Thriller पनौती (COMPLETED)

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रिवाल्वर तूने खुद उसे बेची थी या फिर लड़के को किसी और के पास भेज दिया था?”
“हासिल तो मैंने किसी और से किया, मगर सौदा हम दोनों के बीच ही हुआ था, अलबत्ता उसकी पसंद की रिवाल्वर का इंतजाम करने में मुझे दस बारह दिन लग गये थे।”
“कैसी रिवाल्वर चाहता था वह?”
“बत्तीस कैलिबर की, उसकी एक फोटो भी दिखाई थी उसने, कहता था रिवाल्वर भले ही किसी काम की न हो मगर देखने में एकदम वैसी ही होनी चाहिये, जैसी रिवाल्वर की फोटो वह मुझे दिखा रहा था।”
“मुलाकात कहां हुई थी उससे तेरी?”
“यहीं, इसी जगह, पहली बार भी और दूसरी बार भी।”
“गुड अब उठकर खड़ा हो जा।” कहते हुए पनौती ने बांह पकड़ कर जबरन उसके पैरों पर खड़ा कर दिया।
“अभी तुझे हमारे साथ चलना है और रू-ब-रू उस शख्स की पहचान कर के दिखानी है, कोई आना-कानी नहीं चलेगी।”
“तू है कौन भाई?”
“पनौती!” - वह बोला – “मेरे नाम का मतलब तो तू समझता ही होगा, एक बात और समझ ले, तेरा बुरा टाइम उसी वक्त शुरू हो गया था जब मैंने तेरे इस मकबरे जैसे घर में कदम रखा था, आगे अगर और दुर्गति नहीं कराना चाहता तो कोई फसाद करने की कोशिश मत करना, वरना तुझे गोली मारते हुए मैं एक क्षण को भी नहीं हिचकूंगा, समझ गया?”
करीम भाई ने जल्दी से मुंडी हिलाकर हामी भर दी।
“दरवाजे को ताला लगाना चाहता है तो बेशक लगा ले।”
उसने वह काम भी किया, इसके बाद पनौती ने उसे ले जाकर स्विफ्ट के भीतर धकेल दिया। वहां मुन्ना पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र फैल गये।
इस बार पनौती आगे वाली सीट पर बैठा, मगर यूं बैठा कि पूरे रास्ते दोनों के ऊपर से क्षण भर को भी उसकी निगाह नहीं हटी। रास्ते में पनौती ने सतपाल का मोबाइल मांगकर उसमें मौजूद मिस्टर एक्स की तस्वीर करीम भाई को दिखाई तो उसने झट हामी भर दी।
तेज रफ्तार से दौड़ती कार, पंद्रह मिनट बाद ज्यों ही थाने में दाखिल हुई, मुन्ना और करीम भाई का चेहरा यूं निचुड़ गया जैसे बैठे बैठे मर गये हों।
भीतर पहुंचकर सतपाल ने दोनों को हवालात में डाल दिया। इसके बाद वह पनौती के साथ अपने कमरे में पहुंचा, जहां अपनी वर्दी पहन चुकने के बाद उसने करीम भाई को तलब किया। फिर मीनाक्षी के बंगले से बरामद रिवाल्वर उसके सामने रखता हुआ बोला, “देखकर बता कि यह वही रिवाल्वर है या नहीं, मगर हाथ लगाने की कोशिश मत करना।”
“लगती तो वही है साहब, मगर इस जैसी दूसरी रिवाल्वर भी तो ऐसी ही दिखेगी।”
“कोई शिनाख्ती निशान रहा हो इसपर?”
“इसका सीरियल नंबर रेती से घिसकर मिटा दिया गया है, मगर शुरू का ‘जे’ उस वक्त भी साफ नजर आ रहा था जब मैंने ये रिवाल्वर उसे सौंपी थी।
सतपाल ने रिवाल्वर की नाल में पेन डालकर ऊपर उठाया फिर ध्यान से उसके सीरियल नंबर का मुआयना किया तो पाया कि वह ठीक कह रहा था। तमाम नंबरों में से ‘जे’ ही एक ऐसा शब्द था जो करीब करीब मिट चुकने के बाद भी अभी पढ़ने में आ रहा था।
करीम भाई को वापिस हवालात में डाल दिया गया।
उस काम से फारिग होकर सतपाल ने फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को फोन कर के थाने आने को कह दिया।
फिर एक सिपाही को चाय का बंदोबस्त करने को कहा जो की करीब पांच मिनट में सर्व कर दी गई।
चाय खत्म होने के करीब दस मिनट बाद फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट भी वहां आ पहुंचा।
सतपाल ने पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसके हवाले कर दी। अपने बैग से एक कैमरा निकालकर एक्सपर्ट तत्काल अपने काम में जुट गया।
पांच मिनट तक दोनों दम साधे उसके जवाब का इंतजार करते रहे।
“तीन तरह के फिंगर प्रिंट हैं इसपर” - आखिरकार एक्सपर्ट अपने काम से फारिग होता हुआ बोला – “जिनमें से एक जनाना जान पड़ता है, क्योंकि निशान बेहद पतली उंगलियों के हैं, काफी हद तक अस्पष्ट हैं, अलबत्ता आप किन्हीं खास प्रिंट से मिलान करना चाहें तो काम में आ सकता है, दूसरा यकीनन किसी मर्द का है और जनाना प्रिंट की अपेक्षा हालिया बना दिखता है, तीसरा प्रिंट रिवाल्वर की नाल पर है जो कि सिर्फ दो उंगलियों का है मगर एकदम स्पष्ट है।”
“आखिरी वाले की हमें कोई जरूरत नहीं है, बाकी दोनों के प्रिंट मुझे देकर जाओ।”
“दो मिनट वेट कीजिये अभी लेकर आता हूं।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।
“ये तो कमाल ही हो गया।” पनौती बोला।
“बेशक हो गया, सच पूछो तो मुझे खुद भी यकीन नहीं था कि पानी में पड़ी रिवाल्वर पर अभी तक फिंगर प्रिंट मौजूद हो सकते हैं।”
“जीवन में पहली बार तुमने तारीफ के काबिल काम किया है सतपाल साहब, मेरी बधाई कबूल करो।”
