Incest सौतेला बाप(completed)

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Update 59

विक्की बोला : "अच्छा , वो मोबाइल दिखा ज़रा, उसकी पिक्चर तो सही आई है ना...''
रघु के एक साथी ने अपना मोबाइल उसे दे दिया, विक्की ने जल्दी से उसकी फोटो गेलरी देखी, और वहाँ की पिक्चर्स देखकर उसका चेहरा खिल उठा...ये उन लोगो ने तब खींची थी जब रघु उसके कपड़े उतरवा रहा था...उसके मुम्मे चूस रहा था...उसकी चूत को अपने मुँह के उपर रखकर उसका रस्पान कर रहा था..
रात के समय भी उस केमरे ने ऐसी पिक्चर ली थी की उसकी क्वालिटी देखकर वो खुद हैरान रह गया..
विक्की : ''साले रघु, तूने तो आंटी को पूरा चूस डाला... ''
रघु खी खी करके हंसा और बोला : "लेकिन एक बात बोलू, साली माल बड़ी गजब की है...ऐसी चूत मैने आज तक नही चखी ...अब जल्दी से इसे अपने नीचे लाने का इंतज़ाम कर...''
विक्की मोबाइल को अपने हाथ मे लहराकर बोला : "अब तू देखता जा...मैं इस आंटी को कैसे नचाता हू...साली अपने साथ -2 अपनी बेटी को भी चुदवायेगी और पैसे भी बरसाएगी हमपर.... हा हा हा ''
और फिर से एक बार सभी दोस्त मिलकर हँसने लगे.
दूसरी तरफ रश्मि नहा धोकर अपने कमरे मे आ गयी...उसे तो रघु की दुर्गन्ध अभी तक अपने शरीर से आ रही थी..वो बिस्तर पर लेटकर सब कुछ दोबारा सोचने लगी...और विक्की के बारे मे सोचकर उसके होंठों पर एक प्यारी सी हँसी भी आ गयी...
तभी बाहर से समीर की कार के रुकने की आवाज़ आई...वो दौड़कर बालकनी मे गयी..दोनो बाप बेटी हाथों मे हाथ डाले , एक दूसरे से चिपके अंदर आ रहे थे...
रश्मि उनके प्यार को देखकर बहुत खुश हुई..
पर उसे क्या पता था की आज शाम से लेकर अब तक उनके बीच क्या - क्या हुआ है.. काव्या जब अपने पापा के ऑफिस पहुँची तो उसके लगभग 20 मिनट के बाद ही समीर अपनी सौतेली बेटी (जो अब उसको जान से प्यारी लगने लगी थी) के साथ अपनी कार मे बैठकर शॉपिंग के लिए निकल पड़ा.
रास्ते मे काव्या के मन मे अपनी सहेली श्वेता की कही हुई बातें गूँज रही थी..
उसके साथ बात करते हुए श्वेता ने उससे कहा था की मर्द को जितना तरसाएगी, उसके साथ चुदाई मे उतना ही मज़ा मिलेगा..उसने जिस तरह अपने भाई नितिन को रोज अपना शरीर धीरे-2 दिखा कर तरसाया था..और जिस तरह से वो धीरे-2 आगे बड़ी थी, वो उसको भी काफ़ी पसंद आया था, क्योंकि जिस तरह लास्ट मे जब दोनो के सब्र का बाँध टूट गया था तो उसके बाद की पहली चुदाई श्वेता को आज तक नही भूली, हालाँकि उसके बाद भी वो अक्सर नितिन से चुदवाती रहती है, पर इतने दिनों तक तरसाने के बाद की वो पहली चुदाई की कसक आज तक नही भूली थी...
और यही कसक काव्या भी महसूस करना चाहती थी..वैसे भी पहली चुदाई की कसक तो हर किसी को याद रहती है, पर अगर वो ललचा कर की जाए तो उसकी बात ही कुछ और होगी...
अपने बाप को अपनी तरफ आकर्षित करने मे तो वो कामयाब ही गयी थी, अब उसको तड़पाना था उसको...सही मायने मे कहा जाए तो उसको सिडयूस करना था...
काव्या ने आज एक छोटी सी स्कर्ट और टाइट टी शर्ट पहनी हुई थी..इसलिए कार मे बैठते ही वो थोड़ा और उपर जा चड़ी...और उसकी मोटी-2 दूधिया जांघे चमकने लगी..
बेचारे समीर की हालत खराब थी..लेग पीस तो हमेशा से उसकी कमज़ोरी रहे हैं, चाहे वो लेग मुर्गे की हो या किसी लड़की की..
उसकी मोटी-2 जांघे देखकर समीर का मन तो हुआ की उसपर हाथ रखकर ज़ोर से दबा दे...पर इतनी हिम्मत नही थी उसमे अभी..पर उसपर से नज़रे हटा कर वो सही से कार चला ही नही पा रहा था.
धीमी कार मे बैठी काव्या बाहर की तरफ देखकर अपना मुँह छिपा कर हंस रही थी...उसे पता था की वो जो दिखा रही है उसका क्या असर हो रहा है समीर के उपर...
तभी काव्या को एक आइस्क्रीम वाला दिखा और वो किसी बच्चे की तरहा चिल्लाई : "आइस्क्रीम....मुझे आइस्क्रीम खानी है...''
समीर ने मुस्कुराते हुए अपनी कार उस आइस्क्रीम वाले के पास रोक दी..वो काव्या की तरफ ही था, काव्या ने जैसे ही अपनी तरफ का शीशा नीचे किया ,वो आदमी भागता हुआ उनके पास आया..और लगभग अपना सिर उसने कार के अंदर ही डाल दिया,और जैसे ही उसने अंदर देखा, काव्या की मोटी-2 जांघे उसकी आँखो के बिल्कुल सामने थी..
समीर चिल्लाया : "अंदर ही घुस जाएगा क्या...''
वो सॉरी साहब बोलता हुआ बाहर हो गया...काव्या को अच्छा भी लगा, क्योंकि समीर उसके लिए पॉसेसिवनेस दिखा रहा था..और ये बात हर लड़की को पसंद आती है..
काव्या ने एक लंबी और गोल केन्डी आइस्क्रीम ले ली (शायद जान बूझकर) और फिर समीर ने गाड़ी आगे बड़ा दी..
काव्या उस आइस्क्रीम को खाने लगी...चूसने लगी...और उसके मज़े लेने लगी..वो अपनी आँखे बंद करते हुए उसको ऐसे चूस रही थी जैसे वो कोई लंड हो ... और मन ही मन वो उस पल को सोच रही थी जब असली मे उसने लोकेश अंकल का लंड चूसा था उनकी नाव पर...वो पल याद आते ही उसकी चूत मे जमी बर्फ की परत पिघलने लगी और गीलापन निकल कर बाहर आने लगा..
समीर की नज़र जब काव्या के चेहरे पर पड़ी तो वो भी चोंक गया, वो अपनी आँखे बंद करके उस आइस्क्रीम को जैसे चूस रही थी,सॉफ पता चल रहा था की वो लंड चूसने का तरीका है...उसकी जीभ लाल हो चुकी थी...जिसे वो आइस्क्रीम पर नीचे से उपर तक फिरा रही थी..ऐसा तो लंड चूसते हुए किया जाता है...तो क्या इसका मतलब काव्या लंड चूसना जानती है...पर लगता तो नही है...इतनी छोटी सी उम्र मे इसने कैसे इतनी अच्छी तरह से ये सब सीखा होगा...नही नही...ये शायद उसका वहां है...वो शायद आइस्क्रीम ऐसे ही खाती है..
एक साथ कई विचार कौंध रहे थे समीर के दिमाग़ मे...पर उसकी हरकत देखकर उसके लंड ने जो हाहाकार उसकी पेंट मे मचाया था वो सॉफ उजागर हो चुका था..उसने एक हाथ मे स्टेयरिंग पकड़े हुए दूसरे से अपनी पेंट को ठीक किया..
कुछ ही देर मे शॉपिंग माल आ गया, और दोनो कार पार्क करने के बाद अंदर आ गये..काव्या काफ़ी खुश थी आज..वो सीधा एक बड़े से शोरुम मे घुस गयी..और आनन फानन मे ही उसने 3 टी शर्ट्स ले ली...पेमेंट करने के बाद वो बाहर आ गये..और फिर एक जीन्स के शोरुम से काव्या ने अपने लिए एक जीन्स ली..और समीर को भी ज़बरदस्ती करवाकर जीन्स दिलवाई..
फिर कुछ देर के लिए दोनो ओपन मे बने हुए केफे मे बैठ गये और कॉफी पी और संडविच खाए..समीर को तो बस उस वक़्त का इंतजार था जब वो अंडरगार्मेंट्स के शोरुम मे जाएँगे..जो सेकेंड फ्लोर पर था..
वहाँ से निपटने के बाद समीर जल्दी-2 उपर की तरफ चलने लगा...काव्या भी उसकी जल्दबाज़ी देखकर मुस्कुरा रही थी...समीर सीधा अंदर गया और वहाँ खड़ी लड़की से काव्या के लिए कुछ इंपॉर्टेंट ब्रा और पेंटी दिखाने के लिए कहा..
वो लड़की पहले तो दोनो को देखने लगी फिर एकदम से पलटकर दूसरे सेक्षन की तरफ चल दी..समीर पहले भी वहाँ आ चुका था..काफ़ी पहले..अपनी पहली बीबी के साथ..इसलिए उस जगह की अहमियत और फेसिलिटी उसको पता थी..
पीछे की तरफ एक बड़ा सा कमरा था..जहाँ चारों तरफ शीचे लगे थे..और बीच मे एक आलीशान और गद्देदार सोफा...पूरा कमरा एसी चलने की वजह से चिल्ड हुआ पड़ा था..बीच मे एक ग्लास की टेबल भी थी..
समीर और कावा सोफे पर बैठ गये..वो इतना मुलायम था की काव्या की गांड तो पूरी तरह से अंदर धँस सी गयी..वो एक तरफ झुकती चली गयी और समीर के उपर जा गिरी...दोनो ने हंसते हुए एक दूसरे की तरफ देखा..और समीर ने काव्या को अपनी तरफ खींचकर बिठा लिया..काव्या भी अपनी छोटी सी ब्रेस्ट को समीर के बाजू मे घुसा कर चिपक कर बैठ गयी..
कुछ ही देर मे वो लड़की अपने हाथ मे काफ़ी सारी ब्रा-पेंटी के सेट लेकर आई और उन्हे सेंटर टेबल पर रख दिया..
फिर उसने एक रिमोट से सामने लगी बड़ी सी प्रोजेक्टर स्क्रीन चला दी, फिर उसने अपने हाथ मे एक सेट लिया और समीर और काव्या के सामने आकर खड़ी हो गयी..
उस लड़की का नाम कुसुम था, जो लगभग 22 साल की थी..मासूम सा चेहरा और बड़ी-2 ब्रेस्ट थी.
कुसुम : "सर ये इंपोर्टेड पीस है, इसमे टाई करने का और हुक करने का, दोनो ऑप्शन है..''
इतना कहकर उसने रिमोट से स्क्रीन ओन कर दिया और उसमे एक मॉडल ने सेम वही सेट पहना हुआ था, जो घूम-घूमकर उसकी फिटिंग दिखा रही थी..
समीर का लंड तो स्क्रीन पर दिख रही मॉडेल के फिगर को देखकर एकदम से खड़ा हो गया..
काव्या ने वो सेट अपने हाथ मे लिया और उसके कपड़े को अपनी उंगलियों से मसलकर देखने लगी..
कुसुम : "मेम ...हाथों मे लेने से कपड़े का पता नही चलता, हमारी ब्रेस्ट की स्किन ज़्यादा सेंसेटिवे होती है, असली मे तो वहीं लगा कर पता चलेगा की कैसी फील है इस कपड़े की..''
उसकी बात सुनकर काव्या शर्मा सी गयी...
समीर : "शायद ये सही कह रही है...तुम जाकर इसको ट्राइ कर सकती हो...''
काव्या : "अभी नही....और देखते हैं पहले ...''
कुसुम ने फिर से एक और सेट उठाया...ये भी इंपोर्टेड सेट था, जिसमे लाल रंग के दिल बने हुए थे..और पेंटी के बदले थोंग था..यानी पिछली तरफ एक महीन सा कपड़ा जो पहनने के बाद गांड की दीवारों मे घुसकर गायब ही हो जाए..
काव्या ने पहले कभी थोंग नही पहना था...इसलिए वो उसे काफ़ी गौर से देखने लगी..
कुसुम : "मेम आप इसका विसुअल देखिए...''
फिर से उसने स्क्रीन ओन कर दी, उसमे एक दूसरी मॉडेल ने वही सेट पहना हुआ था..समीर ने देखा की उस अँग्रेजन की मोटी सी गांड पूरी नंगी थी..क्योंकि पेंटी के नाम पर सिर्फ़ आगे की तरफ एक छोटा सा पैच ही तो था...
काव्या भी सोचने लगी की वो कैसे लगेगी उसे पहन कर...माना की उसकी ब्रेस्ट ज़्यादा बड़ी नही है..पर उसकी फेली हुई गांड तो पूरी नंगी होकर दिखेगी...
ये सोचते ही उसके दिल की धड़कन तेज होने लगी..
समीर ने अचानक वो थोंग काव्या के हाथ से ले लिया..और कुसुम को अपने पास बुलाया..और जैसे ही वो समीर के पास आई, समीर ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसकी गांड अपनी तरफ की और उसके पीछे वो थोंग लगा कर दिखाया..
काव्या को उम्मीद नही थी की उसके पापा ऐसी हरकत करेंगे और वो भी एक सेल्सगर्ल के साथ...पर कुसुम पर जैसे कोई असर ही नही हुआ...वो दूसरी तरफ मुँह करके खड़ी रही..
समीर : "देखो...ये ऐसे लगेगी...इसे भी तुम पहनकर देखना चाहो तो देख लो ...या फिर ये भी तुम्हे दिखा सकती है पहन कर..''
