचारों को दूर फेंका।

सारा दिन वागले अपने दिमाग़ को शांत करने के लिए जेल में इधर से उधर भटकता रहा और शाम को अपना ब्रीफ़केस ले कर घर चला गया। घर पहुंचा तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। सावित्री के होठों पर खिल आई मुस्कान को देख पहली बार वागले ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी वरना तो ऐसे अवसरों पर वो जब भी सावित्री को मुस्कुराता हुआ देखता था तो वो खुद भी ख़ुशी से मुस्कुरा उठता था। ख़ैर वागले बिना कोई प्रतिक्रिया दिए सावित्री के बगल से निकल गया। सावित्री को उससे ऐसे बेरुखे बर्ताव की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी इस लिए उसके चेहरे पर फिक्रमंदी की लकीरें उभर आईं। वो ये तो जानती थी कि उसका पति जिस पेशे में है उसमें ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन उसे क्या पता था कि इस वक़्त उसका पति किस तरह के ख़यालों के तहत इस तरह का बर्ताव कर के गया था।

सावित्री अपने चेहरे पर चिंता के भाव सजाए सीधा कमरे में ही चली गई। उसने देखा वागले अपनी वर्दी उतार रहा था। उसके चेहरे पर बड़े ही शख़्त भाव थे जैसे वो किसी से बेहद ख़फा हो। सावित्री को समझ न आया कि उसका पति इस वक़्त इतना शख़्त क्यों है? वो जानती थी कि उसका पति बाकी पुलिस वालों जैसा शख़्त फितरत का नहीं है और उसे इसके लिए कभी कोई मलाल भी नहीं हुआ था किन्तु इस वक़्त अपने पति को ऐसे रूप में देख कर उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे।

"क्या बात है?" फिर उसने वागले की तरफ देखते हुए फिक्रमंदी से ही पूछा____"आप कुछ उखड़े उखड़े से दिखाई दे रहे हैं। सब ठीक तो है न?"
"हां सब ठीक है।" वागले ने सपाट भाव से कहा____"तुम जा कर चाय ले आओ।"

सावित्री ने कुछ और भी कहना चाहा लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया। उसे लगा इस वक़्त बात को बढ़ाना ठीक नहीं रहेगा इस लिए वो सिर हिला कर वापस मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद वागले ने दरवाज़े की तरफ देखते हुए सोचा____क्या सच में सावित्री के मन में ऐसी वैसी कोई बात हो सकती है? नहीं नहीं, वो ऐसी नहीं है। अगर उसके मन में ऐसा वैसा कुछ होता तो इतने सालों में क्या मुझे कभी शक न हुआ होता? ये चीज़ें ऐसी नहीं हैं जो अंदर छिपाई जा सकें बल्कि ये तो ऐसी हैं कि इंसान के न चाहने के बावजूद बाहर आ जाती हैं। इस तरह की ख़्वाहिशें इंसान को इतना मजबूर कर देती हैं कि इंसान अपना विवेक खोने लगता है और फिर एक दिन वो बिना किसी अंजाम की चिंता किए गुनाह कर बैठता है। ज़ाहिर है अगर ऐसा कुछ होता तो मुझे इसकी भनक कभी तो लगती ही।

वागले न जाने क्या क्या सोचता जा रहा था। फिर जैसे उसे वस्तुस्थिति का एहसास हुआ तो उसने अपने दिमाग़ को झटका और बाथरूम में घुस गया। फ्रेश हो कर जब वो आया तो सावित्री को उसने कमरे में चाय का प्याला लिए हुए ही पाया। सावित्री उसकी तरफ अभी भी ध्यान से देखे जा रही थी। उसका यूं देखना जाने क्यों वागले को अच्छा नहीं लगा और शायद यही वजह थी कि उसका चेहरा एक बार फिर से शख़्त हो गया था।

"ऐसे क्यों देख रही हो मुझे?" सावित्री के हाथ से चाय का कप लेते हुए वागले ने कहा____"क्या मेरे सिर पर सींग निकल आए हैं?"
"न...नही तो।" सावित्री एकदम से बौखला गई, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर उसने कहा____"मैं तो बस ये देख रही थी कि आज ऐसी कौन सी बात हो गई है जिसकी वजह से आप थोड़ा विचलित से दिखाई दे रहे हैं?"

सावित्री की बात सुन कर वागले के ज़हन में अचानक से ख़याल उभरा कि सावित्री इतना ज़ोर दे कर उससे ये सब क्यों पूछ रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके मन में किसी तरह का चोर हो जिसके पकड़ लिए जाने का उसे ख़तरा हो? वागले को अपना ये ख़याल जंचा इस लिए उसने थोड़ा और शख़्त चेहरा बना लिया।

"आख़िर क्या जानना चाहती हो तुम?" वागले ने उसकी तरफ शख़्ती से देखते हुए कहा_____"मुझे ये बिलकुल भी पसंद नहीं है कि कोई मुझसे इस तरह से सवाल जवाब करे...समझ गई न तुम? अब जाओ और अपना काम करो।"

वागले ने जिस शख़्ती के साथ ये सब कहा था उसने सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी पैदा कर दी थी। उसकी बातें सीधा उसके दिल को चीरती चली गईं थी और यही वजह थी कि पलक झपकते ही उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। उसने बड़े ही कातर भाव से उसकी तरफ देखा और फिर बिना कुछ बोले कमरे से चली गई। उसके जाते ही वागले को झटका लगा। एकदम से उसके ज़हन में ये बात आई कि वो अपनी बीवी से इतने शख़्त लहजे में बात कैसे कर सकता है? इसमें उसकी बीवी का भला क्या कसूर है? संभव है कि वो जो कुछ अपनी बीवी के बारे में सोच रहा है वो सिरे से ही ग़लत हो। आज से पहले तो कभी उसने अपनी बीवी पर इस तरह से शक नहीं किया था, फिर आज आख़िर ऐसा क्या हो गया है कि वो अपनी बीवी के चरित्र पर शक करने लगा? क्या ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने के चलते हो रहा है?

शिवकांत वागले के मनो मस्तिष्क में एकदम से जैसे विस्फोट हुआ। एक तेज़ धमाके के साथ मानो उसकी अक्ल के पर्दे खुल ग‌ए। उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। यकीनन ये विक्रम सिंह की डायरी का ही प्रभाव था कि उसने अपनी बीवी के चरित्र पर शक किया और इतना ही नहीं बल्कि उसी शक के चलते उसने उससे शख़्ती से बात भी की। यहाँ तक कि उसने उसे रुला भी दिया। वागले ये सब सोच कर बुरी तरह आहत हो गया। उसे अपने आप पर बेहद गुस्सा आया। विक्रम सिंह पर भी उसे गुस्सा आया कि वो उसे ऐसी वाहियात डायरी दे कर ही क्यों गया?

वागले कुर्ता पजामा पहन कर कमरे से बाहर निकला और घर में चारो तरफ देखा। उसे अपने दोनों बच्चे कहीं नज़र न आए। वो समझ गया कि बच्चे अपने टूशन पर गए होंगे। वागले ये जान कर थोड़ा खुश हुआ और सीधा किचन की तरफ बढ़ गया। किचन में सावित्री रात के लिए खाना बनाने की तैयार कर रही थी किन्तु वागले जैसे ही किचन के दरवाज़े के पास पंहुचा तो वो चौंक गया। उसके कानो में सावित्री के सिसकने की आवाज़ सुनाई दी थी। वो समझ गया कि उसकी बातों ने सावित्री के दिल को दुखा दिया है जिसके चलते वो यहाँ रो रही थी। वागले दबे पाँव किचन के अंदर दाखिल हुआ और पीछे से सावित्री को अपनी बाहों में भर लिया। उसके ऐसा करते ही सावित्री बुरी तरह हड़बड़ा गई और डर भी गई।

"मुझे माफ़ कर दो मेरी जान।" वागले ने उसे अपनी बाहों में लिए हुए और अपना चेहरा उसके चेहरे से सटाते हुए बड़े प्यार से कहा____"तुम तो जानती हो कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं। तुम्हारा दिल दुखाने का मैं सोच भी नहीं सकता। उस वक़्त मैं किसी और ही वजह से थोड़ा गुस्से में था इस लिए तुमसे ऐसी बेरुखी से बात की थी। चलो अब माफ़ कर दो न मुझे।"

"छोड़िए मुझे।" सावित्री ने खुद को उससे छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा____"बच्चे आ जाएंगे। अगर उन्होंने हमें इस तरह देख लिया तो क्या सोचेंगे हमारे बारे में?"

"जिसे जो सोचना है सोचता रहे।" वागले ने पीछे से सावित्री के दाहिने गाल को चूम कर कहा____"मुझे किसी के सोचने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आख़िर मैं अपनी खूबसूरत बीवी को प्यार कर रहा हूं। कोई गुनाह थोड़े न कर रहा हूं।"

"मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी।" सावित्री ने फिर से उससे खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा____"आप बहुत ही मतलबी इंसान हैं। जब अपना मतलब होता है तभी आप अपना झूठा प्यार दिखाते हैं। अब छोड़ दीजिए, मुझे ऐसे इंसान से बात ही नहीं करना जो अपनी पत्नी को दुखी कर के रुलाए।"

"अरे! मेरी जान से प्यारी सावित्री।" वागले ने उसे अपनी तरफ घुमा कर कहा____"मुझसे ग़लती हो गई, और इसके लिए मैं तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को तैयार हूं। बस इस बार माफ़ कर दो। अगली बार से मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी पत्नी को बिलकुल भी दुखी नहीं करुंगा।"

वागले को किसी छोटे बच्चे की तरह बातें करता देख सावित्री न चाहते हुए भी खिलखिला कर हंस पड़ी। उसकी झूठी नाराज़गी मानो पल में ही छू मंतर हो गई। वागले ने उसे हंसते देखा तो एकदम से उसका चेहरा पकड़ कर उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया। सावित्री को उससे ऐसा करने की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी। इस लिए वो बुरी तरह घबरा गई। घबराने की वजह ये थी कि वो दोनों किचेन में थे और बच्चों के आ जाने का ख़तरा था। आज से पहले कभी भी दोनों ने इस तरह कमरे से बाहर कहीं पर प्यार नहीं किया था।

"हाय राम!" सावित्री ने खुद को वागले से दूर करते हुए झट से कहा____"आप पागल हैं क्या? इतना भी नहीं देखते हैं कि किस जगह पर क्या कर रहे हैं? आप सच में बेशर्म बन गए हैं।"

"अपनी खूबसूरत बीवी से प्यार करने के लिए अगर मुझे बेशर्म बन जाना पड़े तो मैं ख़ुशी से बन जाऊंगा मेरी जान।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे इस वक़्त सच में तुम्हें प्यार करने का बहुत मन कर रहा है। चलें क्या कमरे में?"

