Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

34
67
18
Update - 7

सुरभि…मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहा हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं उसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।

राजेंद्र…सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर सकता क्योंकि वो वसीयत के बारे में कुछ भी नहीं जानता रहीं बात दलाल की वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता आया हैं।

सुरभि…आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों। आंख मूंद कर आप सभी पर जो भरोसा करते हों, इसी आदत के कारण आज हम मुसीबत में फंसे हैं।

राजेंद्र…तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।

सुरभि…भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं, इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं इस वक्त आप सभी को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।

राजेंद्र…अनर्थ तो हों गया हैं फिर भी मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता तुम तो मेरी आदत जानते हों अब तुम ही बताओं मैं किया करूं।

सुरभि…आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं। ये बहुत ही विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं संभले तो बाद में हमे संभालने का मौका नहीं मिलेगा।

राजेंद्र…देर सवेर संभाल तो जाएंगे लेकिन मैं चाहकर भी अपनो पर शक नहीं कर सकता तुम समझ क्यों नहीं रहें हों। तुम कोई ओर रस्ता हों तो बताओं।

सुरभि…आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप'को कितनी बार कहा, ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करो लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। आप'का अंधा विश्वास करना ही आप'के सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।

राजेंद्र...सुरभि कहना आसान हैं लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

सुरभि…मैं कौन सा आप'से कह रहा हूं, जा'कर उनके गिरेबान पकड़ो ओर कहो तुम'ने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया? मैं बस इतना कह रहीं हूं आप उन्हे शक के केंद्र में ले'कर उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करों।

राजेंद्र…ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।

सुरभि…हां मैं खुश हूं ओर कुछ रह गया हों तो बोलों वो भी पूरा कर देती हूं।

राजेंद्र…अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसे शुरू करे।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप कौन से प्यार की खेल, खेलने की बात कर रहें हों। मुझे आप'के साथ कोई प्यार का खेल नहीं खेलना।

राजेंद्र…सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बन मुझे रिझा रही थीं। मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। मुझ पर इतना जुल्म न करों मैं सह नहीं पाऊंगा।

सुरभि उठ गई फिर पल्लू को सही करते हुए दूर हट गईं ओर बोली…आप'को जिस काम के लिए रिझाया था वो हों गया। प्यार का खेल खेलने का ये सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक प्रतिक्षा कर लिजिए।

राजेंद्र उठा फिर सुरभि के पास जानें लग गया सुरभि पति को पास आते देख ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लग गई। सुरभि को पीछे जाते देख राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लग गया राजेंद्र को लंबा डग भरते देख सुरभि मुस्कुराते हुए जल्दी जल्दी पूछे होने लग गई। पीछे होते होते जा'कर दीवाल से टिक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से टिकते देख मुस्कुरा दिया फिर सुरभि के पास जा कमर से पकड़कर खुद से चिपका लिया ओर बोला…सुरभि अब कहा भाग कर जाओगी अब तो तुम्हारा चिर हरण हो'कर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।

सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे, आप'को इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।

राजेंद्र...गजब करती हों तुम्हें क्यों छोडूं मैं नहीं छोड़ने वाला मैंने तो ठान लिया आज तो पत्नी जी को ढेर सारा प्यार करके ही रहूंगा।

राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा दिया सुरभि राजेंद्र के होटों पर ऊंगली रख दिया फिर बोली…हटो जी आप'का ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं आप'का ढेर सारा प्यार।

राजेंद्र…तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो ओर किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। मेरी तो एक ही रानी हैं। जितना प्यार करना चाहूं करने देना होगा। नहीं तो दूसरी रानी ले आऊंगा ही ही ही

सुरभि...लगता हैं आप'का मन मुझ'से भर गया जो आप दूसरी लाने की बात कर रहे हों। जाओ जी मुझे आप'से बात नहीं करना हैं ले आओ दूसरी बीवी।

