Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 1


पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा था। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए मुस्तैदी से खड़े थे। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े थे कि थोडा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ'कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा था। शख्स के पीछे कईं ओर लोग हाथ जोड़े घुटनों पर बैठ थे। सभी डर से थर थर कांप रहे थें। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला…क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा था।

मुखिया जो पहले से ही डर से कांप रहे थे। अब तो उससे बोला भी नहीं जा रहा था। परिस्थिती को भाप कर मुखिया समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला….माई बाप हम'ने अपना सभी कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हम बाल बच्चों को क्या खिलाएंगे उन्हें तो भूखा रखा पड़ेगा। कुछ रहम करे माई बाप हममें ओर कर भरने की समर्थ नहीं हैं।

मुखिया की बातों को सुनकर लड़का रूखे तेवर से बोला….जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा? तुम्हारे बाल बच्चे मरे या जिए मुझे कोई लेना देना नहीं, तुम्हें कर भरना ही होगा कर नहीं भरा तो मुझसे रहम की उम्मीद न रखना।

लड़के की बातों को सुन मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता था। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला….माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।

मुखिया की बातों को सुन लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…सुन वे जमीन पे रेगने वाले कीड़े मेरा नाम अपस्यू राना है। मैं कोई तपस्वी नहीं जो मुझ'में अच्छे गुणों का भंडार होगा या मैं अच्छा कर्म करुंगा इसलिए मैं तुम सभी को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के आबरू को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।

बहु बेटियो के आबरू नीलाम होने की बात सुन मुखिया असहाय महसूस कर रहा था। घर की मान सम्मान बचाने का एक ही रास्ता दिखा, वह हैं अपस्यू की बातों को मान लेना। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोला…माई बाप हमे कुछ दिन का मौहलत दे दीजिए हम कर भर देंगे।

मुखिया की बाते सुन अपस्यू हटाहास करते हुए बोला….तुम्हें मौहलात चाहिए दिया, जितनी मौहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की एक रात की दुल्हन बनाकर मेरे डाक बंगले भेजते रहना। फ़िर साथ आए साथियों से बोला…चलो रे सभी गाड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना अपने आंगन को लीप देंगे। सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना देर करेगा उतना ही अपने बहु बेटियो की आबरू लुटवाता रहेगा और एक बात कान खोल कर सुन ले यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सभी जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी आबरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएंगे।

अपस्यू साथ आए मुस्टांडो को ले'कर चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला….मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर को दो बार भरना पड़ेगा। ऐसा चलाता रहा तो एक दिन हमे जमीन जायदाद बेचना पड़ जायेगा।

मुखिया…शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर को दो बार भरना पड़ेगा।

"हम कब तक अपश्यु और उसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।"

मुखिया….अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह गया। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।

भैरवा…मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग पुरा किया तो हम भूखे ही मर जायेंगे।

मुखिया….ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए जो अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।

सभी दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देते हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चल देते हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लग जाता हैं। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होगा। महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना बेटे को बुला रहें थें। आवाज में इतनी गरजना था मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहा हों। मैं यह का राजा हूं। बाप की गर्जना भरी आवाज सुन रघु थार थार कांपने लग गया। मन में सोचा जाए की न जाएं, नहीं गए तो पापा कहीं नाराज न हों जाएं इसलिए कुछ साहस जुटा रूम से बाहर आया फिर पापा के सामने जा खडा हों गया। उससे खडा भी नहीं होया जा रहा था हाथ पैर थार थार कांप रहे थे। रघु से बोला भी नहीं जा रहा था फ़िर भी लड़खड़ाते जुबान से बोला….अपने बुलाया पापाजी।

बेटे को कांपते देख और लड़खड़ाती बोली सुन राजेंद्र बोला….हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों। जरूर तुम'ने कुछ गलत किया होगा। बोलों तुमने ऐसा क्या किया जो तुम्हें मेरे सामने आने में इतना डर लग रहा हैं।

रघु कुछ न बोला चुपचाप खड़ा रहा। रघु को बोलता न देख वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोली….रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राजपाठ चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अभी तक नहीं गई।

रघु चुपचाप मां के पास जा'कर बैठ गया। राजेंद्र पत्नी की बात सुन मुस्कुराते हुए बोला…अरे सुरभि राजपाठ भले ही न रहा हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।

सुरभि बेटे का सिर सहलाते हुए बोली...खून रंग दिखाना हैं तो घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया जैसे दुनियां भर का सभी गलत काम इसने किया हों। आप खुद ही देखो कैसे कांप रहा हैं इससे तो बोला भी नहीं जा रहा था।

सुरभि की बाते सुन राजेंद्र के चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया फिर राजेंद्र अपने जगह से उठ, बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला…रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं। जब तू कुछ गलत करता ही नहीं, तो फिर डरता क्यों हैं। मैं तेरा बाप हूं। अपना फर्ज निभाऊंगा ही। हमेशा एक बात का ख्याल रखना अगर तूने कुछ गलत नहीं किया तो बिना डरे बिना झिजके साफ साफ लावजो में बात करा कर। तेरा डरना ही मेरे मन में शक पैदा करता हैं तूने कुछ तो गलत किया होगा।

