- 1,170
- 1,357
- 143
रिवाल्वर तूने खुद उसे बेची थी या फिर लड़के को किसी और के पास भेज दिया था?”
“हासिल तो मैंने किसी और से किया, मगर सौदा हम दोनों के बीच ही हुआ था, अलबत्ता उसकी पसंद की रिवाल्वर का इंतजाम करने में मुझे दस बारह दिन लग गये थे।”
“कैसी रिवाल्वर चाहता था वह?”
“बत्तीस कैलिबर की, उसकी एक फोटो भी दिखाई थी उसने, कहता था रिवाल्वर भले ही किसी काम की न हो मगर देखने में एकदम वैसी ही होनी चाहिये, जैसी रिवाल्वर की फोटो वह मुझे दिखा रहा था।”
“मुलाकात कहां हुई थी उससे तेरी?”
“यहीं, इसी जगह, पहली बार भी और दूसरी बार भी।”
“गुड अब उठकर खड़ा हो जा।” कहते हुए पनौती ने बांह पकड़ कर जबरन उसके पैरों पर खड़ा कर दिया।
“अभी तुझे हमारे साथ चलना है और रू-ब-रू उस शख्स की पहचान कर के दिखानी है, कोई आना-कानी नहीं चलेगी।”
“तू है कौन भाई?”
“पनौती!” - वह बोला – “मेरे नाम का मतलब तो तू समझता ही होगा, एक बात और समझ ले, तेरा बुरा टाइम उसी वक्त शुरू हो गया था जब मैंने तेरे इस मकबरे जैसे घर में कदम रखा था, आगे अगर और दुर्गति नहीं कराना चाहता तो कोई फसाद करने की कोशिश मत करना, वरना तुझे गोली मारते हुए मैं एक क्षण को भी नहीं हिचकूंगा, समझ गया?”
करीम भाई ने जल्दी से मुंडी हिलाकर हामी भर दी।
“दरवाजे को ताला लगाना चाहता है तो बेशक लगा ले।”
उसने वह काम भी किया, इसके बाद पनौती ने उसे ले जाकर स्विफ्ट के भीतर धकेल दिया। वहां मुन्ना पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र फैल गये।
इस बार पनौती आगे वाली सीट पर बैठा, मगर यूं बैठा कि पूरे रास्ते दोनों के ऊपर से क्षण भर को भी उसकी निगाह नहीं हटी। रास्ते में पनौती ने सतपाल का मोबाइल मांगकर उसमें मौजूद मिस्टर एक्स की तस्वीर करीम भाई को दिखाई तो उसने झट हामी भर दी।
तेज रफ्तार से दौड़ती कार, पंद्रह मिनट बाद ज्यों ही थाने में दाखिल हुई, मुन्ना और करीम भाई का चेहरा यूं निचुड़ गया जैसे बैठे बैठे मर गये हों।
भीतर पहुंचकर सतपाल ने दोनों को हवालात में डाल दिया। इसके बाद वह पनौती के साथ अपने कमरे में पहुंचा, जहां अपनी वर्दी पहन चुकने के बाद उसने करीम भाई को तलब किया। फिर मीनाक्षी के बंगले से बरामद रिवाल्वर उसके सामने रखता हुआ बोला, “देखकर बता कि यह वही रिवाल्वर है या नहीं, मगर हाथ लगाने की कोशिश मत करना।”
“लगती तो वही है साहब, मगर इस जैसी दूसरी रिवाल्वर भी तो ऐसी ही दिखेगी।”
“कोई शिनाख्ती निशान रहा हो इसपर?”
