Romance Shrishti - Ajab Duniya Ki Gazab Reet Re (Complete)

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भाग - 4

हताश निराश बैठी श्रृष्टि मन ही मन बोलीं... इतने दिनों बाद एक मौका हाथ लगा वो भी, अपनी ही करनी से गवा दिया। काश मैं इतनी जल्दी बाजी न करता, काश मां इतना तामझाम न करती, काश मुझे एक ऑटो समय से मिल जाता तो मुझे मंजिल के पास पहुंचकर उससे दूर न होना पड़ता । हे प्रभु तुझसे एक अर्जी लगाई थी वो भी तूने नकार दिया। क्यों, आखिर क्यो, मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता हैं?

काश ऐसा न होता, काश वैसा न होता इन्हीं सब बातों पर श्रृष्टि गहन मंत्रना खुद में कर रहीं थीं। जिसका असर चहरे पर साफ दिख रहा था। भोला मासूम खिला हुआ चेहरा बुझ सा गया। हर वक्त जिसके लवों पर मुस्कान तैरता रहा था। वो गायब सा हों गया।

कोई द्वार से भीतर प्रवेश करता तो श्रृष्टि को एक धाचका सा लगता और उसका मन कहता "क्या ये वही शक्स है? जिनके ऑटो में, मैं अपना प्रमाण पत्र भूल आई थी।" मगर खाली हाथ देखते ही फ़िर से निराश हों जाती। कई लोग सामने से आए ओर चले गए। प्रत्येक बार श्रृष्टि का मन एक ही बात दोहराया, अंतः श्रृष्टि निराश होकर सिर झुका लिया। उसी वक्त एक शख्स भीतर आया और रिसेप्शनिस्ट के पास पंहुचा, शख्स को देखकर रिसेप्शनिस्ट बोलीं... गुड मॉर्निग सर।

"गुड मॉर्निंग तन्वी (फ़िर अपने साथ लाए फाईल को देते हुए आगे बोला) तन्वी ये किसी श्रृष्टि की फाइल है जो यहां साक्षात्कार देने आई हैं वो वापस आए तो उनकी अमानत उन्हें लौटा देना।"

श्रृष्टि (फ़िर सामने की ओर उंगली से दिखाते हुए तन्वी आगे बोलीं) सर वो सामने बैठी है और बहुत देर से परेशान सी हैं।

"चलो देखा जाए कितना परेशान हैं" इतना बोलकर कुछ कदमों का फैंसला तय करके वो शख़्स श्रृष्टि के पास पहुंचकर बोला... Excuse me मिस श्रृष्टि।

खुद का नाम किसी और से सुनकर, अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाने लग गई। थोड़ा सा ऊपर उठाते ही सामने खड़े शख्स के हाथ में अपना प्रमाण पत्र पुस्तिका देखकर तुरन्त झपट लिए और खड़ी होकर बोलीं...शुक्रिया, बहुत बहुत शुक्रिया।

अपनी प्रमाण पत्र वापस पाने की ख़ुशी श्रृष्टि के चहरे पर दिख रहा था। जहां पहले बेबसी, बेचैनी और उदासी छाई हुई थी। वहां एक पल में मासूमियत और भोलापन ने अपना जगह ले चुका था। सामने खड़ा शख्स श्रृष्टि का भोला मासूम और खिला हुआ चेहरा देखकर उसी में अटक सा गया। मगर श्रृष्टि का ध्यान उस पर नहीं था वो तो बस साक्षात्कार दे पाने की खुशी खुद में ही मनाने में लगीं हुई थीं। सहसा सामने खडे शख्स को क्या सूझा कि वो बोल पड़ा... श्रृष्टि जी आपकी हरकते बहुत ही गैर जिम्मेदाराना है अगर ऐसा न होता तो आप अपना कीमती प्रमाण पत्र एक ऑटो में न भूल आती। आप जैसे गैर जिम्मेदार एक लड़की की, शायद ही इस कम्पनी को जरूरत हों।

शख्स की बाते सुनकर श्रृष्टि को बुरा लगा, हद से ज्यादा बुरा लगा क्योंकि एक अनजान शख्स श्रृष्टि पर गैर जिम्मेदार होने का लांछन लगा रहा था। जबकि सच्चाई से वो शख्स अनजान था। गलती न होने पर भी खुद पर उंगली उठाया जाना श्रृष्टि से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए श्रृष्टि बोलीं...सर कभी कभी जो प्रत्यक्ष दिख रहा हैं वो सच नहीं होता अपितु सच्चाई उसके उलट होता हैं। इसलिए किसी पर उंगली उठाने से पहले सच्चाई जान लेना बेहतर होता हैं।