इतना बोल सुरभि मुंह फूला लिया ओर राजेंद्र का हाथ जो सुरभि के कमर पर कसा हुआ था उससे खुद को छुड़ाने लग गई। तभी कोई "राजा जी, राजा जी"आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया आवाज सुन राजेंद्र सुरभि को खुद से ओर कस के चिपका लिया फिर बोला…कौन हों मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।

शक्श…राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं आप'को उनके साथ कहीं जाना था।

धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी को किस काम के लिए बुलाया था ओर कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ दिया फ़िर बोला…धीरा तुम जाओ ओर मुंशी को जलपान करवाओ मैं अभी आया।

धीरा…जी राजा जी।

इतना कह धीरा चल दिया। राजेंद्र निराश हो कपडे लिया फिर बाथरूम की ओर चल दिया। राजेंद्र को निराश देख सुरभि मुस्कुराते हुए बोली….क्या हुआ आप'ने मुझे छोड़ क्यों दिया। आप'को तो ढेर सारा प्यार करना था। प्यार करिए न देखिए मैं तैयार हूं।

राजेंद्र…जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।

राजेंद्र को ठेंगा दिखा सुरभि रूम से बाहर चल दिया। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों'कर रूम से बहार आ बैठक की ओर चल दिया। जहां मुंशी बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था। राजेंद्र को देख मुंशी खडा हों गया फिर नमस्कार किया। मुंशी को नमस्कार करते देख राजेंद्र मुस्करा दिया फिर बोला…मुंशी तुझे कितनी बार कहा तू मुझे देख नमस्कार न किया कर, सीधे आ'कर गले मिला कर पर तू सुनता ही नहीं तुझे ओर कितनी बार कहना पड़ेगा।

राजेंद्र जा'कर मुंशी के गले मिला फिर अलग होकर मुंशी बोला…राना जी ये तो आप'का बड़प्पन हैं। मैं आप'के ऑफिस का एक छोटा सा नौकर हूं ओर आप मालिक हों। इसलिए आप'का सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।

राजेंद्र…मुंशी तू अपना धर्मग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।

मुंशी…राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।

राजेंद्र…भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।

दोनों हंसते मुस्कुराते घर से चल दिया लेकिन कोई हैं जिसे इनका याराना पसंद नहीं आया और वो हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनकर रूम से बाहर आ गई फिर राजेंद्र और मुंशी के दोस्ताने व्यवहार को देख तिलमिला गई ओर बोली…इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखी हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।

सुकन्या को अकेले में बदबड़ते देख सुरभि बोली…छोटी क्या हों गया, अकेले में क्यों बडबडा रहीं हैं?

सुकन्या…कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।

सुरभि…तो क्या भूत से बाते कर रहीं थीं?

सुकन्या आ'कर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लग गई सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था ओर सभी को सोचने पर मजबूर कर चुकी थीं। इसलिए सुकन्या का आदर्श व्यवहार करना किसी के गले नहीं उतर रहा था। सभी को ताकते देख सुकन्या रतन और धीरा से बोली…क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना अपना काम करों।

सुकन्या कह मुस्कुरा दिया फिर इशारे से ही दोनों को जानें के लिए दुबारा कहा। तब दोनों सिर झटककर चल दिया। दोनों के जाते ही सुरभि बोली…छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलता तू कभी किसी रूप में होती हैं तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आता तेरे मन में किया चल रही हैं।

सुकन्या…दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं ओर गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।

सुरभि...मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहने लगीं तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनें व्यवहार से सभी को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

सुकन्या…दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने, मैं काम ही ऐसा करती हूं।

सुरभि…मैं भला क्यो तने मरने लगीं? तू छोड़ इन बातों को, ये बता तू आज मेरे रूम मे कैसे आ गई? इससे पहले तो कभी नहीं आई।

सुकन्या…अब तक नहीं आई ये मेरी भूल थीं। अब मैं रोज आप'के रूम में आऊंगी ओर आप'से ढेर सारी बातें करूंगी।

सुरभि…तुझे रोका किसने हैं तू कभी भी मेरे रूम में आ सकती हैं जितनी मन करे उतनी बाते कर सकती हैं।

ऐसे ही दोनों बाते करने लग गए। जब दो महिलाएं एक जगह बैठी हों तो उनके बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। दोनों देवरानी जेठानी को बातों में मशगूल देख धीरा बोला…काका आज इस नागिन को हों क्या गया? रानी मां से अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं। अच्छे से बाते कर रहीं हैं।

रतन…धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो जमा किया हुआ सभी ज़हर हम पर ही उगल देगी। उनके ज़हर का काट किसी के पास नहीं हैं। हमारे पास तो बिल्कुल नहीं!

