शायरी और गजल™

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आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता,
आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता।

अल्लाह-रे नादान जवानी की उमंगें!
जैसे कोई बाज़ार सजाया नहीं जाता।

आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो,
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता।

बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी,
लेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता।

जिस तार को छेड़ें वही फ़रियाद-ब-लब है,
अब हम से 'अदम' साज़ बजाया नहीं जाता।
 
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किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह,
वो आश्ना भी मिला हम से अजनबी की तरह!

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी,
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह!

बढ़ा के प्यास मिरी उस ने हाथ छोड़ दिया,
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह!

सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना,
क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह!

कभी न सोचा था हम ने 'क़तील' उस के लिए,
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह!
 
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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी,
आप से तुम तुम से तू होने लगी!

चाहिए पैग़ामबर दोने तरफ़,
लुत्फ़ क्या जब दू-ब-दू होने लगी!

मेरी रुस्वाई की नौबत आ गई,
उनकी शोहरत की क़ू-ब-कू़ होने लगी!

नाजि़र बढ़ गई है इस क़दर,
आरजू की आरजू होने लगी!

अब तो मिल कर देखिए क्या रंग हो,
फिर हमारी जुस्तजू होने लगी!

‘दाग़’ इतराए हुए फिरते हैं आप,
शायद उनकी आबरू होने लगी!
 

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