शायद ये उस हाइ प्रोफाइल शोरुम के कस्टमर का रोज का काम था...इसलिए समीर बड़ी ही आसानी से वो सब कर और कह रहा था.
काव्या : "क्या सच मे...ये मुझे पहन कर दिखा सकती है...''
कुसुम : "यस मेम ...पर इन्हे बाहर जाना होगा...''
शायद वो फेसिलिटी सिर्फ़ फीमेल कस्टमर्स के लिए ही थी...
उसकी बात सुनते ही काव्या एकदम से बोली : "ये क्यो जाएँगे...इनके बिना तो मैं कुछ भी नही खरीदूगी...आपने अगर दिखना है तो इनके सामने ही दिखाओ...वरना मुझे नही लेना यहाँ से कुछ..''
वो लड़की एकदम से घबरा गयी...शायद उसे भी अब तक पता चल चुका था की वो किस लेवल के कस्टमर्स है..उन्हे वापिस भेजने का मतलब हज़ारों रुपये का नुकसान और साथ ही उसके इन्सेंटिव का भी..
कुसुम : "ओक मेम ..आप कहती है तो ठीक है...मैं अभी इसे पहन कर आती हू..''
इतना कहकर वो उस सेट को लेकर चेंगिंग रूम मे चली गयी...और कुछ ही पल मे बाहर निकल कर आई..
उसे देखते ही काव्या के मुँह से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला : "वाव ......सो सेक्सी....''
कुसुम को देखकर काव्या के मुँह से तो ये निकला, पर समीर का मुँह तो खुला का खुला ही रह गया...वो कुछ बोल ही नही पाया...कुसुम के मोटे-2 मुम्मे और पतली कमर के नीचे फैले हुए कूल्हे देखकर उसके मुँह से कुछ निकला ही नही..लंड और खड़ा हो गया.
समीर तो बस यही सोचे जा रहा था की ऐसा ही अगर चलता रहा तो वो कब तक अपने आप पर कंट्रोल कर पाएगा... कुसुम चलती हुई उसके पास तक आई और बिल्कुल काव्या के आगे खड़ी हो गयी...काव्या ने इतनी खूबसूरत लड़की और वो भी इतने कम कपड़ो मे आज से पहले कभी नही देखी थी...उसने तो सिर्फ़ अपना और अपनी सहेली श्वेता का शरीर ही देखा था...अपना तो उसे पता ही था और श्वेता की ब्रेस्ट कुछ ज़्यादा ही बड़ी थी और गांड भी काफ़ी गद्देदार...पर इस लड़की का हर अंग साँचे मे ढला हुआ था...लगभग 34 की ब्रेस्ट थी...26 के आस पास कमर और 36 की गांड ...
ऐसा ड्रीम फिगर तो उसने हमेशा से अपने लिए सोचा हुआ था...उसके दूधिया मुम्मे देखकर उसका तो मन कर रहा था की अभी उसकी ब्रा खोले और उसके मोटे-2 निप्पल अपने मुँह मे लेकर चूस डाले...उसकी ऐसी हालत है तो समीर का क्या हाल होगा, उसने समीर की तरफ देखा तो वो अपना मुँह और आँखे फाड़े कुसुम को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था...काव्या ने उसको और तरसाने की सोची..उसने सीधा अपना हाथ आगे किया और कुसुम की पेंटी यानी थोंग के कपड़े को अपने हाथ मे लेकर परखने लगी..उसने महसूस किया की उसका हाथ लगते ही कुसुम के शरीर मे एक अजीब सा करंट लगा था..पर वो खड़ी रही, कुछ नही बोली..
काव्या ने अपनी उंगलियाँ आगे की तरफ बने छोटे से पैच मे घुसा दी और अपनी उंगली और अंगूठे के बीच उस थोंग के कपड़े को रखकर परखने लगी..और ऐसा करते हुए उसकी अंदर वाली उंगली कुसुम की सफाचट चूत से रगड़ खा रही थी..और अंदर से निकल रही नमी को काव्या अपनी उंगलियों पर सॉफ महसूस कर पा रही थी..
काव्या : "आप सही कह रहे थे...ये कपड़ा सचमुच अच्छी फिटिंग दे रहा है...और शायद स्किन पर भी अच्छी फीलिंग दे रहा होगा...''
वो जान बूझकर समीर को पापा नही बोल रही थी अब तक, क्योंकि वो चाहती थी की वहां का स्टाफ बस यही सोचता रहे की शायद कोई अमीर आदमी अपनी जवान गर्लफ्रेंड को शॉपिंग करवाने लाया है...बाप-बेटी के बीच ऐसा खुलापन कोई नही समझ पाएगा ..
कुसुम ने काव्या की बात सुनी और बोली : "येस मेम , ये कपड़ा इंपोर्टेड है, आपको ऐसा फील होगा की आपने कुछ पहना ही नही है...''
उसकी बात सुनकर काव्या हंस पड़ी..और बोली : "आपको शायद पता नही है, मैं अक्सर घर पर बिना पेंटी के ही रहती हू...''
उन दोनो लड़कियों की गर्ल-टॉक सुनकर समीर के लंड की हालत बुरी हो रही थी...काव्या को तो मज़ा आ रहा था समीर को अपनी सीट पर कसमसाते हुए देखकर..वो उसको तरसाने मे कामयाब जो हो रही थी..
काव्या ने कुसुम को घुमा दिया और अब उसकी गांड थी उसके सामने...और थोंग के पीछे की तरफ की महीन सी कपड़े की डोरी कुसुम की गहरी गांड मे फंसकर गायब हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था की वो नीचे से नंगी होकर खड़ी है...उसका मोटा और उभरा हुआ पिछवाड़ा देखकर समीर और काव्या दोनो के मुँह मे पानी आ गया...और कोई मौका होता तो काव्या ने अपना मुँह घुसेड देना था उसकी रज़ाई में ..पर अपने पापा के सामने वो कोई सीन नही बनाना चाहती थी.
काव्या : "वाव ....देखो ना...कैसे ये कपड़ा अंदर चला गया है...इट्स सो सेक्सी...आई लव इट ...''
काव्या ने उसकी डोरी पकड़ कर उसकी गर्म गांड से बाहर निकाली, एक हल्की सी सिसकारी निकल गयी कुसुम के मुँह से...और फिर से काव्या ने वो डोरी छोड़ दी, और कुसुम फिर से कसमसा उठी..शायद हर बार वो डोरी उसकी गांड के छेद पर जाकर टिक रही थी..निकल रही थी..
काव्या एकदम से खड़ी हुई और उसने ब्रा के स्ट्रेप्स को पकड़ कर देखा, जैसे हुक की क़्वालिटी चेक कर रही हो...फिर से उसने कुसुम को अपनी तरफ घुमाया और उसके कप्स को अपने हाथों मे लेकर देखने लगी...कुसुम की आँखों मे आ रहा गुलाबीपन काव्या को साफ़ दिख रहा था..
समीर को तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई ब्लू मूवी का लेस्बियन सीन चल रहा हो वहाँ..
काव्या ने ब्रा का फेब्रिक चेक करते-2 अचानक कुसुम की ब्रेस्ट को ज़ोर से दबा दिया...और कुसुम के मुँह से एक जोरदार चीख निकल गयी...
''आाआईयईईईईईईईईईईईई........ में, क्या कर रहे हो आप मेम .....''
उसकी साँसे भी तेज हो गयी, शायद समीर वहाँ ना होता तो वो काव्या को कच्चा ही चबा जाती...इतनी आग निकलने लगी थी उसके अंदर से एकदम से. काव्या समझ गयी की उसने शायद कुसुम को उत्तेजित कर दिया है...
काव्या : "ओह ...सॉरी ....मुझे पता नही अचानक क्या हो गया था...मैं अपने आप पर कंट्रोल ही नही कर पाई...आप हो ही इतनी खूबसूरत...'' फिर वो समीर की तरफ मूडी और बोली : "है ना ....कितनी अच्छी फिगर है इनकी...''
समीर बेचारा बस अपना सिर हाँ मे हिलाने के सिवाए कुछ नही कर पाया...
काव्या ने देखा की कुसुम के होंठ लरज रहे थे...फड़क रहे थे...शायद वो चाहती थी की उन्हे कोई चूम ले, चूस ले, निचोड़ डाले..पर उस वक़्त ऐसा कुछ भी पॉसिबल नही था..
 
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Update 60

दोनो की आँखो मे एक दूसरे के लिए उत्तेजना का ज्वार भाटा उमड़ पड़ा था, जिसे शायद समीर नही देख पा रहा था..पर वो दोनो महसूस कर पा रही थी..
कुसुम : "मेम , आप कहें तो कुछ और भी पहन कर दिखाऊ आपको ...या ये फाइनल है ...''
काव्या : "मुझे कम से कम 5-6 सेट लेने है...इसको तो मैं एक बार खुद पहन कर देखना चाहूँगी...''
कुसुम : "ठीक है , आप मेरे साथ चलिए...''
इतना कहकर वो काव्या को लेकर अपने साथ चेंजिंग रूम मे आ गयी...जो एक छोटा सा केबिन था..और उसमे हर तरफ शीशे लगे थे..
एक खूंटी पर कुसुम की ड्रेस और उसकी ब्रा -पेंटी टंगी हुई थी..
कुसुम : "में, आप अपने कपड़े उतार कर यहाँ टाँग दीजिए..मैं आपको ये उतार कर देती हू..''
इतना कहकर कुसुम बिना किसी शरम के अपनी ब्रा खोलने लगी..
काव्या : "रूको, मैं हेल्प करती हू तुम्हारी ...''
इतना कहकर वो कुसुम के पीछे गयी और उसकी ब्रा के हुक खोल दिए...और नीचे सरकती हुई ब्रा के कप्स को उसने आगे हाथ करते हुए अपनी हथेलियो मे थाम लिया...और फिर उन्हे धीरे-2 उजागर कर दिया..
और जैसे ही कुसुम की नंगी चुचियाँ काव्या को सामने लगे शीशे मे दिखी , काव्या के शरीर का तापमान बड़ सा गया, उसकी गोल-2 चुचियाँ और लंबे निप्पल्स कमाल के थे...उसने इतने लंबे निप्पल्स आज तक नही देखे थे..और उसकी मोटी-2 ब्रेस्ट की जानलेवा शेप...उफ़फ्फ़ ...शायद इसलिए वो वहाँ की सेल्सगर्ल थी..
काव्या उसके कान मे फुसफुसाई : "यू आर ब्यूटिफुल ...."
उसकी साँसे तेज हो चुकी थी...
कुसुम भी उत्तेजना के शिखर पर थी,क्योंकि उसके लगभग एक इंच लंबे निप्पल फटने को हो रहे थे......वो धीरे से बोली : "थेंक्स मेम ...''
सामने के शीचे मे काव्या उसके टॉपलेस हिस्से को देख पा रही थी..
फिर उसने उसकी पेंटी को भी नीचे खिसका दिया...कुसुम की चूत से जैसे चाशनी बह रही थी...जो उस छोटे से कपड़े से चिपक कर एक रेशम के धागे का निर्माण कर रही थी..
कपड़ा तो अलग हो गया पर उस चाशनी से बना धागा टूटने का नाम ही नही ले रहा था...आलम ये था की पेंटी घुटने से नीचे तक आ गयी पर एक गोल्डन से धागे ने उसकी चूत और पेंटी को अभी तक आपस मे जोड़ रखा था..इतना सेक्सी सीन काव्या ने अपनी पूरी लाइफ मे आज तक नही देखा था...
उसने अपना हाथ आगे किया और अपनी उंगली में उस रेशमी और गीले धागे को लपेट कर उसे तोड़ दिया....और अपना पंजा एकदम से कुसुम की चूत पर रखकर ज़ोर से दबा दिया...
बस इतना काफ़ी था उस मासूम सी दिखने वाली लड़की के अंदर का जानवर जगाने के लिए...वो एकदम से पलटी और काव्या के चेहरे को पकड़ कर उसके होंठों पर जोरदार हमला कर दिया....उसके रेशमी होंठों का रस ऐसे चूसने लगी मानो उसके अंदर कोई सकिंग मशीन लगी हो...वो तो पूरी नंगी थी...और आनन फानन मे उसके हाथ चलने लगे और एक मिनट के अंदर ही उसने काव्या को भी अपनी तरह नंगा कर दिया..और दोनो जवान जिस्म एक दूसरे को रोंदने लगे...
उस छोटे से केबिन में मानो एक तूफान सा आ गया..आज काव्या को पहली बार कोई अपनी टक्कर का मिला था..जो उससे ज़्यादा उत्तेजना मे भरकर अपना उतावलापन दिखा रहा था..ठीक ऐसी ही बनना चाहती थी वो भी, ताकि वो जिसके साथ भी सेक्स करे,वो उसके जंगलीपन का दीवाना बन जाए..वो कुसुम को ओब्सर्व करने लगी, अपने आप को उसके हवाले कर दिया और उसकी हरकतों को नोट करने लगी, ताकि कुछ सीख पाए..
कुसुम तो जैसे पागल हो चुकी थी, इतनी देर तक अपने आप पर कंट्रोल करने के बाद वो जैसे फट सी पड़ी थी, काव्या को खा जाने वाली हरकतें कर रही थी वो..उसके होंठ, गर्दन, और गालों को आम की तरह चूस रही थी..और अपनी चूत को उसकी चूत पर रगड़कर मज़ा ले रही थी..
वो पहले से ही उत्तेजित थी, इसलिए लगभग 8-10 घिस्से लगाने के बाद ही वो छूट गयी और उसके अंदर का लावा बहकर उसकी जांघों से नीचे सरकने लगा..
बाहर बैठा हुआ समीर व्याकुल सा हो रहा था...वो उठकर केबिन तक गया और उसने धीरे से दरवाजा खड़काया...
समीर : "काव्या....काव्या...बड़ी देर लगा दी...तुम ठीक तो हो ना...''