“किया।” वह हंसता हुआ बोला।
दोनों इंतजार करते रहे।
दो की बजाये वह पंद्रह मिनट बाद वापिस लौटा। दोनों प्रिंट उसने सतपाल के हवाले कर दिये और वापिस लौट गया।सतपाल ने प्रियम शर्मा के केस की फाइल निकाली फिर उसमें से छांटकर कोमल के फिंगर प्रिंट की कॉपी को मेज पर रखा और हासिल निशानों से उनका मिलान किया तो दोनों निशान हू-ब-हू मिलते पाये गये।
जिसका मतलब ये था कि प्रियम के कत्ल के वक्त कोमल के हाथ में वही रिवाल्वर थी जो कि पानी की टंकी से बरामद हुई थी।
अलबत्ता दूसरे निशान के कंपरीजन के लिये कातिल के उंगलियों के निशान उनके पास मौजूद नहीं थे, इसलिए फिलहाल उस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था।
“अब चलें?” सतपाल फाइल को वापिस रखता हुआ बोला।
“बेशक चलो।”
पुलिस जीप में सवार होकर दोनों एक बार फिर मीनाक्षी के बंगले में पहुंचे।
“भीतर कौन कौन है?” सतपाल ने गार्ड से पूछा।
“सब लोग हैं, संजीव साहब भी भीतर मौजूद हैं।”
सुनकर दोनों जीप से नीचे उतर आये।
गार्ड ने तत्काल दरवाजा खोल दिया।
भीतर सबसे पहले उनका आमना-सामना अनुराग शर्मा से हुआ।
“अरे इंस्पेक्टर साहब आप?” पूरे केस में पहली बार वह इतने सम्मानित ढंग से पेश आया था।
“जी हां मैं।”
“कहिये।”
इससे पहले कि सतपाल उसकी बात के जवाब में कुछ कहता, ड्राईंग रूम में बैठे भुवनेश, मीनाक्षी और संजीव चौहान उठकर उनके पास पहुंच गये। जिस जगह से उठकर तीनों वहां पहुंचे थे, वहां सेंटर टेबल पर तरह-तरह की खाने की चीजें और बीयर से लबालब भरे चार गिलास रखे हुए थे, लिहाजा वहां सेलिब्रेशन चल रहा था। जवान बेटे और बहू की मौत का मातम मनाने की बजाये घर के लोग पार्टी कर रहे थे।
“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?” अनुराग बोला।
“अब दिये देता हूं, बात ये है अनुराग साहब कि यहां हम आपके भाई और बीवी के हत्यारे को गिरफ्तार करने के लिये आये हैं।”
“वो तो ब्रजेश यादव है, आपने ही बताया था।”
“गलत बताया था, क्योंकि कातिल इस वक्त आपकी आंखों के सामने मौजूद है, वकील साहब तो समझ लीजिये इस वक्त हमारी मेहमानवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं।”
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है इंस्पेक्टर” - मिनाक्षी झल्लाकर बोली – “पहले तुमने अनुराग को कातिल ठहराया, फिर यादव को यहां से गिरफ्तार कर के ले गये और अब कहते हो कि कातिल कोई और ही है।”
“बेशक कहता हूं, मगर इत्मीनान रखिये ये आखिरी बार है, आज के बाद आपसे मैं कातिल के बारे में कोई सवाल नहीं करूंगा।”
“तो फिर हत्यारा कौन है?” अनुराग ने पूछा।
“आपका साला” - उसने जैसे कोई बम फोड़ दिया हो – “भुवनेश।”
सब हकबकाकर उसकी शक्ल देखने लगे।
“ये कातिल नहीं हो सकता, भला अपनी बहन के कत्ल की इसके पास क्या वजह हो सकती है?”
“बेशक यही है, अभी थोड़ी देर पहले हमने करीम भाई नाम के एक ऐसे शख्स को ढूंढ निकाला है जो कबूल करता है कि पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसने इसी को बेची थी।”
इससे पहले कि अनुराग या मीनाक्षी उसकी बात के जवाब में कुछ और कहते, भुवनेश ने अपने ठीक सामने खड़े सतपाल को जोर से धक्का दिया और हॉल से बाहर की तरफ भागा।
पनौती उसके पीछे दौड़ा।
“यकीन आ गया आपको?” सतपाल खुद को गिरने से संभालता हुआ बोला, फिर पनौती के पीछे दौड़ पड़ा।
लोहे के फाटक का सब-डोर खुला हुआ था, आंधी-तूफान की तरफ दौड़ते भुवनेश ने गेट पार किया और फौरन बाहर से कुंडी लगा दी।
पनौती ने दरवाजा खुलवाने में वक्त जाया नहीं किया, थोड़ा दायें हटकर उसने उछल कर बाउंड्री वॉल की मुंडेर पकड़ी और ऊपर चढ़कर दूसरी तरफ कूद गया।
भुवनेश उसे तीस चालीस कदमों की दूरी पर भागता दिखाई दिया।
पनौती ने अपना रफ्तार बढ़ा दी। मगर दो मिनट तक लगातार दौड़ते रहने के पश्चात भी उनके बीच का फासला कम होता नहीं दिखाई दिया।
एक किलोमीटर आगे मुख्य सड़क थी जहां पहुंचकर उसे पकड़ पाना ज्यादा मुश्किल हो जाने वाला था। पनौती ने नये सिरे से अपनी रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की, दोनों आगे-पीछे भागते रहे।
इस वक्त उनकी रफ्तार देखते बनती थी। दोनों में से कोई भी कमतर नजर नहीं आ रहा था।
आखिरकार भुवनेश मुख्य सड़क पर पहुंच गया, जिसके ऐन कोने पर एक छोटी सी गुमटी सरीखी पुलिस चौकी बनी हुई थी, पल भर को ठहर कर उसने जल्दी जल्दी वहां मौजूद पुलिसवालों से कुछ कहा, और उनके रोकने के बावजूद बायीं तरफ मुड़कर अंधाधुंध सड़क पर भागने लगा।
चौकी में उस घड़ी बस दो सिपाही थे, दोनों हाथ में डंडा लेकर पनौती के रास्ते में खड़े हो गये।
