Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

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मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।

चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।

दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।

"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।

लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।

मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।
ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।

"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"

"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।

कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।

हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।

रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।

अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।
रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।

एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?

सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।

एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।

हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।

डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।

बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।

~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। हालांकि कहानी इसके आगे भी है किन्तु वो दूसरे भाग में तथा दूसरे शीर्षक में लिखी जाएगी....धन्यवाद!!
Bhai iske aage bhi hai ya is khani ka end hai
 
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Aur shayad uska second part bhi start Kiya tha par complete nahi kiya tha. Shayad yahan pe aap second part likhoge.
 
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अपडेट............《 18 》

अब तक......

"निःसंदेह।" आदमी ने कहा__"और क्योंकि फैक्टरी बाहर से अवकाश के चलते बंद थी इस लिए जब तक किसी को पता चलता तब तक आग ने उग्र रूप धारण कर सबकुछ बरबाद कर दिया।"

"बेसमेंट के अंदर की क्या पोजीशन है?" रितू ने कहा__"अगर अंदर जाने लायक है तो चलकर जाॅच शुरू करते हैं। देखते हैं और क्या पता चलता है?"

कहने के साथ ही रितू और वो आदमी बेसमेंट के अंदर की तरफ देखने लगे। बेसमेंट के अंदर पुलिस और फाॅरेंसिक के कुछ लोग थे। रितू भी उनके बीच पहुॅच गई।

उधर अजय सिंह को आनन फानन में अभय ने कार में पिछली सीट पर प्रतिमा की गोंद में लिटाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट की। लगभग बीस मिनट बाद वो सब हास्पिटल में थे।

अजय सिंह को तुरंत ही एक रूम में ले जाया गया और डाक्टर ने उसका चेकअप शुरू कर दिया।
अब आगे.......


शाम होने से पहले पहले अजय सिंह को हास्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया था। डाॅक्टर ने बताया था कि अजय सिंह को किसी गहन चिन्ता तथा किसी सदमे की वजह से चक्कर आया था। बाॅकी उन्हें कोई बीमारी नहीं है। हास्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद अजय सिंह अपनी पत्नी प्रतिमा तथा छोटे भाई अभय के साथ सीधा हवेली ही आ गया था। फैक्टरी में हो रही छानबीन का क्या नतीजा निकला ये उसे पता नहीं था। हलाॅकि उसका पीए और बाॅकी स्टाफ फैक्टरी में ही थे। हास्पिटल से हवेली लौटते समय सारे रास्ते अजय सिंह ख़ामोश रहा। अभय सिंह कार को ड्राइव कर रहा था जबकि अजय सिंह व प्रतिमा कार की पिछली सीट पर बैठे थे।

प्रतिमा ने इस समय अभय की मौजूदगी में अजय सिंह से कुछ भी पूॅछना उचित नहीं समझा था इस लिए वह भी चुप ही रही। ये अलग बात है कि उसके दिलो दिमाग़ में विचारों का बवंडर चल रहा था।

हवेली पहुॅच कर वो सब कुछ देर ड्राइंग रूम में बैठे रहे। अभय सिंह थोड़ी देर बाद अपने घर की तरफ चला गया। अजय सिंह व प्रतिमा का बेटा शिवा इस वक्त हवेली में नहीं था।

सोफे पर बैठा अजय सिंह खामोश था किन्तु अब उसके चेहरे पर गहन सोच और चिन्ता के भाव फिर से नुमायाॅ होने लगे थे। उसका ध्यान फैक्टरी में हो रही छानबीन पर ही लगा हुआ था।

"इस तरह चिन्ता करने से कुछ नहीं होगा अजय।" प्रतिमा अपने सोफे से उठकर अजय वाले सोफे पर उसके करीब ही बैठ कर बोली__"अब जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। हलाॅकि मैं ये नहीं जानती कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुमने अपनी ये हालत बना ली है किन्तु इतना ज़रूर समझ गई हूॅ कि ये चिन्ता या ये सदमा सिर्फ फैक्टरी में आग लगने से हुए नुकसान बस का नहीं है, बल्कि इसकी वजह कुछ और ही है।"

अजय सिंह कुछ न बोला, बल्कि ऐसा लगा जैसे उसने प्रतिमा की बात सुनी ही न हो। वह पूर्वत उसी तरह सोफे पर बैठा रहा। जबकि उसके चेहरे की तरफ ग़ौर से देखते हुए तथा उसके दोनो कंधों को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए प्रतिमा ने ज़रा ऊॅचे स्वर में कहा__"होश में आओ अजय, क्या हो गया है तुम्हें? प्लीज मुझे बताओ कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी चिन्ता से तुमने खुद की ऐसी हालत बना ली है?"

