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मुनिया- क्या बाबूजी.. आप भी कैसा मजाक करते हो.. मैं अपने गाँव से कभी बाहर ही नहीं निकली.. आपने कहाँ देख लिया मुझे?
सन्नी- शहर या गाँव मेंने देखा है तुझे.. यार कहाँ देखा है ये समझ नहीं आ रहा.. लेकिन देखा है मैंने!
रॉनी- अरे क्या सन्नी.. ये गाँव की छोरी है.. तू शहर के नुस्खे ना आजमा.. हा हा हा.. ये नहीं पटने वाली..
पुनीत भी हँसने लगा और मुनिया भी हँसती हुई वापस अन्दर चली गई, मगर सन्नी वैसे ही खड़ा बस सोचता रहा।
रॉनी और पुनीत अब भी हंस रहे थे मगर सन्नी चुपचाप खड़ा हुआ बस उस कमरे की ओर देख रहा था.. जिसमें मुनिया गई थी..
रॉनी- अरे सन्नी क्या हुआ.. बहुत पसन्द आ गई क्या.. बोलो.. तब तो आज रात यहीं रुक जाओ.. तुमको भी इसका रस पिलवा देंगे.. हा हा हा हा..
पुनीत- अरे नहीं रे.. वो नहीं मानेगी साली.. आज के लिए तो मेरे को ही मना कर रही है।
रॉनी- उस अनपढ़ गंवार को मनाना कौन सा मुश्किल है?
सन्नी- चुप रहो यार.. दोनों मेरी बात को मजाक में मत लो.. ये मुनिया को मैं जानता हूँ.. कुछ तो है साला.. याद नहीं आ रहा.. मगर देख लेना मैं बता दूँगा.. इसको मैं जानता हूँ। अब तुम ही चोदो इसको.. मुझे एक काम है.. अभी मेरा जाना जरूरी है।
पुनीत- ठीक है जा.. और याद आ जाए तो मुझे भी बता देना.. कि मुनिया कौन है.. हा हा हा..
सन्नी के जाने के बाद रॉनी अपने कमरे में चला गया और पुनीत नौकरों को कुछ खाना बनाने को बोल कर मुनिया के पास चला गया।
मुनिया- पुनीत बाबू.. ये आपके दोस्त क्या बोल रहे थे.. इन्होंने मुझे कहाँ देखा है?
पुनीत- अरे तेरी जवानी देख कर उसका मन बहक गया था.. बस ऐसे ही बोल रहा था.. वैसे तू है बड़ी क़यामत.. यार आज पूरी रात मेरे साथ बिता ले.. मैं तेरी लाइफ बना दूँगा..
मुनिया- नहीं नहीं बाबूजी.. सच्ची आज मेरी ‘वो’ बहुत दर्द कर रही है.. कल कर लेना.. आज नहीं..
पुनीत- अरे ‘वो’ क्या दर्द कर रही है.. साफ-साफ बोल ना.. उसको चूत कहते हैं और मेरे हथियार को लौड़ा बोला कर..
मुनिया- छी: बाबूजी.. आप बड़े बेशर्म हो.. मुझसे नहीं बोला जाएगा..
पुनीत- अरे मेरी जान.. नाम लेगी तो ज़्यादा मज़ा आएगा.. चल यहाँ मेरे पास बैठ और बता..
पुनीत ने मुनिया को अपने से चिपका कर बैठा लिया और उसके मम्मों को हल्के से दबा कर उसको पूछा।
पुनीत- तेरे इन चूचों में भी दर्द है क्या.. मेरी जान?
मुनिया- हाँ बाबूजी.. थोड़ा इनमें भी है.. आह्ह.. दबाओ मत.. दुःखता है।
पुनीत ने ज़ोर से दबाते हुआ कहा- इनका नाम बोल.. नहीं ऐसे ही दबाता रहूँगा और दर्द करता रहूँगा।
मुनिया- आह्ह.. बाबूजी.. उफ़फ्फ़.. मेरे चूचे मत दबाओ ना.. आहह..
पुनीत- यह हुई ना बात.. अब तू अपने हर अंग का नाम बताएगी.. तभी मुझे सुकून मिलेगा.. ठीक है..
मुनिया- आह्ह.. बाबूजी.. आप तो ससस्स बेशर्म हो.. मुझे भी ऐसा ही बना दोगे.. आह्ह.. अब आप मानोगे नहीं.. ओह.. मेरे चूचों पर रहम करो.. और आह्ह.. मेरी चूत को सहलाओ.. आह्ह.. आपके मोटे लौड़े ने मेरी चूत को सुजा कर रख दिया है आह..
पुनीत- ओह.. मार डाला रे.. मेरी मुनिया.. ये हुई ना बात.. अब लगा कि तू मेरी रानी है। चल मुझे दिखा तेरी चूत.. मैं उसको अपनी जीभ से चाट कर आराम दिए देता हूँ।
मुनिया- अभी नहीं.. रात को दिखाऊँगी.. अभी मुझे जोरों की भूख लगी है.. कुछ खाने के बाद आप देख लेना.. ठीक है..
पुनीत- अरे मेरी जान.. मैं हूँ ना.. मुझे खाले.. इससे ज़्यादा अच्छा खाना तुझे कहाँ मिलेगा.. हा हा हा..
मुनिया- नहीं बाबूजी.. मुझे माँस खाना पसन्द नहीं.. मैं तो सब्जी ही खाऊँगी.. अब आप जाओ.. रात को आ जाना.. मुझे भी रसोई में जाने दो..