“इसका सीरियल नंबर रेती से घिसकर मिटा दिया गया है, मगर शुरू का ‘जे’ उस वक्त भी साफ नजर आ रहा था जब मैंने ये रिवाल्वर उसे सौंपी थी।
सतपाल ने रिवाल्वर की नाल में पेन डालकर ऊपर उठाया फिर ध्यान से उसके सीरियल नंबर का मुआयना किया तो पाया कि वह ठीक कह रहा था। तमाम नंबरों में से ‘जे’ ही एक ऐसा शब्द था जो करीब करीब मिट चुकने के बाद भी अभी पढ़ने में आ रहा था।
करीम भाई को वापिस हवालात में डाल दिया गया।
उस काम से फारिग होकर सतपाल ने फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को फोन कर के थाने आने को कह दिया।
फिर एक सिपाही को चाय का बंदोबस्त करने को कहा जो की करीब पांच मिनट में सर्व कर दी गई।
चाय खत्म होने के करीब दस मिनट बाद फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट भी वहां आ पहुंचा।
सतपाल ने पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसके हवाले कर दी। अपने बैग से एक कैमरा निकालकर एक्सपर्ट तत्काल अपने काम में जुट गया।
पांच मिनट तक दोनों दम साधे उसके जवाब का इंतजार करते रहे।
“तीन तरह के फिंगर प्रिंट हैं इसपर” - आखिरकार एक्सपर्ट अपने काम से फारिग होता हुआ बोला – “जिनमें से एक जनाना जान पड़ता है, क्योंकि निशान बेहद पतली उंगलियों के हैं, काफी हद तक अस्पष्ट हैं, अलबत्ता आप किन्हीं खास प्रिंट से मिलान करना चाहें तो काम में आ सकता है, दूसरा यकीनन किसी मर्द का है और जनाना प्रिंट की अपेक्षा हालिया बना दिखता है, तीसरा प्रिंट रिवाल्वर की नाल पर है जो कि सिर्फ दो उंगलियों का है मगर एकदम स्पष्ट है।”
“आखिरी वाले की हमें कोई जरूरत नहीं है, बाकी दोनों के प्रिंट मुझे देकर जाओ।”
“दो मिनट वेट कीजिये अभी लेकर आता हूं।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।
“ये तो कमाल ही हो गया।” पनौती बोला।
“बेशक हो गया, सच पूछो तो मुझे खुद भी यकीन नहीं था कि पानी में पड़ी रिवाल्वर पर अभी तक फिंगर प्रिंट मौजूद हो सकते हैं।”
“जीवन में पहली बार तुमने तारीफ के काबिल काम किया है सतपाल साहब, मेरी बधाई कबूल करो।”
“किया।” वह हंसता हुआ बोला।
दोनों इंतजार करते रहे।
दो की बजाये वह पंद्रह मिनट बाद वापिस लौटा। दोनों प्रिंट उसने सतपाल के हवाले कर दिये और वापिस लौट गया।सतपाल ने प्रियम शर्मा के केस की फाइल निकाली फिर उसमें से छांटकर कोमल के फिंगर प्रिंट की कॉपी को मेज पर रखा और हासिल निशानों से उनका मिलान किया तो दोनों निशान हू-ब-हू मिलते पाये गये।
जिसका मतलब ये था कि प्रियम के कत्ल के वक्त कोमल के हाथ में वही रिवाल्वर थी जो कि पानी की टंकी से बरामद हुई थी।
अलबत्ता दूसरे निशान के कंपरीजन के लिये कातिल के उंगलियों के निशान उनके पास मौजूद नहीं थे, इसलिए फिलहाल उस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था।
“अब चलें?” सतपाल फाइल को वापिस रखता हुआ बोला।
“बेशक चलो।”
पुलिस जीप में सवार होकर दोनों एक बार फिर मीनाक्षी के बंगले में पहुंचे।
“भीतर कौन कौन है?” सतपाल ने गार्ड से पूछा।
“सब लोग हैं, संजीव साहब भी भीतर मौजूद हैं।”
सुनकर दोनों जीप से नीचे उतर आये।
गार्ड ने तत्काल दरवाजा खोल दिया।
भीतर सबसे पहले उनका आमना-सामना अनुराग शर्मा से हुआ।
“अरे इंस्पेक्टर साहब आप?” पूरे केस में पहली बार वह इतने सम्मानित ढंग से पेश आया था।
“जी हां मैं।”
“कहिये।”
इससे पहले कि सतपाल उसकी बात के जवाब में कुछ कहता, ड्राईंग रूम में बैठे भुवनेश, मीनाक्षी और संजीव चौहान उठकर उनके पास पहुंच गये। जिस जगह से उठकर तीनों वहां पहुंचे थे, वहां सेंटर टेबल पर तरह-तरह की खाने की चीजें और बीयर से लबालब भरे चार गिलास रखे हुए थे, लिहाजा वहां सेलिब्रेशन चल रहा था। जवान बेटे और बहू की मौत का मातम मनाने की बजाये घर के लोग पार्टी कर रहे थे।
“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?” अनुराग बोला।
“अब दिये देता हूं, बात ये है अनुराग साहब कि यहां हम आपके भाई और बीवी के हत्यारे को गिरफ्तार करने के लिये आये हैं।”
“वो तो ब्रजेश यादव है, आपने ही बताया था।”
“गलत बताया था, क्योंकि कातिल इस वक्त आपकी आंखों के सामने मौजूद है, वकील साहब तो समझ लीजिये इस वक्त हमारी मेहमानवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं।”
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है इंस्पेक्टर” - मिनाक्षी झल्लाकर बोली – “पहले तुमने अनुराग को कातिल ठहराया, फिर यादव को यहां से गिरफ्तार कर के ले गये और अब कहते हो कि कातिल कोई और ही है।”
“बेशक कहता हूं, मगर इत्मीनान रखिये ये आखिरी बार है, आज के बाद आपसे मैं कातिल के बारे में कोई सवाल नहीं करूंगा।”
“तो फिर हत्यारा कौन है?” अनुराग ने पूछा।
“आपका साला” - उसने जैसे कोई बम फोड़ दिया हो – “भुवनेश।”
सब हकबकाकर उसकी शक्ल देखने लगे।
“ये कातिल नहीं हो सकता, भला अपनी बहन के कत्ल की इसके पास क्या वजह हो सकती है?”
