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Na na daar


Na na daar
Raghu time par pahunch to gays tha us Bude admi ko bachane but us time to ravan waha akar un nakabposh ko bhi mardiya jo uske hi admi they aur us Bude admi ko lejakar usey bhi mardiya.Update - 4
अपर धन संपत्ति राज परिवार का बडा बेटा होने के बाद भी न जानें राजेंद्र को किया सूझा जो रघु को स्कूल में बिना किसी शुल्क के छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने के काम में लगा रखा था। रघु जब से कॉलेज छोड़ा तभी से ही छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने जा रहें थें। आज भी रघु नाश्ते से निपट कर स्कूल जा रहा था रस्ते में लोगों का भीड देख कार को रोका फिर भीड़ की ओर बढ़ गया। उचक उचक कर देखने की कोशिश कर रहा था कि इतनी भीड़ जामा होने का करण क्या हैं? लेकिन कुछ दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए आगे जानें की सोच कर भीड़ में से होकर आगे बढ़ने लगा। लेकिन भीड़ हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। भीड़ में से निकलने की जद्दोजेहद में एक नौजवान लड़के को धक्का लगा। नौजवान तिलमिलाकर बोला...कौन हैं वे जो धक्का दे रहा हैं।
बोलकर पीछे मुड़ा, रघु को देख हाथ जोड़ लिया फिर सफाई देते हुए बोला…मालिक आप! माफ करना मैं किसी अन्य को समझ बैठा था।
मुस्कुराते हुए रघु नौजवान को देखा फिर जोड़े हाथ को खोलते हुए बोला…भाई भीड़ में अक्षर एक दूसरे को धक्का लग ही जाता हैं। इसमें आप'का कोई गलती नहीं हैं। गलती तो मुझ'से हुआ, धक्का आप'को मैंने मारा और माफी आप मांग रहे हों जबकि माफ़ी मुझे मांगना चाहिए। माफ करना भाई।
माफ़ी शब्द सुन नौजवान दाएं बाएं देखने लग गया, कोई देख तो नहीं रहा जब उसे लगा कोई देख नहीं रहा तब बोला...मालिक माफी मांगकर आप मुझे शर्मिंदा न करें।
रघु आगे कुछ कहता तभी भीड़ पार से कोई तेज तेज चीखते हुए बोला…इस भीड़ में ऐसा कोई नहीं हैं जो मुझे इन जालिमों से बचा सके, कोई तो मुझे बचाओ नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।
आवाज आई दिशा की ओर भीड़ को चीरते हुए रघु बढ़ने लग गया आगे जानें में रघु को दिक्कत हों रहा था। इसलिए नौजवान चीख कर बोला…हटो हटो रास्ता दो मालिक आए हैं।
भीड़ में से कुछ लोग पीछे पलट कर देखा रघु को देख वो लोग सक्रिय हो गए और आगे जाने के लिए रस्ता बनाने लग गए, पल भर में खचा खच भरी भीड़ में एक गलियारा बन गया। गलियारे से हो'कर रघु आगे बढ़ गया। नौजवान भी रघु के पीछे पीछे चल दिया। आगे जा ही रहे थे तभी एक ओर आवाज सुनाई दिया…बुला जिसे बुलाना हैं आज तुझे कोई नहीं बचा पाएगा। इन नामर्दों के भीड़ में से तो कोई नहीं!
जल्दी जल्दी कदम तल करते हुए रघु भीड़ के सामने पहुंचा वहा एक बुजुर्ग बहुत घायल अवस्था में लेटा हुआ था एक नकाब पोश बंदा बुजुर्ग के छीने पर लाठी टिकाए खड़ा था। आस पास तीन बंदे ओर हाथ में लाठी लिए खडे थे। इस मंजर को देख रघु का पारा चढ़ गया फिर दहाड़ कर बोला…एक बुजुर्ग को चार लोग मिलकर मार रहे हों और ख़ुद को मर्द बोल रहे हो। मुझे तो तू सब से बड़ा नामर्द लग रहा हैं।
अचानक रघु की दहाड़ सुन नकाब पोश बंदे और वह मौजुद सभी लोग रघु की ओर देखने लगे रघु को वहा देख सभी अचंभित हो गए। बुजुर्ग रघु की ओर दयनीय दृष्टि से देख रहे थे जैसे कह रहा हों…मालिक मुझे बचा लो नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।
नकाब पोश बंदे रघु को पहली बार देख रहे थे इसलिए पहचान नहीं पाए, उनमें से एक अटाहास करते हुए बोला...देखो देखो नामर्दों के भीड़ में एक मर्द पैदा हों गया। जब तू मर्द बन ही रहा हैं तो अपना परिचय खुद ही बता दे, तू कौन हैं?
