- 123
- 40
- 28
एक लंबी सी अंगड़ाई लेते हुए अपने गर्दन को दाई और बाई ओर मोडते हुए मैं अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ...सामने स्लाइडिंग डोर के खुले होने से सफेद पर्दे हवाओं से लगभग छत की दीवारो को छू रहे थे....बाहर घाना अंधेरा था यक़ीनन सुबह 4:30 में अंधेरा ही होता है...मैने एक बार अपनी बाई ओर नज़र फिराई...तो अहसास हुआ चादर ओढ़े अब भी आकांक्षा सो रही थी...
आकांक्षा का चेहरा उसकी बिखरी ज़ुल्फो से ढका सा हुआ था....मैने आगे बढ़के उसके बदन से सफेद चादर एक झटके में उठा ली...तो पाया अबतक उसने अपनी टाँगों के बीच सफेद रंग की पैंटी झिल्ली सी पहन ली थी जो कल रात मैने खींचके सोफे के पास उसकी चुदाई करने से पहले ही उतार दी थी
वो अब भी आँखे मुन्दे घारी नींद में सोई हुई थी उसके बदन पे एक भी कपड़ा नही था उसकी चुचियाँ उसके करवट एक ओर लेने से आपस में दबी हुई सी थी...उसके दोनो हाथ एकदुसरे के उपर थे..मैने दुबारा से मुस्कुराते हुए उसके बदन पे सफेद चादर ढक दी...उसे उठाना नही था मुझे....आख़िर उसने पूरी रात मुझे मज़ा जो दिया था...करीब 2 बजे ही उसे छोड़ा था...हालाँकि 3 बार चुदाई के बाद वो बुरी तरह थक चुकी थी पर उसने मुझे ना एक बार भी ना कहा...काफ़ी ओबीडियेंट लड़की थी बेचारी...मेरे इतने हार्डकोर (भीषण) चुदाई के बाद भी उसने आहह आह करके सिर्फ़ सिसकिया ही मुँह से निकाली..आख़िर करती भी क्या? मेरे भाई ने उसे धोका जो दे दिया था
जी हां मेरा कज़िन भाई आकाश जिसकी वो ना जाने कौन सी नंबर वाली गर्लफ्रेंड थी....उसकी तो आदत थी कपड़ों की तरह लड़कियो को बदलना...लेकिन इस बेवकूफ़ ने उससे बेपनाह प्यार कर लिया और फिर उसके हवस को धोखा जान पड़ते हुए खुदकुशी करने की कोशिश की थी पर मेरे लाख समझाने के बाद उसने ये कदम नही उठाया....लेकिन उसे प्यार से भरोसा हट गया वो उन लड़कियो में से बन गयी जो खुद मर्दो को इस्तेमाल करने की चीज़ समझने लगी उन लड़कियो की तरह जो एक बार कोठे पे आती तो है लेकिन उसके बाद उन्हें हर किसम की चुदाई की आदत सी हो जाती है शरमो हया के गहने तो बहुत पहले ही उतार दिए जाते है....और फिर उन्हें ना लाज ना शरम और ना डर रहता है ना उन्हें घिन आती है कि कितनो से मरवाई कितनो से चुदवायी और कितनो के चूसे....बस उनकी एक ही हसरत बन जाती है और वो है पैसा.....खैर आकांक्षा कोई कॉल गर्ल नही बनी थी या कोई रंडी नही थी भाई के धोका देने के बाद मेरे लाइफ में आई थी एक दोस्त की हैसियत से कुछ मुलाक़ातो के बाद मैने उसकी जवानी में आग लगा दी
और फिर उसने खुद ही अपने आपको मुझे सौंप दिया....लेकिन ऐसा लगा जैसे कुँवारापन मैने उसका छीना था...उसके दोनो छेदों मे सख्ती बरक़रार थी....क्यूंकी भाई की लुल्ली और मेरे लंड में कहीं ना कही फरक़ था...दाद दूँगा उसकी जो मेरे इतने मोटे लंबे लंड को लुल्ली समझके उससे चुदने को तय्यार हो गयी शायद हवस की ही वो आग थी...पर अब उसे देखके लग नहीं रहा था कि दूसरे दिन भी उसकी आँख खुलेगी....पर मुझे ज़रा सी परवाह ना थी....क्यूंकी मुहब्बत और रहम तो मेरे अंदर भी नही थी...बस मेरा तो उस पर दिल आ गया था...