“बेशक यही है, अभी थोड़ी देर पहले हमने करीम भाई नाम के एक ऐसे शख्स को ढूंढ निकाला है जो कबूल करता है कि पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसने इसी को बेची थी।”
इससे पहले कि अनुराग या मीनाक्षी उसकी बात के जवाब में कुछ और कहते, भुवनेश ने अपने ठीक सामने खड़े सतपाल को जोर से धक्का दिया और हॉल से बाहर की तरफ भागा।
पनौती उसके पीछे दौड़ा।
“यकीन आ गया आपको?” सतपाल खुद को गिरने से संभालता हुआ बोला, फिर पनौती के पीछे दौड़ पड़ा।
लोहे के फाटक का सब-डोर खुला हुआ था, आंधी-तूफान की तरफ दौड़ते भुवनेश ने गेट पार किया और फौरन बाहर से कुंडी लगा दी।
पनौती ने दरवाजा खुलवाने में वक्त जाया नहीं किया, थोड़ा दायें हटकर उसने उछल कर बाउंड्री वॉल की मुंडेर पकड़ी और ऊपर चढ़कर दूसरी तरफ कूद गया।
भुवनेश उसे तीस चालीस कदमों की दूरी पर भागता दिखाई दिया।
पनौती ने अपना रफ्तार बढ़ा दी। मगर दो मिनट तक लगातार दौड़ते रहने के पश्चात भी उनके बीच का फासला कम होता नहीं दिखाई दिया।
एक किलोमीटर आगे मुख्य सड़क थी जहां पहुंचकर उसे पकड़ पाना ज्यादा मुश्किल हो जाने वाला था। पनौती ने नये सिरे से अपनी रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की, दोनों आगे-पीछे भागते रहे।
इस वक्त उनकी रफ्तार देखते बनती थी। दोनों में से कोई भी कमतर नजर नहीं आ रहा था।
आखिरकार भुवनेश मुख्य सड़क पर पहुंच गया, जिसके ऐन कोने पर एक छोटी सी गुमटी सरीखी पुलिस चौकी बनी हुई थी, पल भर को ठहर कर उसने जल्दी जल्दी वहां मौजूद पुलिसवालों से कुछ कहा, और उनके रोकने के बावजूद बायीं तरफ मुड़कर अंधाधुंध सड़क पर भागने लगा।
चौकी में उस घड़ी बस दो सिपाही थे, दोनों हाथ में डंडा लेकर पनौती के रास्ते में खड़े हो गये।
“वहीं रूक जा” - दोनों में से एक उसे ललकारता हुआ बोला – “वरना टांगे तोड़ दूंगा।”
पनौती ने उनके ललकारने की परवाह किये बिना उनके नजीक पहुंच कर यूं उनपर छलांग लगाई कि दोनों को लिये दिये जमीन पर जा गिरा। गिरकर उठा और उठकर भुवनेश के पीछे दौड़ पड़ा।
दोनों सिपाही हड़बड़ा कर जमीन से उठे, उठकर उसके पीछे लपके, तभी सतपाल वहां पहुंच गया।
भुवनेश और पनौती के बीच का फासला सिपाहियों के हस्तक्षेप की वजह से कुछ बढ़ जरूर गया था मगर अब लगातार घटता जा रहा था। दौड़ते-दौड़ते भुवनेश की सांसे बुरी तरह सांसे बुरी तरह से फूलने लगी थीं। उसे यूं महसूस हो रहा था जैसे किसी भी पल थककर वह जमीन पर जा गिरेगा।
सड़क पर दूर दूर तक छिप सकने लायक कोई जगह नहीं थी, ऐसे में दौड़ते रहने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
एक वक्त वह भी आया जब दोनों के बीच महज दस कदमों का फासला रह गया, भुवनेश के कदमों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। वह एकदम से रूक गया और पनौती की तरफ पलट कर लंबी लंबी सांसे लेने लगा।
पनौती एकदम उसके करीब पहुंच गया।
“दौड़ते कमाल का हो भाई” - वह हंसता हुआ बोला – “मजा आ गया, बहुत दिनों से कोई एक्सरसाइज़ नहीं की थी, आज तुम्हारे कारण जमकर हो गई, थैंक्यू।”
“मुझे जाने दो।” भुवनेश हांफता हुआ बोला।
“क्यों?”
