Incest नई दुल्हन by deeply

Member
1,531
1,618
143

नई दुल्हन

नथ उतराई




पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ था और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.

और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, लंड का दिल सबसे जादा गांड पर है


मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ वा बॉस के बने झोलीयो के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा माात्र जमीन पे बिछा था उसी पर लेट काम किया जा रहा था मेरा, असल मे परिवार का मुुख्य धंधा बॉस की झोलिया बनाना है


बरहाल मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ थी और फनफ़ना कर उनका लंड बाहर था

सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.

मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.

धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.


उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. मस्त चुसती है कुत्तिया जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.

उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.


“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..

मैं झुक गई

मेरी चूत और कसी कसी हो रही थी.

एक हाथ से वो मेरा जोबन मसल रहे थे और दूसरे से उन्होंने मेरी चूत में उँगली करनी शुरू कर दी.
चूत तो मेरी पहले हीं गीली हो रही थी, थोड़ी देर में हीं वो पानी-पानी हो गई. उन्होंने अपनी उँगली से मेरी चूत को फैलाया और सुपाड़ा वहाँ सेंटर कर दिया.

फिर जो मेरी पतली कमर को पकड़ के उन्होंने कस के एक करारा धक्का मारा तो मेरी चूत को रगड़ता, पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया, मै बिलबिला उठी इस अप्रत्यक्षित धक्के से, मुंह से आई माँ निकला और छटपटा का आगे बढना चाहा मगर वो सजग थे उनके दोनो हाथ मे कमर कस कर पकडे थे

तभी बिना रहम किये दूसरा धक्का मारा अब की धक्का मारते है आधा लंड बुर मे था जो झिल्ली तोडते हुये घुसा था, मेरी बुर अब चुत बन चुकी है इसका सबुत मेरी बुर के किनारे टपकते लाल रंग ने दे दिया था, आई अम्मा फट गई निकल ही पाया था की तीसरा धक्का मार चुके थे अब लंड पुरा चुत के अंदर समा चुका था मेरे ऑखो से ऑसू थे, मै बोली जी जरा आसाम से दर्द कर रहा है मगर कहाँ मानने वाले होते है मर्द उन्हे चोदना है, फिर गॉड हो या बुर फटे या चितड़ा हो, लंड महाराज घुस चुके थे अपने घर मे तो हलचल मचाना चालू कर दी लगातार धक्के मारे जाने लगे, मेरे चुतड़ और उनकी जाँघ टकराने वा लंड वा चुत के लड़ने की फच फच की आवाज वा मेरे सिसकारी पूरे कमरे मे गूँज रही थी जब कभी वो कर कर धक्के लगाते तो उई माँ मेरे मुँह से निकल आता


दो चार धक्के ऐसे मारने के बाद उन्होंने मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ते, मसलते चुदाई शुरू कर दी.

जल्द हीं मैं भी मस्ती में आ कभी अपनी चूत से उनके लंड पे सिकोड़ देती,
कभी अपनी गांड़ मटका के उनके धक्के का जवाब देती. साथ-साथ कभी वो मेरी क्लिट, कभी निप्पल्स पिंच करते और मैं मस्ती में गिनगिना उठती

तभी उन्होंने अपनी वो उँगली, जो मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत के रस से अच्छी तरह गीली थी, को मेरी गांड़ के छेद पे लगाया और कस के दबा के उसकी टिप अंदर घुसा दी.

“हे...अंदर नहीं......उँगली निकाल लो.....प्लीज़...”



मैं मना करते बोली.

पर वो कहाँ सुनने वाले थे. धीरे-धीरे उन्होंने पूरी उँगली अंदर कर दी.

अब उन्होंने चुदाई भी फुल स्पीड में शुरू कर दी थी. उनका बित्ते भर लंबा मूसल पूरा बाहर आता और एक झटके में उसे वो पूरा अंदर पेल देते. कभी मेरी चूत के अंदर उसे गोल-गोल घुमाते. मेरी सिसकियाँ कस-कस के निकल रही थी.

उँगली भी लंड के साथ मेरी गांड़ में अंदर-बाहर हो रही थी.
लंड जब बुर से बाहर निकलता तो वो उसे टिप तक बाहर निकालते और फिर उँगली लंड के साथ हीं पूरी तरह अंदर घुस जाती.

पर उस धक्का पेल चुदाई में मैं गांड़ में उँगली भूल हीं चुकी थी.

जब उन्होंने गांड़ से गप्प से उँगली बाहर निकाली तो मुझे पता चला. सामने मेरी ननद ने टेबल पर वेसलीन की ट्यूब रखी थी.

उन्होंने उसे उठा के उसका नोज़ल सीधे मेरी गांड़ में घुसा दिया और थोड़ी सी क्रीम दबा के अंदर घुसा दी.

और जब तक मैं कुछ समझती उन्होंने अबकी दो उंगलियां मेरी गांड़ में घुसा दी.

दर्द से मैं चीख उठी. पर अबकी बिन रुके पूरी ताकत से उन्होंने उसे अंदर घुसा के हीं दम लिया.

“हे...निकालो ना.... क्या करते हो.? उधर नहीं...प्लीज़ हाथ जोड़त बानी....चूत चाहे जित्ती बार चोद लो... ओह...”



मैं चीखी.

वो बोले क्या मस्त गांड है तेरी कुत्तीया

लेकिन थोड़ी देर में चुदाई उन्होंने इत्ती तेज कर दी कि मेरी हालत खराब हो गई. और खास तौर से जब वो मेरी क्लिट मसलते...,

मैं जल्द हीं झड़ने के कगार पर पहुँच गई तो उन्होंने चुदाई रोक दी.

मैं भूल हीं चुकी थी कि जिस रफ़्तार से लंड मेरी बुर में अंदर-बाहर हो रहा था,

उसी तरह मेरी गांड़ में उँगली अंदर-बाहर हो रही थी.

