"ओहो…मेरे रजा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।" रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।
मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…
उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।
थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…
रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।
'उम्म…' मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।
रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…
मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर तक लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…
यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलने देता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…
"ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…" रिंकी के मुँह से निकलते आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..
लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…
मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…
उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।
थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…
रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।
'उम्म…' मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।
रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…
मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर तक लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…
यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलने देता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…
"ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…" रिंकी के मुँह से निकलते आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..
लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…