Fantasy तेरी याद साथ है

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"उम्म… ओह्ह.. जल्दी कर सोनू… इससे पहले कि कोई आ जाये मुझे कल रात की गलती की सजा दे दे !" आंटी मदहोशी में बोले जा रही थी और मेरे सीने पे अपने होंठों की छाप छोड़े जा रही थी।

मैंने उन्हें खुद से थोड़ा अलग किया और उनकी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया। एक बार फिर मेरे सामने उनकी बड़ी बड़ी सुडौल चूचियाँ लाल ब्लाउज में ऊपर नीचे हो रही थीं। मैंने देर न करते हुए उन्हें थाम लिया और उन्हें जोर से दबा दिया।

"उह्ह… इतनी जोर से तो ना दबा… कहीं ब्लाउज फट गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे !" उन्होंने मेरे हाथों पे अपने हाथ रख दिए और धीरे से दबाने का इशारा किया।

मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूचियों को मसलना शुरू किया और आंटी अपनी आँखें बंद करके सिसकारियाँ भर रही थीं। समय की नजाकत को देखते हुए मैंने भी प्रोग्राम को लम्बा खींचना नहीं चाहा और सीधे उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा। पहला हुक खुलते ही आंटी ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने ही हाथों से अपने ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए और अपने हाथ अपनी पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा का हुक भी खोल दिया। लाल ब्लाउज के अन्दर काली ब्रा में कैद उनकी चूचियों ने जैसे एक छलांग लगाई हो और ब्रा को ऊपर की तरफ उछाल दिया।

उनकी भूरे रंग की घुन्डियों ने मुझे निमंत्रण दिया और मैंने झुक कर सीधे अपने होंठ लगा दिए।

"उम्म्…पी ले… जाने कब से तेरे मुँह में जाने को तड़प रहे हैं।" इतना बोलकर उन्होंने अपने एक हाथ से अपनी एक चूची को मेरे होंठों में डाल दिया।

ये सब इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल रहा था। पता नहीं यह उनकी बरसों की तड़प की वजह से था या समय कम होने की वजह से। पर जो भी था मैं पूरे जोश में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा।

"उफफ्फ… सोनू, मेरे लाल… जल्दी जल्दी चूस ले… आराम से चूसने का वक़्त नहीं है तेरे पास !" आंटी ने एक बार फिर से एक कामुक सिसकारी भरते हुए मेरा ध्यान समय की तरफ खींचा।

अब मुझे भी समझ आ गया था कि जल्दी से कल रात की तड़प को शांत कर लिया जाए, फिर एक बार लंड चूत में जाने के बाद आराम से इस काम की देवी का रसपान करेंगे वो भी इत्मिनान से अपने घर जाकर जहाँ हमें किसी का कोई डर नहीं होगा।

ऐसा सोच कर मैंने उनकी एक चूची को चूस चूस कर दूसरी चूची को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा। मैं अपना पूरा दमख़म लगा कर उनकी चूचियों को पी रहा था मानो बस कुछ पल में ही ही उन्हें खाली करना हो। आंटी हल्की-हल्की सिसकारियों के साथ मेरे सर को अपनी चूचियों पे दबा रही थी। तभी उन्होंने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर मेरे लोअर के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया। लंड को पकड़ते ही उन्होंने एकदम से छोड़ दिया और एक लम्बी सी आह भरी। उनकी इस हरकत ने मेरे ध्यान खींच लिया और मैंने उनकी चूची को मुँह से निकाल दिया और यह समझने की कोशिश करने लगा कि उन्होंने लंड पकड़ कर अचानक छोड़ क्यूँ दिया। उनकी आँखों में देखा तो एक अजीब सा आतंक देखा मानो उन्होंने लंड नहीं कोई बांस पकड़ लिया था।

"ये… नहीं नहीं… इतना मोटा… हाय राम…" टूटे फूटे शब्दों में सिन्हा आंटी ने लंड को छोड़ने का कारण समझाया।
 
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मैं हंस पड़ा और उनका हाथ पकड़ कर अपने लोअर में डाल दिया। मेरे नंगे खड़े लंड पे हाथ पड़ते ही उन्होंने एक जोर की सांस ली और इस बार कास कर पकड़ लिया और बिल्कुल मरोड़ने लगी। उनकी आँखें मेरी आँखों में ही झांक रही थीं और एक अजीब सी चमक दिखला रही थीं मानो उन्हें कारू का खजाना मिल गया हो।