लंड तो रुका हुआ था पर गांड़ में उँगली अभी भी अंदर-बाहर हो रही थी. एक मीठा-मीठा दर्द हो रहा था पर एक नए किस्म का मज़ा भी मिल रहा था. उन्होंने कुछ देर बाद फिर चुदाई चालू कर दी.

दो-तीन बार वो मुझे झड़ने के कगार पे ले जाके रोक देते पर गांड़ में दोनों उँगली करते रहते और अब मैं भी गांड़, उँगली के धक्के के साथ आगे-पीछे कर रही थी. अचानक से उन्होने धक्को की स्पीड बढा दी, बोल कुत्तीया किस किस से चुदेगी,

जी आपकी कुत्तिया हूँ जिधर कहे उधर गांड खोलना ही है इस कुत्तीया को,

बड़ी गर्म कुत्तिया है तू, तेरी गदराई ये मस्त गाड तो मेरी जीजा ही फाडेगा

हाय जी आपकी मर्जी आपकी कुत्तिया हूँ फड़वा दिजिये इसे नंददोई जी से ही

वादा किया है मैने तेरी मस्त गांड देने का उन्हे रंगनोई( होली) मे, बड़ा हरामी जीजा है पिछले दफा रंगनोई मे अम्मा के सामने मेरी गांड फाड़ी थी

बहुत चीखा चिल्लाया ,...

लेकिन ले ली इन्होने

मम्मी को उन्होंने साफ साफ़ बता दिया की ढेला की उन्होंने होली के दिन , गांड मारी थी , दिन में भी और रात में भी ,.
..


ये भी की उस स्साले की एकदम कसी कोरी कुँवारी थी।



और मम्मी बजाय बुरा मानने के झुक के उन्होंने अपने दामाद का मुंह चूम लिया और
उनकी सास प्यार से उनके बाल सहलाते , उनकी तारीफ़ कर रही थीं ,



" सही किया तूने ,... चाहे ससुराल वाली या ससुराल वाला ,... छेद छेद में भेद करना कोई अच्छी बात थोड़े ही है।
" भोंसड़ी के , पता नहीं मेरी समधिन ने किससे किससे चुदवा के
तुझे जना है , तेरे मामा से , या किसी गदहे घोड़े से , या कातिक में कुत्तों से ,... इतना मस्त लंड पाया है

लेकिन उस रंडी ने जना एकदम सही है , मेरी पसंद का दामाद। जानते हो मै तेरे आते ही समझ गई थी , तेरी नजर ढेला की गांड पर है होली मे इसकी गांड तु खोल ही देगा, मै जल्द इसकी शादी कर रही हूँ इसकी दुल्हन की गाड भी तू ही खोलना, फिर अम्मा ने अपने सामने मेरी गांड मरवाई


हाय री, बहुत दर्द हुआ था जी

हॉ हुआ था, मगर वादा करने पर मै अपनी दुल्हन की गांड दूँगा तो आधे लंड से ही मेरी गांड मारी, फिर जीजा तो जीजा होते है उनका अलग सम्मान होता है घर के सारे छेद तो उनके ही है

वो तो है जी, मैने देखा उनके धक्को की स्पीड बढ गई है

मगर तेरी मस्त कसी गांड उनके लंबे मोटे लंड से ही फटेगी

हाय जी मै गांड नही दूँगी बुर मार ले, मै मना नही करूंगी

साली कुत्तिया रंगनोई मे वो तुझे गाभिन करके ही जायेंगे,

हाय जी गाभिन


तभी मेरी बुर ने पानी छोड दिया


हाये जी जोर से ज़ी फाड दो बुर

और इसी के साथ उनकी पिचकारी ने भी अपना पानी छोड दिया एक गर्म गर्म पानी से मेरी बुर भर रही थी यह यहसास भी अद्भुत था
 
Member
1,531
1,618
143

नई दुल्हन

ससुर की सफाई


सुबह का समय था ढेला का 6 इंची लंड अब किसी बच्चे की नुनी जैसा हो गया था, मगर पति था तो सम्मान करना था, मैंने उसे माथे से लगाया और वो गंदा पेटीकोट पहन लिया जिस पर ससुर का वीर्य जो मेरी गांड पर पडे थे उससे पौछा था वो वीर्य भले सूख गया हो मगर जगह जगह टाईट हो गया था सोचा पहन कर नहा लूँ फिर नया पहनू, पेशाब तेजी से लगी थी तो बरामदे की नाली तरफ चल दी, ससुर सुबह सुबह बॉस की खप्पच्ची साफ छिल रहे थे जिससे झोली वा अन्य समान बनाये जायेगे, वो धोती पहने थे कच्छा नही पहनते थे जिससे उनके साड़ जितने बडे अण्डे थे जैस लगता हड्रोसील हुये हो बाहर लटके थे और उनका 8 इंची काला नाग सोया पड़ा बाहर लटका था, मै पेटीकोट वा सर पर ओढनी का घुघट किये हुये नाली की तरह बढ़ी, पीछे मुडकर देखा वो मुझे एकटक देख रहे थे मैने अपना पेटीकोट उठाया और गांड को जानबूझ कर पीछे उठाते हुये तेजी से मूतने लगी पूरे बरामदे मे मेरे पेशाब की आवाज गूंजने लगी मैने जानबूझ का गांड और पीछे की जिससे मेरे भूरे छेद के साथ उन्हे चुदी बुर के दर्शन हो जाये , बुर को पेटीकोट से पौछा और उठ खडी हुई और ससुर का सुबह का आर्शिवाद लेने उनके पास घुटने के बल बैठ पैर छुने लगी तो उनके दोनों हाथ मेंरे दोनो चुतडो के पटो पर पहुंच गये
बडी प्यारी बहू है कितनी गोरी, भारी गदराई जवानी है तेरी,
ढेला तो धन्य हो गया ससुर का लंड पुरा रो मे था एकदम सॉप की तरह फुँफकार मार रहा था,8 इंची मेरी कलाई जितना मोटा इतने पास था कि मेरे नथुनो की सॉस उनके लंड पर पड रही थी हाथ उनके मेरे चुतडो पर थे वो चुतड़ो को जबरदस्त जरीके से मसल रहे थे