नकाबपोश की बात सुन भीड़ में से कुछ लोग सिर पर हाथ मरते हुए मन ही मन बोले…अरे नासपीटे जिनकी जागीर में खडे हो कुकर्म कर रहा हैं। उनसे ही उनका परिचय पुछ रहा हैं।
नकाबपोश कि बात सुन रघु मुस्कुरा दिया फिर दहाड़ कर बोला…तुझे मेरा परिचय जानना हैं तो सुन तू जिस जागीर पर खडे हो मर्दानगी दिखा रहा है। मैं उस जागीर के मालिक राजेंद्र प्रताप राना का बेटा रघु वीर प्रताप राना हूं। मिल गया मेरा परिचय।
रघु से परिचय सुन नकाब पोश बंदे आपस में ही खुशर पुशर करते हुए बोला…अरे ये तो राजाजी का बेटा हैं मैं कहता हू निकल लो नहीं तो सूली पे टांगना तय हैं।
"अरे ये कहा से आ गया भाई भागो नहीं तो पक्का आज मारे जाएंगे"
"अब्बे भागेंगे कैसे अपने हाथ में लठ हैं बंदूक नहीं जो डरा धमका के निकल जाएंगे"
"अब्बे सालो डरा क्यों रहें हों जान बचाना हैं तो सब से पहले रघु को ही निपटा देते हैं नहीं तो पकड़े जाएंगे। पकड़े गए तो हमारा भांडा फुट जायेगा ऐसा हुआ तो छोटे मालिक हमे और हमारे परिवार वालों को जिंदा ही दफन कर देंगे"
खुशार पुशार करते देख रघु बोल...क्या हुआ परिचय पसंद नहीं आया नहीं आय तो कोई बात नहीं, जान की सलामती चहते हों तो काका को छोड़ दो और घुटनो पर बैठ जाओ फिर भीड़ से बोला….सुनो तुम सब भीड़ में खडे खडे तमाशा क्या देख रहे हों पकड़ो इन जालिमों को।
रघु की बात सुन भीड़ में से कुछ नौजवान बाहर आने लग गए। भीड़ में हलचल होता देख नकाब पोश अपने अपने जगह से हिले, रघु की ओर बढ़ते हुए लीडर बोला...कोई अपने जगह से नहीं हिलेगा नहीं तो रघु की हड्डी पसली तोड़ देंगे।
नकाबपोश लीडर की धमकी सुन भीड़ में हों रहा हलचल रूक गया। नकाब पोश बंदे रघु की ओर बड़ने लगे तभी गोली चलने कि आवाज आया फिर वादी में एक आवाज गूंजा...कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा जो जहां खड़ा है वही खडे रहे नहीं तो तुम्हारे धड़ से प्राण को आजाद कर दुंगा।
भीड़ को चीरते हुए एक शख्स हाथ में दो नाली लिए आगे आ रहा था, पीछे पीछे चार पांच बंदे दो नाली लिए आ रहे थे उनको देख भीड़ ने रस्ता बाना दिया। जब रघु की नज़र उन'पे पडा तो मुस्कुराते हुए बोला…वाह काका बिल्कुल सही टाइम पर एंट्री मारे हों देखो ये गुंडे आप'के भतीजे की हड्डी पसली तोड़ना चाहते हैं।
रावण तब तक उनके नजदीक पहुंच चुका था। रावण को देख नकाब पोश बंदे लठ छोड़ घुटनों पर बैठ गए। नकाबपोशों को बैठते देख रावण बोला…रघु बेटा ये तो ख़ुद थर थर कांप रहे हैं ये किया हड्डी पसली तोडेंगे। फिर अपने आदमियों से...तुम लोग खडे खडे मेरा मुंह क्या देख रहे हों इनके भेजे में एक एक गोली दागों ओर इनके पापी प्राण को मुक्त कर दो।
चार गोली चली ओर चारों नकाब पोश ढेर हों गए। तब रघु बोला…ये क्या काका मारने की इतनी जल्दी क्या थी पहले इनसे पता तो कर लेते बजुर्ग काका को मार क्यो रहें थे?
रावण…रघु बेटा इन सभी ने तुम्हारे हड्डी पसली तोड़ने की बात कहीं। मैं इन्हे कैसे छोड़ देता अब जो होना था हों गया। फिर भीड़ से बोला…तुम सभी खडे खडे तमाशा क्या देख रहे हों जाओ सब अपना अपना काम करो कभी किसी को मरते हुए नहीं देखा।
भीड़ पाल भर में ही तीतर बितर हों गया रावण और रघु बुजुर्ग के ओर बढ़े, दोनों को पास आते देख बुजुर्ग डर से कांपने लग गए। रावण बुर्जुग को देख मंद मंद मुस्कुरा रहा था मुस्कान साधारण नहीं था। उसके मुस्कान को देख लग रहा था जैसे बड़ा कुछ होते होते टाल गया। दोनों बुजुर्ग के पास पहुंचे रावण खडे खडे मुस्कुरा रहा था और रघु बुजुर्ग के पास बैठ गया। बुजुर्ग डर कर पीछे को खिसक रहें थें। तब रघु बुजुर्ग का हाथ पकड़ रोक लिया फिर बोला…काका आप डर क्यों रहे हों। आप को कुछ नहीं होगा। देखो आप'को चोट पहुंचाने वाले मुर्दा बन जमीन पर लेटे हैं। चलिए आप'को डॉक्टर के पास ले चलते हैं आप'को बहुत चोट लगा हैं।
