Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

expectations
22,911
14,900
143
Bilkul sar mere kahne ka matlab hai kahani ke har patra ke sath insaaf kiya gaya hai sab ka roll clear likha gaya hai isme nahi to puri kahani Raja Rani par khatam ho jati hai baki ke patron ka astitva chipkar rah jata hai lekin yahan aisa nai hua hai uske baad samjhdaar ko ishara kafi hota hai
Mai to pahle hi samjh gaya tha lekin writer nadaan sa hai ekdam bholu yeda banke peda khane wala hai ishiliye majaak kiya :dost:
 
Will Change With Time
Moderator
9,424
17,266
143
Bilkul sar mere kahne ka matlab hai kahani ke har patra ke sath insaaf kiya gaya hai sab ka roll clear likha gaya hai isme nahi to puri kahani Raja Rani par khatam ho jati hai baki ke patron ka astitva chipkar rah jata hai lekin yahan aisa nai hua hai uske baad samjhdaar ko ishara kafi hota hai

Jankar acha laga ki apko mere likhne ka andaja pasnd aaya.
 
Will Change With Time
Moderator
9,424
17,266
143
Mai to pahle hi samjh gaya tha lekin writer nadaan sa hai ekdam bholu yeda banke peda khane wala hai ishiliye majaak kiya :dost:
Aare kahe pol khol rahe hai. Itni hard work karta hoon to kam se kam ye to jaan hi sakta hoon readers ko mere likhne ka andaja pasnad aa raha hai ki nahi
 
Well-known member
1,131
1,462
143
Update - 64


अगले दिन दोपहर का समय हों रहा था। राजमहल की सभी महिला सदस्यों में किसी विषय पर गहन मंत्रणा हों रहीं थीं। लेकिन मंत्रणा के बीच बीच में पुष्पा महारानी कुछ ऐसा कह देती जिसे सुनकर बाकी महिलाएं हंस हंसकर लोटपोट हों जाती। जिस कारण मंत्रणा में कुछ क्षण का विराम लग जाता एक बार फिर शुरू होता फिर वहीं अंजाम होंता। इतना हंसे इतना हंसे कि सभी के पेट में दर्द हों गया लेकिन हसीं हैं की रूकने का नाम नहीं ले रहें थे। मंत्रणा और हंसी का खेल चल ही रहा था कि उसी वक्त राजमहल के बाहर से किसी कार के हॉर्न की आवाज आई जिसे सुनते ही सुरभि बोलीं…बहू जरा जाकर देखो तो कौन आया है?

पुष्पा…मां बाहर जाकर देखने की जरूरत ही क्या हैं? जो भी आए हैं उन्हें भीतर तो आना ही हैं। भीतर आने दो फ़िर देख लेंगे।

सुरभि…फ़िर भी बहू को जाकर देखना चहिए। जाओ बहू जाकर देखो शायद तुम्हारे लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला कुछ हों।

कमला…मुझे जीतना आश्चर्यचकित करना था आपने कल खरीदारी करते समय ही कर दिया था। अब ओर क्या बच गया जो मुझे आश्चर्यचकित कर दे।

सुरभि…कुछ ऐसा जिसकी तुमने उम्मीद न कि हों।

"उम्मीद न की हों।" इतना दौहराकर कमला अपने मस्तिष्क में जोर देने लग गईं। तब सुरभि बोलीं…बहू मानसिक खींचतान करने से अच्छा जाकर देख लो।

"ठीक हैं मम्मी जी" बोलकर कमला बाहर की ओर चल दिया लेकिन कमला का मस्तिष्क अब भी उसी बात में उलझा हुआ था। उन्हीं उलझनों को सुलझाते हुए कमला दो चार कदम चली ही थी कि द्वार से भीतर आ रहें शख्स को देखकर कमला की कदम जहां थीं वहीं ठहर गईं। ललाट पे आश्चर्य का भाव तो था ही साथ ही अन्तर मन में भावनाओ का ज्वार भी आ चुका था। एक बार पलटकर सुरभि को देखा जिसके मुखड़े पर तैर रहीं मुस्कान बता रहीं थीं कि मैंने बिल्कुल सही कहा था तुम्हारी उम्मीद से पारे कुछ हैं और इशारे से कह दिया जाओ आगे बढ़ो।