बस बाबूजी आपके बड़े और मोटे का आर्शीवाद मिलता रहे मतलब अपका और आपके बडे बेटे का तो जल्द और भारी चौडे हो जायेंगे

उन्होने अपने हाथ चुतड़ो से हटा मेरे दूध की दोनो घुनडीयो को पकड़ दूध दुहने की भाँति हाथ चलाने लगे

मै चहाता हूँ जल्द ये दूध से भर जाये
तभी ससुर के लंड के सुपाडे के छेद पर वीर्य की एक बूँद चमक उठी मुझसे रहा नही गया और मैंने दोनो हाथो से उनका लंड पकड़ सुपाड़ा मुँह मे डाल लिया, और किसी बच्चे का भाँति चुभलाने लगी,
वो भी बैठे बैठे घुम गये जिससे कुछ 69 पोजीशन बन गया वो साया कमर तक उठा मेरी बुर सुघन लगे जिसमे ताजा की पेशाब वा रज की मिश्रित गंध आ रही थी
गजब की खुशबू है बहु तेरी बुर की और चपर चपर चाटने लगे, कुछ पाँच मिनट बीता होगा, कि उनके लंड ने पिचकारी छोड दी मैंने उसकी एक एक बूंद पी ली, और बैठ गई मगर ससुर मेरी बुर लगातार चाट रहे थे छोड नही रहे थे, मै इस समय उनके मुँह पर बैठी थी पेशाब करने वाली पोजीशन मे और वो मेरी कमर को पकड़े बुर चाटने मे लगे थे

हाये बाबूजी अब छोड दो कोई आ जायेगा मुझे बहुत शर्म लग रही है
तभी मेरी सास आ गई,

शर्म से मै बोली
ये मॉ जी देखीये ना बाबूजी छोड नही रहे

क्यो जी क्यो बहू को सता रहे हो

देख नही रही दो दिन से बहू नहाई नही उसकी बुर गंदी हो गई थी तो सोचा साफ कर दू
सासू ने मेरी झॉट साफ हुई बुर ध्यान से देखी और बोली

बेटा तेरे बाबूजी है तेरे भले के लिये ही कर रहे है साफ करा ले देख कितनी गंदी हो गई है देखो जी अधुरा मत छोड़ो बहु की गांड भी साफ कर देना
ससुर जी ने मेरे दोनो चुतड़ो के पटो को हाथ से फैला दिया और बुर से गांड तक चाटने लगे
मेरे मुँह से सिसकिया निकलने लगी
तभी सास ने दोनो हाथो से मेरे बुर के दोनो होठ जबरदस्त तरीके से फैला दिये, लो जी ढंग से चाट के साफ करो

तभी मेरी बुर ने पानी फैक दिया जिसे ससुर बडे मन से चाटने लगे, मैंने भी बुर उनके मुँह मे दबा दी और झड़ने लगी वो एक एक बूंद चाट गये, यह गजब का एहसास था मेरे लिए, सासु माँ मेरी बुर फैला ससुर को चटा रही थी

सास बोली चारो कोने चाट चाट साफ करो जी


थोड़ी देर बाद ससुर बोले देखो बहु की बुर साफ हो गई

हॉ जी एकदम साफ दिख रही है अब बहु की बुर, अब उठ जा बेटा
मै शर्म से घुंघट काणे उठी,

सासु बोली देखा ना नहाने का नतीजा बेचारे तेरे ससुर को चाट चाट कर साफ करना पड़ा, अब रोज नहा लिया करना
जी मॉ जी मै शर्म से बोली
 
Member
1,531
1,618
143

नई दुल्हन

बहु का खेत


कमरे मे गई तो पाया ढेला अभी भी उसी अवस्था मे सोये थे सुबह के सात बजने को थे मै जल्द से जल्द नित्य कर्म झाडू पोछा लगा कर खाना बनाने लगी सारे समय ससुर की नजर मेरे चुतड़ो पर थी, धोती इतनी पतली थी कि उनका खडा फनफनाता काला नाग और साड जैसे लटके अंडकोष साफ झलक रहे थे, उस नाग का बस चले तो अभी डस ले

बरामदे मे जब मै गोबर से लीपने लगी घुटने के बल बैठने वा आगे झुक कर लीपने से पीछे की ओर मेरी गॉड उठी थी, सासु माँ नल पर नहा रही थी, पेटीकोट पानी से भीगने की वजह से लगभग पारदर्शी हो चुका था, जिसमे मेरी गांड का छेद तक स्पष्ट नजर आ रहा था ससुर यह दृश्य जादा देर बरदाश्त ना कर सके, सासु नहा के कमरे मे चली गई, तभी ससुर अपना लहराता नाग धोती से निकाल कर मेरे पीछे कब आ गये मुझे पता तक ना चला उन्होने लहराता अपना नाग नंगा कर मेरी कमर को कस के पकड़ा वा एक जबरदस्त धक्का मारा, लंड का सुपाड़ा पेटीकोट सहित गांड की छेद मे समा गया, मै दर्द से बिलबिला उठी
हाय दईया, मेरी दोनो आंखो से ऑसू निकल आये,
क्या हुआ बहु

हाय बाबूजी, हाय बाबूजी मै शर्म से कुछ बोल भी नही पाई

उन्होने दोबारा पुछा, क्या हुआ बहु मुझे बताओ, मुझे भी कुछ पता चले

हाय बाबूजी, एक मोट मूसर( चुहा) तंग छेद मे घुस रहा है

अरे बेटा चुहे तो छेद मे ही घुसते है

हॉ बाबूजी मगर चुहा बहुत मोटा है उसे बगल के छेद मे जाना चहिये था, दूसरा छेद थोड़ा बडा है मगर चुहा गलत छेद मै घुस रहा है