“मैं जेल नहीं जाना चाहता।”
“तो फिर नहीं रंगना था खून से अपने हाथ।”
“मैं मजबूर था, अपनी बहन और उसके देवर की बेहयाई बर्दाश्त नहीं कर सका” - भुवनेश बोला – “जरा सोचकर देखो जब मैंने पहली बार उन दोनों को एक साथ बिस्तर पर देखा था तो मुझपर क्या गुजरी होगी?”
“बुरी ही गुजरी होगी, मगर किसी को सजा देने वाले तुम कौन होते हो?”
“तो क्या करता, थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवाता कि मेरी बहन का उसके देवर के साथ अफेयर है चलकर गिरफ्तार कर लो उन्हें, तब क्या पुलिस सचमुच उनको गिरफ्तार कर लेती?”
“नहीं ऐसा तो शायद नहीं होता।”
“फिर मेरे पास और क्या रास्ता बचा था?”
“तुम अनुराग को इस बारे में बता सकते थे?”
“उससे क्या हो जाता? दोनों अपनी हरकतों से बाज आ जाते?”
“क्या पता आ जाते, या नहीं आते, या फिर तुम्हारी जगह अनुराग ने ही दोनों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया होता।”
“तुम्हारे पास कोई हथियार है?” भुवनेश ने नया सवाल किया।
“क्यों पूछ रहे हो?”
“मुझे गोली मार दो यार प्लीज! उपकार होगा तुम्हारा मुझपर।”
“और खुद तुम्हारे कत्ल के इल्जाम में जेल चला जाऊं?”
“तो फिर मुझे दे दो, मैं खुद के हाथों ही अपनी जिन्दगी समाप्त कर लेता हूं।”
“नहीं मेरे पास कोई हथियार नहीं है, होता तो भी मैं तुम्हें आत्महत्या नहीं करने देता, क्योंकि कानूनन वह भी ऑफेंस की श्रेणी में ही आता है।”
“जैसे मरने के बाद पुलिस मुझपर एक नया चार्ज लगा ही देगी।”
“लगता है अपने किये पर पछतावा होने लगा है तुम्हें?”
“नहीं बिल्कुल नहीं।”
“तो फिर बहादुर बनो, पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दे दो। बच तो तुम वैसे भी नहीं सकते।”
“मैं बचना नहीं चाहता, मरना चाहता हूं, वैसे भी जेल जाने से तो बेहतर यही है कि मैं अपनी जान दे दूं।”
तभी हाथ में रिवाल्वर लिये सतपाल भी वहां आ खड़ा हुआ।
“क्यों बेवजह की भाग दौड़ कर रहे हो, मान क्यों नहीं लेते कि तुम्हारा खेल अब खत्म हो चुका है।”
“अभी नहीं, एक आखिरी कोशिश तो मैं कर के ही रहूंगा इंस्पेक्टर साहब।” कहकर उसने एकदम से सतपाल के रिवाल्वर वाले हाथ पर छलांग लगा दी, मगर पनौती पहले से उसके लिये तैयार था। रिवाल्वर तक उसके हाथ पहुंच पाने से पहले ही उसने भुवनेश को वापिस खींच लिया।
“बड़ी मुश्किल से तुम तक पहुंचे हैं भाई, इतनी आसानी से तो तुम्हें हाथ से नहीं निकलने दे सकते। इसलिए रहम करो, हमारी मेहनत का सिला हमें मिलने दो, खासतौर से इंस्पेक्टर साहब को, तुम भाग गये या मर गये तो ये किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे ये। नतीजा ये होगा कि इन्हें फॉस्ट फूड की दुकान लगानी ही पड़ेगी जो कि इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।”
तभी तेज गति से चलती पुलिस जीप वहां आ खड़ी हुई। भुवनेश को जबरन जीप के पिछले हिस्से में डाल दिया गया, पनौती और सतपाल दोनों उसके साथ बैठे।
ड्राइवर ने तत्काल जीप आगे बढ़ा दी।
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“हासिल तो मैंने किसी और से किया, मगर सौदा हम दोनों के बीच ही हुआ था, अलबत्ता उसकी पसंद की रिवाल्वर का इंतजाम करने में मुझे दस बारह दिन लग गये थे।”
“कैसी रिवाल्वर चाहता था वह?”
