नई दुल्हनियाँ
मजा मार लियो राजा
आज संडे था नंद को स्कूल भेजना नही था तभी घर के काम जल्दी जल्दी निपटा लिये, हमेशा की तरह ससुर की नजर एकटक चुतड़ो पर ही रहती थी और मै भी कोई कसर नही छोड़ती यहाँ तक की पादना भी होता तो उनकी तरफ गांड निकाल कर ही पादती और शर्माती तो वो घायल से हो जाते थे
दोपहर खाना खेत मे पहुंचाने के लिए सुर्ख लाल रंग की साड़ी पहनी और चल दी अपने देवर अजय वा पति ढेला जी को खाना पहुंचाने, पहली बार अकेले जा रही थी सुनसान रास्ता तभी रास्ते मे खडा रानू देवर दिखाई दिये, जब से मुॅह दिखाई मे इसने बुर चाटी यह मेरे हर वक्त आगे पीछे मंडराता रहता था
हाये भौजी अकेले कहाँ चल है
देवर जी देख तो रहे हो खाना जीमने का समय है तो खाना देने ही जा रही होगी
चलो भौजी मुझे भी खेत चलना है तुम्हे भी छोड देता है
हाये देवर राजा कितने भले हो मगर केवल छोड़ना ही है ना
हॉ भौजी चलो तो सही
मै आगे आगे वो पीछे पीछे मेरे चुतडो का भरपूर नजारा लेते चल रहा था, मेरे कमसीन भारी चुतड़ अच्छे अच्छे नामर्द का लंड खडा कर दे फिर तो यह अवारा चुदक्कड़ देवर कब तक बरदाश्त करता उसने सारे हथियार डाल मेरा हाथ पकड लिया
हाये भौजी सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, रानू ने कहा … मेरा आज सुबह से मेरा बहुत मन कर रहा है
मैं समझ तो गयी थी और ये सोच के मेरे मन में गुदगुदी भी हो रही थी कि ये लड़के मेरे कितने दीवाने हैं, पर बनावटी ढंग से मैं बोली
ठीक है बता ना क्या करना है, मैं तेरी भौजी हूँ
“सच… पर पहले प्रामिस कर मेरी कसम खा, मैं जो कहुंगा… सुनने के बाद मुकर तो नहीं जायेगी…”
“हां हां, ठीक है, जो तू कहेगा, करूंगी, करूंगी, करूंगी…”
यह सुनते ही वो लगभग घसीटते हुए, मुझे गन्ने के खेत के अंदर खींच ले गया
हाये देवर जी यहा क्या कर रहे हो
भौजी जो उस दिन चटवायी थी एक बार दे दो
हट पगले वो तो शर्त हारी थी मगर छी छी मैं ना करूगी कुछ और कह तो बता वरना मुझे जाने दे
मगर वो हरजाई कहा मानने वाला था,
उस पकड़ा धकड़ी में मेरा आंचल नीचे गिर गया और मेरी कसी लो कट लाल चोली के अंदर तने हुए मेरे सर उठाये दोनों मस्त जोबन साफ-साफ दिख रहे थे। रानू का तो मुँह खुले का खुला रह गया
वह जमीन पर बैठ गया था और मुझे पकड़कर अपनी गोद में बैठाये हुये था। वह मेरे गुलाबी रसीले होंठ बार चूम चूस रहा था, पर मेरे तने, कड़े-कड़े जोबन को देखकर उससे नहीं रहा गया और चोली के ऊपर से ही उन्हें चूमने, काटने लगा
“अरे इतने बेसबर हो रहे हो… ऊपर से ही…” मैंने उसे चिढ़ाया।
तुम्हारे जोबन हैं ही ऐसे, तुम क्या जानो मैं कैसे इनके लिये तड़प रहा था, लेकिन तुम ठीक कहती हो…”
मेरी चोली इतनी कसी और तंग थी कि उसके हाथ लगाते ही ऊपर के दोनों हुक खुल गये और चूचुक तक मेरे मदमस्त, खड़े, गोरे-गोरे, जोबन बाहर हो गये। पर मैंने हाथ से नीचे चोली कस के पकड़ ली जिससे वह पूरी चोली ना खोल पाये।
थोड़ी देर तक कोशिश के बाद उसने पैंतरा बदला और अपने हाथ नीचे ले जाकर मेरी साड़ी जांघों तक उठा ली और मुझे नीचे से… मैंने तुरंत अपने दोनों हाथ नीचे करके उसे अपनी साड़ी पूरी तरह खोलने से रोका। वहां तो मैं बचा ले गयी पर तब तक अचानक उसने मेरी चोली के सारे हुक खोल दिये और मेरे जोबन को पकड़ के दबाने लगा।
“नहीं… नहीं छोड़ो ना मुझे शर्म लगा रही है…” मैं उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी।