हो सकता है बहु, चुहे हो वही छेद पंसद आया हो,
तभी सासू माँ कमरे से बाहर आई, और उन्होने झट से अपना सुपड़ा मेरी गांड से निकाल लिया,

सासू माँ बोली क्या हुआ बहु क्यो चिल्लाई

ससुर बोल उठे बहु एक मोटा चुहा देख के डर गई थी

सासु माँ बोली बहु तु भी, इस घर मे बहुत मोटे मोटे चुहे है यदि ऐसे चिल्लायेगी तो कैसे काम चलेगा, चुहो का क्या मुए कभी इधर कभी उधर तु डरा मत कर, तु तो घर की बहु है यदि तु डरेगी को सवित्रा को क्या सिखाएगी, नंद बेचारी भाभियो से तो सीखती है,

जी माँ जी चुहा बहुत मोटा था डर गई थी, मेरे ससुर ने भले लंड का सुपाड़ा निकाल लिया हो, मगर मेरी गांड मे पेटीकोट अभी भी घुसा था, उन्होंने मेरे चुतड़ो के दोनो पटो को फैलाते हुये गॉड मे घुसे पेटीकोट को बाहर निकाल लिया, और बोले

बैचारी ने पहली बार मोटा चुहा देखा था, डर गई जल्द आदत पड जायेगी,

सासू बोली है ठीक है, जल्दी से लीप कर खाना खेत मे दे आया, बडी दोपहर हो गई ढेला वा देवर खाने की राह देख रहे होगे,

मगर सासु माँ मैने खेत तो देखा ही नही,


तेरी नंद तो स्कूल गई है उसे आने मे देर होगी, मै टोकरी बना रही हूँ तेरे बाबूजी आज तुझे खेत दिखा देंगे उन्ही के साथ चली जाना,


ठीक है माँजी, मै जल्दी काम निपटा एक बड़ा घाघरा, पहन बाबूजी के साथ चल दी, चारों तरफ खेत दूर दूर तक कोई ना गाँव ना घर पुरा रास्ता सुनसान था,

मै डर रही थी बाबूजी आज मुझे यही पटक कर अपने अरमान पुरे करेंगे, पतली मेढ थी चारों तरफ पेड ही पेड नजर आ रहे थे, मेरी बुर यह सोच सोच के पनिया चुकी थी कही बुढ्ढा अपना मोटा लंड से इसी सुनसान मै ही मेरी बुर फडेगा मै कितना चिल्लाऊ यह कोई सुनने वाला नही, कही हरामी मेरी गांड ना मार ले, गलती कर गई गांड मे सरसो का तेल डाल लेती तो आसानी होती बुढ्ढे को गाड मारने मे, अब यदि मारी तो बहुत परपरायेगी, बसे भी हरामी का कितना मोटा है सुबह तो इसने जान ही निकाल दी थी.

मै कभी कभी चप्पल ठीक करने के बाहने झुक जाती जिससे पीछे चलते ससुर पर मेरी गांड सीधे उनके दिल पर बिजलियाँ गिरा देती,

तभी मुझे जोरो की पेशाब लगती है तो रुक जाती हूँ

क्या हुआ बहु क्यो रुक गई

जी बाबूजी मुझे जोरो की पेशाब लगी है

जा बेटा उस पेड के पीछे पेशाब कर ले,


जी बाबूजी, मै पेड के पीछे चली गई, और बैठ गई मगर लंहगा बहुत बडा था जो जमीन को दूर तक छु रहा था,


बाबूजी ओ बाबूजी, जरा मेरा लंहगा पकड ले, जमीन पर छु रहा है कही भीग के गंदा ना हो जाये


ये सुनते हे ससुर के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान छा जाती है. वो एक बार अपने लंड को धोती पर से जोर से मसलता है और यहाँ-वहां देखकर किसी के ना होने की पुष्टि कर धीरे से बहु के पास जाता है.

सुसर : बेटी..!! तेरा लहंगा तो सच में पीछे से ज़मीन पर लग रहा है.

मै : हाँ बाबूजी...तभी तो आपको बुलाया है. इस पीछे से उठा दिजियेना ....

ससुर कांपते हुए हाथों से बहु का लहंगा पीछे से उठाते हैं. लहंगा उठते ही बहु की गोरी और चौड़ी चुतड की झलक उन्हें दिख जाती है. लहंगा उठा के बहु के पीछे ही ससुर भी बैठ जाता है. गोरी गोरी चुतड उसकी आँखों के सामने है और कानो में पेशाब की सुर्र्र्रर्ररसुर्र्र्रर की आवाज़ से उसका लंड अकड़ने लगता है. वो एक हाथ से अपना लंड बाहर निकालता है और लंड पकड़े हुए हुए धीरे से निचे झुकता है. निचे झुकते ही ससुर को बहु की गोल गोल चूतड़ों के बीच हलके काले बाल देते है. फैली हुई चुतड और हलके बालो के बीच बहु के गांड का छेद बेहद कसा हुआ दिख रहा है. बहु जब पेशाब करने में जोर लगाती वो उसकी गांड का छेद अन्दर की तरफ सिकुड़ जाता और फिर वापस अपने आकर में आ जाता. ये नज़ारा देख कर ससुर अपनी जुबान ओठों पर फेरने लगता है. उसका दिल करता है की अपनी मोटी जीभ उसी वक़्त बहु की गांड के उस कसे हुए छेद में पेल दे. ससुर थोडा और निचे झुकता है तो उसे बहु की बालों से घिरी बूर दिखाई देती है जिसमे से पेशाब की एक मोटी धार सुर्र्र्ररसुर्र्र की आवाज़ करती हुई ज़मीन पर गिर रही है. ससुर को बहु के बूर से निकल कर ज़मीन पर गिरती वो पेशाब की मोटी धार किसी झरने सी दिखाई देती है. उसका दिल करता है की बहु की टांगों के बीच अपना मुहँ ले जा कर वो उस झरने का पानी पी ले. तभी उसके कानो में बहु की मीठी आवाज़ आती है.