धीरा…काका सही कह रहे हों, न जानें कब महल में ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ सकें।

दोनों बाते करने मैं इतने मग्न थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब ध्यान गया तो उसे देख दोनों सकपका गए फ़िर डरने भी लगें। रतन किसी तरह डर को काबू किया ओर बोला…छोटी मालकिन आप'को कुछ चाहिए था तो आवाज दे दिया होता। यह आने का कष्ट क्यों किया?

सुकन्या…आवाज़ दिया तो था। धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन सुनाई देता तब न, सुनाई देता भी कैसे, दोनों कामचोर बातों में जो माझे हुए थे। अच्छा ये बताओ तुम दोनों किस नागिन की बात कर रहें थें? कौन ओझा किस नागिन की फन कुचल, ज़हर वाली दांत तोड़ने वाला हैं।

सुकन्या की बाते सुन दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लग गए ओर सोचने लगे अब क्या जवाब दे? एक दूसरे को ताकते देख सुकन्या बोली…तुम दोनों एक दूसरे को तकना छोड़ कुछ बोल क्यों नहीं रहें? मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की ओर देखकर) दीदी ने तुम सभी को सिर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।

रतन समझ गया सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। तो रतन खुद का बचाव करने के लिए एक मन घड़ंत कहानी बना बताने लग गया।

"छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया। हम दोनों उस नागिन की बात कर रहें थे न जाने अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत तोड़ेगा।

रतन कि बात सुन धीरा समझ गया। एक झूठी कहानी बना सुकन्या को सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला...हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात कर रहा था। आप को किया लगा, हम महल की बात कर रहे थे जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं, तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे?

सुकन्या…अच्छा अच्छा ठीक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ, जल्दी से दो गिलास पानी ले'कर आओ काम चोर कहीं के।

सुकन्या कहकर चली गईं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रख धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने लग गए। बे तरतीब चल रही धड़कने कुछ काम हुआ तब रतन बोला...धीरा जल्दी जा नागिन को पानी पिला आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगलने आ जायेगी।

धीरा दो गिलास ले'कर एक प्लेट पर रखा फिर पानी भरते हुए बोला…काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लिया होता। तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।

रतन…बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा ओर पानी पिलाकर आ लगता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।

धीरा जा'कर दोनों को पानी दिया फ़िर किचन मे चला गया ओर अपने काम में लग गया। ऐसे ही दिन बीत गया। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। न जानें दोनों को घर लौटने में ओर कितना देर लगने वाला था। इसलिए बिना वेट किए सुरभि, सुकन्या रघु और अपश्यु खाना खा'कर अपने अपने रूम में चले गए। सुकन्या रूम में आ'कर दो पल स्थिर से नहीं रुक पा रहीं थीं। उसके मन में हल चल मची हुई थी। साथ ही पेट पर वजन भी पड़ रहा था क्योंकि दिन में सुनी सुरभि और राजेंद्र की बाते ओर अभी खाया खाना, दोनों मिलकर बदहजमी का कारण बनता जा रहा था। बदहजमी से छुटकारा पाने का उसे एक ही रस्ता दिखा, दिन में सुनी बाते पति को बता दिया जाएं। लेकिन रावण अभी तक घर नहीं लौटा था इसलिए सुकन्या परेशान हों'कर बोली…जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं। उसी दिन ये लेट आते हैं। ना जानें कब आयेंगे। ये बाते ओर कितनी देर तक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों का बोझ ढोती रहूंगी।

सुकन्या अकेले अकेले बडबडा रही थीं ओर ये सोच टहल रहीं थीं शायद टहलने से बेचैनी थोड़ा कम हों जाएं लेकिन फायदा कुछ हों नहीं रहा था। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौट आए। नौकरों को खाना लगाने को बोल हाथ मुंह धोने रूम में चले गए। रावण को देख सुकन्या एक चैन की स्वास लिया फिर बोली…आप आज इतने लेट क्यों आए? आप से कितनी जरूरी बात करना था ओर आप आज ही लेट आए। जिस दिन आपसे जरूरी बात करना होता हैं आप उसी दिन लेट आते हों। बोलों ऐसा क्यों करते हों?

