Update 55
काव्या को छोड़कर जैसे ही समीर अपने बेडरूम मे आया वो रश्मि पर टूट पड़ा ..रश्मि तो पहले से ही चुदाई के लिए तैयार थी ...उसने तो सोचा था की आज वो अपनी तरफ से पहल करते हुए अपने पति को खुश करेगी ...पर समीर ने कुछ करने का मौका ही नही दिया उसको ...उसके गाउन को एक ही पल मे उतारकर उसके जिस्म से अलग कर दिया और ज़ोर-2 से चूसने लगा उसके मुम्मों को ...वो कराह उठी उसके जंगलिपन से .... समीर ने उसके निप्पल को अपने दांतो से काटकर उसे ज़ख्मी सा कर दिया ..''अहह .....समीईईईईईर .......धीरेएरए .............. उम्म्म्मममममम .....दर्द हो रहा है ...........अहह ......आराअम से करो ................मैं कर तो रही हू ................अहह ....''पर वो कहाँ मानने वाला था ....उसने रश्मि को बेड पर लिटाया और उसकी टाँगो को दोनो दिशाओं मे फैलाकर अपना सिर अंदर झोंक दिया....एक घंटे से चुदाई के लिए मचल रही गीली चूत मे जब जीभ जाती है तो क्या हाल होता है, ये आज रश्मि को अच्छी तरह से पता चल गया ...
उसकी लबाबदार चूत मे से रसीला पानी बह-बहकर नीचे तक जा रहा था ...जिसे समीर किसी जंगली कुत्ते की तरह अपनी जीभ से सड़प -2 कर चाटे जा रहा था ...रश्मि ने समीर के बालों को पकड़ कर पीछे करना चाहा पर वो ना कर पाई...उसके पैने दाँत और खुरदूरी जीभ ने उसकी चूत के फुव्वारे को चालू कर दिया था ..जिसमे से मीठा पानी निरंतर निकल कर बाहर आ रहा था .समीर ने रश्मि को बेड पर बिठाया और उसके बालों को बेदर्दी से पकड़कर अपना पठानी लंड उसके मुँह के अंदर उतार दिया...रश्मि भी अब पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी ...अपनी चूत को मिले मज़े का बदला उतारने का वक़्त अब आ चुका था ...उसने अपना पूरा मुँह खोला और उसके लंड को बड़ी कुशलता के साथ किसी रंडी की तरह पूरा का पूरा अपने मुँह के अंदर उतार लिया.और उसकी बॉल्स को सहलाती हुई उसका लंड चूसने लगी ..जैसे ही समीर को लगा की वो झड़ने वाला है, उसने अपना लंड बाहर खींच लिया और फिर से रश्मि को लिटा कर उसके उपर आ गया ...और उसकी आँखो मे देखते हुए अपना हथियार उसकी गुफा मे उतार दिया ...वो धीरे-2 अंदर जा रहा था ..और रश्मि ज़ोर-2 से सिसक रही थी ..और उसके बाद तो समीर ने ऐसे झटके दिए उसकी चूत के अंदर की रश्मि का पूरा फर्नीचर हिल गया ...उसके हर झटके से उसकी छातियाँ उपर उछलती और फिर नीचे आती ...वो बुरी तरह से चिल्ला रही थी
''अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह समीर …… येस्स्स्स्स ……… और जोर से करो …… आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म्म्म्म उह्ह्ह्न्न उह्ह्हन्न्न्न हां हां अह्ह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मर गयी , चोदो , और तेज मारो …… ''और अंत मे जब वो झड़ने लगा तो रश्मि ने उसकी कमर पर अपनी टांगे लपेट ली....और दोनो एक दूसरे को स्मूच करते हुए झड़ने लगे ...दोनो के आनंद की चरम सीमा मिल चुकी थी एक दूसरे को .रश्मि सोच रही थी की आज क्या हो गया था समीर को...जो वो इस तरह जंगली तरीके से उसकी चुदाई कर रहा था ..पर ये बात सिर्फ़ समीर और काव्या ही जानते थे ...क्योंकि काव्या ने आज जिस तरह से उससे लिपट कर और अपने दिल की बात उसे बताकर समीर को उत्तेजित किया था, वो सारी उत्तेजना उतारने का सिर्फ़ रश्मि ही ज़रिया थी...पर चुदाई करते हुए उसके दिमाग़ मे सिर्फ़ और सिर्फ़ काव्या ही थी ..उसने सोचना शुरू कर दिया था की अगले दिन वो काव्या से क्या बात करने वाला है .अगले दिन समीर सीधा काव्या के रूम मे गया , रश्मि उस वक़्त किचन मे नाश्ते का इंतज़ाम करवा रही थी .उसने काव्या को अंदर जाने से पहले आवाज़ लगाई पर कोई जवाब नही आया, वो अंदर चला गया, वो शायद नहा रही थी, क्योंकि बाथरूम से शावर चलने और गुनगुनाने की आवाज़ें आ रही थी .