रघु कुछ कहा नहीं सिर्फ हां में सिर हिला दिया। बेटे को असहज देख राजेंद्र रघु के सिर पर हाथ फिरा मुस्कुरा दिया। बाप को मुस्कुराता देख रघु भी मुस्कुरा दिया। फ़िर धीरे धीर खुद को सहज कर लिया। रघु को मुस्कुराते देख सुरभि बोली….सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर काम का बोझ न डाले अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करे। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

दुलार और बचाव के पक्ष में बोलते देख रघु पूर्ण सहज होकर मुस्करा दिया। बेटे को मुस्कुराते देख राजेंद्र बोला….मुझे दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं। इसलिए रानी साहिबा जी आप'की बातों का ध्यान रखूंगा।

राजेंद्र जी की बाते सुन सुरभि बनावटी गुस्सा करते हुए बोली….अच्छा तो मैं आप'का दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।

राजेंद्र ….जो भी परोसो मैं उससे ही अपना पेट भरा लूंगा, पेट भरने से मतलब हैं। क्या परोसा जा रहा हैं क्या नहीं इसकी छान बीन थोडी न करना हैं।

दोनों में प्यार भारी नोक झोंक चलता रहता हैं। मां बाप के झूठी तकरार को देख रघु बोला….मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हैं। अब आप दोनों अपनी झूठी तकरार बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?

राजेंद्र….कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो तुम्हारे साथ मसकारी करना चाहता था इसलिए बुलाया था।

सुरभि…अपका मसखरी करना मेरे बेटे पर कितना भारी पड़ता हैं आप'ने देखा न, मेरा लाडला कितना सहम गया था। आप को कितना कहा लेकिन आप हों की सुनते नहीं बे वजह मेरे बेटे को डरते रहते हों।

रघु…मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद आप'को पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।

ये कह रघु उठकर चल दिया सुरभि बेटे को आवाज दे रही थीं लेकिन रघु बिना कोई जवाब दिए चला गया। रघु के जाते ही राजेन्द्र बोला….सुरभि रघु को जानें दो हम अपने नोक झोंक को आगे बढ़ाए बेटा भी तो यही कह गया हैं।

सुरभि उठकर जाते हुए बोली… अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आप'से बाद में निपटूंगी।

सुरभि उठकर कीचन की और चल दिया। राजेंद्र आवाज दिया, सुरभि मुड़कर राजेंद्र को बोली... अभी नोकझोक करने का मेरा मूड नहीं हैं जब मुड़ होगा बहुत सारा नोक झोंक करूंगा।

राजेंद्र... जब तुम्हारा मुड़ नहीं हैं तो मैं यहां क्या करूंगा मैं भी कुछ काम निपटा कर आता हुं।

सुरभि मुस्कुराते हुई कीचन की और चल दिया फिर राजेंद्र रूम से कुछ फाइल्स लेकर चला गया।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। पहला अपडेट कैसा रहा बताना न भूलिएगा।
MAST UPDATE
 
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Update -2


किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को कीचन में आने की क्या जरूरत थीं हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं कीचन में क्यों नहीं आ सकती यहां घर और कीचन मेरा हैं। मै कहीं भी आ जा सकती हूं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां न बोले फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला...रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लग गईं। सुरभि की तारीफ करते सुन सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सका किया जब सहन सीमा टूट गया तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली...क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि…छोटी एक बुजुर्ग से बात करने का ये कैसा तरीका हैं। दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तिलमिला उठा और बोला…दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं, नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुन सुरभि को गुस्सा आ गया सुरभि गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकता। ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे के पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुन वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल पाया, मन की बात मन में दावा लिया। सुरभि भी अछूता न रहा सुकन्या की बातो से उसे भी गुस्सा आ गया लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चह रहीं थी इसलिए चुप रह गईं पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई। नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़ सुकन्या पैर पटकते हुए कीचन से बहार को चल दिया। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का खड़े खड़े गाल सहला रहा था। सुरभि पास गई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली…धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला…रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने आप'का अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि...अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी ला'कर सुरभि को बैठा दिया फिर बोला…रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जा'कर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना भेज दिया जायेगा।

सुरभि…मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला…छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा...नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग गए। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंच, सुकन्या मुंह फुलाए रूम में रखा सोफे पर बैठी थीं, पास जा'कर सुरभि बोली…छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता क्या हैं?

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत हुआ फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकता।

सुकन्या…मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि...छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं, देवरानी बहन समान होता हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ जाकर अपना काम करों।

सुरभि से ओर सहन नहीं हुआ। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई। अंचल से आंखों को पूछते हुए सुरभि चली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होता। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं हैं। कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं? जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहीं फिर बेड पर लेट गई। सुरभि सिसक सिसक कर रोते हुऐ रूम में पहुंचा फिर बेड पर लेट गई। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला ने देख लिया था। जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गईं। सुरभि को रोता हुए देख पास जा बैठ गई फ़िर बोली…रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुन उठकर बैठ गईं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…दाई मां आप कब आएं?

दाई मां...रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां…बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकल लेते हैं।

सुरभि…दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकाल लेती हैं।

दाई मां...रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि...ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगे जाएगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगाते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लग गई। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और ख़ुद भी खा लिया। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगें। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरत रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि रोकते हुए औरत बोली...नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला…मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा...अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला…कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा...ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा…मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा...सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश…ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं कर। काम पड़े तो और ला देता हूं।

मनोरमा…आप तो चुप ही करों।

कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली...तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा...कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला…रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश…क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…ही ही ही मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
SUPERB UPDATE
 

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