 
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Update 61

अंदर दोनो नंगी खड़ी होकर एक दूसरे को चूम रही थी..कुसुम तो एकदम से घबरा गयी और अपने कपड़े पहन लिए..अब वो डर रही थी की शायद उसे अपने कस्टमर के साथ ऐसा नही करना चाहिए था..
काव्या ने उसे शांत किया और बाहर खड़े समीर से बोली : "जी पापा, मैं ठीक हू...बस फिटिंग चेक कर रही थी...''
समीर वापिस जाकर सोफे पर बैठ गया.
काव्या के मुँह से पहली बार समीर के लिए पापा निकलता देखकर कुसुम के तो होश उड़ गये, वो तो इतनी देर से उसे उसकी गर्लफ्रेंड या नाजायज़ संबंध का नतीजा समझ रही थी..पर ये तो उसका बाप निकला..
पर वो कैसा बाप था वो ये नही जानती थी..
पर अपने बाप के साथ ऐसी शॉपिंग के लिए वो आई थी, ये सोचकर एक बार फिर से कुसुम के अंदर चींटियाँ सी रेंगने लगी..उसने आज तक अपने पापा के बारे मे ऐसा नही सोचा था, पर उनके इस तरह के खुले रिश्ते को देखकर एक दम से उसका ध्यान अपने पापा की तरफ चला गया और वो एक गहरी सोच मे डूब गयी..
तब तक काव्या ने भी वो ब्रा और थोंग पहन लिया था और वो ग़ज़ब की लग रही थी...उसकी ब्रेस्ट छोटी थी, पर कपड़ा स्ट्रेचेबल था , इसलिए वो सिकुड कर उसकी ब्रेस्ट को भी सही से कवर कर पा रहा था...और वो थोंग , जिसपर अभी तक कुसुम की चूत का जूस लगा हुआ था, उसे अपनी मुनिया पर महसूस करते ही एक अजीब सा एहसास हुआ उसको...
कुसुम ने कपड़े पहन लिए थे..और वो बाहर जाने लगी..
कुसुम : "ये बिल्कुल फिट है आपके उपर, में....आप अपने पापा को दिखाना चाहोगी इसको...''
उसने शरारत भरे स्वर मे काव्या से पूछा..
क्योंकि वो जानती थी की वो जितनी भी खुल जाए, पर अपने पापा के सामने ऐसी हालत मे हरगिज़ नही जाएगी..
पर उसकी आशा के विपरीत काव्या बोली : "उन्हे एक बार दिखाना तो होगा ही ना...तुम ऐसा करो, उन्हे यहीं अंदर भेज दो..मुझे ऐसे बाहर निकलने मे शर्म आ रही है..''
उसकी बात सुनकर कुसुम के तो होश उड़ गये..उसने तो सोचा भी नही था की काव्या ऐसा कहेगी...बाप बेटी मे ऐसे खुलेपन का रिश्ता उसने आज तक नही देखा था..और ना ही सोचा था..
पर ये कैसी शर्म है, जो उसके पापा बाहर देखेंगे, वही तो अंदर भी होगा, दोनो मे फ़र्क क्या है..
पर ये बात काव्या ने काफ़ी सोच समझ कर कही थी..क्योंकि वो समीर को जानती थी..बाहर आकर वो सिर्फ़ अपने आप को उसे दिखा सकती थी..पर अंदर के छोटे से केबिन मे वो काफ़ी कुछ कर भी सकती थी उसके साथ..
काव्या की बात मानकर कुसुम बाहर गयी और उसने हकलाते हुए से स्वर मे कहा : "सर ...वो ..आपकी बेटी...आपको अंदर केबिन मे बुला रही है..''
समीर के दिल की धड़कने एकदम से रेलगाड़ी की तरह चलने लगी...वो सोचने लगा की आख़िर क्या दिखाएगी काव्या उसको..
वो लगभग भागता हुआ सा केबिन की तरफ गया..और धीरे से धक्का देकर अंदर आ गया...केबिन का दरवाजा खुला ही हुआ था..
अंदर पहुचते ही जो उसने देखा उसके बाद उसने अपने आप पर कैसे कंट्रोल किया ये तो वो खुद भी नही जानता था...क्योंकि ऐसी सेक्सी लड़की और वो भी सिर्फ़ एक छोटी सी ब्रा और पेंटी मे...और वो भी उसके इतने पास...उसका लंड तो फटने को हो रहा था..
और काव्या भी बड़ी मुश्किल से अपने आप पर कंट्रोल करती हुई सी,नॉर्मल बिहेव कर रही थी..और घूम-घूमकर शीशे मे अपना फिगर चेक कर रही थी.. काव्या : "पापा...देखो ना...कैसी लग रही है...''
समीर बस यही बोल पाया : "हाँ ......अच्छी ...है ..''
उसके मुँह से शब्द ही नही फूटने को हो रहे थे...वो तो अपनी जवान बेटी के सेक्सी फिगर को देखकर पागल हुए जा रहा था...छोटी-2 ब्रेस्ट...पतली कमर...सेक्सी सी नेवल...और फेली हुई गांड के उपर छोटी सी कच्छी ...और पीछे से तो ऐसा लगता था की वो पूरी नंगी है...उसके भरंवा चूतड़ देखकर उसका मन कर रहा था की उन्हे दबोच कर उसका रस निकाल दे...
काव्या : "पर ये मेरी ब्रेस्ट के हिसाब से लूस है...देखो...कितना गेप है...''
वो जैसे समीर को उकसा रही थी..की आओ पापा और ब्रा के कपड़े को पकड़ कर देखो..पर समीर तो जैसे लल्लू सा बन गया था..वो अवाक सा होकर बस उसके सेक्सी शरीर को देखे जा रहा था..
काव्या अपनी उंगलियों से ब्रा के कपड़े को खींचकर उपर नीचे कर रही थी..और ऐसा करते हुए अचानक समीर को उसके निप्पल के दर्शन हो गये...
उफफफफफफफ्फ़ इतना गुलाबी भी कोई होता है क्या ...ऐसा गुलाबी रंग तो उसने अपनी कल्पना मे भी नही देखा था...बेबी पिंक कलर के निप्पल्स....उम्म्म्मममम....उन्हे चूसने मे और उनका जूस पीने मे कितना मज़ा आएगा...
वो अपने ही ख़यालों मे मगन सा होकर एकटक देखता रहा उसकी ब्रेस्ट को...
काव्या को काफ़ी मज़ा आ रहा था उसको टीस करने मे..
काव्या : "फाइनल बोलो पापा...लू या नही...''
ऐसा करते हुए उसने अपनी नंगी गांड समीर की तरफ कर दी...अब ऐसे सीन को देखकर कोई कैसे मना कर सकता था..वो अगर हीरे से बनी हुई होती तो भी ले देता समीर उस वक़्त ..
समीर :"ले लो...काफ़ी सेक्सी...उम्म...अच्छी लग रही है...''
काव्या : "थॅंक्स पापा....''
इतना कहकर वो बिना किसी वजह के उसके गले से लिपट गयी..और उसके गाल पर एक पप्पी दे डाली..
उसकी छोटी-२ सिप्पियां समीर की छाती से टकराकर टूट सी गयी , समीर के हाथ उसकी नंगी कमर पर लिपट गए
समीर के खड़े हुए लंड का एहसास अपनी चूत पर महसूस करते ही वो भी बहक सी गयी एक पल के लिए...और उसने सोचा की जो करना है आज ही कर लेती हू...पर तभी उसे फिर से अपनी सहेली श्वेता के कहे शब्द याद आ गये की जितना तरसाओगी , उतनी ही बेहतर चुदाई होगी...वैसे भी जगह चुदाई के हिसाब से ठीक नहीं थी
वो एकदम से अलग हुई..और समीर से बोली : "ठीक है पापा....आप बाहर जाओ, मैं चेंज करके आती हू..''
और समीर बेचारा ना चाहते हुए भी बाहर आ गया..काव्या ने जल्दी से अपने कपड़े वापिस पहने और अपने हाथ मे वो ब्रा-पेंटी लेकर बाहर आ गयी..
इतनी देर तक दोनो बाप-बेटी अंदर क्या कर रहे थे, ये सोच-सोचकर कुसुम अपनी छोटी सी स्कर्ट के उपर से ही अपनी चूत को रगड़ रही थी..
काव्या : "मुझे ये पसंद आई...और पापा को भी...ये पॅक कर दो..''
दोनों के चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान थी
उसके बाद काव्या ने लगभग 5 जोड़े और लिए, पर उन्हे पहना कर या पहन कर नही देखा, क्योंकि उसके हिसाब से आज के लिए इतना ही काफ़ी था..
घर पहुँच कर गाड़ी से निकलकर काव्या समीर के पास आई और उसकी बाहों को अपने हाथ मे फँसा कर अंदर की तरफ चल दी, जैसे वो उसकी गर्लफ्रेंड हो..और बोली : "पापा, बाकी के सेट्स मैं आपको आराम से पहन कर दिखाउंगी ...''
और दोनो एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए अंदर की तरफ चल दिए..
और उपर बालकनी मे खड़ी हुई रश्मि ये सोचकर खुश हो रही थी की बाप-बेटी मे लगाव होना शुरू हो गया है..
पर वो नही जानती थी की ये लगाव किस तरह का है. रश्मि बाथरूम मे चली गयी...उसने कुछ अलग ही सोचा हुआ था आज समीर के लिए.
कुछ ही देर मे समीर भी अपने बेडरूम मे पहुँचा,रश्मि को वहाँ ना पाकर वो बाथरूम के पास गया, दरवाजा अंदर से बंद था, वो समझ गया की रश्मि अंदर ही है..उसके लंड की हालत काफ़ी खराब थी आज, उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए..यहाँ तक की उसने अपना अंडरवीयर भी उतार फेंका, क्योंकि काव्या के साथ खरीदारी करते हुए उसके लंड की अकड़ जिस तरह से उस अंडरवीयर मे सिमटी पड़ी थी, उसे आज़ाद करना ज़रूरी था, खुली हवा मे झटके मारते हुए उसको काफ़ी आराम मिल रहा था..अब वो अपने हाथ मे खड़ा लंड लेकर रश्मि के निकलने का इंतजार करने लगा..आज वो उसकी चूत का कीमा बना देना चाहता था..जैसे उसकी चूत को कूटकर वो उसे इतनी सेक्सी लड़की पैदा करने का इनाम देना चाहता हो.
अब समीर से सहन नही हो रहा था, उसने दरवाजा खड़काया : "रश्मि...क्या कर रही हो...जल्दी बाहर आओ...''
अंदर खड़ी हुई रश्मि अपनी चूत पर एक बार और रेजर फेर रही थी...उसकी चूत भी तो सुबह से इतनी बार गीली हो चुकी थी,विक्की के साथ आज जो कुछ भी हुआ था, उसे सोचकर उसके बदन मे अभी तक रोमांच की ठंडक दौड़ रही थी..
कुछ ही देर मे उसने दरवाजा खोल दिया और बाहर निकल आई..
रश्मि को ऐसी हालत मे देखकर समीर एक पल के लिए तो अपनी सोतेली बेटी को भी भूल गया और उसका लंड रश्मि की लदी हुई जवानी के गुणगान करने लगा..
रश्मि ने आज अपने पति के द्वारा लाई हुई एक सेक्सी ब्रा पेंटी का सेट पहना हुआ था, बाथरूम मे उसने अपना गाउन उतार दिया था और सिर्फ़ अपनी ब्रा पेंटी मे ही बाहर निकल आई..
जितना शॉक समीर को लगा था, उतना ही रश्मि को भी लगा समीर को देख कर, वो सिर्फ़ अपनी सैंडो मे था और अपने लंड को हाथ मे पकड़ कर हिला रहा था..जैसे वो रश्मि का ही इंतजार कर रहा हो की कब बाहर निकले और उसकी चूत मे अपना लंड पेल दे..
दोनो के जिस्म बुरी तरह से सुलग रहे थे...रश्मि का विक्की की वजह से और समीर का काव्या की वजह से..अब समय था दोनो जिस्मों मे लगी हुई आग को बुझाने का..एक दूसरे से रगड़ कर..
दोनो एक दूसरे के गले से ऐसे चिपके जैसे बरसों के बिछुड़े प्रेमी हो..समीर ने अपनी बीबी को बेतहाशा चूमना और मसलना शुरू कर दिया..
रश्मि ने तो सोचा था की बाहर निकल कर समीर को अपने जिस्म के जलवे दिखा कर पहले तो थोड़ा तरसाएगी, फिर धीरे-2 उसके कपड़े उतार कर उसे नंगा करेगी, उसको सीडयूस करेगी , फिर खुद भी नंगी हो जाएगी और आराम से उसका लंड चूसेगी और अपनी चूत भी चुस्वाएगी...पर समीर ने सब गड़बड़ कर दिया था, उसे क्या पता था की वो पहले से नंगा खड़ा होगा और उसपर एकदम से झपटकर सारा प्लान बिगड़ देगा..
कभी-2 इंसान चुदाई के प्लान तो काफ़ी बड़े-2 बनाता है, पर जब करने की बारी आती है तो सब अपने हिसाब से ही होता चला जाता है.
यही हो रहा था आज रश्मि के साथ भी..पलक झपकते ही उसकी ब्रा पेंटी ज़मीन पर थी और वो पूरी नंगी होकर समीर की बाहों मे मचल रही थी..
वो भी पूरा नंगा हो चुका था, उसे रश्मि को धक्का सा देकर अपने पैरों मे बिठा लिया और उसे लंड चूसने के लिए बोला..वो अपने लंबे बालों को संभालती हुई अपने घुटनो के बल बैठकर समीर के लंड को चूसने लगी..
उसके गर्म मुँह मे अपना लंड जाते ही समीर का मुँह उपर की तरफ हो गया और वो उसके रेशमी बालों मे हाथ फेरते हुए अपनी आँखे बंद करके काव्या के बारे मे सोचने लगा..एक पल मे ही उसके दिमाग़ मे शोरुम का सीन आ गया जहाँ काव्या उस छोटे से केबिन मे थी और उसे अंदर बुलाते ही वो पूरी नंगी हो गयी और नीचे बैठकर उसके लंड को चूसने लगी..