काव्या का कमरा बिल्कुल सॉफ सुथरा सा था, सलीके से उसने हर चीज़ अपनी जगह पर सजाकर रखी हुई थी ..छोटी-2 पिक्चर्स दीवारों पर थी, जिसमे उसके बचपन से अब तक की जीवनी बयान थी ..वो उन्हे देखते-2 खुली हुई अलमारी के पास पहुँच गया जिसमे काव्या के कपड़े रखे थे, शायद वो उसको खोलकर बंद करना भूल गयी थी, बेड पर उसने एक टी शर्ट और जींस रखी हुई थी, जो वो शायद नहाने के बाद पहनने वाली थी, अचानक उसकी नज़र जींस के नीचे रखे लाल रंग के कपड़े पर पड़ी, उसने जींस को हटाकर उसे देखा तो उसके दिल की धड़कन तेज हो गयी, वो रेड कलर की एक छोटी सी ब्रा थी...और साथ मे मेचिंग कच्छी ….उस मुलायम कपड़े को हाथ मे लेकर वो उसे मसलने लगा...और उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो सच मे काव्या की मखमली और मुलायम चूत को अपनी उंगलियों से सहला रहा है..और अंदर नहाती हुई काव्या ने जब अपने पापा की आवाज़ सुनी तो वो रोमांचित सी हो उठी..उसने मन ही मन सोचा की सच मे ये लड़कियों का जादू भी क्या चीज़ होता है, मर्दों को चैन से नही बैठने देता, इतनी जल्दी थी उसके समीर पापा को बात करने की, सीधा कमरे मे ही घुस आए और वो भी इतनी जल्दी...उसके बाहर नाश्ते की टेबल पर मिलने का भी सब्र नही हुआ..पर आवाज़ देने के बाद काफ़ी समय तक बाहर से कोई और आवाज़ नही आई तो उसने धीरे से अपने बाथरूम का दरवाजा खोलकर देखा की वो बाहर क्या कर रहे हैं..और जो उसने देखा वो देखकर उसके तन -बदन मे आग सी लग गयी..
समीर उसकी ब्रा और पेंटी को अपने हाथ मे लेकर मसल रहा था ..और उसके देखते ही देखते ना जाने समीर के मन मे क्या आया, वो उसकी पेंटी को अपनी नाक के पास लेजाकर सूंघने लगा..अब तो काव्या की हालत खराब होने लगी...उसे तो ऐसा लगा की उसका सोतेला बाप सीधा उसकी चूत को सूंघ रहा है, वो उसकी गर्म सांसो को अपनी पुस्सी पर महसूस कर रही थी..और उसे महसूस करते ही उसका बदन अकड़ने सा लगा..उसके गीले जिस्म पर पसीने की बूंदे उभरने लगी...वो गर्म हो उठी एक दम से..अब वो मूठ तो मार नही सकती थी,कितनी बेबस सी थी वो उस वक़्त..क्योंकि समीर उसके कमरे मे मोजूद था, उसने किसी तरह से अपनी भावनाओ पर काबू किया और वापिस अंदर आकर शावर के नीचे खड़ी होकर अपने बदन की गर्मी को शांत किया..उसने भी बदला लेने की सोची और अपने गीले बदन पर एक टावल लपेट कर बाहर निकल आई..