प्रतिमा के इस प्रकार झिंझोड़ने पर अजय सिंह चौंकते हुए गहन सोच और चिन्ता से बाहर आया। उसने अजीब भाव से अपनी पत्नी की तरफ देखा फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव बदले।

"इस छानबीन को होने से रोंक लो प्रतिमा।" अजय सिंह भर्राए से स्वर में कहता चला गया__"अपनी बेटी से कहो कि वह फैक्टरी की छानबीन न करे, वर्ना सब कुछ बरबाद हो जाएगा। ये सब रोंक लो प्रतिमा, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूॅ। प्लीज रोंक लो अपनी बेटी को।"

प्रतिमा हैरान रह गई अपने पति का ये रूप देख कर। किसी के सामने न झुकने वाला तथा किसी से न डरने वाला और न ही किसी से हार मानने वाला इंसान इस वक्त दुनिया का सबसे कमज़ोर व दीन हीन नज़र आ रहा था। प्रतिमा को कुछ पल तो समझ ही न आया कि वह क्या करे किन्तु फिर तुरंत ही जैसे उसे वस्तुस्थित का आभास हुआ।

"कैसे इस सबको रोंकूॅ अजय?" प्रतिमा ने अधीरता से कहा__"तुमने तो मुझे कुछ बताया भी नहीं कि बात क्या है? आज तक अपनी हर बात मुझसे शेयर करते रहे मगर ऐसी क्या बात थी जिसे तुमने मुझसे कभी शेयर करने के बारे में सोचा तक नहीं? क्या तुम ये समझते थे कि तुम्हारी किसी बात से मुझे कोई ऐतराज़ होता? या फिर तुम ये समझते थे कि मैं तुम्हें किसी काम को करने से रोंक देती?? तुम जानते हो अजय कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूॅ तथा ये भी जानते हो कि तुम्हारे कहने पर दुनियाॅ का हर नामुमकिन व असंभव काम करने को तुरंत तैयार हो जाती हूॅ, फिर वो काम चाहे जैसा भी हो। मगर इसके बावजूद तुमने मुझसे कोई बात छुपाई अजय। क्यों किया तुमने ऐसा?"

"मुझे माफ कर दो प्रतिमा।" अजय सिंह ने प्रतिमा के दोनो हाॅथों को थाम कर कहा__"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। तुम चाहो तो इस सबके लिए मुझे जो चाहे सज़ा दे दो लेकिन इस सबको रोंक लो प्रतिमा...वर्ना बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर जाऊॅगा, उसका और उसके कानून का मुजरिम बन जाऊॅगा।"

"ऐसी क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने झुॅझलाकर कहा__"आखिर तुम कुछ बताते क्यों नहीं? जब तक मुझे बताओगे नहीं तो कैसे मुझे समझ आएगा कि आगे क्या करना होगा मुझे?"

"क्या बताऊॅ प्रतिमा।" अजय सिंह ने हताश भाव से कहा__"और किन शब्दों से बताऊॅ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"

"भला ये क्या बात हुई अजय?" प्रतिमा ने उलझ कर कहा__"जो जैसा है उसे वैसा ही बताओ न।"

अजय सिंह ने एक गहरी साॅस ली। अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे किसी जंग के लिए खुद को तैयार कर रहा हो।

"मुझसे वादा करो प्रतिमा।" सहसा अजय सिंह ने प्रतिमा का हाॅथ अपने हाॅथ में लेकर कहा__"कि मेरे द्वारा सब कुछ जानने के बाद तुम मुझसे न तो नाराज़ होओगी और ना ही मुझे ग़लत समझोगी।"

"ठीक है मैं वादा करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा__"अब बताओ क्या बात है??"

"म मैं अपने इस बिजनेस के साथ साथ ही।" अजय सिंह ने धड़कते दिल के साथ कहा__"एक और बिजनेस करता हूॅ प्रतिमा लेकिन वो बिजनेस गैर कानूनी है।"

"क क्या????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी__"य..ये तुम क्या कह रहे हो अजय? तुम गैर कानूनी बिजनेस भी करते हो??"

"मुझे माफ कर दो प्रतिमा।" अजय सिंह ने भारी स्वर में कहा__"पर यही सच है। मैं शुरू से ही इस धंधे में था।"

प्रतिमा आश्चर्यचकित अवस्था में मुह और आॅखें फाड़े अजय सिंह को देखे जा रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अजय सिंह गैर कानूनी काम भी करता है। कुछ देर तक वह अवाक् सी देखती रही उसे फिर एक गहरी साॅस लेते हुए गंभीरता से बोली__"क्यों अजय क्यों...आख़िर क्या ज़रूरत थी तुम्हें ऐसा काम करने की? तुम्हें तो पता था कि ऐसे काम का एक दिन बुरा ही नतीजा निकलता है। फिर क्यों किया ऐसा?? आखिर किस चीज़ की कमी रह गई थी अजय जिसके लिए तुम्हें गैर कानूनी काम भी करना पड़ गया??"

"ये सब मेरी ही ग़लती से हुआ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"मेरी ही महत्वाकांछाओं के चलते हुआ है। मैं हमेशा इसी ख्वाहिश में रहा कि मेरे और मेरे बच्चों के पास धन दौलत व ऐश्वर्य की कोई कमी न हो। मेरा एक बहुत बड़ा नाम हो और सारी दुनियाॅ मुझे पहचाने। इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, इस बारे में कभी नहीं सोचा कि मेरी इन चाहतों से कभी मुझे ऐसा भी दिन देखना पड़ सकता है।"

"अब क्या होगा अजय?" प्रतिमा ने कहा__"तुम्हारी ख्वाहिशों ने आज क्या सिला दिया है तुम्हें और तुम्हारे साथ साथ हम सबको भी। क्या होगा जब सबको ये मालूम होगा कि तुम गैर कानूनी धंधा भी करते हो?"