रश्मि की चूत मे से पानी रिस रहा था और नीचे ज़मीन पर उसके रस की बूंदे गिरने लगी...वो आज अपनी पसंद का एक काम तो करना ही चाहती थी..उसके लिए समीर के झड़ने से पहले वो उसे बिस्तर पर ले जाना चाहती थी..
रश्मि ने एकदम से समीर का लंड अपने मुँह से निकाला और समीर को पीछे की तरफ धक्का देते हुए बेड पर गिरा दिया..ये समीर पर ज़बरदस्ती करने का उसका पहला मौका था, उसने आज तक समीर के कहे अनुसार ही काम किया था, वो जिस आसन मे उसे चोदना चाहता था, वो उसी आसन मे उसके कहे अनुसार आ जाती थी..वो कहे तो उसकी दासी बनकर उसका लंड चूसती , वो कहता तो कुतिया बनकर अपनी गांड पीछे कर देती..वो कहता तो अपनी टांगे फेला कर उसके सामने लेट जाती और वो कहता तो उछलकर उसके खड़े हुए लंड के उपर बैठकर उछल कूद करती..
 
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Update 62

और इस बार विक्की का नाम सुनते ही रश्मि का शरीर झनझना उठा...और उसकी सूख चुकी चूत मे फिर से गीलापन आने लगा..
रश्मि : "हाँ ...मिली तो थी...पर कुछ ढंग से बात नही हो पाई...वो कही गया हुआ था, और उसके बाद उसने दोस्तों के साथ कहीं जाना था, सिर्फ़ एक मिनट के लिए ही बात हो पाई...कल मिलना है दोबारा..कल उसके कॉलेज की छुट्टी है..''
समीर : "ह्म्*म्म्म....देखो, जो भी करना , सोच समझ कर करना, कोई प्राब्लम हो तो मुझे बता देना, मैं उसको सीधा कर दूँगा..''
रश्मि : "पता है जी...पर आप फ़िक्र ना करो...मैं संभाल लूँगी उसको...''
रश्मि ने बड़ी सफाई से झूट बोलकर आज का सारा किस्सा छुपा लिया, वैसे भी ऐसी बात अपने पति को बताई नही जाती..और साथ ही साथ उसने अगले दिन भी विक्की से मिलने का रास्ता सॉफ कर लिया..और कल उसको विक्की से कहा मिलना है और क्या-2 करना है, ये सोच सोचकर उसको सारी रात नींद ही नही आई..
उसको तो बस इंतजार था कल का, की कब सुबह हो और समीर ऑफीस जाए..काव्या कॉलेज जाए..और वो विक्की से मिलने..
और ये बात विक्की भी नही जानता था की उसका जादू इस कदर रश्मि को फिर से उसके पास ले आएगा, वो भी अगले ही दिन. अगले दिन समीर और काव्या के जाते ही रश्मि पार्लर मे पहुँची और अपने शरीर के सारे अन्दरूनी बाल निकलवा दिए...वो ऐसे सज संवर रही थी मानो उसकी सुहागरात होने वाली हो..उसके मन मे आज वही रोमांच था जो उसकी पहली शादी के समय था..घर आते-आते 12 बज गये..उसने लंच किया और फिर झटपट तैयार होकर बाहर निकल गयी...भले ही वो जल्दबाज़ी मे तैयार हुई थी पर वो आज काफ़ी सेक्सी लग रही थी...वजह थी उसकी साड़ी का डिज़ाइन..शिफोन के कपड़े की हल्के गुलाबी रंग की साड़ी जो उसने नाभि से काफ़ी नीचे करके बाँधी थी और ब्लाउस का गला भी काफ़ी गहरा था..जिसमे उसके किलो-2 के मुम्मे संभाले नही संभल रहे थे.
उसने ड्राइवर को ले जाना सही नही समझा और मेन रोड से ऑटो करके अपने पुराने मोहल्ले की तरफ चल दी..अभी सिर्फ़ 4 ही बजे थे..आधा घंटा लगना था उसको वहाँ पहुँचने मे और विक्की का कॉलेज से आने का समय 5 बजे का था..
वो बाहर ही उतर गयी और धीरे-2 चलती हुई विक्की के घर के बाहर पहुँच गयी..वो उसी की गली का आख़िरी मकान था, उसके घर वो पहले कभी भी नही आई थी..पहली वजह थी विक्की का आवारापन और दूसरी था की उस घर मे कोई औरत नही थी...सिर्फ़ विक्की और उसका बाप ही रहते थे..उसका बाप भी हर वक़्त शराब के नशे मे डूबा रहता था..
रश्मि ने दरवाजा खड़काया..एक दो बार खड़काने के बाद दरवाजा खुल गया..विक्की का बाप पायज़ामे और बनियान मे बाहर निकला..उसकी बोझिल आँखे बता रही थी की वो या तो सोकर उठा है या फिर शराब पीकर..
उसके बाप का नाम था देवी लाल उमर करीब 48 के आसपास थी...बिल्कुल मरियल सा ...जैसे उसके अंदर की हवा निकाल दी गयी हो..और चेहरे पर हल्की सफेद दाढ़ी भी थी.
रश्मि : "जी ...नमस्ते ...वो विक्की से मिलना था..''
देवी लाल ने उसको उपर से नीचे तक ऐसे देखा जैसे उसको चोद ही देगा अपनी आँखो से...फिर वो बोला : "वो नही है.....''
इतना कहकर उसने बड़ी ही बेरूख़ी से दरवाजा बंद कर दिया..
बेचारी रश्मि को बड़ी बेइजत्ती महसूस हुई...वो आ तो गयी थी पर अब उसके अंदर जो विक्की से मिलने की ललक थी वो बड़ चुकी थी,इसलिए वापिस जाने का तो सवाल ही नही था..बाहर खड़ी रहकर वो उसका वेट नही करना चाहती थी,क्योंकि कोई भी उसको पहचान सकता था,आख़िर बरसों रही थी वो उस गली मे..
उसने निश्चय कर लिया की वो अंदर बैठकर विक्की का इंतजार करेगी..पर ये निर्णय कितना ख़तरनाक हो सकता था वो नही जानती थी..
उसने दरवाजा फिर से खड़काया.
देवी लाल फिर से बाहर निकला, वो अब थोड़ा गुस्से मे लग रहा था..वो कुछ बोलता, इससे पहले ही रश्मि ने बड़ा मासूम सा चेहरा बनाया और सेक्सी से अंदाज मे बोली : "जब तक विक्की नही आता, क्या मैं अंदर बैठकर उसका इंतजार कर सकती हू...''
देवी लाल ने कुछ देर सोचा फिर बोला : "आ जाओ अंदर...''
और वो पलटकर अंदर की तरफ चल दिया..
रश्मि धड़कते दिल से अंदर आ गयी..
देवी लाल : "दरवाजा बंद कर दो...''
उसकी रोबिली आवाज़ सुनकर एक पल के लिए तो वो सहम सी गयी...उसने दरवाजा बंद कर दिया और उसके पीछे-2 अंदर आ गयी.
अंदर काफ़ी घुटन सी थी...देवी लाल सीधा चलता हुआ अपने छोटे से कमरे मे पहुँचा, जहाँ एक बड़ा सा बिस्तर अस्त-व्यस्त था और पास ही एक टेबल था, जिसपर शराब की बोतल और ग्लास रखा हुआ था..
उसने ग्लास मे बची हुई शराब का एक घूँट लिया ..रश्मि का अंदाज़ा सही निकला, वो शराब ही पी रहा था..
रश्मि ने हकलाते हुए पूछा : "जी वो ....विक्की कब तक आएगा...''
देवी लाल : "इतनी क्यो मचल रही है विक्की से मिलने के लिए....चुदाई करवानी है क्या उससे...''
उसके मुँह से एकदम से ऐसी बेबाकी भारी बात सुनकर एक पल के लिए तो रश्मि सहम सी गयी...और अगले ही पल गुस्से से तमतमा उठी..पर वो कुछ बोलने ही वाली थी की देवी लाल अपनी जगह से उठा और उसकी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया...और अगले ही पल वो हुआ जिसकी उसने आशा भी नही की थी..
देवी लाल ने अपनी लूँगी खोल दी, उसने अंदर कुछ भी नही पहना हुआ था..उसकी मरियल से टाँगो के बीच लटका लंड देखकर रश्मि की आँखे फैल सी गयी..
वो इसलिए की एक तो उसने आशा भी नही की थी की विक्की का बाप इतनी बेशर्मी से एकदम से अपने कपड़े उतार कर उसे अपना लंड दिखाएगा...और लंड क्या वो तो एक घिया था..इतना मोटा और लंबा लंड तो उसने आज तक नही देखा था..और अभी तो वो बैठा हुआ था, जब खड़ा होगा तो कैसा लगेगा..उसका शरीर काँपने लगा..
देवी लाल : "तेरी चूत मे जो आग लगी है वो मैं भी बुझा सकता हू...विक्की का इंतजार करने से क्या होगा..चल इधर आ..मैं तुझे बताता हू की असली चुदाई किसे कहते हैं...''
पता नही क्या सम्मोहन था उसकी बातों मे...या ये कह लो उसके लंड मे की रश्मि अपनी पलकें झपकना भी भूल गयी...और मंत्रमुग्ध सी चलती हुई उसके पास तक पहुँची..
देवी लाल ने भी शायद नही सोचा था की इतनी आसानी से ये अंजान औरत उसके लंड को देखते ही उसके जाल में फँस जाएगी..
रश्मि चलती हुई आगे आ रही थी..उसके हाथ से उसका पर्स फिसलकर नीचे गिर गया...उसकी साड़ी का सिल्की पल्लू भी खिसककर नीचे आ गया...और वो अपनी बड़ी-2 छातियाँ आगे की तरफ निकाले देवी लाल के सामने पहुँच गयी..
उसके मुँह से एक तेज दुर्गंध आ रही थी शराब की...वैसे एक विशेष बात थी रश्मि के साथ..उसे शराब की महक बहुत पसंद थी...वैसे तो उसने आज तक शराब पी नही थी..और ना ही उसका पहला पति पीता था..पर समीर के मुँह से आती महंगी शराब की गंध उसको पागल सा कर देती थी..वो उसके होंठों को उस दिन ऐसे चूसती थी जैसे उसपर कोई शहद लगा हो...उसकी साँसों को अपने चेहरे पर महसूस करके वो खुद नशीली हो जाती थी..
और आज वही सब वो देवी लाल के सामने भी फील कर रही थी...भले ही उसकी शराब काफ़ी सस्ती थी और ज़्यादा दुर्गंध वाली थी पर उसका असर उसके उपर उतना ही हो रहा था जितना समीर की शराब का होता था..बल्कि आज ऐसी परिस्थिति मे तो वो नशा और भी ज़्यादा चढ़ रहा था उसके उपर....
देवी लाल ने उसका हाथ पकड़ा और सीधा अपने उठ रहे लंड के उपर रख दिया..रश्मि के शरीर के सारे तार झनझना उठे..देवी लाल की आँखों मे एक अजीब सी कशिश थी..उसके सूखे हुए होंठो से निकल रही शराब की दुर्गंध उसको पागल सा कर रही थी..शायद ये बात देवी लाल नही जानता था की उसको शराब की गंध पसंद है, वो सोच रहा था की इतनी सभ्य सी दिखने वाली औरत को शायद उसके मुँह से आ रही दुर्गंध पसंद नही आ रही हो और ऐसा ना हो की वो सूँघकर वो बिफर जाए और भाग जाए..और वो ऐसा हरगिज़ नही चाहता था, क्योंकि आज काफ़ी सालो के बाद उसके सामने इतनी सेक्सी औरत आई थी जिसकी वो चुदाई करने के बारे मे सोचने लगा था.
इसलिए देवी लाल अपना मुँह इधर उधर करते हुए अपनी साँस को उसके सामने निकालने से कतरा रहा था..और यही बात रश्मि को उत्तेजित कर रही थी..वो उसके मुँह से निकल रही गंध की दीवानी हो चुकी थी..वो ये भी भूल चुकी थी की वो वहाँ किसलिए आई है,और किसके लिए आई है..
वो उत्तेजित तो पहले से ही थी, देवी लाल ने तो बस अपना लंबा लंड दिखाकर उसकी अंदर की आग को और ज़्यादा भड़का दिया था और शराब ने तो उस उत्तेजना की आग पर घी का काम किया और वो अब बिफरने सी लगी थी..और इससे पहले की देवी लाल कुछ समझ पाता , उसने उसके मरियल से शरीर को अपनी बाहों मे भरा और उसके शराब से भीगे होंठों पर टूट पड़ी..और उन्हे ज़ोर-2 से चूसने लगी.
वो बेचारा देवी लाल ये सोचने की कोशिश कर रहा था की आख़िर उसके अंदर ऐसा क्या देख लिया इसने जो इस तरह से उसपर टूट पड़ी है..उसने तो ये सोचकर की उसके बेटे से मिलने आई ये औरत केरेक्टर की ढीली होगी, इसलिए ट्राइ करने की सोची थी और बेशरम होकर अपनी लूँगी भी खोल दी थी..
पर जब सामने वाली ही इतनी उत्तेजना से भरकर उसका साथ दे रही है तो वो क्यो पीछे हटे, उसने भी अपनी मरियल उंगलियों से उसके मोटे-2 स्तन दबाने शुरू कर दिए..
और अब तक उसका लंड पूरे आकार मे आ चुका था..जिसे रश्मि ने जैसे ही चुभता हुआ महसूस किया , वो उसे देखने लगी और वो नज़ारा देखकर उसका रही सही समझ भी जाती रही की वो किसके साथ क्या कर रही है..
वो झट से नीचे बैठ गयी और पलक झपकते ही उसके खंबे को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगी..