पर उसकी ताकत के आगे मेरा क्या जोर चलता, हां, मेरे दोनों हाथ जब जोबन को बचाने के चक्कर में थे तो उसने हँसते हुए मेरी साड़ी पूरी उठा दी और अब उसका एक हाथ कस के मेरी चूत को पकड़े हुए था
और दूसरा जोबन की रगड़ाई कर रहा था। मैं ऊपर से मना भले कर रही थी पर मेरे दोनों निपल मस्ती में कड़े हो रहे थे।
थोड़ी देर तक चूत को सहलाने मसलने के बाद उसने अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दी और आगे पीछे करने लगा। उसका एक हाथ मेरी गोरी-गोरी कमसिन चूची का रस ले रहा था और दूसरा, निपल को पकड़कर खींच रहा था। उसने मुझे इस तरह उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया की मेरे चूतड़ भी नंगे होकर उसकी गोद में हो गये थे।
अब मैं समझ गयी कि बचना मुश्किल है (वैसे भी बचना कौन बेवकूफ चाहती थी), तो मैंने पैंतरा बदला-
“अरे, तुमने मेरी चोली और साड़ी दोनों खोल ली, मेरा सब कुछ देख लिया, तो अपना ये मोटा खूंटा क्यों छिपाकर रखा है…”
उसके पाजामा फाड़ते, मोटे खूंटे पर अपना चूतड़ रगड़ते मैं बोली।
“देखती जाओ, अभी तुम्हें अपना ये मोटा खूंटा दिखाऊँगा भी और घोंटाऊँगा भी और एक बार इसका स्वाद चख लोगी ना तो इसकी दीवानी हो जओगी…
ये कहते हुए उसने कस के अपनी उंगली पूरी तरह चुत के अंदर डालकर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।
मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गयी थी और मैं सिसकियां भर रही थी। उसने मुझे जमीन पर, कल जैसे चन्दा लेटी थी, साया और साड़ी कमर तक करके, वैसे ही लिटा दिया। जब उसने अपना पाजामा खोला और उसका मोटा लंबा लण्ड बाहर निकला तो मेरी तो सिसकी ही निकल गई। उसने उसे मेरे कोमल किशोर हाथ में पकड़ा दिया।
कितना सख्त और मोटा… अजय से भी थोड़ा मोटा ही था।
मेरा ध्यान तब हटा जब रानू की आवाज सुनाई दी-
“क्यों पसंद आया, जरा उसको आगे पीछे करो, इसका सुपाड़ा खोलो… असली मजा तो तब आयेगा जब तुम्हारी गुलाबी चूत इसको घोंटेगी…”
मैंने अपने कोमल हाथों से उसको कस के पकड़ते हुए, आगे पीछे किया और एक बार जोर लगाकर जब उसका चमड़ा आगे किया, तो गुलाबी, खूब बड़ा सुपाड़ा सामने आ गया। उसके ऊपर कुछ रिस रहा था।
रानू मेरी दोनों गोरी लंबी टांगों के बीच आ गया और बिना कुछ देर किये, उसने मेरी टांगें अपने कंधे पर रख लीं। उसने अपने एक हाथ से मेरी गीली चूत फैलायी और दूसरे हाथ से अपना सुपाड़ा मेरी चूत पर लगाया। जब तक मैं कुछ समझती, उसने मेरी दोनों चूचियां पकड़कर पूरी ताकत से इत्ती कस के धक्का लगाया की उसका पूरा सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।
मेरी बहुत कस के चीख निकल गयी।
वह मुश्कुराता हुआ बोला-
“अरे, मेरी जान अभी तो सिर्फ सुपाड़ा अंदर आया है, अभी पूरा मूसल तो बाहर बाकी है, और वैसे भी इस गन्ने के खेत में तुम चाहे जितना चीखो कोई सुनने वाला नहीं…”
अब उसने मेरी दोनों पतली कोमल कलाईयों को कस के पकड़ लिया और एक बार फिर से पूरे जोर से उसने धक्का लगाया
मेरी चीख निकलने के पहले ही उसने संतरे की फांक ऐसे मेरे पतले रसीले होंठों को अपने दोनों होंठों के बीच कसके भींच लिया
और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ दी।
मुझे उसी तरह जकड़े वह धक्के लगाता रहा।
मेरी आधी लाल गुलाबी चूड़ियां टूट गयीं।
मैं अपने गोरे-गोरे मदमस्त चूतड़, मिट्टी में रगड़ रही थी पर उसके लण्ड के निकलने का कोई चांस नहीं था। और जब आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत ने घोंट लिया तभी उस जालिम ने छोड़ा।
पर छोड़ा क्या… उसके हाथ मेरी कलाईयों को छोड़कर मेरी रसीली चूचियों को मसलने, गूंथने में लग गये।
