Fantasy तेरी याद साथ है

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तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।

"ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !" आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।

अभी आधी सीढ़ियाँ ही चढ़ा था कि प्रिया एकदम से मेरे सामने आ गई।

"लगता है जनाब का मूड ख़राब हो गया है… अब तो आपको बाग़ की जगह बाज़ार जाना पड़ेगा बच्चू ! अब ये बेचारे गुलाबजामुन अकेले ही खाना पड़ेंगे आपको !" प्रिया ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।

"लगता है आपको बड़ी ख़ुशी हुई है इस बात से?" मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।

"हाँ भाई यह तो सही कहा आपने ! दरअसल मैं खुद तुमसे यह कहने वाली थी कि आज हम बाग़ नहीं जा पाएँगे क्यूंकि आज शाम को घर पे सुनार और कपड़ों के व्यापारी आने वाले हैं और हम सबको उनसे ढेर सारी चीजें खरीदनी हैं। तो आप बाज़ार होकर आ जाओ और हम अपनी खरीदारी कर लेते हैं।"

बाप रे बाप… एक ही सांस में प्रिया ने सबकुछ बोल दिया और मुझे बोलने या कुछ पूछने का मौका भी नहीं दिया।

मैंने अपने हाथों की प्लेट नीचे सीढ़ियों पे रखी और बिना कुछ कहे प्रिया का हाथ एकदम से पकड़ा और अपने लंड पे रख कर कहा, "इसका क्या करूँ?"

प्रिया के हाथ रखते ही लंड एकदम से खड़ा हो गया जो कि उसकी हथेली में फिट बैठ गया। प्रिया ने इधर उधर देखा और झुक कर मेरे लंड पे एक पप्पी ले ली और फिर उसे सहलाते हुए मुझसे एकदम से चिपक गई।

"चिंता मत करो मेरे पतिदेव, आपसे ज्यादा आपकी ये बीवी तड़प रही है इसे अपने अन्दर लेने के लिए। मैं वादा करती हूँ कि रात को सबके सोने के बाद इसका सारा दर्द दूर कर दूँगी।" प्रिया ने मेरे कान में धीरे से कहा।

मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पे कपड़ों के ऊपर से ही रख दिया और धीरे से सहलाने लगा। प्रिया ने अपने मुँह को मेरे मुँह से सटा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से खेलने लगी। मेरा एक हाथ उसकी टॉप के अन्दर चला गया और ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगा।

बड़ा ही कामुक सा दृश्य था, उसके हाथों में मेरा लंड, उसकी चूत पे मेरा एक हाथ और अब उसकी एक चूची ब्रा से आजाद होकर मेरे हाथों में। अगर थोड़ी देर और ऐसे रहते तो शायद वहीं सीढ़ियों पे ही चुदाई शुरू हो जाती। लेकिन किसी के क़दमों की आहट ने हमें चौंका दिया और हम झट से अलग हो गए।

प्रिया जल्दी से मेरे गालों पे एक पप्पी लेकर अपने कमरे में भाग गई और मैंने इधर उधर देखकर अपने कदम तीसरे माले की ओर बढ़ा दिए।

दोस्तों, एक बात तो आप सब भी मानेंगे कि जब हम छिप कर चुदाई का खेल खेलते हैं तो किसी कि द्वारा पकड़े जाने का डर चुदाई की भावना को और भी उत्तेजित बना देता है, है न !?!

मैं अपने खड़े लंड के साथ अपने कमरे में पहुँचा और मिठाई को पास की मेज़ पर रख कर लेट गया।

अभी 5 मिनट ही हुए थे कि मेरे दरवाज़े पर दस्तक सुनकर मेरा ध्यान दरवाज़े की तरफ चला गया। अलसाई आँखों से देखा तो पाया कि लाल साड़ी में सजी मेरी प्यारी आंटी अन्दर चली आ रही हैं। तो इसका मतलब यह कि अभी अभी सिन्हा आंटी की ही आहट ने मुझे और प्रिया को अलग होने पर मजबूर किया था।
 
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"बच गया बेटा… वरना आज तो सारा भांडा ही फूट जाता !" मैंने मन ही मन खुद को कहा।