मै : बाबूजी...मेरा लहंगा भीग तो नहीं रहा है ना?

ससुर : (सपनो की दुनिया से बाहर आता हुआ) नहीं नहीं बिटिया रानी. तेरे बाबूजी लहंगे को ऊपर उठा के है.

मै : आप कितने अच्छे है बाबूजी...आप नहीं होते तो मेरी लंहगा ख़राब हो जाती.

ससुर : कोई बात नहीं बिटिया...(फिर उसके बहते पेशाब को देख कर) बहु...आज तो तू बहुत पेशाब कर रही है बिटिया...

मै : अभी तो और वक़्त लगेगा बाबूजी आप तो जानते है...जब तक मैं अच्छे से पेशाब नहीं कर लेती तब तक मैं ऐसे ही बैठी रहती हूँ.

बहु बीच बीच में अपनी चुतड पीछे से उठा देती तो ससुर को उसकी चुतड, गांड का छेद और हलके बालों से घिरी बूर के दर्शन हो जाते. अब ससुर से रहा नहीं जाता. उसका दिल करता है की बहु को वहीँ पटक के उसकी बूर में लंड ठूँस दे लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहता. वो चाहता है की बहु खुद ही अपने मुहँ से कहे की " बाबूजी ...मेरी चुदाई कर दीजिये". तभी मै कहती हूँ

मै : बाबूजी ...वो सामने खेत देख रहे हो आप?

ससुर देखता है तो उसे कुछ दिखाई नहीं देता..

ससुर : नहीं बेटी...सामने तो कोई खेत दिखाई नहीं दे रहा...

मै अपना लहंगा पकड़े, पीछे से चुतड उठा देती हूँ. ज़मीन पर घुटने मोड़ के बैठे ससुर के सामने उसकी चुतड खुल के दिखने लगती है. बहू की बूर अब हलके हलके बालों के बीच से दिखाई देने लगी है. डबल रोटी की तरह फूली हुई बूर देख कर ससुर के होश उड़ जाते है.

मै : ध्यान से देखिये ना बाबूजी...खेत तो आपके सामने ही है.

ससुर समझ जाता है की वो खेत कहीं और नहीं, बहु की जांघो के बीच ही है.

ससुर : ह...हाँ ...हाँ बहु...अब दिखाई दे रहा है खेत..

मै : कैसा लगा आपको खेत बाबूजी ?

ससुर : छोटा सा है बेटी...खेत पर तो हलकी हलकी घांस भी उग आई है...

मै: आपको खेत पर घांस पसंद है बाबूजी ?

ससुर : हाँ बेटी...बहुत पसंद है...घासं से तो खेत हरा-भरा दीखता है....

मै : और क्या दिख रहा है बाबूजी खेत में?

ससुर : बेटी ये खेत तो त्रिकोने आकार का है. खेत के उपरी हिस्से में घनी घासं उगी हुई है और दोनों तरफ हलकी. और बिटिया, खेत के बीच में एक लम्बी फैली हुई नहर दिख रही है जिसमे से पानी बह रहा है. खेत के ठीक निचे एक छोटा सा कुआं भी है जो लगता है बंद पड़ा है. कुएं को खोलने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी....

ससुर के मुहँ से अपनी हे बूर और गांड के छेद की बात सुन कर मेरी बूर पानी छोड़ने लगती है.

में : बाबूजी ये खेत जुताई के लिए तैयार हो गया है क्या?

ससुर : हाँ बिटिया...पूरी तरह से तैयार....तेरे ससुर ने बड़े-बड़े खेत जोते है लेकिन ऐसा प्यारा खेत कभी नहीं जोता. इसकी ज़मीन भी बहुत टाइट दिखाई पड़ रही है. ससुर को अपने मोटे हल से इसे जोतने में बड़ा मजा आएगा.

ये सुनकर मेरी साँसे तेज़ हो जाती है और बूर फुदकने लगती है.

मै : बहुत जोर-जोर से जोतियेगा क्या बाबूजी इस खेत को?

ससुर : (जोश में) हाँ बेटी....इस खेत में तो तेरा ससुर अपना मोटा हल उठा-उठा के डालेंगे. घंटो इस खेत की जुताई करेंगे. जब पूरा खेत अच्छे से जुत जायेगा तो इसकी गहराई में बीज बो देंगे.

मै : उफ़ बाबूजी...आप बीज भी बो दोगे क्या?

ससुर : हाँ बेटा..बिना बीज बोये खेत की जुताई कभी पूरी नहीं होती....

दोनों ससुर- बहु की हालत खराब हो जाती है. प मेरी बूर फ़ैल गई थी और पैशाब के बाद भी उसमें से टप-टप पानी चु रहा है, कार्तिक की कुत्तिया की तरह मै इतनी गर्मा चुकी थी अब कोई भी चढ़ता तो उसे इंकार ना कर पाती मेरी बुर किसी लंड क़े लिए अपना मुँह बार- बार खोल सिकोड़ रही थी और लंड ना पाने के दुख मे ऑसू के रूप मे रो देती जिससे उसमें लगातार पानी रिस रहा था और ससुर के लंड ने भी विकराल रूप ले लिया है. तभी उन्हे कुछ आहट सुनाई देती है तो ससुर जी मेढ पर आ जाते है मै भी कपड़े सही कर लेती हूँ तो देखती हूँ मेढ पर ससुर और रानू बातचीत कर रहे है
 