“बत्तीस कैलिबर की, उसकी एक फोटो भी दिखाई थी उसने, कहता था रिवाल्वर भले ही किसी काम की न हो मगर देखने में एकदम वैसी ही होनी चाहिये, जैसी रिवाल्वर की फोटो वह मुझे दिखा रहा था।”
“मुलाकात कहां हुई थी उससे तेरी?”
“यहीं, इसी जगह, पहली बार भी और दूसरी बार भी।”
“गुड अब उठकर खड़ा हो जा।” कहते हुए पनौती ने बांह पकड़ कर जबरन उसके पैरों पर खड़ा कर दिया।
“अभी तुझे हमारे साथ चलना है और रू-ब-रू उस शख्स की पहचान कर के दिखानी है, कोई आना-कानी नहीं चलेगी।”
“तू है कौन भाई?”
“पनौती!” - वह बोला – “मेरे नाम का मतलब तो तू समझता ही होगा, एक बात और समझ ले, तेरा बुरा टाइम उसी वक्त शुरू हो गया था जब मैंने तेरे इस मकबरे जैसे घर में कदम रखा था, आगे अगर और दुर्गति नहीं कराना चाहता तो कोई फसाद करने की कोशिश मत करना, वरना तुझे गोली मारते हुए मैं एक क्षण को भी नहीं हिचकूंगा, समझ गया?”
करीम भाई ने जल्दी से मुंडी हिलाकर हामी भर दी।
“दरवाजे को ताला लगाना चाहता है तो बेशक लगा ले।”
उसने वह काम भी किया, इसके बाद पनौती ने उसे ले जाकर स्विफ्ट के भीतर धकेल दिया। वहां मुन्ना पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र फैल गये।
इस बार पनौती आगे वाली सीट पर बैठा, मगर यूं बैठा कि पूरे रास्ते दोनों के ऊपर से क्षण भर को भी उसकी निगाह नहीं हटी। रास्ते में पनौती ने सतपाल का मोबाइल मांगकर उसमें मौजूद मिस्टर एक्स की तस्वीर करीम भाई को दिखाई तो उसने झट हामी भर दी।
तेज रफ्तार से दौड़ती कार, पंद्रह मिनट बाद ज्यों ही थाने में दाखिल हुई, मुन्ना और करीम भाई का चेहरा यूं निचुड़ गया जैसे बैठे बैठे मर गये हों।
भीतर पहुंचकर सतपाल ने दोनों को हवालात में डाल दिया। इसके बाद वह पनौती के साथ अपने कमरे में पहुंचा, जहां अपनी वर्दी पहन चुकने के बाद उसने करीम भाई को तलब किया। फिर मीनाक्षी के बंगले से बरामद रिवाल्वर उसके सामने रखता हुआ बोला, “देखकर बता कि यह वही रिवाल्वर है या नहीं, मगर हाथ लगाने की कोशिश मत करना।”
“लगती तो वही है साहब, मगर इस जैसी दूसरी रिवाल्वर भी तो ऐसी ही दिखेगी।”
“कोई शिनाख्ती निशान रहा हो इसपर?”