रावण…रघु बेटा इनको डॉक्टर के पास मैं ले जाता हूं तुम जाओ बच्चे तुम्हारा प्रतिक्षा कर रहे हैं।
रघु…पर
रावण…पर वार कुछ नहीं तुम जाओ मैं इनको अच्छे से अस्पताल पहुंचा दूंगा।
रघु…ठीक हैं काका।
बुजुर्ग रावण के साथ अस्पताल जाने की बात से ओर ज्यादा डर गया। पर कुछ कर नहीं पा रहा था न ही कुछ कह पा रहा था। रावण के आदमी बुजुर्ग को उठा जीप में डाला और रावण के पीछे पीछे चल दिया। रघु भी कार ले मंजिल की ओर चल पड़ा। रावण बुर्जुग को लेकर भीड़ भाड से दूर जंगल की ओर चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद एक सुनसान जगह गाड़ी रोका फिर अपने आदमियों को साथ ले जंगल की ओर चल दिया। कुछ दूर अदंर जानें के बाद रावण ने बुजुर्ग को धक्का दे गिरा दिया फिर दो नली बंदूक बुजुर्ग के सिर पे टिका बोला…क्यों रे हरमी तुझे जान प्यारा नहीं जो दादा भाई को हमारे साजिश के बारे में बताने जा रहा था।
बुजुर्ग डर के मारे थर थर कांपने लगा। मुंह जो अब तक सिला हुआ था अचानक खुला फिर बुजुर्ग बोला…मालिक मुझे माफ़ कर दो मैं भूल कर भी ऐसा नहीं करूंगा मुझे बख्श दो।
रावण…बख्श दू तुझे हा हा हा हा मैं कलियुग का रावण हूं मुझमें दया नाम कि कोई चीज नहीं हैं। हां हां हां हां हां
ढिसकाऊऊऊ एक गोली चला फ़िर वादी में एक मरमाम चीख गूंजा और सब शान्त हों गया फिर रावण बोला…चलो रे लाश को पहाड़ी से नीचे फेंक दो जंगली जानवर खाकर भूख मिटा लेगा ।
रावण के आदमियों ने शव को उठाया और कुछ दूर जा पहाड़ी से नीचे खाई में फेक दिया फिर उस जगह को अच्छे से साफ कर दिया फिर चल दिया।
रघु कुछ वक्त कार चलाने के बाद एक स्कूल के अदंर कार रोका और चल दिया एक पेड़ कि ओर जहां बच्चे बैठे हुए थे। रघु बच्चों को पढ़कर दोपहर दो बाजे तक घर पहुंच गया। इस वक्त महल में सब खाना खा कर आराम कर रहे थे। रघु भी खान खाकर आराम करने चला दिया।
आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
baat bigrne se phle sambhal liya ma beti ne , sari galtfamia dur ho gayi,dono parivar fir ek ho gae. ab age se mahes kabhi ankh mud ke viswas nahi karega kisike bato par.Update - 27
अंदर आकर सुरभि राजेंद्र को संभालने में लग गई। लेकिन राजेंद्र अधीर हुए जा रहे थे। उनके आंखो से अविरल अश्रु धारा बहे जा रहा था। आंसु तो सुरभि भी बहा रही थीं। आंसु बहाते हुए सुरभि बोली…ख़ुद को संभालिए आप ही ऐसा करेगें तो रघु को कैसे संभालेंगे।
राजेंद्र...खुद को कैसे संभालू कितने अरमानों से बेटे की शादी की तैयारी कर रहा था एक पल में सब चकना चूर हों गया। समाज में मेरी क्या इज्जत रह जायेगा। जब उन्हें पाता चलेगा लडकी वालो ने शादी से सिर्फ दस दिन पहले रिश्ता तोड़ दिया हैं।
सुरभि...अभी दिन हाथ में हैं। किसी को पाता नहीं की ऐसा कुछ हुआ हैं। इसलिए हमें उनसे एक बार ओर बात करना चाहिए।
राजेंद्र…मेरे इतना कहने पर भी जब उन्होंने नहीं सुना मेरे पग का भी मान नही रखा तो आगे भी कुछ नहीं सुनेंगे।
सुरभि...आप पहले ख़ुद को संभालिए आप ऐसा करेगें तो रघु को भी पाता चल जायेगा। अच्छा हुआ जो रघु यहां नहीं हैं नहीं तो रघु को क्या जवाब देते?