"अच्छा (मंद मंद मुस्कान से मुस्कराते हुए शख्स आगे बोला) तो फिर आप ही मुझे सच्चाई से अवगत करवा दीजिए कि क्या कारण रहा होगा जिस वजह से अपको अपना कीमती प्रमाण पत्र एक ऑटो में छोड़कर आना पड़ा।

श्रृष्टि... सच्चाई (कुछ पल रूकी फ़िर शख्स की आंखों से आंखें मिलाए आगे बोलीं) सच्चाई बताना मैं जरूरी नहीं समझता क्योंकि जो बीत गया उसका वखान करके किसी से सहानुभूति हासिल करना मेरी फितरत नहीं हैं।

"स्वाभिमानी हों, मैं आपकी बातो से बहुत प्रभावित हुआ हूं मगर अभी अभी जो घटना घाटा उससे मैं निराश भी हुआ हूं, फ़िर भी मैं अपको प्रतिक्षा करने के अलावा कुछ नहीं कह सकता हूं। इसलिए आप प्रतीक्षा कीजिए बाकी आपकी किस्मत में जो हैं होना तो वहीं है।"

इतना ही कहकर वो शख्स अपने रास्ते चला गया और श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर गया। " कौन है ये शख्स? क्या ये शख्स इस दफ्तर का कोई आला अधिकारी हैं? अगर हुआ तो कहीं मेरी बातों का बूरा न मन जाए। ओ मैंने ऐसा क्यो कहा? मैंने कुछ गलत भी तो नहीं कहा, जैसी मेरी सोच है मैने बिल्कुल वैसा ही कहा। उफ्फ ये नौकरी, न जानें इसे पाने के लिए कितना तामझाम करना पड़ता हैं।

श्रृष्टि कुछ वक्त तक अपनी सोच में ही तरह तरह की बाते करती रहीं फ़िर जाकर साक्षात्कार निमंत्रण पत्र जमा कर दिया और अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने लग गईं। एक एक कर लोग जाते गए और श्रृष्टि बैठी बैठी अपनी बारी आने की प्रतिक्षा करती रहीं। अभी भी कई लोग रह गए थे कि एक शख्स आया और बोला... आज के लिए साक्षात्कार को यहीं पर स्थगित किया जाता हैं। अगला तारिक तय होने पर आप सभी को सूचित कर दिया जाएगा। अब आप लोग अपने अपने घर लौट जाएं।

वहा मौजूद लोग तरह तरह की बाते करते हुए एक एक कर बहार को चल दिया। मगर श्रृष्टि जैसी थी वैसी ही बैठी रहीं। उसे यकीन ही नहीं हों रहा था कि साक्षात्कार स्थगित कर दिया गया हैं। देर सवेर उसे यकीन करना ही था और हुआ भी वैसा, यकीन होते ही एक और नाकामी का दर्द नीर बनकर उसके आंखों से बह निकला जिसे पोंछकर, धीरे धीरे कदमों से श्रृष्टि बहार को चल दिया।

श्रृष्टि रिसेप्शनिस्ट के सामने से होकर गुजर रहीं थीं, ठीक उसी वक्त रिसेप्शन पर मौजूद फ़ोन बज उठा, नज़रे फेरकर उस और देखा फ़िर आगे को बड़ गई। श्रृष्टि गेट से बहार निकल ही रहीं थीं। ठीक उसी वक्त रिसेप्शनिस्ट ने श्रृष्टि को आवाज़ दिया। शायद श्रृष्टि सुन नहीं पाई इसलिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया। तो रिसेप्शनिस्ट जल्दी से द्वार तक पंहुचा, इतने वक्त में श्रष्टि लिफ्ट के पास पहुंच गई थीं। श्रष्टि लिफ्ट में सवार न हों जाएं इसलिए रिसेप्शनिस्ट ने तेज स्वर में आवाज़ देते हुए बोली... श्रृष्टि मैम रूकिए।

तेज स्वर में आवाज़ दिए जाने से श्रृष्टि रूक गई और पलटकर उस ओर देखा जिधर से आवाज़ आया था। रिसेप्सनिस्ट ने हाथ हिलाकर श्रृष्टि को अपने पास बुलाया तो श्रृष्टि न चाहते हुए भी उसके पास पहुंच गईं। श्रृष्टि के पहुंचते ही रिसेप्सनिस्ट बोलीं...मैम आपको साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा हैं।

सिर्फ़ श्रृष्टि को साक्षात्कार के लिए बुलाए जानें से श्रृष्टि मन ही मन खुश हों गई मगर सवाली कीड़ा जो ऐसे मौके पर कुछ ज्यादा ही कुलबुला उठता हैं। वहीं कीड़ा श्रृष्टि के अंतरमन में भी कुलबुला उठा और श्रृष्टि पूछ बैठी... साक्षात्कार तो स्थगित कर दिया गया था फ़िर मुझे ही क्यों साक्षात्कार के लिए बुलाया जा रहा है?