पुनीत मस्ती के मूड में था.. मगर मुनिया जल्दी से वहाँ से निकल कर रसोई में चली गई और पुनीत कुछ ना कर सका।
सन्नी- शहर या गाँव मेंने देखा है तुझे.. यार कहाँ देखा है ये समझ नहीं आ रहा.. लेकिन देखा है मैंने!
रॉनी- अरे क्या सन्नी.. ये गाँव की छोरी है.. तू शहर के नुस्खे ना आजमा.. हा हा हा.. ये नहीं पटने वाली..
पुनीत भी हँसने लगा और मुनिया भी हँसती हुई वापस अन्दर चली गई, मगर सन्नी वैसे ही खड़ा बस सोचता रहा।
रॉनी और पुनीत अब भी हंस रहे थे मगर सन्नी चुपचाप खड़ा हुआ बस उस कमरे की ओर देख रहा था.. जिसमें मुनिया गई थी..
रॉनी- अरे सन्नी क्या हुआ.. बहुत पसन्द आ गई क्या.. बोलो.. तब तो आज रात यहीं रुक जाओ.. तुमको भी इसका रस पिलवा देंगे.. हा हा हा हा..
पुनीत- अरे नहीं रे.. वो नहीं मानेगी साली.. आज के लिए तो मेरे को ही मना कर रही है।
रॉनी- उस अनपढ़ गंवार को मनाना कौन सा मुश्किल है?
सन्नी- चुप रहो यार.. दोनों मेरी बात को मजाक में मत लो.. ये मुनिया को मैं जानता हूँ.. कुछ तो है साला.. याद नहीं आ रहा.. मगर देख लेना मैं बता दूँगा.. इसको मैं जानता हूँ। अब तुम ही चोदो इसको.. मुझे एक काम है.. अभी मेरा जाना जरूरी है।
पुनीत- ठीक है जा.. और याद आ जाए तो मुझे भी बता देना.. कि मुनिया कौन है.. हा हा हा..
सन्नी के जाने के बाद रॉनी अपने कमरे में चला गया और पुनीत नौकरों को कुछ खाना बनाने को बोल कर मुनिया के पास चला गया।
मुनिया- पुनीत बाबू.. ये आपके दोस्त क्या बोल रहे थे.. इन्होंने मुझे कहाँ देखा है?
पुनीत- अरे तेरी जवानी देख कर उसका मन बहक गया था.. बस ऐसे ही बोल रहा था.. वैसे तू है बड़ी क़यामत.. यार आज पूरी रात मेरे साथ बिता ले.. मैं तेरी लाइफ बना दूँगा..
मुनिया- नहीं नहीं बाबूजी.. सच्ची आज मेरी ‘वो’ बहुत दर्द कर रही है.. कल कर लेना.. आज नहीं..
पुनीत- अरे ‘वो’ क्या दर्द कर रही है.. साफ-साफ बोल ना.. उसको चूत कहते हैं और मेरे हथियार को लौड़ा बोला कर..
मुनिया- छी: बाबूजी.. आप बड़े बेशर्म हो.. मुझसे नहीं बोला जाएगा..
पुनीत- अरे मेरी जान.. नाम लेगी तो ज़्यादा मज़ा आएगा.. चल यहाँ मेरे पास बैठ और बता..
पुनीत ने मुनिया को अपने से चिपका कर बैठा लिया और उसके मम्मों को हल्के से दबा कर उसको पूछा।
पुनीत- तेरे इन चूचों में भी दर्द है क्या.. मेरी जान?
मुनिया- हाँ बाबूजी.. थोड़ा इनमें भी है.. आह्ह.. दबाओ मत.. दुःखता है।
पुनीत ने ज़ोर से दबाते हुआ कहा- इनका नाम बोल.. नहीं ऐसे ही दबाता रहूँगा और दर्द करता रहूँगा।
मुनिया- आह्ह.. बाबूजी.. उफ़फ्फ़.. मेरे चूचे मत दबाओ ना.. आहह..
पुनीत- यह हुई ना बात.. अब तू अपने हर अंग का नाम बताएगी.. तभी मुझे सुकून मिलेगा.. ठीक है..
मुनिया- आह्ह.. बाबूजी.. आप तो ससस्स बेशर्म हो.. मुझे भी ऐसा ही बना दोगे.. आह्ह.. अब आप मानोगे नहीं.. ओह.. मेरे चूचों पर रहम करो.. और आह्ह.. मेरी चूत को सहलाओ.. आह्ह.. आपके मोटे लौड़े ने मेरी चूत को सुजा कर रख दिया है आह..
पुनीत- ओह.. मार डाला रे.. मेरी मुनिया.. ये हुई ना बात.. अब लगा कि तू मेरी रानी है। चल मुझे दिखा तेरी चूत.. मैं उसको अपनी जीभ से चाट कर आराम दिए देता हूँ।
मुनिया- अभी नहीं.. रात को दिखाऊँगी.. अभी मुझे जोरों की भूख लगी है.. कुछ खाने के बाद आप देख लेना.. ठीक है..
पुनीत- अरे मेरी जान.. मैं हूँ ना.. मुझे खाले.. इससे ज़्यादा अच्छा खाना तुझे कहाँ मिलेगा.. हा हा हा..
मुनिया- नहीं बाबूजी.. मुझे माँस खाना पसन्द नहीं.. मैं तो सब्जी ही खाऊँगी.. अब आप जाओ.. रात को आ जाना.. मुझे भी रसोई में जाने दो..
पुनीत मस्ती के मूड में था.. मगर मुनिया जल्दी से वहाँ से निकल कर रसोई में चली गई और पुनीत कुछ ना कर सका।