काली अंधेरी रात में बारिश जोरों से हो रही थी और एक कार स्पीड से सड़क पर दौड़ रही थी, यह करीब रात के 10 बजे की बात होगी।
पुनीत- अरे यार धीरे चला.. मरवाएगा क्या.. देख सड़क पर पानी ही पानी फैला है.. कोई सामने आ गया तो ब्रेक भी नहीं लगेगा।
{दोस्तो, यह है पुनीत खन्ना.. उम्र 21 साल रंग गोरा.. कद 5’9″.. स्लिम बॉडी और संजय खन्ना का बेटा है, जो दिल्ली के बड़े प्रॉपर्टी डीलर हैं..। पैसों के बल पर इसमें थोड़ा बिगाड़ आ गया है.. या देसी भाषा में कहो.. तो पक्का चोदू हो गया है ये.. बस लड़की देखी नहीं कि नियत खराब..}
रॉनी- अरे डर क्यों रहा है कुछ नहीं होगा.. गाड़ी मैं चला रहा हूँ.. रॉनी दि रॉकस्टार.. तू बस देख..
{यह है रॉनी खन्ना.. कहने को तो यह पुनीत का चचेरा भाई है.. मगर दोनों रहते एकदम दोस्त की तरह हैं। वैसे तो रॉनी अच्छा है.. मगर पुनीत ने इसको भी अपने रंग में ढाल लिया है। कभी-कभी ये भी पुनीत के साथ रंगरलियाँ मना लेता है। वैसे रॉनी के पापा के देहांत के बाद संजय खन्ना ने ही इसको संभाला है। अब ये दोनों साथ ही रहते हैं। इसकी भी उम्र लगभग 20 साल की ही है और बाकी सब भी पुनीत जैसा ही है।}
पुनीत- अरे मेरे भाई.. डर मरने का नहीं लग रहा.. अगर एक्सीडेंट के बाद हम बच भी गए.. तो लूले लंगड़े हो जाएँगे.. अभी तो हमने ठीक से अय्याशी भी नहीं की है..
रॉनी- अबे कुछ नहीं होगा.. हमारे पास इतने पैसे हैं कि लूले हो भी गए तो भी अय्याशी में फ़र्क नहीं आने वाला
पुनीत- अरे रुक-रुक.. वो देख.. उधर क्या तमाशा हो रहा है?
सड़क से कुछ दूर बिजली की गड़गड़ाहट के साथ पुनीत को कुछ अजीब सा दिखा तो उसने रॉनी को रुकने को कहा। रॉनी ने गाड़ी को धीरे किया और रोका.. तब तक वो कुछ आगे निकल आए थे। पुनीत के कहने पर रॉनी ने गाड़ी वापस पीछे ली।
पुनीत- बस बस.. यहीं रोक यार.. वहाँ कुछ लोग जमा हैं और शायद कोई लड़की भी है.. मुझे हल्का सा कुछ दिखा है।
रॉनी- वाह.. तू पक्का लड़कीबाज है.. अंधेरे में भी लड़की ताड़ ली.. चल देखते हैं क्या मामला है।
दोनों गाड़ी से बाहर निकल गए और उन लोगों के पास पहुँच गए। जब वो पास पहोंचे.. तो वहाँ कुछ आदमी और एक लड़की खड़ी थी और पास में एक औरत नीचे लेती हुई कराह रही थी.. जिसके सर से खून निकल रहा था।
पुनीत- अरे क्या हुआ भाई.. ऐसी तूफानी रात में यहाँ क्यों खड़े हो? और इस औरत को क्या हुआ है?
गाँव वाला- बाबूजी ये बेचारी जा रही थी.. कि पेड़ की डाल टूट कर इसके सर पर गिर गई.. ज़ख्मी हो गई है बेचारी.. इसको अस्पताल तक पहुँचा दो.. बड़ी मेहरबानी होगी आपकी..
रॉनी- अरे ये तो बहुत ज़ख्मी है.. तो अब तक तुम क्या कर रहे हो.. इसको लेकर क्यों नहीं गए और इतनी रात को यहाँ खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?
गाँव वाला- अरे बाबूजी अभी-अभी ही तो ये सब हुआ है.. हम सब पास के गाँव से आ रहे थे.. तो देखते ही देखते बस ये सब हो गया।
पुनीत- पैदल ही आ रहे थे क्या.. और तुम्हारा गाँव कहाँ है?
मुनिया- बाबूजी.. बस 2 कोस पर ही हमारा गाँव है.. ले चलो ना.. आपका बड़ा अहसान होगा.. ये मेरी माई है.. भगवान आपका भला करेगा..
इतनी देर से वो लड़की पेड़ की आड़ में खड़ी थी.. तो दोनों का ध्यान उस पर नहीं गया था.. मगर जब वो सामने आई.. तो पुनीत तो बस उसको देखता ही रह गया।
वो करीब 18 साल की एक बड़ी ही खूबसूरत सी लड़की थी.. बड़ी-बड़ी सी कजरारी आँखें और लंबे बाल.. बारिश में भीगे हुए उसके कुर्ते से उसके 30″ के मम्मे साफ-साफ झलक रहे थे। अन्दर शायद उसने काली ब्रा पहनी हुई थी जिसकी पट्टी साफ़ नज़र आ रही थी। पतली सी कमर के साथ 30″ की मादक और उठी हुई गाण्ड.. जो भीगने के कारण और भी ज़्यादा मस्त लग रही थी।
पुनीत- ओह.. चलो देर क्यों करते हो.. इसको गाड़ी तक ले आओ..
पुनीत और रॉनी की नजरें आपस में मिलीं और एक इशारे में दोनों ने बात की। उस औरत को पीछे की सीट पर लेटा दिया.. उसी के साथ में मुनिया भी बैठ गई।
रॉनी- देखो भाइयो.. यहाँ बस और किसी के बैठने की जगह नहीं है.. तुम सब पैदल ही आ जाओ.. हम इसको लेकर जाते हैं.. ठीक है ना..
सबने ‘हाँ’ कहा तो रॉनी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
रॉनी- तेरा नाम क्या है?
मुनिया- मेरा नाम मुनिया है बाबूजी..
पुनीत- अरे वाह.. तेरा नाम तो बड़ा प्यारा है.. मुनिया.. वैसे कितनी साल की हो गई हो? कोलेज वगैरह जाती है या नहीं?
मुनिया- जी.. मैं 18 साल की हो गई हूँ कोलेज कहाँ जाऊँगी बाबूजी.. बस पहले पहल दो जमात तक गई.. उसके बाद बापू चल बसे.. तो माई अकेली रह गई। अब घर में खाने के लिए मुझे भी माई के साथ काम पर जाना पड़ा।
रॉनी- अरे.. अरे.. सुनकर बड़ा दुःख हुआ वैसे तू काम क्या करती है?
मुनिया- जी बाबूजी.. घर का सारा काम जानती हूँ.. खाना बनाना झाड़ू-फटका.. सफाई.. सब कुछ..