एक बार फ़िर से द्वार की ओर कमला पलटी अबकी बार एक और चेहरा दिखा दोनों साथ में खड़े मुस्कुरा रहें थे। यह देख कमला की आंखों के पोर भींग गईं। बस "मां पापा" ये दो शब्द मुंह से निकला और कमला जितनी तेज भाग सकती थी उतनी तेजी से दौड़कर दोनों के पास पहुंचकर रूक गईं। इसलिए रूकी क्योंकि कमला तह नहीं कर पा रही थीं कि पहले किससे लिपटे मन तो उसका दोनों से लिपटने का कर रहा था। मगर एक ही वक्त में दोनों से लिपटे तो लिपटे कैसे? शायद महेश और मनोरमा बेटी की उलझन समझ गए होंगे। इसलिए दोनों ने एक हाथ से एक दूसरे का हाथ थामे रहें और खाली हाथों को सामने की ओर फैला दिया। बस कमला को ओर किया चहिए अपनी दोनों बाहें फैलाकर मां बाप से एक साथ लिपट गई। प्रतिक्रिया स्वरूप महेश और मनोरमा के हाथ बेटी के सिर पे पहुंच गए। सिर को सहलाते हुए अपना प्यार लूटने लग गए।

मां बाप के प्यार का अहसास पाते ही कमला की रूलाई फूट पड़ी। नही रोते, नहीं रोते कहकर बेटी को सांत्वना दे रहे थे। मगर कई दिनों बाद बेटी से मिलने की तड़प या कहूं ललक दोनों मां बाप के ह्रदय में भी ज्वार ला दिया था। उनकी आंखों ने बगावत का बिगुल फुक दिया और हृदय में उठ रहीं भावनाओ का ज्वार नीर बनकर बह निकला।

रोती हुई कमला ने अल्प विराम लिया खुद को मां बाप से थोड़ा सा अलग किया "आप दोनों आ रहें थे तो मुझसे झूठ क्यों बोला" बोलते हुए मां बाप के आंसू को पोंछा और फिर से लिपट गईं। बेटी की इस व्यवहार ने दोनों के लवों पे मुस्कान ला दिया। आंखों में नीर लवों पे मुस्कान वाला यह दृश्य हृदय को गुदगुदा देने वाला बन गया।

मां बाप बेटी के मिलन की यह दृश्य देखकर सुरभि और सुकन्या को अपने वैवाहिक जीवन के शुरुवाती दिन याद आ गए शायद यहीं एक वजह रहा हों जिस कारण सुकन्या के आंखों में सिर्फ़ आंसू था वहीं सुरभि की आंखों में हल्की नमी और लवों पे खिला सा मुस्कान और महारानी पुष्पा की भाव तो निराली थीं। लवों पे मुस्कान आंखों में नमी और ठोढ़ी पे उंगली टिकाएं विचार की मुद्रा बनाई हुई थीं।

"हमारी प्यारी सखी रोना धोना हों गया हों, मां बाप से मिल लिए हों तो हमसे भी मिल ले हम भी साथ आए हैं।" ये कहने वाली चंचल और शालू थीं जो अभी तक पीछे खड़ी देख रहीं थीं। इन आवाजों को सुनते ही कमला थोड़ा सा उचकी और मां बाप के कन्धे से पीछे देखने लगीं।

चंचल…अंकल आंटी बेटी से मिल लिए हों तो थोड़ा रस्ता दीजिए हमे भी अपनी सखी से मिलने दीजिए

महेश और मनोरमा तुरंत किनारे हट गए फ़िर कमला दोनों सखियों से बड़े उत्साह से मिली फिर सभी के साथ आगे को बढ़ गईं। औपचारिक परिचय होने के बाद सुरभि बोलीं…समधी जी समधन जी मुझे आपसे बहुत शिकायत है। हमने आपको इसलिए नहीं बुलाया की आते ही हमारी बहू को रुला दो (फ़िर कुछ कदम चलके कमला के पास गईं और उसके सिर सहलाते हुए बोलीं) बहू हमें तुम्हारी खुशी से चहकता मुखड़ा देखना था इसलिए तो समधी जी और समधन जी की आने की बाते तुमसे छुपाए रखा लेकिन तुमने तो हमें अपना रोना धोना दिखा दिया। अब रोए सो रोए आगे बिल्कुल नहीं रोना।