मैंने उनके होंठों को चूमा और उनी साड़ी का एक छोर पकड़कर खोलने लगा।

"नहीं… इसे मत खोल… देर हो जाएगी… हम्म्…" आंटी ने मुझे रोक दिया।

"फिर कैसे होगा?" मैंने भी एक अनजान अनाड़ी की तरह सवाल किया और उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराने लगी और मेरे लोअर के अन्दर से अपना हाथ निकल कर अपने दोनों हाथों से अपनी साड़ी धीरे धीरे ऊपर उठाने लगी और उठाकर बिल्कुल ऊपर करके पकड़ लिया। साड़ी इतनी ऊपर हो गई थी कि उनकी चूत नंगी हो चुकी थी लेकिन खड़े होने की वजह से ऊपर से दिखाई नहीं दे रही थी।

"ऐसे ही काम चला ले अभी…" आंटी ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी आँखें झुका लीं और मुस्काने लगी।

मैं उनका इशारा समझ गया और झट से नीचे बैठ गया। खिड़की से आ रही रोशनी ने उनकी गद्देदार और हलके हलके झांटों से भरी चूत के दर्शन करवा दिए। वैसे तो मैं बिल्कुल रोम विहीन चूत का दीवाना हूँ लेकिन आंटी की छोटी छोटी झांटों के बीच फूली हुई चूत मुझे बड़ी ही मनमोहक लगी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने होंठों को चूत पर रख दिया।

"उम्म… आह्ह… जल्दी कर न…" होंठ रखते ही उनकी चूत ने एक छोटी सी पिचकारी मारी और पहले से ही गीली चूत के होंठों को और भी गीला कर दिया।

क्या खुशबू थी उस रस भरी चूत से निकलते हुए रस में… रिंकी और प्रिया की चूत से भी मस्त कर देने वाली खुशबू आती थी लेकिन यह खुशबू एकदम अलग थी। शायद कुँवारी और शादीशुदा चूतों की खुशबू अलग अलग होती होगी, यह सोचकर मैंने अपने होंठों से चूत के हर हिस्से को चूमा और फिर अपनी जीभ निकल कर उनकी चूत को अपनी उंगलियों से फैला कर सीधा अंदर डाल दिया।

"उफ्फ… हाय मेरे लाल… ये क्या कर दिया तूने…" आंटी ने एक ज़ोरदार आह भरी और अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पे दबा दिया मानो मुझे अंदर ही डाल लेंगी।

मैंने अपना सर थोड़ा सा ढीला किया और अपनी जीभ को चूत के ऊपर से नीचे तक चाटने लगा और बीच बीच में उनके दाने को अपने होंठों से दबा कर चूसने लगा। दानों को जैसे ही अपने होंठों में दबाता था तो आंटी अपने पैरों को फैलाकर चूत को रगड़ देती थी।

करीब 5 मिनट ही हुए होंगे कि आंटी ने मेरा सर चूत से हटा दिया और मेरा कन्धा पकड़ कर मुझे उठा दिया और झट से नीचे बैठ गई। आंटी की तड़प देखते ही बनती थी। सच में जब औरत गरम हो जाती है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।

नीचे बैठते ही उन्होंने मेरा लोअर नीचे खींचा और मेरे लंड को आज़ाद करके अपने हाथों में भर कर ऊपर नीचे सब तरफ से देखने लगी मानो पहली बार देख रही हो। मुझे लगा कि वो अब मेरा लंड अपने नर्म होंठों के रास्ते अपने मुँह में भरेगी और मुझे लंड चुसाई का असीम सुख देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैंने अपना लंड उनके होंठों से लगाया तो उन्होंने मेरी तरफ देखकर ऐसा किया मानो पूछ रही हो कि क्या करूँ।
 
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मैंने लंड को उनके होंठों पे रगड़ा तो उन्होंने लंड के चमड़े को खोलकर सुपारे पे एक चुम्मी दे दी और उठ गई। मैं उदास हो गया लेकिन फिर यह सोचा कि शायद उन्होंने कभी लंड चूसा नहीं होगा इसलिए ऐसा किया। कोई बात नहीं, मैं उन्हें भी उनकी बेटियों की तरह लंड कि दीवानी बना दूँगा। फिर तो वो 24 घंटे लंड अपने मुँह में ही रखेंगी।