“इसका सीरियल नंबर रेती से घिसकर मिटा दिया गया है, मगर शुरू का ‘जे’ उस वक्त भी साफ नजर आ रहा था जब मैंने ये रिवाल्वर उसे सौंपी थी।
सतपाल ने रिवाल्वर की नाल में पेन डालकर ऊपर उठाया फिर ध्यान से उसके सीरियल नंबर का मुआयना किया तो पाया कि वह ठीक कह रहा था। तमाम नंबरों में से ‘जे’ ही एक ऐसा शब्द था जो करीब करीब मिट चुकने के बाद भी अभी पढ़ने में आ रहा था।
करीम भाई को वापिस हवालात में डाल दिया गया।
उस काम से फारिग होकर सतपाल ने फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को फोन कर के थाने आने को कह दिया।
फिर एक सिपाही को चाय का बंदोबस्त करने को कहा जो की करीब पांच मिनट में सर्व कर दी गई।
चाय खत्म होने के करीब दस मिनट बाद फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट भी वहां आ पहुंचा।
सतपाल ने पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसके हवाले कर दी। अपने बैग से एक कैमरा निकालकर एक्सपर्ट तत्काल अपने काम में जुट गया।
पांच मिनट तक दोनों दम साधे उसके जवाब का इंतजार करते रहे।
“तीन तरह के फिंगर प्रिंट हैं इसपर” - आखिरकार एक्सपर्ट अपने काम से फारिग होता हुआ बोला – “जिनमें से एक जनाना जान पड़ता है, क्योंकि निशान बेहद पतली उंगलियों के हैं, काफी हद तक अस्पष्ट हैं, अलबत्ता आप किन्हीं खास प्रिंट से मिलान करना चाहें तो काम में आ सकता है, दूसरा यकीनन किसी मर्द का है और जनाना प्रिंट की अपेक्षा हालिया बना दिखता है, तीसरा प्रिंट रिवाल्वर की नाल पर है जो कि सिर्फ दो उंगलियों का है मगर एकदम स्पष्ट है।”
“आखिरी वाले की हमें कोई जरूरत नहीं है, बाकी दोनों के प्रिंट मुझे देकर जाओ।”
“दो मिनट वेट कीजिये अभी लेकर आता हूं।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।
“ये तो कमाल ही हो गया।” पनौती बोला।
“बेशक हो गया, सच पूछो तो मुझे खुद भी यकीन नहीं था कि पानी में पड़ी रिवाल्वर पर अभी तक फिंगर प्रिंट मौजूद हो सकते हैं।”
“जीवन में पहली बार तुमने तारीफ के काबिल काम किया है सतपाल साहब, मेरी बधाई कबूल करो।”
“किया।” वह हंसता हुआ बोला।
दोनों इंतजार करते रहे।
दो की बजाये वह पंद्रह मिनट बाद वापिस लौटा। दोनों प्रिंट उसने सतपाल के हवाले कर दिये और वापिस लौट गया।सतपाल ने प्रियम शर्मा के केस की फाइल निकाली फिर उसमें से छांटकर कोमल के फिंगर प्रिंट की कॉपी को मेज पर रखा और हासिल निशानों से उनका मिलान किया तो दोनों निशान हू-ब-हू मिलते पाये गये।
जिसका मतलब ये था कि प्रियम के कत्ल के वक्त कोमल के हाथ में वही रिवाल्वर थी जो कि पानी की टंकी से बरामद हुई थी।
अलबत्ता दूसरे निशान के कंपरीजन के लिये कातिल के उंगलियों के निशान उनके पास मौजूद नहीं थे, इसलिए फिलहाल उस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था।
“अब चलें?” सतपाल फाइल को वापिस रखता हुआ बोला।
“बेशक चलो।”
पुलिस जीप में सवार होकर दोनों एक बार फिर मीनाक्षी के बंगले में पहुंचे।
“भीतर कौन कौन है?” सतपाल ने गार्ड से पूछा।
“सब लोग हैं, संजीव साहब भी भीतर मौजूद हैं।”
सुनकर दोनों जीप से नीचे उतर आये।
गार्ड ने तत्काल दरवाजा खोल दिया।
भीतर सबसे पहले उनका आमना-सामना अनुराग शर्मा से हुआ।
“अरे इंस्पेक्टर साहब आप?” पूरे केस में पहली बार वह इतने सम्मानित ढंग से पेश आया था।
“जी हां मैं।”
“कहिये।”
इससे पहले कि सतपाल उसकी बात के जवाब में कुछ कहता, ड्राईंग रूम में बैठे भुवनेश, मीनाक्षी और संजीव चौहान उठकर उनके पास पहुंच गये। जिस जगह से उठकर तीनों वहां पहुंचे थे, वहां सेंटर टेबल पर तरह-तरह की खाने की चीजें और बीयर से लबालब भरे चार गिलास रखे हुए थे, लिहाजा वहां सेलिब्रेशन चल रहा था। जवान बेटे और बहू की मौत का मातम मनाने की बजाये घर के लोग पार्टी कर रहे थे।
“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?” अनुराग बोला।
“अब दिये देता हूं, बात ये है अनुराग साहब कि यहां हम आपके भाई और बीवी के हत्यारे को गिरफ्तार करने के लिये आये हैं।”
“वो तो ब्रजेश यादव है, आपने ही बताया था।”
“गलत बताया था, क्योंकि कातिल इस वक्त आपकी आंखों के सामने मौजूद है, वकील साहब तो समझ लीजिये इस वक्त हमारी मेहमानवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं।”
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है इंस्पेक्टर” - मिनाक्षी झल्लाकर बोली – “पहले तुमने अनुराग को कातिल ठहराया, फिर यादव को यहां से गिरफ्तार कर के ले गये और अब कहते हो कि कातिल कोई और ही है।”
“बेशक कहता हूं, मगर इत्मीनान रखिये ये आखिरी बार है, आज के बाद आपसे मैं कातिल के बारे में कोई सवाल नहीं करूंगा।”
“तो फिर हत्यारा कौन है?” अनुराग ने पूछा।
“आपका साला” - उसने जैसे कोई बम फोड़ दिया हो – “भुवनेश।”
सब हकबकाकर उसकी शक्ल देखने लगे।
“ये कातिल नहीं हो सकता, भला अपनी बहन के कत्ल की इसके पास क्या वजह हो सकती है?”