तन्वी... क्यों? मैं नहीं जानती मगर इतना कहूंगा कि आप बहुत भाग्यशाली हों जो साक्षात्कार स्थगित होने के बाद भी सीईओ श्रीमान राघव सर खुद आपको साक्षात्कार के लिए बुला रहें हैं।

तन्वी की बाते सुनकर जहां श्रृष्टि खुश हुई वहीं हैरान भी हुआ। मगर जाते जाते एक बार फ़िर से मौका मिल गया इसलिए ज्यादा वक्त बर्बाद न करते हुए। तन्वी के साथ रिसेप्शन पर पहुंच गई फिर तन्वी के बताए दिशा की और चल दिया।

दृश्य में बदलाव

राघव इस वक्त अपने दफ्तर रूम में बैठा साक्षी की क्लास लगा रहा था। वजह वहीं जिसके लिए राघव लगभग प्रत्येक दिन डांटा करता था। राघव डांटते हुए बोला... साक्षी तुम्हें एक बात बार बार क्यों कहना पड़ता हैं? एक बार में तुम सुन क्यों नही लेती? मैं दूसरो जैसा नहीं हूं जो लड़कियों को नुमाइश की वस्तु समझें मगर तुम हों की नुमाइश करने से बाज नहीं आती। आज तुम्हें आखरी भर चेतावनी दे रहा हूं। अगली बार तुम्हारे शार्ट का बटन, मुझे खुला हुआ दिख तो वो दिन इस दफ्तर में तुम्हारा आखरी दिन होगा। अब तुम जाओ और अपना काम करो।

साक्षी को झिड़ककर राघव एक फाइल देखने लग गया और साक्षी सनसनीखेज नजरों से राघव को देखा फिर पलट कर जाते हुए मन में बोला... क्या आदमी है कितना भी डोरे डालो फंसता ही नहीं, इनके जगह कोई ओर होता तो अब तक गोते लगा चुका होता। खैर कोई बात नहीं इन्हें फंसाने का कोई न कोई पैंतरा ढूंढ ही लूंगा।

मन ही मन खुद से बातें करते हुए साक्षी द्वार तक पहुंच गई जैसे ही द्वार खोला सामने श्रृष्टि को खड़ी देखकर सवाल दाग दिया... तुम कौन हों और यहां किस काम से आई हों?

श्रृष्टि... मैम मैं श्रृष्टि हूं और यहां साक्षात्कार देने आई हूं।

साक्षी... तो यहां क्या कर रहीं हो? साक्षात्कार तो दुसरी ओर हो रहा है। उधर जाओ।

श्रृष्टि... पर मुझे तो राघव सर ने यहीं बुलाया था।

श्रृष्टि का इतना बोलना था की साक्षी को सोचने पर मजबूर कर दिया और साक्षी मन ही मन बोलीं...क्यों, आखिर क्यो राघव सर ने इस लड़की को साक्षात्कार देने अपने पास बुलाया? जबकि राघव सर किसी का साक्षात्कार लेते ही नहीं, तो फ़िर क्यों इस लड़की का साक्षात्कार खुद लेना चाहते हैं? इस लड़की के साथ राघव सर का क्या रिश्ता हैं? सोच साक्षी सोच कुछ तो गड़बड़ है। मामला क्या है पाता लगाना पड़ेगा?

यहां साक्षी ख़ुद की सोच में गुम थी और वहां जब राघव की नज़र द्वार पर पड़ा तो साक्षी को खडा देखकर बोला... साक्षी तुम अभी तक गई नहीं, वहा खड़ी खड़ी क्या कर रहीं हों?

साक्षी अपने सोच से मुक्त होकर जवाब देते हुए बोली... सर कोई श्रृष्टि नाम की लड़की आई है और...।

साक्षी की बात बीच में कटकर राघव बोला... ओ श्रृष्टि! साक्षी तुम जाओ अपना काम करो और उन्हें अंदर भेजो।

"उन्हे! वाहा जी वाहा" मन ही मन इतना बोलकर साक्षी द्वार से हटकर आगे को चली गई और श्रृष्टि द्वार से ही बोलीं… सर मैं भीतर आ सकती हूं।

राघव... हां बिल्कुल आइए, आपको भीतर आने के लिए ही बुलाया गया था।

जारी रहेगा...
 