कमला सिर्फ हां में सिर हिला दिया और मनोरमा बोलीं…समधन जी भला कौन मां बाप अपने बेटी को रूलाना चाहेगा मगर यह भी सच है की बेटी अब कभी कभी अपने मां बाप से मिल पाएगी और जब मिलेगी शुरू शूरू में रोना आ ही जायेगी।

सुरभि…समझ सकती हूं मैं भी किसी की बेटी हूं और उस दौर से गुजर भी चुकी हूं। अच्छा बाकी बाते बाद में होगी अभी आप लोग थोड़ी विश्राम ले लो। बहू जाओ इनको अतिथि कक्ष में ले जाओ तब तक मैं इनके जल पान की व्यवस्था करवाती हूं। (फिर धीरा को आवाज देकर बोलीं) धीरा अतिथियों के लिए जल पान की व्यवस्था करो और किसी को भेज कर इनके सामानों को अतिथि कक्ष में रखवा दो।

"रानी मां किसी को भेजने की जरूरत नहीं हैं हम लेकर आ गए।" एक नौजवान दो बैग हाथ में लिए भीतर आते हुए बोला उसके पिछे पिछे तीन नौजवान ओर दोनों हाथों में एक एक बैग उठाए भीतर हा रहें थे। अतिथि चार और साथ लाए बैग आठ यह देख सुरभि के लवों पे मुस्कान तैर गई। मुस्कुराने की वजह क्या थी यह तो सुरभि ही जानें।

महल बहुत बड़ी जगह में बना हुआ था जिसके एक हिस्से में परिवार के सदस्य रहते थे तो दूसरे हिस्से में अतिथि कक्ष बना हुआ था। एक कमरे के सामने आते ही पुष्पा बोलीं…भाभी आप अंकल आंटी को उनका कमरा दिखाइए और आपके सहेलियों को उनके कमरे तक मैं छोड़ आती हूं।

कमरे का द्वार खोलकर कमला मां बाप के साथ भीतर चली गईं। शालू और चंचल को साथ लिए पुष्पा आगे बड़ गईं। एक ओर कमरे के पास पहुंच कर द्वार खोलते हुए पुष्पा बोलीं…आप दोनों को अलग अलग कमरा चहिए की एक ही कमरे में रह लेंगे।

चंचल…एक ही कमरा चलेगा क्यों शालू?

शालू…बिल्कुल चलेगा हम दोनों लड़कियां हैं और सोने पे सुहागा हम दोनों सखियां भी हैं तो अलग अलग कमरा क्यों लेना।

एक ही कमरे में रहने की सहमति होते ही तीनों कमरे में प्रवेश कर गए। कमरे में कहा किया हैं इसकी जानकारी देने के बाद पुष्पा बोलीं…किसी भी चीज की जरूरत हों तो बेझिझक कह दीजिएगा।

चंचल…कुछ भी

पुष्पा…हां कुछ भी मांग लेना

"खंभा मिल सकता है।" हाथों के सहारे दिखते हुए चंचल बोलीं

पुष्पा…हाआ आप दोनों पीते हों।

चंचल…कभी कभी लिटल लिटल डकार लेते हैं।

पुष्पा…लिटल लिटल क्यों ज्यादा ज्यादा पियो किसने रोका हैं।

शालू…ज्यादा ज्यादा करके कहीं ओवर फ्लो न हों जाएं।

पुष्पा…ओवर फ्लो हुआ तो कोई बात नहीं उसे भी रोकने की व्यवस्था कर दूंगी।

चंचल…वाहा पुष्पा जी आप तो पहुंची हुई चीज मालूम पड़ती हों कहीं आप भी छुप छुपकर लिटल लिटल डकार तो नहीं लेती।

पुष्पा…न न आप गलत रूट पे गाड़ी चला दिया मैं तो बस इसलिए हां बोला क्योंकि आप राजामहल के अतिथि हों। अतिथियों के इच्छाओं का ख्याल रखना हमारे लिए सर्वोपरि हैं।

