Incest माँ को पाने की हसरत

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बरामदे से ठीक दूसरे कोने वाले कमरे में मैं सो रहा था जो कि अक्सर गेस्ट के लिए ही खाली पड़ा रहा करता था...पर अक्सर झड़प मिया बीवी के बीच होते ही बिशल या तो मौसा जी यही आके सो जाया करते थे पर आज मैं कमरे में अकेला था...सुबह का 1 बज चुका था...दूर कहीं किसी काली के मंदिर मे धन्न धन्न की आवाज़ सुनाई दे रही थी शायद यहाँ रात्रि पूजा होती है

मैं उठके पानी पीने के लिए बाहर बरामदे में आया...फ्रिड्ज से पानी की बोतल निकालके गटागट पाँच घूँट मारें और फिर मूतने के लिए गुसलखाने में घुस गया...अचानक मूत ते वक़्त रूपाली का ख्याल आ गया उफ्फ बिशल उसे बड़ी जल्दी कमरे में ले गया था...वो भी माँ बाप के सामने बेशर्मी से क्या वो लोग अब भी चुदाई कर रहे होंगे? पर इतनी देर मे चुदाई का भूत उसके सर से उठ चुका होगा....क्यूँ ना एक बार झाँका जाए उनके कमरे में

सोचते ही मेरा लिंग फनफना कर खड़ा हो गया...मूतने में बड़ी दुविधा हुई... बाहर आया और अपने खड़े लिंग को पाजामे के भीतर ही अड्जस्ट करता हुआ पहले मौसा मौसी के कमरे के दरवाजे के पास आके कान लगाने लगा....अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी चारो तरफ खामोशी छाई हुई थी

फिर मैं सामने वाले यानी बिशल के कमरे के नज़दीक आया उसके कमरे का दरवाजा लगा हुआ था...कान लगाके सुनने लगा पर पंखे की आवाज़ छोड़के मुझे कुछ और सुनाई ना दिया...फिर मैं चप्पल पहन कर गली से बाहर की ओर निकला वैसे तो इतनी रात गये रास्ते पे कोई चहेल पहेल नही होती फिर भी दूर दूर में कुत्तो की रोने की आवाज़ें आ रही थी....लेकिन जिसके दिमाग़ में उस वक़्त सेक्स का ही ख्याल उमड़ा हुआ हो वो इंसान जोश में अपने आस पास क्या हो रहा है इस पे ध्यान नही देता मेरी हालत बिल्कुल वैसी ही थी..

मैं बाहर आया और ठीक जहाँ से ताहिरा मौसी का घर दर्ज़ी की दुकान पे ख़तम हो जाता है उसके दरमियाँ एक खिड़की थी और मुस्किल ये थी कि वो खिड़की कोने की नाली के ठीक उपर थी...मेरी हाइट थोड़ी लंबी थी इसलिए मैं धीरे धीरे करके थोड़ा उचक के खिड़की को हल्का सा धक्का देने लगा..अचानक अंदर की रोशनी जल पड़ी और मेरी फॅट गयी

मैं दुबक के दीवार से नीचे सटा बैठा रहा...आस पास बहुतों के मकान थे कोई भी देख लेता तो चोर समझके शोर मचा देता या उसी वक़्त मुझे पकड़ लेता पर गनीमत थी सब अपने अपने घरो में बंद थे...मैने हिम्मत करके सर थोड़ा उपर उठाया तो कमरे का दृश्य दिखने लगा...अंदर नीले रंग की जॉकी का कच्छा पहने मेरा भाई पलंग पे चारो खाने चित खर्राटे भर रहा था और उसके कच्छे का उभार सामने दिख रहा था जबकि दूसरी ओर मुझे रूपाली दिखी जो अभी तक सोई हुई नही थी वो बिशल को देखते हुए आहिस्ते आहिस्ते चादर ठीक कर रही थी...पास की दराज़ के उपर अस्ट्रे में एक बुझी सिगरेट पड़ी हुई थी..और रूपाली नाइटी में हल्के पीले रंग की . काश 2 मिनट पहले आता तो उसे नंगी ज़रूर देख लेता