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भाग - 5

भीतर प्रवेश करते ही राघव को देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं... हे भगवान ये तो वहीं है जिन्होंने मेरा डॉक्युमेट लौटाया था। हे भगवान फिर से कोई बखेड़ा खडा मत करवा देना।

मन ही मन बोलते हुए श्रृष्टि जाकर राघव के सामने खडी हों गईं। श्रृष्टि को खडा देखकर राघव ने उसे बैठने को कहा बैठते ही श्रृष्टि बोलीं...सर अभी बहार जो कुछ भी आपसे कहा था उससे अगर आपको बुरा लगा हों तो माफ कर देना।

राघव ने उसके बातों का कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा कर देखा फ़िर एक साक्षत्कार अधिकारी की तरह श्रृष्टि के एक एक क्रियाकलाप पर नज़र बनाए हुए ही कुछ इधर उधर की बाते करने के बाद श्रृष्टि की मूल साक्षत्कार लेना शुरू किया।

श्रृष्टि की प्रमाण पत्र पुस्तिका को लेकर एक एक पेज देख रहा था और उससे वास्ता रखने वाला एक सवाल दाग देता। एक के बाद एक कई सवाल दागा गया। जिसका जवाब श्रृष्टि ने बड़े ही तहजीब और सलीके से दिया। एक वक्त ऐसा भी आया जब श्रृष्टि की फाइल में लगीं कुछ भवन मानचित्र सामने आया जिसे देखकर राघव बोला...एक गैर ज़िम्मेदार लड़की इतना भी ज़िम्मेदार हो सकती हैं कि इतनी बेहतरीन भवन मानचित्र भी बना सकती हैं या फिर ये सभी भवन मानचित्र किसी दूसरे की बनाई हुई हैं।

राघव सपाट लहज़े और गंभीर मुद्रा में ये सवाल दागा, जिसे सुनकर श्रृष्टि को बेहद गुस्सा आया। दोनों मुठ्ठी को भींचे, गुस्से को काबू करने में लग गईं। इसके अलावा श्रृष्टि कर भी क्या सकती थी।

राघव एक माहिर साक्षत्कार अधिकारी होने का पूरा पूरा परिचय दे रहा था उसकी नज़रे प्रमाण पत्रों पर बन हुआ था लेकिन खांकियों से श्रृष्टि के हाव भव को भी देख रहा था। जब श्रृष्टि ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया तो एक बार फिर राघव बोला...क्या हुआ श्रृष्टि जी अपने कोई जबाव नहीं दिया या फ़िर जो मैंने कहा उसका एक एक लवज़ सही हैं।

श्रृष्टि...सर ये सभी भवन मानचित्र मेरे मेहनत का नतीजा हैं न कि किसी दूसरे की मेहनत हैं।

राघव...चलो आप कहती हों तो मन लेता हूं।

एक बार फिर से राघव प्रमाण पत्र पुस्तिका के एक एक पेज पलटकर देखने लग गया और जब अंत में पहुंचा तो उसे देखकर राघव बोला... श्रृष्टि जी आपका कार्य अनुभव बता रहा हैं कि आपने कई छोटे बड़े कंसट्रक्शन कंपनी में काम किया मगर इन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अपने डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप जैसे नामी कंपनी में भी काम किया फिर ऐसा क्या करण रहा जिसके वजह से आपको वो कंपनी छोड़ना पड़ा। कहीं ऐसा तो नहीं आपके गैर जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से आपको निकाल दिया गया हों।

मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं (कुछ पल रूकी और आई हुई गुस्से को काबू करते हुए आगे बोला) सर मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं और न ही मैं डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप से निकली गई हूं बल्कि मैं ख़ुद उस कंपनी को छोड़ दिया था। अब आप छोड़ने की वजह न पूछ बैठना क्योंकि आप'ने करण पुछ तब भी मैं नहीं बताने वाली।

राघव की नज़र भले ही नीचे प्रमाण पत्र पुस्तिका देखने में था मगर खांकियो से श्रृष्टि पर नज़र बनाया हुआ था। इसलिए उसे दिख गया की कुछ सवालों के दौरान श्रृष्टि को बहुत गुस्सा आया। जिसे देखकर राघव मन ही मन मुस्कुरा दिया। कुछ और सावल जवाब का दौर चला अंत में श्रृष्टि को उसका प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस देते हुए राघव बोला...श्रृष्टि जी अब आप जा सकती हों नौकरी की जानकारी आपको मेल या फिर लेटर द्वारा भेज दिया जाएगा।

