मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।
नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।
नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।
चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।
दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।
"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।
लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।
मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।
ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।
"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"
"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"
"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"
"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"
"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"
"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"
"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"
गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।
"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"
"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"
"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"
अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।
नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।
ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।
हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।
मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।
"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"
"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"
"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"
मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।
कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।
हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।
रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।
समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।
अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।
रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?
रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।
एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?
सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।
एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।
हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।
डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।
बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।
~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~
दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। हालांकि कहानी इसके आगे भी है किन्तु वो दूसरे भाग में तथा दूसरे शीर्षक में लिखी जाएगी....धन्यवाद!!