शालू…अरे महारानी जी ज्यादा लोड न लो नहीं तो वजन तले दब जाओगी। चंचल तो सिर्फ़ मसखरी कर रहीं थीं हम तो उस बला को छूते भी नहीं पीना तो दूर की बात हैं।

पुष्पा…थैंक गॉड बचा लिया नहीं तो आप दोनों की खाम्बे का जुगाड करते करते मेरी महारानी की पदवी छीन जाती।

पुष्पा ने अभिनय का ऐसा नमूना दिखाया की शालू और चंचल हंस हंस के लोट पोट हों गईं। हस्ते हुए चंचल बोलीं…महारानी जी आपके बारे में कमला से सिर्फ सुना था आज देख भी लिया कमाल हों आप।

पुष्पा…सुना तो आप दोनों के बारे में भी हैं भाभी कह रहीं थीं उनकी दो खास सखियां है जो नंबर एक चांट हैं।

दोनों एक साथ "क्या चांट बोला" इतना कहकर कमरे से बाहर कि ओर दो चार कदम बढ़ाया ही था कि पुष्पा बोलीं…अरे आप दोनों कहा चले

"कमला से निपटने जा रहें हैं। ससुराल हैं तो क्या हुआ हमारी गलत प्रचार करेंगी। कुछ भी हां…" दोनों ने साथ में बोला

पुष्पा…अरे बाबा रूको तो भाभी मां बाप से बतियाने में मस्त हैं। जब तक भाभी बतियाती है तब तक आप दोनों विश्राम करके तरोताजा हों लीजिए फ़िर अच्छे से भाभी से निपट लेना।

"ये भी ठीक हैं" इतना बोलकर दोनों वापस मुड़ी फिर शालू बोलीं…महारानी जी हम तीनों हम उम्र हैं इसलिए संबोधन में औपचारिकता ठीक नहीं लग रहीं।

पुष्पा…मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं बल्कि मुझे तो अच्छा लगेगा बस इतना ध्यान रखिएगा मेरा नाम पुष्पा हैं महारानी नहीं।

महारानी कहने को लेकर तीनों में छोटा सा वादविवाद हुआ। शालू और चंचल ने अपनी अपनी दलीलें पेश की और पुष्पा उन दलीलों को सिरे से नकार दिया। अंतः शालू और चंचल झुक गए पुष्पा की बातों पे सहमति जाता दी फिर तय ये हुआ कि तीनों एक दूसरे का नाम लेकर संबोधन करेंगे फ़िर पुष्पा उनके कमरे से बाहर निकल गईं। मन बनाया कमला के पास जानें का, कमला मां बाप के साथ थी तो उस ओर मुड़ गईं लेकिन जाते जाते कुछ सोचकर वापस पलट गई और अपने कमरे में चली गईं। कमरे में विराजित टेलीफोन के साथ थोड़ी दुष्टता की और किसी को फोन लगा दी। एक रिंग दो रिंग तीन रिंग पर मजाल जो कोई फोन रिसीव कर ले "ये अंतिम बार हैं अगर फोन रिसीव नहीं की तो खुशखबरी सुनने से वंचित रह जाओगे।" इतना बोलीं और फिर से फोन लगा दी, फोन की रिंग अंतिम पड़ाव पे थीं। कभी भी कट सकता था लेकिन भला हों उस मानव का जिसने फोन कटने से पहले ही रिसीव कर लिया।

पुष्पा…रमन भईया कहा थे कब से फोन लगा रहीं थीं। खामाखा अपने महारानी को परेशान कर दिया आप जानते है न आपको इस गलती की सजा मिल सकता हैं।

रमन…माफ करना बहन जी, नहीं नहीं महारानी जी मैं बाहर लॉन में था इसलिए पाता नहीं चला कि फोन बज रहा हैं। वो तो भला हों छोटू का जो उसने बता दिया वरना आज अच्छा खासा नाप जाता।

पुष्पा…लॉन में कर किया रहें थे। कहीं पहाड़ी वादी का लुप्त लेते हुए अपनी मासुका शालू को याद तो नहीं कर रहें थे?