रूपाली और बिशल की शायद दोनो की काफ़ी देर पहले चुदाई हुई थी और इसी वजह से रूपाली को अब तक नींद नही आई हुई थी...जबकि बिशल नापकीयत में ही सो गया था...रूपाली की चाल ढाल और मुरझाया चेहरा और बिखरे बाल देखके सॉफ दिख रहा था कि बिशल ने उसे काफ़ी देर तक चोदा है हालाँकि उसकी आँखे बोझल सी ज़रूर लग रही थी

मैं तुरंत हड़बड़ाते हुए खिड़की को बिना सटाये वापिस गली से अंदर बरामदे में आया और तुरंत गुसलखाने में घुस गया मुझे वोई ठीक लगा...क्यूंकी रूपाली पेशाब करने के लिए गुसलखाने ही घुसती....मैने दरवाजा आधा सटाया और टाय्लेट की नाली के पास झूंट मूठ का बैठके ज़ोर लगाने लगा

लिंग वैसे ही एकदम खड़ा था...इतने में गुसलखाने की लाइट ऑन हुई और अचानक रूपाली ने आधा दरवाजा खोले मुझे अधनंगा पेशाब करते हुए बैठा पाया तो हड़बड़ा कर दरवाजा लगाए बाहर उतर गयी...मैं झूंट मूठ का पानी डाले बाहर आया और उससे माँफी मागने लगा

रूपाली : अर्रे तुम अभी तक सोए नही? कम से कम लाइट जला लेते मुझे लगा बाथरूम में कोई नही है

आदम : असल में मुझे लगा इस वक़्त तो सब सो रहे है और मैं थोड़ा नींद में था ध्यान नही दिया

रूपाली : हाहाहा कोई बात नही (उसके चेहरे पे सॉफ उत्तेजना देखी थी मैने शायद उसने मेरे लंड को पूरी तरीके से देख लिया)

वो उस वक़्त बिना ज़्यादा कुछ कहे मुस्कुराए गुसलखाने में चली गयी कुछ देर में ही मुझे उसके पेशाब करने की आवाज़ सुनाई दी...शायद उसकी चुत ने मोटी धार पेशाब की अपने छेद से बहाना शुरू किया था...लेकिन किस्मत खराब मैं उसे नंगी देख नही पाया क्यूंकी दरवाजा लोहे का था और उसमें कोई छेद नही था...

मैं अपने कमरे में आ गया ताकि उसे ये ना लगे कि मैं जानभुज्के बाहर अब भी उसके इन्तिजार में खड़ा हूँ छोटे टाउन की लड़की है ना जाने क्या उसके मन में विचार आए? मैं जल्दी से कमरे में आ गया दरवाजा हल्का सटा दिया और अपने सारे कपड़े उतारके चादर ओढ़ ली..मुझे गुसलखाने के दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनाई दी फिर बंद होने की फिर लाइट ऑफ करने की फिर बगल वाले कमरे का दरवाजा ज़ोर से लगाए जाने की....मैं चाहता तो आगे क्या हुआ फिर खिड़की से झाँक के देख सकता था...पर आँखे जल रही थी और मुझे कल सुबह जल्दी उठना था इसलिए मैं सो गया

अगले दिन प्रोग्राम में साला थोड़ी बाधा पड़ गयी....भारी भीषण बरसात शुरू हो गयी...सुधिया काकी थोड़ा दूर से आती थी इसलिए ताहिरा मौसी ने सुबह सुबह नाश्ते में ये जता दिया था कि शायद आज प्रोग्राम कॅन्सल हो सकता है....मैने उन्हें कहा कि मैं थोड़ा घर होके आ जाता हूँ एक बार चक्कर भी लगा लूँगा पहले तो ताहिरा मौसी ने मना किया फिर वो राज़ी हो गयी
 
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अगले दिन प्रोग्राम में साला थोड़ी बाधा पड़ गयी....भारी भीषण बरसात शुरू हो गयी...सुधिया काकी थोड़ा दूर से आती थी इसलिए ताहिरा मौसी ने सुबह सुबह नाश्ते में ये जता दिया था कि शायद आज प्रोग्राम कॅन्सल हो सकता है....मैने उन्हें कहा कि मैं थोड़ा घर होके आ जाता हूँ एक बार चक्कर भी लगा लूँगा पहले तो ताहिरा मौसी ने मना किया फिर वो राज़ी हो गयी

मैं जैसे तैसे भीगते भागते मेन रोड से थ्री वीलर लेके अपने घर पहुचा कपड़े बदले और सुधिया काकी का नंबर जो मौसी से हासिल किया था ऐसे पूछ ताछ के लिए सो उस पर एक रिंग मार दी....तुरंत सुधिया काकी ने फोन उठा लिया

सुधिया : हेलो?