आंटी उठ कर सीधे बिस्तर पर लेट गई। उनका आधा शरीर बिस्तर पर था और आधा बाहर। यानि उनकी कमर तक बिस्तर पर और कमर से नीचे पैर तक बिस्तर के नीचे। मैंने समय न गंवाते हुए उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर उनकी कमर तक उठा दिया और एक बार फिर से झुक कर चूत को चूम लिया, फिर उनके पैरों को अपने कन्धों पर रख कर अपने लंड को सीधे उनकी हसीं चूत के मुँह पर रख दिया। लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रगड़ कर मैंने सुपारे को बिल्कुल सही जगह फिट कर दिया अब बस धक्का मारने की देरी थी और मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अन्दर चला जाता।

आंटी ने बिस्तर की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत को उठाकर पेलने का इशारा किया। उनकी आँखें बंद थी और दांतों को कस लिया था मानो वो आने वाले तूफ़ान के लिए पूरी तरह से तैयार हों।

उनकी यह दशा देखकर मैंने उन्हें तड़पाना सही नहीँ समझा और अपने सुपारे को हल्का हल्का रगड़ते हुए धीरे धीरे अन्दर की तरफ ठेलना शुरू किया। हल्के से दबाव के साथ लंड का अगला हिस्सा उनकी चूत के अन्दर आधा जा चुका था। अब मैंने उनकी जांघों को अपने अपने हाथों से मजबूती से पकड़ा और एक जोर का झटका दिया और आधा लंड अन्दर घुस गया।

"ग्गुऊंन… इस्स स्स्स… धीरे…. ह्म्म्म…" आंटी ने अपने दांत पीसते हुए लंड का प्रहार झेला और धीरे से बोलीं।

मैंने बिना रुके एक और झटका मारा और जड़ तक पूरे लंड को उनकी चूत में ठोक दिया।

"आआअह्ह्ह्ह… ज़ालिम… धीरे कर ना… आज ही सारे कर्म कर देगा क्या?" आंटी ने एक लम्बी चीख के साथ प्यार से गालियाँ देते हुए कहा।

ज़ालिम तो मुझे मेरी प्रिया कहती है… उसकी माँ के मुँह से अपने लिए वही शब्द सुनकर मैं खुश हो गया और धीरे धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ आंटी सिसकारियाँ भरती जा रही थीं और उनकी चूत गीली होती जा रही थी।

"हाँ… बस ऐसे ही करता जा… बहुत तड़पी हूँ तेरे लिए…" आंटी ने प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"जितनी तड़प आपने कल रात से मेरे अन्दर भरी है उतनी तड़प तो मैंने आज तक महसूस नहीं की थी… अब तो बस आप देखती जाओ मैं क्या क्या करता हूँ।" मैंने अपने धक्कों का आवेग बढ़ाते हुए कहा।

"तो कर ले ना, रोका किसने है… लेकिन अभी तो जल्दी जल्दी कर ले… आह्ह्हह्ह… कोई आ न जाये… उफफ्फ… कर… और कर…" आंटी मुझे जोश भी दिला रही थीं और जल्दी भी करने को कह रही थीं ताकि कोई देख न ले और गड़बड़ न हो जाए।

एक बात थी कि उनके मुँह से कोई अभद्र शब्द नहीं निकल रहे थे… या तो वो बोलती नहीं थीं या फिर मेरे साथ पहली बार चुदाई करने की वजह से खुल नहीं पा रही थीं।

खैर मैंने अब अपनी स्पीड को और भी बढ़ा दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। पलंग के पाए चरमराने लगे थे और लंड और चूत के मिलन की मधुर ध्वनि पूरे कमरे में गूंजने लगी थी। मैं अपने मस्त गति से उन्हें चोदे जा रहा था और अब आंटी ने भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर लंड को पूरी तरह से निगलना शुरू कर दिया था।

घप्प्प… घप्प्प्प… घप्प्प… घप्प्प… बस यही आवाजें निकल रही थीं हमारे हिलने से….
 