"मुझे और किसी की परवाह नहीं है प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"मुझे तो बस इस बात की चिन्ता है कि इस सबके बाद मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर जाऊॅगा। कानून के प्रति उसकी ईमानदारी और आस्था देख कर यही लगता है कि वह मुझे इस काम की वजह से जेल की सलाखों के पीछे भी डाल सकती है।"

"ये कैसे कह सकते हो तुम?" प्रतिमा ने चौंकते हुए कहा__"हमारी बेटी भला ऐसा कैसे कर सकती है?"
"वो यकीनन ऐसा ही कर सकती है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"क्यों कि फैक्टरी में हो रही छानबीन में उसे वो सब मिल जाएगा जो ये साबित करेगा कि मैं गैर कानूनी धंधा करता हूॅ।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि फैक्टरी में ही तुमने अपने गैर कानूनी धंधों के सबूत छोंड़ रखे हैं?" प्रतिमा की धड़कनें रुकती सी प्रतीत हुई उसे__"और वो सब सबूत अब रितू के हाॅथ लग जाएंगे?"

"बिलकुल।" अजय सिंह के चेहरे पर चिंता के भाव थे__"यही सच है प्रतिमा। फैक्टरी में ही मैंने एक गुप्त तहखाना बनवाया हुआ था, और उसी तहखाने में मैं गुप्तरूप से अपना ये गैर कानूनी धंधा करता था। इस धंधे में कानून के द्वारा पकड़े जाने का मुझे कोई डर नहीं था क्योंकि मेरे संबंध कानून तथा मंत्रियों से थे। ये सब मेरे इस धंधे से होने वाले मुनाफे से हिस्सा पाते थे। अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इन्हीं लोगों की कृपा से मेरा ये धंधा चल रहा था।"

"अगर ऐसी बात है तो तुम्हें इतना परेशान और चिन्ता करने की क्या ज़रूरत है?" प्रतिमा ने कहा__"ये सब तुम रोंकवा भी तो सकते हो। कानून और मंत्रियों में तो सब तुम्हारे ही आदमी हैं, तो उनसे कह कर इस छानबीन को रुकवाया भी तो जा सकता है?"

"अब ऐसा नहीं हो सकता प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"क्योंकि इसके पहले जो छानबीन हुई थी वो मेरे अनुरूप हुई थी। उसमें सब मेरे ही आदमीं थे लेकिन अब जो छानबीन हो रही है उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता।"

"क्यों?" प्रतिमा चौंकी__"क्यों नहीं कर सकते? अब क्या हो गया है ऐसा?"
"अब वो हुआ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ी__"जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था।"

"क्या मतलब??" प्रतिमा हैरान।
"मतलब कि रातों रात सारे पुलिस डिपार्टमेंट को बदल दिया गया।" अजय सिंह कह रहा था__"पुलिस में कमिश्नर तक जो भी मेरे आदमी थे उन सबका तबादला कर दिया गया है। अब तुम समझ सकती हो कि इन हालात में मैं क्या कर सकता हूॅ। मंत्री से मदद माॅगी लेकिन उसने भी अपने हाॅथ खड़े कर लिए। मंत्री ने कहा कि वो कुछ नहीं कर सकता क्योंकि ये सब ऊपर हाई कमान के आदेश पर हो रहा है।"

"हे भगवान!" प्रतिमा चकित भाव से बोली__"ये तो बहुत ही सीरियस मामला हो गया है।"
"वही तो।" अजय सिंह ने कहा__"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर क्या वजह है जो इस सबके लिए हाई कमान से आदेश दिया गया? आखिर किस वजह से रातों रात इस शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला कर दिया गया?"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा__"ये तो बड़ा ही पेंचीदा मामला हो गया है। लेकिन रितु ने तो कहा था कि इस केस को उसने रिओपेन करवाया है, उस सूरत में मामले को इतना सीरियस नहीं होना चाहिए था। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी बेटी ने ही हाई कमान को किसी ज़रिये इस सबके लिए सूचित किया हो?"

"हो भी सकता है और नहीं भी?" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा।
"क्या मतलब?" प्रतिमा के माथे पर सिलवटें उभरी।

"साधारण रूप से अगर हम ये सोच कर चलें।" अजय सिंह बोला__"कि रितू ने सिर्फ अपने पिता की फैक्टरी में आग लगने से हुए भारी नुकसान के चलते ये सोच कर इस केस को रिओपेन करवाया है कि कदाचित ये सब हमारे किसी दुश्मन के द्वारा ही किया गया हो सकता है तो इस मामले की छानबीन साधारण तरीके से ही होती। लेकिन अगर हम ये सोचें कि हो सकता है रितू को किसी वजह से ये पता चला हो कि उसका बाप इस बिजनेस की आड़ में गैर कानूनी धंधा भी करता है तो यकीनन इस केस की छानबीन का ये मामला संगीन है।"

"बात तो तुम्हारी बिलकुल दुरुस्त है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"लेकिन सवाल ये उठता है कि रितू को ये कैसे पता चल सकता है कि उसका बाप ये सब भी करता है??"