“वहीं रूक जा” - दोनों में से एक उसे ललकारता हुआ बोला – “वरना टांगे तोड़ दूंगा।”
पनौती ने उनके ललकारने की परवाह किये बिना उनके नजीक पहुंच कर यूं उनपर छलांग लगाई कि दोनों को लिये दिये जमीन पर जा गिरा। गिरकर उठा और उठकर भुवनेश के पीछे दौड़ पड़ा।
दोनों सिपाही हड़बड़ा कर जमीन से उठे, उठकर उसके पीछे लपके, तभी सतपाल वहां पहुंच गया।
भुवनेश और पनौती के बीच का फासला सिपाहियों के हस्तक्षेप की वजह से कुछ बढ़ जरूर गया था मगर अब लगातार घटता जा रहा था। दौड़ते-दौड़ते भुवनेश की सांसे बुरी तरह सांसे बुरी तरह से फूलने लगी थीं। उसे यूं महसूस हो रहा था जैसे किसी भी पल थककर वह जमीन पर जा गिरेगा।
सड़क पर दूर दूर तक छिप सकने लायक कोई जगह नहीं थी, ऐसे में दौड़ते रहने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
एक वक्त वह भी आया जब दोनों के बीच महज दस कदमों का फासला रह गया, भुवनेश के कदमों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। वह एकदम से रूक गया और पनौती की तरफ पलट कर लंबी लंबी सांसे लेने लगा।
पनौती एकदम उसके करीब पहुंच गया।
“दौड़ते कमाल का हो भाई” - वह हंसता हुआ बोला – “मजा आ गया, बहुत दिनों से कोई एक्सरसाइज़ नहीं की थी, आज तुम्हारे कारण जमकर हो गई, थैंक्यू।”
“मुझे जाने दो।” भुवनेश हांफता हुआ बोला।
“क्यों?”
“मैं जेल नहीं जाना चाहता।”
“तो फिर नहीं रंगना था खून से अपने हाथ।”
“मैं मजबूर था, अपनी बहन और उसके देवर की बेहयाई बर्दाश्त नहीं कर सका” - भुवनेश बोला – “जरा सोचकर देखो जब मैंने पहली बार उन दोनों को एक साथ बिस्तर पर देखा था तो मुझपर क्या गुजरी होगी?”
“बुरी ही गुजरी होगी, मगर किसी को सजा देने वाले तुम कौन होते हो?”
“तो क्या करता, थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवाता कि मेरी बहन का उसके देवर के साथ अफेयर है चलकर गिरफ्तार कर लो उन्हें, तब क्या पुलिस सचमुच उनको गिरफ्तार कर लेती?”
“नहीं ऐसा तो शायद नहीं होता।”
“फिर मेरे पास और क्या रास्ता बचा था?”
“तुम अनुराग को इस बारे में बता सकते थे?”
“उससे क्या हो जाता? दोनों अपनी हरकतों से बाज आ जाते?”
“क्या पता आ जाते, या नहीं आते, या फिर तुम्हारी जगह अनुराग ने ही दोनों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया होता।”
“तुम्हारे पास कोई हथियार है?” भुवनेश ने नया सवाल किया।
“क्यों पूछ रहे हो?”
“मुझे गोली मार दो यार प्लीज! उपकार होगा तुम्हारा मुझपर।”
“और खुद तुम्हारे कत्ल के इल्जाम में जेल चला जाऊं?”
“तो फिर मुझे दे दो, मैं खुद के हाथों ही अपनी जिन्दगी समाप्त कर लेता हूं।”
“नहीं मेरे पास कोई हथियार नहीं है, होता तो भी मैं तुम्हें आत्महत्या नहीं करने देता, क्योंकि कानूनन वह भी ऑफेंस की श्रेणी में ही आता है।”
“जैसे मरने के बाद पुलिस मुझपर एक नया चार्ज लगा ही देगी।”
“लगता है अपने किये पर पछतावा होने लगा है तुम्हें?”
“नहीं बिल्कुल नहीं।”
“तो फिर बहादुर बनो, पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दे दो। बच तो तुम वैसे भी नहीं सकते।”
“मैं बचना नहीं चाहता, मरना चाहता हूं, वैसे भी जेल जाने से तो बेहतर यही है कि मैं अपनी जान दे दूं।”
तभी हाथ में रिवाल्वर लिये सतपाल भी वहां आ खड़ा हुआ।
“क्यों बेवजह की भाग दौड़ कर रहे हो, मान क्यों नहीं लेते कि तुम्हारा खेल अब खत्म हो चुका है।”
“अभी नहीं, एक आखिरी कोशिश तो मैं कर के ही रहूंगा इंस्पेक्टर साहब।” कहकर उसने एकदम से सतपाल के रिवाल्वर वाले हाथ पर छलांग लगा दी, मगर पनौती पहले से उसके लिये तैयार था। रिवाल्वर तक उसके हाथ पहुंच पाने से पहले ही उसने भुवनेश को वापिस खींच लिया।
“बड़ी मुश्किल से तुम तक पहुंचे हैं भाई, इतनी आसानी से तो तुम्हें हाथ से नहीं निकलने दे सकते। इसलिए रहम करो, हमारी मेहनत का सिला हमें मिलने दो, खासतौर से इंस्पेक्टर साहब को, तुम भाग गये या मर गये तो ये किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे ये। नतीजा ये होगा कि इन्हें फॉस्ट फूड की दुकान लगानी ही पड़ेगी जो कि इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।”
तभी तेज गति से चलती पुलिस जीप वहां आ खड़ी हुई। भुवनेश को जबरन जीप के पिछले हिस्से में डाल दिया गया, पनौती और सतपाल दोनों उसके साथ बैठे।
ड्राइवर ने तत्काल जीप आगे बढ़ा दी।
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Bhai sahab jabardast dhamaka pack updates hai sabhi
Yakin nhi aata koi itna behtareen kaise likh sakta hai.
Pahle number pe humare Enigma bhai aur ab unke baad aapki lekhani badhiya lagi.
 