"कोई सुने तो क्या कहे आपके बारे में?" सावित्री ने हैरानी से कहा____"कि इस उम्र में भी बुड्ढे पर ठरक सवार है। कुछ तो अपनी उम्र का लिहाज किया कीजिए।"

"ऐसी की तैसी कहने वालों की।" वागले ने हाथ झटकते हुए कहा____"और बुड्ढा किसको बोला तुमने? क्या तुम्हें पता नहीं है कि मैं आज भी नए जवान लौंडों को मात देने में पूरी तरह सक्षम हूं?"

"आपसे तो बात करना ही बेकार है।" सावित्री ने अपने माथे पर हथेली मारते हुए कहा____"अब जाइए यहाँ से। मुझे रात के लिए खाना बनाना है।"
"जो हुकुम मेरी जान।" वागले ने बाकायदा सिर को झुका कर कहा____"लेकिन ये याद रखना कि आज मैं अपनी जान को इतना प्यार करुंगा कि अपनी जान की जान निकाल दूंगा।"

वागले की बात सुन कर सावित्री फिर से खिलखिला कर हंस पड़ी, जबकि वागले कहने के बाद फ़ौरन मुड़ा और किचेन से बाहर निकल गया। स्थिति बदल चुकी थी। एक तरफ जहां सावित्री अपने पति का प्यार देख कर खुश हो गई थी तो वहीं दूसरी तरफ वागले भी ये सोच कर खुद को तसल्ली देता हुआ चला गया था कि अच्छा हुआ कि मैंने वक़्त रहते अपने ज़हन से बुरे ख़याल निकाल दिए थे।

रात में वागले ने सच में सावित्री को वैसा ही प्यार किया जैसा कि उसने सावित्री से वादा किया था। सावित्री ने भी उसका पूरी तरह साथ दिया था। सावित्री को अब इस तरह से खुल्लम खुल्ला प्यार करने में और पूरी बेशर्मी के साथ अपने पति का साथ देने में कोई झिझक नहीं होती थी बल्कि उसे अब इस सबसे बेहद मज़ा आने लगा था। यही वजह थी कि आज कल वो पहले की अपेक्षा कहीं ज़्यादा खुश दिखती थी। सारा दिन वो इसी सब के बारे में सोचती रहती थी और रात होने का इंतज़ार करती थी। उसे भी अब यही लगता था कि इसके पहले उसका अपने पति के साथ सेक्स सम्बन्ध महज औपचारिकता के सिवा कुछ नहीं था।

दूसरे दिन जेलर शिवकांत वागले अपने निर्धारित समय पर सेंट्रल जेल के अपने केबिन में पहुंचा। टेबल पर अपना ब्रीफ़केस रखने के बाद वो जेल की सुरक्षा ब्यवस्था के अलावा और भी बाकी चीज़ों को देखने के लिए निकल गाय। क़रीब डेढ़ घंटे बाद वो अपने केबिन में लौट कर आया। कुर्सी पर बैठने के बाद उसने कुछ देर खुद को रिलैक्स किया उसके बाद ब्रीफ़केस को खोल कर उसमें से विक्रम सिंह की डायरी निकाली। पिछले दिन उसने अपनी बीवी सावित्री के साथ जिस तरह का रूखा बर्ताव किया था उसकी वजह यकीनन ये डायरी ही थी और उसे इस डायरी के साथ साथ विक्रम सिंह पर भी बेहद गुस्सा आया था।

विक्रम सिंह का किस्सा अब ऐसे मोड़ पर था जहां पर न चाहते हुए भी वागले उसके बारे में सोचने के लिए मजबूर था। माना कि इस डायरी के चलते उसने पिछले दिन सावित्री को अपने रूखे ब्यौहार से रुला दिया था लेकिन ये भी एक सच था कि इस डायरी की वजह से ही उसने जाना था कि इंसान सेक्स के द्वारा कितना आनंद प्राप्त कर सकता है। डायरी पढ़ने के लिए मजबूर होने की दूसरी वजह ये भी थी कि वो जानना चाहता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से और किन हालातों में अपने माता पिता की हत्या की थी? यही सब सोच कर उसने पहले एक गहरी सांस ली और फिर डायरी को खोल कर उस पेज पर पहुंचा जहां से उसे आगे पढ़ना था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 29
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अब तक...

विक्रम सिंह का किस्सा अब ऐसे मोड़ पर था जहां पर न चाहते हुए भी वागले उसके बारे में सोचने के लिए मजबूर था। माना कि इस डायरी के चलते उसने पिछले दिन सावित्री को अपने रूखे ब्यौहार से रुला दिया था लेकिन ये भी एक सच था कि इस डायरी की वजह से ही उसने जाना था कि इंसान सेक्स के द्वारा कितना आनंद प्राप्त कर सकता है। डायरी पढ़ने के लिए मजबूर होने की दूसरी वजह ये भी थी कि वो जानना चाहता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से और किन हालातों में अपने माता पिता की हत्या की थी? यही सब सोच कर उसने पहले एक गहरी सांस ली और फिर डायरी को खोल कर उस पेज पर पहुंचा जहां से उसे आगे पढ़ना था।

अब आगे....


मैंने कभी नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी एक दिन मुझे ऐसा भी दिन दिखाएगी कि मैं अपनों के बारे में जानने के लिए आज इस तरह से चोरों की भाँति ऐसी जगह पर मौजूद रहूंगा। अपनों की असलियत का आधा सच जान चुका था किन्तु जानने समझने के बावजूद मैं एक बार अपने पिता के मुख से भी असलियत सुनना चाहता था। आख़िर पता तो चले कि जिन्हें मैं दुनियां के सबसे अच्छे माता पिता समझता था उनकी असलियत क्या है।

खिड़की के पास ही बालकनी में उकडू बैठा मैं खुद को छुपाए हुए था। अंदर ही अंदर घबराया हुआ भी था किन्तु ये भी जानता था कि अब किसी चीज़ से घबराने का वक़्त नहीं रह गया था। अब तो हर तरह की परिस्थिति का सामना करने का वक़्त था। बालकनी में मेरे एक तरफ खिड़की थी तो दूसरी तरफ रेलिंग का ढाई फिट ऊँचा और सवा एक फिट चौड़ा खंभा। ऐसे खम्भे हर दस फिट के अंतराल में थे जिनमें लोहे की जालीनुमा रेलिंग लगी हुई थी। मैं उसी सवा एक फिट चौड़े खम्भे के पीछे छुपा हुआ था और थोड़ा सा चेहरा बाहर निकाल कर इमारत के मुख्य दरवाज़े की तरफ देख रहा था जहां से मेरे माता पिता कार से उतरने के बाद अब अंदर आ रहे थे।

अपने पिता के साथ अपनी जन्म देने वाली माता को देख कर सहसा मेरे ज़हन में खिड़की के अंदर मौजूद संजय अंकल की बात गूँज उठी____'हमारी बीवियों को तो बस एक ही सनक सवार है भाइयो और वो ये कि जब तक ये सभी अपने अपने बेटों से सम्भोग का सुख नहीं ले लेतीं तब तक ये हमारी इच्छाएं पूर्ण नहीं करेंगी।'

संजय अंकल के द्वारा कही गई ये बात ज़हन में गूँजते ही मेरे मन में बड़ी तेज़ी से ख़याल उभरा कि क्या मेरी मां भी ऐसी घटिया हसरत अपने मन में पाले हुए होगी? जब अपनी ही जन्म देने वाली माँ के बारे में ऐसा सोचा तो मेरा दिल और दिमाग़ दोनों ही चीख चीख कर इस बात से इंकार करने लगे। आँखों के सामने अपनी ममतामयी माँ का चेहरा उजागर हो गया। बचपन से ले कर अब तक जिस तरह से उन्होंने मुझे प्यार और स्नेह दिया था वो सब एक एक कर के मेरी आँखों के सामने किसी फिल्म की तरह दिखने लगा। सारे दृष्य देखने के बाद मेरा दिल और दिमाग़ दोनों ही बुरी तरह मचल उठे और इस बात से साफ़ इंकार करने लगे कि, नहीं नहीं मेरी मां अपने बेटे के बारे में ऐसी नीच और घटिया ख़्वाहिश अपने मन में नहीं रख सकती।