आदम : हां काकी मैं बोल रहा हूँ आदम मुझे लगा थोड़ा पड़ताल कर लूँ आज सुबह से ही बरसात थमने का नाम नही ले रही तो मैं पूछना चाह रहा था आप आ पाओगि

सुधिया : ओह हां बेटा अच्छा ताहिरा ने मेरा नंबर दे दिया चलो ये अच्छा किया उसने अर्रे का बताए बेटा सच में आज तो हद हो गयी...लेकिन तुम फिकर मत करो दोपहर तक बारिश थम जाएगी ताहिरा भी तुम्हारे घर साथ चली आई क्या?

आदम : नही नही मैं अकेला आया हूँ

सुधिया : ठीक तो है पर मुस्किल ये है कि वैद का दवाखाना यहाँ से दूर है कल हम थक गये तो रात को जा ना सके

आदम : ओह्ह तो एक काम कीजिए आप मुझसे मिल लीजिए हम दोनो साथ में वैद के यहाँ चलते है

सुधिया : पर वो थोड़ा ग्रामीण क्षेत्र में है रास्ता थोड़ा कीचड़ भरा होगा और आज तो मुसलसल बारिश भी हुई है

आदम : काकी मैं चाहता हूँ कि मेरा इलाज जल्द से जल्द हो जाए मैं अपना दिन बर्बाद नही करना चाह रहा क्या पता इस बीच दिल्ली जाने का प्रोग्राम बन जाए

सुधिया : ओह हो ठीक है तुम एक काम करो 12 बजे तक अगर बारिश थम जाती है तो एक बार कॉल कर लेना मैं तुम्हें लाल बत्ती चौक पे मिल जाउन्गी जो टाउन और ग्राम की ओर रास्ता जाता है

आदम : ठीक है काकी

मैने फोन रख दिया और एक बार ताहिरा मासी से बात कर ली...ताहिरा मौसी ने कहा कि आज बरसात बहुत हुई है तो रहने दे पर मैं ज़िद्द में अड़ा रहा तो मौसी ने कुछ और नही कहा...खैर जल्द ही बरसात थम गयी बदल छांट गये और हल्की हल्की धूप निकल गयी दोपहर होते होते...मैने फ़ौरन काकी को फोन किया और घर से निकलते ही एक ऑटो पकड़ ली उसे ज़्यादा पैसो का लालच दिया तो वो ग्राम क्षेत्र तक जाने को मान गया...मैने लाल बत्ती चौक के पास मोर पे सुधिया काकी को खड़ा पाया और वो मेरे बगल में बैठ गयी

उसकी साड़ी पे थोड़ा बहुत कीचड़ लगा हुआ था..हम दोनो पूरे रास्ते बात करते रहे..पानी घुटनो तक था इसलिए ऑटो को ग्रामीण क्षेत्र तक पहुचने में थोड़ी मुस्किले हुई....उसके बाद हम उसी कीचड़ भरे रास्ते में आहिस्ते आहिस्ते दवाखाने तक पहुचे...दवाखाना वैद जी का घर था इसलिए शटर पे दो बार दस्तक देते ही....एक औरत ने दरवाजा खोला....सुधिया काकी बात करने लगी उससे फिर अंदर आए...एक कमरे में बहुत सी जड़ीबूटिया और दवाये और कुछ पूडिया और कुछ शीशो में काग़ज़ से धकि रखी हुई थी और ठीक उसके बीच एक साधु जैसा बुज़ुर्ग लगभग 64 साल की उमर का आदमी बैठा हुआ था गद्दी पे उसके छाती में बहुत सफेद बाल थे और उसका पूरा बदन बालों से जैसे ढका हुआ था सर के बाल भी काफ़ी लंबे लंबे थे उसने बस एक मैली सी लूँगी पहनी हुई थी उसने एक बार अपनी दृष्टि से हमारी ओर देखा और बैठने का इशारा किया