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थाने पहुंचकर जब करीम भाई से भुवनेश का आमना-सामना कराया गया तो उसने निःसंकोच उसकी शिनाख्त उस शख्स के रूप में कर दी जिसे उसने बत्तीस कैलिबर की रिवाल्वर बेची थी। मुन्ना ने भी उसे फौरन पहचान लिया। इसके बाद पुलिस ने भुवनेश की उंगलियों के निशान ले कर उसका मिलान रिवाल्वर से उठाये गये फिंगर प्रिंट से किया तो दोनों हू-ब-हू मिलते पाये गये।

लिहाजा पुलिस के पास उसको कातिल साबित करने के प्रमाण भी अब उपलब्ध हो चुके थे। उसे तत्काल हवालात में डाल दिया गया।

उस काम से फारिग होकर सतपाल ने एडवोकेट ब्रजेश यादव को अपने कमरे में तलब किया, जब उसे पता चला कि दोनों हत्यायें भुवनेश ने की थी तो सुनकर वह हैरान हुए बिना नहीं रह सका।

“अब मेरे लिये क्या हुक्म है?” जी भरकर हैरान होने के बाद उसने सतपाल से पूछा।

“बेशक आप आजाद हैं, मगर जाने से पहले एक बात का जवाब देकर जाइये” - सतपाल बोला – “बंगले में अपनी गिरफ्तारी के वक्त आपने मीनाक्षी पर इल्जाम लगाया था कि सालों पहले अपने पति का कत्ल भी उसी ने किया था। मैं जानना चाहता हूं कि वह आरोप आप ने उसपर यूं ही गुस्से में लगा दिया था या सचमुच आपको पता है कि अपने पति की कातिल वही है?”

“कहना मुहाल है, एक बार ड्रिंक के दौरान उसने मेरे सामने वह बात कबूल भी कर ली थी, मगर होश मे आने के बाद जब मैंने उससे सवाल किया तो वह बोली कि नशे में यूं ही उसने कुछ बक दिया होगा। ऐसे में अगर वह कातिल है भी तो मुझे नहीं लगता कि कत्ल के सालों बाद अब उसका किया-धरा साबित किया जा सकता है।”

“ठीक कहते हैं आप, बहरहाल सहयोग के लिये शुक्रिया वकील साहब, अब आप जा सकते हैं।”

यादव कमरे से बाहर निकल गया।

इसके बाद मुकेश दीक्षित को भी फौरन रिहा कर दिया गया।

उस वक्त सतपाल और पनौती कॉफी पी रहे थे, जब सतपाल उससे पूछ बैठा, “तुम्हें भुवनेश पर शक कब हुआ?”

“मेरी निगाहों में तो वह पहले से ही था, क्योंकि पूरे केस में वह इकलौता शख्स था, जिसका कहीं कोई खास जिक्र नहीं उठ रहा था। प्रियम का कत्ल खिड़की के बाहर खड़े होकर किया गया था, ये बात तो मैं तभी समझ गया था जब पहली बार हम लोग उसके बंगले पर घटना स्थल का मुआयना करने पहुंचे थे। मगर आज दिन में जब वह अनुराग से मिलने के बाद खुद को कातिल बताने लगा तो पल भर को मुझे भी यही लगा था कि जीजा को बचाने की खातिर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हो गया था, मगर तुरंत बाद जब उसने कत्ल कैसे किया? बताना शुरू किया तो उसकी पूरी बात सुनने के बाद मुझे फौरन यकीन आ गया कि मेरा शक सही था, कातिल उसके अलावा कोई और हो ही नहीं सकता था।”

“बावजूद इसके कि वह अनुराग से वादा कर के आया था कि उसे जेल नहीं जाने देगा?”

“हां, जरा याद करो कि अनुराग से मिलने की बात उसने कब कही थी?”