अभी मैं इन सब बातों से जूझ ही रहा था कि मेरे अंदर से किसी ने तर्क दिया____'तो क्या अंदर कमरे में मौजूद वो औरतें झूठ बोल रहीं थी जिन्होंने संजय अंकल की बात पर सहमति जताई थीं? वो औरतें भी तो अपने अपने बेटों के प्रति ऐसी ही घटिया हसरत पाले हुए हैं, तो फिर उन्हीं की गैंग का हिस्सा बनी तुम्हारी माँ भला कैसे उन सब से जुदा हो सकती है? मतलब साफ़ है विक्रम कि तुम्हारी माँ भी उन सभी औरतों की तरह अपने बेटे के बारे में ऐसी हसरत पाले हुए है। यही सच है विक्रम और तुम इस सच को नकार नहीं सकते।'

मेरे अंदर जाने वो कौन था जो मुझे अपने तर्क से इस कड़वे सच को मान लेने पर मजबूर कर रहा था लेकिन इसके बावजूद मेरा दिल और दिमाग़ इस बात को मानने को तैयार नहीं था। तभी अचानक फिर से मेरे अंदर से किसी ने कहा____'अगर तुम इस सच को मानने से इंकार कर रहे हो तो ठीक है विक्रम। बस कुछ देर इंतज़ार करो, उसके बाद तुम्हें खुद इस सच को न चाहते हुए भी मानना ही पड़ेगा।'

अपने अंदर से आ रही इस आवाज़ से मैं बुरी तरह आहत और परेशान हो गया था। मेरा जी कर रहा था कि मेरे अंदर मौजूद वो इंसान अगर मेरे सामने मुझे मिल जाए तो उसका गला घोंट कर उसे जहन्नुम भेज दूं। बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आपको शांत किया और नज़र उठा कर उस तरफ देखा जिस तरफ से मेरे माता पिता इस इमारत में आ रहे थे। मुख्य दरवाज़े की तरफ देखा तो वो दोनों मुझे नज़र न आए। ये देख कर मैं चौंका। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल उभरा कि शायद वो इमारत के अंदर दाखिल हो चुके हैं। यानि वो दोनों कुछ ही देर में उस कमरे में पहुंच जाएंगे जहां पर संजय अंकल और बाकी सब लोग बैठे हुए हैं।

मैंने एहतियात के तौर पर पहले चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर माहौल का जायजा लिया और फिर फ़ौरन ही खड़ा हो कर खिड़की के उस छोटे हिस्से पर अपने कान को लगा दिया जहां पर मैंने थोड़ी सी जगह बनाई थी। मेरा दिल इस वक़्त तरह तरह की आशंकाओं से भरा हुआ था और अंदर से बहुत ज़्यादा बेचैनी महसूस हो रही थी।

"माफ़ करना भाइयों।" खिड़की के अंदर से पापा की आवाज़ सुनाई दी____"ट्रैफिक के चलते थोड़ी देर हो गई।"
"ये कोई नई बात नहीं है अवधेश।" सीराज अंकल की आवाज़ आई____"ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ कि तुम मीटिंग में समय पर पहुंचे हो। हम सबसे अपना इंतज़ार करवाना तो तुम्हारी बहुत पुरानी आदत है।"

"मेरा इस मीटिंग में आने का विचार ही नहीं था भाइयों।" पापा की आवाज़____"और इस बारे में मैंने संजय से बताया भी था। तुम सब जानते हो कि मेरे कहने पर ज़्यादातर मामले संजय ही सम्हालता है और उसके निर्देश पर तुम लोग सम्हालते हो। संजय ने मुझे मौजूदा हालात के बारे में बताया था और ये भी बताया कि अब हालात हमारे पक्ष में ही हैं, फिर ऐसी मीटिंग रखने का सवाल ही नहीं था।"

"ऐसा तुम समझते हो अवधेश।" जीवन अंकल ने कहा____"या फिर शायद ये बात हो सकती है कि तुम हालातों की गंभीरता को जान बूझ कर नकार रहे हो। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि इस वक़्त हमारे सामने किस तरह के हालात पैदा हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि हम ऐसे हालात से निपट नहीं सकते थे लेकिन हम सिर्फ इस लिए कोई कठोर क़दम नहीं उठा रहे क्योंकि मामला तुम्हारे बेटे विक्रम का है और हम सब चाहते हैं कि अपने बेटे के बारे में तुम खुद फ़ैसला करो। हम सब जिन नियमों और कानूनों में बंधे हुए हैं उन नियमों का पालन करने में हम में से किसी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए।"

"मुझे सब कुछ पता है जीवन।" पापा ने कहा____"और अगर तुम ये समझते हो कि मैं अपने बेटे की वजह से ऐसे हालात पर कोई कठोर क़दम उठाने का हुकुम नहीं दे रहा हूं तो तुम ग़लत हो। जैसा कि मैंने आते ही तुम सबसे कहा था कि ज़्यादातर मामले संजय ही सम्हालता है इस लिए ये मामला भी संजय ही सम्हाल सकता था। या फिर तुम लोग खुद भी आपसी सहमति से इस मामले को सम्हाल सकते थे। मुझे इस बात से एक पल के लिए दुःख ज़रूर होता कि मैंने अपने इकलौते बेटे को खो दिया लेकिन यकीन मानो मुझे इस बात का गर्व भी होता कि मैंने हर कीमत पर नियम और कानून का पालन किया है।"

पापा की बात सुन कर कमरे में सन्नाटा छा गया। इधर खिड़की के पास खड़ा मैं उनकी बातें सुन कर बुरी तरह आहत हो गया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि पापा मेरे बारे में इतनी कठोर बात कह सकते थे। आख़िर वो ऐसा क्या करते थे और वो नियम कानून किस बात के लिए बनाए गए थे जिनका पालन करने की ऐसी कीमत भी चुकानी पड़ रही थी?

"मैं मानता हूं कि तुमने मेरे सुपुर्द हर मामले कर रखे हैं।" अंदर के सन्नाटे को चीरते हुए संजय अंकल की आवाज़ आई____"लेकिन अवधेश...मेरे भाई...मैं भी एक ऐसा इंसान हूं जिसके सीने में धड़कता हुआ दिल है जो अपनी हर धड़कन पर इंसान को कमजोर बनाने वाले जज़्बात पैदा करता रहता है। विक्रम अगर तुम्हारा बेटा है तो वो मेरा भी जिगर का टुकड़ा है। मैंने अपने इन्हीं हाथों से उठा कर उसे अपनी गोद में खिलाया है, उसे प्यार और स्नेह दिया है। तुम सब जानते हो कि रंजन से कहीं ज़्यादा मैं विक्रम को प्यार करता हूं। मैं इतना कठोर नहीं हूं कि उसे अपने इन्हीं हाथों से मौत के घात उतार दूं। इसी लिए, बस इसी लिए मैंने इस मामले को खुद सम्हालने की बजाय तुम दोनों को यहाँ पर आने के लिए मजबूर किया। वो तुम्हारा अपना खून है, इस लिए ऐसे हालात में उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम दोनों को है।"

"विक्रम को मैं भी अपने बेटे रंजन की तरह ही प्यार करती हूं।" कीर्ति आंटी की ऐसी आवाज़ आई जैसे उनका गला भर आया हो____"पता नहीं कैसे उसके मन में हम सबके प्रति शक पैदा हो गया और वो हमारी असलियत का पता लगाने की कोशिश में लग गया। संजय ने उसे ऐसे रास्ते पर न जाने के लिए जाने कितनी ही बार संकेत दिए और डराया भी लेकिन वो तब भी नहीं माना। उसकी जगह कोई दूसरा होता तो कब का वो इस दुनिया से उठ गया होता लेकिन वो हमारा बेटा है इस लिए उसके साथ अब तक नरमी ही की गई। आज वो इस स्थित में पहुंच चुका है कि वो पीछे नहीं हट सकता और हमारी भी मजबूरी है कि हम उसे अब जीवित नहीं छोड़ सकते।"

"माधुरी भाभी के सामने ऐसी कठोर बातें मत कहो कीर्ति।" संजय अंकल की कठोर आवाज़ आई____"क्या तुम इतना भी नहीं समझ सकती कि इस वक़्त वो अपने बेटे के लिए कितना दुखी हैं?"

"मैं इतनी कमजोर नहीं हूं संजय।" मेरी मां माधुरी की आवाज़ आई____"हां ये सच है कि अपने बेटे के लिए इस वक़्त मैं बहुत ज़्यादा दुखी हूं और अपने इस दुख को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती लेकिन आप सब जानते हैं कि औरत का ह्रदय कितना विशाल होता है। वो गहरी से गहरी चोट और असहनीय दर्द को भी बरदास्त कर लेती है। मेरी तरह कीर्ति, गरिमा और सौम्या ने भी संस्था ज्वाइन करने से पहले उसके नियम कानून को सुना था और नियम कानून की कठोरता का भली भाँति एहसास करने के बाद ही संस्था को ज्वाइन किया था। क्या लगता है तुम सबको कि हमें ऐसा कुछ होने का पहले अंदाज़ा न हुआ होगा? बड़ी सीधी सी बात है कि इंसान जो भी कर्म करता है वो एक दिन किसी न किसी तरीके से सबूत बन कर लोगों की नज़र में आ ही जाता है। ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं जिसे हमेशा के लिए दुनिया वालों से छुपा कर रख दी जाए। हम सभी बहनों ने इस बारे में बहुत विचार विमर्श किया था और इस सच को जानने समझने के बावजूद इस संस्था को ज्वाइन किया। सिर्फ इसी तर्क के आधार पर कि दुनिया में जिसने भी जन्म लिया है उसे एक दिन मौत ज़रूर आएगी। हमारी कोशिश ज़रूर मरते दम तक यही रहनी चाहिए कि हम ऐसे भयंकर सच को उजागर न होने दें।"

"तुम इतना कठोर कैसे हो सकती हो माधुरी?" पापा की भर्राई हुई आवाज़ आई_____"उस समय भी तुमने ऐसे ही कठोरता से ये सब कहा था और आज भी ऐसा कह रही हो। उस वक़्त तो मैंने ये सोच कर खुद को तसल्ली दे ली थी कि ऐसा वक़्त कभी आने ही नहीं दूंगा लेकिन आज जब ऐसा वक़्त आ गया है तो खुद को तसल्ली देने में बड़ी तकलीफ़ हो रही है। मैं जानता हूं कि मैं भावना में बह रहा हूं लेकिन ये सोच कर थोड़ा हैरानी हो रही है कि जिसने अपनी कोख में नौ महीने अपने बेटे को सम्हाला और फिर असहनीय पीड़ा के बाद उसे इस दुनिया में जन्म दिया उसके लिए तुम इतनी कठोर बातें कैसे सोच सकती हो?"