"संभव है कि पुलिस में आते ही थाने में उसने बारीकी से सभी फाइलों का अध्ययन किया हो?" अजय सिंह ने कहा__"उन्हीं फाइलों में कहीं उसे कोई ऐसा सबूत मिला हो जिससे उसे इस सबका पता चल गया हो। कानून में आस्था रखने वाली हमारी बेटी ने इस सबके पता चलते ही ये सोच लिया हो कि उसे अपने बाप को गैर कानूनी धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।"

"ये सब तो ठीक है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"लेकिन क्या ये संभव है कि किसी थाने में तुम्हारे खिलाफ कोई ऐसा सबूत फाइल के रूप में कहीं दबा हो सकता है? जैसा कि तुमने कहा था कि इसके पहले इस शहर में पुलिस महकमें में कमिश्नर तक की रैंक का कानूनी नुमाइंदा तुम्हारा ही आदमी था, तो क्या ये संभव है कि पुलिस के तुम्हारे ही आदमियों ने अपने थाने में कहीं तुम्हारे ही खिलाफ़ कोई सबूत बना कर रखा हुआ हो सकता था?"

"इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।" अजय सिंह ने कहा__"ऐसा हो भी सकता है। संभव है किसी पुलिस के नुमाइंदे ने गुप्त रूप से मेरे खिलाफ़ किसी प्रकार का सबूत बना कर रखा रहा हो। आखिरकार पुलिस तो पुलिस ही होती है, वो न तो किसी की दोस्त हो सकती है और न ही दुश्मन।"

"इन सब बातों के बाद तो यही निष्कर्स निकलता है।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"कि हमारी बेटी को किसी वजह से अपने पिता के खिलाफ कोई सबूत मिला और अब वह पक्के तौर पर बारीकी से छानबीन करके कुछ और ठोस सबूत हासिल करना चाहती है जिससे उसे तुमको जेल की सलाखों के पीछे डालने में कोई अड़चन न हो सके।"

"हो सकता है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा__"लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही।"
"कौन सी बात अजय?" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा था।

"यही कि रातों रात सारे पुलिस डिपार्टमेंट का तबादला क्यों कर दिया गया?" अजय सिंह बोला__"ये छानबीन तो वैसे भी हो जाती। कोई भी पुलिस का अफसर इस छानबीन में किसी भी प्रकार का हस्ताक्षेप नहीं करता। फिर क्यों तबादला कर दिया गया सबका?"

"अगर इस बात को हम अपनी इंस्पेक्टर बेटी के हिसाब से सोचें तो संभव है उसी ने इस सबके लिए ऊपर हाई कमान को अर्जी लिख कर गुज़ारिश की हो या फिर इसकी माॅग की हो?" प्रतिमा ने संभावना ब्यक्त की__"क्योकि शायद उसे इस बात की खबर हो कि इस शहर का सारा पुलिस विभाग तुम्हारे हाॅथों में है।"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने मजबूती से अपने सिर को इंकार के भाव से हिलाते हुए कहा__"रातों रात शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला कर देना कोई मामूली बात नहीं है, और उस सूरत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि हमारी बेटी ने अभी अभी पुलिस फोर्स ज्वाइन किया हो। किसी भी नये पुलिस वाले के लिए इतनी दूर तक पहुॅच रखना नामुमकिन है प्रतिमा।
पुलिस में रह कर बहुत दिन तक पहले पुलिस के दाॅव पेंच सीख कर उसका अनुभव करना पड़ता है। मैं ये बात मानता हूॅ कि हमारी बेटी ने पुलिस में आते ही किसी मॅझे हुए पुलिस अफसर की भाति पुलिसिया तौर तरीका अपना लिया है और उसका अंदाज़ भी अनुभवी लगता है लेकिन फिर भी इस बात को हजम करना मुश्किल है कि उसने ही शहर के सारे पुलिस विभाग को बदल देने की अपील की हो सकती है।"

"तो फिर।" प्रतिमा ने कहा__"तुम्हारे ख़याल से ये सब किसने किया हो सकता है?"
"यही तो समझ नहीं आ रहा।" अजय सिंह ने कहा__"दिमाग़ की नशें दर्द करने लगी हैं इस सबके बारे में सोचते सोचते।"

"तुम एक शख्स को तो भूल ही गए हो अजय।" प्रतिमा ने मानो धमाका करने वाले भाव से कहा__"ये सब उसने भी तो किया हो सकता है?"

"किसकी बात कर रही हो तुम?" अजय सिंह चौंका था।
"तुम्हारे भतीजे विराज की बात कर रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा।

"वो साला इस मामले में कहाॅ से फिट होता है प्रतिमा?" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा।
"बात इस मामले में उसके फिट होने की नहीं है अजय।" प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"बल्कि बात है ऐसे मामले में हर तरह की संभावना की। हमें भले ही लगता है कि विराज का इस मामले में कोई हाॅथ नहीं हो सकता किन्तु सवाल है कि क्यों नहीं हो सकता उसका हाॅथ?"