पुष्पा द्वारा पुछा गया यह सवाल रमन के मुंह पे ताला लगा दिया। फोन के दूसरी ओर से आवाजे आनी बंद हों गईं। मतलब साफ था पुष्पा का अनजाने में चलाई गई तीर ठीक निशाने को भेद गई। बस फिर क्या पुष्पा चढ़ बैठी एक ही सवाल बार बार दौहराकर रमन के मस्तिष्क के सारे पुर्जे ढीला कर दी। अंतः हार मानकर रमन बोला…मेरी बहना कितनी प्यारी हैं। एक क्षण में अंदाज लगा लिया उसका भाई किसे याद कर रहा था। हां रे तूने सही कहा मैं शालू को ही याद कर रहा था।

पुष्पा…शालू को इतना ही याद कर रहे थे तो मिलने चले जाओ किसी ने रोका थोड़ी न है।

रमन…रोका तो नहीं पर जाऊ कैसे उसे बता ही नहीं पाया कि मुझे उससे प्यार हों गया हैं।

पुष्पा…हां ये भी सही कह रहे हों। मैं कुछ कर सकती हूं लेकिन मुझे…।

"हां हां तू जो मांगेगी दिलवा दूंगा बस बता दे।" पुष्पा की बात कटकर रमन बोला

पुष्पा…ठीक हैं फिर आप अभी के अभी राजमहल आ जाओ।

रमन…बस तू फोन रख मैं उड़ते हुए पहुंच जाऊंगा।

पुष्पा…न न उड़के आने की जरूरत नहीं हैं। धीरे धीरे और सावधानी से कार चलाते हुए आना।

रमन…जैसी आपकी आज्ञा महारानी जी।

उतावला रमन शालू से मिलने के लिए इतना व्याकुल था कि तुरंत ही फोन रख दिया मगर उस व्याकुल प्राणी को ये नहीं पाता की उसे शालू से मिलने कहीं जानें की जरूरत ही नहीं हैं वो तो राजमहल में अतिथि बनकर आ चुकी हैं। बस उसे आने की देर हैं भेंट होने में वक्त नहीं लगेगा। खैर रमन के फ़ोन रखते हैं पुष्पा बोलीं…बावले भईया स्वांग ऐसे कर रहें हैं जैसे जाने की व्यवस्था कर दिया तब मिलते ही बोल देंगे। बोला तो कुछ जायेगा नहीं फट्टू जो ठहरे लगता हैं मुझे ही कुछ करना पड़ेगा चल रे पुष्पा दूसरी भाभी घर लाने की कोई तिगड़म भिड़ा।

बस इतना ही बोलकर पुष्पा मंद मंद मुस्कुराने लगीं और मस्तिष्क में जोर देकर शालू और रमन की टांका भिड़ने का रस्ता निकलने लगीं।

उधर जब कमला मां बाप को लिए कमरे के भीतर गई। भीतर जाते ही कमला का तेवर बदल गईं। दोनों को खींचते हुए लेजाकर विस्तार पे बैठा दिया फिर तेज कदमों से वापस आकर द्वार बंद कर दिया। महेश और मनोरमा बेटी के तेवर देखकर एक दूसरे को इशारे में पूछने लगे कि कमरे में आते ही इसके तेवर क्यों बदल गईं। लेकिन उत्तर दोनों में से किसी को ज्ञात न था। इसलिए आगे किया होगा ये देखने के आलावा कोई चारा न था।

कमरे में ही सजावट के लिए रखी हुई फूलदान को उठा लिया और मां बाप के सामने पहुंचकर फूलदान को हाथ पे मरते हुए बोलीं…उम्हू तो बोलो आप दोनों ने न आने की झूठी सूचना मुझे क्यों दी जबकि आप दोनों आ रहें थे।

"कमला" शब्दों में चासनी घोलकर मनोरमा बोलीं।

कमला…मस्का नहीं मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। (फूलदान मां की ओर करके बोलीं) आप बोलेंगे (फिर बाप की और फूलदान करके बोलीं) कि आप बोलेंगे।

"कमला (महेश ने खुद और मनोरमा के बीच की खाली जगह पे थपथपाते हुए आगे बोलीं) यह आ हमारे पास बैठ।

कमला…पापा बोला न मस्का नहीं, मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। आप सच बताने में देर करेंगी तब मुझे गुस्सा आ जाएगा। गुस्से को शांत करने के लिए मुझे तोड़ फोड़ करना पड़ेगा। क्या आप चाहते हैं मैं गुस्से में तोड़ फोड़ करू।