देवी लाल के लिए ये नया था, आज तक उसके लंड को किसी ने नही चूसा था, वो सिसक उठा...अपने पंजों पर खड़ा होकर मचल उठा..उसके बालों को पकड़कर उसे धक्का देने लगा, क्योंकि रश्मि के दाँत उसके लंड पर चुभ रहे थे..पर वो भूखी शेरनी की तरह उसके लंड के माँस को नोचने मे लगी थी..ऐसी उत्तेजना का बुखार उसपर आज तक नही चड़ा था..अचानक रश्मि ने पास पड़ी बोतल को उठाया और उसे उल्टा करते हुए उसने देवी लाल के लंड पर शराब की कुछ बूंदे टपका दी...
ये काम वो काफ़ी समय से समीर के साथ भी करना चाहती थी..पर अपनी घरेलू औरत वाली इमेज के चलते वो कर नही पा रही थी...पर आज जैसे उसको सब कुछ करने की छूट सी मिल गयी थी..
देवी लाल उसकी हरकत देखकर एक ही पल मे समझ गया की असल मे माजरा क्या है, क्यो वो उसके शराब से तर होंठों को चूसने मे लगी थी..उसको शराब का नशा पसंद था..
लंड पर शराब की बूंदे फिसल कर उसकी बॉल्स तक आई और जैसे ही वो नीचे गिरने को हुई, रश्मि ने अपनी जीभ फैलाकर उसके टटटे चाट लिए...और वही नशीला स्वाद उसे अपने मुँह मे महसूस हुआ जो देवी लाल के मुँह से आ रहा था, ये भले ही रश्मि का पहला मौका था शराब चखने का, पर उसे ऐसा लग रहा था की वो बरसों से पीती आई है..
कुछ ही देर मे रश्मि ने उसके लंड और टट्टों को चाटकर चमका दिया.. देवी लाल को ऐसा मज़ा आज से पहले कभी नही आया था..उसने बोतल अपने हाथ मे ली और कुछ और बूंदे टपका दी..उन्हे भी वो भूखी बिल्ली चट कर गयी...अब वो देवी लाल को ऐसे देख रही थी जैसे कुत्ता देखता है अपने मालिक को की कब वो रोटी का टुकड़ा उसके पास फेंके जिसे वो खा जाए..ऐसी ही चमक दिख रही थी रश्मि की प्यासी आँखों मे..
देवी लाल ने बोतल अपने मुँह से लगा ली...और एक तगड़ा सा घूंठ भरकर शराब को अपने मुँह मे इकट्ठा कर लिया..और फिर उसने रश्मि को इशारे से उठने के लिए कहा..वो समझ गयी की वो क्या चाहता है...वो वफ़ादार कुतिया की तरह उपर उठी और उसके चेहरे के बिल्कुल पास आ गयी..और अगले ही पल खुद ही अपने रसीले होंठों को उसके होंठों से लगाकर उसके मुँह मे इकट्ठी शराब को अपने अंदर ले लिया और एक ही घूंठ मे पी गयी..
रश्मि को ऐसा लगा की उसने अमृत पी लिया है...उसका शरीर हवा मे उड़ता हुआ महसूस हुआ उसको..नशे का एक झटका सा लगा उसके शरीर को...उसकी आँखे बोझिल सी होने लगी और वो लड़खड़ा सी गयी..
देवी लाल ने उसको अपनी बाहों मे लेकर संभाल लिया...दूसरे हाथ मे पकड़ी बोतल से उसने फिर से एक और घूंठ भरा..रश्मि फिर से चुंबक की तरह उसके चेहरे की तरफ खींचती चली गयी..पर इस बार देवी लाल ने कुछ और ही सोचा हुआ था..उसने रश्मि के ब्लाउस के हुक खोलने शुरू कर दिए..
रश्मि भी उन कपड़ों की घुटन से बाहर निकलना चाहती थी..आज़ाद परिंदे की तरह नंगी होकर नशे के बादलों मे उड़ना चाहती थी..उसने झट से अपने सारे हुक खोलकर अपना ब्लाउस निकाल फेंका और फिर अपनी ब्रा भी...
उसके कठोर मुम्मे देखकर एक पल के लिए तो देवी लाल का नशा भी काफूर सा हो गया..उसके होंठों के किनारों से शराब बहकर बाहर गिरने लगी..पर जो उसने सोचा था, वो करना भी ज़रूरी था..
वो अपने शराब से भरे होंठों के गुब्बारे उसके स्तनों पर लेकर गया और अपना मुँह ठीक उसके निप्पल्स के उपर खोलकर उसके मुम्मे को निगल गया..मुँह खुलते ही उसके अंदर भरी शराब रश्मि के सफेद पर्वत पर फैल गयी और उसकी जलन को महसूस करते ही रश्मि तड़प सी उठी..
देवी लाल ने अपना गीला मुँह दूसरे मुम्मे पर भी फेराया और वहाँ भी शराब को पूरी तरह से लगाकर उसके दोनो मुम्मों को पूरी तरह से शराबी कबाब बना दिया..
फिर आराम से वो एक-2 करते हुए उन्हे चाटने लगा..उसकी जीभ की हर चटाई से वो ज़ोर से सिसक उठती..उसके चेहरे को ज़ोर से अपने मुम्मे पर दबा देती...और ज़ोर -2 से चिल्लाती ...
''अहह......... ओह .....कितना मज़ा आ रहा है...............चाट ले इसको......चूस ले.....खा जा इन्हे.......नोच ले मेरे मुममे......आहह''
देवी लाल की हर बाईट से वो खूंखार सी होती चली जा रही थी...और साथ ही साथ शराब का नशा भी उसपर असर करने लगा था..एक अजीब सी खुमारी छा रही थी...उसका सिर हवा मे घूम रहा था..अब वो जल्द से जल्द उसके लंबे लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती थी...
वो बिस्तर पर चादर की तरह बिछ गयी...अपनी साड़ी और ब्लाउस को घुटने से उपर उठा कर एक ही बार मे उसने अपनी चिकनी चूत देवी लाल के सामने परोस दी..और उसे अपनी टाँगों से पकड़कर अंदर की तरफ खींचने लगी..
देवी लाल भी पूरी तरह से मूड मे आ चुका था...आज तो उसने ऐसी चुदाई करनी थी की अपनी पिछले सालों की सारी कसर निकाल सके..
उसने शराब की बोतल उठाई और बची हुई शराब को अपने मुँह मे भरकर नीचे झुका और रश्मि उसपर ऐसे झपटी जैसे उसने कोई बोटी दिखा दी हो अपने पालतू जानवर को..और एक ही झटके मे उसके होंठ रश्मि के कब्ज़े मे थे..और देवी लाल का लंड उसकी चूत मे.
''उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म। ............... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ,,,,,,,,,,,,अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह''
रश्मि नशे मे थी, इसलिए वो महसूस नही कर पाई की इतना मोटा लंड उसकी चूत मे कैसे गया..अगर होश में होती तो पूरे मोहल्ले को अपने सिर पर उठा लेती..
एक लंबी स्मूच करने के बाद देवी लाल उपर उठा और उसके दोनो मुम्मों को पकड़कर अपनी पकड़ बनाई और अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा..जिसपर रश्मि की चूत का रस लग जाने की वजह से वो चमक रहा था
और जैसे ही धक्का देकर फिर से अंदर जाने लगा..बाहर का दरवाजा खड़का..और आवाज़ आई..
''बापू.......ओ......बापू...... आज फिर से पीकर सो गया है क्या..''
 
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विक्की बाहर खड़ा होकर ज़ोर-2 से दरवाजा पीट रहा था.
देवी लाल ने घबराकर रश्मि की तरफ देखा..वो नशे की हालत मे जाकर बेहोश हो चुकी थी..
ये देखकर देवी लाल की फट कर हाथ मे आ गयी..उसकी समझ मे नही आ रहा था की क्या करे और क्या नही. बाहर खड़ा विक्की लगातार दरवाजा पीट रहा था..देवी लाल की हालत खराब थी, उसका सारा नशा उतर चुका था, उसकी अपने बेटे से काफ़ी फटती थी, क्योंकि वही उसके लिए पैसों का इंतज़ाम करता था,खाने पीने का,दारू का..
अचानक देवी लाल को पिछले दरवाजे की याद आई,जो पीछे वाली तंग गली मे खुलता था..उसने जल्दी -2 रश्मि के सारे कपड़े ठीक किए और अपनी सारी शक्ति समेत कर किसी तरह से रश्मि को उठाया और पिछले दरवाजे से लेजाकर एक खड़ी हुई रेहड़ी के उपर लिटा दिया
फिर दरवाजा बंद करके वापिस अंदर आया और भागकर बाहर का दरवाजा खोला.
विक्की दनदनाता हुआ सा अंदर आ घुसा : "इतनी देर से बाहर खड़ा हू,क्या कर रहे थे आप,कितनी बार बोला है की दिन के समय ना तो पिया करो और ना ही सोया करो...''
फिर वो पैर पटकता हुआ अंदर आ गया, वो पूरी तरहासे भीग गया था..
देवी लाल ने बाहर निकल कर देखा तो काफ़ी तेज बारिश शुरू हो गयी थी..उसने तो ये देखा भी नही और रश्मि को उठा कर बाहर छोड़ आया था वो..पता नही क्या हाल हो रहा होगा उसका..
अगर वो होश मे आ गयी तो वापिस अंदर आ जाएगी..और फिर उसका क्या हश्र होगा ये तो वही जानता था..
उसने जल्दी से बहाना बनाया की अपने दोस्त के घर कुछ काम है और वो बाहर निकल आया..और अपने एक दोस्त के घर की तरफ निकल गया,जो वहाँ से काफ़ी दूर था.
दूसरी तरफ, अपने चेहरे पर गिरते पानी से एकदम से रश्मि को होश आ गया, उसने आस पास देखा और सोचने लगी की वो वहाँ कैसे आ गयी..उसके दिमाग़ मे एक पल मे ही सारा वाक़या गुजर गया, पर शराब पीने से वो कब लुड़क गयी ये उसको याद नही था..वो पूरी भीग चुकी थी...और सोचने लगी की वो वहाँ कैसे आई..
उसने गली से बाहर निकल कर देखा तो उसकी समझ मे आया की वो कहाँ है...आख़िर वो भी तो उसी मोहल्ले मे रही थी..
वो मुड़ कर वापिस विक्की के घर तक पहुँची,नशे की वजह से वो अभी भी लड़खड़ा रही थी पर आज वो किसी भी हालत मे विक्की से मिलना चाहती थी, चाहे उसके लिए उसके बाप से ही क्यो ना चूदना पड़े
उसने फिर से दरवाजा खड़काया...विक्की बाथरूम मे था और अपने गीले कपड़े उतार कर नहा रहा था..
वो झल्लाता हुआ सा टावल लपेट कर बाहर निकला और दरवाजा खोल दिया, उसने तो सोचा था की उसका बाप वापिस आ गया होगा..पर बाहर रश्मि को भीगा हुआ खड़ा देखकर उसकी आँखे आश्चर्य से फैल गयी..
रश्मि को भी समझ नही आया की इतनी जल्दी विक्की कैसे वापिस आ गया..और फिर उसकी समझ मे आया की वो क्यो पिछली गली मे पहुचा दी गयी थी..उसकी नज़रें देवी लाल को ढूढ़ने लगी..
विक्की : "अरे आंटी आप....इस समय...और वो भी मेरे घर...''
रश्मि (इधर उधर देखते हुए ) : "वो तुम्हारे पापा नही है क्या ..."
विक्की : "जी ...वो तो अभी शायद अपने दोस्त के घर गये हैं...दो घंटे मे ही आएँगे वहाँ से.....''
उसकी बात सुनकर जैसे उसने राहत की साँस ली और जल्दी से अंदर आ गयी..
विक्की हैरान सा खड़ा होकर उसे अंदर आते हुए देखता रहा...फिर उसने जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया..टावल मे उसके लंड ने खड़े होकर बवाल मचाना शुरु कर दिया था ..रश्मि के मोटे-2 मुम्मे पानी मे भीगकर पानी भरे गुब्बारों की तरहा थिरक रहे थे..उसके दिमाग़ मे तो कल की बातें ही घूम रही थी..वो समझ गया था की वो वहाँ किसलिए आई है...उसके लंड से चुदने के लिए..पर वो भी पूरा कमीना था, वो जानता था की ये मछली तो उसके जाल मे पूरी फँस ही चुकी है, उसका असली निशाना तो उसके बेटी काव्या थी, जिसने उसकी कई बार बेइजत्ती की थी..वो चाहता तो रश्मि को अभी के अभी चोद कर मज़े ले सकता था, पर वो उसको अच्छी तरह तड़पाना चाहता था, ताकि वो खुद उसकी मदद करे काव्या को चोदने मे..पर वो बिदक ना जाए इसके लिए उसको ललचाना भी ज़रूरी था..और सही मौके पर ही उसे अपनी योजना को अंजाम देना था.
विक्की : "अरे आंटी, आप तो पूरी भीग गयी हैं....आप अंदर जाओ उस कमरे मे, वहाँ मेरी मों के कपड़े पड़े हैं कुछ, वो पहन लो..''
एक तो शराब का नशा, उपर से आधी चुदकर उसकी बुर भी जल रही थी...वो किसी भी तरह से आज विक्की का लंड लेना चाहती थी..वैसे भी चुदाई के लिए उसको कपड़े उतारने ही थे, वो अंदर गयी और अलमारी खोलकर देखने लगी..काफ़ी पुराने कपड़े थे वो, और छोटे भी थे..शायद उसकी माँ थोड़ी दुबली पतली सी थी..उसने एक पेटीकोट उठाया और अपने पूरे कपड़े उतारकर सिर्फ़ वही पहन लिया, उसने अपने मोटे-2 मुम्मे उस पेटीकोट के नीचे छुपा लिए ,नीचे से वो पेटीकोट उसकी जाँघो तक ही आ रहा था..और उसमे वो काफ़ी सेक्सी लग रही थी..वो जानती थी की उसको ऐसी हालत मे देखकर विक्की सब समझ जाएगा और उसपर टूट पड़ेगा..