सुधिया काकी उससे कुछ देर बात करने लगी....बातों के बीच उसने मेरी समस्या को बड़े ध्यान से सुनते हुए मेरी तरफ देखा..फिर सुधिया काकी को चुप रहने का इशारा किया

वैद : ह्म समस्या इतनी बड़ी नही है इसका समाधान है लेकिन बेटे तुम्हें कुछ परहेज करने होंगे

आदम : ठीक है मैं तय्यार हूँ आप मुझे बस ठीक कर दीजिए

वैद ने अपनी एक दराज़ से एक शीशे का जार निकाला जिसमें शायद 500 ग्राम का कुछ घी जैसा पदार्थ था और फिर मेरी तरफ रखा फिर उसने मुझे कॅप्सुल की तरह दवाई दी

वैद : इसका सेवन तुम्हें दिन में एक ही बार करना है और साथ साथ इस पुराने गाय के घी की मालिश भी इसमें कुछ ऐसी जड़ीबूटिया मिलाई गयी है जिससे तुम्हारी नसों का ढीलापन ठीक हो जाएगा और तुम्हारा वीर्य जल्दी निकलेगा नही चाहे तुम जितनी भी औरत के उपर सवार हो जाओ लेकिन याद रहे 1 महीने तक कोई संभोग नही (पहले तो मुझे हँसी आई मन ही मन पर फिर मैं उनकी बात गौर से सुनने लगा)

वैद : लेकिन लिंग की मालिश तुम्हें औरत से ही करवानी है

आदम : लेकिन मैं कुँवारा हूँ

वैद : ये ज़रूरी है क्यूंकी जिस तरह पुरुष के हाथो की मालिश से औरतों की छातिया बढ़ती है उसी तरह पुरुष के लिंग को औरत के हाथो की मालिश चाहिए होती है क्यूंकी मर्दो के हाथ सख़्त होते है और औरतो के हाथ थोड़े नरम याद रहे लिंग आधा तनाव में होना चाहिए और मालिश के वक़्त किसी भी औरत से मुख मैथुन ना करवाना

आदम : और ये दवाइया ?

वैद : इसका उपयोग करने से तुम्हारे वीर्य में गाडापन आ जाएगा ताकि जिस भी औरत को संतुष्ट करोगे या जिसको भी संतान के लिए चोदोगे तो उसे गर्भ ठहर जाएगा तुम्हारा लिंग कभी ढीला नही पड़ेगा आम तौर पे तुम्हारा मोटा लिंग है पर लंबा और मोटा लिंग उमर के साथ साथ झुलस जाता है और लटक जाता है जिस वजह से असंतुष्टि बन जाती है और मर्द कुछ कर नही पाता इसलिए अहेतियात ख़ान पान में और और दवाई लेने में ज़रूरी है इन चीज़ों का सेवन करके तुम्हारा लिंग इतना मोटा और लंबा हो जाएगा कि तुम एक दिन में पाँच औरत को एक साथ चोद सकोगे

मैं चुपचाप हो गया फिर सुधिया काकी उनसे कुछ देर बात करने लगी....उन्हें ऐसा लगा जैसे मुझे अब भी यकीन ना हो तो उन्होने हमारी झिझक तोड़ते हुए खुद ही उठके अपनी लूँगी खोल डाली और मेरी और सुधिया काकी की आँख फॅट गयी उनका लिंग किसी गधे के बराबर मोटा और लंबा था करीब 9 इंच का था दिखने में उन्होने बताया कि उन्होने कयि औषधि और इसी दवा का प्रयोग किया है हालाँकि उनके जैसा लिंग सिर्फ़ कुछ ही मर्दो का होता है जिसका ख़ास ख्याल रखना पड़ता है....सुधिया काकी को विश्वास नही हो रहा था कि इतने बुज़ुर्ग आदमी का इतना मोटा लंबा हथ्यार अगर मैं ना होता तो शायद उसे अपने हाथो में लेके हिलाती...पर वैद ने मुस्कुरा के अपना तना हुआ 9 इंच का लिंग लूँगी के अंदर वापिस ढकते हुए लूँगी बाँध ली

हम बाहर आए....मैं अब भी चुपचाप था....काकी ने मेरी चुप्पी तोड़ी..."देख लिया कितना हबसी की तरह मोटा और लंबा घोड़े जैसा लिंग था उनका?"...........

