शायरी और गजल™

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निगहा-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऎसी
न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का
 
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बाद मुद्दत के ये ऎ दाग़ समझ में आया
वही दाना है कहा जिसने न माना दिल का
 
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बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
 
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इक खेल है औरन्ग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक
इक बात है एजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे
 
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मुस्कुराहट आपकी सबसे प्यारी है,,, इसलिए हमनें आप पे जान वारी है।।।
 
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लिखूँ क्या नज़्म कोई तुझ पर गजल का खुद लिबास हो तुम मुकम्मल इश्क़ में डूबे हुये शायर का लफ्ज़-ए-ख़ास हो तुम जो अल्फ़ाज़ों में ना हो सके बयां इस दिल का हसीं वो ख्वाब हो तुम जो मिट के ना मिट सके उम्र भर वो इक ऐहसास हो तुम
 
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“उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं..., उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है।”
 

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