रावण…अजीव बीबी हो खाना खाया कि नहीं खाया ये पुछने से पहले शिकायत करने लग गईं। तुम अपना दुखड़ा ही सुना दो आज तुम्हारे बातों से ही पेट भरा लुंगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या मुंह बना लिया फ़िर बोली…आप तो ऐसे कह रहें हों जैसे मुझे आप'की भूख की परवा नहीं जाइए पहले खाना खा'कर आइए फिर बात करेगें।

रावण...अरे तुम तो रूठने लग गईं। अच्छा बताओ किया कहना चाहते हों। मैं भुख बर्दास्त कर सकता हूं लेकिन तुम मुझसे रूठ जाओ ये मुझे बर्दास्त नहीं।

इतना कह रावण कान पकड़ लिया। जिससे हुआ ये सुकन्या के चहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए सुकन्या बोली...आप पहले खाना खाकर आइए फिर बात करते हैं।

रावण मुस्कुरा दिया फिर हाथ मुंह धोने बाथरूम चला गया। ईधर राजेंद्र रूम में पहुंचा, सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देख किताब बंद कर साइड में रख दिया फिर बोली....आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं?

राजेन्द्र…कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं?

किताब के बरे मे जानें की ललक देख सुरभि को खुराफात सूजा इसलिए मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली…कामशास्त्र पढ़ रहीं थी। किताब के बरे मे ओर कुछ जानना हैं।

राजेन्द्र…ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा कम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।

सुरभि…अधूरा कम बाद में पूरा कर लेना अभी जा'कर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाला हैं।

राजेन्द्र…लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।

सुरभि…आप'की रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं ओर आप'का तो कोई खोज खबर ही नहीं था।

राजेंद्र…अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।

दोनों एक दुसरे को देख मुस्कुरा दिया फिर राजेन्द्र हाथ मुंह धो'कर कपडे बादल खाना खाने चल दिया। जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते करते भोजन करने लग गए। भोजन करने के बाद एक दूसरे को गुड नाईट बोल अपने अपने कमरे में चले गए। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों गई

सुकन्या…भोजन करने में कितना समय लगा दिया। इतनी देर तक क्या कर रहें थें?

राजेन्द्र…दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात कर रहा था इसलिए खाना खाने में थोड़ा ज्यादा वक्त लग गया। तुम बताओ क्या कहना चाहते हों?

सुकन्या…मुझे लगता हैं सुरभि और जेठ जी को हमारे साजिश के बारे में पता चल गया हैं।

ये सुन रावण के पैरों तले जमीन खिसक गया। उसे अपने बनाए साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लग गया। जिसे छुपाने के लिए न जानें कितने कांड रावण ने किया फिर भी हूआ वोही जिसका उसे डर था लेकिन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझ नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जा'कर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला... हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। तुम्हें कैसे पता चला? ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।

सुकन्या…इतनी सी बात के लिए जेठ जी भला आपको क्यो मरने लगे?

रावण…इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं। तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चला?

सुकन्या…आप'के जानें के बाद मैं कुछ काम से निचे गई जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा। मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लग गई। सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगता हैं कोई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए ओर आगे जो जो सुकन्या छुप कर सूना था एक एक बात बता दिया जिसे सुनकर रावण बोला...ये तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं। मुझे लगता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला नहीं तो मैं आज महल में नहीं जेल में बंद होता या फिर दाद भाई मेरा खून कर देते।

सुकन्या…आप क्या कह रहे हो? जेठ जी आप'का खून क्यों कर देते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सभी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई जेठ जी आप'को जेल भी तो भिजवा सकते हैं।

रावण…सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।

सुकन्या…आप कहना क्या चाहतें हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन मैं इतना तो समझ गई हूं आप'ने मुझ'से बहुत कुछ छुपा रखा हैं। बताइए न आप क्या छुपा रहे हों?