उसके होंठों ने मेरे होंठों को छोड़कर मेरे गुलाबी गालों का रस लेना शुरू कर दिया और उसका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा था।
“क्यों बहुत दर्द हो रहा है…” उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।
“बकरी की जान चली गयी और खाने वाला स्वाद के बारे में पूछ रहा है…” मुश्कुराते, आँख नचाते, शिकायत भरे स्वर में मैंने कहा।
“अरे स्वाद तो बहुत आ रहा है, मेरी जान, स्वाद तो मेरे इससे पूछो…”
और ये कह के उसने मेरे चूतड़ पकड़ के कस के अपने लण्ड का धक्का लगाया। अब वह सब कुछ भूल के गचागच गचागच मेरी चुदाई कर रहा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। दर्द तो बहुत हो रहा था, पर जब उसका लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुसता तो बता नहीं सकती, कितना मजा आ रहा था।
उसकी उंगलियां कभी मेरे निपल खींचतीं, कभी मेरी क्लिट छेड़तीं, और उस समय तो मैं नशे में पागल हो जाती। उसकी इस धुआंधार चुदाई से मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पहुँच गयी।
पर रानू को भी मेरी हालत का अंदाज़ हो गया था और उसने अपना लण्ड मेरी चूत के लगभग मुहाने तक निकाल लिया।
मैं- “हे डालो ना, प्लीज़ रुक क्यों गये, करो ना… अच्छा लगा रहा है…”
पर वह उसी तरह मुझे छेड़ता रहा।
मैं- “हे डालो ना, करो ना…” मैंने फिर कहा।
“क्या डालूं… क्या करूं… साफ-साफ बोलो…” वो बोला।
मैं- “चोदो चोदो, मेरी चूत… अपने इस मोटे लण्ड से कस-कस के चोदो, प्लीज़…”
“ठीक है, लेकिन आज से तुम सिर्फ इसी तरह से बोलोगी, और मुझसे एक बार और चुदवाओगी…”
मैं- “हां, हां, जो तुम कहो एक बार क्या मेरे राजा तुम जितनी बार बोलोगे उतनी बार चुदवाऊँगी, पर अभी तो…”
उसने पूरी ताकत से मेरे कंधे पकड़ के इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका पूरा लण्ड एक बार में ही अंदर समा गया। और मैं झड़ गयी, देर तक झड़ती रही, पर वह रुका नहीं और धक्के मारता रहा, मुझे चोदता रहा।
थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरे जोश में आ गयी थी और उसके हर धक्के का जवाब चूतड़ उठा के देती। मेरे टीन चूतड़ उसके जोरदार धक्कों से जमीन पर रगड़ खा रहे थे। मेरी चूची पकड़ के, कभी कमर पकड़ के वह बहुत देर तक चोदता रहा और जब मैं अगली बार झड़ी तो उसके बाद ही वह झड़ा।
रानू ने मुझे हाथ पकड़ के उठाया और मेरे नितम्बों पर लगी मिट्टी झाड़ने के बहाने उसने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के मारा और एक चूतड़ पकड़ के न सिर्फ दबोच लिया बल्की मेरी गाण्ड में उंगली भी कर दी।
“हे क्या करते हो मन नहीं भरा क्या, अब इधर भी…” मैंने उसे हटाते हुये कहा।
“और क्या, तेरे ये मस्त चूतड़ देख के गाण्ड मारने का मन तो करने लगाता है…” ये कहते हुये उसने मेरे जोबन दबाते हुये गाल कसकर काट लिया।
“उइइइइ…” मैं चीखी और उससे छुड़ाते हुए बाहर निकली।
साथ-साथ रानू भी आया। बाहर निकलते ही मैं चकित रह गयी।
अजय भी खेत के बाहर था, शायद वह चीख सुनकर इस तरफ आया हो
रानू ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था, मेरी चूची टीपते हुए, अजय को दिखाकर वो बोला- “देख मैंने तेरे माल पे हाथ साफ कर लिया…”
उसने मेरी गांड पर हाथ मारते हुये कहा भौजी अगली बारी तेरी पिछाड़ी
मै शर्माते हुये बोली हाये देवर जी चुत जितनी बार मारो मगर गांड नही हाथ जोड़ती हूँ
बहुत करारा माल है तु भौजी
अजय टुकुर टुकुर ताकता रह गया