सुरभि के बातों का असर राजेंद्र पर होने लगा। धीरे धीरे ख़ुद को संभालने में लग गए। कुछ हद तक राजेंद्र ने खुद को संभाल लिया फिर बोले...सुरभि चलो हमे ज्यादा देर नहीं करना चाहिए। हमे एक बार ओर महेश बाबू से बात करना चाहिए। वो नहीं माने तो हमें जल्दी ही कोई ओर लड़की ढूंढकर उसी तारिक में रघु की शादी करना होगा नहीं तो मेरी बनी बनाई इज़्जत नीलम हों जाएगा।
सुरभि...न जानें किस मनहूस का छाया हमारे परिवार पर पडा हैं। हमने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगड़ा फिर कौन हमारे साथ ऐसा कर रहा हैं।
राजेंद्र...सुरभि उसे तो मैं ढूंढकर रहूंगा जिस दिन मेरे हाथ लगा उसका सिर कलम कर दुंगा। चलो अब हमें ज्यादा देर नहीं करना चाहिए।
सुरभि... हा चलो।
दोनों जैसे थे जिस हाल में थे उसी हाल में महेश के घर चल दिए। उधर महेश जब घर पहुंचा तब मनोरमा देखकर पुछा...अचानक आप कहा चले गए थे। आप जानते है न आज कमला की शादी का जोड़ा लेने जाना हैं।
महेश…मनोरमा शादी का जोड़ा लेकर क्या करना है? जब शादी ही टूट गया।
शादी टूटने की बात सुनकर मनोरमा भौचक्की रह गई। उसे लगा जैसे उनके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई हों। कमला उसी वक्त कुछ काम से रुम से बहार आ रही थीं। शादी टूटने की बात सुनकर वो भी अचंभित रह गईं। अब तक उसने रघु के साथ घर बसाने की जो सपना देखा था। वह चकना चूर होता हुआ दिख रहा था। कमला ने न जाने कौन कौन से अरमान सजा रखे थे? सब बिखरता हुआ दिख रहा था। कमला को लग रहा था। पहली बार किसी लडके ने उसके दिल में घर बनाया था। वह घर उसे ढहता हुआ दिख रहा था। रघु के प्रति जो प्रेम दीया उसके मन मंदिर में जल रहा था वह बुझता हुआ दिख रहा था। क्षण मात्र में ही कमला ने इन्ही सब बातों पर विचार कर लिया। विचार करते हुए उसके आंखे नम हों गई, नम आंखों से महेश के पास आई फिर बोली…पापा आप कहो न आप जो कह रहे हों वो झूठ हैं। कहो न पापा।
महेश...नहीं मेरी बच्ची मैं झूठ नहीं कह रहा हूं। मैं खुद जाकर रिश्ता तोड़ आया हूं।
ये सुनते ही कमला और मनोरमा को एक और झटका लगा। कमला ये सोचने लग गई। उसके ही बाप ने उसके खुशियों को ग्रहण लगा दिया और मनरोमा सोच रहीं थीं। बाप ने ही बेटी के घर बसाने की तैयारी करते करते घर बसने से पहले ही उजड़ दिया। ये सोच मनोरमा बोली...ये आप ने क्या किया? बाप होकर अपने ही बेटी का घर उजड़ आए। अपने ऐसा क्यों किया?
कमला...आप को मेरी खुशी का जरा सा भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करने से पहले एक बार तो मेरे बारे में सोच लिया होता। आप ने पल भर में मेरे सजाए सपनों को चकना चूर कर दिया।
महेश…कमला तेरे बारे में सोचकर ही शादी तोड़ कर आया हूं। मैं नहीं चाहता मेरी बेटी जिन्दगी भर दुःख में गुजारे। तिल तिल जलती रहे और बाप को कोसती रहे।
कमला...मैं भला आप'को क्यों कोसती अपने मेरे लिए एक अच्छा लडका ढूंढा, उनमें वो सभी गुण मौजूद हैं जो एक संस्कारी लडके में होना चाहिए। रघु जैसा लडका विरलय ही मिलता हैं और अपने क्या किया? रिश्ता तोड़ आए। बोलो न पापा आप ने ऐसा क्यों किया?
मनोरमा...अपने कभी देखा या सुना हैं कमला को किसी लडके का गुण गाते हुए। लेकिन जब से रघु के साथ कमला का रिश्ता तय हुआ हैं। तब से कमला रघु का गुण प्रत्येक क्षण गाती रहती हैं। हमारी बेटी ने कुछ तो देखा होगा तभी तो वक्त बेवक्त रघु का राग अलप्ति रहती हैं और अपने क्या किया रिश्ता तोड़कर आ गए। अपने सोचने की जहमत भी नहीं उठाया रिश्ता टूटने के बाद लोग किया कहेंगे। कितना लांछन हमारे बेटी पर लगाएगा। तब आप किया करेंगे सुन पाएंगे जमाने की लांछन भरी बातें।
कमला...पापा बताओ न अपने ऐसा क्यों किया क्यों मेरा घर बसने से पहले उजाड़ आए।
महेश…कमला नकाब में छुपा चेहरा तभी दिखता है जब नकाब हट जाता हैं। तुम जिस रघु की इतनी तारीफ करते थे। उसका गुण गाते नहीं थकती थीं। उसने अपना असली चेहरा नकाब से ढक रखा था। लेकिन सही समय पर उसके चेहरे से नकाब उतर गया। उसका असली चेहरा मेरे सामने आ गया। इसलिए मै रिश्ता तोड़ आया।
महेश की बाते सुन कमला बाप की और चातक की तरह देखने लग गईं। जैसे उम्मीद कर रहीं हों बाप ने जो कहा सरासर झूठ हैं। जब बाप ने कुछ ओर न कहा तब कमला मन ही मन निर्णय करने लग गई। लेकिन कमला किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थीं। मनोरमा भी महेश के कहने का अर्थ नहीं समझ पाई इसलिए जिज्ञासू भाव से पुछा...आप क्या नकाब चेहरा लगा रखा हैं। सीधे सीधे और साफ साफ लावजो में बोलो आप कहना किया चाहते हों।
महेश...मनोरमा कमला के लिए रघु सही लडका नहीं हैं उसमें न जाने कौन कौन से दुर्गुण भरे पड़े हैं। मैं नहीं चाहता ऐसे लडके से शादी कर कमला पूरा जीवन दुखों में गुजारे इसलिए मै रिश्ता तोड़ आया।
महेश की कही हुई बातों पर न मनोरमा को यकीन हो रहा था न ही कमला को यकीन हों रहा था। दोनों सिर्फ महेश का मुंह तक रहे थे। दोनों को ऐसे ताकते देख महेश बोला...जैसे तुम दोनों को मेरी बातो पर भरोसा नहीं हो रहा हैं वैसे ही मुझे हों रहा था लेकिन अंतः मुझे भरोसा हों ही गया। कैसे हुआ तो सुनो….