"बेवकूफों की तरह बात मत करो प्रतिमा।" अजय सिंह ने झुंझलाते हुए कहा__"मामले की गंभीरता और उसकी पेंचीदगियों को समझो। उसकी कोई औकात नहीं हो सकती इस सबमें शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला करवा देने की और न ही ये औकात हो सकती है कि वह सीधा हाई कमान से इस सबके लिए बात कर सके। तुम्हारा दिमाग़ फिर गया लगता है।"

"चलो मान लिया कि उसकी कोई औकात नहीं हो सकती इन सब कामों को करवाने की।" प्रतिमा ने ज़ोर देकर कहा__"मगर क्या ये नहीं हो सकता कि उसने ही हमारी फैक्टरी में बम्ब लगा कर सब कुछ आग के हवाले कर दिया हो? तुम हर बार उसकी औकात की बात करके उसे तुच्छ समझ लेते हो अजय जबकि उसे तुच्छ समझ लेने का भी तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है। जबकि कम से कम उसकी इतनी तो औकात हो ही सकती है कि वह फैक्टरी में किसी भी तरह ही सही लेकिन आग लगा सके।"

अजय सिंह खामोश रह गया। प्रतिमा की बातों में उसे सौ मन की सच्चाई नज़र आई। और इस एहसास ने ही उसे हिला कर रख दिया कि ये सब उसके भतीजे विराज ने किया हो सकता है।

"ये तो तुम भी अच्छी तरह समझते हो अजय कि वो हमें अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता है।" प्रतिमा कह रही थी__"उसे लगता है कि हमने उसे और उसके परिवार को बरबाद कर दिया है। इस लिए इस सबका प्रतिशोध लेने के लिए वह क्या नहीं कर सकता? वह हर उस काम को कर गुज़रने पर अमादा हो सकता है जिस काम से वह हमारा बाल भी बाॅका कर सके।"

अजय सिंह कुछ कह न सका। किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था वह।

"तुमने कहा था कि तुम्हारे आदमी उन्हें ढूॅढ़ने के लिए मुम्बई की खाक़ छान रहे है।" प्रतिमा मजबूत लहजे में कहती जा रही थी__"जबकि आज तक तुम्हारे आदमियों के हाॅथ में उनसे संबंधित कोई छोटा सा सुराग़ भी नहीं लग सका। इस बारे में क्या कहोगे तुम, बताओ?"

"क्या कहूॅ यार?" अजय सिंह के चेहरे पर कठोर भाव उभरे__"जाने कहाॅ गुम हो गए हैं वो सब? उन सुअर की औलादों को ये ज़मीन खा गई है या आसमान निगल गया है। एक बार....सिर्फ एक बार मेरे हाॅथ लग जाएॅ फिर देखना क्या हस्र करता हूॅ मैं उन सबका।"

"मुझे नहीं लगता अजय कि तुम उन लोगों का कुछ कर लोगे।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"जबकि लग ये रहा है कि वो कमीना रंडी की औलाद विराज हमारा ही बेड़ा गर्क़ कर रहा है।"

अभी ये सब बातें ही कर रहे थे कि बाहर से किसी के आने की आहट सुनाई दी। कुछ ही पल में इंस्पेक्टर रितू ड्राइंग रूम में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर थकान के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। अजय सिंह अपनी बेटी को देखकर घबरा सा गया। उसे लगा फैक्टरी की छानबीन में रितू को उसके काले कारनामों का सारा काला चिट्ठा मिल गया है और अब वह उसे गिरफ्तार करने आई है।

"आई एम साॅरी डैड।" रितू ने आते ही अजय सिंह का हाॅथ पकड़ कर तथा खेद भरे लहजे में कहा__"मैं आपके साथ हास्पिटल नहीं जा सकी। आप तो मेरी मजबूरी समझ सकते हैं डैड, उस वक्त मैं अपनी ड्यूटी को छोंड़ कर नहीं जा सकती थी आपके साथ। उस सूरत में तो हर्गिज़ नहीं जब किसी केस की छानबीन चल रही हो। एनीवे, अब आपकी तबियत कैसी है?"

अजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि रितू को देख कर अब वह कैसा रिऐक्ट करे? मनो-मस्तिष्क में हज़ारों ख़याल मानो ताण्डव सा करने लगे थे। पल भर में ढेर सारा पसीना उसके सफेद पड़ चुके चेहरे पर उभर आया था। दोनो कानों में दिल पर धम्म धम्म करके पड़ने वाली किसी भारी हथौड़े की चोंट उसकी हृदय की गति को रोंक देने के लिए काफी थी जो सुनाई दे रही थी। जबकि उसके अंदर की हालत से अनभिज्ञ रितु ने अपने पिता को खामोश देख कर पुनः कहा__"प्लीज डैड, अब माफ भी कर दीजिए न अपनी इस बेटी को। आपको पता है आपकी उस हालत से मैं कितना परेशान और दुखी हो गई थी। लेकिन घटना स्थल पर मौजूद रहना मेरी मजबूरी थी, आप तो समझ सकते हैं न डैड? लेकिन इस सबसे फुर्सत होकर मैं सीघ्र ही पुलिस स्टेशन से भागी भागी आपसे मिलने आई हूॅ।"

अजय सिंह के मन मस्तिष्क में एकाएक मानो झनाका सा हुआ। दिमाग़ की सारी बत्तियाॅ जल उठीं। दिमाग़ ने सही तरीके से काम करना शुरू कर दिया। मन में बिजली की सी तेज़ी से ये ख़याल उभरा कि 'उसकी बेटी इस तरह बिहैव क्यों कर रही है जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो? इसके मासूम बर्ताव से तो यही लग रहा है जैसे छानबीन करते हुए तहखाने में इसे कुछ नहीं मिला वर्ना उसके हाथ अगर कोई गैर कानूनी चीज़ लग गई होती तो ये यहाॅ अपने पीछे पुलिस फोर्स लेकर तथा अपने हाॅथ में हॅथकड़ी लेकर उसे गिरफ्तार करने आती। लेकिन ऐसा तो दूर दूर तक होता हुआ दिखाई नहीं देता। इसका क्या मतलब हो सकता है?'

अजय सिंह के दिमाग़ में एकाएक जैसे हज़ार तरह के सवाल खड़े हो गए थे लेकिन जवाब किसी का नहीं था उसके पास। मन में ये ख़याल बार बार किसी हथौड़े की भाॅति चोंट मार रहे थे कि आख़िर क्या हुआ फैक्टरी की छानबीन में? उसकी बेटी को तहकीकात में उसके खिलाफ क्या कोई गैर कानूनी चीज़ मिली?

"क्या बात है डैड?" अपने पिता को गहरे समुद्र में डूबे देख रितू ने इस बार अपने दोनों हाॅथों की मदद से झिंझोड़ते हुए कहा था__"आप कुछ बोलते क्यों नहीं है? कहाॅ खोए हुए हैं आप?"

"आॅ..हाॅ...तु..तुमने कुछ कहा क्या बेटी?" अजय सिंह बुरी तरह चौंकते हुए कहा था। एकाएक ही उसके मन में ये ख़याल उभरा कि 'ये क्या बेवकूफी कर रहा है अजय सिंह, अपने आपको सम्हाल वर्ना तेरी हालत और तेरे चेहरे की ये हालत देख कर तेरी बेटी को कहीं सचमुच कुछ पता न चल जाए।' इस ख़याल के द्वारा खुद को समझाए जाने पर अजय सिंह ने तुरंत ही अपने आपको सम्हाला। और फिर मुस्कुरा कर उसने अपनी बेटी की तरफ देखा।

"मैं ये कह रही हूॅ डैड कि आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे थे?" रितू कह रही थी__"पता नहीं कहाॅ खोए हुए थे आप?"

"कुछ नहीं बेटा।" अजय सिंह ने एक नज़र अपनी पत्नी की तरफ डालने के बाद कहा__"तुम सुनाओ, कैसा रहा पुलिस के रूप में आज का तुम्हारा पहला दिन?"

अजय सिंह ये पूॅछने से हिचकिचाने के साथ साथ डर भी रहा कि 'आज तहकीकात में क्या हुआ?' इस लिए ये न पूछ कर कुछ और ही पूॅछ बेठा था।

"बहुत अच्छा था डैड।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"बस थोड़ा थक गई हूॅ।"
"अभी आदत नहीं है न।" सहसा इस बीच प्रतिमा कह उठी__"जब इस सबकी आदत हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा।"

"आप ठीक कहती हैं माॅम।" रितू ने कहा__"धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अभी तो आप मुझे मस्त गरमा गरम काॅफी पिलाइए प्लीज।"

"अभी बना कर लाती हूॅ बेटी।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा और सोफे से उठ कर अंदर किचेन की तरफ चली गई।

इधर अजय सिंह सोच रहा था कि आज की छानबीन के संबंध में उसकी बेटी ने अभी तक कोई बात क्यों नहीं की?? वह खुद इस बारे में पूॅछने से हिचकिचा भी रहा था और डर भी रहा था। लेकिन ये भी सच था कि उसके लिए इस सबके बारे में जानना निहायत ही ज़रूरी था। मगर सबसे बड़ा सवाल था कि वह अपनी बेटी से पूॅछें कैसे???

"डैड, आपने अभी तक मुझसे पूछा नहीं।" सहसा रितू ने अजीब से अंदाज़ में कहा__"कि आज फैक्टरी में हुई छानबीन में क्या नतीजा निकला??"

अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका भी और घबरा भी गया, किन्तु अपने किसी भी भाव को चेहरे पर उभरने नहीं दिया। खुद को मजबूती से सम्हाल कर संतुलित लहजे से कहा__"पूॅछ कर क्या करूॅगा बेटी? इस सबसे कुछ होने वाला तो है नहीं। क्या इस सबसे वो सब कुछ वापस मिल जाएगा जो जल कर खाक़ में मिल चुका है?"