पुनीत- अच्छा कितने पैसे कमा लेती है दिन भर में?
मुनिया- दिन के कहाँ बाबूजी.. किसी घर से 400 तो किसी से 500 महीने के मिल जाते हैं।
रॉनी- इतना काम.. ओर बस इतनी सी कमाई, छोड़ हैं सब.. इससे अच्छा तो शहर में मिलता है.. महीने के 3000 तक मिल जाते हैं रहना-खाना.. कपड़े.. वो सब अलग से..
मुनिया- सच्ची में इतना मिलता है? हमें भी कहीं लगवा दो ना बाबूजी..
पुनीत- अरे लगवा तो दूँ.. मगर शहर में एक ही घर में काम करना होगा.. वहीं रहना होगा.. हाँ.. महीने के महीने पगार घर भेज देना और दूसरी बात सेठ लोगों के हाथ पाँव भी रात को दबाने होंगे.. तू ये सब कर लेगी?
मुनिया- अरे बाबूजी.. मैं शहर में रह लूँगी.. और हाथ-पाँव तो क्या.. मैं पूरे बदन की ऐसी मालिश करना जानती हूँ कि सेठ खुश हो जाएगा.. बस आपकी बड़ी दया होगी.. मुझे काम पर लगवा ही दो..
रॉनी- ले भाई पुनीत.. इसको तो मालिश भी आती है.. अब तो इसको ‘काम’ पर लगाना ही पड़ेगा..
दोस्तो, ये बस बातें करते रहे और गाड़ी चलती रही.. थोड़ी दूर जाने के बाद सड़क से दाहिनी तरफ़ मुनिया ने बताया कि वो सामने उसका गाँव है। तो बस रॉनी ने गाड़ी उसी तरफ़ बढ़ा दी और वहाँ जाकर गाँव के अस्पताल में उसकी माँ को ले गए.. जहाँ डॉक्टर ने अपना काम शुरू कर दिया और मुनिया इन दोनों के साथ बाहर बैठी रही..
यहाँ बल्ब की रोशनी में मुनिया के जिस्म की चमक दुगुनी हो गई थी.. जिसे देख कर पुनीत का लंड पैन्ट में अकड़ने लगा था।
मुनिया की माँ के मलहम-पट्टी होने के बाद दोनों ने उनको घर छोड़ा.. जहाँ मुनिया की माँ सरिता ने उनको बहुत धन्यवाद दिया।
रॉनी- अरे इसमें शुक्रिया की क्या बात है.. यह तो हमारा फर्ज़ था।
मुनिया- माँ.. ये बाबूजी बता रहे थे कि शहर में काम के बहुत पैसे मिलते हैं।
रॉनी और पुनीत ने मुनिया की माँ को भी अपनी बातों में ले लिया।
सरिता- बेटा तुम्हारा भला होगा.. मुनिया को भी कहीं लगवा दो ना..
पुनीत- देखिए.. अभी तो हम यहाँ से कुछ दूर अपने फार्म हाउस पर जा रहे हैं कुछ दिन वहाँ रहेंगे.. उसके बाद वापस दिल्ली जाएँगे.. तब कहीं लगवा दूँगा।
रॉनी- हाँ आंटी ये सही रहेगा.. अच्छा तो हम चलते हैं।
रॉनी जब खड़ा हुआ तो पुनीत ने उसे आँख से इशारा किया कि मुनिया का क्या करें?
रॉनी- आंटी हम कुछ दिन फार्म हाउस पर रहेंगे.. वहाँ के काम के लिए आप किसी को हमारे साथ भेज दो.. हम अच्छे पैसे दे देंगे।
सरिता- अरे बेटा कोई और क्यों.. मुनिया को ले जाओ.. जो ठीक लगे.. सो इसको दे देना।
पुनीत- अरे हाँ.. ये सही है ना.. कुछ दिनों की तो बात है.. वहाँ इसका काम भी देख लेंगे.. चलो मुनिया कपड़े बदल लो.. तुम पूरी भीगी हुई हो।
मुनिया- जी बाबूजी.. अभी आई.. आप बैठो.. आपके लिए कुछ चाय-पानी लाऊँ?
रॉनी- अरे नहीं नहीं.. बस तुम जल्दी करो.. देर हो रही है..।
मुनिया बड़ी खुश थी कि बड़े लोगों के यहाँ उसको काम मिल गया। वो दूसरे कमरे में कपड़े बदलने चली गई और कुछ ही देर में दूसरे कपड़े पहन कर एक पोटली लिए आ गई।
रॉनी- अरे इसमें क्या है?
मुनिया- वो बाबूजी अब वहाँ कितने दिन रहूंगी.. तो कुछ कपड़े लिए हैं।
पुनीत- अच्छा किया.. ये लो आंटी ये 500 रुपये अपने पास रखो.. दवा बराबर लेती रहना और बाकी के पैसे मुनिया को दे देंगे।
सरिता तो 500 रुपये देख कर खुश हो गई।
सरिता- अरे बेटा.. तुमने तो कहा कुछ दिन वहाँ रहोगे.. तो इतने पैसे क्यों दिए और बाद में और भी दोगे?
रॉनी- अरे रख लो.. आंटी ये तो पेशगी है.. आगे ऐसे और नोट मुनिया को मिलेंगे.. हम खून चूसने वाले नहीं हैं काम का हक़ बराबर देते हैं।
इतना कहकर वो बाहर निकल गए.. मुनिया भी उनके पीछे चलने लगी.. तो सरिता ने उसका हाथ पकड़ लिया।
उन दोनों के बाहर जाने के बाद सरिता ने मुनिया से कहा- बहुत भले लोग हैं इनको किसी भी तरह की तकलीफ़ ना होने देना.. सब काम अच्छे से करना.. तेरे भाग खुल गए हैं बेटी.. जो ऐसे भले लोगों के यहाँ काम पर जा रही है.. तू बस इनको खुश रखना..
पुनीत दरवाजे के पास ही खड़ा था.. उसको ये बात सुनाई दे गई तो उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।
{आज ही की रात इसी वक़्त पर सीधे आपको दिल्ली ले चलता हूँ।}
कमरे में दो लड़कियाँ बैठी हुई आपस में बात कर रही थीं और दरवाजे के बाहर के होल पर कोई नजरें गड़ाए उनको देख रहा था।
चलो अब ‘ये लड़कियाँ कौन हैं…’ पहले इनके बारे में जान लेते हैं।
इसमें से एक का नाम है पूजा और दूसरी का पायल.. अब इनकी आगे की जानकारी भी ले लीजिए..
पूजा इसकी उम्र है 21 साल.. रंग गेहुँआ.. कद ठीक-ठाक.. चूचे 34″ के एकदम उठे हुए.. बलखाती कमर 30″ की और एकदम गोल गाण्ड.. बाहर को निकली हुई थी 34″ की..