एक भले घर की औरत एक रंडी जैसा बिहेव कर रही थी..पर इस वक़्त उसके दिमाग़ मे ये सब बाते नही आ रही थी, उसे तो बस चिंता थी अपनी दोनो टाँगो के बीच हो रही खुजली की.
वो धीरे-2 चलती हुई बाहर आई..विक्की वहीं खड़ा था अपने टॉवल मे..एक पल के लिए तो उसका भी ईमान डोल गया रश्मि को ऐसी हालत मे देखकर..उसके बदन से टपक रही पानी की बूंदे देखकर उसके मुँह मे भी पानी आ गया..वो जानता था की रश्मि उसको ललचा रही है..पर आज उसकी परीक्षा की घड़ी थी..उसे किसी भी तरह से अपने आप पर कंट्रोल रखना था..
रश्मि : "वो सब कपड़े तो छोटे लग रहे थे...इसलिए यही पहन लिया बस...''
विक्की : "अच्छी ...लग रही हो आप इसमे भी...''
उसकी नज़रें रश्मि के मुम्मों के उपर लगे किशमिश के दानों पर टिकी थी, जो गीले कपड़े से झाँककर चमक रहे थे.
फिर रश्मि बोली : "मैं तो तुम्हारा थेंक्स करने के लिए आई थी....कल तो सही से बोल भी सकी,तुमने जिस तरह से कल मेरी इज़्ज़त बचाई.....मैं तुम्हारी काफ़ी एहसानमंद हू....थेंक्स ..''
विक्की कुछ नही बोला, वो सुनता रहा..
कुछ देर बाद रश्मि बोली : "तुमने तो बोला था की मुझे फोन करोगे...पर तुम्हारा फोन आया ही नही, इसलिए मैं खुद आ गयी..''
वो बचकानी सी बातें कर रही थी, जिसका विक्की पूरी तरह से स्वाद ले रहा था..वो मुस्कुरा रहा था.
विक्की : "मैं घर आकर आप ही को फोन करने वाला था...अच्छा हुआ आप आ ही गयी यहाँ..लेकिन थेंक्स बोलने का आपका तरीका कल तो कुछ और था..आज इतनी दूर से खड़े होकर क्यो थेंक्स बोल रही है..''
उसकी बात सुनते ही रश्मि के पूरे शरीर मे झुरजुरी फैल गयी...वो समझ गयी की विक्की क्या कहना चाहता है..और वैसे भी, वो खुद भी तो यही चाहती थी..
वो धड़कते दिल के साथ आगे आई और विक्की के बिल्कुल करीब पहुँचकर उसने उसकी तरफ देखा..और फिर एकदम से उसपर झपटकर उसके चेहरे को अपने हाथों मे दबोच कर उसके होंठों को किसी पिशाचिनी की तरह चूसने लगी..उसकी फुटबॉल जैसी छातियाँ विक्की के चौड़े सीने से पीसकर पिचक कर रह गयी..विक्की ने भी अपने दाँतों और होंठों को काम पर लगा दिया और रश्मि के योवन से भरे होंठों का शहद इकट्ठा करने लगा.
उसके मुँह से आ रही शराब की महक सूँघकर विक्की समझ गया की वो पीकर आई है...पर ये सोचकर वो कुछ नही बोला की शायद ये उसका रोज का काम होगा...उँचे लोगो की उँची बातें....
दोनो एक दूसरे को ऐसे चूम चाट रहे थे जैसे आजकल के प्रेमी प्रेमिका हो..हालाँकि दोनो की उम्र मे काफ़ी अंतर था, पर विक्की को उसको चूमते हुए एक पल के लिए भी ऐसा नही लगा की वो किसी आंटी को चूम रहा है, इतना जोश और उत्तेजना तो आजकल की लड़कियों मे होती ही नही है...उसकी चुदाई करने मे सच मे उसको बहुत मज़ा आने वाला था.
रश्मि के हाथ सीधा उसके टावल पर जा पहुँचे और उसने एक ही झटके मे उसे उतार फेंका और अब विक्की उसकी नज़रों के सामने पूरा नंगा खड़ा था..अपने खड़े हुए लंड को लिए...जो उसकी उम्मीदों के अनुसार काफ़ी लंबा और मोटा था..
रश्मि एक दम से उसके सामने बैठ गयी और उसके भुट्टे जैसे लंड को पकड़ कर प्यासी नज़रों से देखने लगी...और जैसे ही वो अपना मुँह खोलकर उसको निगलने लगी, विक्की ने कुछ ऐसा बोल दिया की उसकी झाँटे सुलग उठी..
विक्की : "आंटी....काव्या कैसी है....मुझे याद करती है या नही..''
उसकी ये बात सुनकर रश्मि यथार्थ के धरातल पर आ गिरी...उसे तो याद भी नही रहा था की वो उसकी बेटी का बॉयफ्रेंड है...और उसको अपनी बेटी से दूर रहने की हिदायत देने के लिए ही वो उसके पास आई थी कल...पर कल और आज के बीच जो कुछ भी हुआ था, उसके बाद तो रश्मि के दिमाग़ से ये बात निकल ही चुकी थी की विक्की तो उसकी बेटी के पीछे पड़ा है....कब और कैसे वो खुद विक्की के जाल मे फँस कर उसके लंड की दीवानी हो गयी थी ये वो खुद भी नही जानती थी..
उसके हाथ मे विक्की का लंड था...पूरा खड़ा हुआ...और उसकी चूत बुरी तरह से गीली होकर बह रही थी...ऐसी हालत मे विक्की ने ये बात बोलकर उसको एहसास करवाया था की वो असल मे है कौन...और किसलिए वहाँ आई है...
पर अपनी चूत की हालत वो अच्छी तरह से जानती थी..उसके अंदर उठ रही खुजली के आगे उसको अपनी बेटी और उसका बॉयफ्रेंड नही बल्कि अपनी चूत की खुजली मिटाने वाला एक मोटा लंड ही दिखाई दे रहा था...उसने बिना कुछ कहे उसके लंड को एक ही झटके मे अपने मुँह के अंदर डाल लिया...और ज़ोर-2 से चूसने लगी..
विक्की को मज़ा तो बहुत आया, पर उससे भी ज़्यादा मज़ा वो रश्मि को लज्जित करके लेना चाहता था..वो फिर से बोला : "काव्या भी ऐसे ही चूसती है मेरा लंड .....''
उसकी ये बात तो रश्मि को दिल के अंदर तक चुभ गयी...
पर उसको ये बात एक माँ की तरह नही बल्कि एक प्रेमिका की तरह चुबी....एक ही दिन मे वो तो विक्की पर खुद का कब्जा समझ बैठी थी...पर ऐसी हालत मे आकर भी विक्की उसके सामने उसकी बेटी का नाम ले रहा है, उसकी तारीफ कर रहा है, ये उसको बिल्कुल भी पसंद नही आया..वो जलन के मारे गुस्से मे भर गयी और एकदम से उठकर उसने अपने शरीर पर पहने पेटीकोत को उतार फेंका और विक्की के सामने पूरी नंगी होकर खड़ी हो गयी..
और पूरे गुस्से मे भरकर वो विक्की से बोली : "तू अपने आप को ज़्यादा चालू समझ रहा है...मैं अपनी जवानी खुद तेरे सामने लेकर खड़ी हू और तू काव्या को बीच मे ला रहा है...वो तो बच्ची है अभी...देख, इसे कहते हैं असली जवानी...ये देख, मेरी ब्रेस्ट, कभी देखी है तूने इतनी बड़ी छातियाँ,कभी चूसा है तूने ऐसे बूब्स को...और ये देख..मेरी चूत ....अभी भी दो उंगलियाँ एक साथ अंदर जाने मे दर्द होता है...तेरा लंड जब इसमे जाएगा तो सोच कितना मज़ा मिलेगा तुझे, और तू है की काव्या की बातें कर रहा है अभी तक...''
रश्मि तो शराब और ईर्ष्या के नशे मे आकर अपने आप को पूरी तरह से खोलकर खड़ी हो गयी थी विक्की के सामने, और अपने शरीर के हर अंग की तारीफ खुद ही करके वो अपनी बेटी के मुक़ाबले ज़्यादा अंक लेने की कोशिश कर रही थी विक्की से..
और वो ठीक भी था, वो जो कुछ भी कह रही थी,विक्की उसकी बात से पूरी तरह से सहमत भी था..काव्या तो उसके भरे शरीर के सामने आधी भी नही थी...उसके छोटे-2 नींबू और रश्मि के मोटे-2 रसीले खरबूजे, काव्या का पतला सा पेट और रश्मि का गूदे से भरा हुआ , काव्या की पतली सी कमर, और रश्मि की कमर पर जो कटाव था उसका तो कोई मुकाबला ही नही था, और तो और काव्या की चौड़ी गांद भी उसकी माँ की गुदाज गांद के सामने कुछ भी नही थी...
विक्की से भी रहा नही गया, उसने अपने हाथ आगे किए और रश्मि के मोटे-2 मुम्मे अपनी उंगलियों से दबाने लगा...वो सच ही कह रही थी, ऐसी छातियाँ तो उसने आज तक नही पकड़ी थी.
पर एक बात थी जो रश्मि को काव्या से अलग करती थी...वो थी काव्या की कुँवारी चूत ...
चूत एक ऐसी चीज़ होती है जो एक बार चुद जाए तो उसमे वो बात नही रहती जो कुँवारी मे होती है...दुनिया की कोई भी ताक़त उसको पहले जैसा नही कर सकती..
पर इस वक़्त तो रश्मि को अपना ही पलड़ा भारी लग रहा था...क्योंकि उसकी बात सुनकर विक्की का लंड बुरी तरह से फुफ्कार रहा था...कारण था उसका उफान मार रहा यौवन जो अब विक्की की भूखी नज़रों के सामने पूरा नंगा था.
 
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Update 64

पर फिर भी विक्की अपनी तरफ से कोई पहल नही कर रहा था, वरना ऐसी हालत मे देखकर कोई भी इंसान अपने आप पर सब्र नही रख सकता..वो समझ गयी की ये आजकल के जवान लड़के-लड़कियों पर जो सच्चे प्यार का भूत सवार होता है, वही इस वक़्त विक्की के सर पर भी सवार है...और शायद इसलिए वो अपनी प्रेमिका की माँ के साथ कुछ भी करने से कतरा रहा है..उसने ऐसी सीचुएशन को दूसरी तरह से निपटने की सोची..
रश्मि धीरे से आगे आई और विक्की के गले से लिपट गयी...और उसके हाथों को पकड़ कर उसने अपनी कमर पर रख दिया..
रश्मि : "मैं जानती हूँ की तुम मेरी बेटी से प्यार करते हो...और जो कुछ भी मैं कर रही हू वो सही नही है..पर मेरा यकीन मानो, ये जो कुछ भी हम कर रहे हैं, इसका काव्या या किसी और को कुछ भी पता नही चलेगा...''
विक्की भी उसकी चालाकी भरी बात सुनकर दंग रह गया, वो सोच भी नही सकता था की ऐसी मासूम सी दिखने वाली औरत अपनी चुदाई के लिए इतनी गिर सकती है की अपनी ही बेटी के प्रेमी से चुदने के लिए तैयार हो गयी और उपर से वो बात छुपाने के लिए भी कह रही है...भले ही वो उसकी बेटी का असली प्रेमी नही है, पर अगर होता भी तो ऐसे लुभावने ऑफर से कोई भी बच कर नही निकल सकता था..
पर विक्की का शातिर दिमाग़ भी अपनी चाल चल रहा था.
विक्की : "मैं समझता हू आंटी...पर आप भी समझने की कोशिश करिए...मैने काव्या को वचन दिया है...वही मेरी जिंदगी की पहली लड़की होगी , जिसके साथ मैं फकिंग करूँगा...आप फकिंग के अलावा मेरे साथ कुछ भी कर सकती है, मुझे कोई प्राब्लम नही है...पर इस काम के लिए आपको तब तक वेट करना होगा , जब तक मैं उसकी सील नही तोड़ देता..और अपनी वर्जीनीटी भी मैं उसके साथ नही गँवा देता...''
उसकी सपाट सी बात सुनकर रश्मि दंग रह गयी, वो कितनी आसानी से उसकी ही बेटी को चोदने की बात कर रहा था उसके सामने...और वो किसी भी तरह का गुस्सा भी नही कर सकती थी...अभी तक की बातों से वो इतना तो जान ही गयी थी की दोनो के बीच शारीरिक संबंध ज़रूर है, पर उन्होने चुदाई अभी तक नही की है...ये सोचकर ही रश्मि को काफ़ी सकून सा मिला..
पर उसी पल मे रश्मि अपनी बेटी के ना चुदने से मायूस भी हो गयी, काश वो अब तक चुद चुकी होती विक्की से, तो आज वो भी विक्की के लंड को अपनी चूत मे पिलवा रही होती..
एक ही पल मे उसके मन मे हज़ारों तरह के विचार आ रहे थे..जिन्हे पड़ने की कोशिश विक्की कर रहा था, पर उसकी समझ मे कुछ भी नही आ रहा था..
रश्मि तो अपना पूरा मूड बना चुकी थी विक्की के लंड को अंदर लेने का, वो बोली : "तो...तुम दोनो....कब ...वो सब करने वाले हो.....''
यानी वो विक्की से पूछना चाह रही थी की कब वो उसकी बेटी की चुदाई करेगा, ताकि बाद मे वो उसकी भी मार सके...
विक्की : "अभी तक तो मैने उसको सही से प्रोपोस भी नही किया....इसलिए तो उससे मिलने के लिए मैने उसको लवर पॉइंट पर बुलाया है संडे को...''
ये बात उसने उसी बात को सुनकर कही थी जो रश्मि ने आते ही उससे पूछी थी, वरना उसको क्या पता था की काव्या ने ऐसा झूठ क्यो बोला है, उससे मिलने का, लवर पॉइंट पर,संडे को..