"बात सब कुछ मिल जाने की नहीं है डैड।" रितू ने कहा__"बल्कि इस बात की है कि ये सब किसने और किस वजह से किया? आपको ये जानकर हैरानी के साथ साथ शायद खुशी भी होगी कि फैक्टरी में आग किसी सार्ट शर्किट की वजह से नहीं बल्कि फैक्टरी के तहखाने में किसी के द्वारा लगाए गए टाइम बम्ब के भीषण धमाके से उत्पन्न हुई आग से लगी थी।"

"क् क्या????" अजय सिंह बुरी तरह चौंकने का बेहतरीन नाटक किया था फिर बोला__"ये ये क्या कह रही हो तुम?"

"ये सच है डैड।" रितू ने कहा__"मगर मैं इस बात से हैरान हूॅ कि इसके पहले हुई छानबीन में ये सब क्यों नहीं बताया पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में? जबकि ये सब बातें कोई भी साधारण ब्यक्ति जाॅच करके बता सकता था। ये अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल है डैड। ख़ैर पुलिस इंक्वायरी में इस सबका जवाब उन पुलिस आफिसर्स को ही देना पड़ेगा जिन्होंने इसके पहले फैक्टरी की छानबीन की थी। मगर इस सबका जवाब आपको भी देना पड़ेगा डैड। मुझे पक्का यकीन है कि पुलिस द्वारा इस प्रकार की छानबीन करके रिपोर्ट आपके कहने पर ही बनाई गई थी।"

अजय सिंह अवाक् सा देखता रह गया अपनी बेटी को। फिर तुरंत ही खुद को सम्हालते हुए कहा__"ये सब झूॅठ है बेटी। हमने ऐसी कोई रिपोर्ट बनाने के लिए नहीं कहा।"

"आप अपनी इस बात को साबित नहीं कर पाएंगे डैड।" रितू ने कहा__"सारे हालात इस बात की चीख चीख कर गवाही दे रहे हैं कि इसके पहले की गई छानबीन महज एक औपचारिकता बस थी। वर्ना कोई भी पुलिस वाले अंधे नहीं थे जो उन्हें ये न दिखता कि फैक्टरी में लगी आग किसी के द्वारा लगाए गए टाइम बम्ब की मेहरबानी थी। इसके बावजूद उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यही दिखाया कि फैक्टरी में आग सिर्फ शार्ट शर्किट की वजह से लगी थी। यहाॅ पर कोई भी सवाल खड़ा कर सकता है डैड कि सब कुछ स्पष्ट नज़र आते हुए भी पुलिस ने ऐसी रिपोर्ट क्यों बनाई? इसमें पुलिस का क्या मकसद था? या फिर एक ही बात हो सकती है कि पुलिस को ऐसी ही रिपोर्ट बनाने के लिए खुद आपने कहा हो। अगर यही सच है तो फिर यहाॅ पर सवाल खड़ा हो जाता है कि आपने पुलिस को ऐसी रिपोर्ट बनाने के लिए क्यों कहा??? बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती डैड, बल्कि ऐसी स्थिति में फिर और भी सवाल खड़े होने लगते हैं जिनका जवाब मिलना ज़रूरी हो जाता है।"

अजय सिंह को लगा कि अभी ज़मीन फटे और वह उसमें पाताल तक समाता चला जाए। हलाॅकि रितू ने कोई तीर नहीं मार लिया था ये सब करके क्योंकि फैक्टरी की छानबीन अगर पहले ही पूरी ईमानदारी से की गई होती तो पहले ही पुलिस को ये सब पता चल जाता। लेकिन क्योंकि ऐसा हुआ नहीं था। बल्कि अजय सिंह अपने तरीके से रिपोर्ट बनवा कर चैन से बैठ गया था। वो भला कैसे इस बात की कल्पना कर लेता कि अगले ही दिन उसकी अपनी बेटी इन गड़े मुर्दों को निकाल कर उसकी हालत को खराब करना शुरू कर देगी।

"आपकी ख़ामोशी इस बात का सबूत है डैड कि आप ही ने पुलिस को ऐसी रिपोर्ट बनाने को कहा था।" रितू ने कहा__"क्या आप बताने का कष्ट करेंगे कि आपने ऐसा क्यों किया?"

अजय सिंह क्योंकि जानता था कि इस संबंध में अब झूॅठ बोलने का कोई मतलब नहीं है इस लिए सच बताना ही बेहतर समझा उसने।

"ये सच है बेटी कि मेरे ही कहने पर पुलिस ने वैसी रिपोर्ट बनाई थी।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"लेकिन ये सब करना मेरी मजबूरी थी बेटी क्योंकि मैं इस सबको और अधिक उछालना नहीं चाहता था। मैं नहीं चाहता था बेटी कि मेरी इज्जत का अब और कचरा हो। सब कुछ तो जल ही गया था, कुछ मिलना तो था नहीं, इस लिए कम से कम अपनी इज्जत को तो नीलाम होने से बचा लेता। इसी वजह से बेटी...सिर्फ इसी वजह से मैंने पुलिस अधिकारियों से मिन्नतें कर करके ऐसी रिपोर्ट बनाने को कहा था।"

रितू देखती रही अपने पिता के चेहरे की तरफ। अंदाज़ ऐसा था जैसे परख रही हो कि उसके बाप की बातों में कितनी सच्चाई है? जबकि अपनी बेटी को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए देख अजय सिंह के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी।

"वाह डैड वाह!" रितू ने अजीब भाव से कहा__"आपने तो ये सब करके कमाल ही कर दिया। मतलब आपने ये भी नहीं सोचा कि अगर इस सबकी पुलिस द्वारा बारीकी से तहकीकात करवाई जाए तो इससे आपको कुछ हासिल भी हो सकता है?"