“जब हमने बंगले की तलाशी लेने की बात कही।”

“और ऐसा उसने इसलिये किया क्यों कि बंगले की तलाशी वाली बात पर वह घबरा उठा था, कत्ल के बाद रिवाल्वर उसने पानी की टंकी में डाल दिया था, बाद में कल्पना के जेवर भी उसने वहीं पहुंचा दिये, उसका इरादा मौका मिलते ही दोनों चीजों को वहां से गायब कर देने का रहा होगा, मगर वैसा करने का मौका उसे हासिल नहीं हो पा रहा था। ऐसे में रिवाल्वर से फिंगर प्रिंट बरामद होने की उम्मीद उसे भले ही न रही हो, लेकिन वह इतना जरूर समझता था कि रिवाल्वर बरामद होने के बाद पुलिस उस शख्स का पता लगाने की कोशिश जरूर करेगी जिसने वह रिवाल्वर कातिल को बेची थी। ऐसे में उसका भेद खुल जाना महज वक्त की बात थी। तभी बंगले की तलाशी वाली बात सुनकर उसने पैंतरा बदला था, अनुराग से मिलते वक्त किसी कारण से उसे यकीन था कि उस कमरे में वह जो कुछ भी कहेगा, पुलिस उसे सुन सकने में सक्षम होगी, या फिर उसने ये सोचकर कोशिश की कि क्या पता उसकी बातें पुलिस के कानों तक पहुंच ही जायें। अलबत्ता वैसा नहीं भी हुआ होता तो अनुराग से मिलकर लौटने के तुरंत बाद जब वह ये कहता कि दोनों हत्यायें उसने की थीं, तो सभी यही समझते कि अनुराग को बचाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में बतौर कातिल किसी को उसपर शक होता भी तो हाथ के हाथ दूर हो जाता।”

“वही हुआ था, हालांकि मुझे उसपर कोई खास शक कभी नहीं था, मगर उसकी स्वीकृति ने फौरन मेरे मन में ये बात बैठा दी थी कि कातिल वह नहीं हो सकता। मगर एक बात फिर भी समझ में नहीं आती, वैसा कर के वह हमें बंगले की तलाशी लेने से कैसे रोक सकता था?”

“नहीं रोक सकता था, मगर कोशिश तो वह कर ही रहा था, याद करो जब उसकी बात सुनने के बावजूद तुमने बंगले की तलाशी का अपना निर्णय नहीं बदला तो कैसे उसने तड़प कर दिखाया था। ऊपर से उसे इस बात का भी यकीन रहा हो सकता है कि टंकी से रिवाल्वर और जेवर बरामद होने के बावजूद तुम्हारा शक उसकी तरफ नहीं जायेगा क्योंकि वह खुद कह रहा था कि कातिल वही है। ऐसे में वक्त हासिल होने पर वह मुन्ना या करीम भाई से मिलकर उस मुसीबत से बचने का कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर सकता था।”

“और अगर हमने उसकी कहानी पर यकीन कर के उसे गिरफ्तार कर लिया होता तो वह क्या करता?”

“तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते थे, क्योंकि पूरी कहानी सुनाते वक्त उसने जानबूझ केस में इतनी कसर बाकी छोड़ दी थी, जिसकी वजह से तुम चाह कर भी उसे कातिल नहीं मान सकते थे।”

“क्या?”

“रिवाल्वर और कल्पना के जिस्म से उतारे गये जेवरों के बारे में उसने बताया था कि दोनों चीजों को वह बंगले के बाहर से गुजरते कुड़े के ट्रक में फेंक चुका था, ऐसे में दोनों चीजों के टंकी से बरामद होने पर कोई भी सहज ही ये अंदाजा लगा सकता था कि वह कातिल नहीं हो सकता, होता तो रिवाल्वर और जेवर पानी की टंकी से बरामद नहीं हो गये होते। ऐसे में तुम भला उसे गिरफ्तार करने की जहमत क्यों उठाते?”

“बावजूद इन सभी बातों के तुम कहते हो कि उसकी कहानी पर तुम्हें फौरन यकीन आ गया था, हैरानी की बात है।”

“नहीं होनी चाहिये” - पनौती बोला – “क्योंकि यहां खड़े होकर उसने जो कहानी हमें सुनाई थी, उसमें हमारे हर सवाल का जवाब मौजूद था, तब तक हम यही सोच रहे थे कि वैसा हुआ हो सकता था, किसी ने खिड़की के बाहर खड़े होकर गोली चलाई हो सकती थी। जबकि वह कील ठोंक कर कह रहा था कि उसने प्रियम और कल्पना की हत्या को किस तरह से अंजाम दिया था। उतनी बातें हाथ के हाथ नहीं गढ़ी जा सकती थीं, ऐसी कहानी फौरन नहीं तैयार की जा सकती थी, जिसके बारे में पुलिस अभी अटकलें भर लगा रही थी। ऊपर से रिवाल्वरों की अदला-बदली की वजह तो पूरी तरह हमारे समझ से परे थी, जब कि उसने फौरन बता दिया कि दोनों रिवाल्वरों को बदलने की नौबत क्यों आई थी, और किस तरह कत्ल के बाद उसने एक बार फिर से एक निर्दोष रिवाल्वर को कमरे में सबकी मौजूदगी के दौरान आला-ए-कत्ल से बदल दिया था। ये सारी बातें यूं ही तुक्के में नहीं कही जा सकती थीं। इनके दो ही मतलब निकलते थे, नंबर एक कत्ल होते उसने अपनी आंखों से देखा था, नंबर दो वह खुद कातिल था। पहली बात इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि अगर उसने कत्ल होते अपनी आंखों से देखा होता तो उस बाबत खामोश रहने की उसके पास कोई वजह नहीं थी, इसलिए दूसरी बात सही थी और वह यही थी कि भुवनेश ही कातिल था।”