मेरी ज़िंदगी भी अजीब सी है...माँ बाप से झगड़ा किया और दिल्ली जैसे बड़े शहर को छोड़ कर अपने होम टाउन आ गया....था ही कौन बस एक माँ बाप केर करने वाले ननिहाल में जिसमें से मेरी एक मौसी मेरे होम टाउन में रहती है बाकी ददिहाल वालो से कोई मतलब नही था..पर अगर भूले भटके भेंट हो जाए तो बस दो चार बातें और फिर अलविदा....वो भी मुझे याद नही करते पर माँ बाप तो करते है...पर उन्हें कैसे बताता? हसरत जिस चीज़ की है वो तो मुझे मेरे होमटाउन में ही मिल सकती है
जब तक अयाशी का कीड़ा बदन में रोम रोम में समाया हुआ है तबतक यहाँ से वापिस बड़े शहर जाना मुझे भाने नही वाला...वो लोग आजतक मेरी इस हसरत को जानते नही पर शायद जान भी ना पाए...अगर सब कुछ वोई मिल जाता तो यहाँ आने के की क्या नौबत ? पर यहाँ की दास्तान बचपन से जो माँ से सुनते आया हूँ इसलिए इस जगह से एक और प्यार सा हो गया है
आकांक्षा का चेहरा उसकी बिखरी ज़ुल्फो से ढका सा हुआ था....मैने आगे बढ़के उसके बदन से सफेद चादर एक झटके में उठा ली...तो पाया अबतक उसने अपनी टाँगों के बीच सफेद रंग की पैंटी झिल्ली सी पहन ली थी जो कल रात मैने खींचके सोफे के पास उसकी चुदाई करने से पहले ही उतार दी थी
वो अब भी आँखे मुन्दे घारी नींद में सोई हुई थी उसके बदन पे एक भी कपड़ा नही था उसकी चुचियाँ उसके करवट एक ओर लेने से आपस में दबी हुई सी थी...उसके दोनो हाथ एकदुसरे के उपर थे..मैने दुबारा से मुस्कुराते हुए उसके बदन पे सफेद चादर ढक दी...उसे उठाना नही था मुझे....आख़िर उसने पूरी रात मुझे मज़ा जो दिया था...करीब 2 बजे ही उसे छोड़ा था...हालाँकि 3 बार चुदाई के बाद वो बुरी तरह थक चुकी थी पर उसने मुझे ना एक बार भी ना कहा...काफ़ी ओबीडियेंट लड़की थी बेचारी...मेरे इतने हार्डकोर (भीषण) चुदाई के बाद भी उसने आहह आह करके सिर्फ़ सिसकिया ही मुँह से निकाली..आख़िर करती भी क्या? मेरे भाई ने उसे धोका जो दे दिया था
जी हां मेरा कज़िन भाई आकाश जिसकी वो ना जाने कौन सी नंबर वाली गर्लफ्रेंड थी....उसकी तो आदत थी कपड़ों की तरह लड़कियो को बदलना...लेकिन इस बेवकूफ़ ने उससे बेपनाह प्यार कर लिया और फिर उसके हवस को धोखा जान पड़ते हुए खुदकुशी करने की कोशिश की थी पर मेरे लाख समझाने के बाद उसने ये कदम नही उठाया....लेकिन उसे प्यार से भरोसा हट गया वो उन लड़कियो में से बन गयी जो खुद मर्दो को इस्तेमाल करने की चीज़ समझने लगी उन लड़कियो की तरह जो एक बार कोठे पे आती तो है लेकिन उसके बाद उन्हें हर किसम की चुदाई की आदत सी हो जाती है शरमो हया के गहने तो बहुत पहले ही उतार दिए जाते है....और फिर उन्हें ना लाज ना शरम और ना डर रहता है ना उन्हें घिन आती है कि कितनो से मरवाई कितनो से चुदवायी और कितनो के चूसे....बस उनकी एक ही हसरत बन जाती है और वो है पैसा.....खैर आकांक्षा कोई कॉल गर्ल नही बनी थी या कोई रंडी नही थी भाई के धोका देने के बाद मेरे लाइफ में आई थी एक दोस्त की हैसियत से कुछ मुलाक़ातो के बाद मैने उसकी जवानी में आग लगा दी
और फिर उसने खुद ही अपने आपको मुझे सौंप दिया....लेकिन ऐसा लगा जैसे कुँवारापन मैने उसका छीना था...उसके दोनो छेदों मे सख्ती बरक़रार थी....क्यूंकी भाई की लुल्ली और मेरे लंड में कहीं ना कही फरक़ था...दाद दूँगा उसकी जो मेरे इतने मोटे लंबे लंड को लुल्ली समझके उससे चुदने को तय्यार हो गयी शायद हवस की ही वो आग थी...पर अब उसे देखके लग नहीं रहा था कि दूसरे दिन भी उसकी आँख खुलेगी....पर मुझे ज़रा सी परवाह ना थी....क्यूंकी मुहब्बत और रहम तो मेरे अंदर भी नही थी...बस मेरा तो उस पर दिल आ गया था...
मेरी ज़िंदगी भी अजीब सी है...माँ बाप से झगड़ा किया और दिल्ली जैसे बड़े शहर को छोड़ कर अपने होम टाउन आ गया....था ही कौन बस एक माँ बाप केर करने वाले ननिहाल में जिसमें से मेरी एक मौसी मेरे होम टाउन में रहती है बाकी ददिहाल वालो से कोई मतलब नही था..पर अगर भूले भटके भेंट हो जाए तो बस दो चार बातें और फिर अलविदा....वो भी मुझे याद नही करते पर माँ बाप तो करते है...पर उन्हें कैसे बताता? हसरत जिस चीज़ की है वो तो मुझे मेरे होमटाउन में ही मिल सकती है
जब तक अयाशी का कीड़ा बदन में रोम रोम में समाया हुआ है तबतक यहाँ से वापिस बड़े शहर जाना मुझे भाने नही वाला...वो लोग आजतक मेरी इस हसरत को जानते नही पर शायद जान भी ना पाए...अगर सब कुछ वोई मिल जाता तो यहाँ आने के की क्या नौबत ? पर यहाँ की दास्तान बचपन से जो माँ से सुनते आया हूँ इसलिए इस जगह से एक और प्यार सा हो गया है