काव्या : "अरे पापा ....आप....गुड मॉर्निंग.''
समीर एकदम से हड़बड़ा सा गया..क्योंकि वो तो अपनी ही दुनिया मे मस्त होकर उसकी कच्छी को सूंघ रहा था..और जब काव्या ने आवाज़ लगाई तो वो उसकी पेंटी को जीभ लगा कर चख भी रहा था...की शायद ऐसा करने से उसकी कुँवारी बेटी की मसालेदार चूत का स्वाद मिल जाए..उसने जल्दी से पलटकर उसकी तरफ देखा और अपने हाथ मे पकड़ी हुई पेंटी को अपने पीछे छुपा लिया..
समीर : "उम्म ...गु ...गुड मॉर्निंग .....बेटी. .....काव्या ....''उसकी हड़बड़ाहट देखकर वो भी हँसने लगी..उसने नहाने के बाद अपना बदन पोंछा भी नही था..और उसका टावल उसके स्तनों के उपर से लेकर उसकी जांघों तक आ रहा था..बड़ी ही सेक्सी लग रही थी वो उस वक़्त..वो भी ये बात जानती थी..इसलिए बड़े ही सेक्सी स्टाइल मे , इतराकर चलती हुई सी वो अपने पापा के पास पहुँची ...और उनके पास पहुँचकर धीरे से बोली : "ऐसे किसी जवान लड़की के रूम मे बिना पूछे नही आना चाहिए ...''और उसने अपना हाथ समीर के पीछे लेजाकर अपनी ब्रा पेंटी को पकड़ लिया, जिसे समीर ने अपने हाथों मे पकड़ा हुआ था..समीर की तो हालत एकदम से खराब हो गयी, ऐसे रंगे हाथों पकड़े जाने से..और ऐसा करते हुए काव्या का नंगा जिस्म, जो सिर्फ़ एक पतले से टावल से ढका हुआ था, समीर से छू गया..पर समीर तो अपनी चोरी पकड़े जाने से परेशान था, वो बेचारा तो उसके जवानी की आग मे जल रहे बदन की गर्मी का अहसास भी नही ले पाया..वो हड़बड़ाते हुए अपनी सफाई देने लगा : "वो ...दरअसल ...तुम कमरे मे नही थी ...तो ...मैने देखा ...की यहा तुम्हारे कपड़े पड़े हैं .......तो मैने सोचा ....की ..... की ..... ''
काव्या बीच मे ही बोल पड़ी : "की देखु तो सही की मेरी ब्रा -पेंटी डिज़ाइन कैसा है ...मम्मी से अलग है या सेम है ....है ना ... हा हा हा ..''इतना कहकर वो हंस पड़ी ...उसने खुद ही माहोल को हल्का करने के लिए ऐसा कहा था ..समीर अपनी बेटी के चेहरे को देखकर उसे समझने की कोशिश कर रहा था की वो उसके ऐसा करने से नाराज़ है या नही ..
