शांति ने शशांक के चेहरे को अपने हाथों से थामते हुए अपनी ओर किया , उसकी आँखों में देखते हुए कहा ..
" पर बेटा मैं तुम्हारी माँ हूँ ..क्या कोई अपनी माँ से इस तरेह प्यार करता है..??."
शांति की आवाज़ में एक माँ की ममता , प्यार , दर्द और विवशता भरी थी .
" मैं जानता हूँ मोम ..पर मैने कहा ना आप के दो रूप हैं एक मोम का और दूसरा एक औरत का ...मैं आप की औरत से प्यार करता हूँ...... एक मर्द की तरेह ..मैं भी तो एक मर्द हूँ ना माँ "
शशांक की आवाज़ में कितना दर्द ,कितनी कशिश और तड़प थी शांति भी आखीर एक औरत थी , समझ सकती थी ..
जिस तरेह बिना किसी हिचकिचाहट ,बिना किसी रुकावट , जितने सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों और जितनी सहजता से शशांक अपनी बात कहता जा रहा था..शांति दंग थी .. वो महसूस कर सकती थी कि शशांक जो भी कह रहा है....यह उसके दिल की गहराइयों से निकली आवाज़ है ..
शांति की मुश्किल बढ़ गयी थी ..वो बहोत बड़े पेश-ओ-पेश में थी ...
उसकी बातों ने उसे झकझोर दिया था ....
पर वो एक व्याहता औरत और माँ भी थी ...जो उसे इस हद तक जाने को रोक रहा था ...वो बहोत परेशान हो जाती है ....