सच में अगर उन्होंने हमे देख लिया होता तो सब गड़बड़ हो जाता। भगवन जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।

खैर, आंटी कमरे में झाँकने लगी और जब मुझे बिस्तर पे लेटा हुआ देखा तो अन्दर आकर बिस्तर की तरफ आ गईं। मैंने जानबूझ कर अपनी आँखें फिर से बंद कर लीं। बिस्तर के पास आकर वो थोड़ी देर खड़ी रहीं फिर अचानक से अपना एक हाथ मेरे सर पर रख कर सहलाने लगी जैसा कि वो हमेशा किया करती थीं। वैसे तो उनकी यह छुअन मुझे हमेशा से उत्तेजित किया करती हैलेकिन आज तो बात ही कुछ और थी। हाथ उन्होंने मेरे सर पर रखा था लेकिन असर सीधे मेरे लंड पे हो रहा था। मेरे नवाब साहब धीरे धीरे जागने से लगे थे। आधे तो वो कल रात से ही खड़े थे…

मेरे मन में कल रात की बात घूम गई और मैंने अपनी आँखें धीरे से खोल दी… कहीं न कहीं मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद जो काम कल रात को अधूरा रह गया था वो अभी पूरा हो जायेगा।

यह लंड भी कितना कमीना होता है… लाख समझा लो लेकिन चूत की चाहत सब कुछ भुला देती है। मैंने अपने मन को बहुत समझाया था कि सिन्हा आंटी की तरफ कदम न बढ़ाये, लेकिन वो कहाँ मानने वाला था।

मेरी आँखें खुलते ही आंटी ने मुस्कुराते हुए बिना कुछ बोले अपनी कजरारी आँखों से मिठाई की तरफ इशारा किया और मुझसे न खाने की वजह पूछने लगी। उनकी आँखों की वो भाषा बिना किसी शब्द के सब कुछ समझा रही थीं। मैंने भी अपने होंठों को बंद ही रखा और आँखों से अपनी अनिच्छा जाहिर की।

आंटी ने थोड़ा सा गुस्से वाला चेहरा बनाया और मेरा एक हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर पे आधा उठा दिया। मैं भी एक रोबोट की तरह उनके इशारे पे उठ बैठा और उनकी तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगा। आंटी ने मेरे जांघों के पास थोड़ी सी बची जगह पे अपने कूल्हे टिका दिए और बैठ गई। उनकी कमर मेरी जांघों को रगड़ कर मुझे एक सुखद एहसास दे रहे थे। आंटी ने बैठे बैठे ही प्लेट उठाई और उसमें से एक गुलाब जामुन अपनी उँगलियों में फंसाकर मेरे मुँह की तरफ बढ़ा दिया और बिल्कुल मेरे होंठों से सटा दिया।

अब तो मेरे पास कोई चारा नहीं था, मैंने अपने होंठों को थोड़ा सा खोला और मिठाई को काटने लगा, लेकिन यह क्या, आंटी ने तो शरारत से पूरे गुलाब जामुन को मेरे होंठों में ठूंस सा दिया।

इस शरारत का असर यह हुआ कि मिठाई तो मेरे मुँह में समां गया लेकिन उसका रस मेरे सीने पे गिर गया। आंटी ने ऐसी शक्ल बनाईं जैसे उन्होंने यह जानबूझकर नहीं किया.. बस हो गया। मैंने उनकी आँखों में ऐसे देखा जैसे मैं उन्हें डाँट रहा हूँ और उन्हें सजा देने की सोच रहा हूँ।

"जानबूझ कर नहीं किया बाबा…ऐसे क्यूँ देख रहे हो?" आंटी ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

"हाँ हाँ, अब तो आप कहोगी ही कि गलती से हो गया… अब इसे साफ़ कौन करेगा?" मैंने भी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।

"ओहो, इतना परेशान क्यूँ होता है, अभी साफ़ कर देती हूँ।" इतना बोलकर आंटी ने अपनी उँगलियों से मेरे सीने पे गिरा हुआ रस उठा कर मेरी आँखों में देखा और फिर अपनी उँगलियों को मेरे होंठों पे लगा दिया।