और दूसरी पायल की उम्र है 18 साल.. रंग दूध जैसा सफेद.. बला की खूबसूरत.. इसको देख कर कई लड़कों की पैन्ट में तंबू बन जाता है क्योंकि इसका फिगर ही ऐसा है 32″ के नुकीले मम्मों को देखें जरा.. ऐसे नोकदार.. जिसे देसी भाषा में खड़ी चूची भी कहते हैं। एकदम हिरनी जैसी पतली कमर और एटम बम्ब जैसी 32″ की मुलायम मतवाली गाण्ड.. जब यह चलती है.. तो रास्ते में लोग बस यही कहते हैं हाय.. कभी ये पलड़ा ऊपर.. तो कभी वो पलड़ा ऊपर.. आप मेरे कहने का मतलब समझ गए ना.. चलो अब आगे तमाशा देखते हैं।
पूजा- अरे यार.. तू भी क्या नखरे कर रही है.. चल आजा आज तुझे भी मज़ा देती हूँ।
पायल- नहीं यार पूजा.. मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता..
पूजा- अरे क्या यार.. तू कब तक अपनी जवानी का बोझ लिए घूमेगी.. कितनी खूबसूरत है तू.. तेरे पर लड़के मरते हैं किसी को तो अपनी जवानी का मज़ा दे..
पायल- नहीं पूजा.. तुम ही करो ये सब.. मुझे ऐसे ही रहने दो..
{दोस्तो, ज़्यादा सोचो मत.. मैं बता देता हूँ यह एक गर्ल्स हॉस्टल का कमरा है।}
पूजा और रानी साथ एक कमरे में रहती हैं और रोज ‘लेस्बीयन’ करती हैं। पायल अपनी फ्रेण्ड टीना के साथ दूसरे कमरे में रहती थी.. मगर अब कॉलेज की छुट्टियाँ चालू हो गई हैं। रानी और टीना अपने घर चले गए हैं.. तो पूजा और पायल को एक ही कमरे में शिफ्ट होना पड़ा.. जैसे-जैसे लड़कियों के घर वाले उनको लेकर जाते रहेंगे.. यहाँ ऐसे ही सबको कमरे बदलना पड़ेगा।
आज पूजा के मन में है कि वो पायल के साथ मज़ा करे।
पायल- तू ऐसे नहीं मानेगी.. चल तुझे कुछ दिखाती हूँ.. शायद तेरा मन कुछ करने को करे..
पूजा ने अपनी नाईटी निकाल दी और अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था।
पायल- छी: पूजा.. तुमको ज़रा भी शर्म नहीं आ रही.. ऐसे नंगी हो गई हो..
पूजा- अरे बस कर यार.. तू जानती है हम दोनों लड़की हैं अब तेरे पास ऐसा क्या खास है.. जो मेरे पास नहीं है..
पायल- अच्छा मेरी माँ.. ग़लती हो गई.. हो जा नंगी.. पर अब बस मुझे कुछ भी मत कहना
पूजा- मेरी जान.. तू नंगी हो या ना हो मगर मुझे शांत तो कर दे प्लीज़..
पायल- वो कैसे करूँ.. मुझे कुछ भी नहीं आता..
पूजा- अरे यार तू तो जानती है.. राजेश यहाँ होता तो कब की उसके पास जाकर अपनी प्यास बुझा लेती.. अब वो यहाँ है नहीं.. और रानी भी चली गई.. प्लीज़ थोड़ी देर मेरे साथ मस्ती कर ना यार प्लीज़..
दोस्तो, पूजा एक बिगड़ी हुई लड़की है.. जो चुदाई के खेल में पक्की खिलाड़ी है, वो अपने प्रेमी राजेश से कई बार चुद चुकी थी.. मगर पायल बेचारी इन सबसे दूर रहती है। पूजा ने उसको बहुत मनाया.. मगर वो नहीं मानी..
पूजा- तू किसी काम की नहीं है.. अब मुझे ही कुछ करना होगा।
पूजा थोड़ी गुस्सा हो गई थी और उसने नाईटी पहनी और दरवाजे की तरफ़ जाने लगी।
पायल- अरे सॉरी यार.. मुझे ये सब पसन्द नहीं है.. पर तुम कहाँ जा रही हो?
पूजा- अरे इस हॉस्टल में 600 लड़कियाँ हैं कोई तो होगी जो मेरे जैसी होगी.. तू बस आराम से सो जा.. मैं तो अपनी चूत की आग मिटा कर ही आऊँगी।
पूजा को दरवाजे की ओर आता देख कर वो शख्स जो कब से सब देख रहा था.. वो जल्दी से पीछे को हट गया और कॉरीडोर में दाहिनी तरफ को भाग गया।
पूजा कमरे से बाहर निकली और थोड़ा सोच कर वो भी दाहिनी तरफ चलने लगी। तभी होस्टल की लाइट चली गई और वहाँ एकदम अंधेरा हो गया।
पूजा- ओह.. शिट.. ये लाइट को भी अभी जाना था..
वो अंधेरे में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी.. उसको कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
कुछ देर बाद किसी ने पूजा के मुँह पर हाथ रख दिया और उसकी कमर को मजबूती से पकड़ लिया, इस अचानक हुए हमले से पूजा की तो जान ही निकल गई।
साया- मुझे पता है.. तुम्हें क्या चाहिए.. और मैं वो तुम्हें दे सकता हूँ.. अगर चिल्लाओ नहीं.. तो मैं मुँह से हाथ हटा देता हूँ.. पर अगर चिल्लाईं तो ठीक नहीं होगा।
पूजा ने ‘हाँ’ में सर हिलाया तो उस साये ने अपना हाथ हटाया।
साया- मैं कौन हूँ.. यह जानना जरूरी नहीं.. मेरे पास वो आइटम है.. जिसकी आपको बहुत जरूरत है।
पूजा- क्या आइटम है.. मैं कुछ समझी नहीं.. मुझे किस चीज की जरूरत है?
उस साये ने पैन्ट की ज़िप खोली.. उसका लौड़ा तना हुआ था.. जो झट से बाहर आ गया, उसने पूजा का हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। पूजा ने जब लौड़े को पकड़ा.. तो उसके जिस्म में करंट सा दौड़ गया.. उसने जल्दी से हाथ हटा लिया।
पूजा- यह क्या बदतमीज़ी है.. कौन हो तुम?
साया- मिस पूजा.. आपको अभी इसी की जरूरत है.. अब ये नाटक बन्द करो और हाँ कह दो..
पूजा- मुझे कुछ नहीं चाहिए.. जाओ यहाँ से.. नहीं तो मैं शोर मचा दूँगी।
साया- ओके ओके.. जाता हूँ.. मगर दोबारा सोच लो.. ऐसा तगड़ा लौड़ा दोबारा नहीं मिलेगा.. तुम्हारी तड़प को मैं ही मिटा सकता हूँ.. अगर नहीं लेना है.. तो मैं जाता हूँ.. बाय.. जान.. तुम अकेली घूमो.. कोई नहीं मिलेगी तुम्हें.. सब सो गई हैं हा हा हा हा।
पूजा समझ गई कि ये जरूर यहाँ का चौकीदार बबलू होगा.. क्योंकि वही इस समय यहाँ घूमता रहता है।
पूजा- बबलू, मुझे पता है.. यह तुम ही हो.. बोलो.. नहीं तो मैं सुबह मैडम को बता दूँगी..