रावण…हां बहुत कुछ हैं जो मैंने तुम्हे नहीं बताया। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ ओर पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं।

सुकन्या…मुझे जहां तक जानकारी हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं। तो फ़िर ओर रह ही क्या गया? जिसे आप पाना चाहते हों।

रावण…सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं जिसे पा लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।

गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुन सुकन्या अचंभित हों गई। एक पल के लिए सुकन्या की आंखें मोटी हों गई। जैसे लालच उस पर हावी हों रहा हों एकाएक सुकन्या सिर को तेज तेज झटका देने लग गई। ये देख रावण बोला...सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।

सुकन्या…कैसे खुद पर नियंत्रण रख पाऊं न जानें आप कैसे खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं।

रावण...खुद पर नियंत्रण रखना होगा नहीं तो हमारे किए कराए पर पानी फिर जायेगा फ़िर गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा। जिसकी जानकारी सिर्फ दादाभाई को हैं। जब तक मैं जानकारी न निकल लेता तब तक खुद पर नियंत्रण रखना होगा।

सुकन्या…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ जेठ जी जानते हैं। तो फिर आप को कैसे पता चला?

रावण…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था। जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। दलाल मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उससे गुप्त सम्पत्ति कहा रखा हैं पूछा तो उसने कहा उसे सिर्फ वसीयत की जानकारी है गुप्त संपत्ति कहा रखा है वो नहीं जनता तब हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जानने के लिए साजिश रचना शुरू कर दिया।

रावण ने आगे कहा…हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी होगा। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेजकर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा दिया करता था। जो नहीं मानते उनको रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं, ऐसी झूठी खबर दिया करता था। ये जानकर लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने से मना कर देते थे।

रावण...मैंने दादाभाई पर भी नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चल जाता, दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गए ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बरे में पाता चल गया फिर मैं उन गुप्तचरों को ढूंढूं ढूंढूं कर सभी को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहा होगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या अचंभित रह गईं उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहीं थीं। सुकन्या को तकते देख रावण बोला…सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।

सुकन्या…जिन्दा हूॅं लेकिन आप'से नाराज़ हूं आप'ने इतना बड़ा राज मुझ'से छुपाया और इतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।

रावण…गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ रहा हैं मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।

सुकन्या…अब मैं आप'के साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी। हमे आगे क्या करना चाहिए? जब साजिश की बात खुल गई हैं। तो देर सवेर जेठ जी साजिश करने वाले को ढूंढ लेंगे। तब हमारा क्या होगा?

रावण…दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें यही रुक जाना पड़ेगा फिर आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।

सुकन्या…ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगा फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा। ऐसा हुआ तो गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा।

रावण…अभी के लिए हमें रुकना ही पड़ेगा नहीं तो हमारा भांडा फुट जायेगा। आगे चल कर मैं कोई न कोई रस्ता ढूंढ लुंगा।

सुकन्या…ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।

दोनों साथ में लेट गए रावण थका हुआ था। इसलिए लेटने के कुछ वक्त बाद नींद की वादी में खो गया लेकिन सुकन्या को नींद नहीं आ रहीं थीं। एक हाथ सिर पे रख सुकन्या मन ही मन बोली...मैंने थोड़ा लालची होने का ढोंग क्या किया अपने मुझे सभी राज बता दिया। मुझे उम्मीद नहीं था आप इतने लालची निकलोगे मुझे तो लगता हैं मैं एक गलत इंसान से शादी कर लिया। पहले जान गया होता तो आप से शादी ही न किया होता। आप इसी लिए मुझे बार बार दिखावे की जिंदगी जीने को कह रहे थें। लेकिन आप नहीं जानते मैं दिखावे की जिंदगी ही जी रहीं हूं। न जानें कब तक ओर मुझे बुरे होने का ढोंग करना पड़ेगा। अब मुझसे ओर नहीं होता हे भगवान कुछ ऐसा कर जिससे मुझे दिखावे की जिंदगी न जीना पड़े।