महेश ने अनजान शख्सों से जितना सुना था एक एक बात विस्तार से बता दिया। महेश की बाते सुन कमला और मनोरमा अचंभित रह गई। दोनों को बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा था। कोई ऐसा भी कर सकता हैं। दोनों खुद ही वकील और मुजरिम बन मन ही मन जिरहा करने लग गए। कहा तो कहा क्यों इसके पीछे करण किया हों सकता हैं। लेकिन कमला कुछ अलग ही सोच रहा था। नहीं रघु ऐसा नहीं हैं जरुर किसी ने झूठ कहा होगा। मैं मान ही नहीं सकती फिर भी किसी ने उन पर लांछन क्यों लगाया?
दोनों को विचारधिन देख महेश बोला…इतना सोच विचार करने की जरूरत नहीं हैं मैने जो भी फैसला लिया सोच समझ कर लिया।
मनोरमा...जरा मुझे भी तो समझाइए अपने कितना सोचा क्या विचार किया? किसी ने कह दिया और अपने मान लिया ख़ुद से खोज ख़बर लेने की कोशिश तो करते।
महेश…खोज ख़बर लेने की बात कहा से बीच में आ गया। एक आध लोग बताते तो एक बार को मैं नहीं मानता लेकिन चार चार लोगों ने बताया। वो क्या झूठ बोल रहे थे कुछ तो जानते होंगे तभी न बताया।
कमला जो अब तक इनकी बाते सुन रहा था और खुद में विचार कर रहे थे। इसलिए बाप की बातों पर असहमति जताते हुए बोली…कोई कुछ भी कहें मैं नहीं मानती मेरा रघु ऐसा नहीं हैं। आप एक बात बताइए जब आप शादी तोड़ने की बात करने गए थे। तब उन्होंने क्या कहा?
कमला के पुछने पर राजेंद्र के घर पर जो जो हुआ सब बता दिया। सुनते ही कमला बोली...पापा अपने क्या किया? उन्होंने हाथ जोड़कर विनती किया यह तक की उन्होंने पग उतरने की बात कह दिया फिर भी आप रिश्ता तोड़कर आ गए। अपने ये सही नहीं किया।
मनोरमा...छी अपने ये क्या किया? एक भाले व्यक्तित्व वाले इंसान के पग का भी मान नहीं रखा। वो भाले लोग नहीं होते या उनके बेटे में कोई दुर्गुण होता तो वो कभी ऐसा नहीं करते अपने बहुत गलत किया हैं।
कमला...हां पापा अपने बहुत गलत किया अच्छा आप मुझे एक बात बताइए उनके जगह आप होते और कोई मेरे ऊपर लांछन लगाता। मेरे बारे में कोई झूठी बातें बताता तब आप किया करते।
महेश…मै जानता हूं मेरी बेटी ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी जिससे मेरा सिर शर्म से झुक जाएं। कोई कितना भी कहें मैं उनकी बातों को कभी नहीं मानता।
कमला...जब आप नहीं मन सकते तो वो कैसे मानते की उनके बेटे में कोई दुर्गुण हैं।
मनोरमा... हां आप'को समझना चाहिए था। उनके बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं तभी तो इतना विनती कर रहे थे। आप इतने समझदार और सुलझे हुए इंसान होकर आप समझने में भुल कैसे कर सकते हैं।
इतना कुछ सुनने के बाद महेश एक एक बात को पुनः सोचने लग गए। सोचते हुए उन्हें अपना ही गलती नज़र आने लग गया। जब उन्हें लगा उनसे बहुत बडा भुल हों गया। तब महेश घुटनों पर बैठ गए फिर बोले….ये मैंने किया कर दिया अपने ही हाथों से बेटी का जीवन बरबाद कर आया। मैंने ऐसा क्यों किया? क्यों मैं उन कमीनों की बातों पर ऐतबार किया? क्यों मैंने किसी से नहीं पुछा? क्यों मैंने तुम दोनों से बात नहीं किया? बात कर लेता तो शायद मुझ'से इतना बडा भुल न होता। अब मैं किया करू?