साया- हा हा हा.. अरे जान क्यों उस गरीब को मरवा रही हो.. मैं कोई बबलू नहीं हूँ.. तुमको अगर चुदना है.. तो हाँ बोलो.. नहीं तो मैं कहीं और जाता हूँ।
उसके बात करने के ढंग से पूजा को भी यही लगा कि यह बबलू नहीं हो सकता क्योंकि वो तो अलग ही अंदाज में बात करता है और इसकी आवाज़ भी उससे नहीं मिलती।
पूजा- रूको तो.. तुम हो कौन?
साया- मेरी जान.. मैं तुम्हें अपने बारे में नहीं बता सकता.. मगर हाँ.. अगर तुम हाँ कह दो.. तो ऐसा मज़ा दूँगा.. कि सारी जिंदगी मेरे लौड़े को याद रखोगी।
उसकी बातों से पूजा की चूत की आग भी अब तेज हो गई थी।
पूजा- अच्छा ये बात है.. तो ज़रा अपने लौड़े का कमाल भी दिखा दो.. कैसा मज़ा देता है ये..
साया- चलो मेरे साथ.. यहाँ ज़्यादा देर खड़े रहना ठीक नहीं..
उस साये ने पूजा का हाथ पकड़ा और कॉरीडोर के अंत में एक खाली कमरा पड़ा था.. जहाँ अक्सर एग्जाम के समय लड़कियाँ पढ़ाई करती थीं.. वो पूजा को उस कमरे में ले गया।
अन्दर जाते ही साये ने पूजा के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उनको चूसने लगा।
पूजा तो पहले ही वासना की आग में जल रही थी.. अब वो भी उसका साथ देने लगी और उसकी कमर पर हाथ घुमाने लगी। कुछ देर बाद दोनों अलग हुए।
पूजा- उफ़फ्फ़ कौन हो तुम.. आह्ह.. मेरी चूत में आग लगी है.. आह्ह.. अब बर्दास्त नहीं होता.. जल्दी से घुसा दो अपना लौड़ा.. उफ्फ..
साया- इतनी भी क्या जल्दी है जान.. पहले अपने कपड़े तो निकाल ले..
पूजा तो जैसे उसके हुकुम की गुलाम हो उठी थी.. उसने झट से अपने कपड़े निकाल दिए और तब तक उस साये ने भी कपड़े निकाल दिए थे।
कमरे में बहुत ही अंधेरा था.. बड़ी मुश्किल से दोनों एक-दूसरे को देख पा रहे थे। साये ने पूजा के कन्धों को पकड़ कर उसको नीचे बैठा दिया और अपना 8″ का लौड़ा उसके मुँह के पास कर दिया।
पूजा ने लौड़े को हाथ से पकड़ कर उसकी लंबाई और मोटाई का अहसास किया.. तो वो ख़ुशी से फूली ना समाई।
पूजा- वाउ.. क्या मस्त लंड है तेरा तो.. और काफ़ी बड़ा भी है..
साया- ले.. चूस मेरी जान.. तेरे आशिक से तो अच्छा ही है.. मज़ा कर।
पूजा ने सुपारे को मुँह में लिया और बस मज़े से चूसने लगी।
साया- आह्ह.. चूस.. मेरी पूजा रानी.. तू बड़ी कमाल की हसीना है.. आह्ह.. चूस..
कुछ देर चूसने के बाद पूजा खड़ी हो गई और उस साये का हाथ पकड़ कर एक दीवार के पास ले गई।
पूजा- बस साले.. अब बर्दास्त नहीं होता घुसा दो अपना लंड.. मेरी दहकती चूत में.. कर दो मुझे ठंडा..
साये ने पूजा को दीवार के सहारे घोड़ी बनाया और लौड़े को चूत पर सैट करके जोरदार झटका मारा.. ‘घुप्प’ से लौड़ा चूत में आधा घुस गया।
पूजा- आह.. आईई.. मर गई रे.. आह्ह.. क्या बेहतरीन लंड है तेरा.. आह्ह.. पूरा घुसा आह्ह.. मज़ा आ गया आह्ह..
उस साये ने लौड़े को पीछे किया और अबकी बार ज़ोर से झटका मारा.. पूरा लौड़ा चूत में समा गया।
पूजा पहले भी अपने ब्वॉयफ्रेण्ड से चुदवा चुकी थी.. मगर आज ऐसे तगड़े लौड़े की चुदाई उसको अलग ही मज़ा दे रही थी। वो गाण्ड को पीछे धकेल कर चुद रही थी।
साया- आह ले.. मेरी पूजा.. आह्ह.. आज तेरी चूत को आह्ह.. असली लौड़े का स्वाद देता हूँ.. आह्ह.. अब तक तो तू बस उस मजनू से ही चुद रही थी आह्ह.. अब आज के बाद तुझे मेरे लौड़े की आदत आ हो जाएगी.. आह्ह.. ले.. रंडी..
पूजा- आह्ह.. आह.. फास्ट फास्ट.. मेरे अनजान हरामी आशिक.. आह्ह.. मज़ा आ गया.. आह्ह.. और ज़ोर से करो.. आह्ह.. मैं झड़ने ही वाली हूँ आह्ह..
साया- आह उहह.. ले ले आ उहह मेरी जान.. मेरा भी पानी निकलने ही वाला है.. आह्ह.. कहाँ निकालूँ.. बाहर छोड़ दूँ या अन्दर लेगी.. आह्ह..
पूजा- उईई.. उईई.. उफ़फ्फ़ अन्दर ही आह्ह.. निकाल दो आह्ह.. मैं गोली ले लूँगी आह्ह.. उह.. मैं गई आह्ह..
पूजा की चूत ने पानी छोड़ दिया और उसके साथ ही उस साये ने भी अपना वीर्य चूत के पानी से मिला दिया।
अब चुदाई का तूफ़ान थम गया था और दोनों वहीं नीचे बैठ गए।
पूजा- उफ्फ.. क्या बड़ा लंड है तेरा.. मज़ा आ गया.. अब तो बता दे.. तू है कौन.. और तुझे कैसे पता है कि मैं इतनी प्यासी हूँ.. जो मुझे चोदने चला आया।
साया- नहीं पूजा डार्लिंग.. कुछ बातें छुपी रहें.. यही बेहतर होता है। अब मैं जाता हूँ.. तुम भी जाओ.. नहीं तो किसी को पता लग जाएगा..
इतना कहकर वो खड़ा हुआ और अपने कपड़े पहनने लगा।
पूजा- अरे अब तो तुमने मुझे चोद कर अपना बना लिया.. तो ये छुपा-छुपी किस लिए.. बता न.. कौन हे तू.. और कभी मुझे तुम्हारी जरूरत होगी तो?