"तो क्या चाहते हो तुम?" मां की रुलाई फूट पड़ी_____"क्या ये कि मैं अपने बेटे के दुःख में दहाड़ें मार मार कर रोना शुरू कर दूं। अपना सीना चीर कर सारी दुनिया को दिखाऊ कि मेरे सीने में मेरे बेटे के लिए इतनी मोहब्बत भरी हुई है कि अगर वो इस दुनिया में नहीं रहेगा तो मैं भी अपनी जान दे दूंगी? क्या मेरे ऐसा करने से हालात बदल जाएंगे और क्या मेरा बेटा मौत के मुंह में जाने से बच जाएगा?"

"भाभी सम्हालिए खुद को।" सीराज अंकल की आवाज़ आई____"सौम्या ज़रा माधुरी भाभी को दूसरे कमरे में ले कर जाओ तुम।"

"नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है सीराज।" मां की आवाज़ आई____"किसी रास्ते में इतना दूर निकल आने के बाद पीछे पलट जाना कायरों की निशानी है। अपनी ख़ुशी के लिए या अपने पागलपन के लिए हम सबने जो रास्ता अपनाया था उससे अब हम पीछे नहीं हट सकते। अगर पीछे हट गए तो उन लोगों की आत्माएं हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी जिन्होंने हमारे लिए अपनी जान दी और जो हमारे क़हर का शिकार हो गए। ज़िन्दगी में ऐसा कभी नहीं होता कि किसी को हमेशा खुशियां ही मिलती रहें। इंसान को खुशियों का भोग करने के बाद दुःख और तकलीफों को भी ख़ुशी से भोगना पड़ता है।"

मम्मी की इन बातों के बाद एक बार फिर से कमरे में सन्नाटा छा गया। बाहर खड़ा मैं जैसे किसी और ही दुनिया में था। कानों में सांय सांय की आवाज़ें गूंज रहीं थी। ज़हन अंतरिक्ष में परवाज़ कर रहा था। ऐसा लगता था जैसे सारी दुनियां में कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छा गया हो।

"अब इतना सोचना बंद करो तुम सब।" मम्मी की आवाज़ कानों में पड़ी तो जैसे मैं गहरे समुद्र से बाहर आया, उधर वो कह रहीं थी____"ऐसे हालात में नियमानुसार जो करना चाहिए वो करो।"

"मुझे लगता है कि हमें विक्रम को एक और मौका देना चाहिए।" जीवन अंकल की आवाज़ आई____"अगर वो इसके बाद भी अपनी कोशिशों से बाज़ नहीं आता तो फिर उसके साथ वही किया जाएगा जो संस्था और हम सबके हित में होगा।"

"दूसरा मौका देने का सवाल ही नहीं है जीवन।" मां की अजीब सी आवाज़ आई_____"मैं जानती हूं कि तुम मेरी बातें सुनने के बाद और मेरे दुख को देखते हुए ऐसा कह रहे हो जबकि सच ये है कि इसके पहले सबसे ज़्यादा तुम ही इसके पक्ष में थे।"

"विक्रम ने मनीष कुलकर्णी नाम के किसी जासूस को हमारी असलियत का पता लगाने के लिए लगाया हुआ था।" पापा की आवाज़ आई____"सीराज की रिपोर्ट के अनुसार कुलकर्णी को एहसास हो चुका था कि हमें उसके बारे में पता चल गया है और ये भी कि अब उसे हमारे द्वारा अपनी जान जाने का ख़तरा बढ़ गया है। इसी लिए वो अपना काम छोड़ कर हमसे भागने लगा था। बीच में वो हमारे आदमियों की नज़र से ओझल हो गया था। बाद में भले ही कुलकर्णी हमारे आदमियों के हाथ लग गया और उसे संजय के कहने पर मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन संभव है कि गायब हुए वक़्त में वो विक्रम से मिला हो। ज़ाहिर है उसकी कोशिश यही रही होगी कि उसके पास हमारे बारे में जितनी भी जानकारी है उसे वो विक्रम को बता दे। आख़िर इसी काम में तो उसे विक्रम ने लगाया था। ख़ैर कहने का मतलब ये है कि अगर सच में कुलकर्णी के द्वारा विक्रम को हमारी असलियत का पता चल गया है तो संस्था के नियम के अनुसार उसका जीवित रहना ठीक नहीं है।"

"तो इसका मतलब।" गरिमा आंटी की आवाज़ आई____"क्या आप सच में विक्रम को मार देंगे?"
"ऐसे बेवकूफाना सवाल का क्या मतलब हुआ भाभी?" पापा की आवाज़ आई_____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि इसके अलावा ना तो हमारे पास कोई दूसरा रास्ता है और ना ही हम उसे इस तरह जीवित छोड़ सकते हैं? हम खुद ही जब नियमों का पालन नहीं करेंगे तो दूसरे क्या करेंगे और फिर ये मत भूलिए कि हमसे आगे भी कोई है जिसका हुकुम मानना हमारा फ़र्ज़ है। अगर आज हमने ऐसा नहीं किया तो संभव है कि इसके लिए हम सबको भारी मुसीबत का सामना करना पड़ जाए।"

"मैं कुछ और भी कहना चाहती हूं।" मां की आवाज़ आई_____"मैं जानती हूं कि ऐसे वक़्त में मुझे ऐसा कहने की तो बात दूर बल्कि ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए लेकिन फिर भी कहना चाहती हूं।"
"बेशक़ कहिए भाभी।" जीवन, संजय, और सीराज अंकल तीनों की एक साथ आवाज़ आई थी।

"मैं अपने बेटे को एक बार जी भर के प्यार कर लेना चाहती हूं।" मां की कांपती हुई आवाज़ आई____"उसे जी भर के महसूस कर लेना चाहती हूं। उसे अपने अंदर हर तरह से समा लेना चाहती हूं। क्या तुम लोग मेरी ये ख़्वाहिश पूरी नहीं कर सकते?"

"माधुरी सम्हालो खुद को।" पापा की आवाज़ आई_____"ये कैसी बातें कर रही हो तुम?"
"मैं कुछ नहीं जानती।" मां की रुलाई एक बार फिर फूट पड़ी____"भले ही तुम लोग कुछ भी सोचो समझो लेकिन मुझे अपने बेटे को एक बार जी भर के देखना है। उसे जी भर के प्यार करना है। उसे अपने अंदर हमेशा के लिए समा लेना चाहती हूं। उसके बाद तो वो मुझे कभी मिलेगा ही नहीं। मेरी आँखें तो हमेशा उसे देखने के लिए ही तरसेंगी।"

"माधुरी भाभी की ये ख़्वाहिश पूरी होनी चाहिए अवधेश।" सीराज अंकल ने कहा____"वो एक माँ हैं इस लिए उन्हें अपनी ममता को अपने बेटे पर लुटा लेने दो।"
"मैं सीराज से सहमत हूं।" जीवन अंकल ने कहा____"माधुरी भाभी के लिए इतना तो हम सब कर ही सकते हैं और वैसे भी इसमें कोई समस्या नहीं है।"

"अगर तुम सब यही चाहते हो।" पापा ने गंभीरता से कहा____"तो ठीक है, विक्रम को मैं किसी बहाने घर बुला लूंगा।"

"मुझे तो ये सब सोच कर ही डर लग रहा है।" सीराज अंकल की वाइफ यानि सौम्या आंटी की आवाज़ आई_____"हम में से किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि जीवन में कभी ऐसा भी वक़्त आएगा कि हमें अपने ही बेटों के लिए इतना कठोर फ़ैसला करना होगा। आज अवधेश भाई साहब और माधुरी के बेटे के साथ ऐसा होने वाला है लेकिन यकीन मानिए ऐसा भी वक़्त आएगा जब हम सब अपने अपने बेटों के बारे में इसी तरह बैठ कर फ़ैसला सुना रहे होंगे।"

"सौम्या ने सही कहा_____"कीर्ति आंटी ने कहा____"मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे ये बुरा वक़्त आने की शुरुआत हुई है।"
"आने वाले समय में क्या होगा ये बाद की बात है।" पापा ने कहा____"लेकिन इस मामले से इतना तो सबक लेना ही पड़ेगा कि आगे से हमें अपने बच्चों के प्रति थोड़ा नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा सावधान रहना होगा।"

खिड़की के बाहर खड़ा मैं एक ऐसे झंझावात से जूझ रहा था जो मुझे बुरी तरह पीड़ा दे रहा था। आख़िर मैंने उस कड़वे सच को सुन ही लिया था जिसके बारे में मेरे अंदर से कोई आवाज़ दे कर बता रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सारा आसमान मेरे सिर पर आ कर गिर पड़ा था। गुस्सा नफ़रत और घृणा का ऐसा ज्वालामुखी उभर रहा था मेरे अंदर जो हर किसी को तबाह कर देने के लिए मुझे पूरी शख़्ती से आगे ढकेलने पर आमादा था।