कोमल उँगलियों का वो स्पर्श इतना विवश करने वाला था कि मैंने बिना कुछ कहे अपने होंठों को चाट लिया। आंटी ने फिर से बाकी के गिरे हुए रस को अपनी उंगलियों मे लपेटा और मेरे होंठों पे लगाने लगी।
 
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मैंने अचानक से उनकी उंगली को अपने होंठों के बीच दबा लिया और चूसने लगा। एक तो वो मीठा रस, ऊपर से आंटी की वो उँगलियाँ… मानो गुलाब जामुन का रस और भी मीठा हो गया हो।

मैं एक बच्चे की तरह उनकी उंगली को चूस रहा था। चूसते चूसते मैंने आंटी की आँखों में देखा तो उन्होंने एक बार शरमा कर अपनी पलकें नीचे कर लीं।

मुझमे पता नहीं कहाँ से हिम्मत आ गई और मैंने अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर उनके चेहरे को ऊपर उठाया। आंटी की आँखों में शर्म और हया साफ़ झलक रही थी। उनकी उंगली अब भी मेरे मुँह में ही थी जिसे मैं बड़े प्यार से चूस रहा था। मेरे हाथ अब आंटी के गालों को सहलाने लगे और आंटी के गाल लाल होने लगे।

बड़ा ही मनोरम दृश्य था, लाल साड़ी में लिपटी लाल लाल गालों से घिरा वो खूबसूरत सा चेहरा… जी कर रहा था आगे बढ़ कर पूरे चेहरे को चूम लूँ। आंटी की साँसें धीरे धीरे गर्म होने लगीं और तेज़ हो गईं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए।

उनकी जगह अगर उनकी बेटियाँ होतीं तो अब तक शायद मैं उन्हें नंगा करके अपना लंड ठूंस चुका होता। लेकिन यहाँ बात कुछ और थी, मैं संभल संभल कर कदम उठा रहा था।

मैंने आंटी की उंगली को अपने मुँह से बाहर निकाला और उनके हाथ को धीरे से अपनी ओर खींचने लगा जिसकी वजह से आंटी मेरे ऊपर झुक सी गईं। आंटी के झुकते ही उनके सर पर टिका पल्लू नीचे गिर गया और उनके कन्धों से सरक गया। मेरे नजदीक आते ही आंटी ने अपनी आँखों को एक बार फिर से बंद कर लिया। उनकी तेज़ साँसों ने मेरे चेहरे को उनकी गर्मी का एहसास करवाया और मेरी आँखें उनके सरके हुए पल्लू पे जा ठहरी जो कि उनके उन्नत और विशाल उभारों को आधा अनावृत कर चुकी थीं। लाल रंग के ब्लाउज में कसे हुए उनके 34 इन्च के उभारों ने मेरी साँसों को अनियंत्रित कर दिया और मेरी आँखें वहीं अटक गईं। उनके उभार तेज़ चल रही सांसों के साथ ऊपर नीचे होकर मुझे आमंत्रण दे रहे थे।

मैंने आंटी को थोड़ा सा और पास में खींचा और उन्हें अपने गले से लगा लिया। यह एहसास बिल्कुल अलग था। सच कहूँ तो जितना मज़ा प्रिया को अपनी बाहों में भर कर होता था बिल्कुल वैसा ही एहसास हो रहा था मुझे। आंटी का हाथ अब भी मेरे हाथों में ही था और वो मेरे सीने पे अपना सर रख कर तेज़ तेज़ आहें भर रही थीं। मैंने धीरे से उनके कानों तक अपने होंठ ले जा कर उनके कान को हल्के से चूमा और अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद को सुलझाने के लिए एक सवाल कर बैठा, "एक बात पूछूँ?"

"ह्म्म्म…" आंटी के मुँह से बस इतना ही निकल सका।

"कल रात को भी आपने जानबूझ कर किया था या गलती से हो गया था?" मैंने एक मादक और कामुक आवाज़ में उनसे पूछ लिया।

"इस्सस…" आंटी ने सवाल सुनते ही बिजली की फुर्ती के साथ अपना सर मेरे सीने से हटा लिया और एक पल के लिए मेरी आँखों में देख कर अपना चेहरा घुमा लिया।

उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी हो गया था और उनके हाथ थरथराने लगे थे। मैंने उनकी मनोदशा भांप ली थी, मैंने आगे बढ़कर उनके चेहरे को एक बार फ़िर अपने हाथों में लेकर अपनी तरफ घुमाया और एकटक देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा। उनका चेहरा अब भी उसी तरह लाल था और
 
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उनके होंठ थरथरा रहे थे। आँखें अब भी नीचे थीं और एक अजीब सा भाव था उनके चेहरे पर जैसे चोरी पकड़ी गई हो।

"बोलो न आंटी….क्या जानबूझ कर किया था या गलती से हो गया था….? अगर जानबूझकर लिया था तो अधूरा क्यूँ छोड़ दिया था और अगर गलती से हो गया था तो गलती की सजा भी मिलने चाहिए ना !!" मैंने उनके चेहरे से बिल्कुल सटकर कहा।

"वो…वो..बस…. मुझे नहीं पता।" आंटी ने अपनी आँखें नीचे करके ही अपने कांपते होंठों से कहा।

"तो फिर पता करो… मैं कल रात से परेशान हूँ…" मैंने उनके गालों पर एक चुम्बन देकर धीरे से उनके कानों में कहा।

"शायद गलती से ही हुआ होगा…" आंटी ने इस बार अपनी आँखें उठाकर मेरी आँखों में देखते हुए कहा।

"फिर तो गलती की सजा मिलनी चाहिए।" मैंने शरारत से भर कर उन्हें अपनी ओर खींच कर अपनी बाहों में भर लिया और उनकी चूचियों को अपने सीने से मसल दिया।

"आह…ये क्या कर रहा है ? मुझे जाने दे, ढेर सारा काम है घर में !" आंटी ने कसमसाते हुए मेरे बाहों से निकलने का प्रयास किया।

पर मैंने तो उन्हें कस कर जकड़ रखा था, मैंने सोच लिया था कि अब जो होगा देखा जायेगा लेकिन कल रात के अधूरे काम को अभी पूरा करके ही दम लूँगा।

इस कसमसाहट में उनकी चूचियाँ बार बार मेरे सीने से रगड़ कर मेरे अन्दर के शैतान को और भी भड़का रही थीं। हम दोनों एक दूसरे पर अपना जोर आजमा रहे थे। मैंने उन्हें और जोर से जकड़ा और उन्हें लेकर बगल में बिस्तर पे गिरा दिया।अब मैं आधा उनके ऊपर था, उनकी चूचियों को अपने सीने से दबाकर मैंने उनके चेहरे पे अपने होंठों को इधर उधर फिरा कर कई चुम्मियाँ दे दी।

"उफ्फ… सोनू, जाने दे मुझे… कोई ढूंढता हुआ आ जायेगा।" आंटी ने अपने चेहरे को मेरे होंठों से रगड़ते हुए कामुक सी आवाज़ में कहा।

"आ जाने दो… मैं नहीं डरता, लेकिन पहले कल रात से तड़पते हुए अपने ज़ज्बातों को थोड़ी सी शांति दे दूँ।" मैंने उन्हें चूमते हुए कहा।

"उफ… समझा कर न, पूरा घर मेहमानों से भरा पड़ा है। प्लीज मुझे जाने दे…फिर कभी…" आंटी ने अपनी अनियंत्रित साँसों को इकठ्ठा करके इतना कहा और अपने हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ लिया और अपनी नशीली आँखों से मुझसे विनती करने लगी।

मैंने उनकी आँखों में आँखें डालीं और शरारत भरे अंदाज़ में बोला, "एक शर्त पर… पहले यह बताओ कि कल रात ऐसा क्यूँ किया आपने और मुझे बीच में ही क्यूँ छोड़ कर चली गईं?"