Member
1,531
1,618
143

नई दुल्हन


देवर की मौज



रानु का खेत भी बगल मे था तो साथ साथ चल दिये रानू आगे उसके पीछे मे और सबसे पीछे ससुर मेरे चुतड़ो का नजारा लेते हुये चल रहे है उनका खडा लंड धोती से स्पष्ट नजर आ रहा था, असमान मे बादल भी घिर आये थे हम जल्दी जल्दी चल दिये



जल्द हम खेत मे पहुँच चुके थे, ढेला और मेरा देवर अजय खेते मे मेढ बना रहे थे, अजय एक कसरती बदन का मालिक था उसके ढोले शोले देख के ही बुर से पानी रिसने लगता था और मै इस समय इतनी गर्म थी कोई कुत्ता भी चढा दे तो चुद जाऊ, अजय कच्छे मे था उसका उभार उसके लंड की कीमत बता रहा था, ससुर ने अजय से कहा, सुन अजय खाना खा के बहुरिया को घर छोड आ और बाजार से खाद लेते आना, ढेला तु भी कुछ आराम कर ले, आज रात दोनो खेत मे रुकना, वरना साड सारा खेत चर लेंगे, धान क्या खाक कुछ मिलेगा,


खाना खाने के बाद मे अजय के साथ घर की और चल दी, मगर देवर इस बार किन्ही दूसरे रास्तो से ले जा रहा था, जो बढे ही उबड खबड रास्ते थे


चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे,

मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी।



पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था।


एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया।

हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं।





अजय ने कहा-


“चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…”

और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी।

मेरी घाघरी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे।

जमीन पर भी अच्छी फिसलन हो गयी थी। बाग के अंदर बारिश का असर थोड़ा तो कम था, पर अचानक मैं फिसल कर गिर पड़ी।


मुझे कसकर चोट लगती, पर, अजय ने मुझे पकड़ लिया।


उसमें एक हाथ उसका मेरे जोबन पर पड़ गया और दूसरा मेरे नितंबों पर। मैं अच्छी तरह सिहर गयी।


सामने एक पेड पर झूला पड़ा दिख रहा था, उसने मुझे वहीं बैठा दिया और मेरे बगल में बैठ गया। तभी बड़े जोर की बिजली चमकी और उसने और मैंने एक साथ देखा कि भीगने से मेरा ब्लाउज़ एकदम पारदर्शी हो गया है, ब्रा तो हम पहनते ही नही थे इसलिये मेरी चूचियां साफ दिख रही थीं।

अजय के चेहरे पे उत्तेजना साफ-साफ दिख रही थी।

उसने मुझे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। उसके हाथ भी बेसबरे हो रहे थे और उसने एक झटके में मेरी चोली के सारे बटन खोल दिये। मेरी घाघरी भी मेरी जांघों के बीच चिपक गयी थी। उसका एक हाथ वहां भी सहलाने लगा। मैं तो गर्म थी ही उसके स्पर्श ने बदन मे आग लगा दी

उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था।
जोश में मेरे चूचुक पूरे खड़े हो गये थे। उसने साड़ी भी नीचे कर दी और अब मैं पूरी तरह टापलेश हो गयी थी। जब वह मेरे कड़े-कड़े निपल मसलता तो… मेरी भी सिसकी निकल रही थी।

तभी मुझे लगा की मैं क्या कर रही हूं… मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था पर मैं बोलने लगी-


“नहीं देवर जी मुझे छोड़ दो… नहीं रहने दो घर चलते हैं… फिर कभी… आज नहीं…”


पर अजय कहां सुनने वाला था, उसके हाथ अब मेरी चूचियां खूब कस के रगड़ मसल रहे थे। मन तो मेरा भी यही कर रहा था कि बस वह इसी तरह रगड़ता रहे, मसलता रहे… मेरे मम्मे।


पर मैं बोले जा रही थी-

" देवर जी छोड़ दो आज नहीं… हटो मैं गुस्सा हो जाऊँगी… सीधे से घर चलो… वरना…”


और अजय मुझे झूले पर ही छोड़कर हट गया। उसकी आवाज जाती हुई सुनाई दी-


ठीक है, मैं चलता हूं… तुम घर आ जाना…”

मैं थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही पर अचानक ही बिजली कड़की और मैं डर से सिहर गयी।


हवा और तेज हो गयी थी।

पास में ही किसी पेड़ के गिरने की आवाज सुनाई दी और मैं डर से चीख उठी-


“ देवर....... देवर जी… देवर जी, देवर जी,… लौट आओ… अजय…”


पूरा सन्नाटा था, फिर किसी जानवर की आवाज तेजी से सुनाई पड़ी और मैं एकदम से रुआंसी हो गयी।


मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, मन तो मेरा भी कर रहा था, सुबह से मेरी बुर पनिया रही थी मगर इतनी आसानी से चुत नही देना चाहती थी मगर अब......

" देवर जी रुक जाओ देवर जी…”

मैंने फिर पुकारा, पर कोई जवाब नहीं था, लगाता है, गुस्सा होकर चला गया, लेकिन वह भी कितना… मुझे मना सकता था… कुछ ना हो तो जबर्दस्ती कर सकता था।


आखिर इतना हक तो उसका है ही

। थोड़ा वक्त और गुजर गया। मैं बहुत जोर से डर रही थी।

मैं पुकारने लगी-

“ देवर जी आ जाओ, मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं… तुम मुझे किस करो, जो भी चाहे करो, आ जाओ… मैं सारी बोलती हूं… मैं तुम्हारी हूं… जो भी चाहे…”


तब तक उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया, और बोला- “क्यों, मैं घर जाऊँ…”

“नहीं …” मैं भी उसे और कस के जकड़ के बोली।

अच्छा, सच सच बताओ, मेरी कसम, तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं…” अजय ने मेरे होंठों को चूमते हुए पूछा।