साया- पूजा डार्लिंग.. मैंने कहा ना.. यह राज़ की बात है और जब तुम्हें जरूरत होगी.. मैं खुद आ जाऊँगा.. तुम बस अपने कमरे के बाहर सफेद कपड़ा या कोई पेपर लगा देना.. ओके बाय जान..
पूजा- ओके.. छुट्टियों के बाद मिलती हूँ.. क्योंकि कल शायद मैं चली जाऊँगी।
पूजा ने अपने कपड़े पहने और चुपके से वापस अपने कमरे की तरफ जाने लगी। तभी उसको ऐसा लगा कि वहाँ से कोई गया है.. वो उसके पीछे चुपके से चल दी। आगे जाकर उसको साफ-साफ दिखाई दिया कि वो बबलू ही है.. उसने उस समय कुछ कहना ठीक नहीं समझा और वहाँ से अपने कमरे में आ गई।
तब तक पायल भी सो गई थी और पूजा सोचने लगी कि उसने बबलू के साथ चुदाई की या किसी और के साथ? बस इसी उलझन में वो काफ़ी देर जागती रही और कब उसको नींद आ गई.. पता भी नहीं चला।
{अब चलते है पुनीत और राॅनी के पास जहाँ वो दोनौ मुनिया को अपने फार्म हाउस ले जा रहे है।}
रॉनी और पुनीत गाड़ी में बैठ गए उनके पीछे मुनिया भी आ गई और पीछे बैठ गई। कार फिर से अपनी मंज़िल की और बढ़ने लगी।
पुनीत- क्यों मुनिया क्या कहा माँ ने तुझे?
मुनिया- कुछ नहीं बाबूजी बस काम समझा रही थीं कि दिल लगा कर सब काम करना.. आपको किसी तरह की तकलीफ़ ना हो.. आपको खुश रखूँ.. यही सब..
रॉनी- अरे वाह.. तेरी माँ तो बड़ी समझदार हैं तेरे को बड़े अच्छे ढंग से समझाया और हमको क्या तकलीफ़ होगी.. तू बस पुनीत को खुश रखना.. तो समझ तेरी नौकरी पक्की हो जाएगी।
मुनिया- हाँ बाबूजी कोशिश करूँगी।
वो तीनों बातें करते रहे और कुछ देर बाद गाड़ी एक बड़े से फार्म हाउस के अन्दर चली गई। गाड़ी से उतर कर वो अन्दर गए तो इतने बड़े घर को देख कर मुनिया की आँखें चकरा गईं।
मुनिया- अरे बापरे बाबूजी इतना बड़ा घर?
रॉनी- अरे डरती क्यों है.. तुझे बस हमारी सेवा करनी है.. बाकी काम के लिए तो यहाँ बहुत नौकर हैं।
उस फार्म में कुल 6 आदमी थे.. जो वहाँ की साफ-सफ़ाई खाने का बंदोबस्त आदि करते थे। वो सब इनके खास नौकर थे अक्सर पुनीत वहाँ लड़कियों के साथ आता और रंगरलियाँ मनाता था.. जिसकी उनको आदत थी।
पुनीत- चल मुनिया तू रॉनी के साथ अन्दर जा.. मैं अभी आता हूँ।
रॉनी उसको अन्दर ले गया और एक कमरा उसको दिखा दिया कि आज से वो यहाँ रहेगी और उसको ये भी समझा दिया कि यहाँ के बाकी लोगों से वो ज़्यादा बात ना करे।
उधर पुनीत ने सब नौकरों को समझा दिया कि क्या करना है। पुनीत के जाने के बाद नौकर आपस में बात करने लगे कि बेचारी कहाँ इस वहशी के जाल में फँस गई.. अब ये इसको कच्चा खा जाएगा।
पुनीत सीधा रॉनी के पास गया और बिस्तर पर बैठ गया।
रॉनी- अब आगे का क्या प्लान है?
पुनीत- प्लान वही है.. चल बाहर निकाल.. इस ठंडे मौसम में ठंडी बीयर और उसके बाद हॉट-गर्ल का मज़ा लेंगे।
रॉनी- क्या बात है.. इतनी जल्दी.. अरे अभी नई-नई है.. पहले आराम से उसको सिख़ा.. नहीं तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी।
पुनीत- अरे यार आज जबसे उसको देखा है.. साला लौड़ा बैठने का नाम ही नहीं ले रहा है।
रॉनी- अरे मेरे यार वो कोई कॉलगर्ल नहीं.. जो तुरंत चुदने को रेडी हो जाएगी.. वो एक गाँव की सीधी-साधी लड़की है.. उसको धीरे-धीरे प्यार से पटाना होगा।
पुनीत- रॉनी माय ब्रदर.. तुम मुझे नहीं जानते.. वो जितनी सीधी है.. मैं उतना ही टेढ़ा हूँ। अब तुम जल्दी से बीयर खोलो.. मेरा कब से गला सूख रहा है।
दोनों काफ़ी देर तक बीयर का मज़ा लेते रहे.. उसके बाद पुनीत उठा और बैग से एक शॉर्ट्स निकाल कर बाथरूम में चला गया.. जहाँ उसने सारे कपड़े निकाल दिए। यहाँ तक की अंडरवियर भी निकाल दी.. बस एक शॉर्ट्स पहन कर बाहर आ गया।
रॉनी- अरे ये सलमान बनकर कहाँ जा रहा है?
पुनीत- तू यहाँ बैठ कर बीयर का मज़ा ले.. मैं मुनिया से थोड़ी मालिश करवा के आता हूँ।
रॉनी- अपनी मालिश ही करवाना.. कहीं उसकी मालिश ना कर देना हा हा हा..
पुनीत- अब ये तो आकर ही बताऊँगा.. चल तू बीयर पी.. मैं चला..
पुनीत वहाँ से निकल कर सीधा मुनिया के कमरे में पहुँच गया.. वो बिस्तर पर बस लेटी हुई सोच रही थी कि ऐसे आलीशान कमरे मैं वो कभी सोएगी.. ऐसा उसने सपने में भी नहीं सोचा था।
पुनीत- अरे मुनिया.. दरवाजा लॉक क्यों नहीं किया.. ऐसे ही सो रही है..
मुनिया- नहीं बाबूजी.. वो मैं अभी सोई नहीं.. बस ऐसे ही लेटी हुई थी.. सोचा सोने के पहले बंद कर दूँगी।
पुनीत- अच्छा किया.. तू सोई नहीं.. बारीश से मेरे पूरे बदन में दर्द हो गया है.. क्या तू ज़रा मेरी मालिश कर देगी?
मुनिया- अरे बाबूजी इसी लिए तो आपके साथ आई हूँ.. इसमें पूछने की क्या बात है.. आप यहाँ लेट जाओ.. मुझे थोड़ा सरसों का तेल चाहिए.. कहाँ मिलेगा?
पुनीत- अरे तेल को जाने दे.. ऐसे ही दबा दे.. कल तेल भी मंगवा दूँगा..