आंटी ने एक लम्बी सी सांस ली और मेरे गालों को सहला कर कहा, "एक औरत की प्यास को समझना इतना आसान नहीं है। ये क्यूँ हुआ और कैसे हुआ, मैं तुझे नहीं समझा सकती… शायद कई दिनों की तड़प ने मुझे विवश कर दिया
 
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था और मैं बहक गई।" आंटी की आवाज़ में अचानक से एक दर्द का एहसास हुआ मुझे और मैं समझ गया कि यह शायद सिन्हा अंकल से दूरियों की वजह से था।

"मैं सब समझता हूँ, आप मुझे नासमझ मत जानो… चिंता मत करो, मैं आपसे कुछ नहीं पूछूँगा।" मैंने उन्हें प्यार से देखते हुए कहा और अपने होंठों को उनके होंठों पे रख दिया।

उन्होंने भी मेरे इस प्रयास का स्वागत किया और अपने होंठ खोलकर मेरे होंठों को उनमे समां लिया। अब तो कुछ कहने को रह नहीं गया था। आंटी को अपनी बाँहों में जकड़ कर मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से जकड़े हुए ही बिस्तर पे पलट गया। अब आंटी मेरे ऊपर आधी लेटी हुई थीं और उनकी चूचियाँ अब मेरे सीने पे ऊपर से अपना दबाव बना रही थीं। मैंने अपनी जीभ को उनके मुँह का रास्ता दिखाया और आंटी ने भी उसे अपने मुँह में भर कर अपनी जीभ से मिलन करवा दिया।

हम बड़े ही सुकून से एक दूसरे को चूमने का आनन्द ले रहे थे। मेरे हाथ अब आंटी की पीठ पर थे और साड़ी तथा ब्लाउज के बीच के खाली जगह को अपनी उँगलियों से गुदगुदा रहे थे। जैसे जैसे मेरी उँगलियाँ उनकी कमर पे घूमते, वैसे–वैसे उनका बदन थिरकने लगता।

धीरे धीरे मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही उनके विशाल नितम्बों पे पहुँच गए और मैंने अपनी हथेलियों को उनके पिछवाड़े पर जमा दिया और हल्के हल्के सहलाने लगा। वो नर्म और गुन्दाज़ गोलाकार नितम्ब जिन्हें देख देख कर मैं अपने लंड को सहला दिया करता था, आज वो मेरे हाथों में थे। मैं अपनी किस्मत पे फूला नहीं समां रहा था।

मेरे हाथ उनके पिछवाड़े को सहलाते सहलाते नीचे की ओर बढ़ चले और उनकी साड़ी के छोर तक पहुँच गए। अब मेरे हाथ उनके नंगे पैरों पे घूम रहे थे जो कि अपनी चिकनाहट के कारण मेरी हथेलियों में गुदगुदी का एहसास करवा रहे थे। मैंने अपनी हथेलियों को साड़ी के अन्दर धीरे से डालकर उनकी साड़ी को पैरों से ऊपर करने लगा। उनकी पिंडलियों पर पहुँच कर मेरे हाथ रुक से गए। बड़ा ही मोहक एहसास हो रहा था, जी कर रहा था कि बस ऐसे ही सहलाता रहूँ।

इधर हमारे होंठ अभी भी कुश्ती लड़ रहे थे, ना तो उन्होंने मेरे होंठों को आज़ाद किया न ही मैंने। आंटी का एक हाथ मेरे सर के बालों को सहला रहता तो दूसरा हाथ मेरे सीने के बाल को छेड़ रहा था। हम दोनों को ही होश नहीं रह गया था। उनकी तड़प इस चुम्बन से ही प्रतीत हो रही थी। कल रात की घटना का घटित होना अब मेरे लिए कोई व्याकुलता वाली बात नहीं रह गई थी। वो सचमुच मजबूर हो गई होंगी…

ईश्वर ने चुदाई की तड़प हम मर्दों से कहीं ज्यादा औरतों में दी है लेकिन साथ ही साथ उन्हें शर्म और हया भी सौगात में दी है जिसकी वजह से अपने ज़ज्बातों को दबा देना औरतों के लिए आम बात हो जाती है। हम मर्द तो कभी भी शुरू हो जाते हैं अपना लंड अपने हाथों में लेकर और मुठ मार कर अपनी काम पिपासा शांत कर लेते हैं।
 
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ईश्वर ने चुदाई की तड़प हम मर्दों से कहीं ज्यादा औरतों में दी है लेकिन साथ ही साथ उन्हें शर्म और हया भी सौगात में दी है जिसकी वजह से अपने ज़ज्बातों को दबा देना औरतों के लिए आम बात हो जाती है।
हम मर्द तो कभी भी शुरू हो जाते हैं अपना लंड अपने हाथों में लेकर और मुठ मार कर अपनी काम पिपासा शांत कर लेते हैं।