“हां कर रहा था… बहुत कर रहा था…” मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी। अजय के होंठ अब मेरे रसीले गलों का रस ले रहे थे।

“क्या करवाने को कर रहा था…” मेरे गालों को काटते हुए उसने पूछा।

“वही करवाने को… जो तुम्हारा करने को कर रहा था…” हँसते हुए मैंने कबूला।

“नहीं तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा… वरना बोलो तो मैं चला जाऊँ तुम्हें यहीं छोड़कर…”

और ये कहते हुये उसने कस के मेरे कड़े निपल को खीचा।




“मेरा मन कर रहा था॰ चुदवाने का तुमसे आज अपनी कसी चूत… चुदवाने का…” कुत्तिया बना लो अपनी भौजी को और इस कमर जली बुर की आग मिटा दो देवर जी

और ये कह के मैंने भी उसके गालों पर कस के चुम्मी ले ली।

“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”


और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।

तो चुदवाओ ना… मेरी भौजी शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी भौजी रानी को... अभी तक तेरी बुर ही चाट पाया आज तेरी चुदने की बारी है”



और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।


थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।

मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था

और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था।

कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे घघरा सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।

मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।

देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।

उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।

अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।

अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कसी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।

हाये भौजी अभी तक इसे केवल मैने चाटा है क्या मस्त चुत है तेरी, जबसे चाटा है तबसे तुझे चोदने के सपने देख रहा हूँ भौजी

उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी।

बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।


और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-

“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… देवर जी… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”


अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।

बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड,

उसने उसे मेरी गुलाबी कसी…चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।


जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।

उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा।

दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।

ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-


“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…”



मेरी बुरी हालत थी।


अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था।

थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न,

उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।

अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।

एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।

अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और जैसे मेरी चुत फट गई हो।




मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।

मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।


जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।

प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही।

अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी

और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा

ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…


अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-



“अरे भौजी भैया की नुनी थोड है जब लंड से चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”

अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली


“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग…

और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”


अजय मेरा गाल काटता बोला-

“अरे भौजी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है…
लेकिन आपकी ये बात गलत है की जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''

तभी उसका फुफकरता 8 इंची लंड कलाई जितना मोटा मेरे सामने आया एक बार तो उसे देख कर ही दिल धक्क सा हो गया


बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-



“आधे से क्यों… देवर जी ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने…

और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ,
पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”


अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-

“ठीक है भौजी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”

मैंने मुँह बनाया-



“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”





लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये

और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया





और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-





“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।




और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-


“ देवर जी… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।


उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।

ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।





मैंने भी अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।




उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।

कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।



नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।



थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था

मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे देवर की चुदाई… और यह चलता रहा।

मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी।


तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।




उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से घाघरी पहनी, मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे जो साफ संकेत था मै किसी मर्द से चुद कर आ रही हूँ, जोश जोश मे ब्लाऊज भी फट गया था किसी तरह उसे दुप्पटे स़े रोका और दोनों घर की ओर चल दिये, तभी रास्ते मे रानू मिला मेरी चाल और हाल देखते ही वो अजय से बोल ऊठा ।

लगता है भौजी को आज बजा डाला तुने

अजय बस मुस्करा दिया

भौजी हमे भी मौका दो हम भी तोहर देवर है,

चल हट बेशर्म और मै शर्म से लड़खड़ाती अजय का हाथ थामे चल दी
 
Member
1,531
1,618
143

नई दुल्हन

ससुर घुसे पिछवाड़े से


रात घिर आई थी ढेला मेरे पति मेरे देवर संग खेत की रखवाली को गये थे, वो नही जानते घर मे परती खेत छोड़ना कितना नुकशान है कोई भी बाहर वाला आकर जोत सकता है मगर मर्द ठहरे उन्हे औरत की परवाह कहाँ चोद लो अपना काम बने औरत का क्या मतलब वो झडे या ना, बरहाल अजय की दमदार चुदाई ने मेरी बुर सुजा रखी है और इस हाल मे कतई ना थी कि कोई और उसकी सेवा कर सके, घर मे एक कमरे मै थी तो दूसरे कमरे मे सास नंद , हमेशा की तरह ससुर बरामदे मे खाट पर पसरे पडे थे

मुझे जोरो की पेशाब लगी थी लगभग रात के गयारहा बज रहे थे, बाहर आयी तो ससुर के खर्राटो की आवाज से पूरा बरमदा गुज रहा था सासु मॉ भी उनके बगल मे लेटी थी शायद रात मे आ गई होगी उनकी हालत देश मे शर्मा गई, बाबूजी के एक हाथ सासु के नंगे चुतड़ो पर थे, सासु की नंगी गांड काफी फैली थी और बुर बालो से भरी वही सासु के हाथ, सोते ससुर के लंड को पकडे थे, सोते समय भी उनका लंड ढेला के खडे लंड से बडा मोटा ही थी, बरहाल वो तो मै जानती थी देवर के लंड जितना ही बडा था मगर मोटाई मेरी कलाई से जादा थी, वो भयानक नाग सोते भी नई दुल्हन को डराने के लिये प्रयाप्त था, बरहाल मे अभी चुदी ही कितना थी मगर बुर करमजली पानी रिसाना शुरू कर दिया,
मैंने अपनी बुर को थपकी देते हुये कहा

करमजली कुछ तो सब्र कर अभी सुजी है यह नाग गया तो दर्जी भी ना मिलेगा सिलने के लिए

मै नाली थी तरह चल दी मै जैसे ही नाली पर घुटने मोड बैठी थी और सुजी चुत ने अभी थोड़ा मुता होगा कि उसकी मूत रुक गयी ठीक नाली के पास एक काला साप बैठा था तभी पीछे से किसी किडे ने मेरी गाड के छेद पर काटा हो जैसे वो बिल समझ कर घुसना चहाता हो मै तड़प कर चीख उठी,