बाद में जानकारी देने की बात सुनकर एक बार फिर से श्रृष्टि निराश हों गईं क्योंकि श्रृष्टि को उम्मीद था कि इतने वक्त तक साक्षत्कार चला हैं तो शायद उसको नौकरी मिल जाएं मगर इसका आसार उसे दिख नहीं रहा था। बाद में जानकारी देने का मतलब वो अच्छे से जानती हैं। इसलिए अनमाने मन से उठी और राघव को धन्यवाद कहकर चल दिया। अभी द्वार तक पुछा ही था कि राघव बोला... श्रृष्टि जी रूकिए! अगर आप मेरी कुछ शर्तों को पूरा करने का वादा करती हैं तो ये नौकरी आपको मिल सकता हैं।

नौकरी मिलने की बात सुनते ही श्रृष्टि खुशी से झूम उठी और मुस्कुराते हुए बोलीं... कैसी शर्त?

राघव... शर्त बस इतना हैं कि जो भी काम आपको दिया जाए उसे आप जिम्मेदारी से निभायेंगे।

श्रृष्टि... जी बिल्कुल आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।

राघव... ऐसा है तो अब आप खुशी खुशी घर जा सकती हैं और जब आपको ज्वाइन करने को कहा जाएं तब आकर जॉइन कर लेना।

एक बार फ़िर से श्रृष्टि चहकती मुस्कुराती हुई आभार व्यक्त किया फ़िर चलती बनी और राघव बोला... ओ क्या लड़की हैं? दिखने में जितनी मासूम और भोली हैं उतनी ही तेज तर्रार और गुस्से वाली और सबसे बडी बात स्वाभिमानी हैं मगर मैं उसके बारे में ऐसी बातें क्यों कर रहा हूं?


श्रृष्टि को नौकरी मिल चुका हैं। ये बात घर आकर मां को बताया तो मां भी बेटी के खुशी में सारिका हों गई। मगर मां की ख़ुशी में सेंधमारी करतें हुए ख़ुद के साथ घटी एक एक घटना मां को कह सुनाया उसके बाद बोलीं...मां आपके बला उतराई और दही शक्कर खिलाने के बाद भी मुझे कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा तब कही जाकर नौकरी मिला।

"श्रृष्टि बेटा तुम इस घटना हो नकारत्मक नजरिए से क्यों देख रहीं है? तुम इस घटना को सकारात्मक नजरिया से भी देख सकती हों। जरा सोचकर देखो अगर मैं तुम्हारी बला न उतरता, तुम्हें दही शक्कर न खिलाता तो हों सकता हैं तुम्हारी मुस्किले ओर बढ़ जाता फिर जो नौकरी तुम्हें मिला हैं वो भी नहीं मिलता।"

मां के कहने पर श्रृष्टि अपने साथ घटी एक एक घटना को फिर से रिवाइन करने लग गई तब उसे समझ आया की मां का कहना सही हैं तब श्रृष्टि बोलीं... मां आप कह तो सही रहीं हों अब देखो न कोई ऑटो वाला उस रूट पर जानें को तैयार नहीं हों रहा था। ऐसे में एक ऑटो वाला परमिट न होते हुए भी मुझे उस रूट पर लेकर गया। अनजान होते हुए भी मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस लौटने आया। मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वहां के सीईओ के हाथ लगना उनके जरिए मुझ तक पहुंचना, साक्षत्कार स्थगित होने के बाद भी मेरा साक्षत्कार सीईओ द्वारा लेना जबकि वो किसी का साक्षत्कार नहीं लेते हैं।

"इसलिए तो कहते है जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब बस मन लगाकर ईमानदारी से नौकरी करना ओर एक बात इन अमीर लोगों से उतना ही वास्ता रखना जीतना काम के लिए जरूरी हों क्योंकि इनकी फितरत आला दर्जे की होती हैं। ये लोग सही गलत नहीं देखते, बस अपना फायदा देखते हैं।"

श्रृष्टि... मैं जानती हूं आप ये बात क्यों कह रहीं हों। आपकी बताई सभी बातों का ध्यान रखूंगा।

मां ने ऐसी बातें क्यों कहा? ये तो सिर्फ़ वो जानें या फिर श्रृष्टि जानें बरहाल समय का पहिया घुमा और देखते ही देखते तीन दिन बीत गया। आज श्रृष्टि को एक मेल आया जिसमे दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करने की बात कहा गया था। खुशी खुशी यहां बात श्रृष्टि ने मां को बता दिया।

अगले दिन सुबह के लगभग ग्यारह बजे करीब माताश्री कोई जरूरी काम बताकर कहीं चली गईं। जाना तो श्रृष्टि भी चाहती थीं मगर माताश्री उसे लेकर नहीं गईं। जिस भी काम को निपटाने गई थी उसे निपटाकर माताश्री दोपहर को लौट आईं।

शाम के वक्त दोनो मां बेटी चाय का लुप्त ले रहीं थीं उसी वक्त किसी ने अपने आगमन का संदेश द्वार पर लगी घंटी बजाकर दिया। तब माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाकर देख तो कौन आया हैं?

