शायरी और गजल™

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क़त्ल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच।
अब तो खुलने लगे मक़तल भरे बाज़ार के बीच।।
 
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इसी लिए मैं किसी शब न सो सका 'मोहसिन'
वो माहताब कभी बाम पर भी आता है।।
 
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वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था,
के वो तो याद हमें भूल कर भी आता है।।
 
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तेरा ज़िक्र..तेरी फ़िक्र..तेरा एहसास..तेरा ख्याल…
तू खुदा तो नहीं…. फिर हर जगह क्यों हे…!!
 
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नहीं फुर्सत यकीं मानो हमें कुछ और करने की,
तेरी यादें, तेरी बातें बहुत मसरूफ़ रखती हैं…
 
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मुझे तू इस क़दर अपने क़रीब लगता है ….
तुझे अलग से जो सोचूँ, अजीब लगता है..!!!
 
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मुझे मालूम था के लौट के अकेले ही आना है ,
फिर भी तेरे साथ चार कदम चलना अच्छा लगा !!
 
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चलो सारी कायनात का बटवारा करते है…
तुम सिर्फ मेरे.. बाकी सब तुम्हारा…
 
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जिस चीज़ पे तू हाथ रखे वो चीज़ तेरी हो,
और जिस से तू प्यार करे, वो तक़दीर मेरी हो.
 

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