“बेशक यही है, अभी थोड़ी देर पहले हमने करीम भाई नाम के एक ऐसे शख्स को ढूंढ निकाला है जो कबूल करता है कि पानी की टंकी से बरामद रिवाल्वर उसने इसी को बेची थी।”
इससे पहले कि अनुराग या मीनाक्षी उसकी बात के जवाब में कुछ और कहते, भुवनेश ने अपने ठीक सामने खड़े सतपाल को जोर से धक्का दिया और हॉल से बाहर की तरफ भागा।
पनौती उसके पीछे दौड़ा।
“यकीन आ गया आपको?” सतपाल खुद को गिरने से संभालता हुआ बोला, फिर पनौती के पीछे दौड़ पड़ा।
लोहे के फाटक का सब-डोर खुला हुआ था, आंधी-तूफान की तरफ दौड़ते भुवनेश ने गेट पार किया और फौरन बाहर से कुंडी लगा दी।
पनौती ने दरवाजा खुलवाने में वक्त जाया नहीं किया, थोड़ा दायें हटकर उसने उछल कर बाउंड्री वॉल की मुंडेर पकड़ी और ऊपर चढ़कर दूसरी तरफ कूद गया।
भुवनेश उसे तीस चालीस कदमों की दूरी पर भागता दिखाई दिया।
पनौती ने अपना रफ्तार बढ़ा दी। मगर दो मिनट तक लगातार दौड़ते रहने के पश्चात भी उनके बीच का फासला कम होता नहीं दिखाई दिया।
एक किलोमीटर आगे मुख्य सड़क थी जहां पहुंचकर उसे पकड़ पाना ज्यादा मुश्किल हो जाने वाला था। पनौती ने नये सिरे से अपनी रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की, दोनों आगे-पीछे भागते रहे।
इस वक्त उनकी रफ्तार देखते बनती थी। दोनों में से कोई भी कमतर नजर नहीं आ रहा था।
आखिरकार भुवनेश मुख्य सड़क पर पहुंच गया, जिसके ऐन कोने पर एक छोटी सी गुमटी सरीखी पुलिस चौकी बनी हुई थी, पल भर को ठहर कर उसने जल्दी जल्दी वहां मौजूद पुलिसवालों से कुछ कहा, और उनके रोकने के बावजूद बायीं तरफ मुड़कर अंधाधुंध सड़क पर भागने लगा।
चौकी में उस घड़ी बस दो सिपाही थे, दोनों हाथ में डंडा लेकर पनौती के रास्ते में खड़े हो गये।
“वहीं रूक जा” - दोनों में से एक उसे ललकारता हुआ बोला – “वरना टांगे तोड़ दूंगा।”
पनौती ने उनके ललकारने की परवाह किये बिना उनके नजीक पहुंच कर यूं उनपर छलांग लगाई कि दोनों को लिये दिये जमीन पर जा गिरा। गिरकर उठा और उठकर भुवनेश के पीछे दौड़ पड़ा।
दोनों सिपाही हड़बड़ा कर जमीन से उठे, उठकर उसके पीछे लपके, तभी सतपाल वहां पहुंच गया।
भुवनेश और पनौती के बीच का फासला सिपाहियों के हस्तक्षेप की वजह से कुछ बढ़ जरूर गया था मगर अब लगातार घटता जा रहा था। दौड़ते-दौड़ते भुवनेश की सांसे बुरी तरह सांसे बुरी तरह से फूलने लगी थीं। उसे यूं महसूस हो रहा था जैसे किसी भी पल थककर वह जमीन पर जा गिरेगा।
सड़क पर दूर दूर तक छिप सकने लायक कोई जगह नहीं थी, ऐसे में दौड़ते रहने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
एक वक्त वह भी आया जब दोनों के बीच महज दस कदमों का फासला रह गया, भुवनेश के कदमों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। वह एकदम से रूक गया और पनौती की तरफ पलट कर लंबी लंबी सांसे लेने लगा।
पनौती एकदम उसके करीब पहुंच गया।
“दौड़ते कमाल का हो भाई” - वह हंसता हुआ बोला – “मजा आ गया, बहुत दिनों से कोई एक्सरसाइज़ नहीं की थी, आज तुम्हारे कारण जमकर हो गई, थैंक्यू।”
“मुझे जाने दो।” भुवनेश हांफता हुआ बोला।
“क्यों?”