पुनीत पेट के बल लेट गया और मुनिया उसके कंधे-कमर आदि को दबाने लगी।
मुनिया के छोटे-छोटे और मुलायम हाथों के स्पर्श से पुनीत के जिस्म में वासना की लहर दौड़ने लगी.. उसका लौड़ा तन गया.. तो कुछ देर बाद पुनीत सीधा लेट गया और मुनिया को पैर दबाने को कहा। अब पुनीत सीधा लेटा हुआ था और शॉर्ट्स में उसका लौड़ा तंबू बनाए हुए साफ दिख रहा था। मगर या तो मुनिया ये सब जानती नहीं थी.. या फिर उसने देख कर अनदेखा कर दिया।
मुनिया- क्यों बाबूजी.. कुछ आराम मिला आपको?
पुनीत- आह्ह.. आराम कहाँ मिला.. दर्द अब ज़्यादा हो गया है.. लगता है जिस्म का सारा खून पैरों में आकर रुक गया है.. आह्ह.. थोड़ा ऊपर दबाओ.. यहाँ बहुत दर्द हो रहा है।
मुनिया- अभी लो बाबूजी.. सारा दर्द निकाल दूँगी.. आप बस बताते जाओ.. कहाँ दर्द है?
पुनीत ने जाँघों में दर्द बता कर मुनिया को वहाँ दबाने को कहा और वो नादान बड़े प्यार से वहाँ दबाने लगी। अब उसका ध्यान पुनीत के खड़े लंड पर बार-बार जा रहा था.. मगर वो चुपचाप बस अपने काम में लगी हुई थी।
पुनीत- मुनिया मैंने तेरी माँ को जो 500 रुपये दिए.. वो बस पेशगी थी.. तू रोज मेरी मालिश करेगी.. तो दिन के काम के रोज 1000 और रात की मालिश के 2000 तुझे और दूँगा।
पुनीत की बात सुनकर मुनिया की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। इतने पैसे उसने कभी सपने में नहीं सोचे थे.. जो पुनीत उसको देने की बात कर रहा था।
अब मुनिया को क्या पता था कि पुनीत 2000 रुपये में उसकी इज़्ज़त का सौदा कर रहा है। बेचारी उसकी बातों में आ गई..
मुनिया- नहीं नहीं बाबूजी.. जो माँ को दिए.. वही बहुत हैं आप कुछ दिन ही तो यहाँ रहोगे।
पुनीत- नहीं मुनिया.. ये तेरा हक़ है.. तू बस अच्छे से मालिश करना और जैसा मैं कहूँ.. वैसा करती रहना.. फिर देख मैं तुझे हमेशा के लिए अपने पास काम पर रख लूँगा। तू दिन के 500 रुपये तक कमा लेगी। चल अब थोड़ा ऊपर दबा.. वहाँ दर्द ज़्यादा हो रहा है।
मुनिया ख़ुशी-ख़ुशी उसकी जाँघें दबाने लगी.. अब उसके हाथ लंड से कुछ इंच की दूरी पर थे.. और लंड अपने पूरे शवाब पर खड़ा हुआ मुनिया की चढ़ती जवानी को सलामी दे रहा था।
पुनीत- उफ्फ.. मुनिया थोड़ा और ऊपर दबा ना.. आह्ह.. वहाँ ज़्यादा दर्द है..
अब मुनिया की समझ के बाहर था कि इसके ऊपर कहाँ दबाऊँ.. क्योंकि जाँघ के बाद तो लौड़ा था और उसके बाद पेट..
मुनिया- बाबूजी आप हाथ से बताओ ना.. मुझे समझ नहीं आ रहा.. कहाँ दर्द है?
पुनीत ने मुनिया का हाथ पकड़ा और लौड़े पर रख दिया।
पुनीत- उफ्फ.. यहाँ ज़्यादा दर्द है.. यहाँ दबा.. आराम से सहला..
गर्म लौड़े पर हाथ रखते ही मुनिया के जिस्म में एक करंट सा दौड़ गया.. उसने झट से हाथ हटा लिया।
मुनिया- यह क्या कर रहे हो बाबूजी.. यहाँ कोई दबाता है क्या?
पुनीत- अरे इसमें क्या है मुनिया.. जब दर्द यहाँ है.. तो यहीं बताऊँगा ना.. अब देख तू मना करेगी.. तो मैं नाराज़ हो जाऊँगा और अभी तो बस शुरूआत है.. बाद में तो बिना कपड़ों के भी तुझे इसकी मालिश करनी होगी।
मुनिया- छी: छी: कैसी बात करते हो आप बाबूजी.. ऐसा कभी होता है क्या..? मुझे तो शर्म आ रही है..
पुनीत- अरे पगली शहर में लड़की और लड़का बिना कपड़ों के होते हैं और मालिश भी ऐसे ही होती है.. तू यहाँ आ.. मैं तुझे दिखाता हूँ।
पुनीत बैठ गया और अपने मोबाइल में एक वीडियो चालू करके मुनिया को फ़ोन दे दिया।
उस वीडियो में एक लड़की एकदम नंगी खड़ी एक आदमी की मालिश कर रही थी जो एकदम नंगा था। पहले तो मुनिया को अजीब सा लगा.. मगर उस वीडियो को देखने के लिए पुनीत ने ज़ोर दिया तो बेचारी गौर से देखने लगी।
धीरे-धीरे वो लड़की उसके लौड़े को सहलाने लगी और मुँह से चूसने लगी। पूरा लौड़ा मुँह में लेकर मज़े लेने लगी और जब तक उसका पानी ना निकल गया वो लौड़े को चूसती रही।
ये सब देख कर मुनिया के जिस्म में कुछ अजीब सा होने लगा। उसकी चूत अपने आप रिसने लगी.. अब उसको भले ही इस सबका पता ना हो.. मगर ये निगोड़ी जवानी जो है न.. सब समझ जाती है और चूत और लंड तो बहुत जल्दी ये सब समझ जाते हैं।
वीडियो ख़त्म होने के बाद मुनिया पता नहीं किस दुनिया में खो गई थी। जब पुनीत ने उसको हाथ लगाया.. तो वो नींद से जागी..
पुनीत- अरे क्या हुआ.. कहाँ खो गई..?
मुनिया- वो वो.. बाबूजी.. ये सब मैंने पहले कभी नहीं देखा.. मुझे नहीं पता था कि मालिश ऐसे भी होती है।
पुनीत- अब तो मेरी बात का विश्वास हो गया ना.. ले चल.. अब ये मैं बाहर निकाल देता हूँ। अब जल्दी से उस लड़की की तरह मालिश कर दे।
पुनीत ने एक झटके से अपना निक्कर निकाल दिया.. उसका 7″ का लौड़ा कुतुबमीनार की तरह खड़ा हो गया।
मुनिया एकदम से ये देख कर शर्मा गई और उसने अपना मुँह घुमा लिया।
उसी रात करीब 10.30 बज रहे होंगे, दिल्ली के घर में दो लड़के और एक लड़की बैठे बीयर पी रहे थे। अब ये कौन हैं इनके बारे मैं ज़्यादा नहीं बताऊँगा.. बस आप इनके नाम जान लीजिए।
विवेक.. इसकी उम्र 25 साल है..
