"प्लीज मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से तैयार होकर ऊपर आ जाओ, सब तुमसे मिलना चाह रहे हैं।" इतना कहकर प्रिया ने मुझे ज़बरदस्ती अपने ऊपर से उठा दिया और मेरे लंड को एक बार फिर से सहलाकर जाने लगी।
प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।
"उफ़…ज़ालिम कहीं के.. !" प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई।
मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।
करीब 8 बजे मैं तैयार होकर ऊपर नाश्ते के लिए चला गया। पहुँचा तो देखा कि सब लोग पहले से ही खाने की मेज़ पर बैठे थे। मैंने प्रिया के मामा जी को देखा और हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की। उन्होंने भी प्रत्युत्तर में मुझे हंस कर आशीर्वाद दिया और फिर हम सब नाश्ता करने लगे।
हम सब बातों में खोये थे कि तभी मैंने रिंकी की तरफ देखा, उसने मुझे देखकर एक मुस्कान दी और फिर अपनी आँखें झुका लीं। मेरे दिमाग में उसके साथ बीते हुए कल के दोपहर की हर एक बात घूमने लगी और मैं मुस्कुरा उठा। रिंकी भी कुछ ज्यादा ही खुश लग रही थी। शायद वो भी उसी ख्याल में थी कि मामा के यहाँ जाकर वो भी दिल खोलकर मुझसे प्रेम क्रीड़ा का आनन्द लेगी…
एक बार के लिए मैं यह सोच कर हंस पड़ा कि दोनों बहनों की सोच कितनी मिलती है !!
खैर… हम सबने अपनी अपनी तैयारी कर ली थी और सारे सामान बैग में भर कर स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गए। नेहा दीदी ने बताया कि सिन्हा आंटी ने मम्मी-पापा से बात कर ली है और उनसे इज़ाज़त भी ले ली है। मेरे मम्मी पापा हमारी गैर मौजूदगी में घर वापस आ रहे थे और इसलिए हमें घर की कोई चिंता करने की जरुरत नहीं थी।
हम सब स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। प्रिया के मामा बिहार के दरभंगा जिले में रहते थे यानि कि प्रिया का ननिहाल दरभंगा में था। जमशेदपुर से हम सबको टाटा-पटना साउथ बिहार एक्सप्रेस से जाना था। हम सब बेसब्री से ट्रेन का इंतज़ार करने लगे और थोड़ी ही देर में ट्रेन यार्ड से निकल कर प्लेटफार्म पर आ गई। नवम्बर का महीना था और मौसम ठंडा हो चुका था, शायद इसीलिए स्लीपर की ही बुकिंग करवाई थी। हम कुल 6 लोग थे। स्लीपर के डब्बे में हमारी सारी सीटें एक ही कम्पार्टमेंट में थी यानि कि दोनों तरफ के 3-3 सीट हमारी थीं। मुझे हमेशा से ट्रेन की साइड विंडो वाली सीट पसंद आती है, इसलिए मैं थोड़ा सा उदास हो गया। लेकिन फिर मन मार कर सबके साथ बैठ गया।
ट्रेन चल पड़ी और तीनों लड़कियाँ लग गईं अपने असली काम में… वही लड़कियों वाली गॉसिप और हाहा-हीही में… मैंने अपना आईपॉड निकाला और आँखें बंद करके गाने सुनने लगा।
काफी देर के बाद सिन्हा आंटी ने मुझे धीरे से हिलाकर उठाया और खाने के लिए कहा। मेरा मन नहीं था तो मैंने मना कर दिया लेकिन आंटी नहीं मानीं और उन्होंने अपने हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया।
"अरे आंटी रहने दीजिये, मैं खुद ही खा लेता हूँ !" मैं थोड़ा असहज होकर बोल उठा..
"खा लीजिये जनाब, हमारी मम्मी सबको इतना प्यार नहीं देतीं… आप नसीब वाले हैं।" प्रिया ने शरारत भरे लहजे में कहा और हम सब उसकी बात पर खिलखिला कर हंस पड़े।
मेरी नज़र बगल वाली साइड की सीट पर गई जो अब भी खाली पड़ी थी… मैं उसे खली देख कर खुश हो गया, हल्की हल्की ठंड लग रही थी और मन कर रहा था कि प्रिया को अपनी बाहों में भर कर ट्रेन की सीट पर लेट जाऊँ.. लेकिन यह संभव नहीं था, मैंने भी कोई रिस्क लेना उचित नहीं समझा। हम खा चुके थे और सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी टीटी आया और हमारे टिकट चेक करने लगा। मैंने धीरे से टीटी से साइड वाली सीट के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो खाली ही है और अब उस पर कोई नहीं आने वाला। यह सुनकर मैं खुश हो गया। रिंकी और नेहा दीदी सबसे ऊपर वाले बर्थ पर चढ़ गईं, रिंकी दाईं ओर और नेहा दीदी बाईं ओर, बीच वाले बर्थ पे दाईं ओर प्रिया ने अपना डेरा डाल लिया और बाईं ओर सिन्हा आंटी को दे दिया गया।
लेकिन सिन्हा आंटी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नीचे वाली सीट ही ठीक लगती है। इस बात पर मामा जी बीच वाली बर्थ पे चले गए। अब बचे मैं और आंटी, तो मैंने आंटी से कहा- आप नीचे वाली बर्थ पर दाईं ओर सो जाओ मैं अभी थोड़ी देर साइड वाली सीट पर बैठूँगा फिर जब नींद आएगी तब दूसरी सीट पर सो जाऊँगा।
प्रिया ने अपने कम्बल से झांक कर मुझे देख कर आँख मारी और अपने होंठों को गोल करके मेरी ओर चुम्बन उछाल दिया… और धीरे से गुड नाईट बोलकर सो गई…
प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।
"उफ़…ज़ालिम कहीं के.. !" प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई।
मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।
करीब 8 बजे मैं तैयार होकर ऊपर नाश्ते के लिए चला गया। पहुँचा तो देखा कि सब लोग पहले से ही खाने की मेज़ पर बैठे थे। मैंने प्रिया के मामा जी को देखा और हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की। उन्होंने भी प्रत्युत्तर में मुझे हंस कर आशीर्वाद दिया और फिर हम सब नाश्ता करने लगे।
हम सब बातों में खोये थे कि तभी मैंने रिंकी की तरफ देखा, उसने मुझे देखकर एक मुस्कान दी और फिर अपनी आँखें झुका लीं। मेरे दिमाग में उसके साथ बीते हुए कल के दोपहर की हर एक बात घूमने लगी और मैं मुस्कुरा उठा। रिंकी भी कुछ ज्यादा ही खुश लग रही थी। शायद वो भी उसी ख्याल में थी कि मामा के यहाँ जाकर वो भी दिल खोलकर मुझसे प्रेम क्रीड़ा का आनन्द लेगी…
एक बार के लिए मैं यह सोच कर हंस पड़ा कि दोनों बहनों की सोच कितनी मिलती है !!