मनोरमा...जो होनी था वो हो चुका हैं। आप को भुल सुधरना हैं तो अभी चलो उनसे माफ़ी मांग कर टूटे रिश्ते को जोड़कर आते हैं।
कमला...हां पापा अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा हैं चलो जल्दी नहीं तो बहुत देर हों जाएगी।
महेश...इतना कुछ होने के बाद क्या वो मानेंगे? मैंने उनका इतना अपमान किया अब तो वो ख़ुद ही रिश्ता तोड़ देंगे।
कमला...जो भी हो आप को उनसे माफ़ी मांगना होगा नहीं माने तो मैं ख़ुद उन्हें मनाऊंगी।
मनोरमा...हां मैं भी उनसे विनती करूंगा। जल्दी चलो जितना देर करेंगे उतना ही बात बिगड़ जाएगा।
तीनों घर से निकलने ही वाले थे । तभी उनके घर के बहार एक कार आकर रुका कार से राजेंद्र और सुरभि बहार निकले फिर घर के अन्दर चल दिए। दोनों को देख महेश उनके पास गए। घुटनों पर बैठें फिर हाथ जोड़कर बोले….राजा जी मुझसे बहुत बडा भुल हों गया। मुझे माफ़ कर देना मैं लोगों की बातों में आकर बहक गया था और न जानें आप'के बेटे को क्या क्या कह आया।
महेश की बाते सुन सुरभि और राजेंद्र अचंभित हों गए। दोनों आए थे महेश को मानने लेकिन यहां तो नजारे ही बादल गया दोनों सोच कर आए थे कितना भी हाथ जोड़ना पड़े कितना भी पाव पड़ना पड़े पड लेंगे लेकिन टूटे रिश्तों को जोड़कर ही आयेंगे। महेश के देखा देखी मनोरमा भी घुटनों पर बैठ गई फिर बोली….इनके किए पर हमे शर्मिंदगी महसूस हों रही हैं। इन्होंने जो अपमान आप दोनों का किया उसे तो बदल नहीं सकते फिर भी आप'से विनती हैं आप हमें माफ़ कर दे।
महेश और मनोरमा को घुटनों पर बैठे माफ़ी मांगते देख सुरभि और राजेंद्र कुछ कुछ समझ गए यह हुआ किया था। दोनों कुछ बोलते उससे पहले कमला दोनों के पास गई। सुरभि और राजेंद्र के करीब घुटनों पर बैठ गई फिर बोली…मुझे आप'के बेटे पर पूरा विश्वास हैं वो गलत नहीं हों सकते पापा ने जो किया उसकी भरपाई तो नहीं हों सकती फिर भी मैं आप'से माफ़ी मांगता हूं आप मुझे अपने घर की बहु स्वीकार कर लें।
कमला की बाते सून सुरभि का मन गदगद हों गया एक लड़की जो बस कुछ ही दिन हुए उसके बेटे से मिला और इतना भरोसा हों गया की उसे किसी की बात सुनकर विश्वास नहीं हों रहा हैं जो रघु के बरे मे कहा गया वो सच हैं। इतनी जल्दी रघु पर इतना भरोसा करने वाली लड़की कोई ओर मिल ही नहीं सकती इसलिए सुरभि ने कमला को उठाया और गले से लगा लिया फिर बोली...मैंने तो तुम्हें कब का मेरे घर की बहु मान लिया था। सुरभि की बहु घुटनो पर बैठकर माफ़ी मांगे ये सुरभि को गवारा नहीं। इसलिए तुम माफ़ी न मांगो।
राजेंद्र ने जाकर महेश को उठाया और मनोरमा को भी उठने को कहा फिर बोला…महेश बाबू माफ़ी मांगकर आप मुझे शर्मिंदा न करें। आप ने तो वोही किया जो एक बेटी के बाप को करना चाहिए। कोई भी बाप नहीं चाहेगा। उस'की बेटी एक ऐसे लडके के साथ जीवन बिताए जिसमें दुर्गुण भरे हों। लेकिन मेरा बेटा बेदाग हैं इस बात का आप'को यकीन हों गया इससे बढकर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं।
महेश…राजा जी आप सही कह रहे थे आप के बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं लेकिन मैं आप'का कहना नहीं माना लोगों की बातों में आकर इतना भी नहीं सोचा की आप'के जगह मैं होता और मेरी जगह आप होते तो क्या होता। मुझे माफ करना मैंने आप'के पग का भी मान नहीं रखा।
राजेंद्र...महेश बाबू जो हों गया बीती बात समझकर भुल जाओ नहीं तो ये बातें हमारे जीवन के खुशियों को निगल जायेगा।
मनोरमा...राजा जी आप भले मानुष हों इसलिए इतना कुछ होने के बाद भी भुल जानें को कह रहे हों नहीं तो कोई और होता तो टूटे रिश्तों को जोड़ने नहीं आते बल्कि कोई और लडकी ढूंढकर तय तारिक में ही अपने बेटे की शादी करवा देते।
राजेंद्र...समधन जी मैं घर से मन बनाकर आया था की यहां आकार महेश बाबू को कुछ भी करके मनाऊंगा आगर नहीं माने तो कोई ओर लड़की देखकर तय तारिक पर ही रघु की शादी करवा दुंगा। पर यह आकार जो देखा उसके बाद मुझे अपना विचार बदलना पड़ा।
महेश…राजा जी सिर्फ मेरी एक भुल की वजह से आज मेरी बेटी के खुशियों को ग्रहण लग जाता। मैं बिना जांच पड़ताल के सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों की बातों में आकार रिश्ता थोड़ आया। ये अपराध बोध मुझे हमेशा कचोटता रहेगा।
राजेंद्र...महेश बाबू आप खुद को अपराधी मन कर खुद को ही सजा दे रहें हैं। जबकि मैं इस घटना को दूसरे नजरिए से देख रहा हू। आज की ये घटना न होता तो मुझे पाता ही नहीं चलता जिसे मैंने रघु की जीवान संगिनी के रूप में चुना हैं। उसे रघु पर इतना विश्वास हैं की कोई कितना भी रघु पर लांछन लगाए पर उसे विश्वास है कि रघु वैसा नहीं हैं।