काव्या : "ओहो ...मेरे भोले पापा ....ऐसा कोई इश्यू नही है ..आप मेरी ब्रा और पेंटी देख रहे थे तो कोई बात नही...इट्स नॉर्मल ...आई डोंट माइंड ...ये लो ...आराम से देखो ...''इतना कहकर वो ड्रायर लेकर वहीं शीशे के सामने बैठकर अपने बॉल सुखाने लगी..और समीर डम्ब सा होकर कभी उसको और कभी अपने हाथ मे पकड़े उसके अंगवस्त्रों को देखता...वो आराम से बैठी हुई अपने बॉल सूखा रही थी ..और जब समीर को आश्वासन हो गया की उसे कोई परेशानी नही है तो वो भी थोड़ा नॉर्मल हुआ और वहीं काव्या के पीछे की तरफ, बेड पर बैठ गया..अब उसने काव्या के शरीर को अपनी आँखो से सेंकना शुरू कर दिया...उसकी सुराहीदार गर्दन ...घने बॉल....गोरे और चिकने कंधे ...और नीचे की तरफ उसकी फैली हुई गांड ..जो गीले टावल मे लिपटे होने की वजह से साफ़ दिखाई दे रही थी ..और वो तिरछी होकर बैठी थी, जिसकी वजह से उसकी मोटी-2 जांघे भी वो देख पा रहा था ...
और अचानक उसकी नज़र सामने शीशे की तरफ चली गयी ...और वहाँ देखते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी ...वो अपनी बेटी काव्या की चूत को साफ़ देख पा रहा था वहाँ से ...बिलकुल चिकनी चूत थी उसकी .....और इतने मोटे-2 लिप्स थे उसकी पुसी के, उसका तो मन किया की उसकी चूत के साथ स्मूच कर ले ...और काव्या अपनी ही धुन मे अपने बालों को सूखने मे लगी थी ...उसने जब देखा की समीर एकदम से टकटकी लगाकर शीशे मे कुछ देख रहा है तो उसे ये अहसास हुआ की जिस एंगल मे वो बैठी है,उसमे उसकी चूत साफ़ दिख रही होगी उसके बाप को ..वो एकदम से खड़ी हो गयी ..एक मिनट के लिए ही सही पर उसकी चिकनी चूत को देखकर समीर पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था ..
काव्या एकदम से पलटी और समीर के आगे हाथ फेला कर बोली : "दो ज़रा मुझे ...''
समीर (चौंकते हुए) : " क ... क ...क्या ?"
काव्या (हंसते हुए) : "मेरी पेंटी ....और क्या ...''
उसने डंब सा बनकर अपने हाथ मे पकड़ी हुई पेंटी आगे कर दी..और अपनी बेशर्मी का परिचय देते हुए काव्या ने समीर के सामने ही अपनी पेंटी पहननी शुरू कर दी..
पहले तो उसके हाथ मे पेंटी देकर वो बाहर जाने लगा ..पर जब उसने देखा की पेंटी को हाथ मे लेते ही उसने उसे पहनना भी शुरू कर दिया है और उसे बाहर जाने के लिए भी नही बोला तो वो उसे उसकी नासमझी और बचपना समझकर वहीं खड़ा हो गया ...क्योंकि जाने का मन तो उसका भी नही था वहाँ से.काव्या ने बड़े ही सेक्सी तरीके से अपनी एक टाँग उठाकर पेंटी अंदर डाली और फिर दूसरा पैर भी अंदर डाल लिया...और फिर उसे धीरे-2 उपर खींचकर टावल के अंदर ले गयी...और अपनी कमर मटकाते हुए उसने अंदर ही अंदर पेंटी को एडजस्ट किया और उसे पहन लिया ..फिर उसने घूमकर ब्रा भी ली समीर के हाथों से और उसे पहनकर उसने अपनी ब्रा के कप अपनी छातियों पर एडजस्ट किए और धीरे से टावल की गाँठ खोल दी, और टावल को खींचकर अपनी छातियों से नीचे खिसका दिया..और उसकी जगह पर उसने ब्रा के कॅप्स एडजस्ट कर लिए...समीर ने लाख कोशिश की पर उसकी ब्रेस्ट को नही देख पाया ...और इसी बीच टावल खुलकर पूरी तरह से नीचे गिर गया..