मैं अब और कुछ नहीं सुनना चाहता था। मेरा मन कर रहा था कि अंदर मौजूद हर शख़्स को जला कर राख कर दूं। मैं गुस्से और नफ़रत से कांपने लगा था। बड़ी मुश्किल से मैं खुद को सम्हाले हुए था। मैं जानता था कि अब अगर और थोड़ी देर मैं यहाँ पर रुका तो यकीनन मैं कोई न कोई अनर्थ कर बैठूंगा इस लिए एक झटके से खिड़की से हटा। कहते हैं कि गुस्सा सबसे पहले इंसान के विवेक का सेवन करता है। जिस सावधानी के साथ मैं खिड़की तक पहुंचा था उसी सावधानी के साथ मुझे लौटना भी चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

मैं गुस्से में जैसे ही खिड़की से हटा और बालकनी की राहदारी की तरफ पलटा तो मेरी पीठ पर टंगा हुआ मेरा बैग खिड़की के पल्ले से टकरा गया जिससे बड़ी तेज़ तो नहीं लेकिन इतनी आवाज़ ज़रूर हो गई कि अंदर कमरे में मौजूद हर शख़्स का ध्यान खिड़की की तरफ बड़ी तेज़ी से गया। बैग जैसे ही पल्ले में लगा तो अंदर से "कौन है खिड़की के बाहर" आवाज़ आई। शायद सीराज अंकल की आवाज़ थी वो जो मेरे कानों में पड़ी थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अब शायद ऊपर वाला ही बचा पाए मुझे। मैं तेज़ी से राहदारी से चलते हुए कोने में पहुंचा और रस्सी पकड़ कर झूल गया।

रस्सी के सहारे झूलते हुए मैं बड़ी तेज़ी से नीचे ज़मीन पर पहुंचा और रस्सी को कुंडे में ही लगी छोड़ कर मैं इमारत के पीछे की तरफ दौड़ चला। मैं ऐसे भाग रहा था जैसे हज़ारो भूत मेरे पीछे लग गए हों। मुझे नहीं पता कि मेरे पीछे कोई आ भी रहा था या नहीं लेकिन मैं बिना रुके भागता ही चला जा रहा था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 30
(अंतिम अध्याय)
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अब तक...

रस्सी के सहारे झूलते हुए मैं बड़ी तेज़ी से नीचे ज़मीन पर पहुंचा और रस्सी को कुंडे में ही लगी छोड़ कर मैं इमारत के पीछे की तरफ दौड़ चला। मैं ऐसे भाग रहा था जैसे हज़ारो भूत मेरे पीछे लग गए हों। मुझे नहीं पता कि मेरे पीछे कोई आ भी रहा था या नहीं लेकिन मैं बिना रुके भागता ही चला जा रहा था।

अब आगे....

एक लम्बा चक्कर लगा कर मैं मुख्य सड़क पर पहुंच चुका था। किस्मत से एक ऑटो आता हुआ दिखा तो मैंने उसे हाथ दे कर रुकवाया और बिना उससे कुछ बोले उसके ऑटो में बैठ गया। मेरी जल्दबाज़ी और हरकत को देख ऑटो वाला थोड़ा चौंका फिर हैरानी से मेरी तरफ देख कर पूछ ही बैठा कि कहां जाना है? मैंने उसे गंतव्य के बारे में बताया तो वो फ़ौरन ही चल पड़ा। सारे रास्ते मैं इस तरह चुपचाप बैठा रहा जैसे मुझे लकवा मार गया हो। ऑटो ड्राइवर बैक मिरर से बार बार मुझे देख रहा था किन्तु बोला कुछ नहीं। शायद वो मेरी हालत को समझने की कोशिश कर रहा था।

ऑटो एक जगह झटके से रुका तो मेरा ध्यान भांग हुआ और मैंने चौंक कर ऑटो वाले की तरफ देखा तो उसने बताया कि वो गंतव्य तक पहुंच गया है। उसकी बात सुन कर मैं थोड़ा हड़बड़ाया और फिर जल्दी से ऑटो से उतर कर उसके पैसे दिए। ऑटो वाला पैसे लेते वक़्त मेरी तरफ ही अजीब भाव से देख रहा था। मैं उसे पैसे देने के बाद बिना उससे कुछ बोले एक तरफ को बड़ी तेज़ी से बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं ऐसी जगह पर आ गया जहां पर मैंने किराए की कार खड़ी की थी। कार में बैठ कर मैंने कार को स्टार्ट किया और फ़ौरन ही उसे मुख्य सड़क की तरफ बढ़ा दिया।

मुख्य सड़क पर बिना किसी बाधा के चलते हुए मैंने पहली बार राहत की थोड़ी सांस ली। हालांकि ज़हन अभी भी हज़ारो तरह के विचारो में उलझा हुआ था। मैं तेज़ी से चलते हुए मुख्य सड़क से उतर कर एक संकरी गली में कार को मोड़ दिया। कुछ दूर चलने के बाद मैंने कार रोक दिया। खिड़की का शीशा नीचे कर के मैंने आस पास का मुआयना किया और सब कुछ ठीक ठाक देख कर जल्दी से अपना हुलिया पहले जैसा बनाने में लग गया। जल्दी ही मैं अपने असली चेहरे में आ गया। सारी चीज़ों को मैंने बैग में ठूंसा और कार को स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया।

जहां से मैंने कार किराए पर ली थी वहां पर पहुंच कर मैंने कार के मालिक को उसकी कार वापस की और एक ऑटो में बैठ कर वापस होटल आ गया। होटल के कमरे में आ कर मैंने पहले दरवाज़े को अंदर से लॉक किया और फिर बेड पर पसर गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानसिक और शारीरिक रूप से कितना थक गया हूं मैं।

कानों में अपने माता पिता की बातें ऐसे गूंज उठती थी जिससे मेरे कानों के साथ साथ मेरा ह्रदय भी फट पड़ता था। अंदर एक आग धधक रही थी जो मुझे अंदर ही अंदर जलाए जा रही थी। मन में विचारों का तूफ़ान मानो क़हर ढा रहा था। जब मैं अपने माता पिता के प्यार और स्नेह के बारे में सोचता तो मेरी आँखों से आंसू छलक पड़ते और जब ये सोचता कि उनकी असलियत क्या है तो आँखों से बहते आंसू मानो लावे में तब्दील हो जाते थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक झटके में सब कुछ तबाह कर दूं।

जब मेरे अंदर की धधकती हुई आग किसी भी तरह से शांत न हुई तो मैं बेड से उठा और सारे कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस गया। बाथरूम में जा कर जब मैंने ठंडे पानी को अपने तपते जिस्म पर डाला तो एक सुखद एहसास की अनुभूति हुई। जाने कितनी ही देर तक मैं ठंडे पानी में खुद को भिगोता रहा उसके बाद तौलिए से खुद को पोंछते हुए बाथरूम से बाहर आ गया।

मन कुछ हल्का हो गया था और जिस्म में भी अब थकावट का ज़्यादा आभास नहीं हो रहा था। दिमाग़ ठंडा हुआ तो ज़हन में ये ख़याल उभरने लगे कि इस सबके बाद अब आगे क्या होगा? उन्हें ये पता चल चुका है कि किसी ने खिड़की के बाहर से उन सबकी सारी बातें सुन ली हैं इस लिए अब उनकी यही कोशिश होगी कि हर कीमत पर वो उस शख़्स को तलाश करें जिसने उनकी बातें सुनी हैं। ज़ाहिर है वो ऐसे शख़्स को जीवित नहीं छोड़ेंगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वो ये जान पाएंगे कि खिड़की के बाहर से उनकी बातें सुन लेने वाला कौन था? अपने मन में उठे इस सवाल पर जब मैंने विचार किया तो मुझे जवाब भी मिल गया। यानि मौजूदा हालात में उन सबके ज़हन में उस शख़्स के रूप में एक ही नाम आएगा और वो नाम होगा मेरा। आज के वक़्त में अगर उनके लिए कोई सिरदर्द बन गया है तो वो हूं मैं। यानि उन्हें ये सोचने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी कि खिड़की के बाहर से उनकी बातें सुन लेने वाला असल में मैं ही हो सकता हूं।

मैं भले ही वहां से फिलहाल पूरी तरह बच कर निकल आया था किन्तु उनकी नज़र में मेरा भेद खुल चुका था और अब वो हर जगह मेरी तलाश में अपने आदमियों को लगा देंगे। सबसे पहले तो मुझे जन्म देने वाला मेरा पिता मेरे बारे में ये पता लगाएगा कि मैं दूसरे शहर में हूं या नहीं? अगर उन्हें ये पता चला कि मैं वहां पर नहीं हूं तो ये साफ़ हो जाएगा कि खिड़की के बाहर से उनकी और बाकी सबकी बातें सुनने वाला मैं ही था।

हालात बहुत ज़्यादा गंभीर हो चुके थे। मेरे जितने भी अपने थे वो सब अब मेरी जान के दुश्मन बन चुके थे। अब मैं उनके लिए उनका बेटा नहीं रह गया था बल्कि ऐसा दुश्मन बन चुका था जिसे जीवित रखना उनके लिए हर्गिज़ संभव नहीं था। कोई और वक़्त होता तो मैं ये कल्पना तक नहीं कर सकता था कि मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे ये अपने कभी मेरी जान के इस तरह दुश्मन भी बन सकते हैं। नियति जब कोई खेल रचती है तो वो हम मामूली इंसानों की कल्पना से बहुत ही ज़्यादा परे होता है। हालांकि मेरा मानना है कि हर चीज़ के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हम इंसान ही होते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि अगर किसी तरह का कोई बीज ही नहीं बोया जाएगा तो भला कोई फसल कैसे तैयार हो जाएगी? इंसान जाने अंजाने ऐसे बीज बो ही देता है जिसकी फसल आगे जा कर उसे ऐसे रूप में नज़र आती है। चाहे वो मेरे अपने रहे हों या मैं खुद, हम सबने ख़ुशी ख़ुशी अपनी ख़ुशी के लिए ऐसा बीज बोया जिसकी फसल आज ऐसे रूप में हमारे सामने नज़र आ रही थी जिसे ख़ुशी ख़ुशी काटने की किसी में हिम्मत ही नहीं थी। हालांकि जो हिम्मत दिखाने की कोशिश में लग गए थे वो भी उनकी हिम्मत नहीं थी बल्कि वो तो एक डर और मजबूरी। अपने अपने जीवन को सलामत रखने का डर और मजबूरी। सवाल था कि क्या मुझमें भी हिम्मत नहीं थी कि मैं इस तरह से तैयार हुई फसल को जड़ से काट कर उसका नामो निशान मिटा दूं?