."हां काकी मैने तो ऐसा सिर्फ़ ब्लू फ़िल्मो में देखा है वाक़ई".......

."तू वो सब चोद और ताहिरा को कॉल लगा और अपने घर आने को बोल"........

."जी काकी".......मैने इतना कह कर ताहिरा मौसी को कॉल लगा दी....ताहिरा मौसी दोपहर के भोजन का प्रबंध कर रही थी....उन्होने कहा घरवालो को खिलाके वो आ जाएगी

2 बजते बजते सुधिया काकी और मैं मेरे घर पहुचे...कुछ देर में ही ताहिरा मौसी भी आ गयी उनके हाथ में टिफिन था....शायद मेरे हिस्से का भी खाना वो लाई थी...मुझे बेहद खुशी हुई फिर उन्होने सुधिया काकी से वैद जी के यहाँ क्या हुआ हाल पूछने लगी?.....सबकुछ सुनने के बाद उन्हें भी काफ़ी हैरानी हुई...

दोपहर के भोजन के बाद...मालिश की विधि शुरू हुई मैने पूडिया की एक दवाई दूध के साथ खा ली जैसा उन्होने कहा था....उसके बाद सुधिया काकी ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए....ताहिरा मौसी ने भी बिना झिझक अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए...वो ब्रा पैंटी में खड़ी हो गयी और पास में चटाई बिछा दी...दरवाजा लगा दिया...हम तीनो के अलावा कमरे में कोई नही था

सुधिया काकी मेरा लिंग पकड़े मुझे चटाई के उपर खड़ा करते हुए ताहिरा मौसी के नंगे बदन को घूर्रने लगी...फिर उसने अपने सख़्त हाथो से मेरे लिंग को आगे पीछे करके उसे मसलना शुरू कर दिया....."अर्रे ओ ताहिरा अपनी कच्छी और ब्रा भी तो उतार डाल".........ताहिरा मौसी के ब्रा उतारते ही उनके खरबूजे जैसी चुचियाँ मेरी आँखो के सामने थी उनकी टाँगों के बीच के गुच्छेदार बाल मुझे दिखने लगे...वो मेरे लंड पे हाथ रखते हुए उस जगह को रगड़ने लगी

सुधिया काकी ने भी खड़े होके खुद को कपड़ों से आज़ाद कर दिया साड़ी ब्लाउस पेटिकोट उतरते ही वो मेरे सामने नंगी खड़ी हो गयी उनका मस्त बदन मेरे सामने पेश हो गया उनकी चुचियाँ तो तरबूज़ की तरह लटक रही थी उनके मोटे काले निपल्स भी काफ़ी कठोर थे उनके पेट से होते हुए झान्टे चूत के उपरी सिरे तक स्ट्रेच मार्क्स थे....उन्होने मेरे लंड को वैसे ही नंगी खड़ी होके मसलना शुरू कर दिया

और उसे पूरा खड़ा कर दिया...."देख रे ताहिरा इसका कितना मोटा लिंग है".....वो मेरे लिंग को हाथो से पीटने लगी उस पर थप्पड़ मारने लगी मुझे हल्का सा दर्द हुआ...फिर ताहिरा मौसी ने उन्हें वैद जी का वो घी दिया....उसे अपनी हथेलियो में लगाते हुए सुधिया काकी मेरे अंडकोष के नीचे से लेते हुए लिंग की जड़ से लेके सुपाडे तक लगाने लगी उनके हाथो की घिसाई से मेरा लिंग एकदम लाल और कठोर हो गया था...ताहिरा मौसी थूक गले से निगल रही थी कल इसी लिंग से उसकी चुदाई की थी मैने .
 

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