माताश्री के कहते ही श्रृष्टि बहार गई। वहां एक लड़का चमचमाती न्यू स्कूटी के साथ खडा था। उसके पास जाकर श्रृष्टि बोलीं...जी बोलिए क्या काम था?

"जी आपका ही नाम श्रृष्टि हैं।"

श्रृष्टि...जी मेरा ही नाम श्रृष्टि हैं। लेकिन आपको मूझसे क्या काम?

"जी आप ही से काम हैं ये स्कूटी जो आपको सौंपना हैं।"

श्रृष्टि... मुझे पर क्यों? मैंने तो किसी तरह का कोई ऑर्डर नहीं दिया।

"श्रृष्टि बेटा ले लो ये तुम्हारे लिए ही हैं।" माताश्री ने पीछे से बोला तो श्रृष्टि मां की और पलटकर देखा तब माताश्री ने हा में सिर हिला दिया तब कहीं जाकर श्रृष्टि ने स्कूटी की चाबी लिया और वापस पलट कर मां के पास जाकर मां से गले मिलते हुए बोलीं... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

"जरूरत थी बेटा, मैं बहुत दिनों से सोच रहीं थीं तुम्हें एक स्कूटी दिलवाऊँ लेकिन कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। अब जब मौका मिला तो मैंने भी मौका ताड़ लिया अब मेरी बेटी को नौकरी पर जानें के लिऐ ऑटो की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगा।"

श्रृष्टि…. मां पर….।

"पर वर छोड़ और अपनी मां को अपनी नई स्कूटी की सवारी करवा।"

कुछ ही क्षण में दोनों मां बेटी दुपहिया पर सवार होकर घूमने चल दिया। श्रृष्टि के लिए मानो खुशियों का अंबर लग गया पहले कितनी सारी मुस्किलों का सामना करने के बाद नौकरी मिला और अब दुबारा उन्ही मुस्किलों का सामना न करना पड़े सिर्फ इसलिए माताश्री ने उसे न्यू स्कूटी दिलवा दिया।

जारी रहेगा...
 
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भाग - 6

कहते हैं मुश्किलों के बाद मिली हुई खुशियां अनमोल होती हैं। ठीक वैसे ही श्रृष्टि को मिली हुई खुशियां अनमोल थी। एक दिन बाद श्रृष्टि को नौकरी ज्वाइन करना था। मगर उससे पहले श्रृष्टि अपने एक मात्र सहेली समीक्षा से मिली और उसे मुश्किलों के बाद मिली खुशियों का बखान सुना डाला। दोस्त यार सहेली सभी ऐसे ही मौके के तलाश में रहती है। तो समीक्षा भला ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने देती। नई स्कूटी और नौकरी मिलने की सूचना पाते ही समीक्षा बोल पड़ी...नई स्कूटी नई नौकरी श्रृष्टि तेरे तो बारे नियारे हों गई। अब बता पार्टी कब दे रहीं हैं।

श्रृष्टि... अरे अरे ठहर जा लुटेरी, गांव बसा नहीं की लूटने पहुंच गई। पहले सैलरी तो मिल जानें दे फिर पार्टी ले लेना।

"श्रृष्टि ( दो तीन चपत लगाकर समीक्षा आगे बोलीं) मैं लुटेरी बता, बता मैं लुटेरी हूं।"

"अरे नहीं रे (समीक्षा को कोरिया कर श्रृष्टि आगे बोलीं) तू तो मेरी दोस्त है वो भी अच्छी वाली।

समीक्षा...अच्छा, अच्छा ठीक है। तुझे जब पार्टी देना हों दे देना। मेरे दोस्त को नई नौकरी मिलने की खुशी में आज पार्टी समीक्षा देगी। मगर जायेंगे तेरी नई फटफटिया पे।

इसके बाद दोनों सहेली श्रृष्टि की नई दुपहिया पर सवार हों चल पड़ी। करीब करीब दो से तीन घंटे में पार्टी मानकर दोनों सहेलियां लौट आईं।

अगले दिन श्रृष्टि तैयार होकर अपने लिए सभी जरूरी चीजों को लेकर जैसे ही कमरे से बहार निकला सामने माताश्री हाथ में दही का कटोरा और होंठो पर मुस्कान लिए खडी मिली।