सुनील, यह करीब 23 साल का है.. और
कोमल.. इसकी उम्र 21 साल है।
चलो अब सीन देख लेते हैं।
विवेक- अरे ला ना.. साले सारी बोतल अकेला पिएगा क्या?
सुनील- अबे साले.. अब बियर ही पीता रहेगा या कोमल के मम्मों का रस भी पिएगा.. देख कैसे साली के निप्पल तने हुए हैं।
कोमल- अबे चुप वे भड़वे साले हरामी.. तेरे पास बियर लाने के पैसे नहीं थे.. तो मुझे बोल देता.. मैं दे देती.. सारा मूड खराब कर दिया तूने..
विवेक- साला 2 बोतल ही लाया झन्डू कहीं का.. ले पी.. मर साले..
सुनील- अरे मेरे को क्या पता था.. तुम इतनी बड़ी बेवड़ी हो.. नहीं तो और ले आता.. चल अब बियर ख़त्म हो गई.. अब तेरे चूचे ही चूस कर मज़ा ले लेंगे।
विवेक- हाँ मेरी जान.. तेरी बहुत तारीफ सुनी है कि तू अँग्रेज़ी मेम की तरह लौड़ा चूसती है.. और खूब मज़ा देती है..।
कोमल- अबे लुच्चों.. मैं पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हूँ.. चल अब टाइम खोटी मत कर.. निकालो कपड़े और दिखाओ अपने लौड़े.. कैसे हैं?
दोस्तो, कोमल की बातों से आप समझ ही गए होंगे कि यह एक कॉल गर्ल है और ये दोनों दिल्ली के छटे हुए बदमाश हैं।
अब आगे मजा देखो..
दोनों ने अपने कपड़े निकाल दिए.. इनके लौड़े तने हुए थे.. जो करीब 6″ के आस-पास के थे.. जिसे देख कर कोमल को हँसी आ गई और वो ज़ोर से हँसने लगी।
वो दोनों कोमल की ओर देखने लगे।
कोमल- सालों.. ये लौड़े लेकर मेरे पास आए हो क्या.. मैंने बहुत लंबे-लंबे लौड़े चूस कर फेंक दिए.. समझे?
विवेक- अबे चुप साली रंडी.. नाटक मत कर.. चल निकाल कपड़े.. आज तेरे को बताते हैं कि लौड़े की लंबाई से कुछ नहीं होता.. उसमें पॉवर भी होना चाहिए।
कोमल ने अपने कपड़े अदा के साथ निकाल दिए.. वो एक खूबसूर्त जिस्म की मलिका थी। उसकी गोल चूचियां जो 34″ की थीं.. पतली लचकदार कमर और बाहर को निकली हुई 36″ की गाण्ड.. किसी को भी पागल बना सकती थी।
विवेक- अरे वाह रानी.. तेरा जिस्म तो बड़ा मस्त है.. आज तो तेरी चुदाई करने में मज़ा आ जाएगा।
सुनील- साली की गाण्ड देख कर मेरा तो लौड़ा झटके खाने लगा है यार..
कोमल- अबे सालों अब बातें ही करोगे क्या.. आ जाओ.. टूट पड़ो कोमल रानी की तिजोरी खुली हुई है.. लूट लो पूरा खजाना..
दोनों भूखे कुत्तों की तरह कोमल की तरफ़ बढ़े और उसको बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और विवेक उसके होंठों और मम्मों को चूसने लगा और सुनील उसकी चूत को चाटने में लग गया।
कोमल- आह्ह.. चूसो.. मेरे आशिकों.. आह्ह.. मज़ा आ गया उफ्फ.. आज कई दिनों बाद दो लंड एक साथ मिलेंगे.. आह्ह.. आज तो मेरी चूत को मज़ा आ जाएगा।
कुछ देर कोमल को चूसने के बाद दोनों सीधे लेट गए और कोमल को लौड़े चूसने के लिए कहा। कोमल बड़े प्यार से दोनों के लंड बारी-बारी से चूसने लगी।
विवेक- आह्ह.. चूस मेरी जान.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है.. जैसा सुना था.. उससे भी ज़्यादा मज़ा दे रही है तू.. आह्ह..
सुनील- उफ्फ.. आह्ह.. मेरी तो आँखें मज़े में खुल ही नहीं रहीं हैं यार.. आह्ह.. उफ्फ.. बड़ा मज़ा आ रहा है।
कोमल बड़े प्यार से बारी-बारी से दोनों के लंड चूसती रही और जब दोनों के बर्दास्त के बाहर हो गया तो विवेक ने कोमल को अपने लौड़े पर बैठने को कहा और सुनील पीछे से गाण्ड मारने को तैयार हो गया।
कोमल अब लौड़े पर बैठ गई और विवेक के ऊपर लेट गई.. पीछे से सुनील ने लौड़ा गाण्ड में पेल दिया।
कोमल- आह्ह.. आह्ह.. अब शुरू हो जाओ दोनों और अपना कमाल दिखाओ आह्ह..
दोनों स्पीड से लौड़े को अन्दर-बाहर करने लगे.. कोमल दोनों तरफ़ से चुद रही थी और कमरे में बस सिसकारियाँ और ‘आहहें’ और ‘कराहें’ गूंजने लगीं।
करीब 15 मिनट तक ये चुदाई चलती रही। आख़िर सुनील के लौड़े ने गाण्ड में लावा उगल दिया और वो एक तरफ लेट गया। हाँ विवेक अब भी लगा हुआ था।
कोमल- आह आह.. इसस्स.. एक तो गया.. आह्ह.. अब तेरी बारी है हीरो.. आह्ह.. जल्दी कर.. उफ़फ्फ़ आह्ह..
विवेक ने जल्दी से पोज़ चेंज किया और अब वो ऊपर आ गया और स्पीड से कोमल को चोदने लगा। करीब 5 मिनट बाद उसकी नसें फूलने लगीं और उसने झटके से लौड़ा बाहर निकाल लिया। उसका सारा माल कोमल के पेट पर गिर गया। वो हाँफता हुआ कोमल के पास लेट गया।
सुनील- अरे वाह.. कोमल तेरी गाण्ड तो सच में तेरे नाम की तरह कोमल थी.. मज़ा आ गया। अब तेरी चूत की सवारी करूँगा.. तो पता लगेगा कि वो कैसी है।
कोमल- अरे चोद लेना राजा.. आज की रात मैंने तुम दोनों के नाम कर दी.. जैसे चाहो मेरी चूत और गाण्ड का मज़ा लेते रहना।
विवेक- कोमल तू बड़ी बिंदास है यार.. खूब मज़ा देती है।
विवेक की बात का कोमल कुछ जवाब देती.. इसके पहले विवेक का फ़ोन बजने लगा और स्क्रीन पर नम्बर देख कर विवेक थोड़ा घबरा गया।
विवेक- ओए.. चुप चुप.. कोई कुछ मत बोलना.. मेरे बॉस (टोनी) का फ़ोन है।
विवेक- हैलो बॉस कैसे हो आप?