अब थी काव्या अपने सेक्सी रूप मे उसके सामने..सिर्फ़ एक छोटी सी लाल चड्डी और पीछे से खुली हुई ब्रा मे..वो पीछे की तरफ चलती हुई समीर तक पहुँची और बोली : "पापा...प्लीज़ .....इसे बंद कर दो पीछे से ....''वो बेचारा बड़ी मुश्किल से अपने खड़े हुए लंड को छुपा पा रहा था....वो किसी लंबे डंडे की तरह सामने की तरफ तन कर खड़ा हुआ था...जिसे शायद काव्या ने देख भी लिया था...मज़े लेने के लिए वो एकदम से पीछे हुई और उसने अपने मोटे कूल्हे उसके खड़े हुए लंड पर पिचका दिए ...समीर का खड़ा हुआ लंड उसकी गद्देदार गांड के बीच दबकर रह गया...समीर भी सोचने लगा की शायद ऐसे खुलेपन मे रहने की आदत है काव्या को, तभी किसी अबोध की तरह उसके सामने ही ब्रा-पेंटी पहन रही है ...और खुद ही उसे ब्रा को बंद करने को भी बोल रही है...कितना भोलापन है उसकी सोतेली बेटी मे..
उसने काँपते हुए हाथों से उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स पकड़े और उन्हे आपस मे खींचकर बंद करने लगा..
''अहह .....धीरे पापा .....दर्द होता है ....ये ब्रा थोड़ी छोटी हो गयी है ...इसलिए आराम से करो ...''
समीर : "छोटी हो गयी है तो क्यो पहन रही हो...नयी ले आओ ...''उसकी उंगलियाँ भी काव्या की पीठ पर नाचने लगी थी अब...वो भी खुलकर मज़े लेने के मूड मे आ चुका था ..
काव्या : "क्या करू पापा...आजकल टाइम ही नही मिलता...मम्मी को भी बोला है कितनी बार..वो भी नही चलती मार्केट ...मुझे अकेले जाने मे शरम सी आती है...सेल्सबॉयस होते हैं ज़्यादातर ...इसलिए ...''समीर ने क्लिप्स को बंद करते हुए उसे अपनी तरफ घुमा लिया..और बोला : "तुम्हे अगर परेशानी ना हो तो मेरे साथ चलो कभी....मैं दिलवा दूँगा तुम्हे ये सब...''वो बात तो उससे कर रहा था पर उसकी नज़रें उसकी ब्रा की गहराइयों मे उतरकर उसके मुम्मों का वजन नाप रही थी ..
काव्या : "ओह्ह्ह्ह्ह्ह ...मेरे अच्छे पापा ....''
इतना कहकर वो अपने सोतेले बाप के गले से झूल सी गयी...और अपना लचीला बदन समीर के जिस्म से लपेटकर अपने बदन की गर्मी वहाँ ट्रान्स्फर करने लगी ..समीर का लंड अब सीधा उसके पेट से टच कर रहा था ....वो भी मचल-2 कर अपने पेट पर खड़े हुए डंडे की गर्मी का मज़ा ले रही थी ..दोनो को मालूम था की ऐसी परिस्थिति का क्या मतलब होता है...पर दोनो ही अंजान से बनकर, अपने रिश्तों की ओट मे उस अहसास को छुपाने का असफल प्रयास कर रहे थे ..समीर के हाथ फिसलकर उसके कुल्हों पर जा लगे...तब काव्या को अहसास हुआ की जितना उसने सोचा था ये तो उससे ज़्यादा ही होने लगा है आज ...पर तभी उसका बचाव करते हुए उसकी माँ की आवाज़ गूँजी नीचे से ''काव्या ....... समीर .....कहाँ हो आप दोनो ....जल्दी आओ ...नाश्ता लग चुका है ...''