अब मेरे हाथ साड़ी के अन्दर घुटनों से ऊपर उनकी नर्म मुलायम जांघों तक पहुँच गए थे और जल्दी ही उनके विशाल मनमोहक नितम्बों तक पहुँचने वाले थे।
जैसे ही मैंने अपनी हथेली उनके नंगे नितम्बों के ऊपर रखा, उन्होंने मेरे होंठों को जोर से दांतों से पकड़ लिया और अपनी आँखें खोल लीं।
होंठों को जकड़ते ही मैंने भी अपनी आँखें खोलीं और उनकी आँखों में देखा। एक पल के लिए हम वैसे ही थम गए, बिल्कुल स्थिर।
मैंने धीरे से अपने होंठ छुड़ाये और उनके देखते प्रश्नवाचक नज़रों से यह जानने की कोशिश करने लगा कि आखिर हुआ क्या।

"क्या हुआ…?" मैंने भर्राई आवाज़ में पूछा।

"यह सही नहीं है… मुझे जाने दे… बहुत देर हो चुकी है… सब ढूंढ रहे होंगे…" एक साथ आंटी ने इतनी सारी स्थितियों को सामने रख दिया कि मैं थोड़ी देर के लिए असमंजस में पड़ गया।

एक बात थी कि अब भी सिन्हा आंटी के हाथ मेरे बालों को सहला रहे थे और वो अब भी मेरी बाहों में जकड़ी थीं। अजीब सी स्थिति थी, मैं इस हालत में था कि बस उन्हें नंगा करके अपना लंड उनकी रसभरी चूत में डालना बाकी रह गया था। मैं क्या करूँ, यह समझ नहीं पा रहा था। मैं क्या चाहता था यह मुझे पता था लेकिन आंटी सच में क्या चाहती थी यह नहीं पता था। शायद ये वो आखिरी शब्द थे जो हर औरत पहली बार किसी पराये मर्द से चुदते वक़्त कहती है। चूत तो लंड के लिए टेसुए बहा रही होती है लेकिन फिर भी एक आखिरी बार अपनी शर्म, और हया को दर्शाने के लिए ऐसा बोलना हर स्त्री की आदत होती है।

मैं जानता था कि अगर मैंने थोड़ी सी जबरदस्ती की तो आंटी प्यार से मेरा लंड अपनी चूत में अन्दर तक घुसेड़ लेंगी… लेकिन मैंने तभी यह फैसला किया कि देखा जाए आखिर ये चाहती क्या हैं। यह सोच कर मैंने उन्हें अपने ऊपर से धीरे से उतार दिया और बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया। आंटी ने बिना कोई देरी किये बिस्तर से उठ कर अपनी साड़ी ठीक करी और मेरी तरफ बिना देखे ही कमरे से बाहर निकल गई।

मैं पलंग के बगल की खिड़की की तरफ मुड़ कर अपनी साँसों को समेटने लगा और अजीब से सवालों को अपने मन में लिए उनका जवाब ढूँढने लगा। मेरा मन कर रहा था कि मैं कमरे से बाहर निकल कर उन्हें अपने पास खींच लाऊँ और अपनी बाहों में भर लूँ लेकिन मुड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

तभी तड़ाक से कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई और मेरे मुड़ने से पहले ही कोई मेरे पीछे से आकर मुझसे लिपट गया।

"जो भी करना है जल्दी से कर ले… मुझसे भी रहा नहीं जा रहा।" यह आंटी ही थीं जो कि दरवाज़े से निकल कर शायद ये देखकर आई थीं कि कोई उन्हें ढूंढ तो नहीं रहा..

मैं एकदम से चहक उठा और घूम कर उन्हें अपनी बाहों में उठा लिया। मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आ गई थी। मैं उन्हें उठा कर वैसे ही उसी जगह पे गोल गोल घुमने लगा।

"पागल… मैं तुझे कभी उदास नहीं देख सकती…" इतना कह कर उन्होंने झुक कर मेरे होंठों को चूम लिया।

मैं पागलों की तरह उन्हें नीचे उतार कर चूमने लगा, उन्होंने भी मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमना शुरू किया।
 

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