टोनी- कहाँ हो तुम दोनों?
विवेक- ज..ज़ि..जी यहीं हैं घर पे..
टोनी- सालों दारू पीकर पड़े हो.. मैंने तुमको पैसे किस लिए दिए थे?
विवेक- नहीं नहीं बॉस.. आपका काम कर दिया हमने.. कोमल को ले आए..
टोनी- गुड.. अच्छा सुनो.. मैं नहीं आ पाऊँगा.. मैंने जो बताया था.. कोमल को समझा देना और कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.. समझे?
विवेक- ना ना बॉस.. आपका काम जल्दी हो जाएगा..* और कोमल को भी मैं समझा दूँगा.. आप बेफिकर रहो।
टोनी- ठीक है.. ठीक है.. अब गौर से सुन.. वो कुत्ता फार्म हाउस पर है.. कल तुम दोनों वहाँ पहुँच जाना.. समझे? बाकी की बात तुमको बताने की जरूरत है क्या?
विवेक- नहीं नहीं बॉस.. मुझे पता है क्या करना है.. आप समझो बस हम वहाँ पहुँच गए।
कोमल- अरे किसका फ़ोन था.. तू ऐसे क्यों डर गया?
सुनील- अरे साली.. तेरे को नहीं पता क्या.. बॉस का फ़ोन था। उन्हीं ने तो तेरे को लाने को कहा है और तेरे को जो पैसे हमने दिए हैं वो उन्हीं ने हमें दिए थे।
कोमल- तेरे बॉस ने मेरे को लाने के पैसे तुमको दिए.. और सालों तुमने उनके पहले मेरे को चोद कर मज़ा ले लिया.. सालों अब मैं उसके पास नहीं चुदवाऊँगी.. उसके साथ चुदाई के एक्सट्रा पैसे लगेंगे.. सोच लेना हाँ..
सुनील- अबे चुप साली.. बॉस तेरे को नहीं चोदेंगे.. उनको तो तेरे से दूसरा काम है।
कोमल- क्यों तेरा बॉस नामर्द है क्या..? जो पैसे खर्चा करके बस मेरी चुदाई होते देखेगा हा हा हा हा..
विवेक- अरे साली छिनाल.. पूरी बात तो सुन ले पहले.. अपनी ही बोले जा रही है तू हरामजादी।
कोमल- ओ साला.. भड़वा.. गाली नहीं दे मेरे को.. हाँ नहीं तो.. गाली मेरे को भी आती है.. समझा क्या?
विवेक- अच्छा मेरी जान प्लीज़ चुप हो जा और आराम से तू मेरी बात सुन।
कोमल- ठीक है रे.. सुना साला.. मैं अब कुछ नहीं बोलेगी।
विवेक- देख रानी.. तू एक कॉलेज गर्ल है और दिखती भी मस्त है। मज़े की बात ये कि तू चुदक्कड़ होते हुए भी शक्ल से बड़ी शरीफ दिखती है.. तो हमारे बॉस को तेरे से कुछ काम है.. इसलिए वो तेरे से मिलना चाहते थे। अब तू साली खाली बात के लिए तो यहाँ आती नहीं.. और हमको पता था बॉस खाली बात ही करेगा.. तो बस हमने सोचा बॉस खाली बात करेंगे.. तो क्यों ना हम तेरी चुदाई करके पैसे वसूल कर लें।
कोमल- कौन है रे तेरा बॉस.. वो कब आएगा..
विवेक- बॉस कहीं बिज़ी हैं. वे नहीं आएँगे.. मेरे को वो बात पता है.. तो मैं भी तेरे को समझा सकता हूँ।
सुनील- यार जब मैंने बॉस को कहा था ये बात हम कोमल को बता देंगे.. तब तो वो गुस्सा हो गए थे। बोले.. नहीं मैं ही अच्छी तरह से बताऊँगा.. अब क्या हुआ..
विवेक- अरे यार अब ये बॉस का फंडा वही जाने.. कहीं फँस गए होंगे किसी काम में.. अब कोमल को हमें सब समझाना होगा और वैसे भी बॉस फार्म पर तो आएँगे ही.. बाकी का काम वहाँ हो जाएगा।
कोमल- अबे सालों क्या समझाना है.. कुछ मेरे को भी तो बताओ?
विवेक- ठीक है मेरी जान.. गौर से सुन.. अब दिल्ली से कुछ दूर एक फार्म-हाउस है। हर 2 या 3 महीने में वहाँ एक बड़ी पार्टी होती है.. जहाँ फुल शराब और मस्ती होती है। साथ ही एक खास किस्म का गेम भी खेला जाता है।
कोमल- किस तरह का गेम?
विवेक- अबे सुन तो साली.. बीच में बोलती है तू.. वो गेम कोई पैसों का नहीं होता है। वहाँ सब अपनी गर्लफ्रेण्ड को लेकर जाते हैं और हम गर्ल फ्रेण्ड के साथ टीम बना कर तीन पत्ती का गेम खेलते हैं और जो हरता है.. हर बाजी के साथ उसकी गर्लफ्रेण्ड को एक कपड़ा उतारना होता है। ऐसे धीरे-धीरे सबके कपड़े उतरते हैं और जिस लड़की के कपड़े सबसे पहले पूरे उतर जाते हैं उसकी टीम हार जाती है। फिर उस रात सभी जीतने वाले उसके साथ सुहागरात मनाते हैं।
कोमल- ओ माय गॉड.. ये तो बहुत ख़तरनाक गेम है.. एक लड़की के साथ सभी चुदाई करते हैं? उसकी जान नहीं निकल जाती.. वैसे वहाँ कितने लड़के होते हैं.?
विवेक- अरे कुछ नहीं होता.. ज़्यादा नहीं बस हर बार 6 लड़के होते हैं। जिसमें हारने वाला तो चोदता नहीं है.. तो बस रात भर 5 ही लौंडे लड़की की चुदाई का मज़ा लेते हैं। फिर दूसरे दिन सुबह वो लड़का गेम से निकल जाता है और बाकी के लोग गेम खेलते हैं। बड़ा मज़ा आता है यार..
कोमल- ओह.. ये बात है.. वैसे हर बार सभी लोग वही होते हैं या अलग-अलग होते हैं?
विवेक- नहीं.. बस तीन लड़के वही होते हैं और 3 को हर बार अलग चुना जाता है।
कोमल- ऐसा क्यों.. वो 3 कौन हैं और दूसरों को कैसे चुनते हैं?
विवेक- मेरी जान तूने संजय खन्ना का नाम तो सुना होगा? उसका बेटा पुनीत ये पार्टी देता है.. तो वो तो होगा ही वहाँ और उसका भाई रॉनी और एक खास दोस्त सन्नी भी साथ होता है। बाकी लड़कों को पार्टी के कुछ दिन पहले यहाँ के क्लब में जमा करके मीटिंग होती है और एक खेल के जरिए वो बाकी के तीन लड़कों को चुनता है।