“जवाब नहीं है तुम्हारा शर्मा साहब” - सतपाल तारीफी लहजे में बोला – “मैं हैरान हूं कि तुम इतनी बारीक बातें नोट कैसे कर लेते हो, जबकि हो एक नंबर के लापरवाह इंसान।”

“उसकी वजह थी” - वह बोला – “पिछली दो तीन रातों को मैं ढंग से सो नहीं पाया था, इसलिए नींद पूरी करने की खातिर मैंने अपना दिमाग दौड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब कम से कम घर जाकर चैन से सो तो सकूंगा।”

सुनकर सतपाल हंस पड़ा।

“एक सवाल अभी भी अधूरा रह गया।” पनौती बोला।

“कौन सा?”छत पर तुम्हारे ऊपर गोली किसने चलाई थी?”

“मेरे ऊपर? उसपर क्या मेरा नाम लिखा था?”

“हम दोनों के ऊपर ही सही, मगर चलाई किसने थी?”

“भुवनेश के अलावा भला किसने किया होगा वह काम, वैसे उस बारे में कबूल करने या ना करने से अब उसका कोई अला-भला नहीं होने वाला। मगर एक बात तो तय है कि वह गोली भी टंकी से बरामद रिवाल्वर से ही चलाई गई थी, वैसे भी उसके चैंबर में एक बुलेट कम है।”

पनौती ने समझने वाले अंदाज में मुंडी हिला दी।
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23 जुलाई 2021
अगले रोज कोमल की कोर्ट में पेशी हुई जहां नये मुलजिम की गिरफ्तारी की सूरत में अदालत ने फौरन उसकी रिहाई के हुक्म दे दिये। साथ ही पुलिस को उनकी कोताही के लिये जमकर फटकार भी लगायी। न्यायाधीश ने ये तक कह दिया कि ‘अगर कोमल शर्मा चाहे तो पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ कंप्लेन कर सकती है।’

इसके बाद पुलिस की तरफ से सरकारी वकील ने मुलजिम के एक सप्ताह के रिमांड की दरख्वास्त लगाई जो कि फौरन कबूल हो गयी।

अदालत से कोमल से को वापिस जेल ले जाया गया जहां से शाम चार बजे के करीब उसे रिहा कर दिया गया। उस वक्त उसके मां-बाप के साथ राज और डॉली भी मौजूद थे।

जेल से बाहर आकर जैसे ही उसकी निगाह पनौती पर पड़ी, वह दौड़कर उससे लिपट गई, आंखों से झर झर आंसू बह निकले। राज ने सांत्वना भरे अंदाज में उसकी पीठ पर थपकी दी और उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा।

उस दौरान डॉली उसके करीब खिसक आई, फिर राज के कानों में फुसफुसाती हुई बोली, “बस अब बहुत हो गया शर्मा जी।”

राज ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, कुछ क्षण बाद कोमल खुद उससे अलग होकर आंसू पोंछने लगी।

इसके बाद वह दोनों को बार-बार थैंक्यू बोलती हुई अपने पेरेंट्स की कार में जा बैठी।

“अब चलें?” डॉली ने पूछा।
हाथ
“हां चलो।”

दोनों डॉली की स्कूटी पर सवार हो गया, थोड़ा आगे जाते ही डॉली ने उसकी कमर में हाथ डालना चाहा तो पनौती उसके झटकता हुआ बोला, “सीधी होकर बैठो।”

“क्यों” - वह झल्लाकर बोली – “मुझमें क्या कांटे लगे हैं, जबकि कोमल के साथ यूं चिपके पड़े थे जैसे उसे गोद में उठाकर घर पहुंचाकर आओगे।”

पनौती ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
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रिमांड अवधी में इंस्पेक्टर सतपाल सिंह ने जब भुवनेश से विस्तृत पूछताछ की तो कई हैरान कर देने वाली बातें सामने आईं। जिनमें सबसे अहम बात ये थी कि कल्पना और प्रियम की हत्या की वजह सिर्फ दोनों के बीच चले आ रहे संबंध ही नहीं थे, बल्कि उन दो करोड़ रूपयों की भी बहुत बड़ी भुमिका थी जो भुवनेश अपने जीजा अनुराग से हासिल करने की फिराक में बंगले में डेरा डालकर बैठा हुआ था।

भुवनेश ने पुलिस को बताया कि अनुराग उसकी मदद करने भले ही फौरन तैयार हो गया था, मगर प्रियम की मर्जी के खिलाफ वह रूपया उसे दे पाने की स्थिति में नहीं था। उस बारे में जब अनुराग ने अपने छोटे भाई से बात की तो उसने साफ-साफ इंकार कर दिया। तब भुवनेश ने अपनी बहन को भी मनाने की बहुतेरी कोशिशें की मगर कल्पना तैयार नहीं हुई क्योंकि वह अपने भाई की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी। वह पहले भी अपने बाप की गाढ़ी कमाई में से करोड़ों रूपये यूं ही किसी ना किसी बिजनेस के हवाले से बर्बाद कर चुका था। इसलिए आगे भी उसे भुवनेश के कामयाब हो जाने की कोई उम्मीद नहीं थी।

लेकिन भुवनेश ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और लगातार उसे इस बात के लिये मनाने की कोशिश करता रहा कि वह किसी भी तरह प्रियम को उसे पैसे देने के लिये राजी कर ले।