माताश्री ने एक चम्मच दही श्रृष्टि के मुंह में डाला जिसे खाते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां आज एक चम्मच से कुछ नहीं होगा आज तो पूरा कटोरी भर दही खाने के बाद ही जाऊंगी।

इतना बोलकर माताश्री के हाथ से कटोरी झपट लिया और एक एक चम्मच करके पूरा कटोरी खाली कर दिया फ़िर कटोरी मां को थमा दिया। माताश्री एक चपत लगाया फ़िर बोलीं... मां से मसखरी कर रही हैं।

"मेरी भोली मां" इतना बोलकर मां से लिपट गईं फिर "बाय मां शाम को मिलते है" बोलकर चली गई। नई स्कूटी और चालक भी उतना ही बेहतरीन, हवा से बातें करते हुए कुछ ही वक्त में श्रृष्टि दफ़्तर पहुंच गई।

पहला दिन कहा बैठना हैं, काम क्या करना हैं? ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था तो रिसेप्शन पर जाकर तन्वी से पुछा, एक और इशारा करते हुए तन्वी बोली... मैम आप वहा जाकर बैठिए बाकी काम क्या करना हैं राघव सर ही बताएंगे।

बताई हुई जगह पर जाकर श्रृष्टि बैठ गई और दफ़्तर में मौजूद लोगों के हाव भव का जायजा लेने लग गई। बरहाल कुछ ही देर में श्रृष्टि को बुलावा आ गया। बुलावा आते ही श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गईं।

आज श्रृष्टि का मुखड़ा खिला हुआ था। लवों पर मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहीं थीं। जिसे देखकर राघव की निगाहें एक बार फिर श्रृष्टि के मुखड़े पर अटक गया। दो चार पल अपनी निगाहें ठिकाये रखा फ़िर सिर झटक कर मन में बोला... इस लड़की में क्या जादू हैं जो मेरी निगाह उस पर अटक जाता है। ओहो मेरे साथ ये क्या हों रहा हैं? पहले तो कभी नहीं हुआ।

"सर मैं बैठ सकती हूं।" ये आवाज श्रृष्टि की थी। जो कानों से टकराते ही राघव तंद्रा मुक्त हुआ और अचकचाते हुए बोला... जी जी बिल्कुल बैठ जाइए।

थोडी बहुत बाते हुआ फ़िर राघव ने किसी को फ़ोन किया। दो चार मिनट का वक्त बीता ही था कि किसी ने बंद द्वार खटखटाया और भीतर आने की अनुमति मांगा। द्वार पर साक्षी थी जिसे
अनुमति मिलते ही भीतर आई फ़िर बोली... सर कुछ कम था?

राघव... साक्षी इनसे मिलो ये है श्रृष्टि अभी नई नई ज्वाइन किया हैं।

दोनों में हैलो हाय हुआ फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये तो वहीं है जिनका साक्षत्कार आपने लिया था।

राघव.. हां, साक्षी तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला हुआ है अगले एक हफ्ते तक इनके साथ मिलकर काम करो (फ़िर श्रृष्टि से मुखातिब होकर आगे बोला) श्रृष्टि जी आप अगले एक हफ्ते तक साक्षी के साथ काम कीजिए। इस एक हफ्ते में मैं देखना चहता हूं। आप अपना काम कितना जिम्मेदारी से करती हों। मुझे ठीक लगा तो एक हफ्ते बाद एक नई प्रोजेक्ट पर आप मेरे साथ काम करेंगे।

नई नई ज्वाइन किया और सिर्फ़ एक हफ्ते बाद नया प्रोजेक्ट मिलना, सिर्फ मिलना ही नहीं बल्कि सीईओ के साथ काम करना मतलब श्रृष्टि के लिए बहुत बडी बात हैं। इसलिए श्रृष्टि खुशी खुशी हां कह दिया मगर राघव की बात साक्षी को पसन्द नहीं आई। मुंह भिचकाते हुए साक्षी मन में बोलीं... मेरे साथ तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को राज़ी नहीं हुए और नई आई लड़की के साथ सिर्फ़ एक हफ्ते बाद काम करने को राज़ी हों गए। पक्का कुछ न कुछ रिश्ता दोनों में हैं मगर कोई बात नहीं इस लड़की को पास या फेल करना मेरे हाथ में हैं। मैं नहीं तो किसी और को भी आपके साथ काम नहीं करने दूंगी।

कुछ ओर जरूरी बातें करने के बाद दोनों को जानें को कहा। दोनों के जाते ही राघव रिवीलिंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फिर एक टांग पर दुसरी टांग चढ़ाकर, दोनों हाथों को सिर के पीछे बांधकर सिर सहित रिवीलिंग चेयर के पुस्त से टिका दिया और पैर को नचाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लग गया। राघव का यूं मुस्कुराने का ढंग अलग ही कहानी बायां कर रहा था। ऐसा लग रहा था राघव के मस्तिस्क में कुछ तो चल रहा हैं।