रश्मि : "लेकिन वहाँ तो कुछ भी नही हो पाएगा तुम दोनो के बीच...''
फिर कुछ देर सोचने के बाद वो बोली : "तुम एक काम करो, सैटरडे को मेरे घर आ जाओ, मेरे पति तो ऑफीस जाते हैं, पर काव्या की छुट्टी होती है, तुम उससे वहीं मिल लेना...उसके बेडरूम मे...''
इतना कहकर वो नज़रें झुका कर बैठ गयी....शायद आगे की बात बोलने की हिम्मत नही थी उसमे...वो खुद अपनी बेटी की चुदाई का इंतज़ाम जो कर रही थी..
विक्की : "अरे वाव आंटी....ये तो बहुत बढ़िया तरीका है...ठीक है...मैं आ जाऊंगा ..''
पर अभी के लिए तो रश्मि कुछ ना कुछ करना ही चाहती थी...भागते भूत की लंगोटी ही सही...ये सोचकर वो फिर से विक्की से लिपट गयी और उसको ज़ोर-2 से चूमने लगी...जैसे उसकी ज़िदगी की सबसे बड़ी प्रॉब्लम दूर कर दी हो उसने.
विक्की ने बोलना चाहा : "पर आंटी...मैने बोला ना....ये सब...''
रश्मि ने बीच मे ही उसकी बात काट दी : "वो सब नही..पर कुछ और तो कर ही सकते है ना...''
रश्मि उसके सामने बैठ गयी और बोली : "प्लीज , मुझे ये सक करने दो ''
विक्की की समझ से परे थी ये औरत...वो अपनी चुदाई के लिए हर हद पार कर देना चाहती थी.. पर अभी के मज़े लेने मे उसको भी कोई प्राब्लम नही थी..वो अपने मोटे-2 मुम्मों को अपने ही हाथों से पिचकाती हुई उसके लंड को चूस रही थी...
अपनी थूक से उसने विक्की के लंड को पूरी तरह से नहला दिया..फिर उसे अपने मुम्मो के बीच लेकर उसको टिट मसाज देने लगी...विक्की ने उपर उठकर उसके होंठों को चूम लिया...और फिर उसके सेक्सी से चेहरे को देखते हुए उसने खुद ही अपने लंड को मसलना शुरू कर दिया...वो उसकी टाँगो के बीच बैठी थी...प्यासी सी...सेक्स मे नहाई हुई सी...
और अचानक उसके लरजते हुए होंठों को देखते हुए विक्की के लंड से रसमलाई निकल कर उसके चेहरे पर गिरने लगी... और देखते ही देखते उसने रश्मि के पूरे चेहरे पर बर्फ़बारी करके उसको सफेद चादर से ढक दिया..बाकी की बची हुई मलाई उसने खुद ही चूस-चूस्कर खा ली.
रश्मि की प्यास अभी भी नही बुझी थी...और विक्की ने उसे बुझाने के लिए कोई और जतन भी नही किया...आख़िर थकी हुई सी रश्मि की समझ मे ये बात आ ही गयी की वो अपनी बात पर अडिग है, और फिर उसने बाथरूम मे जाकर अपने आप को साफ़ किया...उसके कपड़े हल्के से गीले थे, पर फिर भी उसने उन्हे पहना और तैयार हो गयी.
विक्की ने भी कपड़े पहन लिए थे...और फिर बाहर जाती हुई रश्मि एकदम से रुकी और बोली : "आज तो मैने तेरी बात का मान रख लिया है...पर तेरा काम पूरा हो जाने के बाद मैं तुझे नही छोड़ूँगी...तुझे मेरी प्यास बुझानी ही पड़ेगी...सैटरडे को 1 बजे तक आ जाना मेरे घर..''
इतना कहकर वो बाहर निकल गयी..
और विक्की अपनी किस्मत पर खुश होकर आने वेल सैटरडे के सपने देखने लगा.
घर पहुँचकर रश्मि काफ़ी खुश थी....आज पूरे दिन के बारे मे सोचकर वो मुस्कुराए ही जा रही थी..उसने तो सोचा भी नही था की वो ऐसी बन जाएगी...अभी कुछ समय पहले ही तो उसकी शादी हुई है..इतने सालो से दबी हुई वासना अब भयानक रूप लेकर बाहर निकल रही है, शायद इसलिए उसकी प्यास सिर्फ़ अपने नये पति से नही बुझ रही है..वो खुद नही जानती थी की वो ऐसा क्यो बिहेव कर रही है..उसका तन और मन अब उसके दिमाग़ की नही सुन रहे थे ,वो अपनी जिंदगी के हर मज़े लेना चाहती थी, वैसे मज़ा तो उसको विक्की के बाप के साथ भी आया था, पर वो बुड्ढा भी सही से और समय की कमी की वजह से कुछ नही कर पाया वरना आज उसके पास भी सुनहरा अवसर था उसकी चूत मारने का.
दूसरों से चुदाई करवाने का विचार आते ही उसके मन मे एकदम से हज़ारों ओप्शन्स आने लगे...की वो अगर खुलकर चुदाई करवाना चाहे तो बिना किसी डर के किस-किससे चुदवा सकती है..
अपनी बेटी के बाय्फ्रेंड से तो वो चुदवाने को तैयार हो ही चुकी थी ..अपने पति के दोस्त लोकेश से करे तो वो भी मना नही करेगा...उसकी भूखी नज़रों को वो अच्छी तरह से समझती थी..और उसने तो उसको और समीर को नंगा भी देखा था, हनिमून पर..और कौन हो सकता है...उसके घर के नौकर...ड्राइवर...
या फिर दोनों का एक साथ लेने में भी कितना मजा आएगा
और ये ख़याल आते ही उसके जहन में दृश्य उभर आया जिसमें वो दो लंडो से पिलवा है
और ये सब सोचते-2 उसकी चूत एकदम से गीली होकर रिसने लगी...वो अपनी सोच पर खुद ही मुस्कुरा दी..ऐसा अगर सच मे हो गया तो वो दुनिया की सबसे बड़ी रांड बन जाएगी..
''क्या बात है माँ , अकेले बैठी हुई मुस्कुरा रही हो...'' काव्या ने अंदर आते हुए कहा..शायद उसने रश्मि को अकेले मे हंसते हुए देख लिया था...पर उसको अगर पता चल जाता की वो क्यो हंस रही है तो वो बेचारी भी हैरान रह जाती..
रश्मि ने सकपकाते हुए कहा : "अरे...कुछ भी तो नही..बस ऐसे ही कुछ याद आ गया..''
काव्या : "क्या माँ ...क्या याद आ गया...'' वो भी आज काफ़ी लाड वाले मूड मे थी..वो पालती मारकर वहीं रश्मि के पास बैठ गयी.
रश्मि ने कुछ सोचा , फिर बोली : "अपने स्कूल टाइम की बात याद आ गयी...एक लड़के के बारे मे सोच रही थी...''
काव्या की आँखे चमक उठी ये बात सुनकर , वो चहकति हुई बोली : "वाव मॉम , आप भी...मतलब आपके जमाने मे भी ये सब होता था..गर्लफ्रेंड, बाय्फ्रेंड एंड ऑल देट ...''
रश्मि (शर्म से लाल होते हुए) : "और नही तो क्या, तू क्या समझती है, तेरा बाय्फ्रेंड हो सकता है तो मेरा नही हो सकता क्या...मैं तेरे और तेरे उस फ्रेंड विक्की के बारे मे ही सोच रही थी..जब तूने उसके बारे मे बताया था , तब तो मुझे काफ़ी गुस्सा आया था, पर जब मैने सोचा की उस उम्र मे मैने भी तो ये सब किया है, तो मुझे तेरी सब बातें सही लगी..''
रश्मि बोले जा रही थी और उसकी बातें सुनकर काव्या के चेहरे के रंग बदल रहे थे...उसने अपना माथा पीट लिया, उसकी मनघड़त बातों को उसकी माँ ने सच समझ लिया था, वो तो उस विक्की से कितनी नफ़रत करती है, और वैसे भी उसने उसके और अपने चक्कर की बात तो किसी और मकसद से कही थी, जो अब पूरा हो चुका था, फिर ये माँ क्यो उसकी बात कर रही है.
रश्मि कहती रही : "तू ऐसा मत समझना बेटी की मैं या तेरे पापा तुझे समझते नही हैं, वो क्या है ना की तू अब जवान हो गयी है, ये सब सोच समझकर करना चाहिए...कौन कैसा है ,ये आजकल किसी के चेहरे पर नही लिखा रहता..''
काव्या अपनी माँ का बोर सा भाषण सुनती जा रही थी.
रश्मि : "मुझे उस लड़के के बारे मे ज़्यादा पता तो नही था, इसलिए मैं उससे मिलने गयी थी...''
रश्मि की ये बात सुनकर काव्या के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी..वो समझ गयी की उसका झूट पकड़ा जा चुका है...
पर रश्मि की अगली बात सुनकर वो हैरान रह गयी
रश्मि : "वो लड़का मुझे भी पसंद आया...ये उम्र अभी शादी की तो नही है तुम्हारी, पर प्यार भी एक हद तक करना चाहिए...तू समझ रही है ना मेरा मतलब...और मुझे उसके और तेरे मिलने से कोई ऐतराज नही है...वो भी तेरी काफ़ी तारीफ कर रहा था...और तुझसे प्यार भी काफ़ी करता है...''
काव्या की समझ मे नही आ रहा था की ये नया एंगल कहाँ से आ गया एकदम से ...उसने तो झूट बोला था अपने और विक्की के बारे में...फिर ये विक्की कैसे वही बात दोहरा रहा है उन दोनो के बारे मे...ओह्ह्ह्ह ....अब समझी...ये साला विक्की तो पहले से ही हरामी है, मेरी माँ के मुँह से सारी बातें सुनकर उसने भी बहते पानी मे हाथ धोने की सोची होगी...साला एक नंबर का हरामी है ये तो...उसने वो बात उसकी माँ को पता नही चलने दी, ताकि वो मुझसे सच मे मज़े ले सके...वो समझता क्या है अपने आप को, साला गली का कीड़ा...एक नंबर का हरामी, साला कुत्ता...
वो मन ही मन विक्की को कोस रही थी और उसको गालियाँ दे रही थी..
पर वो अपनी माँ को कैसे समझाती की ये सब झूट है, वो खुद अब ये बात बोलकर अपनी माँ और अपने प्यारे पापा समीर के सामने शर्मिंदा नही होना चाहती थी...
उसने सोच लिया की वो जल्द से जल्द विक्की से बात करेगी और सारी बातें साफ़ कर लेगी..
उसकी एक सहेली अभी भी वहीं रहती थी, और वो विक्की को अच्छी तरह से जानती थी, उससे विक्की का नंबर लेकर बात करनी पड़ेगी..
वो ये सोच ही रही थी की उसकी माँ ने एक और बोम्ब फेंक दिया उसके सिर पर.
रश्मि : "वैसे तो विक्की ने तुझे फोन करके बता ही दिया होगा, मैने उसको सेटरडे को यहाँ अपने घर बुलाया है...वो एक बजे तक आएगा...''
अब तो काव्या का सिर बुरी तरह से घूमने लगा..
काव्या : "वो ...वो ...क्यू मॉम ...''
रश्मि : "बेटी, तू मुझे अपनी दुश्मन मत समझ, दोस्त हू मैं तेरी...तू मेरी पीठ पीछे कुछ करेगी,वो तेरी नज़रों मे ग़लत होगा, और उसको छुपाने के लिए तू मुझसे झूट बोलेगी, जो मैं नही चाहती, इसलिए तू खुलकर उससे मिल, यहीं अपने घर पर,चाहे तो अपने रूम मे भी ले जा उसको...पर मैं ये चाहती हू की तू इन सबकी वजह से ये मत सोचे की मैं तुझे प्यार नही करती या मैं तेरे प्यार को समझती नही..''
काव्या समझ गयी की वो तो आदर्श माँ बन रही है उसके सामने...अगर सच मे उसका विक्की के साथ कोई चक्कर होता तो आज ये बात सुनकर वो फूली ना समाती, पर वो अच्छी तरह से जानती थी की उसकी माँ ने ये सब करके कितनी बड़ी ग़लती की है..
पर जो भी है, वो अपनी माँ को ये बात हरगिज़ नही बता सकती थी की असल मे बात क्या है...और कहती भी किस मुँह से...उस दिन तो बड़ी शेखी बघारते हुए उसने विक्की का नाम ले लिया था..और संडे को उसके साथ लवर पॉइंट पर मिलने का प्रोग्राम भी बना लिया था...पर उसकी माँ ऐसे सीधा विक्की के पास पहुँच जाएगी इस बात का अंदाज़ा बिल्कुल भी नही था उसको...वो मन ही मन उस पल को कोस रही थी जब उसने विक्की का नाम लिया था.
पर अब तो कुछ हो ही नही सकता था..उसको जल्द से जल्द विक्की को फोन करना होगा..
वो अपनी माँ को बिना कुछ कहे अपने कमरे मे भाग गयी..
रश्मि ने समझा की शायद ये बात सुनकर शर्मा गयी है और खुशी के मारे विक्की से बात करने भाग गयी है..
वो फिर से मुस्कुराते हुए अपने काम मे लग गयी.
 
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Update 65

काव्या ने जल्दी से जाकर अपनी सहेली को फोन किया और उससे विक्की का नंबर निकलवाया और एक मिनट मे ही सीधा उसे फोन मिला दिया.
दो बेल के बाद विक्की ने फोन उठाया
विक्की : "हेलो....कौन...''
काव्या ने धड़कते दिल से कह : "मैं काव्या बोल रही हू...''
विक्की : "ओहो....काव्या मेरी जान.....क्या बात है...आज मेरी याद कैसे आ गयी..''
काव्या (गुस्से मे) : "तुम अच्छी तरह से जानते हो की मैने किसलिए फोन किया है...''
विक्की : "नही मुझे नही पता, तू बोल ना मेरी चंपा,किसलिए फोन किया है....''