तब आखिरकार कल्पना ने उस बारे में अपने पिता से बात की, जिसने साफ-साफ कह दिया कि भुवनेश को एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं थी। कल्पना ने वह बात भुवनेश को बताई तो वह आगबबूला हो उठा।

बहन और उसके देवर के बीच के संबंधों से वह पहले ही खार खाये बैठा था, ऐसे में कल्पना के इंकार ने जलती आग में घी डालने का काम किया। नतीजा ये हुआ कि उसने मन ही मन प्रियम को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया।

प्रियम की अलमारी में रखी उसकी रिवाल्वर की भुवनेश को पहले से ही खबर थी। घटना से दस-बारह रोज पहले एक दिन उसने उस रिवाल्वर की फ़ोटो खींची और बाद में करीम भाई के जरिये ऐन वैसी ही पिस्तौल हासिल करने में कामयाब हो गया।

पहले उसका इरादा प्रियम की कनपटी पर उसी की पिस्तौल सटाकर गोली मार देने का था ताकि उसे आत्महत्या की वारदात साबित किया जा सके। उसे पूरी उम्मीद थी कि कोमल और प्रियम में आये दिन होने वाली नोंक झोंक के कारण सहज ही ये समझ लिया जायेगा कि बीवी से तंग आकर उसने मौत को गले लगा लिया था।

मगर कत्ल वाली रात जब उसने दोनों को झगड़ते और फिर कोमल को पति पर रिवाल्वर तानते देखा तो प्रियम के कत्ल का मौका उसे सहज ही हासिल हो गया।

प्रियम को ठिकाने लगाने के बाद वह कुछ ठहर कर कल्पना की जान लेना चाहता था, मगर उस काम को जल्दी इसलिए अंजाम देना पड़ा क्योंकि प्रियम के कत्ल के बाद जब पुलिस ने केस को रीइंवेस्टिगेट करना शुरू किया तो कल्पना को अपने भाई पर शक हो आया कि प्रियम की हत्या उसी ने की थी। ऐसे में एक रोज जब उसने भुवनेश पर साफ-साफ ये जाहिर कर दिया कि प्रियम का हत्यारा वही है तो उसको फौरन ठिकाने लगाने के अलावा उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचता था।

नतीजा ये हुआ कि उसने आनन-फानन में कल्पना का कत्ल प्लान किया और हत्या वाली रात उससे पहले छत पर जाकर टंकी के पीछे छिपकर बैठ गया। अपनी रूटीन के मुताबिक कल्पना ठीक नौ बजे छत पर टहलने पहुंची तो भुवनेश ने उसपर छलांग लगा दी। मगर कल्पना पर काबू पाना आसान काम साबित नहीं हुआ। दोनों के बीच काफी देर तक उठा-पटक होती रही जिसके बाद आखिरकार भुवनेश उसका गला घोंटने में कामयाब हो गया।
लाश को छत से नीचे फेंकने से पहले उसने कल्पना के जेवर उतार लिये जिसके पीछे अहम वजह उसका लालच ही था, मगर साथ ही उसने ये भी सोचा कि जेवरों की गैरमौजूदगी में पुलिस उसे किसी बाहर के आदमी का काम समझ सकती थी, जिसने लूटने की खातिर उसकी हत्या कर दी थी।

सतपाल और पनौती पर गोली चलाने वाली बात भी उसने कबूल कर ली, उस बारे में उसने पुलिस का बताया कि उसका इरादा दोनों में से किसी की भी जान लेने का नहीं था, बल्कि अपने उस एक्ट के जरिये वह पुलिस का ध्यान एडवोकेट ब्रजेश यादव की तरफ खींचना चाहता था। जिसके पेट्रोल का बिल सहज ही उस वक्त उसके हाथ लग गया था, जब दिन में बंगले में पहुंचकर उसने जेब से अपना मोबाइल निकाला था। तभी वह पर्ची मोबाइल के साथ जेब से बाहर निकल कर फर्श पर जा गिरी थी, जिसकी खबर किसी को नहीं लगी।

उस वक्त उसने यूं ही बिना किसी मकसद के वह पर्ची उठाकर अपनी जेब में रख ली, जिसका उपयोग उसे तब सूझा जब सतपाल और पनौती कल्पना की लाश के पास से हटकर छत की तरफ जाते दिखाई दिये। रिवाल्वर उसने अनुराग के कमरे में अटैच्ड बॉथरूम के कॉमोड की पानी वाली टंकी के भीतर छिपा रखी थी। जिसे वहां से निकाल कर मुख्य सीढ़ियों की बजाये फायर स्केप के रास्ते छत पर पहुंच गया। जहां वकील के पेट्रोल का बिल उसने सीढ़ियों के दहाने के पास फेंक दिया और रिवाल्वर निकालकर एक गोली चला दी।

इससे पहले की वह दोनों उस तक पहुंच पाते, तेजी सी सीढ़ियां उतरकर वह दूसरी मंजिल के स्टोर रूम में छिप गया। और इंतजार करने लगा। जब दोनों में से कोई भी वहां पहुंचता नहीं दिखाई दिया तो रिवाल्वर को स्टोर में छिपाकर वह वह वापिस बंगले के पिछले हिस्से में जा खड़ा हुआ, जहां फोरेंसिक डिपार्टमेंट अपने काम में लगा हुआ था।

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25 जुलाई 2021

पनौती किचन में अपने लिये चाय तैयार कर रहा था जब बेडरूम में रखा उसका मोबाइल रिंग होने लगा।
कॉल डॉली की थी, उसने अटैंड की।

“शाम को क्या कर रहे हो?”