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करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लंड पेलते पेलते मैंने उनकी टाँगे छोड़ दिन और हाथों को आगे बढाकर उनकी चूचियों को थाम लिया।चूचियाँ मसलकर चुदाई का मज़ा ही कुछ और है और औरतों को भी इसमें चुदाई का दुगना मज़ा आता है।

लंड और चूत दोनों हो कल रात से तड़प रहे थे इसलिए अब चरम पे पहुँचने का वक़्त हो चला था। लगभग 20 मिनट के बाद मैंने एक बार फिर से उनके टांगों को अपने कंधे पे रख कर ताबड़तोड़ धक्कम पेल शुरू कर दी और उनके चूत की नसों को ढीला कर दिया।

"हाँ… हाँ… ऐसे ही कर… और जल्दी… और जल्दी… कर मेरे सोनू… और तेज़… आऐईईई…" आंटी मस्त होकर सिसकारियाँ भरने लगीं और मुझे और तेज़ चुदाई के लिए उकसाने लगीं।

"उफफ्फ… मैं आई… मैं आईई… ओह्ह्ह… ओह्ह्हह… आआऐ ईईइ।" आंटी के पैर अकड़ गए और वो एकदम से ढीली पड़ गईं।

अचानक हुई तेज़ चुदाई से आंटी अपने चरम पे पहुँच गईं और अकड़ कर अपने चूत से कामरस की बरसात करने लगी जो सीधा मेरे लंड के सुपारे को भिगो रही थी। चूत के अन्दर लंड पे हो रही गरम गरम रस के बरसात ने मेरे सब्र का बाँध भी तोड़ दिया और मैंने भी एक जोर के झटके के साथ अपने लंड की पिचकारी उनके चूत के अन्दर छोड़ दी…

"अआह्ह… आह्ह्ह्ह… अआह्ह… उम्म्मम्म।" मेरे मुँह से बस ये तीन चार शब्द निकले और मैंने ढेर सारी पिचकारियों से उनकी चूत को सराबोर कर दिया।

हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे और एक दूसरे से चिपक कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहे थे।

एक घमासान चुदाई के बाद हम शिथिल पड़ गए और करीब 10 मिनट तक ऐसे लेटे रहे। फिर आंटी ने मेरे सर पे हाथ फेरा और मेरे कानों में धीरे से कहा, "अब उठ भी जा….बहुत देर हो गई है।"

मुझे भी होश आया, मैं उनके ऊपर से उठा और अपने लंड को उनकी चूत से बाहर खींचा।

'पक्क !' की आवाज़ के साथ मेरा लंड उनकी चूत से बाहर आ गया और उनकी चूत से हम दोनों का मिश्रित रस टपक कर नीचे फर्श पर बिखर गया। आंटी ने अपने साड़ी के नीचे के साए से अपनी चूत को पौंछा और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।

आंटी ने जैसे ही अपनी चूत पोछ कर साफ़ की मैंने झुक कर एक पप्पी ले ली और उका हाथ पकड़ कर उठा दिया। आंटी उठ कर अपनी साड़ी और ब्लाउज ब्रा को ठीक करने लगी और सब ठीक करके मेरे सीने से लग कर मेरे चेहरे पे कई सारे चुम्बन दे कर मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ कर झुक कर उस पर एक चुम्बन ले लिया।

"आज से तुम मेरे हुए… मेरा शेर…" आंटी ने मेरे लंड को चूमते हुए कहा और फिर मुस्कुरा कर मुझे देखकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गईं।
 
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मैंने अपना लोअर ऊपर किया और उन्हें जाते हुए देखता रहा। उनके जाते ही मैं बाथरूम में गया उर अपने लंड को साफ़ कर लिया क्यूंकि प्रिया कभी भी आकर मेरे लंड को अपने हाथों में ले सकती थी और अगर लंड को इस हालत में देखती तो सवालों की झड़ी लग जाती और शायद मैं उसे कुछ भी समझा नहीं पाता।

कमरे में आकर बिस्तर पे गिर पड़ा और चुदाई की थकान की वजह से नींद के आगोश में समां गया।

तो यह थी सिन्हा आंटी के साथ हुए पहले मिलन की कहानी जो कि जल्दी जल्दी में हुई…

लेकिन घर वापस लौटने के बाद हम दोनों के बीच जो घमासान चुदाई हुई उसके बारे में फिर कभी बताऊँगा।

The end
 

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