कुछ वक्त तक ओर खुद के बरे मे सोच सोच कर सुकन्या करवटें बदलती रहीं फिर सो गई। उधर सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लगे हुए थे। दोनों काम कलां में मग्न थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक किसी को नहीं हुआ।

आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही। यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Abhi tak ki kahani ek lay aur suniyojit tarike se aage badta raha patro ko diye gaye kardar ke anuroop writer ji ne unse abhinay karwane koyi bhi kotai nahi varti bas kuch jagah me vartni ke khamiya thi jise chod diya jaye to story abhi tak aprtim raha.
 
Well-known member
2,506
7,327
143
Update -2


किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को कीचन में आने की क्या जरूरत थीं हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं कीचन में क्यों नहीं आ सकती यहां घर और कीचन मेरा हैं। मै कहीं भी आ जा सकती हूं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां न बोले फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला...रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लग गईं। सुरभि की तारीफ करते सुन सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सका किया जब सहन सीमा टूट गया तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली...क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि…छोटी एक बुजुर्ग से बात करने का ये कैसा तरीका हैं। दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तिलमिला उठा और बोला…दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं, नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुन सुरभि को गुस्सा आ गया सुरभि गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकता। ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे के पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुन वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल पाया, मन की बात मन में दावा लिया। सुरभि भी अछूता न रहा सुकन्या की बातो से उसे भी गुस्सा आ गया लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चह रहीं थी इसलिए चुप रह गईं पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई। नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़ सुकन्या पैर पटकते हुए कीचन से बहार को चल दिया। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का खड़े खड़े गाल सहला रहा था। सुरभि पास गई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली…धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला…रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने आप'का अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि...अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी ला'कर सुरभि को बैठा दिया फिर बोला…रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जा'कर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना भेज दिया जायेगा।

सुरभि…मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला…छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा...नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग गए। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंच, सुकन्या मुंह फुलाए रूम में रखा सोफे पर बैठी थीं, पास जा'कर सुरभि बोली…छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता क्या हैं?

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत हुआ फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकता।

सुकन्या…मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि...छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं, देवरानी बहन समान होता हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ जाकर अपना काम करों।

सुरभि से ओर सहन नहीं हुआ। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई। अंचल से आंखों को पूछते हुए सुरभि चली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होता। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं हैं। कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं? जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहीं फिर बेड पर लेट गई। सुरभि सिसक सिसक कर रोते हुऐ रूम में पहुंचा फिर बेड पर लेट गई। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला ने देख लिया था। जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गईं। सुरभि को रोता हुए देख पास जा बैठ गई फ़िर बोली…रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुन उठकर बैठ गईं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…दाई मां आप कब आएं?

दाई मां...रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां…बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकल लेते हैं।

सुरभि…दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकाल लेती हैं।

दाई मां...रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि...ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगे जाएगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगाते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लग गई। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और ख़ुद भी खा लिया। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगें। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरत रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि रोकते हुए औरत बोली...नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला…मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा...अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला…कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा...ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा…मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा...सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश…ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं कर। काम पड़े तो और ला देता हूं।

मनोरमा…आप तो चुप ही करों।

कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली...तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा...कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला…रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश…क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…ही ही ही मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Amazing skill. Superb story
 
Will Change With Time
Moderator
9,195
17,093
143
Abhi tak ki kahani ek lay aur suniyojit tarike se aage badta raha patro ko diye gaye kardar ke anuroop writer ji ne unse abhinay karwane koyi bhi kotai nahi varti bas kuch jagah me vartni ke khamiya thi jise chod diya jaye to story abhi tak aprtim raha.

Bahut bahut dhaanywad wet Vision ji
 

Top