वो मज़े लेने के मूड मे आ चुका था..
उसकी बात सुनकर काव्या झल्ला गयी : "सुन विक्की....तू किसी ग़लतफहमी मे मत रहना...मेरी माँ ने चाहे कुछ भी कहा हो तुझसे. मुझ पर तेरी किसी बात का कोई फ़र्क नही पड़ता..''
विक्की : "मैं भी कौन सा तेरे लिए मरा जा रहा हू, तेरी माँ खुद ही आई थी मेरे पास... सोच, मैं अगर सच बोल देता तो तेरी क्या हालत होती तेरे घर मे...तेरे नये बाप के सामने क्या इज़्ज़त रह जाती तेरी...''
विक्की ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था...वो समझ गयी की जिस बात से वो डर रही थी, विक्की भी उसी बात का फायदा उठाना चाहता है...
वो थोड़ा नर्म होती हुई बोली : "तुम आख़िर चाहते क्या हो...''
विक्की के कान तो जैसे ये शब्द सुनने के लिए तरस रहे थे..
वो बोला : "ये तो मैं तुम्हे सेटरडे आ कर ही बताऊंगा ...''
और इतना कहते हुए उसने फोन रख दिया.
काव्या का मन किया की वो रो पड़े. ये सारी मुसीबत उसने खुद ही खड़ी की थी.
और अब इसका समाधान भी उसको खुद ही ढूँढना पड़ेगा.
वो जल्दी से तैयार होकर श्वेता के घर की तरफ चल दी क्योंकि ऐसी मुसीबत मे वही उसकी कोई मदद कर सकती थी. ''आहहssssssssssssss ... चोदो मुझे ... येस्स्स्स्स्स्स ... ऐसे ही ... फाड़ दो मेरी चूत ...''
श्वेता के घर के अंदर घुसते ही काव्या को ये सब सुनाई दिया... उसने तो ये सोचा भी नही था की श्वेता ऐसे दरवाजा खुला छोड़कर चुदाई करवा रही होगी.. ऐसी लापरवाही की उम्मीद नही थी उसको.
पर श्वेता की लगातार चीखों ने उसके दिल की धड़कनो को ज़रूर तेज कर दिया था..
उसने दरवाजा धीरे से बंद किया और अपने पंजो पर चलती हुई उपर की तरफ चल दी, श्वेता के बेडरूम की तरफ, जहाँ से आवाज़ें आ रही थी.
और उसकी लापरवाही की और भी हद देखी उपर जाकर उसने, वो और उसका भाई नितिन पूरा दरवाजा खोल कर चुदाई कर रहे थे..
चुदाई का ऐसा सीन काव्या ने ब्लू फ़िल्मो मे भी नही देखा था.
नितिन और श्वेता बुरी तरह से बेड पर लगे हुए थे...श्वेता ने तो अपने कपड़े भी नहीं उतारे थे पूरी तरह से, उसकी शमीज़ अभी तक उसके जिस्म पर थी, और नितिन ने उसको घोड़ी बनाकर उसकी चूत मे पीछे से लंड पेला हुआ था, और उसकी कमर पकड़कर ज़ोर से धक्के मार रहा था.
दरवाजा पूरा खुला हुआ था, पर दोनों का चेहरा दूसरी तरफ था, पर वो लोग थोड़ा भी पलट कर देखते तो उन्हे काव्या साफ़ दिख जाती, काव्या भी उनकी चुदाई पूरी देखना चाहती थी, इसलिए उसने छुपकर वो सब देखने का विचार बनाया..क्योंकि उन्हे देखकर वो गर्म तो हो ही चुकी थी, ऐसे मे उन्हे डिस्टर्ब करके वो उनका और अपना मज़ा खराब नही करना चाहती थी.
वो जल्दी से सामने बने नितिन के बेडरूम के अंदर घुस गयी और उसने थोड़ा सा दरवाजा खुला रहने दिया, जिसमे से वो सामने के कमरे मे चल रही चुदाई का पूरा आनंद उठा सकती थी.
और ये सब करते हुए वो ये भी भूल चुकी थी की वो वहाँ करने क्या आई है, अपनी मुसीबत का समाधान करने के बजाए वो श्वेता और उसके भाई नितिन की चुदाई मे मगन हो गयी..
दोस्तो, तभी तो कहते है की सेक्स सभी दिमागी परेशानियो को दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है...सेक्स करते हुए इंसान कुछ देर के लिए बाहरी दुनिया को भूल जाता है..और इस वक़्त श्वेता और नितिन बाहरी दुनिया को भूलकर जंगलियो वाली चुदाई कर रहे थे,जिन्हे शायद ये भी पता नही था की उन्होने नीचे का मेन गेट खुला छोड़ दिया है, जिसमे से काव्या अंदर आकर उनका सारा कार्यकर्म देख रही है...और वो भी अपनी परेशानियो से कुछ पल के लिए दूर होकर और उत्तेजित होकर उनकी लाईव ब्लू फिल्म देख रही थी.
काव्या ने गौर किया की श्वेता और नितिन एंगल बदल -2 कर सेक्स कर रहे हैं...कुछ देर तक अपने भाई की घोड़ी बने रहने के बाद वो जल्दी से नीचे उतरी और उसने नितिन को ज़मीन पर लिटा दिया...और उसके पैरों की दिशा मे मुँह करके उसके लंड को चूत के ज़रिए अंदर निगल गयी..
नितिन भी पागलो की तरह नीचे से धक्के मारता हुआ उसके मुम्मे मसल रहा था...उसने उसकी शमीज़ फाड़ डाली,जिसकी वजह से श्वेता के दोनो कबूतर आज़ाद होकर हवा मे उछलते हुए फड़फड़ाने लगे...ऐसा लग रहा था की दोनो मुम्मे आपस मे टकराकर चूर-2 हो जाएँगे..पर श्वेता की लचीली छातियाँ बड़ी ही नज़ाकत के साथ एक दूसरे से टकराती और फिर अलग हो जाती ...फिर नितिन उन्हे पकड़कर मसलता और नीचे से अपने लंड से उसकी चूत मे हवा भरता...
''ओह नितिन ................... मेरे भाई ..................... उम्म्म्ममममममममम ...कितना अंदर तक जा रहा है तेरा पेनिस इस एंगल मे.....अहह ...ऐसे ही करते रहो ...... ज़ोर से चोदो मुझे .....मारो अपनी श्वेता की चूत ....अहह ...चोदो अपनी बहन को .....''
वो अभी भी ऐसे चिल्ला रही थी मानो पूरे मोहल्ले को दावत पर बुलाकर वो सीन दिखाना चाहती हो ....श्वेता को ऐसे चिल्लाते देखकर नितिन ने फिर से एंगल बदला और उसने श्वेता को अपने लंड की बाल्कनी से नीचे उतारा और अपनी बहन की चूत से निकले रसीले लंड को सीधा उसने श्वेता के ही मुँह मे ठूस कर उसके रस का स्वाद चखाने लगा..
''उम्म्म्ममममममममम ....... कितना टेस्टी लग रहा है ये इस वक़्त......''
वो लंबा और काला लंड जूस लगने की वजह से किसी साउथ अफ़्रीकन राजा की तरह चमक रहा था...जिसकी चमक दूसरे कमरे मे छुपी काव्या साफ देख पा रही थी...उसके हाथ सीधा अपनी ब्रेस्ट पर चले गये और बड़े ही जंगली तरीके से उसने अपने टॉप को उपर उठाकर, अपनी ब्रा को नीचे खिसका कर अपनी लेफ्ट ब्रेस्ट निकाली और उसके निप्पल को बाहर की तरफ खींचकर उसे उभारने लगी...उसके निप्पल काफ़ी लंबे थे, और ऐसा सीन देखकर तो वो भी लड़कों के लंड की तरह खड़े हो चुके थे...दूसरे हाथ को अपनी पेंट मे खिसका कर अपनी चूत के मुहाने पर ले आई और अपनी बीच की उंगली सीधा गर्म कड़ाई मे डालकर उबल रही कड़ी को उंगली की कड़छी से पकाने लगी..
थोड़ी देर तक और चूसने के बाद श्वेता उछलकर अपने गद्देदार चूतड़ो के बल नितिन की छाती पर आ गयी , अब उसकी गुलाबी चूत ठीक नितिन की आँखों के सामने थी, उसने अपनी 2 उँगलियाँ सीधा उसकी गीली चूत के अंदर पेल दी , श्वेता ने भी सिसक कर अपने भाई के लंड को कार के गियर की तरह पकड़कर आगे पीछे करना शुरू कर दिया और दोनो की गाड़ी फूल स्पीड से भागने लगी..
श्वेता की रेशमी गांड की थिरकन को नितिन अपने दिल के इतने करीब महसूस करते हुए उसके रंग बदलते चेहरे को देखे जा रहा था...और अपनी पूरी ताक़त से अपने हाथ की उंगलियो को अंदर बाहर पेल रहा था.
दो उंगलियाँ वहाँ चल रही थी और टीन उंगलियाँ अब तक काव्या ले चुकी थी अपनी ही चूत मे...अपने ही पंजो पर खड़े होकर वो अपने लरज रहे होंठों से निकल रही हल्की-2 सिसकारीयाँ सुनकर और सामने चल रहे वासना के नंगे नाच को देखकर पागल हुई जा रही थी...उसकी आँखे उपर चड चुकी थी..उसकी चूत का सेलाब कभी भी आ सकता था.
नितिन को श्वेता की चूत की महक अपने इतने करीब महसूस हुई और एकदम से उसके अंदर उसे चूसने की त्रिव इच्छा जागृत हो गयी, और अगले ही पल उसने वो आसान भी तोड़ दिया और श्वेता को उठाकर खड़ा किया और नीचे बैठे-2 ही उसकी चूत के उपर मुँह लगाकर उसका अमृत चूसने लगा...नितिन की गर्म जीभ अपनी चूत पर और उसके ताकतवर हाथ अपनी गांड पर महसूस करते हुए श्वेता भी मचल-2 कर उसके मुँह पर घिस्से लगाने लगी और ज़ोर से तड़प कर फिर से चीख पड़ी..
''अहह नितिन ...... यू आर अमेजिंग ........ वाआआआआव .......उम्म्म्ममममममम ... खा जाओ ........अंदर तक चाटो मुझे ................... उम्म्म्ममममममममममम .....''
उन दोनो भाई बहन के प्यार को देखकर ना जाने क्यो एकदम से काव्या के मन मे भी वही सेक्शी सीन आ गया, जिसमे वो भी नंगी होकर खड़ी है...पर नीचे बैठकर उसकी चूत चाटने वाला उसका सोतेला बाप समीर या श्वेता का भाई नितिन नही, बल्कि वो आवारा कुत्ता विक्की था...
विक्की का ख़याल आते ही उसका मन घृणा से भर गया, पर वो सीन उसकी आँखो के सामने से जा ही नही रहा था जिसमे वो उसकी चूत को ठीक वैसे ही चूस रहा था, जैसा इस वक़्त नितिन श्वेता की चूसने मे लगा हुआ था..
मन मे घृणा के भाव आने के बावजूद उसकी उत्तेजना और भी बढ़ती जा रही थी...और वो अपनी आँखो के सामने दिख रहे अक्स,यानी विक्की के मुँह पर अपनी चिकनी चूत को बुरी तरह से रग़ड़ कर अपनी खुंदक निकाल रही थी...जैसे उसकी सांसो को अपनी चूत के ज़रिए बंद करके मार ही देना चाहती हो..
वो अपने ही ख़यालो मे खोई हुई थी की श्वेता की जोरदार गुहार उसके कानो मे पड़ी, वो अब पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी और उसे अब फिर से नितिन का लंड अपनी चूत मे चाहिए था..
''अहह ...... भाई ....... अब बस करो .....और मत तड़पाओ ............... डाल दो अपना ........ लंड ............. मेरे अंदर ....''
अपनी प्यारी बहन की रीक़ुएस्ट भला नितिन कैसे ठुकरा सकता था, उसने अगले ही पल अपनी शक्तिशाली बाजुओ का उपयोग करते हुए श्वेता को उपर उठाया और सीधा बिस्तर पर ले जाकर लिटा दिया, और उसकी नशीली आँखों मे देखते हुए अपना लौड़ा उसकी बुण्ड मे पेल दिया...
''अहह ...... ओफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ..भाई ............... ये तो पहले से भी ज़्यादा बड़ा लग रहा है अब..... ''
नितिन और काव्या उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिए....
अगले पाँच मिनट मे दोनो के मुँह से सिर्फ़ सिसकारियों के सिवा कुछ और नही निकला, दोनो अपनी साँस रोके एक दूसरे का मज़ा लेने मे लगे रहे...हर धक्के के साथ काव्या भी झड़ने के करीब पहुँच रही थी....और अंत मे जैसे ही नितिन झड़ने लगा, उसने अपना लंड बाहर खींच लिया और सामने की तरफ करते हुए श्वेता के चेहरे को पूरा रंग दिया...
बाकी का काम श्वेता ने कर दिया, उसके लंड को चूस्कर, वो अंदर से आ रही एक-2 बूँद को चूस गयी, अपने भाई के माल को वो ऐसे नष्ट करना नही चाहती थी, वो सारा का सारा रस पी गयी..
उसके बाद नितिन गहरी साँसे लेता हुआ वहीं बेड पर गिर गया..
काव्या ने भी दबी हुई सिसकारियों के बीच अपनी चूत का सारा रस वहीं ज़मीन पर टपका दिया...
श्वेता ने नितिन के कान के पास आकर कहा : "आज तो सच मे मज़ा आ गया...''
और फिर दोनो ने एक दूसरे को फ्रेंच किस किया..
श्वेता : "तुम यही रूको, मैं अभी आई ...''
और इतना कहकर वो कमरे से बाहर निकल गयी...और जाते-2 उसने कमरे का दरवाजा भी बंद कर दिया..
फिर वो हुआ, जिसकी काव्या ने कल्पना भी नही की थी..
 

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