दृश्य में बदलाव

श्रृष्टि को साथ लिए साक्षी एक कमरे में पहुंचा जिसे देखकर ही बतलाया जा सकता हैं। ये एक आर्किटेक का स्प्रेट कार्यालय है मगर ऐसा नहीं था वह पहले से ही चार पांच लोग मौजूद थे। उन सभी को आवाज़ देते हुए साक्षी बोला... हैलो गायेज इनसे मिलो इनका नाम है श्रृष्टि आज ही ज्वाइन किया हैं और अगले एक हफ्ते तक हमारे साथ काम करेंगे।

"नाईस नेम एंड स्वीट गर्ल।" "सो स्वीट नेम एंड सेक्सी गर्ल।" ऐसे तरह तरह के कॉमेंट सभी ने पास किया। जो श्रृष्टि को पसन्द नहीं आया मगर वो जानती थी इस तरह का कॉमेंट आम बात हैं। जो अमूमन साथ में काम करने वालो से सुनने को मिल जाता हैं। इसलिए ज्यादा बुरा नहीं माना, एक एक कर अपने बारे में बाते जा रहें थे। वो कहा से हैं, पहले कहा काम करता था। यह तक कैसे पंहुचा अब तक कितने प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। फलाना डिमाका एक विस्तृत जानकारी देने लग गए। जिस कारण बहुत अधिक समय जाया हों रहा था। इसलिए श्रृष्टि उन्हें रोकते हुए बोलीं...हे गायेज अपने बारे में जानकारी बाद में दे देना अभी काम क्या करना हैं इस पर बात कर लेते हैं।

"अरे श्रृष्टि भले ही एक हफ्ते के लिए हमें साथ में काम करना हैं फ़िर भी एक दूसरे की जानकारी तो होना ही चाहिए हों सकता है आगे भी हमें साथ में काम करना पड़े इसलिए अभी जान पहचाना हों जाएं तो आगे चलकर काम करने में आसानी होगा (सामने खडे साथियों को एक आंख दबाकर समीक्षा आगे बोलीं) चलो गायेज हमारी नई साथी को अपने बारे में जानकारी दो, ओर हा ठीक से देना जिससे कि श्रृष्टि हमारे साथ अच्छे से घुल मिल जाएं।"

श्रृष्टि उन्हें कुछ कहती या रोकती उससे पहले ही सभी अपनी अपनी राम कहानी का पिटारा खोलकर शुरू हों गए। अभी उनकी राम कहानी चल ही रहा था कि "ये क्या हों रहा हैं सभी काम धाम छोड़कर गप्पे हाकने में लगे हों। तुम्हें गप्पे मारने की नहीं काम करने की सैलरी दिया जाता हैं।" ये आवाज़ वहा गूंजा जो की राघव का था।

राघव को आया देखकर सभी तुंरत संभले ओर साक्षी चापलूसी करते हुए बोलीं...सर हम तो काम ही करना चाहते थे मगर श्रृष्टि ही कह रहीं थीं वो नई हैं सभी उसे अपने बारे में विस्तृत जानकारी दे, काम तो बाद में होता रहेगा।

साक्षी के साथ में काम करने वाले दूसरे साथियों ने उसके हां में हां मिलाकर सारा दोष श्रृष्टि पर मढ दिया। ये सुन और देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं...सभी के सभी नम्बर वन कमीने हैं। इनसे बचकर रहना होगा नहीं तो गलती ये करेंगे और दोष मेरे सिर थोप देंगे। ये तो बाद की बात है अभी क्या करूं? अभी कुछ नहीं बोला तो बात और बिगड़ जाएगी। हे प्रभु तेरी मूझसे क्या दुश्मनी हैं? गलती न होते हुए भी मुझे पाचेडे में फसवा देता है। क्यों, आखिर क्यो ऐसा करता हैं?

मन ही मन खुद से बातें और ऊपर वाले से सावल करने के बाद श्रृष्टि अपने बचाव में बोलने जा ही रहीं थीं कि राघव बीच में बोला...श्रृष्टि जी मुझे लगाता हैं एक गैर ज़िम्मेदार लड़की को नौकरी देखकर मैंने ख़ुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं। मुझे डर हैं कहीं आपकी संगत में रहकर मेरे काबिल और ज़िम्मेदार मुलाजिम कहीं आप की तरह गैर ज़िम्मेदार न बन जाएं।

श्रृष्टि... सर...।

"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।

जारी रहेगा...
 

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