“मैं जेल नहीं जाना चाहता।”
“तो फिर नहीं रंगना था खून से अपने हाथ।”
“मैं मजबूर था, अपनी बहन और उसके देवर की बेहयाई बर्दाश्त नहीं कर सका” - भुवनेश बोला – “जरा सोचकर देखो जब मैंने पहली बार उन दोनों को एक साथ बिस्तर पर देखा था तो मुझपर क्या गुजरी होगी?”
“बुरी ही गुजरी होगी, मगर किसी को सजा देने वाले तुम कौन होते हो?”
“तो क्या करता, थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवाता कि मेरी बहन का उसके देवर के साथ अफेयर है चलकर गिरफ्तार कर लो उन्हें, तब क्या पुलिस सचमुच उनको गिरफ्तार कर लेती?”
“नहीं ऐसा तो शायद नहीं होता।”
“फिर मेरे पास और क्या रास्ता बचा था?”
“तुम अनुराग को इस बारे में बता सकते थे?”
“उससे क्या हो जाता? दोनों अपनी हरकतों से बाज आ जाते?”
“क्या पता आ जाते, या नहीं आते, या फिर तुम्हारी जगह अनुराग ने ही दोनों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया होता।”
“तुम्हारे पास कोई हथियार है?” भुवनेश ने नया सवाल किया।
“क्यों पूछ रहे हो?”
“मुझे गोली मार दो यार प्लीज! उपकार होगा तुम्हारा मुझपर।”
“और खुद तुम्हारे कत्ल के इल्जाम में जेल चला जाऊं?”
“तो फिर मुझे दे दो, मैं खुद के हाथों ही अपनी जिन्दगी समाप्त कर लेता हूं।”
“नहीं मेरे पास कोई हथियार नहीं है, होता तो भी मैं तुम्हें आत्महत्या नहीं करने देता, क्योंकि कानूनन वह भी ऑफेंस की श्रेणी में ही आता है।”
“जैसे मरने के बाद पुलिस मुझपर एक नया चार्ज लगा ही देगी।”
“लगता है अपने किये पर पछतावा होने लगा है तुम्हें?”
“नहीं बिल्कुल नहीं।”
“तो फिर बहादुर बनो, पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दे दो। बच तो तुम वैसे भी नहीं सकते।”
“मैं बचना नहीं चाहता, मरना चाहता हूं, वैसे भी जेल जाने से तो बेहतर यही है कि मैं अपनी जान दे दूं।”
तभी हाथ में रिवाल्वर लिये सतपाल भी वहां आ खड़ा हुआ।
“क्यों बेवजह की भाग दौड़ कर रहे हो, मान क्यों नहीं लेते कि तुम्हारा खेल अब खत्म हो चुका है।”
“अभी नहीं, एक आखिरी कोशिश तो मैं कर के ही रहूंगा इंस्पेक्टर साहब।” कहकर उसने एकदम से सतपाल के रिवाल्वर वाले हाथ पर छलांग लगा दी, मगर पनौती पहले से उसके लिये तैयार था। रिवाल्वर तक उसके हाथ पहुंच पाने से पहले ही उसने भुवनेश को वापिस खींच लिया।
“बड़ी मुश्किल से तुम तक पहुंचे हैं भाई, इतनी आसानी से तो तुम्हें हाथ से नहीं निकलने दे सकते। इसलिए रहम करो, हमारी मेहनत का सिला हमें मिलने दो, खासतौर से इंस्पेक्टर साहब को, तुम भाग गये या मर गये तो ये किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे ये। नतीजा ये होगा कि इन्हें फॉस्ट फूड की दुकान लगानी ही पड़ेगी जो कि इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।”
तभी तेज गति से चलती पुलिस जीप वहां आ खड़ी हुई। भुवनेश को जबरन जीप के पिछले हिस्से में डाल दिया गया, पनौती और सतपाल दोनों उसके साथ बैठे।
ड्राइवर ने तत्काल जीप आगे बढ़ा दी।
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