राजेंद्र की इतनी बाते सून कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया। कमला को मुसकुराते देख सभी के चेहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया। फिर सभी कमला की तारीफे करने लग गई। महेश ऊपरी मन से सामान्य दिखा रहा था पर मन ही मन अभी भी अपराध से गिरा हुआ था। शायद महेश का यहां अपराध बोध जीवन भार रहने वाला था।
इधर सुरभि और राजेंद्र के निकलने के कुछ देर बद रघु घर आया। मां बाप को न देखकर रघु ने नौकरों से पुछा तब नौकरों ने वहा घाटी घटना को बता दिया। सुनते ही एक पल को रघु ठिठक गया। उसे यकीन नहीं हों रहा था किसी के कहने पर महेश रिश्ता तोड़ने आ गया और उसके बाप को उस पर इतना भरोसा हैं कि बेटे पर लांछन लगते देख बाप ने किसी के सामने अपना पगड़ी उतर दिया। सुनने के बाद रघु को महेश पर गुस्सा आने लग गया। गुस्से में रघु बोला…रमन चल मेरे साथ
रमन…कहा जायेगा
रघु...कमला के घर जाना हैं।
ये कहकर रघु रमन को खींचते हुए बहार लेकर गया कार लेकर चल दिया। रघु को गुस्से में देख रमन बोला...यार वहा जाकर कुछ भी बखेड़ा न करना राजा जी और रानी मां बात करने गए हैं उनको ही करने देना।
रघु…मैं कतई बर्दास्त नहीं कर सकता पापा किसी के सामने गिड़गिड़ाए उनका भी कुछ मान सम्मान हैं मै उनके मान सम्मान को ऐसे धूमिल नहीं होने दे सकता। उन्होंने मुझपर लानछन लगाया वो मैं सहन कर लेता लेकिन उनके करण पापा कितने आहत हुए ये मैं सहन नहीं कर पाऊंगा।
रमन...रघु किसी बात का फ़ैसला जल्दबाजी में करना ठीक नहीं हैं। पहले जानना होगा ऐसा किया हुआ जिस करण उन्हें रिश्ता तोड़ना पड़ा।
रघु...रिश्ता जोड़ना जीतना कठिन हैं उतना ही आसान हैं तोड़ना मैं तो ये समझ नहीं पा रहा हूं कि कमला के पापा इतना समझदार होने के बाद ऐसा कदम कैसे उठा सकते हैं।
रमन...कमला के पापा! ससुरजी बोलने में शर्म आ रहा हैं।
रघु...ससुरजी तो तब बनेंगे जब कमला से मेरा शादी होगा शादी तो टूट गया तो कहे की ससुर।
रमन...तुझे बडा पता हैं। पहले जान तो ले हुआ किया हैं। बिना जानकारी के तू किसी मुकाम पर कैसे पहुंच सकता हैं।
रघु आगे कुछ नहीं कहा बस नज़र सामने ओर कर कार चलाने लग गया। कुछ ही क्षण में दोनों कमला के घर पहुंच गए। अन्दर जाते हुए रमन बोला...यार तू बिलकुल शान्त रहना कुछ भी बोलने से पहले उनकी बाते सुन लेना।
रघु हां में सिर हिला दिया फिर दोनों अन्दर पहुंच गए। अन्दर का नज़ारा बदल चुका था। राजेंद्र और महेश हंसी ठिठौली कर रहें थे। सुरभि और कमला एक जगह बैठे बाते कर रहें थे। रघु की नज़र कमला पर पहले पडा कमला सुरभि के कहे किसी बात पर मुस्करा रहीं थीं। ये देख रघु भी मुस्कुरा दिया। रमन कमला को पहली बार देख रहा था इसलिए रघु को कोहनी मरकर धीरे से बोला…यार तूने जितना तारीफ किया था भाभी तो उसे भी ज्यादा खूबसूरत और हॉट है तू तो बडा किस्मत वाला निकला तेरे तो बारे नियारे हों गया।
रमन के बोलते ही रघु ने भी एक कोहनी मारा रघु की कोहनी थोड़ा तेज रमन को लगा। रमन ahaaa कितना तेज मरा इतना बोल पेट पकड़ कर झुक गया। रमन के बोलते ही सभी की नजर इन दोनों कि ओर गए। दोनों को दरवाज़े पर खडा देख सुरभि बोली...रघु तू कब आया और रमन तुझे किया हुआ। ऐसे पेट पकड़कर क्यों झुका हुआ हैं।
रमन सुरभि के पास गया फिर बोला...रानी मां आप'के सुपुत्र को मेरा भाभी का तारीफ करना अच्छा नहीं लगा इसलिए मुझे कोहनी मर दिया।
ये सुन सुरभि मुस्कुरा दिया और कमला के चेहरे पर भी खिली सी मुस्कान आ गई। कमला टूकर टूकर रघु को देखे जा रही थी और मुस्कुरा रही थीं। रघु और रमन को यह देख राजेंद्र बोला...तुम दोनों कब और किस काम से आए हों?
रघु…पापा मुझे पाता चला मेरा और कमला का रिश्ता टूट गया है। किसलिए टूटा ये जाने आया था। लेकिन यह आकर तो कुछ ओर ही देख रहा हूं।
राजेंद्र...वो एक गलतफैमी के करण हुआ था लेकिन अब सब ठीक हों गया हैं।
रघु…पापा मैं जन सकता हूं गलत फैमी क्या हैं?
राजेंद्र…तू जानकर किया करेगा तेरा जानना जरूरी नहीं हैं। जो हो गया सो हों गया अब गड़े मुर्दे उखड़कर कोई फायदा नहीं।
रघु... पापा आप कह रहे हों तो मैं कुछ नहीं पूछता लेकिन आज किसी की बात सुनकर रिश्ता तोड़ने की नौबत आ गई कल को कोई और कुछ बोलेगा तब क्या होगा?
महेश…रघु जी आप का कहना सही हैं आगे भी तो कोई ऐसा कर सकता हैं। मैं बताता हूं। क्यों मुझे रिश्ता तोड़ने की बात कहना पड़ा?
