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आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता,
आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता।
अल्लाह-रे नादान जवानी की उमंगें!
जैसे कोई बाज़ार सजाया नहीं जाता।
आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो,
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता।
बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी,
लेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता।
जिस तार को छेड़ें वही फ़रियाद-ब-लब है,
अब हम से 'अदम' साज़ बजाया नहीं जाता।
आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता।
अल्लाह-रे नादान जवानी की उमंगें!
जैसे कोई बाज़ार सजाया नहीं जाता।
आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो,
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता।
बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी,
लेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता।
जिस तार को छेड़ें वही फ़रियाद-ब-लब है,
अब हम से 'अदम' साज़ बजाया नहीं जाता।