मैं अपने मन में उठ रहे ऐसे विचारों और ख़यालों के चलते बुरी तरह उलझ कर रह गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में अब मुझे क्या करना चाहिए? मेरे अंदर से कोई चीख चीख कर मुझे आवाज़ें दे रहा था और तर्क देते हुए जाने क्या क्या कहता जा रहा था। मैं ये मानता हूं कि मैंने अपनी ख़ुशी और अपनी चाहत को पूरा करने के लिए ऐसी संस्था को ज्वाइन किया जिसने यकीनन मेरी फितरत को बदल दिया और मेरी सबसे बड़ी चाहत को पूरा करवा दिया। मेरी उम्र के लड़के जवानी में अगर ऐसी हसरतें पाल बैठते हैं तो ये एक स्वाभाविक बात है। मैं नहीं समझता कि मैंने ऐसी संस्था को ज्वाइन कर के कोई ग़लत किया था लेकिन मेरे माता पिता और उनके साथियों ने क्या सोच कर ऐसी संस्था को ज्वाइन किया रहा होगा? आख़िर उन्हें ऐसा कौन सा दुःख था जिसे वो ऐसी संस्था में आने के बाद ही दूर कर सकते थे? कहते हैं कि माता पिता अपने बच्चों को ऐसे संस्कार और ऐसी शिक्षा देते हैं जिससे बच्चे संसार में आगे चल कर अपने अच्छे कर्मों द्वारा अपने माता पिता के साथ साथ अपने कुल खानदान का भी नाम रोशन करे लेकिन मेरे मामले को देख कर उसके बारे में कोई क्या कह सकता था? मैं पूछता हूं कि दुनियां में ऐसे कौन से माता पिता हैं जो अपनी ऐसी घटिया हसरतों के लिए ऐसे काम करते हैं जिसकी वजह से उनके सामने आज ऐसे हालात बन जाएं?

मेरे दिलो दिमाग़ में आँधियां सी चल रहीं थी और आँधियों के बीच मेरा वजूद बुरी तरह तहस नहस होता हुआ प्रतीत हो रहा था। बार बार मेरे ज़हन में बस यही ख़याल उभर आते थे कि कोई माता पिता अपने बेटे के बारे में ऐसा कैसे चाह सकता है और वो खुद ऐसा कैसे हो सकते हैं? ऐसी गिरी हुई सोच और ऐसी नीचता से भरी हुई मानसिकता कैसे हो सकती थी उन सबकी? बात सिर्फ मेरी या मेरे माता पिता बस की ही नहीं थी बल्कि मेरे बाकी दोस्तों के माता पिता भी ऐसी ही गिरी हुई सोच और मानसिकता के शिकार थे। उनके मन में भी अपने अपने बच्चों के प्रति ऐसी लालसा थी जो हद दर्ज़े का पाप था।

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उस वक़्त रात के क़रीब एक बज रहे थे जब मैं अपने घर के एक ऐसे हिस्से में जा पहुंच चुका था जहां पर लाइट का प्रकाश नहीं था। यहाँ तक पहुंचने में फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं हुई थी। मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरी जान के दुश्मन मुझे पूरे शहर में खोज रहे हैं लेकिन मैं ये भी जानता था कि वो यहाँ पर मुझे खोजने का सोचेंगे ही नहीं क्योंकि उनकी समझ में मैं अपनी जान बचाने के लिए किसी ऐसी जगह छुपने का सोचूंगा जहां पर मुझे कोई खोज ही न पाए। वो ये नहीं सोच सकते थे कि मैं इतने गंभीर हालात में अपने ही घर जाने का सोच सकता हूं। हालांकि यहाँ भी घर के अंदर जाना मेरे लिए आसान नहीं था क्योंकि घर के मुख्य दरवाज़े की तरफ नौकर थे और घर के अंदर सविता आंटी। सविता आंटी भी उन्हीं से मिली हुईं थी इस लिए अगर उनकी नज़र मुझ पर पड़ गई तो वो फ़ौरन ही मेरे यहाँ होने की सूचना उन्हें दे देंगी।

होटेल से मैं सीधा यहीं आया था। इतना तो मैं अपने पिता के मुख से ही सुन चुका था कि ज़्यादातर मामले संजय अंकल ही उनके कहने पर सम्हालते थे और उनके निर्देश पर बाकी लोग सम्हालते थे तो ज़ाहिर है कि मेरे पिता कोई भी काम फील्ड में जा कर नहीं करते थे। मुझे अंदेशा था कि वो संजय अंकल के बंगले से निकल कर मम्मी के साथ सीधा घर ही गए होंगे। मुझे ये भी अंदेशा था कि वो बंगले में पहुंच कर सीधा अपने कमरे के उस गुप्त तहख़ाने में जाएंगे जिस तहख़ाने का रहस्य जानने के लिए मैं उनकी चोरी से कई बार वहां जा चुका था। अपने घर आने का मेरा मकसद खुद को छुपाना या अपनी जान बचाना हरगिज़ नहीं था बल्कि यहाँ आने का बस एक ही मकसद था कि इस सबके बारे में अपने माता पिता से वो सब कुछ पूछ सकूं जो मैं जानना चाहता हूं और ये भी कि उन्होंने ये सब क्यों किया है?

बंगले के पीछे तरफ से दीवार के सहारे चलते हुए मैं उस हिस्से में आया जहां पर मेरे कमरे की खिड़की थी। ऊपर पहले फ्लोर पर मेरे कमरे की खिड़की के बाहरी तरफ बनी बालकनी मुझे साफ़ दिख रही थी। यहीं से रस्सी के सहारे उतर कर मैं एजेंट के रूप में आया जाया करता था। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि संभव है कि संस्था का कोई एजेंट मेरे इस बंगले के आस पास कहीं मौजूद हो। हालांकि इसका मुझे यकीन नहीं था क्योंकि कई बार मैंने पहले भी इस बात को जांचा परखा था लेकिन ऐसा कोई संदिग्ध ब्यक्ति मुझे पहले कभी नज़र नहीं आया था। तब मैंने यही निष्कर्ष निकाला था कि संस्था का कोई एजेंट तभी मेरे आस पास लगाया जाता था जब मैं एजेंट के रूप में सर्विस देने जाता था। कहने का मतलब ये कि इस वक़्त आस पास संस्था का कोई भी एजेंट नहीं हो सकता था।

चारो तरफ का बड़ी बारीकी से मुआयना करने के बाद मैंने अपनी पीठ से अपना बैग निकाला। होटल से आते वक़्त एक जगह मैंने एक और रस्सी खरीद ली थी। अपने घर में घुसने का प्लान मैंने होटेल में ही बनाया था। खैर बैग से रस्सी निकाल कर मैंने उसे खोला और उसके एक छोर को पकड़ कर बड़ी ही कुशलता से ऊपर की तरफ उछाल दिया। रस्सी हवा में लहराती हुई बालकनी में लगी लोहे की रेलिंग तक पहुंची लेकिन वापस नीचे की तरफ ही आ गिरी। ज़ाहिर था उसका छोर सही जगह पर पहुंच ही नहीं पाया था। मैंने फिर से कोशिश की लेकिन रस्सी का छोर सही तरीके से रेलिंग के उस हिस्से में नहीं पहुंच पा रहा था जहां मैं उसे पहुंचाना चाहता था। दो तीन बार की कोशिश बेकार जाने पर मेरे चेहरे पर परेशानी के साथ साथ गुस्से के भी भाव उभर आए। मैंने कुछ देर गहरी गहरी सांस ले कर खुद को शांत किया और चौथी बार फिर से रस्सी को ऊपर की तरफ उछाला। रस्सी का छोर लोहे के ऊपरी भाग में गया और घूम कर उसके नीचे बनी कई सारी छोटी बड़ी जालियों के बीच अटक गया। मैंने जल्दी से रस्सी को अपनी तरफ खींचा जिससे छोर पर लगी गाँठ उसमें शख़्ती से फंस ग‌ई। गाँठ की वजह से रस्सी का छोर उस छोटे हिस्से से निकल ही नहीं पाया जिसकी वजह से रस्सी टाइट हो गई। मैं समझ गया कि इस बार सही जगह पर रस्सी का छोर पहुंच गया है।

कुछ ही देर में मैं रस्सी के सहारे खिड़की के बाहरी भाग में बनी बालकनी में पहुंच गया था। साँसें थोड़ी फूल गईं थी इस लिए मैंने कुछ देर साँसों को नियंत्रित किया और फिर चारो तरफ का मुआयना करने के बाद खिड़की की तरफ पलटा। खिड़की में कांच के दो पल्ले थे जिनके चारो तरफ लकड़ी का फ्रेम लगा हुआ था। जब से मैंने चूत मार सर्विस जैसी संस्था को ज्वाइन किया था और एजेंट के रूप में सर्विस देने जाने लगा था तब से इस खिड़की को मैं अंदर से लॉक कर के बंद नहीं रखता था बल्कि सिर्फ दोनों पल्लों को आपस में जोड़ कर ही रखता था। खिड़की के अंदर पर्दा लगा हुआ था। अगर अंदर कमरे में लाइट जल रही होती तो यकीनन पर्दे में रौशनी का आभास होता।