महेश सभी बाते बता दिया जिसे सुनकर रघु को फिर एक बार गुस्सा आ गया और भड़कते हुए बोला…किसकी इतनी मजाल जो मुझ पर लंछन लगाया। मैं उसे छोडूंगा नहीं मैं उसे ढूंढ कर जान से मार दुंगा।
रघु की बात सुनकर कर सुरभि रघु के पास आई फिर बोली...रघु बेटा शान्त हों जा ये बात आज से नही बहुत पहले से हो रहा हैं हम भी उसे ढूंढ रहे है जो ऐसे बहियाद हरकते कर रहा हैं।
रघु...कब से चल रहा हैं और कौन कर रहा हैं? मुझे अभी के अभी जानना हैं।
राजेंद्र...रघु चुप हों जा मैं उसे ढूंढ लूंगा एक बार तेरी शादी हों जाएं फिर उस सपोले को ढूंढ निकलूंगा।
रमन...किया हुआ और क्यों हुआ मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। जरा मुझे एक एक बात खुल कर बताएंगे।
सुरभि...ये समय उन बातों को जानने का नहीं हैं। पहले रघु की शादी निपट जाए फिर तुझे जो जानना है जान लेना।
रमन...मुझे अभी के अभी जाना है। किसी ने मेरे यार पर कीचड़ उछाला और आप कह रहे हों मैं न जानू रानी मां आप को मेरी कसम आप मुझे बेटा मानती हों तो एक एक बात मुझे बताएंगे।
रमन की कसम देने पर सुरभि सभी बाते बता देती हैं। जिसे सुनकर रमन गुस्से में आग बबूला हों जाता हैं। गुस्सा तो रघु को भी आ रहा था। दोनों को गुस्से में देख सुरभि बोली...रमन रघु अपने गुस्से को शान्त करो और रमन एक बात कान खोल कर सुन ले आज तूने जो कहा आगे कभी भुलकर भी न कहना।
रमन...sorry रानी मां लेकिन मैं किया करू इतना कुछ हों रहा था और आप मुझे कुछ भी नहीं बताया। एक बार मुझे तो बता देते।
सुरभि दोनों को शान्त करते हैं। मनोरमा और महेश रघु और रमन की दोस्ती देख मन ही मन कहता है क्या दोस्ती हैं दोनों के बीच एक पर लांछन लगा तो दूसरा तिलमिला उठा और ऐसे लडके के बारे में लोग गलत सलात बोल रहे थे। उनके बातों में आकर मैं अनर्थ करने चला था।
रघु रमन को शान्त करने के बाद कुछ क्षण और बात करते हैं। मौका देख रघु कमला को इशारे से बात करने को बुलाता हैं। तो कमला पहले तो मना कर देती हैं लेकिन बार बार इशारे करने पर मान जाती हैं। तब दोनों बात करने छत पर चलें गए। दोनों के साथ साथ रमन भी चल दिया। छत पर तीनों कुछ क्षण तक हसी ठिठौली करते हैं। फिर निचे आकर सभी के साथ घर को चल देते है। एक बार फिर महेश बेटी की शादी की तैयारी करने में लग गए। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत गया।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद ।
ghar me rehne wale sabhi par paini nazar rakhne se asli gunegar ko pakd sakte hai rajendra.Naye reader ka mai tah dil se welcomekarta hoon saath hi ye jaankar khushi mila ki ek update me varnit ghatna ne apko membar banne par majbur kar diya. Isse acha gift mere liye kuch aor ho hi nehi sakta thank you
jo aap ek member bankar lusty par aaye.
Jab inshan ko uski ichchha pure karne ka sabhi rasta band hota dikhe to vo kuch kar sakta hai. Uske liye na vachan mayne rakhta hai na hi koyi rista use bas dikhta hai to sirf aur sirf uaka mahtvkansha.
ravan kitana girega age aane wale update me pata chal jaye gaga. Raghu kiya karega kya kamla ki shadi raghu se hoga ki nehi hoga ye next update me pata chal jaye ga next update 7pm ke aas pass post kar dunga.
Ye to hai par rawan apne bhai ko chhe se janta hai isliye ek ek chal ko bhai ke najro se chhupa kar chal raha।ghar me rehne wale sabhi par paini nazar rakhne se asli gunegar ko pakd sakte hai rajendra.
Bahut bahut shukriyabaat bigrne se phle sambhal liya ma beti ne , sari galtfamia dur ho gayi,dono parivar fir ek ho gae. ab age se mahes kabhi ankh mud ke viswas nahi karega kisike bato par.
dekhna ye hei k ravan kya karne wala hei aage.
Thank youRaghu time par pahunch to gays tha us Bude admi ko bachane but us time to ravan waha akar un nakabposh ko bhi mardiya jo uske hi admi they aur us Bude admi ko lejakar usey bhi mardiya.
But kab tak wo apne kukarm ko yu apne bhai se bacha kar rakh payega aaj to usne us Bude admi ko mardiya but kal koi na koi Phir ayega samne shayad ek se zyada aye ya Phir raghu ko kahi se pata lag jaye fan kya hoga ya pata lagne tak der hojayegi.
Bahut bahut shukriyaYe to Ravan bilkul pagla gaya ekdam aur apna hi ghar bigaad liya lekin isko jsbtak panisment nai milega ye nai sudhrega