मनोरमा…ये क्या बचपना है तेरी शादी हों गई फिर भी तेरी बचपना नहीं गईं।

कमला…क्या आई क्या गईं ये नहीं पुछा मैंने जो पुछा सच सच बता रहे हो की तोड़ फोड़ शुरू करूं।

बातों को खत्म करते ही कमला ने फूलदान के सिर वाले हिस्से को पकड़ा फिर मां बाप को इशारे में बोलीं छोड़ दूं। कहीं सच में कमला फूलदान न तोड़ दे। इसलिए मनोरमा फूलदान को कमला के हाथ से झपट लिया और महेश खींचकर कमला को पास बैठा दिया फिर बोला…हम तो तुम्हें बताना चाहते थे लेकिन राजेंद्र बाबू का कहना था वो तुम्हारे चेहरे पे खुशी देखना चाहते हैं। इसलिए हम तुम्हें बताए बिना अचानक आ पहुंचे।

कमला…मम्मी जी और पापा जी मुझसे बहुत स्नेह करते हैं। हमेशा ध्यान रखते हैं कि मैं कैसे खुश रहूं। सिर्फ़ इतना ही नहीं कल हम सभी शॉपिंग करने गए थे। वस्त्र हों गहने हों या जिस भी समान को देखकर मैंने बस इतना कहा कि देखो ये कितना अच्छा लग रहा हैं। बस मम्मी जी ने उसे मेरे लिए खरीद लिया ये नहीं देखा की उसकी कीमत कितनी है। आप लोगों ने क्या किया अपने आने की खबर मुझसे छुपा ली जबकि जितनी बार मैंने बात की प्रत्येक बार पुछा मिन्नते भी किया लेकिन आप दोनों ने एक बार भी मुझे नहीं बताए की आप लोग आ रहें हों। उस घर से विदा होते ही क्या मैं आप दोनों के लिए इतनी पराई हों गईं कि इतनी मिन्नते करने के बाद भी आप दोनों का ह्रदय नहीं पिघला अरे आप दोनों बस इतना ही कह देते की हम आ रहें हैं बस तेरा ससुर नहीं चाहते हैं कि हमारे आने की भनक तुझे लगे। तब मैं ऐसा अभिनय करती कि उन्हें भी भनक नहीं लगने देती। आप दोनों के आने की खबर मुझे पहले से पता हैं।

बेटी की बातों ने मनोरमा ओर महेश को आभास करा दिया कि जिसे खुश देखने के लिए उन सभी ने मिलकर इतना तम झाम किया वो धारा का धारा रह गया। बेटी खुश होने के जगह व्यथित हों गई। इसलिए मनोरमा और महेश ने एक साथ कमला को खुद से लिपटा लिया और एक साथ एक ही स्वर में बोलीं…हम मानते है हमसे गलती हों गई लेकिन अब आगे से हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। हमेशा ध्यान रखना तू हमारे ले न कल पराई थी न आज।

कमला…ध्यान रखना ऐसी गलती दुबारा नहीं होनी चाहिए।

मनोरमा…हा हम ध्यान रखेंगे लेकिन तू भी ध्यान रखना यह भी गुस्से में तोड़ फोड़ न कर देना।

कमला… वो तो बस आप दोनों को डराना के लिया किया था वरना मैं क्यों अपना घर तोड़ने लगी जिसे मैंने अभी अभी सजना शुरू किया।

मनोरमा…ओ जी हमारी बेटी तो बहुत समझदार हों गईं हैं।

कमला…ये कोई नई बात नहीं हैं। मैं समझदार पहले से ही थी। क्या आप जानते नहीं थे?

गीले सिकबे जो थी वो दूर हो गई और माहौल में बदलाव आ गया। मां बाप बेटी तीनों बातों में इतना माझ गए की उन्हें ध्यान ही नहीं रहा। वो कमरे में विश्राम करने आए थे। जल पान का बुलावा आया तब कहीं जाकर उन्हें ध्यान आया कि उन्हें कमरे में क्यों भेजा गया था। बरहाल बारी बारी मनोरमा और महेश हाथ मुंह धोकर आए फिर तीनों साथ में जलपान के लिए चले गए।


आगे जारी रहेगा….
Mast update dost
 

Top