मैंने बड़ी ही सावधानी से खिड़की के दोनों पल्लों को खोला और बड़ी ही आसानी से खिड़की के रास्ते अंदर कमरे में पहुंच गया। कमरा क्योंकि मेरा था इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि अंदर कमरे में कौन सी चीज़ कहां पर मौजूद हो सकती है। मैंने खिड़की के पल्लों को पहले जैसे आपस में भिड़ाया और पलट कर बेड की तरफ बढ़ चला। मेरे दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं किन्तु डर का एहसास नहीं था क्योंकि इस वक़्त मैं उस तरह की मानसिकता में ही नहीं था।

कमरे में अँधेरा था और सन्नाटा ऐसा कि अगर कहीं सुई भी गिरे तो धमाके जैसी आवाज़ हो। मैं कुछ देर बेड के पास खड़ा अपने अंदर उठ आए तूफ़ान को सम्हालने की कोशिश करता रहा उसके बाद मुट्ठियां कस कर दरवाज़े की तरफ बढ़ा। दरवाज़ा मेरी उम्मीद के अनुसार बाहर से बंद नहीं था, इस लिए मैंने उसे आहिस्ता से थोड़ा सा खोला तो बाहर तरफ रौशनी का आभास हुआ। ड्राइंग रूम के बहुत ऊपर छत के कुंडे में एक विशाल झूमर लगा हुआ था जो कई सारी लाइटों से रोशन था और उसी की रौशनी चारो तरफ फैली हुई थी। हर तरफ गहरी ख़ामोशी छाई हुई थी। मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई कि ऐसे हालात में भी बंगले के अंदर किसी तरह की हलचल का आभास तक नहीं हो रहा था। बगले के अंदर का माहौल बिलकुल वैसा ही था जैसे सामान्य परिस्थिति में होता था।

मैं दरवाज़ा खोल कर बाहर निकला और लम्बी राहदारी से चलते हुए सीढ़ियों के पास आया। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जो मुझे बुरी तरह झकझोर रहे थे और यहाँ पर भयानक तांडव करने के लिए मजबूर कर रहे थे। मैं सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आया। सीढ़ियों पर हरे रंग का कालीन नीचे तक बिछा हुआ था इस लिए मेरे उतरने पर कोई आवाज़ नहीं हुई।

सीढ़ियों से नीचे आ कर मैंने चारो तरफ नज़रे घुमाई। मेरे माता पिता का कमरा नीचे ही था और दूसरी तरफ एक कोने में सविता आंटी का कमरा था। मैंने इधर उधर देखा किन्तु ना तो कोई नज़र आया और ना ही किसी प्रकार की कहीं कोई हलचल समझ में आई जोकि ऐसी सिचुएशन में मेरे लिए बहुत ही चौकाने वाली बात थी। ख़ैर मैं सीधा अपने माता पिता के कमरे की तरफ बढ़ चला। कुछ ही देर में जब मैं मम्मी पापा के कमरे के पास पंहुचा तो देखा दरवाज़ा बंद था। पहले तो मन किया कि दरवाज़े पर पूरी ताकत से लात मारूं ताकि दरवाज़ा जड़ से ही उखड़ जाए किन्तु फिर मैंने अपने अंदर उठे क्रोध को शांत किया और दरवाज़े से कान सटा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।

कमरे के अंदर भी वैसी ही ख़ामोशी छाई हुई थी जैसे बाहर छाई हुई थी। मैं समझ गया कि या तो वो दोनों तहख़ाने में होंगे या फिर सो गए होंगे। मैंने दरवाज़े को अंदर की तरफ हल्का सा धकेला तो मेरी उम्मीद के विपरीत दरवाज़ा बड़ी आसानी से खुलता ही चला गया। कमरे में नीम अँधेरा था। मैं दरवाज़े के पास खड़ा अंदर किसी तरह की हलचल होने का इंतज़ार करने लगा किन्तु जब काफी देर गुज़र जाने के बाद भी मुझे किसी तरह की हलचल का आभास नहीं हुआ तो मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ।

मन में तो तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे किन्तु जाने क्यों इस वक़्त मुझे थोड़ी घबराहट सी महसूस होने लगी थी। कमरे के अंदर आया तो मेरी नज़र बड़े से बेड पर पड़ी। बेड में कोई नहीं था। बेड अपनी जगह पर वैसा ही रखा हुआ था जैसे हमेशा रखा रहता था। ये देख कर मैं मन ही मन चौंका। मुझे समझ न आया कि अगर बेड कालीन के ऊपर ही रखा हुआ है और बेड भी खाली है तो फिर मेरे मम्मी पापा कहां हैं? मैं तो यही समझा था कि या तो वो दोनों बेड पर सोए हुए होंगे या फिर नीचे तहख़ाने में होंगे लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ था ही नहीं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो दोनों यहाँ आए ही न हों?

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि एकदम से मेरी नज़र बेड के दूसरी तरफ पड़ी। ऐसा लगा जैसे वहां पर कोई पड़ा हुआ है। मैं सावधानी से उस तरफ बढ़ा। मन में हज़ारो तरह के ख़याल लिए जैसे ही मैं बेड के दूसरी तरफ पहुंचा तो मेरे होश उड़ ग‌ए। दिलो दिमाग़ को ऐसा झटका लगा कि मैं एकदम से अपने होश खो बैठा और बिजली की तरफ लपक कर आगे बढ़ा। कमरे के फर्श पर मेरी माँ लहू लुहान पड़ी हुई थी और उनके पीछे बेड की पुश्त से अपनी पीठ टिकाए मेरे पापा बैठे हुए थे। इस तरफ के फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था। अपने माता पिता को इस तरह लहू लुहान हालत में देख कर मैं उनके प्रति अपनी नफ़रत और गुस्से को भूल गया और तड़प कर उनके नज़दीक पहुंचा।

फर्स पर किसी ठंडी चीज़ पर मेरा हाथ पड़ा तो मैंने बेध्यानी में उस चीज़ को पकड़ लिया। हथेली पर ठण्ड का एहसास हुआ तो मैंने मम्मी और पापा की तरफ से नज़र हटा कर अपनी हथेली की तरफ देखा तो बुरी तरह उछल पड़ा। मेरे हाथ में रिवाल्वर था। पलक झपकते ही मेरे ज़हन में बस एक ही बात गूँजी कि इस रिवाल्वर से मेरे माता पिता ने अपनी जान ले ली है। शायद वो मुझे खोने के बाद खुद भी जीवित नहीं रहना चाहते थे। उन्हें लगा होगा कि मैं संजय अंकल के बंगले से भाग कर सीधा घर ही जाऊंगा। उसके बाद जब वो भी घर लौटेंगे तो उनका सामना मुझसे होगा। अपनी असलियत के उजागर हो जाने की वजह से भला वो कैसे मुझे अपना चेहरा दिखा सकते थे? शायद इसी लिए उन्होंने ऐसा वक़्त आने से पहले ही अपने आपको ख़त्म कर लिया।

अपने माता पिता को इस तरह से इस दुनियां से गया देख मेरा दिल हाहाकार कर उठा। एक असहनीय दर्द मेरी आत्मा तक को पीड़ा देता हुआ चला गया। पलक झपकते ही मेरी हालत पागलों जैसी हो गई किन्तु फिर अचानक से मुझे झटका लगा और मैं ये सोच कर हलक फाड़ कर चिल्लाया कि मुझे मेरे सवालों का जवाब दिए बिना मेरे माँ बाप कैसे इस दुनिया से जा सकते हैं? जिस ख़ुशी से उन्होंने ऐसा कुकर्म किया था उसी ख़ुशी से उन्हें मेरा सामना भी करना चाहिए था। पूरे बंगले में मेरी आवाज़ें गूँज उठीं थी। मैं गुस्से और नफ़रत में पागलों की तरह चिल्लाए जा रहा था। अचानक से बंगले में बड़ी तेज़ी से हलचल होती हुई प्रतीत हुई। कई सारे लोगों के क़दमों की आवाज़ें इस तरह से सुनाई दीं जैसे कई सारे लोग भागते हुए मेरी तरफ ही आ रहे थे।

कुछ ही देर में कमरे में कई सारे लोग दाखिल हुए और कई लोगों ने मुझे पकड़ कर अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। अगले ही पल कमरे में तेज़ रौशनी हो गई। मैंने पहली बार उन लोगों की तरफ नज़र घुमाई तो ये देख कर मुझे झटका लगा कि मुझे पकड़ने वाले कोई और नहीं बल्कि पुलिस के लोग थे। एक पुलिस वाले ने सफ़ेद रुमाल के सहारे मेरे हाथ से वो रिवाल्वर ले लिया जिसे अब तक मैंने अपने हाथ में ही पकड़ा हुआ था। पलक झपकते ही मानो हर मंज़र बदल गया था। कई पुलिस वाले मुझे शख़्ती से खींचते हुए कमरे से बाहर ले गए। कमरे से बाहर हॉल में आया तो एक ने मेरे हाथों में हथकड़ी पहना दी। मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं था कि मेरे साथ वो लोग क्या क्या करते जा रहे थे। मेरे ज़हन में तो बस इसी बात का गुस्सा भरा हुआ था कि मेरे माँ बाप मेरे सवालों का जवाब दिए बिना कैसे इस दुनिया से जा सकते थे?