चीख सुनते ही सासु माँ जाग उठी, बोली क्या हुआ बहुरिया क्या क्या

मेरी हलक से आवाज जैसे घुट सी गई थी बडी मुश्किल से निकली माँ जी साप साप और उंगली से उधर इशारा कर दिया जिधर वो साप था और जैसे ही उसने आवाज सुनी वो भी नाली के रास्ते बाहर की तरफ सरक लिया

सासु बोली बाप से इतना बडा साप, बहुरिया तुझे काटा तो नही

मा जी मेरी गाड़ परपरा रही है

हाय री, वो तेजी से ससुर को जगाने लगी

उठो जी, उठो जी

क्या हुआ क्या हुआ बुर चोदी जो इतनी रात को जगा रही है तेरी बिटिया की गांड मारू हराम जादी

हाये जी बहु पेशाब कर रही थी उसकी गाड मे साप ने काट लिया

क्या, क्या बहु इधर आ, दिखा

मै शर्म से ससुर जी के पास पहुंची

सासु बोली बहु शर्मा मत वरना साप जहरीला हुआ तो बडा गजब होगा चल घद्यरा उठा के कुत्तिया बन बाबुजी को साप काटे जगह दिखा

मै डर से तुरंत झुक गई याद ही नही रहा था साप तो सामने था पीछे से काटा किसी कीडे ने होगा, मगर जल्द बाजी डर मे मुझे कुछ होश नही रहा और घघरा उठा मॅ कुतिया बन गई

मेरी गोरी गांड खुल के सामने थी बलब की रोशनी सीधे मेरी गांड पर जैसे पड रही थी ऊपर से चाँद की रोशनी मे मेरी गांड चाँद जैसी ही चमक रही थी

ससुर का लंड धोती मे फुक्कार रहा था, बता दूँ मेरे ससुर थोडा झाड फूंक भी करते है गांव के लोग अक्कसर उनसे झाड फूँक के लिए आते रहते है

कहाँ काटा है बहु

मुझे शर्म आ रही थी

सासु बोली बता बेटा कहाँ काटा है

जी मा जी गांड के छेद पर

यह सुनते ही ससुरे ने अपने दोनो हाथो से चुतड़ों के दोनो पटो को फैला दिया, सामने मेरी सुजी बुर और भुरा गांड का छेद था, बुर की सुजन उन्हे साफ नजर आ रही थी

लगाता है बुर किसी ने जोरदार तरीके से मारी है कौन था वो बहादुर जिसने तेरी बुर इतनी सुजा दी

जी बाबूजी देवर जी दोपहर को मारी थी

सासु जी अरे देवर का काम ही होता है भौजी की बुर को भौसड़ा बनाना, तुम गांड देखो जी

अरे मेरी नजर कब की इस पर है एकदम लाल हुई है लगता है जहर अंदर तक गया है

हाये बाबूजी बहुत परपरा खुजला रही है

हाँ बहु लगाता है जहर अंदर तक चल गया है

सासु बोली अब क्या होगा जी

ससुर अपनी पोटली ले आये उसमे से डिब्बा निकाला और एक चिकना क्रीम उंगली मे लगाई और कहा
देखते है क्या कर सकता हूँ मै और उन्होंन अपनी बीच वाली उंगली आधी मेरी गांड मे डाल दी,
मेरे मुंह से हल्की सिसकारी निकली
उई माँ

तभी अचानक पुरी उंगली घपाक से मेरी गांड मे डाल दी
मॅ चुहक उठी

उई माँ मेरी गांड

तभी बाबूजी अपनी उंगली आगे पीछे करने लगे मेरी गॉड मे थोड़ी देर मे ही चुनचुनाहट होने लगी और बुर से पानी रिसने लगा

ससुर बोले बहु अभी भी परपरा रही है और उनकी उंगली की गति तेज कर दी

जी बाबू जी

तभी ससुर बोले सास से

लगता है जहर गांड के और अंदर गया है जा जाके कोई मोटा बॉस या बेलन ले आ

यह सुनते ही मेरी आत्मा गले को आ गई

सासु काहे जी

अरे बहु को बचाना है तो दवाई और अंदर तक जानी चाहिये

हाये जी बॉस बेलन लकड़ी के होते है और यह कुवारी गांड बेचारी तो ऐसे ही मर जायेगी फिर कही बॉस या लकड़ी की कोई फेच इसकी गांड मे घुस गई तो लेने के देने पड जायेगो

तो तु ही बता क्या करू, दवाई और अंदर जाना भी जरूरी है

हाये जी अपका लंड किसी बेलन बॉस से कम है दवाई लगा के इसकी गांड मे पेल दो जी कम से कम बॉस से सही है और बेचारी की जान भी बच जायेगी

मै बोली नही मॉ जी बाबूजी का बहुत मोटा बडा है गांड फट जायेगी मेरी

सासु बोली बेटी जान बचाने के लिए अपनी गांड फटा ले बेटा, तेरे लिए ही आसान होगा वरना बाँस बेलन से तो और कष्ट होगा उधर ससुर अपनी धोती खोल चुके थे और उनका लंड फनफना रहा था

सासु बोली देर काहे कर रहे हो जी, अपने लंड से बहु की कसी गांड फाड़ दो जी, इसे भी पता चले ससुर कम बडा मर्द नही है, अच्छो अच्छे की गांड चिथड़ा की है इस शेर ने

ससुर अपने लंड पर दवाई मल चुके थे
सासु ने मेरे चुतड़ों के दोनो पटो को फैला कर गांड इतनी फैला दी थी कि जैसे ससुर से पहले वो इस गांड को फैला कर फाड देना चहती हो,
तभी ससुर ने लंड का मुॅह गांड के छेद से भीड़कर एक जोरदार धक्का दिया मगर
 

Top