“क्यों पूछ रही हो?”

“कोमल के घर में एक बड़ी पार्टी है, वह चाहती है कि तुम भी उस पार्टी में शिरकत करो।”

“कितने बजे?”

“सात बजे का बुलावा है।”

“ठीक है मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा।” कहकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।

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पौने सात बजे के करीब पनौती सूट बूट पहन कर घर से बाहर निकला, कोमल का घर वहां से पास में ही था, इसलिए उसने पैदल वहां जाने का फैसला किया।

पल्ला वाली पुलिया पर पहुंचकर वह बायीं तरफ सड़क पर बने जेब्रा क्रॉसिंग की तरफ बढ़ने ही लगा था कि एक शख्स डिवाइडर के ऊपर से छलांग लगाता दिखाई दिया।

वह पच्चीस-तीस साल का सजीला युवक था, जिसका पहनावा बताता था कि किसी अच्छे घर से ताल्लुक रखता होगा।

पनौती जहां का तहां ठिठक गया। उसने युवक के अपने करीब पहुंचने का इंतजार किया फिर ज्यों ही वह उसके करीब से गुजरने को हुआ पनौती ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया।

“क्या हुआ?” युवक बड़ी रूखाई से बोला।

“डिवाइडर के जरिये सड़क पार करना खतरनाक होता है भाई, सरकार ने जगह-जगह जेब्रा क्रॉसिंग इसीलिये बनाई है ताकि सड़क हादसों पर लगाम लगाई जा सके।”

“तू पुलिस वाला है?”

“नहीं।”

“तो कानून क्यों झाड़ रहा है, हाथ छोड़ मेरा।”

“लगता है तुमने मेरी बात ध्यान से नहीं सुनी, सुना होता तो तुम्हें अपनी गलती का एहसास जरूर हुआ होता, तुम चाहो तो तुम्हारी खातिर मैं अपनी बात दोहरा सकता हूं।”

“एहसान मत कर स्साले, हाथ छोड़ मेरा।”

“गाली नहीं देते भाई, गाली देना बुरी बात होती है।”

“क्यों दिमाग की दही कर रहा है स्सा...।”

पनौती ने एक जोर का थप्पड़ उसके गालों पर दे मारा, “कहा था न गाली देना बुरी बात होती है।”

थप्पड़ से तिलमिलाये उस शख्स ने पनौती पर फौरन घूंसा चला दिया। मगर ऐन वक्त पर पनौती यूं पीछे को धनुषाकार अंदाज में झुक गया कि उसका हाथ ठोड़ी के सामने से गुजर गया।

तत्काल वह सीधा हुआ, “क्यों फसाद कर रहा है भाई, अपनी गलती मान लेगा तो क्या कयामत बरप जायेगी?”

“तू जानता नहीं है मैं कौन हूं?”

“अगर ऐसा है तो खुद क्यों नहीं बता देता।”

“मेरे पापा इलाके के थाने में सब-इंस्पेक्टर हैं।”

“बजाते खुद तेरी भी तो कोई औकात होगी भाई, पुलिसिया बाप को क्यो बीच में ला रहा है?”

“इसलिए क्योंकि मुझपर हाथ उठाकर तूने बहुत बड़ी गलती कर दी है, अब नहीं बचने वाला तू।”

“क्या करेगा, पुलिस में कंप्लेन करेगा?”हां करूंगा, एक बाप की औलाद है तो बस पांच मिनट यहां खड़ा रह, भागने की कोशिश मत करना।”

“नहीं करूंगा।” पनौती शांत लहजे में बोला।

युवक ने मोबाइल निकालकर कोई नंबर डॉयल किया फिर कॉल अटैंड होते ही बोला, “पापा।”

“क्या हुआ?”

“पल्ला वाली पुलिया के पास एक लड़के ने मेरे साथ बहुत मारपीट की है, आप जल्दी से यहां आ जाओ।”

“मैं उधर ही हूं अभी पहुंचता हूं, जाने मत देना स्साले को।”

कहकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।

“मैंने तुझे बहुत मारा है” - पनौती हैरानी से बोला – “किसी को एक थप्पड़ मारना बहुत मारने जैसा होता है?”

“तू आने तो दे पापा को मैं इससे भी कहीं ज्यादा भयानक ढंग से सारा किस्सा सुनाऊंगा उन्हें, तब देखना तू कैसे जेल की चक्की पीसता है।”

“ठीक है भाई ऐसा है तो यही सही, माफ कर देना मुझे।”

“माफी तो अब तुझे नहीं मिलेगी।”

पनौती ने तत्काल उसके पेट में घूंसा चला दिया, वह जोर से डकारा, चिल्लाता हुआ दोहरा हुआ तो उसकी ठुड्डी पर घुटना मार दिया। इसके बाद उसे जमीन पर गिराकर दो तीन लातें उसकी पसलियों में जड़ दीं।

“अब ठीक है” - वह संतुष्टि भरे स्वर में बोला – “समझ ले मैंने तुझे झूठ बोलने के पाप से बचा लिया।”

तभी एक पुलिस जीप वहां पहुंचकर स्थिर हो गई। उसमें से उतरकर दो पुलिस वालों ने पनौती को दायें-बायें से थाम लिया। तीसरा पनौती को पहचानता था, वह हैरानी से उसकी तरफ देखता हुआ बोला, “अरे शर्मा साहब आप! इतनी जल्दी नया बखेड़ा खड़ा भी कर दिया आपने?”


समाप्त
Frends story kaisi lagi Bayana jarur
 

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