बंगले से बाहर वो लोग मुझे पकड़ कर ले आए थे और अपनी पुलिस जीप में किसी बोरे की तरह ठूंस कर बैठा दिया। पुलिस की जीप एक झटके से वहां से चल पड़ी तो जैसे मेरी चीखों पर ब्रेक लग गया और मैं किसी गहरे सदमे में डूबता चला गया। उसके बाद मुझे कोई होश नहीं रह गया था कि किसी ने क्या क्या मेरे साथ किया। हवालात में पुलिस वालों ने ये कहते हुए मुझ पर डंडे बरसाए कि मैंने अपने माता पिता का खून क्यों किया लेकिन मेरे मुख से बस दर्द से भरी चीखें ही निकलती रहीं। तीन चार दिन यही आलम रहा। इन चार दिनों में मुझसे कोई भी ऐसा ब्यक्ति मिलने नहीं आया जिसे मैं कभी अपना समझता था।

चौथे दिन मुझे अदालत में पेश किया गया। अदालत में वकीलों ने अपना अपना काम किया जबकि मैं बेजान लाश की तरह कटघरे में खड़ा रहा। मेरे कानों तक किसी की बातें पहुंच ही नहीं रहीं थी और ना ही मैंने किसी के सवालों के जवाब दिए। आख़िर में न्याय की कुर्सी पर बैठे न्यायाधीश ने मुझे उम्र क़ैद की सजा सुना दी। उसके बाद एक बड़ी सी गाडी में मुझे सेंट्रल जेल की एक कोठरी में ला कर डाल दिया गया।

ज़िन्दगी कहां से शुरू हुई थी और कहां आ कर ख़त्म हो गई थी। मैं महीनों सदमे में डूबा रहा। शुरुआत के कुछ महीने मैंने जेल में क़ैदियों के बीच न जाने कैसे कैसे कष्ट सहे और कैसी कैसी यातनाएं सहीं किन्तु मुझ पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। न जीने की आरज़ू थी और न ही किसी से कुछ कहने की तमन्ना। ऐसे ही दिन महीने में और महीने साल में गुज़रने लगे। कुछ साल बाद जब मैं थोड़ा ठीक हुआ तो अक्सर ये सोचता कि मेरे माता पिता ने खुद ख़ुशी क्यों की होगी? क्या सच में वो अपराध बोझ से इतना दब चुके थे कि वो मेरा सामना करने से डरते थे और मेरी मौत का फरमान सुनाने के बाद खुद भी जीवित नहीं रहना चाहते थे? क्या सच में यही बात रही होगी या असलियत कुछ और थी? मैं अक्सर सोचता था कि मुझे अपने बेटे की तरह प्यार करने वाले मेरे अपने एक बार भी उस समय मुझसे मिलने पुलिस लॉकअप में क्यों नहीं आए थे? जब मुझे अदालत में जज के सामने पेश किया गया था तब भी शायद वो नहीं आए थे। आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि मेरे अपनों ने मुझसे इस तरह से मुँह मोड़ लिया था? मेरे दोस्तों में से भी कोई मुझसे मिलने नहीं आया था। क्या इस सबके पीछे कोई ऐसा रहस्य हो सकता है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था? ऐसे न जाने कितने ही सवाल अक्सर मेरे ज़हन में उभरते रहते थे लेकिन ऐसे सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं था।

ज़िन्दगी जब बोझ लगने लगती है तो फिर किसी चीज़ से मोह नहीं रह जाता और ना ही किसी चीज़ से कोई फ़र्क पड़ता है। संसार में कब किसके साथ क्या होता है इस बात से भी इंसान को कोई मतलब नहीं रह जाता। वक़्त और हालात जब किसी इंसान को ये एहसास करा देते हैं कि उसका इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं रहा और न ही कोई उसके लिए दुखी होने वाला रहा तो इंसान एक गहरे शून्य में डूब जाता है। वो इस संसार की माया से विरक्त हो जाता है। हर गुज़रते वक़्त के साथ मेरा यही हाल होता जा रहा था। मैं इस बात को भी नहीं सोचता था कि क्या सच था और क्या झूठ। जिससे मुझे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे वो तो खुद ही इस दुनिया से जा चुके थे, फिर भला किसी से किस लिए कोई सवाल करना या किसी बात का शिकवा गिला करना? हर रोज़ दिल करता था कि अपनी ऐसी ज़िन्दगी को एक झटके में मिटा दूं लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर अपनी इस सोच को बेदर्दी से कुचल देता था कि मैं अपने माता पिता की तरह कायर नहीं हूं जो किसी का सामना करने की बजाय खुद ख़ुशी कर ले। इस संसार में अमर कोई नहीं है। मौत सबको एक दिन आनी है तो जिस दिन मुझे मरना लिखा होगा तो मर ही जाऊंगा। अगर मैंने भूल से कोई पाप भी किया था तो यही समझ लूंगा कि ये दुःख दर्द सहना ही मेरा प्रयाश्चित है। दिल में बस यही एक ख़्वाहिश रह गई थी कि काश! मौत नाम की खूबसूरत बला जल्दी से मुझे अपनी बाहों में लेने के लिए आ जाए।

जेलर साहब, यही मेरे जीवन की कहानी है और यही मेरा सच है। आपसे पहले भी इस जेल में कई जेलर आए थे किन्तु मैंने उनमें से किसी को भी अपना सच नहीं बताया था। उन्हें भला क्या बताता कि मैं कौन था और मेरे साथ साथ मेरे परिवार का सच क्या था। क्या इससे कोई चीज़ बदल सकती थी? क्या किसी से अपनी दास्तान बताने से मुझे कोई ख़ुशी मिल सकती थी? मेरा किस्सा ऐसा था ही नहीं जो किसी को बताने लायक हो, बल्कि ये तो ऐसा था जिसे हज़ारो लाखों पर्दों में छिपा कर ही रखा जा सकता था। भला मैं कैसे किसी को ये बताता कि मेरे अपने किस तरह की मानसिकता के शिकार थे और किस तरह की ख़्वाहिश रखते थे?

सोचा तो यही था कि मरता मर जाऊंगा लेकिन किसी को अपना सच नहीं बताऊंगा लेकिन शायद नियति मुझसे कुछ और ही चाह रही थी इस लिए उसने मेरे जीवन में आपको भेजा। वागले साहब आप सच में बहुत ही नेकदिल इंसान हैं और मैं दुआ करता हूं कि ऊपर वाला हमेशा आपको और आपके परिवार को खुश रखे। आपने हमेशा मुझे अपने छोटे भाई की तरह प्यार और स्नेह दिया। इस जीवन में बस यही एक अच्छी बात हुई कि मुझे आपके जैसा प्यार और स्नेह देने वाला कोई गैर मिला। आपको अपना नहीं कहूंगा क्योंकि अपने कैसे होते हैं ये मैंने देख लिया है। ख़ैर जब मुझे पता चला कि मेरी बाकी की सज़ा को माफ़ कर दिया गया है तो मैंने भी सोचा कि जीवन में अब कुछ तो करना ही पड़ेगा इस लिए जब कुछ करने के बारे में सोचा तो एक बार फिर से ज़हन सक्रिय हो गया। जो सवाल कभी अक्सर ज़हन में उभरा करते थे वो एक बार फिर से उभरने लगे और इस बार उन सवालों के जवाब मुझे खुद ही मिल ग‌ए।

मैं अच्छी तरह समझ चुका हूं जेलर साहब कि बीस साल पहले का सच क्या था और जब समझ गया तो ये सोच कर मुस्कुरा उठा कि नियति के खेल भी कितने निराले होते हैं। मैंने कभी खुद ख़ुशी इसी लिए नहीं की थी क्योंकि नियति आगे चल कर मेरे द्वारा एक और खेल खेलना चाहती थी। यहाँ से जाने से पहले मैंने सोचा कि आपको अपना सच बता कर ही जाऊं। आप जैसे नेकदिल इंसान के मन में हमेशा के लिए ये जिज्ञासा छोड़ कर क्यों जाऊं जो आपको हमेशा सोचने पर मजबूर करती रहे।

आख़िर में बस यही कहूंगा कि आपसे फिर मुलाक़ात होगी किन्तु रूबरू नहीं बल्कि ऐसी ही मेरी किसी डायरी के द्वारा।
अच्छा अब अलविदा...

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☆☆☆ समाप्त ☆☆☆

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दोस्तों, कहानी का ये भाग यहीं पर समाप्त होता है। हालांकि मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि कहानी का कोई दूसरा भाग भी बने किन्तु मेरे ना चाहने के बावजूद ऐसा हो गया। कहानी तो अपने इस शीर्षक के हिसाब से पूरी हो चुकी है लेकिन इस कहानी में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो शेष रह गया है। आख़िर में मैंने यही सोचा कि जो कुछ शेष रह गया है उसे एक न‌ए शीर्षक के साथ शुरू करुंगा।
कहानी का अंत पढ़ने के बाद आप सबके ज़हन में भी यही विचार आया होगा कि जो कुछ रह गया है वो इस कहानी के शीर्षक के हिसाब से नहीं हो सकता।
ख़ैर जल्द ही इस कहानी का दूसरा भाग शुरू करूंगा और आप सबके मन में उपजे सवालों के जवाब भी दूंगा।

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद कि आप सबने इस कहानी को पढ़ा और अपनी खूबसूरत प्रतिक्रियाओं से मुझे खुशी प्रदान की। :thank_you:
 
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Hello Everyone :hi: ,
We are Happy to present to you The Exclusive story contest of Lustyweb "The Exclusive Story Contest" (ESC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne ESC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat aka discussion thread toh pehle se he Hindi section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 2000 words and maximum 8000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Lustyweb dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki ESC Ki stories ko pure Lustyweb k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.


Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Lustyweb k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.


Entry thread aaj yaani 5th February ko open hogaya hai matlab aap aaj se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 25 February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.


Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Lweb Staff.
 

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