खैर… हम सबने अपनी अपनी तैयारी कर ली थी और सारे सामान बैग में भर कर स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गए। नेहा दीदी ने बताया कि सिन्हा आंटी ने मम्मी-पापा से बात कर ली है और उनसे इज़ाज़त भी ले ली है। मेरे मम्मी पापा हमारी गैर मौजूदगी में घर वापस आ रहे थे और इसलिए हमें घर की कोई चिंता करने की जरुरत नहीं थी।
हम सब स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। प्रिया के मामा बिहार के दरभंगा जिले में रहते थे यानि कि प्रिया का ननिहाल दरभंगा में था। जमशेदपुर से हम सबको टाटा-पटना साउथ बिहार एक्सप्रेस से जाना था। हम सब बेसब्री से ट्रेन का इंतज़ार करने लगे और थोड़ी ही देर में ट्रेन यार्ड से निकल कर प्लेटफार्म पर आ गई। नवम्बर का महीना था और मौसम ठंडा हो चुका था, शायद इसीलिए स्लीपर की ही बुकिंग करवाई थी। हम कुल 6 लोग थे। स्लीपर के डब्बे में हमारी सारी सीटें एक ही कम्पार्टमेंट में थी यानि कि दोनों तरफ के 3-3 सीट हमारी थीं। मुझे हमेशा से ट्रेन की साइड विंडो वाली सीट पसंद आती है, इसलिए मैं थोड़ा सा उदास हो गया। लेकिन फिर मन मार कर सबके साथ बैठ गया।
ट्रेन चल पड़ी और तीनों लड़कियाँ लग गईं अपने असली काम में… वही लड़कियों वाली गॉसिप और हाहा-हीही में… मैंने अपना आईपॉड निकाला और आँखें बंद करके गाने सुनने लगा।
काफी देर के बाद सिन्हा आंटी ने मुझे धीरे से हिलाकर उठाया और खाने के लिए कहा। मेरा मन नहीं था तो मैंने मना कर दिया लेकिन आंटी नहीं मानीं और उन्होंने अपने हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया।
"अरे आंटी रहने दीजिये, मैं खुद ही खा लेता हूँ !" मैं थोड़ा असहज होकर बोल उठा..
"खा लीजिये जनाब, हमारी मम्मी सबको इतना प्यार नहीं देतीं… आप नसीब वाले हैं।" प्रिया ने शरारत भरे लहजे में कहा और हम सब उसकी बात पर खिलखिला कर हंस पड़े।
मेरी नज़र बगल वाली साइड की सीट पर गई जो अब भी खाली पड़ी थी… मैं उसे खली देख कर खुश हो गया, हल्की हल्की ठंड लग रही थी और मन कर रहा था कि प्रिया को अपनी बाहों में भर कर ट्रेन की सीट पर लेट जाऊँ.. लेकिन यह संभव नहीं था, मैंने भी कोई रिस्क लेना उचित नहीं समझा। हम खा चुके थे और सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी टीटी आया और हमारे टिकट चेक करने लगा। मैंने धीरे से टीटी से साइड वाली सीट के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो खाली ही है और अब उस पर कोई नहीं आने वाला। यह सुनकर मैं खुश हो गया। रिंकी और नेहा दीदी सबसे ऊपर वाले बर्थ पर चढ़ गईं, रिंकी दाईं ओर और नेहा दीदी बाईं ओर, बीच वाले बर्थ पे दाईं ओर प्रिया ने अपना डेरा डाल लिया और बाईं ओर सिन्हा आंटी को दे दिया गया।
लेकिन सिन्हा आंटी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नीचे वाली सीट ही ठीक लगती है। इस बात पर मामा जी बीच वाली बर्थ पे चले गए। अब बचे मैं और आंटी, तो मैंने आंटी से कहा- आप नीचे वाली बर्थ पर दाईं ओर सो जाओ मैं अभी थोड़ी देर साइड वाली सीट पर बैठूँगा फिर जब नींद आएगी तब दूसरी सीट पर सो जाऊँगा।
प्रिया ने अपने कम्बल से झांक कर मुझे देख कर आँख मारी और अपने होंठों को गोल करके मेरी ओर चुम्बन उछाल दिया… और धीरे से गुड नाईट बोलकर सो गई…