तभी प्रतिमा हाॅथ में ट्रे लिए ड्राइंगरूम में दाखिल हुई। उसने एक एक कप सबको पकड़ाया और खुद भी एक कप लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

"इससे भला क्या हासिल होता बेटी?" अजय सिंह ने कहा था।
"छानबीन से ये तो पता चल ही गया है डैड कि फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के फटने से लगी थी।" रितू ने कप में भरी काॅफी का एक सिप लेकर कहा__"अब ये पता लगाना पुलिस का काम है कि फैक्टरी में टाइम बम्ब किसने फिट किया था? आपके अनुसार उस दिन और रात अवकाश के चलते फैक्टरी बंद थी तथा बाहर से फैक्टरी में ताला भी लगा था। अब सोचने वाली बात है कि कोई बाहरी आदमी कैसे ये सब कर सकता है? क्योंकि सबसे पहले तो उसे फैक्टरी के अंदर पहुॅच पाना ही नामुमकिन था, कारण फैक्टरी में जो ताला लगा था वो कोई साधारण झूलने वाला ताला नहीं था जिसे आराम से तोड़ कर फैक्टरी अंदर जाया जा सके, बल्कि गेट पर जो ताला था वो लोहे वाले गेट के अंदर फिक्स था।"

"ताला खोलना कोई बड़ी बात या कोई समस्या नहीं है बेटी।" सहसा प्रतिमा ने हस्ताक्षेप किया__"आज के समय में एक से बढ़ कर एक खलीफा हैं जो पलक झपकते ही कोई भी ताला खोल भी सकते हैं और उसे तोड़ भी सकते हैं।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट माॅम।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"पर उस स्थिति में ये संभव नहीं है जबकि फैक्टरी के गेट पर दरबान मौजूद हों। मैंने इसकी जाॅच की है और पता चला है कि गेट पर दरबान मौजूद था। अब सवाल ये है कि दरबान की मौजूदगी में कोई बाहरी आदमी अंदर कैसे जा सकता है?"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि गेट पर तैनात दरबान झूॅठ बोल रहा है।" प्रतिमा ने कहा__"या फिर ऐसा भी हो सकता है कि फैक्टरी का ही कोई स्टाफ मेंबर फैक्टरी के अंदर गया हो। स्टाफ के अंदर जाने पर गेट में मौजूद दरबान को कोई ऐतराज़ नहीं हो सकता था।"

"अगर कोई स्टाफ का ही आदमी फैक्टरी के अंदर गया था।" रितू ने कहा__"तो दरबान को इस बात की जानकारी पुलिस के पूछने पर देनी चाहिए थी। मगर इस संबंध में दरबान का हर बार यही कहना है कि रात कोई भी ब्यक्ति फैक्टरी के अंदर नहीं गया।"

"बड़ी हैरत की बात है ये।" प्रतिमा कह उठी__"जब फैक्टरी के अंदर कोई गया ही नहीं तो फैक्टरी के अंदर, वो भी तहखाने में टाइम बम्ब क्या कोई भूत लगा कर चला गया था???"

"यही तो सोचने वाली बात है माॅम।" रितू ने हॅस कर कहा__"खैर, पता चल ही जाएगा देर सवेर ही सही। मैं तो डैड से ये कह रही थी कि उन्होंने इस सबके बारे में जानना ज़रूरी क्यों नहीं समझा? आखिर ये जानना तो ज़रूरी ही था कि किसने ये सब किया?"

अजय सिंह के मन में सिर्फ यही सवाल चकरा रहे थे, और वो ये थे कि 'तहखाने में उसकी बेटी को और क्या मिला? क्या उसके हाॅथ कोई ऐसी चीज़ लगी जिससे उसकी असलियत रितू को पता चल सके? इस बारे में रितू ने अभी तक कोई बात नहीं की, इसका मतलब उसे कुछ भी नहीं मिला। मगर ऐसा कैसे हो सकता है???? तहखाने में तो गैर काननी वस्तुओं का अच्छा खासा स्टाक था। क्या वह सब भी आग में जल गया है??? कहीं ऐसा तो नहीं कि रितु को सब पता चल गया हो किन्तु इस वक्त वह अंजान बनी होने का नाटक कर रही हो? हे भगवान! कैसे पता चले इस सबके बारे में??? मेरे गले में तो अभी भी जैसे कोई तलवार लटक रही है।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो......
Super update
 

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