समीर ने हड़बड़ाकार उसे छोड़ दिया...पर तब तक वो उसके नर्म और मुलायम कुल्हों का मज़ा ले चुका था ....अपनी उंगलियों पर मिले आधे-अधूरे अहसास को अपने दिल मे दबाकर वो भारी मान से नीचे की तरफ चल दिया...और नाश्ते की टेबल पर आकर बैठ गया..काव्या अपने बाकी के कपडे पहनने लगी तब तक . इन सबमे तो उसे ये भी याद नही रहा की जिस काम से वो काव्या के कमरे मे गया था वो हुआ ही नही ...उसे तो उस लड़के के बारे मे बात करनी थी काव्या से ...वो परेशान सा होकर फिर से सोचने लगा की कैसे और कब बात कर सकेगा वो काव्या से ..समीर को गहरी सोच मे बैठे देखकर रश्मि उसके पास आई और बोली : "क्या हुआ ...आप इतने परेशान से क्यो लग रहे हैं ..''
समीर : "हूँ .... हाँ .... नही तो ...ऐसा कुछ नही है ...''रश्मि समझ गयी की ज़रूर कोई बात है जो समीर उससे छुपाने की कोशिश कर रहा है ..
रश्मि : " कुछ तो बात है...आप इतना परेशान नही रहते वरना ..कोई बात हुई है क्या ...काव्या ने कुछ कहा ??"
समीर : "अरे नही ...काव्या क्यो कुछ कहेगी ...वो तो इतनी प्यारी बच्ची है ...''प्यारी शब्द बोलते हुए समीर की आँखों के सामने काव्या नंगी होकर नाच रही थी ..
रश्मि : "फिर आप इतने परेशान क्यो हो.... मुझे बताइए, शायद मैं आपकी कोई मदद कर सकूँ ..''समीर सोचने लगा की रश्मि सही कह रही है .. हो सकता है रश्मि उस परेशानी का कोई समाधान निकाल सके.
समीर थोड़ा गंभीर सा हो गया और बोला : "रश्मि ... जहाँ तुम लोग पहले रहते थे ...वहाँ कोई विक्की नाम का लड़का भी रहता था क्या ..''
रश्मि उसकी बात को सुनकर सोच मे पड़ गयी ... : "विक्की ..... विक्की ...... ...शायद .....हाँ ..बिल्कुल रहता था... याद आया ...वो हमारी ही गली मे रहता था ...बड़ा ही आवारा किस्म का लड़का है वो तो ...हमेशा आने जाने वालो को गंदी नज़रों से देखकर ....''उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, क्योंकि उसके दिमाग़ मे वो वाक़या घूमने लगा जब वो एक दिन ऑफीस से घर जा रही थी और तेज बारिश की वजह से उसकी साड़ी उसके बदन से पूरी तरह से चिपक गयी थी ...वो भागती हुई सी अपने घर की तरफ जा रही थी जब उसने देखा की चौराहे पर विक्की खड़ा हुआ उसके बदन को भूखे कुत्ते की तरह देख रहा है ...वो जानती थी की भीगने की वजह से उसकी छातियाँ साफ़ देखि जा सकती है,और हलकी ठण्ड होने जाने की वजह से उसके सेंसेटिव निप्पल भी खड़े हो गए थे,जिन्हे वो अपनी ललचाई हुई नजरों से घूर रहा था वैसे ये उसका रोज का काम था, वो जब भी ऑफीस जाती थी , वो रोज सुबह और शाम के समय वहीं गली के बाहर खड़ा होकर उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब सा रहता था ..रश्मि को ये सब अच्छा नही लगता था, वो एक सभ्य समाज मे रहने वाली शरीफ औरत थी, और वो लड़का उसके बेटे की उम्र का था ... पर वो कर भी क्या सकती थी... कुछ बोलकर वो बिना वजह का झगड़ा नही करना चाहती थी .और रश्मि को अपनी जवान हो रही बेटी काव्या की भी चिंता थी..ऐसे आवारा किस्म के लड़कों से पंगा लेकर वो अपनी बेटी के लिए कोई मुसीबत मोल नही लेना चाहती थी